Wednesday, March 13, 2019

दृष्टि दोष के प्रकार

 दृष्टि दोष के प्रकार- 

अनेक प्रकार के दृष्टिदोषों का विवेचन करने से पहले सामान्य दृष्टि की सीमाओं को समझ लेना आवश्यक है। दृष्टि को तभी सामान्य कहा जाता है, जब दृष्टि के सभी पहलू सामान्य हों। यदि स्नेलेन (Snellen) परीक्षण टाइप पर छह मीटर पंक्ति को छह मीटर की दूरी से व्यक्ति पढ़ ले तो दूरदृष्टि सामान्य होती है। निकट दृष्टि की सामान्य सीमा जे१ (J1), जेगर (Jaiger) परीक्षण टाइप को पढ़ने की दूरी है। इन दो महत्वपूर्ण पहलुओं के अतिरिक्त वर्णदृष्टि, दृष्टि के परिधिस्थ और केंद्रीय क्षेत्र तथा अंधेरा अभ्यनुकूलन में कोई असामान्यता नहीं होनी चाहिए।

दृष्टिदोष के कारण अनेक हो सकते हैं, लेकिन कुछ कारण व्यापक हैं, अत: उनका विवेचन आवश्यक है। मोटे तौर पर दृष्टिदोष के कारणों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है : (१) क्रमिक उद्भव (gradual onset) के दृष्टिदोष और (२) अचानक उद्भव (sudden onset) के दृष्टिदोष।

1. क्रमिक उद्भव के दृष्टि दोष 

इस वर्ग में ऐसी स्थितियाँ समाविष्ट हैं, जिनका उद्भव यहाँ तक क्रमिक होता है कि व्यक्ति का ध्यान उसकी ओर जाता ही नहीं और महीनों, या कभी कभी बरसों, बाद दृष्टि का ह्रास होना स्पष्ट होता है। इसके प्रकारों का वर्णन निम्नलिखित है :


2. वर्तन दोष

आँखों की वह स्थिति है, जिसमें प्रकाश की समांतर किरणें दृष्टिपटल की संवेदनशील परत पर तब फोकस होती हैं जब आँखे विश्राम की स्थिति में रहती हैं। अधोलिखित स्थितियाँ विशेष महत्वपूर्ण हैं :


1.  निकट दृष्टि

(Myopia) या निकट दृष्टि वह है, जिसमें आँखों के विश्राम की स्थिति में प्रकाश की समांतर किरणें दृष्टिपटल की संवेदनशील परत के सामने फोकस होती हैं। निकट दृष्टि प्राय: अक्षीय होती है, अर्थात् इसका कारण आँख के अग्रपश्च (anteroposterior) व्यास में वृद्धि होती है। स्वच्छमंडल (cornea) की वक्रता, या लेंस के अग्र या पश्च पृष्ठ में वृद्धि के कारण भी यह दोष उत्पन्न हो सकता है। माध्यम का वर्तनांक (refractive index) भी वर्तन को प्रभावित कर सकता है। लेंस के वर्तनांक का व्यावहारिक महत्व सर्वाधिक है। लेंस के वल्क (cortex) के वर्तनांक में ह्रास या केंद्रक (nucleus) के वर्तनांक में वृद्धि होने से भी निकट दृष्टि हो सकती है। कुल मिलाकर निकट दृष्टि दो प्रकार की होती है - कायिक और रोगविज्ञान संबंधी।

कायिक दोष छह डायॉप्टर से कम और स्वभावत: अप्रगामी (nonprogressive) होता है। लेंसों से दोष में पूरा पूरा सुधार होता है। रोगविज्ञानात्मक निकट दृष्टि अपकर्षी (degenerative), प्रगामी और बहुत कुछ आनुवंशिक होती है। वर्तनदोष अंततोगत्वा १५ और २५ डायॉप्टर के मध्य रहता है। इसके बाद बुध्न में अपकर्षी परिवर्तन होने लगता है, जिससे दृष्टि का स्थायी ह्रास इस सीमा तक हो सकता है कि दृष्टिपटल के बिलगाव के कारण दृष्टि संपूर्ण रूप से नष्ट हो जाए। इस दोष को दूर करने के लिए अवतल लेंस का प्रयोग करते हैं।


2. दूर दृष्टि

दूरदृष्टि या (Hypermetropia) में आँख के विश्राम की स्थिति में, प्रकाश की समांतर किरणें दृष्टिपटल की संवेदनशील परत से कुछ पीछे फोकस होती हैं।
दूरदृष्टि प्राय: अक्षीय होती है, अर्थात् आँख के अग्रपश्च अक्ष का छोटा होना इसका निर्णायक कारण होता है। यह स्थिति व्यापक है और सामान्य विकास की एक अवस्था भी है। जन्म के समय सभी की आँख दूरदृष्टिक (hypermetreopic) होती है। शरीर के विकास के साथ साथ किशोरावस्था व्यतीत होते होते सिद्धांतत: आँखों को निर्दोषदृष्टिक हो जाना चाहिए, लेकिन कुछ व्यक्तियों की दूरदृष्टि बनी रह जाती है।
जब वर्तक पृष्ठों की वक्रता अनुचित रूप से कम होती है (वक्रतादूरदृष्टि), या केंद्रक का वर्तनांक निम्न होता है, तब सूचक दूरदृष्टि उत्पन्न होती है। इसमें बुध्न विशेष परिवर्तित नहीं होता और व्यक्ति की दूरदृष्टि और निकटदृष्टि, दोनों में विकर हो सकता है। यह स्थिति उपयुक्त उत्तल लेंसों से संपूर्ण रूप में सुधर जाती है। इसे दूर करने के लिए उत्तल लेंस का प्रयोग करते हैं।

3. अबिंदुकता

अबिंदुकता या (Astigmatism) वर्तन की ऐसी अवस्था है, जिसमें दृष्टिपटल पर प्रकाश का बिंदु-फोकस नहीं बन पाता। सिद्धांतत: कोई आँख बिंदवीय (stigmatic) नहीं होती। वक्रता की त्रुटि, संकेंद्रण (centering) या वर्तनांक की त्रुटि के कारण अबिंदुकता हो सकती है। यह स्थिति बिंबों को विकृत करके आँखों के तनाव के अनेक लक्षण उत्पन्न करती है। यह दोष नियमित या अनियमित दोनों हो सकता है। नियमित दोष को बेलन लेंस से और अनियमित को संस्पर्शी लेंस से ठीक किया जा सकता है। बेलनाकार लेंस द्वारा दूर किया जाता है।



4. वर्णांधता

इसे धूसरदृष्टि (Achromatopia) भी कहते हैं, यह जन्मजात या अर्जित दोनों प्रकार की हो सकती है।

जन्मजात वर्णांधता

जन्मजात वर्णाधता के दो प्रधान रूप हैं, संपूर्ण एवं आंशिक। संपूर्ण विरल है और प्राय: अक्षिदोलन (nystagmus) तथा केंद्रीय अंधक्षेत्र (scotoma) से सहचरित होता है। इसमें सभी रंग अलग अलग दीप्ति के धूसर जान पड़ते हैं। वर्णक्रम सामान्य अंधक्षेत्रीय वर्णक्रम के समान धूसर पट्टा जान पड़ता है। यह संभव है कि संपूर्ण वर्णांधता शंकुओं के दोषपूर्ण विकास या उनके संपूर्ण अभाव से हो।

आंशिक रूप का पता तभी लगता है जब इसका विशेष परीक्षण किया जाए, क्योंकि व्यक्ति छाया और बनावट पर गौर करके तथा अनुभव से कुछ हानिपूर्ति कर लेता है। घोर आंशिक रूप चार प्रतिशत पुरुषों और ०.४ प्रतिशत स्त्रियों में पाया जाता है, लेकिन हल्के रूप में यह केवल पुरुषों में व्यापक रूप से होता है। इस अवस्था को पुरुष स्त्रियों से अर्जित करते हैं। बहुतों को लाल और हरे रंग में भ्रम होता है। ऐसे लोग रेलवे में, वायु सेना में, या नौसेना में हों तो उनसे गंभीर खतरा होने की आशंका रहती है। लाल हरे के रोगी दो प्रकार के होते हैं : रक्तवर्णांध (protanopia) तथा हरितवर्णांध (Denteranopia)। रक्तवर्णाधता में लाल रंग का और हरित वर्णांधता में हरे रंग का बोध नहीं होता।
वर्णांधता परीक्षा के दो उद्देश्य हैं : (१) विकृतियों का सही स्वरूप जानना तथा (२) यह पता लगाना कि क्या रोग सचमुच समाज के लिए खतरनाक है? दोनों उद्देश्यों में किसी निष्कर्ष पर पहुँचने के पहले अनेक परीक्षण कर लेने चाहिए।


5. जराकालीन मोतियाबिंद

जराकालीन मोतियाबिंद या (Senile Cataract) नेत्र के लेंस या उसके संपुट (capsule) में विकास की अवस्था में उत्पन्न या अर्जित हर प्रकार की पारांधता है, जो निर्मित लेंस के रेशों के अपकर्षण (degeneration) से होती है। अपकर्षण का कारण अभी तक अस्पष्ट बना हुआ है। संभवत: भिन्न भिन्न व्यक्तियों को भिन्न भिन्न कारणों से अपकर्षण होता है। पानी और विद्युद्विश्लेष्य के अंत:कोशिक या बाह्यकोशिक संतुलन में बाधक, या रेशों के कलिल तंत्र को अव्यवस्थित करनेवाला कोई रासायनिक या भौतिक कारक, अपारदर्शिता उत्पन्न करता है।

