Monday, April 29, 2019

सामाजिक अध्ययन[SST]

Social Studies [SST]

SST के दो पहेलू है।

1.  Social science
2.  Social Studies


Social science [सामाजिक विज्ञान]

सामाजिक विज्ञान (Social science) मानव समाज का अध्ययन करने वाली शैक्षिक विधा है। प्राकृतिक विज्ञानों के अतिरिक्त अन्य विषयों का एक सामूहिक नाम है 'सामाजिक विज्ञान'। इसमें नृविज्ञान, पुरातत्व, अर्थशास्त्र, भूगोल, इतिहास, विधि, भाषाविज्ञान, राजनीति शास्त्र, समाजशास्त्र, अंतरराष्ट्रीय अध्ययन और संचार आदि विषय सम्मिलित हैं। कभी-कभी मनोविज्ञान को भी इसमें शामिल कर लिया जाता है।


Social Studies [सामाजिक अध्ययन]


सामाजिक अध्ययन सामाजिक विज्ञान, मानविकी और इतिहास का समाकलित अध्ययन हैं। शालेय कार्यक्रम में, सामाजिक अध्ययन, एक समन्वित व्यवस्थित अध्ययन प्रदान करता है, जो मानवशास्त्र, पुरातत्वशास्त्र, अर्थशास्त्र, भूगोल, इतिहास, विधिशास्त्र, दर्शन, राजनीति विज्ञान, मनोविज्ञान, धर्म, और समाजशास्त्र जैसे अनुशासनों से, और साथ ही, मानविकी, गणित, और प्राकृतिक विज्ञान की उचित सामग्री से, लिया जाता हैं।



 सामाजिक विज्ञान की शाखाएँ 


1. नृविज्ञान (Anthropology)
2. अर्थशास्त्र (Economics)
3. शिक्षाशास्त्र (Education)
4. भूगोल (Geography)
5. इतिहास (History)
6. विधि (Law)
7. भाषाविज्ञान (Linguistics)
8. राजनीति विज्ञान (Political science)
9. लोक प्रशासन (Public administration)
10. मनोविज्ञान (Psychology)
11. समाजशास्त्र (Sociology)



 सामाजिक अध्ययन के उद्देश्य निम्नलिखित हैं:-

1. व्यक्तित्व का सर्वागीण विकास (Al-round Development of Personality)

सामाजिक अध्ययन विषय का उद्देश्य बच्चों का सर्वागीण विकास करना है। मानव ने इस सृष्टि पर जीवन कैसे आरम्भ किया, उसका भौतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक वातावरण क्या था। इसका ज्ञान बालकों को देना आवश्यक है, क्योंकि तभी उन्हें अपने अस्तित्व की जानकारी प्राप्त होगी। बच्चों को यह जानकारी देनी आवश्यक है कि भिन्न-भिन्न प्रकार की संस्थाओं का जन्म कैसे हुआ।

2. वांछित अभिव्यक्ति का विकास [Deplopment of Desired Attitudes ]

ज्ञान के साथ-साथ उचित अभिवतियो का विकास भी आवश्यक है। उचित अभिवतियों अच्छे व्यवहार का आधार है। यह अभिवतियों बौद्धिक तथा भावनात्मक दोनों प्रकार की होती है। बालक का व्यवहार इन्हीं अभिवतियों पर निर्भर करता है। भावनात्मक अभिवतियों पूर्वाग्रह, ईर्ष्या तथा आलस्य के आधार पर निर्मित होती है जबकि बौद्धिक अभिवतियों  तथ्यों को अधिक महत्व देते है। सामाजिक अध्ययन के अध्यापक का कर्तव्य है कि वह बालकों मे बौद्धिक अभिवतियो का विकास करे। उनके अंदर कुछ सामाजिक गुण जैसे आत्मसंयम, धेर्य, सहानुभूति तथा आत्म समान को विकसित करे।


