Wednesday, May 22, 2019

समाज में दिव्यांग के प्रति लोगो की जो गलत धारणा हैं उसे खत्म किया जाय

समाज में दिव्यांग के प्रति लोगो की जो गलत धारणा हैं उसे किस तरह खत्म किया जाय ?

दिव्यांग भी कर सकते हैं चमत्कार, उनको प्यार दें और उनका हौसला  बढ़ाए

प्रतिवर्ष 3 दिसंबर का दिन दुनियाभर में दिव्यांगों की समाज में मौजूदा स्थिति, उन्हें आगे बढ़ने हेतु प्रेरित करने तथा सुनहरे भविष्य हेतु भावी कल्याणकारी योजनाओं पर विचार-विमर्श करने के लिए जाना जाता है। दरअसल यह संयुक्त राष्ट्र संघ की एक मुहिम का हिस्सा है जिसका उद्देश्य दिव्यांगजनों को मानसिक रुप से सबल बनाना तथा अन्य लोगों में उनके प्रति सहयोग की भावना का विकास करना है। एक दिवस के तौर पर इस आयोजन को मनाने की औपचारिक शुरुआत वर्ष 1992 से हुई थी। जबकि इससे एक वर्ष पूर्व 1991 में सयुंक्त राष्ट्र संघ ने 3 दिसंबर से प्रतिवर्ष इस तिथि को अन्तरराष्ट्रीय विकलांग दिवस के रूप में मनाने की स्वीकृति प्रदान कर दी थी।

मेडिकल कारणों से कभी-कभी व्यक्ति के विशेष अंगों में दोष उत्पन्न हो जाता है, जिसकी वजह से उन्हें समाज में 'विकलांग' की संज्ञा दे दी जाती है और उन्हें एक विशेष वर्ग के सदस्य के तौर पर देखा जाने लगता है। आमतौर पर हमारे देश में दिव्यांगों के प्रति दो तरह की धारणाएं देखने को मिलती हैं। पहला, यह कि जरूर इसने पिछले जन्म में कोई पाप किया होगा, इसलिए उन्हें ऐसी सजा मिली है और दूसरा कि उनका जन्म ही कठिनाइयों को सहने के लिए हुआ है, इसलिए उन पर दया दिखानी चाहिए। हालांकि यह दोनों धारणाएं पूरी तरह बेबुनियाद और तर्कहीन हैं। बावजूद इसके, दिव्यांगों पर लोग जाने-अनजाने छींटाकशी करने से बाज नहीं आते। वे इतना भी नहीं समझ पाते हैं कि क्षणिक मनोरंजन की खातिर दिव्यांगों का उपहास उड़ाने से भुक्तभोगी की मनोदशा किस हाल में होगी। तरस आता है ऐसे लोगों की मानसिकता पर, जो दर्द बांटने की बजाय बढ़ाने पर तुले होते हैं। एक निःशक्त व्यक्ति की जिंदगी काफी दुख भरी होती है। घर-परिवार वाले अगर मानसिक सहयोग न दें तो व्यक्ति अंदर से टूट जाता है। वास्तव में लोगों के तिरस्कार की वजह से दिव्यांग स्व-केंद्रित जीवनशैली व्यतीत करने को विवश हो जाते हैं। दिव्यांगों का इस तरह बिखराव उनके मन में जीवन के प्रति अरुचिकर भावना को जन्म देता है।

