Friday, April 12, 2019

शिक्षक एवं शिक्षक प्रशिक्षुओं के लिए विशेष : राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा-2005

(NATIONAL CURRICULUM FRAMEWORK-2005 OR NCF-2005) एक परिचय-अध्याय तृतीय

  तृतीय अध्याय “पाठ्यचर्या के क्षेत्र , स्कूल की अवस्थाये और आकलन
         
        यह तथ्य कि बच्चा ज्ञान का सृजन करता है ,इसका निहितार्थ है कि पाठ्यचर्या ,पाठ्यक्रम एवं पाठ्यपुस्तक शिक्षक को इस बात के लिये सक्षम बनाये कि वे बच्चो की प्रकृति और वातावरण के अनुरूप कक्षायी अनुभव आयोजित करे ,ताकि सारे बच्चो को अवसर मिल पाये | शिक्षण का उद्देश्य बच्चे के सिखने की सहज इच्छा और युक्तियो को समृध्द करना होना चहिये | ज्ञान को सूचना से अलग करने की जरुरत है और शिक्षण को एक पेशेवर गतिविधि के रूप मे पहचानने की जरुरत है न कि तथ्यो के रटने और प्रसार के प्रशिक्षण के रूप में | सक्रिय गतिविधि के जरिये ही बच्चा अपने आसपास की दुनिया को समझने  की कोशिश करता है |इसलिये प्रत्येक साधन का उपयोग इस तरह किया जाना चाहिये कि बच्चो को खुद को अभिव्यक्त करने में ,वस्तुयो का इस्तेमाल करने में ,अपने प्रकृतिक और सामाजिक परिवेश की खोजबीन करने में और स्वस्थ रूप से विकसित होने में मदद मिले | अगर बच्चो,के कक्षा के अनुभवो को इस तरह आयोजित करना हो जिससे उन्हे ज्ञान सृजित करने का अवसर मिले तो इसके लिये स्कूल के विषयो और पाठ्यचर्या के क्षेत्रों की फिर से संकल्पना की आवश्यकता होगी |   
  
स्कूली पाठ्यचर्या के चार सुपरिचित क्षेत्रों –भाषा ,गणित ,और समाज विज्ञान में –महत्वपूर्ण परिवर्तनों का सुझाव दिया गया है |इस दृष्टी से कि शिक्षा आज की और भविष्य की जरूरतों के लिए ज्यादा प्रासंगिक बन सके और बच्चो को उस दबाव से मुक्त किया जा सके जो वे आज झेल रहे है |यह राष्ट्रीय पाठ्यचर्या दस्तावेज इस बात की सिफारिश करता है कि विषयों के बीच की दीवारें नीची क्र दी जाये ताकि बच्चों को ज्ञान का समग्र आनंद मिल सके और किसी चीज को समझने से मिलने वाली ख़ुशी हासिल हो सके |इसके साथ यह भी सुझाया गया है कि पाठ्यपुस्तक और दूसरी सामग्री की बहुलता ही ,जिनसे स्थानीय ज्ञान और पारम्परिक कौशल शामिल हो सकते हैं और बच्चों के घर और समुदायिक परिवेश से जीवंत संबंध बनाने मे वाले स्फूर्तिदायक स्कूली माहौल को सुनिश्चित किया जा सके |भाषा में त्रिभाषा फार्मूले को लागु करने में फिर से प्रयास का सुझाव दिया गया है जिसमें आदिवासी भाषाओँ सहित बच्चो की मातृभूमि को शिक्षा के माध्यम के रूप में स्वीकृति देने पर जोर दिया है|प्रत्येक बच्चे में बहुभाषिक प्रवीणता विकसित करने के लिए भारतीय समाज के बहुभाषिक चरित्र को एक संसाधन के रूप में देखना चाहिए जिसमे अग्रेजी में प्रवीणता भी हासिल है यह तभी मुमकिन है जब भाषा की पुख्ता शिक्षाशास्त्र मातृभाषा के उपयोग पर आधारित हो|पढना ,लिखना और सुनना –ये क्रियाये पाठ्यचर्या के सभी क्षेत्रो में बच्चों की प्रगति में भूमिका निभाती हैं और इन्हें पाठ्यचर्या की योजना का आधार होना चाहिए|आरम्भिक कक्षाओं के पुरे दौर में पढने पर जोर देना जरुरी है जिससे हर बच्चे को स्कूली शिक्षा का ठोस आधार मिल सके|

गणित की शिक्षा ऐसी होनी चाहिये जिससे बच्चों के वे संसाधन समृद्ध हों चिंतन और तर्क में, अमुर्तनो की संकल्पना करने और उनका व्यवहार करने में ,समस्याओं को सूत्रबद्ध करने ओर सुलझाने में उनकी सहायता करें|उद्देश्यों का यह व्यापक फलक उस प्रासंगिक और अर्थपूर्ण गणित को पढ़ाकर तय किया जा सकता है जो बच्चों के अनुभवों में गुंथीं हुई ही|गणित में सफलता को हर बच्चे के अधिकार की तरह देखा जाना चाहिए |इसके लिए गणित के दायरे और विस्तृत करने की जरूरत है इस दुसरे विषयों से जोड़ने की जरुरत है | हर स्कूल को कंप्यूटर ,हार्डवेयर ,सोफ्टवेयर और कनेक्टिविटी मुहैया कराने जैसी ढांचागत चुनोतियों का सामना करने की जरुरत है |

      विज्ञान के शिक्षण में इस तरह की तब्दीली की जनि चाहिए की यह हर बच्चे को अपने रोज के अनुभवों को जांचने और उनका विश्लेषण करने में सक्षम बनाएं| परिवेश सम्बन्धी सरोकारों और चिंताओं पर हर विषय में जोर दिए जाने की जरूरत हैं और यह ढेरों गतिविधियों और बाहरी दुनिया पर की गई परियोजनाओं के द्वारा होना चाहिए|इस प्रकार की परियोजनाओ के माध्यम से निकलने वाली सूचनाओं और समझ के आधार पर भारतीय पर्यावरण को लेकर एक सर्वसुलभ और पारदर्शी आकड़ा –संग्रह तैयार हो जाता है जो अत्यंत उपयोगी संसाधन साबित होगा |यदि विद्यार्थियों की परियोजनाये सुनियोजित हों तो उनसे ज्ञान सृजित होगा| बाल विज्ञान कांग्रेस की तर्ज पर एक सामाजिक आन्दोलन की काल्पना की जा सकती है जिससे पुरे देश में अन्वेशण की शिक्षा को प्रोत्साहन मिलेगा जो बाद में पुरे दक्षिण एशिया में फैल सकता है | 


सामाजिक विज्ञान में पाठ्यचर्या के इस दस्तावेज द्वारा प्रस्तावित उपागम ज्ञान के क्षेत्रो की विशिष्ट सीमाओं को पहचानता है और साथ ही पानी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों के लिए समाकलन पर जोर देता है| हाशिए पर ढकेल दिए गए समूहों की दृष्टी से समाज विज्ञान के अध्ययन का प्रस्ताव करते हुए नजरिये में एक पूरी तब्दीली की सिफारिश की गई है|सामाजिक विज्ञान के सारे पहलुओ में जेंडर के सन्दर्भ में न्याय और अनुसूचित जाति तथा जनजाति के मसलों को लेकर जागरूकता तथा अल्पसंख्यक संवेदनाशीलता के प्रति सजकता होनी चाहिए| नागरिकशास्त्र को राजनीति विज्ञान के रूप में ढालना चाहिये और बच्चो के अतीत और नागरिकता अस्मिता की अवधारणा पर इतिहास के प्रभाव के महत्व को पहचानना चाहिए |
     

पाठ्यचर्या का यह दस्तावेज क्षेत्रो की तरफ ध्यान आकर्षित करता है जो इस प्रकार है:-

       काम,कला और पारम्परिक दस्तकारियो ,स्वास्थ्य तथा शारीरिक शिक्षा,एवं शान्ति | काम के सम्बन्ध में आरंभिक स्तर से शुरू करते हुए काम को अधिगम से जोड़ने के लिए कुछ बुनियादी कदम सुझाये गये है |उनके पीछे आधार यह है कि ज्ञान काम को अनुभव में रूपांतरित कर देता है और सहयोग ,सृजनात्मकता और आत्म निर्भरता जैसे मूल्यों की उत्पत्ति करता है | यह ज्ञान रचनात्मकता के नए रूपों की प्रेरणा भी देता है | वरिष्ठ  कक्षाओं में स्कूल के बाहर के संसाधन को औपचारिक मान्यता देने की सिफारिश है ताकि उन बच्चो को लाभ पहुँच सके जो आजीविका से सीधे जुडी हुई शिक्षा का चुनाव करते है |स्कूल के बाहर की आजीविका संस्थायो को औपचारिक मान्यता की जरुरत है  जिससे वे बच्चो को ऐसा स्थान उपलब्ध करवाये जहाँ बच्चे औजारों और दूसरे साधनों से काम करे| दस्तकारियो के मानचित्रीकरण की सिफारिश की गई है जिससे उन इलाको की पहचान की जा सके जहाँ बच्चो को स्थानीय कारीगरों के सहारे दस्तकारियो की जा सके जहाँ बच्चो को स्थानीय कारीगरों के सहारे दस्तकारियो में प्रशिक्षण दिया जा सकता है|

        हर स्तर पर विषय के रूप में कला को जगह दिए जाने की सिफारिश की गई जिसमें गायन,नित्य,दृश्य कलाए और नाटक चारो पहलू शामिल हैं |पर यहाँ भी जोर परसपर –क्रियात्मक पद्धतियों पर होना चाहिए न कि प्रशिक्षण पर|क्योकि कला शिक्षण का उद्देश्य सौन्दर्यात्मक और वैयक्तिक चेतना को प्रोत्साहित करना है और विविध रूपों खुद को व्यक्त करने की क्षमता को बढ़ावा देना है |नागरिक पारंपरिक दस्तकारियां आर्थिक और सौन्दर्यपरक मूल्यों के अर्थ में स्कूली शिक्षा के लिए प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हैं यह तथ्य पहचाना जाना चाहिए |

         स्कूलों में बच्चो की कामयाबी पोषण और सुनियोजित शारीरिक गतिविधियों के कार्यक्रमों पर निर्भर होती है|इसीलिए जरूरी संसाधन और स्कूल के समय को मध्यांहन भोजन कार्यक्रम को सुदृढ़ बनाने में लगाना चाहिए|यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष प्रयासों की जरुरत होगी कि स्वास्थ्य और शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रमों में शाला पूर्व अवस्था से लेकर आगे तक लडको की तरह ही लडकियों की ओर भी उतना ही ध्यान दिया जाये|

पूरी दुनिया में बढ़ती असहिष्णुता और मतभेदों को सुलझाने के तरीके के रूप में हिंसा की ओर बढ़ते रुझान को देखते हुए इस बात की सिफारिश की गई है कि शान्ति को राष्ट्रीय निर्माण की पूर्व शर्त और एक सामाजिक संस्कार के रूप में समग्र मूल्य संरचना के तौर पर स्वीकार किया जाये जिसकी आज अत्यधिक प्रासंगिकता हियो |एक लोकतान्त्रिक और न्यायपूर्ण संस्कृति में बच्चो के समाजीकरण के लिये शिक्षा की सम्भावनाओं को विभिन्न गतिविधियों के द्वारा हर स्तर पर ,और हर विषय में विषयों के विवेकपूर्ण चुनाव के जरिये साकार किया जा सकता है | शांति के लिए शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यचर्या में शामिल करने की सिफारिश की गई है |

          स्कूल के माहौल को पाठ्यचर्या के एक पहलू की तरह देखा गया है क्योकि यह बच्चों को शिक्षा के उद्देश्यों और सीखने की उन युक्तियो के लिए तैयार करती है जो स्कूल में सफलता के लिए जरुरी है |एक संसाधन के रूप में स्कूल के समय को लचीले ढंग से नियोजित किये जाने की जरूरत है| स्थानीय स्तर पर नियोजित लचीले स्कूली कलेंडर और समय सारणी की सिफारिश की गई है ताकि परियोंजना और प्राकृतिक और पारम्परिक धरोहर वाले स्थलों के लिए भ्रमण जैसी विविध प्रकार की गतिविधियों के लिए मौका मिल सके |इस बात की कोशिश करनी होगी किबच्चों के लिए सिखने केव अधिक संसाधन तैयार किया  जाएँ ,खासकर स्कूल और शिक्षक के लिए संदर्भ पुस्तकालय हेतु स्थानीय भाषाओ में किताबे और सदर्भ सामग्रियां उपलब्ध हों और बच्चो की अंत:क्रियात्मक तकनीक तक पहुंच न हो कि प्रसारित तकनीक तक|यह दतावेज माध्यमिक स्तर पर विकल्पों में बहुलता और लचीलेपन के महत्व पर जोर देता है और बच्चों को बंद खांचों में डाल देने की स्थापित प्रवित्ति को हतोत्साहित करता है क्योकि इससे बच्चों के ,खास कर ग्रामीण इलाकों के बच्चों के अवसर सीमित हो जाते है |



 भाषा

1. लिखने,बोलने ,सुनने एवं पढने की क्षमताओं स्कूल के सभी विषयों और अनुशासनों के शिक्षण से विकसित होती है |प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च माध्यमिक स्तर तक बच्चो के ज्ञान निर्माण में उनके बुनियादी महत्व को समझना आवश्यक हैं | 
                      
2. त्रिभाषा फार्मूले को पुन: लागू किये जाने की दिशा में काम किया जाना चाहिए ,जिससे बच्चों की घरेलु भाषाओं और मात्रिभाषाओ को शिक्षण के माध्यम के रूप में मान्यता देने की जरुरत हैं| इनमें आदिवासी भाषाएँ भी शामिल हैं |

3. अंग्रेजी को अन्य भारतीय भाषाओ के बीच स्थान दिए जाने की आवश्यकता है|
 4. भारतीय समाज के बहुभाषात्मक प्रकृति को स्कूली जीवन की समृधि के लिए संसाधन के रूप में देखा जाना चाहिये |

गणित


  • गणित –शिक्षण का मुख्यं लक्ष्य गणितीकरण (तार्किक ढंग से सोचने ,अमुर्तनो का निर्माण करने तथा संचालित करने की योग्यताओ का विकास )होना न की गणित का ज्ञान (औपचारिक एवं यांत्रिक प्रक्रियाओ का ज्ञान )
  • तांत्रिक ढंग से सोचने की क्षमता |
  • गणित की शिक्षा से बच्चों की तर्क ,सोचने की ,अमुर्तनो ने निर्माण तथा दृष्टीकरण की क्षमताओ एवं बच्चों में समस्या सुलझाने की क्षमता का विकास हो| गणित की बेहतर शिक्षा का हक हर बच्चे को है |



विज्ञान


  • विज्ञान की भाषा ,प्रक्रिया एवं विषयवस्तु विद्यार्थी की उम्र और उसकी ज्ञान की सीमा के अनुकूल होनी चाहिए |
  • विज्ञान शिक्षा को विद्यार्थी को उन तरीको एवं प्रक्रियाओ का बोध कराने सक्षम होना चाहिए जो उनकी रचनात्मकता और जिज्ञासा को संपोषित करने वाली हों ,विशेषकर पर्यावरण के संदर्भ में  |


  • विज्ञान की शिक्षा को बच्चो के परिवेश के संदर्भ के अनुकूल होना चाहिए ताकि उनमे काम के संसार में परिवेश करने लायक जरूरी ज्ञान एवं कौशल विकसित हो सके |
  • पर्यावरण की चिन्ताओ के प्रति जागरूकता को सम्पूर्ण स्कूली पाठ्यचर्या में व्याप्त होना चाहिए |


सामाजिक विज्ञान


  • सामाजिक विज्ञान की विषयवस्तु में अवधारणात्मक समझ पर ध्यान दिए  जाने की जरूरत है बजाए इसके कि बच्चों के सामने परीक्षा के लिए रटने वाली सामग्री का अम्बार खड़ा कर दिया जाये | इससे उनमें सामजिक मुद्दों  पर स्वतंत्र तथा आलोचनात्मक रूप से सोचने का अवसर मिलेगा |
  • प्रमुख रास्ट्रीय चिन्ताओ जैसे-लैंगिक न्याय ,मानव अधिकार और हाशिये के         
  • समूहों तथा अल्पसंख्यकों के प्रति संवेदनशीलता को विकसित किये जाने के लिए अंत:अनुशासनात्मक दृष्टीकोण अपनाये जाने की जरूरत है|
  • नागरिक शास्त्र को राजनीतिशास्त्र में तब्दील कर दिए जाये, तथा इतिहास को बच्चे की अतीत तथा नागरिक की पहचान की अवधारणा पर प्रभाव  डालने वाले विषय के रूप में पहचाना जाये |



काम


  • पूर्व प्राथमिक से लेकर उच्च माध्यमिक स्तर तक स्कूली पाठ्यचर्या को पुनर्गठित किये जाने की आवश्यकता है जिसमें ज्ञान अर्जन ,मूल्यों का
  • विकास और बहुविध कौशलों के निर्माण के संदर्भ में काम की शिक्षाशास्त्रीय संभावनाओं को देखा जा सके |  


 कला

  • कलाओं (संगीत ,नृत्य ,दृश्यकलायें ,कठपुतली कला ,मिट्टी की कला ,नाटक आदि के लोक तथा शास्त्रीय रूपों )और धरोहर शिल्पों को पाठ्यचर्या में समेकित घटकों के रूप में मान्यता |
  • वैयक्तिक ,सामाजिक ,आर्थिक और सौन्दर्यात्मक आवश्यकताओं के संदर्भ में उनकी प्रासंगिकता के बारे में माता-पिता ,स्कूली अधिकारियों और प्रशासकों में जागरूकता पैदा करना |
  •  कला को स्कूली शिक्षा के हर स्तर पर शामिल किये जाने पर बल |


शांति


  • स्कूली शिक्षा के दौरान उपयुक्त गतिविधियों के माध्यम से सभी विषयों में मूल्यों का संवर्धन |
  • शांति के लिए शिक्षा को शिक्षण –प्रशिक्षण का भी एक अवयव बनाया जाना चाहिए |


स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा


  • स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा विद्यर्थियों के समग्र विकास के लिए आवश्यक है | 
  • स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिख्सा के माध्यम से स्कूल में नामांकन , उपस्थिति एवं ठहराव आदि की समस्या से निपटा जा सकता है |


