3. शैक्षिक रूप से विशिष्ट बालक
यहाँ पर शैक्षिक रूप से विशिष्ट बालकों के दो प्रकारों के बारे में बताया गया है।
1. शैक्षिक पिछड़े़ बालक
पिछड़े बालक वह होते है जो कक्षा में किसी तथ्य को बार-बार समझाने पर भी नही समझते हैं और औसत बालकों के समान प्रगति नहीं कर पाते हैं। ये पाठ्यक्रम तथा पाठ्य सहगामी क्रियाओं में किसी प्रकार की रूचि नही लेते है। इनकी बुि द्धलब्धि सामान्य हाने पर भी इनकी शैक्षिक उपलब्धि कम हाते ी है बर्ट के अनुसार “एक पिछड़ा बालक वह है जो अपने स्कूल जीवन के मध्यकाल में अपनी कक्षा से नीचे की कक्षा का काम नही कर सकते जो कि उसकी आयु के लिए सामान्य कार्य हो।” पिछड़े बालकों को तीन आधारों पर जाना जा सकता है।
1. बुद्धिलब्धि के आधार पर
2. शैक्षिक उपलब्धि के आधार पर
3. शैक्षिक लब्धि के आधार पर
पिछडे़ बालक की शिक्षा-
पिछडे़ बालको पर यदि उचित ध्यान दिया जाता है तो वह शिक्षा में प्रगति कर सकते हैं। इसके लिए निम्नलिखित विधियों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
विशिष्ट विद्यालय- पिछडे़ बालकों के लिए उनके अनसुार पाठय् क्रम, उपयोगी सहायक सामग्री, प्रशिक्षित शिक्षकों सहित अलग से विद्यालय की स्थापना की जाए जिससे वह अपनी कमियों को कम समझ सके तथा अधिक सुरक्षा का अनुभव कर सके। यह विद्यालय आवासीय होने चाहिए।
विशिष्ट कक्षाएं- पिछडे़ बालकों के लिए सामान्य विद्यालयाें में विशिष्ट कक्षाएं आयोजित की जा सकती है। इन कक्षाओं में विशेष प्रशिक्षित अध्यापक नियुक्त किये जाने चाहिए। इन कक्षाओं में शिक्षक आवश्यकतानुसार पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि में परिवर्तन कर सकते है तथा इन बालकों को कठिन प्रतियोगिता का सामना नही करना पड़ेगा।
सामान्य कक्षा में विशिष्ट प्राविधान - इसमें सामान्य कक्षाआे में विशष्ा प्राविधान करके, उन पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। इन बालकों के लिए पाठ्यक्रम में लचीलापन होना चाहिए जो उनकी व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुरूप हो। इनके लिए शिक्षकों को निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना होगा।
1. शिक्षक व्यवहारिक और अनुभवी होना चाहिए।
2. शिक्षक को मनोविज्ञान का ज्ञान होना चाहिए। जिससे वह छात्रों की विशेष परेशानियों तथा कठिनायों को समझ सके।
3. पिछड़े बालकों में असफलता की दर अधिक होती है अत: शिक्षकों में धैर्य होना चाहिए।
4. शिक्षक को बाल-केन्द्रित शिक्षण विधियों का प्रयोग करना चाहिए।
2. सीखने मे अक्षम बालक
सीखने में अक्षम बालक उन बालकों को कहते है जो कि मौखिक अभिव्यक्ति, सुनने सम्बन्धी क्षमता, लिखित कार्य, मूलभूत पढ़ने की क्रियाओं में, गणितीय गणना, गणितीय तर्क तथा स्पेलिंग में उनकी शैक्षिक उपलब्धि तथा बौद्धिक योग्यताओं में सार्थक विभेद दिखायी देता है। यह विभेद किसी और अक्षमता का परिणाम नही होता है। यह बालक ठीक प्रकार से सुन, सोच, बोल, पढ़ तथा लिख नही पाते है।
विशेषताए-
सीखने में अक्षम बालकों में मुख्य रूप से अति क्रियाशीलता, विलम्बित वाणी विकास पढ़ने, लिखने तथा गणित की समस्या तथा स्मृति ºास आदि पाये जाते है।
कारण- इसके कारण चार प्रकार के है।
1. पारिवारिक कारक
1. सीखने में अक्षमता विशेष परिवारों में अधिक पायी जाती है।
2. डिसलेक्सिया का प्रमुख आधार वंशानुक्रम होता है।
3. यह जन्म से पूर्व, जन्म के समय तथा जन्म के बाद की समस्याओं का परिणाम होता है।
4. माँ का स्वास्थ्य, खान पान तथा जीवन का तरीका
5. सिर में चोट, संवेगात्मक वंचन
6. केन्द्रीय स्नायुमण्डल का ठीक प्रकार से विकसित न होना आदि।
7. श्रव्य गत्यात्मक समस्याएं, तथा किसी प्रकार की एलर्जी का होना।
2. मनोवैज्ञानिक कारक
1. ध्यान केन्द्रित करने में असमर्थता
2. खराब अनुशासन का होना
3. पर्यावरण कारक
1. स्वास्थ्य, गलत आहार तथा सुरक्षा।
2. परिवार में उचित भाषा का प्रयोग न होना।
4. सामाजिक सांस्ंस्कृतिक कारक
1. विद्यालीय उपस्थिति, कार्य तथा पढ़ने की आदते
