स्तनपान एक अमृत
मां द्वारा अपने शिशु को अपने स्तनों से आने वाला प्राकृतिक दूध पिलाने की क्रिया को स्तनपान कहते हैं। यह सभी स्तनपाइयों में आम क्रिया होती है। स्तनपान शिशु के लिए संरक्षण और संवर्धन का काम करता है। नवजात शिशु में रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति नहीं होती। मां के दूध से यह शक्ति शिशु को प्राप्त होती है। मां के दूध में लेक्टोफोर्मिन नामक तत्व होता है, जो बच्चे की आंत में लौह तत्त्व को बांध लेता है और लौह तत्त्व के अभाव में शिशु की आंत में रोगाणु पनप नहीं पाते। मां के दूध से आए साधारण जीवाणु बच्चे की आंत में पनपते हैं और रोगाणुओं से प्रतिस्पर्धा कर उन्हें पनपने नहीं देते। मां के दूध में रोगाणु नाशक तत्त्व होते हैं। वातावरण से मां की आंत में पहुंचे रोगाणु, आंत में स्थित विशेष भाग के संपर्क में आते हैं, जो उन रोगाणु-विशेष के खिलाफ प्रतिरोधात्मक तत्व बनाते हैं। ये तत्व एक विशेष नलिका थोरासिक डक्ट से सीधे मां के स्तन तक पहुंचते हैं और दूध से बच्चे के पेट में। इस तरह बच्चा मां का दूध पीकर सदा स्वस्थ रहता है।
अनुमान के अनुसार 820,000 बच्चों की मौत विश्व स्तर पर पांच साल की उम्र के तहत वृद्धि हुई जिसे स्तनपान के साथ हर साल रोका जा सकता है। दोनों विकासशील और विकसित देशों में स्तनपान से श्वसन तंत्र में संक्रमण और दस्त के जोखिम को कमी पाई गयी है। स्तनपान से संज्ञानात्मक विकास में सुधार और वयस्कता में मोटापे का खतरा कम हो सकती है।
जिन बच्चों को बचपन में पर्याप्त रूप से मां का दूध पीने को नहीं मिलता, उनमें बचपन में शुरू होने वाले डायबिटीज की बीमारी अधिक होती है। उनमें अपेक्षाकृत बुद्धि विकास कम होता है। अगर बच्चा समय पूर्व जन्मा (प्रीमेच्योर) हो, तो उसे बड़ी आंत का घातक रोग, नेक्रोटाइजिंग एंटोरोकोलाइटिस हो सकता है। अगर गाय का दूध पीतल के बर्तन में उबाल कर दिया गया हो, तो उसे लीवर का रोग इंडियन चाइल्डहुड सिरोसिस हो सकता है। इसलिए आठ-बारह महीने तक बच्चे के लिए मां का दूध श्रेष्ठ ही नहीं, जीवन रक्षक भी होता है।
स्तनपान के लाभ
मां का दूध केवल पोषण ही नहीं, जीवन की धारा है। इससे मां और बच्चे के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। शिशु को पहले छह महीने तक केवल स्तनपान पर ही निर्भर रखना चाहिए। यह शिशु के जीवन के लिए जरूरी है, क्योंकि मां का दूध सुपाच्य होता है और इससे पेट की गड़बड़ियों की आशंका नहीं होती। मां का दूध शिशु की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी सहायक होता है। स्तनपान से दमा और कान की बीमारी पर नियंत्रण कायम होता है, क्योंकि मां का दूध शिशु की नाक और गले में प्रतिरोधी त्वचा बना देता है। कुछ शिशु को गाय के दूध से एलर्जी हो सकती है। इसके विपरीत मां का दूध शत-प्रतिशत सुरक्षित है। शोध से प्रमाणित हुआ है कि स्तनपान करनेवाले बच्चे बाद में मोटे नहीं होते। यह शायद इस वजह से होता है कि उन्हें शुरू से ही जरूरत से अधिक खाने की आदत नहीं पड़ती। स्तनपान से जीवन के बाद के चरणों में रक्त कैंसर, मधुमेह और उच्च रक्तचाप का खतरा कम हो जाता है। स्तनपान से शिशु की बौद्धिक क्षमता भी बढ़ती है। इसका कारण यह है कि स्तनपान करानेवाली मां और उसके शिशु के बीच भावनात्मक रिश्ता बहुत मजबूत होता है। इसके अलावा मां के दूध में कई प्रकार के प्राकृतिक रसायन भी मौजूद होते हैं।
मां को स्तनपान के लाभ
