मनोविकार के मुख्य रोग
मानसिक विकार बहुत तरह के होते हैं। ये विकार व्यक्तित्व, मनोदशा (मूड), खाने की आदतों, चिन्ता आदि से सम्बन्धित हो सकते हैं। इस प्रकार मानसिक रोगों की सूची बहुत बड़ी है। कुछ मुख्य मनोरोगों की सूची नीचे दी गयी है-
मनोरोगों के कारण कई प्रकार के होते हैं। इनमें से मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं :
जैविक कारण
आनुवंशिक : मनोविक्षिप्ति या साइकोसिस (जैसे स्कीजोफ्रीनिया, उन्माद, अवसाद इत्यादि), व्यक्तित्व रोग, मदिरापान, मंदबुद्धि, मिर्गी इत्यादि रोग उन लोगों में अधिक पाये जाते हैं, जिनके परिवार का कोई सदस्य इनसे पीड़ित हों तो संतान को इनका खतरा लगभग दोगुना हो जाता है।
शारीरिक गठन
स्थूल (मोटे) व्यक्तियों में भावात्मक रोग (उन्माद, अवसाद या उदासी इत्यादि), हिस्टीरिया, हृदय रोग इत्यादि अधिक होते हैं जबकि लंबे एवं दुबले गठन वाले व्यक्तियों में विखंडित मनस्कता (स्कीजोफ्रीनिया), तनाव, व्यक्तित्व रोग अधिक पाये जाते हैं।
व्यक्तित्व
अपने में खोये हुए, चुप रहने वाले, कम मित्र रखने वाले किताबी-कीड़े जैसे गुण वाले, स्कीजायड व्यक्तित्व वाले लोगों में स्कीजोफ्रीनिया अधिक होता है, जबकि अनुशासित तथा सफाई पसंद, समयनिष्ठ, मितव्ययी जैसे गुणों वाले खपती व्यक्तित्व के लोगों में खपत रोग (बाध्य विक्षिप्त) अधिक पाया जाता है।
शरीरवृत्तिक कारण
किशोरावस्था, युवावस्था, वृद्धावस्था, गर्भ-धारण जैसे शारीरिक परिवर्तन कई मनोरोगों का आधार बन सकते हैं।
वातावरण जनित कारण
शारीरिक खान-पान संबंधी कारण
कुछ दवाओं, रासायनिक तत्वों, धातुओं, मदिरा तथा अन्य मादक पदार्थों इत्यादि का सेवन मनोरोगों की उत्पत्ति का कारण बन सकता हैं।
मनोवैज्ञानिक कारण
आपसी संबंधों में तनाव, किसी प्रिय व्यक्ति की मृत्यु, सम्मान को ठेस, कार्य को खो बैठना, आर्थिक हानि, विवाह, तलाक, शिशु जन्म, कार्य-निवृत्ति, परीक्षा या प्यार में असफलता इत्यादि भी मनोरोगों को उत्पन्न करने या बढ़ाने में योगदान देते हैं।
सामाजिक-सांस्कृतिक कारण
सामाजिक एवं मनोरंजक गतिविधियों से दुराव, अकेलापन, राजनीतिक, प्राकृतिक या सामाजिक दुर्घटनाएं (जैसे कि लूटमार, आतंक, भूकंप, अकाल, बाढ़, सामाजिक बोध एवं अवरोध, महंगाई, बेरोजगारी इत्यादि) मनोरोग उत्पन्न कर सकते हैं।
मनोरोग के तथ्य
1. मनोरोग चिकित्सक द्वारा दवाएं बतायी गई हैं तो इनका सेवन अवश्य करना चाहिए।
2. दूसरी बीमारियों की तरह यह रोग भी आंतरिक स्तर पर जैविक असंतुलन की वजह से होता है।
3. निगरानी में दवाएं लेना कारगर होता है, अब तो नई दवाओं के उपलब्ध होने के बाद लंबी अवधि तक दवाएं लेने के मामले कम हो रहे हैं।
