National Curriculum Framework (NCF 2005)
राष्ट्रीय पाठयचर्या 2005 की रूपरेखा
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एनसीएफ) एक रुपरेखा प्रदान करती है। जिसमें शिक्षक और स्कूल उन अनुभवों की योजना बना सकते हैं जो उन्हें लगता है कि बच्चों के पास होने चाहिए।
यह शैक्षणिक उद्देश्य, शैक्षिक अनुभव, अनुभव संगठन और शिक्षार्थी का आकलन जैसे चार मुद्दों को संबोधित करता है।एनसीएफ पाठ्यचर्या और पाठ्यक्रम से अलग है। यह शिक्षा के विभिन्न पहलुओं पर दिशा-निर्देश प्रदान करता है।इससे पहले एनसीएफ व्यवहारवादी मनोविज्ञान पर आधारित थे लेकिन एन.सी.एफ 2005 रचनात्मक सिद्धांत पर आधारित है।एनसीएफ 2005 के विभिन्न विषयों, प्रधानाध्यापकों, शिक्षकों और माता-पिता, एनसीईआरटी संकाय इत्यादि के प्रतिष्ठित विद्वानों द्वारा गहन विचार-विमर्श की श्रृंखला के माध्यम से उत्पन्न विचारों के झुकाव के लिए वर्तमान स्वरूप और रूप का अधिकार है।
एनसीएफ 2005 का विकास:
एनसीएफ 2005 टैगोर के निबंध 'सभ्यता और प्रगति' से उद्धरण के साथ शुरू होता है जिसमें कवि हमें याद दिलाता है कि बचपन में 'रचनात्मक भावना' और 'उदार खुशी' एक कुंजी हैं, जिनमें से दोनों को एक नासमझ वयस्क समाज द्वारा विकृत किया जा सकता है।नेशनल स्टीयरिंग कमेटी की स्थापना प्रोफेसर यशपाल की अध्यक्षता में की गई थी।अंततः 7 सितंबर, 2005 को सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ एजुकेशन (सीएबीई) में चर्चा और पारित किया गया।शिक्षा पर राष्ट्रीय नीति ने शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए शैक्षिक प्रौद्योगिकी आवश्यकता पर बल दिया।इस नीति ने दो प्रमुख केन्द्र प्रायोजित योजनाओं, शैक्षणिक प्रौद्योगिकी और कंप्यूटर साक्षरता पर ध्यान दिया।
पॉलिसी दस्तावेजों और रिपोर्टों में पहले से विचार किए गए निम्नलिखित कुछ विचार थे:
ज्ञान को स्कूल के बाहर के जीवन से जोड़ना।पड़ाई रटने की तरह ना हो।कक्षा की शिक्षा और परीक्षा को एकीकृत करना और इसे अधिक लचीला बनाना।बच्चों के समग्र विकास करने के लिए पाठ्यक्रम को समृद्ध करना ताकि यह पाठ्यपुस्तकों से अतिरिक्त हो।एक ऐसी पहचान को पोषित करना जिसमें देश की लोकतांत्रिक राजनीति के अंतर्गत ही राष्ट्रीय चिंताए आएं।
एनसीएफ 2005 के सिद्धांतों का मार्गदर्शन:
स्कूल में सभी बच्चों को शामिल करना और बनाए रखने का महत्व – यूईई के अनुसार, सामाजिक, आर्थिक, मनोवैज्ञानिक, शारीरिक, बौद्धिक विशेषता में उनके मतभेदों के बावजूद प्रत्येक बच्चा स्कूल में सफलता सीखने और प्राप्त करने में सक्षम होना चाहिए।ज्ञान, कार्य और शिल्प की विभिन्न परंपराओं के समृद्ध विरासत में शामिल करने के लिए पाठ्यचर्या के दायरे को विस्तृत करें।पंचायती राज संस्था पर स्थानीय ज्ञान और महत्वपूर्ण शिक्षा के अभ्यास का एकीकरण पर विद्रोह और जोर।बच्चों को पर्यावरण और इसकी सुरक्षा के प्रति संवेदनशील बनाना।एक ऐसी शांति की संस्कृति का निर्माण करना जिसमें व्यक्तियों को अपने प्राकृतिक और सामाजिक वातावरण के अनुरूप रहने के लिए सशक्त बनाना। शांति को स्कूल के पाठ्यक्रम मे एकीकृत करना।संविधान में शामिल सिद्धांतों के लिए अपने अधिकारों और कर्तव्यों और प्रतिबद्धताओं के प्रति जागरूक नागरिकता का निर्माण
प्रभाव:
सीखना ज्ञान के निर्माण की प्रक्रिया है, जिसमे शिक्षार्थी नए विचारों को मौजूदा विचारों के आधार पर जोड़कर सक्रिय रूप से अपना ज्ञान बनाते हैं।शिक्षार्थी अनुभवों के माध्यम से मानसिक वास्तविकता का निर्माण करते हैं।विचारों की संरचना और पुनर्गठन आवश्यक विशेषताएं हैं क्योंकि इससे शिक्षार्थियों की सीखने में प्रगति होती है।प्रासंगिक गतिविधियों के माध्यम से शिक्षार्थियों की मानसिक छवियों के निर्माण में सुविधा हो सकती है।सहयोगी शिक्षा संधिक्रम वार्ता, कईं विचारों को साझा करने और बाहरी वास्तविकता के आंतरिक प्रतिनिधित्व को बदलने के लिए जगह प्रदान करती है।बच्चों को ऐसे प्रश्न पूछने की इजाजत दी जाती है, जो बाहर होने वाली कोई भी दो चीज़ों को स्कूल लर्निंग के साथ संबंधित करेंबच्चों को, बजाय बस याद रखने और सही तरीके से जवाब प्राप्त करने के अपने शब्दों और अपने अनुभवों से जवाब देने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।समझदार अनुमान को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
सामाजिक विज्ञान को पढ़ाने का लक्ष्य और उद्देश्य- एनसीएफ 2005