आवास और अधिगम

पर्यावरण शिक्षा सबसे अच्छी तरह विभिन्न अनुशासनों की शिक्षा के साथ ,उसके मुद्दों और चिन्ताओं को सभी स्तरों पर जोड़कर दी जा सकती है |परन्तु इसमें यह ध्यान देना आवश्यक है कि सम्बंधित गतिविधियों के लिए पर्याप्त समय दिया जाये ।


 चतुर्थ अध्याय

विद्यालय एवं कक्षा का वातावरण

  1.    "इसमें वातावरण के भौतिक एवं मनोवैज्ञानिक आयामों का परिक्षण करते हुए यह प्रस्तुत किया गया है कि बच्चों के अधिगम को विद्यालय एवं कक्षा का वातावरण किस प्रकार महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते है :
  2.  शिक्षकों के प्रदर्शन को सुधारने के लिए ढांचागत और भौतिक सामग्री की न्यूनतम उपलब्धता और दैनिक योजना को लचीला बनाना आवश्यक है |
  3. बच्चों को सिखाने वालों के रुप में पहचानने वाली स्कूली संस्कृति हर बच्चे की रुचियो को उसकी संभावनाओं को और अधिक समृद्ध करती है |
  4.  ऐसी विशिष्ट गतिविधियों का आयोजन जिसमें सक्षम और विभिन्न अक्षमताओं को झेल रहे बच्चे एक साथ भाग ले सकें |यह सबके सिखाने के लिए एक अनिवार्य शर्त है |
  1.   लोकतान्त्रिक तरीके द्वारा बच्चों में स्व –अनिशासन का विकास हमेशा ही प्रासंगिक रहा है |   ज्ञान की प्रकिया में समुदाय के लोगों को शामिल किये जाने से स्कूल और समुदाय में साझेदारी होने लगती है |"


सीखने के लिए जरुरी संसाधनों  के बारे में इन सदर्भों में पुनर्विचार की आवश्यकता है – 


  • ""पाठयपुस्तक में अवधारणाओं कि वे उससे संबंधित चिंतन और समूह कार्य को बढ़ावा देने वाले हों |
  • सहायक पुस्तकें ,कार्यपुस्तिकाएँ ,शिक्षकों के लिए मर्ग्दार्शिकों आदि अभिनव चिंतन और नयी दृष्टियों पर आधारित हों|
  • शिक्षा को इकतरफा रूप से प्राप्त की जाने वाली वस्तु की जगह इसमें दोतरफा संवाद बनाने के लिए मल्टीमिडिया और सुचना एवं सचर तकनीकी के साधनों का उपयोग |
  • स्कूल का पुस्तकालय विद्यार्थियों ,शिक्षकों और समुदाय के लोगों के लिए ज्ञान
  • को गहरा करने और विस्तृत संसार के साथ जोड़ने का कार्य करें
  • शिक्षा का महौल को बनाने के लिए स्कूल सारणी की विकेंद्रीकृत योजना तथा दैनिक सारणी ओए शिक्षक को पेशेवर कार्यों के लिए स्वायत्तता अनिवार्य है |"



पंचम अध्याय

व्यवस्थागत सुधार 

पाठ्यचर्या को नवीकृत करने के लिए सबसे जरूरी व्यवस्थागत कदम होगा परीक्षाओं में सुधार जिससे खासकर दसवीं ओए बाहरवीं कक्षा में बच्चों और उनके माता –पिता पर बढ़ते मनोवैज्ञानिक दबाव की गहराती समस्याओं का कोई समाधान निकला जा सके |इसके लिए जो विशेष कदम उठाने जरूरी है वे हैं प्रश्न पत्र के स्वरूप का पूरा परिवर्तन ,जिससे तर्कशक्ति और रचनात्मक क्षमताओं को आकलन का आधार बनाया जाये न कि रटने की क्षमता को |साथ ही पारदर्शिता और आंतरिक आकलन को बढ़ावा देते हुए परीक्षाओं को कक्षा की गतिविधियों से भी जोड़ने की जरुरत है |आज प्रचलित पास फेल की सामान्यीकृत श्रेणियों की कमी को दूर करने के लिए जरुरी होगा कि ऐसी युक्तियाँ खोजी जाएँ जो बच्चों को अलग अलग स्तर की उपलब्धियों का विकल्प लेने को प्रेरित कर सके |बोर्ड –पूर्व परीक्षायों पर अतिरिक्त जोर को भी हतोत्साहित किये जाने की जरुरत है |अगर बच्चों के कक्षा के अनुभवों को इस तरह आयोजित करना हो जिससे उन्हें ज्ञान सृजित करने का अवसर मिले तो हमारी स्कूली व्यवस्था में व्यापक व्यवस्थागत सुधारो की जरुरत होगी|व्यवस्थागत सुधारों के संदर्भ में यह दस्तावेज पंचायती राज व्यवस्था को सुदृढ़ करने पर बल देता है |

गुणवत्ता और जवाबदेही बढाने के माध्यम के रूप में सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए एक अधिक सुनियोजित रुख अपनाकर यह किया जा सकता है | पर्यावरण से जुडी विविध स्कूल –आधारित परियोजनाएँ पंचायती राज संस्थाओं के लिए एक ऐसा ज्ञान भंडार हो सकती हैं जिसके आधार पर वे स्थानीय पर्यावरण की बेहतर साज –संभाल कर उसे पुनर्जीवित कर सकते हैं |गुणवत्ता के स्तर को ऊपर उठाने के लिए स्कूली स्तर पर अकादमिक नियोजन और नेतृत्व जरुरी है और खण्ड एवं सकुंल स्तर पर भूमिकाओं में विभाजन करना बहुत ही आवश्यक है | चट्टोपाध्याय कमीशन (१९८४ )द्वारा सुझाएँ गये पेशेवर मानकों ढीलापन लाने की हाल की प्रवृति को रोकने के लिए शिक्षक - प्रशिक्षण में क्रांतिकारी परिवर्तन की जरुरत है | सेवापूर्ण प्रशिक्षण कार्यक्रमों को ज्यादा लम्बी अवधि का तथा अधिक समग्रता लिए हुए होना चाहिए ताकि बच्चों का ध्यानपूर्वक अवलोकन करने के लियें पर्याप्त अवसर और स्कूलों में इंटर्नशिप के द्वारा शिक्षाशास्त्रीय सिद्धांतों को व्यवहार से जोड़ने के पुरे मौके मिल सके |



"1.  व्यवस्थागत सुधार के एक प्रमुख लक्षण है,गुणवत्ता की चिंता जिसका मतलब हुआ कि संस्था में अपनी कमजोरियों की पहचान कर नयी क्षमताओं का विकास करते हुए खुद को सुधारने की क्षमता हो |

2. यह वांछनीय है कि समान स्कूल व्यवस्था विकसित की जाये ताकि देश के अलग –अलग क्षेत्रों की तुलनीय गुणवत्ता भी सुनिश्चित हो सके क्योकि जब अलग –अलग पृष्ठभूमियों के बच्चे साथ –साथ पढ़ते हैं तो इससे शिक्षण की गुणवत्ता में विकास होता है और स्कूल का माहौल समृद्ध होता है |

3. आगामी योजना के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्रों की पहचान की शुरुआत स्कूलों से करते हुए संकुल तथा खंड स्तर पर हो |बाद में इनका समेकन करते हुए विस्तृत रुपरेखा बनाई जा सकती है |यह आगे जिला स्तर पर विक्रेन्द्रीकरण योजना निति बनाने में मदद कर सकती है |

4. प्रधानाध्यापक और शिक्षकों के सहयोग से सार्थक अकादमिक योजना  का विकास |

5. पठन-पाठन ले संदर्भ में प्रत्येक स्कूल के साथ सतत अन्त:क्रिया की जनि चाहिए ताकि गुणवत्ता का निरीक्षण किया जा सके |

6.  शिक्षक –शिक्षा कार्यक्रमों का इस प्रकार पुनर्सुत्रीकरण एवं शक्तिकरणकिया जाये ताकि शिक्षक निम्नलिखित रूपों में अपनी भूमिका निभा सके:

अध्यन-अध्यापन की परिस्थितियों को शिक्षकों के लिए उत्साहवर्धक ,सहयोगी और मानवीय बनाया जाये ताकि विद्यार्थियों को अपनी शारीरिक तथा बौद्धिक संभावनाओं के पूर्ण विकास का मौका मिले|साथ ही ,जिम्मेदार नागरिक के रूप में अपनी भूमिका निभाने के लिए वांछनीय सामाजिक और मानवीय मूल्यों के विकास का भी अवसर मई;ल सके, और
               शिक्षक को ऐसे समूह का हिस्सा होना चाहिए जो लगातार सामाजिक और विद्यार्थियों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर पाठ्यचर्या सुधार में सजगता से लगें |

7. शिक्षक –शिक्षा का इस प्रकार पुनर्सुत्रीकरण हो की इसमें ज्ञान निर्माण में विद्यार्थी की सक्रिय भागीदारी ,अधिगम के साझे सदर्भ ,ज्ञान निर्माण की प्रकिया में शिक्षक उत्प्रेरक का काम करे,आदि पर बल दिया जाये|शिक्षक –शिक्षा का दृष्टीकोण बहु –अनुशासनात्मक हो, उसमें सिद्धांत और व्यवहार अंतर्भूत हों तथा इसमें आलोचनात्मक परिप्रेक्ष्य विकसित करने की दृष्टी से समकालीन भारतीय सामाजिक मुद्दों पर बातचीत हो|


8.  शिक्षक –शिक्षा में भाषित दक्षता को क्रेंद्र में रखा जाये और शिक्षक –शिक्षा का समेकित माँडल विकसित किया जाये ताकि शिक्षकों के पेशेवरपन को मजबूत किया जा सके|


9.   सेवाकालीन प्रशिक्षक स्कूल में बदलाव का उत्प्रेरक हो|

10.   लोकतान्त्रिक सहभागिता को साकार करने हेतु गाँव के स्तर पर समांतर संस्थाओं के क्रियाकालापों को नियंत्रित कर पंचायती राज संस्थाओं को मजबूती प्रदान की जा सके|

11.  निम्नलिखित बिन्दुओं पर बल देकर परीक्षा के कारण होने वाले तनाव में कमी लाई जा सकती है और सफलता बढाई जा सकती है:

                 विषयवस्तु के परीक्षण के बदले शिक्षार्थियों की समस्या समाधान तथा समझ को जांचने की दिशा में बदलाव | इसके लिए प्रश्न –पत्र के वर्तमान स्वरूप में परिवर्तन आवश्यक है |


                 लघु परीक्षाओं की ओर बदलाव |

             लचीली समय सीमा के साथ परिक्षा |

                 एक ऐसी नोडल एजेंसी की स्थापना जो

परीक्षाओं के डिजाईन बनाये तथा उन्हें संचालित कर सके |


अंततः यह दस्तावेज स्कूली व्यावस्था और दूसरे नागरिक समूहों के बीच सहभागिता की सिफारिश करता है जिनमें गैर –सरकारी संगठन और शिक्षक संगठन भीं शामिल है| पहले से ही मौजूद नवाचारों के अनुभवों को मुख्य धारा का स्वरूप देने की जरूरत है| आज जरूरत इस बात की है कि आरंभिक शिक्षा के सर्वव्यापीकरण में निहित चुनौतियों के प्रति सजगता को राज्य और बच्चों को  लेकर काम कर रही साड़ी एजेंसियों के बीच एक व्यापक सहभागिता का विषय बनाया जाये और पहले से मौजूद नवाचारों के अनुभवों को मुख्यधारा में लाया जाये |


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Thursday, April 11, 2019

राष्ट्रीय पाठयचर्या [NCF] 2005

National Curriculum Framework (NCF 2005)


राष्ट्रीय पाठयचर्या 2005 की रूपरेखा


राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एनसीएफ) एक रुपरेखा प्रदान करती है। जिसमें शिक्षक और स्कूल उन अनुभवों की योजना बना सकते हैं जो उन्हें लगता है कि बच्चों के पास होने चाहिए।

यह शैक्षणिक उद्देश्य, शैक्षिक अनुभव, अनुभव संगठन और शिक्षार्थी का आकलन जैसे चार मुद्दों को संबोधित करता है।एनसीएफ पाठ्यचर्या और पाठ्यक्रम से अलग है। यह शिक्षा के विभिन्न पहलुओं पर दिशा-निर्देश प्रदान करता है।इससे पहले एनसीएफ व्यवहारवादी मनोविज्ञान पर आधारित थे लेकिन एन.सी.एफ 2005 रचनात्मक सिद्धांत पर आधारित है।एनसीएफ 2005 के विभिन्न विषयों, प्रधानाध्यापकों, शिक्षकों और माता-पिता, एनसीईआरटी संकाय इत्यादि के प्रतिष्ठित विद्वानों द्वारा गहन विचार-विमर्श की श्रृंखला के माध्यम से उत्पन्न विचारों के झुकाव के लिए वर्तमान स्वरूप और रूप का अधिकार है।


एनसीएफ 2005 का विकास:

एनसीएफ 2005 टैगोर के निबंध 'सभ्यता और प्रगति' से उद्धरण के साथ शुरू होता है जिसमें कवि हमें याद दिलाता है कि बचपन में 'रचनात्मक भावना' और 'उदार खुशी' एक कुंजी हैं, जिनमें से दोनों को एक नासमझ वयस्क समाज द्वारा विकृत किया जा सकता है।नेशनल स्टीयरिंग कमेटी की स्थापना प्रोफेसर यशपाल की अध्यक्षता में की गई थी।अंततः 7 सितंबर, 2005 को सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ एजुकेशन (सीएबीई) में चर्चा और पारित किया गया।शिक्षा पर राष्ट्रीय नीति ने शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए शैक्षिक प्रौद्योगिकी आवश्यकता पर बल दिया।इस नीति ने दो प्रमुख केन्द्र प्रायोजित योजनाओं, शैक्षणिक प्रौद्योगिकी और कंप्यूटर साक्षरता पर ध्यान दिया।


पॉलिसी दस्तावेजों और रिपोर्टों में पहले से विचार किए गए निम्नलिखित कुछ विचार थे:

ज्ञान को स्कूल के बाहर के जीवन से जोड़ना।पड़ाई रटने की तरह ना हो।कक्षा की शिक्षा और परीक्षा को एकीकृत करना और इसे अधिक लचीला बनाना।बच्चों के समग्र विकास करने के लिए पाठ्यक्रम को समृद्ध करना ताकि यह पाठ्यपुस्तकों से अतिरिक्त हो।एक ऐसी पहचान को पोषित करना जिसमें देश की लोकतांत्रिक राजनीति के अंतर्गत ही राष्ट्रीय चिंताए आएं।


एनसीएफ 2005 के सिद्धांतों का मार्गदर्शन:

स्कूल में सभी बच्चों को शामिल करना और बनाए रखने का महत्व – यूईई के अनुसार, सामाजिक, आर्थिक, मनोवैज्ञानिक, शारीरिक, बौद्धिक विशेषता में उनके मतभेदों के बावजूद प्रत्येक बच्चा स्कूल में सफलता सीखने और प्राप्त करने में सक्षम होना चाहिए।ज्ञान, कार्य और शिल्प की विभिन्न परंपराओं के समृद्ध विरासत में शामिल करने के लिए पाठ्यचर्या के दायरे को विस्तृत करें।पंचायती राज संस्था पर स्थानीय ज्ञान और महत्वपूर्ण शिक्षा के अभ्यास का एकीकरण पर विद्रोह और जोर।बच्चों को पर्यावरण और इसकी सुरक्षा के प्रति संवेदनशील बनाना।एक ऐसी शांति की संस्कृति का निर्माण करना जिसमें व्यक्तियों को अपने प्राकृतिक और सामाजिक वातावरण के अनुरूप रहने के लिए सशक्त बनाना। शांति को स्कूल के पाठ्यक्रम मे एकीकृत करना।संविधान में शामिल सिद्धांतों के लिए अपने अधिकारों और कर्तव्यों और प्रतिबद्धताओं के प्रति जागरूक नागरिकता का निर्माण



प्रभाव:

सीखना ज्ञान के निर्माण की प्रक्रिया है, जिसमे शिक्षार्थी नए विचारों को मौजूदा विचारों के आधार पर जोड़कर सक्रिय रूप से अपना ज्ञान बनाते हैं।शिक्षार्थी अनुभवों के माध्यम से मानसिक वास्तविकता का निर्माण करते हैं।विचारों की संरचना और पुनर्गठन आवश्यक विशेषताएं हैं क्योंकि इससे शिक्षार्थियों की सीखने में प्रगति होती है।प्रासंगिक गतिविधियों के माध्यम से शिक्षार्थियों की मानसिक छवियों के निर्माण में सुविधा हो सकती है।सहयोगी शिक्षा संधिक्रम वार्ता, कईं विचारों को साझा करने और बाहरी वास्तविकता के आंतरिक प्रतिनिधित्व को बदलने के लिए जगह प्रदान करती है।बच्चों को ऐसे प्रश्न पूछने की इजाजत दी जाती है, जो बाहर होने वाली कोई भी दो चीज़ों को स्कूल लर्निंग के साथ संबंधित करेंबच्चों को, बजाय बस याद रखने और सही तरीके से जवाब प्राप्त करने के अपने शब्दों और अपने अनुभवों से जवाब देने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।समझदार अनुमान को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।



सामाजिक विज्ञान को पढ़ाने का लक्ष्य और उद्देश्य- एनसीएफ 2005

अनुशासनिक निशानों को पहचानना ताकि सामग्री खराब ना हो सके और पौधों जैसे विषयों के एकीकरण पर बल दिया जा सके।सामाजिक रूप से वंचित समूहों, आदिवासियों और अल्पसंख्यक के मुद्दों के लिए लिंग न्याय और संवेदनशीलता को सामाजिक विज्ञान के सभी क्षेत्रों को सूचित करना चाहिए।गंभीर रूप से सामाजिक और आर्थिक मुद्दों और गरीबी, बाल श्रम, विनाश, निरक्षरता और असमानता के कईं अन्य आयामों की चुनौतियों की जांच करें।लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष समाज में नागरिकों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को समझें।हमारे जैसे बहुलवादी समाज में, यह महत्वपूर्ण है कि सभी क्षेत्रों और सामाजिक समूह पाठ्यपुस्तकों से संबंधित हो सकें।महत्वपूर्ण विषयों के उपचार में एकीकृत दृष्टिकोण पर बल देते हुए सामाजिक विज्ञान को अनुशासनात्मक परिप्रेक्ष्य से माना जाना चाहिए।शैक्षिक मुद्दों पर सोच प्रक्रिया निर्णय लेने और गंभीर प्रतिबिंब विकसित करने के लिए शैक्षणिक प्रथाओं को सक्षम करना महत्वपूर्ण है।द्वितीय अवस्था में, सामाजिक विज्ञान में इतिहास, भूगोल, राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र के तत्व शामिल हैं। मुख्य ध्यान समकालीन भारत पर होगा और शिक्षार्थी को देश के सामने आने वाली सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों की गहरी समझ में शुरू किया जाएगा।


