Tuesday, January 28, 2020

नवजात शिशु का प्रथम तिमाही विकास

नवजात शिशु (0-3 महीना) का विकास

जब घर में नन्हे शिशु की किलकारियां गूंजती हैं, तो पूरा घर खुशियों से भर जाता है। जन्म के बाद उसे इस नए संसार के साथ तालमेल बिठाने में कुछ समय लग सकता है। फिर दिन व-दिन उसका विकास होने लगता है। उसके हाथ-पांव तेजी से चलने लगते हैं। वह मां और घर के अन्य सदस्यों को देखकर चेहरे के तरह- तरह के भावों के साथ अपनी प्रतिक्रिया देता है। इस दौरान उसके साथ खेलना और बाते करना हर किसी को अच्छा लगता है।

जन्म के बाद कुछ माह तक शिशु का काम सिर्फ दूध पीना, सोना, रोना, खेलना और नैपी को गंदा करना होता है। इस दौरान शिशु का शारीरिक विकास सामान्य गति से होता रहता है। महीने-दर-महीने उसका वजन व कद बढ़ता रहता है। यहां हम बता रहे हैं कि पहले माह शिशु का वजन व हाइट कितनी होती है।

पहले महीने में बेबी गर्ल का सामान्य वजन 3.5 से 4.9 किलो के बीच और हाइट 53.8 से.मी. होती है। वहीं, बेबी बॉय का सामान्य वजन 3.7 से 5.3 किलो के बीच और हाइट 54.8 से.मी. हो सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की तरफ से यह तय मानक है। हालांकि, वजन व हाइट इससे थोड़ा कम या ज्यादा हो सकती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि शिशु का विकास ठीक तरह से नहीं हो रहा है। हर शिशु का शरीर अलग होता है, तो उसके विकास की गति भी अलग होती है। इस संबंध में बाल चिकित्सक आपको बेहतर बता सकते हैं।


एक महीने के शिशु का विकास- (Ek Mahine Ka Baby)

शिशु के पैदा होने के बाद उसमें कई तरह के बदलाव आते हैं। जहां शुरू के कुछ दिन वह आंखें तक नहीं खोलता, वहीं बाद में उसके मस्तिष्क व शरीर के साथ-साथ सामाजिक विकास भी होता है। इन तीनों प्रकार के विकास के बारे में हम यहां विस्तार से बता रहे हैं :


मस्तिष्क का विकास

1. भूख की समझ :    शुरुआत के कुछ दिन में शिशु को भूख के बारे में इतना पता नहीं चलता। उन्हें आप जब दूध पिलाते हैं, वो पी लेते हैं, लेकिन एक माह के होते ही, वो अपनी भूख को पहचानने लगते हैं। उन्हें जब भी भूख लगती है, रोने लगते हैं। अगर आप नोट करें, तो पता चलेगा कि शिशु भी अपना दूध पीने का समय निश्चित कर लेता है और उस तय समय पर ही रोने लगता है।

2.  स्वाद की पहचान :  इतना छोटा शिशु सिर्फ मां का दूध ही पीता है। फिर भी एक माह का होने के बाद उसे स्वाद की पहचान हो जाती है। अगर मां ऐसा कुछ खा ले, जिससे कि स्तन दूध का स्वाद कुछ बदल जाए, तो शिशु को पता चल जाता है। यहां तक कि शिशु स्तन दूध की गंध तक को पहचाने लगता है।

3.  चेहरे या वस्तु की पहचान :  एक माह के शिशु का दिमाग इतना विकसित हो जाता है कि वह कुछ खास चेहरों व चीजाें को पहचानने लगता है। खासकर, वह मां को तो जरूर पहचानने लगता है। अगर आप उसकी आंखों के आगे कोई चीज कुछ देर तक रखें, तो वह उसे गौर तक देखता है और पहचानने लगता है।

4. चीजों व गंध का अहसास :   आपका शिशु कठोर, कोमल व खुरदरी चीजों के बीच फर्क को महसूस कर सकता है। वह अच्छी और खराब गंध के बीच भी अंतर महसूस कर सकता है।

शारीरिक विकास

5. बांह को झटकना :  वह अपनी बांह को तेजी से हिला सकता है। इससे पता चलता है कि उसकी मांसपेशियों का विकास तेजी से हो रहा है।

6. अंगों में हरकत :  वह अपने शरीर के सभी अंगों को अच्छी तरह से हिलाने-ढुलाने के काबिल हो जाता है।

7. स्पर्श :  एक माह का होने के बाद वह अपने हाथों से अपने चेहरे, मुंह, आंखों व कानों आदि को स्पर्श करने लगता है।

8. सिर का पीछे जाना :  इतना विकसित होने के बाद भी शिशु इतना सक्षम नहीं हो पाता कि अपने सिर को संभाल सके। अगर उसे गोद में लेकर सहारा न दिया जाए, तो उसका सिर झटके के साथ पीछे की ओर चला जाता है। आपको इससे परेशान होने की जरूरत नहीं है। इसका मतलब यह है कि शिशु का विकास अच्छी तरह से हो रहा है।

9. सिर को उठाने की कोशिश :   अगर आप उसे पेट के बल लेटाएंगे, तो वह सिर को ऊपर की ओर उठाने की कोशिश करेगा। ऐसा वह गर्दन की मांसपेशियों व तंत्रिका तंत्र में हो रहे विकास के कारण कर पाता है।

10. मुट्ठी में पकड़ना :    अगर आप उसकी हथेली पर कोई चीज या अपनी उंगली रखेंगे, तो वह उसे कस कर पकड़ने का प्रयास करेगा। इतना ही नहीं वह अपने आसपास की चीजों को खुद भी अपनी मुट्ठी में पकड़ने का प्रयास करेगा।

11. वस्तु पर नजर :   आप उसकी आंखों के आगे कोई चीज रखें, जिससे वह आकर्षित हो जाए, तो आप उस वस्तु को जहां-जहां घुमाएंगे, वह उसे लगातार देखेगा। यहां तक कि वह अपने से 8-12 इंच दूर पड़ी वस्तु को अच्छी तरह देख सकता है।

12. नींद में कमी :  अमूमन एक शिशु दिन में आठ-नौ घंटे और रात में करीब आठ घंटे सो सकता है। वह एक बार में एक-दो घंटे से ज्यादा नहीं सोता। इस प्रकार कह सकते हैं कि पहले माह में शिशु 24 घंटे में करीब 16 घंटे सोता है, लेकिन एक माह का होते-होते यह अवधि करीब आधा घंटा कम हो जाती है।

13. गतिविधियां :  हर शिशु जन्म के समय से ही विभिन्न प्रकार की गतिविधियांं करता है, जो एक माह के होते-होते बढ़ जाती हैं। डॉक्टर इन गतिविधियों को गंभीरता से चेक करते हैं। अगर इसमें कमी देखी जाती है, तो यह चिंता का कारण होता है।


 सामाजिक व भावनात्मक विकास

14. रोकर बात समझाना :  यह तो सभी जानते हैं कि एक माह का शिशु सिर्फ रोकर ही अपनी बात समझा सकता है। फिर चाहे उसे कोई समस्या हो या फिर भूख लगी हो, वह रो कर दूसरों का ध्यान अपनी ओर खींचता है। फिर जब मां उसे गोद में लेकर दूध पिलाती है, तो वह तुरंत चुप हो जाता है।

15. आवाजों को पहचानना :  इस उम्र तक बच्चे घर के सदस्यों खासकर अपनी मां की आवाज पहचानने लगते हैं। इतना ही नहीं, जिस तरफ से आवाज आती है, वहां अपनी गर्दन भी घुमाते हैं।

