दिव्यागता (Disability) -
दिव्यांगता (Disability) एक व्यापक शब्द है जो किसी व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, ऐन्द्रिक, बौद्धिक विकास में किसी प्रकार की कमी को इंगित करता है। इसके लिए 'अशक्तता', 'नि:शक्तता' (विधि), 'अपंगता', अपांगता' आदि शब्दों का भी प्रयोग किया जाता है।
दिव्यांगता के प्रकार
दिव्यांगगजन समग्र कल्याण हेतु भारत सरकार द्वारा दिव्यांग जन (समान अवसर, अधिकार, संरक्षण एवं पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 पारित किया गया है, जो 07 फरवरी, 1996 से जम्मू कश्मीर को छोड़कर सम्पूर्ण भारतवर्ष में प्रभावी है। इस अधिनियम के कुल 14 अध्याय एवं 74 धाराऍ हैं। इस अधिनियम की धारा-2 (न) में नि:शक्त (दिव्यांग) व्यक्ति की परिभाषा निम्नानुसार दी गयी है:-
नि: शक्त (दिव्यांग):
नि: शक्त (दिव्यांग) से कोई व्यक्ति अभिप्रेत है, जो किसी चिकित्सा प्राधिकारी द्वारा यथाप्रमाणित किसी नि:शक्तता से कम से कम 40 प्रतिशत से ग्रस्त है। उक्त अधिनियम - 1995 की धारा-2 में नि:शक्तता (दिव्यांगता) की श्रेणियॉ एवं उनकी परिभाषायें निम्नानुसार दी गयी है:-
दृष्टिहीनता
उस अवस्था के प्रति निर्देश करता है जहॉ कोई व्यक्ति निम्नलिखित दशाओं में से किसी से ग्रसित है अर्थात-
दृष्टिगोचरता का पूर्ण अभाव
सुधारक लेन्सों के साथ बेहतर ऑख में 6/60 या 20/200 स्नेलन से अनधिक दृष्टि की तीक्ष्णता या
दृष्टि क्षेत्र की सीमा का 20 डिग्री के कोण के कक्षांतरकारी होना या अधिक खराब होना।
कम दृष्टि वाला व्यक्ति
कम दृष्टि से अभिप्रेत है, ऐसा कोई व्यक्ति जिसके उपचार या मानक उपवर्धनीय सुधार संशोधन के बावजूद दृष्टिसंबंधी कृत्य का हास हो गया है और जो समुचित सहायक युक्ति से किसी कार्य की योजना या निष्पादन के लिए दृष्टि का उपयोग करता है या उपयोग करने में संभाव्य रूप से समर्थ है।
कुष्ठ रोग से मुक्त
कोई ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जो कुष्ठ रोग से मुक्त हो गया है किन्तु निम्नलिखित से ग्रसित है:-
जिसके हाथ या पैरों में संवेदना की कमी तथा नेत्र और पलकों में संवेदना की कमी और आंशिक घात है किन्तु कोई प्रकट विरूपता नही है।
प्रकट निःशक्तताग्रस्त और आंशिक घात है किन्तु उसके हाथों और पैरों में पर्याप्त गतिशीलता है जिससे वे सामान्य आर्थिक क्रिया कलाप कर सकते है।
अत्यन
अत्यन्त शारीरिक विरूपांगता और अधिक वृद्धावस्था से ग्रस्त है जो उन्हें कोई भी लाभपूर्ण उपजीविका चलाने से रोकती है और कुष्ठ रोग से मुक्त पद का अर्थ तदनुसार लगाया जायेगा।
श्रवण हा्स
श्रवण हा्स से अभिप्रेत है संवाद संबंधी रेंज की आवृत्ति में बेहतर कर्ण में 60 डेसीबल या अधिक की हानि।
चलन क्रिया संबंधी नि:शक्तता
चलन सम्बन्धी दिवंगत से हड्डियों, जोडों या मांसपेशियों की कोई ऐसी नि:शक्तता अभिप्रेत है जिससे अंगों की गति में पर्याप्त निर्बन्धन या किसी प्रकार का प्रमस्तिष्क अंगघात हो।
मानसिक मंदता
मानसिक मंदता से बीमार व्यक्ति के मस्तिष्क के अवरूद्ध या अपूर्ण विकास की अवस्था है जो विशेष रूप से सामान्य बुद्धिमत्ता की अवसामन्यता द्वारा प्रकट है, अभिप्रेत है।
मानसिक बीमार
मानसिक बीमार से मानसिक मंदता से भिन्न कोई मानसिक विकास अभिप्रेत है।
निःशक्तता की उक्त श्रेणियों एवं परिभाषाओं के अनुसार दिव्यांग व्यक्तियों को निःशक्तता प्रमाण पत्र जारी करने हेतु उ0प्र0 नि:शक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) नियमावली, 2001 को सरलीकृत करते हुये उ0प्र0 नि:शक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) (प्रथम संशोधन) नियमावली 2014 शासन के अधिसूचना संख्या 519/65-3-2014-98 दिनांक 3.9.2014 द्वारा निर्गत की गयी है। उक्त संशोधित नियमावली के अनुसार सहज दृश्य निःशक्तता हेतु दिव्यांग प्रमाण पत्र प्रदेश के विभिन्न सामुदायिक चिकित्सा केन्द्रों एवं प्राथमिक चिकित्सा केन्द्रों, राजकीय चिकित्सालयों में कार्यरत चिकित्सा विभाग द्वारा नामित प्राधिकृत चिकित्सा अधिकारी द्वारा निर्गत किया जायेगा, जबकि ऐसी निःशक्तता जो सहज दृश्य न हो एवं उसके परिमाणमापन हेतु विशेषज्ञ चिकित्सक एवं उपकरण की आवश्यकता हो, के प्रकरण में दिव्यांग प्रमाण पत्र प्राधिकृत चिकित्सक की संस्तुति के आधार पर प्रत्येक जनपद में मुख्य चिकित्साधिकारी की अध्यक्षता में गठित चिकित्सा परिषद अथवा डा0 राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय लखनऊ के प्राधिकृत चिकित्सक द्वारा निर्गत किया जायेगा।
'कलंक' नहीं है दिव्यांगता, सामाजिक बराबरी मिलेगी तो आगे बढ़ेंगे दिव्यांग
साल 1992 से हर साल 3 दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र की ओर से 'विश्व दिव्यांग दिवस' मनाया जाता है। दिव्यांगजनों के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से यह दिवस हर साल मनाया जाता है। इस साल की थीम दिव्यांग लोगों के समावेशी, समान और सतत विकास को सशक्त करने पर केंद्रित है।
दिव्यांग लोगों के प्रति सामाजिक जागरूकता के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र हर साल 3 दिंसबर को 'विश्व दिव्यांग दिवस' मनाता है। हर साल इससे संबंधित अलग-अलग थीम रखी जाती है। यूएन ने यह परंपरा साल 1992 से शुरू की है। समाज में आज भी दिव्यांगता को एक कलंक के तौर पर माना जाता है। ऐसे में लोगों में दिव्यांगता मामले की समझ बढ़ाने, दिव्यांगजनों के सामाजिक सम्मान की स्थापना, उनके अधिकारों और कल्याण पर ध्यान केंद्रित कराने के उद्देश्यों के लिए यह दिवस काफी महत्वपूर्ण है। इस साल की थीम दिव्यांग लोगों के समावेशी, समान और सतत विकास को सशक्त करने पर केंद्रित है।
2030 अजेंडा ऑफ सस्टेनेबल डवलपमेंट' पर आधारित है थीम
इस साल की थीम '2030 अजेंडा ऑफ सस्टेनेबल डलपमेंट' पर आधारित है। 'किसी को पीछे नहीं छोड़ना' इस अजेंडा का प्रमुख उद्देश्य है। यह अंतरराष्ट्रीय कम्युनिटी द्वारा शांतिपूर्ण और समृद्ध दुनिया के लिए किया जाने वाला एक प्रयास है जहां व्यक्तिगत समानता और व्यक्तिगत गरिमा इसके मौलिक सिद्धांतों में शामिल है। साथ ही समाज के सभी क्षेत्रों में दिव्यांग व्यक्तियों की पूर्ण और समान भागीदारी सुनिश्चित कराने के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करना भी इस अजेंडा का प्रमुख लक्ष्य है।
1992 से हुई शुरुआत
साल 1992 में विश्व दिव्यांग दिवस पहली बार मनाया गया था। इससे पहले साल 1981 को दिव्यांग लोगों के लिए 'अंतरराष्ट्रीय वर्ष' के रूप में मनाया गया था। दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए तथा उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संयुक्त राष्ट्र की आम सभा द्वारा साल 1983 से लेकर साल 1992 तक के वक्त को दिव्यांग व्यक्तिओं के लिए 'संयुक्त राष्ट्र दशक' के रूप में घोषित किया गया था।