Ncf 2005 के अनुसार शिक्षक की भूमिका क्या है


भारत में राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एनसीएफ) का निर्माण करने की जिम्मेदारी एनसीईआरटी की है। यह संस्था समय-समय पर इसकी समीक्षा भी करती है। एनसीएफ-2005 के बनने का कार्य एनसीईआरटी के तत्कालीन निदेशक प्रो. कृष्ण कुमार के नेतृत्व में संपन्न हुआ।

इसमें शिक्षा को बाल केंद्रित बनाने, रटंत प्रणाली से निजात पाने, परीक्षा में सुधार करने और जेंडर, जाति, धर्म आदि आधारों पर होने वाले भेदभाव को समाप्त करने की बात कही गई है। शोध आधारित दस्तावेज़ तैयार करने के लिए 21 राष्ट्रीय फोकस समूह बने जो विभिन्न विषयों पर केंद्रित थे। इसके नेतृत्व की जिम्मेदारी संबंधित क्षेत्र के विषय विशेषज्ञों को दी गई।



शिक्षा के लक्ष्य

1.एनसीएफ-2005 के अनुसार शिक्षा का लक्ष्य किसी बच्चे के स्कूली जीवन को उसके घर, आस-पड़ोस के जीवन से जोड़ना है। इसके लिए बच्चों को स्कूल में अपने वाह्य अनुभवों के बारे में बात करने का मौका देना चाहिए। उसे सुना जाना चाहिए। ताकि बच्चे को लगे कि शिक्षक उसकी बात को तवज्जो दे रहे हैं।

2. शिक्षा का दूसरा प्रमुख लक्ष्य है आत्म-ज्ञान । यानि शिक्षा खुद को खोजने, खुद की सच्चाई को जानने की एक निरंतर प्रक्रिया बने। इसके लिए बच्चों को विभिन्न तरह के अनुभवों का अवसर देकर इस प्रक्रिया को सुगम बनाने की बात एनसीएफ में कही गई है।

3. शिक्षा के तीसरे लक्ष्य के रूप में साध्य और साधन दोनों के सही होने वाले मुद्दे पर चर्चा की गई है। इसमें कहा गया कि मूल्य शिक्षा अलग से न होकर पूरी शिक्षा की पूरी प्रक्रिया में शामिल होनी चाहिए। तभी हम बच्चों के सामने सही उदाहरण पेश कर पाएंगे।

4. सांस्कृतिक विविधता का सम्मान करने और जीवन जीने के अन्य तरीकों के प्रति भी सम्मान का भाव विकसित करने की बात करता है।

5. वैयक्तिक अंतर के महत्व को स्वीकार करने की बात करता है। इसमें कहा गया है कि हर बच्चे की अपनी क्षमताएं और कौशल होते हैं। इसे स्कूल में व्यक्त करने का मौका देना चाहिए जैसे संगीत, कला, नाट्य, चित्रकला, साहित्य (किस्से कहानियां कहना), नृत्य एवं प्रकृति के प्रति अनुराग इत्यादि।

6. ज्ञान के वस्तुनिष्ठ तरीके के साथ-साथ साहित्यिक एवं कलात्मक रचनात्मकता को भी मनुष्य के ज्ञानात्मक उपक्रम का एक हिस्सा माना गया है। यहां पर तर्क (वैज्ञानिक अन्वेषण) के साथ-साथ भावना (साहित्य) वाले पहलू को भी महत्व देने की बात कही गई है।

7. इसमें कहा गया है, “शिक्षा को मुक्त करने वाली प्रक्रिया के रूप में देखा जाना चाहिए अन्यथा अबतक जो कुछ भी कहा गया है वह अर्थहीन हो जाएगा। शिक्षा की प्रक्रिया को सभी तरह के शोषण और अन्याय गरीबी, लिंग भेद, जाति तथा सांप्रदायिक झुकाव) से मुक्त होना पड़ेगा जो हमारे बच्चों को इस प्रक्रिया से वंचित करते हैं।”

8. आठवीं बिंदु स्कूल में पढ़ने-पढ़ाने के काम के लिए अच्छा माहौल बनाने की बात करता है। साथ ही ऐसा माहौल बनाने में बच्चों की भागीदारी सुनिश्चित करने की भी बात करता है। यानि शिक्षक खुद आगे न आकर बच्चों को नेतृत्व करने का मौका दें।

9. नौवां बिंदु अपने देश के ऊपर गर्व की भावना विकसित करने की बात करता है। ताकि बच्चे देश से हरा जुड़ाव महसूस कर सकें। इसके साथ ही कहा गया है, “बच्चों में अपने राष्ट्र के प्रति गौरव की भावना संपूर्ण मानवता की महान उपलब्धियों के प्रति गौरव को पीछे न कर दे।”



राष्‍ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (एन सी टी ई) ने शिक्षक शिक्षा पर राष्‍ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचा तैयार किया है, जिसे मार्च 2009 में परिचालित किया गया था। यह ढांचा एन सी एफ, 2005 की पृष्‍ठभूमि में तैयार किया गया है और नि:शुल्‍क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 में निर्धारित सिद्धांतों ने शिक्षक शिक्षा पर परिवर्तित ढांचा अनिवार्य कर दिया है, जो एन सी एफ, 2005 में संस्‍तुत स्‍कूल पाठ्यचर्या के परिवर्तित दर्शन के अनुकूल हो। शिक्षक शिक्षा का दर्शन स्‍पष्‍ट करते हुए इस ढांचे में नए दृष्टिकोण के कुछ महत्‍वपूर्ण आयाम हैं :

  • परावर्ती प्रचलन, शिक्षक शिक्षा का केन्‍द्रीय लक्ष्‍य;
  • छात्र-अध्‍यापकों को स्‍व-शिक्षा परावर्तन नए विचारों के आत्‍मसातकरण और अभिव्‍यक्ति का अवसर होगा
  • स्‍व-निर्देशित शिक्षा की क्षमता और सोचने की योग्‍यता का विकास और समूहों में कार्य महत्‍वपूर्ण।
  • बच्‍चों के पर्यवेक्षण एवं शामिल करने, बच्‍चों से संवाद करने और उनसे जुड़ने का अवसर।


इस ढांचे ने फोकस, विशिष्‍ट उद्देश्‍यों, सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक शिक्षा के अनुकूल विस्‍तृत अध्‍ययन क्षेत्र और पाठ्यचर्या अंतरण और विभिन्‍न प्रारंभिक शिक्षक शिक्षा कार्यक्रमों के लिए मूल्‍यांकन कार्यनीति उजागर की हैं। मसौदा आधारभूत मुद्दों को भी रेखांकित करता है, जो इन पाठ्यक्रमों के सभी कार्यक्रमों का निरूपण निदेशित करेगा। इस ढांचे ने सेवाकालीन शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के दृष्टिकोण और रीति विधान पर अनेक सिफारिशें भी की हैं और इसकी कार्यान्‍वयन कार्यनीति भी रेखांकित की गई है। एन सी एफ टी ई के स्‍वाभाविक परिणाम के रूप में एन सी टी ई ने विभिन्‍न शिक्षक शिक्षा पाठ्यक्रमों का 'आदर्श' पाठ्यक्रम भी तैयार किया है।



राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा-2005

विषय प्रवेश

1. यह विद्यालयी शिक्षा का अब तक का नवीनतम राष्ट्रीय दस्तावेज है ।
2. इसे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के के शिक्षाविदों,वैज्ञानिकों,विषय विशेषज्ञों व अध्यापकों ने मिलकर तैयार किया है ।
3. मानव विकास संसाधन मंत्रालय की पहल पर प्रो0 यशपाल की अध्यक्षता में देश के चुने हुए  विद्वानों ने शिक्षा को नई राष्ट्रीय चुनौतियों के रूप में देखा ।

मार्गदर्शी सिद्धान्त

1. ज्ञान को स्कूल के बाहरी जीवन से जोड़ा जाए।
2. पढाई को रटन्त प्रणाली से मुक्त किया जाए।
3. पाठ्यचर्या पाठ्यपुस्तक केन्द्रित न रह जाए।
4. कक्षाकक्ष को गतिविधियों से जोड़ा जाए।
5. राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति आस्थावान विद्यार्थी तैयार हो।


प्रमुख सुझाव

1. शिक्षण सूत्रों जैसे-ज्ञात से अज्ञात की ओर, मूर्त से अमूर्त की ओर आदि का अधिकतम प्रयोग हो।
2. सूचना को ज्ञान मानने से बचा जाए।
3. विशाल पाठ्यक्रम व मोटी किताबें शिक्षा प्रणाली की असफलता का प्रतीक है।
4. मूल्यों को उपदेश देकर नहीं वातावरण देकर स्थापित किया जाए।
5. अच्छे विद्यार्थी की धारणा में बदलाव आवश्यक है अर्थात् अच्छा विद्यार्थी वह है जो तर्क पूर्ण बहस के द्वारा अपने मौलिक विचार शिक्षक के सामने प्रस्तुत करता है।
6. अभिभावकों को सख्त सन्देश दिया जाए कि बच्चों को छोटी उम्र में निपुण बनाने की आकांक्षा रखना गलत है।
7. बच्चों को स्कूल से बाहरी जीवन में तनावमुक्त वातावरण प्रदान करना।
8. “कक्षा में शान्ति” का नियम बार-बार ठीक नहीं अर्थात् जीवन्त कक्षागत वातावरण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
9. सहशैक्षिक गतिविधियों में बच्चों के अभिभावकों को भी जोड़ा जाए।
10. समुदाय को मानवीय संसाधन के रूप में प्रयुक्त होने का अवसर दें।
11. खेल आनन्द व सामूहिकता की भावना के लिए है, रिकार्ड बनाने व तोड़ने की भावना को प्रश्रय न दे।
12. बच्चों की अभिव्यक्ति में मातृ भाषा महत्वपूर्ण स्थान रखती है। शिक्षक अधिगम परिस्थितियों में इसका उपयोग करें।
13. पुस्तकालय में बच्चों को स्वयं पुस्तक चुनने का अवसर दें।
14. वे पाठ्यपुस्तकें महत्वपूर्ण होती है जो अन्तःक्रिया का मौका दें।
15. कल्पना व मौलिक लेखन के अधिकाधिक अवसर प्रदान करावें।
16. सजा व पुरस्कार की भावना को सीमित रूप में प्रयोग करना चाहिए।
17. बच्चों के अनुभव और स्वर को प्राथमिकता देते हुए बाल केन्द्रित शिक्षा प्रदान की जाए।
18. सांस्कृतिक कार्यक्रमों में मनोरंजन के स्थान पर सौन्दर्यबोध को प्रश्रय दे।
19. शिक्षक प्रशिक्षण व विद्यार्थियों के मूल्यांकन को सतत प्रक्रिया के रूप में अपनाया जाए।
20. शिक्षकों को अकादमिक संसाधन व नवाचार आदि समय पर पहुँचाएँ जाएँ।


पिछले वर्ष के कुछ प्रश्न:

1. एनसीएफ 2005 का मानना है कि पाठ्यपुस्तकों को एक माध्यम के रूप में देखा जाना चाहिए: (सीटीईटी सितंबर 2016)

a समाज के स्वीकृत मूल्यों को लागू करना
Bप्रमुख वर्ग द्वारा स्वीकार की गई जानकारी को पार करने के लिए
C परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए
Dआगे की जांच के लिए

उत्तर: (a)

एक छात्र अपने अधिग्रहित ज्ञान को अपने बाह्य पर्यावरण से जोड़ सकता है और साथियों, परिवार, देखभाल करने वालों द्वारा सूचित एक पहचान को पोषित कर सकता है। एनसीएफ 2005 के अनुसार, पाठ्यपुस्तकों को समाज के स्वीकृत मूल्यों को लागू करने के लिए एक माध्यम के रूप में देखा जाना चाहिए।


2. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा, 2005 के अनुसार, _____ और _____ सीखने के चरित्र में हैं। (सीटीईटी सितंबर 2016)

Aनिष्क्रिय,
Bसरलसक्रिय,
Cसामाजिकनिष्क्रिय,
Dसामाजिकसक्रिय, सरल

उत्तर: (b)

राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा, 2005 के अनुसार, सीखना अपने चरित्र में सक्रिय और सामाजिक है।

3. उच्च प्राथमिक स्तर पर सामाजिक विज्ञान में अवधारणाओं को विकसित करने के लिए सबसे उपयुक्त विधि चुनें। (सीटीईटी मई 2016)

पाठ्यपुस्तक में दिए गए सवालों के जवाब याद रखना
प्रमुख विशेषताएं सूचीबद्ध करना
निर्देशित प्रश्नों की एक श्रृंखला के माध्यम से सीखना
परिभाषाओं के माध्यम से सीखना

उत्तर: (b)

सामाजिक विज्ञान में अवधारणाओं को विकसित करने के लिए उपयोग की जाने वाली विधियां प्रमुख विशेषताओं को सूचीबद्ध करती हैं क्योंकि इसमें इतिहास शामिल है जो हमारी संस्कृति, राजनीतिक विज्ञान के बारे में बताता है जो सरकार भारत का एक संविधान है के बारे में बताता है, भूगोल जो पर्यावरण और अर्थशास्त्र के बारे में बताता है और अर्थशास्‍त्र जो भारत की आर्थिक स्थितियों के बारे में बताता है।

4. सामाजिक विज्ञान में उच्च प्राथमिक स्तर पर __ शामिल हैं। (सीटीईटी फरवरी 2015), (सीटीईटी जुलाई 2013)

भूगोल, इतिहास, राजनीतिक विज्ञान और अर्थशास्त्र राजनीतिक विज्ञान, भूगोल, इतिहास, समाजशास्त्र इतिहास, भूगोल, राजनीतिक विज्ञान, पर्यावरण विज्ञान इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, राजनीतिक विज्ञान

उत्तर: (a)


5. संचालन समिति के अध्यक्ष कौन थे।

डॉ. कृष्णा कुमार , प्रोफेसर अरविंद कुमार, प्रोफेसर गोविंद दास , प्रोफेसर यशपाल

उत्तर: (d)

नेशनल स्टीयरिंग कमेटी की स्थापना प्रोफेसर यशपाल की अध्यक्षता में की गई थी।

6. एनसीएफ 2005 के अनुसार, सामाजिक विज्ञान में शिक्षा का उद्देश्य छात्र को ............ में सक्षम करना है। (सीटीईटी जुलाई 2013)

राजनीतिक निर्णयों की आलोचना करनासामाजिक-राजनीतिक वास्तविकता का विश्लेषणदेश में सामाजिक राजनीतिक स्थिति पर जानकारी का प्रतिधारणसामाजिक राजनीतिक सिद्धांत के बारे में एक स्पष्ट और संक्षिप्त तरीके से वर्तमान ज्ञान ताकि छात्र उन्हें आसानी से याद रखें

उत्तर: (b)

एनसीएफ 2005 के अनुसार, सामाजिक विज्ञान में शिक्षा का उद्देश्य छात्र को सामाजिक-राजनीतिक हकीकत का विश्लेषण करने में सक्षम होना चाहिए ताकि वे समाज में लोगों, सरकार, मीडिया की भूमिका को समझ सकें।

7. एक सामाजिक विज्ञान शिक्षक को प्रभावी होने के लिए निम्न में से कौन सी विधियों को नियोजित करना चाहिए? (सीटीईटी जुलाई 2013)

उत्तेजक और रोचक गतिविधियों द्वारा छात्रों की भागीदारी में वृद्धिहर सोमवार को परीक्षण करके छात्रों के ज्ञान में वृद्धिमध्यम गति के शिक्षार्थियों के आत्मविश्वास को बढ़ावा देने के लिए पुरस्कार व्यवस्थाघर पर परियोजनाएं सौंपें ताकि माता-पिता को अपने बच्चे के अध्ययन में शामिल किया जा सके

उत्तर: (a)


एक सामाजिक विज्ञान शिक्षक को प्रभावी होने के लिए विचार उत्तेजक और रोचक गतिविधियों द्वारा छात्रों की भागीदारी में वृद्धि को नियोजित करना चाहिए।



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Wednesday, April 10, 2019

राष्टीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT]

राष्टीय  शैक्षिक अनुसंधान  और प्रशिक्षण परिषद (NCERT]

[National Council of Educational Research and Training)।

भारत सरकार द्वारा स्थापित संस्थान है जो विद्यालयी शिक्षा से जुड़े मामलों पर केन्द्रीय सरकार एवं प्रान्तीय सरकारों को सलाह देने के उद्देश्य से स्थापित की गयी है। यह परिषद भारत में स्कूली शिक्षा संबंधी सभी नीतियों पर कार्य करती है। इसका मुख्य कार्य शिक्षा एवं समाज कल्याण मंत्रालय को विशेषकर स्कूली शिक्षा के संबंध में सलाह देने और नीति-निर्धारण में मदद करने का है। इसके अतिरिक्त एनसीईआरटी के अन्य कार्य हैं शिक्षा के समूचे क्षेत्र में शोधकार्य को सहयोग और प्रोत्साहित करना, उच्च शिक्षा में प्रशिक्षण को सहयोग देना, स्कूलों में शिक्षा पद्धति में लाए गए बदलाव और विकास को लागू करना, राज्य सरकारों और अन्य शैक्षणिक संगठनों को स्कूली शिक्षा संबंधी सलाह आदि देना और अपने कार्य हेतु प्रकाशन सामग्री और अन्य वस्तुओं के प्रचार की दिशा में कार्य करना। इसी तरह भारत में शिक्षा से जुड़े लगभग हरेक कार्य में एनसीईआरटी की उपस्थिति किसी न किसी रूप में रहती है।

