Saturday, May 4, 2019

समुदाय आधारित पुनर्वास (CBR)

 समुदाय आधारित पुनर्वास (CBR)

Community Based Rehabilitation (CBR)

समुदाय आधारित पुनर्वास (CBR) एक सामुदायिक विकास रणनीति है जिसका उद्देश्य विकलांग व्यक्तियों (PWD) के साथ उनके समुदाय के भीतर जीवन को बढ़ाना है। विकलांग लोगों और उनके परिवारों के लिए जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने के प्रयास में 1978 में अल्मा-अता की घोषणा के बाद डब्ल्यूएचओ द्वारा समुदाय-आधारित पुनर्वास (सीबीआर) शुरू किया गया था; उनकी बुनियादी जरूरतों को पूरा; और उनके समावेश और भागीदारी सुनिश्चित करें। शुरू में संसाधन-विवश सेटिंग्स में पुनर्वास सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने की रणनीति, सीबीआर अब एक बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण है जो गरीबी और विकलांगता के सतत चक्र का मुकाबला करते हुए विकलांग लोगों के अवसरों और सामाजिक समावेश को बेहतर बनाने के लिए काम कर रहा है। CBR को विकलांग लोगों, उनके परिवारों और समुदायों और संबंधित सरकारी और गैर-सरकारी स्वास्थ्य, शिक्षा, व्यावसायिक, सामाजिक और अन्य सेवाओं (WHO) के संयुक्त प्रयासों के माध्यम से लागू किया जाता है।

यह लाभार्थियों, पीडब्ल्यूडी के परिवारों और समुदाय सहित स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों के उपयोग पर जोर देता है। विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के कन्वेंशन के अनुसार, स्वास्थ्य, रोजगार, शिक्षा और सामाजिक सेवाओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए व्यापक पुनर्वास सेवाओं की आवश्यकता है ताकि पीडब्ल्यूडी / सीडब्ल्यूडी को अधिकतम स्वतंत्रता, पूर्ण शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और व्यावसायिक क्षमता प्राप्त हो सके और बनाए रखा जा सके, और जीवन के सभी पहलुओं (यूएन, 2006) में पूर्ण समावेश और भागीदारी।



1. सीबीआर की परिभाषा:

यह 1.25 मिमी / मिनट की दर से मानक परिपत्र पिस्टन के साथ एक मिट्टी के द्रव्यमान में प्रवेश करने के लिए आवश्यक प्रति इकाई क्षेत्र का अनुपात है । एक मानक सामग्री के इसी प्रवेश के लिए आवश्यक है। कैलिफोर्निया असर अनुपात परीक्षण (CBR टेस्ट) एक पैलेट परीक्षण है जो लचीले फुटपाथ के डिजाइन के लिए सबग्रेड मिट्टी की असर क्षमता का मूल्यांकन करने के लिए कैलिफोर्निया स्टेट हाईवे डिपार्टमेंट (यूएसए) द्वारा विकसित किया गया है ।

पानी से लथपथ या बिना भिगोए हुए परिस्थितियों में प्राकृतिक या संकुचित मिट्टी पर परीक्षण किए जाते हैं और जो परिणाम प्राप्त होते हैं, उनकी तुलना उपनगर की मिट्टी की ताकत का अंदाजा लगाने के लिए मानक परीक्षण के घटता से की जाती है।


2. अपरैटस का इस्तेमाल किया:

  • ढालना
  • स्टील काटने वाला कॉलर
  • स्पेसर डिस्क
  • अधिभार का वजन
  • डायल गेज
  • आईएस है
  • पेनेट्रेशन प्लंजर
  • मशीन लोड हो रही है
  • विविध उपकरण


3. सीबीआर टेस्ट प्रक्रिया:

आम तौर पर 3 नमूनों में से प्रत्येक के बारे में 7 किलो कॉम्पैक्ट होना चाहिए ताकि उनके कॉम्पैक्ट घनत्व में 95% से 100% तक आम तौर पर 10, 30 और 65 के साथ हो।

  • खाली सांचे का वजन
पहले नमूने में पानी डालें (इसे 10 परत प्रति परत देकर पांच परतों में संकुचित करें)
  • संघनन के बाद, कॉलर को हटा दें और सतह को समतल करें।
  • नमी की मात्रा के निर्धारण के लिए नमूना लें।
  • मोल्ड का वजन + सघन नमूना।
  • मोल्ड को चार दिनों के लिए भिगोने वाले टैंक में रखें और अनचाही सीबीआर के मामले में इस चरण को अनदेखा करें।
  • अन्य नमूने लें और विभिन्न वार लागू करें और पूरी प्रक्रिया को दोहराएं।
  • चार दिनों के बाद, प्रफुल्लित पढ़ने को मापें और% आयु प्रफुल्लित करें।
  • टैंक से मोल्ड को हटा दें और पानी को निकास की अनुमति दें।
  • फिर पैशन पिस्टन के नीचे नमूना रखें और 10lb का अधिभार लोड करें।
  • लोड लागू करें और प्रवेश भार मूल्यों पर ध्यान दें।
  • पैठ (में) और पैठ लोड (में) के बीच के ग्राफ को ड्रा करें और CBR का मान ज्ञात करें । % CBR और ड्राई डेंसिटी के बीच ग्राफ को ड्रा करें, और CBR को आवश्यक डिग्री के स्तर पर खोजें।



सीबीआर परीक्षण राजमार्गों और एयरफील्ड फुटपाथ के लिए मोटाई के डिजाइन के लिए एक उप ग्रेड मिट्टी, उप आधार और आधार पाठ्यक्रम सामग्री की ताकत का मूल्यांकन करने के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला तरीका है ।

कैलिफोर्निया असर अनुपात परीक्षण सड़कों और फुटपाथों की भूमिगत शक्ति के मूल्यांकन के लिए प्रवेश परीक्षा है। इन परीक्षणों द्वारा प्राप्त परिणामों को फुटपाथ की मोटाई और इसके घटक परतों को निर्धारित करने के लिए अनुभवजन्य वक्रों के साथ उपयोग किया जाता है। लचीले फुटपाथ के डिजाइन के लिए यह सबसे व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली विधि है।

यह निर्देश पत्रक CBR के निर्धारण के लिए प्रयोगशाला पद्धति को कवर करता है। लथपथ और हटाए गए / संकुचित मिट्टी के नमूनों के साथ, दोनों लथपथ और साथ ही संयुक्त राज्य में लथपथ राज्य।



समुदाय आधारित पुनर्वास में तीन शब्द आते है।


1. समुदाय
2. आधारित
3. पुनर्वास



समुदाय 

समुदाय का आशय ब्यक्तियो के ऐसे समूह से है जो किसी सामाजिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक, शासकीय एवं प्रशासनिक इकाई का निर्माण करते हैं। जिसके सदस्य एक स्थान पर रहते है  या उनमें कुछ समस्याए हो जो जातीय, नस्लीय, धार्मिक समुदाय सम्बन्धी, क्षेत्रीय समानताएं समूह के सदस्यों में परस्पर संवाद होता हो वो परस्पर एक - दूसरे से मिलते हो और उनमें विशेष रूप से अपने समूह के सदस्यों के हित समान होते हैं।



आधारित

किसी आधार अथवा रूपरेखा के अभाव में कोई कार्य कार्यक्रम और  योजना की सफलता संबंधित हैं।
इसी प्रकार किसी घटना तथा तथ्य का भी कोई न कोई आधार अवश्य होता है। यहां हम निशक्तजनों के पुनर्वास कार्यक्रम का उल्लेख कर रहे है जैसे प्रथ्वी  अपने धुरी के सापेक्ष घूर्णन गति करती हैं। फलस्वरूप दिन और रात होते है इसी प्रकार पुनर्वास कार्यक्रम की भी कोई धुरी होती है।जिसके सापेक्ष पुनर्वास कार्यक्रम संचालित किए जाते है।



पुनर्वास


पुनर्वास का आशय है किसी भी कारण कारणों के फस्वरूप समाज से अलग अलग हो गए व्यक्ति को अतिरिक्त प्रयासों के माध्यम से पुनः समाज की मुख्य धारा का हिस्सा बनाना पुनर्वास को किसी निश्चित समयावधि में सीमित नहीं किया जा सकता है।

वास्तव में पुनर्वास निरंतर चलने वाली प्रक्रिया हैं जिसमें समुदाय अपने समस्त प्रत्यक्ष तथा परोक्ष संसाधनों का सदुरप्रयोग दिब्यांगो के बहुउद्देशीय कल्याण के लिए करता है।



पुनर्वास के उपाय

१. पुनर्वास के उपायों को मूलतः 3 अलग-अलग समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

शारीरिक पुनर्वास, जिसमें आरंभिक पहचान तथा उपचार, परामर्श व चिकित्सा तथा मदद व उपकरण का प्रावधान है। इसमें पुनर्वास कर्मचारियों का विकास भी शामिल है।
व्यावसायिक शिक्षा समेत शैक्षणिक पुनर्वास, तथा
समाज में गरिमामय जीवन जीने के लिए आर्थिक पुनर्वास।
क. शारीरिक पुनर्वास रणनीति

(क) आरंभिक पहचान तथा उपचार

2. विकलांगता की आरंभिक पहचान व दवा या गैर-दवा उपचारों के जरिए इसकी चिकित्सा से इन रोगों की गंभीरता को कम करने में मदद मिलती है। अतः आरंभिक पहचान तथा आरंभिक उपचार के साथ आवश्यक सुविधाओं की उपलब्धता पर अधिक ध्यान दिया जाएगा। सरकार खासकर ग्रामीण इलाकों में ऐसी सुविधाओं की उपलब्धता के लिए सूचना का प्रसार करेगी।

(ख) परामर्श तथा मेडिकल पुनर्वास

3. शारीरिक पुनर्वास उपाय में शामिल हैं- परामर्श, विकलांग व्यक्तियों व उनके परिवारों की क्षमता को सुदृढ़ करना, मनोचिकित्सा, फीजियो थेरैपी, व्यावसायिक थेरैपी, सर्जिकल सुधार, उपचार, दृष्टि मूल्यांकन, दृष्टि उत्तेजन, स्पीच थेरैपी प्रदान किए जाएंगे तथा ऑडियोलॉजिकल पुनर्वास व विशेष शिक्षा मुहैया कराया जाएगा, जिन्हें राज्य सरकारों, स्थानीय संस्थानों, गैर सरकारी संगठनों व विकलांगों के माता-पिता के जरिए सभी जिलों तक प्रसारित किया जाएगा।

4. वर्तमान में पुनर्वास सेवाएं मुख्यतः शहरी और उसके आस-पास के इलाकों में उपलब्ध हैं। चूंकि 75% विकलांग व्यक्ति देश के ग्रामीण इलाकों में रहते हैं, पेशेवरों द्वारा चलाई जा रही सेवाओं को ऐसे अछूते इलाकों तक पहुंचाया जाएगा। निजी पुनर्वास सेवा केंद्रों को एक न्यूनतम मानकों के अनुपालन के लिए नियंत्रित किया जाएगा।