16. नजरें मिलाना :  आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि इस उम्र के बच्चे किसी भी चीज को गौर से देख सकते हैं। अगर आप उसके सामने खड़े होंगे, तो पहले वो आपके चेहरे को देखेंगे और फिर आपकी आंखों में देखेंगे।

17. हाथों का स्पर्श :  आप बच्चे को कठोर हाथ लगाएं या मुलायम तरीके से पकड़ें, वो इन दोनों तरह के स्पर्श को महसूस कर सकते हैं। इतना ही नहीं उसी के अनुसार रोकर या मुस्कुराकर प्रतिक्रिया भी देते हैं। अगर आप उन्हें नाजुकता के साथ और अच्छी तरह हाथ लगाएंगे या गोद में लेकर झूला झुलाएंगे, तो वो इसका आनंद लेंगे।


एक महीने के बच्चे का टीकाकरण

हर शिशु को निश्चित समयावधि पर जरूरी टीके लगाए जाते हैं। भारत में ये सभी टीके केंद्र सरकार की ओर से चलाए जा रहे राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के तहत लगाए जाते हैं। सरकारी अस्पतालों, स्वास्थ्य केंद्रों व आंगबाड़ी में ये टीके मुफ्त लगाए जाते हैं, जबकि निजी अस्पतालों में इसके लिए कुछ कीमत चुकानी पड़ती है। जन्म से लेकर छह हफ्ते तक के शिशु को निम्नलिखित टीके लगाए जाते हैं :

1.बीसीजी
2.हेपेटाइटिस बी 1
3.ओपीवी
4.डीटी डब्ल्यू पी 1
5.आईपीवी 1
6.हेप-बी 2
7.हिब 1
8.रोटावायरस 1
9.पीसीवी 1

अब हम शिशु की एक दिन की खुराक पर चर्चा करेंगे।

एक महीने के शिशु के लिए कितना दूध आवश्यक है?

शुरुआत में शिशु का पाचन तंत्र कमजोर होता है और वह एक समय में कम ही दूध पीता है। ध्यान रहे कि मां के दूध और फॉर्मूला दूध में अंतर होता है। यहां हम उसी के आधार पर बताएंगे कि एक माह का शिशु एक दिन में कितना मां का दूध या फॉर्मूला दूध पी सकता है।

मां का दूध :  नवजात शिशु का पेट छोटा होता है, इसलिए जन्म के बाद अगले एक हफ्ते तक वह सिर्फ 30-60ml तक ही दूध पीता है। वहीं, एक माह का होते-होते उसके पेट का आकार बढ़ने लगता है और पाचन तंत्र भी पहले से बेहतर काम करता है। अब शिशु हर दो-चार घंटे में एक बार में 90-120ml तक दूध पी सकता है। इस तरह से वह दिनभर में करीब 900ml तक दूध पी सकता है

 एक महीने के बच्चे के लिए कितनी नींद आवश्यक है?

शिशु के जन्म लेने के बाद उसके सोने का कोई समय निर्धारित नहीं होता। वह 24 घंटे में से करीब 16 घंटे सोता है। दिन में वह चार-पांच बार सोता है और हर बार सोने की समयावधि एक-दो घंटे हो सकती है। इसी तरह वह रात को भी करीब आठ घंटे सोता है, लेकिन बीच-बीच में उठता रहता है, जिस कारण आपकी नींद खराब होती है। वहीं, एक माह का होने के बाद वह करीब आधा घंटा कम सोता है । आगे चलकर धीरे-धीरे उसका भी सोने का रूटीन बनने लगता है।


एक माह के शिशु के खेल व गतिविधियां।

हालांकि, इतना छोटा शिशु खुद से बैठ नहीं सकता और न ही घुटनों के बल चल सकता है। इसलिए, वह पीठ के बल ही लेटकर अपने हाथ-पांव चलता है और विभिन्न आवाजों पर प्रतिक्रिया देता है। वहीं, जब आप उसे पेट के बल लेटाते हैं, तो वह गर्दन उठाकर इधर-उधर देखने का प्रयास करता है और पैरों के बल खुद को आगे धकेलने का प्रयास करता है। शिशु को पेट के बल लेटना उसकी मांसपेशियों के विकास के लिए जरूरी भी है।


माता-पिता छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखकर अपने शिशु के विकास में मदद कर सकते हैं।


यहां हम कुछ जरूरी टिप्स दे रहे हैं, जिनकी मदद से माता-पिता अपने शिशु के बेहतर विकास में मदद कर सकते हैं :

आप समय-समय पर शिशु के शरीर में हो रहे बदलावों पर नजर रखें। अगर कुछ अजीब लगे, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

समय-समय पर डॉक्टर से चेकअप करवाते रहें।

उसके वजन व हाइट को नोट करते रहें।

निश्चित समयांतराल पर टीकाकरण कराना न भूलें। यह उसके बेहतर भविष्य के लिए जरूरी है।

शिशु को कुछ देर पेट के बल जरूर लेटाएं। बाल रोग विशेषज्ञ भी कहते हैं कि शिशु को रोज पांच बार पेट के बल लेटाना चाहिए और हर बार उसे दो-तीन मिनट तक ऐसे ही रहने देना चाहिए। जैसे-जैसे शिशु बड़ा होता है, इस समयावधि को भी बढ़ाना चाहिए। इससे शिशु का विकास तेज गति से होता है। इस दौरान आप उसके सामने कोई खिलौना रख दें, ताकि वह उसे पकड़ने के लिए तेज-तेज हाथ-पांव मारे।

कुछ समय आप उसके साथ खेलने में बिताएं। इससे एक तो वह एक्टिव रहेगा और दूसरा आपके साथ भावनात्मक रूप से जुड़ाव महसूस करेगा।

हर समय उसे कमरे में बंद न रखें, कुछ देर के लिए उसे पार्क आदि जगह घुमाने ले जाएं।

 एक महीने के शिशु के विकास के बारे में माता-पिता को कब चिंतित होना चाहिए?

यहां हम कुछ लक्षण बता रहे हैं, जिनकी पहचान कर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि शिशु का स्वास्थ्य ठीक नहीं है :

1. अगर शिशु सही प्रकार से दूध नहीं पी रहा है।

2. अगर अपने आसपास पड़ी चीजों को हिलाने या उसके सामने लाने पर भी उस पर ध्यान नहीं देता है।

3. आंखोंं में रोशनी मारने पर भी पलकों को नहीं झपकाता है।

4. किसी भी प्रकार की आवाज पर प्रतिक्रिया नहीं देता है।

5. अगर शिशु के शरीर व मांसपेशियों में सूजन हो और वह अपने अंगों को न हिलाए।

6. अगर शिशु के बिल्कुल स्थिर होने पर भी उसके जबड़े में कंपन महसूस हो।


बच्चे की सुनने की क्षमता, दृष्टि और अन्य इंद्रियां

क्या मेरा बच्चा देख सकता है : एक माह का शिशु इतना विकसित हो चुका होता है कि वह अपने आसपास की चीजों, व्यक्तियों व घटनाओं को देख सकता है। अगर उसकी आंखों पर हल्की-सी फ्लैश मारी जाए या अचानक से कोई रोशनी पड़े, तो वह अपनी पलके झपकाता है।