4. दवाओं के सेवन से मनोविकारों में काफी कमी होती है, खासतौर से तब जबकि इलाज शुरूआती चरण में आरंभ हो जाए।
5. मनोविकारों के उपचार में दी जाने वाली दवाएं रासायनिक असंतुलन को बहाल करती हैं, कुछ दवाओं से नींद आती है लेकिन वे नींद की गोलियां नहीं होतीं।
6. अवसाद जैसे मनोविकार भी मधुमेह या उच्च रक्तचाप की तरह के रोग ही होते हैं और इनके लिए भी विषेशज्ञ की देखरेख में इलाज कराने की आवश्यकता होती है।
गलत धारणाएं
मानसिक रोग या पागलपन एक ऐसा शब्द है जिससे इसके कारणों एवं उपचार के विषय में न जाने कितनी भ्रांतियाँ एवं आशंकाएँ जुड़ी हैं। कुछ लोग इसे एक असाध्य, आनुवांशिक एवं छूत की बीमारी मानते हैं, तो कुछ जादू-टोना, भूत-प्रेत व डायन का प्रकोप। कुछ लोग इसे बीमारी न मानकर जिम्मेदारियों से बचने का नाटक मात्र भी मानते हैं।
अज्ञानी लोग उपचार के लिए स्थानीय या नजदीक ओझा, पंडित, मुल्ला आदि के पास जाकर अनावश्यक भभूत, जड़ी-बूटी का सेवन करते हैं तथा अमानवीय ढ़ंग से सताये जाते हैं ताकि 'पिशाचात्मा' का प्रकोप दूर किया जा सके।
यह सब गलत है। सही धारणा यह है कि यह बीमारी है और वैज्ञानिक ढंग से चिकित्सा विज्ञान द्वारा इसका इलाज संभव है। ये भी सही नहीं है कि-
1. मानसिक विकार कोई रोग नहीं हैं बल्कि बुरी आत्माओं की वजह से पैदा होते हैं।
2. दवाओं के सेवन से बचना चाहिए।
3. आपको यह रोग अपनी कमजोरी से हुआ है और इससे बचाव करना चाहिए।
4. दवाएं नुकसानदायक होती हैं, ये निर्भरता बढ़ाती हैं और जीवनभर लेनी पड़ती हैं।
5. ज्यादातर मनोविकारों का कोई इलाज नहीं होता।
6. बच्चों को दवाएं नहीं दी जानी चाहिए।
7. इलाज के लिए नींद की गोलियां दी जाती हैं।
8. अवसाद जैसे मर्ज अपने आप ठीक होते हैं या प्रभावित व्यक्ति के प्रयासों से।
9. देवी देवताओं या झाड़फूंक से रोग सही हो सकता है। yes
आयुर्वेद के अनुसार मानस रोग
रजस्तमश्च् मानसौ दोषौ-तयोवकारा काम, क्रोध, लोभ, माहेष्यार्मानमद शोक चित्तोस्तो द्वेगभय हषार्दयः ।
रज और तम ये दो मानस रोग हैं । इनकी विकृति से होने वाले विकार मानस रोग कहलाते हैं ।
मानस रोग-
काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईष्यार्, मान, मद, शोक, चिन्ता, उद्वेग, भय, हषर्, विषाद, अभ्यसूया, दैन्य, मात्सयर् और दम्भ ये मानस रोग हैं ।
१. काम- इन्द्रियों के विषय में अधिक आसक्ति रखना 'काम' कहलाता है ।
२. क्रोध- दूसरे के अहित की प्रवृत्ति जिसके द्वारा मन और शरीर भी पीड़ित हो उसे क्रोध कहते हैं ।
३. लोभ- दूसरे के धन, स्त्री आदि के ग्रहण की अभिलाषा को लोभ कहते हैं ।