5. ग्रामीण तथा अछूते इलाकों में कवरेज का प्रसार करने के लिए, नए जिला विकलांगता पुनर्वास केंद्रों की स्थापना की जाएगी, जिसके लिए राज्य सरकार की सहायता ली जाएगी।

6. अधिकृत सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता-“आशा” (ASHA) के जरिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन ग्रामीण लोगों की स्वास्थ्य आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, खासकर समाज के कमजोर वर्गों के लोगों को इसमें शामिल किया गया है। मूल स्तर पर “आशा” विकलांग व्यक्तियों के लिए विशद सेवाओं की देखभाल करेगी।

(ग) सहायक उपकरण

7. भारत सरकार विकलांगों को आईएसआई प्रमाणित टिकाऊ तथा वैज्ञानिक रूप से निर्मित, आधुनिक यंत्र व उपकरण की खरीद के लिए सहायता देती रही है, जिससे उनके शारीरिक, सामाजिक व मनोवैज्ञानिक निर्भरता को कम करते हुए विकलांगता के प्रभाव को कम किया जा सके।

8. राष्ट्रीय संस्थानों, राज्य सरकारों, डीडीआरसी व गैर सरकारी संगठनों के जरिए हर साल विकलांगों को प्रोस्थेसिस तथा ऑर्थोसेस, ट्राइसाइकिल, व्हील चेयर, सर्जिकल फुटवेयर व दैनिक जीवन में काम आने वाले व सीखने वाले यंत्र (ब्रेल लेखन यंत्र, डिक्टाफोन, सीडी प्लेयर/ टेप रिकॉर्डर), लो विजन यंत्र, चलने-फिरने के लिए विशेष यंत्र- जैसे अंधे व्यक्तियों के लिए छड़ी, श्रवण यंत्र, शैक्षणिक किट्स, बातचीत करने वाले यंत्र, मदद करने और अलर्ट करने वाले यंत्र और ऐसे यंत्र जो मानसिक रूप से विकलांग व्यक्ति के लिए बनाए जाते हैं। इन उपकरणों की उपलब्धता को अछूते व सेवा वाले क्षेत्रों तक विस्तार करना।

9. विकलांग व्यक्तियों के लिए हाइटेक सहायक यंत्रों क निर्माण में शामिल निजी, सार्वजनिक तथा संयुक्त क्षेत्र के उपक्रमों को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।

(घ) पुनर्वास कर्मचारियों का विकास

10. विकलांग व्यक्तियों के लिए आवश्यक मानव संसाधन की जरूरतों का मूल्यांकन किया जाएगा तथा विकास योजना तैयार की जाएगी, ताकि पुनर्वास रणनीति हेतु मानव बल की कमी न हो।

ख. विकलांग व्यक्तियों के लिए शिक्षा

11. सामाजिक तथा आर्थिक सशक्तीकरण के लिए शिक्षा सबसे प्रभावी माध्यम होता है। संविधान के अनुच्छेद 21ए के तहत, जहां शिक्षा को मौलिक अधिकार माना गया है और विकलांग अधिनियम 1995 के अनुच्छेद 26 में विकलांग बच्चों को 18 वर्षों की उम्र तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का प्रावधान किया गया है । जनगणना 2001 के मुताबिक, 51% विकलांग व्यक्ति निरक्षर हैं। यह एक बहुत बड़ी प्रतिशतता है। विकलांग लोगों को सामान्य शिक्षा प्रणाली की मुख्यधारा में लाने की जरूरत है।

1२. सरकार द्वारा चलाया गया सर्व शिक्षा अभियान (SSA) का 8 वर्षों तक बच्चों के प्राथमिक स्कूलिंग प्रदान करने का लक्ष्य है, जिसमें 6 से 14 वर्ष के बच्चे भी शामिल हैं। विकलांग बच्चों के लिए समेकित शिक्षा के तहत 15 से 18 वर्षों तक की उम्र के विकलांग बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान की जाएगी।

13. सर्व शिक्षा अभियान के तहत शिक्षा विकल्पों का एक सातत्य, सीखने वाले यंत्र औजार, गत्यात्मकता सहायता, सहायक सेवाएं इत्यादि विकलांग छात्रों को उपलब्ध कराई जा रही हैं। इसमें शामिल है मुक्त शिक्षण प्रणाली, ओपन स्कूल, वैकल्पिक स्कूलिंग, दूर शिक्षा, विशेष स्कूल, जहां भी आवश्यक हो घर आधारित शिक्षा, भ्रमणकारी शिक्षक मॉडल, उपचार वाली शिक्षा, पार्ट टाइम कक्षाएं, समुदाय आधारित पुनर्वास व व्यावसायिक शिक्षा के जरिए शिक्षा प्रदान करने का कार्य।

14. राज्य सरकारों, स्वायत्त निकायों तथा स्वयंसेवी संगठनों के जरिए क्रियान्वित आईईडीसी योजना विशेष शिक्षकों, पुस्तक व लेखन सामग्रियों, यूनिफॉर्म, परिवहन, दृष्टि से कमजोर व्यक्तियों के लिए पाठक भत्ता, हॉस्टल भत्ता, उपकरण लागत, वास्तु अवरोधों को हटाता/सुधार करना, निर्देशात्मक सामग्रियों की खरीद/उत्पादन के लिए वित्तीय सहायता, सामान्य शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण व संसाधन कमरों के लिए यंत्र-उपकरण जैसी सुविधाओं के लिए सौ फीसदी वित्तीय सहायता प्रदान करती है।

15. नियमित सर्वेक्षणों, उचित स्कूलों में उनकी उपस्थिति और शिक्षा पूरी करने तक उनकी निरंतरता के जरिए बच्चों में विकलांगता की पहचान हेतु सरकार की ओर से केंद्रित प्रयास किया जाएगा। सरकार विकलांग बच्चों को सही प्रकार की शिक्षण सामग्रियों तथा पुस्तक प्रदान करने, शिक्षकों व स्कूलों को सही रूप से प्रशिक्षण व सुग्राही बनाने के लिए प्रयास करेगी, जो पहुंच में आने योग्य तथा विकलांग हितैषी हो।

16. भारत सरकार ऐसे विकलांग छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करती है ताकि स्कूल के बाद के स्तर पर पढ़ाई में उन्हें मदद मिल सके। सरकार यह छात्रवृत्ति जारी रखेगी व इसके कवरेज का विस्तार करेगी।

17. विभिन्न प्रकार की उत्पादक गतिविधियों के लिए उपयुक्त योग्यता निर्माण के लिए तकनीकी तथा व्यावसायिक शिक्षा सुविधा प्रदान की जाएगी। जिसके लिए मौजूदा संस्थान या कार्यरत या अछूते क्षेत्रों के अधिकृत संस्थानों का अनुकूलन किया जाएगा। गैर सरकारी संगठनों को भी व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।

18. विकलांग व्यक्तियों को उच्च शिक्षा व व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में दाखिला लेने के लिए विश्व विद्यालयों, तकनीकी संस्थानों तथा उच्च शिक्षा के अन्य संस्थानों में पहुंच प्रदान की जाएगी।

ग. विकलांग व्यक्तियों के लिए आर्थिक पुनर्वास

19. विकलांग व्यक्तियों के आर्थिक पुनर्वास में संगठित क्षेत्र में दिहाड़ी रोजगार तथा स्व-रोजगार भी शामिल है। सेवाओं को इस प्रकार बढ़ावा दिया जाए कि व्यावसायिक पुनर्वास केंद्र तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों को विकसित किया जा सके, ताकि ग्रामीण व शहरी दोनों क्षेत्रों के विकलांगों को उत्पादक तथा लाभकारी रोजगार मुहैया कराया जा सके। विकलांगों के आर्थिक सशक्तीकरण हेतु रणनीतियां निम्नानुसार होंगी:

(i) सरकारी महकमों में रोजगार

विकलाँग व्यक्ति अधिनियम, 1995 सरकारी महकमों तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में 3% का आरक्षण का प्रावधान करता है। विभिन्न मंत्रालयों/विभागों में समूह ए, बी, सी तथा डी के लिए सरकार के आरक्षण की स्थिति क्रमशः 3.07%, 4.41%, 3.76% तथा 3.18% है। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में यह स्थिति क्रमशः 2.78%, 8.54%, 5.04% तथा 6.75% है। सरकार विकलाँग व्यक्ति अधिनियम, 1995 के प्रावधानों के अनुरूप चिह्नित पदों के लिए सरकारी क्षेत्र में (सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों समेत) आरक्षण सुनिश्चित करेगी। चिह्नित पदों की सूची को वर्ष 2001 में अधिसूचित किया गया है, जिसकी समीक्षा की जाएगी और अद्यतन किया जाएगा।

(ii) निजी क्षेत्र में दिहाड़ी रोजगार

निजी क्षेत्र में विकलाकों को रोजगार के लिए सक्षम बनाने के लिए उनकी योग्यता का विकास किया जाएगा। विकलांग व्यक्तियों के बीच उचित योग्यता के विकास हेतु संचालित व्यावसायिक पुनर्वास तथा प्रशिक्षण केंद्र को उनकी सेवाओं के विस्तार के लिए बढ़ावा दिया जाएगा। सेवा क्षेत्र में रोजगार अवसरों के तीव्र विकास को देखते हुए विकलांगता से ग्रस्त व्यक्तियों को बाजार की जरूरतों के मुताबिक योग्यता निर्माण के लिए बढ़ावा दिया जाएगा। इनसेंटिव, पुरस्कार, कर में छूट इत्यादि जैसे सक्रिय उपायों द्वारा निजी क्षेत्रों में विकलांग व्यक्तियों को रोजगार सृजन के लिए बढ़ावा दिया जाएगा।

(iii) स्व-रोजगार

संगठित क्षेत्र में विकलांग लोगों के रोजगार के अवसरों के विकास की धीमी दर को देखते हुए, स्व-रोजगार के अवसरों को बढ़ावा दिया जाएगा। ऐसा व्यावसायिक शिक्षा तथा प्रबंधन प्रशिक्षण के जरिए किया जाएगा। इसके अलावा एनएचएफडीसी से आसानी से ऋण मुहैय्या कराने की मौजूदा प्रणालियों से यह काफी पारदर्शक और दक्ष प्रक्रिया बन गई है। सरकार इंसेंटिव, कर से छूट, ड्यूटी से छूट, विकलांगों के लिए सेवा देने वाले तथा सामान बनाने वाले उपक्रमों को सरकार द्वारा बढ़ावा देकर, सरकार स्व-रोजगार को प्रोत्साहित करेगी। विकलांगों द्वारा बनाए स्वयं-सहायता समूह के लिए वित्तीय सहायता को प्राथमिकता दी जाएगी।