अनुशासनिक निशानों को पहचानना ताकि सामग्री खराब ना हो सके और पौधों जैसे विषयों के एकीकरण पर बल दिया जा सके।सामाजिक रूप से वंचित समूहों, आदिवासियों और अल्पसंख्यक के मुद्दों के लिए लिंग न्याय और संवेदनशीलता को सामाजिक विज्ञान के सभी क्षेत्रों को सूचित करना चाहिए।गंभीर रूप से सामाजिक और आर्थिक मुद्दों और गरीबी, बाल श्रम, विनाश, निरक्षरता और असमानता के कईं अन्य आयामों की चुनौतियों की जांच करें।लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष समाज में नागरिकों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को समझें।हमारे जैसे बहुलवादी समाज में, यह महत्वपूर्ण है कि सभी क्षेत्रों और सामाजिक समूह पाठ्यपुस्तकों से संबंधित हो सकें।महत्वपूर्ण विषयों के उपचार में एकीकृत दृष्टिकोण पर बल देते हुए सामाजिक विज्ञान को अनुशासनात्मक परिप्रेक्ष्य से माना जाना चाहिए।शैक्षिक मुद्दों पर सोच प्रक्रिया निर्णय लेने और गंभीर प्रतिबिंब विकसित करने के लिए शैक्षणिक प्रथाओं को सक्षम करना महत्वपूर्ण है।द्वितीय अवस्था में, सामाजिक विज्ञान में इतिहास, भूगोल, राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र के तत्व शामिल हैं। मुख्य ध्यान समकालीन भारत पर होगा और शिक्षार्थी को देश के सामने आने वाली सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों की गहरी समझ में शुरू किया जाएगा।
Ncf 2005 के अनुसार शिक्षक की भूमिका क्या है
भारत में राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एनसीएफ) का निर्माण करने की जिम्मेदारी एनसीईआरटी की है। यह संस्था समय-समय पर इसकी समीक्षा भी करती है। एनसीएफ-2005 के बनने का कार्य एनसीईआरटी के तत्कालीन निदेशक प्रो. कृष्ण कुमार के नेतृत्व में संपन्न हुआ।
इसमें शिक्षा को बाल केंद्रित बनाने, रटंत प्रणाली से निजात पाने, परीक्षा में सुधार करने और जेंडर, जाति, धर्म आदि आधारों पर होने वाले भेदभाव को समाप्त करने की बात कही गई है। शोध आधारित दस्तावेज़ तैयार करने के लिए 21 राष्ट्रीय फोकस समूह बने जो विभिन्न विषयों पर केंद्रित थे। इसके नेतृत्व की जिम्मेदारी संबंधित क्षेत्र के विषय विशेषज्ञों को दी गई।
शिक्षा के लक्ष्य
1.एनसीएफ-2005 के अनुसार शिक्षा का लक्ष्य किसी बच्चे के स्कूली जीवन को उसके घर, आस-पड़ोस के जीवन से जोड़ना है। इसके लिए बच्चों को स्कूल में अपने वाह्य अनुभवों के बारे में बात करने का मौका देना चाहिए। उसे सुना जाना चाहिए। ताकि बच्चे को लगे कि शिक्षक उसकी बात को तवज्जो दे रहे हैं।
2. शिक्षा का दूसरा प्रमुख लक्ष्य है आत्म-ज्ञान । यानि शिक्षा खुद को खोजने, खुद की सच्चाई को जानने की एक निरंतर प्रक्रिया बने। इसके लिए बच्चों को विभिन्न तरह के अनुभवों का अवसर देकर इस प्रक्रिया को सुगम बनाने की बात एनसीएफ में कही गई है।
3. शिक्षा के तीसरे लक्ष्य के रूप में साध्य और साधन दोनों के सही होने वाले मुद्दे पर चर्चा की गई है। इसमें कहा गया कि मूल्य शिक्षा अलग से न होकर पूरी शिक्षा की पूरी प्रक्रिया में शामिल होनी चाहिए। तभी हम बच्चों के सामने सही उदाहरण पेश कर पाएंगे।
4. सांस्कृतिक विविधता का सम्मान करने और जीवन जीने के अन्य तरीकों के प्रति भी सम्मान का भाव विकसित करने की बात करता है।
5. वैयक्तिक अंतर के महत्व को स्वीकार करने की बात करता है। इसमें कहा गया है कि हर बच्चे की अपनी क्षमताएं और कौशल होते हैं। इसे स्कूल में व्यक्त करने का मौका देना चाहिए जैसे संगीत, कला, नाट्य, चित्रकला, साहित्य (किस्से कहानियां कहना), नृत्य एवं प्रकृति के प्रति अनुराग इत्यादि।
6. ज्ञान के वस्तुनिष्ठ तरीके के साथ-साथ साहित्यिक एवं कलात्मक रचनात्मकता को भी मनुष्य के ज्ञानात्मक उपक्रम का एक हिस्सा माना गया है। यहां पर तर्क (वैज्ञानिक अन्वेषण) के साथ-साथ भावना (साहित्य) वाले पहलू को भी महत्व देने की बात कही गई है।
7. इसमें कहा गया है, “शिक्षा को मुक्त करने वाली प्रक्रिया के रूप में देखा जाना चाहिए अन्यथा अबतक जो कुछ भी कहा गया है वह अर्थहीन हो जाएगा। शिक्षा की प्रक्रिया को सभी तरह के शोषण और अन्याय गरीबी, लिंग भेद, जाति तथा सांप्रदायिक झुकाव) से मुक्त होना पड़ेगा जो हमारे बच्चों को इस प्रक्रिया से वंचित करते हैं।”
8. आठवीं बिंदु स्कूल में पढ़ने-पढ़ाने के काम के लिए अच्छा माहौल बनाने की बात करता है। साथ ही ऐसा माहौल बनाने में बच्चों की भागीदारी सुनिश्चित करने की भी बात करता है। यानि शिक्षक खुद आगे न आकर बच्चों को नेतृत्व करने का मौका दें।
9. नौवां बिंदु अपने देश के ऊपर गर्व की भावना विकसित करने की बात करता है। ताकि बच्चे देश से हरा जुड़ाव महसूस कर सकें। इसके साथ ही कहा गया है, “बच्चों में अपने राष्ट्र के प्रति गौरव की भावना संपूर्ण मानवता की महान उपलब्धियों के प्रति गौरव को पीछे न कर दे।”
राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (एन सी टी ई) ने शिक्षक शिक्षा पर राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचा तैयार किया है, जिसे मार्च 2009 में परिचालित किया गया था। यह ढांचा एन सी एफ, 2005 की पृष्ठभूमि में तैयार किया गया है और नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 में निर्धारित सिद्धांतों ने शिक्षक शिक्षा पर परिवर्तित ढांचा अनिवार्य कर दिया है, जो एन सी एफ, 2005 में संस्तुत स्कूल पाठ्यचर्या के परिवर्तित दर्शन के अनुकूल हो। शिक्षक शिक्षा का दर्शन स्पष्ट करते हुए इस ढांचे में नए दृष्टिकोण के कुछ महत्वपूर्ण आयाम हैं :
इस ढांचे ने फोकस, विशिष्ट उद्देश्यों, सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक शिक्षा के अनुकूल विस्तृत अध्ययन क्षेत्र और पाठ्यचर्या अंतरण और विभिन्न प्रारंभिक शिक्षक शिक्षा कार्यक्रमों के लिए मूल्यांकन कार्यनीति उजागर की हैं। मसौदा आधारभूत मुद्दों को भी रेखांकित करता है, जो इन पाठ्यक्रमों के सभी कार्यक्रमों का निरूपण निदेशित करेगा। इस ढांचे ने सेवाकालीन शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के दृष्टिकोण और रीति विधान पर अनेक सिफारिशें भी की हैं और इसकी कार्यान्वयन कार्यनीति भी रेखांकित की गई है। एन सी एफ टी ई के स्वाभाविक परिणाम के रूप में एन सी टी ई ने विभिन्न शिक्षक शिक्षा पाठ्यक्रमों का 'आदर्श' पाठ्यक्रम भी तैयार किया है।
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा-2005
विषय प्रवेश
1. यह विद्यालयी शिक्षा का अब तक का नवीनतम राष्ट्रीय दस्तावेज है ।
2. इसे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के के शिक्षाविदों,वैज्ञानिकों,विषय विशेषज्ञों व अध्यापकों ने मिलकर तैयार किया है ।
3. मानव विकास संसाधन मंत्रालय की पहल पर प्रो0 यशपाल की अध्यक्षता में देश के चुने हुए विद्वानों ने शिक्षा को नई राष्ट्रीय चुनौतियों के रूप में देखा ।
मार्गदर्शी सिद्धान्त
1. ज्ञान को स्कूल के बाहरी जीवन से जोड़ा जाए।
2. पढाई को रटन्त प्रणाली से मुक्त किया जाए।
3. पाठ्यचर्या पाठ्यपुस्तक केन्द्रित न रह जाए।
4. कक्षाकक्ष को गतिविधियों से जोड़ा जाए।
5. राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति आस्थावान विद्यार्थी तैयार हो।
प्रमुख सुझाव
1. शिक्षण सूत्रों जैसे-ज्ञात से अज्ञात की ओर, मूर्त से अमूर्त की ओर आदि का अधिकतम प्रयोग हो।
2. सूचना को ज्ञान मानने से बचा जाए।
3. विशाल पाठ्यक्रम व मोटी किताबें शिक्षा प्रणाली की असफलता का प्रतीक है।
4. मूल्यों को उपदेश देकर नहीं वातावरण देकर स्थापित किया जाए।
5. अच्छे विद्यार्थी की धारणा में बदलाव आवश्यक है अर्थात् अच्छा विद्यार्थी वह है जो तर्क पूर्ण बहस के द्वारा अपने मौलिक विचार शिक्षक के सामने प्रस्तुत करता है।
6. अभिभावकों को सख्त सन्देश दिया जाए कि बच्चों को छोटी उम्र में निपुण बनाने की आकांक्षा रखना गलत है।
7. बच्चों को स्कूल से बाहरी जीवन में तनावमुक्त वातावरण प्रदान करना।
8. “कक्षा में शान्ति” का नियम बार-बार ठीक नहीं अर्थात् जीवन्त कक्षागत वातावरण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
9. सहशैक्षिक गतिविधियों में बच्चों के अभिभावकों को भी जोड़ा जाए।
10. समुदाय को मानवीय संसाधन के रूप में प्रयुक्त होने का अवसर दें।
11. खेल आनन्द व सामूहिकता की भावना के लिए है, रिकार्ड बनाने व तोड़ने की भावना को प्रश्रय न दे।
12. बच्चों की अभिव्यक्ति में मातृ भाषा महत्वपूर्ण स्थान रखती है। शिक्षक अधिगम परिस्थितियों में इसका उपयोग करें।
13. पुस्तकालय में बच्चों को स्वयं पुस्तक चुनने का अवसर दें।
14. वे पाठ्यपुस्तकें महत्वपूर्ण होती है जो अन्तःक्रिया का मौका दें।
15. कल्पना व मौलिक लेखन के अधिकाधिक अवसर प्रदान करावें।
16. सजा व पुरस्कार की भावना को सीमित रूप में प्रयोग करना चाहिए।
17. बच्चों के अनुभव और स्वर को प्राथमिकता देते हुए बाल केन्द्रित शिक्षा प्रदान की जाए।
18. सांस्कृतिक कार्यक्रमों में मनोरंजन के स्थान पर सौन्दर्यबोध को प्रश्रय दे।
19. शिक्षक प्रशिक्षण व विद्यार्थियों के मूल्यांकन को सतत प्रक्रिया के रूप में अपनाया जाए।
20. शिक्षकों को अकादमिक संसाधन व नवाचार आदि समय पर पहुँचाएँ जाएँ।
पिछले वर्ष के कुछ प्रश्न:
1. एनसीएफ 2005 का मानना है कि पाठ्यपुस्तकों को एक माध्यम के रूप में देखा जाना चाहिए: (सीटीईटी सितंबर 2016)
a समाज के स्वीकृत मूल्यों को लागू करना
