(NATIONAL CURRICULUM FRAMEWORK-2005 OR NCF-2005) एक परिचय-अध्याय तृतीय
तृतीय अध्याय “पाठ्यचर्या के क्षेत्र , स्कूल की अवस्थाये और आकलन
यह तथ्य कि बच्चा ज्ञान का सृजन करता है ,इसका निहितार्थ है कि पाठ्यचर्या ,पाठ्यक्रम एवं पाठ्यपुस्तक शिक्षक को इस बात के लिये सक्षम बनाये कि वे बच्चो की प्रकृति और वातावरण के अनुरूप कक्षायी अनुभव आयोजित करे ,ताकि सारे बच्चो को अवसर मिल पाये | शिक्षण का उद्देश्य बच्चे के सिखने की सहज इच्छा और युक्तियो को समृध्द करना होना चहिये | ज्ञान को सूचना से अलग करने की जरुरत है और शिक्षण को एक पेशेवर गतिविधि के रूप मे पहचानने की जरुरत है न कि तथ्यो के रटने और प्रसार के प्रशिक्षण के रूप में | सक्रिय गतिविधि के जरिये ही बच्चा अपने आसपास की दुनिया को समझने की कोशिश करता है |इसलिये प्रत्येक साधन का उपयोग इस तरह किया जाना चाहिये कि बच्चो को खुद को अभिव्यक्त करने में ,वस्तुयो का इस्तेमाल करने में ,अपने प्रकृतिक और सामाजिक परिवेश की खोजबीन करने में और स्वस्थ रूप से विकसित होने में मदद मिले | अगर बच्चो,के कक्षा के अनुभवो को इस तरह आयोजित करना हो जिससे उन्हे ज्ञान सृजित करने का अवसर मिले तो इसके लिये स्कूल के विषयो और पाठ्यचर्या के क्षेत्रों की फिर से संकल्पना की आवश्यकता होगी |
स्कूली पाठ्यचर्या के चार सुपरिचित क्षेत्रों –भाषा ,गणित ,और समाज विज्ञान में –महत्वपूर्ण परिवर्तनों का सुझाव दिया गया है |इस दृष्टी से कि शिक्षा आज की और भविष्य की जरूरतों के लिए ज्यादा प्रासंगिक बन सके और बच्चो को उस दबाव से मुक्त किया जा सके जो वे आज झेल रहे है |यह राष्ट्रीय पाठ्यचर्या दस्तावेज इस बात की सिफारिश करता है कि विषयों के बीच की दीवारें नीची क्र दी जाये ताकि बच्चों को ज्ञान का समग्र आनंद मिल सके और किसी चीज को समझने से मिलने वाली ख़ुशी हासिल हो सके |इसके साथ यह भी सुझाया गया है कि पाठ्यपुस्तक और दूसरी सामग्री की बहुलता ही ,जिनसे स्थानीय ज्ञान और पारम्परिक कौशल शामिल हो सकते हैं और बच्चों के घर और समुदायिक परिवेश से जीवंत संबंध बनाने मे वाले स्फूर्तिदायक स्कूली माहौल को सुनिश्चित किया जा सके |भाषा में त्रिभाषा फार्मूले को लागु करने में फिर से प्रयास का सुझाव दिया गया है जिसमें आदिवासी भाषाओँ सहित बच्चो की मातृभूमि को शिक्षा के माध्यम के रूप में स्वीकृति देने पर जोर दिया है|प्रत्येक बच्चे में बहुभाषिक प्रवीणता विकसित करने के लिए भारतीय समाज के बहुभाषिक चरित्र को एक संसाधन के रूप में देखना चाहिए जिसमे अग्रेजी में प्रवीणता भी हासिल है यह तभी मुमकिन है जब भाषा की पुख्ता शिक्षाशास्त्र मातृभाषा के उपयोग पर आधारित हो|पढना ,लिखना और सुनना –ये क्रियाये पाठ्यचर्या के सभी क्षेत्रो में बच्चों की प्रगति में भूमिका निभाती हैं और इन्हें पाठ्यचर्या की योजना का आधार होना चाहिए|आरम्भिक कक्षाओं के पुरे दौर में पढने पर जोर देना जरुरी है जिससे हर बच्चे को स्कूली शिक्षा का ठोस आधार मिल सके|
गणित की शिक्षा ऐसी होनी चाहिये जिससे बच्चों के वे संसाधन समृद्ध हों चिंतन और तर्क में, अमुर्तनो की संकल्पना करने और उनका व्यवहार करने में ,समस्याओं को सूत्रबद्ध करने ओर सुलझाने में उनकी सहायता करें|उद्देश्यों का यह व्यापक फलक उस प्रासंगिक और अर्थपूर्ण गणित को पढ़ाकर तय किया जा सकता है जो बच्चों के अनुभवों में गुंथीं हुई ही|गणित में सफलता को हर बच्चे के अधिकार की तरह देखा जाना चाहिए |इसके लिए गणित के दायरे और विस्तृत करने की जरूरत है इस दुसरे विषयों से जोड़ने की जरुरत है | हर स्कूल को कंप्यूटर ,हार्डवेयर ,सोफ्टवेयर और कनेक्टिविटी मुहैया कराने जैसी ढांचागत चुनोतियों का सामना करने की जरुरत है |
विज्ञान के शिक्षण में इस तरह की तब्दीली की जनि चाहिए की यह हर बच्चे को अपने रोज के अनुभवों को जांचने और उनका विश्लेषण करने में सक्षम बनाएं| परिवेश सम्बन्धी सरोकारों और चिंताओं पर हर विषय में जोर दिए जाने की जरूरत हैं और यह ढेरों गतिविधियों और बाहरी दुनिया पर की गई परियोजनाओं के द्वारा होना चाहिए|इस प्रकार की परियोजनाओ के माध्यम से निकलने वाली सूचनाओं और समझ के आधार पर भारतीय पर्यावरण को लेकर एक सर्वसुलभ और पारदर्शी आकड़ा –संग्रह तैयार हो जाता है जो अत्यंत उपयोगी संसाधन साबित होगा |यदि विद्यार्थियों की परियोजनाये सुनियोजित हों तो उनसे ज्ञान सृजित होगा| बाल विज्ञान कांग्रेस की तर्ज पर एक सामाजिक आन्दोलन की काल्पना की जा सकती है जिससे पुरे देश में अन्वेशण की शिक्षा को प्रोत्साहन मिलेगा जो बाद में पुरे दक्षिण एशिया में फैल सकता है |