जीवरसायन के अनुसार दो कारक इस प्रक्रिया में स्पष्ट हैं। पहला कारक, प्रारंभिक अवस्था में जलयोजन (hydration) है और दूसरा बाद की अवस्था में रेशों के अंदर स्थित कलिल तंत्र में परिवर्तन है। पहले प्रोटीनों का तत्वविकिरण (denaturization) होता है और बाद में ये घनीभूत (coagulated) हो जाते हैं।
मोतियाबिंद की तीन अवस्थाएँ होती हैं : अपरिपक्वता, परिपक्वता और अतिपक्वता। इन अवस्थाओं को व्यतीत होने में दो तीन वर्ष या अधिक समय लग सकता है। व्यक्ति दिन दिन दृष्टि के अधिकाधिक ह्रास की शिकायत करता है। व्यक्ति में एकनेत्री (uniocular), द्विदृष्टि (diplopia) या बहुभासी दृष्टि भी उत्पन्न हो सकती है और वह कृत्रिम प्रकाश के चतुर्दिक् रंगीन प्रभामंडल (halo) देखने लगता है।
मोतियाबिंद के निकाल देने और उपयुक्त लेंस के उपयोग से दृष्टि को इस स्थिति से मुक्त किया जा सकता है।


6. दीर्घकालिक साधारण ग्लॉकोमा

दीर्घकालिक साधारण ग्लॉकोमा या (Chronic Simple Glaucoma) ग्लॉकोमा लक्षणात्मक अवस्था है। यह कोई स्वतंत्र बीमारी नहीं है। इसका प्रमुख लक्षण अंतरक्षि (intraocular) दाब की वृद्धि है। नेत्रगोलक का सामान्य तनाव पारे के १८ मिमी. से २५ मिमी. तक हो सकता है और यह नेत्रगोलक के शरीर और शरीरक्रियात्मक (physiological) कर्मों को प्रभावित नहीं करता। अंतरक्षितनाव का कारण ठीक ठाक ज्ञात नहीं है, लेकिन संभवत: यह स्किलरोसिस (Sclerosis) तथा रंगद्रव्य (pigment) के परिवर्तनों से होता है, जो जलीय (aqueous) द्रव का प्रवाह कम कर देते हैं। तनाव बढ़ते रहने से ग्लॉकोमेटस कपिंग (glaucomatus cupping) और बाद में प्रकाश-अपक्षय (optic atrophy) होता है, जिससे रोगी की दृष्टि क्रमश: अधिकाधिक घटती जाती है। दृष्ट्ह्रािस को रोकने का एकमात्र उपाय यह है कि प्रारंभ में ही रोग का निदान करके शल्यचिकित्सा कर दी जाए।


7. प्रारंभिक दृष्टि अपक्षय

प्रकाशतंत्र दृष्टि आवेगों को पश्चकपाल खंड (occipital lobe) को, जो दृष्टि के लिए मस्तिष्क का उत्तरदायी भाग है, पारेषित करता है। चलन गतिभंग (Tabes dorsalis) और उन्मादियों के सिफिलिसमूलक साधारण पक्षाघात जैसी अवस्थाओं से उत्पन्न मृदुतानिका (pial) संक्रमण के फलस्वरूप परितंत्रिकार्ति (perineuritis) होती है, जिससे तंत्रिका के रेशों का अपकर्षण होता है। रोग का निदान प्रारंभ में ही हो जाना चाहिए, यद्यपि उपचार से पूर्व लक्षणों में सुधार संतोषजनक नहीं होता।


8. दीर्घकालिक प्रत्यगक्षि-गोलक-चेता-कोष (Chronic Retrobulbar neuritis)

इसे विषजन्य मंददृष्टि (Amblyopia) भी कहते हैं। इसके अंतर्गत अनेक अवस्थाएँ हैं। बहिर्जात (exogenous) विषों से, जिनमें तंबाकू, एथिल ऐलकोहल, मेथाइल ऐलकोहल, सीसा, संखिया, थैलियम, क्विनीन, अर्गट (ergot) पुं-पर्णांग (filix mas), कार्बन डाइ-सल्फाइड, स्ट्रैमोनियम (strammonium) तथा भाँग प्रमुख हैं, दृष्टितंत्रिका के रेशे क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। इनमें से कुछ विष प्रारंभ में दृष्टिपटलीय रोग उत्पन्न करते हैं, जिससे बाद में दृष्टिपटल की गुच्छिकाकोशिकाएँ (ganglion cells) विषाक्त होती हैं और तंत्रिका रेशों का अपकर्षण होता है, जिनका निरूपण सुषिरफलक (lamina cribrosa) के पीछे मंदावरण (medullary sheath) के बन जाने पर ही संभव है।
यह एक द्विपार्श्वीय स्थिति है, जो अंततोगत्वा प्रारंभिक अपक्षय का रूप धारण करती है। प्रारंभ में ही निदान कर लेना और विषैले अभिकर्ता की रोक ही इसका उपचार है।



9. दृष्टिपटल का प्रारंभिक रंगद्रव्यीय अपकर्षण

पहले इसका नाम रेटिनाइटिस पिगमेंटोज़ा था। यह दृष्टिपटल के मंद अपकर्षण का रोग है, जो प्राय: दोनों आँखों में होता है। इसका प्रारंभ शैशव में और समाप्ति प्रौढ़ या वृद्धावस्था में अंधेपन में होती है। यह रोग स्त्रियों से संप्रेषित होकर पुरुषों में फैलता है और प्रधानत: पुरुषों में ही पाया जाता है। अपकर्षण का प्रभाव प्रारंभ में दंडों और शंकुओं पर पड़ता है, खास कर दंडों पर। आँख के विषुव क्षेत्र के आस पास से प्रारंभ होकर यह क्रमश: अग्रत: और पश्चत: फैलता है। जब तक उपलक्षक केंद्रीय स्थिति में न हो जाए तब तक मैक्यूला प्रदेश बहुत समय तक प्रभावित नहीं होता है। ऐसी स्थिति में वाहिनियों में अस्थिकण जैसे पदार्थ फैल जाते हैं और बुध्न में वाहिका-स्क्लिरोसिस होता है। अंत में, स्थिति लगातार प्रकाश अपक्षय तक पहुँचती है।

प्रारंभिक अवस्था में व्यक्ति में दंडों के अपकर्षण से रतौंधी हो जाती है और बाद में पराकेंद्र या वलय अंधक्षेत्र (scotoma) बन जाता है। व्यक्ति अपनी दृष्टि दिन दिन अधिकाधिक दुर्बल पाता है और अंत में अंधा हो जाता है। इसका उपचार अत्यंत असंतोषजनक होता है।
रेटिनाइटिस पिंगमेंटोज़ा, साइन पिगमेंटो और रेटिनाटिस पंक्टेटा ऐलबिसीन्स (Retinitis Punctata Albiscenes) अन्य ऐसी स्थितियाँ हैं जिनका रोगेतिहास और लक्षण ऐसा ही होता है।

इन मुख्य अवस्थाओं के अतिरिक्त ट्रैकोमेटस कॉर्निआ अपारदृश्यता, जराकालीन मैक्यूला अपकर्षण आदि से भी दृष्टि का क्रमिक ह्रास हो सकता है।


10. तीव्र या आकस्मिक उद्भव के दृष्टि दोष

इसके अंतर्गत उन अवस्थाओं का अध्ययन होता है, जिनका उद्भव तीव्रता से या आकस्मिक रूप से होता है। कुछ अवस्थाओं में समुचित उपचार से सफलता मिलती है, लेकिन अन्य अवस्थाओं में दृष्टि की स्थायी हानि होती है। कुछ सामान्य अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं :


तीव्र संकुलन (congestive) ग्लॉकोमा

यह दोष ५०-६० वर्ष की वय की स्त्रियों को ही प्रधानत: होता है। इससे कम वय में भी यह हो सकता है। यह खासकर उन व्यक्तियों को होता है जो स्वभाव से उद्वेगी और सिंपैथिटिकोटोनिक (sympatheticotonic) होते हैं और बाहिकाप्रेरक (vasomotor) अभिक्रिया में अस्थिरता तथा अनुकंपी और परानुकंपी (parasympathetic) तंत्रों में संतुलन का अभाव प्रदर्शित करते हैं। यह अवस्था अंत में प्राय: दीर्घदृष्टि संकीर्ण कोण आँख में हो जाती है, अत: इसे संकीर्ण कोण ग्लॉकोमा या संवृत कोण (closed angle) ग्लॉकोमा भी कहते है। आँख संकुलित हो जाती है और बड़ी पीड़ा देती है। इसमें दोनों आँखें प्रभावित हो सकती हैं। प्रतिकार्बोनिक निर्जलीय औषधियाँ तथा शल्यचिकित्सा इसका उपचार है।


11. दृष्टिपथों में तीव्र प्रदाहस

दृष्टितंत्रिकाशीर्ष (Papillitis), दृष्टितंत्रिका का अंत:करोटि (intracranial), या आंतरकक्षीय (intraorbital), भाग या स्वस्तिका (chiasma) को प्रभावित करनेवाली अवस्थाएँ अकस्मात् दृष्टि को नष्ट कर देती है। प्राय: ये अवस्थाएँ अकस्मात् दृष्टि को नष्ट कर देती है। प्राय: ये अवस्थाएँ एक पार्श्वीय होती हैं और युवावस्था में होती हैं। इसका प्रारंभ केंद्रीय या पराकेंद्रीय अंधबिंदु (scotoma) से होता है। पैपिलाइटिस में बुध्न अक्षिबिंब पर मल (ordure) के चिन्ह प्रदर्शित करते हैं। इसके अतिरिक्त कोई और खास परिवर्तन नहीं होता। मधुमेह परानासविवर (paranasal sinusites), विकीर्णित स्क्लिरोसिस (disseminated sclerosis) तथा क्षतज संक्रमण (focal infections) जैसे रोग इसके ज्ञात कारण हैं। ऐसी परिस्थिति में पूर्वलक्षण अच्छे समझे जाते हैं।


12. काचाभ रक्तस्त्राव (Vitreous Haemorrhage)

