Thursday, February 28, 2019

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (Right to Information Act, 2005)

सूचना का अधिकार अधिनियम, RTI Act Rules 2005 

सूचना का अधिकार अर्थात राईट टू इन्फाॅरमेशन जिससे आप किसी भी सरकारी ऑफिस में किसी भी सूचना को पा सकते हैं। RTI (Right to Information) को हिंदी में “सूचना का अधिकार” कहा जाता है। “सूचना का अधिकार” यानि RTI Act 2005 के तहत वे अधिकार है जो एक तरह से आम आदमी को शक्तिशाली बनाता है। इस अधिनियम के तहत कोई भी आम आदमी किसी भी सरकारी विभाग से किसी भी तरह की सूचना मांग सकता है।

RTI Act Rules 2005 (सूचना का अधिकार)

आरटीआई का पूरा रूप “सूचना का अधिकार” है जो कि ‘सूचना का अधिकार अधिनियम’ के रूप में जाना जाता है, जिससे कि हर भारतीय नागरिक को भारत सरकार के अधीन आने वाले किसी भी विभाग की जानकारी के बारे में जानने का मौलिक अधिकार मिल सके।

RTI वह है जिसमे constitution of section 19(1) के अंतर्गत एक मूलभूत अधिकार का दर्जा दिया गया है। इस section के अन्दर हर एक आम आदमी को बोलने की आज़ादी दी गई है। इस act के तहत सरकार कौन सी काम को कैसे करती है, क्यों करती है, इसका क्‍या योगदान है, आदि हर तरह की जानकारी दी जाती है । हर एक नागरिक टैक्स का भुगतान करता है इसलिए उसका ये पूरा अधिकार है की वो इस बात को जाने की उसके द्वारा pay किया हुआ टैक्स का use कैसे किया जा रहा है। इसलिए RTI act के तहत हर एक नागरिक को सरकार से सवाल करने की छुट दी गई है।

RTI Act Rules 2005 – सूचना का अधिकार के नियम

RTI Act का मुख्य उद्देश्य है सरकारी विभाग के काम पर पारदर्शिता लाना ताकि भ्रष्टाचार पर नियंत्रण किया जा सके। आइये जानते है RTI के तहत क्या क्या नियम बनाये गए है:-

RTI 2005 के मुताबिक ऐसी कोई भी जानकारी जो सरकार से जुड़ी हो जैसे की सरकारी स्कूल में अध्यापक अक्सर मौजूद ना हो, सरकारी अस्पताल में डॉक्टर मौजूद ना हो, सड़को की हालत खराब हों, कोई अफसर काम के लिए रिश्वत मांग रहा हो, प्रधानमत्री का खर्च, राष्ट्रपति भवन का खर्च आदि तो आप RTI के तहत इसकी सूचनाएं पा सकते हैं।

केवल भारतीय लोग ही इस अधिनियम का फायदा ले सकता हैं। इस act में निगम, संघ, कंपनी वैगेरा अपनी सूचना नहीं दे सकते हैं। यदि इसके कर्मचारीयों को किसी भी तरह की सूचना चाहिए तो उन्हें अपने नाम से सूचना मंगनी होगी ना की अपने कंपनी के नाम से।

हर एक सरकारी विभाग में एक या एक से अधिक अधिकारियों को जन सूचना अधिकारी के रूप में नियुक्ति किया गया है। आम आदमी की तरफ से मांगी गई सूचनाओं को समय पर उपलब्ध कराना इन अधिकारियों का काम होता है। जनता अपनी जानकारी किसी भी रूप में मांग सकती है जैसे की डिस्क, टेप, विडियो, लैटर आदि। लेकिन मांगी गई जानकारी उस रूप में पहले से मौजूद होनी चाहिए।

RTI से सूचना लेने के लिए निश्चित फीस 10 रूपये रखा गई है। यदि आप BPL परिवार से है तो आपको एक भी पैसा नहीं लगेगा बस आपको अपने दस्तावेजों की फोटोकॉपी को एक आवेदन के साथ देनी होगी।

सूचना प्राप्त करने का शुल्क नकद, माँग ड्रॉफ्ट या फिर पोस्टल आर्डर द्वारा दिया जा सकता है। माँग ड्रॉफ्ट या फिर पोस्टल आर्डर विभाग के खाता अधिकारी के नाम भेजा जाता है।

RTI के अंतर्गत मांगी गयी सूचना को आप तक पहुँचाने के लिए 30 दिन का नियत समय दिया जाता है। यदि सूचना पहुँचने में 30 दिन से ज्यादा लेट हो तो आप केन्‍द्रीय सूचना आयोग से अपील भी कर सकते है।

30 दिन से ज्यादा समय हो जाने के बाद यदि आपसे दोबारा शुल्क और दस्तावेजों की फोटोकॉपी की मांग की जाये तो आप उसके लिए भी अपील करें क्योकि 30 दिन के बाद आपको बिना शुल्क के सारी सूचना दी जानी है।


RTI के दायरे में आने वाले इन सभी विभागो से आप सूचना ले सकते है:-
  • राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, राज्यपाल और मुख्यमंत्री के दफ्तर
  • संसद और विधानसभा
  • निर्वाचन आयोग
  • अदालतों
  • सरकारी कार्यालय
  • सरकारी बैंक
  • सभी सरकारी अस्पतालों
  • पुलिस विभाग
  • बीएसएनएल
  • सरकारी स्कूल और कॉलेज
  • विद्युत बोर्ड आदि

सूचना का अधिकार अर्थात राईट टू इन्फाॅरमेशन। सूचना का अधिकार का तात्पर्य है, सूचना पाने का अधिकार, जो सूचना अधिकार कानून लागू करने वाला राष्ट्र अपने नागरिकों को प्रदान करता है। सूचना अधिकार के द्वारा राष्ट्र अपने नागरिकों को अपनी कार्य और शासन प्रणाली को सार्वजनिक करता है।


अंग्रज़ों ने भारत पर लगभग 250 वर्षो तक शासन किया और इस दौरान ब्रिटिश सरकार ने भारत में शासकीय गोपनीयता अधिनियम 1923 बनया, जिसके अन्तर्गत सरकार को यह अधिकर हो गया कि वह किसी भी सूचना को गोपनीय कर सकेगी।

3 दिसम्बर 1989 को अपने पहले संदेश में तत्कालीन प्रधानमंत्री बीपी सिंह ने संविधान में संशोधन करके सूचना का अधिकार कानून बनाने तथा शासकीय गोपनीयता अधिनियम में संशोधन करने की घोषणा की। किन्तु बीपी ंिसह की सरकार तमाम कोशिसे करने के बावजूद भी इसे लागू नहीं कर सकी और यह सरकार भी ज्यादा दिन तक न टिक सकी।



इसके अन्तर्गत निम्नलिखित बिन्दु आते है-

1. कार्यो, दस्तावेजों, रिकार्डो का निरीक्षण।
2. दस्तावेज या रिकार्डो की प्रस्तावना। सारांश, नोट्स व प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करना। 
3. सामग्री के प्रमाणित नमूने लेना। 
4. प्रिंट आउट, डिस्क, फ्लाॅपी, टेप, वीडियो कैसेटो के रूप में या कोई अन्य इलेक्ट्रानिक रूप में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। सूचना का अधिकार अधिनियम् 2005 के प्रमुख प्रावधानः 
5- समस्त सरकारी विभाग, पब्लिक सेक्टर यूनिट, किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता से चल रहीं गैर सरकारी संस्थाएं व शिक्षण संस्थान आदि विभाग इसमें शामिल हैं। पूर्णतः से निजी संस्थाएं इस कानून के दायरे में नहीं हैं लेकिन यदि किसी कानून के तहत कोई सरकारी विभाग किसी निजी संस्था से कोई जानकारी मांग सकता है तो उस विभाग के माध्यम से वह सूचना मांगी जा सकती है। 
6- प्रत्येक सरकारी विभाग में एक या एक से अधिक जनसूचना अधिकारी बनाए गए हैं, जो सूचना के अधिकार के तहत आवेदन स्वीकार करते हैं, मांगी गई सूचनाएं एकत्र करते हैं और उसे आवेदनकर्ता को उपलब्ध कराते हैं। 
7- जनसूचना अधिकारी की दायित्व है कि वह 30 दिन अथवा जीवन व स्वतंत्रता के मामले में 48 घण्टे के अन्दर (कुछ मामलों में 45 दिन तक) मांगी गई सूचना उपलब्ध कराए। 
8- यदि जनसूचना अधिकारी आवेदन लेने से मना करता है, तय समय सीमा में सूचना नहीं उपलब्ध् कराता है अथवा गलत या भ्रामक जानकारी देता है तो देरी के लिए 250 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से 25000 तक का जुर्माना उसके वेतन में से काटा जा सकता है। साथ ही उसे सूचना भी देनी होगी। 
9- लोक सूचना अधिकारी को अधिकार नहीं है कि वह आपसे सूचना मांगने का कारण नहीं पूछ सकता। 
10- सूचना मांगने के लिए आवेदन फीस देनी होगी (केन्द्र सरकार ने आवेदन के साथ 10 रुपए की फीस तय की है। लेकिन कुछ राज्यों में यह अधिक है, बीपीएल कार्डधरकों को आवेदन शुल्क में छुट प्राप्त है। 
11- दस्तावेजों की प्रति लेने के लिए भी फीस देनी होगी। केन्द्र सरकार ने यह फीस 2 रुपए प्रति पृष्ठ रखी है लेकिन कुछ राज्यों में यह अधिक है, अगर सूचना तय समय सीमा में नहीं उपलब्ध कराई गई है तो सूचना मुफ्त दी जायेगी। 
12- यदि कोई लोक सूचना अधिकारी यह समझता है कि मांगी गई सूचना उसके विभाग से सम्बंधित नहीं है तो यह उसका कर्तव्य है कि उस आवेदन को पांच दिन के अन्दर सम्बंधित विभाग को भेजे और आवेदक को भी सूचित करे। ऐसी स्थिति में सूचना मिलने की समय सीमा 30 की जगह 35 दिन होगी।
13- लोक सूचना अधिकारी यदि आवेदन लेने से इंकार करता है। अथवा परेशान करता है। तो उसकी शिकायत सीधे सूचना आयोग से की जा सकती है। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचनाओं को अस्वीकार करने, अपूर्ण, भ्रम में डालने वाली या गलत सूचना देने अथवा सूचना के लिए अधिक फीस मांगने के खिलाफ केन्द्रीय या राज्य सूचना आयोग के पास शिकायत कर सकते है।
14- जनसूचना अधिकारी कुछ मामलों में सूचना देने से मना कर सकता है। जिन मामलों से सम्बंधित सूचना नहीं दी जा सकती उनका विवरण सूचना के अधिकार कानून की धारा 8 में दिया गया है। लेकिन यदि मांगी गई सूचना जनहित में है तो धारा 8 में मना की गई सूचना भी दी जा सकती है। जो सूचना संसद या विधानसभा को देने से मना नहीं किया जा सकता उसे किसी आम आदमी को भी देने से मना नहीं किया जा सकता। 
15- यदि लोक सूचना अधिकारी निर्धारित समय-सीमा के भीतर सूचना नहीं देते है या धारा 8 का गलत इस्तेमाल करते हुए सूचना देने से मना करता है, या दी गई सूचना से सन्तुष्ट नहीं होने की स्थिति में 30 दिनों के भीतर सम्बंधित जनसूचना अधिकारी के वरिष्ठ अधिकारी यानि प्रथम अपील अधिकारी के समक्ष प्रथम अपील की जा सकती है। 
16- यदि आप प्रथम अपील से भी सन्तुष्ट नहीं हैं तो दूसरी अपील 60 दिनों के भीतर केन्द्रीय या राज्य सूचना आयोग (जिससे सम्बंधित हो) के पास करनी होती है। विश्व पांच देशों के सूचना के अधिकार का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए पांच देशों स्वीडन, कनाडा, फ्रांस, मैक्सिको तथा भारत का चयन किया गया और इन देशों के कानून, लागू किए वर्ष, शुल्क, सूचना देने की समयावधि, अपील या शिकायत प्राधिकारी, जारी करने का माध्यम, प्रतिबन्धित करने का माध्यम आदि का तुलना सारणी के माध्यम से किया गया है।

