Thursday, February 28, 2019

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (Right to Information Act, 2005)

सूचना का अधिकार अधिनियम, RTI Act Rules 2005 

सूचना का अधिकार अर्थात राईट टू इन्फाॅरमेशन जिससे आप किसी भी सरकारी ऑफिस में किसी भी सूचना को पा सकते हैं। RTI (Right to Information) को हिंदी में “सूचना का अधिकार” कहा जाता है। “सूचना का अधिकार” यानि RTI Act 2005 के तहत वे अधिकार है जो एक तरह से आम आदमी को शक्तिशाली बनाता है। इस अधिनियम के तहत कोई भी आम आदमी किसी भी सरकारी विभाग से किसी भी तरह की सूचना मांग सकता है।

RTI Act Rules 2005 (सूचना का अधिकार)

आरटीआई का पूरा रूप “सूचना का अधिकार” है जो कि ‘सूचना का अधिकार अधिनियम’ के रूप में जाना जाता है, जिससे कि हर भारतीय नागरिक को भारत सरकार के अधीन आने वाले किसी भी विभाग की जानकारी के बारे में जानने का मौलिक अधिकार मिल सके।

RTI वह है जिसमे constitution of section 19(1) के अंतर्गत एक मूलभूत अधिकार का दर्जा दिया गया है। इस section के अन्दर हर एक आम आदमी को बोलने की आज़ादी दी गई है। इस act के तहत सरकार कौन सी काम को कैसे करती है, क्यों करती है, इसका क्‍या योगदान है, आदि हर तरह की जानकारी दी जाती है । हर एक नागरिक टैक्स का भुगतान करता है इसलिए उसका ये पूरा अधिकार है की वो इस बात को जाने की उसके द्वारा pay किया हुआ टैक्स का use कैसे किया जा रहा है। इसलिए RTI act के तहत हर एक नागरिक को सरकार से सवाल करने की छुट दी गई है।

RTI Act Rules 2005 – सूचना का अधिकार के नियम

RTI Act का मुख्य उद्देश्य है सरकारी विभाग के काम पर पारदर्शिता लाना ताकि भ्रष्टाचार पर नियंत्रण किया जा सके। आइये जानते है RTI के तहत क्या क्या नियम बनाये गए है:-

RTI 2005 के मुताबिक ऐसी कोई भी जानकारी जो सरकार से जुड़ी हो जैसे की सरकारी स्कूल में अध्यापक अक्सर मौजूद ना हो, सरकारी अस्पताल में डॉक्टर मौजूद ना हो, सड़को की हालत खराब हों, कोई अफसर काम के लिए रिश्वत मांग रहा हो, प्रधानमत्री का खर्च, राष्ट्रपति भवन का खर्च आदि तो आप RTI के तहत इसकी सूचनाएं पा सकते हैं।

केवल भारतीय लोग ही इस अधिनियम का फायदा ले सकता हैं। इस act में निगम, संघ, कंपनी वैगेरा अपनी सूचना नहीं दे सकते हैं। यदि इसके कर्मचारीयों को किसी भी तरह की सूचना चाहिए तो उन्हें अपने नाम से सूचना मंगनी होगी ना की अपने कंपनी के नाम से।

हर एक सरकारी विभाग में एक या एक से अधिक अधिकारियों को जन सूचना अधिकारी के रूप में नियुक्ति किया गया है। आम आदमी की तरफ से मांगी गई सूचनाओं को समय पर उपलब्ध कराना इन अधिकारियों का काम होता है। जनता अपनी जानकारी किसी भी रूप में मांग सकती है जैसे की डिस्क, टेप, विडियो, लैटर आदि। लेकिन मांगी गई जानकारी उस रूप में पहले से मौजूद होनी चाहिए।

RTI से सूचना लेने के लिए निश्चित फीस 10 रूपये रखा गई है। यदि आप BPL परिवार से है तो आपको एक भी पैसा नहीं लगेगा बस आपको अपने दस्तावेजों की फोटोकॉपी को एक आवेदन के साथ देनी होगी।

सूचना प्राप्त करने का शुल्क नकद, माँग ड्रॉफ्ट या फिर पोस्टल आर्डर द्वारा दिया जा सकता है। माँग ड्रॉफ्ट या फिर पोस्टल आर्डर विभाग के खाता अधिकारी के नाम भेजा जाता है।