विकलांग महिलाएं

20. जनगणना -2001 के मुताबिक, देश में 93.01 लाख विकलांग महिलाएं हैं जो कुल विकलांग आबादी का 42.46% हिस्सा निर्मित करती हैं। विकलांग महिलाओं को शोषण व दुर्व्यवहार से बचाने की जरूरत है। विकलांग महिलाओं की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए शिक्षा, रोजगार तथा अन्य पुनर्वास सेवाओं के विकास के लिए विशेष कार्यक्रम चलाए जाएंगे। विशेष शिक्षा तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण सुविधाओं की स्थापना की जाएगी। परित्यक्त विकलांग महिलाओं/लड़कियों के पुनर्वास के लिए कार्यक्रम चलाए जाएंगे, जहां परिवारों द्वारा उन्हें स्वीकार करने, उनके निवास में मदद करने और लाभप्रद रोजगार योग्यताओं को हासिल कराने के प्रयास किए जाएंगे। सरकार उन परियोजनाओं को प्रोत्साहित करेगी जहां विकलांग महिलाओं के प्रतिनिधि को कम से कम कुल लाभ का 25% तक प्रदान किया जा सके।

21. विकलांग महिलाओं के लिए कम समय के लिए रहने के लिए घर, नौकरी-पेशा महिला के लिए हॉस्टल तथा बुजुर्ग विकलांग महिलाओं के लिए घर प्रदान करने के लिए कदम उठाए जाएंगे।

22. यह देखा गया है कि विकलांगता से ग्रस्त महिलाओं में उनके बच्चों की देखभाल की गंभीर समस्या होती है। सरकार ऐसी विकलांग महिलाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करेगी, ताकि वे अपने बच्चों के परवरिश के लिए आवश्यक सेवाओं को उपलब्ध करा सके। ऐसी सहायता अधिकतम दो सालों तक 2 बच्चों के लिए मुहैय्या कराई जाएगी।


विकलांग बच्चे

23. विकलांगता के शिकार बच्चे सबसे अधिक संवेदनशील समूह के होते हैं और उन्हें विशेष देखभाल की जरूरत होती है। इसके लिए सरकार निम्नांकित कदम उठाएगी:


  • विकलांग बच्चों की देखभाल, सुरक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करेगी;
  • गरिमा तथा समानता के लिए विकास के अधिकार को सुनिश्चित किया जाएगा, ताकि एक सक्षम वातावरण का निर्माण किया जाए जहां विक्लांग बच्चे अपने अधिकार की पूर्ति कर सके और विभिन्न कानूनों के अनुरूप समान अवसरों का लाभ उठाकर पूर्ण भागीदारी प्रदर्शित कर सके।
  • विकलांग बच्चों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यावसायिक प्रशिक्षण के साथ विशेष पुनर्वास सेवाओं को शामिल किया जाएगा।
  • गंभीर विकलांगता के शिकार बच्चों के लिए विकास के अधिकार तथा विशेष आवश्यकताओं व देखभाल, सुरक्षा को सुनिश्चित किया जाएगा।



अवरोध मुक्त वातावरण

24. अवरोध-मुक्त वातावरण से विकलांग व्यक्ति सुरक्षित तथा आसानीपूर्वक चल-फिर सकते हैं। अवरोधमुक्त डिजाइन का उद्देश्य है कि विकलांग लोगों को ऐसा वातावरण प्रदान किया जाए जहां वे अपनी दैनिक गतिविधियों में बिना किसी सहायता के गमन कर सकें। इसलिए जितना अधिक संभव हो, सार्वजनिक भवनों, स्थानों, परिवहन प्रणालियों को अवरोध मुक्त रखा जाएगा।


विकलांगता प्रमाणपत्र जारी करना

25. भारत सरकार ने विकलांगता के मूल्यांकन व प्रमाणपत्र के लिए दिशा-निर्देश जारी किये हैं। इसके तहत सरकार सुनिश्चित करेगी कि विकलांग व्यक्ति कम से कम समय में बिना किसी परेशानी के विकलांगता प्रमाणपत्र प्राप्त कर सके, जिसके लिए सरल, पारदर्शक व ग्राहकोन्मुख प्रक्रियाओं को लागू किया जाएगा।


सामाजिक सुरक्षा

26. विकलांग व्यक्तियों, उनके परिवार तथा उनकी देखभाल करने वालों को पर्याप्त अतिरिक्त व्यय राशि दी जाएगी ताकि वे दैनिक कार्यों, मेडिकल देखभाल, परिवहन, सहायक उपकरणों को खरीद सकें। इसलिए उन्हें सामाजिक सुरक्षा देने की आवश्यकता है। केंद्र सरकार विकलांग व्यक्तियों व उनके
व उनके अभिभावकों को करों में छूट दे रही है। राज्य सरकार/ केंद्र शासित प्रदेशों  को बेरोजगार भत्ता या विकलांगता पेंशन मुहैया कराया जा रहा है। राज्य सरकारों को विकलांगों के लिए एक व्यापक सामाजिक सुरक्षा नीति के विकास के लिए बढ़ावा दिया जाएगा।

27. ऑटिज्म, सेरीब्रल पाल्सी, मानसिक मंद तथा बहु-विकलांगता के शिकार बच्चों के माता-पिता अपनी मृत्यु के बाद ऐसे बच्चों की देखभाल को लेकर काफी असुरक्षित महसूस करते हैं। ऑटिज्म, सेरीब्रल पाल्सी, मानसिक मंद तथा बहु-विकलांगता के लिए राष्ट्रीय ट्रस्ट स्थानीय स्तर की समिति द्वारा कानूनी अभिभावकत्व प्रदान करता आ रहा है। वे सहायता प्राप्त अभिभावकत्व योजना का भी क्रियान्वयन कर रहे हैं, ताकि दरिद्र तथा परित्यक्त व्यक्ति जिनमें उपरोक्त गंभीर विकलांगता हो, उन्हें वित्तीय मदद की जा सके। यह योजना मौजूदा समय में कुछ जिलों में लागू की जा रही है, अब इसे योजनाबद्ध तरीके से अन्य क्षेत्रों में भी प्रसारित किया जाएगा।


गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) को प्रोत्साहन

28. राष्ट्रीय नीति गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) को एक काफी अहम संस्थानिक प्रणाली के रूप में मानती है, जो सरकार के प्रयासों को लागू करने का एक सस्ता माध्यम है।

एनजीओ सेक्टर गतिशील व उदयीमान क्षेत्र है। विकलांग व्यक्ति को सेवा देने के प्रावधान में इसने एक अहम भूमिका निभाई है। कुछ एनजीओ मानव संसाधन विकास तथा अनुसंसाधन कार्य संचालित कर रहे हैं। सरकार भी उन्हें सक्रिय रूप से नीति के सूत्रीकरण, योजना, क्रियान्वयन, निगरानी में शामिल किया है और विकलांगता से जुड़े कई मुद्दे पर उनसे परामर्श प्राप्त कर रही है। एनजीओ के साथ कार्य-व्यवहार को विकलांगता से जुड़े योजना, नीति सूत्रीकरण तथा क्रियान्वयन के क्षेत्र में बढ़ाया जाएगा। नेटवर्किंग, सूचनाओं के आदान-प्रदान तथा एनजीओ के बीच अच्छे कार्य पद्धतियों को साझा करने की प्रयास को प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके लिए निम्न कार्यक्रम संचालित किए जाएंगे:

i.     विकलांगता के क्षेत्र में काम करने वाले एनजीओ का एक निर्देशिका तैयार किया जाएगा, जहां उनके प्रमुख कार्यों के साथ उनके कार्य क्षेत्र का भी उल्लेख किया जाएगा। केंद्र/राज्य सरकारों द्वारा समर्थित एनजीओ के लिए उनके संसाधन स्थिति, वित्तीय तथा मानव बल की भी सूचना दी जाएगी। विकलांग व्यक्तियों के संगठन, पारिवारिक संघों तथा उनके माता-पिता का समर्थन करने वाले समूह को भी इस निर्देशिका में शामिल किया जाएगा, जहां उनका अलग से उल्लेख किया जाएगा।

ii.     एनजीओ के कार्यों के विकास में क्षेत्रीय/राज्य असुंतलन मौजूद है। अनारक्षित तथा सुदूर इलाकों में इस दिशा में काम करने वाले एनजीओ को प्रोत्साहित किया जाएगा तथा उनका संदर्भ प्रस्तुत किया जाएगा। प्रतिष्ठित एनजीओ को भी ऐसे इलाकों में काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।

iii.     एनजीओ को न्यूनतम मानक, आचार संहिता तथा नैतिकता के विकास के लिए बढ़ावा दिया जाएगा।

iv.     एनजीओ को उनके कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण तथा जानकारी प्रदान करने के अवसर प्रदान किए जाएंगे। प्रबंधन क्षमता की प्रशिक्षण पहले से दी जा रही है, इसे और भी मजबूत बनाया जाएगा। पारदर्शिता, जिम्मेदारी, प्रक्रिया की सरलता इत्यादि एनजीओ-सरकार के सहयोग के दिशा-निर्देशक कारक होंगे।

v . एनजीओ को उनके संसाधन को विकास करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा ताकि सरकार से मिलने वाली वित्तीय सहायता पर उनकी निर्भरता कम की जा सके तथा इस क्षेत्र में फंड की उपलब्धता में भी सुधार किया जा सके। एक योजनाबद्ध तरीके से एनजीओ को मिलने वाली सहायता में कमी करना होगा ताकि उपलब्ध संसाधनों के भीतर मदद की जाने वाली एनजीओ की संख्या अधिकतम हो।




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Friday, May 3, 2019

व्यक्तिगत शिक्षा कार्यक्रम। [IEP]

व्यक्तिगत शिक्षा कार्यक्रम[IEP]

The Individualized Education Program

इंडिविजुअल एजुकेशन प्रोग्राम , जिसे IEP भी कहा जाता है, एक दस्तावेज है जो प्रत्येक पब्लिक स्कूल के बच्चे के लिए विकसित किया जाता है, जिन्हें विशेष शिक्षा की आवश्यकता होती है। IEP टीम प्रयास के माध्यम से बनाया जाता है, समय-समय पर समीक्षा की जाती है। संयुक्त राज्य अमेरिका में , इस कार्यक्रम को एक वैयक्तिकृत शिक्षा कार्यक्रम के रूप में जाना जाता है। (IEP), और इसी तरह कनाडा में इसे एक वैयक्तिकृत शिक्षा योजना या एक विशेष शिक्षा योजना (एसईपी) के रूप में जाना जाता है। यूनाइटेड किंगडम में , एक समतुल्य दस्तावेज को एक व्यक्तिगत शिक्षा प्रणाली कहा जाता है। सऊदी अरब में , दस्तावेज़ को एक व्यक्तिगत शिक्षा कार्यक्रम के रूप में जाना जाता है।