देखा जाये तो भारत में दिव्यांगों की स्थिति संसार के अन्य देशों की तुलना में थोड़ी दयनीय ही कही जाएगी। दयनीय इसलिए कि एक तरफ यहां के लोगों द्वारा दिव्यांगों को प्रेरित कम हतोत्साहित अधिक किया जाता है। कुल जनसंख्या का मुट्ठी भर यह हिस्सा आज हर दृष्टि से उपेक्षा का शिकार है। देखा यह भी जाता है कि उन्हें सहयोग कम मजाक का पात्र अधिक बनाया जाता है। दूसरी तरफ विदेशों में दिव्यांगों के लिए बीमा तक की व्यवस्था है जिससे उन्हें हरसंभव मदद मिल जाती है जबकि भारत में ऐसा कुछ भी नहीं है। हां, दिव्यांगों के हित में बने ढेरों अधिनियम संविधान की शोभा जरूर बढ़ा रहे हैं, लेकिन व्यवहार के धरातल पर देखा जाये तो आजादी के सात दशक बाद भी समाज में दिव्यांगों की स्थिति शोचनीय ही है। जरूरी यह है कि दिव्यांगजनों के शिक्षा, स्वास्थ्य और संसाधन के साथ उपलब्ध अवसरों तक पहुंचने की सुलभ व्यवस्था हो। दूसरी तरफ यह भी देखा जा रहा है कि प्रतिमाह दिव्यांगों को दी जाने वाली पेंशन में भी राज्यवार भेदभाव होता है। मसलन, दिल्ली में यह राशि प्रतिमाह 1500 रुपये है, उत्तराखंड में 1000 रुपए है। तो झारखंड सहित कुछ अन्य राज्यों में विकलांगजनों को महज 400 रुपये रस्म अदायगी के तौर पर दिये जाते हैं। समस्या यह भी है कि इस राशि की निकासी के लिए भी उन्हें काफी भागदौड़ करनी पड़ती है।

  दरअसल, हमारे देश में दिव्यांगों के उत्थान के प्रति सरकारी तंत्र में अजीब-सी शिथिलता नजर आती है। हालांकि, हर स्तर से दिव्यांगों के प्रति दयाभाव जरूर प्रकट किये जाते हैं, लेकिन इससे किसी दिव्यांग का पेट तो नहीं ना भरता है! आलम यह है कि आज दिव्यांग लोगों को ताउम्र अपने परिवार पर आश्रित रहना पड़ता है। इस कारण, वह या तो परिवार के लिए बोझ बन जाता है या उनकी इच्छाएं अकारण दबा दी जाती हैं। वहीं, दूसरी तरफ दिव्यांगों के लिए क्षमतानुसार कौशल प्रशिक्षण जैसी योजनाओं के होने के बावजूद जागरूकता के अभाव में दिव्यांग आबादी का एक बड़ा हिस्सा ताउम्र बेरोजगार रह जाता है। अगर उन्हें शिक्षित कर सृजनात्मक कार्यों की ओर मोड़ा जाता है तो वे भी राष्ट्रीय संपत्ति की वृद्धि में अपना बहुमूल्य योगदान दे सकते हैं। इस तरह स्वावलंबी होने से वह अपने परिवार या आश्रितों पर बोझ नहीं बनेगा और धीरे-धीरे वह उज्ज्वल भविष्य की ओर कदम भी बढ़ाता नजर आएगा। यह अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री ने अगले सात वर्षों में 38 लाख विकलांगों को लक्ष्य बनाकर राष्ट्रीय कौशल नीति पेश की है। इससे पहले भी दीनदयाल विकलांग पुनर्वास योजना आंशिक रूप से प्रचलन में थी। जिसके तहत विकलांग व्यक्तियों के कौशल उन्नयन हेतु व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्र परियोजनाओं को वित्तीय सहायता (परियोजना लागत के 90 प्रतिशत तक) प्रदान की जाती है। यह कौशल 15 से 35 वर्ष की आयु समूह के लिए है ताकि ऐसे व्यक्ति आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे आ सकें। यह पहल सराहनीय है कि सरकार का सामाजिक न्याय और आधिकारिता मंत्रालय के अंतर्गत बनाया गया विकलांग सशक्तिकरण विभाग विकलांगों की राष्ट्रीय कार्य योजना और सुगम्य भारत अभियान के माध्यम से एक बेहतर माहौल बनाने की कोशिशें की जा रही हैं।