RTI के अंतर्गत मांगी गयी सूचना को आप तक पहुँचाने के लिए 30 दिन का नियत समय दिया जाता है। यदि सूचना पहुँचने में 30 दिन से ज्यादा लेट हो तो आप केन्‍द्रीय सूचना आयोग से अपील भी कर सकते है।

30 दिन से ज्यादा समय हो जाने के बाद यदि आपसे दोबारा शुल्क और दस्तावेजों की फोटोकॉपी की मांग की जाये तो आप उसके लिए भी अपील करें क्योकि 30 दिन के बाद आपको बिना शुल्क के सारी सूचना दी जानी है।


RTI के दायरे में आने वाले इन सभी विभागो से आप सूचना ले सकते है:-
  • राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, राज्यपाल और मुख्यमंत्री के दफ्तर
  • संसद और विधानसभा
  • निर्वाचन आयोग
  • अदालतों
  • सरकारी कार्यालय
  • सरकारी बैंक
  • सभी सरकारी अस्पतालों
  • पुलिस विभाग
  • बीएसएनएल
  • सरकारी स्कूल और कॉलेज
  • विद्युत बोर्ड आदि

सूचना का अधिकार अर्थात राईट टू इन्फाॅरमेशन। सूचना का अधिकार का तात्पर्य है, सूचना पाने का अधिकार, जो सूचना अधिकार कानून लागू करने वाला राष्ट्र अपने नागरिकों को प्रदान करता है। सूचना अधिकार के द्वारा राष्ट्र अपने नागरिकों को अपनी कार्य और शासन प्रणाली को सार्वजनिक करता है।


अंग्रज़ों ने भारत पर लगभग 250 वर्षो तक शासन किया और इस दौरान ब्रिटिश सरकार ने भारत में शासकीय गोपनीयता अधिनियम 1923 बनया, जिसके अन्तर्गत सरकार को यह अधिकर हो गया कि वह किसी भी सूचना को गोपनीय कर सकेगी।

3 दिसम्बर 1989 को अपने पहले संदेश में तत्कालीन प्रधानमंत्री बीपी सिंह ने संविधान में संशोधन करके सूचना का अधिकार कानून बनाने तथा शासकीय गोपनीयता अधिनियम में संशोधन करने की घोषणा की। किन्तु बीपी ंिसह की सरकार तमाम कोशिसे करने के बावजूद भी इसे लागू नहीं कर सकी और यह सरकार भी ज्यादा दिन तक न टिक सकी।