यह वह अवस्था है, जिसमें नेत्रगोलक के पश्च खंड में रक्त भर जाने से अचानक दृष्टिह्रास होता है। इसके अनेक कारण हैं, जैसे ईलिस, हीमोफीलिस (haemophilis), रक्त दुरवस्था (blood dyscrasia), केद्रिय शिरा थ्राम्बोसिस (central veinous thrombosis), प्रवृद्ध अवस्था का रेटिनोपैथिक्स (Retinopathics), तीव्र रक्तक्षीणता तथा अन्य स्त्रवण (bleeding) की अवस्थाएँ। आघात संघट्टन (concussion) या वेधन (perforating) से भी तीव्र काचाभ रक्तस्त्राव संभव है। इन सभी अवस्थाओं में ईलिस रोग की स्थिति में विशेष सावधानी अपेक्षित है। अपेक्षित यह व्यापक रोग है, जो प्राय: ३० वर्ष के हृष्ट पुष्ट युवकों को हुआ करता है। इसकी हैतुकी (aetiology) अस्पष्ट है, लेकिन अनुमानत: क्षय और पूतिदूषण से होनेवाला पेरीफ्लेबिटिस (periphlebitis) इसका कारण समझा जाता है।
इसके प्रारंभिक दो तीन हमले खप जाते हैं, लेकिन इससे अधिक होने पर दृष्टि का स्थायी अभाव हो सकता है। उपचार के लिए क्षयावरोधी अथवा धनीभूत करनेवाली (coaguiant) दवाओं का प्राय: उपयोग किया जाता है।


13. दृष्टिपटल विलगन (Retinal Detachment)

दोनों दृष्टिपटलीय परतें (वास्तविक दृष्टिपटल और रंगद्रव्य उपकला) सामान्य अवस्था में परस्पर संनिधान (apposition) स्थिति में होती हैं और इनके बीच का सशक्त स्थान (potential space) प्रधान मौलिक स्फोटिका (original primary vesicle) को निरूपित करता है। इन परतों के अलग होने की घटना को दृष्टिपटल विलगन कहते हैं, जिसका कारण भी सरल है। मोटे तौर पर सरल और गौण विलगन ये दो प्रकार हैं। चाहे जिस कारण से क्यों न हो, रोगी को दृष्टि क्षेत्र के संगत भागों में दृष्टि के अचानक लोप का अनुभव हेता है। यदि इसका उपचार समय से न हो तो दृष्टि सदा के लिए नष्ट हो सकती है। दृष्टि की यह हानि अपक्षयमूलक परिवर्तनों की अपेक्षा कम होती है। औषधियों से उपचार कम लाभप्रद है, शल्यक्रिया से दृष्टि लौट सकती है।


दृष्टिपटल की रक्तवाहिकाओं का रोग

दृष्टिपटल तथा रंजित पटल (choroid) की रक्तवाहिकाओं से दृष्टिपटल की विभिन्न शिराओं का पोषण होता है। यदि किसी कारण से इन वाहिकाओं में रक्त का संचार रुक जाए तो दृष्टि का अचानक ह्रास हो जाता है। ऐंठन के शीघ्र शमित होते ही दृष्टि सामान्य स्थिति में लौट आती है। लेकिन दृष्टिपटलीय धमनियों के रक्तस्त्रोतरोधन (embolism) की अवस्था में समूची या किसी अंश की दृष्टि का स्थायी लोप संभव है। केंद्रीय शिरा थ्राम्बोसिस में दृष्टि का ह्रास वैसा अचानक नहीं होता जैसा ऐंठन (spasm) या रक्तस्त्रोतरोधन में होता है, लेकिन इसका भी अंतिम रूप उतना ही अवांछनीय होता है। इन अवस्थाओं से हृद्वाहिका तंत्र की सामान्य अवस्थाओं का पता लगता है।


14. हिस्टीरिया जन्य (Hysterical)

यह युवा स्त्रियों को प्रभावित करनेवाली क्रियात्मक अव्यवस्था है। यह प्राय: द्विपार्श्वीय होती है, लेकिन एकपार्श्वीय भी हो सकती है। इसमें प्राय: क्षेत्र का एककेंद्रीय संकुचन होता है, जिसमें सर्पिल आकुंचन विशिष्ट है। इसमें उपचार न करने से भी रोग हो सकता है, किंतु उसकी मानसिक स्थिति के प्रति सहानुभूति आवश्यक है।
इन विशेष अवस्थाओं के अतिरिक्त आघात (trauma), तीव्र रंग्यग्रकोप (Iridocyclitis), या रंजितपटल शोथ (choroiditis) भी दृष्टिह्रास की स्थिति उत्पन्न कर सकते हैं।

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Tuesday, March 12, 2019

दृश्य हानि के कारण

 दृश्य हानि के कारण-

2010 में विश्व स्तर पर दृश्य हानि के सबसे आम कारण थे:

1. अपवर्तक त्रुटि (42%)

2. मोतियाबिंद (33%)

3. ग्लूकोमा (2%)

4. उम्र से संबंधित धब्बेदार अध: पतन (1%)

5. कॉर्नियल ओपसीफिकेशन (1%)

6. मधुमेह संबंधी रेटिनोपैथी (1%)

7. बचपन का अंधापन

8. ट्रेकोमा (1%)

9. अनिर्धारित (18%)


2010 में अंधापन के सबसे आम कारण थे:

1. मोतियाबिंद (51%)

2. मोतियाबिंद (8%)

3. उम्र से संबंधित धब्बेदार अध: पतन (5%)

4. कॉर्नियल ओपसीफिकेशन (4%)

5. बचपन का अंधापन (4%)

6. अपवर्तक त्रुटियां (3%)

7. ट्रेकोमा (3%)

8. मधुमेह संबंधी रेटिनोपैथी (1%)

9. अनिर्धारित (21%)


लगभग 90% लोग जो दृष्टिबाधित हैं विकासशील देशों में रहते हैं । आयु से संबंधित धब्बेदार अध: पतन, ग्लूकोमा और मधुमेह संबंधी रेटिनोपैथी विकसित दुनिया में अंधेपन के प्रमुख कारण हैं।

कामकाजी उम्र के वयस्कों में जो 2010 में इंग्लैंड और वेल्स में सबसे ज्यादा अंधे थे, वे थे:

1. वंशानुगत रेटिना संबंधी विकार (20.2%)

2. मधुमेह संबंधी रेटिनोपैथी (14.4%)

3. ऑप्टिक शोष (14.1%)

4. ग्लूकोमा (5.9%)

5. जन्मजात असामान्यताएं (5.1%)

6. दृश्य प्रांतस्था के विकार (4.1%)

7. सेरेब्रोवास्कुलर रोग (3.2%)

8. मैक्युला और पीछे के ध्रुव की गिरावट (3.0%)

9. मायोपिया (2.8%)

10. कॉर्नियल विकार (2.6%)

11. मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र के घातक नवोप्लाज्म (1.5%)

12. रेटिना टुकड़ी (1.4%)



मोतियाबिंद 

इनमें से, मोतियाबिंद> 65%, या अंधापन के 22 मिलियन से अधिक मामलों के लिए जिम्मेदार है, और मोतियाबिंद 6 मिलियन मामलों के लिए जिम्मेदार है।

मोतियाबिंद : जन्मजात और बाल रोग विकृति है जो क्रिस्टलीय लेंस के ग्रेइंग या अस्पष्टता का वर्णन करता है, जो आमतौर पर अंतर्गर्भाशयी संक्रमण, चयापचय संबंधी विकार और आनुवंशिक रूप से संचरित सिंड्रोम के कारण होता है। मोतियाबिंद बच्चे और वयस्क अंधेपन का प्रमुख कारण है जो कि ४० वर्ष की उम्र के बाद हर दस साल में प्रचलन में दोगुना हो जाता है। नतीजतन, आज मोतियाबिंद बच्चों की तुलना में वयस्कों में अधिक आम है। यानी, लोगों को उम्र बढ़ने के साथ मोतियाबिंद होने की अधिक संभावना होती है। फिर भी, मोतियाबिंद बच्चों पर अधिक वित्तीय और भावनात्मक टोल होता है क्योंकि उन्हें महंगे निदान, दीर्घकालिक पुनर्वास और दृश्य सहायता से गुजरना पड़ता है। इसके अलावा, स्वास्थ्य विज्ञान के लिए सऊदी जर्नल के अनुसार, कभी-कभी रोगियों को पीडियाट्रिक मोतियाबिंद सर्जरी के बाद अपरिवर्तनीय एंब्लोपिया  का अनुभव होता है क्योंकि मोतियाबिंद ऑपरेशन से पहले दृष्टि की सामान्य परिपक्वता को रोकता है। उपचार में महान प्रगति के बावजूद, मोतियाबिंद आर्थिक रूप से विकसित और विकासशील दोनों देशों में एक वैश्विक समस्या है। र्तमान में, वैरिएंट परिणामों के साथ-साथ मोतियाबिंद सर्जरी तक असमान पहुंच, मोतियाबिंद के विकास के जोखिम को कम करने का सबसे अच्छा तरीका धूम्रपान और सूरज की रोशनी (यानी यूवी-बी किरणों) के व्यापक संपर्क से बचना है।


ग्लूकोमा 

ग्लूकोमा एक जन्मजात और बाल चिकित्सा आंख की बीमारी है जो आंख या इंट्राओकुलर दबाव (आईओपी) के भीतर बढ़े हुए दबाव की विशेषता है। ग्लूकोमा के कारण दृश्य क्षेत्र की हानि होती है और साथ ही ऑप्टिक तंत्रिका भी क्षतिग्रस्त हो जाती है। रोगियों में मोतियाबिंद का प्रारंभिक निदान और उपचार अत्यावश्यक है क्योंकि मोतियाबिंद आईओपी के गैर-विशिष्ट स्तरों से शुरू होता है। इसके अलावा, ग्लूकोमा का सटीक निदान करने में एक और चुनौती यह है कि इस बीमारी के चार कारण हैं: १) भड़काऊ ओकुलर हाइपरटेंशन सिंड्रोम (IOHS); 2) गंभीर यूवेइटिक कोण बंद करना; 3) कॉर्टिकोस्टेरॉइड-प्रेरित; और 4) संरचनात्मक परिवर्तन और पुरानी सूजन से जुड़ा एक विषम तंत्र। इसके अलावा, अक्सर बाल चिकित्सा मोतियाबिंद वयस्कों द्वारा विकसित मोतियाबिंद के कारण और प्रबंधन में बहुत भिन्न होता है। वर्तमान में, बाल चिकित्सा मोतियाबिंद का सबसे अच्छा संकेत २१ मिमी एचजी या एक बच्चे के भीतर मौजूद अधिक है। पीडियाट्रिक ग्लूकोमा के सबसे सामान्य कारणों में से एक मोतियाबिंद हटाने वाली सर्जरी है, जो शिशुओं में लगभग १२.२% और शिशुओं में ५ 58. among% के साथ १० साल के बच्चों में होती है।


संक्रमण 


ओन्कोसेरिएसिस का बोझ: अफ्रीका में अंधे वयस्कों का नेतृत्व करने वाले बच्चे

बचपन के अंधापन गर्भावस्था से संबंधित स्थितियों, जैसे जन्मजात रूबेला सिंड्रोम और प्रीमैच्योरिटी के रेटिनोपैथी के कारण हो सकते हैं । कुष्ठ और onchocerciasis प्रत्येक विकासशील दुनिया में लगभग 1 मिलियन व्यक्तियों को अंधा करता है।
ट्रेकोमा से अंधे हुए व्यक्तियों की संख्या पिछले 10 वर्षों में 6 मिलियन से घटकर 1.3 मिलियन हो गई है, इसे दुनिया भर में अंधापन के कारणों की सूची में सातवें स्थान पर रखा गया है।
सेंट्रल कॉर्नियल अल्सरेशन भी दुनिया भर में मोनोकुलर ब्लाइंडनेस का एक महत्वपूर्ण कारण है, अकेले भारतीय उपमहाद्वीप में हर साल कॉर्नियल ब्लाइंडनेस के अनुमानित 850,000 मामलों के लिए जिम्मेदार है। परिणामस्वरूप, सभी कारणों से कॉर्नियल स्कारिंग अब वैश्विक दृष्टिहीनता का चौथा सबसे बड़ा कारण है।


चोटें 


घायल को फिर से शिक्षित करना। प्रथम विश्व युद्ध में बास्केट बनाना सीख रहे ब्लाइंड फ्रांसीसी सैनिक।

आँख की चोटें, जो अक्सर 30 वर्ष से कम उम्र के लोगों में होती हैं, संयुक्त राज्य भर में एककोशिकीय अंधापन (एक आँख में दृष्टि हानि) का प्रमुख कारण है। चोट और मोतियाबिंद आंख को प्रभावित करते हैं, जबकि ऑप्टिक तंत्रिका हाइपोप्लासिया जैसी असामान्यताएं तंत्रिका बंडल को प्रभावित करती हैं जो आंख से मस्तिष्क के पीछे तक संकेत भेजती हैं, जिससे दृश्य तीक्ष्णता घट सकती है।
कॉर्टिकल अंधापन मस्तिष्क के ओसीसीपटल लोब की चोटों से उत्पन्न होता है जो मस्तिष्क को ऑप्टिक तंत्रिका से संकेतों को सही ढंग से प्राप्त करने या व्याख्या करने से रोकता है ।कॉर्टिकल ब्लाइंडनेस के लक्षण व्यक्तियों में बहुत भिन्न होते हैं और थकावट या तनाव की अवधि में अधिक गंभीर हो सकते हैं। कॉर्टिकल ब्लाइंडनेस वाले लोगों में दिन में बाद में खराब दृष्टि होना आम है।

अंधाधुंध का इस्तेमाल प्रतिशोध में और कुछ मामलों में यातना के रूप में किया गया है, एक व्यक्ति को एक प्रमुख अर्थ से वंचित करने के लिए जिससे वे दुनिया के भीतर नेविगेट या बातचीत कर सकते हैं, पूरी तरह से स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकते हैं, और उनके आसपास की घटनाओं के बारे में जागरूक हो सकते हैं। शास्त्रीय क्षेत्र का एक उदाहरण ओडिपस है , जो यह महसूस करने के बाद अपनी आँखें बाहर निकाल लेता है कि उसने उसके द्वारा की गई भयानक भविष्यवाणी को पूरा किया है। बुल्गारियाई को कुचलने के बाद, बीजान्टिन सम्राट बेसिल II ने युद्ध में लिए गए 15,000 कैदियों को रिहा करने से पहले अंधा कर दिया। [३porary]समकालीन उदाहरणों में अपघटन के रूप में एसिड फेंकनेजैसी विधियों को शामिल किया गया है।


आनुवंशिक दोष 

ऐल्बिनिज़म से पीड़ित लोगों को अक्सर दृष्टि हानि होती है कि कई लोग कानूनी रूप से अंधे हैं, हालांकि उनमें से कुछ वास्तव में नहीं देख सकते हैं। लेबर की जन्मजात अमाशय के कारण जन्म से या बचपन में दृष्टिहीनता या गंभीर दृष्टि हानि हो सकती है।

मानव जीनोम की मैपिंग में हालिया प्रगति ने कम दृष्टि या अंधापन के अन्य आनुवंशिक कारणों की पहचान की है।ऐसा ही एक उदाहरण बार्डेट-बिडल सिंड्रोम है ।


जहर का संपादन

शायद ही कभी, अंधेपन कुछ रसायनों के सेवन के कारण होता है। एक प्रसिद्ध उदाहरण मेथनॉल है , जो केवल हल्के से विषाक्त और कम से कम नशे में है, और पदार्थों में टूट जाता है फॉर्मेल्डिहाइड और फॉर्मिक एसिड जो बदले में अंधापन, अन्य स्वास्थ्य जटिलताओं का एक सरणी, और मौत का कारण बन सकता है। जब चयापचय के लिए इथेनॉल के साथ प्रतिस्पर्धा होती है, तो इथेनॉल को पहले चयापचय किया जाता है, और विषाक्तता की शुरुआत में देरी होती है। मेथनॉल आमतौर पर मिथाइलेटेड आत्माओं में पाया जाता है, जो एथिल अल्कोहल से होता है , मानव उपभोग के लिए इथेनॉल की बिक्री पर करों का भुगतान करने से बचने के लिए। मिथाइलेटेड आत्माओं को कभी-कभी शराबियों द्वारा नियमित इथेनॉल अल्कोहल पेय केलिए एक हताश और सस्ते विकल्प के रूप में उपयोग किया जाता है।


अन्य

एम्बीलोपिया : दृष्टि हानि या दृश्य हानि की एक श्रेणी है जो अपवर्तक त्रुटियों या सहवर्ती ओकुलर रोगों के असंबंधित कारकों के कारण होती है। एम्बीलोपिया वह स्थिति है जब बच्चे की दृश्य प्रणाली सामान्य रूप से परिपक्व नहीं हो पाती है क्योंकि बच्चा या तो समय से पहले जन्म, खसरा, जन्मजात न्युबेला सिंड्रोम, विटामिन ए की कमी या मेनिन्जाइटिस से पीड़ित होता है। यदि बचपन में अनुपचारित छोड़ दिया जाए, तो वर्तमान में एंबीलिया वयस्कता में लाइलाज है क्योंकि सर्जिकल उपचार प्रभावशीलता एक बच्चे के परिपक्व होने के रूप में बदल जाती है। तीजतन, एम्बीलोपिया दुनिया में बाल एककोशिकीय दृष्टि हानि का प्रमुख कारण है, जो एक आंख में दृष्टि की क्षति या हानि है। सबसे अच्छी स्थिति में, जो कि बहुत ही दुर्लभ है, ठीक से इलाज किया जाने वाला एंबीलिया के रोगी २०/४० तीक्ष्णता प्राप्त कर सकते हैं। 

दृश्य हानि [VI]

Visually handicapped [VI]

दृश्य हानि , जिसे दृष्टि बांधित या दृष्टि हानि के रूप में भी जाना जाता है, एक हद तक देखने की क्षमता कम होती है जो सामान्य साधनों जैसे चश्मे से ठीक न होने वाली समस्याओं का कारण बनती है। कुछ में वे भी शामिल हैं जिनकी देखने की क्षमता कम हो गई है क्योंकि उनके पास चश्मे या कॉन्टैक्ट लेंस तक पहुंच नहीं है। दृश्य दुर्बलता को अक्सर २०/४० या २०/६० की तुलना में बदतर की सबसे अच्छी सही
 दृश्य तीक्ष्णता के रूप में परिभाषित किया जाता है। अंधापन शब्द का प्रयोग पूर्ण या लगभग पूर्ण दृष्टि हानि के लिए किया जाता है। दृश्य दुर्बलता लोगों को सामान्य दैनिक गतिविधियों जैसे ड्राइविंग, पढ़ने, सामाजिककरण और चलने में कठिनाई का कारण बन सकती है।

दृष्टि क्षीणतासमानार्थक शब्ददृष्टि हानि, दृष्टि हानिएक सफेद बेंत , अंधेपन का अंतरराष्ट्रीय प्रतीकविशेषतानेत्र विज्ञानलक्षणदेखने की क्षमता में कमी कारणअचूक अपवर्तक त्रुटियां , मोतियाबिंद , ग्लूकोमा नैदानिक ​​विधिनेत्र परीक्षा इलाजदृष्टि पुनर्वास , पर्यावरण में परिवर्तन, सहायक उपकरण आवृत्ति940 मिलियन / 13% (2015) [4]

विश्व स्तर पर दृश्य हानि के सबसे सामान्य कारण हैं बिना सोचे- समझे त्रुटियां (43%), मोतियाबिंद (33%), और ग्लूकोमा (2%)। अपवर्तक त्रुटियों में दूरदर्शी , दूरदर्शी , प्रेस्बोपिया और दृष्टिवैषम्य शामिल हैं । मोतियाबिंद अंधापन का सबसे आम कारण है। अन्य विकार जो दृश्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं उनमें उम्र से संबंधित धब्बेदार अध: पतन , डायबिटिक रेटिनोपैथी , कॉर्नियल क्लाउडिंग , बचपन अंधापन और कई संक्रमण शामिल हैं । अन्य लोगों में स्ट्रोक , समय से पहले जन्म या आघात के कारण मस्तिष्क में दृश्य हानि भी हो सकती है। [Are] इन मामलों को कॉर्टिकल विज़ुअल इम्पेयरमेंट के रूप में जाना जाता है। [ For ] बच्चों में दृष्टि समस्याओं के लिए स्क्रीनिंग से भविष्य की दृष्टि और शैक्षिक उपलब्धि में सुधार हो सकता है। [ Adults ] बिना लक्षणों के स्क्रीनिंग वयस्कों को अनिश्चित लाभ होता है। निदान एक नेत्र परीक्षा द्वारा किया जाता है ।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का अनुमान है कि दृश्य हानि का 80% उपचार के साथ या तो रोके जाने योग्य या इलाज योग्य है। इसमें मोतियाबिंद, इन्फेक्शन रिवर ब्लाइंडनेस और ट्रेकोमा , ग्लूकोमा, डायबिटिक रेटिनोपैथी, अनियंत्रित अपवर्तक त्रुटियां और बचपन के अंधेपन के कुछ मामले शामिल हैं। दृष्टिदोष से पीड़ित कई लोगों को दृष्टि पुनर्वास , उनके वातावरण में बदलाव और सहायक उपकरणों से लाभ होता है।

2015 तक 940 मिलियन लोग कुछ हद तक दृष्टि हानि के साथ थे। २४६ मिलियन में दृष्टि कम थी और ३ ९ मिलियन अंधे थे। गरीब दृष्टि वाले अधिकांश लोग विकासशील दुनिया में हैं और ५० वर्ष से अधिक आयु के हैं। १ ९९ ० के दशक से दृश्य हानि की दर कम हुई है। दृश्य दोषों में उपचार की लागत के कारण प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से काम करने की क्षमता में कमी के कारण काफी आर्थिक लागत होती है।

दृश्य हानि के वर्गीकरण

दृश्य हानि की परिभाषा चश्मा या कॉन्टैक्ट लेंस द्वारा ठीक नहीं की गई दृष्टि कम हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन दृश्य हानि के निम्नलिखित वर्गीकरणों का उपयोग करता है। जब सबसे अच्छा संभव चश्मा सुधार के साथ बेहतर आंख में दृष्टि है:

1. 20/30 से 20/60: को हल्के दृष्टि हानि, या निकट-सामान्य दृष्टि माना जाता है

2. 20/70 से 20/160: मध्यम दृश्य हानि, या मध्यम कम दृष्टि माना जाता है

3. 20/200 से 20/400: को गंभीर दृश्य हानि या गंभीर कम दृष्टि माना जाता है

4. 20/500 से 20 / 1,000: गहरा दृश्य हानि, या गहरा कम दृष्टि माना जाता है

5. 20 / 1,000 से अधिक: को निकट दृष्टि दोष माना जाता है, या कुल अंधापन के पास

6. कोई प्रकाश धारणा नहीं: कुल दृश्य हानि या कुल अंधापन माना जाता है

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा दृष्टिहीनता को 20/500 से कम के सुधार या 10 डिग्री से कम के दृश्य क्षेत्र के साथ किसी व्यक्ति की सबसे अच्छी आंख में दृष्टि के रूप में परिभाषित किया गया है। यह परिभाषा १ ९ was२ में निर्धारित की गई थी, और इस बात पर चर्चा चल रही है कि क्या इसे आधिकारिक तौर पर बिना सोचे-समझे अपवर्तक त्रुटियों में शामिल किया जाना चाहिए

Monday, March 11, 2019

श्रवण बाधिता की पहचान

श्रवण बाधिता की पहचान

श्रवण बाधिता की पहचान सामान्यत: माता-पिता एवं परिवार के सदस्यों द्वारा ही हो जाती है। जिसका सत्यापन भले ही चिकित्सक (Doctors) द्वारा जांच के उपरांत किया जाये।

बच्चे को देखकर

कुछ प्रकार के बहरेपन शारीरिक स्थितियां लक्षणों से जुड़े हो सकते हैं। इस प्रकार के लक्षणों को देखकर इसकी पहचान की जा सकती है, जैसे -

1. बाह्य कान का जन्म से न बना होना इसका “एट्रीशिया” भी कहते हैं।

2. “वार्डन वर्ग सिन्ड्रोम” सिर पर मध्य अग्र बालों का सफेद होना।

इस प्रकार की स्थितियां एक प्रतिशत से भी कम बच्चों के बहरेपन के लिए उत्तरदायी हो सकती है और आमतौर पर बहरेपन को देखकर पहचान करना मुश्किल हो जाता है।

व्यवहार देखकर -

बहरेपन से ग्रस्त लोगों में कुछ विशेष प्रकार के व्यवहार देखे जा सकते हैं। और इनकी मदद से एक बड़े प्रतिशत एक बहरेपन की पहचान भी की जा सकती है।

1. कान के पीछे हाथ लगाकर सुनने का प्रयास करना।

2. बहुत जोर से बोलना।

3. बात सुनते हुए आंखों पर सामान्य से अधिक निर्भर होना।

4. वाचक के चेहरे और होठों पर ज्यादा ध्यान देना।

5. बोलने में कुछ विशेष उच्चारण दोष के कारण उच्च आवाजें, जैसे- अ,ई,ऊ, श, स,म,च आदि ।

6. असंगत रूप से अपने आप में खोये रहना।

7. चेहरे के हाव-भाव एवं मुद्रा द्वारा भी आवाज दोष को पहचाना जा सकता है।

8. पैरों से आवाज करते हएु चलने से भी इसकी पहचान की जा सकती है।


श्रवण बाधितों की पहचान के कुछ संकेत

श्रवण बाधितों की पहचान के कुछ अन्य संकेत हैं -

1. गले में तथा कान में घाव रहता हैं।

2. इनमें वाणी दोष पाया जाता है।

3. सीमित शब्दावली पायी जाती है।

4. यह चिड़चिड़े होते हैं।

5. भाषा का सही विकास नहीं होता है।


श्रवण बाधित बालकों की पहचान जितना जल्द से जल्द हो सके, कर लेना चाहिए। यदि ‘शीघ्र ही बच्चे की पहचान कर ली जाये, तो उनमें वाणी व भाषा का विकास किया जा सकता है तथा श्रवण दोष के प्रभाव को भी कम कर सकते हैं। सामान्यत: विशेषज्ञों का मानना है कि श्रवण-दोष की पहचान जन्म के समय ही कर लेनी चाहिए। जिनती जल्दी इसकी पहचान की जोयगी, उतनी ही जल्दी इन्हें सामान्य समाज से जोड़ा जा सकता है तथा इन बच्चों में होने वाली बहुत सी- मनोवैज्ञानिक कठिनाईयों को कम किया जा सकता है।

आधुनिक विशेषज्ञों ने श्रवण बाधितों को चार वर्गों में बांटा है, जो कि हैं -
(1) केन्द्रीय श्रवण दोष (2) मनोजैविक श्रवण बाधित (3) नाड़ी संस्थान श्रवण बाधित (4) आचरण में श्रवण बाधिता ।

1. केन्द्रीय श्रवण दोष - यह वह बालक होते हैं, जो कि जटिल बाधिता से ग्रस्त हेाते हैं। इस प्रकार के बालक ध्वनि के बारे में जानते तो हैं, परंतु इसका अर्थ नहीं समझ पाते तथा इसकी सम्प्रेक्षण समस्या भी काफी गंभीर होती है। यह दोष दवाओं के सेवन से आ सकते हैं, इसलिए इनके सुधार से अधिक समय लगता है।

2. मनोजैविक श्रवण बाधित - इस प्रकार की बाधिता का कारण मनौवेज्ञानिक होता है। यह बालक अपनी समस्याओं को बढा-चढ़ा कर बताते हें। इन बालकों में किसी रोग के कारण ही बाधिता आ जाती है। कई बार यह पहचानना कठित होता है कि यह दोष मनौवैज्ञानिक है अथवा जैविक। इन बालकों के उपचार में अत्यंत सावधानी रखनी चाहिए।

3. नाड़ी संस्थान श्रवण बाधित- बालकों में नाड़ी संस्थान के दोष के कारण यह दोष आता है। अत: इसका उपचार करना संभव नहीं हो पाता है। यह बालक श्रवण यंत्रों की सहायता से सुनते हैं। इन्हें शिक्षा देने हेतु अलग-अलग प्रावधानों का प्रयोग किया जाता है। यह होठों की भाषा (Lip reading) के द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हैं तथा इन्हें विशिष्ट विद्यालयों में प्रवेश दिया जाता है।

4. आचरण में श्रवण बाधिता - साधारण रूप में ऐसे बाधित बालक आचरण दो”ाी होते हैं। यह  दोष कान के रेागों से संबंधित होते हैं। यदि चिकित्सक इनका उपचार करें तो ठीक हो सकते हैं, परंतु कई बार चिकित्सकों की गलती से यह और अधिक बाधित हो जाते हैं।

श्रवण बाधित की पहचान हेतु परीक्षण

श्रवण बाधित बालकों की पहचान उनके बोलने से ही हो जाती है, परंतु इन्हें पहचानने के लिए कई चिकित्सकीय परीक्षण करने पड़ते हैं, क्योंकि कक्षा में श्रवण बाधित बालक आसानी से शिक्षकों की दृष्टि में नहीं आते हैं, अत: इन्हें पहचानने हेतु कई प्रकार की अन्त: क्रियाएं करनी पड़ती है, जबकि बड़ी कक्षा में ऐसा होना संभव नहीं हो पाता है, अत: बालकों के प्रवेश के समय ही उनका परीक्षण करवा लेना उचित रहता है। बालकों को विद्यालय में प्रवेश दिलाने समय उन्हें अध्यापक को बालकों की श्रवण शक्ति के बारे में बता देना चाहिए।

अत: श्रवण बाधितों को आधार पर पहचाना जाता है -
1. चिकित्सीय परीक्षण 2. विकासात्मक मापनी  3. बालक का अध्ययन 4. मनो-नाड़ी परीक्षण 5. बालकीय व्यवहार का निरीक्षण

1. चिकित्सीय परीक्षण - चिकित्सीय परीक्षण की मापनी के द्वारा श्रवण बाधितों को पहचान आसान होता है। इसमें चिकित्सक की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। श्रवण बाधिता बालकों के व्यक्तित्व को बहुत अधिक बाधित करती है।

2. विकासात्मक मापनी - इन बालकों की पहचान के लिए उनकी विकासात्मक अवस्थाओं को ध्यान में रखना अति आवश्यक होता है। बालकों की ज्ञानेन्द्रियों तथा विकास की अवस्थाओं में प्रत्यक्ष संबंध पाया जाता है। अत: विकासात्मक मापनी अत्यंत उत्तम मापनी है। .

3. बालक का अध्ययन - यह सबसे उत्तम विधि होती है । इसके अंतर्गत बालक के जन्म से लेकर वर्तमान स्थितियों तक की सभी सूचनाओं को संकलित किया जाता है तथा इसी के आधार पर ही श्रवण बाधिता के कारणों का पता चल जाता है। इस विधि से ही समस्याओं का निदान भी निकाल लिया जाता है। इस विधि से बालकों की बीमारियों का पूरा इतिहास पता लगाया जाता जा सकता है।

4. मनो-नाड़ी परीक्षण - यह एक अन्य प्रकार की मापनी है। जिसकी सहायता से श्रवण बाधितों की नोड़ी की क्रियाओं का आंकलन किया जाता है। यह एक मानसिक दोष है। बहुत से श्रवण बाधितों में यह दोष पाया जाता है तथा एक योग्य चिकित्सकों के द्वारा ही इसका उपचार किया जा सकता है।

5. बालकीय व्यवहार का निरीक्षण - यह निरीक्षण श्रवण बाधितों की पहचान हेतु उपयुक्त माना जाता है, इसके अंतर्गत बालकों के व्यवहारों को पहचाना जाता है -

1. बालक यदि सिर एक तरफ मोड़कर सुने तो वह बाधितों की श्रेणी में आते हैं।

2. वह अनुदेशन अनुसरण नहीं कर पाते हैं।

3. इन बालकों की दृष्टि अक्सर बोलने वाले बालकों के या शिक्षकों के मुंह की तरह होती है।

4. यह वाणी बाधित भी हो सकते हैं

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श्रवण बाधित के प्रकार

श्रवण बाधित के प्रकार

जिन बालकों को सुनने में अत्यंत कठिनाई का सामना करना पड़ता है, वह श्रवण बाधित कहलाते हैं। इनमें ध्वनि को सुनने की क्षमता से 1 से 130 डेसीवल्स (Desibles) तक होती है। यदि वह 130 डी.बी. से ऊपर आये, तो यह ध्वनि दर्द की संवेदना देती है। श्रवण बाधित बालकों को चार वर्गों में बांटा जाता है -

1. कम श्रवण बाधित बालक - कम श्रवण बाधित बालक होते हैं, जिन्हें सामान्य स्तर पर बोलने पर सुनायी देता है, परंतु यदि बहुत धीमी बोला जाये, तो यह सुन नहीं पाते हैं। इनकी बातचीत को सामान्य स्तर 65 डी.बी. होता है। यह बालक किंचित श्रवण बाधित बालकों को 31 से 51 डी.बी. की श्रवण बाधिता एि हुए होते हैं। यानि कि यह बालक 54 डी.बी. तक की ध्वनि नहीं सुन पाते हैं, इसलिए इन्हें कम श्रवण बाधितों की श्रेणी में माना जाता है।

2. मंद श्रवण बाधित बालक - यह बालक मंद रूप से श्रवण बाधितों की श्रेणी में इसलिए आते हैं क्योंकि वह बालक 55 से 69 डी.बी. का क्षय रखते हैं। अत: सामान्य स्तर 65 डेसीवल्स पर यह नहीं सुन पाते हैं। अत: यह बालक ऊंचा सूनते हैं।

3. गंभीर श्रवण बाधित बालक - इन बालकों में 70-89 डी.बी. तक की श्रवण बाधिता होती है तथा वे बालक काफी ऊंचा सुनते हैं।

4. पूर्ण बाधित बालक - यह बालक बिल्कुल नहीं सुन पाते हैं। इसकी श्रवण बाधिता 90 डी.बी. तथा इससे आगे के स्तर की जोती है। यह बहुत ऊंचा बोलने पर थोड़ा - सा ही सुन पाते हैं। यह बालक बधिर (Deaf) की श्रेणी में आते हैं।


श्रवण प्रक्रिया

व्यक्ति विशेष की वैसी अक्षमता जो उस व्यक्ति में सुनने की बाधा उत्पन्न करती है। श्रवण अक्षमता कहलाती है। इसमें श्रवण-बाधित व्यक्ति अपनी श्रवण शक्ति को अंशत: या पूर्णत: गंवा देता है तथा उसे सांकेतिक भाषा पर निर्भर रहना पड़ता है। श्रवण अक्षमता को सही तरीके से समझने के लिए यह आवश्यक है कि सर्वप्रथम श्रवण प्रक्रिया (Hearing procedure) को समझने का प्रयास किया जाये कि वास्तव में श्रवण प्रक्रिया किस प्रकार संचलित होती है। श्रवण प्रक्रिया कई चरणों में होकर सम्पन्न होती है जो कि है -

श्रवण प्रक्रिया में कान के द्वारा आवाज को ग्रहण करना और संदेश को केन्द्रीय तांत्रिका तंत्र (सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम) में भेजना सम्मिलित है। श्रवण प्रक्रिया से लोग अपने आस-पास के वातावरण से संबंध रखते हैं। जो भाषा को सीखने का एक प्रमुख मार्ग हे। श्रवण हमें खतरों से भी सावधान करता है। जन्म से लेकर जीवनपर्यन्त श्रवण प्रक्रिया हमें वातावरण पर नियंत्रण करने के लिए सहयता करती हैं।

श्रवण प्रक्रिया कई चरणों से होकर सम्पन्न होती है। इसमें सर्वप्रािम बाह्य वातावरण की ध्वनि कर्ण से टकराकर वाह्य कर्ण नलिका में प्रवेश करती है, जो कान के पर्दे के सम्पर्क में आकर विशेष प्रकार के तंतुओं से जुड़ी मध्य मर्ण की अस्थियों से टकराती है और आगे बढ़ती हुई, वहीं ध्वनि फेनेस्ट्रो ओवलिस में पहुंचती है। इससे स्कैला बेस्टीबुला में कम्पन्न होने लगता है।

इस कम्पन्न के फलस्वरूप कण। के अन्त: भाग के रिनर्स झिल्ली से होते हुए ध्वनि टेक्टोरियस झिल्ली मे पहुंचती है, जिससे हलचल उत्पन्न होती है। यह झिल्ली हलचल को समायोजित करके ध्वनि को आगे की तरफ प्रेषित करती है। इसे काटांई नामक अंग ग्रहण करके 8वीं श्रवण तंत्रिका में भेज देता है। श्रवण तंत्रिका उपयुक्त ध्वनि को मस्तिष्क में भेज देती है, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति को ध्वनि का प्रत्यक्षण होता है। इस सम्पूर्ण श्रवण प्रक्रिया को दिये गये निम्नलिखित सूत्र एवं चित्र द्वारा आसानी से समझा जा सकता है।

श्रवण दोष बच्चे की वाक् उत्तेजना में बाधा डालता है। जबकि भाषा - विकास के लिए सामान्य श्रवण का होना आवश्यक होता है। श्रवण दोष का अंश जो एक सामान्य बुद्धि वाले व्यक्ति में समस्या नहीं उत्पन्न करता, वहीं मानसिक मंद बच्चे में बड़ी समस्या खड़ी कर सकता है। डाउन सिड्रोम से ग्रसित अधिकांश बच्चों में श्रवण दोष और कान के संक्रामक रोग देखे गये हैं।

सुनना

श्रवण प्रक्रिया और सुनना एक ही प्रक्रियाएं नहीं है। सुनना एक श्रवण प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य अर्थ निकलना है या शब्दों के अर्थ देने के उद्देश्य से शब्द ग्रहण करना होता है। इसमें मुख्य रूप से सम्मिलित प्रक्रिया है। इसकी तुलना में श्रवण प्रक्रिया एक शारीरिक क्रिया है।

श्रवण दोष

श्रवण दोष के तात्पर्य सुनने की अक्षमता है। श्रवण दोष व्यक्ति में दूसरों की बात और वातावरण की अन्य ध्वनियों को सुनने में कठिनाई उत्पन्न होती है।


श्रवण क्षतियुक्तता के कारण -

बालकों के विकास को जन्म से पूर्व, जन्म के समय तथा जन्म के पश्चात् विभिन्न कारक प्रभावित करते हैं श्रवण क्षतियुक्तता के कारण हैं -

श्रवण क्षतियुक्तता के कारण

जन्म से पूर्व, जन्म के समयजन्म के पश्चात्जाननिक कारण बीमारीजर्मन खसरा दुर्घटनागर्भावस्था में श्रवण शक्ति उच्च ध्वनिअसामयिक प्रसवआयुअसुरक्षित प्रसवअसंतुलित आहार

जाननिक कारण

आनुवंशिकता श्रवण संबंधित दोषों का प्रमुख कारण है। साधारणतया यह देखा गया है कि जिन बालाकों के माता-पिता बहरे होते हैं उन्हें श्रवण दोष देखने को मिलता है। यदि अत्यंत निकट संबंधी आपस में विवाह करते हैं तब इस तरह के दोष की संभावना रहती है। जन्मजात श्रवण दोष का कारण जाननिक तब भी सकता है जब माता-पिता और अन्य भाई बहनों में यह दोष न हो क्योंकि यहां श्रवण दोष का कारण माँ या पिता या दोनों में विद्यमान जीन्स हो सकते हैं। श्रवण दोष जीन्स की विशेषताओं के कारण होती है :

1. माता और पिता दोनों में विद्यमान एक अपगामी जीन्स

2. माता और पिता दोनों में से किसी में विद्यमान प्रबल जीन्स

3. लिंग संबंधी जीन्स जो केवल माँ में होता है और केवल पुत्र को प्रभावित करता है।


जर्मन खसरा

1980 में जर्मन खसरा एक महामारी के रूप में फैला यह देखा गया कि जो गर्भवती माताएं इस बीमारी से पीड़ित हुई उनकी सन्तानें श्रवण क्षतियुक्त हुई। तब यह निष्कर्ष निकाला गया है कि जर्मन खसरा भी श्रवण विकलांगता का एक कारण है।

गर्भावस्था में क्षतियुक्तता

जब बालक गर्भ में होता है तब उस समय श्रवण दोष होने की संभावना होती है। इसके कारण हो सकते हैं -

1. माँ कोई जहरीले पदार्थ का सेवन कर ले।

2. शराब का सवेन करें।

3. असंतुलित भोजन ग्रहण करें।

4.  दूषित भोजन करें।

5. बीमार रहे।


असामयिक प्रसव

असामयिक प्रसव की श्रवण दोष उत्पन्न करता है हालांकि यह अभी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है। कभी-कभी इससे उत्पन्न बालक में श्रवण दोष दिखाई पड़ता है।

असुरक्षित प्रसव

यदि प्रसव के समय रक्त प्रवाह अधिक हो जाये या रक्त का विकृत संचार हो ऑक्सीजन का अभाव हो तो तब बालक के श्रवण यंत्र कुप्रभावित हो जाते हैं।
अधिकतर ऐसा देखते में आता है कि जन्म के समय बालक सामान्य होता है परंतु विकास के दौरान उसका श्रवण यंत्र प्रभावित हो जाता है जिसके कारण हो सकते हैं।

बीमारियां

कुछ बीमारियां इस प्रकार की जोती है जो कि कभी-कभी श्रवण दोष उत्पन्न करती हैं। जैसे -

1. कमफड़ा

2. खसरा,

3. चेचक,

4. मोतीझरा

5. कुकर खांसी

6. कान में मवाद।


दुर्घटना

 कोई दुर्घटना भी व्यक्ति के श्रवण यंत्र को नुकसान पहुंचा सकती है। जिससे कि श्रवण दोष हो सकता है। किसी लकड़ी या पिन के काम का मेल निकालते समय भी बालक अन्जाने में कर्ण पटल को नुकसान पहुंचा देते है। जिससे कभी-कभी श्रवण दोष हो सकता है।

उच्च ध्वनि

कभी-कभी जोर से धमाका कर्ण पटल को फाड़ देता है। इसी प्रकार निरंतर उच्च ध्वनि को सुनते रहने से कान केवल उच्च ध्वनि को ही पकड़ पाते हैं। सामान्य ध्वनि धीमी गति से बोले गये शब्द वह भली प्रकार से नहीं सुन पाते हैं। इस प्रकार उच्च ध्वनि भी श्रवण दोष उत्पन्न करती है।

आयु

(4) वृद्धावस्था में शारीरिक तंत्र कमजोर पड़ने लगते हैं अत: सुनाई कम पड़ने लगता है। अत: उम्र के साथ-साथ व्यक्ति का श्रवण यंत्र प्रभावित होता जाता है।

संतुलित आहार

यदि बालक को संतुलित आहार नहीं मिलता तब उसकी श्रवण शक्ति ऋणात्मक रूप से प्रभावित होती हे। इस कारण यह है कि बालक के श्रवण यंत्र के कोमल तंतुओं को जिंदा रहने व विकास करने के लिए ऊर्जा नहीं मिलती है।

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Sunday, March 10, 2019

श्रवण बाधित की विशेषताएं

श्रवण बाधित की विशेषताएं

श्रवण बाधिक बालकों में अनेक विशेषताएं पायी जाती हैं ।
1. भाषा संबंधी विशेषताएं 2. शैक्षिक विशेषताएं
3. बौद्धिक योग्यता संबंधी विशेषताएं 4. सामाजिक व व्यावसायिक विशेषताएं 5. अन्य महत्वपूर्ण विशेषताएं।

भाषा संबंधी विशेषताएं

1. श्रवण बाधित बालकों की भाषा भी अत्यंत प्रभावित होती है।

2. इनको प्रशिक्षण के द्वारा उचित शिक्षा प्रदान की जाती है।

3. गंभीर बाधितों में यह सबसे बड़ी कठिनाई होती है कि वह बालक का सामान्य विकास नहीं कर पाते।

4. यह भाषा का कम प्रयोग करते हैं।

5. इनके गहन प्रशिक्षण के द्वारा भाषा का सामान्य विकास हो जाता है।

6. इन बालकों की अभिवृत्ति ऐसी होती है कि वो अपने को बोलने में अयोग्य समझते हैं, परंतु वह वैज्ञानिक आधार नहीं होता है।


शैक्षिक विशेषताएं

1. इन बालकों में शिक्षा संबंधी अनेक विशेषताएं होती है।

2. इनका बौद्धिक स्तर तो ऊंचा होता है, परंतु फिर भी इनकी शैक्षिक उपलब्धि ऊंची नहीं होती।

3. इन बालकों की शैक्षिक निष्पत्ति के हालात ज्यादा उच्च नहीं होते, क्योंकि शैक्षिक निष्पत्ति में शाब्दिक योग्यता की भूमिका उच्च होती है।

4. इन बालकों को पढ़ने में कठिनाई होती है, क्योंकि इनकी भाषा का सही विकास नहीं होता है।

बौद्धिक योग्यता संबंधी विशेषताएं

1. श्रवण बाधित बालकों का मानसिक विकास सामान्य बालकों के समान ही होता है।

2. इन बालकों में बौद्धिक कार्य सामान्य बालकों के जैसे ही होते हैं।

3. इनकी चिन्तन शक्ति सामान्य बालकों जैसी होती है।

4. यह बालक अशाब्दिक भाषा से बौद्धिक कार्य करने में सक्षम होते हैं।

5. इन बालकों की बौद्धिक अशाब्दिक परिक्षा (Non-verbal intelligent test) में इनकी बुद्धि-लाब्धि उच्च होती है।

सामाजिक व व्यावसायिक विशेषताएं

1. श्रवण बाधित बालक अपने ही समूह में रहना पसंद करते हैं तथा उनसे संबंध बनाते हैं उनकी रूचियां भी समान होती हैं।

2. सम्प्रेषण की समस्याओं के कारण समाज में इनकी अन्त:प्रक्रिया नहीं हो पाती हैं।

3. इन बालकों की इच्छाएं तो अधिक होती हैं कि इन्हें सामाजिक मान्यता मिले व सामाजिक अन्त: प्रक्रिया हो तथा इस इच्छा पूर्ति के न होने से उनमें हीन भावना अधिक हो जाती है।

4. श्रवण बाधित बालकों के सामाजिक व व्यक्तित्व संबंधी विशेषताएं सामान्य बालकों से अलग होती है।

5. श्रवण बाधित बालकों में भावात्मक समायोजन में सामान्य बालकों के समान होते हैं। सामान्य बालकों की तरह वातावरण के घटक उनके भावनात्मक पक्ष को प्रभावित करते हैं।

अन्य महत्वपूर्ण विशेषताएं

कुछ शोध अध्ययनों के फलस्वरूप यह पता चला है कि श्रवण बाधित बालकों की मानसिक योग्यता कम होती है तथा इनकी शैक्षिक योग्यता एवं समायोजन भी उत्तम नहीं होता है।


सामान्य श्रवण विकास -

बच्चों में सामान्य विकास हो रहा है अथवा नहीं, जानने के लिए नीचे दिये गये निर्देशों पर ध्यान देना चाहिए। यदि बच्चे द्वारा इस प्रकार की अनुक्रियाएं नहीं ही जा रही है, तो श्रवण दोष की आशंका की जानी चाहिए। यदि ताली की आवाज जोर से दी जाय तो बच्चा चौंकता है। सामान्यत: बच्चे अपने मां की आवाज को पहचानते हैं और उनकी आवाज सुनने पर चुप हो जाते हैं। बच्चों के साथ बात की जाये, तो वे मुस्कुराते भी हैं और यदि खेल रहे हैं तो आवास होने पर खेलना बंद कर देते हैं। यदि उनके पास सुखदायी एवं नई आवाज उत्पन्न की जाये, तो वे अच्छी तरह सुनते हैं। इस उम्र के बच्चे आवाज होने पर उस दिशा में गर्दन घुमाकर देखते हैं। इस उम्र के बच्चे बुलाने पर देखते हैं तथा कुछ शब्दों को समझते भी हैं, जैसे - मुंह बंद करो, मुंह खोलो इत्यादि। साधारण निर्देश को समझते हैं। ½½ -वर्ष  आग्रह करने पर बच्चे उस पर प्रतिक्रिया करते हैं, जैसे - मुझे गुड़िया दो। यदि बच्चे का व्यवहार का सावधानीपूर्वक आकलन करते हैं, तो प्राय: श्रवण दोष की पहचान की जा सकती है।

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श्रवण बांधिता(HI)

Hearing Impaired (HI)


परिभाषा- 

जब कोई व्यक्ति सामान्य ध्वनि को सुनने में असक्षम पाया जाता है, तो हमें उसे अक्षम कहा जा सकता है और इस अवस्था को श्रवण क्षतिग्रस्तता कहा जाता है। हमारे देश में इस प्रकार की समस्या से ग्रसित प्राय: हर आयु वर्ग के लोग पाये जाते हैं, जिसके अनेकों कारण हैं। इसका सबसे बड़ा कारण ध्वनि प्रदूषण एवं अनेकों प्रकार की बीमारियों हैं। श्रवण क्षतिग्रस्तता को समझने के लिए यह अत्यंत आवश्यक होता है कि इस सामान्य श्रवण प्रक्रिया के विषय में जानकारी रखें।

भारत एक विशाल क्षेत्र वाला देश है। जिसमें 1 अरब से अधिक जनसंख्या निवास करती है। इस जनसंख्या के कुछ प्रतिशत लोग किसी-न -किसी विकलांगता से ग्रसित हैं। देखा जाये तो देश की स्वतंत्रता के बाद भी विकलांगता के क्षेत्र में अप्रत्याशित परिवर्तन हुए हैं। जनगणना 1931 के अनुसार मूक बधिर व्यक्तियों की जनसंख्या 2,31,000 थी। देश की भौगोलिक संरचना के आधार राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन 1991 के आंकड़ों के आधार पर लगभग 32,42,000 व्यक्ति श्रवण अक्षमता से ग्रसित पाये गये। आंकड़ों के अनुसार श्रवण बाधिता 60 वर्ष या उससे अधिक उम्र के व्यक्तियों में अधिक पायी गयी। विभिन्न सर्वेक्षणों के अनुसार पता चलता है कि 1 प्रतिशत बच्चे जन्मजात श्रवण दोष से ग्रसित होते हैं। इस प्रकार हमारे देश में अति अल्प, 25 प्रतिशत अलप, 19 प्रतिशत अल्पतम् 42 प्रतिशत गंभीर एवं 12 प्रतिशत अति गंभीर होते है। इस प्रकार चलित श्रवण क्षति, संवेदी श्रवण क्षति, केन्द्रीय श्रवण क्षति एवं मिश्रित श्रवण क्षति सभी वर्ग के बच्चे पाये जाते हैं। इनके शिक्षण एवं प्रशिक्षण हेतु मानव संसाधन विकसित किये जा रहे हैं। सिससे इनका पुनर्वास किया जा सके।

श्रवण बाधित की परिभाषाएं

श्रवण क्षतिगस्तता को विभिन्न संगठनों द्वारा समय-समय पर परिभाषित किया गया है -

1. राष्ट्रीय प्रतिदर्श सवेक्षण संगठन (1991) के अनुसार “श्रवण बाधित उसे कहा जाता है, जो सामान्य रूप से सामान्य ध्वनि को सुनने में अक्षम हो।”

2. भारतीय पुनर्वास परिषद् के अनुसार “जब बधिरता 70 डेसीमल हो, तो व्यवसायिक तथा जब 55 डेसिमल तक हो, तो उसे शिक्षा के लिये प्रयोग में लेना चाहिए।”

3. योजना आयोग एवं विकलांग जन अधिनियम (1995) के अनुसार “वह व्यक्ति श्रवण बाधित कहा जायेगा, जो 60 डेसिमल या उससे अधिक डेसिमल पर सुनने की क्षमता रखता हो।”

4. समाज कल्याण के अनुसार “जब किसी व्यक्ति के एक कान में 60 डेसिमल श्रवण क्षतिग्रस्तता हो तथा दूसरा कान अच्छा हो, तो वह उच्च शिक्षा के लिए उपयोगी हो सकता है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट होता है कि जब व्यक्ति सुनने में असक्षम हो तथा दूसरों की सहायता लेता है, उससे यह ज्ञात होता है कि व्यक्ति को श्रवण दोष है। श्रवण दोष एक अदृश्य एवं छुपी हुई विकलांगता है, जो देखने से नहीं दिखाई देती है। कोई व्यक्ति हाथ या पैर से विकलांग है तो वह बैसाखी, व्हील चेयर, ट्राईसाइकिल आदि का प्रयोग करता है। जिससे उसकी शारीरिक विकलांगता का पता चलता है तथा एक मानसिक विकलांग बच्चा अपने हाव-भाव, क्रिया-कलापों तथा व्यवहार यह साबित करता है कि वह मानसिक मन्द है।


सामान्य रूप से सुनाई देने वाली ध्वनियों में कम तीक्ष्णता होने पर श्रवण हानि होती है। [११] सुनने में बिगड़ा हुआ या सुनने में मुश्किल होने वाले शब्द आमतौर पर ऐसे लोगों के लिए आरक्षित होते हैं जिनके पास भाषण आवृत्तियों में ध्वनि सुनने में असमर्थता होती है। श्रवण हानि की गंभीरता को श्रोता का पता लगाने से पहले आवश्यक सामान्य स्तर से ऊपर की मात्रा में वृद्धि के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है।

बहरेपन को नुकसान की एक डिग्री के रूप में परिभाषित किया गया है कि एक व्यक्ति प्रवर्धन की उपस्थिति में भी भाषण को समझने में असमर्थ है। [११] गहन बहरेपन में, यहां तक ​​कि एक ऑडीओमीटर द्वारा उत्पन्न होने वाली उच्चतम तीव्रता की आवाज़ें (आवृत्तियों की एक श्रृंखला के माध्यम से शुद्ध स्वर ध्वनियों का उत्पादन करके सुनने को मापने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला उपकरण) का पता नहीं लगाया जा सकता है। कुल बधिरता में, उत्पादन की प्रवर्धन या विधि की परवाह किए बिना, कोई भी आवाज़ नहीं सुनी जाती है।

भाषण धारणा - सुनने के एक अन्य पहलू में शब्द की ध्वनि की तीव्रता के बजाय शब्द की स्पष्टता शामिल है।मनुष्यों में, वह पहलू आमतौर पर भाषण भेदभाव के परीक्षणों द्वारा मापा जाता है। ये परीक्षण भाषण को समझने की क्षमता को मापते हैं, न कि केवल ध्वनि का पता लगाने के लिए। सुनवाई के नुकसान के बहुत दुर्लभ प्रकार हैं जो अकेले भाषण भेदभाव को प्रभावित करते हैं। एक उदाहरण श्रवण न्युरोपटी है , सुनवाई हानि की एक किस्म जिसमें कोक्ली के बाहरी बाल कोशिकाएं बरकरार हैं और कार्य कर रही हैं, लेकिन ध्वनि की जानकारी श्रवण तंत्रिका और मस्तिष्क में ठीक से संचारित नहीं होती है। [17]

"बधिरों की सुनवाई", "बधिर-मूक", या "बहरे और गूंगे" शब्दों का उपयोग करना, बधिरों का वर्णन करना और लोगों को सुनने में कठिन होना वकालत करने वाले संगठनों द्वारा हतोत्साहित किया जाता है क्योंकि वे कई बधिरों और सुनने वाले लोगों के प्रति कठोर होते हैं। [18]


श्रवण  हानि के मानक- 

मानव श्रवण २०-२०,००० हर्ट्ज से आवृत्ति में, और ० डीबी से १२० डीबी एचएल या अधिक की तीव्रता में फैली हुई है।0 डीबी ध्वनि की अनुपस्थिति का प्रतिनिधित्व नहीं करता है, बल्कि सबसे नरम ध्वनि एक औसत बिना आवाज़ वाला मानव कान सुन सकता है; कुछ लोग −5 या यहां तक ​​कि d10 डीबी तक सुन सकते हैं। ध्वनि आमतौर पर 90 डीबी से ऊपर है और 115 डीबी दर्द की दहलीज को दर्शाता है ।कान सभी आवृत्तियों को समान रूप से अच्छी तरह से नहीं सुनता है; सुनने की संवेदनशीलता लगभग 3000 हर्ट्ज है।आवृत्ति रेंज और तीव्रता के अलावा मानव सुनवाई के कई गुण हैं जिन्हें आसानी से मात्रात्मक रूप से नहीं मापा जा सकता है। लेकिन कई व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए, सामान्य सुनवाई को आवृत्ति बनाम तीव्रता ग्राफ, या ऑडियोग्राम द्वारा परिभाषित किया जाता है, आवृत्ति पर सुनवाई की संवेदनशीलता थ्रेसहोल्ड। उम्र के संचयी प्रभाव और शोर और अन्य ध्वनिक अपमान के संपर्क के कारण, 'विशिष्ट' सुनवाई सामान्य नहीं हो सकती है। [१ ९] [२०]

श्रवण हानि के लक्षण -

1. टेलीफोन का उपयोग करने में कठिनाई

2. ध्वनि की दिशात्मकता का नुकसान

3. भाषण समझने में कठिनाई, विशेषकर उन बच्चों और महिलाओं के लिए जिनकी आवाज उच्च आवृत्ति की होती है ।

4. पृष्ठभूमि शोर ( कॉकटेल पार्टी प्रभाव ) की उपस्थिति में भाषण समझने में कठिनाई

5. लगता है या भाषण सुस्त हो रहा है, muffled या क्षीणन

6. टेलीविजन, रेडियो, संगीत और अन्य ऑडियो स्रोतों पर बढ़ी हुई मात्रा की आवश्यकता

सुनवाई हानि संवेदी है, लेकिन लक्षणों के साथ हो सकता है:

7.  कानों में दर्द या दबाव

8. एक अवरुद्ध भावना

माध्यमिक लक्षणों के साथ भी हो सकता है:

9. हाइपरकेसिस , कुछ तीव्रता और ध्वनि की आवृत्तियों के साथ श्रवण दर्द के साथ संवेदनशीलता बढ़ जाती है, जिसे कभी-कभी "श्रवण भर्ती" के रूप में परिभाषित किया जाता है।

10. जब कोई बाहरी आवाज़ न हो तो टिन्निटस , रिंगिंग, बज़िंग, हिसिंग या अन्य आवाज़ें

11. सिर का चक्कर और असमानता

12. tympanophonia , किसी की स्वयं की आवाज़ और श्वसन ध्वनियों की असामान्य सुनवाई, आमतौर पर एक पैशुलस (एक लगातार खुला) यूस्टेशियन ट्यूब या डिसेंट बेहतर सुपीरिकुलर नहरों के परिणामस्वरूप

13. चेहरे की गति की गड़बड़ी (संभावित ट्यूमर या स्ट्रोक का संकेत) या बेल्स पाल्सी वाले व्यक्तियों में

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