देश स्वीडन, कनाडा, फ्रांस, मैक्सिको, भारत कानून संविधान कानून द्वारा संविधान संविधान कानून द्वारा लागू वर्ष 1766 1982 1978 2002 2005 शुल्क निशुल्क निशुल्क निशुल्क निशुल्क शुल्क द्वारा सूचना देने की समयावधि तत्काल 15 दिन 1 माह 20 दिन 1 माह या (जीवन व स्वतंत्रता के मामले में 48 घण्टा) अपील/ शिकायत प्राधिकारी न्यायालय सूचना आयुक्त संवैधानिक अधिकारी द नेशन कमीशन आॅफ ऐक्सेस टू पब्लिक इन्फाॅरर्मेशन विभागीय स्तर पर प्रथम अपीलीय अधिकारी अथवा सूचना आयुक्त/मुख्य सूचना आयुक्त केन्द्रीय या राज्य स्तर पर। जारी करने का माध्यम कोई भी कोई भी किसी भी रूप में इलेक्ट्रानिक रूप में सार्वजनिक आॅफलाईन एवं आनलाईन प्रतिबन्धित सूचना गोपनीयता एवं पब्लिक रिकार्ड एक्ट 2002 सुरक्षा एवं अन्य देशों से सम्बन्धित सूचनाएँ मैनेजमंट आॅफ गवर्नमेण्ट इन्फाॅरमेशन होल्डिंग 2003 डाटा प्रोटेक्शन एक्ट 1978 ऐसी सूचना जिससे देश का राष्ट्रीय, आंतरिक व बाह्य सुरक्षा तथा अधिनियम की धारा 8 से सम्बन्धित सूचनाएँ।

विश्व में सबसे पहले स्वीडन ने सूचना का अधिकार कानून 1766 में लागू किया, जबकि कनाडा ने 1982, फ्रांस ने 1978, मैक्सिको ने 2002 तथा भारत ने 2005 में लागू किया। 

1- विश्व में स्वीडन पहला ऐसा देश है, जिसके संविधान में सूचना की स्वतंत्रता प्रदान की है, इस मामले में कनाडा, फ्रांस, मैक्सिको तथा भारत क संविधान उतनी आज़ादी प्रदान नहीं करता। जबकि स्वीडन के संविधान ने 250 वर्ष पूर्व सूचना की स्वतंत्रता की वकालत की है। 

2- सूचना मांगन वाले को सूचना प्रदान करने की प्रक्रिया स्वीडन, कनाडा, फ्रांस, मैक्सिको तथा भारत में अलग-अलग है जिसमें स्वीडन सूचना मांगने वाले को तत्काल और निशल्क सूचना देने का प्रावधान है। 

3- सूचना प्रदान करने लिए फ्रांस और भारत में 1 माह का समय निर्धारित किया गया है, हालांकि भारत ने जीवन और स्वतंत्रता के मामले में 48 घण्टे का समय दिया गया है, किन्तु स्वीडन अपने नागरिकों को तत्काल सूचना उपलब्ध कराता है, जबकि कनाडा 15 दिन तथा मैक्सिको 20 दिन में सूचना प्रदान कर देता है। 

4- सूचना न मिलने पर अपील प्रक्रिया भी लगभग एक ही समान है। स्वीडन में सूचना न मिलने पर न्यायालय में जाया जाता है। कनाडा तथा भारत में सूचना आयुक्त जबकि फ्रांस में संवैधानिक अधिकारी एवं मैक्सिको में ’द नेशनल आॅन एक्सेस टू पब्लिक इनफाॅरमेशन’ अपील और शिकयतों का निपटारा करता है।

5- स्वीडन किसी भी माध्यम द्वारा तत्काल सूचना उपलब्ध कराता है जिनमें वेबसाइट पर भी सूचना जारी किया जाती है। कनाडा और फ्रांस अपने नागरिकों को किसी भी रूप में सूचना दे सकता है, जबकि मैक्सिको इलेक्ट्राॅनिक रूप से सूचनाओं का सार्वजनिक करता है तथा भारत प्रति व्यक्ति को सूचना उपलब्ध कराता है। 

6- गोपनीयता के मामले में स्वीडन ने गोपनीयता एवं पब्लिक रिकार्ड एक्ट 2002, कनाडा ने सुरक्षा एवं अन्य देशों से सम्बन्धित सूचनाएँ मैनेजमंट आॅफ गवर्नमेण्ट इन्फाॅरमेशन होल्डिंग 2003, फ्रांस ने डाटा प्रोटेक्शन एक्ट 1978 तथा भारत ने राष्ट्रीय, आंतरिक व बाह्य सुरक्षा तथा अधिनियम की धारा 8 में उल्लिखित प्रावधानों से सम्बन्धित सूचनाएँ देने पर रोक है।


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Wednesday, February 27, 2019

बौद्धिक क्षमता/मानसिक मंदित बालक का अर्थ, परिभाषा, वर्गीकरण एवं कारण, समस्या तथा इसके रोकथाम के उपाय क्या है।

अर्थ एवं परिभाषा

मानसिक मंदित औसत से निम्न मासिक कार्यक्षमता का उल्लेख करती है। इसलिए मासिक मंदिता से अभिप्राय मानसिक वृद्धि एवं विकास की गति की न्यूनता से है। मानसिक मंदिता बोल बच्चों की बुद्धिलब्धि, साधारण बालकों की बुद्धिलब्धि से कम होती है।

‘‘मानसिक मंदित से तात्पर्य उस असामान्य साधारण बौथ्द्धक कार्यक्षमता से है जो व्यक्ति की विकासात्मक अवस्थाओं में प्रकट होती है तथा उसके अनुकूल व्यवहार से सम्बंधित होती है।’’

   1. जे.डी. पेज (J.D. Page, 1976) के अनुसार :- 

‘‘मानसिक न्यूनता या मंदन व्यक्ति में जन्म के समय या बचपन के प्रारंभ के वर्षों में पायी जाने वाली सामान्य से कम मानसिक विकास की ऐसी अवस्था है जो उसमें बुद्धि सम्बन्धी कमी तथा सामाजिक अक्षमता के लिए उत्तरदायी होती है।’’

   2. ब्रिटिश मेण्टल डैफिशियेन्सी एक्ट के अनुसार :-

 ‘‘मानसिक मंदन 18 वर्ष से पहले आन्तरिक करणों की वजह से अथवा बीमारी या चोट के कारण पैदा हुई एक ऐसी स्थिति है, जिसमें व्यक्ति के मस्तिष्क का विकास या तो रूक जाता है या उसमें पूर्णता नहीं आ पाती।’’


  3. क्रो और क्रो के शब्दों में :-

 ‘‘जिन बालकों की बुद्धिलब्धि 70 से कम होती है, उन्हें मानसिक मंदित बालक कहते हैं।’’

इन परिभाषाओं के विश्लेषण के बाद का मानसिक मंदिता की निम्न प्रकार से व्याख्या कर सकते है :-

   1. मन्दबुद्धि बच्चों की बुद्धिलब्धि 70 या इससे कम होती है।
   2. वे समाज की मान्यताओं के अनुरूप व्यवहार करने में असमर्थ होते है तथा वे समाज के मल्यों व आदर्शों के अनुसार व्यवहार नहीं कर पाते।
   3.  मानसिक मंदित बालकों का शारीरिक, सामाजिक और संवेगात्मक विकास ठीक प्रकार से नहीं हो पाता तथा वे अधिक समय तक किसी विषयवस्तु पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर सकते है।
   4. मानसिक शक्तियों का विकास काल 18-19 वर्ष की आयु तक माना जाता है।
   5. औसत से बहुत कम बौद्धिक क्षमता के साथ-साथ मानसिक मंदन की एक पहचान यह भी है कि इसके शिकार बालक या किशोर अपने आपसे तथा अपने परिवेश से समायोजित होने में काफी कठिन या असमर्थता अनुभव करते है।

मानसिक मंदिता का वर्गीकरण

मानसिक मंदिता का वर्गीकरण तीन प्रकार से किया जा सकता है - चिकित्सकीय, मनोवैज्ञानिक तथा शैक्षणिक विधियों द्वारा चिकित्सकीय वर्गीकरण की अपेक्षा मनो-वैज्ञानिक व शैक्षणिक वर्गीकरण का प्रयोग सामान्यत: किया जाता है। चिकित्सकीय वर्गीकरण कारणों पर आधारित होता है। मनोवैज्ञानिक वर्गीकरण का आधार बुद्धि के स्तर पर तथा शैक्षणिक वर्गीकरण का आधार मानसिक मंदित बालक का वर्तमान क्रियात्मक स्तर होता है। शैक्षणिक वर्गीकरण जिसे अमेरिकी शिक्षाविदों द्वारा मौलिकता प्रदान की, उसे छब्त्ज् नई दिल्ली द्वारा भी मान्यता प्रदान की गयी है।

1. चिकित्सकीय वर्गीकरण 

   1. पोषण (Nutrition)
   2. ट्रोमा (सदमा) (Trauma)
   3. भयंकर दिमागी बीमारी पोषण (Gross Brain       Disease)
   4. जन्म से पहले के प्रभाव (Prental Influences)
   5. क्रोमोसोमो की असामान्यता (Chromosomal   Ahnarmality)
   6. भ्रूणावस्था या गर्भावस्था सम्बन्धी विकास   (Geslational Disorder)
   7. संक्रमण तथा उत्तेजना (Infections and   Intoxications)
   8. मनोवैज्ञानिक विकार (Physchiasric Disorder)
   9.  वातावरण का प्रभाव (Environmental   Influences)


2. मनोवैज्ञानिक वर्गीकरण I.Q. के आधार पर

    1. सामान्य (साधारण) मंदिता - I.Q. 50-70
    2. मध्यमवर्गीय मंदिता - I.Q. 35-49
    3. गंभीर मंदिता - I.Q. 20-34
    4. अतिगंभीर मंदिता - I.Q. Below

3. शैक्षणिक वर्गीकरण

    1. शिक्षित किये जाने वाले बालक - I.Q. 50-75
    3. प्रशिक्षित किये जाने वाले बालक - I.Q. 25-50
    4. प्रशिक्षित न किये जाने वाले बालक - I.Q. Below 25 यह विभिन्न प्रकार का वर्गीकरण मानसिक मंदित बच्चों की शिक्षा, उसके व्यवहार व स्वतंत्रता के स्तर के बारे में समझ के एक स्तर को विकसित करता है अर्थात् उनको समझने में सहायता करता है।


मानसिक मंदित के कारण

मानसिक मंदित के लिए कोई ऐसे सामान्य कारण निर्धारित करना सम्भव नहीं है। मानसिक मंदिता एक व्यक्तिगत समस्या हैं। अत: प्रत्येक मन्दबुद्धि बालक अपनी मन्दबुद्धि के लिए कुछ अपूर्ण कारण रखता है, मन्दबुद्धि बच्चों से सम्बंधित कारणों को अग्र तीन भागों में बाँटा जा सकता है :-

 1.  जन्म से पूर्व के कारण (Prinital Causes)
 2.  जन्म के समय के कारण (Perinatal Causes)
 3.  जन्म के बाद के कारण (Pornatal Causes)