४. ईर्ष्या- दूसरे की सम्पत्ति-समृद्धि को सहन न कर सकने को ईर्ष्या कहते हैं ।
५. अभ्यसूया- छिद्रान्वेषण के स्वभाव के कारण दूसरे के गुणों को भी दोष बताना अभ्यसूया या असूया कहते हैं ।
६. मात्सर्य- दूसरे के गुणों को प्रकट न करना अथवा कू्ररता दिखाना 'मात्सर्य' कहलाता है ।
७. मोह- अज्ञान या मिथ्या ज्ञान (विपरीत ज्ञान) को मोह कहते हैं ।
८. मान- अपने गुणों को अधिक मानना और दूसरे के गुणों का हीन दृष्टि से देखना 'मान' कहलाता है ।
९. मद- मान की बढ़ी हुई अवस्था 'मद' कहलाती है ।
१०. दम्भ- जो गुण, कमर् और स्वभाव अपने में विद्यमान न हों, उन्हें उजागरकर दूसरों को ठगना 'दम्भ' कहलाता है ।
११. शोक- पुत्र आदि इष्ट वस्तुओं के वियोग होने से चित्त में जो उद्वेग होता है, उसे शोक कहते हैं ।
१२. चिन्ता- किसी वस्तु का अत्यधिक ध्यान करना 'चिन्ता' कहलाता है ।
१३. उद्वेग- समय पर उचित उपाय न सूझने से जो घबराहट होती है उसे 'उद्वेग' कहते हैं ।
१४. भय- अन्य आपत्ति जनक वस्तुओं से डरना 'भय' कहलाता है ।
१५. हर्ष- प्रसन्नता या बिना किसी कारण के अन्य व्यक्ति की हानि किए बिना अथवा सत्कर्म करके मन में प्रसन्नता का अनुभव करना हषर् कहलाता है ।
१६. विषाद- कार्य में सफलता न मिलने के भय से कार्य के प्रति साद या अवसाद-अप्रवृत्ति की भावना 'विषाद' कहलाता है ।
१७. दैन्य- मन का दब जाना- अथार्त् साहस और धर्य खो बैठना दैन्य कहलाता है ।
ये सब मानस रोग 'इच्छा' और 'द्वेष' के भेद से दो भागों में विभक्त किये जा सकते हैं । किसी वस्तु (अथर्) के प्रति अत्यधिक अभिलाषा का नाम 'इच्छा' या 'राग' है । यह नाना वस्तुओं और न्यूनाधिकता के आधार पर भिन्न-भिन्न होती है ।
हर्ष, शोक, दैन्य, काम, लोभ आदि इच्छा के ही दो भेद हैं । अनिच्छित वस्तु के प्रति अप्रीति या अरुचि को द्वेष कहते हैं । वह नाना वस्तुओं पर आश्रत और नाना प्रकार का होता है । क्रोध, भय, विषाद, ईर्ष्या, असूया, मात्सर्य आदि द्वेष के ही भेद हैं ।
दोस्तों आपको यह आर्टिकल कैसा लगा हमें जरुर बताये. आप अपनी राय, सवाल और सुझाव हमें comments के जरिये जरुर भेजे. अगर आपको यह आर्टिकल उपयोगी लगा हो तो कृपया इसे share करे।
आप E-mail के द्वारा भी अपना सुझाव दे सकते हैं। prakashgoswami03@gmail.com
मानसिक विकार बहुत तरह के होते हैं। ये विकार व्यक्तित्व, मनोदशा (मूड), खाने की आदतों, चिन्ता आदि से सम्बन्धित हो सकते हैं। इस प्रकार मानसिक रोगों की सूची बहुत बड़ी है। कुछ मुख्य मनोरोगों की सूची नीचे दी गयी है-
- दुर्भीति (फोबिया),
- मनोदशा विकार (मूड डिस्आर्डर),
