प्रकार
बच्चों में पाई जाने वाली मिर्गी कई प्रकार की हो सकती है, जन्हें प्रायः पहचाना नहीं जाता है। पहचानने में परेशानी की कई कारण हैं, जैसे :
(१) बच्चे में अभिव्यक्ति की असमर्थता
(२) अभिभावकों में जानकारी का आभाव
(३) मिर्गी के कुछ दौरों का क्षणिक एवं सूक्ष्म स्वरूप एवं
(४) मिर्गी के सम्बन्ध में प्रचलित गलत धारणाएँ
कुछ उदाहरण :
एक बच्चे में दो महीने की आयु में एक तरफ के हाँथ-पांव में कुछ क्षणों के लिए खिंचाव आता था। चूंकि यह बहुत थोड़े समय (कुछ सेकेण्डों) के लिए रहता था और बच्चे को जब तक माँ गोद में लेती थी तब तक समाप्त हो जाता था, वे समझते रहे बच्चा किसी कारणवश डर रहा है। पर वही बच्चा आठ महीने की उम्र तक गर्दन भी नहीं संभाल पाया तो उसे चिकित्सक के पास ले जाया गया और चिकित्सक ने मिर्गी पहचान कर उसकी दवा शुरू की। अतः हम देख सकते हैं कि जानकारी के अभाव में, मिर्गी का इलाज समय से न शुरू कर पाने के कारण बच्चे का विकास किस तरह प्रभावित हो गया।
एक दूसरा उदाहरण:
एक आठ साल के बच्चे का है, जो कुछ समय पहले तक पढ़ाई इत्यादि में बहुत होशियार था। कुछ दिनों से यह देखा जाने लगा कि वह कुछ क्षणों के लिए अपने वातावरण से कट सा जाता जैसे बोलते-बोलते बीच में हठात् बिना वजह रूक जाना और फिर कुछ देर बाद वहीं से बात शुरू करना जहाँ से वह रूक गया था। इस दौरान उसकी आँखे एकटक रहती थीं और मुंह खुला रहता था। ऐसे दौरे उसे दिन में अनेकों बार पड़ते थे। पढ़ाई में उसकी कमजोरी को बच्चे का ध्यान नहीं देना समझा गया और बच्चे को अक्सर डाँट-फटकार पड़ती रही। यह सिलसिला उस समय तक चला जब तक कि उसकी माँ ने दूरदर्शन पर मिर्गी के लक्षण के बारे में कार्यक्रम नहीं देख लिया। इलाज करवाने से अब यही बच्चा पहले की तरह फिर पढ़ाई में ध्यान लगा पा रहा है।
इन दो उदाहरणों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि मिर्गी के दौरों को पहचानने के लिए अभिभावकों को सही जानकारी की जरूरत है।
सामान्यतः बच्चों में मिर्गी के दौरे निम्नलिखित प्रकार के होते हैं:
1. सामान्यीकृत तानी अवमोटन मिर्गी (Generalized Tonic Clonic Epilepsy)
इसे 'बड़ी मिर्गी' भी कह सकते हैं। इसमें बच्चा एका-एक बेहोश हो जाता है और शुरू में शरीर की तमाम मांसपेशियाँ अकड़ जाती हैं जिसके चलते उसके मुंह से चीख जैसी आवाज निकलती है, कभी-कभी जीभ कट जाती है, पेशाब आ जाता है और बच्चा जमीन पर गिर जाता है। इसके बाद पूरे शरीर में मिर्गी के झटके या खिंचाव आने लगते हैं, और मुंह से झाग निकलता है। यह दौरा आम तौर से एक-दो मिनट तक रहता है फिर बच्चे को थोड़ी देर तक बेहोशी सी छाई रहती है, या वह सो जाता है उसे इस दौरान थकान लगती है सिर या शरीर में दर्द होता है और कमजोरी लगती है।
2. खोयी मिर्गी (Absence Epilepsy)
इस प्रकार की मिर्गी के दौरान कुछ सेकेण्डों में लिये बच्चे की नजर स्थिर हो जाती है, जैसे कि कहीं खो सा गया है। साथ में आंखों की पलकें तेजी से झपकने लगती हैं, पुतलियाँ एक तरफ उठ जाती है और मुंह की तरफ देखने से लगता है जैसे वह कुछ चबा रहा है। यदि बच्चे के हाँथ में कोई चीज है तो वह गिर सकती है। उस दौरान बच्चे से कुछ पूछने पर वह उसका जवाब नहीं दे सकता है, पर दौरा खत्म होते ही वह एकदम सामान्य हो जाता है। अक्सर ये दौरे दिन में कई बार पड़ सकते है। यह जरूरी है कि जिन बच्चें को ऐसा होता है उन्हें उनके माता-पिता ध्यानपूर्वक निरीक्षण करें और जितनी बार भी ऐसे दौरे आते हों उसका नियमित रिकार्ड रख डॉक्टर को बतलायें।