1. जन्म से पूर्व के कारण


  •   आनुवांशिकी व दोषपूर्ण गुणसूत्र : - मानव शरीर में 23 जोड़े गुणसूत्र होते है। प्रत्येक व्यक्ति अपने माता-पिता से आधे गुणसूत्रों को ग्रहण करता है। मानसिक मंदिता माता या पिता अथवा दोनों के गुणसूत्रों में उपस्थित दोषपूर्ण पैतृकों के कारण पैदा हो सकती है। कुछ जैविक बीमारियों का वर्णन इस प्रकार है -


  1. डाउन्स सिण्ड्रोम :- इसे मंगोलिज्म के नाम से भी जाना जाता है। इस बीमारी में गुणसूत्रों का एक जोड़ा गर्भ धारण के समय अलग हो जाता है। फ्रांस के वैज्ञानिकों ने यह बता दिया कि व्यक्तियों के क्रोमोसोम्य (Chromosomes) के 21वें जोड़े में एक अतिरिक्त क्रोमोसोम होता है, जिससे इन लोगों में 46 की बजाय 47 क्रोमोसोम होते है। इन लोगों के चेहरे की बनावट मंगोलियन जाति के लोगों से मिलती-जुलती होती है, इसलिए इन्हें मंगोलिज्म कहा जाता है। इनका चेहरा गोल, नाक छोटी व चपटी, आँखें धंसी हुई, हाथ छोटे और मोटे तथा जीभ में एक दरार होती है।

   2. टर्नर सिण्ड्रोम :- इस मानसिक दुर्बलता का कारण यौन क्रोमोसोम (Sex chromosomes) में गड़बड़ी होती है। यह मानसिक दुर्बलता केवल बालिकाओं में ही पायी जाती है। इन बालिकाओं की गर्दन छोटी और झुकी हुई होती है। इस प्रकार के बच्चों मं अधिगम सम्बन्धी समस्याएँ सामान्यत: पायी जाती हैं, जिसमें श्रवण बाधिता भी शामिल है।

           Male           Female
            XY + 22          XO + 22
             ↓
           XO + 44


    3. क्लाईनफैल्टर सिण्ड्रोम:- इस प्रकार की दुर्बलता पुरूषों में एक अतिरिक्त क्रोमोस (XYZ) की उपस्थिति के कारण दिखाई देती है। इसका कारण भी यौन क्रोमोसोम्स में विसंगति का होा है। इस अतिरिक्त क्रोमोसोम्स को हम 47 गिनते है। इस दुर्बलता के कारण पुरूषों में सामान्यत: महिलाओं की विशेषताएँ विकसित होने लगती है।

          XX            XY
          ↓
          XYZ


  •  गर्भवती माता की जटिलताओं के कारण एक्स-रे करवाना पड़ता है तथा इन किरणों का शिशु के मानसिक विकास पर प्रभाव पड़ता है।
  •  गर्भ धारण के शुरूआती तीन महीनों में संक्रमण आदि पैदा होने के कारण भ्रूण के विकास पर प्रभाव पड़ सकता है। 
  •  गर्भवती माता द्वारा शराब, सिगरेट व नशीली दवाइयों का सेवन भी मानसिक मंदिता का कारण बन सकता है। 
  •   कम आयु में गर्भ धारण की मानसिक मंदिता का एक कारण है। कम आयु में गर्भवती होन से भ्रूण का विकास पूर्ण रूप से नहीं हो पाता है।


2. जन्म के समय के कारण 

     1. समय से पूर्व (24 हफ्तों और 34 हफ्तों के बीच जन्म) बच्चे का पैदा होना भी मानसिक मंदिता का एक कारण है।
     2. जन्म के समय शिशु का वजन कम होने के कारण बच्चे का मानसिक विकास कम हो जाता है। बद्ध जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी भी बच्चे में मानसिक मंदित पैदा करती है।
     3. ऑपरेशन के समय प्रयुक्त किये जाने वाले औजारों से कई बार शिशु के सिर पर घाव बन जाते है।
     4. एनीथिसिया और दर्द िवारकों का प्रयोग के समय करने से भी मानसिक मंदिता हो सकती है।

3. जन्म के बाद के कारण

    1. किसी दुर्घटना के फलस्वरूप मस्तिष्क या स्नायु संस्थान को आघात पहुँचने के कारण मानसिक मंदिता हो सकती है।
    2. जन्म के बाद बच्चे को सन्तुलित आहार और उचित पोषण न मिलने के कारण भी मानसिक मंदिता हो सकती है।
    3. बाल्यकाल में बच्चों को होने वाली बीमारियों, जैसे - जर्मन खसरा, ऐपीलैप्सी (मिरगी) आदि से भी मानसिक मंदिता हो सकती है।
    4. मेनिजारटिस एक दिगामी संक्रमण भी मानसिक मंदिता का एक मुख्य कारण है।


मानसिक मंदित बालकों की पहचान

मानसिक मंदित बालकों को शिक्षा प्रदान करने के लिए तथा गम्भीर मानसिक मंदित की रोकथाम के लिए यह आवश्यक है कि जल्दी से जल्दी मंदित बच्चों की पहचान की जाए। ऐसे बच्चों की पहचान करने के लिए अग्र विधियों का प्रयोग किया जा सकता है :-

   1. बच्चे के जन्म होते ही तुरन्त न रोना।
   2. बच्चे का विकास अन्य बच्चों की तुलना में धीमी गति से   हो रहा हो, अर्थात् देस से चलना, बैठना, बोलना, शुरू करना   आदि।
   3. किसी भी कार्य व कुशलता के धीमी गति से सीख पाना या बहुत अधिक समझाने पर ही समझ पाना।
   4. अपनी उम्र के अनुसार सामान्य कार्यों को (जैसे भोजन करना, बटन लगाा, कपड़े पहनना, समय देखना आदि) कुशलता से न कर पाना।
   5. भाषा का सही प्रयोग न कर पाना।
   6. पढ़ाई में पीछे रहना।
   7. अपनी उम्र के अन्य बच्चों के साथ घुल-मिल नहीं पाना।
   8. अपनी उम्र से कम उम्र के बच्चे की तरह व्यवहार करना।
   9. दैनिक कार्यों के लिए दूसरों पर निर्भर रहना।

उपरोक्त सभी बुद्धि परीक्षणों द्वारा मानसिक मंदित बच्चों की पहचान करने में बहुत सहायता मिलती है। इस प्रकार शिक्षा में नई-नई खोजों तथा परीक्षणों के द्वारा बालक की मंदबुद्धिता का पता लगातार इनकी शिक्षा का उचित प्रबंध करना चाहिए।

मानसिक मंदित बच्चों की विशेषताएँ

मानसिक मंदित बालक बहुत-सी बातों में सामान्य बच्चों जैसा व्यवहार करता है, परन्तु कुछ विशेषताएँ ऐसी है जो मानसिक मंदित बालकों को सामान्य बच्चों से अलग करती है। इन विशेषताओं को विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने भिन्न-भिन्न प्रकार से व्यक्त किया है। मन्दबुद्धि बच्चों की बौद्धिक व व्यक्तित्व सम्बंध विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है :-

1. बौद्धिक या मानसिक विशेषताएँ -

मंदित बच्चों को बौद्धिक विकास से सम्बंधित चार क्षेत्रों - अवधान, स्मृति, भाषा और शैक्षणिक स्तर आदि में विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

    1. अवधान की कमियाँ :-  एक बच्चा किसी भी कार्य को तभी कर सकता है जब वह उसे स्मरण कर सकता हो या सीख सकता हो। अनुसंधानकर्ताओं का यह मत है कि मानसिक मंदित बच्चों की बौद्धिक समस्याओं में सबसे महत्वपूर्ण समस्या अवधान की समस्या होती है।
  
    2. निम्न स्मृति स्तर :-  मासिक मंदित बच्चों की सीखने की गति धीमी होने के कारण ये क्रिया के बार-बार दोहराने के बाद ही कुछ सीख पाते हैं। इतना ही नहीं ये सीखकर पुन: भूल भी जाते हैं, इनकी प्रतिक्रिया गति भी धीमी होती है।

    3. भाषा विकास :-  इनका भाषा विकास निम्न होता है। भाषा विकास सीमित होने के कारण इस श्रेणी के बच्चों की शब्दावली अपूर्ण और दोषपूर्ण होती है। अत: इन बच्चों का भाषा व वणी विकास सामन्य बच्चों से निम्न होता है।

    4. निम्न शैक्षणिक उपलब्धि :-  शैक्षणिक बुद्धि व शैक्षणिक उपलब्धि सम्बन्धी सभी क्षेत्रों में यह बालक, सामान्य बच्चों से पीछे रहते हैं क्योंकि बुद्धि और उपलब्धि में गहरा सम्बन्ध है। इनकी अधिगम क्षमता सीखने या समझने की बजाय रहने पर आधारित होती है।

2. व्यक्तित्व संबंधी विशेषताएँ :- 

    1. सामाजिक और संवेगात्मक अनुपयुक्तता :- स्कूली शिक्षा कम होने के कारण वे बालक सामाजिक व संवेगात्मक रूप से स्वयं को समायोजित नहीं कर पाते। ये बालक संवेगात्मक रूप से अस्थिर होते हैं।

     2. अभिप्रेरणा की कमी :- मानसिक मंदित बच्चों में अभिप्रेरणा व प्रोत्साहन की कमी होती है। इनका झुकाव अनैतिकता और अपराध की ओर रहता है। इनमें आत्मविश्वास की कमी होती है। ये बालक स्वयं कार्य नहीं कर सकते लेकिन दूसरे के निर्देशन में ये कार्य कर लेते है।
 
     3. सीमित वैयक्तिक विभिन्नता :- मानसिक मंदित बच्चों में वैयक्तिक विभिन्नता सीमित होती है। वैयक्तिक विभिन्नता से अभिप्राय व्यक्तियों में किसी एक विशेषता या अनेक विशेषताओं को लेकर पाये जाने वाली भिन्नताएँ या अन्तर से है। विभिन्न अवसरों पर ये बालक विभिन्न प्रकार का व्यवहार प्रदर्शित करते है। बहुत-से मानसिक मंदित बालक रंगहीन होते है।
     4. शारीरिक हीनता :- मानसिक मंदित बच्चों का शरीर विकृत हो जाता है। शारीरिक रोगों का सामना करने की क्षमता कम होती है। मन्द बुद्धि बालक प्राय: शारीरिक रूप से बेडौल होते है, जैसे - नाक, कान, हाथ, पैर व पेट का विकृत होना। सामान्य बच्चों की तुलना में इनका शरीरिक विकास कम होता है, लेकिन यह आवश्यक नहीं कि जो बच्चा शारीरिक रूप से विकृत होगा वह बुद्धिहीन होगा।

     5. समायोजन समस्या :- मानसिक मंदित बच्चे स्वयं को असहाय व हीन भावना ग्रसित महसूस करते हैं। इन बच्चों को अपने परिवार तथा वातावरण सम्बन्धी विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है। मानसिक मंदित बच्चों में परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को समायोजित करने की क्षमता कम होती है।

     6. सृजनात्मक की कमी :- मानसिक मंदित बच्चों में सृजनात्मकता की भी कमी होती है। सीमित अवधान होने के कारण इन बच्चों की रूचि, अभिरूचि तथा अभिवृत्ति आदि क्षेत्रों में भी कमी होती है। मानसिक मंदित बच्चे किसी एक ही कार्य में अपनी रूचि का प्रदर्शन करने में सक्षम होते है। सृजनात्मक ये अभिप्राय किसी नई वस्तु के सृजन से होता है तथा मानसिक मंदित बच्चों में अभूर्त चिन्तन का अभाव पाया जाता है।


मानसिक मंदित बच्चों की समस्याएँ

  मानसिक मंद बच्चों की समस्याएं निम्न प्रकार से है।


1. समायोजन सम्बन्धी समस्याएँ

मानसिक मंदित बच्चों को समाज, घर तथा विद्यारलय में समायोजन सम्बन्धी अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जिनका वर्णन इस प्रकार है -