Bप्रमुख वर्ग द्वारा स्वीकार की गई जानकारी को पार करने के लिए
C परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए
Dआगे की जांच के लिए
उत्तर: (a)
एक छात्र अपने अधिग्रहित ज्ञान को अपने बाह्य पर्यावरण से जोड़ सकता है और साथियों, परिवार, देखभाल करने वालों द्वारा सूचित एक पहचान को पोषित कर सकता है। एनसीएफ 2005 के अनुसार, पाठ्यपुस्तकों को समाज के स्वीकृत मूल्यों को लागू करने के लिए एक माध्यम के रूप में देखा जाना चाहिए।
2. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा, 2005 के अनुसार, _____ और _____ सीखने के चरित्र में हैं। (सीटीईटी सितंबर 2016)
Aनिष्क्रिय,
Bसरलसक्रिय,
Cसामाजिकनिष्क्रिय,
Dसामाजिकसक्रिय, सरल
उत्तर: (b)
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा, 2005 के अनुसार, सीखना अपने चरित्र में सक्रिय और सामाजिक है।
3. उच्च प्राथमिक स्तर पर सामाजिक विज्ञान में अवधारणाओं को विकसित करने के लिए सबसे उपयुक्त विधि चुनें। (सीटीईटी मई 2016)
पाठ्यपुस्तक में दिए गए सवालों के जवाब याद रखना
प्रमुख विशेषताएं सूचीबद्ध करना
निर्देशित प्रश्नों की एक श्रृंखला के माध्यम से सीखना
परिभाषाओं के माध्यम से सीखना
उत्तर: (b)
सामाजिक विज्ञान में अवधारणाओं को विकसित करने के लिए उपयोग की जाने वाली विधियां प्रमुख विशेषताओं को सूचीबद्ध करती हैं क्योंकि इसमें इतिहास शामिल है जो हमारी संस्कृति, राजनीतिक विज्ञान के बारे में बताता है जो सरकार भारत का एक संविधान है के बारे में बताता है, भूगोल जो पर्यावरण और अर्थशास्त्र के बारे में बताता है और अर्थशास्त्र जो भारत की आर्थिक स्थितियों के बारे में बताता है।
4. सामाजिक विज्ञान में उच्च प्राथमिक स्तर पर __ शामिल हैं। (सीटीईटी फरवरी 2015), (सीटीईटी जुलाई 2013)
भूगोल, इतिहास, राजनीतिक विज्ञान और अर्थशास्त्र राजनीतिक विज्ञान, भूगोल, इतिहास, समाजशास्त्र इतिहास, भूगोल, राजनीतिक विज्ञान, पर्यावरण विज्ञान इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, राजनीतिक विज्ञान
उत्तर: (a)
5. संचालन समिति के अध्यक्ष कौन थे।
डॉ. कृष्णा कुमार , प्रोफेसर अरविंद कुमार, प्रोफेसर गोविंद दास , प्रोफेसर यशपाल
उत्तर: (d)
नेशनल स्टीयरिंग कमेटी की स्थापना प्रोफेसर यशपाल की अध्यक्षता में की गई थी।
6. एनसीएफ 2005 के अनुसार, सामाजिक विज्ञान में शिक्षा का उद्देश्य छात्र को ............ में सक्षम करना है। (सीटीईटी जुलाई 2013)
राजनीतिक निर्णयों की आलोचना करनासामाजिक-राजनीतिक वास्तविकता का विश्लेषणदेश में सामाजिक राजनीतिक स्थिति पर जानकारी का प्रतिधारणसामाजिक राजनीतिक सिद्धांत के बारे में एक स्पष्ट और संक्षिप्त तरीके से वर्तमान ज्ञान ताकि छात्र उन्हें आसानी से याद रखें
उत्तर: (b)
एनसीएफ 2005 के अनुसार, सामाजिक विज्ञान में शिक्षा का उद्देश्य छात्र को सामाजिक-राजनीतिक हकीकत का विश्लेषण करने में सक्षम होना चाहिए ताकि वे समाज में लोगों, सरकार, मीडिया की भूमिका को समझ सकें।
7. एक सामाजिक विज्ञान शिक्षक को प्रभावी होने के लिए निम्न में से कौन सी विधियों को नियोजित करना चाहिए? (सीटीईटी जुलाई 2013)
उत्तेजक और रोचक गतिविधियों द्वारा छात्रों की भागीदारी में वृद्धिहर सोमवार को परीक्षण करके छात्रों के ज्ञान में वृद्धिमध्यम गति के शिक्षार्थियों के आत्मविश्वास को बढ़ावा देने के लिए पुरस्कार व्यवस्थाघर पर परियोजनाएं सौंपें ताकि माता-पिता को अपने बच्चे के अध्ययन में शामिल किया जा सके
उत्तर: (a)
एक सामाजिक विज्ञान शिक्षक को प्रभावी होने के लिए विचार उत्तेजक और रोचक गतिविधियों द्वारा छात्रों की भागीदारी में वृद्धि को नियोजित करना चाहिए।
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राष्ट्रीय पाठयचर्या 2005 की रूपरेखा
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एनसीएफ) एक रुपरेखा प्रदान करती है। जिसमें शिक्षक और स्कूल उन अनुभवों की योजना बना सकते हैं जो उन्हें लगता है कि बच्चों के पास होने चाहिए।
यह शैक्षणिक उद्देश्य, शैक्षिक अनुभव, अनुभव संगठन और शिक्षार्थी का आकलन जैसे चार मुद्दों को संबोधित करता है।एनसीएफ पाठ्यचर्या और पाठ्यक्रम से अलग है। यह शिक्षा के विभिन्न पहलुओं पर दिशा-निर्देश प्रदान करता है।इससे पहले एनसीएफ व्यवहारवादी मनोविज्ञान पर आधारित थे लेकिन एन.सी.एफ 2005 रचनात्मक सिद्धांत पर आधारित है।एनसीएफ 2005 के विभिन्न विषयों, प्रधानाध्यापकों, शिक्षकों और माता-पिता, एनसीईआरटी संकाय इत्यादि के प्रतिष्ठित विद्वानों द्वारा गहन विचार-विमर्श की श्रृंखला के माध्यम से उत्पन्न विचारों के झुकाव के लिए वर्तमान स्वरूप और रूप का अधिकार है।