एक आईईपी एक बच्चे के व्यक्तिगत उद्देश्यों को परिभाषित करता है जिसे विकलांगता के लिए निर्धारित किया गया है या संघीय नियमों द्वारा परिभाषित विशेष आवास की आवश्यकता है। आईईपी का उद्देश्य बच्चों को शैक्षिक लक्ष्यों तक पहुंचने में मदद करना है, जितना कि वे अन्यथा आसानी से कर पाएंगे, चार घटक लक्ष्य हैं: स्थितियां, शिक्षार्थी, व्यवहार और मानदंड। सभी मामलों में IEP को व्यक्तिगत छात्र की जरूरतों के अनुरूप होना चाहिए, जैसा कि IEP मूल्यांकन प्रक्रिया द्वारा पहचाना जाता है, और विशेष रूप से शिक्षकों और संबंधित सेवा प्रदाताओं (जैसे पैराप्रोफेशनल शिक्षक ) को छात्र की विकलांगता को समझने में मदद करना चाहिए और विकलांगता सीखने को कैसे प्रभावित करती है।


 प्रक्रिया

IEP वर्णन करता है कि छात्र कैसे सीखता है, छात्र उस सीखने को सबसे अच्छा कैसे प्रदर्शित करता है और शिक्षक और सेवा प्रदाता छात्र को प्रभावी ढंग से सीखने में मदद करने के लिए क्या करेंगे। IEP को विकसित करने में संदिग्ध विकलांग से संबंधित सभी क्षेत्रों में छात्रों का मूल्यांकन करने की आवश्यकता होती है, साथ ही साथ सामान्य पाठ्यक्रम तक पहुंचने की क्षमता पर विचार करते हुए, यह देखते हुए कि विकलांगता छात्र की शिक्षा को कैसे प्रभावित करती है, लक्ष्य और उद्देश्य बनाते हैं जो छात्र की आवश्यकताओं के अनुरूप हैं, और एक नियुक्ति का चयन करते हैं। छात्र के लिए कम से कम प्रतिबंधात्मक वातावरण में संभव है।

जब तक कोई छात्र विशेष शिक्षा के लिए अर्हता प्राप्त करता है, तब तक IEP को नियमित रूप से बनाए रखा जाना और हाई स्कूल स्नातक होने तक या 21 वें जन्मदिन या 22 वें जन्मदिन से पहले अपडेट किया जाना अनिवार्य है। यदि विशेष शिक्षा में एक छात्र स्नातक होने पर विश्वविद्यालय में जाता है, तो विश्वविद्यालय की स्वयं की प्रणाली और प्रक्रियाएं समाप्त हो जाती हैं। प्लेसमेंट अक्सर "सामान्य शिक्षा," मुख्यधारा की कक्षाओं, और विशेष कक्षाओं या उप-विशिष्टताओं में एक विशेष शिक्षा शिक्षक द्वारा पढ़ाया जाता है, कभी-कभी एक संसाधन कक्ष के भीतर।

एक IEP यह सुनिश्चित करने के लिए है कि छात्रों को न केवल विशेष शिक्षा कक्षाओं या विशेष स्कूलों में, एक उचित स्थान प्राप्त हो। यह छात्र को नियमित स्कूल संस्कृति और शिक्षाविदों में भाग लेने का मौका देता है, जो उस व्यक्तिगत छात्र के लिए जितना संभव हो सके। इस तरह, छात्र विशेष सहायता तभी कर सकता है जब ऐसी सहायता पूरी तरह से आवश्यक हो, और अन्यथा वह अपने सामान्य स्कूल के साथियों के साथ बातचीत करने और उनकी गतिविधियों में भाग लेने की स्वतंत्रता बनाए रखता है।


वैयक्तिकृत की परिभाषा

IEP में प्रत्येक बच्चे की अलग-अलग जरूरतें। इस तरह के संसाधन उपलब्ध हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे अपनी आवश्यकताओं के अनुसार सटीक शिक्षा प्राप्त कर सकें।

सऊदी अरब

सऊदी अरब में, सभी स्कूलों को विकलांग छात्रों के लिए एक IEP प्रदान करना चाहिए। सऊदी अरब में IEP बनाने की प्रक्रिया माता-पिता और सेवाओं के अन्य प्रदाताओं को बाहर कर सकती है।


 संयुक्त राज्य अमेरिका

अमेरिका में, विकलांग व्यक्ति शिक्षा सुधार अधिनियम 2004 (IDEA) के तहत पब्लिक स्कूलों को विकलांगता के साथ हर छात्र के लिए एक IEP विकसित करने की आवश्यकता होती है, जो विशेष शिक्षा के लिए संघीय और राज्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पाया जाता है। IEP को नि: शुल्क उपयुक्त सार्वजनिक शिक्षा (FAPE) के साथ बच्चे को प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया जाना चाहिए। IEP एक बच्चे को विकलांगता के साथ प्रदान किए जाने वाले शैक्षिक कार्यक्रम और उस शैक्षिक कार्यक्रम का वर्णन करने वाले लिखित दस्तावेज को संदर्भित करता है। IDEA के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक छात्र की जरूरतों के अनुसार IEP लिखा जाए, जो IDEA के तहत पात्र हो; एक IEP को राज्य के नियमों को भी पूरा करना चाहिए। निम्नलिखित शामिल होना चाहिए।


  •  छात्र के शैक्षणिक और कार्यात्मक प्रदर्शन के वर्तमान स्तर
  • शैक्षिक और कार्यात्मक लक्ष्यों सहित मापने योग्य वार्षिक लक्ष्य
  • वार्षिक लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में छात्र की प्रगति को कैसे मापा जाए और माता-पिता को बताया जाए
  • विशेष-शिक्षा और संबंधित सेवाएं, साथ ही साथ छात्र को प्रदान की जाने वाली पूरक सहायता
  • प्रदान की जाने वाली सेवाओं की अनुसूची, जब सेवाओं को शुरू करना हो, सेवाओं के प्रावधान के लिए आवृत्ति, अवधि और स्थान
  • बच्चे की ओर से स्कूल कर्मियों को प्रदान किए गए कार्यक्रम संशोधन या समर्थन
  • कम से कम प्रतिबंधात्मक पर्यावरण डेटा जिसमें सामान्य-शिक्षा सेटिंग्स में छात्र द्वारा प्रत्येक दिन बिताए जाने वाले समय की गणना शामिल है, विशेष-शिक्षा सेटिंग्स में खर्च किए जाने वाले समय की मात्रा के विपरीत
  • गैर-विकलांग बच्चों के साथ किसी भी समय बच्चे की व्याख्या में भाग नहीं लिया जाएगा
  •  राज्य और जिले के मूल्यांकन के दौरान प्रदान की जाने वाली संपत्ति जो छात्र के शैक्षणिक और कार्यात्मक प्रदर्शन को मापने के लिए आवश्यक हैं 
  • उपयुक्त होने पर छात्र को उपस्थित होना चाहिए। यदि छात्र चौदह वर्ष से अधिक का है, तो उसे आईईपी टीम का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित किया जाना चाहिए।
  • इसके अतिरिक्त, जब छात्र सोलह वर्ष का होता है, तो द्वितीयक लक्ष्यों का विवरण और छात्र को एक सफल परिवर्तन करने की आवश्यकता होती है। यह संक्रमण योजना पहले की उम्र में बनाई जा सकती है, यदि वांछित है, लेकिन सोलह वर्ष की उम्र तक होनी चाहिए।

आईईपी में टीम द्वारा आवश्यक अन्य प्रासंगिक जानकारी भी शामिल होनी चाहिए, जैसे कि स्वास्थ्य योजना या कुछ छात्रों के लिए व्यवहार योजना।



कनाडा

 कनाडा में, एक व्यक्तिगत शिक्षा योजना (IEP) को अक्सर प्रांत के आधार पर एक विशेष शिक्षा योजना (SEP), व्यक्तिगत कार्यक्रम योजना (IPP), छात्र सहायता योजना (SSP), या एक व्यक्तिगत सहायता सेवा योजना (ISSP) के रूप में जाना जाता है। या क्षेत्र। 

कनाडा में IEP प्रणाली अमेरिका के सापेक्ष बहुत ही कार्य करती है, हालांकि नियम प्रांतों के बीच भिन्न होते हैं।

विकास के लिए प्रक्रियात्मक आवश्यकताएं
आईईपी विकास प्रक्रिया का परिणाम एक आधिकारिक दस्तावेज है जो एक विकलांगता वाले बच्चे की अनूठी जरूरतों को पूरा करने के लिए डिज़ाइन की गई शिक्षा योजना का वर्णन करता है।

विशेष शिक्षा के लिए पात्रता का निर्धारण
अधिक जानकारी: संयुक्त राज्य अमेरिका में विशेष शिक्षा
आईईपी को विकलांगता वाले बच्चे के लिए लिखे जाने से पहले, स्कूल को पहले यह निर्धारित करना होगा कि बच्चा विशेष शिक्षा सेवाओं के लिए योग्य है या नहीं। अर्हता प्राप्त करने के लिए, बच्चे की विकलांगता का बच्चे की शैक्षिक प्रगति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

 पात्रता निर्धारित करने के लिए, स्कूल को संदिग्ध विकलांगता के सभी क्षेत्रों में बच्चे का पूर्ण मूल्यांकन करना चाहिए। मूल्यांकन के परिणामों के आधार पर, माता-पिता के साथ स्कूल परिणामों और बच्चे के वर्तमान स्तर के प्रदर्शन की समीक्षा करने और यह निर्धारित करने के लिए मिलते हैं कि क्या विशेष शिक्षा सेवाओं की आवश्यकता है। कुछ मामलों में लोग मजबूत दृश्य यादों और मौखिक कौशल की वजह से अनियंत्रित हो सकते हैं, यह एक बिगड़ा हुआ झुकाव होने के लक्षणों को मुखौटा कर सकता है।

यदि बच्चा सेवाओं के लिए योग्य पाया जाता है, तो स्कूल को आईईपी टीम को बुलाने और बच्चे के लिए एक उपयुक्त शैक्षिक योजना विकसित करने की आवश्यकता होती है। बच्चे को पात्र निर्धारित किए जाने के बाद आईईपी को जल्द से जल्द लागू किया जाना चाहिए। आईडिया प्रत्येक चरण के लिए विशिष्ट समय-सीमा नहीं बताता है। हालांकि, प्रत्येक राज्य शिक्षा के बारे में मानदंडों की पहचान करने के लिए अपने स्वयं के कानूनों को निर्धारित करता है और इसका पालन कैसे किया जाना चाहिए। राज्यों ने विशिष्ट समयरेखा जोड़ी हैं जिनका स्कूलों को पात्रता, IEP विकास और IEP कार्यान्वयन मील के पत्थर के लिए पालन करना चाहिए।

जैसा कि IDEA द्वारा उल्लिखित है, छात्र विशेष शिक्षा कानून के तहत मुफ्त उचित शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं यदि वे 14 श्रेणियों में से एक के अंतर्गत आते हैं:

1. आत्मकेंद्रित

2. बहरापन-अंधापन

3. बहरापन

4. विकास में देरी (3-9 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए, राज्य द्वारा भिन्न होती है)

5. भावनात्मक और व्यवहार संबंधी विकार

6. श्रवण दोष

7. बौद्धिक विकलांगता (पूर्व में मानसिक विकलांगता के रूप में संदर्भित)