3. ज्ञान प्रदान करना (Providing Knowledge)

 स्कूल बालकों को अच्छा नागरिक बनाना चाहता है तो उन्हें ज्ञान प्रदान करना आवश्यक है। ज्ञान स्पष्ट चिंतन व उचित निर्णय के लिए  बहुत आवश्यक हैं। छात्रों को  समाज के अनेक रीति रिवाजों रहन-सहन,  संस्कृति, सभ्यता तथा नियम आदि से परिचित कराना बहुत आवश्यक है। इस प्रकार के ज्ञान से छात्र अपने भविष्य के जीवन को सफल बना सकते हैं।


4. अच्छी नागरिकता का विकास (Development of Good Citizenship)

प्रजातंत्र की सफलता के लिए नागरिकों में नागरिकता के गुणों को विकसित करना आवश्यक हैं। औद्योगिक क्रांति के कारण सामाजिक संगठन पर भी प्रभाव पड़ा है। इसने परिवार, धर्म, समुदाय को छिन्न - भिन्न करके रक दिया है। नगरो में अनेक वे  व्यसाय पनपने लगे हैं, गांव में सीमित भूमि होने के कारण और जनसंख्या के तेजी से बढ़ने के कारण लोगों ने घरों को छोड़कर नगरों में रहना आरम्भ कर दिया है। जिससे नगरों में भी आवास की समस्या हो गई है। तनाव बढ़ रहे हैं। इसलिए सामाजिक अध्यन में अच्छी नागरिकता की शिक्षा देने का  महत्व बढ़ गया है।


5. मानव समाज की व्याख्या करना (Explaination of Human Society)

मानव समाज जटिलताओं से भरा हुआ है। इसमें पूर्वाग्रह,  ईर्ष्या, द्धेष, अपनत्व की भावना के कारण पारस्परिक संघर्ष सृष्टि के आरंभ से चले आ रहे है इसलिए बच्चो को यह जानकारी प्रदान करना आवश्यक है कि जिस वातावरण में वह रहते हैं वह अस्तित्व में कैसे आया। व्यक्ति  एवम समाज  एक दूसरे को किस सीमा तक प्रभावित करते हैं। संसार की विभिन्न सस्थायो का विकास कैसे हुआ। समय के साथ  बदलती हुई आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सामाजिक सस्थाए  कैसे विकसित हुई तथा उनमें परिवर्तन कैसे आया।


6. मानवीय जीवन का विकास (Development of Human Life)

सामाजिक अध्ययन शिक्षण का विशिष्ट उद्देश्य मानवीय समाज की व्याख्या करना है मानव ने इस     सृष्टि पर जीवन कैसे आरम्भ किया, आदि मानव से आज के मानव में जो परिवर्तन आये, उनका रहन- सहन, खान, पान, भाषा, व्यवहार, सभ्यता एम संस्कृति में आय  बदलाव की कहानी कितनी पुरानी है।


7. विद्यार्थियों का सामाजिकरण   (Socialization of Students)

 सामाजिक अध्ययन बच्चो में सामाजिक आदतों का विकास करता है। उनमें सहयोग,  सहकारिता, सहनशीलता, सहानुभूति, सहिष्णुता जैसे गुणों को विकसित किया जाता है। उनमें विश्लेषण एंव निष्कर्ष, निरूपण जैसे गुणों को विकसित किया जाता है। विद्यार्थी तथ्य संग्रह करना सिकते है। सार्थक रूप से लिखना, पड़ना सीखते हैं।


8. परस्पर निर्भरता की भावना का विकास (Development of feeling of interdepenfence)

स्वस्थ एंव संतुलित सामाजिक जीवन के लिए मनुष्य को मानवीय प्रकृति तथा भौतिक वातावरण को समझना पड़ता है। यंत्रीकरण, श्रम के विभाजन और बड़े पैमाने पर उद्योगों के कारण आज की सामाजिक ब्यावस्था अत्यंत जटिल हो गई है। आज हर मानव एक - दूसरे पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर है।