इसके अन्तर्गत निम्नलिखित बिन्दु आते है-

1. कार्यो, दस्तावेजों, रिकार्डो का निरीक्षण।
2. दस्तावेज या रिकार्डो की प्रस्तावना। सारांश, नोट्स व प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करना। 
3. सामग्री के प्रमाणित नमूने लेना। 
4. प्रिंट आउट, डिस्क, फ्लाॅपी, टेप, वीडियो कैसेटो के रूप में या कोई अन्य इलेक्ट्रानिक रूप में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। सूचना का अधिकार अधिनियम् 2005 के प्रमुख प्रावधानः 
5- समस्त सरकारी विभाग, पब्लिक सेक्टर यूनिट, किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता से चल रहीं गैर सरकारी संस्थाएं व शिक्षण संस्थान आदि विभाग इसमें शामिल हैं। पूर्णतः से निजी संस्थाएं इस कानून के दायरे में नहीं हैं लेकिन यदि किसी कानून के तहत कोई सरकारी विभाग किसी निजी संस्था से कोई जानकारी मांग सकता है तो उस विभाग के माध्यम से वह सूचना मांगी जा सकती है। 
6- प्रत्येक सरकारी विभाग में एक या एक से अधिक जनसूचना अधिकारी बनाए गए हैं, जो सूचना के अधिकार के तहत आवेदन स्वीकार करते हैं, मांगी गई सूचनाएं एकत्र करते हैं और उसे आवेदनकर्ता को उपलब्ध कराते हैं। 
7- जनसूचना अधिकारी की दायित्व है कि वह 30 दिन अथवा जीवन व स्वतंत्रता के मामले में 48 घण्टे के अन्दर (कुछ मामलों में 45 दिन तक) मांगी गई सूचना उपलब्ध कराए। 
8- यदि जनसूचना अधिकारी आवेदन लेने से मना करता है, तय समय सीमा में सूचना नहीं उपलब्ध् कराता है अथवा गलत या भ्रामक जानकारी देता है तो देरी के लिए 250 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से 25000 तक का जुर्माना उसके वेतन में से काटा जा सकता है। साथ ही उसे सूचना भी देनी होगी। 
9- लोक सूचना अधिकारी को अधिकार नहीं है कि वह आपसे सूचना मांगने का कारण नहीं पूछ सकता। 
10- सूचना मांगने के लिए आवेदन फीस देनी होगी (केन्द्र सरकार ने आवेदन के साथ 10 रुपए की फीस तय की है। लेकिन कुछ राज्यों में यह अधिक है, बीपीएल कार्डधरकों को आवेदन शुल्क में छुट प्राप्त है। 
11- दस्तावेजों की प्रति लेने के लिए भी फीस देनी होगी। केन्द्र सरकार ने यह फीस 2 रुपए प्रति पृष्ठ रखी है लेकिन कुछ राज्यों में यह अधिक है, अगर सूचना तय समय सीमा में नहीं उपलब्ध कराई गई है तो सूचना मुफ्त दी जायेगी। 
12- यदि कोई लोक सूचना अधिकारी यह समझता है कि मांगी गई सूचना उसके विभाग से सम्बंधित नहीं है तो यह उसका कर्तव्य है कि उस आवेदन को पांच दिन के अन्दर सम्बंधित विभाग को भेजे और आवेदक को भी सूचित करे। ऐसी स्थिति में सूचना मिलने की समय सीमा 30 की जगह 35 दिन होगी।
13- लोक सूचना अधिकारी यदि आवेदन लेने से इंकार करता है। अथवा परेशान करता है। तो उसकी शिकायत सीधे सूचना आयोग से की जा सकती है। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचनाओं को अस्वीकार करने, अपूर्ण, भ्रम में डालने वाली या गलत सूचना देने अथवा सूचना के लिए अधिक फीस मांगने के खिलाफ केन्द्रीय या राज्य सूचना आयोग के पास शिकायत कर सकते है।
14- जनसूचना अधिकारी कुछ मामलों में सूचना देने से मना कर सकता है। जिन मामलों से सम्बंधित सूचना नहीं दी जा सकती उनका विवरण सूचना के अधिकार कानून की धारा 8 में दिया गया है। लेकिन यदि मांगी गई सूचना जनहित में है तो धारा 8 में मना की गई सूचना भी दी जा सकती है। जो सूचना संसद या विधानसभा को देने से मना नहीं किया जा सकता उसे किसी आम आदमी को भी देने से मना नहीं किया जा सकता। 
15- यदि लोक सूचना अधिकारी निर्धारित समय-सीमा के भीतर सूचना नहीं देते है या धारा 8 का गलत इस्तेमाल करते हुए सूचना देने से मना करता है, या दी गई सूचना से सन्तुष्ट नहीं होने की स्थिति में 30 दिनों के भीतर सम्बंधित जनसूचना अधिकारी के वरिष्ठ अधिकारी यानि प्रथम अपील अधिकारी के समक्ष प्रथम अपील की जा सकती है। 
16- यदि आप प्रथम अपील से भी सन्तुष्ट नहीं हैं तो दूसरी अपील 60 दिनों के भीतर केन्द्रीय या राज्य सूचना आयोग (जिससे सम्बंधित हो) के पास करनी होती है। विश्व पांच देशों के सूचना के अधिकार का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए पांच देशों स्वीडन, कनाडा, फ्रांस, मैक्सिको तथा भारत का चयन किया गया और इन देशों के कानून, लागू किए वर्ष, शुल्क, सूचना देने की समयावधि, अपील या शिकायत प्राधिकारी, जारी करने का माध्यम, प्रतिबन्धित करने का माध्यम आदि का तुलना सारणी के माध्यम से किया गया है।