दिव्यांग दिवस मनाने के उद्देश्य
दिव्यांग दिवस मनाने के पीछे दिव्यांगता को सामाजिक कलंक मानने की धारणा से लोगों को दूर करने का प्रयास है। इसे समाज में दिव्यांगों की भूमिका को बढ़ावा देने, उनकी गरीबी को कम करने, उन्हें बराबरी का मौका दिलाने तथा उनके स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक प्रतिष्ठा पर ध्यान केंद्रित करने जैसी कोशिशों के लिए भी मनाया जाता है। इस दिन कला प्रदर्शनी, खेल प्रतियोगिताओं तथा विभिन्न कार्यक्रमों के द्वारा दिव्यांगों के प्रति जागरूकता फैलाने की कोशिश की जाती है।
दिव्यांगों के लिए कानून
दिव्यांगजनों से भेदभाव किए जाने पर कानून दो साल तक की कैद और 5 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान करता है। तेजाब हमले से पीड़ित लोग और पार्किंसन के मरीजों को भी निःशक्तजनों की श्रेणी में रखा जाता है। भारतीय कानून में इनके लिए आरक्षण की व्यवस्था भी की गई है। पहले दिव्यांगजनों के लिए 3 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान था लेकिन अब इसे बढ़ाकर 4 प्रतिशत कर दिया गया है।
दोस्तों आपको यह आर्टिकल कैसा लगा हमें जरुर बताये. आप अपनी राय, सवाल और सुझाव हमें comments के जरिये जरुर भेजे. अगर आपको यह आर्टिकल उपयोगी लगा हो तो कृपया इसे share करे।
आप E-mail के द्वारा भी अपना सुझाव दे सकते हैं। prakashgoswami03@gmail.com
दिव्यांगता (Disability) एक व्यापक शब्द है जो किसी व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, ऐन्द्रिक, बौद्धिक विकास में किसी प्रकार की कमी को इंगित करता है। इसके लिए 'अशक्तता', 'नि:शक्तता' (विधि), 'अपंगता', अपांगता' आदि शब्दों का भी प्रयोग किया जाता है।
दिव्यांगता के प्रकार
- शारीरिक निर्योग्यता (physical disability)
- ऐन्द्रिक निर्योग्यता (sensory disability)
- दृष्टिक्षीणता (vision impairment)
- घ्राण एवं रससंवेदी असमर्थता (Olfactory and gustatory impairment)
- काय-ऐंद्रिक असमर्थता (Somatosensory impairment)
- संतुलन निर्योग्यता (Balance disorder)
- बौद्धिक असमर्थता (intelletual impairment)
- मानसिक स्वास्थ्य एवं भावनात्मक निर्योग्यता (Mental health and emotional disabilities)
- विकासात्मक निर्योग्यता (Developmental disability)
- अदृष्य निर्योग्यता(invisible disability)
दिव्यांगगजन समग्र कल्याण हेतु भारत सरकार द्वारा दिव्यांग जन (समान अवसर, अधिकार, संरक्षण एवं पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 पारित किया गया है, जो 07 फरवरी, 1996 से जम्मू कश्मीर को छोड़कर सम्पूर्ण भारतवर्ष में प्रभावी है। इस अधिनियम के कुल 14 अध्याय एवं 74 धाराऍ हैं। इस अधिनियम की धारा-2 (न) में नि:शक्त (दिव्यांग) व्यक्ति की परिभाषा निम्नानुसार दी गयी है:-
नि: शक्त (दिव्यांग):
नि: शक्त (दिव्यांग) से कोई व्यक्ति अभिप्रेत है, जो किसी चिकित्सा प्राधिकारी द्वारा यथाप्रमाणित किसी नि:शक्तता से कम से कम 40 प्रतिशत से ग्रस्त है। उक्त अधिनियम - 1995 की धारा-2 में नि:शक्तता (दिव्यांगता) की श्रेणियॉ एवं उनकी परिभाषायें निम्नानुसार दी गयी है:-
दृष्टिहीनता
उस अवस्था के प्रति निर्देश करता है जहॉ कोई व्यक्ति निम्नलिखित दशाओं में से किसी से ग्रसित है अर्थात-
दृष्टिगोचरता का पूर्ण अभाव
सुधारक लेन्सों के साथ बेहतर ऑख में 6/60 या 20/200 स्नेलन से अनधिक दृष्टि की तीक्ष्णता या