    1. परिवार में समायोजन (Adjstment of Family) :- मन्दबुद्धि बच्चे के माता-पिता को यह विश्वास दिलाना अति आवश्यक होता है कि उनका बच्चा मानसिक मंदित है। यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो माता-पिता अपने बच्चे आकांक्षाएँ रखने लगते हैं, लेकिन कुछ ही समय में बालक की असफलताएँ उन्हें निराश कर देती है। इस कारण माता-पिता का व्यवहार बच्चे के प्रति बदल जाता है।

    2. विद्यालय में समायोजन (Adjstment in School) :-  मन्दबुद्धि बच्चों को साधारण बच्चों की तरह कक्षा में अध्यापकों की सामान्य विधियों द्वारा नहीं पढ़ाया जा सकता, क्योंकि ऐसे बालक अध्यापकों की सामान्य विधियों से कुछ भी सीखने मं असमर्थ होते हैं, जिसके कारण मन्दबुद्धि बच्चों को विद्यालयों तथा कक्षाओं में अध्यापकों के असहानुभूतिपूर्ण व्यहवार का सामना करना पड़ता है। कई बार तो उन्हें दण्ड भी दिया जाता है। इस प्रकार बच्चा हीन भावना से भर जाता है तथा पढ़ाई एवं विद्यालय के प्रति उसका दृष्टिकोण बिल्कुल बदल जाता है।

     3. समाज में समायोजन (Adjstment in Society) :-  बच्चों को परिवार के बाद समाज में अपने आपको समायोजित करना पड़ता है। मानसिक मंदित बच्चों के लिए तो यह और भी मुश्किल हो जाता है। समाज के दूसरे बच्चे उनके साथ खेलना पसन्द नहीं करते तथा बात-बात पर उनको चिढ़ाते है। परिणामस्वरूप इन बालकों में हीन भावना पैदा होनी शुरू हो जाती है। इसी कारण से इन बच्चों में सामाजिक गुणों का विकास नहीं हो पाता।

2. संवेगात्मक समस्याएँ - 

मानसिक मंदित बच्चों को घर, विद्यालय व समाज में उचित वातावरण न मिलने के कारण समायोजित बालक संवेगात्मक रूप से परिपक्व नहीं हो सकते। संवेगों को नियंत्रित करने का प्रशिक्षण उन्हें नहीं मिल पाता। अत: ये बच्चे संवेगात्मक रूप से अपरिपक्व रह जाते है।

3. विकास की समस्याएँ :-

मानसिक मंदित बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास सामान्य बच्चों की तरह नहीं हा पाता जिसके कारण इनको समायोजन की कठिनाइयाँ होती है। इनका बौद्धिक विकास का होने के कारण ये कुछ सीख नहीं पाते। इनमें अभूर्त चिन्तन का अभाव होता है। ये किसी एक विषय पर अधिक समय तक ध्यान केन्द्रित नहीं कर सकते। इनकी रूचियाँ सीमित होती हैं तथा ये केवल साधारण तथा सरल निर्देश ही समझ सकते है।


मानसिक मंदित की रोकथाम सम्बन्धी उपाय

     1. जल्दी पहचानना तथा खोजना - मानसिक मंदित बच्चों की मंदिता को कम करने का उपाय सबसे पहले उनकी पहचान तथा खोज होता है। उदाहरणस्वरूप Abgar Scale के द्वारा नये जन्में बच्चों की मंदिता की पहचान की जा सकती है तथा उसकी रोकथाम के उपाय किये जा सकते है।

     2. जननिकी निर्देशन-मानसिक मंदिता को कम करने के लिए गर्भवती माताओं को जननिकी निर्देशन प्रदान करना चाहिए।

     3.  जर्मन खसरा तथा टेटनैस जैसी भयंकर बीमारियों के लिए प्रतिरक्षित या टीके आवश्यकतानुसार लगवाने चाहिए।

     4. PKU और galactoremia के लिए आहार चिकित्सा द्वारा मानसिक मंदिता कम हो सकती है।

     5. शीशे जहर की रोकथाम के लिए फर्नीचर तथा खिलौने पर प्रयोग होने वाले शीशे जहर की सम्बंधी कानून बनाये तथा लागू किये जाने चाहिए।

     6. उक्त रक्तचाप वाली गर्भवती महिलाओं को उचित देखभाल प्रदान की जानी चाहिए।

     7. बच्चों को पर्याप्त पोषण तथा सन्तुलित आहार प्रदान किया जाना चाहिए।

     8. गर्भवती महिला को शुरूआती महीनों में एक्स-रे किरणों के प्रभाव से दूर रहना चाहिए।

     9. गर्भवती महिला क लिए शराब, तम्बाकू, कोकीन व अय नशीली दवाईयों का प्रयोग वर्जित हो चाहिए।

    10. यदि बच्चे में किसी भी प्रकार की बौद्धिक या मानसिक असामान्यता दिखाई दे तो उसे विशेषज्ञ को दिखाया जाना चाहिए।


मानसिक मंदितों के लिए शैक्षिक प्रावधान

मानसिक मंदित बच्चों के लिए विभिन्न प्रकार के शैक्षिक प्रावधान किये जा सकते हैं, जैसे - नियमित कक्षा कक्ष, विशेष कक्षाएँ, विशेष विद्यालय, आवासीय विद्यालय तथा चिकित्सा सेवाओं वाले संस्थान आदि। शैक्षिक प्रावधानों के चुनाव के समय कुछ महत्वपूर्ण बातें दिमाग में रखनी चाहिए।

   1. शैक्षिक सुविधाएँ व व्यवस्था बच्चे की आवश्यकताओं के आधार पर होनी चाहिए।
   2. बच्चों को उपयुक्त व उचित या कम प्रतिबंधित वातावरण प्रदान करना चाहिए।
   3. स्थानापन्न सुविधा लोचशील होनी चाहिए ताकि बच्चा विभिन परिस्थितियों में स्थिति के अनुसार स्वयं को ढाल सकें।

मुख्यतया मानसिक मंदित बच्चों को तीन वर्गों में बाँट सकते हैं -

    1. शिक्षित किये जाने वाले बालक
    2. प्रशिक्षित किये जाने वाले बालक
    3. प्रशिक्षित न किये जाने वाले बालक


 शिक्षित किये जाने वाले बालकों की शिक्षा

इन बच्चों की बुद्धिलब्धि 50-75 के बीच होती है। इन बच्चों की देखभाल, शिक्षा व प्रशिक्षण की जिम्मेदारी केवल अध्यापक की ही नहीं होती, बल्कि माता-पिता तथा समाज की भी यह जिम्मेदारी केवल अध्यापक की ही नहीं होती, इनकी शिक्षा व देखभाल का ध्यान रखे। ऐसे बच्चों को कुछ विशेष शिक्षा सुविधाओं द्वारा आसानी से शिक्षित किया जा सकता है।


माता-पिता का उत्तरदायित्व

‘‘मानसिक मंदिता’’ मानसिक न्यूनताओं से ग्रस्त बालक ‘‘मानसिक विकलांगता’’ और ‘‘सामान्य से कम मानसिक मंदित बालक’’ आदि सभी मानसिक रूप से विकलांग बच्चों के नाम हैं। प्राचीन समय में मानसिक मंदित बच्चों के लिए मूर्ख, मन्दबुद्धि आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता था जो अब अप्रचलित हो गये हैं।

    1. अनुभवी माता तथा परिवार के अन्य बुजुर्ग महिलाओं को बच्चों के विकास सम्बन्धी काफी ज्ञान होता है। यदि एक बच्चे का विकास मन्दगति से और उसके व्यवहार में कुछ असामानता दिखाई देती है तो उसे किसी विशेषज्ञ या बाल मनोवैज्ञानिक को दिखाना चाहिए।
 
     2. माता-पिता को अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए बल्कि उन्हें अपने बच्चे की मंदिता की रोकथाम के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए।
 
     3. आवासीय प्रशिक्षण ऐसे बच्चों के लिए बहुत लाभदायक होता है। माता-पिता बच्चों को दैनिक क्रिया संबंधी कौशल, सामाजिक कौशल, भाषा कौशल आदि द्वारा शुरूआती कुछ वर्षों में बहुत कुछ सीख सकते है। पूर्व विद्यालयी शिक्षा ; पूर्व विद्यालयी शिक्षा मध्यम मन्दबुद्धि बच्चों के लिए निम्न स्तर से शुरू करनी चाहिए और उन्हें कौशल प्रशिक्षण एक वर्ष की बजाय दो या तीन वर्ष प्रदान करना चाहिए।
 
     4. स्थिर बैठना तथा अध्यापक की बातों पर ध्यान देना।
     5. निर्देशों का पालन करना।
     6. भाषा विकास।
     7. आत्म-क्रियात्मक कौशल का विकास, जैसे - जूते बाँधना, बटन बन्द करना और कपड़े पहनना आदि। ;
 
     8. शारीरिक सन्तुलन बढ़ाना, जैसे - पैंसिल पकड़ना आदि।


प्रशिक्षण योग्य मन्दबुद्धि बच्चों के लिए शैक्षिक प्रावधान

इस श्रेणी में वे मंदित बालक आते है जो किसी भी प्रकार सामान्य कक्षाओं में पढ़कर लाभ नहीं उठा सकते। इस श्रेणी में वे बालक रखे जाते हैं जिनकी बुद्धिलब्धि 50-25 के मध्य होती है। ऐसे बालक बहुत कम शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं और दो या ती कक्षा से आगे नहीं पढ़ सकते। ऐसे बच्चों को प्रशिक्षण देने के लिए विशेष साधनों, कक्षाओं और शिक्षकों की आवश्यकता पड़ती है।

   1. दिनचर्या कौशल का विकास (Daily Living Skills)
   2. सामाजिक विकास (Social Development)
   3. शारीरिक विकास (Motor Development)
   4. भाषा विकास (Language Development)
   5. श्रम - आदत और शैक्षणिक कौशल (Work Habit and Academic Skill)
   6. योग चिकित्सा (Yoga Therapy)


प्रशिक्षित न किये जाने वाले या गम्भीर मानसिक मंदित बच्चों की शिक्षा

गम्भीर मानसिक मंदित बच्चों की बुद्धिलब्धि 25 से कम होती है। ऐसे बालक अपनी देख-रेख स्वयं नहीं कर सकते और समाज में अकेले जीवनयापन नहीं कर सकते। यहाँ तक कि ये न तो ठीक से बोल सकते हैं और न ही अपने विचारों को दूसरों को अच्छी तरह समझाने के योग्य होते हैं। इन्हें विशेष सहायता की आवश्यकता होती है।
ग्रासमैन ने गम्भीर मानसिक मंदित बच्चों के बारे में लिखा है, ‘‘गहन रूप से मन्दबुद्धि बालकों के लिए मानसिक अस्पताल व संस्थाएँ व सुरक्षित जगह हो।’’

   1. गम्भीर मानसिक मंदित बालक पानी, आग, बिजली आदि के खतरे को नहीं समझ सकते तथा आसानी से दुर्घटनाग्रस्त हो जाते है।

   2. मानसिक मंदित बालक अपने छोटे-छोटे कार्यों के लिए भी दूसरों पर निर्भर रहते है।

   3.  इन बच्चों को छोटे बच्चों की तरह ही नहलाया, धुलाया व भोजन कराया जाता है।
 
   4. इन बच्चों को स्कूलों में नहीं रखा जाता, बल्कि इनको मानसिक अस्पतालों तथा संस्थाओं में रखा जाता है। अत: इन बच्चों के लिए एक ही कार्यक्रम हो सकता है और वह यह है - इन बालकों को सुरक्षा तथा सहायता प्रदान करना।



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Tuesday, February 26, 2019

मानसिक मंदता [Mental Retardation]