देश स्वीडन, कनाडा, फ्रांस, मैक्सिको, भारत कानून संविधान कानून द्वारा संविधान संविधान कानून द्वारा लागू वर्ष 1766 1982 1978 2002 2005 शुल्क निशुल्क निशुल्क निशुल्क निशुल्क शुल्क द्वारा सूचना देने की समयावधि तत्काल 15 दिन 1 माह 20 दिन 1 माह या (जीवन व स्वतंत्रता के मामले में 48 घण्टा) अपील/ शिकायत प्राधिकारी न्यायालय सूचना आयुक्त संवैधानिक अधिकारी द नेशन कमीशन आॅफ ऐक्सेस टू पब्लिक इन्फाॅरर्मेशन विभागीय स्तर पर प्रथम अपीलीय अधिकारी अथवा सूचना आयुक्त/मुख्य सूचना आयुक्त केन्द्रीय या राज्य स्तर पर। जारी करने का माध्यम कोई भी कोई भी किसी भी रूप में इलेक्ट्रानिक रूप में सार्वजनिक आॅफलाईन एवं आनलाईन प्रतिबन्धित सूचना गोपनीयता एवं पब्लिक रिकार्ड एक्ट 2002 सुरक्षा एवं अन्य देशों से सम्बन्धित सूचनाएँ मैनेजमंट आॅफ गवर्नमेण्ट इन्फाॅरमेशन होल्डिंग 2003 डाटा प्रोटेक्शन एक्ट 1978 ऐसी सूचना जिससे देश का राष्ट्रीय, आंतरिक व बाह्य सुरक्षा तथा अधिनियम की धारा 8 से सम्बन्धित सूचनाएँ।

विश्व में सबसे पहले स्वीडन ने सूचना का अधिकार कानून 1766 में लागू किया, जबकि कनाडा ने 1982, फ्रांस ने 1978, मैक्सिको ने 2002 तथा भारत ने 2005 में लागू किया। 

1- विश्व में स्वीडन पहला ऐसा देश है, जिसके संविधान में सूचना की स्वतंत्रता प्रदान की है, इस मामले में कनाडा, फ्रांस, मैक्सिको तथा भारत क संविधान उतनी आज़ादी प्रदान नहीं करता। जबकि स्वीडन के संविधान ने 250 वर्ष पूर्व सूचना की स्वतंत्रता की वकालत की है। 

2- सूचना मांगन वाले को सूचना प्रदान करने की प्रक्रिया स्वीडन, कनाडा, फ्रांस, मैक्सिको तथा भारत में अलग-अलग है जिसमें स्वीडन सूचना मांगने वाले को तत्काल और निशल्क सूचना देने का प्रावधान है। 

3- सूचना प्रदान करने लिए फ्रांस और भारत में 1 माह का समय निर्धारित किया गया है, हालांकि भारत ने जीवन और स्वतंत्रता के मामले में 48 घण्टे का समय दिया गया है, किन्तु स्वीडन अपने नागरिकों को तत्काल सूचना उपलब्ध कराता है, जबकि कनाडा 15 दिन तथा मैक्सिको 20 दिन में सूचना प्रदान कर देता है। 

4- सूचना न मिलने पर अपील प्रक्रिया भी लगभग एक ही समान है। स्वीडन में सूचना न मिलने पर न्यायालय में जाया जाता है। कनाडा तथा भारत में सूचना आयुक्त जबकि फ्रांस में संवैधानिक अधिकारी एवं मैक्सिको में ’द नेशनल आॅन एक्सेस टू पब्लिक इनफाॅरमेशन’ अपील और शिकयतों का निपटारा करता है।

5- स्वीडन किसी भी माध्यम द्वारा तत्काल सूचना उपलब्ध कराता है जिनमें वेबसाइट पर भी सूचना जारी किया जाती है। कनाडा और फ्रांस अपने नागरिकों को किसी भी रूप में सूचना दे सकता है, जबकि मैक्सिको इलेक्ट्राॅनिक रूप से सूचनाओं का सार्वजनिक करता है तथा भारत प्रति व्यक्ति को सूचना उपलब्ध कराता है। 

6- गोपनीयता के मामले में स्वीडन ने गोपनीयता एवं पब्लिक रिकार्ड एक्ट 2002, कनाडा ने सुरक्षा एवं अन्य देशों से सम्बन्धित सूचनाएँ मैनेजमंट आॅफ गवर्नमेण्ट इन्फाॅरमेशन होल्डिंग 2003, फ्रांस ने डाटा प्रोटेक्शन एक्ट 1978 तथा भारत ने राष्ट्रीय, आंतरिक व बाह्य सुरक्षा तथा अधिनियम की धारा 8 में उल्लिखित प्रावधानों से सम्बन्धित सूचनाएँ देने पर रोक है।


दोस्तों आपको यह आर्टिकल कैसा लगा हमें जरुर बताये. आप अपनी राय, सवाल और सुझाव हमें comments के जरिये जरुर भेजे. अगर आपको यह आर्टिकल उपयोगी लगा हो तो कृपया इसे share करे। 
आप E-mail के द्वारा भी अपना सुझाव दे सकते हैं।  prakashgoswami03@gmail.com

1 comment: