Monday, April 15, 2019

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR)

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद

The Indian Council of Medical Research
 (ICMR)


भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आई.सी.एम.आर), नई दिल्ली, भारत में जैव-चिकित्सा अनुसंधान हेतु निर्माण, समन्वय और प्रोत्साहन के लिए शीर्ष संस्था है। यह विश्व के सबसे पुराने आयुर्विज्ञान संस्थानों में से एक हैं। इस परिषद को भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा वित्तीय सहायता प्राप्त होती है। इसका मुख्‍यालय रामलिंगस्‍वामी भवन, अंसारी नगर, नई दिल्‍ली में स्थित है।


भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद

Indian Council of Medical Research


संक्षेपाक्षर                          - आई.सी.एम.आर
प्रकार                               - व्यावसायिक संगठन
मुख्यालय                          - नई दिल्ली
क्षेत्र served।                   - भारत
सचिव एवं महानिदेशक।       - डॉ॰वी.एम.कटोच
जालस्थल                          - www.icmr.nic.in


केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री परिषद के शासी निकाय के अध्यक्ष हैं। जैवआयुर्विज्ञान के विभिन्न विषयों के प्रतिष्ठित विशेषज्ञों की सदस्यता में बने एक वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड द्वारा इसके वैज्ञानिक एवं तकनीकी मामलों में सहायता प्रदान की जाती है। इस बोर्ड को वैज्ञानिक सलाहकार दलों, वैज्ञानिक सलाहकार समितियों, विशेषज्ञ दलों, टास्क फोर्स, संचालन समितयों, आदि द्वारा सहायता प्रदान की जाती है, जो परिषद की विभिन्न शोध गतिविधियों का मूल्यांकन करती हैं और उन पर निगरानी रखती हे। महानिदेशक, परिषद के कार्यकारी अध्‍यक्ष हैं तथा वे स्‍वास्‍थ्‍य अनुसंधान विभाग के सचिव भी हैं। उन्‍हें वित्‍तीय सलाहकार और वैज्ञानिक एवं प्रशासनिक प्रभागों के अध्‍यक्षों का सहयोग प्राप्‍त है।

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR), नई दिल्ली, जैव चिकित्सा अनुसंधान के निर्माण, समन्वय और संवर्धन के लिए भारत में शीर्ष निकाय, दुनिया के सबसे पुराने चिकित्सा अनुसंधान निकायों में से एक है। ICMR ने हमेशा ही बायोमेडिकल में वैज्ञानिक प्रगति की बढ़ती मांगों को संबोधित करने का प्रयास किया है

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR), नई दिल्ली, जैव चिकित्सा अनुसंधान के निर्माण, समन्वय और संवर्धन के लिए भारत में शीर्ष निकाय, दुनिया के सबसे पुराने चिकित्सा अनुसंधान निकायों में से एक है।

ICMR ने हमेशा एक तरफ जैव चिकित्सा अनुसंधान में वैज्ञानिक प्रगति की बढ़ती मांगों को संबोधित करने का प्रयास किया है, और दूसरी ओर देश की स्वास्थ्य समस्याओं के व्यावहारिक समाधान खोजने की आवश्यकता है। ICMR उन दिनों से एक लंबा सफर तय कर चुका है जब इसे IRFA के रूप में जाना जाता था, लेकिन परिषद इस तथ्य के प्रति सचेत है कि इसके पास अभी भी वैज्ञानिक उपलब्धियों के साथ-साथ स्वास्थ्य लक्ष्यों को पूरा करने के लिए मीलों की दूरी है।


ICMR का इतिहास

1949

IRFA को इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (डॉ। सीजी पंडित के साथ इसके पहले निदेशक के रूप में) के रूप में फिर से तैयार किया गया।

ICMR को भारत सरकार द्वारा स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के माध्यम से वित्त पोषित किया जाता है।

1948
डॉ। सीजी पंडित को जुलाई 1948 में IRFA के पहले पूर्णकालिक सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था।

1945
नैदानिक ​​अनुसंधान और मेडिकल कॉलेजों में अनुसंधान के विकास पर अधिक ध्यान देने में सक्षम बनाने के लिए एक नैदानिक ​​अनुसंधान सलाहकार समिति को पहले कदम के रूप में नियुक्त किया गया था।

भारतीय कैंसर अनुसंधान केंद्र, बॉम्बे में एक नैदानिक ​​अनुसंधान इकाई (एक चिकित्सा संस्थान से जुड़ी IRFA की पहली अनुसंधान इकाई) की स्थापना की गई थी।

1942
कालाजार के परजीवी के संचरण चक्र को स्वामीनाथ, स्मिथ, शॉर्ट और एंडरसन द्वारा स्पष्ट किया गया था।

1941
IRFA द्वारा एक रिसर्च फेलोशिप योजना शुरू की गई थी।

 1938
आईआरएफए को स्थानीय निकाय के रूप में 22 मार्च, 1938 को 1860 के भारत सरकार अधिनियम संख्या XXI के तहत सरकार द्वारा प्रशासित नहीं किया गया था।

1937 में जावा में आयोजित ग्रामीण स्वच्छता पर सुदूर पूर्वी देशों के सम्मेलन की सिफारिश के अनुरूप, भारत सरकार ने निर्णय लिया कि IRFA की पोषण सलाहकार समिति को भारत के लिए राष्ट्रीय पोषण समिति के रूप में भी कार्य करना चाहिए।

"मलेरिया सर्वे ऑफ इंडिया" को "मलेरिया इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया" के रूप में फिर से तैयार किया गया।

"द रिकॉर्ड ऑफ मलेरिया सर्वे ऑफ़ इंडिया" को "जर्नल ऑफ़ मलेरिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया" के रूप में पुनः डिज़ाइन किया गया था (जो बाद में 1947 में भारतीय जर्नल ऑफ़ मलारीलॉजी बन गया)।

1937
कुन्नूर में पोषण अनुसंधान प्रयोगशालाओं में पोषण का प्रशिक्षण शुरू किया गया था।

"भारतीय खाद्य पदार्थों के पोषण मूल्य और संतोषजनक आहार की योजना" तैयार की गई थी (जिसे अब बार-बार दोहराया गया है)।

1932
IRFA की गवर्निंग बॉडी ने कलकत्ता में स्वच्छता और जन स्वास्थ्य संस्थान की स्थापना का कार्य पूरा किया।

1929
The डेफिसिएंसी डिसीज इंक्वायरी ’को पोषण अनुसंधान केंद्र (कर्नल मैकरिसन के साथ इसके पहले निदेशक के रूप में) में परिवर्तित किया गया था।

1927
Lt.Col की योजनाओं का पुनर्निर्माण। एसआर क्रिस्टोफ़र्स को "मलेरिया सर्वे ऑफ इंडिया" के रूप में एक केंद्रीय मलेरिया संगठन के निर्माण के लिए (कसौली में केंद्रीय मलेरिया ब्यूरो को अवशोषित करके और क्विनिन और मलेरिया और भारतीय कुलिसाइड पर पूछताछ)।

करनाल में एक प्रायोगिक मलेरिया स्टेशन की स्थापना भारत के मलेरिया सर्वेक्षण के एक भाग के रूप में की गई थी।

1926
आईआरएफए को पारलाकेमेडी के महाराजा से 1 लाख रुपये का पहला शानदार सार्वजनिक योगदान मिला।

1925
कुन्नूर ('डिफिशिएंसी डिसीज इंक्वायरी' के तहत कर्नल मैककैरिसन द्वारा पोषण संबंधी रोगों पर शोध शुरू किया गया था)।

1923
कलकत्ता स्कूल ऑफ़ ट्रॉपिकल मेडिसिन एंड हाइजीन, कलकत्ता में मेडिकल रिसर्च वर्कर्स का पहला अखिल भारतीय सम्मेलन आयोजित किया गया था। (यह बाद में एक वार्षिक कार्यक्रम बन गया)।

1918-1920
The बेरी-बेरी इंक्वायरी ’की शुरुआत कुन्नूर (सर रॉबर्ट मैकक्रिसन के मार्गदर्शन में) से हुई थी।

'क्विनिन एंड मलेरिया इन्क्वायरी' (कसौली में मेजर सिंटन के तहत) शुरू की गई थी।

काला-अज़ार अनुषंगी जाँच शुरू की गई थी (मेजर नोल्स और डॉ। नेपियर के साथ)।

देशी ड्रग्स पर अनुसंधान शुरू किया गया था (कलकत्ता स्कूल ऑफ़ ट्रॉपिकल मेडिसिन, कलकत्ता में कर्नल आरएन चोपड़ा के तहत)।

1913-1914
इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च की शुरुआत 1913-14 (महानिदेशक, भारतीय चिकित्सा सेवाओं के अधिकार के तहत) से हुई थी।

1912
गवर्निंग बॉडी की दूसरी बैठक में, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान के लिए एक पत्रिका शुरू करने के लिए एक ऐतिहासिक निर्णय लिया गया।

1911
भारतीय अनुसंधान कोष संघ (IRFA) की शासी निकाय की पहली बैठक 15 नवंबर, 1911 को (सर हारकोर्ट बटलर की अध्यक्षता में प्लेग प्रयोगशाला, बॉम्बे में) आयोजित की गई थी।

एसोसिएशन के लेखों पर विचार किया गया और उसी बैठक में एक वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड का गठन किया गया

परिषद की अनुसंधान प्राथमिकताएं राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राथमिकताओं के साथ मेल खाती हैं जैसे कि संचारी रोगों के नियंत्रण और प्रबंधन, प्रजनन क्षमता नियंत्रण, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, पोषण संबंधी विकारों का नियंत्रण, स्वास्थ्य देखभाल वितरण के लिए वैकल्पिक रणनीति विकसित करना, पर्यावरण और व्यावसायिक स्वास्थ्य समस्याओं की सुरक्षा सीमाओं के भीतर रोकथाम। ; कैंसर, हृदय रोगों, अंधापन, मधुमेह और अन्य चयापचय और रक्त संबंधी विकारों जैसे प्रमुख गैर-संचारी रोगों पर शोध; मानसिक स्वास्थ्य अनुसंधान और दवा अनुसंधान (पारंपरिक उपचार सहित)। ये सभी प्रयास बीमारी के कुल बोझ को कम करने और आबादी के स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किए गए हैं।


परिषद के शासी निकाय की अध्यक्षता केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री करते हैं। यह एक वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड द्वारा वैज्ञानिक और तकनीकी मामलों में सहायता प्रदान करता है जिसमें विभिन्न जैव चिकित्सा विषयों में प्रख्यात विशेषज्ञ शामिल होते हैं। बोर्ड, अपनी बारी में, वैज्ञानिक सलाहकार समूहों, वैज्ञानिक सलाहकार समितियों, विशेषज्ञ समूहों, कार्य बलों, संचालन समितियों आदि की एक श्रृंखला द्वारा सहायता प्रदान करता है जो परिषद की विभिन्न अनुसंधान गतिविधियों का मूल्यांकन और निगरानी करते हैं।

परिषद देश में जैव चिकित्सा अनुसंधान के साथ-साथ आंतरिक अनुसंधान को भी बढ़ावा देती है। दशकों से, परिषद द्वारा अतिरंजित अनुसंधान के आधार और इसकी रणनीतियों का विस्तार किया गया है।


 ICMR के संस्थान


  1. ICMR डेजर्ट मेडिसिन रिसर्च सेंटर, जोधपुर
  2. ICMR नेशनल एड्स रिसर्च इंस्टीट्यूट (NARI), पुणे
  3. ICMR नेशनल एनिमल रिसोर्स फैसिलिटी फॉर बायोमेडिकल रिसर्च (NARFBR), हैदराबाद
  4. आईसीएमआर नेशनल सेंटर फॉर डिसीज इंफॉर्मेटिक्स एंड रिसर्च, बेंगलुरु
  5. ICMR नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन एनवायर्नमेंटल हेल्थ (NIREH), भोपाल
  6. ICMR नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन रिप्रोडक्टिव हेल्थ (NIRRH), मुंबई
  7. ICMR नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन ट्राइबल हेल्थ (NIRTH), जबलपुर
  8. आईसीएमआर नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन ट्यूबरकुलोसिस (NIRT), चेन्नई
  9. ICMR नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर प्रिवेंशन एंड रिसर्च (NICPR), नोएडा
  10. आईसीएमआर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कॉलरा एंड एंटरिक डिसीज (एनआईसीईडी), कोलकाता
  11. आईसीएमआर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी (एनआईई), चेन्नई
  12. आईसीएमआर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोहैमोटोलॉजी (NIIH), मुंबई
  13. ICMR नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मलेरिया रिसर्च (NIMR), दिल्ली
  14. ICMR नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल स्टैटिस्टिक्स (NIMS), दिल्ली



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Sunday, April 14, 2019

यूनेस्को (UNESCO) 'संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन

UNESCO - United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization


यूनेस्को (UNESCO) 'संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (United Nations Educational Scientific and Cultural Organization)' का लघुरूप है।


संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन


प्रकार               -  विशेषज्ञ संस्था
संक्षिप्ति            -  UNESC
अध्यक्ष   - UNESCO की वर्तमान में प्रमुख आंद्रे अजोले
वर्तमान
स्थिति              -  सक्रि
स्थापना            -  4 नवंबर 1946
जालस्थल         -  www.unesco.org

संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) संयुक्त राष्ट्र का एक घटक निकाय है। इसका कार्य शिक्षा, प्रकृति तथा समाज विज्ञान, संस्कृति तथा संचार के माध्यम से अंतराष्ट्रीय शांति को बढ़ावा देना है। संयुक्त राष्ट्र की इस विशेष संस्था का गठन 4 नवम्बर 1946 को हुआ था। इसका उद्देश्य शिक्षा एवं संस्कृति के अंतरराष्ट्रीय सहयोग से शांति एवं सुरक्षा की स्थापना करना है, ताकि संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में वर्णित न्याय, कानून का राज, मानवाधिकार एवं मौलिक स्वतंत्रता हेतु वैश्विक सहमति बन पाए।

इसका मुख्यालय पैरिस, फ्रांस में स्थित है।

परिचय

यूनेस्को के 193 सदस्य देश हैं और 11 सहयोगी सदस्य देश और दो पर्यवेक्षक सदस्य देश हैं। इसके कुछ सदस्य स्वतंत्र देश भी नहीं हैं। इसका मुख्यालय पेरिस (फ्रांस) में है। इसके ज्यादार क्षेत्रीय कार्यालय क्लस्टर के रूप में है, जिसके अंतर्गत तीन-चार देश आते हैं, इसके अलावा इसके राष्ट्रीय और क्षेत्रीय कार्यालय भी हैं। यूनेस्को के 27 क्लस्टर कार्यालय और 21 राष्ट्रीय कार्यालय हैं।

यूनेस्को मुख्यतः शिक्षा, प्राकृतिक विज्ञान, सामाजिक एवं मानव विज्ञान, संस्कृति एवं सूचना व संचार के जरिये अपनी गतिविधियां संचालित करता है। वह साक्षरता बढ़ानेवाले कार्यक्रमों को प्रायोजित करता है और वैश्विक धरोहर की इमारतों और पार्कों के संरक्षण में भी सहयोग करता है। यूनेस्को की विरासत सूची में हमारे देश के कई ऐतिहासिक इमारत और पार्क शामिल हैं। दुनिया भर के 332 अंतरराष्ट्रीय स्वयंसेवी संगठनों के साथ यूनेस्को के संबंध हैं। फिलहाल यूनेस्को के महानिदेशक आंद्रे एंजोले हैं। भारत 1946 से यूनेस्को का सदस्य देश है।


इतिहास

साल 1942 की बात है। जंग में उलझी दुनिया दो हिस्से में बंटी थी। एक तरफ नाजी जर्मनी और उसके सहयोगी राष्ट्र तो दूसरी तरफ उनके मुकाबले यूरोप के अन्य देश। यानी एक तरफ धुरी राष्ट्र तो दूसरी ओर मित्र राष्ट्र। मित्र राष्ट्र के देशों के शिक्षा मंत्रियों की यूनाइटेड किंगडम यानी इंग्लैंड में मीटिंग होती है। मीटिंग का नाम कॉन्फ्रेंस ऑफ अलाइड मिनिस्टर्स ऑफ एजुकेशन (केम) था। युद्ध को तो अभी खत्म होने में काफी समय था लेकिन ये देश युद्ध की त्रासदी को समझ चुके थे। युद्ध के बाद वे किसी संगठन की स्थापना के बारे में सोचने लगे जो उनकी तबाह हो चुकी शिक्षा व्यवस्था में जान डाल दे और साथ ही दुनिया में अमन-चैन स्थापित करने में भी भूमिका निभाए। इसी विचार को आगे बढ़ाते हुए मीटिंग के दौरान एक ऐसे संगठन की स्थापना का प्रस्ताव रखा गया जो शैक्षिक और सांस्कृतिक मैदान में काम करेगा। आइडिया वैश्विक स्तर पर सभी को अच्छा लगा तो इस योजना ने आंदोलन का रूप ले लिया और जल्द ही इसके प्रभावी क्रियान्वयन के बारे में सोचा जाने लगा। संयुक्त राज्य अमेरिका समेत और कई सरकारों ने भी इस योजना को हकीकत का रूप देने में अपनी दिलचस्पी दिखाई।