एनसीएफ 2005 का विकास:
एनसीएफ 2005 टैगोर के निबंध 'सभ्यता और प्रगति' से उद्धरण के साथ शुरू होता है जिसमें कवि हमें याद दिलाता है कि बचपन में 'रचनात्मक भावना' और 'उदार खुशी' एक कुंजी हैं, जिनमें से दोनों को एक नासमझ वयस्क समाज द्वारा विकृत किया जा सकता है।नेशनल स्टीयरिंग कमेटी की स्थापना प्रोफेसर यशपाल की अध्यक्षता में की गई थी।अंततः 7 सितंबर, 2005 को सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ एजुकेशन (सीएबीई) में चर्चा और पारित किया गया।शिक्षा पर राष्ट्रीय नीति ने शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए शैक्षिक प्रौद्योगिकी आवश्यकता पर बल दिया।इस नीति ने दो प्रमुख केन्द्र प्रायोजित योजनाओं, शैक्षणिक प्रौद्योगिकी और कंप्यूटर साक्षरता पर ध्यान दिया।
पॉलिसी दस्तावेजों और रिपोर्टों में पहले से विचार किए गए निम्नलिखित कुछ विचार थे:
ज्ञान को स्कूल के बाहर के जीवन से जोड़ना।पड़ाई रटने की तरह ना हो।कक्षा की शिक्षा और परीक्षा को एकीकृत करना और इसे अधिक लचीला बनाना।बच्चों के समग्र विकास करने के लिए पाठ्यक्रम को समृद्ध करना ताकि यह पाठ्यपुस्तकों से अतिरिक्त हो।एक ऐसी पहचान को पोषित करना जिसमें देश की लोकतांत्रिक राजनीति के अंतर्गत ही राष्ट्रीय चिंताए आएं।
एनसीएफ 2005 के सिद्धांतों का मार्गदर्शन:
स्कूल में सभी बच्चों को शामिल करना और बनाए रखने का महत्व – यूईई के अनुसार, सामाजिक, आर्थिक, मनोवैज्ञानिक, शारीरिक, बौद्धिक विशेषता में उनके मतभेदों के बावजूद प्रत्येक बच्चा स्कूल में सफलता सीखने और प्राप्त करने में सक्षम होना चाहिए।ज्ञान, कार्य और शिल्प की विभिन्न परंपराओं के समृद्ध विरासत में शामिल करने के लिए पाठ्यचर्या के दायरे को विस्तृत करें।पंचायती राज संस्था पर स्थानीय ज्ञान और महत्वपूर्ण शिक्षा के अभ्यास का एकीकरण पर विद्रोह और जोर।बच्चों को पर्यावरण और इसकी सुरक्षा के प्रति संवेदनशील बनाना।एक ऐसी शांति की संस्कृति का निर्माण करना जिसमें व्यक्तियों को अपने प्राकृतिक और सामाजिक वातावरण के अनुरूप रहने के लिए सशक्त बनाना। शांति को स्कूल के पाठ्यक्रम मे एकीकृत करना।संविधान में शामिल सिद्धांतों के लिए अपने अधिकारों और कर्तव्यों और प्रतिबद्धताओं के प्रति जागरूक नागरिकता का निर्माण
प्रभाव:
सीखना ज्ञान के निर्माण की प्रक्रिया है, जिसमे शिक्षार्थी नए विचारों को मौजूदा विचारों के आधार पर जोड़कर सक्रिय रूप से अपना ज्ञान बनाते हैं।शिक्षार्थी अनुभवों के माध्यम से मानसिक वास्तविकता का निर्माण करते हैं।विचारों की संरचना और पुनर्गठन आवश्यक विशेषताएं हैं क्योंकि इससे शिक्षार्थियों की सीखने में प्रगति होती है।प्रासंगिक गतिविधियों के माध्यम से शिक्षार्थियों की मानसिक छवियों के निर्माण में सुविधा हो सकती है।सहयोगी शिक्षा संधिक्रम वार्ता, कईं विचारों को साझा करने और बाहरी वास्तविकता के आंतरिक प्रतिनिधित्व को बदलने के लिए जगह प्रदान करती है।बच्चों को ऐसे प्रश्न पूछने की इजाजत दी जाती है, जो बाहर होने वाली कोई भी दो चीज़ों को स्कूल लर्निंग के साथ संबंधित करेंबच्चों को, बजाय बस याद रखने और सही तरीके से जवाब प्राप्त करने के अपने शब्दों और अपने अनुभवों से जवाब देने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।समझदार अनुमान को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
सामाजिक विज्ञान को पढ़ाने का लक्ष्य और उद्देश्य- एनसीएफ 2005
अनुशासनिक निशानों को पहचानना ताकि सामग्री खराब ना हो सके और पौधों जैसे विषयों के एकीकरण पर बल दिया जा सके।सामाजिक रूप से वंचित समूहों, आदिवासियों और अल्पसंख्यक के मुद्दों के लिए लिंग न्याय और संवेदनशीलता को सामाजिक विज्ञान के सभी क्षेत्रों को सूचित करना चाहिए।गंभीर रूप से सामाजिक और आर्थिक मुद्दों और गरीबी, बाल श्रम, विनाश, निरक्षरता और असमानता के कईं अन्य आयामों की चुनौतियों की जांच करें।लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष समाज में नागरिकों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को समझें।हमारे जैसे बहुलवादी समाज में, यह महत्वपूर्ण है कि सभी क्षेत्रों और सामाजिक समूह पाठ्यपुस्तकों से संबंधित हो सकें।महत्वपूर्ण विषयों के उपचार में एकीकृत दृष्टिकोण पर बल देते हुए सामाजिक विज्ञान को अनुशासनात्मक परिप्रेक्ष्य से माना जाना चाहिए।शैक्षिक मुद्दों पर सोच प्रक्रिया निर्णय लेने और गंभीर प्रतिबिंब विकसित करने के लिए शैक्षणिक प्रथाओं को सक्षम करना महत्वपूर्ण है।द्वितीय अवस्था में, सामाजिक विज्ञान में इतिहास, भूगोल, राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र के तत्व शामिल हैं। मुख्य ध्यान समकालीन भारत पर होगा और शिक्षार्थी को देश के सामने आने वाली सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों की गहरी समझ में शुरू किया जाएगा।