सामाजिक विज्ञान में पाठ्यचर्या के इस दस्तावेज द्वारा प्रस्तावित उपागम ज्ञान के क्षेत्रो की विशिष्ट सीमाओं को पहचानता है और साथ ही पानी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों के लिए समाकलन पर जोर देता है| हाशिए पर ढकेल दिए गए समूहों की दृष्टी से समाज विज्ञान के अध्ययन का प्रस्ताव करते हुए नजरिये में एक पूरी तब्दीली की सिफारिश की गई है|सामाजिक विज्ञान के सारे पहलुओ में जेंडर के सन्दर्भ में न्याय और अनुसूचित जाति तथा जनजाति के मसलों को लेकर जागरूकता तथा अल्पसंख्यक संवेदनाशीलता के प्रति सजकता होनी चाहिए| नागरिकशास्त्र को राजनीति विज्ञान के रूप में ढालना चाहिये और बच्चो के अतीत और नागरिकता अस्मिता की अवधारणा पर इतिहास के प्रभाव के महत्व को पहचानना चाहिए |
पाठ्यचर्या का यह दस्तावेज क्षेत्रो की तरफ ध्यान आकर्षित करता है जो इस प्रकार है:-
काम,कला और पारम्परिक दस्तकारियो ,स्वास्थ्य तथा शारीरिक शिक्षा,एवं शान्ति | काम के सम्बन्ध में आरंभिक स्तर से शुरू करते हुए काम को अधिगम से जोड़ने के लिए कुछ बुनियादी कदम सुझाये गये है |उनके पीछे आधार यह है कि ज्ञान काम को अनुभव में रूपांतरित कर देता है और सहयोग ,सृजनात्मकता और आत्म निर्भरता जैसे मूल्यों की उत्पत्ति करता है | यह ज्ञान रचनात्मकता के नए रूपों की प्रेरणा भी देता है | वरिष्ठ कक्षाओं में स्कूल के बाहर के संसाधन को औपचारिक मान्यता देने की सिफारिश है ताकि उन बच्चो को लाभ पहुँच सके जो आजीविका से सीधे जुडी हुई शिक्षा का चुनाव करते है |स्कूल के बाहर की आजीविका संस्थायो को औपचारिक मान्यता की जरुरत है जिससे वे बच्चो को ऐसा स्थान उपलब्ध करवाये जहाँ बच्चे औजारों और दूसरे साधनों से काम करे| दस्तकारियो के मानचित्रीकरण की सिफारिश की गई है जिससे उन इलाको की पहचान की जा सके जहाँ बच्चो को स्थानीय कारीगरों के सहारे दस्तकारियो की जा सके जहाँ बच्चो को स्थानीय कारीगरों के सहारे दस्तकारियो में प्रशिक्षण दिया जा सकता है|
हर स्तर पर विषय के रूप में कला को जगह दिए जाने की सिफारिश की गई जिसमें गायन,नित्य,दृश्य कलाए और नाटक चारो पहलू शामिल हैं |पर यहाँ भी जोर परसपर –क्रियात्मक पद्धतियों पर होना चाहिए न कि प्रशिक्षण पर|क्योकि कला शिक्षण का उद्देश्य सौन्दर्यात्मक और वैयक्तिक चेतना को प्रोत्साहित करना है और विविध रूपों खुद को व्यक्त करने की क्षमता को बढ़ावा देना है |नागरिक पारंपरिक दस्तकारियां आर्थिक और सौन्दर्यपरक मूल्यों के अर्थ में स्कूली शिक्षा के लिए प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हैं यह तथ्य पहचाना जाना चाहिए |
स्कूलों में बच्चो की कामयाबी पोषण और सुनियोजित शारीरिक गतिविधियों के कार्यक्रमों पर निर्भर होती है|इसीलिए जरूरी संसाधन और स्कूल के समय को मध्यांहन भोजन कार्यक्रम को सुदृढ़ बनाने में लगाना चाहिए|यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष प्रयासों की जरुरत होगी कि स्वास्थ्य और शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रमों में शाला पूर्व अवस्था से लेकर आगे तक लडको की तरह ही लडकियों की ओर भी उतना ही ध्यान दिया जाये|
पूरी दुनिया में बढ़ती असहिष्णुता और मतभेदों को सुलझाने के तरीके के रूप में हिंसा की ओर बढ़ते रुझान को देखते हुए इस बात की सिफारिश की गई है कि शान्ति को राष्ट्रीय निर्माण की पूर्व शर्त और एक सामाजिक संस्कार के रूप में समग्र मूल्य संरचना के तौर पर स्वीकार किया जाये जिसकी आज अत्यधिक प्रासंगिकता हियो |एक लोकतान्त्रिक और न्यायपूर्ण संस्कृति में बच्चो के समाजीकरण के लिये शिक्षा की सम्भावनाओं को विभिन्न गतिविधियों के द्वारा हर स्तर पर ,और हर विषय में विषयों के विवेकपूर्ण चुनाव के जरिये साकार किया जा सकता है | शांति के लिए शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यचर्या में शामिल करने की सिफारिश की गई है |
स्कूल के माहौल को पाठ्यचर्या के एक पहलू की तरह देखा गया है क्योकि यह बच्चों को शिक्षा के उद्देश्यों और सीखने की उन युक्तियो के लिए तैयार करती है जो स्कूल में सफलता के लिए जरुरी है |एक संसाधन के रूप में स्कूल के समय को लचीले ढंग से नियोजित किये जाने की जरूरत है| स्थानीय स्तर पर नियोजित लचीले स्कूली कलेंडर और समय सारणी की सिफारिश की गई है ताकि परियोंजना और प्राकृतिक और पारम्परिक धरोहर वाले स्थलों के लिए भ्रमण जैसी विविध प्रकार की गतिविधियों के लिए मौका मिल सके |इस बात की कोशिश करनी होगी किबच्चों के लिए सिखने केव अधिक संसाधन तैयार किया जाएँ ,खासकर स्कूल और शिक्षक के लिए संदर्भ पुस्तकालय हेतु स्थानीय भाषाओ में किताबे और सदर्भ सामग्रियां उपलब्ध हों और बच्चो की अंत:क्रियात्मक तकनीक तक पहुंच न हो कि प्रसारित तकनीक तक|यह दतावेज माध्यमिक स्तर पर विकल्पों में बहुलता और लचीलेपन के महत्व पर जोर देता है और बच्चों को बंद खांचों में डाल देने की स्थापित प्रवित्ति को हतोत्साहित करता है क्योकि इससे बच्चों के ,खास कर ग्रामीण इलाकों के बच्चों के अवसर सीमित हो जाते है |
भाषा
1. लिखने,बोलने ,सुनने एवं पढने की क्षमताओं स्कूल के सभी विषयों और अनुशासनों के शिक्षण से विकसित होती है |प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च माध्यमिक स्तर तक बच्चो के ज्ञान निर्माण में उनके बुनियादी महत्व को समझना आवश्यक हैं |