नयी माताओं द्वारा स्तनपान कराने से उन्हें गर्भावस्था के बाद होनेवाली शिकायतों से मुक्ति मिल जाती है। इससे तनाव कम होता है और प्रसव के बाद होनेवाले रक्तस्राव पर नियंत्रण पाया जा सकता है। मां के लिए दीर्घकालिक लाभ हृदय रोग, और रुमेटी गठिया का खतरा कम किया है। स्तनपान करानेवाली माताओं को स्तन या गर्भाशय के कैंसर का खतरा न्यूनतम होता है। स्तनपान एक प्राकृतिक गर्भनिरोधक है। स्तनपान सुविधाजनक, मुफ्त (शिशु को बाहर का दूध पिलाने के लिए दुग्ध मिश्रण, बोतल और अन्य खर्चीले सामान की जरूरत होती है) और सबसे बढ़ कर माँ तथा शिशु के बीच भावनात्मक संबंध मजबूत करने का सुलभ साधन है। मां के साथ शारीरिक रूप से जुड़े होने का एहसास शिशुओं को आरामदायक माहौल देता है।
स्तनपान कराने की प्रतिक्रिया
शिशु के जन्म के फौरन बाद स्तनपान शुरू कर देना चाहिए। जन्म के तत्काल बाद नग्न शिशु को (उसके शरीर को कोमलता से सुखाने के बाद) उसकी मां की गोद में देना चाहिए। मां उसे अपने स्तन के पास ले जाये, ताकि त्वचा से संपर्क हो सके। इससे दूध का बहाव ठीक होता है और शिशु को गर्मी मिलती है। इससे मां और शिशु के बीच भावनात्मक संबंध विकसित होता है। स्तनपान जल्दी आरंभ करने के प्रारंभिक कारण निम्न हैं।
1.शिशु पहले 30 से 60 मिनट के दौरान सर्वाधिक सक्रिय रहता है।
2.उस समय उसके चूसने की शक्ति सबसे अधिक रहती है।
3.जल्दी शुरू करने से स्तनपान की सफलता की संभावना बढ़ जाती है। स्तन से निकलने वाला पीले रंग का द्रव, जिसे कोलोस्ट्रम कहते हैं, शिशु को संक्रमण से बचाने और उसकी प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने का सबसे अच्छा उपाय है। यह एक टीका है।
4.स्तनपान तत्काल शुरू करने से स्तनों में सूजन या प्रसवोत्तर रक्तस्राव की शिकायत नहीं होती।
5.शल्यचिकित्सा से शिशु जन्म देनेवाली माताएं भी स्तनपान करा सकती हैं। यह शल्य क्रिया आपकी सफल स्तनपान की क्षमता पर असर नहीं डालती है।
6.शल्य क्रिया के चार घंटे बाद या एनीस्थीसिया के प्रभाव से बाहर आने के बाद आप स्तनपान करा सकती हैं।
7.स्तनपान कराने के लिए आप अपने शरीर को एक करवट में झुका सकती हैं या फिर अपने शिशु को अपने पेट पर लिटा कर स्तनपान करा सकती हैं।
8.सीजेरियन विधि से शिशु को जन्म देनेवाली माताएँ पहले कुछ दिन तक नर्स की मदद से अपने शिशु को सफलतापूर्वक स्तनपान करा सकती हैं।
स्तनपान कब तक
साधारणतया कम से कम 12 महीने तक शिशु को स्तनपान कराना चाहिए और उसके बाद दो साल या उसके बाद तक भी स्तनपान कराया जा सकता है। माता के बीमार होनेपर भी शिशु को स्तनपान कराना जरूरी होता है। आमतौर पर साधारण बीमारियों से स्तनपान करनेवाले शिशु को कोई नुकसान नहीं पहुंचता। यहां तक कि टायफायड, मलेरिया, यक्ष्मा, पीलिया और कुष्ठ रोग में भी स्तनपान पर रोक लगाने की सलाह नहीं दी जाती है।
स्तनपान के फायदे – Breast Feeding Benefits
स्तनपान के बारे में कुछ माताओं को मन में कई प्रकार की शंका उत्पन्न हो सकती है। जैसे बीमारी आदि की अवस्था में स्तनपान कराना चाहिए या नहीं या स्तन की बनावट को लेकर शंका और स्तन की सुंदरता बिगड़ने को लेकर शंका।
किसी भी स्थिति में स्तनपान कराना श्रेष्ठ ही होता है। इसका विकल्प नहीं हो सकता है। आइये देखें स्तनपान कराने के क्या लाभ होते हैं –
स्तनपान breast Feeding प्रकृति का सर्वोत्तम उपहार है। जहाँ शिशु को पहले आहार के रूप में सर्वश्रेष्ठ भोजन प्राप्त होता है , वही माँ और बच्चे में भावनात्मक रिश्ता भी बनता है।
इससे दोनों को ही अमूल्य संतुष्टि हासिल होती है। WHO के अनुसार शिशु को छः महीने तक सिर्फ स्तनपान देना चाहिए तथा इसके बाद दो साल की उम्र तक अन्य आहार के साथ स्तनपान कराना चाहिए।