8. कई विकलांग

9. आर्थोपेडिक हानि

10. अन्य स्वास्थ्य हानि

11. विशिष्ट अधिगम विकलांगता

12. भाषण या भाषा की दुर्बलता

13. मस्तिष्क की चोट

14. दृष्टिहीनता, जिसमें अंधापन भी शामिल है




जबकि शिक्षकों और स्कूल मनोवैज्ञानिकों के पास विशेष शिक्षा सेवा पात्रता के लिए मूल्यांकन शुरू करने की क्षमता है, वे गैर कानूनी निदान करने के लिए अयोग्य हैं। ध्यान घाटे हाइपरएक्टिव डिसऑर्डर (एडीएचडी), ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी), और शारीरिक और विकासात्मक देरी का निदान एक चिकित्सक द्वारा किया जाना चाहिए। यद्यपि, शारीरिक या विकासात्मक देरी वाले अधिकांश बच्चे, जिन्हें लगातार चिकित्सा देखभाल प्राप्त होती है, उनके बाल रोग विशेषज्ञों द्वारा प्रारंभिक चरण में निदान किया जाता है, यदि किसी पूर्वोक्त शर्तों पर संदेह है, लेकिन मेडिकल असिस्टेंट को छात्र की मूल्यांकन प्रक्रिया में शामिल करना अनिवार्य है, लेकिन अनियंत्रित । जब बच्चों को जल्दी निदान किया जाता है, तो वे विकास के पहले चरणों में सेवाएं प्राप्त करना शुरू कर सकते हैं। राज्य के स्वास्थ्य और / या शिक्षा विभाग तीन साल से कम उम्र के बच्चों के लिए शुरुआती हस्तक्षेप सेवाएं प्रदान करते हैं। पब्लिक स्कूल प्रणाली इक्कीस के माध्यम से तीन साल की उम्र के बच्चों के लिए सेवाएं प्रदान करती है।


 टीम के सदस्य

IEP टीम में छात्र, छात्र के माता-पिता या कानूनी अभिभावक, विशेष शिक्षा शिक्षक, कम से कम एक सामान्य-शिक्षा शिक्षक, स्कूल या स्कूल जिले का एक प्रतिनिधि शामिल होता है जो उसकी उपलब्धता के बारे में जानकार होता है स्कूल संसाधन, और एक व्यक्ति जो छात्र के मूल्यांकन के परिणामों के अनुदेशात्मक निहितार्थ की व्याख्या कर सकता है (जैसे कि स्कूल मनोवैज्ञानिक)।

माता-पिता या स्कूल अन्य व्यक्तियों को भी ला सकते हैं जिनके पास बच्चे के संबंध में ज्ञान या विशेष विशेषज्ञता है। उदाहरण के लिए, स्कूल संबंधित सेवा प्रदाताओं जैसे भाषण और व्यावसायिक चिकित्सक को आमंत्रित कर सकता है। माता-पिता उन पेशेवरों को आमंत्रित कर सकते हैं जिन्होंने बच्चे के साथ काम किया है या उसका मूल्यांकन किया है, या कोई अपने माता-पिता या वकील के रूप में अपने बच्चे की जरूरतों की वकालत करने में माता-पिता की सहायता करता है।

  •  यदि उपयुक्त हो, तो बच्चा IEP टीम की बैठकों में भी भाग ले सकता है। उदाहरण के लिए, कुछ बच्चे मध्य विद्यालय की आयु तक पहुँचने पर अपनी IEP बैठकों में भाग लेने लगते हैं।
  • एक सामान्य IEP टीम और टीम मीटिंग में शामिल हैं:
  • बच्चे के माता-पिता में से एक या दोनों। IDEA की घोषित नीति के अनुरूप, माता-पिता को IEP को विकसित करने में स्कूल कर्मियों के साथ समान प्रतिभागियों के रूप में व्यवहार करने की अपेक्षा करनी चाहिए।
  • एक मामला प्रबंधक या स्कूल जिले का प्रतिनिधि (छात्र का शिक्षक नहीं) जो विशेष शिक्षा प्रदान करने या पर्यवेक्षण करने के लिए योग्य है।
  • छात्र के शिक्षक, और प्रिंसिपल (एस)। यदि बच्चे के पास एक से अधिक शिक्षक हैं, तो सभी शिक्षकों को भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है, जिसमें कम से कम एक शिक्षक को भाग लेने की आवश्यकता होती है।
  •  यदि अनुशंसित किए जाने वाले कार्यक्रम में सामान्य शिक्षा छात्रों के साथ गतिविधियाँ शामिल हैं, भले ही बच्चा स्कूल में एक विशेष शिक्षा वर्ग में हो, एक सामान्य शिक्षा शिक्षक को उपस्थित होना आवश्यक है।
  • बच्चे से संबंधित सेवा का कोई भी प्रदाता। आम तौर पर यह स्पीच थेरेपी, व्यावसायिक चिकित्सा या अनुकूलित शारीरिक शिक्षा होगी।
  • पेशेवर जो परीक्षण के परिणामों की व्याख्या करने के लिए योग्य हैं। आमतौर पर इसके लिए कम से कम एक मनोवैज्ञानिक और शैक्षिक मूल्यांकनकर्ता की उपस्थिति की आवश्यकता होती है, यदि मूल्यांकन या रिपोर्ट की समीक्षा की जाती है। यह आमतौर पर 3 साल की समीक्षा, या त्रिकोणीय IEP पर होता है।
  • माता-पिता अपने साथ बच्चे के साथ शामिल किसी अन्य व्यक्ति को ला सकते हैं जो उन्हें लगता है कि आईईपी टीम को सुनना महत्वपूर्ण है; उदाहरण के लिए, बच्चे का मनोवैज्ञानिक या ट्यूटर।
  • माता-पिता एक शैक्षिक अधिवक्ता, एक सामाजिक कार्यकर्ता और / या IEP प्रक्रिया में जानकार वकील लाने का चुनाव कर सकते हैं।
  • यद्यपि आवश्यक नहीं है, यदि छात्र संबंधित सेवाएं (जैसे स्पीच थेरेपी, म्यूजिक थेरेपी, फिजिकल थेरेपी या व्यावसायिक चिकित्सा) प्राप्त कर रहा है, तो संबंधित सेवा कर्मियों के लिए बैठक में भाग लेना या उनके क्षेत्र में सेवाओं से संबंधित लिखित सिफारिशें प्रदान करना कम से कम मूल्यवान है। विशेषता की।

  • छात्र के मार्गदर्शन परामर्शदाता को उन पाठ्यक्रमों पर चर्चा करने के लिए उपस्थिति की आवश्यकता हो सकती है जो छात्र को उसकी शिक्षा के लिए आवश्यक हो सकते हैं।


माता-पिता की भूमिका

स्कूल कर्मियों के साथ माता-पिता को IEP टीम के पूर्ण और समान सदस्य माना जाता है। माता-पिता को उन बैठकों में शामिल होने का अधिकार है जो उनके बच्चों की पहचान,
मूल्यांकन, IEP विकास और शैक्षिक प्लेसमेंट पर चर्चा करते हैं। आईईपी टीम के सभी सदस्यों की तरह उन्हें भी सवाल पूछने, विवाद करने और योजना में संशोधन करने का अनुरोध करने का अधिकार है।

यद्यपि IEP टीमों को कंसेंसेस की ओर काम करने की आवश्यकता होती है, स्कूल के कर्मी अंततः यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार होते हैं कि IEP में वे सेवाएँ शामिल हैं जो छात्र को चाहिए। स्कूल जिलों को कानून द्वारा माता-पिता की सेवाओं के लिए एक प्रस्ताव बनाने के लिए बाध्य किया जाता है। यदि कोई समझौता नहीं किया जा सकता है, तो स्कूल जिला उन सेवाओं को प्रदान करने में देरी नहीं कर सकता है जो यह मानते हैं कि यह सुनिश्चित करने के लिए सबसे अच्छी सेवाएं हैं कि छात्र एक प्रभावी शैक्षिक कार्यक्रम प्राप्त करता है।

 आईडिया पार्ट डी के तहत, संयुक्त राज्य अमेरिका का शिक्षा विभाग प्रत्येक राज्य में कम से कम एक अभिभावक प्रशिक्षण और सूचना केंद्र और माता-पिता को अपने बच्चे के लिए प्रभावी ढंग से वकालत करने के लिए आवश्यक जानकारी प्रदान करने के लिए माता-पिता को प्रशिक्षण देता है। केंद्र इस प्रक्रिया में माता-पिता की सहायता के लिए एक जानकार व्यक्ति को आईईपी की बैठकों में साथ देने के लिए भी प्रदान कर सकते हैं।

यह सुनिश्चित करने के लिए स्कूल अनिवार्य है कि प्रत्येक IEP टीम की बैठक में माता-पिता में से एक या दोनों मौजूद हों। यदि माता-पिता उपस्थित नहीं होते हैं, तो स्कूल को यह दिखाने की आवश्यकता है कि माता-पिता को उपस्थित होने के लिए माता-पिता को सक्षम करने के लिए उचित परिश्रम किया गया था, जिसमें माता-पिता को जल्दी सूचित करना भी शामिल था कि उन्हें समय पर और स्थान पर सहमति से बैठक में भाग लेने का अवसर मिले, भागीदारी के वैकल्पिक साधनों की पेशकश, जैसे कि एक फोन सम्मेलन।

स्कूल को यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि माता-पिता आईईपी टीम की बैठकों की कार्यवाही को समझते हैं, जिसमें उन माता-पिता के लिए दुभाषिया की व्यवस्था करना शामिल है जो बहरे हैं या जिनकी मूल भाषा अंग्रेजी नहीं है।


छात्र की शिक्षा योजना का विकास करना

छात्र विशेष शिक्षा सेवाओं के लिए पात्र होने के लिए निर्धारित होने के बाद, पात्रता निर्धारित होने के बाद IEP टीम को जल्द से जल्द लागू करने के लिए एक व्यक्तिगत शिक्षा योजना विकसित करने की आवश्यकता होती है। पूर्ण व्यक्तिगत मूल्यांकन (FIE) के परिणामों का उपयोग करते हुए, IEP टीम छात्र के शैक्षिक प्रदर्शन के वर्तमान स्तर की पहचान करने के लिए, साथ ही साथ छात्र की विशिष्ट शैक्षणिक और किसी भी संबंधित या विशेष सेवाओं के लिए काम करती है जो बच्चे को उनके लाभ के लिए चाहिए। शिक्षा।


आईईपी विकसित करते समय, टीम को छात्र की ताकत, अपने छात्र की शिक्षा के लिए माता-पिता की चिंता, बच्चे के प्रारंभिक या सबसे हालिया मूल्यांकन के परिणाम (माता-पिता द्वारा आयोजित निजी मूल्यांकन सहित), और अकादमिक, पर विचार करना चाहिए। बच्चे की विकासात्मक, और कार्यात्मक जरूरतें। टीम को घाटे के क्षेत्रों पर भी विचार करना चाहिए। घाटे वाले क्षेत्रों में सुधार के लिए वार्षिक लक्ष्य और उद्देश्य बनाए जाने चाहिए। एक बच्चे के व्यवहार में जिसका व्यवहार छात्र के सीखने या अन्य बच्चों के लिए बाधा डालता है, टीम को व्यवहार को संबोधित करने के लिए सकारात्मक व्यवहार हस्तक्षेप और समर्थन का उपयोग करने पर विचार करना आवश्यक है। व्यवहार संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए टीम द्वारा FBA की आवश्यकता हो सकती है। एक FBA IEP टीम से इनपुट के साथ एक बाल मनोवैज्ञानिक द्वारा आयोजित किया जाता है।