क्या मेरा बच्चा सुन सकता है : इतने छोटे शिशु के कान काफी विकसित हो जाते हैं। इसका पता आप इससे लगा सकते हैं कि वो आपकी आवाज पर प्रतिक्रिया कर सकता है। जिस दिशा से तेज आवाज आती है, वह उस तरफ देखने का प्रयास करता है।

क्या मेरा बच्चा स्वाद व गंध को पहचान सकता है : ऐसा माना जाता है कि एक माह का शिशु स्वाद व गंध की पहचान कर सकता है। वह मां के दूध का स्वाद बदलने को अच्छी तरह पहचान सकता है। अगर उसे मां के दूध के टेस्ट में जरा भी अंतर पता चलता है, तो वह दूध पीने से मना कर सकता है। साथ ही वह मां की गंध को भी पहचान सकता है।



एक महीने की चेकलिस्ट


  • तय समय पर शिशु को चेकअप के लिए डॉक्टर के पास लेकर जाएं।आ
  • डॉक्टर से पूछ सकती हैं कि आपको विटामिन-डी के सप्लीमेंट्स लेने की जरूरत है या नहीं।
  • शिशु के जन्म से लेकर छह हफ्ते के बीच कई टीके लगते हैं। इनकी लिस्ट बनाएं और कौन सा टीका कब लगना है, उनकी डेट जरूर लिखें, ताकि आपके नन्हे को कोई टीका लगने से रह न जाए।
  • डिलीवर के छह हफ्ते बाद आप अपना भी चेकअप जरूर करवाएं।
  • शिशु के एक माह पूरा होने पर उसकी फोटो जरूर खींचें।



शिशु का दूसरा माह का विकास

इस महीने का सबसे बड़ा घटनाक्रम संभवतया शिशु की पहली खूबसूरत मुस्कान होगी। इस यादगार लम्हे को कैद करने के लिए अपना कैमरा तैयार रखें!

हालांकि, शिशु का पूरी रात सोना शायद अभी संभव न हो, अब वह एक बार में थोड़े लंबे समय के लिए सोएगा। इससे आपको भी एक लंबी झपकी लेने का अवसर मिल सकता है!

मेरा शिशु पहली बार कब मुस्कुराएगा?

इस महीने आपको अपने सभी प्रयासों का इनाम शिशु की शानदार बिना दांतों वाली मुस्कान के रूप में मिलेगा। आपके शिशु की पहली वास्तविक मुस्कान, उसकी दिल को छू लेने वाली उपलब्धियों में से एक होगी। इस मुस्कान को सामाजिक मुस्कान के रूप में भी जाना जाता है।

एक तरीके से यह आपकी मेहनत का फल मिलने का समय है। आप इतने समय से शिशु की नैपी बदलना, उसे दूध पिलाना, नहलाना, प्यार करना, लपेटना (स्वोडलिंग ) और गले से लगाना आदि सभी कार्य कर रही थीं, लेकिन अपने लाडले से आपको कुछ खास प्रतिक्रिया नहीं मिल रही थी।

मगर, एक दिन जवाब मिलता है। आपका शिशु मुस्कुराता है और आप यकीनन यह कह सकती हैं कि वह मुस्कुराया है, न कि गैस पास करने के लिए मुंह बना रहा है। आपकी पिछली रात कितनी भी बुरी क्यों ना गुजरी हो, शिशु की एक मुस्कान आपको अवश्य आनंदित कर देगी।

आप शिशु के सामने मजाकिया चेहरे बनाकर और आवाजें निकालकर उसे हंसाने का प्रयास कर सकते हैं। जैसे-जैसे आपका शिशु बड़ा होगा, वह भी आपकी नकल करने लगेगा।


मेरा दो महीने का बच्चा कितनी अच्छी तरह देख सकता है?

आपके शिशु को पहले दो रंगों की चीजें पसंद आती थीं। अब दो महीने का होने पर वह और अधिक विस्तृत और जटिल डिजाइन, रंगों और आकारों को पसंद करने लगेगा।

शिशु को विभिन्न तरह की वस्तुओं को देखने और छूने का अवसर दें। प्लास्टिक के खिलौने और मुलायम गेंद आदि अच्छे विकल्प हो सकते हैं।

मेरा शिशु पूरी रात सोना कब शुरु करेगा?

अगर, आपका शिशु अब पूरी रात सोता है, तो आप कुछ एक भाग्यशाली लोगों में से हैं। अधिकांश शिशुओं को अभी भी रात में दूध पीने की जरुरत होती है, जिससे आपकी नींद में खलल पड़ता है। मगर, अच्छी बात यह है कि अब आपका शिशु  धीरे-धीरे एक बार में लंबे समय के लिए सोएगा और लंबे समय के लिए ही जगा रहेगा।

अपने दो महीने के शिशु को फुर्तीला बनने के लिए कैसे प्रोत्साहित किया जा सकता है?

आपके शिशु को ऐसे खिलौने बहुत पसंद आएंगे जो ठीक उसके ऊपर लटकते और हिलते रहते हों, और हो सकता है मंत्रमुग्ध होकर वह एकटक उन्हें देखता रहे। वह अपनी बंद मुट्ठी से उन पर हाथ मारने का प्रयास भी कर सकता है। अपनी खुशी जाहिर करने के लिए वह अपनी बाजू व टांगे भी मारना शुरु कर सकता है।


इस समय तक आपका शिशु अपनी गतिविधियों में बेहतर समन्वय कर पा रहा होगा। आप पाएंगी कि नवजात के तौर पर उसकी बाजू और टांग की झटकेदार हरकतें अब काफी सहज होती जा रही हैं।

आपके दो महीने के शिशु की पकड़ काफी मजबूत है, मगर पकड़ने के बाद किसी चीज को छोड़ना अभी उसने नहीं सीखा है। शिशु यदि आपके बालों को पकड़ ले, तो उसकी मजबूत पकड़ से अपने बाल छुड़ा पाना आपके लिए काफी मुश्किल साबित हो सकता है!

शिशु की डॉक्टरी जांच के दौरान क्या होगा?

शिशु की डॉक्टरी जांच शायद उसके छह से आठ सप्ताह का हो जाने पर होगी। यह जांच उसी तरह की होगी, जिस तरह जन्म के समय नवजात शिशु के परीक्षण और जांच की जाती है।

शिशु को जब जांच के लिए ले जाएं तो साथ में उसकी रिकॉर्ड बुक या अस्पताल से मिली कोई अन्य मेडिकल रिपोर्ट अवश्य ले जाए। आमतौर पर जांच में होगा:

शिशु का वजन और उसकी लंबाई की जांच और यह ग्रोथ चार्ट में दर्ज की जाएगी

सिर के घेरे का माप
शिशु की आंखें, कूल्हे, दिल और जननांगों की सामान्य जांच
आपसे पूछेंगे कि शिशु सही से दूध पी रहा है या नहीं और आपके हिसाब से उसका विकास सही हो रहा है या नहीं

इस समय शिशु के लिए नियत टीके लगाए जाएंगे। 

यदि आप किसी भी चीज को लेकर चिंतित हों, तो इस बारे में डॉक्टर से बात करें।

डॉक्टर आपको भविष्य की जांचों और टीकाकरण की समय-सारणी भी देंगे। आप शिशु को जब डॉक्टर के पास ले जाती हैं, खासकर टीकाकरण के लिए, तो यह शिशु का चेकअप ही होता है, जहां डॉक्टर बच्चे के विकास को देखते हैं।

शिशु की नियमित जांच करवाना जरुरी है ताकि पता चल सके कि वह अनुमान के मुताबिक सही विकास कर रहा है या नहीं। यह आपको मन की तसल्ली देगा और साथ ही शिशु के विकास को प्रभावित करने वाली यदि को समस्या हो तो उसकी भी समय से पहचान हो सकेगी।

क्या मेरा दो माह का शिशु सामान्य ढंग से बढ़ रहा है?