3. पेशी अवमोटनी मिर्गी (Myoclonic Epilepsy)
इस दौरान मांसपेशियों में खिंचाव अचानक कुछ क्षणों के लिए होता है। यह खिंचाव हल्का भी हो सकता है और जोर से भी हो सकता है। यह शरीर के किसी एक हिस्से में ही सीमित रह सकता है या इतना जबर्दस्त भी हो सकता है कि बच्चा अचानक से झटका खाकर गिर जाये। यह आमतौर से सुबह में सोकर उठने के बाद होता है और चीजें हाथों से छूट कर जैसे टूथ ब्रश आदि गिरने लगते हैं।
4. आतानी मिर्गी या ड्राप अटैक (Atonic or Drop Attacks)
माँस पेशियों के टोन (तनाव) में अचानक कमी के कारण बच्चा गिर जाता है। कुछ सेकेण्डों से एक मिनट के अन्दर ही वह फिर सामान्य हो कर चलने-फिरने लगता है। यदि किसी बच्चे को इस तरह के दौरे बहुत अधिक आते हों तो यह जरूरी है कि उसके सिर को सुरक्षित रखने के लिये बच्चे को कुछ (हेलमेट आदि) पहनाया जाये। अक्सर ऐसे दौरों को शारीरिक कमजोरी का एक लक्षण मान कर ध्यान नहीं दिया जाता है।
5. सरल आंशिक मिर्गी ( Simple Partial Epilepsy)
इसके दौरान शरीर के किसी एक हिस्से जैसे उंगली, अंगूठा या किसी भी भाग में झटके आते हैं। बच्चा जगा रहता है और उसे इसका एहसास भी रहता है, पर चाह कर भी वह इसे रोक नहीं सकता। यदि यह ज्यादा देर तक रह जाये तो शरीर के अन्य भागों में फैलकर बड़ी मिर्गी का रूप भी ले सकता है। एक अन्य तरह की सरल आम्शिक मिर्गी में झटके नहीं लगेगें और बाहर से देखने वाले को जल्दी से पता भी नहीं चल पाता है, पर बच्चा यदि व्यक्त करने लायक उम्र का हो तो वह शिकायत कर सकता है कि जैसे वह कुछ ऐसा देख या सुन पा रहा है जो दूसरों को दिखाई या सुनाई न देता हो। उसे अचानक भय भी लग सकता है, गुस्सा आ सकता है या बिना वजह खुश नजर आने लगता है। कभी-कभी कोई बच्चा अजीब सी महक की शिकायत कर सकता है तो दूसरों को पेट में अजीब सा महसूस हो सकता है, उल्टी करने जैसा लग सकता है। बच्चा कुछ विभ्रमित सा लग सकता है और थोड़ी देर बाद सोना चाह सकता है। उसे दोरे के दौरान जो हो रहा है उसकी याददाश्त नहीं रहती है। प्रायः इन दौरों को भी बच्चे की बदमाशी समझ कर ध्यान नहीं दिया जाता है।
6. शिशु ऐंठन (Infantile Spasm)
तीन महीने से तीन वर्ष के बच्चों में यह अक्सर देखने को मिलता है। अक्सर इस दौरान यदि बच्चा बैठा है तो उसका सिर आगे की तरफ झूक जायेगा, और दोनों हाथ आगे की तरफ निकल जाते हैं लगेगा जैसे वह सलाम कर रहा है। यदि सोया है तो घुटने अचानक ऊपर की तरफ मुड़ जाते हैं हाथ और सिर आगे की तरफ झुक जाते हैं। अक्सर ऐसे दौरे एक बार शुरू होने पर कुछ-कुछ अन्तराल पर बार-बार होते रहते हैं। और यह जरूरी हो जाता है कि चिकित्सक की सलाह तुरन्त ली जाये।