2. त्रिभाषा फार्मूले को पुन: लागू किये जाने की दिशा में काम किया जाना चाहिए ,जिससे बच्चों की घरेलु भाषाओं और मात्रिभाषाओ को शिक्षण के माध्यम के रूप में मान्यता देने की जरुरत हैं| इनमें आदिवासी भाषाएँ भी शामिल हैं |
3. अंग्रेजी को अन्य भारतीय भाषाओ के बीच स्थान दिए जाने की आवश्यकता है|
4. भारतीय समाज के बहुभाषात्मक प्रकृति को स्कूली जीवन की समृधि के लिए संसाधन के रूप में देखा जाना चाहिये |
गणित
विज्ञान
सामाजिक विज्ञान
काम
कला
शांति
स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा
आवास और अधिगम
पर्यावरण शिक्षा सबसे अच्छी तरह विभिन्न अनुशासनों की शिक्षा के साथ ,उसके मुद्दों और चिन्ताओं को सभी स्तरों पर जोड़कर दी जा सकती है |परन्तु इसमें यह ध्यान देना आवश्यक है कि सम्बंधित गतिविधियों के लिए पर्याप्त समय दिया जाये ।
चतुर्थ अध्याय
विद्यालय एवं कक्षा का वातावरण
सीखने के लिए जरुरी संसाधनों के बारे में इन सदर्भों में पुनर्विचार की आवश्यकता है –
पंचम अध्याय
व्यवस्थागत सुधार
पाठ्यचर्या को नवीकृत करने के लिए सबसे जरूरी व्यवस्थागत कदम होगा परीक्षाओं में सुधार जिससे खासकर दसवीं ओए बाहरवीं कक्षा में बच्चों और उनके माता –पिता पर बढ़ते मनोवैज्ञानिक दबाव की गहराती समस्याओं का कोई समाधान निकला जा सके |इसके लिए जो विशेष कदम उठाने जरूरी है वे हैं प्रश्न पत्र के स्वरूप का पूरा परिवर्तन ,जिससे तर्कशक्ति और रचनात्मक क्षमताओं को आकलन का आधार बनाया जाये न कि रटने की क्षमता को |साथ ही पारदर्शिता और आंतरिक आकलन को बढ़ावा देते हुए परीक्षाओं को कक्षा की गतिविधियों से भी जोड़ने की जरुरत है |आज प्रचलित पास फेल की सामान्यीकृत श्रेणियों की कमी को दूर करने के लिए जरुरी होगा कि ऐसी युक्तियाँ खोजी जाएँ जो बच्चों को अलग अलग स्तर की उपलब्धियों का विकल्प लेने को प्रेरित कर सके |बोर्ड –पूर्व परीक्षायों पर अतिरिक्त जोर को भी हतोत्साहित किये जाने की जरुरत है |अगर बच्चों के कक्षा के अनुभवों को इस तरह आयोजित करना हो जिससे उन्हें ज्ञान सृजित करने का अवसर मिले तो हमारी स्कूली व्यवस्था में व्यापक व्यवस्थागत सुधारो की जरुरत होगी|व्यवस्थागत सुधारों के संदर्भ में यह दस्तावेज पंचायती राज व्यवस्था को सुदृढ़ करने पर बल देता है |
गुणवत्ता और जवाबदेही बढाने के माध्यम के रूप में सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए एक अधिक सुनियोजित रुख अपनाकर यह किया जा सकता है | पर्यावरण से जुडी विविध स्कूल –आधारित परियोजनाएँ पंचायती राज संस्थाओं के लिए एक ऐसा ज्ञान भंडार हो सकती हैं जिसके आधार पर वे स्थानीय पर्यावरण की बेहतर साज –संभाल कर उसे पुनर्जीवित कर सकते हैं |गुणवत्ता के स्तर को ऊपर उठाने के लिए स्कूली स्तर पर अकादमिक नियोजन और नेतृत्व जरुरी है और खण्ड एवं सकुंल स्तर पर भूमिकाओं में विभाजन करना बहुत ही आवश्यक है | चट्टोपाध्याय कमीशन (१९८४ )द्वारा सुझाएँ गये पेशेवर मानकों ढीलापन लाने की हाल की प्रवृति को रोकने के लिए शिक्षक - प्रशिक्षण में क्रांतिकारी परिवर्तन की जरुरत है | सेवापूर्ण प्रशिक्षण कार्यक्रमों को ज्यादा लम्बी अवधि का तथा अधिक समग्रता लिए हुए होना चाहिए ताकि बच्चों का ध्यानपूर्वक अवलोकन करने के लियें पर्याप्त अवसर और स्कूलों में इंटर्नशिप के द्वारा शिक्षाशास्त्रीय सिद्धांतों को व्यवहार से जोड़ने के पुरे मौके मिल सके |
"1. व्यवस्थागत सुधार के एक प्रमुख लक्षण है,गुणवत्ता की चिंता जिसका मतलब हुआ कि संस्था में अपनी कमजोरियों की पहचान कर नयी क्षमताओं का विकास करते हुए खुद को सुधारने की क्षमता हो |
2. यह वांछनीय है कि समान स्कूल व्यवस्था विकसित की जाये ताकि देश के अलग –अलग क्षेत्रों की तुलनीय गुणवत्ता भी सुनिश्चित हो सके क्योकि जब अलग –अलग पृष्ठभूमियों के बच्चे साथ –साथ पढ़ते हैं तो इससे शिक्षण की गुणवत्ता में विकास होता है और स्कूल का माहौल समृद्ध होता है |
3. आगामी योजना के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्रों की पहचान की शुरुआत स्कूलों से करते हुए संकुल तथा खंड स्तर पर हो |बाद में इनका समेकन करते हुए विस्तृत रुपरेखा बनाई जा सकती है |यह आगे जिला स्तर पर विक्रेन्द्रीकरण योजना निति बनाने में मदद कर सकती है |
4. प्रधानाध्यापक और शिक्षकों के सहयोग से सार्थक अकादमिक योजना का विकास |
5. पठन-पाठन ले संदर्भ में प्रत्येक स्कूल के साथ सतत अन्त:क्रिया की जनि चाहिए ताकि गुणवत्ता का निरीक्षण किया जा सके |
6. शिक्षक –शिक्षा कार्यक्रमों का इस प्रकार पुनर्सुत्रीकरण एवं शक्तिकरणकिया जाये ताकि शिक्षक निम्नलिखित रूपों में अपनी भूमिका निभा सके:
अध्यन-अध्यापन की परिस्थितियों को शिक्षकों के लिए उत्साहवर्धक ,सहयोगी और मानवीय बनाया जाये ताकि विद्यार्थियों को अपनी शारीरिक तथा बौद्धिक संभावनाओं के पूर्ण विकास का मौका मिले|साथ ही ,जिम्मेदार नागरिक के रूप में अपनी भूमिका निभाने के लिए वांछनीय सामाजिक और मानवीय मूल्यों के विकास का भी अवसर मई;ल सके, और