स्तनपान कराने के फायदे (Benefits of breast feeding) निम्न हैं
1. शिशु के लिए प्राकृतिक सर्वश्रेष्ठ आहार
माँ का दूध नवजात शिशु के कोमल अंगों तथा पाचन क्रिया के अनुरूप प्रकृति द्वारा निर्मित होता है। इसमें बच्चे की जरुरत के सभी पोषक तत्व उचित मात्रा में होते हैं। इन्हे शिशु आसानी से हजम कर लेता है।
माँ के दूध में मौजूद प्रोटीन और वसा गाय के दूध की तुलना में भी अधिक आसानी से पच जाता है। इससे शिशु के पेट में गैस बनने , कब्ज , दस्त आदि होने या दूध उलटने की सम्भावना बहुत कम होती है।
माँ का दूध नुकसान करने वाले माइक्रो ऑर्गनिज़्म को नष्ट करके आँतो में लाभदायक तत्वों की वृद्धि करता है।
2. शिशु में जरूरत के अनुसार अपने आप बदलाव
माँ के दूध में शिशु की जरूरत के हिसाब से परिवर्तन होते रहते हैं। दिन में , रात में , कुछ सप्ताह में और कुछ महीनो में शिशु को पोषक तत्वों की जरूरत बदल जाती है। उसी के अनुसार माँ के दूध में भी बदलाव अपने आप हो जाते हैं।
3. शिशु को एलर्जी नहीं
स्तनपान करने से शिशु को एलर्जी नहीं होती है। खान पान में बदलाव के अनुसार माँ के दूध के स्वाद या गंध में परिवर्तन हो सकता है लेकिन यह एलर्जी का कारण या नुकसान का कारण नहीं होता है। जबकि अन्य प्रकार के दूध या आहार से शिशु एलर्जी का शिकार हो सकता है।
4. शिशु की प्रतिरोधक क्षमता अधिक
स्तनपान करने वाले बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता तुलनात्मक रूप से अधिक होती है। माँ का दूध उन्हें सर्दी , जुकाम , खांसी या अन्य संक्रमण से बचाने में सहायक होता है। अन्य प्रकार की बीमारी की सम्भावना भी स्तनपान करने वाले शिशुओं में कम होती है।
5. मोटापा कम
स्तनपान करने वाले शिशु के शरीर पर अनावश्यक चर्बी नहीं चढ़ती। माँ के दूध से पेट भरते ही तृप्ति मिल जाने के कारण शिशु आवश्यकता से अधिक दूध नहीं पीता। जबकि बोतल आदि से दूध पीने से शिशु जरूरत से ज्यादा दूध पी जाता है जो मोटापे का कारण बन जाता है। बड़े होने के बाद भी बचपन में मिला स्तनपान मोटापे तथा कोलेस्ट्रॉल आदि से बचाता है।
6. शिशु का दिमाग तेज
स्तन से मिलने वाले दूध से शिशु को डी एच ए मिलता है जो दिमाग को तेज बनाता है। स्तनपान की प्रक्रिया भी शिशु को मानसिक रूप से सुदृढ़ बनाने में सहायक होती है। इससे शिशु को भावनात्मक सुरक्षा का अहसास मिलता है जो मस्तिष्क के उचित विकास में मददगार होता है।
7. शिशु के मुँह और दांत का सही विकास
शिशु का मुंह स्तन से दूध पीने के लिए सर्वाधिक अनुकूल होता है। स्तनपान की प्रक्रिया से बच्चे का मुँह सही तरीके से विकसित होता है तथा दांत निकलने में भी यह प्रक्रिया सहायक होती है। इससे बच्चे के जबड़े मजबूत बनते हैं।
8. अधिक सुविधाजनक
जब भी बच्चे को भूख लगे तो स्तनपान कराने के लिए किसी प्रकार की कोई तैयारी नहीं करनी पड़ती। घर से बाहर जाने पर भी शिशु का आहार हमेशा माँ के साथ होता है। जबकि अन्य प्रकार के दूध या आहार के लिए गर्म , ठंडा , सफाई आदि का बहुत ध्यान रखना होता है।
9. मां का गर्भाशय सामान्य होना
स्तनपान कराने से माँ के गर्भाशय को अपने उचित आकार में आने में मदद मिलती है। यह रक्तस्राव में कमी लाता है। माहवारी शुरू होने की प्रक्रिया देर से शुरू होने में सहायक होता है। स्तनपान वापस जल्दी प्रेग्नेंट होने की सम्भावना को कम करता है।
10. मां को गंभीर बीमारी से बचाव
स्तनपान कराने से माँ को गर्भाशय , ओवरी तथा स्तन के कैंसर जैसी गंभीर बीमारी होने का खतरा कम होता है।
11. माँ को आराम
शिशु को जन्म देने के बाद माँ के शरीर को आराम की आवश्यकता होती है। स्तनपान कराते समय सब काम छोड़कर बैठना पड़ता है। इससे माँ के शरीर को आराम मिल जाता है।