यह जरूरी है कि जब भी अभिभावक को जरा भी शक हो तो किसी सक्षम चिकित्सक से जरूर सलाह करें। कई बार चिकित्सकों के लिये भी निश्चित कर पाना सम्भव नहीं होता क्योंकि वे बच्चे को हर समय नहीं देख पाते हैं। अतः यदि आपको लगता है कि उल्लिखित लक्षणादि बच्चे में बार-बार दिखाई दे रहे हैं तो आप उसे विस्तार से नोट करें और अपने डॉक्टर को बतलाएं। यह बात इसलिए भी जरूरी है कि मिर्गी के अलग-अलग प्रकार की अलग-अलग दवा होती है, और चिकित्सक मिर्गी का प्रकार उसी समय जान जायेगा जब आप उसकी सही जानकारी देंगे।
दौरे के प्रकार:
1. इडियोपैथिक- मिर्गी के इस रूप के लिए कोई स्पष्ट कारण नहीं है।
2. क्रिप्टोजेनिक- एक क्रिप्टोजेनिक जब्त के दौरान, डॉक्टर को संदेह है कि इसके पीछे एक कारण है लेकिन वह इसे इंगित नहीं कर सकता है।
3. लक्षण- इस प्रकार के जब्त के दौरान, विशेषज्ञ जानता है कि वास्तव में क्या कारण है।
दौरे के वर्गीकरण:
1. आंशिक जब्त- आम तौर पर दो प्रकार के आंशिक जब्त होते हैं:
2. सरल आंशिक जब्त- इस प्रकार के जब्त के दौरान, रोगी सचेत है और उसे उसके आसपास के बारे में भी पता है।
3. जटिल आंशिक जब्त- जब्त के इस रूप के दौरान, रोगी की चेतना खराब है। रोगी जब्त को भूल जाता है, भले ही उन्हें इसकी याद दिलाया जाए, इस जब्त की यादें बहुत अस्पष्ट है।
4. सामान्यीकृत जब्त- यह तब होता है जब मस्तिष्क के दोनों हिस्सों में मिर्गी की गतिविधि चल रही है। आम तौर पर जब्त के दौरान व्यक्ति की चेतना खो जाती है।
5. माध्यमिक सामान्यीकृत जब्त- इस प्रकार का जब्त तब होता है जब मिर्गी गतिविधि एक आंशिक जब्त के रूप में होती है और धीरे-धीरे मस्तिष्क के हिस्सों में फैलती है। जब्त की प्रगति के विकास के रूप में रोगी चेतना खो देता है।
कभी-कभी अन्य विकार और परिस्थितियों को मिर्गी के रूप में गलत तरीके से निदान किया जाता है। इन स्थितियों में शामिल हैं:
1. उच्च बुखार जिसमें मिर्गी के समान लक्षण होते हैं।
2.बेहोशी
3. नर्कोलेप्सी (दिन के दौरान रात में नींद की नींद और नींद के निरंतर एपिसोड बाधित)।
4. कैटाप्लैक्सी (क्रोध, भय और आश्चर्य जैसे भावनात्मक प्रतिक्रिया के कारण चरम कमजोरी के कारण एक हमला)
5. नींद संबंधी विकार
6. बुरे सपने
7. मानसिक स्वास्थ्य विकारों के कारण आतंक हमलों का कारण बनता है।
8. फ्यूगू राज्य (अस्थायी भूलभुलैया के कारण यह एक दुर्लभ मनोवैज्ञानिक विकार है)
9. मनोवैज्ञानिक दौरे (रूपांतरण विकार जैसे मनोवैज्ञानिक अशांति से संबंधित एक व्यवहार)
10. सांस लेने वाले एपिसोड जो तब होते हैं जब एक बच्चा जोर से रोता है और फिर अचानक कुछ सेकंड तक सांस लेता है। यह चेतना के नुकसान और त्वचा के रंग में परिवर्तन से विशेषता है।
11. लंबे समय तक मिर्गी के लक्षणों को कम करने के लिए, मिर्गी से निदान होने वाले लोगों को एंटी-मिर्गी दवाएं निर्धारित की जाती हैं।
लक्षण
बेहोशी।
दौरे
मिर्गी का निदान – epilepsy diagnosis
यदि आपको बार-बार दौरे का अनुभव हो रहा है तो आपको जितना जल्दी हो सके डॉक्टर को दिखाना चाहिए क्योंकि यह दौरान किसी गंभीर बीमारी का लक्षण हो सकता है। व्यक्ति के स्वास्थ्य एवं लक्षणों के आधार पर ही डॉक्टर यह तय करते हैं कि कौन सा टेस्ट इस बीमारी के निदान में सहायक होगा।
