Monday, March 18, 2019

प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात के वर्गीकरण

प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात के वर्गीकरण

इसे मुख्यतः तीन आधार पर वर्गीकृत किया गया है-

1. तीव्रता के प्रमाण के अनुसार वर्गीकरण

प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात का किसी व्यक्ति पर कितना गंभीर प्रभाव है, इसके आधार पर इसे मुख्यतः तीन भागो में वर्गीकृत किया गया है –

क) अल्प प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात (Mild Cerebral Palsy) -

इसमें गामक एवं शरीर स्थिति से सम्बंधित विकलांगता न्यूनतम होती है। बच्चा पूरी तरह स्वतंत्र होता है। सीखने में समस्याए हो सकती है। इस श्रेणी के बच्चे सामान्य विद्यालय में सामेकित शिक्षा का लाभ उठा सकते हैं।

ख)अतिअल्प प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात (Moderate Cerebral Palsy)-

गामक एवं शरीर स्थिति से सम्बंधित विकलांगता का प्रभाव अधिक होता है। बच्चा उपकरणों की मदद से बहुत हद तक स्वतंत्र हो सकता है। इस श्रेणी के बच्चो के लिए विशेष शिक्षा की आवश्यकता होती है।

ग) गंभीर प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात (Severe Cerebral Palsy) -

गामक एवं शरीर स्थिति से सम्बंधित विकलांगता पूर्णतः होती है। बच्चो को दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। इस श्रेणी के बच्चो को अपनी नित्य क्रिया जैसे- कपड़े पहनना, ब्रश करना, स्नान करना, खाना-पीना इत्यादि के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है।

2. प्रभावित अंगो की संख्या के अनुसार वर्गीकरण

शरीर का कौन सा भाग अथवा हाथ-पैर प्रभावित है, इसके आधार पर भी प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात का वर्गीकरण किया गया है। प्रभावित अंगो के आधार पर इसे मुख्यतः पांच भागो में वर्गीकृत किया गया है –

क) मोनोप्लेजिया (Monoplegia)-

इस श्रेणी के अंतर्गत आने वाले प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात में व्यक्ति का कोई एक हाथ या पैर प्रभावित होता है

ख) हेमीप्लेजिया (Hemiplegia)-

 इसमें एक ही तरफ के हाथ और पैर दोनों प्रभावित होते हैं।

ग) डायप्लेजिया (Diaplegia)-

इसमें ज्यादातर दोनों पैर प्रभावित हो जाते हैं, परन्तु कभी–कभी हाथ में भी इसका प्रभाव दिखता है।

घ) पैराप्लेजिया (Paraplegia)-

इसके अंतर्गत व्यक्ति के दोनों पैर प्रभावित होते हैं।

ङ) क्वाड्रीप्लेजिया (Quadriplegia) -

इसके अंतर्गत दोनों हाथ और दोनों पैर अर्थात शरीर का पूरा भाग प्रभावित रहता है।

3. चिकित्सीय लक्षणों के अनुसार वर्गीकरण

इसके आधार पर प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात को चार भागो में बांटा गया है –

क) स्पासटीसिटी (Spasticity) –
इसका अर्थ है कड़ी या तनी हुई माँसपेशी इसमें गामक कुशलता प्राप्त करने में कठिनाई एवं धीमापन महसूस होता है। बच्चें सुस्त दिखते हैं। गति बढ़ने के साथ मांसपेशीय तनाव बढ़ने लगता है। क्रोध या उतेजना की स्थिति में मांसपेशीय कड़ापन और भी बढ़ जाता है। पीठ के बल लेटने पर बच्चे का सर एक तरफ घुमा होता है तथा पैर अंदर की ओर मुड़ जाता है।

ख) एथेटोसिस (Athetosis) –
एथेटोसिस का अर्थ है अनियमित गति। मांसपेशीय तनाव सामान्य होता है। शरीर की गति के साथ तनाव बढ़ता है। बच्चा जब अपनी इच्छा से कोई अंग संचालित करता है तो उसका शरीर तड़फड़ाने लगता है।

ग) एटेक्सिया (Atexia)-
इसका अर्थ है अस्थिर एवं अनियंत्रित गति। इसमें बच्चे का शारीरिक संतुलन ख़राब होता है। ऐसे बच्चें बैठने या खड़े होने पर गिर जाते हैं। इनका मांसपेशीय तनाव कम होता है तथा गमक विकास पिछड़ा होता है।

घ) मिक्स्ड (Mixed) -
स्पासटीसिटी एवं एथेटोसिस अथवा अटेक्सिया में दिखने वाले लक्षण जब किसी बच्चों में मिले हुए दिखते हैं, तो मिश्रित प्रकार के प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात से ग्रसित बच्चें कहलाते हैं।

प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात के  उपचार

वर्तमान में इस बीमारी की कोई कारगर दवा बनी नहीं है। वर्तमान चिकित्सा एवं उपचार अभी इस रोग और इसके दुष्प्रभाव (साइड इफेक्ट) के बारे में कोई ठोस परिणाम नहीं दे पाए हैं। सेरेब्रल पाल्सी को तीन भागों में बांटकर देखा जा सकता है।