  मानसिक मंदता - मानसिक मंदता वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति के दिमाग का विकास नहीं हो पाता, इनकी बुद्धिलव्धि सामान्य से नीचे स्तर की होती है।
यह वह अवस्था हैं जिसमें बच्चों का मानसिक विकास शारीरिक विकास से कम होता है।

मानसिक विकलांगता (एमआर) एक व्यापक विकृति है, जो 18 वर्ष की आयु से पहले दो या दो से अधिक रूपांतरित व्यवहारों में और महत्वपूर्ण रूप से संज्ञानात्मक प्रक्रिया के विकार और न्यूनता के रूप में दिखता है। ऐतिहासिक रूप में इसे बौद्धिक क्षमता (आईक्यू) के 70 के भीतर होने के रूप में परिभाषित किया जाता है।[1] कभी इसे लगभग पूरी तरह अनुभूति पर केंद्रित माना जाता था, पर अब इसकी परिभाषा में मानसिक क्रियाकलाप से संबंधित एक घटक और अपने वातावरण में व्यक्ति के कार्यात्मक कौशल दोनों को शामिल किया जाता है।


कारण - 1. जैविक कारक - आनुवांशिक एवम वंनशानुगत
            2. वातावरणीय कारक - जन्म के समय, पूर्व एवं बाद



प्रकार - अमेरिकन एशोशियेसन आफ मेंटल Retardation ने इन्हें निम्न प्रकार से  वर्गीकृत किया है।


1. सीमांत मानसिक मंदता [Border Line ] - 70-85 IQ

2. अतिअल्प मानसिक मंदता [Mild ] -  50-70 IQ

3.अल्प मानसिक मंदता [Moderate ] - 35-50 IQ

4. गंभीर मानसिक मंदता [Severe ] - 20-35 IQ

5. अतिगंभीर मानसिक मंदता [Severe Profound ] -          0-20 IQ





लक्षण - इनके लक्षण निम्न प्रकार है।

 1.   धीमी गति से विकास।
 2.   विचार व्यक्त नहीं कर पाना।
 3.   ध्यान की कमी।
 4.   स्वयं निर्णय लेने में परेशानी।
 5.   निर्देशो को समझने की सभ्यता।
 6.   शैक्षिक उपलब्धियों में पिछड़ापन।
 7.   शारीरिक न्यूनता।
 8.   सामाजिकता की कमी।
 9.   सीमित वृद्धि।
10.  कमजोर श्रमण शक्ति।
11.  अमूर्त को समझने मैं कठिनाई।
12.  विलंबित भाषीय विकास।



मानसिक मंद बच्चों की पहचान-  मानसिक  विकलांगता वाले बच्चे अन्य बच्चों की तुलना में बाद में बैठना, घुटनों के बल चलना और पैरों पर चलना या बोलना सीख पाते हैं। मानसिक विकलांगता वाले वयस्कों और बच्चों दोनों में निम्नलिखित विशेषताएं देखी जा सकती हैं:

 1.   मौखिक भाषा के विकास में देरी
 2.    स्मृति कौशल की न्यूनता
 3.   सामाजिक नियमों को सीखने में कठिनाई
 4.   समस्या का हल करने के कौशल में कठिनाई
 5.   स्वयं-सहायता या खुद अपनी देखभाल करने की क्षमता जैसे कौशल के अनुकूल व्यवहार के विकास में देरी.
  6.  सामाजिक निषेध का अभाव

संज्ञानात्मक कामकाज की सीमाएं मानसिक विकलांगता वाले बच्चे में एक सामान्य बच्चे की तुलना में धीमी गति से सीखने और विकसित होने का कारण बनती हैं। ये बच्चे भाषा सीखने, सामाजिक कौशल विकसित करने और अपने निजी जरूरतों जैसे कपड़ा पहनने या खाने जैसी जरूरतों का ख्याल रखने में ज्यादा समय ले सकते हैं। वे सीखने में ज्यादा समय ले सकते हैं और पुनरावृत्ति की जरूरत होती है और उनके सीखने के स्तर दक्षता की जरूरत पड़ सकती है। फिर भी, वस्तुत: लगभग हर बच्चा सीखने, विकसित होने और समुदाय में हिस्सा लेने वाला एक सदस्य बन जाता है।

बचपन के प्रारंभ में हल्की मानसिक विकलांगता (आईक्यू 50-70) समझी नहीं जा सकती और जब तक कि बच्चे स्कूल नहीं जाते, इसकी पहचान नहीं हो सकती. यहां तक कि जब खराब शैक्षणिक प्रदर्शन की पहचान कर ली जाती हो तो भी सीखने की क्षमता कम होने के आधार पर हल्की मानसिक विकलांगता और भावनात्मक/व्यवहार संबंधी गड़बड़ियों का आकलन करने के लिए विशेषज्ञता की जरूरत पड़ सकती है। हल्की मानसिक विकलांगता वाले व्यक्ति जब वयस्क होते हैं तो उनमें से बहुत स्वतंत्र रूप से रहने और लाभकारी रोजगार करने में सक्षम हो सकते हैं।

औसत मानसिक विकलांगता (आईक्यू 35-50) लगभग जीवन के पहले साल के भीतर स्पष्ट होती है। औसत मानसिक विकलांगता वाले बच्चों को विद्यालय, घर और समुदाय में काफी समर्थन की आवश्यकता होती है, ताकि वे उन जगहों पर पूरी तरह से भागीदारी कर सकें. वयस्क के रूप में वे एक सहायक सामूहिक घर में अपने मां-बाप के साथ रह सकते हैं या महत्वपूर्ण सहायक सेवाओं के जरिये उनकी मदद की जा सकती हैं, जैसे उनका वित्तीय प्रबंधन.

अधिक गंभीर मानसिक विकलांगता वाले व्यक्ति (उसके या उसकी) को पूरे जीवन काल तक और अधिक गहन समर्थन और निगरानी की आवश्यकता होगी.




मानसिक मंदता के कारण -

डाउन सिंड्रोम, घातक अल्कोहल सिंड्रोम और फर्जाइल एक्स सिंड्रोमये तीन सबसे आम जन्मजात कारण होते हैं। हालांकि, डॉक्टरों को कई अन्य कारण भी मिले हैं। सबसे आम हैं:

 1.आनुवंशिक स्थितियां. विकलांगता कभी कभी माता पिता से विरासत में मिले असामान्य जीन की वजह से, त्रुटिपूर्ण जीन गठबंधन या अन्य कारणों से भी होती है। सबसे अधिक प्रचलित आनुवंशिक स्थितियों में डाउन सिंड्रोम क्लिनफेल्टर्स सिंड्रोम,फर्जाइल एक्स सिंड्रोम, न्यूरोफाइब्रोमेटोटिस, जन्मजात हाइपोथायरायडिज्म, विलियम्स सिंड्रोम, फनिलकेटोन्यूरिया (पीकेयू) और प्रैडरर-विली सिंड्रोमशामिल हैं। अन्य आनुवंशिक स्थितियों में शामिल है: फेलेन मैकडर्मिड सिंड्रोम (22क्यू 13 डीईएल), मोवेट-विल्सन सिंड्रोम, आनुवांशिक सिलियोपैथी[2] और सिडेरियस टाइप एक्स से जुड़ी मानसिक विकलांगता (OMIM 300263), जो पीएचएफ8 जीन में परिवर्तन के कारण होती है।OMIM 300560[3][4] कुछ दुर्लभ मामलों में, एक्स और वाई गुणसूत्रों में असामान्यताएं विकलांगता का कारण बनती हैं। 48 XXXX और 49 XXXX, XXXXX सिंड्रोम पूरी दुनिया में छोटी संख्या में लड़कियों को प्रभावित करता है, जबकि लड़कों को 47 XYY,49 XXXXY या 49 XYYYY प्रभावित करता है।


 2. गर्भावस्था के दौरान समस्याएं. जब भ्रूण का विकास ठीक तरह से नहीं होता है तो मानसिक विकलांगता आ सकती है। उदाहरण के लिए, भ्रूण कोशिकाओं के बढ़ने के समय जिस तरीके से उनका विभाजन होता है, उसमें समस्या हो सकती है। जो औरत शराब पीती है (देखें घातक अल्कोहल सिंड्रोम) या गर्भावस्था के दौरान रूबेला (एक वायरल रोग, जिसमें चेचक जैसे दाने निकलते हैं) जैसे रोग से संक्रमित हो जाती है तो उसके बच्चे को मानसिक विकलांगता हो सकती है।

  3. जन्म के समय समस्याएं. प्रसव पीड़ा और जन्म के समय अगर बच्चे को लेकर समस्या हो, जैसे उसे पर्याप्त आक्सीजन नहीं मिले तो मस्तिष्क में खराबी के कारण उसमें (बच्चा या बच्ची) विकास की खामी हो सकती है।


   4. कुछ खास तरह के रोग या विषाक्तता. अगर चिकित्सा देखरेख में देरी हुई या अपर्याप्त चिकित्सा हुई तो काली खांसी, खसरा और दिमागी बुखार के कारण दिमागी विकलांगता पैदा हो सकती है। सीसा और पारे जैसी विषाक्तता से ग्रसित होने से दिमाग की क्षमता कम हो सकती है।


  5. आयोडीन की कमी - जो दुनिया भर में लगभग 20 लाख लोगों को प्रभावित कर रहा है, विकासशील देशों में निवारणीय मानसिक विकलांगता का बड़ा कारण बना हुआ है, जहां आयोडीन की कमी एक महामारी बन चुकी है। आयोडीन की कमी भी गण्डमाला का कारण बनती है, जिसमें थाइरॉयड की ग्रंथि बढ़ जाती है। पूर्ण रूप में क्रटिनिज्म (थायरॉयड के कारण पैदा रोग) जिसे आयोडीन की ज्यादा कमी से पैदा हुई विकलांगता कहा जाता है, से ज्यादा आम है बुद्धि का थोड़ा नुकसान. दुनिया के कुछ क्षेत्र इसकी प्राकृतिक कमी और सरकारी निष्क्रियता के कारण गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं। भारत में सबसे अधिक से 500 मिलियन लोग आयोडीन की कमी, 54 लाख लोग गंडमाला और 20 लाख लोग थायरॉयड से संबंधित रोग से पीड़ित हैं। आयोडीन की कमी से जूझ रहे अन्य प्रभावित देशों में चीन और कजाखस्तान ने व्यापक रूप से आयोडीन से संबंधित कार्यक्रम चलाये, पर 2006 तक रूस में इस तरह का कोई कार्यक्रम नहीं चलाया गया।
 

   6. दुनिया के अकालग्रस्त हिस्सों - इथीयोपिया में कुपोषण दिमाग के विकास में कमी का एक आम कारण है।

 
   7. धनुषाकार पुलिका की अनुपस्थिति.  

