Monday, March 11, 2019

श्रवण बाधिता की पहचान

श्रवण बाधिता की पहचान

श्रवण बाधिता की पहचान सामान्यत: माता-पिता एवं परिवार के सदस्यों द्वारा ही हो जाती है। जिसका सत्यापन भले ही चिकित्सक (Doctors) द्वारा जांच के उपरांत किया जाये।

बच्चे को देखकर

कुछ प्रकार के बहरेपन शारीरिक स्थितियां लक्षणों से जुड़े हो सकते हैं। इस प्रकार के लक्षणों को देखकर इसकी पहचान की जा सकती है, जैसे -

1. बाह्य कान का जन्म से न बना होना इसका “एट्रीशिया” भी कहते हैं।

2. “वार्डन वर्ग सिन्ड्रोम” सिर पर मध्य अग्र बालों का सफेद होना।

इस प्रकार की स्थितियां एक प्रतिशत से भी कम बच्चों के बहरेपन के लिए उत्तरदायी हो सकती है और आमतौर पर बहरेपन को देखकर पहचान करना मुश्किल हो जाता है।

व्यवहार देखकर -

बहरेपन से ग्रस्त लोगों में कुछ विशेष प्रकार के व्यवहार देखे जा सकते हैं। और इनकी मदद से एक बड़े प्रतिशत एक बहरेपन की पहचान भी की जा सकती है।

1. कान के पीछे हाथ लगाकर सुनने का प्रयास करना।

2. बहुत जोर से बोलना।

3. बात सुनते हुए आंखों पर सामान्य से अधिक निर्भर होना।

4. वाचक के चेहरे और होठों पर ज्यादा ध्यान देना।

5. बोलने में कुछ विशेष उच्चारण दोष के कारण उच्च आवाजें, जैसे- अ,ई,ऊ, श, स,म,च आदि ।

6. असंगत रूप से अपने आप में खोये रहना।

7. चेहरे के हाव-भाव एवं मुद्रा द्वारा भी आवाज दोष को पहचाना जा सकता है।

8. पैरों से आवाज करते हएु चलने से भी इसकी पहचान की जा सकती है।


श्रवण बाधितों की पहचान के कुछ संकेत

श्रवण बाधितों की पहचान के कुछ अन्य संकेत हैं -

1. गले में तथा कान में घाव रहता हैं।

2. इनमें वाणी दोष पाया जाता है।

3. सीमित शब्दावली पायी जाती है।

4. यह चिड़चिड़े होते हैं।

5. भाषा का सही विकास नहीं होता है।


श्रवण बाधित बालकों की पहचान जितना जल्द से जल्द हो सके, कर लेना चाहिए। यदि ‘शीघ्र ही बच्चे की पहचान कर ली जाये, तो उनमें वाणी व भाषा का विकास किया जा सकता है तथा श्रवण दोष के प्रभाव को भी कम कर सकते हैं। सामान्यत: विशेषज्ञों का मानना है कि श्रवण-दोष की पहचान जन्म के समय ही कर लेनी चाहिए। जिनती जल्दी इसकी पहचान की जोयगी, उतनी ही जल्दी इन्हें सामान्य समाज से जोड़ा जा सकता है तथा इन बच्चों में होने वाली बहुत सी- मनोवैज्ञानिक कठिनाईयों को कम किया जा सकता है।

आधुनिक विशेषज्ञों ने श्रवण बाधितों को चार वर्गों में बांटा है, जो कि हैं -
(1) केन्द्रीय श्रवण दोष (2) मनोजैविक श्रवण बाधित (3) नाड़ी संस्थान श्रवण बाधित (4) आचरण में श्रवण बाधिता ।

1. केन्द्रीय श्रवण दोष - यह वह बालक होते हैं, जो कि जटिल बाधिता से ग्रस्त हेाते हैं। इस प्रकार के बालक ध्वनि के बारे में जानते तो हैं, परंतु इसका अर्थ नहीं समझ पाते तथा इसकी सम्प्रेक्षण समस्या भी काफी गंभीर होती है। यह दोष दवाओं के सेवन से आ सकते हैं, इसलिए इनके सुधार से अधिक समय लगता है।

2. मनोजैविक श्रवण बाधित - इस प्रकार की बाधिता का कारण मनौवेज्ञानिक होता है। यह बालक अपनी समस्याओं को बढा-चढ़ा कर बताते हें। इन बालकों में किसी रोग के कारण ही बाधिता आ जाती है। कई बार यह पहचानना कठित होता है कि यह दोष मनौवैज्ञानिक है अथवा जैविक। इन बालकों के उपचार में अत्यंत सावधानी रखनी चाहिए।