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद

संक्षेपाक्षर                - एन.सी.ई.आर.टी.
सिद्धांत                   - विद्ययाऽमृतम्श्नुते
प्रकार                     - शैक्षिक संस्थान
वैधानिक स्थिति        - सक्रिय
उद्देश्य                     - शिक्षा में गुणवत्ता लाना
मुख्यालय                - नई दिल्ली
स्थान                      - आई.आई.टी गेट, श्री औरोबिन्दो मार्ग
क्षेत्र served           - भारत
आधिकारिक भाषा     - हिन्दी, English, उर्दू
निदेशक                   - प्रोफेसर कृष्ण कुमार
जालस्थल                 - www.ncert.nic.in


कई अन्य शैक्षणिक संस्थान एनसीईआरटी के सहयोगी के तौर पर कार्यरत हैं, इनमें प्रमुख हैं:


  1. राष्ट्रीय शिक्षा संस्थान, नई दिल्ली
  2. केन्द्रीय शिक्षा प्रौद्योगिकी संस्थान, नई दिल्ली
  3. पं.सुंदरलाल शर्मा केन्द्रीय व्यावसायिक शिक्षा संस्थान, भोपाल
  4. क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान, अजमेर
  5. क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान, भोपाल
  6. क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान, भुवनेश्वर
  7. क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान, मैसूर
  8. उत्तर-पूर्वी क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान, शिलांग


इनके अलावा महिला शिक्षा विभाग (दि डिपार्टमेंट ऑफ वुमेन स्टडीज), जो महिला शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत है। इस दिशा में यह संस्था नीतिगत बदलाव और सलाह का आदान-प्रदान करती है। यह विभाग भी केंद्र और राज्यों के साथ मिलकर महिला शिक्षा के क्षेत्र में गत दो दशक से कार्य कर रही है। इनके अलावा, कई गैर सरकारी संस्थान भी एनसीईआरटी के साथ मिलकर शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत हैं। यह गैर सरकारी संगठन देश के सुदूर भागों में कार्यरत हैं और शिक्षा के क्षेत्र में कई काम कर चुके हैं और कर रहे हैं।

एनसीईआरटी के वर्तमान निदेशक शिक्षाविद् प्रोफेसर कृष्ण कुमार हैं। वे सितंबर २००४ से इस पद पर हैं और उनके कार्यकाल में अब तक एनसीईआरटी प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक स्तर की शिक्षा में व्यापक सुधार लाए जाने हेतु कई परिवर्तन किए हैं।



प्रारंभिक शिक्षा विभाग


प्रारंभिक शिक्षा विभाग, भारत सरकार को प्रारंभिक शिक्षा से संबंधित नीतियों और कार्यक्रमों पर परामर्श देने हेतु एन.सी.ई.आर.टी. का एक नोडल विभाग है। सर्व शिक्षा अभियान और बच्चों को नि:शुल्का एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (आर.टी.ई) अधिनियम 2009 के कार्यान्वगयन हेतु यह राष्ट्री य स्‍तर पर एक नोडल केन्द्रव के रूप में कार्य करता है।

इस विभाग के प्रमुख क्षेत्र हैं: प्रारंभिक बाल्यातवस्था देखभाल और शिक्षा, प्रारंभिक साक्षरता कार्यक्रम और प्रारंभिक शिक्षा।

सर्व शिक्षा अभियान के सम्ब न्ध में यह विभाग विभिन्नए प्रकार के कार्यकलापों जैसे अनुसंधान, विकास, प्रशिक्षण और विस्तार में एक अग्रणी भूमिका निभा रहा है।

शिक्षा के क्षेत्र में कार्यक्रम मूल्यां कन एक उभरता हुआ क्षेत्र है और प्रारंभिक शिक्षा विभाग अनुसंधान के इस नए क्षेत्र में महत्वयपूर्ण योगदान कर रहा है।



भूमिका और प्रकार्य

विभाग की अपने प्रमुख क्षेत्रों से सं‍बंधित भूमिका और प्रकार्य इस प्रकार हैं :

प्रारंभिक बाल्या्वस्थां देखभाल और शिक्षा (ई.सी.सी.ई.)


  1. आधारिक ई.सी.ई. अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिए आदर्श सामग्रियाँ विकसित करना;
  2. विद्यालय पूर्व शिक्षकों, अभिभावकों और अन्य इच्छुलक वर्गों के लिए स्रोत सामग्री का विकास;
  3. ई.सी.सी.ई. के क्षेत्र में आवश्य्कता आधारित अनुसंधान अध्ययनों का संचालन करना;
  4. ई.सी.सी.ई. के क्षेत्र में राज्योंु का क्षमता निर्माण करना और राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषदों और डाइट का सशक्तीदकरण करना। प्रत्ये क वर्ष प्रारंभिक बाल्यांवस्थाक देखभाल और शिक्षा में छ: माह का डिप्लोनमा संचालित किया जाता है।
  5. ई.सी.सी.ई. कार्यक्रमों की योजना, कार्यान्वियन और अनुवीक्षण में राज्यों के मुख्या पदधारियों हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रमों का संचालन करना और बच्चोंा, शिक्षक बच्चोंा, शिक्षकों, शिक्षक प्रशिक्षकों एवं अभिभावकों हेतु आवश्यीक सामग्री का विकास करना;
  6. प्रारंभिक बाल्या.वस्थाय देखभाल और शिक्षा का प्रसार करना। सरकार द्वारा चलाए जा रहे विद्यालय पूर्व केंद्रों, आँगनवाडि़यों और ई.सी.सी.ई. के क्षेत्र में कार्यरत निजी संस्था नों में बाल मीडिया प्रयोगशाला (ई.सी.सी.ई.- सी.एम.एल.) किट उपलब्धद करवाना।
  7. प्रारंभिक बाल्या.वस्थाय शिक्षा के उभरते हुए मुद्दों और प्रमुख क्षेत्रों पर संगोष्ठियाँ और सम्मे लन संचालित करना और 
  8. विद्यालय पूर्व शिक्षकों के प्रशिक्षण हेतु सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थापनों को स्रोत समर्थन उपलबध करवाना।




प्रारंभिक साक्षरता कार्यक्रम


  1. देश के नीति निर्माताओं और पाठ्यचर्या अभिकल्पककों का प्रारंभिक वर्षों में पठन पर शिक्षाशास्त्रब की ओर ध्यािन आकृष्टम करना ;
  2. उत्तर प्रदेश एवं अन्यय राज्योंा में अग्रगामी परियोजना को समर्थन देने हेतु विविध बाल साहित्य का संग्रह एवं अन्यण स्रोत सामग्री को उपलब्ध करवाना;
  3. शिक्षकों की पठन एवं लेखन के बारे में समझ विकसित करने में सहायता करना; और
  4. प्रगति का अनुवीक्षण करना तथा शिक्षकों एवं अन्यर पदधारियों को सहयोग उपलब्धश करवाना।




प्रारंभिक शिक्षा


  • प्रारंभिक शिक्षा से संबंधित प्राथमिकता क्षेत्रों में अनुसंधानिक अध्यंयनों का, विशेषतया प्रारंभिक शिक्षा की गुणवत्ता् में सुधार से संबंधित मुद्दों पर, संचालन करना;
  • सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत प्रारंभिक शिक्षा के गुणात्ममक सुधार हेतु राज्योंउ द्वारा कार्यान्वित विभिन्नग गुणता पहलों (Quality Initiatives ) का कार्यक्रम मूल्यां कन करना;
  • बच्चोंy हेतु विषयवार पाठ्यक्रम एवं पाठ्यचर्या सामग्री और कक्षा I से V तक के शिक्षकों हेतु सहायक सामग्री तैयार करने के लिए दिशा-निर्देशों का विकास करना;
  • शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009, के सन्दमर्भ में कें सनकी एवं (विधान मण्डकल रहित) संघ राज्यस क्षेत्रों के स्वा्मित्वग, नियंत्रण एवं प्रबंधन के अधीन विद्यालयों के संबंध में पाठ्यचर्या और मूल्यां कन प्रक्रिया हेतु दिशा-निर्देश विकसित करना;
  • प्राथमिक स्तबर पर विभिन्नो पाठ्यचर्या क्षेत्रों हेतु प्राथमिक स्त्र पर आकलन के लिए स्रोत पुस्ततकों का प्रचार करना;
  • प्राथमिक स्तषर के लिए एन.सी.एफ. - 2005 पर आधारित पाठ्यक्रम और पाठ्य सामग्रियों के कार्यान्वकयन हेतु राज्यों /संघ राज्य् क्षेत्रों में मुख्य पदधारियों का क्षमता निर्माण;
  • सर्व शिक्षा अभियान (एस.एस.ए.) और शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अंतर्गत कार्यकलापों के नियोजन, कार्यान्वशयन, अनुवीक्षण और मूल्यां कन (विशेषतया वे गतिविधियाँ जो कि शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने से संबंधित हैं), के संबंध में अकादमिक समर्थन उपलब्धक करवाना;
  • विभिन्न कार्यक्रमों के माध्याम से शिक्षा का अधिकार, प्रारंभिक बाल्यिवस्थाव देखभाल और शिक्षा (ई.सी.सी.ई.) तथा प्रारंभिक शिक्षा से संबंधित मुद्दों पर जागरूकता का विकास और समुदायों को सुग्राही बनाना।
  • प्रारंभिक शिक्षा में महत्वंपूर्ण विषयों और मुख्यु क्षेत्रों पर संगोष्ठियाँ, सम्मेालन और परामर्शी बैठकें आयोजित करना; और
  • शैक्षिक पत्रिकाओं और राष्ट्री य प्रलेखन एकक के माध्योम से ई.सी.सी.ई. और प्रारंभिक शिक्षा में नवाचारी/संगत सामग्री का प्रलेखन एवं प्रसार।


राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और विकास परिषद (एनसीईआरटी)

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और विकास परिषद स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में तकनीकी संसाधन सहायता प्रदान करने वाली शीर्ष संस्था है। एनसीईआरटी के घोषणा पत्र में स्कूली पाठ्‌यक्रम तैयार करने के कार्य को विशेष स्थान दिया गया है। एनसीईआरटी से यह अपेक्षा रहती है कि वह शिक्षा का सर्वोच्च स्तर बनाए रखने के लिए और इसे सुनिश्चित करने हेतु स्कूली पाठ्‌यक्रम की समीक्षा नियमित रूप से समय-समय पर करता रहे। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनपीई) 1986 और कार्य योजना (पीओए) 1992 ने एक राष्ट्रीय पाठ्‌यक्रम ढांचा (बाहरी विंडो में खुलने वाली वेबसाइट) बनाने और उसे प्रोत्साहन देने हेतु एनसीईआरटी को विद्गोष भूमिका प्रदान की है। एनपीई इस तरह के ढांचे को भारतीय संविधान द्वारा निर्धारित कुछ मानादंडों एवं परिवर्तनकारी लक्षणों को पूरा करने वाली राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली तैयार करने के साधन के रूप में देखता है।

राष्ट्रीय पाठ्‌यक्रम ढांचा: राष्ट्रीय पाठ्‌यक्रम ढांचा (एनसीएफ) 2005 व्यापक विचार विमर्श एवं परिश्रम का परिणाम था। इस हेतु लब्धप्रतिष्ठ वैज्ञानिक प्रो. यशपाल की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय संचालन समिति का गठन किया गया था। समिति के 35 सदस्यों में विभिन्न विषयों के विद्वान, प्रधानाचार्य एवं अध्यापक, जाने माने गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि तथा एनसीईआरटी के सदस्य शामिल थे। पाठ्‌यक्रम, राष्ट्रीय विषयों तथा व्यवस्थित विषयों को देखने वाले 21 राष्ट्रीय फोकस ग्रुपों ने इसके कार्यों का समर्थन किया था। इस विषय पर पूरे देश में व्यापक विचार-विमर्श किया गया।

इसके अलावा एनसीईआरटी ने ग्रामीण अध्यापकों, राज्यों के शिक्षा सचिवों तथा निजी विद्यालयों के प्रधानाचार्यों के साथ विचार-विमर्श किया। अजमेर, भोपाल, भुवनेश्वर, मैसूर तथा शिलांग के क्षेत्रीय शिक्षा संस्थानों में क्षेत्रीय सेमिनार आयोजित किए गए।

स्रोत: राष्‍ट्रीय पोर्टल विषयवस्‍तु प्रबंधन दल, द्वारा समीक्षित: 19-01-2011



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Tuesday, April 9, 2019

राष्टीय शिक्षक शिक्षा परिषद [NCTE]

राष्टीय शिक्षक शिक्षा परिषद 

National Council for Teacher Education (NCTE)

भारत सरकार की एक संस्था है, जिसकी स्थापना राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद अधिनियम, १९९३ (७३, १९९३) के अन्तर्गत १७ अगस्त, १९९५ में की गई थी। इसका उत्तरदायित्व भारतीय शिक्षा प्रणाली के मानक, प्रक्रियाएं एवं धाराओं की स्थापना एवं निरीक्षण करना है।


राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद

स्थापना   -   १७ अगस्त १९९५
अध्यक्ष    -   मो.अख्तर सिद्दीक़ी
स्थान      -    नई दिल्ली
पता        -    हंस भवन, बहादुर शाह ज़फर मार्ग
             
जालस्थल -     www.ncte-india.org/


इतिहास

1973 के पूर्व राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद की भूमिका अध्यापक शिक्षा से संबंधित सभी विषयो पर केंद्रीय और राज्य सरकारो के लिए एक सलाहकार निकाय के रूप में थी। परिषद का सचिवालय राष्ट्रीय शेक्षिक अनुशंधान तथा प्रशिक्षण परिषद, (एनसीईआरटी) के अध्यापक शिक्षा विभाग में स्थित था। शैक्षणिक क्षेत्र में अपने प्रशंसनीय कार्य के बाबजूद परिषद, अध्यापक शिक्षा में मानको को बनाये रखने तथा घटिया अध्यापक शिक्षा संस्थानों की बरोतरी को रोकने के अपने अनिवार्ये विनियामक कार्य नहीं कर सकी थी।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एन॰पी॰ई) 1986 और उसके अधीन कार्य योजना में अध्यापक शिक्षा प्रणाली को सर्वथा दुरुस्त करने के लिए पहले उपाय के रूप में संविधिक दर्जे और अपेक्षित संसाधनों से युक्त राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा प्ररिषद की कल्पना की गई थी। एक साविधिक निकाय के रूप में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा प्ररिषद अधिनियम 1993 के अधीन (1993 का 73 वा) राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा प्ररिषद 17 अगस्त 1995 से अस्तितव में आई।

राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा प्ररिषद का मूल उद्देश्य समूचे भारत में अध्यापक शिक्षा प्रणाली का नियोजित और समन्वित विकास करना, अध्यापक शिक्षा प्रणाली में मानदंडों और मानको का विनियमन तथा उन्हे समुचित रूप से बनाये रखना और तत्संबंधी विषय हैं।

राष्‍ट्रीय अध्‍यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) का मुख्‍य उद्देश्‍य संपूर्ण देश में अध्‍यापक शिक्षा प्रणाली के योजनागत और समन्वित विकास को प्राप्‍त करना और इससे संबंधित मामलों हेतु एवं अध्‍यापक शिक्षा प्रणाली में मानकों और मापदंडों का विनियमन और उचित अनुरक्षण करना है।

संगठनात्मक ढाँचा

राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद का मुख्यालय दिल्ली में है तथा भोपाल, भुवनेश्वर, बंगलुरु तथा जयपुर में इसकी क्षेत्रिय समितियाँ हैं।


राष्‍ट्रीय अध्‍यापक शिक्षा परिषद

राष्‍ट्रीय अध्‍यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) की स्‍थापना अगस्‍त, 1995 में इस लक्ष्‍य के साथ की गई थी कि पूरे देश में अध्‍यापक शिक्षा प्रणाली का नियोजित एवं समन्‍वित विकास किए जाने के साथ ही जरूरी नियम बनाने और अध्‍यापक शिक्षा के मानकों एवं स्‍तरों का उचित संरक्षण किया जा सके। एनसीटीई के कुछ प्रमुख विभिन्‍न अध्‍यापक शिक्षा कार्यक्रमों के लिए स्‍तरों का निर्धारण करना, अध्‍यापक शिक्षा संस्‍थानों को मान्‍यता प्रदान करना, अध्‍यापकों की नियुक्‍ति के लिए न्‍यूनतम शैक्षणिक योग्‍यताओं हेतु दिशा-निर्देश तैयार करना, सर्वेक्षण और अध्‍ययन करना, अनुसंधान एवं नवीन तरीके अपनाना तथा शिक्षा के व्‍यावसायीकरण पर रोक लगाना इत्‍यादि हैं।

परिषद की चार क्षेत्रीय समितियां जयपुर, बैंगलोर, भुवनेश्‍वर तथा भोपाल में गठित की गई हैं तो क्रमश: उत्तरी, दक्षिणी, पूर्वी एवं पश्‍चिमी क्षेत्र के लिए हैं। ये क्षेत्रीय समितियां अपने-अपने क्षेत्र में अध्‍यापक-शिक्षण संस्‍थानों को मान्‍यता देने के कार्य करती हैं। राष्‍ट्रीय अध्‍यापक शिक्षा परिषद अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत इन्‍हें अध्‍यापक शिक्षण पाठ्यक्रम चलाने के लिए ऐसी संस्‍थाओं को अनुमति देने का अधिकार है।

एक जनवरी, 2007 तक एनसीटीई ने 9045 पाठ्यक्रमों के माध्‍यम से 7.72 लाख प्रशिक्षु अध्‍यापकों को प्रशिक्षण देने हेतु 7461 अध्‍यापाक प्रशिक्षण संस्‍थानों को मान्‍यता प्रदान की। एनसीटीई ने सी.एड, डी.एड, बी.एड, डीपी.एड और एमपी.एड जैसे विभिन्‍न अध्‍यापक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए नए नियम और मानक जारी किए हैं। नए नियम अध्‍यापक कार्यक्रमों की गुणवत्ता सुधारने और अध्‍यापाक शिक्षण संस्‍थानों में अन्‍य सुविधाओं के अलावा बुनियादी मजबूती के लिए बनाए गए हैं।


राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (संशोधन) अधिनियम, 2017

1 जुलाई, 1995 को अध्यापक शिक्षा परिषद अधिनियम, 1993 (NCTE : National Council for Teacher Education Act, 1993) प्रभावी हुआ था। यह अधिनियम जम्मू व कश्मीर राज्य को छोड़कर पूरे देश में लागू है। अधिनियम का मुख्य उद्देश्य एक ‘राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद’ (NCTE) की स्थापना करना था जिससे अध्यापक शिक्षा प्रणाली में नियोजित एवं समन्वयात्मक विकास की प्राप्ति की जा सके और उक्त प्रणाली में मानदंडों एवं मानकों का समुचित अनुरक्षण सुनिश्चित किया जा सके। हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा उपर्युक्त अधिनियम में संशोधन को स्वीकृति प्रदान की गई।