Ncf 2005 के अनुसार शिक्षक की भूमिका क्या है
भारत में राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एनसीएफ) का निर्माण करने की जिम्मेदारी एनसीईआरटी की है। यह संस्था समय-समय पर इसकी समीक्षा भी करती है। एनसीएफ-2005 के बनने का कार्य एनसीईआरटी के तत्कालीन निदेशक प्रो. कृष्ण कुमार के नेतृत्व में संपन्न हुआ।
इसमें शिक्षा को बाल केंद्रित बनाने, रटंत प्रणाली से निजात पाने, परीक्षा में सुधार करने और जेंडर, जाति, धर्म आदि आधारों पर होने वाले भेदभाव को समाप्त करने की बात कही गई है। शोध आधारित दस्तावेज़ तैयार करने के लिए 21 राष्ट्रीय फोकस समूह बने जो विभिन्न विषयों पर केंद्रित थे। इसके नेतृत्व की जिम्मेदारी संबंधित क्षेत्र के विषय विशेषज्ञों को दी गई।
शिक्षा के लक्ष्य
1.एनसीएफ-2005 के अनुसार शिक्षा का लक्ष्य किसी बच्चे के स्कूली जीवन को उसके घर, आस-पड़ोस के जीवन से जोड़ना है। इसके लिए बच्चों को स्कूल में अपने वाह्य अनुभवों के बारे में बात करने का मौका देना चाहिए। उसे सुना जाना चाहिए। ताकि बच्चे को लगे कि शिक्षक उसकी बात को तवज्जो दे रहे हैं।
2. शिक्षा का दूसरा प्रमुख लक्ष्य है आत्म-ज्ञान । यानि शिक्षा खुद को खोजने, खुद की सच्चाई को जानने की एक निरंतर प्रक्रिया बने। इसके लिए बच्चों को विभिन्न तरह के अनुभवों का अवसर देकर इस प्रक्रिया को सुगम बनाने की बात एनसीएफ में कही गई है।
3. शिक्षा के तीसरे लक्ष्य के रूप में साध्य और साधन दोनों के सही होने वाले मुद्दे पर चर्चा की गई है। इसमें कहा गया कि मूल्य शिक्षा अलग से न होकर पूरी शिक्षा की पूरी प्रक्रिया में शामिल होनी चाहिए। तभी हम बच्चों के सामने सही उदाहरण पेश कर पाएंगे।
4. सांस्कृतिक विविधता का सम्मान करने और जीवन जीने के अन्य तरीकों के प्रति भी सम्मान का भाव विकसित करने की बात करता है।
5. वैयक्तिक अंतर के महत्व को स्वीकार करने की बात करता है। इसमें कहा गया है कि हर बच्चे की अपनी क्षमताएं और कौशल होते हैं। इसे स्कूल में व्यक्त करने का मौका देना चाहिए जैसे संगीत, कला, नाट्य, चित्रकला, साहित्य (किस्से कहानियां कहना), नृत्य एवं प्रकृति के प्रति अनुराग इत्यादि।
6. ज्ञान के वस्तुनिष्ठ तरीके के साथ-साथ साहित्यिक एवं कलात्मक रचनात्मकता को भी मनुष्य के ज्ञानात्मक उपक्रम का एक हिस्सा माना गया है। यहां पर तर्क (वैज्ञानिक अन्वेषण) के साथ-साथ भावना (साहित्य) वाले पहलू को भी महत्व देने की बात कही गई है।
7. इसमें कहा गया है, “शिक्षा को मुक्त करने वाली प्रक्रिया के रूप में देखा जाना चाहिए अन्यथा अबतक जो कुछ भी कहा गया है वह अर्थहीन हो जाएगा। शिक्षा की प्रक्रिया को सभी तरह के शोषण और अन्याय गरीबी, लिंग भेद, जाति तथा सांप्रदायिक झुकाव) से मुक्त होना पड़ेगा जो हमारे बच्चों को इस प्रक्रिया से वंचित करते हैं।”
8. आठवीं बिंदु स्कूल में पढ़ने-पढ़ाने के काम के लिए अच्छा माहौल बनाने की बात करता है। साथ ही ऐसा माहौल बनाने में बच्चों की भागीदारी सुनिश्चित करने की भी बात करता है। यानि शिक्षक खुद आगे न आकर बच्चों को नेतृत्व करने का मौका दें।
9. नौवां बिंदु अपने देश के ऊपर गर्व की भावना विकसित करने की बात करता है। ताकि बच्चे देश से हरा जुड़ाव महसूस कर सकें। इसके साथ ही कहा गया है, “बच्चों में अपने राष्ट्र के प्रति गौरव की भावना संपूर्ण मानवता की महान उपलब्धियों के प्रति गौरव को पीछे न कर दे।”
राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (एन सी टी ई) ने शिक्षक शिक्षा पर राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचा तैयार किया है, जिसे मार्च 2009 में परिचालित किया गया था। यह ढांचा एन सी एफ, 2005 की पृष्ठभूमि में तैयार किया गया है और नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 में निर्धारित सिद्धांतों ने शिक्षक शिक्षा पर परिवर्तित ढांचा अनिवार्य कर दिया है, जो एन सी एफ, 2005 में संस्तुत स्कूल पाठ्यचर्या के परिवर्तित दर्शन के अनुकूल हो। शिक्षक शिक्षा का दर्शन स्पष्ट करते हुए इस ढांचे में नए दृष्टिकोण के कुछ महत्वपूर्ण आयाम हैं :
- परावर्ती प्रचलन, शिक्षक शिक्षा का केन्द्रीय लक्ष्य;
- छात्र-अध्यापकों को स्व-शिक्षा परावर्तन नए विचारों के आत्मसातकरण और अभिव्यक्ति का अवसर होगा
