Wednesday, February 27, 2019

बौद्धिक क्षमता/मानसिक मंदित बालक का अर्थ, परिभाषा, वर्गीकरण एवं कारण, समस्या तथा इसके रोकथाम के उपाय क्या है।

अर्थ एवं परिभाषा

मानसिक मंदित औसत से निम्न मासिक कार्यक्षमता का उल्लेख करती है। इसलिए मासिक मंदिता से अभिप्राय मानसिक वृद्धि एवं विकास की गति की न्यूनता से है। मानसिक मंदिता बोल बच्चों की बुद्धिलब्धि, साधारण बालकों की बुद्धिलब्धि से कम होती है।

‘‘मानसिक मंदित से तात्पर्य उस असामान्य साधारण बौथ्द्धक कार्यक्षमता से है जो व्यक्ति की विकासात्मक अवस्थाओं में प्रकट होती है तथा उसके अनुकूल व्यवहार से सम्बंधित होती है।’’

   1. जे.डी. पेज (J.D. Page, 1976) के अनुसार :- 

‘‘मानसिक न्यूनता या मंदन व्यक्ति में जन्म के समय या बचपन के प्रारंभ के वर्षों में पायी जाने वाली सामान्य से कम मानसिक विकास की ऐसी अवस्था है जो उसमें बुद्धि सम्बन्धी कमी तथा सामाजिक अक्षमता के लिए उत्तरदायी होती है।’’

   2. ब्रिटिश मेण्टल डैफिशियेन्सी एक्ट के अनुसार :-

 ‘‘मानसिक मंदन 18 वर्ष से पहले आन्तरिक करणों की वजह से अथवा बीमारी या चोट के कारण पैदा हुई एक ऐसी स्थिति है, जिसमें व्यक्ति के मस्तिष्क का विकास या तो रूक जाता है या उसमें पूर्णता नहीं आ पाती।’’


  3. क्रो और क्रो के शब्दों में :-

 ‘‘जिन बालकों की बुद्धिलब्धि 70 से कम होती है, उन्हें मानसिक मंदित बालक कहते हैं।’’

इन परिभाषाओं के विश्लेषण के बाद का मानसिक मंदिता की निम्न प्रकार से व्याख्या कर सकते है :-

   1. मन्दबुद्धि बच्चों की बुद्धिलब्धि 70 या इससे कम होती है।
   2. वे समाज की मान्यताओं के अनुरूप व्यवहार करने में असमर्थ होते है तथा वे समाज के मल्यों व आदर्शों के अनुसार व्यवहार नहीं कर पाते।
   3.  मानसिक मंदित बालकों का शारीरिक, सामाजिक और संवेगात्मक विकास ठीक प्रकार से नहीं हो पाता तथा वे अधिक समय तक किसी विषयवस्तु पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर सकते है।
   4. मानसिक शक्तियों का विकास काल 18-19 वर्ष की आयु तक माना जाता है।
   5. औसत से बहुत कम बौद्धिक क्षमता के साथ-साथ मानसिक मंदन की एक पहचान यह भी है कि इसके शिकार बालक या किशोर अपने आपसे तथा अपने परिवेश से समायोजित होने में काफी कठिन या असमर्थता अनुभव करते है।

मानसिक मंदिता का वर्गीकरण

मानसिक मंदिता का वर्गीकरण तीन प्रकार से किया जा सकता है - चिकित्सकीय, मनोवैज्ञानिक तथा शैक्षणिक विधियों द्वारा चिकित्सकीय वर्गीकरण की अपेक्षा मनो-वैज्ञानिक व शैक्षणिक वर्गीकरण का प्रयोग सामान्यत: किया जाता है। चिकित्सकीय वर्गीकरण कारणों पर आधारित होता है। मनोवैज्ञानिक वर्गीकरण का आधार बुद्धि के स्तर पर तथा शैक्षणिक वर्गीकरण का आधार मानसिक मंदित बालक का वर्तमान क्रियात्मक स्तर होता है। शैक्षणिक वर्गीकरण जिसे अमेरिकी शिक्षाविदों द्वारा मौलिकता प्रदान की, उसे छब्त्ज् नई दिल्ली द्वारा भी मान्यता प्रदान की गयी है।