केम के प्रस्ताव पर 1945 में 1 से 16 नवंबर तक इस योजना को हकीकत का रूप देने के लिए यूनाइनेड नेशंस की एक कॉन्फ्रेंस बुलाई गई। कॉन्फ्रेंस का आयोजन लंदन में हुआ और 44 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। वहां एक ऐसे संगठन की स्थापना का फैसला किया गया जो शांति का ब्रैंड ऐंबैसडर हो ताकि दुनिया में किसी अन्य विश्व युद्ध को रोका जा सके।

कॉन्फ्रेंस के समाप्त होने पर 37 देशों ने यूनाइटेड नेशंस एजुकेशनल, साइंटिफिक ऐंड कल्चरल ऑर्गनाइजेशन (यूनेस्को) की स्थापना की। 16 नवंबर, 1945 को यूनेस्को के संविधान पर हस्ताक्षर हुआ लेकिन यह 4 नवंबर, 1946 को लागू हुआ। यूनेस्को की जनरल कॉन्फ्रेंस के पहले सेशन का आयोजन पैरिस में 19 नवंबर से 10 दिसंबर, 1946 तक हुआ था। उसमें 30 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था। इन 30 देशों को यूनेस्को के मामलों पर वोट करने का अधिकार भी प्राप्त था।


 दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूनेस्को में और सदस्य जुड़ते गए। 1951 में जापान और 1953 में फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी भी इसका सदस्य बन गया। स्पेन को 1953 में सदस्यता मिली। शीत युद्ध और उपनिवेशों के खत्म होने एवं यूएसएसआर के टूटने का भी यूनेस्को पर असर पड़ा। 1954 में यूएसएसआर भी यूनेस्को का हिस्सा बन गया। 1992 में यूएसएसआर के स्थान पर रूसी फेडरेशन यूनेस्को का सदस्य बना जिसके साथ 12 पूर्व सोवियत गणराज्य भी थे। 1960 में अफ्रीका के 19 स्टेट्स ने भी सदस्यता हासिल की।

बीच में कुछ देशों का यूनेस्को में आना-जाना लगा रहा लेकिन बाद में लगभग सभी देश इसमें शामिल हो गए। दक्षिण अफ्रीका 1957 से 1994 तक इससे बाहर रहा, संयुक्त राज्य अमेरिका 1985 से 2003 तक, यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन और नॉर्दर्न आयरलैंड 1986 से 1997 तक तो सिंगापुर 1986 से लेकर 2007 तक इससे बाहर रहा।


उद्देश्य

यूनेस्को संयुक्त राष्ट्र संघ की एक इकाई है। इसकी स्थापना का मकसद शिक्षा, संस्कृति और विज्ञान के प्रचार-प्रसार के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय शांति, विकास और संबंधों को बढ़ावा देना है।


संरचना

यूनेस्को के सदस्य राष्ट्रों की कुल संख्या 195 है। इसके सात सहयोगी सदस्य और दो पर्यवेक्षक देश हैं। पूरी दुनिया में इसके 21 राष्ट्रीय कार्यालय हैं।


यूनेस्को के तत्वाधान में कुल 40 अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाए जाते हैं। इनमें कुछ प्रमुख नाम 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस, 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस, 5 अक्टूबर को विश्व शिक्षक दिवस और 18 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय दिवस शामिल हैं।

हर दो साल में इसकी एक सामान्य सभा होती है जिसमें यूनेस्को के सभी सदस्य देश और पर्यवेक्षक देश शामिल होते हैं। किसी भी विषय पर वोटिंग के लिए सभी देशों के पास कम से कम एक वोट होता है।

यूनेस्को दुनिया भर के अल-अलग देशों के धरोहरों को विश्व धरोहर में शामिल करता है। भारत की कुल 35 साइटों को विश्व धरोहर स्थलों में शामिल किया है।

यूनेस्को का पहला विश्व धरोहर स्थल इक्वाडोर का Galapagos Island है।

यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सूची को देखें तो सबसे ज्यादा 47 स्थलों के साथ इटली इसमें टॉप पर है।



 यूनेस्को 

यूनेस्को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन है। यह शिक्षा, विज्ञान और संस्कृति में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से शांति का निर्माण करना चाहता है। यूनेस्को के एजेंडा को 2030 में परिभाषित किया गया, जो सतत विकास लक्ष्यों की उपलब्धि में योगदान करना हैं, जिसे 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाया गया था।

यह संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक विशेष एजेंसी है जिसे 16 नवंबर, 1945 को हस्ताक्षरित संविधान में उल्लिखित किया गया था। 1946 में लागू हुए संविधान में शिक्षा, विज्ञान और संस्कृति में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए कहा गया। एजेंसी का स्थायी मुख्यालय पेरिस, फ्रांस में है।

यूनेस्को का प्रारंभिक प्रभाव स्कूलों, पुस्तकालयों और संग्रहालयों के पुनर्निर्माण पर था जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यूरोप में नष्ट हो गए थे। तब से इसकी गतिविधियों में मुख्य रूप से सुविधा है, जिसका उद्देश्य सदस्य राज्यों के राष्ट्रीय प्रयासों के साथ निरक्षरता को खत्म करने और मुफ्त शिक्षा का विस्तार करने में सहायता, समर्थन और पूरक है। यूनेस्को सम्मेलनों का आयोजन करके और क्लीयरिंगहाउस और एक्सचेंज सेवाएं प्रदान करके विचारों और ज्ञान के मुक्त आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करना चाहता है।

संगठन, विशेष रूप से, दो वैश्विक प्राथमिकताओं पर केंद्रित है:

अफ्रीका

लैंगिक समानता



और कई व्यापक उद्देश्यों पर:

सभी और आजीवन सीखने के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा बनाए रखना

सतत विकास के लिए विज्ञान ज्ञान और नीति को जुटाना

उभरती हुई सामाजिक और नैतिक चुनौतियों को संबोधित करना

सांस्कृतिक विविधता, परस्पर संवाद और शांति की संस्कृति को बढ़ावा देना

सूचना और संचार के माध्यम से समावेशी ज्ञान समाजों का निर्माण करना


जब यह सम्मेलन 1945 में शुरू हुआ था (संयुक्त राष्ट्र के आधिकारिक तौर पर अस्तित्व में आने के तुरंत बाद), 44 भाग लेने वाले देश थे जिनके प्रतिनिधियों ने एक संगठन बनाने का फैसला किया जो शांति की संस्कृति को बढ़ावा देगा, जो “मानव जाति की बौद्धिक और नैतिक एकजुटता” स्थापित करेगा; और दूसरे विश्व युद्ध को रोकेगा। 16 नवंबर, 1945 को जब सम्मेलन समाप्त हुआ, तो भाग लेने वाले देशों में से 37 ने यूनेस्को के संविधान के साथ यूनेस्को की स्थापना की।


अनुसमर्थन के बाद, 4 नवंबर 1946 को यूनेस्को का संविधान लागू हुआ। तब यूनेस्को का पहला आधिकारिक महासंम्मेलन 19 नवंबर -10 दिसंबर, 1946 को 30 देशों के प्रतिनिधियों के साथ पेरिस में आयोजित किया गया था। तब से, यूनेस्को का दुनिया भर में महत्व बढ़ गया है और भाग लेने वाले सदस्य राज्यों की संख्या 195 हो गई है (संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य हैं लेकिन कुक आइलैंड्स और फिलिस्तीन भी यूनेस्को के सदस्य हैं)।


UNESCO ने क्या उपलब्धियां हासिल की हैं?
पिछले कुछ वर्षों में यूनेस्को की चुनौतियां बदल गई हैं। इसकी प्रमुख उपलब्धियों में नस्लवाद के खिलाफ संगठन का काम था, जो 1978 में रेस और नस्लीय पूर्वाग्रह पर घोषणा के साथ संपन्न हुआ – इस दस्तावेज़ में अनिवार्य रूप से कहा गया है कि सभी मानव, कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कहाँ से हैं, समान हैं।

विश्व स्तर पर सर्वांगी नस्लवाद के लिए यूनेस्को की इतनी शक्तिशाली चुनौती थी कि दक्षिण अफ्रीका ने “परस्पर विरोधी हितों” के कारण यूनेस्को से अपना नाम वापस ले लिया – यह 1994 में नेल्सन मंडेला के अध्यक्ष चुने जाने के बाद फिर से जुड़ गया और अलगाव वास्तव में खत्म हो गया।

1960 में यूनेस्को ने मिस्र में नूबिया कैंपेन नाम से कुछ लॉन्च किया था ताकि अबू सिंबल के महान मंदिर को नील के जलमग्न खतरे से बचाने के लिए इसे स्थानांतरित किया जा सके। 20 वर्षों की अवधि में, 22 स्मारकों और वास्तुशिल्प परिसरों को स्थानांतरित किया गया।
तब से, कई अभियानों ने इन उपलब्धियों को ग्रहण किया है, जिनमें काठमांडू, नेपाल और ग्रीस में एक्रोपोलिस शामिल हैं।

वर्ल्ड हेरिटेज कमेटी की स्थापना 1976 में हुई थी और वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट को 1978 में लिखा गया था – इनमें इक्वाडोर में गैलापागोस द्वीप समूह और अमेरिका में येलोस्टोन नेशनल पार्क शामिल हैं।


यूनेस्को की आज की संरचना

महानिदेशक यूनेस्को की एक और शाखा है और संगठन का कार्यकारी प्रमुख है। 1946 में यूनेस्को की स्थापना के बाद से 11 डायरेक्टर जनरल्स बन चुके हैं। पहला यूनाइटेड किंगडम के जूलियन हक्सले थे जिन्होंने 1946-1948 तक सेवा की। यूनेस्को की अंतिम शाखा सचिवालय है। यह सिविल सेवकों से बना है जो यूनेस्को के पेरिस मुख्यालय और दुनिया भर के फील्ड कार्यालयों में स्थित हैं। सचिवालय यूनेस्को की नीतियों को लागू करने, बाहरी संबंधों को बनाए रखने और दुनिया भर में यूनेस्को की उपस्थिति और कार्यों को मजबूत करने के लिए जिम्मेदार है।

 यूनेस्को के प्रमुख अधिकारी

पेरिस में प्लेस डे फोंटेनॉय पर स्थित, मुख्य भवन जिसमें यूनेस्को का मुख्यालय है, उसका  उद्घाटन 3 नवंबर 1958 को हुआ था। वाई-आकार के डिजाइन का आविष्कार विभिन्न राष्ट्रीयताओं के तीन वास्तुकारों ने एक अंतरराष्ट्रीय समिति के निर्देशन में किया था।



इसका उपनाम थ्री-पॉइंटेड स्टार हैं, जो संपूर्ण एडिक्शन कंक्रीट पाइलिंग के बहत्तर स्तंभों पर खड़ा है। यह विश्व प्रसिद्ध है, न केवल इसलिए कि यह एक प्रसिद्ध संगठन का घर है, बल्कि इसके उत्कृष्ट वास्तु गुणों के कारण भी है। तीन और इमारतें मुख्यालय की साइट को पूरा करती हैं। दूसरी इमारत, जिसे प्यार से “समझौते” के रूप में जाना जाता है, अंडे के आकार के हॉल को एक पक्के तांबे की छत के साथ है जहां सामान्य सम्मेलन के पूर्ण सत्र आयोजित होते हैं। तीसरा भवन क्यूब के रूप में है। अंत में, एक चौथे निर्माण में दो कार्यालय हैं, जो स्ट्रिट लेवल से नीचे छह छोटे सूर्य के आंगन के आसपास हैं। भवन, जिसमें कला के कई उल्लेखनीय कार्य हैं, जनता के लिए खुले हैं।


 प्राकृतिक विज्ञान और पृथ्वी के संसाधनों का प्रबंधन, यूनेस्को का एक और कार्य क्षेत्र है। इसमें विकसित और विकासशील देशों, संसाधन प्रबंधन और आपदा स्थिरता में सतत विकास प्राप्त करने के लिए पानी और पानी की गुणवत्ता, महासागर की रक्षा करना और विज्ञान और इंजीनियरिंग प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना शामिल है।

सामाजिक और मानव विज्ञान एक अन्य यूनेस्को का विषय है और बेसिक मानव अधिकारों को बढ़ावा देता है और भेदभाव और नस्लवाद से लड़ने जैसे वैश्विक मुद्दों पर केंद्रित है।

संस्कृति, यूनेस्को का एक अन्य निकट का विषय है जो सांस्कृतिक स्वीकृति को बढ़ावा देता है लेकिन सांस्कृतिक विविधता के रखरखाव के साथ-साथ सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण भी करता है।

अंत में, संचार और सूचना यूनेस्को का अंतिम विषय है। इसमें साझा ज्ञान का एक विश्वव्यापी समुदाय बनाने और विभिन्न विषय क्षेत्रों के बारे में जानकारी और ज्ञान के उपयोग के माध्यम से लोगों को सशक्त बनाने के लिए “शब्द और इमेज द्वारा विचारों का मुक्त प्रवाह” शामिल है।

यूनेस्को के सबसे प्रसिद्ध विशेष विषयों में से एक इसका विश्व धरोहर केंद्र है जो सांस्कृतिक, प्राकृतिक और मिश्रित स्थलों की पहचान करता है, जिन्हें देखने के लिए उन स्थानों में सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और / या प्राकृतिक विरासत के रखरखाव को बढ़ावा देने का प्रयास किया जाता है। । इनमें गीज़ा के पिरामिड, ऑस्ट्रेलिया के ग्रेट बैरियर रीफ और पेरू के माचू पिच्चू शामिल हैं।


शैक्षिक और विज्ञान कार्यक्रमों के अपने समर्थन के अलावा, यूनेस्को प्राकृतिक पर्यावरण और मानवता की सामान्य सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के प्रयासों में भी शामिल है। उदाहरण के लिए, 1960 के दशक में यूनेस्को ने प्राचीन मिस्र के स्मारकों को असवान हाई डैम के पानी से बचाने के लिए प्रायोजकों के प्रयासों में मदद की, और 1972 में इसने सांस्कृतिक स्थलों और प्राकृतिक क्षेत्रों की विश्व विरासत सूची स्थापित करने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय समझौते को प्रायोजित किया जो सरकारी संरक्षण का लाफ उठाएगा।

नवंबर 1972 में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने विश्व धरोहर संम्मेलन के रूप में एक संधि को अपनाकर सूची का उद्घाटन किया। इसका निरंतर लक्ष्य “उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य” के सांस्कृतिक और प्राकृतिक गुणों की पहचान करने में विश्व समुदाय की भर्ती करना है।



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Saturday, April 13, 2019

यूनिसेफ [UNICEF]

United Nations Children's Fund [UNICEF]


संयुक्त राष्ट्र बाल कोष की स्थापना का आरंभिक उद्देश्य द्वितीय विश्व युद्ध में नष्ट हुए राष्ट्रों के बच्चों को खाना और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना था। इसकी स्थापना संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने ११ दिसंबर, १९४६ को की थी।१९५३ में यूनीसेफ, संयुक्त राष्ट्र का स्थाई सदस्य बन गया। उस समय इसका नाम यूनाइटेड नेशंस इंटरनेशनल चिल्ड्रेंस फंड की जगह यूनाइटेड नेशन्स चिल्ड्रेंस फंड कर दिया गया। इसका मुख्यालय न्यूयॉर्क में है। वर्तमान में इसके मुखिया ऐन वेनेमन है। यूनीसेफ को १९६५ में उसके बेहतर कार्य के लिए शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। १९८९ में संगठन को इंदिरा गाँधी शांति पुरस्कार भी प्रदान किया गया था। इसके १२० से अधिक शहरों में कार्यालय हैं और १९० से अधिक स्थानों पर इसके कर्मचारी कार्यरत हैं। वर्तमान में यूनीसेफ फंड एकत्रित करने के लिए विश्व स्तरीय एथलीट और टीमों की सहायता लेता है।



युनिसेफ़ लोगो

प्रकार                          निधि
संक्षिप्ति                       युनिसेफ़
अध्यक्ष                         एन वेनेमन
वर्तमान     
स्थिति                          सक्रिय
स्थापना                        दिसंबर, १९४६
जालस्थल                     http://www.unicef.org
मूल संस्था                    स्थाई.सी.ओ.एस.ओ.सी