आईईपी टीम को बच्चे की संचार आवश्यकताओं पर विचार करना आवश्यक है। उदाहरण के लिए, यदि कोई बच्चा नेत्रहीन या नेत्रहीन है, तो आईईपी को ब्रेल और ब्रेल के उपयोग के लिए निर्देश देना अनिवार्य है, जब तक कि बच्चे के पढ़ने और लिखने के कौशल, जरूरतों, और भविष्य की जरूरतों का मूल्यांकन यह संकेत न दे कि यह निर्देश उचित नहीं है बच्चे के लिए। यदि कोई बच्चा बहरा या सुनने में कठिन है, तो टीम को बच्चे की भाषा और संचार की जरूरतों पर विचार करना आवश्यक है, जिसमें स्कूल कर्मियों और साथियों के साथ संवाद करने की आवश्यकता और बच्चे की भाषा और संचार मोड में सीधे निर्देश की आवश्यकता शामिल है। सीमित अंग्रेजी प्रवीणता वाले बच्चे के मामले में, टीम को बच्चे की भाषा की जरूरतों पर विचार करने की आवश्यकता होती है क्योंकि वे बच्चे की IEP से संबंधित होती हैं।

मैट्रिक्स को छात्र के प्रदर्शन के वर्तमान स्तर से युक्त किया जाता है, छात्रों की विकलांगता के सामान्य पाठ्यक्रम में भागीदारी और प्रगति को प्रभावित करने के तरीकों के बारे में संकेतक, मापने योग्य लक्ष्यों का एक बयान, जिसमें बेंचमार्क या लघु-शर्तें उद्देश्य शामिल हैं, प्रदान की जाने वाली विशिष्ट शैक्षिक सेवाएं, सहित कार्यक्रम में संशोधन या समर्थन, इस हद तक कि बच्चे सामान्य शिक्षा में भाग नहीं लेंगे, राज्यव्यापी या जिलेवार आकलन में सभी संशोधनों का वर्णन, सेवाओं की शुरूआत के लिए अनुमानित तिथि और उन सेवाओं की अपेक्षित अवधि, संक्रमण सेवा की जरूरतों का वार्षिक विवरण (14 वर्ष की आयु से शुरुआत), और छात्र की स्कूल छोड़ने की सेवाओं की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए अंतर-जिम्मेदारियों का एक बयान (16 वर्ष की आयु तक), छात्र की प्रगति कैसे मापी जाएगी और माता-पिता कैसे होंगे, इसके बारे में एक बयान प्रक्रिया में सूचित किया जाए।

IDEA को बच्चे की IEP को बच्चे की जरूरतों के आधार पर विकसित किया जाना चाहिए, न कि जिले में उपलब्ध पहले से मौजूद कार्यक्रमों या सेवाओं के आधार पर। क्या एक विशेष शिक्षा प्राप्त करने के लिए बच्चे की जरूरत है सेवाओं की पहचान करते समय जिले में उपलब्ध विशेष सेवाओं पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।


उचित नियुक्ति

IEP के विकसित होने के बाद, IEP टीम प्लेसमेंट निर्धारित करती है - अर्थात, वह वातावरण जिसमें बच्चे का IEP सबसे आसानी से लागू किया जा सकता है। आईडीईए को आवश्यकता है कि प्लेसमेंट निर्णय लेने से पहले आईईपी पूरा हो जाए ताकि बच्चे की शैक्षिक आवश्यकताएं आईईपी विकास प्रक्रिया को चलाएं। स्कूल विकलांगता के एक विशेष वर्गीकरण के लिए पहले से मौजूद कार्यक्रम में फिट होने के लिए बच्चे के IEP को विकसित नहीं कर सकते हैं। छात्र को फिट करने के लिए IEP लिखा जाता है। IEP को फिट करने के लिए प्लेसमेंट को चुना जाता है।

IDEA को राज्य और स्थानीय शिक्षा एजेंसियों के लिए विकलांग बच्चों को उनके गैर-विकलांग साथियों के साथ अधिकतम सीमा तक उचित रूप से शिक्षित करने की आवश्यकता है। एक बच्चे को केवल एक अलग स्कूल या विशेष कक्षाओं में रखा जा सकता है अगर विकलांगता की गंभीरता या प्रकृति ऐसी है कि पूरक कक्षा और सेवाओं के उपयोग के साथ भी, नियमित कक्षा में बच्चे को उचित शिक्षा प्रदान नहीं की जा सकती है। प्लेसमेंट का निर्धारण करते समय, शुरुआती धारणा छात्र के वर्तमान शैक्षणिक स्तर और विकलांगता द्वारा स्पष्ट होनी चाहिए।


 कुछ अधिक सामान्य प्लेसमेंट सेटिंग्स में सामान्य शिक्षा कक्षा, एक एकीकृत वर्ग, एक संसाधन वर्ग, एक आत्म-निहित वर्ग और अन्य सेटिंग्स शामिल हैं, जिसमें अलग-अलग स्कूल और आवासीय सुविधाएं शामिल हैं। एक स्कूल प्रणाली यह सुनिश्चित करने के लिए अपने दायित्व को पूरा कर सकती है कि बच्चे के पास एक उपयुक्त स्थान उपलब्ध है: अपने लिए बच्चे के लिए एक उपयुक्त कार्यक्रम प्रदान करना, एक उपयुक्त कार्यक्रम प्रदान करने के लिए किसी अन्य एजेंसी के साथ परामर्श करना, या कुछ अन्य तंत्र / व्यवस्था का उपयोग करना जो सुसंगत हो। IDEA के साथ। प्लेसमेंट समूह IEP पर अपने निर्णय का आधार करेगा और बच्चे के लिए कौन सा प्लेसमेंट विकल्प उपयुक्त है। सामान्य शिक्षा कक्षा को सबसे कम प्रतिबंधात्मक वातावरण के रूप में देखा जाता है। सामान्य शिक्षा शिक्षक के अलावा, एक आदर्श शिक्षा शिक्षक भी होगा। विशेष शिक्षा शिक्षक छात्र की जरूरतों के लिए पाठ्यक्रम को समायोजित करता है। अधिकांश स्कूल-आयु वाले IEP छात्र अपने स्कूल के समय का कम से कम 80 प्रतिशत अपने साथियों के साथ इस सेटिंग में बिताते हैं। शोध से पता चलता है कि सामान्य शिक्षा में शामिल होने और सामान्य शिक्षा पाठ्यक्रम में भागीदारी से विशेष जरूरतों वाले छात्रों को लाभ होता है।

एक एकीकृत कक्षा कई बच्चों वाले ज्यादातर न्यूरो-विशिष्ट बच्चों से बना है जिनके पास IEPs हैं। ये आमतौर पर विकलांग बच्चों के उच्च कार्यशील होते हैं जिन्हें सामाजिक कौशल के क्षेत्रों में मदद की आवश्यकता होती है। यह सेटिंग उन्हें न्यूरो-विशिष्ट बच्चों के व्यवहार को मॉडल करने की अनुमति देती है। आमतौर पर IEP के साथ उन बच्चों की सहायता करने के लिए इस कक्षा में एक सहयोगी होता है।
अगली सेटिंग एक संसाधन वर्ग है जहां विशेष शिक्षा शिक्षक छात्रों के छोटे समूहों के साथ काम करता है जो उन तकनीकों का उपयोग करते हैं जो छात्रों के साथ अधिक कुशलता से काम करते हैं। यह सेटिंग उन छात्रों के लिए उपलब्ध है जो सामान्य शिक्षा कक्षा में अपने समय के 40- 79 प्रतिशत के बीच खर्च करते हैं। इस संदर्भ में शब्द "संसाधन" सामान्य शिक्षा के बाहर बिताए समय की मात्रा को संदर्भित करता है, न कि अनुदेश का रूप।

एक अन्य सेटिंग विकल्प एक अलग कक्षा है। जब छात्र सामान्य शिक्षा वर्ग में अपने दिन का 40 प्रतिशत से कम खर्च करते हैं, तो उन्हें एक अलग कक्षा में रखा जाता है। छात्रों को एक विशेष शिक्षा शिक्षक के साथ छोटे, उच्च संरचित सेटिंग्स में काम करने की अनुमति है। अलग-अलग कक्षा के छात्र अलग-अलग शैक्षणिक स्तरों पर काम कर रहे होंगे। अन्य सेटिंग्स में अलग-अलग स्कूल और आवासीय सुविधाएं शामिल हैं। इन सेटिंग्स में छात्रों को विशेष सीखने और व्यवहार संबंधी आवश्यकताओं दोनों को संबोधित करने के लिए अत्यधिक विशिष्ट प्रशिक्षण प्राप्त होता है। छात्रों को दोनों शैक्षणिक और जीवन कौशल निर्देश प्राप्त करेंगे। इन स्कूलों में संरचना, दिनचर्या और निरंतरता की उच्चतम डिग्री है।


कार्यान्वयन

आईईपी विकसित होने और प्लेसमेंट निर्धारित होने के बाद, छात्र के शिक्षक सभी शैक्षिक सेवाओं, कार्यक्रम संशोधनों या व्यक्तिगत शिक्षा योजना द्वारा इंगित समर्थन को लागू करने के लिए जिम्मेदार हैं।

स्कूल वर्ष की शुरुआत में स्कूलों में IEP का प्रभाव होना आवश्यक है। प्रारंभिक IEP को पात्रता के निर्धारण के 30 दिनों के भीतर विकसित करने की आवश्यकता होती है, और IEP विकसित होने के बाद बच्चे की IEP में निर्दिष्ट सेवाएं जल्द से जल्द प्रदान की जानी आवश्यक हैं।


वार्षिक समीक्षा

IEP टीम यह सुनिश्चित करने के लिए एक वार्षिक समीक्षा करने के लिए जिम्मेदार है कि छात्र लक्ष्यों को पूरा कर रहा है और / या प्रत्येक उद्देश्य के लिए निर्धारित बेंचमार्क पर प्रगति कर रहा है। यदि कोई IEP कक्षा में छात्र की मदद नहीं कर रहा है, तो तत्काल संशोधन होना है।


स्वीकृति और संशोधन

किसी भी उल्लिखित सेवाओं को शुरू करने से पहले एक प्रारंभिक IEP को माता-पिता या अभिभावक द्वारा स्वीकार और हस्ताक्षरित करना आवश्यक है। पूर्व में माता-पिता के पास अपने विचार के लिए कागज के काम को घर पर ले जाने के लिए 30 कैलेंडर दिन थे। वर्तमान में IEP को 10 दिनों के भीतर हस्ताक्षरित या अपील किया जाना चाहिए, या स्कूल सबसे हाल के संस्करण को लागू कर सकता है।

प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय

स्कूल कर्मियों का दायित्व है कि वे माता-पिता को एक प्रोसीडूरल सेफगार्ड नोटिस प्रदान करें, जिसमें आईडीईए में निर्मित सभी प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का स्पष्टीकरण शामिल करना आवश्यक है। इसके अलावा, जानकारी समझने योग्य भाषा में और मूल भाषा में होनी चाहिए।

आईईपी की बैठक में प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों की एक प्रति प्रस्तुत की जानी आवश्यक है। स्कूल को माता-पिता को बच्चे की आईईपी की एक प्रति माता-पिता को देने की आवश्यकता होती है।

सांविधिक प्रावधानों में संघर्ष समाधान प्रक्रियाओं की एक व्यापक प्रणाली स्थापित की गई है। उनमें शामिल हैं: रिकॉर्ड की जांच करने का अधिकार, शैक्षिक कार्यक्रम को बदलने के इरादे की अग्रिम सूचना, मध्यस्थता में संलग्न होने का अधिकार, और एक निष्पक्ष और उचित प्रक्रिया सुनवाई का अधिकार।

ऐसी सेवाएँ जो निःशक्तता वाले बच्चे को प्रदान की जा सकती हैं


  • विशेष रूप से डिजाइन किया गया निर्देश
  • अभिभावकों की भागीदारी
  • संबंधित सेवाएं
  • कार्यक्रम में संशोधन
  • कक्षा में रहने की जगह
  • अनुपूरक सहायता और सेवाएँ
  • संसाधन कक्ष


विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया निर्देश

विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया निर्देश अनुदेशात्मक सामग्री, अनुदेशात्मक वितरण की विधि और प्रदर्शन विधियों और मानदंडों को प्रभावित करता है जो छात्र की सार्थक शैक्षिक प्रगति के लिए आवश्यक हैं। यह निर्देश उचित रूप से विश्वसनीय शिक्षा शिक्षक या संबंधित सेवा प्रदाता द्वारा या इसके साथ बनाया गया है। छात्रों को छोटे-समूह के निर्देशन के साथ बेहतर सफलता मिल सकती है जैसा कि एक संसाधन कक्ष में प्रस्तुत किया जाता है (विशेष रूप से आईईपी में उल्लिखित कार्यक्रम और प्लेसमेंट द्वारा अनिवार्य)।

कुछ छात्रों के लिए, शिक्षकों को जोड़तोड़ के उपयोग के माध्यम से जानकारी प्रस्तुत करने की आवश्यकता हो सकती है। अन्य छात्रों के लिए, शिक्षकों को केवल महत्वपूर्ण कुंजी अवधारणाओं का चयन करना और सिखाना पड़ सकता है और फिर इस सामग्री परिवर्तन से मिलान करने के लिए मूल्यांकन गतिविधियों और मानदंडों में बदलाव करना चाहिए।


IEP टीम यह निर्धारित करती है कि क्या एक विशिष्ट प्रकार का निर्देश किसी छात्र के IEP में शामिल है। आमतौर पर, यदि कार्यप्रणाली छात्र की व्यक्तिगत जरूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक है, तो कार्यप्रणाली इसमें शामिल है। उदाहरण के लिए, यदि किसी छात्र के पास सीखने की विकलांगता है और उसने पारंपरिक तरीकों का उपयोग करके पढ़ना नहीं सीखा है, तो दूसरी विधि का उपयोग किया जाता है। जब इस तरह की IEP सिफारिश शामिल होती है, तो टीम एक विशिष्ट कार्यक्रम के नामकरण के विपरीत, उचित प्रकार की कार्यप्रणाली के घटकों का वर्णन करती है।


अभिभावक का समावेश

शोधकर्ताओं ने एक बच्चे की शिक्षा में माता-पिता की भागीदारी के महत्व को साबित किया है। वास्तव में, जेम्स ग्रिफिथ (1996) ने पाया कि अभिभावकों की भागीदारी और सशक्तिकरण के उच्च स्तर वाले स्कूलों में भी छात्र मानदंड-संदर्भित परीक्षण स्कोर अधिक थे। हालाँकि स्कूल की गतिविधियों में माता-पिता को शामिल करने के तरीकों पर बहुत ध्यान दिया गया है, विशेष शिक्षा के छात्रों के माता-पिता को बेहतर तरीके से शामिल करने के बारे में बहुत कम लिखा गया है। शिक्षा के 1998 के अमेरिकी कार्यालय विकलांग शिक्षा अधिनियम (IDEA) के साथ व्यक्तियों के संशोधनों में विशेष रूप से शैक्षिक प्रक्रिया में माता-पिता की भागीदारी को बढ़ाने के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए बड़े बदलाव शामिल थे। इन संशोधनों के लिए स्कूल जिलों को विकलांगता के निदान में शामिल होने के लिए विशेष शिक्षा कार्यक्रमों और सेवाओं की आवश्यकता के निर्धारण और बच्चे को इन सेवाओं को प्राप्त करने के लिए आमंत्रित करने की आवश्यकता थी।


संबंधित सेवाएं

यदि बच्चे को विशेष शिक्षा तक पहुंचने या लाभ उठाने के लिए अतिरिक्त सेवाओं की आवश्यकता होती है, तो संबंधित सेवाओं को प्रदान करने के लिए स्कूलों की आवश्यकता होती है। इनमें शामिल हैं, लेकिन भाषण चिकित्सा, व्यावसायिक या भौतिक चिकित्सा, दुभाषियों, चिकित्सा सेवाओं (जैसे कि दिन के दौरान बच्चे की जरूरतों को पूरा करने के लिए एक नर्स, उदाहरण के लिए, कैथीटेराइजेशन), अभिविन्यास और गतिशीलता सेवाएं, माता-पिता परामर्श, तक सीमित नहीं हैं। माता-पिता को अपने बच्चे के IEP, मनोवैज्ञानिक या परामर्श सेवाओं, मनोरंजन सेवाओं, पुनर्वास, सामाजिक कार्य सेवाओं और परिवहन के कार्यान्वयन में सहायता करने के लिए प्रशिक्षण।


कार्यक्रम में संशोधन


  • कार्यक्रम की सामग्री में संशोधन
  • शैक्षणिक सफलता के लिए सफलता के मानदंड कम
  • वैकल्पिक राज्य मूल्यांकन घटाएं, जैसे ऑफ-ग्रेड स्तर के आकलन


कक्षा में रहने का स्थान

एक छात्र की कुछ शैक्षिक आवश्यकताओं को आवास का उपयोग करके पूरा किया जा सकता है। आवास आम तौर पर सामान्य शिक्षा वातावरण में सामान्य शिक्षकों द्वारा प्रदान किए जाते हैं। आवास सामग्री सामग्री को संशोधित करने में शामिल नहीं होते हैं, लेकिन छात्रों को जानकारी प्राप्त करने या उनके द्वारा उनके क्षीणता के आसपास काम करने के तरीकों में जो कुछ भी सीखा है उसे प्रदर्शित करने की अनुमति देते हैं, जिससे एक महत्वपूर्ण विकलांगता की संभावना कम हो जाती है। उदाहरण के लिए, एक बच्चा होमवर्क असाइनमेंट के कम / अलग-अलग हिस्सों या अन्य छात्रों की तुलना में एक आकलन पूरा कर सकता है। वे छोटे कागजात भी लिख सकते हैं या मूल कार्य के प्रतिस्थापन में विभिन्न परियोजनाएं और असाइनमेंट दिए जा सकते हैं। आवासों में अधिमान्य बैठने, शिक्षक नोटों की फोटोकॉपी प्रदान करने, लिखित क्विज़ के बजाय मौखिक देने, परीक्षण और असाइनमेंट के लिए विस्तारित समय, वर्ड प्रोसेसर या लैपटॉप का उपयोग करने, शांत कमरे में परीक्षण करने, ध्यान देने के लिए संकेत और अनुस्मारक लेने जैसे प्रावधान शामिल हो सकते हैं। , संवेदी आवश्यकताओं के लिए विराम, और विशिष्ट विषय क्षेत्रों के साथ सहायता।

पाठ्यक्रम में संशोधन तब हो सकता है जब किसी छात्र को उन सामग्रियों को सीखने की आवश्यकता होती है जो कक्षा से चली गई हैं, जैसे कि घातांक पर काम करना जबकि कक्षा संचालन के क्रम में उन्हें लागू करने के लिए आगे बढ़ रही है। वे ग्रेडिंग रूब्रिक्स में भी हो सकते हैं, जहां IEP वाले छात्र का मूल्यांकन अन्य छात्रों की तुलना में विभिन्न मानकों पर किया जा सकता है।


अनुपूरक सहायता और सेवाएँ


  • सहायक तकनीक
  • कक्षा में शिक्षक सहयोगी जो एक या अधिक विशिष्ट छात्रों के लिए अतिरिक्त सहायता प्रदान करते हैं


परिवहन


यदि आवश्यक हो तो एक छात्र को विशेष परिवहन प्रदान किया जाएगा। यह मामला हो सकता है यदि छात्र के पास एक गंभीर विकलांगता है और उसे व्हीलचेयर की आवश्यकता होती है, या एक भावनात्मक समस्या के साथ पहचाना जाता है।


व्यक्तिगत शिक्षा कार्यक्रम योजना (IEP)

 एक लिखित योजना / कार्यक्रम है जिसे स्कूलों की विशेष शिक्षा टीम द्वारा अभिभावकों के इनपुट के साथ विकसित किया गया है और छात्र के शैक्षणिक लक्ष्यों और इन लक्ष्यों को प्राप्त करने की विधि को निर्दिष्ट करता है। कानून (IDEA) उस स्कूल को निर्धारित करता है जिले एक साथ माता-पिता, छात्रों, सामान्य शिक्षकों और विशेष शिक्षकों को विकलांग बच्चों के लिए टीम से आम सहमति के साथ महत्वपूर्ण शैक्षिक निर्णय लेने के लिए लाते हैं, और उन निर्णयों को IEP में परिलक्षित किया जाएगा।

IEE की आवश्यकता IDEIA (विकलांग व्यक्ति शिक्षा सुधार अधिनियम, 20014) संघीय कानून PL94-142 द्वारा गारंटीकृत प्रक्रिया अधिकारों को पूरा करने के लिए बनाई गई है। इसका उद्देश्य यह है कि स्थानीय शिक्षा प्राधिकरण (एलईए, आमतौर पर स्कूल जिला) मूल्यांकन रिपोर्ट (ईआर) में पहचाने गए प्रत्येक घाटे या जरूरतों को कैसे संबोधित करेगा। यह बताता है कि छात्र के कार्यक्रम को कैसे प्रदान किया जाएगा, जो सेवाएं प्रदान करेगा, और जहां उन सेवाओं को प्रदान किया जाएगा, उन्हें लिस्ट प्रतिबंधात्मक वातावरण (एलआरई) में शिक्षा प्रदान करने के लिए नामित किया गया है।

