2. मानसिक रूप से विशिष्ट बालक
इसमें प्रतिभाशाली, मानसिक मंद एवं सश्जनात्मक बालक आते है।
प्रतिभाशाली बालक वे बालक होते है जिनकी बौद्धिक क्षमताए सामान्य बालको की अपेक्षा अधिक होती है। ये जीवन के विभिन्न क्षेत्रो मे विशिष्ट प्रदर्शन करते है। टरमेन के अनुसार ऐसे बालको की बुद्धिलब्धि 140 से ऊपर होती है जबकि मिल के अनुसार 190 से 200 बुद्धि - लब्धि वाले बालक प्रतिभाशाली होते है। विटी के अनुसार प्रतिभाशाली बालक संगीत, कला, सामाजिक नेतश्त्व तथा दूसरे विभिन्न क्षेत्रो मे अच्छा प्रदर्शन करते है।
शिक्षक के निरीक्षण द्वारा बालक का व्यवहार, रूचियों, योग्यताओ, क्षमताओ का ज्ञान प्राप्त कर प्रतिभाशाली बालको की पहचान की जाती है। विभिन्न प्रकार के अभिलेखो के आधार पर किसी भी विद्याथ्री की प्रतिभा को पहचाना जा सकता है। इसमे मुख्य रूप से संचयी अभिलेख, स्थानान्तरण अभिलेख, स्वास्थ्य अभिलेख, निर्देशन और परामर्श अभिलेख, मासिक प्रगति अभिलेख उपाख्यान संबधी अभिलेख है।
प्रतिभाशाली बालको के शिक्षण के प्रमुख उपागम
प्रतिभाशाली बालको की शिक्षा एक आसान कार्य नही है क्योकि यह संख्या मे कम होते है और समूह विजातीय होता है। अत: पूरे समूह पर किसी एक प्रणाली को लागू करना कठिन कार्य है। प्रतिभाशाली बालको के शिक्षण के प्रमुख तीन उपागम है।
त्वरण - इसमे प्रतिभाशाली बालको को उनकी शारीरिक आयु की अपक्षेा मानसिक आयु के आधार पर प्रवेश दिया जाता है। ऐसे बालको को विद्यालय में शीघ्र प्रवेश दिया जाता है। हावसन के अनुसार ऐसे बालक आठवी कक्षा या उसके बाद अधिक अच्छी प्रगति दिखाते है।
समृद्धिकरण - समृद्धिकरण का तात्पयर् है कि नियमित कक्षाआे मे दिये जाने वाले पाठ्यक्रम मे शैक्षिक अनुभव अधिक देकर उसे समृद्ध बनाया जाना। प्रतिभाशाली बालको के समुचित विकास के लिए पाठ्यक्रम इतना कठिन होना चाहिए कि उसे पढ़ना बालक के लिए एक चुनौतिपूर्ण हो।
विशिष्ट कक्षाएं - इनमे सामान्य विद्यालायो मे ही विशेष कक्षाए आयोजित कर विशेष रूप से नियोजित पाठ्यक्रमो को प्रस्तुत किया जाता है। विशिष्ट प्रतिभावान व्यक्तियों को बुलाकर उनके अनुभवो से छात्रो को लाभान्वित करवाया जाता है।
मानसिक मंदता एक ऋणात्मक संकल्पना है। मानसिक रूप से मंद बालक घर, समाज तथा विद्यालय का कार्य नही कर पाते हैं। डॉल ने 1941 में मानसिक मंदता की पहचान के लिए 6 प्रमुख बाते बतायी हैं।
अमेरिकन एसोसिएशन ऑन मेण्टल डेफिशिएन्सी (1959) के अनुसार मानसिक मंदता में सामान्य बौद्धिक प्रकार्य सामान्य से कम स्तर के होते हैं। मानसिक मंदता की उत्पत्ति विकासात्मक अवस्थाओं में होती है और समायोजित व्यवहार को क्षति पहुंचाने से भी यह सम्बन्धित है।
मानसिक मंद बालकों की शिक्षा व्यवस्था-
मानसिक मंद बालकों की शिक्षा व्यवस्था के लिए कुछ सिद्धान्तों को प्रयोग में लाना चाहिए।
1. मानसिक मंद बालकों के लिए मूर्त माध्यम से शिक्षा दी जानी चाहिए। डूनॉन ने अपने अध्ययनों में यह पाया कि ऐसे बालक ऐलेक्जेण्डर परफारमेन्स टेस्ट को आसानी से कर लेते हैं।
2. कक्षा का आकार छोटा होना चाहिए तथा निर्देश व्यक्तिगत होने चाहिए।
3. करके सीखने के सिद्धान्त पर शिक्षा आधारित होनी चाहिए।
4. मानसिक मंद बालकों को वास्तविक स्थान पर ले जाकर शिक्षा देनी चाहिए।
5. शिक्षण को वास्तविक जीवन पर आधारित करके करना चाहिए। विभिन्न विषयों को आपस में सहसम्बन्धित करके शिक्षा देनी चाहिए।
6. मानसिक मंद बालकों के लिए अलग से विशेष शिक्षा व्यवस्था होनी चाहिए।
इसमें प्रतिभाशाली, मानसिक मंद एवं सश्जनात्मक बालक आते है।
- प्रतिभाशाली बालक