आंकड़ों के लिहाज से भारत में करीब दो करोड़ लोग शरीर के किसी विशेष अंग से विकलांगता के शिकार हैं। दिव्यांगजनों को मानसिक सहयोग की जरूरत है। परिवार, समाज के लोगों से अपेक्षा की जाती है कि उन्हें आगे बढ़ने को प्रेरित करें। शारीरिक व्याधियों से जूझ रहे लोगों को 'डिजेबल्ड' न कहकर 'डिफरेंटली एबल्ड' कहना ज्यादा अच्छा होगा। अगर उन्हें उनकी वास्तविक शक्ति का अहसास दिलाया जाये तो उनके साधारण से कुछ खास बनने में उन्हें देर नहीं लगेगी। हमारे सामने वैज्ञानिक व खगोलविद स्टीफन हॉकिंग, भारतीय पैराओलंपियन देवेंद्र झांझरिया, धावक ऑस्कर पिस्टोरियस, मशहूर लेखिका हेलेन केलर जैसे लोगों की लंबी फेहरिस्त है, जिन्होंने विकलांगता को कमजोरी नहीं समझा, बल्कि चुनौती के रूप में लिया और आज हम उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए उन्हें याद करते हैं।
यदि समाज में सहयोग का वातावरण बने, लोग किसी दूसरे की शारीरिक कमजोरी का मजाक न उड़ाएं, तो आगे आने वाले दिनों में हमें सकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकते हैं।


समाज के इस वर्ग को आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराया जाये तो वे कोयला को हीरा भी बना सकते हैं। समाज में उन्हें अपनत्व-भरा वातावरण मिले तो वे इतिहास रच देंगे और रचते आएं हैं। एक दिव्यांग की जिंदगी काफी दुखों भरी होती है। घर-परिवार वाले अगर मानसिक सहयोग न दें, तो व्यक्ति अंदर से टूट जाता है। वैसे तो दिव्यांगों के पक्ष में हमारे देश में दर्जन भर कानून बनाए गए हैं, यहां तक कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण भी दिया गया है, परंतु ये सभी चीजें गौण हैं, जब तक हम उनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ करना बंद ना करें। वे भी तो मनुष्य हैं, प्यार और सम्मान के भूखे हैं। उन्हें भी समाज में आम लोगों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी है। उनके अंदर भी अपने माता-पिता, समाज व देश का नाम रोशन करने का सपना है। बस स्टॉप, सीढ़ियों पर चढ़ने-उतरने, पंक्तिबद्ध होते वक्त हमें यथासंभव उनकी सहायता करनी चाहिए। आइए, एक ऐसा स्वच्छ माहौल तैयार करें, जहां उन्हें क्षणिक भी अनुभव ना हो कि उनके अंदर शारीरिक रूप से कुछ कमी भी है। इस बार के 'विश्व विकलांग दिवस' पर मेरी यह छोटी-सी अपील है कि दिव्यांगों का मजाक न उड़ाएं, उन्हें सहयोग दें।

 अंत में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस सुझाव को दुहराना चाहूंगा, जिसमें उन्होंने निःशक्तों (विकलांगों) को 'दिव्यांग' कहने का उचित विचार दिया था। यह महज एक औपचारिकता ना रहे, इसलिए इस सुझाव को व्यवहार में लाया जाना चाहिए।



क्या है दिव्यांगता

निशक्त व्यक्ति अधिनियम 1995 के मुताबिक जब शारीरिक कमी का प्रतिशत 40 से अधिक होता है तो वह दिव्यांगता की श्रेणी में आता है.