हर शिशु अलग होता है और शारीरिक क्षमताएं अपनी ही गति से विकसित करता है। विकास के ये दिशा निर्देश केवल यह बताते हैं कि शिशु में क्या सिद्ध करने की संभावना है। अभी नहीं, तो कुछ समय बाद शिशु इन्हे जरुर हासिल कर लेगा।

अगर, आपके शिशु का जन्म समय से पहले (गर्भावस्था के 37 सप्ताह से पहले) हुआ है, तो आप देखेंगे कि उसे वही सब चीजें करने में ज्यादा समय लगता है, जो समय से जन्मे बच्चे जल्दी करते हैं। यही कारण है कि समय से पहले पैदा होने वाले शिशुओं को उनके डॉक्टरों द्वारा दो उम्र दी जाती हैं:
कालानुक्रमिक (क्रोनोलॉजिकल) उम्र, जिसकी गणना शिशु के जन्म की तारीख से की जाती है

समायोजित उम्र (एडजस्टेड/करेक्टेड ऐज), जिसकी गणना आपके शिशु के पैदा होने की तय तारीख (ड्यू डेट) से की जाती है

आप अपने प्रीमैच्योर शिशु के विकास को उसकी समायोजित उम्र से देखें, उसके जन्म की वास्तविक तिथि से नहीं। अधिकांश डॉक्टर समय से पहले जन्मे बच्चे का विकास उसकी संभावित जन्म तिथि से आंकलित करते हैं और उसी अनुसार उसकी कुशलता का मूल्यांकन करते हैं।



शिशु का तीसरे माह में विकास

 तीन महीने का होने पर शिशु क्या कर सकता है?

आपका शिशु अब आपसे बड़बड़ा कर बातें करना शुरु कर सकता है। आप दिन भर शिशु से बातें करें, इससे उसकी भाषा का कौशल विकसित होने में मदद मिलेगी। जो भी काम आप कर रही हों, शिशु को उसके बारे में बताएं, फिर चाहे वह पौधों में पानी डालना ही हो।

हो सकता है आप देखें कि शिशु उत्साह में आकर अपनी भुजाओं को हिला रहा है और टांगों से लाते मार रहा है। अगर आप शिशु के पैर जमीन पर टिका कर उसे पकड़कर खड़ा करें, तो वह अपनी टांगों पर नीचे की तरफ झुकने का दबाव डालेगा।

आपका शिशु अब अपने दोनों हाथ एक साथ ला सकता है, मुट्ठियां खोल सकता है और अपनी उंगलियों के साथ खेल सकता है। वह अपनी बंद मुट्ठी से लटकते हुए खिलौनों पर हाथ भी मार सकता है। शिशु के सामने कोई खिलौना लेकर बैठें, और देखें कि क्या वह उसे पकड़ने का प्रयास करता है। इस तरह उसके हाथ और आंख के बीच तालमेल विकसित होने में मदद मिलेगी।


मेरा शिशु स्थिरता से अपना सिर कब उठा सकेगा?

आपका शिशु अब बलिष्ठ हो रहा है। इस महीने वह पेट के बल लेटे हुए अपना सिर उठा सकता है और कुछ मिनटों तक इसी स्थिति में रह भी सकता है। अगर शिशु सहारे से बैठा हुआ हो, तो हो सकता है वह अपना सिर स्थिर और सीधा रख सके।

जब शिशु पेट के बल लेटा हो तो आप शायद पाएंगी कि वह अपना सिर और छाती ऊपर की तरफ उठाता है, जैसे कि वह पुश-अप करने वाला हो। सिर उठाने के लिए शिशु को प्रोत्साहित करने के लिए आप उसके सामने बैठकर ऊपर की तरफ कोई खिलौना हिलाएं और देखें कि क्या वह ऊपर देखने का प्रयास करता है। शिशु को पेट के बल लेटने का पर्याप्त समय देने से उसके सिर और गर्दन की मांसपेशियां विकसित और मजबूत होती हैं।

मेरा बच्चा पलटना कब शुरु करेगा?

अगर आप शिशु को पेट के बल लिटाएं, तो वह पलटकर पीठ के बल आकर आपको चौंका सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि उसके कूल्हे, घुटने और कोहनी के जोड़ मजबूत व और अधिक लचीले हो रहे हैंं। इसी वजह से शिशु के लिए खुद को ऊपर की तरफ उठा पाना आसान हो जाता है।

आपका शिशु बिना कोई संकेत दिए खुद ही पलटना सीख जाएगा, और इससे न केवल आप बल्कि वह स्वयं भी आश्चर्यचकित होगा! इसलिए शिशु को ऊंची सतह पर कभी भी अकेला न छोड़ें। अगर आप बिस्तर पर लिटाकर शिशु की लंगोट बदल रही हैं, तो अपना एक हाथ हमेशा शिशु के ऊपर ही रखें।


 शिशु पूरी रात सोना कब शुरु करेगा?

नींद से वंचित माता-पिता अंतत: अब से कुछ राहत की उम्मीद कर सकते हैं। तीन से चार महीने के बाद से शिशु की नींद की दिनचर्या संभवतया स्थिर होना शुरु हो जाती है। इस उम्र के कुछ शिशु पूरी रात भी सो सकते हैं, हालांकि, अधिकांश शिशु अभी भी कुछ महीनों तक रात में स्तनपान करने के लिए जागते हैं।

यदि आपका शिशु भी आपको रात में जगाता है, तो फिक्र न करें। याद रखें कि ऐसा हमेशा नहीं रहेगा! शिशु की नींद की दिनचर्या का पालन करना जारी रखें, ताकि शिशु अपने सोने के समय को समझ सके। आप हमारी लोरियों को सुन सकती हैं और उनके बोल याद करके शिशु को सुना भी सकती हैं।
क्या शिशु को मेरे प्रति कोई लगाव पैदा हुआ है?

तीन महीने का होने पर या फिर इससे पहले से ही शिशु यह जानता है कि आप उसके लिए खास हैं। संभवतया अभी भी वह अनजान लोगों को देखकर मुस्कुराएगा, खासकर कि यदि वे सीधे उसकी आंखों में देखे और उससे प्यार से बोले व बातें करें तो।

मगर, शिशु अब यह पहचानना शुरु कर देता है कि उसकी जिंदगी में किसका स्थान क्या है और वह कुछ लोगों को अवश्य ही दूसरों की तुलना में विशेष दर्जा देता है।

दिमाग का जो हिस्सा हाथ और आंखों के समन्वय को नियंत्रित करता है और शिशु की चीजों को पहचानने में मदद करता है (पार्श्विका पालि, पेराइटल लोब), वह अब तेजी से विकसित हो रहा है। और दिमाग का जो हिस्सा जो सुनने, भाषा ज्ञान और सूंघने में सहायता करता है (टेम्पोरल लोब), वह भी अब अधिक सक्रिय हो रहा है।

इसलिए अब जब आपका शिशु आपकी आवाज सुनता है, वह सीधे आपकी तरफ देख सकता है। प्यार भरी मधुर आवाज निकालता है या बात करने का प्रयास कर सकता है।


तीन माह के बच्चे को किताबें पढ़कर सुनाना फायदेमंद है?