1. चिकित्सकीय वर्गीकरण 

   1. पोषण (Nutrition)
   2. ट्रोमा (सदमा) (Trauma)
   3. भयंकर दिमागी बीमारी पोषण (Gross Brain       Disease)
   4. जन्म से पहले के प्रभाव (Prental Influences)
   5. क्रोमोसोमो की असामान्यता (Chromosomal   Ahnarmality)
   6. भ्रूणावस्था या गर्भावस्था सम्बन्धी विकास   (Geslational Disorder)
   7. संक्रमण तथा उत्तेजना (Infections and   Intoxications)
   8. मनोवैज्ञानिक विकार (Physchiasric Disorder)
   9.  वातावरण का प्रभाव (Environmental   Influences)


2. मनोवैज्ञानिक वर्गीकरण I.Q. के आधार पर

    1. सामान्य (साधारण) मंदिता - I.Q. 50-70
    2. मध्यमवर्गीय मंदिता - I.Q. 35-49
    3. गंभीर मंदिता - I.Q. 20-34
    4. अतिगंभीर मंदिता - I.Q. Below

3. शैक्षणिक वर्गीकरण

    1. शिक्षित किये जाने वाले बालक - I.Q. 50-75
    3. प्रशिक्षित किये जाने वाले बालक - I.Q. 25-50
    4. प्रशिक्षित न किये जाने वाले बालक - I.Q. Below 25 यह विभिन्न प्रकार का वर्गीकरण मानसिक मंदित बच्चों की शिक्षा, उसके व्यवहार व स्वतंत्रता के स्तर के बारे में समझ के एक स्तर को विकसित करता है अर्थात् उनको समझने में सहायता करता है।


मानसिक मंदित के कारण

मानसिक मंदित के लिए कोई ऐसे सामान्य कारण निर्धारित करना सम्भव नहीं है। मानसिक मंदिता एक व्यक्तिगत समस्या हैं। अत: प्रत्येक मन्दबुद्धि बालक अपनी मन्दबुद्धि के लिए कुछ अपूर्ण कारण रखता है, मन्दबुद्धि बच्चों से सम्बंधित कारणों को अग्र तीन भागों में बाँटा जा सकता है :-

 1.  जन्म से पूर्व के कारण (Prinital Causes)
 2.  जन्म के समय के कारण (Perinatal Causes)
 3.  जन्म के बाद के कारण (Pornatal Causes)

1. जन्म से पूर्व के कारण


  •   आनुवांशिकी व दोषपूर्ण गुणसूत्र : - मानव शरीर में 23 जोड़े गुणसूत्र होते है। प्रत्येक व्यक्ति अपने माता-पिता से आधे गुणसूत्रों को ग्रहण करता है। मानसिक मंदिता माता या पिता अथवा दोनों के गुणसूत्रों में उपस्थित दोषपूर्ण पैतृकों के कारण पैदा हो सकती है। कुछ जैविक बीमारियों का वर्णन इस प्रकार है -


  1. डाउन्स सिण्ड्रोम :- इसे मंगोलिज्म के नाम से भी जाना जाता है। इस बीमारी में गुणसूत्रों का एक जोड़ा गर्भ धारण के समय अलग हो जाता है। फ्रांस के वैज्ञानिकों ने यह बता दिया कि व्यक्तियों के क्रोमोसोम्य (Chromosomes) के 21वें जोड़े में एक अतिरिक्त क्रोमोसोम होता है, जिससे इन लोगों में 46 की बजाय 47 क्रोमोसोम होते है। इन लोगों के चेहरे की बनावट मंगोलियन जाति के लोगों से मिलती-जुलती होती है, इसलिए इन्हें मंगोलिज्म कहा जाता है। इनका चेहरा गोल, नाक छोटी व चपटी, आँखें धंसी हुई, हाथ छोटे और मोटे तथा जीभ में एक दरार होती है।

   2. टर्नर सिण्ड्रोम :- इस मानसिक दुर्बलता का कारण यौन क्रोमोसोम (Sex chromosomes) में गड़बड़ी होती है। यह मानसिक दुर्बलता केवल बालिकाओं में ही पायी जाती है। इन बालिकाओं की गर्दन छोटी और झुकी हुई होती है। इस प्रकार के बच्चों मं अधिगम सम्बन्धी समस्याएँ सामान्यत: पायी जाती हैं, जिसमें श्रवण बाधिता भी शामिल है।

           Male           Female
            XY + 22          XO + 22
             ↓
           XO + 44