दिव्यांगता ऐसा विषय है जिस के बारे में समाज और व्यक्ति कभी गंभीरता से नहीं सोचते. क्या आप ने कभी सोचा है कि कोई छात्र या छात्रा अपने पिता के कंधे पर बैठ कर, भाई के साथ साइकिल पर बैठ कर या मां की पीठ पर लद कर या फिर ज्यादा स्वाभिमानी हुआ तो खुद ट्राईसाइकिल चला कर ज्ञान लेने स्कूल जाता है, किंतु सीढि़यों पर ही रुक जाता है, क्योंकि वहां रैंप नहीं है और ऐसे में वह अपनी व्हीलचेयर को सीढि़यों पर कैसे चढ़ाए? उस के मन में एक कसक उठती है, ‘क्या उस के लिए ज्ञान के दरवाजे बंद हैं? क्या शिक्षण संस्था में उस को कोई सुविधा नहीं मिल सकती?’ शौचालय तो दूर उस के लिए एक रैंप वाला शिक्षण कक्ष भी नहीं है जहां वह स्वाभिमान के साथ अपनी व्हीलचेयर चला कर ले जा सके एवं ज्ञान प्राप्त कर सके।

कोई दफ्तर, बैंक एटीएम, पोस्टऔफिस, पुलिस थाना, कचहरी ऐसी नहीं है जहां दिव्यांगों के लिए अलग से सुविधाएं मौजूद हों. सामान्य दिव्यांगों की तो छोडि़ए, यहां के दिव्यांग कर्मचारियों के लिए भी कोई सुविधा नहीं है. अगर दिव्यांगों को बराबर का अधिकार है तो नजर कहां आता है?

ट्रेन की ही बात करते हैं. क्या ट्रेन में दिव्यांग अकेले यात्रा कर सकते हैं? प्लेटफौर्म, अंडरब्रिज यहां तक कि ट्रेन तक पहुंचने के लिए भी दिव्यांगों को दूसरों की सहायता चाहिए. उन के लिए कोई मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं. किसी तरह अगर वे डब्बे में चढ़ भी जाएं तो ट्रेन में उन के लिए अलग से शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है. घर बैठ कर सभी सामान्य लोग औनलाइन टिकट की बुकिंग कर सकते हैं लेकिन दिव्यांगों को प्लेटफौर्म पर लाइन में लग कर ही टिकट लेना पड़ता है।

यहां तक कि मतदान केंद्रों पर भी दिव्यांगों को कोई अलग से सुविधा नहीं दी जाती, अधिकांश मतदान केंद्रों पर रैंप न होने के कारण वे मताधिकार से वंचित रह जाते हैं. यह तंत्र एवं समाज के लिए शोचनीय और शर्मनाक बात है.

हर साल बजट में दिव्यांगों के लिए भारी सहायता राशि की घोषणा की जाती है. कागज पर योजनाएं एवं सुविधाएं उकेरी जाती हैं, लेकिन अभी तक कोई भी तंत्र उन्हें मौलिक अधिकार एवं सुविधाएं नहीं दे सका है.

समाज से उपेक्षित दिव्यांग

हमारे समाज में दिव्यांगता थोथी संवेदनाओं का केंद्र बन कर रह गई है. दिव्यांगों से तो सभी सहानुभूति रखते हैं लेकिन उन्हें दोयम दर्जे का व्यक्तित्व मानते हैं. बेचारे, पंगु, निर्बल, निशक्त जाने कितने संवेदनासूचक शब्दों से हम उन्हें पुकारते हैं. कितनी सरकारी योजनाएं, विभाग बन गए लेकिन क्या दिव्यांगों को हम सबल बना पाए हैं? क्या उन को राष्ट्र की मुख्य धारा से जोड़ कर राष्ट्र निर्माण में उन का योगदान ले पाए हैं, शायद नहीं. इस के जिम्मेदार हम सभी हैं।

दिव्यांगों के अधिकारों को आवाज देता ‘संयुक्त राष्ट्र दिव्यांगता समझौता’ विश्वव्यापी मानवाधिकार समझौता है. यह समझौता स्पष्ट रूप से दिव्यांगों के अधिकारों एवं विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा निर्बाध रूप से दिव्यांगों के पुनर्वास एवं उन्हें बेहतर सुविधाएं प्रदान करने की पैरवी करता है.