आमतौर पर मस्तिष्क के मोटर की क्षमता (motor abilities) और मानसिक कार्यप्रणाली की जांच करने के लिए डॉक्टर न्यूरोलॉजिकल परीक्षण करते हैं।
मिर्गी के निदान के लिए डॉक्टर मरीज के ब्लड की अच्छी तरह से जांच करते हैं।
डॉक्टर इन विकारों का पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट करते हैं-
1. संक्रामक रोगों के लक्षण
2. लिवर और किडनी की कार्य प्रणाली
3. ब्लड ग्लूकोज लेवल
इसके अलावा मिर्गी की जांच करने के लिए इलेक्ट्रोइंसिफैलोग्राम (EEG) टेस्ट किया जाता है। यह एक आम टेस्ट है। इस टेस्ट में एक पेस्ट के साथ इलेक्ट्रोड को खोपड़ी (scalp) से जोड़ा जाता है। यह टेस्ट दर्दरहित होता है। इसके बाद मरीज से कुछ विशेष क्रिया करने के लिए कहा जाता है। कुछ मामलों में यह टेस्ट सोने के दौरान किया जाता है। इलेक्ट्रोड मरीज के मस्तिष्क के इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी को रिकॉर्ड कर लेता है। मस्तिष्क के तरंग पैटर्न में परिवर्तन के आधार पर मिर्गी का निदान किया जाता है। इसके अलावा सीटी स्कैन (CT scan), एमआरआई (MRI) आदि टेस्ट किए जाते हैं।
मिर्गी का इलाज – Epilepsy treatments
मिर्गी का इलाज इस बीमारी की गंभीरता, लक्षण और मरीज के स्वास्थ्य के आधार पर किया जाता है। लेकिन वर्तमान में अधिकांश प्रकार के मिर्गी का कोई इलाज नहीं है। हालांकि कुछ प्रकार के मिर्गी को सर्जरी के जरिए ठीक किया जा सकता है और कई मामलों में इसे काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।
इस बीमारी का निदान होने के बाद डॉक्टर मरीज को एंटी इपिलेप्टिक दवाएं देते हैं और यदि दवा काम न करे तो सर्जरी ही इस बीमारी के इलाज का अगला विकल्प होता है। मरीज को किस तरह के दौरे पड़ रहे हैं, इस आधार पर उसे एंटी-इपिलेप्टिक दवाएं मुंह से खिलाई जाती हैं। इस बीमारी के लगभग 70 प्रतिशत मामलों में ये दवाएं मिर्गी के दौरे को नियंत्रित कर देती हैं।
मिर्गी के रोगी को ये दवाएं (medicine) दी जाती हैं-
सोडियम वाल्पोरेट (sodium valproate)
कार्बामाजेपिन (carbamazepine)
लैमोट्रिजिन (lamotrigine)
लेवेटिरैसेटम (levetiracetam)
ये दवाएं कुछ मरीजों में मिर्गी के दौरे को रोक देती हैं लेकिन सभी में नहीं। मिर्गी के दवाओं का सही खुराक डॉक्टर के परामर्श से ही लेनी चाहिए।
मिर्गी से बचाव – Epilepsy prevention
मिर्गी के लक्षणों को नियंत्रित करके काफी हद तक इस बीमारी से बचा जा सकता है।
1. मिर्गी का दौरा पड़ने से पहले व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, व्यावहारिक एवं पर्यावरणीय कारणों में बदलाव के लक्षण दिखाई देते हैं, इन लक्षणों पर ध्यान दें और इनसे बचने की कोशिश करें। जैसे कि दौरा पड़ने से पहले व्यक्ति को अधिक चिड़चिड़ाहट या गुस्सा आना।
2. कुछ लोग लहसुन या गुलाब (rose) की गंध सूंघकर मिर्गी के दौरे से उबर जाते हैं। जब सिर भारी हो या चिड़चिड़ापन महसूस हो तो दवा की अतिरिक्त खुराक लेकर इससे बचा जा सकता है।
3. घर से बाहर निकलते समय सावधान रहें, यदि मिर्गी का कोई भी लक्षण महसूस हो तो घर से बाहर न निकलें।एल्कोहल का सेवन न करें और मिर्गी की समस्या हो तो वाहन न चलाएं।