शिक्षक को ऐसे समूह का हिस्सा होना चाहिए जो लगातार सामाजिक और विद्यार्थियों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर पाठ्यचर्या सुधार में सजगता से लगें |
7. शिक्षक –शिक्षा का इस प्रकार पुनर्सुत्रीकरण हो की इसमें ज्ञान निर्माण में विद्यार्थी की सक्रिय भागीदारी ,अधिगम के साझे सदर्भ ,ज्ञान निर्माण की प्रकिया में शिक्षक उत्प्रेरक का काम करे,आदि पर बल दिया जाये|शिक्षक –शिक्षा का दृष्टीकोण बहु –अनुशासनात्मक हो, उसमें सिद्धांत और व्यवहार अंतर्भूत हों तथा इसमें आलोचनात्मक परिप्रेक्ष्य विकसित करने की दृष्टी से समकालीन भारतीय सामाजिक मुद्दों पर बातचीत हो|
8. शिक्षक –शिक्षा में भाषित दक्षता को क्रेंद्र में रखा जाये और शिक्षक –शिक्षा का समेकित माँडल विकसित किया जाये ताकि शिक्षकों के पेशेवरपन को मजबूत किया जा सके|
9. सेवाकालीन प्रशिक्षक स्कूल में बदलाव का उत्प्रेरक हो|
10. लोकतान्त्रिक सहभागिता को साकार करने हेतु गाँव के स्तर पर समांतर संस्थाओं के क्रियाकालापों को नियंत्रित कर पंचायती राज संस्थाओं को मजबूती प्रदान की जा सके|
11. निम्नलिखित बिन्दुओं पर बल देकर परीक्षा के कारण होने वाले तनाव में कमी लाई जा सकती है और सफलता बढाई जा सकती है:
विषयवस्तु के परीक्षण के बदले शिक्षार्थियों की समस्या समाधान तथा समझ को जांचने की दिशा में बदलाव | इसके लिए प्रश्न –पत्र के वर्तमान स्वरूप में परिवर्तन आवश्यक है |
लघु परीक्षाओं की ओर बदलाव |
लचीली समय सीमा के साथ परिक्षा |
एक ऐसी नोडल एजेंसी की स्थापना जो
परीक्षाओं के डिजाईन बनाये तथा उन्हें संचालित कर सके |
अंततः यह दस्तावेज स्कूली व्यावस्था और दूसरे नागरिक समूहों के बीच सहभागिता की सिफारिश करता है जिनमें गैर –सरकारी संगठन और शिक्षक संगठन भीं शामिल है| पहले से ही मौजूद नवाचारों के अनुभवों को मुख्य धारा का स्वरूप देने की जरूरत है| आज जरूरत इस बात की है कि आरंभिक शिक्षा के सर्वव्यापीकरण में निहित चुनौतियों के प्रति सजगता को राज्य और बच्चों को लेकर काम कर रही साड़ी एजेंसियों के बीच एक व्यापक सहभागिता का विषय बनाया जाये और पहले से मौजूद नवाचारों के अनुभवों को मुख्यधारा में लाया जाये |
दोस्तों आपको यह आर्टिकल कैसा लगा हमें जरुर बताये. आप अपनी राय, सवाल और सुझाव हमें comments के जरिये जरुर भेजे. अगर आपको यह आर्टिकल उपयोगी लगा हो तो कृपया इसे share करे।
आप E-mail के द्वारा भी अपना सुझाव दे सकते हैं। prakashgoswami03@gmail.com
तृतीय अध्याय “पाठ्यचर्या के क्षेत्र , स्कूल की अवस्थाये और आकलन
यह तथ्य कि बच्चा ज्ञान का सृजन करता है ,इसका निहितार्थ है कि पाठ्यचर्या ,पाठ्यक्रम एवं पाठ्यपुस्तक शिक्षक को इस बात के लिये सक्षम बनाये कि वे बच्चो की प्रकृति और वातावरण के अनुरूप कक्षायी अनुभव आयोजित करे ,ताकि सारे बच्चो को अवसर मिल पाये | शिक्षण का उद्देश्य बच्चे के सिखने की सहज इच्छा और युक्तियो को समृध्द करना होना चहिये | ज्ञान को सूचना से अलग करने की जरुरत है और शिक्षण को एक पेशेवर गतिविधि के रूप मे पहचानने की जरुरत है न कि तथ्यो के रटने और प्रसार के प्रशिक्षण के रूप में | सक्रिय गतिविधि के जरिये ही बच्चा अपने आसपास की दुनिया को समझने की कोशिश करता है |इसलिये प्रत्येक साधन का उपयोग इस तरह किया जाना चाहिये कि बच्चो को खुद को अभिव्यक्त करने में ,वस्तुयो का इस्तेमाल करने में ,अपने प्रकृतिक और सामाजिक परिवेश की खोजबीन करने में और स्वस्थ रूप से विकसित होने में मदद मिले | अगर बच्चो,के कक्षा के अनुभवो को इस तरह आयोजित करना हो जिससे उन्हे ज्ञान सृजित करने का अवसर मिले तो इसके लिये स्कूल के विषयो और पाठ्यचर्या के क्षेत्रों की फिर से संकल्पना की आवश्यकता होगी |
स्कूली पाठ्यचर्या के चार सुपरिचित क्षेत्रों –भाषा ,गणित ,और समाज विज्ञान में –महत्वपूर्ण परिवर्तनों का सुझाव दिया गया है |इस दृष्टी से कि शिक्षा आज की और भविष्य की जरूरतों के लिए ज्यादा प्रासंगिक बन सके और बच्चो को उस दबाव से मुक्त किया जा सके जो वे आज झेल रहे है |यह राष्ट्रीय पाठ्यचर्या दस्तावेज इस बात की सिफारिश करता है कि विषयों के बीच की दीवारें नीची क्र दी जाये ताकि बच्चों को ज्ञान का समग्र आनंद मिल सके और किसी चीज को समझने से मिलने वाली ख़ुशी हासिल हो सके |इसके साथ यह भी सुझाया गया है कि पाठ्यपुस्तक और दूसरी सामग्री की बहुलता ही ,जिनसे स्थानीय ज्ञान और पारम्परिक कौशल शामिल हो सकते हैं और बच्चों के घर और समुदायिक परिवेश से जीवंत संबंध बनाने मे वाले स्फूर्तिदायक स्कूली माहौल को सुनिश्चित किया जा सके |भाषा में त्रिभाषा फार्मूले को लागु करने में फिर से प्रयास का सुझाव दिया गया है जिसमें आदिवासी भाषाओँ सहित बच्चो की मातृभूमि को शिक्षा के माध्यम के रूप में स्वीकृति देने पर जोर दिया है|प्रत्येक बच्चे में बहुभाषिक प्रवीणता विकसित करने के लिए भारतीय समाज के बहुभाषिक चरित्र को एक संसाधन के रूप में देखना चाहिए जिसमे अग्रेजी में प्रवीणता भी हासिल है यह तभी मुमकिन है जब भाषा की पुख्ता शिक्षाशास्त्र मातृभाषा के उपयोग पर आधारित हो|पढना ,लिखना और सुनना –ये क्रियाये पाठ्यचर्या के सभी क्षेत्रो में बच्चों की प्रगति में भूमिका निभाती हैं और इन्हें पाठ्यचर्या की योजना का आधार होना चाहिए|आरम्भिक कक्षाओं के पुरे दौर में पढने पर जोर देना जरुरी है जिससे हर बच्चे को स्कूली शिक्षा का ठोस आधार मिल सके|