    3. क्लाईनफैल्टर सिण्ड्रोम:- इस प्रकार की दुर्बलता पुरूषों में एक अतिरिक्त क्रोमोस (XYZ) की उपस्थिति के कारण दिखाई देती है। इसका कारण भी यौन क्रोमोसोम्स में विसंगति का होा है। इस अतिरिक्त क्रोमोसोम्स को हम 47 गिनते है। इस दुर्बलता के कारण पुरूषों में सामान्यत: महिलाओं की विशेषताएँ विकसित होने लगती है।

          XX            XY
          ↓
          XYZ


  •  गर्भवती माता की जटिलताओं के कारण एक्स-रे करवाना पड़ता है तथा इन किरणों का शिशु के मानसिक विकास पर प्रभाव पड़ता है।
  •  गर्भ धारण के शुरूआती तीन महीनों में संक्रमण आदि पैदा होने के कारण भ्रूण के विकास पर प्रभाव पड़ सकता है। 
  •  गर्भवती माता द्वारा शराब, सिगरेट व नशीली दवाइयों का सेवन भी मानसिक मंदिता का कारण बन सकता है। 
  •   कम आयु में गर्भ धारण की मानसिक मंदिता का एक कारण है। कम आयु में गर्भवती होन से भ्रूण का विकास पूर्ण रूप से नहीं हो पाता है।


2. जन्म के समय के कारण 

     1. समय से पूर्व (24 हफ्तों और 34 हफ्तों के बीच जन्म) बच्चे का पैदा होना भी मानसिक मंदिता का एक कारण है।
     2. जन्म के समय शिशु का वजन कम होने के कारण बच्चे का मानसिक विकास कम हो जाता है। बद्ध जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी भी बच्चे में मानसिक मंदित पैदा करती है।
     3. ऑपरेशन के समय प्रयुक्त किये जाने वाले औजारों से कई बार शिशु के सिर पर घाव बन जाते है।
     4. एनीथिसिया और दर्द िवारकों का प्रयोग के समय करने से भी मानसिक मंदिता हो सकती है।

3. जन्म के बाद के कारण

    1. किसी दुर्घटना के फलस्वरूप मस्तिष्क या स्नायु संस्थान को आघात पहुँचने के कारण मानसिक मंदिता हो सकती है।
    2. जन्म के बाद बच्चे को सन्तुलित आहार और उचित पोषण न मिलने के कारण भी मानसिक मंदिता हो सकती है।
    3. बाल्यकाल में बच्चों को होने वाली बीमारियों, जैसे - जर्मन खसरा, ऐपीलैप्सी (मिरगी) आदि से भी मानसिक मंदिता हो सकती है।
    4. मेनिजारटिस एक दिगामी संक्रमण भी मानसिक मंदिता का एक मुख्य कारण है।


मानसिक मंदित बालकों की पहचान

मानसिक मंदित बालकों को शिक्षा प्रदान करने के लिए तथा गम्भीर मानसिक मंदित की रोकथाम के लिए यह आवश्यक है कि जल्दी से जल्दी मंदित बच्चों की पहचान की जाए। ऐसे बच्चों की पहचान करने के लिए अग्र विधियों का प्रयोग किया जा सकता है :-

   1. बच्चे के जन्म होते ही तुरन्त न रोना।
   2. बच्चे का विकास अन्य बच्चों की तुलना में धीमी गति से   हो रहा हो, अर्थात् देस से चलना, बैठना, बोलना, शुरू करना   आदि।
   3. किसी भी कार्य व कुशलता के धीमी गति से सीख पाना या बहुत अधिक समझाने पर ही समझ पाना।
   4. अपनी उम्र के अनुसार सामान्य कार्यों को (जैसे भोजन करना, बटन लगाा, कपड़े पहनना, समय देखना आदि) कुशलता से न कर पाना।
   5. भाषा का सही प्रयोग न कर पाना।
   6. पढ़ाई में पीछे रहना।
   7. अपनी उम्र के अन्य बच्चों के साथ घुल-मिल नहीं पाना।
   8. अपनी उम्र से कम उम्र के बच्चे की तरह व्यवहार करना।
   9. दैनिक कार्यों के लिए दूसरों पर निर्भर रहना।

उपरोक्त सभी बुद्धि परीक्षणों द्वारा मानसिक मंदित बच्चों की पहचान करने में बहुत सहायता मिलती है। इस प्रकार शिक्षा में नई-नई खोजों तथा परीक्षणों के द्वारा बालक की मंदबुद्धिता का पता लगातार इनकी शिक्षा का उचित प्रबंध करना चाहिए।