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बच्चों में पाई जाने वाली मिर्गी कई प्रकार की हो सकती है, जन्हें प्रायः पहचाना नहीं जाता है। पहचानने में परेशानी की कई कारण हैं, जैसे :
(१) बच्चे में अभिव्यक्ति की असमर्थता
(२) अभिभावकों में जानकारी का आभाव
(३) मिर्गी के कुछ दौरों का क्षणिक एवं सूक्ष्म स्वरूप एवं
(४) मिर्गी के सम्बन्ध में प्रचलित गलत धारणाएँ
कुछ उदाहरण :
एक बच्चे में दो महीने की आयु में एक तरफ के हाँथ-पांव में कुछ क्षणों के लिए खिंचाव आता था। चूंकि यह बहुत थोड़े समय (कुछ सेकेण्डों) के लिए रहता था और बच्चे को जब तक माँ गोद में लेती थी तब तक समाप्त हो जाता था, वे समझते रहे बच्चा किसी कारणवश डर रहा है। पर वही बच्चा आठ महीने की उम्र तक गर्दन भी नहीं संभाल पाया तो उसे चिकित्सक के पास ले जाया गया और चिकित्सक ने मिर्गी पहचान कर उसकी दवा शुरू की। अतः हम देख सकते हैं कि जानकारी के अभाव में, मिर्गी का इलाज समय से न शुरू कर पाने के कारण बच्चे का विकास किस तरह प्रभावित हो गया।
एक दूसरा उदाहरण:
एक आठ साल के बच्चे का है, जो कुछ समय पहले तक पढ़ाई इत्यादि में बहुत होशियार था। कुछ दिनों से यह देखा जाने लगा कि वह कुछ क्षणों के लिए अपने वातावरण से कट सा जाता जैसे बोलते-बोलते बीच में हठात् बिना वजह रूक जाना और फिर कुछ देर बाद वहीं से बात शुरू करना जहाँ से वह रूक गया था। इस दौरान उसकी आँखे एकटक रहती थीं और मुंह खुला रहता था। ऐसे दौरे उसे दिन में अनेकों बार पड़ते थे। पढ़ाई में उसकी कमजोरी को बच्चे का ध्यान नहीं देना समझा गया और बच्चे को अक्सर डाँट-फटकार पड़ती रही। यह सिलसिला उस समय तक चला जब तक कि उसकी माँ ने दूरदर्शन पर मिर्गी के लक्षण के बारे में कार्यक्रम नहीं देख लिया। इलाज करवाने से अब यही बच्चा पहले की तरह फिर पढ़ाई में ध्यान लगा पा रहा है।
इन दो उदाहरणों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि मिर्गी के दौरों को पहचानने के लिए अभिभावकों को सही जानकारी की जरूरत है।
सामान्यतः बच्चों में मिर्गी के दौरे निम्नलिखित प्रकार के होते हैं:
1. सामान्यीकृत तानी अवमोटन मिर्गी (Generalized Tonic Clonic Epilepsy)
इसे 'बड़ी मिर्गी' भी कह सकते हैं। इसमें बच्चा एका-एक बेहोश हो जाता है और शुरू में शरीर की तमाम मांसपेशियाँ अकड़ जाती हैं जिसके चलते उसके मुंह से चीख जैसी आवाज निकलती है, कभी-कभी जीभ कट जाती है, पेशाब आ जाता है और बच्चा जमीन पर गिर जाता है। इसके बाद पूरे शरीर में मिर्गी के झटके या खिंचाव आने लगते हैं, और मुंह से झाग निकलता है। यह दौरा आम तौर से एक-दो मिनट तक रहता है फिर बच्चे को थोड़ी देर तक बेहोशी सी छाई रहती है, या वह सो जाता है उसे इस दौरान थकान लगती है सिर या शरीर में दर्द होता है और कमजोरी लगती है।
2. खोयी मिर्गी (Absence Epilepsy)
इस प्रकार की मिर्गी के दौरान कुछ सेकेण्डों में लिये बच्चे की नजर स्थिर हो जाती है, जैसे कि कहीं खो सा गया है। साथ में आंखों की पलकें तेजी से झपकने लगती हैं, पुतलियाँ एक तरफ उठ जाती है और मुंह की तरफ देखने से लगता है जैसे वह कुछ चबा रहा है। यदि बच्चे के हाँथ में कोई चीज है तो वह गिर सकती है। उस दौरान बच्चे से कुछ पूछने पर वह उसका जवाब नहीं दे सकता है, पर दौरा खत्म होते ही वह एकदम सामान्य हो जाता है। अक्सर ये दौरे दिन में कई बार पड़ सकते है। यह जरूरी है कि जिन बच्चें को ऐसा होता है उन्हें उनके माता-पिता ध्यानपूर्वक निरीक्षण करें और जितनी बार भी ऐसे दौरे आते हों उसका नियमित रिकार्ड रख डॉक्टर को बतलायें।
3. पेशी अवमोटनी मिर्गी (Myoclonic Epilepsy)
इस दौरान मांसपेशियों में खिंचाव अचानक कुछ क्षणों के लिए होता है। यह खिंचाव हल्का भी हो सकता है और जोर से भी हो सकता है। यह शरीर के किसी एक हिस्से में ही सीमित रह सकता है या इतना जबर्दस्त भी हो सकता है कि बच्चा अचानक से झटका खाकर गिर जाये। यह आमतौर से सुबह में सोकर उठने के बाद होता है और चीजें हाथों से छूट कर जैसे टूथ ब्रश आदि गिरने लगते हैं।
4. आतानी मिर्गी या ड्राप अटैक (Atonic or Drop Attacks)
माँस पेशियों के टोन (तनाव) में अचानक कमी के कारण बच्चा गिर जाता है। कुछ सेकेण्डों से एक मिनट के अन्दर ही वह फिर सामान्य हो कर चलने-फिरने लगता है। यदि किसी बच्चे को इस तरह के दौरे बहुत अधिक आते हों तो यह जरूरी है कि उसके सिर को सुरक्षित रखने के लिये बच्चे को कुछ (हेलमेट आदि) पहनाया जाये। अक्सर ऐसे दौरों को शारीरिक कमजोरी का एक लक्षण मान कर ध्यान नहीं दिया जाता है।
5. सरल आंशिक मिर्गी ( Simple Partial Epilepsy)
इसके दौरान शरीर के किसी एक हिस्से जैसे उंगली, अंगूठा या किसी भी भाग में झटके आते हैं। बच्चा जगा रहता है और उसे इसका एहसास भी रहता है, पर चाह कर भी वह इसे रोक नहीं सकता। यदि यह ज्यादा देर तक रह जाये तो शरीर के अन्य भागों में फैलकर बड़ी मिर्गी का रूप भी ले सकता है। एक अन्य तरह की सरल आम्शिक मिर्गी में झटके नहीं लगेगें और बाहर से देखने वाले को जल्दी से पता भी नहीं चल पाता है, पर बच्चा यदि व्यक्त करने लायक उम्र का हो तो वह शिकायत कर सकता है कि जैसे वह कुछ ऐसा देख या सुन पा रहा है जो दूसरों को दिखाई या सुनाई न देता हो। उसे अचानक भय भी लग सकता है, गुस्सा आ सकता है या बिना वजह खुश नजर आने लगता है। कभी-कभी कोई बच्चा अजीब सी महक की शिकायत कर सकता है तो दूसरों को पेट में अजीब सा महसूस हो सकता है, उल्टी करने जैसा लग सकता है। बच्चा कुछ विभ्रमित सा लग सकता है और थोड़ी देर बाद सोना चाह सकता है। उसे दोरे के दौरान जो हो रहा है उसकी याददाश्त नहीं रहती है। प्रायः इन दौरों को भी बच्चे की बदमाशी समझ कर ध्यान नहीं दिया जाता है।
6. शिशु ऐंठन (Infantile Spasm)
तीन महीने से तीन वर्ष के बच्चों में यह अक्सर देखने को मिलता है। अक्सर इस दौरान यदि बच्चा बैठा है तो उसका सिर आगे की तरफ झूक जायेगा, और दोनों हाथ आगे की तरफ निकल जाते हैं लगेगा जैसे वह सलाम कर रहा है। यदि सोया है तो घुटने अचानक ऊपर की तरफ मुड़ जाते हैं हाथ और सिर आगे की तरफ झुक जाते हैं। अक्सर ऐसे दौरे एक बार शुरू होने पर कुछ-कुछ अन्तराल पर बार-बार होते रहते हैं। और यह जरूरी हो जाता है कि चिकित्सक की सलाह तुरन्त ली जाये।
यह जरूरी है कि जब भी अभिभावक को जरा भी शक हो तो किसी सक्षम चिकित्सक से जरूर सलाह करें। कई बार चिकित्सकों के लिये भी निश्चित कर पाना सम्भव नहीं होता क्योंकि वे बच्चे को हर समय नहीं देख पाते हैं। अतः यदि आपको लगता है कि उल्लिखित लक्षणादि बच्चे में बार-बार दिखाई दे रहे हैं तो आप उसे विस्तार से नोट करें और अपने डॉक्टर को बतलाएं। यह बात इसलिए भी जरूरी है कि मिर्गी के अलग-अलग प्रकार की अलग-अलग दवा होती है, और चिकित्सक मिर्गी का प्रकार उसी समय जान जायेगा जब आप उसकी सही जानकारी देंगे।
दौरे के प्रकार:
1. इडियोपैथिक- मिर्गी के इस रूप के लिए कोई स्पष्ट कारण नहीं है।
2. क्रिप्टोजेनिक- एक क्रिप्टोजेनिक जब्त के दौरान, डॉक्टर को संदेह है कि इसके पीछे एक कारण है लेकिन वह इसे इंगित नहीं कर सकता है।
3. लक्षण- इस प्रकार के जब्त के दौरान, विशेषज्ञ जानता है कि वास्तव में क्या कारण है।
दौरे के वर्गीकरण:
1. आंशिक जब्त- आम तौर पर दो प्रकार के आंशिक जब्त होते हैं:
2. सरल आंशिक जब्त- इस प्रकार के जब्त के दौरान, रोगी सचेत है और उसे उसके आसपास के बारे में भी पता है।
3. जटिल आंशिक जब्त- जब्त के इस रूप के दौरान, रोगी की चेतना खराब है। रोगी जब्त को भूल जाता है, भले ही उन्हें इसकी याद दिलाया जाए, इस जब्त की यादें बहुत अस्पष्ट है।
4. सामान्यीकृत जब्त- यह तब होता है जब मस्तिष्क के दोनों हिस्सों में मिर्गी की गतिविधि चल रही है। आम तौर पर जब्त के दौरान व्यक्ति की चेतना खो जाती है।
5. माध्यमिक सामान्यीकृत जब्त- इस प्रकार का जब्त तब होता है जब मिर्गी गतिविधि एक आंशिक जब्त के रूप में होती है और धीरे-धीरे मस्तिष्क के हिस्सों में फैलती है। जब्त की प्रगति के विकास के रूप में रोगी चेतना खो देता है।
कभी-कभी अन्य विकार और परिस्थितियों को मिर्गी के रूप में गलत तरीके से निदान किया जाता है। इन स्थितियों में शामिल हैं:
1. उच्च बुखार जिसमें मिर्गी के समान लक्षण होते हैं।
2.बेहोशी
3. नर्कोलेप्सी (दिन के दौरान रात में नींद की नींद और नींद के निरंतर एपिसोड बाधित)।
4. कैटाप्लैक्सी (क्रोध, भय और आश्चर्य जैसे भावनात्मक प्रतिक्रिया के कारण चरम कमजोरी के कारण एक हमला)
5. नींद संबंधी विकार
6. बुरे सपने
7. मानसिक स्वास्थ्य विकारों के कारण आतंक हमलों का कारण बनता है।
8. फ्यूगू राज्य (अस्थायी भूलभुलैया के कारण यह एक दुर्लभ मनोवैज्ञानिक विकार है)
9. मनोवैज्ञानिक दौरे (रूपांतरण विकार जैसे मनोवैज्ञानिक अशांति से संबंधित एक व्यवहार)
10. सांस लेने वाले एपिसोड जो तब होते हैं जब एक बच्चा जोर से रोता है और फिर अचानक कुछ सेकंड तक सांस लेता है। यह चेतना के नुकसान और त्वचा के रंग में परिवर्तन से विशेषता है।
11. लंबे समय तक मिर्गी के लक्षणों को कम करने के लिए, मिर्गी से निदान होने वाले लोगों को एंटी-मिर्गी दवाएं निर्धारित की जाती हैं।
लक्षण
बेहोशी।
दौरे
मिर्गी का निदान – epilepsy diagnosis
यदि आपको बार-बार दौरे का अनुभव हो रहा है तो आपको जितना जल्दी हो सके डॉक्टर को दिखाना चाहिए क्योंकि यह दौरान किसी गंभीर बीमारी का लक्षण हो सकता है। व्यक्ति के स्वास्थ्य एवं लक्षणों के आधार पर ही डॉक्टर यह तय करते हैं कि कौन सा टेस्ट इस बीमारी के निदान में सहायक होगा।