यूनीसेफ का सप्लाई प्रभाग कार्यालय कोपनहेगन, डेनमार्क में है। यह कुछ महत्वपूर्ण सामान जैसे जीवन रक्षक टीके, एचआईवी पीड़ित बच्चों व उनकी माताओं के लिए दवा, कुपोषण के उपचार के लिए दवाइयां, आकस्मिक आश्रय आदि के वितरण की प्राथमिक जगह होती है। ३६ सदस्यों का कार्यकारी दल यूनीसेफ के कामों की देखरेख करता है।[1] यह नीतियाँ बनाता है और साथ ही यह वित्तीय और प्रशासनिक योजनाओं से जुड़े कार्यक्रमों को स्वीकृति प्रदान करता है। वर्तमान में यूनीसेफ मुख्यत: पांच प्राथमिकताओं पर केन्द्रित है। बच्चों का विकास, बुनियादी शिक्षा, लिंग के आधार पर समानता (इसमें लड़कियों की शिक्षा शामिल है), बच्चों का हिंसा से बचाव, शोषण, बाल-श्रम के विरोध में, एचआईवी एड्स और बच्चों, बच्चों के अधिकारों के वैधानिक संघर्ष के लिए काम करता है।


यूनिसेफ के बारे में महत्‍वपूर्ण जानकारी – UNICEF

यूनिसेफ (UNICEF) यानि यूनाइटेड नेशन्स चिल्ड्रेंस फंड (United Nations Children’s Fund) एक संस्‍था है जिसकी स्‍थापना द्वितीय विश्‍व युद्ध (Second World War) के बाद हुई थी इस संंस्‍था उद्देश्य द्वितीय विश्‍व युद्ध में नष्ट हुए राष्ट्रों के बच्चों को खाना और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना था आइये जानते हैं यूनिसेफ के बारे में महत्‍वपूर्ण जानकारी – Important Information about UNICEF


  1. यूनिसेफ (UNICEF) की स्‍थापना संयुक्त राष्ट्र की महासभा द्वारा 11 दिसंबर 1946 को हुई थी
  2. यूनिसेफ का मुख्‍यालय न्‍यूयॉर्क (New York) में हैं
  3. इस संस्‍था को वर्ष 1965 मेे शांति के नोबेल पुरस्कार (Nobel Peace Prize) से सम्मानित किया गया था
  4. यूनिसेफ को 1989 को इंदिरा गांधी शांति पुरस्कार (Indira Gandhi Peace Prize) भी दिया जा चुका है
  5. यह संस्‍था 190 से अधिक देशों में कार्यरत है
  6. देशों में बच्चों को शिक्षा, पोषण व स्वास्थ्य सम्बंधी सहायता देता है
  7. यूनिसेफ बच्चों को शिक्षा, पोषण व स्वास्थ्य सम्बंधी सहायता देता है
  8. यूनिसेफ विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर कार्य करता है


संयुक्त राष्ट्र बाल कोष की स्थापना का आरंभिक उद्देश्य द्वितीय विश्व युद्ध में नष्ट हुए राष्ट्रों के बच्चों को खाना और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना था। इसकी स्थापना संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने ११ दिसंबर, १९४६ को की थी।। हिन्दुस्तान लाइव। १७ जनवरी २०१० १९५३ में यूनीसेफ, संयुक्त राष्ट्र का स्थाई सदस्य बन गया। उस समय इसका नाम यूनाइटेड नेशंस इंटरनेशनल चिल्ड्रेंस फंड की जगह यूनाइटेड नेशन्स चिल्ड्रेंस फंड कर दिया गया।। हिन्दी रेडियो। १० जून २००८ इसका मुख्यालय न्यूयॉर्क में है। वर्तमान में इसके मुखिया ऐन वेनेमन है। यूनीसेफ को १९६५ में उसके बेहतर कार्य के लिए शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। १९८९ में संगठन को इंदिरा गाँधी शांति पुरस्कार भी प्रदान किया गया था।

डॉक्युमेंट आइ.डी:afpr000020011031dpbk02rxb, अभिगमन तिथि:४ नवम्बर २००६ इसके १२० से अधिक शहरों में कार्यालय हैं और १९० से अधिक स्थानों पर इसके कर्मचारी कार्यरत हैं। वर्तमान में यूनीसेफ फंड एकत्रित करने के लिए विश्व स्तरीय एथलीट और टीमों की सहायता लेता है। यूनीसेफ का सप्लाई प्रभाग कार्यालय कोपनहेगन, डेनमार्क में है। यह कुछ महत्वपूर्ण सामान जैसे जीवन रक्षक टीके, एचआईवी पीड़ित बच्चों व उनकी माताओं के लिए दवा, कुपोषण के उपचार के लिए दवाइयां, आकस्मिक आश्रय आदि के वितरण की प्राथमिक जगह होती है। ३६ सदस्यों का कार्यकारी दल यूनीसेफ के कामों की देखरेख करता है। यह नीतियाँ बनाता है और साथ ही यह वित्तीय और प्रशासनिक योजनाओं से जुड़े कार्यक्रमों को स्वीकृति प्रदान करता है। वर्तमान में यूनीसेफ मुख्यत: पांच प्राथमिकताओं पर केन्द्रित है। बच्चों का विकास, बुनियादी शिक्षा, लिंग के आधार पर समानता (इसमें लड़कियों की शिक्षा शामिल है), बच्चों का हिंसा से बचाव, शोषण, बाल-श्रम के विरोध में, एचआईवी एड्स और बच्चों, बच्चों के अधिकारों के वैधानिक संघर्ष के लिए काम करता है। . 19 संबंधों: टीकाकरण, एचआइवी, एड्स, ऐन वेनेमन, डेनमार्क, द्वितीय विश्वयुद्ध, न्यूयॉर्क, नोबेल पुरस्कार, बाल-श्रम, मार्टिन लूथर किंग, रेने कैसिन, संयुक्त राष्ट्र, संयुक्त राष्ट्र महासभा, कोपनहेगन, अंग्रेज़ी भाषा, ११ दिसम्बर, १९४६, १९५३, १९६५।


टीकाकरण

मुँह से पोलियो का टीका ग्रहण करता हुआ एक बच्चा किसी बीमारी के विरुद्ध प्रतिरोधात्मक क्षमता (immunity) विकसित करने के लिये जो दवा खिलायी/पिलायी या किसी अन्य रूप में दी जाती है उसे टीका (vaccine) कहते हैं तथा यह क्रिया टीकाकरण (Vaccination) कहलाती है। संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिये टीकाकरण सर्वाधिक प्रभावी एवं सबसे सस्ती विधि माना जाता है। टीके, एन्टिजनी (antigenic) पदार्थ होते हैं। टीके के रूप में दी जाने वाली दवा या तो रोगकारक जीवाणु या विषाणु की जीवित किन्तु क्षीण मात्रा होती है या फिर इनको मारकर या अप्रभावी करके या फिर कोई शुद्ध किया गया पदार्थ, जैसे - प्रोटीन आदि हो सकता है। सनसे पहले चेचक का टीका आजमाया गया जो कि भारत या चीन २०० इसा पूर्व हुआ। .


एचआइवी

एचआइवी अथवा कपोसी सार्कोमा प्रभावित महिला की नाक का चित्र एचआईवी (ह्युमन इम्युनडिफिशिएंशी वायरस) या मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु एक विषाणु है जो शरीर की रोग-प्रतिरक्षा प्रणाली पर प्रहार करता है और संक्रमणों के प्रति उसकी प्रतिरोध क्षमता को धीरे-धीरे कम करता जाता है। यह लाइलाज बीमारी एड्स का कारण है। मुख्यतः यौण संबंध तथा रक्त के जरिए फैलने वाला यह विषाणु शरीर की श्वेत रक्त कणिकाओं का भक्षण कर लेता है। इसमें उच्च आनुवंशिक परिवर्तनशीलता का गुण है। यह विशेषता इसके उपचार में बहुत बड़ी बाधा उत्पन्न करता है। .


एड्स

उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण या एड्स (अंग्रेज़ी:एड्स) मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु (एच.आई.वी) संक्रमण के बाद की स्थिति है, जिसमें मानव अपने प्राकृतिक प्रतिरक्षण क्षमता खो देता है। एड्स स्वयं कोई बीमारी नही है पर एड्स से पीड़ित मानव शरीर संक्रामक बीमारियों, जो कि जीवाणु और विषाणु आदि से होती हैं, के प्रति अपनी प्राकृतिक प्रतिरोधी शक्ति खो बैठता है क्योंकि एच.आई.वी (वह वायरस जिससे कि एड्स होता है) रक्त में उपस्थित प्रतिरोधी पदार्थ लसीका-कोशो पर आक्रमण करता है। एड्स पीड़ित के शरीर में प्रतिरोधक क्षमता के क्रमशः क्षय होने से कोई भी अवसरवादी संक्रमण, यानि आम सर्दी जुकाम से ले कर क्षय रोग जैसे रोग तक सहजता से हो जाते हैं और उनका इलाज करना कठिन हो जाता हैं। एच.आई.वी.



ऐन वेनेमन

ऐन मार्गरेट वेनेमन (जन्म: २९ जून १९४९) युनिसेफ की कार्यपालक निदेशिका हैं। इस पद पर ये १ मई २००५ से आसीन हैं। श्रेणी:युनिसेफ.


 डेनमार्क

डेनमार्क या डेनमार्क राजशाही (डैनिश: Danmark या Kongeriget Danmark) स्कैंडिनेविया, उत्तरी यूरोप में स्थित एक देश है। इसकी भूसीमा केवल जर्मनी से मिलती है, जबकी उत्तरी सागर और बाल्टिक सागर इसे स्वीडन से अलग करते हैं। यह देश जूटलैंड प्रायद्वीप पर हज़ारों द्वीपों में फैला हुआ है। डेनमार्क ने लंबे समय तक बाल्टिक सागर को जाने वाले मार्गों को नियंत्रित किया है और इस जलराशी को डैनिश खाड़ी के नाम से जाना जाता है। इसके छोटे आकार के विपरीत इसकी समुद्री सीमा बहुत लम्बी है लगभग ७,३१४ किमी। डेनमार्क अधिकांशतः एक समतल देश है और समुद्र तल से अधिकतम ऊँचाई वाला स्थान केवल १७० मीटर ऊँचा है। फ़रो द्वीप समूह और ग्रीनलैंड डेनमार्क के अधीनस्थ है। २००८ के वैश्विक शांति सूचकांक के अनुसार डेनमार्क, आइसलैंड के बाद विश्व का सबसे शांत देश है। २००८ के ही भ्रष्टाचार दृष्टिकोण सूचकांक के अनुसार यह विश्व के सबसे कम भ्रष्ट देशों में से है और न्यूज़ीलैंड और स्वीडन के साथ पहले स्थान पर है। मोनोक्ल पत्रिका के २००८ के एक सर्वेक्षण के अनुसार इसकी राजधानी कॉपनहेगन रहने योग्य सर्वाधिक उपयुक्त नगर है। वर्ष २००९ में देश की अनुमानित जनसंख्या ५५,१९,२५९ है। .



द्वितीय विश्वयुद्ध

द्वितीय विश्वयुद्ध १९३९ से १९४५ तक चलने वाला विश्व-स्तरीय युद्ध था। लगभग ७० देशों की थल-जल-वायु सेनाएँ इस युद्ध में सम्मलित थीं। इस युद्ध में विश्व दो भागों मे बँटा हुआ था - मित्र राष्ट्र और धुरी राष्ट्र। इस युद्ध के दौरान पूर्ण युद्ध का मनोभाव प्रचलन में आया क्योंकि इस युद्ध में लिप्त सारी महाशक्तियों ने अपनी आर्थिक, औद्योगिक तथा वैज्ञानिक क्षमता इस युद्ध में झोंक दी थी। इस युद्ध में विभिन्न राष्ट्रों के लगभग १० करोड़ सैनिकों ने हिस्सा लिया, तथा यह मानव इतिहास का सबसे ज़्यादा घातक युद्ध साबित हुआ। इस महायुद्ध में ५ से ७ करोड़ व्यक्तियों की जानें गईं क्योंकि इसके महत्वपूर्ण घटनाक्रम में असैनिक नागरिकों का नरसंहार- जिसमें होलोकॉस्ट भी शामिल है- तथा परमाणु हथियारों का एकमात्र इस्तेमाल शामिल है (जिसकी वजह से युद्ध के अंत मे मित्र राष्ट्रों की जीत हुई)। इसी कारण यह मानव इतिहास का सबसे भयंकर युद्ध था। हालांकि जापान चीन से सन् १९३७ ई. से युद्ध की अवस्था में था किन्तु अमूमन दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत ०१ सितम्बर १९३९ में जानी जाती है जब जर्मनी ने पोलैंड पर हमला बोला और उसके बाद जब फ्रांस ने जर्मनी पर युद्ध की घोषणा कर दी तथा इंग्लैंड और अन्य राष्ट्रमंडल देशों ने भी इसका अनुमोदन किया। जर्मनी ने १९३९ में यूरोप में एक बड़ा साम्राज्य बनाने के उद्देश्य से पोलैंड पर हमला बोल दिया। १९३९ के अंत से १९४१ की शुरुआत तक, अभियान तथा संधि की एक शृंखला में जर्मनी ने महाद्वीपीय यूरोप का बड़ा भाग या तो अपने अधीन कर लिया था या उसे जीत लिया था।

नाट्सी-सोवियत समझौते के तहत सोवियत रूस अपने छः पड़ोसी मुल्कों, जिसमें पोलैंड भी शामिल था, पर क़ाबिज़ हो गया। फ़्रांस की हार के बाद युनाइटेड किंगडम और अन्य राष्ट्रमंडल देश ही धुरी राष्ट्रों से संघर्ष कर रहे थे, जिसमें उत्तरी अफ़्रीका की लड़ाइयाँ तथा लम्बी चली अटलांटिक की लड़ाई शामिल थे। जून १९४१ में युरोपीय धुरी राष्ट्रों ने सोवियत संघ पर हमला बोल दिया और इसने मानव इतिहास में ज़मीनी युद्ध के सबसे बड़े रणक्षेत्र को जन्म दिया। दिसंबर १९४१ को जापानी साम्राज्य भी धुरी राष्ट्रों की तरफ़ से इस युद्ध में कूद गया। दरअसल जापान का उद्देश्य पूर्वी एशिया तथा इंडोचायना में अपना प्रभुत्व स्थापित करने का था। उसने प्रशान्त महासागर में युरोपीय देशों के आधिपत्य वाले क्षेत्रों तथा संयुक्त राज्य अमेरीका के पर्ल हार्बर पर हमला हमला बोल दिया और जल्द ही पश्चिमी प्रशान्त पर क़ब्ज़ा बना लिया। सन् १९४२ में आगे बढ़ती धुरी सेना पर लगाम तब लगी जब पहले तो जापान सिलसिलेवार कई नौसैनिक झड़पें हारा, युरोपीय धुरी ताकतें उत्तरी अफ़्रीका में हारीं और निर्णायक मोड़ तब आया जब उनको स्तालिनग्राड में हार का मुँह देखना पड़ा। सन् १९४३ में जर्मनी पूर्वी युरोप में कई झड़पें हारा, इटली में मित्र राष्ट्रों ने आक्रमण बोल दिया तथा अमेरिका ने प्रशान्त महासागर में जीत दर्ज करनी शुरु कर दी जिसके कारणवश धुरी राष्ट्रों को सारे मोर्चों पर सामरिक दृश्टि से पीछे हटने की रणनीति अपनाने को मजबूर होना पड़ा। सन् १९४४ में जहाँ एक ओर पश्चिमी मित्र देशों ने जर्मनी द्वारा क़ब्ज़ा किए हुए फ़्रांस पर आक्रमण किया वहीं दूसरी ओर से सोवियत संघ ने अपनी खोई हुयी ज़मीन वापस छीनने के बाद जर्मनी तथा उसके सहयोगी राष्ट्रों पर हमला बोल दिया। सन् १९४५ के अप्रैल-मई में सोवियत और पोलैंड की सेनाओं ने बर्लिन पर क़ब्ज़ा कर लिया और युरोप में दूसरे विश्वयुद्ध का अन्त ८ मई १९४५ को तब हुआ जब जर्मनी ने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया। सन् १९४४ और १९४५ के दौरान अमेरिका ने कई जगहों पर जापानी नौसेना को शिकस्त दी और पश्चिमी प्रशान्त के कई द्वीपों में अपना क़ब्ज़ा बना लिया। जब जापानी द्वीपसमूह पर आक्रमण करने का समय क़रीब आया तो अमेरिका ने जापान में दो परमाणु बम गिरा दिये। १५ अगस्त १९४५ को एशिया में भी दूसरा विश्वयुद्ध समाप्त हो गया जब जापानी साम्राज्य ने आत्मसमर्पण करना स्वीकार कर लिया। .



 न्यूयॉर्क

यह लेख न्यूयॉर्क प्रांत के बारे में है। शहर के लिए देखे - न्यूयॉर्क शहर, अन्य विकल्प के लिए देखे न्यूयॉर्क (बहुविकल्पी) न्यूयॉर्क (New York) पूर्वोत्तर संयुक्त राज्य अमेरिका में एक राज्य है। न्यूयॉर्क उन तेरह उपनिवेश में से एक था जिसने संयुक्त राज्य का गठन किया था। राज्य के सबसे बड़े शहर न्यूयॉर्क शहर, में राज्य की 40% से अधिक आबादी रहती हैं। राज्य की दो-तिहाई जनसंख्या न्यू यॉर्क महानगरीय क्षेत्र में रहती है, और करीब 40% लोग लांग आईलैंड में रहते हैं। राज्य और शहर का नाम 17 वीं सदी के ड्यूक ऑफ यॉर्क यानी के इंग्लैंड के भावी राजा जेम्स द्वितीय के ऊपर रखा गया है। न्यूयॉर्क शहर संयुक्त राज्य अमेरिका में सबसे अधिक आबादी वाला शहर है और एक वैश्विक शहर है। न्यूयॉर्क शहर में संयुक्त राष्ट्र का मुख्यालय है। इसे दुनिया के सांस्कृतिक, वित्तीय और मीडिया राजधानी के रूप में वर्णित किया गया है और साथ ही यह दुनिया का आर्थिक रूप से सबसे शक्तिशाली शहर है। अन्य बड़े शहर हैं बफ़ेलो, रोचेस्टर, योंकर्स, और सिरैक्यूज़, जबकि राज्य की राजधानी अल्बानी है। राज्य की सीमा न्यू जर्सी और पेन्सिलवेनिया से दक्षिण में और कनेक्टिकट, मैसाचुसेट्स और वरमॉण्ट से पूर्व में लगती है। न्यूयार्क में यूरोपीय लोगों के आगमन से पहले कई सौ वर्षों तक अल्गोनक्वियन और इरक़ुओअन बोलने वाले मूल अमेरिकी जनजातियां बसी हुई थी। आने वाले पहले यूरोपीय लोग फ्रांसीसी उपनिवेशवादियों थे। 1609 में इस क्षेत्र पर डच के लिए हेनरी हडसन द्वारा दावा किया गया, जिन्होंने एक न्यू नीदरलैंड नाम से कॉलोनी बसाई। 1664 में इंग्लैंड ने डच से कॉलोनी लेकर उस पर का कब्जा कर लिया। 2016 के अनुमान के मुताबिक राज्य की जनसंख्या 1,97,45,289 हैं। इस हिसाब से इसका सभी राज्यों में चौथा स्थान हुआ। क्षेत्र के मामले में इसका स्थान 27वां है। लगभग 70% जनता सिर्फ अंग्रेजी बोलती है, 15% स्पेनी, 3% चीनी, बाकी अन्य। श्रेणी:संयुक्त राज्य अमेरिका के राज्य.



नोबेल पुरस्कार

नोबेल फाउंडेशन द्वारा स्वीडन के वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल की याद में वर्ष १९०१ में शुरू किया गया यह शांति, साहित्य, भौतिकी, रसायन, चिकित्सा विज्ञान और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में विश्व का सर्वोच्च पुरस्कार है। इस पुरस्कार के रूप में प्रशस्ति-पत्र के साथ 14 लाख डालर की राशि प्रदान की जाती है। अल्फ्रेड नोबेल ने कुल ३५५ आविष्कार किए जिनमें १८६७ में किया गया डायनामाइट का आविष्कार भी था। नोबेल को डायनामाइट तथा इस तरह के विज्ञान के अनेक आविष्कारों की विध्वंसक शक्ति की बखूबी समझ थी। साथ ही विकास के लिए निरंतर नए अनुसंधान की जरूरत का भी भरपूर अहसास था। दिसंबर १८९६ में मृत्यु के पूर्व अपनी विपुल संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा उन्होंने एक ट्रस्ट के लिए सुरक्षित रख दिया। उनकी इच्छा थी कि इस पैसे के ब्याज से हर साल उन लोगों को सम्मानित किया जाए जिनका काम मानव जाति के लिए सबसे कल्याणकारी पाया जाए। स्वीडिश बैंक में जमा इसी राशि के ब्याज से नोबेल फाउँडेशन द्वारा हर वर्ष शांति, साहित्य, भौतिकी, रसायन, चिकित्सा विज्ञान और अर्थशास्त्र में सर्वोत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाता है। नोबेल फ़ाउंडेशन की स्थापना २९ जून १९०० को हुई तथा 1901 से नोबेल पुरस्कार दिया जाने लगा। अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार की शुरुआत 1968 से की गई। पहला नोबेल शांति पुरस्कार १९०१ में रेड क्रॉस के संस्थापक ज्यां हैरी दुनांत और फ़्रेंच पीस सोसाइटी के संस्थापक अध्यक्ष फ्रेडरिक पैसी को संयुक्त रूप से दिया गया। अल्फ्रेड नोबेल .




 बाल-श्रम

बाल-श्रम का मतलब ऐसे कार्य से है जिसमे की कार्य करने वाला व्यक्ति कानून द्वारा निर्धारित आयु सीमा से छोटा होता है। इस प्रथा को कई देशों और अंतर्राष्ट्रीय संघटनों ने शोषित करने वाली प्रथा माना है। अतीत में बाल श्रम का कई प्रकार से उपयोग किया जाता था, लेकिन सार्वभौमिक स्कूली शिक्षा के साथ औद्योगीकरण, काम करने की स्थिति में परिवर्तन तथा कामगारों श्रम अधिकार और बच्चों अधिकार की अवधारणाओं के चलते इसमे जनविवाद प्रवेश कर गया। बाल श्रम अभी भी कुछ देशों में आम है। .



मार्टिन लूथर किंग

मार्टिन लूथर से भ्रमित न हों। यह लेख डॉ॰ मार्टिन लूथर किंग, जूनियर के बारे में है जो अलग है right डॉ॰ मार्टिन लूथर किंग, जूनियर (15 जनवरी 1929 – 4 अप्रैल 1968) अमेरिका के एक पादरी, आन्दोलनकारी (ऐक्टिविस्ट) एवं अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकारों के संघर्ष के प्रमुख नेता थे। उन्हें अमेरिका का गांधी भी कहा जाता है। उनके प्रयत्नों से अमेरिका में नागरिक अधिकारों के क्षेत्र में प्रगति हुई; इसलिये उन्हें आज मानव अधिकारों के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। दो चर्चों ने उनको सन्त के रूप में भी मान्यता प्रदान की है।



रेने कैसिन

कैसिन का स्मारक, फोरबैश, फ्रांस रेने सैम्युअल कैसिन (५ अक्टूबर १८८७, बायों – २० फ़रवरी १९७६, पैरिस) एक फ्रेंच वकील व जज रहे थे। बाद में प्रथम विश्व युद्ध के सैनिक भि थे। इन्हें १९६८ में नोबेल पुरस्कार से शांति के क्षेत्र में सम्मानित किया गया था। श्रेणी:नोबल शांति पुरस्कार के प्राप्तकर्ता.


 संयुक्त राष्ट्र

संयुक्त राष्ट्र (United Nations) एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसके उद्देश्य में उल्लेख है कि यह अंतरराष्ट्रीय कानून को सुविधाजनक बनाने के सहयोग, अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति, मानव अधिकार और विश्व शांति के लिए कार्यरत है। संयुक्त राष्ट्र की स्थापना २४ अक्टूबर १९४५ को संयुक्त राष्ट्र अधिकारपत्र पर 50 देशों के हस्ताक्षर होने के साथ हुई। द्वितीय विश्वयुद्ध के विजेता देशों ने मिलकर संयुक्त राष्ट्र को अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष में हस्तक्षेप करने के उद्देश्य से स्थापित किया था। वे चाहते थे कि भविष्य में फ़िर कभी द्वितीय विश्वयुद्ध की तरह के युद्ध न उभर आए। संयुक्त राष्ट्र की संरचना में सुरक्षा परिषद वाले सबसे शक्तिशाली देश (संयुक्त राज्य अमेरिका, फ़्रांस, रूस और संयुक्त राजशाही) द्वितीय विश्वयुद्ध में बहुत अहम देश थे। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र में १९३ देश है, विश्व के लगभग सारे अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त देश। इस संस्था की संरचन में आम सभा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक व सामाजिक परिषद, सचिवालय और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय सम्मिलित है। .


 संयुक्त राष्ट्र महासभा

संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly), संयुक्त राष्ट्र के छः अंगों में से एक हैं और यहीं केवल सर्वांगीण संस्था है, जिसमें संयुक्त राष्ट्र के समस्त सदस्य राष्ट्रों का सम प्रतिनिधित्व है। महासभा संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र के अंतर्गत आनेवाले समस्त विषयों पर तथा संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न अंगों की कार्यपरिधि में आनेवाले प्रश्नों पर विचार करती है और सदस्य राष्ट्रों एवं सुरक्षा परिषद् से उचित अभिस्ताव कर सकती है। यह संयुक्त राष्ट्र के पांच मुख्य अंगों में से एक है। इस सभा का हर वर्ष सब सदस्य देशों के प्रतिनिधियों के साथ सम्मेलन होता है। इन प्रतिनिधियों में से एक को अध्यक्ष चुना जाता है। क्योंकि समान्य सभा वह अकेला मुख्य अंग है जिसमें सब सदस्य देश सम्मिलित होते है, उसके सम्मेलन अधिकतर विवाद के मंच होते है। .



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Friday, April 12, 2019

शिक्षक एवं शिक्षक प्रशिक्षुओं के लिए विशेष : राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा-2005

(NATIONAL CURRICULUM FRAMEWORK-2005 OR NCF-2005) एक परिचय-अध्याय तृतीय

  तृतीय अध्याय “पाठ्यचर्या के क्षेत्र , स्कूल की अवस्थाये और आकलन
         
        यह तथ्य कि बच्चा ज्ञान का सृजन करता है ,इसका निहितार्थ है कि पाठ्यचर्या ,पाठ्यक्रम एवं पाठ्यपुस्तक शिक्षक को इस बात के लिये सक्षम बनाये कि वे बच्चो की प्रकृति और वातावरण के अनुरूप कक्षायी अनुभव आयोजित करे ,ताकि सारे बच्चो को अवसर मिल पाये | शिक्षण का उद्देश्य बच्चे के सिखने की सहज इच्छा और युक्तियो को समृध्द करना होना चहिये | ज्ञान को सूचना से अलग करने की जरुरत है और शिक्षण को एक पेशेवर गतिविधि के रूप मे पहचानने की जरुरत है न कि तथ्यो के रटने और प्रसार के प्रशिक्षण के रूप में | सक्रिय गतिविधि के जरिये ही बच्चा अपने आसपास की दुनिया को समझने  की कोशिश करता है |इसलिये प्रत्येक साधन का उपयोग इस तरह किया जाना चाहिये कि बच्चो को खुद को अभिव्यक्त करने में ,वस्तुयो का इस्तेमाल करने में ,अपने प्रकृतिक और सामाजिक परिवेश की खोजबीन करने में और स्वस्थ रूप से विकसित होने में मदद मिले | अगर बच्चो,के कक्षा के अनुभवो को इस तरह आयोजित करना हो जिससे उन्हे ज्ञान सृजित करने का अवसर मिले तो इसके लिये स्कूल के विषयो और पाठ्यचर्या के क्षेत्रों की फिर से संकल्पना की आवश्यकता होगी |   
  
स्कूली पाठ्यचर्या के चार सुपरिचित क्षेत्रों –भाषा ,गणित ,और समाज विज्ञान में –महत्वपूर्ण परिवर्तनों का सुझाव दिया गया है |इस दृष्टी से कि शिक्षा आज की और भविष्य की जरूरतों के लिए ज्यादा प्रासंगिक बन सके और बच्चो को उस दबाव से मुक्त किया जा सके जो वे आज झेल रहे है |यह राष्ट्रीय पाठ्यचर्या दस्तावेज इस बात की सिफारिश करता है कि विषयों के बीच की दीवारें नीची क्र दी जाये ताकि बच्चों को ज्ञान का समग्र आनंद मिल सके और किसी चीज को समझने से मिलने वाली ख़ुशी हासिल हो सके |इसके साथ यह भी सुझाया गया है कि पाठ्यपुस्तक और दूसरी सामग्री की बहुलता ही ,जिनसे स्थानीय ज्ञान और पारम्परिक कौशल शामिल हो सकते हैं और बच्चों के घर और समुदायिक परिवेश से जीवंत संबंध बनाने मे वाले स्फूर्तिदायक स्कूली माहौल को सुनिश्चित किया जा सके |भाषा में त्रिभाषा फार्मूले को लागु करने में फिर से प्रयास का सुझाव दिया गया है जिसमें आदिवासी भाषाओँ सहित बच्चो की मातृभूमि को शिक्षा के माध्यम के रूप में स्वीकृति देने पर जोर दिया है|प्रत्येक बच्चे में बहुभाषिक प्रवीणता विकसित करने के लिए भारतीय समाज के बहुभाषिक चरित्र को एक संसाधन के रूप में देखना चाहिए जिसमे अग्रेजी में प्रवीणता भी हासिल है यह तभी मुमकिन है जब भाषा की पुख्ता शिक्षाशास्त्र मातृभाषा के उपयोग पर आधारित हो|पढना ,लिखना और सुनना –ये क्रियाये पाठ्यचर्या के सभी क्षेत्रो में बच्चों की प्रगति में भूमिका निभाती हैं और इन्हें पाठ्यचर्या की योजना का आधार होना चाहिए|आरम्भिक कक्षाओं के पुरे दौर में पढने पर जोर देना जरुरी है जिससे हर बच्चे को स्कूली शिक्षा का ठोस आधार मिल सके|

गणित की शिक्षा ऐसी होनी चाहिये जिससे बच्चों के वे संसाधन समृद्ध हों चिंतन और तर्क में, अमुर्तनो की संकल्पना करने और उनका व्यवहार करने में ,समस्याओं को सूत्रबद्ध करने ओर सुलझाने में उनकी सहायता करें|उद्देश्यों का यह व्यापक फलक उस प्रासंगिक और अर्थपूर्ण गणित को पढ़ाकर तय किया जा सकता है जो बच्चों के अनुभवों में गुंथीं हुई ही|गणित में सफलता को हर बच्चे के अधिकार की तरह देखा जाना चाहिए |इसके लिए गणित के दायरे और विस्तृत करने की जरूरत है इस दुसरे विषयों से जोड़ने की जरुरत है | हर स्कूल को कंप्यूटर ,हार्डवेयर ,सोफ्टवेयर और कनेक्टिविटी मुहैया कराने जैसी ढांचागत चुनोतियों का सामना करने की जरुरत है |

      विज्ञान के शिक्षण में इस तरह की तब्दीली की जनि चाहिए की यह हर बच्चे को अपने रोज के अनुभवों को जांचने और उनका विश्लेषण करने में सक्षम बनाएं| परिवेश सम्बन्धी सरोकारों और चिंताओं पर हर विषय में जोर दिए जाने की जरूरत हैं और यह ढेरों गतिविधियों और बाहरी दुनिया पर की गई परियोजनाओं के द्वारा होना चाहिए|इस प्रकार की परियोजनाओ के माध्यम से निकलने वाली सूचनाओं और समझ के आधार पर भारतीय पर्यावरण को लेकर एक सर्वसुलभ और पारदर्शी आकड़ा –संग्रह तैयार हो जाता है जो अत्यंत उपयोगी संसाधन साबित होगा |यदि विद्यार्थियों की परियोजनाये सुनियोजित हों तो उनसे ज्ञान सृजित होगा| बाल विज्ञान कांग्रेस की तर्ज पर एक सामाजिक आन्दोलन की काल्पना की जा सकती है जिससे पुरे देश में अन्वेशण की शिक्षा को प्रोत्साहन मिलेगा जो बाद में पुरे दक्षिण एशिया में फैल सकता है | 


सामाजिक विज्ञान में पाठ्यचर्या के इस दस्तावेज द्वारा प्रस्तावित उपागम ज्ञान के क्षेत्रो की विशिष्ट सीमाओं को पहचानता है और साथ ही पानी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों के लिए समाकलन पर जोर देता है| हाशिए पर ढकेल दिए गए समूहों की दृष्टी से समाज विज्ञान के अध्ययन का प्रस्ताव करते हुए नजरिये में एक पूरी तब्दीली की सिफारिश की गई है|सामाजिक विज्ञान के सारे पहलुओ में जेंडर के सन्दर्भ में न्याय और अनुसूचित जाति तथा जनजाति के मसलों को लेकर जागरूकता तथा अल्पसंख्यक संवेदनाशीलता के प्रति सजकता होनी चाहिए| नागरिकशास्त्र को राजनीति विज्ञान के रूप में ढालना चाहिये और बच्चो के अतीत और नागरिकता अस्मिता की अवधारणा पर इतिहास के प्रभाव के महत्व को पहचानना चाहिए |
     

पाठ्यचर्या का यह दस्तावेज क्षेत्रो की तरफ ध्यान आकर्षित करता है जो इस प्रकार है:-