मानसिक मंदित बच्चों की विशेषताएँ

मानसिक मंदित बालक बहुत-सी बातों में सामान्य बच्चों जैसा व्यवहार करता है, परन्तु कुछ विशेषताएँ ऐसी है जो मानसिक मंदित बालकों को सामान्य बच्चों से अलग करती है। इन विशेषताओं को विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने भिन्न-भिन्न प्रकार से व्यक्त किया है। मन्दबुद्धि बच्चों की बौद्धिक व व्यक्तित्व सम्बंध विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है :-

1. बौद्धिक या मानसिक विशेषताएँ -

मंदित बच्चों को बौद्धिक विकास से सम्बंधित चार क्षेत्रों - अवधान, स्मृति, भाषा और शैक्षणिक स्तर आदि में विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

    1. अवधान की कमियाँ :-  एक बच्चा किसी भी कार्य को तभी कर सकता है जब वह उसे स्मरण कर सकता हो या सीख सकता हो। अनुसंधानकर्ताओं का यह मत है कि मानसिक मंदित बच्चों की बौद्धिक समस्याओं में सबसे महत्वपूर्ण समस्या अवधान की समस्या होती है।
  
    2. निम्न स्मृति स्तर :-  मासिक मंदित बच्चों की सीखने की गति धीमी होने के कारण ये क्रिया के बार-बार दोहराने के बाद ही कुछ सीख पाते हैं। इतना ही नहीं ये सीखकर पुन: भूल भी जाते हैं, इनकी प्रतिक्रिया गति भी धीमी होती है।

    3. भाषा विकास :-  इनका भाषा विकास निम्न होता है। भाषा विकास सीमित होने के कारण इस श्रेणी के बच्चों की शब्दावली अपूर्ण और दोषपूर्ण होती है। अत: इन बच्चों का भाषा व वणी विकास सामन्य बच्चों से निम्न होता है।

    4. निम्न शैक्षणिक उपलब्धि :-  शैक्षणिक बुद्धि व शैक्षणिक उपलब्धि सम्बन्धी सभी क्षेत्रों में यह बालक, सामान्य बच्चों से पीछे रहते हैं क्योंकि बुद्धि और उपलब्धि में गहरा सम्बन्ध है। इनकी अधिगम क्षमता सीखने या समझने की बजाय रहने पर आधारित होती है।

2. व्यक्तित्व संबंधी विशेषताएँ :- 

    1. सामाजिक और संवेगात्मक अनुपयुक्तता :- स्कूली शिक्षा कम होने के कारण वे बालक सामाजिक व संवेगात्मक रूप से स्वयं को समायोजित नहीं कर पाते। ये बालक संवेगात्मक रूप से अस्थिर होते हैं।

     2. अभिप्रेरणा की कमी :- मानसिक मंदित बच्चों में अभिप्रेरणा व प्रोत्साहन की कमी होती है। इनका झुकाव अनैतिकता और अपराध की ओर रहता है। इनमें आत्मविश्वास की कमी होती है। ये बालक स्वयं कार्य नहीं कर सकते लेकिन दूसरे के निर्देशन में ये कार्य कर लेते है।
 
     3. सीमित वैयक्तिक विभिन्नता :- मानसिक मंदित बच्चों में वैयक्तिक विभिन्नता सीमित होती है। वैयक्तिक विभिन्नता से अभिप्राय व्यक्तियों में किसी एक विशेषता या अनेक विशेषताओं को लेकर पाये जाने वाली भिन्नताएँ या अन्तर से है। विभिन्न अवसरों पर ये बालक विभिन्न प्रकार का व्यवहार प्रदर्शित करते है। बहुत-से मानसिक मंदित बालक रंगहीन होते है।
     4. शारीरिक हीनता :- मानसिक मंदित बच्चों का शरीर विकृत हो जाता है। शारीरिक रोगों का सामना करने की क्षमता कम होती है। मन्द बुद्धि बालक प्राय: शारीरिक रूप से बेडौल होते है, जैसे - नाक, कान, हाथ, पैर व पेट का विकृत होना। सामान्य बच्चों की तुलना में इनका शरीरिक विकास कम होता है, लेकिन यह आवश्यक नहीं कि जो बच्चा शारीरिक रूप से विकृत होगा वह बुद्धिहीन होगा।