देश की संसद ने दिव्यांगों के पुनर्वास एवं उन्हें देश की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए दिव्यांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण, पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 दिव्यांगता अधिनियम पारित किया. स्वाभाविक तौर पर अशक्त लोगों के अधिकारों को प्रतिपादित करते हुए भारत ने संयुक्त राष्ट्रसंघ के ‘राइट्स औफ पर्सन्स विद डिस्एबिलिटीज’ कन्वैंशन में कही गई बातों को 2007 में स्वीकार किया और दिव्यांगों के लिए बने अधिनियम 1995 को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पारित कन्वैंशन जिस पर 2008 में अमल शुरू हुआ, के आधार पर बदलने की बात कही.

फिलहाल करीब 40 कंपनियां दिव्यांगों को नौकरियां दे रही हैं. गैर सरकारी संस्थानों की यह पहल निश्चित रूप से दिव्यांगों के जीवन में नए रंग भर सकती है. आज आवश्यकता है दिव्यांगों को समान अधिकार देने की व सम्मानपूर्वक जीवन की मुख्यधारा से जोड़ने की ताकि वे देश निर्माण में अपना योगदान दे सकें।

 आंकड़ों की जबानी, उपेक्षा की कहानी

राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण के 58 चक्र के अनुसार देश में लगभग 1 करोड़ 85 लाख दिव्यांग हैं, जबकि रजिस्ट्रार जनरल औफ इंडिया की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार देश में दिव्यांग की संख्या 2 करोड़ 68 लाख है. 75% दिव्यांग ग्रामीण इन क्षेत्रों में हैं, 49% दिव्यांग साक्षर हैं एवं 34% दिव्यांग रोजगार प्राप्त हैं.

उत्तराखंड

 शत्रुघ्न सिंह ने उत्तराखंड के 13वें मुख्य सचिव के रूप में 17 नवम्बर, 2015 को चार्ज संभाल लिया है।

 शत्रुघ्न सिंह का कार्यकाल दिसम्बर 2016 तक रहेगा।

-राज्य में हैं 1 लाख 85 हजार दिव्यांग

डॉ। कमलेश कुमार पांडे आजकल [जुलाई, 2016] उत्तराखंड दौरे पर हैं। जहां वे प्रदेश सरकार के आलाधिकारियों व एनजीओ से दिव्यांगनजों की समस्याओं को लेकर बैठकें और चर्चाएं कर रहे हैं। सोमवार 25 जुलाई को उन्होंने सीएस शत्रुघ्न सिंह से भी मुलाकात की। डॉ। कमलेश पांडे ने सचिवालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि उत्तराखंड दिव्यांगजनों को पेंशन देने में आगे है। राज्य में दिव्यांगों को एक हजार रुपये पेंशन दी जाती है।

99 हजार को सर्टिफिकेट

डॉ। पांडे ने कहा कि प्रदेश की यूनिवर्सिटीज में डिसएबिलिटी डिपार्टमेंट खोले जाने पर शासन के अधिकारियों से बात हुई है। जिस पर सहमति मिली है। आधार कार्ड भी पचास प्रतिशत ही बन पाए हैं। दृष्टिबाधितार्थो के लिए हल्द्वानी में ब्लड बैंक खुलने पर भी सरकार ने मंजूरी दी है। राज्य दिव्यांगजन आयुक्त मनोज चंद ने बताया कि प्रदेश में एक लाख 85 हजार दिव्यांगजनों की संख्या है। जिनमें से 99 हजार को सर्टिफिकेट दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि पीएचसी सेंटर में अब सर्टिफिकेट बन पाएंगे। सरकारी अस्पतालों में फ्री ओपीडी के सुविधा न मिलने पर राज्य आयुक्त ने कहा कि 1 से 18 साल तक दिव्यांगजनों को फ्री मेडिकल की सुविधा है,
जिन अस्पतालों में सुविधा नहीं मिल रही है, शिकायत मिलने पर सख्ती बरती जाएगी।

-दिव्यांगजन मुख्य आयुक्त कार्यालय ccpd@nic.in पर शिकायत भेज सकते हैं.