       काम,कला और पारम्परिक दस्तकारियो ,स्वास्थ्य तथा शारीरिक शिक्षा,एवं शान्ति | काम के सम्बन्ध में आरंभिक स्तर से शुरू करते हुए काम को अधिगम से जोड़ने के लिए कुछ बुनियादी कदम सुझाये गये है |उनके पीछे आधार यह है कि ज्ञान काम को अनुभव में रूपांतरित कर देता है और सहयोग ,सृजनात्मकता और आत्म निर्भरता जैसे मूल्यों की उत्पत्ति करता है | यह ज्ञान रचनात्मकता के नए रूपों की प्रेरणा भी देता है | वरिष्ठ  कक्षाओं में स्कूल के बाहर के संसाधन को औपचारिक मान्यता देने की सिफारिश है ताकि उन बच्चो को लाभ पहुँच सके जो आजीविका से सीधे जुडी हुई शिक्षा का चुनाव करते है |स्कूल के बाहर की आजीविका संस्थायो को औपचारिक मान्यता की जरुरत है  जिससे वे बच्चो को ऐसा स्थान उपलब्ध करवाये जहाँ बच्चे औजारों और दूसरे साधनों से काम करे| दस्तकारियो के मानचित्रीकरण की सिफारिश की गई है जिससे उन इलाको की पहचान की जा सके जहाँ बच्चो को स्थानीय कारीगरों के सहारे दस्तकारियो की जा सके जहाँ बच्चो को स्थानीय कारीगरों के सहारे दस्तकारियो में प्रशिक्षण दिया जा सकता है|

        हर स्तर पर विषय के रूप में कला को जगह दिए जाने की सिफारिश की गई जिसमें गायन,नित्य,दृश्य कलाए और नाटक चारो पहलू शामिल हैं |पर यहाँ भी जोर परसपर –क्रियात्मक पद्धतियों पर होना चाहिए न कि प्रशिक्षण पर|क्योकि कला शिक्षण का उद्देश्य सौन्दर्यात्मक और वैयक्तिक चेतना को प्रोत्साहित करना है और विविध रूपों खुद को व्यक्त करने की क्षमता को बढ़ावा देना है |नागरिक पारंपरिक दस्तकारियां आर्थिक और सौन्दर्यपरक मूल्यों के अर्थ में स्कूली शिक्षा के लिए प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हैं यह तथ्य पहचाना जाना चाहिए |

         स्कूलों में बच्चो की कामयाबी पोषण और सुनियोजित शारीरिक गतिविधियों के कार्यक्रमों पर निर्भर होती है|इसीलिए जरूरी संसाधन और स्कूल के समय को मध्यांहन भोजन कार्यक्रम को सुदृढ़ बनाने में लगाना चाहिए|यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष प्रयासों की जरुरत होगी कि स्वास्थ्य और शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रमों में शाला पूर्व अवस्था से लेकर आगे तक लडको की तरह ही लडकियों की ओर भी उतना ही ध्यान दिया जाये|

पूरी दुनिया में बढ़ती असहिष्णुता और मतभेदों को सुलझाने के तरीके के रूप में हिंसा की ओर बढ़ते रुझान को देखते हुए इस बात की सिफारिश की गई है कि शान्ति को राष्ट्रीय निर्माण की पूर्व शर्त और एक सामाजिक संस्कार के रूप में समग्र मूल्य संरचना के तौर पर स्वीकार किया जाये जिसकी आज अत्यधिक प्रासंगिकता हियो |एक लोकतान्त्रिक और न्यायपूर्ण संस्कृति में बच्चो के समाजीकरण के लिये शिक्षा की सम्भावनाओं को विभिन्न गतिविधियों के द्वारा हर स्तर पर ,और हर विषय में विषयों के विवेकपूर्ण चुनाव के जरिये साकार किया जा सकता है | शांति के लिए शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यचर्या में शामिल करने की सिफारिश की गई है |

          स्कूल के माहौल को पाठ्यचर्या के एक पहलू की तरह देखा गया है क्योकि यह बच्चों को शिक्षा के उद्देश्यों और सीखने की उन युक्तियो के लिए तैयार करती है जो स्कूल में सफलता के लिए जरुरी है |एक संसाधन के रूप में स्कूल के समय को लचीले ढंग से नियोजित किये जाने की जरूरत है| स्थानीय स्तर पर नियोजित लचीले स्कूली कलेंडर और समय सारणी की सिफारिश की गई है ताकि परियोंजना और प्राकृतिक और पारम्परिक धरोहर वाले स्थलों के लिए भ्रमण जैसी विविध प्रकार की गतिविधियों के लिए मौका मिल सके |इस बात की कोशिश करनी होगी किबच्चों के लिए सिखने केव अधिक संसाधन तैयार किया  जाएँ ,खासकर स्कूल और शिक्षक के लिए संदर्भ पुस्तकालय हेतु स्थानीय भाषाओ में किताबे और सदर्भ सामग्रियां उपलब्ध हों और बच्चो की अंत:क्रियात्मक तकनीक तक पहुंच न हो कि प्रसारित तकनीक तक|यह दतावेज माध्यमिक स्तर पर विकल्पों में बहुलता और लचीलेपन के महत्व पर जोर देता है और बच्चों को बंद खांचों में डाल देने की स्थापित प्रवित्ति को हतोत्साहित करता है क्योकि इससे बच्चों के ,खास कर ग्रामीण इलाकों के बच्चों के अवसर सीमित हो जाते है |



 भाषा

1. लिखने,बोलने ,सुनने एवं पढने की क्षमताओं स्कूल के सभी विषयों और अनुशासनों के शिक्षण से विकसित होती है |प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च माध्यमिक स्तर तक बच्चो के ज्ञान निर्माण में उनके बुनियादी महत्व को समझना आवश्यक हैं | 
                      
2. त्रिभाषा फार्मूले को पुन: लागू किये जाने की दिशा में काम किया जाना चाहिए ,जिससे बच्चों की घरेलु भाषाओं और मात्रिभाषाओ को शिक्षण के माध्यम के रूप में मान्यता देने की जरुरत हैं| इनमें आदिवासी भाषाएँ भी शामिल हैं |

3. अंग्रेजी को अन्य भारतीय भाषाओ के बीच स्थान दिए जाने की आवश्यकता है|
 4. भारतीय समाज के बहुभाषात्मक प्रकृति को स्कूली जीवन की समृधि के लिए संसाधन के रूप में देखा जाना चाहिये |

गणित


  • गणित –शिक्षण का मुख्यं लक्ष्य गणितीकरण (तार्किक ढंग से सोचने ,अमुर्तनो का निर्माण करने तथा संचालित करने की योग्यताओ का विकास )होना न की गणित का ज्ञान (औपचारिक एवं यांत्रिक प्रक्रियाओ का ज्ञान )
  • तांत्रिक ढंग से सोचने की क्षमता |
  • गणित की शिक्षा से बच्चों की तर्क ,सोचने की ,अमुर्तनो ने निर्माण तथा दृष्टीकरण की क्षमताओ एवं बच्चों में समस्या सुलझाने की क्षमता का विकास हो| गणित की बेहतर शिक्षा का हक हर बच्चे को है |



विज्ञान


  • विज्ञान की भाषा ,प्रक्रिया एवं विषयवस्तु विद्यार्थी की उम्र और उसकी ज्ञान की सीमा के अनुकूल होनी चाहिए |
  • विज्ञान शिक्षा को विद्यार्थी को उन तरीको एवं प्रक्रियाओ का बोध कराने सक्षम होना चाहिए जो उनकी रचनात्मकता और जिज्ञासा को संपोषित करने वाली हों ,विशेषकर पर्यावरण के संदर्भ में  |


  • विज्ञान की शिक्षा को बच्चो के परिवेश के संदर्भ के अनुकूल होना चाहिए ताकि उनमे काम के संसार में परिवेश करने लायक जरूरी ज्ञान एवं कौशल विकसित हो सके |
  • पर्यावरण की चिन्ताओ के प्रति जागरूकता को सम्पूर्ण स्कूली पाठ्यचर्या में व्याप्त होना चाहिए |


सामाजिक विज्ञान


  • सामाजिक विज्ञान की विषयवस्तु में अवधारणात्मक समझ पर ध्यान दिए  जाने की जरूरत है बजाए इसके कि बच्चों के सामने परीक्षा के लिए रटने वाली सामग्री का अम्बार खड़ा कर दिया जाये | इससे उनमें सामजिक मुद्दों  पर स्वतंत्र तथा आलोचनात्मक रूप से सोचने का अवसर मिलेगा |
  • प्रमुख रास्ट्रीय चिन्ताओ जैसे-लैंगिक न्याय ,मानव अधिकार और हाशिये के         
  • समूहों तथा अल्पसंख्यकों के प्रति संवेदनशीलता को विकसित किये जाने के लिए अंत:अनुशासनात्मक दृष्टीकोण अपनाये जाने की जरूरत है|
  • नागरिक शास्त्र को राजनीतिशास्त्र में तब्दील कर दिए जाये, तथा इतिहास को बच्चे की अतीत तथा नागरिक की पहचान की अवधारणा पर प्रभाव  डालने वाले विषय के रूप में पहचाना जाये |



काम


  • पूर्व प्राथमिक से लेकर उच्च माध्यमिक स्तर तक स्कूली पाठ्यचर्या को पुनर्गठित किये जाने की आवश्यकता है जिसमें ज्ञान अर्जन ,मूल्यों का
  • विकास और बहुविध कौशलों के निर्माण के संदर्भ में काम की शिक्षाशास्त्रीय संभावनाओं को देखा जा सके |  


 कला

  • कलाओं (संगीत ,नृत्य ,दृश्यकलायें ,कठपुतली कला ,मिट्टी की कला ,नाटक आदि के लोक तथा शास्त्रीय रूपों )और धरोहर शिल्पों को पाठ्यचर्या में समेकित घटकों के रूप में मान्यता |
  • वैयक्तिक ,सामाजिक ,आर्थिक और सौन्दर्यात्मक आवश्यकताओं के संदर्भ में उनकी प्रासंगिकता के बारे में माता-पिता ,स्कूली अधिकारियों और प्रशासकों में जागरूकता पैदा करना |
  •  कला को स्कूली शिक्षा के हर स्तर पर शामिल किये जाने पर बल |


शांति


  • स्कूली शिक्षा के दौरान उपयुक्त गतिविधियों के माध्यम से सभी विषयों में मूल्यों का संवर्धन |
  • शांति के लिए शिक्षा को शिक्षण –प्रशिक्षण का भी एक अवयव बनाया जाना चाहिए |


स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा


  • स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा विद्यर्थियों के समग्र विकास के लिए आवश्यक है | 
  • स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिख्सा के माध्यम से स्कूल में नामांकन , उपस्थिति एवं ठहराव आदि की समस्या से निपटा जा सकता है |


आवास और अधिगम

पर्यावरण शिक्षा सबसे अच्छी तरह विभिन्न अनुशासनों की शिक्षा के साथ ,उसके मुद्दों और चिन्ताओं को सभी स्तरों पर जोड़कर दी जा सकती है |परन्तु इसमें यह ध्यान देना आवश्यक है कि सम्बंधित गतिविधियों के लिए पर्याप्त समय दिया जाये ।


 चतुर्थ अध्याय

विद्यालय एवं कक्षा का वातावरण

  1.    "इसमें वातावरण के भौतिक एवं मनोवैज्ञानिक आयामों का परिक्षण करते हुए यह प्रस्तुत किया गया है कि बच्चों के अधिगम को विद्यालय एवं कक्षा का वातावरण किस प्रकार महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते है :
  2.  शिक्षकों के प्रदर्शन को सुधारने के लिए ढांचागत और भौतिक सामग्री की न्यूनतम उपलब्धता और दैनिक योजना को लचीला बनाना आवश्यक है |
  3. बच्चों को सिखाने वालों के रुप में पहचानने वाली स्कूली संस्कृति हर बच्चे की रुचियो को उसकी संभावनाओं को और अधिक समृद्ध करती है |
  4.  ऐसी विशिष्ट गतिविधियों का आयोजन जिसमें सक्षम और विभिन्न अक्षमताओं को झेल रहे बच्चे एक साथ भाग ले सकें |यह सबके सिखाने के लिए एक अनिवार्य शर्त है |
  1.   लोकतान्त्रिक तरीके द्वारा बच्चों में स्व –अनिशासन का विकास हमेशा ही प्रासंगिक रहा है |   ज्ञान की प्रकिया में समुदाय के लोगों को शामिल किये जाने से स्कूल और समुदाय में साझेदारी होने लगती है |"


सीखने के लिए जरुरी संसाधनों  के बारे में इन सदर्भों में पुनर्विचार की आवश्यकता है – 


  • ""पाठयपुस्तक में अवधारणाओं कि वे उससे संबंधित चिंतन और समूह कार्य को बढ़ावा देने वाले हों |
  • सहायक पुस्तकें ,कार्यपुस्तिकाएँ ,शिक्षकों के लिए मर्ग्दार्शिकों आदि अभिनव चिंतन और नयी दृष्टियों पर आधारित हों|
  • शिक्षा को इकतरफा रूप से प्राप्त की जाने वाली वस्तु की जगह इसमें दोतरफा संवाद बनाने के लिए मल्टीमिडिया और सुचना एवं सचर तकनीकी के साधनों का उपयोग |
  • स्कूल का पुस्तकालय विद्यार्थियों ,शिक्षकों और समुदाय के लोगों के लिए ज्ञान
  • को गहरा करने और विस्तृत संसार के साथ जोड़ने का कार्य करें
  • शिक्षा का महौल को बनाने के लिए स्कूल सारणी की विकेंद्रीकृत योजना तथा दैनिक सारणी ओए शिक्षक को पेशेवर कार्यों के लिए स्वायत्तता अनिवार्य है |"



पंचम अध्याय

व्यवस्थागत सुधार 

पाठ्यचर्या को नवीकृत करने के लिए सबसे जरूरी व्यवस्थागत कदम होगा परीक्षाओं में सुधार जिससे खासकर दसवीं ओए बाहरवीं कक्षा में बच्चों और उनके माता –पिता पर बढ़ते मनोवैज्ञानिक दबाव की गहराती समस्याओं का कोई समाधान निकला जा सके |इसके लिए जो विशेष कदम उठाने जरूरी है वे हैं प्रश्न पत्र के स्वरूप का पूरा परिवर्तन ,जिससे तर्कशक्ति और रचनात्मक क्षमताओं को आकलन का आधार बनाया जाये न कि रटने की क्षमता को |साथ ही पारदर्शिता और आंतरिक आकलन को बढ़ावा देते हुए परीक्षाओं को कक्षा की गतिविधियों से भी जोड़ने की जरुरत है |आज प्रचलित पास फेल की सामान्यीकृत श्रेणियों की कमी को दूर करने के लिए जरुरी होगा कि ऐसी युक्तियाँ खोजी जाएँ जो बच्चों को अलग अलग स्तर की उपलब्धियों का विकल्प लेने को प्रेरित कर सके |बोर्ड –पूर्व परीक्षायों पर अतिरिक्त जोर को भी हतोत्साहित किये जाने की जरुरत है |अगर बच्चों के कक्षा के अनुभवों को इस तरह आयोजित करना हो जिससे उन्हें ज्ञान सृजित करने का अवसर मिले तो हमारी स्कूली व्यवस्था में व्यापक व्यवस्थागत सुधारो की जरुरत होगी|व्यवस्थागत सुधारों के संदर्भ में यह दस्तावेज पंचायती राज व्यवस्था को सुदृढ़ करने पर बल देता है |

गुणवत्ता और जवाबदेही बढाने के माध्यम के रूप में सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए एक अधिक सुनियोजित रुख अपनाकर यह किया जा सकता है | पर्यावरण से जुडी विविध स्कूल –आधारित परियोजनाएँ पंचायती राज संस्थाओं के लिए एक ऐसा ज्ञान भंडार हो सकती हैं जिसके आधार पर वे स्थानीय पर्यावरण की बेहतर साज –संभाल कर उसे पुनर्जीवित कर सकते हैं |गुणवत्ता के स्तर को ऊपर उठाने के लिए स्कूली स्तर पर अकादमिक नियोजन और नेतृत्व जरुरी है और खण्ड एवं सकुंल स्तर पर भूमिकाओं में विभाजन करना बहुत ही आवश्यक है | चट्टोपाध्याय कमीशन (१९८४ )द्वारा सुझाएँ गये पेशेवर मानकों ढीलापन लाने की हाल की प्रवृति को रोकने के लिए शिक्षक - प्रशिक्षण में क्रांतिकारी परिवर्तन की जरुरत है | सेवापूर्ण प्रशिक्षण कार्यक्रमों को ज्यादा लम्बी अवधि का तथा अधिक समग्रता लिए हुए होना चाहिए ताकि बच्चों का ध्यानपूर्वक अवलोकन करने के लियें पर्याप्त अवसर और स्कूलों में इंटर्नशिप के द्वारा शिक्षाशास्त्रीय सिद्धांतों को व्यवहार से जोड़ने के पुरे मौके मिल सके |



"1.  व्यवस्थागत सुधार के एक प्रमुख लक्षण है,गुणवत्ता की चिंता जिसका मतलब हुआ कि संस्था में अपनी कमजोरियों की पहचान कर नयी क्षमताओं का विकास करते हुए खुद को सुधारने की क्षमता हो |

2. यह वांछनीय है कि समान स्कूल व्यवस्था विकसित की जाये ताकि देश के अलग –अलग क्षेत्रों की तुलनीय गुणवत्ता भी सुनिश्चित हो सके क्योकि जब अलग –अलग पृष्ठभूमियों के बच्चे साथ –साथ पढ़ते हैं तो इससे शिक्षण की गुणवत्ता में विकास होता है और स्कूल का माहौल समृद्ध होता है |

3. आगामी योजना के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्रों की पहचान की शुरुआत स्कूलों से करते हुए संकुल तथा खंड स्तर पर हो |बाद में इनका समेकन करते हुए विस्तृत रुपरेखा बनाई जा सकती है |यह आगे जिला स्तर पर विक्रेन्द्रीकरण योजना निति बनाने में मदद कर सकती है |

4. प्रधानाध्यापक और शिक्षकों के सहयोग से सार्थक अकादमिक योजना  का विकास |

5. पठन-पाठन ले संदर्भ में प्रत्येक स्कूल के साथ सतत अन्त:क्रिया की जनि चाहिए ताकि गुणवत्ता का निरीक्षण किया जा सके |

6.  शिक्षक –शिक्षा कार्यक्रमों का इस प्रकार पुनर्सुत्रीकरण एवं शक्तिकरणकिया जाये ताकि शिक्षक निम्नलिखित रूपों में अपनी भूमिका निभा सके:

अध्यन-अध्यापन की परिस्थितियों को शिक्षकों के लिए उत्साहवर्धक ,सहयोगी और मानवीय बनाया जाये ताकि विद्यार्थियों को अपनी शारीरिक तथा बौद्धिक संभावनाओं के पूर्ण विकास का मौका मिले|साथ ही ,जिम्मेदार नागरिक के रूप में अपनी भूमिका निभाने के लिए वांछनीय सामाजिक और मानवीय मूल्यों के विकास का भी अवसर मई;ल सके, और
               शिक्षक को ऐसे समूह का हिस्सा होना चाहिए जो लगातार सामाजिक और विद्यार्थियों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर पाठ्यचर्या सुधार में सजगता से लगें |

7. शिक्षक –शिक्षा का इस प्रकार पुनर्सुत्रीकरण हो की इसमें ज्ञान निर्माण में विद्यार्थी की सक्रिय भागीदारी ,अधिगम के साझे सदर्भ ,ज्ञान निर्माण की प्रकिया में शिक्षक उत्प्रेरक का काम करे,आदि पर बल दिया जाये|शिक्षक –शिक्षा का दृष्टीकोण बहु –अनुशासनात्मक हो, उसमें सिद्धांत और व्यवहार अंतर्भूत हों तथा इसमें आलोचनात्मक परिप्रेक्ष्य विकसित करने की दृष्टी से समकालीन भारतीय सामाजिक मुद्दों पर बातचीत हो|


8.  शिक्षक –शिक्षा में भाषित दक्षता को क्रेंद्र में रखा जाये और शिक्षक –शिक्षा का समेकित माँडल विकसित किया जाये ताकि शिक्षकों के पेशेवरपन को मजबूत किया जा सके|


9.   सेवाकालीन प्रशिक्षक स्कूल में बदलाव का उत्प्रेरक हो|

10.   लोकतान्त्रिक सहभागिता को साकार करने हेतु गाँव के स्तर पर समांतर संस्थाओं के क्रियाकालापों को नियंत्रित कर पंचायती राज संस्थाओं को मजबूती प्रदान की जा सके|

11.  निम्नलिखित बिन्दुओं पर बल देकर परीक्षा के कारण होने वाले तनाव में कमी लाई जा सकती है और सफलता बढाई जा सकती है:

                 विषयवस्तु के परीक्षण के बदले शिक्षार्थियों की समस्या समाधान तथा समझ को जांचने की दिशा में बदलाव | इसके लिए प्रश्न –पत्र के वर्तमान स्वरूप में परिवर्तन आवश्यक है |


                 लघु परीक्षाओं की ओर बदलाव |

             लचीली समय सीमा के साथ परिक्षा |

                 एक ऐसी नोडल एजेंसी की स्थापना जो

परीक्षाओं के डिजाईन बनाये तथा उन्हें संचालित कर सके |


अंततः यह दस्तावेज स्कूली व्यावस्था और दूसरे नागरिक समूहों के बीच सहभागिता की सिफारिश करता है जिनमें गैर –सरकारी संगठन और शिक्षक संगठन भीं शामिल है| पहले से ही मौजूद नवाचारों के अनुभवों को मुख्य धारा का स्वरूप देने की जरूरत है| आज जरूरत इस बात की है कि आरंभिक शिक्षा के सर्वव्यापीकरण में निहित चुनौतियों के प्रति सजगता को राज्य और बच्चों को  लेकर काम कर रही साड़ी एजेंसियों के बीच एक व्यापक सहभागिता का विषय बनाया जाये और पहले से मौजूद नवाचारों के अनुभवों को मुख्यधारा में लाया जाये |


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Thursday, April 11, 2019

राष्ट्रीय पाठयचर्या [NCF] 2005

National Curriculum Framework (NCF 2005)


राष्ट्रीय पाठयचर्या 2005 की रूपरेखा


राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एनसीएफ) एक रुपरेखा प्रदान करती है। जिसमें शिक्षक और स्कूल उन अनुभवों की योजना बना सकते हैं जो उन्हें लगता है कि बच्चों के पास होने चाहिए।

यह शैक्षणिक उद्देश्य, शैक्षिक अनुभव, अनुभव संगठन और शिक्षार्थी का आकलन जैसे चार मुद्दों को संबोधित करता है।एनसीएफ पाठ्यचर्या और पाठ्यक्रम से अलग है। यह शिक्षा के विभिन्न पहलुओं पर दिशा-निर्देश प्रदान करता है।इससे पहले एनसीएफ व्यवहारवादी मनोविज्ञान पर आधारित थे लेकिन एन.सी.एफ 2005 रचनात्मक सिद्धांत पर आधारित है।एनसीएफ 2005 के विभिन्न विषयों, प्रधानाध्यापकों, शिक्षकों और माता-पिता, एनसीईआरटी संकाय इत्यादि के प्रतिष्ठित विद्वानों द्वारा गहन विचार-विमर्श की श्रृंखला के माध्यम से उत्पन्न विचारों के झुकाव के लिए वर्तमान स्वरूप और रूप का अधिकार है।


एनसीएफ 2005 का विकास:

एनसीएफ 2005 टैगोर के निबंध 'सभ्यता और प्रगति' से उद्धरण के साथ शुरू होता है जिसमें कवि हमें याद दिलाता है कि बचपन में 'रचनात्मक भावना' और 'उदार खुशी' एक कुंजी हैं, जिनमें से दोनों को एक नासमझ वयस्क समाज द्वारा विकृत किया जा सकता है।नेशनल स्टीयरिंग कमेटी की स्थापना प्रोफेसर यशपाल की अध्यक्षता में की गई थी।अंततः 7 सितंबर, 2005 को सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ एजुकेशन (सीएबीई) में चर्चा और पारित किया गया।शिक्षा पर राष्ट्रीय नीति ने शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए शैक्षिक प्रौद्योगिकी आवश्यकता पर बल दिया।इस नीति ने दो प्रमुख केन्द्र प्रायोजित योजनाओं, शैक्षणिक प्रौद्योगिकी और कंप्यूटर साक्षरता पर ध्यान दिया।


पॉलिसी दस्तावेजों और रिपोर्टों में पहले से विचार किए गए निम्नलिखित कुछ विचार थे:

ज्ञान को स्कूल के बाहर के जीवन से जोड़ना।पड़ाई रटने की तरह ना हो।कक्षा की शिक्षा और परीक्षा को एकीकृत करना और इसे अधिक लचीला बनाना।बच्चों के समग्र विकास करने के लिए पाठ्यक्रम को समृद्ध करना ताकि यह पाठ्यपुस्तकों से अतिरिक्त हो।एक ऐसी पहचान को पोषित करना जिसमें देश की लोकतांत्रिक राजनीति के अंतर्गत ही राष्ट्रीय चिंताए आएं।


एनसीएफ 2005 के सिद्धांतों का मार्गदर्शन:

स्कूल में सभी बच्चों को शामिल करना और बनाए रखने का महत्व – यूईई के अनुसार, सामाजिक, आर्थिक, मनोवैज्ञानिक, शारीरिक, बौद्धिक विशेषता में उनके मतभेदों के बावजूद प्रत्येक बच्चा स्कूल में सफलता सीखने और प्राप्त करने में सक्षम होना चाहिए।ज्ञान, कार्य और शिल्प की विभिन्न परंपराओं के समृद्ध विरासत में शामिल करने के लिए पाठ्यचर्या के दायरे को विस्तृत करें।पंचायती राज संस्था पर स्थानीय ज्ञान और महत्वपूर्ण शिक्षा के अभ्यास का एकीकरण पर विद्रोह और जोर।बच्चों को पर्यावरण और इसकी सुरक्षा के प्रति संवेदनशील बनाना।एक ऐसी शांति की संस्कृति का निर्माण करना जिसमें व्यक्तियों को अपने प्राकृतिक और सामाजिक वातावरण के अनुरूप रहने के लिए सशक्त बनाना। शांति को स्कूल के पाठ्यक्रम मे एकीकृत करना।संविधान में शामिल सिद्धांतों के लिए अपने अधिकारों और कर्तव्यों और प्रतिबद्धताओं के प्रति जागरूक नागरिकता का निर्माण



प्रभाव:

सीखना ज्ञान के निर्माण की प्रक्रिया है, जिसमे शिक्षार्थी नए विचारों को मौजूदा विचारों के आधार पर जोड़कर सक्रिय रूप से अपना ज्ञान बनाते हैं।शिक्षार्थी अनुभवों के माध्यम से मानसिक वास्तविकता का निर्माण करते हैं।विचारों की संरचना और पुनर्गठन आवश्यक विशेषताएं हैं क्योंकि इससे शिक्षार्थियों की सीखने में प्रगति होती है।प्रासंगिक गतिविधियों के माध्यम से शिक्षार्थियों की मानसिक छवियों के निर्माण में सुविधा हो सकती है।सहयोगी शिक्षा संधिक्रम वार्ता, कईं विचारों को साझा करने और बाहरी वास्तविकता के आंतरिक प्रतिनिधित्व को बदलने के लिए जगह प्रदान करती है।बच्चों को ऐसे प्रश्न पूछने की इजाजत दी जाती है, जो बाहर होने वाली कोई भी दो चीज़ों को स्कूल लर्निंग के साथ संबंधित करेंबच्चों को, बजाय बस याद रखने और सही तरीके से जवाब प्राप्त करने के अपने शब्दों और अपने अनुभवों से जवाब देने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।समझदार अनुमान को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।



सामाजिक विज्ञान को पढ़ाने का लक्ष्य और उद्देश्य- एनसीएफ 2005

अनुशासनिक निशानों को पहचानना ताकि सामग्री खराब ना हो सके और पौधों जैसे विषयों के एकीकरण पर बल दिया जा सके।सामाजिक रूप से वंचित समूहों, आदिवासियों और अल्पसंख्यक के मुद्दों के लिए लिंग न्याय और संवेदनशीलता को सामाजिक विज्ञान के सभी क्षेत्रों को सूचित करना चाहिए।गंभीर रूप से सामाजिक और आर्थिक मुद्दों और गरीबी, बाल श्रम, विनाश, निरक्षरता और असमानता के कईं अन्य आयामों की चुनौतियों की जांच करें।लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष समाज में नागरिकों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को समझें।हमारे जैसे बहुलवादी समाज में, यह महत्वपूर्ण है कि सभी क्षेत्रों और सामाजिक समूह पाठ्यपुस्तकों से संबंधित हो सकें।महत्वपूर्ण विषयों के उपचार में एकीकृत दृष्टिकोण पर बल देते हुए सामाजिक विज्ञान को अनुशासनात्मक परिप्रेक्ष्य से माना जाना चाहिए।शैक्षिक मुद्दों पर सोच प्रक्रिया निर्णय लेने और गंभीर प्रतिबिंब विकसित करने के लिए शैक्षणिक प्रथाओं को सक्षम करना महत्वपूर्ण है।द्वितीय अवस्था में, सामाजिक विज्ञान में इतिहास, भूगोल, राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र के तत्व शामिल हैं। मुख्य ध्यान समकालीन भारत पर होगा और शिक्षार्थी को देश के सामने आने वाली सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों की गहरी समझ में शुरू किया जाएगा।


Ncf 2005 के अनुसार शिक्षक की भूमिका क्या है


भारत में राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एनसीएफ) का निर्माण करने की जिम्मेदारी एनसीईआरटी की है। यह संस्था समय-समय पर इसकी समीक्षा भी करती है। एनसीएफ-2005 के बनने का कार्य एनसीईआरटी के तत्कालीन निदेशक प्रो. कृष्ण कुमार के नेतृत्व में संपन्न हुआ।

इसमें शिक्षा को बाल केंद्रित बनाने, रटंत प्रणाली से निजात पाने, परीक्षा में सुधार करने और जेंडर, जाति, धर्म आदि आधारों पर होने वाले भेदभाव को समाप्त करने की बात कही गई है। शोध आधारित दस्तावेज़ तैयार करने के लिए 21 राष्ट्रीय फोकस समूह बने जो विभिन्न विषयों पर केंद्रित थे। इसके नेतृत्व की जिम्मेदारी संबंधित क्षेत्र के विषय विशेषज्ञों को दी गई।



शिक्षा के लक्ष्य

1.एनसीएफ-2005 के अनुसार शिक्षा का लक्ष्य किसी बच्चे के स्कूली जीवन को उसके घर, आस-पड़ोस के जीवन से जोड़ना है। इसके लिए बच्चों को स्कूल में अपने वाह्य अनुभवों के बारे में बात करने का मौका देना चाहिए। उसे सुना जाना चाहिए। ताकि बच्चे को लगे कि शिक्षक उसकी बात को तवज्जो दे रहे हैं।

2. शिक्षा का दूसरा प्रमुख लक्ष्य है आत्म-ज्ञान । यानि शिक्षा खुद को खोजने, खुद की सच्चाई को जानने की एक निरंतर प्रक्रिया बने। इसके लिए बच्चों को विभिन्न तरह के अनुभवों का अवसर देकर इस प्रक्रिया को सुगम बनाने की बात एनसीएफ में कही गई है।

3. शिक्षा के तीसरे लक्ष्य के रूप में साध्य और साधन दोनों के सही होने वाले मुद्दे पर चर्चा की गई है। इसमें कहा गया कि मूल्य शिक्षा अलग से न होकर पूरी शिक्षा की पूरी प्रक्रिया में शामिल होनी चाहिए। तभी हम बच्चों के सामने सही उदाहरण पेश कर पाएंगे।

4. सांस्कृतिक विविधता का सम्मान करने और जीवन जीने के अन्य तरीकों के प्रति भी सम्मान का भाव विकसित करने की बात करता है।

5. वैयक्तिक अंतर के महत्व को स्वीकार करने की बात करता है। इसमें कहा गया है कि हर बच्चे की अपनी क्षमताएं और कौशल होते हैं। इसे स्कूल में व्यक्त करने का मौका देना चाहिए जैसे संगीत, कला, नाट्य, चित्रकला, साहित्य (किस्से कहानियां कहना), नृत्य एवं प्रकृति के प्रति अनुराग इत्यादि।

6. ज्ञान के वस्तुनिष्ठ तरीके के साथ-साथ साहित्यिक एवं कलात्मक रचनात्मकता को भी मनुष्य के ज्ञानात्मक उपक्रम का एक हिस्सा माना गया है। यहां पर तर्क (वैज्ञानिक अन्वेषण) के साथ-साथ भावना (साहित्य) वाले पहलू को भी महत्व देने की बात कही गई है।

7. इसमें कहा गया है, “शिक्षा को मुक्त करने वाली प्रक्रिया के रूप में देखा जाना चाहिए अन्यथा अबतक जो कुछ भी कहा गया है वह अर्थहीन हो जाएगा। शिक्षा की प्रक्रिया को सभी तरह के शोषण और अन्याय गरीबी, लिंग भेद, जाति तथा सांप्रदायिक झुकाव) से मुक्त होना पड़ेगा जो हमारे बच्चों को इस प्रक्रिया से वंचित करते हैं।”

8. आठवीं बिंदु स्कूल में पढ़ने-पढ़ाने के काम के लिए अच्छा माहौल बनाने की बात करता है। साथ ही ऐसा माहौल बनाने में बच्चों की भागीदारी सुनिश्चित करने की भी बात करता है। यानि शिक्षक खुद आगे न आकर बच्चों को नेतृत्व करने का मौका दें।

9. नौवां बिंदु अपने देश के ऊपर गर्व की भावना विकसित करने की बात करता है। ताकि बच्चे देश से हरा जुड़ाव महसूस कर सकें। इसके साथ ही कहा गया है, “बच्चों में अपने राष्ट्र के प्रति गौरव की भावना संपूर्ण मानवता की महान उपलब्धियों के प्रति गौरव को पीछे न कर दे।”



राष्‍ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (एन सी टी ई) ने शिक्षक शिक्षा पर राष्‍ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचा तैयार किया है, जिसे मार्च 2009 में परिचालित किया गया था। यह ढांचा एन सी एफ, 2005 की पृष्‍ठभूमि में तैयार किया गया है और नि:शुल्‍क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 में निर्धारित सिद्धांतों ने शिक्षक शिक्षा पर परिवर्तित ढांचा अनिवार्य कर दिया है, जो एन सी एफ, 2005 में संस्‍तुत स्‍कूल पाठ्यचर्या के परिवर्तित दर्शन के अनुकूल हो। शिक्षक शिक्षा का दर्शन स्‍पष्‍ट करते हुए इस ढांचे में नए दृष्टिकोण के कुछ महत्‍वपूर्ण आयाम हैं :

  • परावर्ती प्रचलन, शिक्षक शिक्षा का केन्‍द्रीय लक्ष्‍य;
  • छात्र-अध्‍यापकों को स्‍व-शिक्षा परावर्तन नए विचारों के आत्‍मसातकरण और अभिव्‍यक्ति का अवसर होगा
  • स्‍व-निर्देशित शिक्षा की क्षमता और सोचने की योग्‍यता का विकास और समूहों में कार्य महत्‍वपूर्ण।
  • बच्‍चों के पर्यवेक्षण एवं शामिल करने, बच्‍चों से संवाद करने और उनसे जुड़ने का अवसर।


इस ढांचे ने फोकस, विशिष्‍ट उद्देश्‍यों, सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक शिक्षा के अनुकूल विस्‍तृत अध्‍ययन क्षेत्र और पाठ्यचर्या अंतरण और विभिन्‍न प्रारंभिक शिक्षक शिक्षा कार्यक्रमों के लिए मूल्‍यांकन कार्यनीति उजागर की हैं। मसौदा आधारभूत मुद्दों को भी रेखांकित करता है, जो इन पाठ्यक्रमों के सभी कार्यक्रमों का निरूपण निदेशित करेगा। इस ढांचे ने सेवाकालीन शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के दृष्टिकोण और रीति विधान पर अनेक सिफारिशें भी की हैं और इसकी कार्यान्‍वयन कार्यनीति भी रेखांकित की गई है। एन सी एफ टी ई के स्‍वाभाविक परिणाम के रूप में एन सी टी ई ने विभिन्‍न शिक्षक शिक्षा पाठ्यक्रमों का 'आदर्श' पाठ्यक्रम भी तैयार किया है।



राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा-2005

विषय प्रवेश

1. यह विद्यालयी शिक्षा का अब तक का नवीनतम राष्ट्रीय दस्तावेज है ।
2. इसे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के के शिक्षाविदों,वैज्ञानिकों,विषय विशेषज्ञों व अध्यापकों ने मिलकर तैयार किया है ।
3. मानव विकास संसाधन मंत्रालय की पहल पर प्रो0 यशपाल की अध्यक्षता में देश के चुने हुए  विद्वानों ने शिक्षा को नई राष्ट्रीय चुनौतियों के रूप में देखा ।

मार्गदर्शी सिद्धान्त

1. ज्ञान को स्कूल के बाहरी जीवन से जोड़ा जाए।
2. पढाई को रटन्त प्रणाली से मुक्त किया जाए।
3. पाठ्यचर्या पाठ्यपुस्तक केन्द्रित न रह जाए।
4. कक्षाकक्ष को गतिविधियों से जोड़ा जाए।
5. राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति आस्थावान विद्यार्थी तैयार हो।


प्रमुख सुझाव

1. शिक्षण सूत्रों जैसे-ज्ञात से अज्ञात की ओर, मूर्त से अमूर्त की ओर आदि का अधिकतम प्रयोग हो।
2. सूचना को ज्ञान मानने से बचा जाए।
3. विशाल पाठ्यक्रम व मोटी किताबें शिक्षा प्रणाली की असफलता का प्रतीक है।
4. मूल्यों को उपदेश देकर नहीं वातावरण देकर स्थापित किया जाए।
5. अच्छे विद्यार्थी की धारणा में बदलाव आवश्यक है अर्थात् अच्छा विद्यार्थी वह है जो तर्क पूर्ण बहस के द्वारा अपने मौलिक विचार शिक्षक के सामने प्रस्तुत करता है।
6. अभिभावकों को सख्त सन्देश दिया जाए कि बच्चों को छोटी उम्र में निपुण बनाने की आकांक्षा रखना गलत है।
7. बच्चों को स्कूल से बाहरी जीवन में तनावमुक्त वातावरण प्रदान करना।
8. “कक्षा में शान्ति” का नियम बार-बार ठीक नहीं अर्थात् जीवन्त कक्षागत वातावरण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
9. सहशैक्षिक गतिविधियों में बच्चों के अभिभावकों को भी जोड़ा जाए।
10. समुदाय को मानवीय संसाधन के रूप में प्रयुक्त होने का अवसर दें।
11. खेल आनन्द व सामूहिकता की भावना के लिए है, रिकार्ड बनाने व तोड़ने की भावना को प्रश्रय न दे।
12. बच्चों की अभिव्यक्ति में मातृ भाषा महत्वपूर्ण स्थान रखती है। शिक्षक अधिगम परिस्थितियों में इसका उपयोग करें।
13. पुस्तकालय में बच्चों को स्वयं पुस्तक चुनने का अवसर दें।
14. वे पाठ्यपुस्तकें महत्वपूर्ण होती है जो अन्तःक्रिया का मौका दें।
15. कल्पना व मौलिक लेखन के अधिकाधिक अवसर प्रदान करावें।
16. सजा व पुरस्कार की भावना को सीमित रूप में प्रयोग करना चाहिए।
17. बच्चों के अनुभव और स्वर को प्राथमिकता देते हुए बाल केन्द्रित शिक्षा प्रदान की जाए।
18. सांस्कृतिक कार्यक्रमों में मनोरंजन के स्थान पर सौन्दर्यबोध को प्रश्रय दे।
19. शिक्षक प्रशिक्षण व विद्यार्थियों के मूल्यांकन को सतत प्रक्रिया के रूप में अपनाया जाए।
20. शिक्षकों को अकादमिक संसाधन व नवाचार आदि समय पर पहुँचाएँ जाएँ।


पिछले वर्ष के कुछ प्रश्न:

1. एनसीएफ 2005 का मानना है कि पाठ्यपुस्तकों को एक माध्यम के रूप में देखा जाना चाहिए: (सीटीईटी सितंबर 2016)

a समाज के स्वीकृत मूल्यों को लागू करना
Bप्रमुख वर्ग द्वारा स्वीकार की गई जानकारी को पार करने के लिए
C परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए
Dआगे की जांच के लिए

उत्तर: (a)

एक छात्र अपने अधिग्रहित ज्ञान को अपने बाह्य पर्यावरण से जोड़ सकता है और साथियों, परिवार, देखभाल करने वालों द्वारा सूचित एक पहचान को पोषित कर सकता है। एनसीएफ 2005 के अनुसार, पाठ्यपुस्तकों को समाज के स्वीकृत मूल्यों को लागू करने के लिए एक माध्यम के रूप में देखा जाना चाहिए।


2. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा, 2005 के अनुसार, _____ और _____ सीखने के चरित्र में हैं। (सीटीईटी सितंबर 2016)

Aनिष्क्रिय,
Bसरलसक्रिय,
Cसामाजिकनिष्क्रिय,
Dसामाजिकसक्रिय, सरल

उत्तर: (b)

राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा, 2005 के अनुसार, सीखना अपने चरित्र में सक्रिय और सामाजिक है।

3. उच्च प्राथमिक स्तर पर सामाजिक विज्ञान में अवधारणाओं को विकसित करने के लिए सबसे उपयुक्त विधि चुनें। (सीटीईटी मई 2016)

पाठ्यपुस्तक में दिए गए सवालों के जवाब याद रखना
प्रमुख विशेषताएं सूचीबद्ध करना
निर्देशित प्रश्नों की एक श्रृंखला के माध्यम से सीखना
परिभाषाओं के माध्यम से सीखना

उत्तर: (b)

सामाजिक विज्ञान में अवधारणाओं को विकसित करने के लिए उपयोग की जाने वाली विधियां प्रमुख विशेषताओं को सूचीबद्ध करती हैं क्योंकि इसमें इतिहास शामिल है जो हमारी संस्कृति, राजनीतिक विज्ञान के बारे में बताता है जो सरकार भारत का एक संविधान है के बारे में बताता है, भूगोल जो पर्यावरण और अर्थशास्त्र के बारे में बताता है और अर्थशास्‍त्र जो भारत की आर्थिक स्थितियों के बारे में बताता है।

4. सामाजिक विज्ञान में उच्च प्राथमिक स्तर पर __ शामिल हैं। (सीटीईटी फरवरी 2015), (सीटीईटी जुलाई 2013)

भूगोल, इतिहास, राजनीतिक विज्ञान और अर्थशास्त्र राजनीतिक विज्ञान, भूगोल, इतिहास, समाजशास्त्र इतिहास, भूगोल, राजनीतिक विज्ञान, पर्यावरण विज्ञान इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, राजनीतिक विज्ञान

उत्तर: (a)


5. संचालन समिति के अध्यक्ष कौन थे।

डॉ. कृष्णा कुमार , प्रोफेसर अरविंद कुमार, प्रोफेसर गोविंद दास , प्रोफेसर यशपाल

उत्तर: (d)

नेशनल स्टीयरिंग कमेटी की स्थापना प्रोफेसर यशपाल की अध्यक्षता में की गई थी।

6. एनसीएफ 2005 के अनुसार, सामाजिक विज्ञान में शिक्षा का उद्देश्य छात्र को ............ में सक्षम करना है। (सीटीईटी जुलाई 2013)

राजनीतिक निर्णयों की आलोचना करनासामाजिक-राजनीतिक वास्तविकता का विश्लेषणदेश में सामाजिक राजनीतिक स्थिति पर जानकारी का प्रतिधारणसामाजिक राजनीतिक सिद्धांत के बारे में एक स्पष्ट और संक्षिप्त तरीके से वर्तमान ज्ञान ताकि छात्र उन्हें आसानी से याद रखें

उत्तर: (b)

एनसीएफ 2005 के अनुसार, सामाजिक विज्ञान में शिक्षा का उद्देश्य छात्र को सामाजिक-राजनीतिक हकीकत का विश्लेषण करने में सक्षम होना चाहिए ताकि वे समाज में लोगों, सरकार, मीडिया की भूमिका को समझ सकें।

7. एक सामाजिक विज्ञान शिक्षक को प्रभावी होने के लिए निम्न में से कौन सी विधियों को नियोजित करना चाहिए? (सीटीईटी जुलाई 2013)

उत्तेजक और रोचक गतिविधियों द्वारा छात्रों की भागीदारी में वृद्धिहर सोमवार को परीक्षण करके छात्रों के ज्ञान में वृद्धिमध्यम गति के शिक्षार्थियों के आत्मविश्वास को बढ़ावा देने के लिए पुरस्कार व्यवस्थाघर पर परियोजनाएं सौंपें ताकि माता-पिता को अपने बच्चे के अध्ययन में शामिल किया जा सके

उत्तर: (a)


एक सामाजिक विज्ञान शिक्षक को प्रभावी होने के लिए विचार उत्तेजक और रोचक गतिविधियों द्वारा छात्रों की भागीदारी में वृद्धि को नियोजित करना चाहिए।



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Wednesday, April 10, 2019

राष्टीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT]

राष्टीय  शैक्षिक अनुसंधान  और प्रशिक्षण परिषद (NCERT]

[National Council of Educational Research and Training)।

भारत सरकार द्वारा स्थापित संस्थान है जो विद्यालयी शिक्षा से जुड़े मामलों पर केन्द्रीय सरकार एवं प्रान्तीय सरकारों को सलाह देने के उद्देश्य से स्थापित की गयी है। यह परिषद भारत में स्कूली शिक्षा संबंधी सभी नीतियों पर कार्य करती है। इसका मुख्य कार्य शिक्षा एवं समाज कल्याण मंत्रालय को विशेषकर स्कूली शिक्षा के संबंध में सलाह देने और नीति-निर्धारण में मदद करने का है। इसके अतिरिक्त एनसीईआरटी के अन्य कार्य हैं शिक्षा के समूचे क्षेत्र में शोधकार्य को सहयोग और प्रोत्साहित करना, उच्च शिक्षा में प्रशिक्षण को सहयोग देना, स्कूलों में शिक्षा पद्धति में लाए गए बदलाव और विकास को लागू करना, राज्य सरकारों और अन्य शैक्षणिक संगठनों को स्कूली शिक्षा संबंधी सलाह आदि देना और अपने कार्य हेतु प्रकाशन सामग्री और अन्य वस्तुओं के प्रचार की दिशा में कार्य करना। इसी तरह भारत में शिक्षा से जुड़े लगभग हरेक कार्य में एनसीईआरटी की उपस्थिति किसी न किसी रूप में रहती है।

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद

संक्षेपाक्षर                - एन.सी.ई.आर.टी.
सिद्धांत                   - विद्ययाऽमृतम्श्नुते
प्रकार                     - शैक्षिक संस्थान
वैधानिक स्थिति        - सक्रिय
उद्देश्य                     - शिक्षा में गुणवत्ता लाना
मुख्यालय                - नई दिल्ली
स्थान                      - आई.आई.टी गेट, श्री औरोबिन्दो मार्ग
क्षेत्र served           - भारत
आधिकारिक भाषा     - हिन्दी, English, उर्दू
निदेशक                   - प्रोफेसर कृष्ण कुमार
जालस्थल                 - www.ncert.nic.in


कई अन्य शैक्षणिक संस्थान एनसीईआरटी के सहयोगी के तौर पर कार्यरत हैं, इनमें प्रमुख हैं:


  1. राष्ट्रीय शिक्षा संस्थान, नई दिल्ली
  2. केन्द्रीय शिक्षा प्रौद्योगिकी संस्थान, नई दिल्ली
  3. पं.सुंदरलाल शर्मा केन्द्रीय व्यावसायिक शिक्षा संस्थान, भोपाल
  4. क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान, अजमेर
  5. क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान, भोपाल
  6. क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान, भुवनेश्वर
  7. क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान, मैसूर
  8. उत्तर-पूर्वी क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान, शिलांग


इनके अलावा महिला शिक्षा विभाग (दि डिपार्टमेंट ऑफ वुमेन स्टडीज), जो महिला शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत है। इस दिशा में यह संस्था नीतिगत बदलाव और सलाह का आदान-प्रदान करती है। यह विभाग भी केंद्र और राज्यों के साथ मिलकर महिला शिक्षा के क्षेत्र में गत दो दशक से कार्य कर रही है। इनके अलावा, कई गैर सरकारी संस्थान भी एनसीईआरटी के साथ मिलकर शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत हैं। यह गैर सरकारी संगठन देश के सुदूर भागों में कार्यरत हैं और शिक्षा के क्षेत्र में कई काम कर चुके हैं और कर रहे हैं।

एनसीईआरटी के वर्तमान निदेशक शिक्षाविद् प्रोफेसर कृष्ण कुमार हैं। वे सितंबर २००४ से इस पद पर हैं और उनके कार्यकाल में अब तक एनसीईआरटी प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक स्तर की शिक्षा में व्यापक सुधार लाए जाने हेतु कई परिवर्तन किए हैं।



प्रारंभिक शिक्षा विभाग


प्रारंभिक शिक्षा विभाग, भारत सरकार को प्रारंभिक शिक्षा से संबंधित नीतियों और कार्यक्रमों पर परामर्श देने हेतु एन.सी.ई.आर.टी. का एक नोडल विभाग है। सर्व शिक्षा अभियान और बच्चों को नि:शुल्का एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (आर.टी.ई) अधिनियम 2009 के कार्यान्वगयन हेतु यह राष्ट्री य स्‍तर पर एक नोडल केन्द्रव के रूप में कार्य करता है।

इस विभाग के प्रमुख क्षेत्र हैं: प्रारंभिक बाल्यातवस्था देखभाल और शिक्षा, प्रारंभिक साक्षरता कार्यक्रम और प्रारंभिक शिक्षा।

सर्व शिक्षा अभियान के सम्ब न्ध में यह विभाग विभिन्नए प्रकार के कार्यकलापों जैसे अनुसंधान, विकास, प्रशिक्षण और विस्तार में एक अग्रणी भूमिका निभा रहा है।

शिक्षा के क्षेत्र में कार्यक्रम मूल्यां कन एक उभरता हुआ क्षेत्र है और प्रारंभिक शिक्षा विभाग अनुसंधान के इस नए क्षेत्र में महत्वयपूर्ण योगदान कर रहा है।



भूमिका और प्रकार्य

विभाग की अपने प्रमुख क्षेत्रों से सं‍बंधित भूमिका और प्रकार्य इस प्रकार हैं :

प्रारंभिक बाल्या्वस्थां देखभाल और शिक्षा (ई.सी.सी.ई.)