     5. समायोजन समस्या :- मानसिक मंदित बच्चे स्वयं को असहाय व हीन भावना ग्रसित महसूस करते हैं। इन बच्चों को अपने परिवार तथा वातावरण सम्बन्धी विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है। मानसिक मंदित बच्चों में परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को समायोजित करने की क्षमता कम होती है।

     6. सृजनात्मक की कमी :- मानसिक मंदित बच्चों में सृजनात्मकता की भी कमी होती है। सीमित अवधान होने के कारण इन बच्चों की रूचि, अभिरूचि तथा अभिवृत्ति आदि क्षेत्रों में भी कमी होती है। मानसिक मंदित बच्चे किसी एक ही कार्य में अपनी रूचि का प्रदर्शन करने में सक्षम होते है। सृजनात्मक ये अभिप्राय किसी नई वस्तु के सृजन से होता है तथा मानसिक मंदित बच्चों में अभूर्त चिन्तन का अभाव पाया जाता है।


मानसिक मंदित बच्चों की समस्याएँ

  मानसिक मंद बच्चों की समस्याएं निम्न प्रकार से है।


1. समायोजन सम्बन्धी समस्याएँ

मानसिक मंदित बच्चों को समाज, घर तथा विद्यारलय में समायोजन सम्बन्धी अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जिनका वर्णन इस प्रकार है -


    1. परिवार में समायोजन (Adjstment of Family) :- मन्दबुद्धि बच्चे के माता-पिता को यह विश्वास दिलाना अति आवश्यक होता है कि उनका बच्चा मानसिक मंदित है। यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो माता-पिता अपने बच्चे आकांक्षाएँ रखने लगते हैं, लेकिन कुछ ही समय में बालक की असफलताएँ उन्हें निराश कर देती है। इस कारण माता-पिता का व्यवहार बच्चे के प्रति बदल जाता है।

    2. विद्यालय में समायोजन (Adjstment in School) :-  मन्दबुद्धि बच्चों को साधारण बच्चों की तरह कक्षा में अध्यापकों की सामान्य विधियों द्वारा नहीं पढ़ाया जा सकता, क्योंकि ऐसे बालक अध्यापकों की सामान्य विधियों से कुछ भी सीखने मं असमर्थ होते हैं, जिसके कारण मन्दबुद्धि बच्चों को विद्यालयों तथा कक्षाओं में अध्यापकों के असहानुभूतिपूर्ण व्यहवार का सामना करना पड़ता है। कई बार तो उन्हें दण्ड भी दिया जाता है। इस प्रकार बच्चा हीन भावना से भर जाता है तथा पढ़ाई एवं विद्यालय के प्रति उसका दृष्टिकोण बिल्कुल बदल जाता है।

     3. समाज में समायोजन (Adjstment in Society) :-  बच्चों को परिवार के बाद समाज में अपने आपको समायोजित करना पड़ता है। मानसिक मंदित बच्चों के लिए तो यह और भी मुश्किल हो जाता है। समाज के दूसरे बच्चे उनके साथ खेलना पसन्द नहीं करते तथा बात-बात पर उनको चिढ़ाते है। परिणामस्वरूप इन बालकों में हीन भावना पैदा होनी शुरू हो जाती है। इसी कारण से इन बच्चों में सामाजिक गुणों का विकास नहीं हो पाता।

2. संवेगात्मक समस्याएँ - 

मानसिक मंदित बच्चों को घर, विद्यालय व समाज में उचित वातावरण न मिलने के कारण समायोजित बालक संवेगात्मक रूप से परिपक्व नहीं हो सकते। संवेगों को नियंत्रित करने का प्रशिक्षण उन्हें नहीं मिल पाता। अत: ये बच्चे संवेगात्मक रूप से अपरिपक्व रह जाते है।

3. विकास की समस्याएँ :-

मानसिक मंदित बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास सामान्य बच्चों की तरह नहीं हा पाता जिसके कारण इनको समायोजन की कठिनाइयाँ होती है। इनका बौद्धिक विकास का होने के कारण ये कुछ सीख नहीं पाते। इनमें अभूर्त चिन्तन का अभाव होता है। ये किसी एक विषय पर अधिक समय तक ध्यान केन्द्रित नहीं कर सकते। इनकी रूचियाँ सीमित होती हैं तथा ये केवल साधारण तथा सरल निर्देश ही समझ सकते है।