आपका शिशु अभी कहानियों को समझने के लिए बहुत छोटा है, मगर शिशु को कहानियां पढ़कर सुनाना उसके साथ बंधन मजबूत बनाने का अच्छा तरीका है। साथ है यह भविष्य में उसका भाषा कौशल विकसित करने में मदद करेगा।

अलग उच्चारणों और लहजों से अपनी आवाज के लय को बदलने का प्रयास करें, ताकि शिशु की रुचि बनी रहे। अगर, शिशु का मन कहानी से हटने लगे और वह किसी दूसरी तरफ देखने लगे, तो कुछ और आजमा कर देखें। या फिर आप उसे कुछ समय का आराम भी दे सकती हैं।

अगर, आपने अभी तक शिशु को कहानी सुनाना शुरु नहीं किया है, तो सोने के समय शिशु को कहानी सुनाना शुरु करने का यह सही समय है। ऐसी बहुत सी किताबें हैं जिन्हें आप शिशु को पढ़कर सुना सकती हैं। आप कपड़े या गत्ते (बोर्ड) की किताबें ले सकती हैं जिनमें बड़े, चमकीले रंग की तस्वीरें हों, जिनके बारे में आप बात कर सकें।

अगर, आप यह नहीं समझ पाती कि शिशु से क्या बात की जाए, तो उसे अपने और परिवार के सदस्यों के बारे में ही बताना शुरु कर सकती हैं। आप घर के सबसे अरुचिकर काम को करते हुए, उसके बारे में भी शिशु को बता सकती हैं।

बहूत से लोगों को छोटे बच्चे से बातें करना अजीब लगता है, मगर चिंता न करें, शिशु को यह सब अच्छा लगता है।

अगर, बड़े बच्चों की किताबों में साफ, स्पष्ट तस्वीरें और चमकीले रंग हैं, तो आप उन किताबों का भी इस्तेमाल कर सकती हैं। ये किताबें भी शिशु का ध्यान आकर्षित करने में अवश्य मदद करेंगी। यहां तक कि आप शिशु को अपनी पसंदीदा मैगजीन पढ़कर भी सुना सकती हैं। शिशु को आपके बोलने का लहजा फिर भी अच्छा लगेगा, फिर चाहे वह आपके शब्दों को न समझे।

या फिर आप शिशु को कविताएं भी पढ़कर सुना सकती हैं, फिर चाहे वे शेक्सपीयर की हों या तुलसीदास की। चाहे आपका शिशु इन्हें समझता न हो, मगर इन्हें संगीतमय तरीके से सुनना शिशु को बहुत पसंद आता है। इस तरह शिशु के साथ आपका भी मनोरंजन हो जाएगा!


 मेरे तीन महीने के बच्चे में स्पर्श का अहसास किस तरह विकसित हो रहा है?

आप पाएंगी कि शिशु अपने पास रखी चीजों तक पहुंचने और उन्हें छूने का प्रयास कर रहा है। आप अलग-अलग तरह के कपड़ों या सामान से शिशु के स्पर्श के अहसास को प्रेरित करने का प्रयास कर सकती हैं। टिशू, मखमल (वैल्वेट), रोएंदार वस्त्र (फर) और तौलिये का इस्तेमाल आप कर सकती हैं। या फिर ऐसी किताबों को लें, जिन्हें पढ़ते समय शिशु छू भी सकता है।

आपके शिशु को आपका स्पर्श बेहद पसंद है। शिशु को सहलाना, गोद में उठाना, मालिश करना या फिर गोद में लेकर झुलाना, उसे राहत दे सकता है। इससे शिशु की सतर्कता और ध्यान की अवधि भी बढ़ सकती है।

जब तक शिशु को मजा आ रहा हो, आप और आपके पति शिशु के साथ त्वचा से त्वचा का संपर्क रख सकती हैं। यदि आप शिशु को स्तनपान करवाती हैं तो हर बार आपको शिशु के साथ नजदीकी समय गुजारने को मौका मिलेगा।

यदि आप या आपके पति शिशु को फॉर्मूला दूध पिलाते हैं, तो उसे गोद में लेकर छाती से सटाकर त्वचा से त्वचा का संपर्क रखें। इस तरह शिशु और आपको त्वचा से त्वचा के संपर्क के फायदे मिलेंगे। आप शिशु के साथ के ये प्यार और दुलार के लम्हों का आनंद उठा सकते हैं।


मेरा शिशु सामान्य ढंग से विकसित हो रहा है?

हर शिशु अलग होता है और शारीरिक क्षमताएं अपनी ही गति से विकसित करता है। यहां सिर्फ साधारण मार्गदर्शक दिए गए हैं, जिन्हें करने की क्षमता आपके शिशु में होती है। अभी नहीं, तो कुछ समय बाद शिशु उन्हें जरुर हासिल कर लेगा।

अगर, आपके शिशु का जन्म समय से पहले (गर्भावस्था के 37 सप्ताह से पहले) हुआ है, तो आप देखेंगे कि उसे वे सब चीजें करने में ज्यादा समय लगता है, जो समय से जन्मे बच्चे जल्दी करते हैं। यही कारण है कि समय से पहले पैदा होने वाले शिशुओं को उनके डॉक्टरों द्वारा दो उम्र दी जाती हैं:
कालानुक्रमिक (क्रोनोलॉजिकल) उम्र, जिसकी गणना शिशु के जन्म की तारीख से की जाती है

समायोजित उम्र (एडजस्टेड/करेक्टेड ऐज), जिसकी गणना आपके शिशु के पैदा होने की तय तारीख (ड्यू डेट) से की जाती है

आप अपने प्रीमैच्योर शिशु के विकास को उसकी समायोजित उम्र से देखें, उसके जन्म की वास्तविक तिथि से नहीं। अधिकांश डॉक्टर समय से पूर्व जन्म लिए बच्चे का विकास उसकी संभावित जन्म तिथि से आंकलित करते हैं और उसी अनुसार उसकी कुशलता का मूल्यांकन करते हैं।

बच्चे की सुरक्षा के लिए प्रथम 6 माह केवल मा का दूध ही देना चाहिए। उसके अतिरिक्त मा का दूध 2-3 वर्ष तक जारी रखना चाहिए।



शिशु को लेकर माता-पिता की स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं।

जहां एक तरफ शिशु का विकास तेज गति से होता है, वहीं कुछ स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं। एक माह से तीन माह का शिशु अपनी समस्याओं को रोकर बताता है। शिशु को होने वाली समस्याओं को माता-पिता कुछ इस प्रकार पहचान सकते हैं :

1. कब्ज :  जब शिशु मल त्याग करने में 10-15 मिनट लगाए और इस दौरान उसका चेहरा लाल हो जाए, तो समझ जाना चाहिए कि उसे कब्ज है। ऐसे में उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं।

2. खांसी :  शिशु को सर्दी-जुकाम के कारण खांसी हो सकती है। साथ ही उसे सांस लेने में दिक्कत हो व हल्का बुखार भी हो।

3. क्रैडल कैप :  इसमें शिशु के सिर पर पपड़ीदार पैच बन जाते हैं। आमतौर पर यह सिर को धोने से या फिर अपने आप ठीक हो जाते हैं। अगर ऐसा नहीं होता है, तो डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।

4. डायरिया :  अगर शिशु का मल पानी की तरह पतला है और मल लगातार हो रहा है, तो इससे शिशु में पानी की कमी हो सकती है। इसलिए, शिशु को तुरंत डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।