  1. आधारिक ई.सी.ई. अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिए आदर्श सामग्रियाँ विकसित करना;
  2. विद्यालय पूर्व शिक्षकों, अभिभावकों और अन्य इच्छुलक वर्गों के लिए स्रोत सामग्री का विकास;
  3. ई.सी.सी.ई. के क्षेत्र में आवश्य्कता आधारित अनुसंधान अध्ययनों का संचालन करना;
  4. ई.सी.सी.ई. के क्षेत्र में राज्योंु का क्षमता निर्माण करना और राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषदों और डाइट का सशक्तीदकरण करना। प्रत्ये क वर्ष प्रारंभिक बाल्यांवस्थाक देखभाल और शिक्षा में छ: माह का डिप्लोनमा संचालित किया जाता है।
  5. ई.सी.सी.ई. कार्यक्रमों की योजना, कार्यान्वियन और अनुवीक्षण में राज्यों के मुख्या पदधारियों हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रमों का संचालन करना और बच्चोंा, शिक्षक बच्चोंा, शिक्षकों, शिक्षक प्रशिक्षकों एवं अभिभावकों हेतु आवश्यीक सामग्री का विकास करना;
  6. प्रारंभिक बाल्या.वस्थाय देखभाल और शिक्षा का प्रसार करना। सरकार द्वारा चलाए जा रहे विद्यालय पूर्व केंद्रों, आँगनवाडि़यों और ई.सी.सी.ई. के क्षेत्र में कार्यरत निजी संस्था नों में बाल मीडिया प्रयोगशाला (ई.सी.सी.ई.- सी.एम.एल.) किट उपलब्धद करवाना।
  7. प्रारंभिक बाल्या.वस्थाय शिक्षा के उभरते हुए मुद्दों और प्रमुख क्षेत्रों पर संगोष्ठियाँ और सम्मे लन संचालित करना और 
  8. विद्यालय पूर्व शिक्षकों के प्रशिक्षण हेतु सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थापनों को स्रोत समर्थन उपलबध करवाना।




प्रारंभिक साक्षरता कार्यक्रम


  1. देश के नीति निर्माताओं और पाठ्यचर्या अभिकल्पककों का प्रारंभिक वर्षों में पठन पर शिक्षाशास्त्रब की ओर ध्यािन आकृष्टम करना ;
  2. उत्तर प्रदेश एवं अन्यय राज्योंा में अग्रगामी परियोजना को समर्थन देने हेतु विविध बाल साहित्य का संग्रह एवं अन्यण स्रोत सामग्री को उपलब्ध करवाना;
  3. शिक्षकों की पठन एवं लेखन के बारे में समझ विकसित करने में सहायता करना; और
  4. प्रगति का अनुवीक्षण करना तथा शिक्षकों एवं अन्यर पदधारियों को सहयोग उपलब्धश करवाना।




प्रारंभिक शिक्षा


  • प्रारंभिक शिक्षा से संबंधित प्राथमिकता क्षेत्रों में अनुसंधानिक अध्यंयनों का, विशेषतया प्रारंभिक शिक्षा की गुणवत्ता् में सुधार से संबंधित मुद्दों पर, संचालन करना;
  • सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत प्रारंभिक शिक्षा के गुणात्ममक सुधार हेतु राज्योंउ द्वारा कार्यान्वित विभिन्नग गुणता पहलों (Quality Initiatives ) का कार्यक्रम मूल्यां कन करना;
  • बच्चोंy हेतु विषयवार पाठ्यक्रम एवं पाठ्यचर्या सामग्री और कक्षा I से V तक के शिक्षकों हेतु सहायक सामग्री तैयार करने के लिए दिशा-निर्देशों का विकास करना;
  • शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009, के सन्दमर्भ में कें सनकी एवं (विधान मण्डकल रहित) संघ राज्यस क्षेत्रों के स्वा्मित्वग, नियंत्रण एवं प्रबंधन के अधीन विद्यालयों के संबंध में पाठ्यचर्या और मूल्यां कन प्रक्रिया हेतु दिशा-निर्देश विकसित करना;
  • प्राथमिक स्तबर पर विभिन्नो पाठ्यचर्या क्षेत्रों हेतु प्राथमिक स्त्र पर आकलन के लिए स्रोत पुस्ततकों का प्रचार करना;
  • प्राथमिक स्तषर के लिए एन.सी.एफ. - 2005 पर आधारित पाठ्यक्रम और पाठ्य सामग्रियों के कार्यान्वकयन हेतु राज्यों /संघ राज्य् क्षेत्रों में मुख्य पदधारियों का क्षमता निर्माण;
  • सर्व शिक्षा अभियान (एस.एस.ए.) और शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अंतर्गत कार्यकलापों के नियोजन, कार्यान्वशयन, अनुवीक्षण और मूल्यां कन (विशेषतया वे गतिविधियाँ जो कि शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने से संबंधित हैं), के संबंध में अकादमिक समर्थन उपलब्धक करवाना;
  • विभिन्न कार्यक्रमों के माध्याम से शिक्षा का अधिकार, प्रारंभिक बाल्यिवस्थाव देखभाल और शिक्षा (ई.सी.सी.ई.) तथा प्रारंभिक शिक्षा से संबंधित मुद्दों पर जागरूकता का विकास और समुदायों को सुग्राही बनाना।
  • प्रारंभिक शिक्षा में महत्वंपूर्ण विषयों और मुख्यु क्षेत्रों पर संगोष्ठियाँ, सम्मेालन और परामर्शी बैठकें आयोजित करना; और
  • शैक्षिक पत्रिकाओं और राष्ट्री य प्रलेखन एकक के माध्योम से ई.सी.सी.ई. और प्रारंभिक शिक्षा में नवाचारी/संगत सामग्री का प्रलेखन एवं प्रसार।


राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और विकास परिषद (एनसीईआरटी)

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और विकास परिषद स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में तकनीकी संसाधन सहायता प्रदान करने वाली शीर्ष संस्था है। एनसीईआरटी के घोषणा पत्र में स्कूली पाठ्‌यक्रम तैयार करने के कार्य को विशेष स्थान दिया गया है। एनसीईआरटी से यह अपेक्षा रहती है कि वह शिक्षा का सर्वोच्च स्तर बनाए रखने के लिए और इसे सुनिश्चित करने हेतु स्कूली पाठ्‌यक्रम की समीक्षा नियमित रूप से समय-समय पर करता रहे। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनपीई) 1986 और कार्य योजना (पीओए) 1992 ने एक राष्ट्रीय पाठ्‌यक्रम ढांचा (बाहरी विंडो में खुलने वाली वेबसाइट) बनाने और उसे प्रोत्साहन देने हेतु एनसीईआरटी को विद्गोष भूमिका प्रदान की है। एनपीई इस तरह के ढांचे को भारतीय संविधान द्वारा निर्धारित कुछ मानादंडों एवं परिवर्तनकारी लक्षणों को पूरा करने वाली राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली तैयार करने के साधन के रूप में देखता है।

राष्ट्रीय पाठ्‌यक्रम ढांचा: राष्ट्रीय पाठ्‌यक्रम ढांचा (एनसीएफ) 2005 व्यापक विचार विमर्श एवं परिश्रम का परिणाम था। इस हेतु लब्धप्रतिष्ठ वैज्ञानिक प्रो. यशपाल की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय संचालन समिति का गठन किया गया था। समिति के 35 सदस्यों में विभिन्न विषयों के विद्वान, प्रधानाचार्य एवं अध्यापक, जाने माने गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि तथा एनसीईआरटी के सदस्य शामिल थे। पाठ्‌यक्रम, राष्ट्रीय विषयों तथा व्यवस्थित विषयों को देखने वाले 21 राष्ट्रीय फोकस ग्रुपों ने इसके कार्यों का समर्थन किया था। इस विषय पर पूरे देश में व्यापक विचार-विमर्श किया गया।

इसके अलावा एनसीईआरटी ने ग्रामीण अध्यापकों, राज्यों के शिक्षा सचिवों तथा निजी विद्यालयों के प्रधानाचार्यों के साथ विचार-विमर्श किया। अजमेर, भोपाल, भुवनेश्वर, मैसूर तथा शिलांग के क्षेत्रीय शिक्षा संस्थानों में क्षेत्रीय सेमिनार आयोजित किए गए।

स्रोत: राष्‍ट्रीय पोर्टल विषयवस्‍तु प्रबंधन दल, द्वारा समीक्षित: 19-01-2011



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Tuesday, April 9, 2019

राष्टीय शिक्षक शिक्षा परिषद [NCTE]

राष्टीय शिक्षक शिक्षा परिषद 

National Council for Teacher Education (NCTE)

भारत सरकार की एक संस्था है, जिसकी स्थापना राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद अधिनियम, १९९३ (७३, १९९३) के अन्तर्गत १७ अगस्त, १९९५ में की गई थी। इसका उत्तरदायित्व भारतीय शिक्षा प्रणाली के मानक, प्रक्रियाएं एवं धाराओं की स्थापना एवं निरीक्षण करना है।


राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद

स्थापना   -   १७ अगस्त १९९५
अध्यक्ष    -   मो.अख्तर सिद्दीक़ी
स्थान      -    नई दिल्ली
पता        -    हंस भवन, बहादुर शाह ज़फर मार्ग
             
जालस्थल -     www.ncte-india.org/


इतिहास

1973 के पूर्व राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद की भूमिका अध्यापक शिक्षा से संबंधित सभी विषयो पर केंद्रीय और राज्य सरकारो के लिए एक सलाहकार निकाय के रूप में थी। परिषद का सचिवालय राष्ट्रीय शेक्षिक अनुशंधान तथा प्रशिक्षण परिषद, (एनसीईआरटी) के अध्यापक शिक्षा विभाग में स्थित था। शैक्षणिक क्षेत्र में अपने प्रशंसनीय कार्य के बाबजूद परिषद, अध्यापक शिक्षा में मानको को बनाये रखने तथा घटिया अध्यापक शिक्षा संस्थानों की बरोतरी को रोकने के अपने अनिवार्ये विनियामक कार्य नहीं कर सकी थी।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एन॰पी॰ई) 1986 और उसके अधीन कार्य योजना में अध्यापक शिक्षा प्रणाली को सर्वथा दुरुस्त करने के लिए पहले उपाय के रूप में संविधिक दर्जे और अपेक्षित संसाधनों से युक्त राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा प्ररिषद की कल्पना की गई थी। एक साविधिक निकाय के रूप में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा प्ररिषद अधिनियम 1993 के अधीन (1993 का 73 वा) राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा प्ररिषद 17 अगस्त 1995 से अस्तितव में आई।

राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा प्ररिषद का मूल उद्देश्य समूचे भारत में अध्यापक शिक्षा प्रणाली का नियोजित और समन्वित विकास करना, अध्यापक शिक्षा प्रणाली में मानदंडों और मानको का विनियमन तथा उन्हे समुचित रूप से बनाये रखना और तत्संबंधी विषय हैं।

राष्‍ट्रीय अध्‍यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) का मुख्‍य उद्देश्‍य संपूर्ण देश में अध्‍यापक शिक्षा प्रणाली के योजनागत और समन्वित विकास को प्राप्‍त करना और इससे संबंधित मामलों हेतु एवं अध्‍यापक शिक्षा प्रणाली में मानकों और मापदंडों का विनियमन और उचित अनुरक्षण करना है।

संगठनात्मक ढाँचा

राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद का मुख्यालय दिल्ली में है तथा भोपाल, भुवनेश्वर, बंगलुरु तथा जयपुर में इसकी क्षेत्रिय समितियाँ हैं।


राष्‍ट्रीय अध्‍यापक शिक्षा परिषद

राष्‍ट्रीय अध्‍यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) की स्‍थापना अगस्‍त, 1995 में इस लक्ष्‍य के साथ की गई थी कि पूरे देश में अध्‍यापक शिक्षा प्रणाली का नियोजित एवं समन्‍वित विकास किए जाने के साथ ही जरूरी नियम बनाने और अध्‍यापक शिक्षा के मानकों एवं स्‍तरों का उचित संरक्षण किया जा सके। एनसीटीई के कुछ प्रमुख विभिन्‍न अध्‍यापक शिक्षा कार्यक्रमों के लिए स्‍तरों का निर्धारण करना, अध्‍यापक शिक्षा संस्‍थानों को मान्‍यता प्रदान करना, अध्‍यापकों की नियुक्‍ति के लिए न्‍यूनतम शैक्षणिक योग्‍यताओं हेतु दिशा-निर्देश तैयार करना, सर्वेक्षण और अध्‍ययन करना, अनुसंधान एवं नवीन तरीके अपनाना तथा शिक्षा के व्‍यावसायीकरण पर रोक लगाना इत्‍यादि हैं।

परिषद की चार क्षेत्रीय समितियां जयपुर, बैंगलोर, भुवनेश्‍वर तथा भोपाल में गठित की गई हैं तो क्रमश: उत्तरी, दक्षिणी, पूर्वी एवं पश्‍चिमी क्षेत्र के लिए हैं। ये क्षेत्रीय समितियां अपने-अपने क्षेत्र में अध्‍यापक-शिक्षण संस्‍थानों को मान्‍यता देने के कार्य करती हैं। राष्‍ट्रीय अध्‍यापक शिक्षा परिषद अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत इन्‍हें अध्‍यापक शिक्षण पाठ्यक्रम चलाने के लिए ऐसी संस्‍थाओं को अनुमति देने का अधिकार है।

एक जनवरी, 2007 तक एनसीटीई ने 9045 पाठ्यक्रमों के माध्‍यम से 7.72 लाख प्रशिक्षु अध्‍यापकों को प्रशिक्षण देने हेतु 7461 अध्‍यापाक प्रशिक्षण संस्‍थानों को मान्‍यता प्रदान की। एनसीटीई ने सी.एड, डी.एड, बी.एड, डीपी.एड और एमपी.एड जैसे विभिन्‍न अध्‍यापक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए नए नियम और मानक जारी किए हैं। नए नियम अध्‍यापक कार्यक्रमों की गुणवत्ता सुधारने और अध्‍यापाक शिक्षण संस्‍थानों में अन्‍य सुविधाओं के अलावा बुनियादी मजबूती के लिए बनाए गए हैं।


राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (संशोधन) अधिनियम, 2017

1 जुलाई, 1995 को अध्यापक शिक्षा परिषद अधिनियम, 1993 (NCTE : National Council for Teacher Education Act, 1993) प्रभावी हुआ था। यह अधिनियम जम्मू व कश्मीर राज्य को छोड़कर पूरे देश में लागू है। अधिनियम का मुख्य उद्देश्य एक ‘राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद’ (NCTE) की स्थापना करना था जिससे अध्यापक शिक्षा प्रणाली में नियोजित एवं समन्वयात्मक विकास की प्राप्ति की जा सके और उक्त प्रणाली में मानदंडों एवं मानकों का समुचित अनुरक्षण सुनिश्चित किया जा सके। हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा उपर्युक्त अधिनियम में संशोधन को स्वीकृति प्रदान की गई।

  • 1 नवंबर, 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा ‘राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद अधिनियम, 1993’ में संशोधन हेतु संसद में विधेयक पेश किए जाने की स्वीकृति प्रदान की गई।
  • संशोधित अधिनियम ‘राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (संशोधन) अधिनियम, 2017’ होगा।
  • संशोधित अधिनियम में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) की अनुमति के बिना अध्यापक शिक्षा पाठ्यक्रमों को संचालित करने वाले केंद्र/राज्य विश्वविद्यालयों को भूतलक्षी (Retrospective) प्रभाव से मान्यता प्रदान करने का प्रावधान है।
  • संशोधन में एनसीटीई (NCTE) मान्यता (Recognition) के बिना अध्यापक शिक्षा पाठ्यक्रम संचालित करने वाले केंद्र/राज्य/संघ शासित क्षेत्र के वित्तपोषित संस्थानों/विश्वविद्यालयों को अकादमिक सत्र 2017-18 तक भूतलक्षी प्रभाव से मान्यता प्रदान करने का प्रावधान है।
  • यह भूतलक्षी प्रभाव की मान्यता एकबारगी उपाय के रूप में प्रदान की जा रही है, ताकि इन संस्थानों से उत्तीर्ण हुए पंजीकृत छात्रों के भविष्य को खतरा न हो।
  • उक्त संशोधन से इन संस्थानों/विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे या यहां से पहले ही उत्तीर्ण हो चुके छात्र अध्यापक के रूप में रोजगार पाने के योग्य होंगे।
  • उपरोक्त उल्लिखित लाभों को प्राप्त करने की दृष्टि से मानव संसाधन विकास मंत्रालय के ‘स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग’ द्वारा यह संशोधन प्रस्तावित किया गया है।
  • अध्यापक शिक्षक पाठ्यक्रम, जैसे-बी.एड. (B.Ed) एवं डिप्लोमा इन इलेमेंट्री एजुकेशन (D.El.Ed.), चलाने वाले सभी संस्थानों को एनसीटीई (NCTE) अधिनियम की धारा 14 के अंतर्गत राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद से अनुमति लेनी होगी।
  • इसके अतिरिक्त ऐसे मान्यता प्राप्त संस्थानों/विश्वविद्यालयों को एनसीटीई अधिनियम की धारा 15 के अंतर्गत पाठ्यक्रमों की अनुमति प्राप्त करनी होगी।


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