- ज्ञानात्मक विकार (काग्निटिव डिस्आर्डर),
- व्यक्तित्व विकार,
- खंडित मनस्कता (शाइज़ोफ्रेनिया) और
- द्रव्य संबंधी विकार (सबस्टैंस रिलेटेड डिस्आर्डर) ; जैसे मद्यसार (ऐलकोहाल) पर निर्भरता
- अवसाद (Depression)
- एकध्रुवीय अवसाद या 'मुख्य अवसादी विकार'
- द्विध्रुवी विकार
- आईईडी (Intermittent explosive disorder)
- चिंतात्त
- चिंताविभ्रम
- बहुव्यक्तित्व विकार
- मनोविक्षिप्ति
- मानसिक मन्दन
- संविभ्रम
- अंतराबंध या स्किजोफ्रीनिया
- उत्पीड़न भ्रांति
- मनोरोगों के मुख्य कारण
मनोरोगों के कारण कई प्रकार के होते हैं। इनमें से मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं :
जैविक कारण
आनुवंशिक : मनोविक्षिप्ति या साइकोसिस (जैसे स्कीजोफ्रीनिया, उन्माद, अवसाद इत्यादि), व्यक्तित्व रोग, मदिरापान, मंदबुद्धि, मिर्गी इत्यादि रोग उन लोगों में अधिक पाये जाते हैं, जिनके परिवार का कोई सदस्य इनसे पीड़ित हों तो संतान को इनका खतरा लगभग दोगुना हो जाता है।
शारीरिक गठन
स्थूल (मोटे) व्यक्तियों में भावात्मक रोग (उन्माद, अवसाद या उदासी इत्यादि), हिस्टीरिया, हृदय रोग इत्यादि अधिक होते हैं जबकि लंबे एवं दुबले गठन वाले व्यक्तियों में विखंडित मनस्कता (स्कीजोफ्रीनिया), तनाव, व्यक्तित्व रोग अधिक पाये जाते हैं।
व्यक्तित्व
अपने में खोये हुए, चुप रहने वाले, कम मित्र रखने वाले किताबी-कीड़े जैसे गुण वाले, स्कीजायड व्यक्तित्व वाले लोगों में स्कीजोफ्रीनिया अधिक होता है, जबकि अनुशासित तथा सफाई पसंद, समयनिष्ठ, मितव्ययी जैसे गुणों वाले खपती व्यक्तित्व के लोगों में खपत रोग (बाध्य विक्षिप्त) अधिक पाया जाता है।
शरीरवृत्तिक कारण
किशोरावस्था, युवावस्था, वृद्धावस्था, गर्भ-धारण जैसे शारीरिक परिवर्तन कई मनोरोगों का आधार बन सकते हैं।
वातावरण जनित कारण
शारीरिक खान-पान संबंधी कारण
कुछ दवाओं, रासायनिक तत्वों, धातुओं, मदिरा तथा अन्य मादक पदार्थों इत्यादि का सेवन मनोरोगों की उत्पत्ति का कारण बन सकता हैं।
मनोवैज्ञानिक कारण
आपसी संबंधों में तनाव, किसी प्रिय व्यक्ति की मृत्यु, सम्मान को ठेस, कार्य को खो बैठना, आर्थिक हानि, विवाह, तलाक, शिशु जन्म, कार्य-निवृत्ति, परीक्षा या प्यार में असफलता इत्यादि भी मनोरोगों को उत्पन्न करने या बढ़ाने में योगदान देते हैं।
सामाजिक-सांस्कृतिक कारण
सामाजिक एवं मनोरंजक गतिविधियों से दुराव, अकेलापन, राजनीतिक, प्राकृतिक या सामाजिक दुर्घटनाएं (जैसे कि लूटमार, आतंक, भूकंप, अकाल, बाढ़, सामाजिक बोध एवं अवरोध, महंगाई, बेरोजगारी इत्यादि) मनोरोग उत्पन्न कर सकते हैं।
मनोरोग के तथ्य