12. मां का डिप्रेशन दूर
डिलीवरी एक बाद कभी कभी माँ को डिप्रेशन की समस्या होने लगती है जिसे पोस्ट नेटल डिप्रेशन कहते हैं। स्तनपान इस प्रकार के डिप्रेशन को दूर रखता है और मन को संतुष्टि देता है।
आवृत्ति
एक नवजात एक बहुत छोटे से पेट की क्षमता है। एक दिन की उम्र में यह 5 से 7 मिलीलीटर, एक संगमरमर के आकार के बराबर होता है,तीन दिन में यह 0.75-1 आस्ट्रेलिया, एक "शूटर" संगमरमर के आकार का और सात दिन में यह है 1.5-2 या एक पिंगपांग की गेंद के आकार तक विकसित हो जाता है।मां के दूध का उत्पादन पहले दूध, कोलोस्ट्रम, केंद्रित होता है,शिशु की जरूरतों को पूरा करने के लिए मुखय भूमिका निभाता है, जो केवल बहुत कम मात्रा में धीरे-धीरे शिशु के पेट क्षमता के विस्तार के आकार के साथ बढ़ता जाता है।स्तनपान दिन के समय दोनों स्तनों से कम से कम 10-15 मिनट तक हर दो या तीन घन्टे के बाद कराना चाहिए। दिन में हो सकता है कि बच्चे को जगाना पड़े (डॉयपर बदलने या बच्चे को सीधा करने अथवा उससे बातें करने से बच्चे को जगाने में मदद मिलती है)। जब बच्चे की पोषण परक जरूरतें दिन के समय ठीक से पूरी हो जाती हैं तो फिर वह रात को बार बार नहीं जगता। कभी कभी ऐसा भी होता है कि स्तन रात को भर जाते हैं और शिशु सो रहा होता है, तब मां चाहती हैं कि उसे जगाकर दूध पिला दें। जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता है, दूध पिलाने की अवधि बढ़ती जाती है।
स्तनपान कराने की स्थितियां
स्थिति और latching आवश्यक तकनीक से निपल व्यथा कि रोकथाम और बच्चे को पर्याप्त दूध प्राप्त करने के लिए स्तनपान कराने की स्थितियां महतवपूर्ण है।
"पक्ष पलटा" बच्चे की स्वाभाविक प्रवृत्ति मुंह खुला के साथ स्तन की ओर मोड़ करने के लिए है; माताओं कभी कभी धीरे उनकी निप्पल के साथ बच्चे के गाल या होंठ पथपाकर एक स्तनपान सत्र के लिए स्थिति में ले जाते हैं, तो जल्दी से स्तन पर ले जाती है,बच्चे को प्रेरित करने के द्वारा इस का उपयोग करते हैं जबकि उसके मुंह खुला हुआ है।निपल व्यथा को रोकने और बच्चे को पर्याप्त दूध प्राप्त करने के लिये स्तन और परिवेश का बड़ा हिस्सा बच्चे के मुह के अन्दर होना ज़रुरी है।विफलता अप्रभावी स्तनपान मुख्य कारणों में से एक है और शिशु स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को जन्म दे सकते है।इसलिये चिकित्सक का परामर्श आवश्यक लें।
स्तनों में लंप
स्तनपान के दौरान स्तनों में लम्प सामान्य बात है जो कि किसी छिद्र के बन्द होने से बन जाता है। दूध पिलाने से पहले (गर्म पानी से स्नान या सेक) सेक और स्तनों की मालिश करें (छाती से निप्पल की ओर गोल गोल कोमलता से अंगुली के पोरों से करें या पम्प द्वारा निकाल दें। बन्द छिद्र या नली को खोल लेना महत्वपूर्ण है नहीं तो स्तनों में इन्फैक्शन हो सकता है। यदि इस सब से लम्प न निकले या फ्लू के लक्षण दिखाई दें तो चिकित्सक का परामर्श लें।
दोस्तों आपको यह आर्टिकल कैसा लगा हमें जरुर बताये. आप अपनी राय, सवाल और सुझाव हमें comments के जरिये जरुर भेजे. अगर आपको यह आर्टिकल उपयोगी लगा हो तो कृपया इसे share करे।
आप E-mail के द्वारा भी अपना सुझाव दे सकते हैं।
prakashgoswami03@gmail.com
http://Goswamispecial.blogspot.com
My channel -
https://youtu.be/7FZQJo_oJMc
Like, Subscribe Goswami Channel-
https://youtu.be/5Yy8qiRFyfs
https://youtu.be/KgfIuA6T5AE
https://mobile.twitter.com/Prakash41827790