गणित की शिक्षा ऐसी होनी चाहिये जिससे बच्चों के वे संसाधन समृद्ध हों चिंतन और तर्क में, अमुर्तनो की संकल्पना करने और उनका व्यवहार करने में ,समस्याओं को सूत्रबद्ध करने ओर सुलझाने में उनकी सहायता करें|उद्देश्यों का यह व्यापक फलक उस प्रासंगिक और अर्थपूर्ण गणित को पढ़ाकर तय किया जा सकता है जो बच्चों के अनुभवों में गुंथीं हुई ही|गणित में सफलता को हर बच्चे के अधिकार की तरह देखा जाना चाहिए |इसके लिए गणित के दायरे और विस्तृत करने की जरूरत है इस दुसरे विषयों से जोड़ने की जरुरत है | हर स्कूल को कंप्यूटर ,हार्डवेयर ,सोफ्टवेयर और कनेक्टिविटी मुहैया कराने जैसी ढांचागत चुनोतियों का सामना करने की जरुरत है |
विज्ञान के शिक्षण में इस तरह की तब्दीली की जनि चाहिए की यह हर बच्चे को अपने रोज के अनुभवों को जांचने और उनका विश्लेषण करने में सक्षम बनाएं| परिवेश सम्बन्धी सरोकारों और चिंताओं पर हर विषय में जोर दिए जाने की जरूरत हैं और यह ढेरों गतिविधियों और बाहरी दुनिया पर की गई परियोजनाओं के द्वारा होना चाहिए|इस प्रकार की परियोजनाओ के माध्यम से निकलने वाली सूचनाओं और समझ के आधार पर भारतीय पर्यावरण को लेकर एक सर्वसुलभ और पारदर्शी आकड़ा –संग्रह तैयार हो जाता है जो अत्यंत उपयोगी संसाधन साबित होगा |यदि विद्यार्थियों की परियोजनाये सुनियोजित हों तो उनसे ज्ञान सृजित होगा| बाल विज्ञान कांग्रेस की तर्ज पर एक सामाजिक आन्दोलन की काल्पना की जा सकती है जिससे पुरे देश में अन्वेशण की शिक्षा को प्रोत्साहन मिलेगा जो बाद में पुरे दक्षिण एशिया में फैल सकता है |
सामाजिक विज्ञान में पाठ्यचर्या के इस दस्तावेज द्वारा प्रस्तावित उपागम ज्ञान के क्षेत्रो की विशिष्ट सीमाओं को पहचानता है और साथ ही पानी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों के लिए समाकलन पर जोर देता है| हाशिए पर ढकेल दिए गए समूहों की दृष्टी से समाज विज्ञान के अध्ययन का प्रस्ताव करते हुए नजरिये में एक पूरी तब्दीली की सिफारिश की गई है|सामाजिक विज्ञान के सारे पहलुओ में जेंडर के सन्दर्भ में न्याय और अनुसूचित जाति तथा जनजाति के मसलों को लेकर जागरूकता तथा अल्पसंख्यक संवेदनाशीलता के प्रति सजकता होनी चाहिए| नागरिकशास्त्र को राजनीति विज्ञान के रूप में ढालना चाहिये और बच्चो के अतीत और नागरिकता अस्मिता की अवधारणा पर इतिहास के प्रभाव के महत्व को पहचानना चाहिए |
पाठ्यचर्या का यह दस्तावेज क्षेत्रो की तरफ ध्यान आकर्षित करता है जो इस प्रकार है:-
काम,कला और पारम्परिक दस्तकारियो ,स्वास्थ्य तथा शारीरिक शिक्षा,एवं शान्ति | काम के सम्बन्ध में आरंभिक स्तर से शुरू करते हुए काम को अधिगम से जोड़ने के लिए कुछ बुनियादी कदम सुझाये गये है |उनके पीछे आधार यह है कि ज्ञान काम को अनुभव में रूपांतरित कर देता है और सहयोग ,सृजनात्मकता और आत्म निर्भरता जैसे मूल्यों की उत्पत्ति करता है | यह ज्ञान रचनात्मकता के नए रूपों की प्रेरणा भी देता है | वरिष्ठ कक्षाओं में स्कूल के बाहर के संसाधन को औपचारिक मान्यता देने की सिफारिश है ताकि उन बच्चो को लाभ पहुँच सके जो आजीविका से सीधे जुडी हुई शिक्षा का चुनाव करते है |स्कूल के बाहर की आजीविका संस्थायो को औपचारिक मान्यता की जरुरत है जिससे वे बच्चो को ऐसा स्थान उपलब्ध करवाये जहाँ बच्चे औजारों और दूसरे साधनों से काम करे| दस्तकारियो के मानचित्रीकरण की सिफारिश की गई है जिससे उन इलाको की पहचान की जा सके जहाँ बच्चो को स्थानीय कारीगरों के सहारे दस्तकारियो की जा सके जहाँ बच्चो को स्थानीय कारीगरों के सहारे दस्तकारियो में प्रशिक्षण दिया जा सकता है|
हर स्तर पर विषय के रूप में कला को जगह दिए जाने की सिफारिश की गई जिसमें गायन,नित्य,दृश्य कलाए और नाटक चारो पहलू शामिल हैं |पर यहाँ भी जोर परसपर –क्रियात्मक पद्धतियों पर होना चाहिए न कि प्रशिक्षण पर|क्योकि कला शिक्षण का उद्देश्य सौन्दर्यात्मक और वैयक्तिक चेतना को प्रोत्साहित करना है और विविध रूपों खुद को व्यक्त करने की क्षमता को बढ़ावा देना है |नागरिक पारंपरिक दस्तकारियां आर्थिक और सौन्दर्यपरक मूल्यों के अर्थ में स्कूली शिक्षा के लिए प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हैं यह तथ्य पहचाना जाना चाहिए |