   8. जन्म के बाद -  गर्भनाल लिपटना, रोना, चोट लगना             आदि।


मानसिक रुप से रुग्ण विकलांगजनों के अधिकार मानसिक रुप से मंद व्यक्तियों को मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 1987 के अंतर्गत, निम्नलिखित अधिकार प्राप्त हैं -

1- मानसि रुप से रुग्ण व्यक्तियों के उपचार और देखभाल के लिए सरकार या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा स्थापित या अनुरक्षित किए जा रहे किसी मनश्चिकित्सीय अस्पताल या मनश्चिकित्सीय नर्सिग होम या स्वास्थ्य लाभ गृह (सरकारी सार्वजनिक अस्पताल या नर्सिग होम के अलावा) में भर्ती होने, उपचार करवाने या देखभाल करवाने का अधिकार ।

2- मानसिक रुप से रुग्ण कैदी और नाबालिग को भी सरकारी मनश्चिकित्सीय अस्पताल या मनश्चिकित्सीय नर्सिग होम्स में इलाज करवाने का अधिकार है ।

3- 16 वर्ष से कम आयु के नाबालिगों, व्यवहार में परिवर्तन कर देने वाले अल्कोहल या अन्य व्यवसनों के आदी व्यक्ति और वे व्यक्ति जिन्हें किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है, को सरकार द्वारा स्थापित या अनुरक्षित किए जा रहे अलग मनश्चिकित्सीय अस्पतालों या नर्सिग होम में भर्ती होने, उपचार करवाने या देखरेख करवाने का अधिकार है ।

4- मानसिक रुप से रुग्ण व्यक्तियों को सरकार से मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को विनियमित, निर्देशित और समन्वित करवाने का अधिकार है । सरकार का दायित्व इस अधिनियम के अंतर्गत स्थापित केन्द्रीय प्राधिकरणों और राज्य प्राधिकरणों के माध्यम से मनश्चिकित्सीय अस्पतालों और नर्सिग होमों को स्थापित और अनुरक्षित करने के लिए ऐसे विनियमनों और लाइसेंसों को जारी करने का है ।

5- उपयुक्त उल्लिखित सरकारी अस्पतालों और नर्सिग होमों में इलाज अन्तःरोगी या बाह्य रोगी के रुप में हो सकता है ।

6- मानसिक रुप से रुग्ण व्यक्ति ऐसे अस्पतालों या नर्सिग होमों में अपने आप भर्ती होने के लिए अनुरोध कर सकते हैं और नाबालिग अपने संरक्षकों के द्वारा भर्ती होने के लिए अनुरोध कर सकते हैं । मानसिक रुप से रुग्ण व्यक्तियों के रिश्तेदारों द्वारा भी रुग्ण व्यक्तियों की ओर से भर्ती होने के लिए अनुरोध किया जा सकता है । भर्ती आदेशों को मंजूर करने के लिए स्थानीय मजिस्ट्रेट को भी आवेदन किया जा सकता है ।

7- पुलिस का दायित्व है कि भटके हुए या उपेक्षित मानसिक रुग्ण व्यक्ति को सुरक्षात्मक हिफाजत में लें, उसके संबंधी को सूचित करें और ऐसे व्यक्ति के भर्ती आदेशों को जारी करवाने हेतु उसे स्थानीय मजिस्ट्रेट के सामने उपस्थित करें ।

8- मानसिक रुप से रुग्ण व्यक्तियों को इलाज होने के बाद अस्पताल से डिस्चार्ज होने का अधिकार है और अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार वह “छुट्टी “ का हकदार है ।

9- जहां कहीं मानसिक रुप से रुग्ण व्यक्ति भूमि सहित अपनी अन्य संपत्तियों की स्वयं देखरेख नहीं कर सकते वहां, जिला न्यायालय आवेदन करने पर ऐसी संपत्तियों के प्रबंधन की रक्षा और सुरक्षा ऐसे मानसिक रुप से रुग्ण व्यक्तियों के संरक्षकों की नियुक्ति करने के द्वारा या ऐसी संपत्ति के प्रबंधकों की नियुक्ति द्वारा प्रतिपालय न्यायालय को सौंप कर करनी पड़ती है ।

10- सरकारी मनश्चिकित्सीय अस्पताल या नर्सिग होम में अंतःरोगी के रुप में भर्ती हुए मानसिक रुप से रुग्ण व्यक्ति के उपचार का खर्चा, जब तक कि मानसिक रुप से रुग्ण व्यक्ति की ओर से उसके संबंधी या अन्य व्यक्ति द्वारा ऐसे खर्चे को वहन करने की सहमति न दी गई हो, संबंधित राज्य सरकार द्वारा उक्त खर्चे का वहन किया जाएगा और इस तरह के अनुरक्षण के लिए प्रावधान जिला न्यायालय के आदेश द्वारा दिए गए हैं । इस तरह का खर्च मानसिक रुप से रुग्ण व्यक्ति की संपत्ति से भी लिया जा सकता है ।

11- इलाज करवा रहे मानसिक रुप से रुग्ण व्यक्तियों के साथ किसी भी प्रकार का असम्मान (चाहे यह शारीरिक हो या मानसिक) या क्रूरता नहीं की जाएगी और न ही मानसिक रुप से रुग्ण व्यक्ति का प्रयोग उसके रोग-निदान या उपचार को छोड़कर, अनुसंधान के उद्देश्य से या उसकी सहमति से नहीं किया जाएगा ।

12- सरकार से वेतन, पेंशन, ग्रेच्यूटी या अन्य भत्तों के हकदार मानसिक रुप से रुग्ण व्यक्तियों (जैसे सरकारी कर्मचारी, जो अपने कार्यकाल के दौरान मानसिक रुप से रुग्ण हो जाते हैं), को ऐसे भत्तों की अदायगी से मना नहीं किया जा सकता है । मजिस्ट्रेट से इस आशय का तथ्य प्रमाणित होने के बाद, मानसिक रुप से रुग्ण व्यक्ति की देखरेख करने वाला व्यक्ति  या मानसिक रुप से रुग्ण व्यक्ति के आश्रित ऐसी राशि को प्राप्त करेंगे ।

13- यदि  मानसिक रुप से रुग्ण व्यक्ति कोई वकील नहीं कर सकता या कार्यवाहियों के संबंध में उसकी परिस्थितियों की ऐसी अपेक्षा हो तो अधिनियम के अंतर्गत उसे मजिस्ट्रेट या जिला न्यायालय के आदेश द्वारा वकील की सेवाओं को लेने का हक है ।

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Monday, February 25, 2019

दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम-2016 के अनुसार निशक्तता के प्रकार

दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम-2016 के अन्तर्गत निशक्तता के 21 प्रकार है

1. मानसिक मंदता [Mental Retardation] -
        1.समझने / बोलने में कठिनाई
        2.अभिव्यक्त करने में कठिनाई

2. ऑटिज्म [Autism Spectrum Disorders] -
    1. किसी कार्य पर ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई
    2. आंखे मिलाकर बात न कर पाना
    3. गुमसुम रहना

3. सेरेब्रल पाल्सी [Cerebral Palsy] पोलियो-
    1. पैरों में जकड़न
    2. चलने में कठिनाई
    3. हाथ से काम करने में कठिनाई

4. मानसिक रोगी [Mental illness] -
    1.अस्वाभाविक ब्यवहार,  2. खुद से बाते करना,
    3. भ्रम जाल,  4. मतिभ्रम,  5. व्यसन (नसे का आदी),
    6. किसी से डर / भय,  7. गुमसुम रहना

5. श्रवण बाधित [Hearing Impairment]-
   1. बहरापन
   2. ऊंचा सुनना या कम सुनना

6. मूक निशक्तता [Speech Impairment] -
    1. बोलने में कठिनाई
    2. सामान्य बोली से अलग बोलना जिसे अन्य लोग समझ          नहीं पाते

7. दृष्टि बाधित [Blindness ] -
    1. देखने में कठिनाई
    2. पूर्ण दृष्टिहीन

8. अल्प दृष्टि [Low- Vision ] -
    1. कम दिखना
    2. 60 वर्ष से कम आयु की स्थिति में रंगों की पहचान नहीं          कर पाना

9. चलन निशक्तता  [Locomotor Disability ] -
    1. हाथ या पैर अथवा दोनों की निशक्तता
    2. लकवा
    3. हाथ या पैर कट जाना

10. कुष्ठ रोग से मुक्त  [Leprosy- Cured ] -
     1. हाथ या पैर या अंगुली मैं विकृति
     2. टेढापन
     3. शरीर की त्वचा पर रंगहीन धब्बे
     4. हाथ या पैर या अंगुलिया सुन्न हों जाना

11. बौनापन [Dwarfism ]-
      1. व्यक्ति का कद व्यक्स होने पर भी 4 फुट 10इंच                  /147cm  या इससे कम होना

12. तेजाब हमला पीड़ित [Acid Attack Victim ] -
      1. शरीर के अंग हाथ / पैर / आंख आदि तेजाब हमले की वज़ह से असमान्य / प्रभावित होना

13. मांसपेशी दुर्विक़ार [Muscular Distrophy ] -
     . मांसपेशियों में कमजोरी एवं विकृति

14.स्पेसिफिक लर्निग डिसेबिलिटी[Specific learning]-
     . बोलने, श्रुत लेख, लेखन, साधारण जोड़, बाकी, गुणा,        भाग में आकार, भार, दूरी आदि समझने मैं कठिनाई

15. बौद्धिक निशक्तता [ Intellectual Disabilities]-          1. सीखने, समस्या समाधान, तार्किकता आदि में          कठिनाई
      2. प्रतिदिन के कार्यों में सामाजिक कार्यों में एम  अनुकूल व्यवहार में कठिनाई

16. मल्टीपल स्कलेरोसिस [Miltiple Sclerosis ] -
     1. दिमाग एम रीढ़ की हड्डी के समन्वय में परेशानी

17. पार्किसंस रोग [Parkinsons Disease ]-
     1. हाथ/ पाव/ मांसपेशियों में जकड़न
     2. तंत्रिका तंत्र प्रणाली संबंधी कठिनाई

18. हिमोफिया/ अधी रक्तस्राव [Haemophilia ] -
     1. चोट लगने पर अत्यधिक रक्त स्राव
     2.रक्त बहेना बंद नहीं होना

19. थैलेसीमिया [Thalassemia ] -
      1. खून में हीमोग्लबीन की विकृति
      2. खून मात्रा कम होना

20. सिकल सैल डिजीज [Sickle Cell Disease ] -
     1. खून की अत्यधिक कमी
     2. खून की कमी से शरीर के अंग/ अवयव खराब होना

21. बहू  निशक्तता [Multiple Disabilities ] -
     1. दो या दो से अधिक निशक्तता से ग्रसित


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Sunday, February 24, 2019

Inclusive Education समावेशी शिक्षा

         
                          Inclusive Education 

समावेशी शिक्षा का अर्थ है सभी विद्यार्थीयों को समान शिक्षा देना या प्रदान करना है इस शिक्षा में सभी बच्चों को सामान रूप से शिक्षा दी जाती है। सभी बच्चों से अर्थ : उन में कुछ बच्चे विशिष्ट (Special children ) हो सकते है। शारीरिक विकलांग या कोई शारीरिक कमियाँ हो जैसे, सुनाई नही देना, चलने मे कठिनाई, मानसिक विकलांग या लिखने पढ़ने में कठिनाई महसूस करना, तथा जो अन्य बच्चों से कमजोर हो सकते है । समावेशी शिक्षा में विशिष्ट बच्चों की छुपी हुई योग्यता को उभार जाए यह मुख्य उद्देश्य विशिष्ट शिक्षा का है।
   
  आज केवल प्रतिभाशाली बच्चों को ही बढ़ावा ना दिया जाए बल्कि सभी प्रकार से कमजोर या पिछड़े बच्चों अनसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति(Scheduled Cast ) पर उचित ध्यान दिया जाए ताकि वह देश की मुख धारा में आकार वे भी अपनी योग्यताओं का विकास करे और देश की उन्नति में योगदान कर सके।

       प्रतिभाशाली( Genius) बच्चा जिस को सब कुछ आता हो और वह सब कुछ जल्दी जल्दी सीखता हो।
ऐसे बच्चों के लिए भी कोई अलग स्कूल नही होना चाहिए – तो इन सभी बच्चों को हमें एक ही स्कूल में पढ़ना होगा।

शैक्षिक संस्थान को देखना चाहिए समाज में इन सभी बच्चों को एक स्कूल में ही डालना चाहिए और ऐसा नही होना चाहिए की  बच्चों पर दबाव दे रहे हो की आप इस तरह सिखों। शिक्षा प्रणाली ( Education system )को बदलना चाहिए या Adjust करना चाहिए  की वो विकलांग बच्चों के लिए Spical Devise दे या Spical तरीका सोचे उन्हें सिखाने के लिए और अलग अलग तरीके से सिखाए और उन्हे अलग नही समझें Normal बच्चों से ।