मां द्वारा अपने शिशु को अपने स्तनों से आने वाला प्राकृतिक दूध पिलाने की क्रिया को स्तनपान कहते हैं। यह सभी स्तनपाइयों में आम क्रिया होती है। स्तनपान शिशु के लिए संरक्षण और संवर्धन का काम करता है। नवजात शिशु में रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति नहीं होती। मां के दूध से यह शक्ति शिशु को प्राप्त होती है। मां के दूध में लेक्टोफोर्मिन नामक तत्व होता है, जो बच्चे की आंत में लौह तत्त्व को बांध लेता है और लौह तत्त्व के अभाव में शिशु की आंत में रोगाणु पनप नहीं पाते। मां के दूध से आए साधारण जीवाणु बच्चे की आंत में पनपते हैं और रोगाणुओं से प्रतिस्पर्धा कर उन्हें पनपने नहीं देते। मां के दूध में रोगाणु नाशक तत्त्व होते हैं। वातावरण से मां की आंत में पहुंचे रोगाणु, आंत में स्थित विशेष भाग के संपर्क में आते हैं, जो उन रोगाणु-विशेष के खिलाफ प्रतिरोधात्मक तत्व बनाते हैं। ये तत्व एक विशेष नलिका थोरासिक डक्ट से सीधे मां के स्तन तक पहुंचते हैं और दूध से बच्चे के पेट में। इस तरह बच्चा मां का दूध पीकर सदा स्वस्थ रहता है।
अनुमान के अनुसार 820,000 बच्चों की मौत विश्व स्तर पर पांच साल की उम्र के तहत वृद्धि हुई जिसे स्तनपान के साथ हर साल रोका जा सकता है। दोनों विकासशील और विकसित देशों में स्तनपान से श्वसन तंत्र में संक्रमण और दस्त के जोखिम को कमी पाई गयी है। स्तनपान से संज्ञानात्मक विकास में सुधार और वयस्कता में मोटापे का खतरा कम हो सकती है।
जिन बच्चों को बचपन में पर्याप्त रूप से मां का दूध पीने को नहीं मिलता, उनमें बचपन में शुरू होने वाले डायबिटीज की बीमारी अधिक होती है। उनमें अपेक्षाकृत बुद्धि विकास कम होता है। अगर बच्चा समय पूर्व जन्मा (प्रीमेच्योर) हो, तो उसे बड़ी आंत का घातक रोग, नेक्रोटाइजिंग एंटोरोकोलाइटिस हो सकता है। अगर गाय का दूध पीतल के बर्तन में उबाल कर दिया गया हो, तो उसे लीवर का रोग इंडियन चाइल्डहुड सिरोसिस हो सकता है। इसलिए आठ-बारह महीने तक बच्चे के लिए मां का दूध श्रेष्ठ ही नहीं, जीवन रक्षक भी होता है।
स्तनपान के लाभ
मां का दूध केवल पोषण ही नहीं, जीवन की धारा है। इससे मां और बच्चे के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। शिशु को पहले छह महीने तक केवल स्तनपान पर ही निर्भर रखना चाहिए। यह शिशु के जीवन के लिए जरूरी है, क्योंकि मां का दूध सुपाच्य होता है और इससे पेट की गड़बड़ियों की आशंका नहीं होती। मां का दूध शिशु की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी सहायक होता है। स्तनपान से दमा और कान की बीमारी पर नियंत्रण कायम होता है, क्योंकि मां का दूध शिशु की नाक और गले में प्रतिरोधी त्वचा बना देता है। कुछ शिशु को गाय के दूध से एलर्जी हो सकती है। इसके विपरीत मां का दूध शत-प्रतिशत सुरक्षित है। शोध से प्रमाणित हुआ है कि स्तनपान करनेवाले बच्चे बाद में मोटे नहीं होते। यह शायद इस वजह से होता है कि उन्हें शुरू से ही जरूरत से अधिक खाने की आदत नहीं पड़ती। स्तनपान से जीवन के बाद के चरणों में रक्त कैंसर, मधुमेह और उच्च रक्तचाप का खतरा कम हो जाता है। स्तनपान से शिशु की बौद्धिक क्षमता भी बढ़ती है। इसका कारण यह है कि स्तनपान करानेवाली मां और उसके शिशु के बीच भावनात्मक रिश्ता बहुत मजबूत होता है। इसके अलावा मां के दूध में कई प्रकार के प्राकृतिक रसायन भी मौजूद होते हैं।
मां को स्तनपान के लाभ