मानसिक मंदित की रोकथाम सम्बन्धी उपाय

     1. जल्दी पहचानना तथा खोजना - मानसिक मंदित बच्चों की मंदिता को कम करने का उपाय सबसे पहले उनकी पहचान तथा खोज होता है। उदाहरणस्वरूप Abgar Scale के द्वारा नये जन्में बच्चों की मंदिता की पहचान की जा सकती है तथा उसकी रोकथाम के उपाय किये जा सकते है।

     2. जननिकी निर्देशन-मानसिक मंदिता को कम करने के लिए गर्भवती माताओं को जननिकी निर्देशन प्रदान करना चाहिए।

     3.  जर्मन खसरा तथा टेटनैस जैसी भयंकर बीमारियों के लिए प्रतिरक्षित या टीके आवश्यकतानुसार लगवाने चाहिए।

     4. PKU और galactoremia के लिए आहार चिकित्सा द्वारा मानसिक मंदिता कम हो सकती है।

     5. शीशे जहर की रोकथाम के लिए फर्नीचर तथा खिलौने पर प्रयोग होने वाले शीशे जहर की सम्बंधी कानून बनाये तथा लागू किये जाने चाहिए।

     6. उक्त रक्तचाप वाली गर्भवती महिलाओं को उचित देखभाल प्रदान की जानी चाहिए।

     7. बच्चों को पर्याप्त पोषण तथा सन्तुलित आहार प्रदान किया जाना चाहिए।

     8. गर्भवती महिला को शुरूआती महीनों में एक्स-रे किरणों के प्रभाव से दूर रहना चाहिए।

     9. गर्भवती महिला क लिए शराब, तम्बाकू, कोकीन व अय नशीली दवाईयों का प्रयोग वर्जित हो चाहिए।

    10. यदि बच्चे में किसी भी प्रकार की बौद्धिक या मानसिक असामान्यता दिखाई दे तो उसे विशेषज्ञ को दिखाया जाना चाहिए।


मानसिक मंदितों के लिए शैक्षिक प्रावधान

मानसिक मंदित बच्चों के लिए विभिन्न प्रकार के शैक्षिक प्रावधान किये जा सकते हैं, जैसे - नियमित कक्षा कक्ष, विशेष कक्षाएँ, विशेष विद्यालय, आवासीय विद्यालय तथा चिकित्सा सेवाओं वाले संस्थान आदि। शैक्षिक प्रावधानों के चुनाव के समय कुछ महत्वपूर्ण बातें दिमाग में रखनी चाहिए।

   1. शैक्षिक सुविधाएँ व व्यवस्था बच्चे की आवश्यकताओं के आधार पर होनी चाहिए।
   2. बच्चों को उपयुक्त व उचित या कम प्रतिबंधित वातावरण प्रदान करना चाहिए।
   3. स्थानापन्न सुविधा लोचशील होनी चाहिए ताकि बच्चा विभिन परिस्थितियों में स्थिति के अनुसार स्वयं को ढाल सकें।

मुख्यतया मानसिक मंदित बच्चों को तीन वर्गों में बाँट सकते हैं -

    1. शिक्षित किये जाने वाले बालक
    2. प्रशिक्षित किये जाने वाले बालक
    3. प्रशिक्षित न किये जाने वाले बालक


 शिक्षित किये जाने वाले बालकों की शिक्षा

इन बच्चों की बुद्धिलब्धि 50-75 के बीच होती है। इन बच्चों की देखभाल, शिक्षा व प्रशिक्षण की जिम्मेदारी केवल अध्यापक की ही नहीं होती, बल्कि माता-पिता तथा समाज की भी यह जिम्मेदारी केवल अध्यापक की ही नहीं होती, इनकी शिक्षा व देखभाल का ध्यान रखे। ऐसे बच्चों को कुछ विशेष शिक्षा सुविधाओं द्वारा आसानी से शिक्षित किया जा सकता है।


माता-पिता का उत्तरदायित्व

‘‘मानसिक मंदिता’’ मानसिक न्यूनताओं से ग्रस्त बालक ‘‘मानसिक विकलांगता’’ और ‘‘सामान्य से कम मानसिक मंदित बालक’’ आदि सभी मानसिक रूप से विकलांग बच्चों के नाम हैं। प्राचीन समय में मानसिक मंदित बच्चों के लिए मूर्ख, मन्दबुद्धि आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता था जो अब अप्रचलित हो गये हैं।