समावेशी शिक्षा को मुख्यता 3 भागों में रखा गया है-

1. Physical Disability [शारीरिक, मानसिक विकलांग]
2. Learning Disability [अधिगम अक्षमता]
3. Children from: (1) Scheduled caste  [अनुसूचित जाति].  (2) Scheduled tribe [अनुसूचित जनजाति]. (3) Economilly weaker sections [निर्धन एवं पिछड़े वर्ग के बच्चे ]

 इन तीनों बिंदुओं में समावेशी शिक्षा को देखा जा सकता है।


समावेशी शिक्षा के उद्देश्य [Aims of inclusive Education] :-
                       
    समावेशी शिक्षा के मुख्य उद्देश्य निम्न हैं।

1. बच्चो में विशिष्ट बच्चो की पहचान करना और किसी भी प्रकार की असमर्थता का पता लगाकर उनको दूर करने की कोशिश करना।
2. विशिष्ट बच्चों को आत्म-निर्भर बनाकर उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ना।
 3. लोकतांत्रिक मूल्यों के उद्देश्यों को प्राप्त करना।
4. जागरूकता के भावना का विकास करना।
5. बच्चों में आत्म-निर्भरता की भावना का विकास करना आदि।


समावेशी शिक्षा का महत्व 

समावेशी शिक्षा का महत्व एवं आवश्यकता निम्न है–

• समावेशी शिक्षा प्रत्येक बच्चे के लिए उच्च और उचित उम्मीदों के साथ, उसकी व्यक्तिगत शक्तियों का
विकास करती है|
• समावेशी शिक्षा अन्य छात्रों को अपनी उम्र के साथ कक्षा के जीवन में भाग लेने और व्यक्तिगत लक्ष्यों पर काम करने हेतु अभिप्रेरित करती है|
• समावेशी शिक्षा बच्चों को उनके शिक्षा के क्षेत्र में और उनके स्थानीय स्कूलों की गतिविधियों में उनके माता-पिता को भी शामिल करने की वकालत करती है|
• समावेशी शिक्षा सम्मान और अपनेपन की स्कूल संस्कृति के साथ-साथ व्यक्तिगत मतभेदों को स्वीकार करने के लिए भी अवसर प्रदान करती है|
• समावेशी शिक्षा अन्य बच्चों, अपने स्वयं के व्यक्तिगत आवश्यकताओं और क्षमताओं के साथ प्रत्येक का एक व्यापक विविधता के साथ दोस्ती का विकास करने की क्षमता विकसित करती है|

इसप्रकार कुल मिलाकर यह समावेशी शिक्षा समाज के सभी बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने की बात का समर्थन करती है| यह सही मायने में सर्व शिक्षा जैसे शब्दों का हीं रूपान्तरित रुप है जिसके कई उद्देश्यों में से एक उद्देश्य है ‘विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की शिक्षा’| लेकिन दुर्भाग्यवश हम सब इसके विस्तृत अर्थ को पूर्ण तरीके से समझने की कोशिश न करते हुए, इस समावेशी शिक्षा का अर्थ प्रमुखता से केवल ‘विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की शिक्षा’ से हीं लगाते हैं, जो कि सर्वथा हीं अनुचित जान पड़ता है, क्योंकि समावेशी शिक्षा का एक उद्देश्य तो ‘विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की शिक्षा’ से हो सकता है, लेकिन इसका संपूर्ण उद्देश्य ‘विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की शिक्षा’ कदापि भी नहीं हो सकता है|

विद्यालयी शिक्षा और उसके परिसर में समावेशी शिक्षा के कुछ तरीके निम्न हो सकते हैं –

• स्कूल के वातावरण में सुधार:- स्कूल का वातावरण किसी भी प्रकार की शिक्षा में बड़ा हीं योगदान रखता है| यह कई चीजों की शिक्षा बच्चों को बिना सीखाए भी दे देता है| अतः समावेशी शिक्षा हेतु सर्वप्रथम उचित तथा मनमोहक स्कूल भवन का प्रबंध जरूरी है| इसके अलावे स्कूलों में आवश्यक साज-सामान तथा शैक्षिक सहायताओं का भी समुचित प्रबंध जरूरी है| बिना इसके विद्यालय में समावेशी माहौल बनाना थोड़ा कठिन होगा|


  • दाखिले की नीति में परिवर्तन:- रामलाल जी पेशे से किसान हैं, वे अपने बेटे महेंद्र (उम्र आठ साल) के साथ दिल्ली के एक स्कूल में नामांकन के लिए जाते है| सामान्य विद्यालय उसे नामांकन से इंकार कर देते है और उसे अंधे बालकों के लिए संचालित विशेष स्कूल में जाने की सलाह देते हैं, क्योंकि वह चीजों को स्पष्ट रुप से नहीं देख पाता है| अगले दिन रामलाल जब अपने बेटे महेंद्र के साथ अंधे बालकों के लिए संचालित विशेष स्कूल में नामांकन हेतु जाते हैं, तो वह विद्यालय भी उसके नामांकन से इंकार कर देता है, क्योंकि वह आंशिक रुप से देख सकता था| यह समस्या केवल रामलाल की हीं नहीं वरन उन करोड़ों माता-पिता की है, जिनके बच्चे महेंद्र की तरह है|
  • समाज से इस तरह की कुरीतीयो को हटाने और समावेशी शिक्षा के मुख्य उद्देश्यों को आम जन तक पहुँचाने हेतु विद्यालय के दाखिले की नीति में भी परिवर्तन किया जाना चाहिए| हालाँकि कुछ कानून इसकी वकालत करते हुए दिखाई दे भी रहे हैं, लेकिन धरातल पर इसकी वास्तविकता में संदेह प्रतीत होता है|
  • रुचिपूर्ण एवं विभिन्न पाठ्यक्रम का निर्धारण:- किसी विद्वान ने सच हीं कहा है कि “बच्चों को शिक्षित करने का सबसे असरदार ढंग है कि उन्हें प्यारी चीजों के बीच खेलने दिया जाए|” अतः सभी विद्यालयी बच्चों में समावेशी शिक्षा की ज्योति जलाने हेतु इस बात की भी नितांत आवश्यकता है कि उन्हें रुचियों के अनुसार संगठित किया जाए और पाठ्यक्रम का निर्माण उनकी अभिवृतियों, मनोवृतियों, आकांक्षाओं तथा क्षमताओं के अनुकूल किया जाए| इसके संबंध में विभिन्न शिक्षा आयोगों के सुझावों को भी प्रमुखता से लेने की आवश्यकता है जो इस बात पर जोड़ देता है कि पाठ्यक्रम में विभिन्नता हो तथा वह पर्याप्त लचीला हो ताकि उसे छात्रों की आवश्यकताओं, क्षमताओं तथा रुचियों के अनुकूल किया जा सके, छात्रों में विभिन्न योग्यताओं, क्षमताओं का विकास हो सके, पाठ्यक्रम का संबंध सामाजिक जीवन से हो, छात्रों को कार्य करने तथा समय का सदुपयोग करने की शिक्षा प्राप्त हो सके|
  • प्रावैगिक विधियों का प्रयोग:- शिक्षा को लेकर स्वतंत्र भारत के लगभग सभी शिक्षा आयोगों ने शिक्षण में प्रावैगिक विधियों के अधिकाधिक प्रयोग की सिफारिश की है, परन्तु इसका वास्तविक प्रयोग न के बराबर हुआ है| इसके जबर्दस्त परिणाम इस रुप में सामने आ रहे हैं कि दिन-ब-दिन विद्यालयों का स्तर गिरता हीं जा रहा है| अतः आज आवश्यकता इस बात की है कि समावेशी शिक्षा हेतु शिक्षकों को इसकी नवीन विधियों का ज्ञान करवाया जाए तथा उनके प्रयोग पर बल दिया जाए|समावेशी शिक्षा के लिए विद्यालय के शिक्षकों को समय-समय पर विशेष प्रशिक्षण-विद्यालयों में भी भेजे जाने की नितांत आवश्यकता है|

  • स्कूलों को सामुदायिक जीवन का केन्द्र बनाया जाए:- समावेशी शिक्षा हेतु यह प्रयास भी किया जाना चाहिए कि स्कूलों को सामुदायिक जीवन का केन्द्र बनाया जाए ताकि वहाँ छात्र की सामुदायिक जीवन की भावना को बल मिले, जिससे वे सफल एवं योग्यतम सामजिक जीवन यापन कर सकें| इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु समय-समय पर विद्यालयों में वाद-विवाद, खेल-कूद तथा देशाटन जैसे मनोरंजक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए|
  • विद्यालयी शिक्षा में नई तकनीक का प्रयोग:- समावेशी शिक्षा के सफल क्रियान्वयन व प्रचार-प्रसार हेतु शिक्षा में नई तकनीक को भी तरजीह देने की अति आवश्यकता है| इनमें शिक्षाप्रद फ़िल्में, टी.वी कार्यक्रम, व्याख्यान, वी.सी.आर और कंप्यूटर जैसे उपकरणों को प्राथमिकता के आधार पर विद्यालय में उपलब्धता और प्रयोग में लाए जाने के क्रांति की आवश्यकता है| इससे भी विद्यालय में समावेशी शिक्षा को लागू करने में मदद मिलेगी।
  • मार्गदर्शन एवं समुपदेशन की व्यवस्था:- भारतीय विद्यालयों में समावेशी शिक्षा के पूर्णतया लागू न होने के कई कारणों में से एक कारण विद्यालय में मार्गदर्शन एवं समुपदेशन की व्यवस्था का न होना भी है| इसके अभाव में विद्यालय में समावेशी वातावरण का निर्माण नहीं हो पाता है| अतः समावेशी शिक्षा देने के तरीकों में यह भी होना चाहिए कि विद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों और उनके अभिभावकों हेतु आदि से अंत तक सुप्रशिक्षित, योग्य एवं अनुभवी व्यक्तियों द्वारा मार्गदर्शन एवं परामर्श प्रदान करने की व्यवस्था होनी चाहिए|


अस्तु, समावेशी शिक्षा का उद्देश्य सभी छात्रों के ज्ञान, कौशल, में आत्मनिर्भर बनाते हुए उन्हें भारतीय समुदायों और कार्यस्थलों में योगदान करने के लिए तैयार करना होना चाहिए, किन्तु भारतीय स्कूलों की विविध पृष्ठभूमि और क्षमताओं के साथ छात्रों को शिक्षा की मुख्यधारा में जोड़ने के रूप में समावेशी शिक्षा केंद्रीय उद्देश्य अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाता है, लेकिन हम इन चुनौतियों का मुकाबला शिक्षकों के सहयोग, माता पिता के प्रयास, और समुदाय से मिलकर करने हेतु प्रयत्नशील है|

धन्यवाद।

             
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समावेशी शिक्षा( Inclusive education)


समावेशी शिक्षा ( Inclusive education)

 एक शिक्षा प्रणाली है। शिक्षा का समावेशीकरण यह बताता है कि विशेष शैक्षणिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक सामान्य छात्र और एक दिव्यांग को समान शिक्षा प्राप्ति के अवसर मिलने चाहिए। इसमें एक सामान्य छात्र एक दिव्याग छात्र के साथ विद्यालय में अधिकतर समय बिताता है। पहले समावेशी शिक्षा की परिकल्पना सिर्फ विशेष छात्रों के लिए की गई थी लेकिन आधुनिक काल में हर शिक्षक को इस सिद्धांत को विस्तृत दृष्टिकोण में अपनी कक्षा में व्यवहार में लाना चाहिए।