नयी माताओं द्वारा स्तनपान कराने से उन्हें गर्भावस्था के बाद होनेवाली शिकायतों से मुक्ति मिल जाती है। इससे तनाव कम होता है और प्रसव के बाद होनेवाले रक्तस्राव पर नियंत्रण पाया जा सकता है। मां के लिए दीर्घकालिक लाभ हृदय रोग, और रुमेटी गठिया का खतरा कम किया है। स्तनपान करानेवाली माताओं को स्तन या गर्भाशय के कैंसर का खतरा न्यूनतम होता है। स्तनपान एक प्राकृतिक गर्भनिरोधक है। स्तनपान सुविधाजनक, मुफ्त (शिशु को बाहर का दूध पिलाने के लिए दुग्ध मिश्रण, बोतल और अन्य खर्चीले सामान की जरूरत होती है) और सबसे बढ़ कर माँ तथा शिशु के बीच भावनात्मक संबंध मजबूत करने का सुलभ साधन है। मां के साथ शारीरिक रूप से जुड़े होने का एहसास शिशुओं को आरामदायक माहौल देता है।
स्तनपान कराने की प्रतिक्रिया
शिशु के जन्म के फौरन बाद स्तनपान शुरू कर देना चाहिए। जन्म के तत्काल बाद नग्न शिशु को (उसके शरीर को कोमलता से सुखाने के बाद) उसकी मां की गोद में देना चाहिए। मां उसे अपने स्तन के पास ले जाये, ताकि त्वचा से संपर्क हो सके। इससे दूध का बहाव ठीक होता है और शिशु को गर्मी मिलती है। इससे मां और शिशु के बीच भावनात्मक संबंध विकसित होता है। स्तनपान जल्दी आरंभ करने के प्रारंभिक कारण निम्न हैं।
1.शिशु पहले 30 से 60 मिनट के दौरान सर्वाधिक सक्रिय रहता है।
2.उस समय उसके चूसने की शक्ति सबसे अधिक रहती है।
3.जल्दी शुरू करने से स्तनपान की सफलता की संभावना बढ़ जाती है। स्तन से निकलने वाला पीले रंग का द्रव, जिसे कोलोस्ट्रम कहते हैं, शिशु को संक्रमण से बचाने और उसकी प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने का सबसे अच्छा उपाय है। यह एक टीका है।
4.स्तनपान तत्काल शुरू करने से स्तनों में सूजन या प्रसवोत्तर रक्तस्राव की शिकायत नहीं होती।
5.शल्यचिकित्सा से शिशु जन्म देनेवाली माताएं भी स्तनपान करा सकती हैं। यह शल्य क्रिया आपकी सफल स्तनपान की क्षमता पर असर नहीं डालती है।
6.शल्य क्रिया के चार घंटे बाद या एनीस्थीसिया के प्रभाव से बाहर आने के बाद आप स्तनपान करा सकती हैं।
7.स्तनपान कराने के लिए आप अपने शरीर को एक करवट में झुका सकती हैं या फिर अपने शिशु को अपने पेट पर लिटा कर स्तनपान करा सकती हैं।
8.सीजेरियन विधि से शिशु को जन्म देनेवाली माताएँ पहले कुछ दिन तक नर्स की मदद से अपने शिशु को सफलतापूर्वक स्तनपान करा सकती हैं।
स्तनपान कब तक
साधारणतया कम से कम 12 महीने तक शिशु को स्तनपान कराना चाहिए और उसके बाद दो साल या उसके बाद तक भी स्तनपान कराया जा सकता है। माता के बीमार होनेपर भी शिशु को स्तनपान कराना जरूरी होता है। आमतौर पर साधारण बीमारियों से स्तनपान करनेवाले शिशु को कोई नुकसान नहीं पहुंचता। यहां तक कि टायफायड, मलेरिया, यक्ष्मा, पीलिया और कुष्ठ रोग में भी स्तनपान पर रोक लगाने की सलाह नहीं दी जाती है।
स्तनपान के फायदे – Breast Feeding Benefits
स्तनपान के बारे में कुछ माताओं को मन में कई प्रकार की शंका उत्पन्न हो सकती है। जैसे बीमारी आदि की अवस्था में स्तनपान कराना चाहिए या नहीं या स्तन की बनावट को लेकर शंका और स्तन की सुंदरता बिगड़ने को लेकर शंका।
किसी भी स्थिति में स्तनपान कराना श्रेष्ठ ही होता है। इसका विकल्प नहीं हो सकता है। आइये देखें स्तनपान कराने के क्या लाभ होते हैं –
स्तनपान breast Feeding प्रकृति का सर्वोत्तम उपहार है। जहाँ शिशु को पहले आहार के रूप में सर्वश्रेष्ठ भोजन प्राप्त होता है , वही माँ और बच्चे में भावनात्मक रिश्ता भी बनता है।
इससे दोनों को ही अमूल्य संतुष्टि हासिल होती है। WHO के अनुसार शिशु को छः महीने तक सिर्फ स्तनपान देना चाहिए तथा इसके बाद दो साल की उम्र तक अन्य आहार के साथ स्तनपान कराना चाहिए।
स्तनपान कराने के फायदे (Benefits of breast feeding) निम्न हैं