1. पहला स्पास्टिक,

2. दूसरा एटॉक्सिक, और

3. तीसरा एथिऑइड।

स्पास्टिक सेरेब्रल पाल्सी सबसे आम है। लगभग ७० से ८० प्रतिशत मामलों में यही होती है। फिर भी इलाहाबाद के एक डॉ॰ जितेन्द्र कुमार जैन एवं उनकी टीम ने ओएसएससीएस नामक एक थेरैपी से पूर्वोत्तर भारत के एक बच्चे पर प्रयोग पहली बार किया। उनके अनुसार इससे बच्चे न सिर्फ अपने पैरों पर खड़े हो पायेंगे, बल्कि दौड़ भी पायेंगे।

एटॉक्सिक सेरेब्रल पाल्सी की समस्या लगभग दस प्रतिशत लोगों में देखने में आती है। भारत में लगभग २५ लाख बच्चे इस समस्या के शिकार हैं। इस स्थिति में व्यक्ति को लिखने, टंकण (टाइप करने) में समस्या होती है। इसके अलावा इस बीमारी में चलते समय व्यक्ति को संतुलन बनाने में काफी दिक्कत आती है। साथ ही किसी व्यक्ति की दृश्य और श्रवणशक्ति पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।

एथिऑइड की समस्या में व्यक्ति को सीधा खड़ा होने, बैठने में परेशानी होती है। साथ ही रोगी किसी चीज को सही तरीके से पकड़ नहीं पाता। उदाहरण के तौर पर वह टूथब्रश, पेंसिल को भी ठीक से इस्तेमाल नहीं कर पाता है।

भौतिक चिकित्सा (फिजियोथिरैपी) द्वारा प्रमस्तिष्क अंगघात की चिकित्सा

इस रोग का इलाज भौतिक चिकित्सा (फिजियोथेरेपी) से पूर्ण रूप से किया जा सकता है। आज के सरकारी अस्पतालो में बच्चो को सेरेब्रल पाल्सी मर्ज लाईलाज कहते हुये इलाज नहीं किया जाता है। कुछ खोज से ज्ञात हुआ भारत में सेरेब्रल पाल्सी रोग से करीब पचिस लाख बच्चे ग्रष्त है।

फिजियोथेरेपि उपचार एवं बोटॅक्स इनजेक्सन के प्रयोग से करीब पंद्रह लाख पुर्ण स्वस्थ एवं पाचँ लाख अत्यधिक प्रतिसद ठिक किये जा सकते है। लेकिन महगे इनजेक्सन एवं सरकारी अस्पतालो में पथभ्रष्ट फिजियोथेरेपिस्टो की वजह से ये बच्चे मौत के मुह में समा जाते है। परिजनो को मर्ज और उपचार से सम्बंन्धीत गलत जानकारी दि जाती है। भौतिक चिकित्सक महीने दो महिने में परिजन को फिजियोथेरेपिस्ट बना के बच्चो को चिकित्सा से दूर कर दिया जाता है। नियमित उपचार की जगह एक दिन के अन्तराल पे एक दिन, एवं हप्ते में एक दिन एवं पुरा फिजियोथेरेपि उपचार परिजन को कराने की सलाह दिया जाता है। फिजियोथेरेपि उपचार पोलियो एवं सेरेब्रल पाल्सी मर्ज से ग्रष्त बच्चो को पुर्ण मिलने की ब्यवस्था हो जाये तो बच्चो को विकलांगता से मुक्ति दिलायी जा सकती है।

अन्तरआत्मा को झकझोर देने वाली यह बात है, कि चिकित्सा पेशे से जुडे लोग चिकित्सा को सिर्फ धन अर्जित करने का साधन बना लिये हैं। मानवता, चिकित्सा धर्म मानवि, संस्कृत इस सम्मानित पेशे से विलुप्त होता जा रहाँ हैं। आर्दशवादी शिक्षीत समाज के लोग चिकित्सक पेसे में मरिज के जान लेने वाली क्रिया और मरिज के दर्द की अनदेखी करने वाले चिकित्सको के अत्यधिक अमानवि कार्य के प्रति संवेदनहीन है। जो दिन ब दिन अत्यधिक पथ भ्रष्ट एवं मानवता से बिहिन होता जा रहा आज का चिकित्सा समाज अप्रत्यक्ष कितने माशुम लोगो के हत्या जैसे सगिन अपराध सल्य चिकित्सा के नाम करता है। आने वाले वक्त में चिकित्सा समाज के वरिष्ठ चिकित्सको ने उठ रही चिकित्सा पेसे के नाम बुराईयो प्रति संवेदनशिलता से ध्यान नहीं दिया गया तो देश का हर दवाखाना, कत्ल खाना के नाम से बुलाया जायेगाँ। जो मानवता संस्कृत चिकित्सक और आर्दशवादी शिक्षित समाज के चेहरे पे बदनुमाँ दाग के रूप में अंकित होगा। यह चिकित्सक मरिज परिजन तिनो के लिए अत्यधिक दुख दायी होगा।


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