  • 1 नवंबर, 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा ‘राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद अधिनियम, 1993’ में संशोधन हेतु संसद में विधेयक पेश किए जाने की स्वीकृति प्रदान की गई।
  • संशोधित अधिनियम ‘राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (संशोधन) अधिनियम, 2017’ होगा।
  • संशोधित अधिनियम में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) की अनुमति के बिना अध्यापक शिक्षा पाठ्यक्रमों को संचालित करने वाले केंद्र/राज्य विश्वविद्यालयों को भूतलक्षी (Retrospective) प्रभाव से मान्यता प्रदान करने का प्रावधान है।
  • संशोधन में एनसीटीई (NCTE) मान्यता (Recognition) के बिना अध्यापक शिक्षा पाठ्यक्रम संचालित करने वाले केंद्र/राज्य/संघ शासित क्षेत्र के वित्तपोषित संस्थानों/विश्वविद्यालयों को अकादमिक सत्र 2017-18 तक भूतलक्षी प्रभाव से मान्यता प्रदान करने का प्रावधान है।
  • यह भूतलक्षी प्रभाव की मान्यता एकबारगी उपाय के रूप में प्रदान की जा रही है, ताकि इन संस्थानों से उत्तीर्ण हुए पंजीकृत छात्रों के भविष्य को खतरा न हो।
  • उक्त संशोधन से इन संस्थानों/विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे या यहां से पहले ही उत्तीर्ण हो चुके छात्र अध्यापक के रूप में रोजगार पाने के योग्य होंगे।
  • उपरोक्त उल्लिखित लाभों को प्राप्त करने की दृष्टि से मानव संसाधन विकास मंत्रालय के ‘स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग’ द्वारा यह संशोधन प्रस्तावित किया गया है।
  • अध्यापक शिक्षक पाठ्यक्रम, जैसे-बी.एड. (B.Ed) एवं डिप्लोमा इन इलेमेंट्री एजुकेशन (D.El.Ed.), चलाने वाले सभी संस्थानों को एनसीटीई (NCTE) अधिनियम की धारा 14 के अंतर्गत राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद से अनुमति लेनी होगी।
  • इसके अतिरिक्त ऐसे मान्यता प्राप्त संस्थानों/विश्वविद्यालयों को एनसीटीई अधिनियम की धारा 15 के अंतर्गत पाठ्यक्रमों की अनुमति प्राप्त करनी होगी।


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Monday, April 8, 2019

दिव्यांगो के लिए राष्ट्रीय नीति

दिव्यागों के लिए राष्ट्रीय नीति

परिचय

१. भारत का संविधान अपने सभी नागरिकों के लिए समानता, स्वतंत्रता, न्याय व गरिमा सुनिश्चित करता है और स्पष्ट रूप से यह विकलांग व्यक्तियों समेत एक संयुक्त समाज बनाने पर जोर डालता है। हाल के वर्षों में विकलांगों के प्रति समाज का नजरिया तेजी से बदला है। यह माना जाता है कि यदि विकलांग व्यक्तियों को समान अवसर तथा प्रभावी पुनर्वास की सुविधा मिले तो वे बेहतर गुणवत्तापूर्ण जीवन व्यतीत कर सकते हैं।

२. जनगणना 2001 के मुताबिक, देश में 2.19 करोड़ व्यक्ति विकलांगता के शिकार हैं, जो कुल जनसंख्या का 2.13% हिस्सा है। 75% विकलांग व्यक्ति ग्रामीण इलाकों में रहते हैं, तथा 49% विकलांग व्यक्ति साक्षर हैं व 34% रोजगार प्राप्त हैं। पूर्व के मेडिकल पुनर्वास पर जोर डालने की बजाए अब सामाजिक पुनर्वास पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। विकलांगों की बढ़ती योग्यता की पहचान की जा रही है, और उन्हें समाज की मुख्यधारा में शामिल किए जाने पर बल दिया जा रहा है। भारत सरकार ने विकलांगों के लिए तीन कानूनों को लागू किया है, जो इस प्रकार हैं:

i.     विकलांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार सुरक्षा तथा पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995, जो ऐसे लोगों को शिक्षा, रोजगार, अवरोधमुक्त वातावरण का निर्माण, सामाजिक सुरक्षा इत्यादि प्रदान करता है।

ii.     ऑटिज्म, सेरीब्रल पाल्सी, मानसिक मंदबुद्धि व बहुविकलांगता के लिए राष्ट्रीय कल्याण ट्रस्ट अधिनियम 1999 में चारों वर्गों के कानूनी सुरक्षा तथा उनके स्वतंत्र जीवन हेतु सहसंभव वातावरण के निर्माण का प्रावधान है।

iii.     भारतीय पुनर्वास परिषद् अधिनियम 1992, पुनर्वास सेवाओं के लिए मानव-बल विकास का प्रयास करता है।

३. कानूनी फ्रेमवर्क के अलावा, गहन संरचना का विकास किया गया है। निम्न सात राष्ट्रीय संस्थान हैं जो मानव बल के विकास के लिए विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं, ये इस प्रकार हैं:

  • शारीरिक विकलांग संस्थान, नई दिल्ली
  • राष्ट्रीय दृष्टि विकलांग संस्थान, देहरादून
  • राष्ट्रीय ऑर्थोपेडिक विकलांग संस्थान, कोलकाता।
  • राष्ट्रीय मानसिक विकलांग संस्थान, सिकंदराबाद।
  • राष्ट्रीय श्रवण विकलांग संस्थान, मुम्बई
  • राष्ट्रीय पुनर्वास तथा अनुसंधान संस्थान, कटक।
  • राष्ट्रीय बहु-विकलांग सशक्तीकरण संस्थान, चेन्नई।


४. पांच संयुक्त पुनर्वास केंद्र, चार पुनर्वास केंद्र तथा 120 विकलांग पुनर्वास केंद्र हैं, जो लोगों को विभिन्न प्रकार की पुनर्वास सेवाएं प्रदान करते हैं।

पुनर्वास के क्षेत्र में स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन कई राष्ट्रीय संस्थान हैं, जैसे मानसिक स्वास्थ्य तथा न्यूरो विज्ञान राष्ट्रीय संस्थान, बंगलुरू; अखिल भारतीय शारीरिक चिकित्सा तथा पुनर्वास, मुम्बई; अखिल भारतीय वाणी तथा श्रवण संस्थान, मैसूर; केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान, रांची इत्यादि। इसके अलावा कुछ राज्य सरकार के संस्थान भी पुनर्वास सेवाएं प्रदान करते हैं। साथ ही, 250 निजी संस्थान भी हैं जो पुनर्वास कर्मचारियों के लिए पाठ्यक्रम संचालित करते हैं।

५. विकलांग व्यक्तियों के स्व-रोजगार के लिए राष्ट्रीय अपंग तथा वित्तीय विकास निगम (NHFDC) राज्य की एजेंसियों द्वारा छूट के साथ ऋण मुहैया कराता रहा है।

६. विकलांगों के कल्याण के लिए ग्रामीण स्तर, अंतर्वर्ती स्तर व जिला स्तर पर पंचायती राज संस्थान प्रयासरत है।

७. भारत, एशिया प्रशांत क्षेत्र के विकलांग व्यक्तियों की समानता व पूर्ण भागीदारी की घोषणा-पत्र का सदस्य है। भारत एक समावेशिक, अवरोध मुक्त तथा आधिकार अधारित समाज के निर्माण की दिशा में प्रयास करने के लिए बिवाको मिलेनियम फ्रेमवर्क का भी सदस्य है। मौजूदा समय में भारत राष्ट्रीय विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों तथा गरिमा की रक्षा व समर्थन घोषणा-पत्र में भाग ले रहा है।


राष्ट्रीय नीति का विवरण

८. राष्ट्रीय नीति मानता है कि विकलांग व्यक्ति देश के लिए मूल्यवान मानव संसाधन होते हैं, तथा यह ऐसे व्यक्तियों को समान अवसरों, उनके अधिकार की सुरक्षा तथा समाज में पूर्ण भागीदारी का प्रयास करती है। इस नीति के उद्देश्य निम्न हैं:

विकलांगता की रोकथाम

९. चूंकि कई सारे मामलों में विकलांगता को रोका जा सकता है, इसलिए इसकी रोकथाम के लिए कड़े प्रयास करने की आवश्यकता होगी। ऐसे रोगों की रोकथाम के लिए कार्यक्रम को काफी बढ़ावा देना होगा, जिससे विकलांगता उत्पन्न होती है और गर्भावस्था के दौरान और उसके बाद होने वाली विकलांगता के लिए जागरुकता फैलाने की जरूरत है।

पुनर्वास के उपाय

१०. पुनर्वास के उपायों को मूलतः 3 अलग-अलग समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

शारीरिक पुनर्वास, जिसमें आरंभिक पहचान तथा उपचार, परामर्श व चिकित्सा तथा मदद व उपकरण का प्रावधान है। इसमें पुनर्वास कर्मचारियों का विकास भी शामिल है।
व्यावसायिक शिक्षा समेत शैक्षणिक पुनर्वास, तथा
समाज में गरिमामय जीवन जीने के लिए आर्थिक पुनर्वास।

क. शारीरिक पुनर्वास रणनीति

. आरंभिक पहचान तथा उपचार

११. विकलांगता की आरंभिक पहचान व दवा या गैर-दवा उपचारों के जरिए इसकी चिकित्सा से इन रोगों की गंभीरता को कम करने में मदद मिलती है। अतः आरंभिक पहचान तथा आरंभिक उपचार के साथ आवश्यक सुविधाओं की उपलब्धता पर अधिक ध्यान दिया जाएगा। सरकार खासकर ग्रामीण इलाकों में ऐसी सुविधाओं की उपलब्धता के लिए सूचना का प्रसार करेगी।

(ख) परामर्श तथा मेडिकल पुनर्वास

१२. शारीरिक पुनर्वास उपाय में शामिल हैं- परामर्श, विकलांग व्यक्तियों व उनके परिवारों की क्षमता को सुदृढ़ करना, मनोचिकित्सा, फीजियो थेरैपी, व्यावसायिक थेरैपी, सर्जिकल सुधार, उपचार, दृष्टि मूल्यांकन, दृष्टि उत्तेजन, स्पीच थेरैपी प्रदान किए जाएंगे तथा ऑडियोलॉजिकल पुनर्वास व विशेष शिक्षा मुहैया कराया जाएगा, जिन्हें राज्य सरकारों, स्थानीय संस्थानों, गैर सरकारी संगठनों व विकलांगों के माता-पिता के जरिए सभी जिलों तक प्रसारित किया जाएगा।

१३. वर्तमान में पुनर्वास सेवाएं मुख्यतः शहरी और उसके आस-पास के इलाकों में उपलब्ध हैं। चूंकि 75% विकलांग व्यक्ति देश के ग्रामीण इलाकों में रहते हैं, पेशेवरों द्वारा चलाई जा रही सेवाओं को ऐसे अछूते इलाकों तक पहुंचाया जाएगा। निजी पुनर्वास सेवा केंद्रों को एक न्यूनतम मानकों के अनुपालन के लिए नियंत्रित किया जाएगा।

१४. ग्रामीण तथा अछूते इलाकों में कवरेज का प्रसार करने के लिए, नए जिला विकलांगता पुनर्वास केंद्रों की स्थापना की जाएगी, जिसके लिए राज्य सरकार की सहायता ली जाएगी।

१५. अधिकृत सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता-“आशा” (ASHA) के जरिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन ग्रामीण लोगों की स्वास्थ्य आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, खासकर समाज के कमजोर वर्गों के लोगों को इसमें शामिल किया गया है। मूल स्तर पर “आशा” विकलांग व्यक्तियों के लिए विशद सेवाओं की देखभाल करेगी।

(ग) सहायक उपकरण

१६. भारत सरकार विकलांगों को आईएसआई प्रमाणित टिकाऊ तथा वैज्ञानिक रूप से निर्मित, आधुनिक यंत्र व उपकरण की खरीद के लिए सहायता देती रही है, जिससे उनके शारीरिक, सामाजिक व मनोवैज्ञानिक निर्भरता को कम करते हुए विकलांगता के प्रभाव को कम किया जा सके।

१७. राष्ट्रीय संस्थानों, राज्य सरकारों, डीडीआरसी व गैर सरकारी संगठनों के जरिए हर साल विकलांगों को प्रोस्थेसिस तथा ऑर्थोसेस, ट्राइसाइकिल, व्हील चेयर, सर्जिकल फुटवेयर व दैनिक जीवन में काम आने वाले व सीखने वाले यंत्र (ब्रेल लेखन यंत्र, डिक्टाफोन, सीडी प्लेयर/ टेप रिकॉर्डर), लो विजन यंत्र, चलने-फिरने के लिए विशेष यंत्र- जैसे अंधे व्यक्तियों के लिए छड़ी, श्रवण यंत्र, शैक्षणिक किट्स, बातचीत करने वाले यंत्र, मदद करने और अलर्ट करने वाले यंत्र और ऐसे यंत्र जो मानसिक रूप से विकलांग व्यक्ति के लिए बनाए जाते हैं। इन उपकरणों की उपलब्धता को अछूते व सेवा वाले क्षेत्रों तक विस्तार करना।

१८. विकलांग व्यक्तियों के लिए हाइटेक सहायक यंत्रों क निर्माण में शामिल निजी, सार्वजनिक तथा संयुक्त क्षेत्र के उपक्रमों को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।

(घ) पुनर्वास कर्मचारियों का विकास

१९. विकलांग व्यक्तियों के लिए आवश्यक मानव संसाधन की जरूरतों का मूल्यांकन किया जाएगा तथा विकास योजना तैयार की जाएगी, ताकि पुनर्वास रणनीति हेतु मानव बल की कमी न हो।

ख. विकलांग व्यक्तियों के लिए शिक्षा

२०. सामाजिक तथा आर्थिक सशक्तीकरण के लिए शिक्षा सबसे प्रभावी माध्यम होता है। संविधान के अनुच्छेद 21ए के तहत, जहां शिक्षा को मौलिक अधिकार माना गया है और विकलांग अधिनियम 1995 के अनुच्छेद 26 में विकलांग बच्चों को 18 वर्षों की उम्र तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का प्रावधान किया गया है । जनगणना 2001 के मुताबिक, 51% विकलांग व्यक्ति निरक्षर हैं। यह एक बहुत बड़ी प्रतिशतता है। विकलांग लोगों को सामान्य शिक्षा प्रणाली की मुख्यधारा में लाने की जरूरत है।

२१. सरकार द्वारा चलाया गया सर्व शिक्षा अभियान (SSA) का 8 वर्षों तक बच्चों के प्राथमिक स्कूलिंग प्रदान करने का लक्ष्य है, जिसमें 6 से 14 वर्ष के बच्चे भी शामिल हैं। विकलांग बच्चों के लिए समेकित शिक्षा के तहत 15 से 18 वर्षों तक की उम्र के विकलांग बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान की जाएगी।

२२. सर्व शिक्षा अभियान के तहत शिक्षा विकल्पों का एक सातत्य, सीखने वाले यंत्र औजार, गत्यात्मकता सहायता, सहायक सेवाएं इत्यादि विकलांग छात्रों को उपलब्ध कराई जा रही हैं। इसमें शामिल है मुक्त शिक्षण प्रणाली, ओपन स्कूल, वैकल्पिक स्कूलिंग, दूर शिक्षा, विशेष स्कूल, जहां भी आवश्यक हो घर आधारित शिक्षा, भ्रमणकारी शिक्षक मॉडल, उपचार वाली शिक्षा, पार्ट टाइम कक्षाएं, समुदाय आधारित पुनर्वास व व्यावसायिक शिक्षा के जरिए शिक्षा प्रदान करने का कार्य।

२३. राज्य सरकारों, स्वायत्त निकायों तथा स्वयंसेवी संगठनों के जरिए क्रियान्वित आईईडीसी योजना विशेष शिक्षकों, पुस्तक व लेखन सामग्रियों, यूनिफॉर्म, परिवहन, दृष्टि से कमजोर व्यक्तियों के लिए पाठक भत्ता, हॉस्टल भत्ता, उपकरण लागत, वास्तु अवरोधों को हटाता/सुधार करना, निर्देशात्मक सामग्रियों की खरीद/उत्पादन के लिए वित्तीय सहायता, सामान्य शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण व संसाधन कमरों के लिए यंत्र-उपकरण जैसी सुविधाओं के लिए सौ फीसदी वित्तीय सहायता प्रदान करती है।

२४. नियमित सर्वेक्षणों, उचित स्कूलों में उनकी उपस्थिति और शिक्षा पूरी करने तक उनकी निरंतरता के जरिए बच्चों में विकलांगता की पहचान हेतु सरकार की ओर से केंद्रित प्रयास किया जाएगा। सरकार विकलांग बच्चों को सही प्रकार की शिक्षण सामग्रियों तथा पुस्तक प्रदान करने, शिक्षकों व स्कूलों को सही रूप से प्रशिक्षण व सुग्राही बनाने के लिए प्रयास करेगी, जो पहुंच में आने योग्य तथा विकलांग हितैषी हो।

२५. भारत सरकार ऐसे विकलांग छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करती है ताकि स्कूल के बाद के स्तर पर पढ़ाई में उन्हें मदद मिल सके। सरकार यह छात्रवृत्ति जारी रखेगी व इसके कवरेज का विस्तार करेगी।

२६. विभिन्न प्रकार की उत्पादक गतिविधियों के लिए उपयुक्त योग्यता निर्माण के लिए तकनीकी तथा व्यावसायिक शिक्षा सुविधा प्रदान की जाएगी। जिसके लिए मौजूदा संस्थान या कार्यरत या अछूते क्षेत्रों के अधिकृत संस्थानों का अनुकूलन किया जाएगा। गैर सरकारी संगठनों को भी व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।

२७. विकलांग व्यक्तियों को उच्च शिक्षा व व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में दाखिला लेने के लिए विश्व विद्यालयों, तकनीकी संस्थानों तथा उच्च शिक्षा के अन्य संस्थानों में पहुंच प्रदान की जाएगी। ही

ग. विकलांग व्यक्तियों के लिए आर्थिक पुनर्वास

२८. विकलांग व्यक्तियों के आर्थिक पुनर्वास में संगठित क्षेत्र में दिहाड़ी रोजगार तथा स्व-रोजगार भी शामिल है। सेवाओं को इस प्रकार बढ़ावा दिया जाए कि व्यावसायिक पुनर्वास केंद्र तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों को विकसित किया जा सके, ताकि ग्रामीण व शहरी दोनों क्षेत्रों के विकलांगों को उत्पादक तथा लाभकारी रोजगार मुहैया कराया जा सके। विकलांगों के आर्थिक सशक्तीकरण हेतु रणनीतियां निम्नानुसार होंगी:

(i) सरकारी महकमों में रोजगार

विकलाँग व्यक्ति अधिनियम, 1995 सरकारी महकमों तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में 3% का आरक्षण का प्रावधान करता है। विभिन्न मंत्रालयों/विभागों में समूह ए, बी, सी तथा डी के लिए सरकार के आरक्षण की स्थिति क्रमशः 3.07%, 4.41%, 3.76% तथा 3.18% है। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में यह स्थिति क्रमशः 2.78%, 8.54%, 5.04% तथा 6.75% है। सरकार विकलाँग व्यक्ति अधिनियम, 1995 के प्रावधानों के अनुरूप चिह्नित पदों के लिए सरकारी क्षेत्र में (सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों समेत) आरक्षण सुनिश्चित करेगी। चिह्नित पदों की सूची को वर्ष 2001 में अधिसूचित किया गया है, जिसकी समीक्षा की जाएगी और अद्यतन किया जाएगा।

(ii) निजी क्षेत्र में दिहाड़ी रोजगार

निजी क्षेत्र में विकलाकों को रोजगार के लिए सक्षम बनाने के लिए उनकी योग्यता का विकास किया जाएगा। विकलांग व्यक्तियों के बीच उचित योग्यता के विकास हेतु संचालित व्यावसायिक पुनर्वास तथा प्रशिक्षण केंद्र को उनकी सेवाओं के विस्तार के लिए बढ़ावा दिया जाएगा। सेवा क्षेत्र में रोजगार अवसरों के तीव्र विकास को देखते हुए विकलांगता से ग्रस्त व्यक्तियों को बाजार की जरूरतों के मुताबिक योग्यता निर्माण के लिए बढ़ावा दिया जाएगा। इनसेंटिव, पुरस्कार, कर में छूट इत्यादि जैसे सक्रिय उपायों द्वारा निजी क्षेत्रों में विकलांग व्यक्तियों को रोजगार सृजन के लिए बढ़ावा दिया जाएगा।

(iii) स्व-रोजगार

संगठित क्षेत्र में विकलांग लोगों के रोजगार के अवसरों के विकास की धीमी दर को देखते हुए, स्व-रोजगार के अवसरों को बढ़ावा दिया जाएगा। ऐसा व्यावसायिक शिक्षा तथा प्रबंधन प्रशिक्षण के जरिए किया जाएगा। इसके अलावा एनएचएफडीसी से आसानी से ऋण मुहैय्या कराने की मौजूदा प्रणालियों से यह काफी पारदर्शक और दक्ष प्रक्रिया बन गई है। सरकार इंसेंटिव, कर से छूट, ड्यूटी से छूट, विकलांगों के लिए सेवा देने वाले तथा सामान बनाने वाले उपक्रमों को सरकार द्वारा बढ़ावा देकर, सरकार स्व-रोजगार को प्रोत्साहित करेगी। विकलांगों द्वारा बनाए स्वयं-सहायता समूह के लिए वित्तीय सहायता को प्राथमिकता दी जाएगी।

विकलांग महिलाएं

२९. जनगणना -2001 के मुताबिक, देश में 93.01 लाख विकलांग महिलाएं हैं जो कुल विकलांग आबादी का 42.46% हिस्सा निर्मित करती हैं। विकलांग महिलाओं को शोषण व दुर्व्यवहार से बचाने की जरूरत है। विकलांग महिलाओं की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए शिक्षा, रोजगार तथा अन्य पुनर्वास सेवाओं के विकास के लिए विशेष कार्यक्रम चलाए जाएंगे। विशेष शिक्षा तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण सुविधाओं की स्थापना की जाएगी। परित्यक्त विकलांग महिलाओं/लड़कियों के पुनर्वास के लिए कार्यक्रम चलाए जाएंगे, जहां परिवारों द्वारा उन्हें स्वीकार करने, उनके निवास में मदद करने और लाभप्रद रोजगार योग्यताओं को हासिल कराने के प्रयास किए जाएंगे। सरकार उन परियोजनाओं को प्रोत्साहित करेगी जहां विकलांग महिलाओं के प्रतिनिधि को कम से कम कुल लाभ का 25% तक प्रदान किया जा सके।

३०. विकलांग महिलाओं के लिए कम समय के लिए रहने के लिए घर, नौकरी-पेशा महिला के लिए हॉस्टल तथा बुजुर्ग विकलांग महिलाओं के लिए घर प्रदान करने के लिए कदम उठाए जाएंगे।

३१. यह देखा गया है कि विकलांगता से ग्रस्त महिलाओं में उनके बच्चों की देखभाल की गंभीर समस्या होती है। सरकार ऐसी विकलांग महिलाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करेगी, ताकि वे अपने बच्चों के परवरिश के लिए आवश्यक सेवाओं को उपलब्ध करा सके। ऐसी सहायता अधिकतम दो सालों तक 2 बच्चों के लिए मुहैय्या कराई जाएगी।

विकलांग बच्चे

३२. विकलांगता के शिकार बच्चे सबसे अधिक संवेदनशील समूह के होते हैं और उन्हें विशेष देखभाल की जरूरत होती है। इसके लिए सरकार निम्नांकित कदम उठाएगी:

1. विकलांग बच्चों की देखभाल, सुरक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करेगी;

2. गरिमा तथा समानता के लिए विकास के अधिकार को सुनिश्चित किया जाएगा, ताकि एक सक्षम वातावरण का निर्माण किया जाए जहां विक्लांग बच्चे अपने अधिकार की पूर्ति कर सके और विभिन्न कानूनों के अनुरूप समान अवसरों का लाभ उठाकर पूर्ण भागीदारी प्रदर्शित कर सके।

3. विकलांग  बच्चों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यावसायिक प्रशिक्षण के साथ विशेष पुनर्वास सेवाओं को शामिल किया जाएगा। गंभीर विकलांगता के शिकार बच्चों के लिए विकास के

4. अधिकार तथा विशेष आवश्यकताओं व देखभाल, सुरक्षा को सुनिश्चित किया जाएगा।



३३. अवरोध-मुक्त वातावरण से विकलांग व्यक्ति सुरक्षित तथा आसानीपूर्वक चल-फिर सकते हैं। अवरोधमुक्त डिजाइन का उद्देश्य है कि विकलांग लोगों को ऐसा वातावरण प्रदान किया जाए जहां वे अपनी दैनिक गतिविधियों में बिना किसी सहायता के गमन कर सकें। इसलिए जितना अधिक संभव हो, सार्वजनिक भवनों, स्थानों, परिवहन प्रणालियों को अवरोध मुक्त रखा जाएगा।


विकलांगता प्रमाणपत्र जारी करना

३४. भारत सरकार ने विकलांगता के मूल्यांकन व प्रमाणपत्र के लिए दिशा-निर्देश जारी किये हैं। इसके तहत सरकार सुनिश्चित करेगी कि विकलांग व्यक्ति कम से कम समय में बिना किसी परेशानी के विकलांगता प्रमाणपत्र प्राप्त कर सके, जिसके लिए सरल, पारदर्शक व ग्राहकोन्मुख प्रक्रियाओं को लागू किया जाएगा।

सामाजिक सुरक्षा

३५. विकलांग व्यक्तियों, उनके परिवार तथा उनकी देखभाल करने वालों को पर्याप्त अतिरिक्त व्यय राशि दी जाएगी ताकि वे दैनिक कार्यों, मेडिकल देखभाल, परिवहन, सहायक उपकरणों को खरीद सकें। इसलिए उन्हें सामाजिक सुरक्षा देने की आवश्यकता है। केंद्र सरकार विकलांग व्यक्तियों व उनके अभिभावकों को करों में छूट दे रही है। राज्य सरकार/ केंद्र शासित प्रदेशों  को बेरोजगार भत्ता या विकलांगता पेंशन मुहैया कराया जा रहा है। राज्य सरकारों को विकलांगों के लिए एक व्यापक सामाजिक सुरक्षा नीति के विकास के लिए बढ़ावा दिया जाएगा।

३६. ऑटिज्म, सेरीब्रल पाल्सी, मानसिक मंद तथा बहु-विकलांगता के शिकार बच्चों के माता-पिता अपनी मृत्यु के बाद ऐसे बच्चों की देखभाल को लेकर काफी असुरक्षित महसूस करते हैं। ऑटिज्म, सेरीब्रल पाल्सी, मानसिक मंद तथा बहु-विकलांगता के लिए राष्ट्रीय ट्रस्ट स्थानीय स्तर की समिति द्वारा कानूनी अभिभावकत्व प्रदान करता आ रहा है। वे सहायता प्राप्त अभिभावकत्व योजना का भी क्रियान्वयन कर रहे हैं, ताकि दरिद्र तथा परित्यक्त व्यक्ति जिनमें उपरोक्त गंभीर विकलांगता हो, उन्हें वित्तीय मदद की जा सके। यह योजना मौजूदा समय में कुछ जिलों में लागू की जा रही है, अब इसे योजनाबद्ध तरीके से अन्य क्षेत्रों में भी प्रसारित किया जाएगा।


गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) को प्रोत्साहन

३७. राष्ट्रीय नीति गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) को एक काफी अहम संस्थानिक प्रणाली के रूप में मानती है, जो सरकार के प्रयासों को लागू करने का एक सस्ता माध्यम है।

एनजीओ सेक्टर गतिशील व उदयीमान क्षेत्र है। विकलांग व्यक्ति को सेवा देने के प्रावधान में इसने एक अहम भूमिका निभाई है। कुछ एनजीओ मानव संसाधन विकास तथा अनुसंसाधन कार्य संचालित कर रहे हैं। सरकार भी उन्हें सक्रिय रूप से नीति के सूत्रीकरण, योजना, क्रियान्वयन, निगरानी में शामिल किया है और विकलांगता से जुड़े कई मुद्दे पर उनसे परामर्श प्राप्त कर रही है। एनजीओ के साथ कार्य-व्यवहार को विकलांगता से जुड़े योजना, नीति सूत्रीकरण तथा क्रियान्वयन के क्षेत्र में बढ़ाया जाएगा। नेटवर्किंग, सूचनाओं के आदान-प्रदान तथा एनजीओ के बीच अच्छे कार्य पद्धतियों को साझा करने की प्रयास को प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके लिए निम्न कार्यक्रम संचालित किए जाएंगे:


1. विकलांगता के क्षेत्र में काम करने वाले एनजीओ का एक निर्देशिका तैयार किया जाएगा, जहां उनके प्रमुख कार्यों के साथ उनके कार्य क्षेत्र का भी उल्लेख किया जाएगा। केंद्र/राज्य सरकारों द्वारा समर्थित एनजीओ के लिए उनके संसाधन स्थिति, वित्तीय तथा मानव बल की भी सूचना दी जाएगी। विकलांग व्यक्तियों के संगठन, पारिवारिक संघों तथा उनके माता-पिता का समर्थन करने वाले समूह को भी इस निर्देशिका में शामिल किया जाएगा, जहां उनका अलग से उल्लेख किया जाएगा।
ii.     एनजीओ के कार्यों के विकास में क्षेत्रीय/राज्य असुंतलन मौजूद है। अनारक्षित तथा सुदूर इलाकों में इस दिशा में काम करने वाले एनजीओ को प्रोत्साहित किया जाएगा तथा उनका संदर्भ प्रस्तुत किया जाएगा। प्रतिष्ठित एनजीओ को भी ऐसे इलाकों में काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
iii.     एनजीओ को न्यूनतम मानक, आचार संहिता तथा नैतिकता के विकास के लिए बढ़ावा दिया जाएगा।
iv.     एनजीओ को उनके कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण तथा जानकारी प्रदान करने के अवसर प्रदान किए जाएंगे। प्रबंधन क्षमता की प्रशिक्षण पहले से दी जा रही है, इसे और भी मजबूत बनाया जाएगा। पारदर्शिता, जिम्मेदारी, प्रक्रिया की सरलता इत्यादि एनजीओ-सरकार के सहयोग के दिशा-निर्देशक कारक होंगे।

v . एनजीओ को उनके संसाधन को विकास करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा ताकि सरकार से मिलने वाली वित्तीय सहायता पर उनकी निर्भरता कम की जा सके तथा इस क्षेत्र में फंड की उपलब्धता में भी सुधार किया जा सके। एक योजनाबद्ध तरीके से एनजीओ को मिलने वाली सहायता में कमी करना होगा ताकि उपलब्ध संसाधनों के भीतर मदद की जाने वाली एनजीओ की संख्या अधिकतम हो। इस दिशा में एनजीओ को संसाधन के एकत्रण के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा


विकलांग व्यक्तियों से जुड़ी जानकारी का नियमित संग्रह

३८. विकलांग व्यक्तियों के सामाजिक दशा प्रकाशन तथा विश्लेषण की आवश्यकता है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन वर्ष 1981 से नियमित रूप से हर दस साल पर एक बार विकलांग व्यक्तियों की सामाजिक दशा से जुड़े आंकड़ों का नियमित संग्रह, प्रकाशन तथा विश्लेषण करता है। जनगणना-2001 से भी जनगणना में विकलांग व्यक्ति की सूचनाओं को एकत्र किया जाने लगा है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन को पांच साल में एक बार विकलांगता के शिकार व्यक्तियों की सूचनाएं एकत्र करनी होगी। दोनों एजेंसियों के आंकड़ों के बीच के अंतर को मिलाया जाएगा।

३९. सामाजिक न्याय तथा अधिकारिता मंत्रालय के तहत विकलांग व्यक्तियों के लिए एक व्यापक वेबसाइट का निर्माण किया जाएगा। सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र के संगठनों को ऐसी वेबसाइट बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा, जिसे दृष्टि विकलांग व्यक्ति स्क्रीन रीडिंग तकनीक के जरिए पढ़ सके।


अनुसंधान

४०. विकलांगता के शिकार व्यक्तियों के जीवन में सुधार लाने के लिए उनकी सामाजिक-आर्थिक दशा तथा सांस्कृतिक संदर्भ, विकलांगता के कारण, आरंभिक बाल शिक्षा विधि, प्रयोक्ता हितैषी यंत्रों-उपकरणों और विकलांगता से जुड़े सभी मामलों पर अनुसंधान कार्य किए जाएंगे, जो उनके जीवन की गुणवत्ता में अहम बदलाव लाएगा व उनकी चिंताओं के प्रति नागरिक समाज की प्रतिक्रिया में सुधार होगा। जहां कहीं भी विकलांगता के शिकार व्यक्तियों के ऊपर अनुसंधान कार्य या चिकित्सा कार्य संपन्न किए जाने होंगे, उनके माता-पिता या अभिभावक से इसकी अनुमति अवश्य लेनी होगी।


खेल-कूद, मनोरंजन तथा सांस्कृतिक जीवन

४१. उपचारात्मक तथा सामुदायिक भावना के विकास के लिए खेल-कूद की भूमिका अहम होती है। विकलांग व्यक्तियों को खेल-कूद, मनोरंजन तथा सांस्कृतिक सुविधाओं का लाभ उठाने का पूरा अधिकार है। सरकार उन्हें विभिन्न खेल-कूदों, मनोरंजन तथा सांस्कृतिक गतिविधियों में  भाग लेने हेतु अवसर प्रदान करने के लिए आवश्यक कदम उठाएगी।


विकलांगता से निपटने वाले मौजूदा अधिनियमों में सुधार

४२. विकलांग (समान अवसर, अधिकारों की सुरक्षा तथा पूर्ण भागीदारी) अधिनियम 1995 को पास हुए दस साल बीत गए हैं। इस कानून को लागू करने तथा विकलांगता के क्षेत्र में हुए प्रगति से मिले अनुभव से इस अधिनियम में कुछ संशोधन आवश्यक हो गए हैं। इससे जुड़े उपक्रमों के परामर्श के बाद ये सुधार संपन्न किये जाएगे। आरसीआई तथा राष्ट्रीय ट्र्स्ट अधिनियम की भी समीक्षा की जाएगी और आवश्यकता पड़ने पर उनमें संशोधन भी किया जाएगा।

बदलाव के मुख्य क्षेत्र

रोकथाम, आरंभिक पहचान तथा उपचार

४३. विकलांगता की रोकथाम तथा आरंभिक पहचान के लिए निम्न कार्य संपन्न किए जाएंगे:

1. टीकाकरण (बच्चों तथा होने वाली मां के लिए), सार्वजनिक स्वास्थ्य व स्वच्छता के प्रसार के लिए राष्ट्रीय, क्षेत्रीय तथा स्थानीय कार्यक्रम चलाए जाएंगे।

2. बच्चों में विकलांगता की जल्दी पहचान करने के लिए मेडिकल तथा पारा-मेडिकल स्टाफ को समुचित प्रशिक्षण दिया जाएगा।

3. विकलांगता की रोकथाम, आरंभिक पहचान तथा उपचार  के लिए  प्रशिक्षण मॉड्यूल तथा सुविधाओं का विकास किया जाएगा, जो मेडिकल तथा पारा-मेडिकल स्वास्थ्य कर्मचारियों व आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए तैयार किए जाएंगे।

4. मेडिकल शिक्षा में उत्तरस्नातक तथा अंतरस्नातक डिग्री पाठ्यक्रम में विकलांगता की रोकथाम, आरंभिक पहचान व उपचार के अध्याय भी शामिल किए जाएंगे।

5. विकलांग व्यक्ति के परिवार के लिए विकांगला से जुड़े विशेष पुस्तिका का विकास किया जाएगा तथा इसे निःशुल्क बांटा जाएगा।

6. मानव संसाधन विकास संस्थान यह सुनिश्चित करता है कि सहायक सेवाओं- जैसे विशेष शिक्षा, क्लिनिकल मनोविज्ञान, फीजियोथेरॉपी, व्यावसायिक थेरॉपी, ऑडियोलॉजी, स्पीच पैथॉलॉजी, व्यावसायिक परामर्श व प्रशिक्षण तथा
तथा सामाजिक कार्य प्रदान करने वाले कर्मचारी पर्याप्त संख्या में उपलब्ध हों।