मुख्य आयुक्त ने बताया कि दिव्यांगजनों की सुविधा व अधिकार के लिए नया बिल राज्यसभा में लंबित है। बिल पास होने पर दिव्यांगता के प्रकार 7+2 से 19+2, 21 हो जाएगी, और आरक्षण तीन से बढ़कर पांच प्रतिशत हो जाएगा। आयोग का गठन भी होगा।


RIGHTS OF PERSONS WITH DISABILITIES (RPWD) ACT, 2016


दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार (RPWD) अधिनियम, 2016


2016 में संसद के गर्म शीतकालीन सत्र में व्यवधानों और स्थगन के दिनों के दौरान छह साल की पैरवी, वकालत और प्रतीक्षा के बाद, हमने आखिरकार विकलांगों के बहुप्रतीक्षित अधिकारों के सर्वसम्मति से पारित होने के साथ हमारे सांसदों की अनुकंपा देखी (RPWD) ) १४ दिसंबर, २०१६ को राज्यसभा में और उसके बाद १६ दिसंबर, २०१६ को लोकसभा में विधेयक। वर्ष के अंत से पहले माननीय राष्ट्रपति द्वारा इस विधेयक को और अधिक अनुमोदित और हस्ताक्षरित किया गया और सरकार ने अपने अधिकारी को 'अधिसूचित' किया 28 दिसंबर, 2016 को राजपत्र। इस प्रकार, RPWD बिल 2016 को 'अधिनियमित' किया गया और 'LAW' बन गया।

वास्तव में, एक ऐतिहासिक क्षण और एक पथ तोड़ने वाली उपलब्धि! यह कानून भारत के अनुमानित 70-100 मिलियन विकलांग नागरिकों के लिए गेम चेंजर होगा और इसे लागू करने के प्रावधानों के साथ अधिकारों से दूर प्रवचन को धर्मार्थ से दूर ले जाने में मदद करेगा।

1995 अधिनियम के तहत पिछली 7 श्रेणियों में से 21 श्रेणियों को अक्षम करने के अलावा, यह नया अधिनियम किसी के अधिकारों पर पूरा जोर देता है - समानता और अवसर का अधिकार, विरासत और खुद की संपत्ति का अधिकार, घर और परिवार का अधिकार और दूसरों के बीच प्रजनन अधिकार। । 1995 के अधिनियम के विपरीत, नया अधिनियम सुलभता के बारे में बात करता है - सरकार के लिए दो साल की समय सीमा निर्धारित करने के लिए यह सुनिश्चित करने के लिए कि विकलांग व्यक्तियों को भौतिक बुनियादी ढाँचे और परिवहन प्रणालियों में बाधा रहित पहुँच प्राप्त हो। इसके अतिरिक्त, यह निजी क्षेत्र के लिए भी जवाबदेह होगा। इसमें सरकार द्वारा निजी रूप से स्वामित्व वाले विश्वविद्यालयों और कॉलेजों जैसे शैक्षणिक संस्थानों को 'मान्यता प्राप्त' भी शामिल है। नए अधिनियम की एक पथ-तोड़ विशेषता सरकारी नौकरियों में आरक्षण में 3% से 4% तक की वृद्धि है

नए कानून के साथ, भारतीय विकलांगता आंदोलन को अगले स्तर पर समाप्त कर दिया गया है। इसने हमें विकलांगता अधिकारों, "विकलांगता 2.0" के अगले चरण में प्रवेश किया है ।


दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम-2016 के अन्तर्गत निशक्तता के 21 प्रकार है

1. मानसिक मंदता [Mental Retardation] -
        1.समझने / बोलने में कठिनाई
        2.अभिव्यक्त करने में कठिनाई

2. ऑटिज्म [Autism Spectrum Disorders] -
    1. किसी कार्य पर ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई
    2. आंखे मिलाकर बात न कर पाना
    3. गुमसुम रहना