1. शिशु के लिए प्राकृतिक सर्वश्रेष्ठ आहार
माँ का दूध नवजात शिशु के कोमल अंगों तथा पाचन क्रिया के अनुरूप प्रकृति द्वारा निर्मित होता है। इसमें बच्चे की जरुरत के सभी पोषक तत्व उचित मात्रा में होते हैं। इन्हे शिशु आसानी से हजम कर लेता है।
माँ के दूध में मौजूद प्रोटीन और वसा गाय के दूध की तुलना में भी अधिक आसानी से पच जाता है। इससे शिशु के पेट में गैस बनने , कब्ज , दस्त आदि होने या दूध उलटने की सम्भावना बहुत कम होती है।
माँ का दूध नुकसान करने वाले माइक्रो ऑर्गनिज़्म को नष्ट करके आँतो में लाभदायक तत्वों की वृद्धि करता है।
2. शिशु में जरूरत के अनुसार अपने आप बदलाव
माँ के दूध में शिशु की जरूरत के हिसाब से परिवर्तन होते रहते हैं। दिन में , रात में , कुछ सप्ताह में और कुछ महीनो में शिशु को पोषक तत्वों की जरूरत बदल जाती है। उसी के अनुसार माँ के दूध में भी बदलाव अपने आप हो जाते हैं।
3. शिशु को एलर्जी नहीं
स्तनपान करने से शिशु को एलर्जी नहीं होती है। खान पान में बदलाव के अनुसार माँ के दूध के स्वाद या गंध में परिवर्तन हो सकता है लेकिन यह एलर्जी का कारण या नुकसान का कारण नहीं होता है। जबकि अन्य प्रकार के दूध या आहार से शिशु एलर्जी का शिकार हो सकता है।
4. शिशु की प्रतिरोधक क्षमता अधिक
स्तनपान करने वाले बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता तुलनात्मक रूप से अधिक होती है। माँ का दूध उन्हें सर्दी , जुकाम , खांसी या अन्य संक्रमण से बचाने में सहायक होता है। अन्य प्रकार की बीमारी की सम्भावना भी स्तनपान करने वाले शिशुओं में कम होती है।
5. मोटापा कम
स्तनपान करने वाले शिशु के शरीर पर अनावश्यक चर्बी नहीं चढ़ती। माँ के दूध से पेट भरते ही तृप्ति मिल जाने के कारण शिशु आवश्यकता से अधिक दूध नहीं पीता। जबकि बोतल आदि से दूध पीने से शिशु जरूरत से ज्यादा दूध पी जाता है जो मोटापे का कारण बन जाता है। बड़े होने के बाद भी बचपन में मिला स्तनपान मोटापे तथा कोलेस्ट्रॉल आदि से बचाता है।
6. शिशु का दिमाग तेज
स्तन से मिलने वाले दूध से शिशु को डी एच ए मिलता है जो दिमाग को तेज बनाता है। स्तनपान की प्रक्रिया भी शिशु को मानसिक रूप से सुदृढ़ बनाने में सहायक होती है। इससे शिशु को भावनात्मक सुरक्षा का अहसास मिलता है जो मस्तिष्क के उचित विकास में मददगार होता है।
7. शिशु के मुँह और दांत का सही विकास
शिशु का मुंह स्तन से दूध पीने के लिए सर्वाधिक अनुकूल होता है। स्तनपान की प्रक्रिया से बच्चे का मुँह सही तरीके से विकसित होता है तथा दांत निकलने में भी यह प्रक्रिया सहायक होती है। इससे बच्चे के जबड़े मजबूत बनते हैं।
8. अधिक सुविधाजनक
जब भी बच्चे को भूख लगे तो स्तनपान कराने के लिए किसी प्रकार की कोई तैयारी नहीं करनी पड़ती। घर से बाहर जाने पर भी शिशु का आहार हमेशा माँ के साथ होता है। जबकि अन्य प्रकार के दूध या आहार के लिए गर्म , ठंडा , सफाई आदि का बहुत ध्यान रखना होता है।
9. मां का गर्भाशय सामान्य होना
स्तनपान कराने से माँ के गर्भाशय को अपने उचित आकार में आने में मदद मिलती है। यह रक्तस्राव में कमी लाता है। माहवारी शुरू होने की प्रक्रिया देर से शुरू होने में सहायक होता है। स्तनपान वापस जल्दी प्रेग्नेंट होने की सम्भावना को कम करता है।
10. मां को गंभीर बीमारी से बचाव
स्तनपान कराने से माँ को गर्भाशय , ओवरी तथा स्तन के कैंसर जैसी गंभीर बीमारी होने का खतरा कम होता है।
11. माँ को आराम
शिशु को जन्म देने के बाद माँ के शरीर को आराम की आवश्यकता होती है। स्तनपान कराते समय सब काम छोड़कर बैठना पड़ता है। इससे माँ के शरीर को आराम मिल जाता है।