1. मनोरोग चिकित्सक द्वारा दवाएं बतायी गई हैं तो इनका सेवन अवश्य करना चाहिए।
2. दूसरी बीमारियों की तरह यह रोग भी आंतरिक स्तर पर जैविक असंतुलन की वजह से होता है।
3. निगरानी में दवाएं लेना कारगर होता है, अब तो नई दवाओं के उपलब्ध होने के बाद लंबी अवधि तक दवाएं लेने के मामले कम हो रहे हैं।
4. दवाओं के सेवन से मनोविकारों में काफी कमी होती है, खासतौर से तब जबकि इलाज शुरूआती चरण में आरंभ हो जाए।
5. मनोविकारों के उपचार में दी जाने वाली दवाएं रासायनिक असंतुलन को बहाल करती हैं, कुछ दवाओं से नींद आती है लेकिन वे नींद की गोलियां नहीं होतीं।
6. अवसाद जैसे मनोविकार भी मधुमेह या उच्च रक्तचाप की तरह के रोग ही होते हैं और इनके लिए भी विषेशज्ञ की देखरेख में इलाज कराने की आवश्यकता होती है।
गलत धारणाएं
मानसिक रोग या पागलपन एक ऐसा शब्द है जिससे इसके कारणों एवं उपचार के विषय में न जाने कितनी भ्रांतियाँ एवं आशंकाएँ जुड़ी हैं। कुछ लोग इसे एक असाध्य, आनुवांशिक एवं छूत की बीमारी मानते हैं, तो कुछ जादू-टोना, भूत-प्रेत व डायन का प्रकोप। कुछ लोग इसे बीमारी न मानकर जिम्मेदारियों से बचने का नाटक मात्र भी मानते हैं।
अज्ञानी लोग उपचार के लिए स्थानीय या नजदीक ओझा, पंडित, मुल्ला आदि के पास जाकर अनावश्यक भभूत, जड़ी-बूटी का सेवन करते हैं तथा अमानवीय ढ़ंग से सताये जाते हैं ताकि 'पिशाचात्मा' का प्रकोप दूर किया जा सके।
यह सब गलत है। सही धारणा यह है कि यह बीमारी है और वैज्ञानिक ढंग से चिकित्सा विज्ञान द्वारा इसका इलाज संभव है। ये भी सही नहीं है कि-
1. मानसिक विकार कोई रोग नहीं हैं बल्कि बुरी आत्माओं की वजह से पैदा होते हैं।
2. दवाओं के सेवन से बचना चाहिए।
3. आपको यह रोग अपनी कमजोरी से हुआ है और इससे बचाव करना चाहिए।
4. दवाएं नुकसानदायक होती हैं, ये निर्भरता बढ़ाती हैं और जीवनभर लेनी पड़ती हैं।
5. ज्यादातर मनोविकारों का कोई इलाज नहीं होता।
6. बच्चों को दवाएं नहीं दी जानी चाहिए।
7. इलाज के लिए नींद की गोलियां दी जाती हैं।
8. अवसाद जैसे मर्ज अपने आप ठीक होते हैं या प्रभावित व्यक्ति के प्रयासों से।
9. देवी देवताओं या झाड़फूंक से रोग सही हो सकता है। yes
आयुर्वेद के अनुसार मानस रोग
रजस्तमश्च् मानसौ दोषौ-तयोवकारा काम, क्रोध, लोभ, माहेष्यार्मानमद शोक चित्तोस्तो द्वेगभय हषार्दयः ।
रज और तम ये दो मानस रोग हैं । इनकी विकृति से होने वाले विकार मानस रोग कहलाते हैं ।
मानस रोग-
काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईष्यार्, मान, मद, शोक, चिन्ता, उद्वेग, भय, हषर्, विषाद, अभ्यसूया, दैन्य, मात्सयर् और दम्भ ये मानस रोग हैं ।