7. आनुवंशिक विज्ञान में किए अद्यतन शोध परिणामों का इस्तेमाल जन्मजात विकलांगता तथा मानसिक अपंगता को कम करने में किया जाएगा।

8. विकलांगता के प्रभाव को कम करने तथा द्वितीयक विकलांगता को रोकने के लिए मौजूदा स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में उचित कदम उठाए जाएंगे।

9. किशोर लड़कियों, होने वाली मांओं तथा जनन अवस्था वाली महिलाओं में पोषण, स्वास्थ्य देखभाल तथा स्वच्छता के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाने पर ध्यान दिया जाएगा। इसकी रोकथाम के लिए जागरूकता कार्यक्रम को स्कूल स्तर पर तथा शिक्षकों के प्रशिक्षण पाठ्यक्रम स्तर पर तैयार किया जाएगा।

10. खतरों की पहचान करने के लिए बच्चों के जांच कार्यक्रम आयोजित जाएंगे।


पुनर्वास के कार्यक्रम

४४. मेडिकल तथा पुनर्वास कार्यकर्ताओं, व विकलांगों और उनके परिवारजनों, कानूनी अभिभावकों तथा समुदायों के साथ सहयोग कर मेडिकल, शैक्षिक तथा सामाजिक पुनर्वास कार्यक्रमों का विकास किया जाएगा। सरकारी कार्यक्रमों के कंवर्जेंस को सुनिश्चित किया जाएगा तथा निम्न विशेष उपाय किए जाएंगे:


  1. मानव संसाधन विकास, अनुसंधान तथा दीर्घ काल के लिए विशेष पुनर्वास समेत संयुक्त पुनर्वास सेवाएं मुहैया कराने के लिए राज्य स्तरीय केंद्रों की स्थापना की जएगी।
  2. समुदाय आधारित पुनर्वास कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाएगा। विकलांगों तथा उनके परिवारों/ देखभालकर्ताओं के स्वयं सहायता समूहों को पुनर्वास की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल किया जाएगा।
  3. एनजीओ की सहायता से जिला स्तर पर पंचायती राज संस्थान द्वारा गंभीर रूप से मानसिक अपंग व्यक्तियों के लिए मानसिक आरोग्य सेवा गृहों की स्थापना को बढ़ावा दिया जाएगा।
  4. मानसिक अपंगता से जूझ रहे व्यक्तियों के व्यावसायिक तथा सामाजिक योग्यता के प्रशिक्षण के लिए आवासीय पुनर्वास केंद्रों की भी स्थापना की जाएगी। इसके स्थान पर ऐसे मानसिक अपंग व्यक्तियों को, जिन्हें कोई सामुदायिक/ पारिवारिक सहायता प्राप्त नहीं है, उनके लिए परिवार सहायता समूहों के निर्माण को भी बढ़ावा दिया जाएगा।

    मानव संसाधन विकास

४५. निम्न क्षेत्रों में मानव बल का विकास किया जाएगा-

1. आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, सहायक नर्सों (दाइयों) इत्यादि समेत स्वास्थ्य सेवा तथा समुदाय विकास के क्षेत्र में प्राथमिक स्तर के कार्यकर्ताओं की प्रशिक्षण।

2. सेवा प्रदान करने वाले सरकारी कर्मचारी तथा एनजीओ के लिए प्रशिक्षण तथा ओरिएंटेशन की सहायता।

3. समुदाय के निर्णय-निर्माण प्रक्रिया में भाग लेने वालों जैसे- पंचायतों, परिवार के मुखिया इत्यादि के लिए प्रशिक्षण तथा सुग्राहिता कार्यक्रम।

4. परिवार के सदस्यों कि देखभालकर्ता के रूप में प्रशिक्षण तथा ओरिएंटेशन।

४६. समावेशिक शिक्षा, विशेष शिक्षा, घर आधारित शिक्षा, स्कूल पूर्व की शिक्षा इत्यादि की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मानव संसाधनों को प्रशिक्षित किया जाएगा। विभिन्न स्पेशलाइजेशन तथा स्तरों वाले निम्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों का विकास किया जाएगा:

1. समावेशित शिक्षा के लिए शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण मॉड्यूल।

2. विशेष शिक्षा में डिप्लोमा, डिग्री तथा उच्च स्तरीय कार्यक्रम।

3. विकलांग व्यस्क/ वरिष्ठ नागरिकों इत्यादि के घर आधारित शिक्षा तथा देखभाल सेवाओं देने वालों के लिए प्रशिक्षण।


४७. पुनर्वास कर्मचारियों की प्रशिक्षण के लिए योजना निर्माण में भारतीय पुनर्वास परिषद् नोडल एजेंसी की भूमिका निभाएगा। विकलांगता से जुड़े प्रशिक्षण कार्यक्रम में राष्ट्रीय संस्थानों की भूमिका को स्पष्ट रूप से निर्धारित किया जाएगा और इसके लिए पंच-वर्षीय कार्य योजना का विकास किया जाएगा

विकलांगों के शिक्षा
    ४८. यह सुनिश्चित किया जाएगा कि वर्ष 2020 तक हरेक विकलांग बच्चे को प्री-स्कूल, प्राथमिक तथा माध्यमिक (सेकेंडरी) स्तर की शिक्षा प्राप्त हो सके। इस दिशा में निम्नांकित पर ध्यान दिया जाएगा:
      1. स्कूलों को (भवनों, मार्गों, शौचालयों, खेल के मैदानों, प्रयोगशालाओं, पुस्तकालयों इत्यादि को ) अवरोध मुक्त करना ताकि सभी प्रकार के विकलांग वहां पहुंच सकें।

      2. पढ़ाने के माध्यम तथा विधि को सही तरह से अपनाया जाएगा ताकि वे अधिकतर विकलांगता परिस्थितियों पर खरा उतरे।

      3. स्कूल या कई स्कूलों के आसानी से पहुंच में आने वाले केंद्रों पर पढ़ाने/सिखाने के तकनीकी/ पूरक/ विशेष प्रणाली उपलब्ध कराई जाएगी।

      4. तकनीकी/ सिखाने वाले यंत्र औजार, जैसे खिलौने, ब्रेल, टॉकिंग बुक, उचित सॉफ्टवेयर इत्यादि भी उपलब्ध कराये जाएंगे। सामान्य पुस्तकालय, ई-लाइब्रेरी, ब्रेल-लाइब्रेरी तथा टॉकिंग बुक लाइब्रेरी, संसाधन कक्ष की स्थापना के लिए सहायता प्रदान की जाएगी।

      5. राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय तथा दूर शिक्षा कार्यक्रम को लोकप्रिय बनाया जाएगा और उसे देश के अन्य भागों में भी फैलाया जाएगा।

      6. एक-दूसरे के साथ बात करने के लिए मूक- बधिरों की संकेत भाषा, वैकल्पिक तथा संवर्धी बातचीत (AAC) व अन्य माध्यमों को एक प्रभावी माध्यम के रूप में पहचान दी जाएगी, उनका मानकीकरण किया जाएगा तथा उन्हें लोकप्रिय बनाया जाएगा।

      7. स्कूल की स्थापना आसानी से पहुंचने वाली दूरी पर की जाएगी। अन्यथा समुदाय, राज्य तथा एनजीओ के सहयोग से परिवहन व्यवस्था की जाएगी।

      8. स्कूलों में माता-पिता-शिक्षक के बीच परामर्श तथा परेशानी से निपटने की प्रणाली की स्थापना की जाएगी।

      9. प्राथमिक, मध्य विद्यालय तथा उच्च स्तरीय शिक्षा में विकलांग छात्राओं की दाखिला तथा उनके उपस्थित होने के आंकड़े को वार्षिक रूप से समीक्षा की जाएगी।

      10. विकलांगता से प्रभावित कई बच्चे, जो समावेशिक शिक्षा प्रणाली में भाग नहीं ले सकते, उन्हें विशेष स्कूलों के जरिए शिक्षा प्रदान की जाएगी। स्पेशल स्कूलों में सही तरह से सुधार लाये जाएंगे जो तकनीकी विकास पर आधारित होगा। ये स्कूल विकलांग बच्चों को मुख्यधारा की समावेशिक शिक्षा के लिए तैयार करने में मदद करेंगे।

      11. कुछ मामलों में विकलांगता की प्रकृति (इसके प्रकार तथा गंभीरता के कारण), निजी परिस्थितियों तथा प्राथमिकताओं के कारण घर आधारित शिक्षा प्रदान की जाएगी।

      12. विभिन्न प्रकार की विकलांगता के शिकार बच्चों के लिए पाठ्यक्रम तथा मूल्यांकन प्रणाली का विकास किया जाएगा, जिसमें उनकी क्षमता पर ध्यान रखा रखा जाएगा।  परीक्षा प्रणाली में सुधार लाया जाएगा ताकि यह विकलांगों के अनुकूल बन सके- जैसे सीखने वाला गणित, केवल एक एक भाषा सीखने का प्रावधान करना। इसके अलावा अतिरिक्त समय, कैलकुलेटर का इस्तेमाल, क्लार्क टेबल का इस्तेमाल, स्काइब्स इत्यादि की आवश्यकतानुसार आपूर्ति की जाएगी।


      13. प्रत्येक राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में समावेशिक शिक्षा का मॉडल स्कूल खोला जाएगा, ताकि विकलांग लोगों की शिक्षा को बढ़ावा मिल सके।
      नॉलेज सोसाइटी के इस दौर में कम्प्यूटर एक अहम भूमिका निभाता है। यह प्रयास किया जाएगा कि प्रत्येक विकलांग बच्चा को उचित रूप से कम्यूटर का इस्तेमाल करने का अवसर मिले।

      14. 6 वर्ष की आयु तक के विकलांग बच्चों की पहचान की जाएगी तथा उनके लिए आवश्यक चिकित्सा उपाय किए जाएगें ताकि वे समावेशिक शिक्षा में शामिल होने के लिए सक्षम बन सकें।

      15. मानसिक रूप से अपंग बच्चों के लिए मनो-सामाजिक पुनर्वास केंद्रों पर शैक्षिक सुविधाएं प्रदान की जाएगी।

      16. विकलांक बच्चों की क्षमता के बारे में जानकारी के अभाव में कई स्कूल ऐसे बच्चों को अपने यहां दाखिला लेने से हिचकते हैं। शिक्षकों, प्राचार्यों तथा स्कूल के अन्य कर्मचारियों को सुग्राही बनाने के लिए कार्यक्रम चलाए जाएंगे।

      17. सामाजिक न्याय तथा अधिकारिता मंत्रालय द्वारा सहायता प्रदत्त विशेष विद्यालय वर्तमान में समावेशिक शिक्षा के संसाधन केंद्र बन गए हैं। मानव संसाधन विकास मंत्रालय आवश्यकतानुसार नये विशेष स्कूल की स्थापना करेगा।

      18. वयस्क शिक्षा/ सीखने में गंभीर रूप से अक्षम वयस्कों के लिए अवकाश केंद्र को प्रोत्साहित किया जाएगा।

      19. उच्च शिक्षा में दाखिले के लिए विकलांगों के लिए 3% का आरक्षण लागू किया जाएगा। विश्वविद्यालय, कॉलेज तथा व्यावसायिक संस्थानों को विकलांकता केंद्र खोलने में वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी, ताकि विकलांग छात्रों के शिक्षा जरूरत की पूर्ति की जा सके।

      20. शिक्षकों की परिचय तथा सेवा प्रशिक्षण में विकलांग बच्चों के प्रबंधन से जुड़े मुद्दों पर एक मॉड्यूल शामिल किया जाएगा। उन्हें विकलांग छात्रों के क्लास रूम, हॉस्टल, कैफेटेरिया तथा अन्य सुविधाएं मुहैया कराने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।।

      ४९. मानव संसाधन विकास मंत्रालय नोडल मंत्रालय होगा जो विकलांगों से जुड़ी शिक्षा के सभी मामलों को देखेगा।


       रोजगार

      ५०. विकलांग व्यक्तियों के रोजगार के लिए निम्न उपाय किए जाएंगे:

      1. सरकार निजी क्षेत्रों के संगठनों के साथ एक बातचीत आरंभ करेगी, ताकि विकलांगों को रोजगार मिलने में मदद की जा सके।

      2. विकलांग लोगों के लिए खासकर गंभीर रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिए घर आधारित आय सृजन कार्यक्रम का संचालन करेगी। विकलांग तथा उनके लिए सेवा प्रदाता व्यक्तियों के रोजगार के लिए कोचिंग की व्यवस्था भी की जाएगी।

      3. विकलांग व्यक्तियों के लिए मशीनरी, कार्य स्थान तथा कार्य वातावरण में आवश्यक सुधार करना ताकि ऐसे व्यक्ति प्रशिक्षण केंद्रों/ कारखानों/ उद्योगों/ कार्यालयों इत्यादि में बिना व्यवधान के आ-जा सके।

      4. उचित एजेंसियों जैसे- मार्केटिंग बोर्ड, जिला ग्रामीण विकास एजेंसी, निजी एजेंसी व विकलांगों द्वारा निर्मित मालों तथा सेवाओं की मार्केटिंग में शामिल गैर-सरकारी संगठनों के जरिए सहायता प्रदान की जाएगी।

      5. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों में विकलांगों को शामिल किया जाएगा, ताकि वे संविधान द्वारा तय 3% की उन्हें भी भागीदारी मिल सके।



      अव अवरोध रोध-मुक्त वातावरण

      ५१. अवरोध मुक्त वातावरण के निर्माण के लिए निम्न रणनीतियां अपनाई जाएंगी:

      (i) सार्वजनिक भवन (कार्यात्मक या मनोरंजनात्मक), परिवहन सुविधाएं, जैसे सड़क, सब-वे तथा फुटपाथ, रेलवे प्लेटफॉर्म, बस स्टॉप/ टर्मिनस/ बंदरगाह/ हवाई अड्डे, परिवहन के माध्यम (बस, ट्रेन, वायुयान तथा जहाजों), खेल के मैदान, खुले स्थान इत्यादि को विकलांग व्यक्तियों के लिए आसानी से पहुंच लायक बनाया जाएगा।

      (ii) सभी सार्वजनिक कार्यों में संकेत भाषा के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाएगा।

      (iii) विकलांगों के लिए अवरोध मुक्त भवन बनाने वास्तुशास्त्र तथा नागरिक निर्माण इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम में सुधार लाया जाएगा। इन मुद्दों पर सरकारी आर्किटेक्ट तथा इंजीनियरों को सेवा प्रशिक्षण प्रदान किया जाए

      (v) व्यापक निर्माण उपकानूनों तथा स्थान मानकों का अनुपालन कर अवरोध मुक्त वातावरण का निर्माण किया जाएगा। देश के सभी राज्यों, नगर निकायों तथा पंचायती राज संस्थानों द्वारा उपकानूनों तथा स्थान मानकों का अनुपालन करने के लिए आवश्यक प्रयास किए जाएंगे। ये प्राधिकरण सुनिश्चित करेंगे कि सभी नए निर्मित सार्वजनिक भवन अवरोध मुक्त हों।

      (vi) राज्य परिवहन उपक्रम, अपने वाहनों में विकलांग व्यक्तियों के लिए सुविधाजनक परिवर्तन लाएंगे। रेलवे योजनाबद्ध तरीके से अवरोध मुक्त कोचों की शुरुआत करेगा। वे प्लेटफॉर्म निर्माण, टॉयलेट तथा अन्य अवरोध मुक्त सुविधाएं मुहैया कराएंगे।

      (vii) सरकार सुनिश्चित करेगी कि सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र के औद्योगिक प्रतिष्ठान, कार्यालय, सार्वजनिक उपक्रम अपने कर्मचारियों के लिए विकलांग हितैषी कार्य स्थल प्रदान करेंगे। सुरक्षा मानकों का निर्धारण किया जाएगा तथा उनका कड़ाई से पालन किया जाएगा।

      (viii) देश में विकलांगता हितैषी आइटी वातावरण को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।

      (ix) सभी भवन जो सार्वजनिक उपयोग हेतु होते हैं, उनकी जांच की जाएगी कि क्या वे विकलांग व्यक्तियों की सुविधाओं को ध्यान में रखकर बनाने गए हैं या नहीं। ऐसे दक्ष व्यक्तियों के विकास की आवश्यकता है, जो ऐसे भवनों की जांच कर सके।

      (x) विकलांग व्यक्तियों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए बैंकिंग प्रणाली को प्रोत्साहन दिया जाएगा।

      (xi) विकलांग व्यक्तियों की संचार जरूरतों की पूर्ति सूचना सेवा तथा सार्वजनिक दस्तावेज को आसान बनाकर की जा सकती है। दृष्टि विकलांगों को सूचना प्रदान करने के लिए ब्रेल, टेप-सर्विस, बड़े प्रिंट तथा अन्य उचित तकनीकों का इस्तेमाल किया जाएगा।


      सामाजिक सुरक्षा

      ५२. विकलांग व्यक्तियों को समुचित सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए निम्न उपाय किए जाएंगे:

      1. विकलांग व्यक्तियों के लिए मंजूर की गई नीतियों की नियमित समीक्षा की जाएगी ताकि ऐसे व्यक्तियों को आवश्यक आयकर तथा अन्य कर राहत उपलब्ध होती रहे।

      1. राज्य सरकार तथा केंद्र शासित प्रदेशों को विकलांगों के लिए पेंशन राशि तथा बेरोजगार भत्ता प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।

      2. भारतीय जीवन बीमा निगम विशेष प्रकार के विकलांग व्यक्तियों को बीमा सुरक्षा प्रदान करता आ रहा है। अन्य बीमा एजेंसियों द्वारा भी विकलांगों को ऐसी बीमा कवरेज प्रदान करने की आवश्यकता पर बल डाला जाएगा।


      अनुसंधान

      ५३. जहां भी आवश्यक होगा, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से विकलांगों के लिए नई तकनीक के विकास के लिए अनुसंधान कार्य संपन्न किए जाएंगे। इन अनुसंधानों के परिणामों का व्यापक प्रसार किया जाएगा। यह निम्न आयामों पर केंद्रित होंगे:

      1. विकलांगता के सामाजिक-सांस्कृतिक आयाम, जिनमें शामिल होंगे विकलांगों के प्रति सामाजिक नजरिये तथा व्यवहारगत पैटर्न का अध्ययन।