3. सेरेब्रल पाल्सी [Cerebral Palsy] पोलियो-
    1. पैरों में जकड़न
    2. चलने में कठिनाई
    3. हाथ से काम करने में कठिनाई

4. मानसिक रोगी [Mental illness] -
    1.अस्वाभाविक ब्यवहार,  2. खुद से बाते करना,
    3. भ्रम जाल,  4. मतिभ्रम,  5. व्यसन (नसे का आदी),
    6. किसी से डर / भय,  7. गुमसुम रहना

5. श्रवण बाधित [Hearing Impairment]-
   1. बहरापन
   2. ऊंचा सुनना या कम सुनना

6. मूक निशक्तता [Speech Impairment] -
    1. बोलने में कठिनाई
    2. सामान्य बोली से अलग बोलना जिसे अन्य लोग समझ          नहीं पाते

7. दृष्टि बाधित [Blindness ] -
    1. देखने में कठिनाई
    2. पूर्ण दृष्टिहीन

8. अल्प दृष्टि [Low- Vision ] -
    1. कम दिखना
    2. 60 वर्ष से कम आयु की स्थिति में रंगों की पहचान नहीं          कर पाना

9. चलन निशक्तता  [Locomotor Disability ] -
    1. हाथ या पैर अथवा दोनों की निशक्तता
    2. लकवा
    3. हाथ या पैर कट जाना

10. कुष्ठ रोग से मुक्त  [Leprosy- Cured ] -
     1. हाथ या पैर या अंगुली मैं विकृति
     2. टेढापन
     3. शरीर की त्वचा पर रंगहीन धब्बे
     4. हाथ या पैर या अंगुलिया सुन्न हों जाना

11. बौनापन [Dwarfism ]-
      1. व्यक्ति का कद व्यक्स होने पर भी 4 फुट 10इंच                  /147cm  या इससे कम होना

12. तेजाब हमला पीड़ित [Acid Attack Victim ] -
      1. शरीर के अंग हाथ / पैर / आंख आदि तेजाब हमले की वज़ह से असमान्य / प्रभावित होना

13. मांसपेशी दुर्विक़ार [Muscular Distrophy ] -
     . मांसपेशियों में कमजोरी एवं विकृति

14.स्पेसिफिक लर्निग डिसेबिलिटी[Specific learning]-
     . बोलने, श्रुत लेख, लेखन, साधारण जोड़, बाकी, गुणा,        भाग में आकार, भार, दूरी आदि समझने मैं कठिनाई

15. बौद्धिक निशक्तता [ Intellectual Disabilities]-          1. सीखने, समस्या समाधान, तार्किकता आदि में          कठिनाई
      2. प्रतिदिन के कार्यों में सामाजिक कार्यों में एम  अनुकूल व्यवहार में कठिनाई

16. मल्टीपल स्कलेरोसिस [Miltiple Sclerosis ] -
     1. दिमाग एम रीढ़ की हड्डी के समन्वय में परेशानी

17. पार्किसंस रोग [Parkinsons Disease ]-
     1. हाथ/ पाव/ मांसपेशियों में जकड़न
     2. तंत्रिका तंत्र प्रणाली संबंधी कठिनाई

18. हिमोफिया/ अधी रक्तस्राव [Haemophilia ] -
     1. चोट लगने पर अत्यधिक रक्त स्राव
     2.रक्त बहेना बंद नहीं होना

19. थैलेसीमिया [Thalassemia ] -
      1. खून में हीमोग्लबीन की विकृति
      2. खून मात्रा कम होना

20. सिकल सैल डिजीज [Sickle Cell Disease ] -
     1. खून की अत्यधिक कमी
     2. खून की कमी से शरीर के अंग/ अवयव खराब होना

21. बहू  निशक्तता [Multiple Disabilities ] -
     1. दो या दो से अधिक निशक्तता से ग्रसित


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