    1. अनुभवी माता तथा परिवार के अन्य बुजुर्ग महिलाओं को बच्चों के विकास सम्बन्धी काफी ज्ञान होता है। यदि एक बच्चे का विकास मन्दगति से और उसके व्यवहार में कुछ असामानता दिखाई देती है तो उसे किसी विशेषज्ञ या बाल मनोवैज्ञानिक को दिखाना चाहिए।
 
     2. माता-पिता को अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए बल्कि उन्हें अपने बच्चे की मंदिता की रोकथाम के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए।
 
     3. आवासीय प्रशिक्षण ऐसे बच्चों के लिए बहुत लाभदायक होता है। माता-पिता बच्चों को दैनिक क्रिया संबंधी कौशल, सामाजिक कौशल, भाषा कौशल आदि द्वारा शुरूआती कुछ वर्षों में बहुत कुछ सीख सकते है। पूर्व विद्यालयी शिक्षा ; पूर्व विद्यालयी शिक्षा मध्यम मन्दबुद्धि बच्चों के लिए निम्न स्तर से शुरू करनी चाहिए और उन्हें कौशल प्रशिक्षण एक वर्ष की बजाय दो या तीन वर्ष प्रदान करना चाहिए।
 
     4. स्थिर बैठना तथा अध्यापक की बातों पर ध्यान देना।
     5. निर्देशों का पालन करना।
     6. भाषा विकास।
     7. आत्म-क्रियात्मक कौशल का विकास, जैसे - जूते बाँधना, बटन बन्द करना और कपड़े पहनना आदि। ;
 
     8. शारीरिक सन्तुलन बढ़ाना, जैसे - पैंसिल पकड़ना आदि।


प्रशिक्षण योग्य मन्दबुद्धि बच्चों के लिए शैक्षिक प्रावधान

इस श्रेणी में वे मंदित बालक आते है जो किसी भी प्रकार सामान्य कक्षाओं में पढ़कर लाभ नहीं उठा सकते। इस श्रेणी में वे बालक रखे जाते हैं जिनकी बुद्धिलब्धि 50-25 के मध्य होती है। ऐसे बालक बहुत कम शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं और दो या ती कक्षा से आगे नहीं पढ़ सकते। ऐसे बच्चों को प्रशिक्षण देने के लिए विशेष साधनों, कक्षाओं और शिक्षकों की आवश्यकता पड़ती है।

   1. दिनचर्या कौशल का विकास (Daily Living Skills)
   2. सामाजिक विकास (Social Development)
   3. शारीरिक विकास (Motor Development)
   4. भाषा विकास (Language Development)
   5. श्रम - आदत और शैक्षणिक कौशल (Work Habit and Academic Skill)
   6. योग चिकित्सा (Yoga Therapy)


प्रशिक्षित न किये जाने वाले या गम्भीर मानसिक मंदित बच्चों की शिक्षा

गम्भीर मानसिक मंदित बच्चों की बुद्धिलब्धि 25 से कम होती है। ऐसे बालक अपनी देख-रेख स्वयं नहीं कर सकते और समाज में अकेले जीवनयापन नहीं कर सकते। यहाँ तक कि ये न तो ठीक से बोल सकते हैं और न ही अपने विचारों को दूसरों को अच्छी तरह समझाने के योग्य होते हैं। इन्हें विशेष सहायता की आवश्यकता होती है।
ग्रासमैन ने गम्भीर मानसिक मंदित बच्चों के बारे में लिखा है, ‘‘गहन रूप से मन्दबुद्धि बालकों के लिए मानसिक अस्पताल व संस्थाएँ व सुरक्षित जगह हो।’’

   1. गम्भीर मानसिक मंदित बालक पानी, आग, बिजली आदि के खतरे को नहीं समझ सकते तथा आसानी से दुर्घटनाग्रस्त हो जाते है।

   2. मानसिक मंदित बालक अपने छोटे-छोटे कार्यों के लिए भी दूसरों पर निर्भर रहते है।

   3.  इन बच्चों को छोटे बच्चों की तरह ही नहलाया, धुलाया व भोजन कराया जाता है।
 
   4. इन बच्चों को स्कूलों में नहीं रखा जाता, बल्कि इनको मानसिक अस्पतालों तथा संस्थाओं में रखा जाता है। अत: इन बच्चों के लिए एक ही कार्यक्रम हो सकता है और वह यह है - इन बालकों को सुरक्षा तथा सहायता प्रदान करना।



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