12. मां का डिप्रेशन दूर
डिलीवरी एक बाद कभी कभी माँ को डिप्रेशन की समस्या होने लगती है जिसे पोस्ट नेटल डिप्रेशन कहते हैं। स्तनपान इस प्रकार के डिप्रेशन को दूर रखता है और मन को संतुष्टि देता है।
आवृत्ति
एक नवजात एक बहुत छोटे से पेट की क्षमता है। एक दिन की उम्र में यह 5 से 7 मिलीलीटर, एक संगमरमर के आकार के बराबर होता है,तीन दिन में यह 0.75-1 आस्ट्रेलिया, एक "शूटर" संगमरमर के आकार का और सात दिन में यह है 1.5-2 या एक पिंगपांग की गेंद के आकार तक विकसित हो जाता है।मां के दूध का उत्पादन पहले दूध, कोलोस्ट्रम, केंद्रित होता है,शिशु की जरूरतों को पूरा करने के लिए मुखय भूमिका निभाता है, जो केवल बहुत कम मात्रा में धीरे-धीरे शिशु के पेट क्षमता के विस्तार के आकार के साथ बढ़ता जाता है।स्तनपान दिन के समय दोनों स्तनों से कम से कम 10-15 मिनट तक हर दो या तीन घन्टे के बाद कराना चाहिए। दिन में हो सकता है कि बच्चे को जगाना पड़े (डॉयपर बदलने या बच्चे को सीधा करने अथवा उससे बातें करने से बच्चे को जगाने में मदद मिलती है)। जब बच्चे की पोषण परक जरूरतें दिन के समय ठीक से पूरी हो जाती हैं तो फिर वह रात को बार बार नहीं जगता। कभी कभी ऐसा भी होता है कि स्तन रात को भर जाते हैं और शिशु सो रहा होता है, तब मां चाहती हैं कि उसे जगाकर दूध पिला दें। जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता है, दूध पिलाने की अवधि बढ़ती जाती है।
स्तनपान कराने की स्थितियां
स्थिति और latching आवश्यक तकनीक से निपल व्यथा कि रोकथाम और बच्चे को पर्याप्त दूध प्राप्त करने के लिए स्तनपान कराने की स्थितियां महतवपूर्ण है।
"पक्ष पलटा" बच्चे की स्वाभाविक प्रवृत्ति मुंह खुला के साथ स्तन की ओर मोड़ करने के लिए है; माताओं कभी कभी धीरे उनकी निप्पल के साथ बच्चे के गाल या होंठ पथपाकर एक स्तनपान सत्र के लिए स्थिति में ले जाते हैं, तो जल्दी से स्तन पर ले जाती है,बच्चे को प्रेरित करने के द्वारा इस का उपयोग करते हैं जबकि उसके मुंह खुला हुआ है।निपल व्यथा को रोकने और बच्चे को पर्याप्त दूध प्राप्त करने के लिये स्तन और परिवेश का बड़ा हिस्सा बच्चे के मुह के अन्दर होना ज़रुरी है।विफलता अप्रभावी स्तनपान मुख्य कारणों में से एक है और शिशु स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को जन्म दे सकते है।इसलिये चिकित्सक का परामर्श आवश्यक लें।
स्तनों में लंप
स्तनपान के दौरान स्तनों में लम्प सामान्य बात है जो कि किसी छिद्र के बन्द होने से बन जाता है। दूध पिलाने से पहले (गर्म पानी से स्नान या सेक) सेक और स्तनों की मालिश करें (छाती से निप्पल की ओर गोल गोल कोमलता से अंगुली के पोरों से करें या पम्प द्वारा निकाल दें। बन्द छिद्र या नली को खोल लेना महत्वपूर्ण है नहीं तो स्तनों में इन्फैक्शन हो सकता है। यदि इस सब से लम्प न निकले या फ्लू के लक्षण दिखाई दें तो चिकित्सक का परामर्श लें।
दोस्तों आपको यह आर्टिकल कैसा लगा हमें जरुर बताये. आप अपनी राय, सवाल और सुझाव हमें comments के जरिये जरुर भेजे. अगर आपको यह आर्टिकल उपयोगी लगा हो तो कृपया इसे share करे।
आप E-mail के द्वारा भी अपना सुझाव दे सकते हैं।
prakashgoswami03@gmail.com
http://Goswamispecial.blogspot.com
My channel -
https://youtu.be/7FZQJo_oJMc
Like, Subscribe Goswami Channel-
https://youtu.be/5Yy8qiRFyfs
https://youtu.be/KgfIuA6T5AE
https://mobile.twitter.com/Prakash41827790
जी बहुत अच्छा कार्य आपके द्वारा महत्वपूर्ण बातें
ReplyDeleteThanks bro
ReplyDelete