5. उल्टी :  अगर शिशु कुछ भी खाने के बाद करीब दो घंटे में उल्टी कर रहा है, तो यह चिंता का विषय हो सकता है। साथ ही उसे बुखार व डायरिया है, तो बिना देरी किए उसे डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।

6. मुंहासे :  पहले माह में शिशु के चेहरे पर छोटे-छोटे मुंहासे नजर आ सकते हैं। ऐसा गर्भावस्था के दौरान प्लेसेंटा में तैलीय ग्रंथियों के सक्रिय होने पर हार्मोंस में असंतुलन के कारण हो सकता है। ऐसी अवस्था में अगर आप शिशु का ध्यान अच्छी तरह से रखेंगी, तो ये मुंहासे कुछ समय में अपने आप खत्म हो जाएंगे।

7. गैस :  अगर शिशु जरूरत से ज्यादा रो रहा है, तो हो सकता है उसे गैस हो। वहीं, अगर गैस डिस्चार्ज करते हुए रोता है, तो यह गंभीर समस्या है। उसे आप पेट के बल लेटाएं, इससे उसे राहत मिल सकती है या फिर डॉक्टर से संपर्क करें।

8. एलर्जी :  स्तनपान करने वाले शिशुओं को कुछ खास चीजों से एलर्जी हो सकती हैं, जिन्हें उनकी मां खाती है। इससे उन्हें असुविधा हो सकती है।

9. कोलिक :  इसमें भी शिशु के पेट में गैस बनती है और वह असहज महसूस करते हुए ऊंची आवाज में रोता है।



शिशु की स्वच्छता

बेशक नन्हे शिशु की देखभाल करने का आपका यह पहला अनुभव है, लेकिन यहां बताए गए टिप्स की मदद से आप यह काम आसानी से कर सकते है।

1. डायपर :  आप समय-समय पर शिशु का डायपर चेक करते रहें। अगर डायपर गीला है, तो उसे तुरंत बदलें। बदलते समय शिशु को अच्छी तरह साफ करें। इसके लिए आप खास बेबी वाइप्स या लोशन इस्तेमाल कर सकते हैं। अगर डायपर के वजह से शिशु को रैशेज हो गए हैं, तो डाॅक्टर से पूछकर अच्छी डायपर रैशेज क्रीम का इस्तेमाल कर सकते हैं। साथ ही दिन में कम से कम एक या दो बार शिशु को बिना डायपर के रहने दें, ताकि उसकी त्वचा पर प्राकृतिक मॉइस्चराइजर बना रहे।

2. स्नान :  आप शिशु को हल्के गुनगुने पानी से नहलाएं। आप उसे एक दिन छोड़कर नहला सकती हैं। उसे नहलाने से पहने अपने हाथों को अच्छी तरह धो लें। नहलाते समय उसकी आंखों, कानों व नाक को अच्छी तरह साफ करें।

3. सफाई :  बच्चा जब भी दूध पीता है, तो कई बार ज्यादा पी लेता और फिर बाद में उसे निकाल देता है। अगर आपका शिशु भी ऐसा करे, तो तुरंत उसे साफ करें। साथ ही जैसे ही आपको लगे कि उसके पैर व हाथों के नाखुन बड़े हो गए हैं, तो उसे काट दें। इससे एक तो वह खुद को चोट नहीं पहुंचाएगा और दूसरा नाखुनों में गंदगी जमा नहीं होगी।


आयु टीकाकरण सूची

जन्म पर बीसीजी, ओपीवी-0, हेपेटाइटिस-बी
6 हफ्ते (सवा महीने) : ओपीवी-1, रोटा-1, एफआईपीवी-1, पेंटावेलेंट-1
10 हफ्ते (सवा दो महीने) : ओपीवी-2, रोटा-2, पेंटावेलेंट-2
14 हफ्ते (सवा तीन महीने) : ओपीवी-3, रोटा-3, एफआईपीवी-2, पेंटावेलेंट-3
9 महीने : एमसीवी-1, विटामिन-ए
16-24 महीने : डीपीटी-बी, ओपीवी-बी, एमसीवी-2, विटामिन-ए
5-6 साल : डीपीटी-बी 2
10 साल : टीटी
16 साल : टीटी-1 व टीटी-2



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Friday, January 17, 2020

स्तनपान एक अमृत

 स्तनपान एक अमृत

मां द्वारा अपने शिशु को अपने स्तनों से आने वाला प्राकृतिक दूध पिलाने की क्रिया को स्तनपान कहते हैं। यह सभी स्तनपाइयों में आम क्रिया होती है। स्तनपान शिशु के लिए संरक्षण और संवर्धन का काम करता है। नवजात शिशु में रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति नहीं होती। मां के दूध से यह शक्ति शिशु को प्राप्त होती है। मां के दूध में लेक्टोफोर्मिन नामक तत्व होता है, जो बच्चे की आंत में लौह तत्त्व को बांध लेता है और लौह तत्त्व के अभाव में शिशु की आंत में रोगाणु पनप नहीं पाते। मां के दूध से आए साधारण जीवाणु बच्चे की आंत में पनपते हैं और रोगाणुओं से प्रतिस्पर्धा कर उन्हें पनपने नहीं देते। मां के दूध में रोगाणु नाशक तत्त्व होते हैं। वातावरण से मां की आंत में पहुंचे रोगाणु, आंत में स्थित विशेष भाग के संपर्क में आते हैं, जो उन रोगाणु-विशेष के खिलाफ प्रतिरोधात्मक तत्व बनाते हैं। ये तत्व एक विशेष नलिका थोरासिक डक्ट से सीधे मां के स्तन तक पहुंचते हैं और दूध से बच्चे के पेट में। इस तरह बच्चा मां का दूध पीकर सदा स्वस्थ रहता है।

अनुमान के अनुसार 820,000 बच्चों की मौत विश्व स्तर पर पांच साल की उम्र के तहत वृद्धि हुई जिसे स्तनपान के साथ हर साल रोका जा सकता है। दोनों विकासशील और विकसित देशों में स्तनपान से श्वसन तंत्र में संक्रमण और दस्त के जोखिम को कमी पाई गयी है। स्तनपान से संज्ञानात्मक विकास में सुधार और वयस्कता में मोटापे का खतरा कम हो सकती है।

जिन बच्चों को बचपन में पर्याप्त रूप से मां का दूध पीने को नहीं मिलता, उनमें बचपन में शुरू होने वाले डायबिटीज की बीमारी अधिक होती है। उनमें अपेक्षाकृत बुद्धि विकास कम होता है। अगर बच्चा समय पूर्व जन्मा (प्रीमेच्योर) हो, तो उसे बड़ी आंत का घातक रोग, नेक्रोटाइजिंग एंटोरोकोलाइटिस हो सकता है। अगर गाय का दूध पीतल के बर्तन में उबाल कर दिया गया हो, तो उसे लीवर का रोग इंडियन चाइल्डहुड सिरोसिस हो सकता है। इसलिए आठ-बारह महीने तक बच्चे के लिए मां का दूध श्रेष्ठ ही नहीं, जीवन रक्षक भी होता है।