स्कूलों में बच्चो की कामयाबी पोषण और सुनियोजित शारीरिक गतिविधियों के कार्यक्रमों पर निर्भर होती है|इसीलिए जरूरी संसाधन और स्कूल के समय को मध्यांहन भोजन कार्यक्रम को सुदृढ़ बनाने में लगाना चाहिए|यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष प्रयासों की जरुरत होगी कि स्वास्थ्य और शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रमों में शाला पूर्व अवस्था से लेकर आगे तक लडको की तरह ही लडकियों की ओर भी उतना ही ध्यान दिया जाये|
पूरी दुनिया में बढ़ती असहिष्णुता और मतभेदों को सुलझाने के तरीके के रूप में हिंसा की ओर बढ़ते रुझान को देखते हुए इस बात की सिफारिश की गई है कि शान्ति को राष्ट्रीय निर्माण की पूर्व शर्त और एक सामाजिक संस्कार के रूप में समग्र मूल्य संरचना के तौर पर स्वीकार किया जाये जिसकी आज अत्यधिक प्रासंगिकता हियो |एक लोकतान्त्रिक और न्यायपूर्ण संस्कृति में बच्चो के समाजीकरण के लिये शिक्षा की सम्भावनाओं को विभिन्न गतिविधियों के द्वारा हर स्तर पर ,और हर विषय में विषयों के विवेकपूर्ण चुनाव के जरिये साकार किया जा सकता है | शांति के लिए शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यचर्या में शामिल करने की सिफारिश की गई है |
स्कूल के माहौल को पाठ्यचर्या के एक पहलू की तरह देखा गया है क्योकि यह बच्चों को शिक्षा के उद्देश्यों और सीखने की उन युक्तियो के लिए तैयार करती है जो स्कूल में सफलता के लिए जरुरी है |एक संसाधन के रूप में स्कूल के समय को लचीले ढंग से नियोजित किये जाने की जरूरत है| स्थानीय स्तर पर नियोजित लचीले स्कूली कलेंडर और समय सारणी की सिफारिश की गई है ताकि परियोंजना और प्राकृतिक और पारम्परिक धरोहर वाले स्थलों के लिए भ्रमण जैसी विविध प्रकार की गतिविधियों के लिए मौका मिल सके |इस बात की कोशिश करनी होगी किबच्चों के लिए सिखने केव अधिक संसाधन तैयार किया जाएँ ,खासकर स्कूल और शिक्षक के लिए संदर्भ पुस्तकालय हेतु स्थानीय भाषाओ में किताबे और सदर्भ सामग्रियां उपलब्ध हों और बच्चो की अंत:क्रियात्मक तकनीक तक पहुंच न हो कि प्रसारित तकनीक तक|यह दतावेज माध्यमिक स्तर पर विकल्पों में बहुलता और लचीलेपन के महत्व पर जोर देता है और बच्चों को बंद खांचों में डाल देने की स्थापित प्रवित्ति को हतोत्साहित करता है क्योकि इससे बच्चों के ,खास कर ग्रामीण इलाकों के बच्चों के अवसर सीमित हो जाते है |
भाषा
1. लिखने,बोलने ,सुनने एवं पढने की क्षमताओं स्कूल के सभी विषयों और अनुशासनों के शिक्षण से विकसित होती है |प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च माध्यमिक स्तर तक बच्चो के ज्ञान निर्माण में उनके बुनियादी महत्व को समझना आवश्यक हैं |
2. त्रिभाषा फार्मूले को पुन: लागू किये जाने की दिशा में काम किया जाना चाहिए ,जिससे बच्चों की घरेलु भाषाओं और मात्रिभाषाओ को शिक्षण के माध्यम के रूप में मान्यता देने की जरुरत हैं| इनमें आदिवासी भाषाएँ भी शामिल हैं |
3. अंग्रेजी को अन्य भारतीय भाषाओ के बीच स्थान दिए जाने की आवश्यकता है|
4. भारतीय समाज के बहुभाषात्मक प्रकृति को स्कूली जीवन की समृधि के लिए संसाधन के रूप में देखा जाना चाहिये |
गणित
- गणित –शिक्षण का मुख्यं लक्ष्य गणितीकरण (तार्किक ढंग से सोचने ,अमुर्तनो का निर्माण करने तथा संचालित करने की योग्यताओ का विकास )होना न की गणित का ज्ञान (औपचारिक एवं यांत्रिक प्रक्रियाओ का ज्ञान )
- तांत्रिक ढंग से सोचने की क्षमता |
- गणित की शिक्षा से बच्चों की तर्क ,सोचने की ,अमुर्तनो ने निर्माण तथा दृष्टीकरण की क्षमताओ एवं बच्चों में समस्या सुलझाने की क्षमता का विकास हो| गणित की बेहतर शिक्षा का हक हर बच्चे को है |
विज्ञान
- विज्ञान की भाषा ,प्रक्रिया एवं विषयवस्तु विद्यार्थी की उम्र और उसकी ज्ञान की सीमा के अनुकूल होनी चाहिए |
- विज्ञान शिक्षा को विद्यार्थी को उन तरीको एवं प्रक्रियाओ का बोध कराने सक्षम होना चाहिए जो उनकी रचनात्मकता और जिज्ञासा को संपोषित करने वाली हों ,विशेषकर पर्यावरण के संदर्भ में |
- विज्ञान की शिक्षा को बच्चो के परिवेश के संदर्भ के अनुकूल होना चाहिए ताकि उनमे काम के संसार में परिवेश करने लायक जरूरी ज्ञान एवं कौशल विकसित हो सके |
- पर्यावरण की चिन्ताओ के प्रति जागरूकता को सम्पूर्ण स्कूली पाठ्यचर्या में व्याप्त होना चाहिए |
सामाजिक विज्ञान
- सामाजिक विज्ञान की विषयवस्तु में अवधारणात्मक समझ पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है बजाए इसके कि बच्चों के सामने परीक्षा के लिए रटने वाली सामग्री का अम्बार खड़ा कर दिया जाये | इससे उनमें सामजिक मुद्दों पर स्वतंत्र तथा आलोचनात्मक रूप से सोचने का अवसर मिलेगा |
- प्रमुख रास्ट्रीय चिन्ताओ जैसे-लैंगिक न्याय ,मानव अधिकार और हाशिये के
- समूहों तथा अल्पसंख्यकों के प्रति संवेदनशीलता को विकसित किये जाने के लिए अंत:अनुशासनात्मक दृष्टीकोण अपनाये जाने की जरूरत है|
- नागरिक शास्त्र को राजनीतिशास्त्र में तब्दील कर दिए जाये, तथा इतिहास को बच्चे की अतीत तथा नागरिक की पहचान की अवधारणा पर प्रभाव डालने वाले विषय के रूप में पहचाना जाये |
काम
- पूर्व प्राथमिक से लेकर उच्च माध्यमिक स्तर तक स्कूली पाठ्यचर्या को पुनर्गठित किये जाने की आवश्यकता है जिसमें ज्ञान अर्जन ,मूल्यों का