प्रतिभाशाली बालक वे बालक होते है जिनकी बौद्धिक क्षमताए सामान्य बालको की अपेक्षा अधिक होती है। ये जीवन के विभिन्न क्षेत्रो मे विशिष्ट प्रदर्शन करते है। टरमेन के अनुसार ऐसे बालको की बुद्धिलब्धि 140 से ऊपर होती है जबकि मिल के अनुसार 190 से 200 बुद्धि - लब्धि वाले बालक प्रतिभाशाली होते है। विटी के अनुसार प्रतिभाशाली बालक संगीत, कला, सामाजिक नेतश्त्व तथा दूसरे विभिन्न क्षेत्रो मे अच्छा प्रदर्शन करते है।
शिक्षक के निरीक्षण द्वारा बालक का व्यवहार, रूचियों, योग्यताओ, क्षमताओ का ज्ञान प्राप्त कर प्रतिभाशाली बालको की पहचान की जाती है। विभिन्न प्रकार के अभिलेखो के आधार पर किसी भी विद्याथ्री की प्रतिभा को पहचाना जा सकता है। इसमे मुख्य रूप से संचयी अभिलेख, स्थानान्तरण अभिलेख, स्वास्थ्य अभिलेख, निर्देशन और परामर्श अभिलेख, मासिक प्रगति अभिलेख उपाख्यान संबधी अभिलेख है।
प्रतिभाशाली बालको के शिक्षण के प्रमुख उपागम
प्रतिभाशाली बालको की शिक्षा एक आसान कार्य नही है क्योकि यह संख्या मे कम होते है और समूह विजातीय होता है। अत: पूरे समूह पर किसी एक प्रणाली को लागू करना कठिन कार्य है। प्रतिभाशाली बालको के शिक्षण के प्रमुख तीन उपागम है।
त्वरण - इसमे प्रतिभाशाली बालको को उनकी शारीरिक आयु की अपक्षेा मानसिक आयु के आधार पर प्रवेश दिया जाता है। ऐसे बालको को विद्यालय में शीघ्र प्रवेश दिया जाता है। हावसन के अनुसार ऐसे बालक आठवी कक्षा या उसके बाद अधिक अच्छी प्रगति दिखाते है।
समृद्धिकरण - समृद्धिकरण का तात्पयर् है कि नियमित कक्षाआे मे दिये जाने वाले पाठ्यक्रम मे शैक्षिक अनुभव अधिक देकर उसे समृद्ध बनाया जाना। प्रतिभाशाली बालको के समुचित विकास के लिए पाठ्यक्रम इतना कठिन होना चाहिए कि उसे पढ़ना बालक के लिए एक चुनौतिपूर्ण हो।
विशिष्ट कक्षाएं - इनमे सामान्य विद्यालायो मे ही विशेष कक्षाए आयोजित कर विशेष रूप से नियोजित पाठ्यक्रमो को प्रस्तुत किया जाता है। विशिष्ट प्रतिभावान व्यक्तियों को बुलाकर उनके अनुभवो से छात्रो को लाभान्वित करवाया जाता है।
- मानसिक मंद बालक
मानसिक मंदता एक ऋणात्मक संकल्पना है। मानसिक रूप से मंद बालक घर, समाज तथा विद्यालय का कार्य नही कर पाते हैं। डॉल ने 1941 में मानसिक मंदता की पहचान के लिए 6 प्रमुख बाते बतायी हैं।
- जब बालक सामाजिक परिस्थितियों के साथ समायोजन न कर सके।
- जब बालक अपने साथियों के साथ मित्रवत व्यवहार न कर सके।
- जब व्यवहारिक तथा वातावरण सम्बन्धी कारणों से उसका मानसिक विकास न हो सके।
- जब बालक उतना कार्य न कर सके जितना उस आयु के लोगों से आशा की जाती है।
- विशेष शारीरिक दोष के कारण वह सामान्य कार्य न कर सके।
- जब बालक में कुछ ऐसे दोष हो जिन्हें परिष्कृत नही किया जा सकता है।
अमेरिकन एसोसिएशन ऑन मेण्टल डेफिशिएन्सी (1959) के अनुसार मानसिक मंदता में सामान्य बौद्धिक प्रकार्य सामान्य से कम स्तर के होते हैं। मानसिक मंदता की उत्पत्ति विकासात्मक अवस्थाओं में होती है और समायोजित व्यवहार को क्षति पहुंचाने से भी यह सम्बन्धित है।
मानसिक मंद बालकों की शिक्षा व्यवस्था-
मानसिक मंद बालकों की शिक्षा व्यवस्था के लिए कुछ सिद्धान्तों को प्रयोग में लाना चाहिए।
1. मानसिक मंद बालकों के लिए मूर्त माध्यम से शिक्षा दी जानी चाहिए। डूनॉन ने अपने अध्ययनों में यह पाया कि ऐसे बालक ऐलेक्जेण्डर परफारमेन्स टेस्ट को आसानी से कर लेते हैं।
2. कक्षा का आकार छोटा होना चाहिए तथा निर्देश व्यक्तिगत होने चाहिए।
3. करके सीखने के सिद्धान्त पर शिक्षा आधारित होनी चाहिए।
4. मानसिक मंद बालकों को वास्तविक स्थान पर ले जाकर शिक्षा देनी चाहिए।
5. शिक्षण को वास्तविक जीवन पर आधारित करके करना चाहिए। विभिन्न विषयों को आपस में सहसम्बन्धित करके शिक्षा देनी चाहिए।
6. मानसिक मंद बालकों के लिए अलग से विशेष शिक्षा व्यवस्था होनी चाहिए।
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