      2. विकलांगों की शिक्षा से जुड़े सामाजिक संकेतकों का विकास ताकि आने वाली समस्याओं का विश्लेषण किया जाए और पहुंच तथा अवसर को बढ़ाने के लिए कार्यक्रम का विकास किया जा सके।

      3. विकलांगता के प्रकारों, खासकर ऐसे व्यक्ति जो दुर्घटनावश तथा अन्य आपत्तियों से विकलांग होते हैं, उसके आधार पर रोजगार की दशा के बारे में जानकारी इकट्ठा की जाएगी।

      4. विभिन्न प्रकारों तथा स्तरों की विकलांगता के मामलों का अध्ययन।

      5. विकलांगता के मामलों को कम करने के लिए भारतीय मेडिकल अनुसंधान परिषद् के अधीन आनुवंशिक अनुसंधान।

      6.  व्यक्तिगत गत्यात्मकता, मौखिक/ अमौखिक संवाद, दैनिक उपयोग की वस्तुओं के डिजाइन में परिवर्तन इत्यादि पर केंद्रित उपयुक्त तकनीकी अनुसंधान, जहां प्रमुख तकनीकी संस्थानों की मदद से सस्ते, प्रयोक्ता हितैषी व टिकाऊ यंत्र तथा उपकरणों का निर्माण किया जाए


      ५४. विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी मंत्रालय, पुनर्वास तकनीकी केंद्र का गठन करेगा, जो चालू अनुसंधान तथा विकास, परीक्षण तथा तकनीकी प्रमाणन, प्रशिक्षण इत्यादि के बीच समन्वय का कार्य करेगा। विकलांग व्यक्तियों द्वार सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल के लिए उचित हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर का विकास किया जाएगा।


      खेल-कूद, मनोरंजन तथा सांस्कृतिक क्रियाकलाप

      ५५. खेलकूद, मनोरंजन तथा सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए समान अवसरों को सुनिश्चित करने के लिए निम्न कदम उठाए जाएंगे:

      i . मनोरंजन, सांस्कृतिक गतिविधियों तथा खेलकूद, हॉस्टल, समुद्र तट, स्पोर्ट एरीना, ऑडिटोरियम, जिम हॉल इत्यादि को विकलांग व्यक्तियों की पहुंच के लायक बनाना।
      ii . ट्रैवेल एजेंसी, होटल, स्वयंसेवी संगठनों व यात्रा अवसरों के आयोजन में शामिल अन्य संहठनों को अपनी सेवाएं सभी के लिए खोलनी चाहिए, जिनमें विकलांग व्यक्तियों की आवश्यकताओं का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।
      iii . स्थानीय एनजीओ की सहायता से विभिन खेलों में विकलांग व्यक्तियों की क्षमता की पहचान की जानी चाहिए।
      iv . विकलांग व्यक्तियों के लिए स्पोर्ट ऑर्गेनाइजेशन तथा सांस्कृतिक सोसाइटी के निर्माण को बढ़ावा दिया जाएगा। राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय समारोहों में विकलांगों के भाग लेने के लिए आवश्यक प्रणाली को लागू किया जाएगा।
      v . खेल-कूद में विकलांग व्यक्तियों के उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय अवार्ड का गठन किया जाएगा।

      ५६. नीति के क्रियान्वयन से जुड़े सभी मुद्दों के लिए सामाजिक न्याय तथा अधिकारिता मंत्रालय नोडल मंत्रालय के रूप में कार्य करेगा।



       ५७. राष्ट्रीय नीति के क्रियान्वयन से जुड़े मामलों के बीच समन्वय के लिए एक अंतर-मंत्रालय निकाय का गठन किया जाएगा। सभी प्रतिभागी जिनमें प्रतिष्ठित एनजीओ, विकलांग लोगों का संगठन, समर्थन समूह तथा माता-पिता/ अभिभावक विशेषज्ञ तथा पेशेवरों के प्रतिनिधियों को इस निकाय में शामिल किया जाएगा। ऐसी ही व्यवस्था राज्य स्तर तथा जिला स्तरों पर की  जाएगी। नीति के क्रियान्वयन से जुड़े मामलों को देखने के लिए जिला विकलांगता पुनर्वास केंद्रों के जिला स्तरीय समितियों में पंचायती राज संस्थानों तथा शहरी निकाय को भी जोड़ा जाएगा।

      ५८. गृह मंत्रालय, स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण मंत्रालय , ग्रामीण विकास मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय, युवा तथा खेल मामलों का मंत्रालय, रेलवे मंत्रालय, विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी मंत्रालय, सांख्यिकी तथा कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय, श्रम मंत्रालय, पंचयती राज मंत्रालय व प्राथमिक शिक्षा तथा साक्षरता विभाग, माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा मंत्रालय, सड़क परिवहन तथा राजमार्ग मंत्रालय, सार्वजनिक उपक्रम, राजस्व, महिला तथा बाल विकास मंत्रालय, सूचना प्रौद्योगिकी व कर्मचारी व  नीति के क्रियान्वयन के लिए आवश्यक प्रणाली का निर्माण करेंगे। प्रत्येक मंत्रालय/ विभागों द्वारा एक पंच-वर्षीय योजना तथा वार्षिक योजना का निर्माण किया जाएगा, जिसके तहत वित्तीय आवंटन किया जाएगा। इन मंत्रालयों/ विभागों की वार्षिक रिपोर्ट वर्ष के दौरान प्राप्त सफलता का उल्लेख करेगी।


       ५९. केंद्रीय स्तर पर मुख्य विकलांगता आयुक्त तथा राज्य स्तर पर राज्य विकलांगता आयुक्त अपनी सांवैधानिक दर्जे के अलावा राष्ट्रीय नीति के क्रियान्वयन में मुख्य भूमिका निभाएंगे।


      ६०. स्थानीय स्तर के मामलों के निपटान के लिए तथा उपयुक्त कार्यक्रम के निर्माण के जरिए पंचायती राज संस्थान, राष्ट्रीय नीति के क्रियान्वयन में अहम भूमिका निभाएंगें, जिन्हें जिला तथा राज्य योजनाओं के साथ जोड़ा जाएगा। इन संस्थानों की परियोजनाओं में विकलांगता से जुड़े घटक शामिल होंगे।


      ६१. क्रियान्वयन के दौरान विकसित संरचना को लंबे समय के स्तेमाल के लिए बरकरार और प्रभावी बनाए रखा जाएगा। समुदायों को स्वयं या निजी क्षेत्रों के लामबंदी द्वारा संरचना तथा संचालन लागत की भी पूर्ति हेतु संसाधनों के निर्माण में अहम भूमिका निभानी चाहिए। इस कदम से न केवल राज्य सरकार के संसाधन पर बोझ घटेगा बल्कि समुदाय तथा निजी क्षेत्र के भागीदारों के बीच जिम्मेदारी की भावना का भी विकास होगा।

      ६२. हर पांच साल में राष्ट्रीय नीति के क्रियान्वयन पर एक विशद समीक्षा की जाएगी। क्रियान्वयन की दशा को सूचित करने वाला एक दस्तावेज तथा पांच सालों के लिए एक रोडमैप का निर्माण किया जाएगा, जिन्हें राष्ट्रीय स्तर के सम्मेलन में संपन्न किया जाएगा। राज्य नीति तथा कार्य योजना के लिए राज्य सरकारों व केंद्र शासित प्रदेशों से अनुरोध किया जाएगा।


       स्त्रोत

      सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय
      स्त्रोत: सामाजिक न्याय तथा अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार, शास्त्री भवन, नई दिल्ली


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      Sunday, April 7, 2019

      दिव्यांगता [Disability]

      दिव्यागता  (Disability) - 

       दिव्यांगता  (Disability) एक व्यापक शब्द है जो किसी व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, ऐन्द्रिक, बौद्धिक विकास में किसी प्रकार की कमी को इंगित करता है। इसके लिए 'अशक्‍तता', 'नि:शक्‍तता' (विधि), 'अपंगता', अपांगता' आदि शब्दों का भी प्रयोग किया जाता है।



      दिव्यांगता के प्रकार

      1. शारीरिक निर्योग्यता (physical disability)
      2. ऐन्द्रिक निर्योग्यता (sensory disability)
      3. दृष्टिक्षीणता (vision impairment)
      4. घ्राण एवं रससंवेदी असमर्थता (Olfactory and gustatory impairment)
      5. काय-ऐंद्रिक असमर्थता (Somatosensory impairment)
      6. संतुलन निर्योग्यता (Balance disorder)
      7. बौद्धिक असमर्थता (intelletual impairment)
      8. मानसिक स्वास्थ्य एवं भावनात्मक निर्योग्यता (Mental health and emotional disabilities)
      9. विकासात्मक निर्योग्यता (Developmental disability)
      10. अदृष्य निर्योग्यता(invisible disability)



      दिव्यांगगजन समग्र कल्याण हेतु भारत सरकार द्वारा दिव्यांग जन (समान अवसर, अधिकार, संरक्षण एवं पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 पारित किया गया है, जो 07 फरवरी, 1996 से जम्मू कश्मीर को छोड़कर सम्पूर्ण भारतवर्ष में प्रभावी है। इस अधिनियम के कुल 14 अध्याय एवं 74 धाराऍ हैं। इस अधिनियम की धारा-2 (न) में नि:शक्त (दिव्यांग) व्यक्ति की परिभाषा निम्नानुसार दी गयी है:-



      नि: शक्त (दिव्यांग):

      नि: शक्त (दिव्यांग) से कोई  व्यक्ति अभिप्रेत है, जो किसी चिकित्सा प्राधिकारी द्वारा यथाप्रमाणित किसी नि:शक्तता से कम से कम 40 प्रतिशत से ग्रस्त है। उक्त अधिनियम - 1995 की धारा-2 में नि:शक्तता (दिव्यांगता) की श्रेणियॉ एवं उनकी परिभाषायें निम्नानुसार दी गयी है:-


      दृष्टिहीनता

      उस अवस्था के प्रति निर्देश करता है जहॉ कोई व्यक्ति निम्नलिखित दशाओं में से किसी से ग्रसित है अर्थात-


      दृष्टिगोचरता का पूर्ण अभाव 

      सुधारक लेन्सों के साथ बेहतर ऑख में 6/60 या 20/200 स्नेलन से अनधिक दृष्टि की तीक्ष्णता या

      दृष्टि क्षेत्र की सीमा का 20 डिग्री के कोण के कक्षांतरकारी होना या अधिक खराब होना।


      कम दृष्टि वाला व्यक्ति

      कम दृष्टि से अभिप्रेत है, ऐसा कोई व्यक्ति जिसके उपचार या मानक उपवर्धनीय सुधार संशोधन के बावजूद दृष्टिसंबंधी कृत्य का हास हो गया है और जो समुचित सहायक युक्ति से किसी कार्य की योजना या निष्पादन के लिए दृष्टि का उपयोग करता है या उपयोग करने में संभाव्य रूप से समर्थ है।


      कुष्ठ रोग से मुक्त

      कोई ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जो कुष्ठ रोग से मुक्त हो गया है किन्तु निम्नलिखित से ग्रसित है:-


      जिसके हाथ या पैरों में संवेदना की कमी तथा नेत्र और पलकों में संवेदना की कमी और आंशिक घात है किन्तु कोई प्रकट विरूपता नही है।


      प्रकट निःशक्तताग्रस्त और आंशिक घात है किन्तु उसके हाथों और पैरों में पर्याप्त गतिशीलता है जिससे वे सामान्य आर्थिक क्रिया कलाप कर सकते है।


      अत्यन

      अत्यन्त शारीरिक विरूपांगता और अधिक वृद्धावस्था से ग्रस्त है जो उन्हें कोई भी लाभपूर्ण उपजीविका चलाने से रोकती है और कुष्ठ रोग से मुक्त पद का अर्थ तदनुसार लगाया जायेगा।


      श्रवण हा्स

      श्रवण हा्स से अभिप्रेत है संवाद संबंधी रेंज की आवृत्ति में बेहतर कर्ण में 60 डेसीबल या अधिक की हानि।


      चलन क्रिया संबंधी नि:शक्तता

      चलन सम्बन्धी दिवंगत से हड्डियों, जोडों या मांसपेशियों की कोई ऐसी नि:शक्तता अभिप्रेत है जिससे अंगों की गति में पर्याप्त निर्बन्धन या किसी प्रकार का प्रमस्तिष्क अंगघात हो।


      मानसिक मंदता

      मानसिक मंदता  से बीमार  व्यक्ति के मस्तिष्क के अवरूद्ध या अपूर्ण विकास की अवस्था है जो विशेष रूप से सामान्य बुद्धिमत्ता की अवसामन्यता द्वारा प्रकट है, अभिप्रेत है।


      मानसिक बीमार

      मानसिक बीमार से मानसिक मंदता से भिन्न कोई मानसिक विकास अभिप्रेत है।


      निःशक्तता की उक्त श्रेणियों एवं परिभाषाओं के अनुसार दिव्यांग व्यक्तियों को निःशक्तता प्रमाण पत्र जारी करने हेतु उ0प्र0 नि:शक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) नियमावली, 2001 को सरलीकृत करते हुये उ0प्र0 नि:शक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) (प्रथम संशोधन) नियमावली 2014 शासन के अधिसूचना संख्या 519/65-3-2014-98 दिनांक 3.9.2014 द्वारा निर्गत की गयी है। उक्त संशोधित नियमावली के अनुसार सहज दृश्य निःशक्तता हेतु दिव्यांग प्रमाण पत्र प्रदेश के विभिन्न सामुदायिक चिकित्सा केन्द्रों एवं प्राथमिक चिकित्सा केन्द्रों, राजकीय चिकित्सालयों में कार्यरत चिकित्सा विभाग द्वारा नामित प्राधिकृत चिकित्सा अधिकारी द्वारा निर्गत किया जायेगा, जबकि ऐसी निःशक्तता जो सहज दृश्य न हो एवं उसके परिमाणमापन हेतु विशेषज्ञ चिकित्सक एवं उपकरण की आवश्यकता हो, के प्रकरण में दिव्यांग प्रमाण पत्र प्राधिकृत चिकित्सक की संस्तुति के आधार पर प्रत्येक जनपद में मुख्य चिकित्साधिकारी की अध्यक्षता में गठित चिकित्सा परिषद अथवा डा0 राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय लखनऊ के प्राधिकृत चिकित्सक द्वारा निर्गत किया जायेगा।


      'कलंक' नहीं है दिव्यांगता, सामाजिक बराबरी मिलेगी तो आगे बढ़ेंगे दिव्यांग

      साल 1992 से हर साल 3 दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र की ओर से 'विश्व दिव्यांग दिवस' मनाया जाता है। दिव्यांगजनों के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से यह दिवस हर साल मनाया जाता है। इस साल की थीम दिव्यांग लोगों के समावेशी, समान और सतत विकास को सशक्त करने पर केंद्रित है।

      दिव्यांग लोगों के प्रति सामाजिक जागरूकता के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र हर साल 3 दिंसबर को 'विश्व दिव्यांग दिवस' मनाता है। हर साल इससे संबंधित अलग-अलग थीम रखी जाती है। यूएन ने यह परंपरा साल 1992 से शुरू की है। समाज में आज भी दिव्यांगता को एक कलंक के तौर पर माना जाता है। ऐसे में लोगों में दिव्यांगता मामले की समझ बढ़ाने, दिव्यांगजनों के सामाजिक सम्मान की स्थापना, उनके अधिकारों और कल्याण पर ध्यान केंद्रित कराने के उद्देश्यों के लिए यह दिवस काफी महत्वपूर्ण है। इस साल की थीम दिव्यांग लोगों के समावेशी, समान और सतत विकास को सशक्त करने पर केंद्रित है।


      2030 अजेंडा ऑफ सस्टेनेबल डवलपमेंट' पर आधारित है थीम

      इस साल की थीम '2030 अजेंडा ऑफ सस्टेनेबल डलपमेंट' पर आधारित है। 'किसी को पीछे नहीं छोड़ना' इस अजेंडा का प्रमुख उद्देश्य है। यह अंतरराष्ट्रीय कम्युनिटी द्वारा शांतिपूर्ण और समृद्ध दुनिया के लिए किया जाने वाला एक प्रयास है जहां व्यक्तिगत समानता और व्यक्तिगत गरिमा इसके मौलिक सिद्धांतों में शामिल है। साथ ही समाज के सभी क्षेत्रों में दिव्यांग व्यक्तियों की पूर्ण और समान भागीदारी सुनिश्चित कराने के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करना भी इस अजेंडा का प्रमुख लक्ष्य है।


      1992 से हुई शुरुआत

      साल 1992 में विश्व दिव्यांग दिवस पहली बार मनाया गया था। इससे पहले साल 1981 को दिव्यांग लोगों के लिए 'अंतरराष्ट्रीय वर्ष' के रूप में मनाया गया था। दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए तथा उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संयुक्त राष्ट्र की आम सभा द्वारा साल 1983 से लेकर साल 1992 तक के वक्त को दिव्यांग व्यक्तिओं के लिए 'संयुक्त राष्ट्र दशक' के रूप में घोषित किया गया था।


      दिव्यांग दिवस मनाने के उद्देश्य

      दिव्यांग दिवस मनाने के पीछे दिव्यांगता को सामाजिक कलंक मानने की धारणा से लोगों को दूर करने का प्रयास है। इसे समाज में दिव्यांगों की भूमिका को बढ़ावा देने, उनकी गरीबी को कम करने, उन्हें बराबरी का मौका दिलाने तथा उनके स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक प्रतिष्ठा पर ध्यान केंद्रित करने जैसी कोशिशों के लिए भी मनाया जाता है। इस दिन कला प्रदर्शनी, खेल प्रतियोगिताओं तथा विभिन्न कार्यक्रमों के द्वारा दिव्यांगों के प्रति जागरूकता फैलाने की कोशिश की जाती है।



      दिव्यांगों के लिए कानून

      दिव्यांगजनों से भेदभाव किए जाने पर कानून दो साल तक की कैद और 5 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान करता है। तेजाब हमले से पीड़ित लोग और पार्किंसन के मरीजों को भी निःशक्तजनों की श्रेणी में रखा जाता है। भारतीय कानून में इनके लिए आरक्षण की व्यवस्था भी की गई है। पहले दिव्यांगजनों के लिए 3 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान था लेकिन अब इसे बढ़ाकर 4 प्रतिशत कर दिया गया है।


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