सामाजिक अध्ययन का क्षेत्र  (Scope of Social Studies)

सामाजिक अध्ययन का क्षेत्रा भी विस्तृत तथा व्यापक है। इसकी विषय वस्तु का निर्माण विभिन्न सामाजिक विज्ञान करते हैं जिसमें भूगोल, इतिहास, नागरिक शास्त्रा, राजनीति शास्त्रा, समाज शास्त्रा, दर्शन शास्त्र, नीति शास्त्रा आदि हैं। इन सभी विषयों के आधारभूत तत्व मिलकर सामाजिक अध्ययन का पाठ्यक्रम निर्धारित करते हैं।



यह मानव जीवन के प्रत्येक पक्ष सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, ऐतिहासिक को स्पर्श करता है। इसप्रकार सामाजिक अध्ययन का क्षेत्रा विशाल तथा व्यापक है। इसमें विविधता है जो मानव को अनुभव ग्रहण करने में मदद करता है।

माइकल्स के शब्दों में,‘‘सामाजिक अध्ययन का कार्यक्रम इतना विशाल होना चाहिए जिससे विद्यार्थियों को विभिन्न प्रकार के अनुभव मिल सके व उनका ज्ञान विस्तृत हो सके।“

सामाजिक अध्ययन का क्षेत्रा सम्पूर्ण मानव जीवन के भौतिक एवं सामाजिक वातावरण से सम्बन्धित है, इसीलिये यह विस्तृत हैं। इसे दो प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है।

 वसुधेैव कुटुम्बकम्’ के सिद्धान्त के अनुसार मानव परिवार से विश्व परिवार का सदस्य है, इसीलिए मनुष्य का मनुष्य के साथ गहरा सम्बन्ध है। मानवीय जीवन के वह सभी पहलू या पक्ष जो मानव के विकास के लिए आवश्यक है सामाजिक अध्ययन की विषयवस्तु के अन्तर्गत आते हैं। इन पहलूओं से सम्बन्धित विषयों की जानकारी हम सामाजिक अध्ययन के अन्तर्गत करते हैं। इतिहास, भूगोल, नागरिक शास्त्रा, अर्थशास्त्रा, समाजशास्त्रा आदि सभी विषय इसके क्षेत्रा की सीमा में आते हैं क्योकि यह सभी विषय भूत, वर्तमान तथा भविष्य के मध्य सम्बन्ध स्थापित करते हैंः-
सामाजिक अध्ययन / सामाजिक अध्ययन की अवधारणा  एवं प्रकृति


प्रो0 वी0आर0 तनेजा ने ठीक कहा है कि वे लोग गलती पर हैं जो इतिहास के किसी टुकड़े, भूगोल के किसी हिस्से, नागरिक शास्त्रा की कुछ बातें तथा अर्थशास्त्रा से सम्बन्धित कुछ सामाजिक सन्दर्भों को केवल एकत्रित कर देने को सामाजिक अध्ययन मानते हैं, परन्तु वास्तव में इन विषयों का शिक्षण अलग-अलग करते हैं।’’



सामाजिक विज्ञान का उपयोग

सामाजिक अध्ययन का उपयोग निम्नलिखित रूप से किया जा सकता हैं:-

1. व्यक्तित्व का सर्वागीण विकास (Al-round Development of Personality)

2. वांछित अभिव्यक्ति का विकास [Deplopment of Desired Attitudes ]

3. ज्ञान प्रदान करना (Providing Knowledge)

4. अच्छी नागरिकता का विकास (Development of Good Citizenship)

5. मानव समाज की व्याख्या करना (Explaination of Human Society)

6. मानवीय जीवन का विकास (Development of Human Life)

7. विद्यार्थियों का सामाजिकरण   (Socialization of Students)

8. परस्पर निर्भरता की भावना का विकास (Development of feeling of interdepenfence)



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