१. काम- इन्द्रियों के विषय में अधिक आसक्ति रखना 'काम' कहलाता है ।
२. क्रोध- दूसरे के अहित की प्रवृत्ति जिसके द्वारा मन और शरीर भी पीड़ित हो उसे क्रोध कहते हैं ।
३. लोभ- दूसरे के धन, स्त्री आदि के ग्रहण की अभिलाषा को लोभ कहते हैं ।
४. ईर्ष्या- दूसरे की सम्पत्ति-समृद्धि को सहन न कर सकने को ईर्ष्या कहते हैं ।
५. अभ्यसूया- छिद्रान्वेषण के स्वभाव के कारण दूसरे के गुणों को भी दोष बताना अभ्यसूया या असूया कहते हैं ।
६. मात्सर्य- दूसरे के गुणों को प्रकट न करना अथवा कू्ररता दिखाना 'मात्सर्य' कहलाता है ।
७. मोह- अज्ञान या मिथ्या ज्ञान (विपरीत ज्ञान) को मोह कहते हैं ।
८. मान- अपने गुणों को अधिक मानना और दूसरे के गुणों का हीन दृष्टि से देखना 'मान' कहलाता है ।
९. मद- मान की बढ़ी हुई अवस्था 'मद' कहलाती है ।
१०. दम्भ- जो गुण, कमर् और स्वभाव अपने में विद्यमान न हों, उन्हें उजागरकर दूसरों को ठगना 'दम्भ' कहलाता है ।
११. शोक- पुत्र आदि इष्ट वस्तुओं के वियोग होने से चित्त में जो उद्वेग होता है, उसे शोक कहते हैं ।
१२. चिन्ता- किसी वस्तु का अत्यधिक ध्यान करना 'चिन्ता' कहलाता है ।
१३. उद्वेग- समय पर उचित उपाय न सूझने से जो घबराहट होती है उसे 'उद्वेग' कहते हैं ।
१४. भय- अन्य आपत्ति जनक वस्तुओं से डरना 'भय' कहलाता है ।
१५. हर्ष- प्रसन्नता या बिना किसी कारण के अन्य व्यक्ति की हानि किए बिना अथवा सत्कर्म करके मन में प्रसन्नता का अनुभव करना हषर् कहलाता है ।
१६. विषाद- कार्य में सफलता न मिलने के भय से कार्य के प्रति साद या अवसाद-अप्रवृत्ति की भावना 'विषाद' कहलाता है ।
१७. दैन्य- मन का दब जाना- अथार्त् साहस और धर्य खो बैठना दैन्य कहलाता है ।
ये सब मानस रोग 'इच्छा' और 'द्वेष' के भेद से दो भागों में विभक्त किये जा सकते हैं । किसी वस्तु (अथर्) के प्रति अत्यधिक अभिलाषा का नाम 'इच्छा' या 'राग' है । यह नाना वस्तुओं और न्यूनाधिकता के आधार पर भिन्न-भिन्न होती है ।
हर्ष, शोक, दैन्य, काम, लोभ आदि इच्छा के ही दो भेद हैं । अनिच्छित वस्तु के प्रति अप्रीति या अरुचि को द्वेष कहते हैं । वह नाना वस्तुओं पर आश्रत और नाना प्रकार का होता है । क्रोध, भय, विषाद, ईर्ष्या, असूया, मात्सर्य आदि द्वेष के ही भेद हैं ।
दोस्तों आपको यह आर्टिकल कैसा लगा हमें जरुर बताये. आप अपनी राय, सवाल और सुझाव हमें comments के जरिये जरुर भेजे. अगर आपको यह आर्टिकल उपयोगी लगा हो तो कृपया इसे share करे।
आप E-mail के द्वारा भी अपना सुझाव दे सकते हैं। prakashgoswami03@gmail.com
No comments:
Post a Comment