 स्तनपान के लाभ

मां का दूध केवल पोषण ही नहीं, जीवन की धारा है। इससे मां और बच्चे के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। शिशु को पहले छह महीने तक केवल स्तनपान पर ही निर्भर रखना चाहिए। यह शिशु के जीवन के लिए जरूरी है, क्योंकि मां का दूध सुपाच्य होता है और इससे पेट की गड़बड़ियों की आशंका नहीं होती। मां का दूध शिशु की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी सहायक होता है। स्तनपान से दमा और कान की बीमारी पर नियंत्रण कायम होता है, क्योंकि मां का दूध शिशु की नाक और गले में प्रतिरोधी त्वचा बना देता है। कुछ शिशु को गाय के दूध से एलर्जी हो सकती है। इसके विपरीत मां का दूध शत-प्रतिशत सुरक्षित है। शोध से प्रमाणित हुआ है कि स्तनपान करनेवाले बच्चे बाद में मोटे नहीं होते। यह शायद इस वजह से होता है कि उन्हें शुरू से ही जरूरत से अधिक खाने की आदत नहीं पड़ती। स्तनपान से जीवन के बाद के चरणों में रक्त कैंसर, मधुमेह और उच्च रक्तचाप का खतरा कम हो जाता है। स्तनपान से शिशु की बौद्धिक क्षमता भी बढ़ती है। इसका कारण यह है कि स्तनपान करानेवाली मां और उसके शिशु के बीच भावनात्मक रिश्ता बहुत मजबूत होता है। इसके अलावा मां के दूध में कई प्रकार के प्राकृतिक रसायन भी मौजूद होते हैं।


मां को स्तनपान के लाभ

नयी माताओं द्वारा स्तनपान कराने से उन्हें गर्भावस्था के बाद होनेवाली शिकायतों से मुक्ति मिल जाती है। इससे तनाव कम होता है और प्रसव के बाद होनेवाले रक्तस्राव पर नियंत्रण पाया जा सकता है। मां के लिए दीर्घकालिक लाभ हृदय रोग, और रुमेटी गठिया का खतरा कम किया है। स्तनपान करानेवाली माताओं को स्तन या गर्भाशय के कैंसर का खतरा न्यूनतम होता है। स्तनपान एक प्राकृतिक गर्भनिरोधक है। स्तनपान सुविधाजनक, मुफ्त (शिशु को बाहर का दूध पिलाने के लिए दुग्ध मिश्रण, बोतल और अन्य खर्चीले सामान की जरूरत होती है) और सबसे बढ़ कर माँ तथा शिशु के बीच भावनात्मक संबंध मजबूत करने का सुलभ साधन है। मां के साथ शारीरिक रूप से जुड़े होने का एहसास शिशुओं को आरामदायक माहौल देता है।

स्तनपान  कराने की प्रतिक्रिया

शिशु के जन्म के फौरन बाद स्तनपान शुरू कर देना चाहिए। जन्म के तत्काल बाद नग्न शिशु को (उसके शरीर को कोमलता से सुखाने के बाद) उसकी मां की गोद में देना चाहिए। मां उसे अपने स्तन के पास ले जाये, ताकि त्वचा से संपर्क हो सके। इससे दूध का बहाव ठीक होता है और शिशु को गर्मी मिलती है। इससे मां और शिशु के बीच भावनात्मक संबंध विकसित होता है। स्तनपान जल्दी आरंभ करने के प्रारंभिक कारण निम्न हैं।


1.शिशु पहले 30 से 60 मिनट के दौरान सर्वाधिक सक्रिय रहता है।

2.उस समय उसके चूसने की शक्ति सबसे अधिक रहती है।

3.जल्दी शुरू करने से स्तनपान की सफलता की संभावना बढ़ जाती है। स्तन से निकलने वाला पीले रंग का द्रव, जिसे कोलोस्ट्रम कहते हैं, शिशु को संक्रमण से बचाने और उसकी प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने का सबसे अच्छा उपाय है। यह एक टीका है।

4.स्तनपान तत्काल शुरू करने से स्तनों में सूजन या प्रसवोत्तर रक्तस्राव की शिकायत नहीं होती।

5.शल्यचिकित्सा से शिशु जन्म देनेवाली माताएं भी स्तनपान करा सकती हैं। यह शल्य क्रिया आपकी सफल स्तनपान की क्षमता पर असर नहीं डालती है।

6.शल्य क्रिया के चार घंटे बाद या एनीस्थीसिया के प्रभाव से बाहर आने के बाद आप स्तनपान करा सकती हैं।

7.स्तनपान कराने के लिए आप अपने शरीर को एक करवट में झुका सकती हैं या फिर अपने शिशु को अपने पेट पर लिटा कर स्तनपान करा सकती हैं।

8.सीजेरियन विधि से शिशु को जन्म देनेवाली माताएँ पहले कुछ दिन तक नर्स की मदद से अपने शिशु को सफलतापूर्वक स्तनपान करा सकती हैं।


स्तनपान कब तक

साधारणतया कम से कम 12 महीने तक शिशु को स्तनपान कराना चाहिए और उसके बाद दो साल या उसके बाद तक भी स्तनपान कराया जा सकता है। माता के बीमार होनेपर भी शिशु को स्तनपान कराना जरूरी होता है। आमतौर पर साधारण बीमारियों से स्तनपान करनेवाले शिशु को कोई नुकसान नहीं पहुंचता। यहां तक कि टायफायड, मलेरिया, यक्ष्मा, पीलिया और कुष्ठ रोग में भी स्तनपान पर रोक लगाने की सलाह नहीं दी जाती है।


 स्तनपान के फायदे – Breast Feeding Benefits 


स्तनपान के बारे में कुछ माताओं को मन में कई प्रकार की शंका उत्पन्न हो सकती है। जैसे बीमारी आदि की अवस्था में स्तनपान कराना चाहिए या नहीं या स्तन की बनावट को लेकर शंका और स्तन की सुंदरता बिगड़ने को लेकर शंका।

किसी भी स्थिति में स्तनपान कराना श्रेष्ठ ही होता है। इसका विकल्प नहीं हो सकता है। आइये देखें स्तनपान कराने के क्या लाभ होते हैं  –

स्तनपान breast Feeding प्रकृति का सर्वोत्तम उपहार है। जहाँ शिशु को पहले आहार के रूप में सर्वश्रेष्ठ भोजन प्राप्त होता है , वही माँ और बच्चे में भावनात्मक रिश्ता भी बनता है।

इससे दोनों को ही अमूल्य संतुष्टि हासिल होती है। WHO के अनुसार शिशु को छः महीने तक सिर्फ स्तनपान देना चाहिए तथा इसके बाद दो साल की उम्र तक अन्य आहार के साथ स्तनपान कराना चाहिए।



स्तनपान कराने के फायदे (Benefits of breast feeding) निम्न हैं


1.  शिशु के लिए प्राकृतिक सर्वश्रेष्ठ आहार 

माँ का दूध नवजात शिशु के कोमल अंगों तथा पाचन क्रिया के अनुरूप प्रकृति द्वारा निर्मित होता है। इसमें बच्चे की जरुरत के सभी पोषक तत्व उचित मात्रा में होते हैं। इन्हे शिशु आसानी से हजम कर लेता है।

माँ के दूध में मौजूद प्रोटीन और वसा गाय के दूध की तुलना में भी अधिक आसानी से पच जाता है। इससे शिशु के पेट में गैस बनने , कब्ज , दस्त आदि होने या दूध उलटने की सम्भावना बहुत कम होती है।

माँ का दूध नुकसान करने वाले माइक्रो ऑर्गनिज़्म को नष्ट करके आँतो में लाभदायक तत्वों की वृद्धि करता है।

2. शिशु में जरूरत के अनुसार अपने आप बदलाव

माँ के दूध में शिशु की जरूरत के हिसाब से परिवर्तन होते रहते हैं। दिन में , रात में , कुछ सप्ताह में और कुछ महीनो में शिशु को पोषक तत्वों की जरूरत बदल जाती है। उसी के अनुसार माँ के दूध में भी बदलाव अपने आप हो जाते हैं।