समावेशी शिक्षा या एकीकरण के सिद्धांत की ऐतिहासक जड़ें कनाडा और अमेरिका से जुड़ीं हैं। प्राचीन शिक्षा पद्धति की जगह नई शिक्षा नीति का प्रयोग आधुनिक समय में होने लगा है। समावेशी शिक्षा विशेष विद्यालय या कक्षा को स्वीकार नहीं करता। अशक्त बच्चों को सामान्य बच्चों से अलग करना अब मान्य नहीं है। विकलांग बच्चों को भी सामान्य बच्चों की तरह ही शैक्षिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार है।

=== पूर्णत: समावेशी विद्यालय तथा सामान्य/विशेष शैक्षिकनीतिया


समावेशी शिक्षा के सिद्धांत

सिद्धांत, सिद्धि का अंत है। यह वह धारणा है जिसे सिद्ध करने के लिए, जो कुछ हमें करना था वह हो चुका है और अब स्थिर मत अपनाने का समय आ गया है। धर्म, विज्ञान, दर्शन, नीति, राजनीति सभी सिद्धांत की अपेक्षा करते हैं।



परिचय

धर्म के संबंध में हम समझते हैं कि बुद्धि, अब आगे आ नहीं सकती; शंका का स्थान विश्वास को लेना चाहिए। विज्ञान में समझते हैं कि जो खोज हो चुकी है, वह वर्तमान स्थिति में पर्याप्त है। इसे आगे चलाने की आवश्यकता नहीं। प्रतिष्ठा की अवस्था को हम पीछे छोड़ आए हैं और सिद्ध नियम के आविष्कार की संभावना दिखाई नहीं देती। दर्शन का काम समस्त अनुभव को गठित करना है; दार्शनिक सिद्धांत समग्र का समाधान है। अनुभव से परे, इसका आधार कोई सत्ता है या नहीं? यदि है, तो वह चेतन के अवचेतन, एक है या अनेक? ऐसे प्रश्न दार्शनिक विवेचन के विषय हैं।

विज्ञान और दर्शन में ज्ञान प्रधान है, इसका प्रयोजन सत्ता के स्वरूप का जानना है। नीति और राजनीति में कर्म प्रधान है। इनका लक्ष्य शुभ या भद्र का उत्पन्न करना है। इन दोनों में सिद्धांत ऐसी मान्यता है जिसे व्यवहार का आधार बनाना चाहिए।

धर्म के संबंध में तीन प्रमुख मान्यताएँ हैं-

1. ईश्वर का अस्तित्व, स्वाधीनता, अमरत्व। कांट के अनुसार बुद्धि का काम प्रकटनों की दुनियाँ में सीमित है, यह इन मान्यताओं को सिद्ध नहीं कर सकती, न ही इनका खंडन कर सकती है। कृत्य बुद्धि इनकी माँग करती है; इन्हें नीति में निहित समझकर स्वीकार करना चाहिए।

2. विज्ञान का काम "क्या', "कैसे', "क्यों'-इन तीन प्रश्नों का उत्तर देना है। तीसरे प्रश्न का उत्तर तथ्यों का अनुसंधान है और यह बदलता रहता है। दर्शन अनुभव का समाधान है। अनुभव का स्रोत क्या है? अनुभववाद के अनुसार सारा ज्ञान बाहर से प्राप्त होता है, बुद्धिवाद के अनुसार यह अंदर से निकलता है, आलोचनावाद के अनुसार ज्ञान सामग्री  सामग्री प्राप्त होती है, इसकी आकृति मन की देन है।

3. नीति में प्रमुख प्रश्न नि:श्रेयस का स्वरूप है। नैतिक विवाद बहुत कुछ भोग के संबंध में है। भोगवादी सुख की अनुभूति को जीवन का लक्ष्य समझते हैं; दूसरी ओर कठ उपनिषद् के अनुसार श्रेय और प्रेय दो सर्वथा भिन्न वस्तुएँ हैं।

राजनीति राष्ट्र की सामूहिक नीति है। नीति और राजनीति दोनों का लक्ष्य मानव का कल्याण है;श् नीति बताती है कि इसके लिए सामूहिक यत्न को क्या रूप धारण करना चाहिए। एक विचार के अनुसार मानव जाति का इतिहास स्वाधीनता संग्राम की कथा है और राष्ट्र का लक्ष्य यही होना चाहिए कि व्यक्ति को जितनी स्वाधीनता दी जा सके, दी जाए। यह प्रजातंत्र का मत है। इसके विपरीत एक-दूसरे विचार के अनुसार सामाजिक जीवन की सबसे बड़ी खराबी व्यक्तियों में स्थिति का अंतर है; इस भेद को समाप्त करना राष्ट्र का लक्ष्य है। कठिनाई यह है कि स्वाधीनता और बराबरी दोनों एक साथ नहीं चलतीं। संसार का वर्तमान खिंचाव इन दोनों का संग्राम ही है।


समावेशी कक्षाओं की सामान्य प्रथाएँ

साधारणतः छात्र एक कक्षा में अपनी आयु के हिसाब से रखे जाते हैं चाहे उनका अकादमिक स्तर ऊँचा या नीचा ही क्यों न हो। शिक्षक सामान्य और विकलांग सभी बच्चों से एक जैसा बर्ताव करते हैं। अशक्त बच्चों की मित्रता अक्सर सामान्य बच्चों के साथ करवाई जाती है ताकि ऐसे ही समूह समुदाय बनता है। यह दिखाया जाता है कि एक समूह दूसरे समूह से श्रेष्ठ नहीं है। ऐसे बर्ताव से सहयोग की भावना बढती है।


शिक्षक कक्षा में सहयोग की भावना बढ़ाने के लिए कुछ तरीकों का उपयोग करते हैं

  1. समुदाय भावना को बढ़ाने के लिए खेलों का आयोजन
  2. विद्यार्थियों को समस्या के समाधान में शामिल करना
  3. किताबों और गीतों का आदान-प्रदान
  4. सम्बंधित विचारों का कक्षा में आदान-प्रदान
  5. छात्रों में समुदाय की भावना बढ़ाने के लिए कार्यक्रम तैयार करना
  6. छात्रों को शिक्षक की भूमिका निभाने का अवसर देना
  7. विभिन्न क्रियाकलापों के लिए छात्रों का दल बनाना
  8. प्रिय वातावरण का निर्माण करना
  9. बच्चों के लिए लक्ष्य-निर्धारण
  10. अभिभावकों का सहयोग लेना
  11. विशेष प्रशिक्षित शिक्षकों की सेवा लेना



दल शिक्षण पद्धति द्वारा सामान्यतः व्यवहार में आने वाली समावेशी प्रथाएँ


  1. एक शिक्षा, एक सहयोग—इस मॉडल में एक शिक्षक शिक्षा देता है और दूसरा प्रशिक्षित शिक्षक विशेष छात्र की आवश्यकताओं को और कक्षा को सुव्यवस्थित रखने में सहयोग करता है। 
  2. एक शिक्षा एक निरीक्षण – एक शिक्षा देता है दूसरा छात्रों का निरीक्षण करता है।
  3. स्थिर और घूर्णन शिक्षा — इसमें कक्षा को अनेक भागों में बाँटा जाता है। मुख्य शिक्षक शिक्षण कार्य करता है दूसरा विशेष शिक्षक दूसरे दलों पर इसी की जाँच करता है।
  4. समान्तर शिक्षा – इसमें आधी कक्षा को मुख्य शिक्षक तथा आधी को विशिष्ट शिक्षा प्राप्त शिक्षक शिक्षा देता है। दोनों समूहों को एक जैसा पाठ पढ़ाया जाता है।
  5. वैकल्पिक शिक्षा – मुख्य शिक्षक अधिक छात्रों को पाठ पढ़ाता है जबकि विशिष्ट शिक्षक छोटे समूह को दूसरा पाठ पढ़ाता है।
  6. समूह शिक्षा – यह पारंपरिक शिक्षा पद्धति है। दोनों शिक्षक योजना बनाकर शिक्षा देते हैं। यह काफ़ी सफल शिक्षण पद्धति है।



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ऑनलाइन सेवा

गोस्वामी कॉमन सर्विस सेंटर
Goswami Common Service Center

1. सभी प्रकार के ऑनलाइन आवेदन और LIC किस्त जमा किया जाता है
2. सभी प्रकार के ऑनलाइन बिल जमा किए जाते है
3. रूपए ट्रांसफर किए जाते है
4. पीएम किसान सम्मान निधि योजना ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन किया जाता है
5. सभी प्रकार से ऑनलाइन फॉर्म भरे जाते है।
6. ऑनलाइन एंप्लायमेंट रजिस्ट्रेशन किया जाता है
7. सभी प्रकार के ऑनलाइन फलेक्सी ओर रिचार्ज किए जाते है
8. कुमाऊं यूनिवर्सिटी की ऑनलाइन डिग्री, माइग्रेशन प्रमाण पत्र के लिए अप्लाई
9. कुमाऊं यूनिवर्सिटी ऑनलाइन एडमिशन
10. आरसीआई ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन
11. सीटेट / UTET ओर NET Exam k लिए अप्लाई
12. उत्तराखंड मुक्त विश्व विद्यालय की डिग्री के लिए अप्लाई
13. एग्जाम फॉर्म और बैक एग्जाम फॉर्म
14. ऑनलाइन एडमिशन फॉर्म
15.ऑनलाइन आधार कार्ड बनाने
16. ऑनलाइन स्कॉलरशिप का फॉर्म फिल
17.ऑनलाइन आरडी जमा करने
18.ऑनलाइन पेन कार्ड सेवा
19.ऑनलाइन लाइफ पेंशनर सर्टिफिकेट(जीवित प्रमाण पत्र)
20. ऑनलाइन मैरिज सर्टिफिकेट
21. ऑनलाइन पहचान पत्र बनवाना आदि।
22. PM श्रम योगी मानधन योजना : मासिक 55 रु जमा करने पर हर महीने मिलेंगे 3000 रु


💐💐कृपया सेवा का अवसर दे।🙏🏻🌷🌷
   
     
       
प्रोo - प्रकाश गोस्वामी ई-डिस्ट्रिक्ट उपयोगकर्ता
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Saturday, February 23, 2019

Introduction


नमस्कार 🙏 मित्रों,


 
    🌷🌷मेरे ब्लॉग्स में आप सभी मित्रों का स्वागत है।🌹🌹
     
        आज मै अपना ब्लॉग्स शुरू करने जा रहा हूं, मेरा नाम प्रकाश गोस्वामी हैं। मैं उत्तराखंड से बागेश्वर जिले के गरुड़ बिलोक से हूं, मुझे विश्वास है कि मैं आप लोगों के साथ अपने विचार साझा कर पाऊंगा और आप लोगों की समस्याओं का समाधान कर सकूंगा। दोस्तो मैंने मास्टर डिग्री इकोनॉमिक्स से 2015 में, U-SET एग्जाम 2017 में पास आउट किया तथा विशेष शिक्षा से एक स्पेशल एजुकेटर हूं, और मैंने कम्प्यूटर अकाउंटिंग, कम्प्यूटर हार्डवेयर नेटवर्किंग इंजीनियर का कोर्स भी किया है। मैं आपके सामने विशेष शिक्षा के साथ अन्य विचार भी रखूंगा। UGC NET Exam-2019 पास आउट किया है।

    दोस्तों मेरा ऑनलाइन गूगल बिज़नस भी है, जिसमें मैने जो भी कार्य करता हूं उसकी पोस्ट ऑनलाइन डाल देता हूं, इसके साथ ही मै ऑनलाइन डिजिटल सेवा पर भी अपनी सेवा देता ओर सभी प्रकार के ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कार्य करता हूं। किसी भी मित्र को आवश्यकता होगी तो मुझे एसएमएस किसी भी माध्यम से भेज सकता है मेरा सारे कॉन्टेक्ट नं ओर ईमेल आईडी नीचे दी गई है।

धन्यवाद   




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