3. नाड़ी संस्थान श्रवण बाधित- बालकों में नाड़ी संस्थान के दोष के कारण यह दोष आता है। अत: इसका उपचार करना संभव नहीं हो पाता है। यह बालक श्रवण यंत्रों की सहायता से सुनते हैं। इन्हें शिक्षा देने हेतु अलग-अलग प्रावधानों का प्रयोग किया जाता है। यह होठों की भाषा (Lip reading) के द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हैं तथा इन्हें विशिष्ट विद्यालयों में प्रवेश दिया जाता है।

4. आचरण में श्रवण बाधिता - साधारण रूप में ऐसे बाधित बालक आचरण दो”ाी होते हैं। यह  दोष कान के रेागों से संबंधित होते हैं। यदि चिकित्सक इनका उपचार करें तो ठीक हो सकते हैं, परंतु कई बार चिकित्सकों की गलती से यह और अधिक बाधित हो जाते हैं।

श्रवण बाधित की पहचान हेतु परीक्षण

श्रवण बाधित बालकों की पहचान उनके बोलने से ही हो जाती है, परंतु इन्हें पहचानने के लिए कई चिकित्सकीय परीक्षण करने पड़ते हैं, क्योंकि कक्षा में श्रवण बाधित बालक आसानी से शिक्षकों की दृष्टि में नहीं आते हैं, अत: इन्हें पहचानने हेतु कई प्रकार की अन्त: क्रियाएं करनी पड़ती है, जबकि बड़ी कक्षा में ऐसा होना संभव नहीं हो पाता है, अत: बालकों के प्रवेश के समय ही उनका परीक्षण करवा लेना उचित रहता है। बालकों को विद्यालय में प्रवेश दिलाने समय उन्हें अध्यापक को बालकों की श्रवण शक्ति के बारे में बता देना चाहिए।

अत: श्रवण बाधितों को आधार पर पहचाना जाता है -
1. चिकित्सीय परीक्षण 2. विकासात्मक मापनी  3. बालक का अध्ययन 4. मनो-नाड़ी परीक्षण 5. बालकीय व्यवहार का निरीक्षण

1. चिकित्सीय परीक्षण - चिकित्सीय परीक्षण की मापनी के द्वारा श्रवण बाधितों को पहचान आसान होता है। इसमें चिकित्सक की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। श्रवण बाधिता बालकों के व्यक्तित्व को बहुत अधिक बाधित करती है।

2. विकासात्मक मापनी - इन बालकों की पहचान के लिए उनकी विकासात्मक अवस्थाओं को ध्यान में रखना अति आवश्यक होता है। बालकों की ज्ञानेन्द्रियों तथा विकास की अवस्थाओं में प्रत्यक्ष संबंध पाया जाता है। अत: विकासात्मक मापनी अत्यंत उत्तम मापनी है। .

3. बालक का अध्ययन - यह सबसे उत्तम विधि होती है । इसके अंतर्गत बालक के जन्म से लेकर वर्तमान स्थितियों तक की सभी सूचनाओं को संकलित किया जाता है तथा इसी के आधार पर ही श्रवण बाधिता के कारणों का पता चल जाता है। इस विधि से ही समस्याओं का निदान भी निकाल लिया जाता है। इस विधि से बालकों की बीमारियों का पूरा इतिहास पता लगाया जाता जा सकता है।

4. मनो-नाड़ी परीक्षण - यह एक अन्य प्रकार की मापनी है। जिसकी सहायता से श्रवण बाधितों की नोड़ी की क्रियाओं का आंकलन किया जाता है। यह एक मानसिक दोष है। बहुत से श्रवण बाधितों में यह दोष पाया जाता है तथा एक योग्य चिकित्सकों के द्वारा ही इसका उपचार किया जा सकता है।

5. बालकीय व्यवहार का निरीक्षण - यह निरीक्षण श्रवण बाधितों की पहचान हेतु उपयुक्त माना जाता है, इसके अंतर्गत बालकों के व्यवहारों को पहचाना जाता है -

1. बालक यदि सिर एक तरफ मोड़कर सुने तो वह बाधितों की श्रेणी में आते हैं।

2. वह अनुदेशन अनुसरण नहीं कर पाते हैं।

3. इन बालकों की दृष्टि अक्सर बोलने वाले बालकों के या शिक्षकों के मुंह की तरह होती है।

4. यह वाणी बाधित भी हो सकते हैं

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