- विकास और बहुविध कौशलों के निर्माण के संदर्भ में काम की शिक्षाशास्त्रीय संभावनाओं को देखा जा सके |
कला
- कलाओं (संगीत ,नृत्य ,दृश्यकलायें ,कठपुतली कला ,मिट्टी की कला ,नाटक आदि के लोक तथा शास्त्रीय रूपों )और धरोहर शिल्पों को पाठ्यचर्या में समेकित घटकों के रूप में मान्यता |
- वैयक्तिक ,सामाजिक ,आर्थिक और सौन्दर्यात्मक आवश्यकताओं के संदर्भ में उनकी प्रासंगिकता के बारे में माता-पिता ,स्कूली अधिकारियों और प्रशासकों में जागरूकता पैदा करना |
- कला को स्कूली शिक्षा के हर स्तर पर शामिल किये जाने पर बल |
शांति
- स्कूली शिक्षा के दौरान उपयुक्त गतिविधियों के माध्यम से सभी विषयों में मूल्यों का संवर्धन |
- शांति के लिए शिक्षा को शिक्षण –प्रशिक्षण का भी एक अवयव बनाया जाना चाहिए |
स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा
- स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा विद्यर्थियों के समग्र विकास के लिए आवश्यक है |
- स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिख्सा के माध्यम से स्कूल में नामांकन , उपस्थिति एवं ठहराव आदि की समस्या से निपटा जा सकता है |
आवास और अधिगम
पर्यावरण शिक्षा सबसे अच्छी तरह विभिन्न अनुशासनों की शिक्षा के साथ ,उसके मुद्दों और चिन्ताओं को सभी स्तरों पर जोड़कर दी जा सकती है |परन्तु इसमें यह ध्यान देना आवश्यक है कि सम्बंधित गतिविधियों के लिए पर्याप्त समय दिया जाये ।
चतुर्थ अध्याय
विद्यालय एवं कक्षा का वातावरण
- "इसमें वातावरण के भौतिक एवं मनोवैज्ञानिक आयामों का परिक्षण करते हुए यह प्रस्तुत किया गया है कि बच्चों के अधिगम को विद्यालय एवं कक्षा का वातावरण किस प्रकार महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते है :
- शिक्षकों के प्रदर्शन को सुधारने के लिए ढांचागत और भौतिक सामग्री की न्यूनतम उपलब्धता और दैनिक योजना को लचीला बनाना आवश्यक है |
- बच्चों को सिखाने वालों के रुप में पहचानने वाली स्कूली संस्कृति हर बच्चे की रुचियो को उसकी संभावनाओं को और अधिक समृद्ध करती है |
- ऐसी विशिष्ट गतिविधियों का आयोजन जिसमें सक्षम और विभिन्न अक्षमताओं को झेल रहे बच्चे एक साथ भाग ले सकें |यह सबके सिखाने के लिए एक अनिवार्य शर्त है |
- लोकतान्त्रिक तरीके द्वारा बच्चों में स्व –अनिशासन का विकास हमेशा ही प्रासंगिक रहा है | ज्ञान की प्रकिया में समुदाय के लोगों को शामिल किये जाने से स्कूल और समुदाय में साझेदारी होने लगती है |"
सीखने के लिए जरुरी संसाधनों के बारे में इन सदर्भों में पुनर्विचार की आवश्यकता है –
- ""पाठयपुस्तक में अवधारणाओं कि वे उससे संबंधित चिंतन और समूह कार्य को बढ़ावा देने वाले हों |
- सहायक पुस्तकें ,कार्यपुस्तिकाएँ ,शिक्षकों के लिए मर्ग्दार्शिकों आदि अभिनव चिंतन और नयी दृष्टियों पर आधारित हों|
- शिक्षा को इकतरफा रूप से प्राप्त की जाने वाली वस्तु की जगह इसमें दोतरफा संवाद बनाने के लिए मल्टीमिडिया और सुचना एवं सचर तकनीकी के साधनों का उपयोग |
- स्कूल का पुस्तकालय विद्यार्थियों ,शिक्षकों और समुदाय के लोगों के लिए ज्ञान
- को गहरा करने और विस्तृत संसार के साथ जोड़ने का कार्य करें
- शिक्षा का महौल को बनाने के लिए स्कूल सारणी की विकेंद्रीकृत योजना तथा दैनिक सारणी ओए शिक्षक को पेशेवर कार्यों के लिए स्वायत्तता अनिवार्य है |"
पंचम अध्याय
व्यवस्थागत सुधार
पाठ्यचर्या को नवीकृत करने के लिए सबसे जरूरी व्यवस्थागत कदम होगा परीक्षाओं में सुधार जिससे खासकर दसवीं ओए बाहरवीं कक्षा में बच्चों और उनके माता –पिता पर बढ़ते मनोवैज्ञानिक दबाव की गहराती समस्याओं का कोई समाधान निकला जा सके |इसके लिए जो विशेष कदम उठाने जरूरी है वे हैं प्रश्न पत्र के स्वरूप का पूरा परिवर्तन ,जिससे तर्कशक्ति और रचनात्मक क्षमताओं को आकलन का आधार बनाया जाये न कि रटने की क्षमता को |साथ ही पारदर्शिता और आंतरिक आकलन को बढ़ावा देते हुए परीक्षाओं को कक्षा की गतिविधियों से भी जोड़ने की जरुरत है |आज प्रचलित पास फेल की सामान्यीकृत श्रेणियों की कमी को दूर करने के लिए जरुरी होगा कि ऐसी युक्तियाँ खोजी जाएँ जो बच्चों को अलग अलग स्तर की उपलब्धियों का विकल्प लेने को प्रेरित कर सके |बोर्ड –पूर्व परीक्षायों पर अतिरिक्त जोर को भी हतोत्साहित किये जाने की जरुरत है |अगर बच्चों के कक्षा के अनुभवों को इस तरह आयोजित करना हो जिससे उन्हें ज्ञान सृजित करने का अवसर मिले तो हमारी स्कूली व्यवस्था में व्यापक व्यवस्थागत सुधारो की जरुरत होगी|व्यवस्थागत सुधारों के संदर्भ में यह दस्तावेज पंचायती राज व्यवस्था को सुदृढ़ करने पर बल देता है |
