Monday, April 1, 2019

थैलेसीमिया के प्रकार


थैलेसीमिया – Types of Thalassemia

प्रमुख रूप से थैलेसीमिया को दो भागों में बांटा जाता है। बीटा थैलेसीमिया और एल्फा थैलेसीमिया। इनके अलावा भी अन्य कई प्रकार का होता है थैलेसीमिया। ये रोग अक्सर बच्चों को होता है। और समय पर इसका उपचार ना होने से बच्चे की मौत तक हो जाती है।


मुख्यतः यह रोग दो वर्गों में बांटा गया है:

1. मेजर थैलेसेमिया:

यह बीमारी उन बच्चों में होने की संभावना अधिक होती है, जिनके माता-पिता दोनों के जींस में थैलीसीमिया होता है। जिसे थैलीसीमिया मेजर कहा जाता है।

2. माइनर थैलेसेमिया:

थैलीसीमिया माइनर उन बच्चों को होता है, जिन्हें प्रभावित जीन माता-पिता दोनों में से किसी एक से प्राप्त होता है। जहां तक बीमारी की जांच की बात है तो सूक्ष्मदर्शी यंत्र पर रक्त जांच के समय लाल रक्त कणों की संख्या में कमी और उनके आकार में बदलाव की जांच से इस बीमारी को पकड़ा जा सकता है।


थैलेसीमिया का क्या प्रभाव पड़ता है?

आपको बता दें की क्या प्रभाव पड़ता है इस बीमारी का। एक सामान्य इंसान के शरीर में लाल रक्त कोशिका की उम्र 120 दिनों तक रहती है। और थैलेसीमिया से ग्रसित इंसान के शरीर में ये घटकर केवल बीस दिनों के लिए हो जाती है। और इसका असर इंसान के शरीर में मौजूद होमोग्लोबीन पर ही पड़ जाता है। और इंसान धीरे—धीरे कमजोर होता चला जाता है। और इस कारण से उसे कई तरह के रोग लगने लगते हैं।

थैलेसीमिया रोग होने से शरीर में बड़ी मात्रा में रेड ब्ल्ड सेल की कमी हो जाती है। और इससे इंसान को खून की कमी यानि की एनीमिया हो सकता है। एनीमिया होने से इंसान की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। साथ ही शरीर में आरबीसी कोशिकाएं भी खत्म हो जाती हैं।


थैलेसीमिया के प्रमुख लक्षण- Thalassemia ke lakshan


  • पेट में सूजन का आना
  • कमजोरी और जल्दी से थकान लगना
  • स्किन का रंग का पीला होना
  • चक्कर आना और बेहोशी का होना 
  • पैरों में ऐंठन होना
  • मानसिक विकास कम होने लगता है
  • शारीरिक विकास का कम होना
  • चेहरा पर विकृति का आना
  • पेशाब का रंग गहरा होना
  • हाथ और पैर का ठंडा होना
  • सिरदर्द होना



थैलेसीमिया के कारण – Thalassemia causes 



ये बीमारी तब होती है जब हीमोग्लेबिन में जीन उत्परिवर्तन होता है। एैसे में माता पिता से बच्चे को ये रोग आनुवांशिक रूप से मिल जाता है।
यानि अगर माता—पिता में से किसी एक को थैलेसीमिया की बीमारी है तो इससे माइनर थैलेसीमिया (thalassemia minor) वाला रोग हो सकता है। ऐसे में वैसे तो कोई लक्षण दिखाई  नहीं देते हैं लेकिन समय के साथ यह रोग बड़ा रूप ले सकता है। थैलेसीमिया माइनर होने की वजह से बच्चे को मेजर थैलेसीमिया होने के पूरे चांस रहते हैं।


कैसे थैलेसीमिया गर्भावस्था को करता है प्रभावित

गर्भावास्था में महिलाओं को कई तरह की समस्याएं आती हैं। एैसे में थैलेसीमिया रोग होने से गर्भवती महिला के प्रजन्न अंग के विकास में प्रभाव आने लगता हैं और बाद में प्रजनन से संबंधित कई तरह की समस्याएं उन्हें होने लगती हैं। इस समस्या से बचने के लिए बहुत जरूरी है ​बच्चा प्लान करने से पहले डॉक्टर की सलाह लेना और इसकी जांच करवाना। ताकी बच्चे का जीवन सुरक्षित रहे।

कैसे बचा जा सकता है थैलेसीमिया से यानि थैलेसीमिया से बचने के तरीके –

जैसा की आपको अब पता चल चुका है ये रोग माता—पिता से बच्चे को हो सकता है एैसे में जरूर महिला—पुरूष के खून की जांच करवाकर इसकी पहचान की जानी चाहिए। ताकी थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चा पैदा ना हो पाए।

गर्भधारण के चौथे महीने में पेट में मौजूद भ्रूण का टेस्ट जरूर करवाएं।

थैलेसीमिया के लक्षण यदि पता चल जाते हैं की बच्चे को थैलेसीमिया होगा तो एैसे में गर्भपात की सलाह डॉक्टर आपको दे सकता है।


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