2. ठीक प्रकार की शिक्षा न मिल पाना।
1. शैक्षिक पिछड़े़ बालक
पिछड़े बालक वह होते है जो कक्षा में किसी तथ्य को बार-बार समझाने पर भी नही समझते हैं और औसत बालकों के समान प्रगति नहीं कर पाते हैं। ये पाठ्यक्रम तथा पाठ्य सहगामी क्रियाओं में किसी प्रकार की रूचि नही लेते है। इनकी बुि द्धलब्धि सामान्य हाने पर भी इनकी शैक्षिक उपलब्धि कम हाते ी है बर्ट के अनुसार “एक पिछड़ा बालक वह है जो अपने स्कूल जीवन के मध्यकाल में अपनी कक्षा से नीचे की कक्षा का काम नही कर सकते जो कि उसकी आयु के लिए सामान्य कार्य हो।” पिछड़े बालकों को तीन आधारों पर जाना जा सकता है।
1. बुद्धिलब्धि के आधार पर
2. शैक्षिक उपलब्धि के आधार पर
3. शैक्षिक लब्धि के आधार पर
पिछडे़ बालक की शिक्षा-
पिछडे़ बालको पर यदि उचित ध्यान दिया जाता है तो वह शिक्षा में प्रगति कर सकते हैं। इसके लिए निम्नलिखित विधियों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
विशिष्ट विद्यालय- पिछडे़ बालकों के लिए उनके अनसुार पाठय् क्रम, उपयोगी सहायक सामग्री, प्रशिक्षित शिक्षकों सहित अलग से विद्यालय की स्थापना की जाए जिससे वह अपनी कमियों को कम समझ सके तथा अधिक सुरक्षा का अनुभव कर सके। यह विद्यालय आवासीय होने चाहिए।
विशिष्ट कक्षाएं- पिछडे़ बालकों के लिए सामान्य विद्यालयाें में विशिष्ट कक्षाएं आयोजित की जा सकती है। इन कक्षाओं में विशेष प्रशिक्षित अध्यापक नियुक्त किये जाने चाहिए। इन कक्षाओं में शिक्षक आवश्यकतानुसार पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि में परिवर्तन कर सकते है तथा इन बालकों को कठिन प्रतियोगिता का सामना नही करना पड़ेगा।
सामान्य कक्षा में विशिष्ट प्राविधान - इसमें सामान्य कक्षाआे में विशष्ा प्राविधान करके, उन पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। इन बालकों के लिए पाठ्यक्रम में लचीलापन होना चाहिए जो उनकी व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुरूप हो। इनके लिए शिक्षकों को निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना होगा।
1. शिक्षक व्यवहारिक और अनुभवी होना चाहिए।
2. शिक्षक को मनोविज्ञान का ज्ञान होना चाहिए। जिससे वह छात्रों की विशेष परेशानियों तथा कठिनायों को समझ सके।
3. पिछड़े बालकों में असफलता की दर अधिक होती है अत: शिक्षकों में धैर्य होना चाहिए।
4. शिक्षक को बाल-केन्द्रित शिक्षण विधियों का प्रयोग करना चाहिए।
2. सीखने मे अक्षम बालक
सीखने में अक्षम बालक उन बालकों को कहते है जो कि मौखिक अभिव्यक्ति, सुनने सम्बन्धी क्षमता, लिखित कार्य, मूलभूत पढ़ने की क्रियाओं में, गणितीय गणना, गणितीय तर्क तथा स्पेलिंग में उनकी शैक्षिक उपलब्धि तथा बौद्धिक योग्यताओं में सार्थक विभेद दिखायी देता है। यह विभेद किसी और अक्षमता का परिणाम नही होता है। यह बालक ठीक प्रकार से सुन, सोच, बोल, पढ़ तथा लिख नही पाते है।
विशेषताए-
सीखने में अक्षम बालकों में मुख्य रूप से अति क्रियाशीलता, विलम्बित वाणी विकास पढ़ने, लिखने तथा गणित की समस्या तथा स्मृति ºास आदि पाये जाते है।
कारण- इसके कारण चार प्रकार के है।
1. पारिवारिक कारक
1. सीखने में अक्षमता विशेष परिवारों में अधिक पायी जाती है।
2. डिसलेक्सिया का प्रमुख आधार वंशानुक्रम होता है।
3. यह जन्म से पूर्व, जन्म के समय तथा जन्म के बाद की समस्याओं का परिणाम होता है।
4. माँ का स्वास्थ्य, खान पान तथा जीवन का तरीका
5. सिर में चोट, संवेगात्मक वंचन
6. केन्द्रीय स्नायुमण्डल का ठीक प्रकार से विकसित न होना आदि।
7. श्रव्य गत्यात्मक समस्याएं, तथा किसी प्रकार की एलर्जी का होना।
2. मनोवैज्ञानिक कारक
1. ध्यान केन्द्रित करने में असमर्थता
2. खराब अनुशासन का होना
3. पर्यावरण कारक
1. स्वास्थ्य, गलत आहार तथा सुरक्षा।
2. परिवार में उचित भाषा का प्रयोग न होना।
4. सामाजिक सांस्ंस्कृतिक कारक
1. विद्यालीय उपस्थिति, कार्य तथा पढ़ने की आदते
2. ठीक प्रकार की शिक्षा न मिल पाना।
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