दृष्टि क्षेत्र की सीमा का 20 डिग्री के कोण के कक्षांतरकारी होना या अधिक खराब होना।
कम दृष्टि वाला व्यक्ति
कम दृष्टि से अभिप्रेत है, ऐसा कोई व्यक्ति जिसके उपचार या मानक उपवर्धनीय सुधार संशोधन के बावजूद दृष्टिसंबंधी कृत्य का हास हो गया है और जो समुचित सहायक युक्ति से किसी कार्य की योजना या निष्पादन के लिए दृष्टि का उपयोग करता है या उपयोग करने में संभाव्य रूप से समर्थ है।
कुष्ठ रोग से मुक्त
कोई ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जो कुष्ठ रोग से मुक्त हो गया है किन्तु निम्नलिखित से ग्रसित है:-
जिसके हाथ या पैरों में संवेदना की कमी तथा नेत्र और पलकों में संवेदना की कमी और आंशिक घात है किन्तु कोई प्रकट विरूपता नही है।
प्रकट निःशक्तताग्रस्त और आंशिक घात है किन्तु उसके हाथों और पैरों में पर्याप्त गतिशीलता है जिससे वे सामान्य आर्थिक क्रिया कलाप कर सकते है।
अत्यन
अत्यन्त शारीरिक विरूपांगता और अधिक वृद्धावस्था से ग्रस्त है जो उन्हें कोई भी लाभपूर्ण उपजीविका चलाने से रोकती है और कुष्ठ रोग से मुक्त पद का अर्थ तदनुसार लगाया जायेगा।
श्रवण हा्स
श्रवण हा्स से अभिप्रेत है संवाद संबंधी रेंज की आवृत्ति में बेहतर कर्ण में 60 डेसीबल या अधिक की हानि।
चलन क्रिया संबंधी नि:शक्तता
चलन सम्बन्धी दिवंगत से हड्डियों, जोडों या मांसपेशियों की कोई ऐसी नि:शक्तता अभिप्रेत है जिससे अंगों की गति में पर्याप्त निर्बन्धन या किसी प्रकार का प्रमस्तिष्क अंगघात हो।
मानसिक मंदता
मानसिक मंदता से बीमार व्यक्ति के मस्तिष्क के अवरूद्ध या अपूर्ण विकास की अवस्था है जो विशेष रूप से सामान्य बुद्धिमत्ता की अवसामन्यता द्वारा प्रकट है, अभिप्रेत है।
मानसिक बीमार
मानसिक बीमार से मानसिक मंदता से भिन्न कोई मानसिक विकास अभिप्रेत है।
निःशक्तता की उक्त श्रेणियों एवं परिभाषाओं के अनुसार दिव्यांग व्यक्तियों को निःशक्तता प्रमाण पत्र जारी करने हेतु उ0प्र0 नि:शक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) नियमावली, 2001 को सरलीकृत करते हुये उ0प्र0 नि:शक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) (प्रथम संशोधन) नियमावली 2014 शासन के अधिसूचना संख्या 519/65-3-2014-98 दिनांक 3.9.2014 द्वारा निर्गत की गयी है। उक्त संशोधित नियमावली के अनुसार सहज दृश्य निःशक्तता हेतु दिव्यांग प्रमाण पत्र प्रदेश के विभिन्न सामुदायिक चिकित्सा केन्द्रों एवं प्राथमिक चिकित्सा केन्द्रों, राजकीय चिकित्सालयों में कार्यरत चिकित्सा विभाग द्वारा नामित प्राधिकृत चिकित्सा अधिकारी द्वारा निर्गत किया जायेगा, जबकि ऐसी निःशक्तता जो सहज दृश्य न हो एवं उसके परिमाणमापन हेतु विशेषज्ञ चिकित्सक एवं उपकरण की आवश्यकता हो, के प्रकरण में दिव्यांग प्रमाण पत्र प्राधिकृत चिकित्सक की संस्तुति के आधार पर प्रत्येक जनपद में मुख्य चिकित्साधिकारी की अध्यक्षता में गठित चिकित्सा परिषद अथवा डा0 राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय लखनऊ के प्राधिकृत चिकित्सक द्वारा निर्गत किया जायेगा।
'कलंक' नहीं है दिव्यांगता, सामाजिक बराबरी मिलेगी तो आगे बढ़ेंगे दिव्यांग
साल 1992 से हर साल 3 दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र की ओर से 'विश्व दिव्यांग दिवस' मनाया जाता है। दिव्यांगजनों के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से यह दिवस हर साल मनाया जाता है। इस साल की थीम दिव्यांग लोगों के समावेशी, समान और सतत विकास को सशक्त करने पर केंद्रित है।