- स्व-निर्देशित शिक्षा की क्षमता और सोचने की योग्यता का विकास और समूहों में कार्य महत्वपूर्ण।
- बच्चों के पर्यवेक्षण एवं शामिल करने, बच्चों से संवाद करने और उनसे जुड़ने का अवसर।
इस ढांचे ने फोकस, विशिष्ट उद्देश्यों, सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक शिक्षा के अनुकूल विस्तृत अध्ययन क्षेत्र और पाठ्यचर्या अंतरण और विभिन्न प्रारंभिक शिक्षक शिक्षा कार्यक्रमों के लिए मूल्यांकन कार्यनीति उजागर की हैं। मसौदा आधारभूत मुद्दों को भी रेखांकित करता है, जो इन पाठ्यक्रमों के सभी कार्यक्रमों का निरूपण निदेशित करेगा। इस ढांचे ने सेवाकालीन शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के दृष्टिकोण और रीति विधान पर अनेक सिफारिशें भी की हैं और इसकी कार्यान्वयन कार्यनीति भी रेखांकित की गई है। एन सी एफ टी ई के स्वाभाविक परिणाम के रूप में एन सी टी ई ने विभिन्न शिक्षक शिक्षा पाठ्यक्रमों का 'आदर्श' पाठ्यक्रम भी तैयार किया है।
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा-2005
विषय प्रवेश
1. यह विद्यालयी शिक्षा का अब तक का नवीनतम राष्ट्रीय दस्तावेज है ।
2. इसे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के के शिक्षाविदों,वैज्ञानिकों,विषय विशेषज्ञों व अध्यापकों ने मिलकर तैयार किया है ।
3. मानव विकास संसाधन मंत्रालय की पहल पर प्रो0 यशपाल की अध्यक्षता में देश के चुने हुए विद्वानों ने शिक्षा को नई राष्ट्रीय चुनौतियों के रूप में देखा ।
मार्गदर्शी सिद्धान्त
1. ज्ञान को स्कूल के बाहरी जीवन से जोड़ा जाए।
2. पढाई को रटन्त प्रणाली से मुक्त किया जाए।
3. पाठ्यचर्या पाठ्यपुस्तक केन्द्रित न रह जाए।
4. कक्षाकक्ष को गतिविधियों से जोड़ा जाए।
5. राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति आस्थावान विद्यार्थी तैयार हो।
प्रमुख सुझाव
1. शिक्षण सूत्रों जैसे-ज्ञात से अज्ञात की ओर, मूर्त से अमूर्त की ओर आदि का अधिकतम प्रयोग हो।
2. सूचना को ज्ञान मानने से बचा जाए।
3. विशाल पाठ्यक्रम व मोटी किताबें शिक्षा प्रणाली की असफलता का प्रतीक है।
4. मूल्यों को उपदेश देकर नहीं वातावरण देकर स्थापित किया जाए।
5. अच्छे विद्यार्थी की धारणा में बदलाव आवश्यक है अर्थात् अच्छा विद्यार्थी वह है जो तर्क पूर्ण बहस के द्वारा अपने मौलिक विचार शिक्षक के सामने प्रस्तुत करता है।
6. अभिभावकों को सख्त सन्देश दिया जाए कि बच्चों को छोटी उम्र में निपुण बनाने की आकांक्षा रखना गलत है।
7. बच्चों को स्कूल से बाहरी जीवन में तनावमुक्त वातावरण प्रदान करना।
8. “कक्षा में शान्ति” का नियम बार-बार ठीक नहीं अर्थात् जीवन्त कक्षागत वातावरण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
9. सहशैक्षिक गतिविधियों में बच्चों के अभिभावकों को भी जोड़ा जाए।
10. समुदाय को मानवीय संसाधन के रूप में प्रयुक्त होने का अवसर दें।
11. खेल आनन्द व सामूहिकता की भावना के लिए है, रिकार्ड बनाने व तोड़ने की भावना को प्रश्रय न दे।
12. बच्चों की अभिव्यक्ति में मातृ भाषा महत्वपूर्ण स्थान रखती है। शिक्षक अधिगम परिस्थितियों में इसका उपयोग करें।
13. पुस्तकालय में बच्चों को स्वयं पुस्तक चुनने का अवसर दें।
14. वे पाठ्यपुस्तकें महत्वपूर्ण होती है जो अन्तःक्रिया का मौका दें।
15. कल्पना व मौलिक लेखन के अधिकाधिक अवसर प्रदान करावें।
16. सजा व पुरस्कार की भावना को सीमित रूप में प्रयोग करना चाहिए।
17. बच्चों के अनुभव और स्वर को प्राथमिकता देते हुए बाल केन्द्रित शिक्षा प्रदान की जाए।
18. सांस्कृतिक कार्यक्रमों में मनोरंजन के स्थान पर सौन्दर्यबोध को प्रश्रय दे।
19. शिक्षक प्रशिक्षण व विद्यार्थियों के मूल्यांकन को सतत प्रक्रिया के रूप में अपनाया जाए।
20. शिक्षकों को अकादमिक संसाधन व नवाचार आदि समय पर पहुँचाएँ जाएँ।
पिछले वर्ष के कुछ प्रश्न:
1. एनसीएफ 2005 का मानना है कि पाठ्यपुस्तकों को एक माध्यम के रूप में देखा जाना चाहिए: (सीटीईटी सितंबर 2016)
a समाज के स्वीकृत मूल्यों को लागू करना
Bप्रमुख वर्ग द्वारा स्वीकार की गई जानकारी को पार करने के लिए
C परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए
Dआगे की जांच के लिए
उत्तर: (a)
एक छात्र अपने अधिग्रहित ज्ञान को अपने बाह्य पर्यावरण से जोड़ सकता है और साथियों, परिवार, देखभाल करने वालों द्वारा सूचित एक पहचान को पोषित कर सकता है। एनसीएफ 2005 के अनुसार, पाठ्यपुस्तकों को समाज के स्वीकृत मूल्यों को लागू करने के लिए एक माध्यम के रूप में देखा जाना चाहिए।
2. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा, 2005 के अनुसार, _____ और _____ सीखने के चरित्र में हैं। (सीटीईटी सितंबर 2016)
Aनिष्क्रिय,
Bसरलसक्रिय,
Cसामाजिकनिष्क्रिय,
Dसामाजिकसक्रिय, सरल
उत्तर: (b)
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा, 2005 के अनुसार, सीखना अपने चरित्र में सक्रिय और सामाजिक है।
3. उच्च प्राथमिक स्तर पर सामाजिक विज्ञान में अवधारणाओं को विकसित करने के लिए सबसे उपयुक्त विधि चुनें। (सीटीईटी मई 2016)
पाठ्यपुस्तक में दिए गए सवालों के जवाब याद रखना
प्रमुख विशेषताएं सूचीबद्ध करना
निर्देशित प्रश्नों की एक श्रृंखला के माध्यम से सीखना
परिभाषाओं के माध्यम से सीखना
उत्तर: (b)
सामाजिक विज्ञान में अवधारणाओं को विकसित करने के लिए उपयोग की जाने वाली विधियां प्रमुख विशेषताओं को सूचीबद्ध करती हैं क्योंकि इसमें इतिहास शामिल है जो हमारी संस्कृति, राजनीतिक विज्ञान के बारे में बताता है जो सरकार भारत का एक संविधान है के बारे में बताता है, भूगोल जो पर्यावरण और अर्थशास्त्र के बारे में बताता है और अर्थशास्त्र जो भारत की आर्थिक स्थितियों के बारे में बताता है।
4. सामाजिक विज्ञान में उच्च प्राथमिक स्तर पर __ शामिल हैं। (सीटीईटी फरवरी 2015), (सीटीईटी जुलाई 2013)
भूगोल, इतिहास, राजनीतिक विज्ञान और अर्थशास्त्र राजनीतिक विज्ञान, भूगोल, इतिहास, समाजशास्त्र इतिहास, भूगोल, राजनीतिक विज्ञान, पर्यावरण विज्ञान इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, राजनीतिक विज्ञान
उत्तर: (a)
5. संचालन समिति के अध्यक्ष कौन थे।
डॉ. कृष्णा कुमार , प्रोफेसर अरविंद कुमार, प्रोफेसर गोविंद दास , प्रोफेसर यशपाल
उत्तर: (d)
नेशनल स्टीयरिंग कमेटी की स्थापना प्रोफेसर यशपाल की अध्यक्षता में की गई थी।
6. एनसीएफ 2005 के अनुसार, सामाजिक विज्ञान में शिक्षा का उद्देश्य छात्र को ............ में सक्षम करना है। (सीटीईटी जुलाई 2013)
राजनीतिक निर्णयों की आलोचना करनासामाजिक-राजनीतिक वास्तविकता का विश्लेषणदेश में सामाजिक राजनीतिक स्थिति पर जानकारी का प्रतिधारणसामाजिक राजनीतिक सिद्धांत के बारे में एक स्पष्ट और संक्षिप्त तरीके से वर्तमान ज्ञान ताकि छात्र उन्हें आसानी से याद रखें
उत्तर: (b)
एनसीएफ 2005 के अनुसार, सामाजिक विज्ञान में शिक्षा का उद्देश्य छात्र को सामाजिक-राजनीतिक हकीकत का विश्लेषण करने में सक्षम होना चाहिए ताकि वे समाज में लोगों, सरकार, मीडिया की भूमिका को समझ सकें।
7. एक सामाजिक विज्ञान शिक्षक को प्रभावी होने के लिए निम्न में से कौन सी विधियों को नियोजित करना चाहिए? (सीटीईटी जुलाई 2013)
उत्तेजक और रोचक गतिविधियों द्वारा छात्रों की भागीदारी में वृद्धिहर सोमवार को परीक्षण करके छात्रों के ज्ञान में वृद्धिमध्यम गति के शिक्षार्थियों के आत्मविश्वास को बढ़ावा देने के लिए पुरस्कार व्यवस्थाघर पर परियोजनाएं सौंपें ताकि माता-पिता को अपने बच्चे के अध्ययन में शामिल किया जा सके
उत्तर: (a)
एक सामाजिक विज्ञान शिक्षक को प्रभावी होने के लिए विचार उत्तेजक और रोचक गतिविधियों द्वारा छात्रों की भागीदारी में वृद्धि को नियोजित करना चाहिए।
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Bhut achha laga
ReplyDeleteBahut axha laga sir.aur bhi question ctet me aye ho ncf se tho dal de sir.
ReplyDeleteThanks sir
ReplyDeleteBahut achha kaam h apka goswami ji
ReplyDeleteApka B.Ed ka sathi hu mai.
Thanks sir ji
DeleteTy so much sir
ReplyDeleteWelcome
ReplyDeleteशुक्रिया सर जी
ReplyDeleteBhot hi achhe se smjh aaya thank you sir or bhi topics clear kre
ReplyDeleteThank you sir ji
ReplyDeleteWelcome ji
ReplyDeleteBhut acha ji
ReplyDeleteBhut acha Ji thanks sir ji
ReplyDeleteBhut ACHA lga sir g thanks
ReplyDeleteWelcome ji
DeleteSir question n 2 ke ans B hi but description me D hi yesa kyu
ReplyDeleteRight kon sa hi
सक्रिय सामाजिक
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteunique
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteBahut accha content tha sir.👍
ReplyDeleteBhot acha hai sir...
ReplyDeleteEsme maths vala part bhi dale sir.
Good job
ReplyDeleteThanku sir nice things that's great 🙏🙏🙏👍👍
ReplyDeleteThanks
ReplyDeleteexcellent notes Sir!
ReplyDeleteGood conclusion
ReplyDeleteSir questions 2 ka ans b btaya or likha Apne seekhna sakriya or samajik h
ReplyDeleteThanks
ReplyDeleteSuch a useful information
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