गुणवत्ता और जवाबदेही बढाने के माध्यम के रूप में सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए एक अधिक सुनियोजित रुख अपनाकर यह किया जा सकता है | पर्यावरण से जुडी विविध स्कूल –आधारित परियोजनाएँ पंचायती राज संस्थाओं के लिए एक ऐसा ज्ञान भंडार हो सकती हैं जिसके आधार पर वे स्थानीय पर्यावरण की बेहतर साज –संभाल कर उसे पुनर्जीवित कर सकते हैं |गुणवत्ता के स्तर को ऊपर उठाने के लिए स्कूली स्तर पर अकादमिक नियोजन और नेतृत्व जरुरी है और खण्ड एवं सकुंल स्तर पर भूमिकाओं में विभाजन करना बहुत ही आवश्यक है | चट्टोपाध्याय कमीशन (१९८४ )द्वारा सुझाएँ गये पेशेवर मानकों ढीलापन लाने की हाल की प्रवृति को रोकने के लिए शिक्षक - प्रशिक्षण में क्रांतिकारी परिवर्तन की जरुरत है | सेवापूर्ण प्रशिक्षण कार्यक्रमों को ज्यादा लम्बी अवधि का तथा अधिक समग्रता लिए हुए होना चाहिए ताकि बच्चों का ध्यानपूर्वक अवलोकन करने के लियें पर्याप्त अवसर और स्कूलों में इंटर्नशिप के द्वारा शिक्षाशास्त्रीय सिद्धांतों को व्यवहार से जोड़ने के पुरे मौके मिल सके |
"1. व्यवस्थागत सुधार के एक प्रमुख लक्षण है,गुणवत्ता की चिंता जिसका मतलब हुआ कि संस्था में अपनी कमजोरियों की पहचान कर नयी क्षमताओं का विकास करते हुए खुद को सुधारने की क्षमता हो |
2. यह वांछनीय है कि समान स्कूल व्यवस्था विकसित की जाये ताकि देश के अलग –अलग क्षेत्रों की तुलनीय गुणवत्ता भी सुनिश्चित हो सके क्योकि जब अलग –अलग पृष्ठभूमियों के बच्चे साथ –साथ पढ़ते हैं तो इससे शिक्षण की गुणवत्ता में विकास होता है और स्कूल का माहौल समृद्ध होता है |
3. आगामी योजना के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्रों की पहचान की शुरुआत स्कूलों से करते हुए संकुल तथा खंड स्तर पर हो |बाद में इनका समेकन करते हुए विस्तृत रुपरेखा बनाई जा सकती है |यह आगे जिला स्तर पर विक्रेन्द्रीकरण योजना निति बनाने में मदद कर सकती है |
4. प्रधानाध्यापक और शिक्षकों के सहयोग से सार्थक अकादमिक योजना का विकास |
5. पठन-पाठन ले संदर्भ में प्रत्येक स्कूल के साथ सतत अन्त:क्रिया की जनि चाहिए ताकि गुणवत्ता का निरीक्षण किया जा सके |
6. शिक्षक –शिक्षा कार्यक्रमों का इस प्रकार पुनर्सुत्रीकरण एवं शक्तिकरणकिया जाये ताकि शिक्षक निम्नलिखित रूपों में अपनी भूमिका निभा सके:
अध्यन-अध्यापन की परिस्थितियों को शिक्षकों के लिए उत्साहवर्धक ,सहयोगी और मानवीय बनाया जाये ताकि विद्यार्थियों को अपनी शारीरिक तथा बौद्धिक संभावनाओं के पूर्ण विकास का मौका मिले|साथ ही ,जिम्मेदार नागरिक के रूप में अपनी भूमिका निभाने के लिए वांछनीय सामाजिक और मानवीय मूल्यों के विकास का भी अवसर मई;ल सके, और
शिक्षक को ऐसे समूह का हिस्सा होना चाहिए जो लगातार सामाजिक और विद्यार्थियों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर पाठ्यचर्या सुधार में सजगता से लगें |
7. शिक्षक –शिक्षा का इस प्रकार पुनर्सुत्रीकरण हो की इसमें ज्ञान निर्माण में विद्यार्थी की सक्रिय भागीदारी ,अधिगम के साझे सदर्भ ,ज्ञान निर्माण की प्रकिया में शिक्षक उत्प्रेरक का काम करे,आदि पर बल दिया जाये|शिक्षक –शिक्षा का दृष्टीकोण बहु –अनुशासनात्मक हो, उसमें सिद्धांत और व्यवहार अंतर्भूत हों तथा इसमें आलोचनात्मक परिप्रेक्ष्य विकसित करने की दृष्टी से समकालीन भारतीय सामाजिक मुद्दों पर बातचीत हो|
8. शिक्षक –शिक्षा में भाषित दक्षता को क्रेंद्र में रखा जाये और शिक्षक –शिक्षा का समेकित माँडल विकसित किया जाये ताकि शिक्षकों के पेशेवरपन को मजबूत किया जा सके|
9. सेवाकालीन प्रशिक्षक स्कूल में बदलाव का उत्प्रेरक हो|
10. लोकतान्त्रिक सहभागिता को साकार करने हेतु गाँव के स्तर पर समांतर संस्थाओं के क्रियाकालापों को नियंत्रित कर पंचायती राज संस्थाओं को मजबूती प्रदान की जा सके|
11. निम्नलिखित बिन्दुओं पर बल देकर परीक्षा के कारण होने वाले तनाव में कमी लाई जा सकती है और सफलता बढाई जा सकती है:
विषयवस्तु के परीक्षण के बदले शिक्षार्थियों की समस्या समाधान तथा समझ को जांचने की दिशा में बदलाव | इसके लिए प्रश्न –पत्र के वर्तमान स्वरूप में परिवर्तन आवश्यक है |
लघु परीक्षाओं की ओर बदलाव |
लचीली समय सीमा के साथ परिक्षा |
एक ऐसी नोडल एजेंसी की स्थापना जो
परीक्षाओं के डिजाईन बनाये तथा उन्हें संचालित कर सके |
अंततः यह दस्तावेज स्कूली व्यावस्था और दूसरे नागरिक समूहों के बीच सहभागिता की सिफारिश करता है जिनमें गैर –सरकारी संगठन और शिक्षक संगठन भीं शामिल है| पहले से ही मौजूद नवाचारों के अनुभवों को मुख्य धारा का स्वरूप देने की जरूरत है| आज जरूरत इस बात की है कि आरंभिक शिक्षा के सर्वव्यापीकरण में निहित चुनौतियों के प्रति सजगता को राज्य और बच्चों को लेकर काम कर रही साड़ी एजेंसियों के बीच एक व्यापक सहभागिता का विषय बनाया जाये और पहले से मौजूद नवाचारों के अनुभवों को मुख्यधारा में लाया जाये |
दोस्तों आपको यह आर्टिकल कैसा लगा हमें जरुर बताये. आप अपनी राय, सवाल और सुझाव हमें comments के जरिये जरुर भेजे. अगर आपको यह आर्टिकल उपयोगी लगा हो तो कृपया इसे share करे।
आप E-mail के द्वारा भी अपना सुझाव दे सकते हैं। prakashgoswami03@gmail.com
No comments:
Post a Comment