आमतौर पर मस्तिष्क के मोटर की क्षमता (motor abilities) और मानसिक कार्यप्रणाली की जांच करने के लिए डॉक्टर न्यूरोलॉजिकल परीक्षण करते हैं।
मिर्गी के निदान के लिए डॉक्टर मरीज के ब्लड की अच्छी तरह से जांच करते हैं।
डॉक्टर इन विकारों का पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट करते हैं-
1. संक्रामक रोगों के लक्षण
2. लिवर और किडनी की कार्य प्रणाली
3. ब्लड ग्लूकोज लेवल
इसके अलावा मिर्गी की जांच करने के लिए इलेक्ट्रोइंसिफैलोग्राम (EEG) टेस्ट किया जाता है। यह एक आम टेस्ट है। इस टेस्ट में एक पेस्ट के साथ इलेक्ट्रोड को खोपड़ी (scalp) से जोड़ा जाता है। यह टेस्ट दर्दरहित होता है। इसके बाद मरीज से कुछ विशेष क्रिया करने के लिए कहा जाता है। कुछ मामलों में यह टेस्ट सोने के दौरान किया जाता है। इलेक्ट्रोड मरीज के मस्तिष्क के इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी को रिकॉर्ड कर लेता है। मस्तिष्क के तरंग पैटर्न में परिवर्तन के आधार पर मिर्गी का निदान किया जाता है। इसके अलावा सीटी स्कैन (CT scan), एमआरआई (MRI) आदि टेस्ट किए जाते हैं।
मिर्गी का इलाज – Epilepsy treatments
मिर्गी का इलाज इस बीमारी की गंभीरता, लक्षण और मरीज के स्वास्थ्य के आधार पर किया जाता है। लेकिन वर्तमान में अधिकांश प्रकार के मिर्गी का कोई इलाज नहीं है। हालांकि कुछ प्रकार के मिर्गी को सर्जरी के जरिए ठीक किया जा सकता है और कई मामलों में इसे काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।
इस बीमारी का निदान होने के बाद डॉक्टर मरीज को एंटी इपिलेप्टिक दवाएं देते हैं और यदि दवा काम न करे तो सर्जरी ही इस बीमारी के इलाज का अगला विकल्प होता है। मरीज को किस तरह के दौरे पड़ रहे हैं, इस आधार पर उसे एंटी-इपिलेप्टिक दवाएं मुंह से खिलाई जाती हैं। इस बीमारी के लगभग 70 प्रतिशत मामलों में ये दवाएं मिर्गी के दौरे को नियंत्रित कर देती हैं।
मिर्गी के रोगी को ये दवाएं (medicine) दी जाती हैं-
सोडियम वाल्पोरेट (sodium valproate)
कार्बामाजेपिन (carbamazepine)
लैमोट्रिजिन (lamotrigine)
लेवेटिरैसेटम (levetiracetam)
ये दवाएं कुछ मरीजों में मिर्गी के दौरे को रोक देती हैं लेकिन सभी में नहीं। मिर्गी के दवाओं का सही खुराक डॉक्टर के परामर्श से ही लेनी चाहिए।
मिर्गी से बचाव – Epilepsy prevention
मिर्गी के लक्षणों को नियंत्रित करके काफी हद तक इस बीमारी से बचा जा सकता है।
1. मिर्गी का दौरा पड़ने से पहले व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, व्यावहारिक एवं पर्यावरणीय कारणों में बदलाव के लक्षण दिखाई देते हैं, इन लक्षणों पर ध्यान दें और इनसे बचने की कोशिश करें। जैसे कि दौरा पड़ने से पहले व्यक्ति को अधिक चिड़चिड़ाहट या गुस्सा आना।
2. कुछ लोग लहसुन या गुलाब (rose) की गंध सूंघकर मिर्गी के दौरे से उबर जाते हैं। जब सिर भारी हो या चिड़चिड़ापन महसूस हो तो दवा की अतिरिक्त खुराक लेकर इससे बचा जा सकता है।
3. घर से बाहर निकलते समय सावधान रहें, यदि मिर्गी का कोई भी लक्षण महसूस हो तो घर से बाहर न निकलें।एल्कोहल का सेवन न करें और मिर्गी की समस्या हो तो वाहन न चलाएं।
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