दिव्यांग लोगों के प्रति सामाजिक जागरूकता के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र हर साल 3 दिंसबर को 'विश्व दिव्यांग दिवस' मनाता है। हर साल इससे संबंधित अलग-अलग थीम रखी जाती है। यूएन ने यह परंपरा साल 1992 से शुरू की है। समाज में आज भी दिव्यांगता को एक कलंक के तौर पर माना जाता है। ऐसे में लोगों में दिव्यांगता मामले की समझ बढ़ाने, दिव्यांगजनों के सामाजिक सम्मान की स्थापना, उनके अधिकारों और कल्याण पर ध्यान केंद्रित कराने के उद्देश्यों के लिए यह दिवस काफी महत्वपूर्ण है। इस साल की थीम दिव्यांग लोगों के समावेशी, समान और सतत विकास को सशक्त करने पर केंद्रित है।
2030 अजेंडा ऑफ सस्टेनेबल डवलपमेंट' पर आधारित है थीम
इस साल की थीम '2030 अजेंडा ऑफ सस्टेनेबल डलपमेंट' पर आधारित है। 'किसी को पीछे नहीं छोड़ना' इस अजेंडा का प्रमुख उद्देश्य है। यह अंतरराष्ट्रीय कम्युनिटी द्वारा शांतिपूर्ण और समृद्ध दुनिया के लिए किया जाने वाला एक प्रयास है जहां व्यक्तिगत समानता और व्यक्तिगत गरिमा इसके मौलिक सिद्धांतों में शामिल है। साथ ही समाज के सभी क्षेत्रों में दिव्यांग व्यक्तियों की पूर्ण और समान भागीदारी सुनिश्चित कराने के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करना भी इस अजेंडा का प्रमुख लक्ष्य है।
1992 से हुई शुरुआत
साल 1992 में विश्व दिव्यांग दिवस पहली बार मनाया गया था। इससे पहले साल 1981 को दिव्यांग लोगों के लिए 'अंतरराष्ट्रीय वर्ष' के रूप में मनाया गया था। दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए तथा उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संयुक्त राष्ट्र की आम सभा द्वारा साल 1983 से लेकर साल 1992 तक के वक्त को दिव्यांग व्यक्तिओं के लिए 'संयुक्त राष्ट्र दशक' के रूप में घोषित किया गया था।
दिव्यांग दिवस मनाने के उद्देश्य
दिव्यांग दिवस मनाने के पीछे दिव्यांगता को सामाजिक कलंक मानने की धारणा से लोगों को दूर करने का प्रयास है। इसे समाज में दिव्यांगों की भूमिका को बढ़ावा देने, उनकी गरीबी को कम करने, उन्हें बराबरी का मौका दिलाने तथा उनके स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक प्रतिष्ठा पर ध्यान केंद्रित करने जैसी कोशिशों के लिए भी मनाया जाता है। इस दिन कला प्रदर्शनी, खेल प्रतियोगिताओं तथा विभिन्न कार्यक्रमों के द्वारा दिव्यांगों के प्रति जागरूकता फैलाने की कोशिश की जाती है।
दिव्यांगों के लिए कानून
दिव्यांगजनों से भेदभाव किए जाने पर कानून दो साल तक की कैद और 5 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान करता है। तेजाब हमले से पीड़ित लोग और पार्किंसन के मरीजों को भी निःशक्तजनों की श्रेणी में रखा जाता है। भारतीय कानून में इनके लिए आरक्षण की व्यवस्था भी की गई है। पहले दिव्यांगजनों के लिए 3 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान था लेकिन अब इसे बढ़ाकर 4 प्रतिशत कर दिया गया है।
दोस्तों आपको यह आर्टिकल कैसा लगा हमें जरुर बताये. आप अपनी राय, सवाल और सुझाव हमें comments के जरिये जरुर भेजे. अगर आपको यह आर्टिकल उपयोगी लगा हो तो कृपया इसे share करे।
आप E-mail के द्वारा भी अपना सुझाव दे सकते हैं। prakashgoswami03@gmail.com
No comments:
Post a Comment