3. शिशु को एलर्जी नहीं

स्तनपान करने से शिशु को एलर्जी नहीं होती है। खान पान में बदलाव के अनुसार माँ के दूध के स्वाद या गंध में परिवर्तन हो सकता है लेकिन यह एलर्जी का कारण या नुकसान का कारण नहीं होता है। जबकि अन्य प्रकार के दूध या आहार से शिशु एलर्जी का शिकार हो सकता है।

4. शिशु की प्रतिरोधक क्षमता अधिक

स्तनपान करने वाले बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता तुलनात्मक रूप से अधिक होती है। माँ का दूध उन्हें सर्दी , जुकाम , खांसी या अन्य संक्रमण से बचाने में सहायक होता है। अन्य प्रकार की बीमारी की सम्भावना भी स्तनपान करने वाले शिशुओं में कम होती है।

5. मोटापा कम

स्तनपान करने वाले शिशु के शरीर पर अनावश्यक चर्बी नहीं चढ़ती। माँ के दूध से पेट भरते ही तृप्ति मिल जाने के कारण शिशु आवश्यकता से अधिक दूध नहीं पीता। जबकि बोतल आदि से दूध पीने से शिशु जरूरत से ज्यादा दूध पी जाता है जो मोटापे का कारण बन जाता है। बड़े होने के बाद भी बचपन में मिला स्तनपान मोटापे तथा कोलेस्ट्रॉल आदि से बचाता है।

6. शिशु का दिमाग तेज

स्तन से मिलने वाले दूध से शिशु को डी एच ए मिलता है जो दिमाग को तेज बनाता है। स्तनपान की प्रक्रिया भी शिशु को मानसिक रूप से सुदृढ़ बनाने में सहायक होती है। इससे शिशु को भावनात्मक सुरक्षा का अहसास मिलता है जो मस्तिष्क के उचित विकास में मददगार होता है।

7. शिशु के मुँह और दांत का सही विकास

शिशु का मुंह स्तन से दूध पीने के लिए सर्वाधिक अनुकूल होता है। स्तनपान की प्रक्रिया से बच्चे का मुँह सही तरीके से विकसित होता है तथा दांत निकलने में भी यह प्रक्रिया सहायक होती है। इससे बच्चे के जबड़े मजबूत बनते हैं।

8. अधिक सुविधाजनक

जब भी बच्चे को भूख लगे तो स्तनपान कराने के लिए किसी प्रकार की कोई तैयारी नहीं करनी पड़ती। घर से बाहर जाने पर भी शिशु का आहार हमेशा माँ के साथ होता है। जबकि अन्य प्रकार के दूध या आहार के लिए  गर्म , ठंडा , सफाई आदि का बहुत ध्यान रखना होता है।


9. मां का गर्भाशय सामान्य होना

स्तनपान कराने से माँ के गर्भाशय को अपने उचित आकार में आने में मदद मिलती है। यह रक्तस्राव में कमी लाता है। माहवारी शुरू होने की प्रक्रिया देर से शुरू होने में सहायक होता है। स्तनपान वापस जल्दी प्रेग्नेंट होने की सम्भावना को कम करता है।

10. मां को गंभीर बीमारी से बचाव

स्तनपान कराने से माँ को गर्भाशय , ओवरी तथा स्तन के कैंसर जैसी गंभीर बीमारी होने का खतरा कम होता है।

11. माँ को आराम

शिशु को जन्म देने के बाद माँ के शरीर को आराम की आवश्यकता होती है। स्तनपान कराते समय सब काम छोड़कर बैठना पड़ता है। इससे माँ के शरीर को आराम मिल जाता है।

12. मां का डिप्रेशन दूर

डिलीवरी एक बाद कभी कभी माँ को डिप्रेशन की समस्या होने लगती है जिसे पोस्ट नेटल डिप्रेशन कहते हैं। स्तनपान इस प्रकार के डिप्रेशन को दूर रखता है और मन को संतुष्टि देता है।



आवृत्ति

एक नवजात एक बहुत छोटे से पेट की क्षमता है। एक दिन की उम्र में यह 5 से 7 मिलीलीटर, एक संगमरमर के आकार के बराबर होता है,तीन दिन में यह 0.75-1 आस्ट्रेलिया, एक "शूटर" संगमरमर के आकार का और सात दिन में यह है 1.5-2 या एक पिंगपांग की गेंद के आकार तक विकसित हो जाता है।मां के दूध का उत्पादन पहले दूध, कोलोस्ट्रम, केंद्रित होता है,शिशु की जरूरतों को पूरा करने के लिए मुखय भूमिका निभाता है, जो केवल बहुत कम मात्रा में धीरे-धीरे शिशु के पेट क्षमता के विस्तार के आकार के साथ बढ़ता जाता है।स्तनपान दिन के समय दोनों स्तनों से कम से कम 10-15 मिनट तक हर दो या तीन घन्टे के बाद कराना चाहिए। दिन में हो सकता है कि बच्चे को जगाना पड़े (डॉयपर बदलने या बच्चे को सीधा करने अथवा उससे बातें करने से बच्चे को जगाने में मदद मिलती है)। जब बच्चे की पोषण परक जरूरतें दिन के समय ठीक से पूरी हो जाती हैं तो फिर वह रात को बार बार नहीं जगता। कभी कभी ऐसा भी होता है कि स्तन रात को भर जाते हैं और शिशु सो रहा होता है, तब मां चाहती हैं कि उसे जगाकर दूध पिला दें। जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता है, दूध पिलाने की अवधि बढ़ती जाती है।


स्तनपान कराने की स्थितियां


स्थिति और latching आवश्यक तकनीक से निपल व्यथा कि रोकथाम और बच्चे को पर्याप्त दूध प्राप्त करने के लिए स्तनपान कराने की स्थितियां महतवपूर्ण है।

"पक्ष पलटा" बच्चे की स्वाभाविक प्रवृत्ति मुंह खुला के साथ स्तन की ओर मोड़ करने के लिए है; माताओं कभी कभी धीरे उनकी निप्पल के साथ बच्चे के गाल या होंठ पथपाकर एक स्तनपान सत्र के लिए स्थिति में ले जाते हैं, तो जल्दी से स्तन पर ले जाती है,बच्चे को प्रेरित करने के द्वारा इस का उपयोग करते हैं जबकि उसके मुंह खुला हुआ है।निपल व्यथा को रोकने और बच्चे को पर्याप्त दूध प्राप्त करने के लिये स्तन और परिवेश का बड़ा हिस्सा बच्चे के मुह के अन्दर होना ज़रुरी है।विफलता अप्रभावी स्तनपान मुख्य कारणों में से एक है और शिशु स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को जन्म दे सकते है।इसलिये चिकित्सक का परामर्श आवश्यक लें।


स्तनों में लंप

स्तनपान के दौरान स्तनों में लम्प सामान्य बात है जो कि किसी छिद्र के बन्द होने से बन जाता है। दूध पिलाने से पहले (गर्म पानी से स्नान या सेक) सेक और स्तनों की मालिश करें (छाती से निप्पल की ओर गोल गोल कोमलता से अंगुली के पोरों से करें या पम्प द्वारा निकाल दें। बन्द छिद्र या नली को खोल लेना महत्वपूर्ण है नहीं तो स्तनों में इन्फैक्शन हो सकता है। यदि इस सब से लम्प न निकले या फ्लू के लक्षण दिखाई दें तो चिकित्सक का परामर्श लें।


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