IEP छात्र को सामान्य शिक्षा पाठ्यक्रम में सफल होने में मदद करने के लिए प्रदान किए जाने वाले अनुकूलन की पहचान करेगा। यह संशोधनों की पहचान भी कर सकता है, अगर बच्चे को सफलता की गारंटी देने के लिए पाठ्यक्रम में काफी बदलाव या बदलाव करने की आवश्यकता होती है और यह कि छात्र की शैक्षिक आवश्यकताओं को संबोधित किया जाता है। यह निर्दिष्ट करेगा कि कौन सी सेवाएं (अर्थात भाषण विकृति विज्ञान, भौतिक चिकित्सा, और / या व्यावसायिक चिकित्सा) बच्चे की ईआर आवश्यकताओं के रूप में नामित करती हैं। जब छात्र सोलह वर्ष का हो जाता है तो योजना छात्र की संक्रमण योजना की भी पहचान करती है।

IEP का मतलब एक सहयोगी प्रयास है, जिसे पूरी IEP टीम द्वारा लिखा गया है, जिसमें विशेष शिक्षा शिक्षक, जिले का एक प्रतिनिधि (LEA) , एक सामान्य शिक्षा शिक्षक , और मनोवैज्ञानिक और / या सेवाएं प्रदान करने वाले किसी भी विशेषज्ञ शामिल हैं, जैसे कि भाषण भाषा रोगविज्ञानी। अक्सर IEP को बैठक से पहले लिखा जाता है और बैठक से कम से कम एक सप्ताह पहले माता-पिता को प्रदान किया जाता है ताकि माता-पिता बैठक से पहले किसी भी परिवर्तन का अनुरोध कर सकें। बैठक में IEP टीम को योजना के किसी भी हिस्से को जोड़ने, जोड़ने या घटाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जो उन्हें लगता है कि आवश्यक हैं।

IEP केवल उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करेगा जो विकलांगता (ies) से प्रभावित हैं। IEP छात्र के सीखने के लिए ध्यान केंद्रित करेगा और IEP लक्ष्य में महारत हासिल करने के रास्ते पर बेंचमार्क उद्देश्यों को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए छात्र के लिए समय निर्धारित करेगा। आईईपी को जितना संभव हो उतना प्रतिबिंबित करना चाहिए कि छात्र के साथी क्या सीख रहे हैं, जो सामान्य शिक्षा पाठ्यक्रम की आयु-उपयुक्त सन्निकटन प्रदान करता है। IEP सफलता के लिए छात्र की ज़रूरतों के समर्थन और सेवाओं की पहचान करेगा।




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Wednesday, May 1, 2019

दिव्यांग कल्याण कार्यक्रम

दिव्यांग कल्याण

दिव्यांगजनों के कल्याणार्थ संचालित कार्यक्रम :


1. शारीरिक रूप से दिव्यांग व्यक्तियों को कृत्रिम अंग एवं श्रवण सहायक यंत्र क्रय हेतु अनुदान योजना:

  योजना के मानक व दरें :
• अभ्यर्थी को कृत्रिम अंग अथवा श्रवण सहायक यन्त्र लगाने की संस्तुति चिकित्साधिकारी द्वारा की गई हो।
• अभ्यर्थी(नाबालिग होने की स्थिति में माता-पिता की) की मासिक आय रुपये 1000.00 तक हो।
• अनुदान की राशि अधिकतम रुपये 3500.00 तक है।


2.दिव्यांग छात्र/छात्राओं को छात्रवृति योजना :
दिव्यांग छात्र आर्थिक विषमताओं के कारण शिक्षण/प्रशिक्षण प्राप्त नहीं कर पाते हैं और उनका जीवन यापन स्वावलम्बी नहीं बन पाता है. अतः  इच्छुक छात्रों को इस योजना के अन्तर्गत छात्रवृति देकर शिक्षा के माध्यम से स्वावलम्बी बनाया जाता है. ताकि वे शिक्षा तथा व्ययावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त करके समाज में सम्मानपूर्ण जीवन यापन कर सकें।

• दिव्यांग छात्र/छात्रों के लिए कक्षा 1 से स्नातकोत्तर शिक्षा तक  निम्न दरों एंव मानकों के अनुसार छात्रवृति प्रदान की जाती है !
• दिव्यांग छात्र/छात्रा कम से कम 40 प्रतिशत  दिव्यांगता प्रमाण-पत्र  मुख्य चिकित्साधिकारी द्वारा दिया गया हो।
• छात्र/छात्रा किसी शैक्षणिक संस्था में नियमित  अध्ययनरत हो।
• छात्र/छात्रा के माता-पिता/अभिभावक की वार्षिक आय रु.24000/- तक हो।
• छात्र/छात्रा द्वारा छात्रवृति हेतु निर्धारित प्रार्थना-पत्र मय प्रमाण-पत्रों के अपनी शिक्षण संस्था में प्रस्तुत करना होगा।
• संबंधित संस्था छात्रवृति प्रार्थना-पत्र का परीक्षण कर दिनांक 31. जुलाई तक जिला समाज कल्याण अधिकारी, को प्रेषित करेंगे।
• जिला समाज कल्याण अधिकारी छात्र/छात्रा के आवेदन-पत्र का परीक्षण कर छात्रवृति हेतु पात्र पाये जाने पर छात्रवृति की धनराषि संस्था/छात्र/छात्रा के खातों में स्थान स्थानान्तरित करेगें।
• छात्रवृति की दरें निम्नानुसार है। (वर्ष 2005-06 से प्रभावी)


छात्रवृति के मानक

अवधि                                               (अधिकतम)     
कक्षा   दर प्रतिमाह     माता-पिता की     आय सीमा

1-5    रू. 50/-  अधिकतम रु. 2000/-   प्रतिमाह  12 माह

6-8    रू 80/-   अधिकतम रु. 2000/-    प्रतिमाह  12 माह

9-10  रू170/-  अधिकतम रु. 2000/-    प्रतिमाह  12 माह




छात्रवृति के मानक                            अवधि (अधिकतम)

पाठ्यक्रम         दर प्रतिमाह      माता-पिता की वार्षिक आय                                                                       सीमा

                      हास्टलर          डेस्कालर

1.इण्टर         रु.140/-    रु 85/-        अधिकतम रुपये                                                             24000/-तक
                                                      वार्षिक आय।

                                            प्रवेश की तिथि से पाठ्यक्रम
                                           के अन्तिम वर्ष की परीक्षा के
                                           माह तक पाठ्यक्रम के प्रथम
                                            वर्ष में  प्रवेश माह की 20
                                             तारीख के बाद हुआ है तो
                                             अगले माह से छात्रवृति                                                    अनुमन्य  होगी )


2.स्नातक पाठ्यक्रम  रु.180/- रु.125/-

3.स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम
तथा अन्य व्यावसायिक
 पाठ्यक्रम                  रु.240/-    रु.170/-




3   दिव्यांग भरण पोषण अनुदान

      प्रदेश में दृष्टिबाधित, मूक बधिर तथा शारीरिक रूप से दिव्यांग निराश्रित ऐसे व्यक्तियों को जिनका जीवन यापन के लिए  स्वयं का न तो कोई साधन है और न ही वे किसी प्रकार का ऐसा परिश्रम कर सकते हैं, जिससे उनका भरण पोषण हो सके, इस उद्देष्य से निराश्रित दिव्यांगजनों को सामाजिक सुरक्षा के अर्न्तगत जीवन-यापन हेतु सरकार की कल्याणकारी योजना के अर्न्तगत निराश्रित दिव्यांग भरण-पोषण अनुदान दिये जाने की योजना लागू की गयी जिसे सामान्यतया दिव्यांग पेंशन के नाम से भी जाना जाता है।



विभिन्‍न श्रेणी के निराश्रित दिव्यांग व्‍यक्तियों को निम्‍न मानकों एंव दरों के अनुसार   भरण पोषण अनुदान दिया जाता है:-

i. अभ्‍यर्थी की दिव्यांगता कम से कम 40 प्रतिशत होने का प्रमाण-पत्र मुख्‍य चिकित्‍सा अधिकारी द्वारा
   प्रदान किया गया हो ।
ii. अभ्यर्थी की आय का कोई साधन न हो अथवा बी०पी०एल० चयनित परिवार से संबंधित हो अथवा मासिक आमदनी रु०
    1000/- तक हो ।
iii. अभ्यर्थी का पुत्र/पौत्र 20 वर्ष से अधिक आयु का है, किन्तु गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहा हो, तो ऐसे
    अभ्यर्थी भरण-पोषण अनुदान के पात्र होंगे।     
iv. दिव्यांग भरण पोषण अनुदान रुपये 600/- प्रतिमाह।
v. कुष्ठ रोग से मुक्त दिव्यांग को रुपये 1000/- प्रतिमाह।
 इन्दिरा गॉधी राष्ट्रीय दिव्यांगता पेंशन योजनार्न्‍तगत गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले 18 वर्ष  से 65 वर्ष तक आयु के 80% दिव्यांग अथवा बहु  दिव्यांगता वाले अभ्यर्थी को कुल रु 700.00 जिसमें  रु 400.00 राज्य सरकार तथा रुपये 300.00 भारत सरकार द्वारा अनुदान दिया जायेगा।


4 . दक्ष दिव्यांगजनों एवं उनके सेवायोजकों को राज्य स्तरीय पुरस्कार :
दिव्यांग कर्मचारियों को अधिकाधिक रोजगार के अवसर सुलभ कराने के उद्देश्य से राज्‍यस्‍तरीय पुरस्कार की योजना चलाई जा रही है. सरकार द्वारा विभिन्न श्रेणी के दिव्यांग कर्मचारियों एवं उनके सेवायोजकों को राज्यस्तरीय पुरस्कार के रूप में रू0 5000/- की धनराशि नकद प्रदान की जाती है।


5.  दिव्यांगजनों हेतु शिविरों/सेमिनारों का आयोजन :
    दिव्यांगजनों को उनकी सुविधानुसार उनके नजदीकी क्षेत्रों में वार्षिक सत्‍यापन एवं पेंशन स्वीकृत किये जाने हेतु  शिविरों एवं सेमिनारों का आयोजन किये जाने की व्यवस्था की जाती है.


6.  दिव्यांग युवक/युवती विवाह प्रोत्साहन अनुदानः-
 सामान्य युवक, युवतियों द्वारा दिव्यांग युवक/युवती से विवाह करने पर प्रोत्साहन अनुदान  योजना के अन्तर्गत दिव्यांग युवक अथवा युवती से शादी करने पर दम्पत्ति को क्रमशः रूपये 11,000/- एवं रूपये 14,000/- का प्रोत्साहन अनुदान दिया जाता है.


योजना के मानक व दरें :
• दम्पति भारत का नागरिक हो।
• दम्पति उत्तराखण्ड का स्थायी निवासी हो या कम से कम पॉच वर्ष से उसका अधिवासी हो ।
• दम्पति में से कोई सदस्य किसी आपराधिक मामले में दंडित न किया गया हो।
• शादी के समय युवक कम से कम 21 वर्ष तथा 45 से अधिक न हो तथा युवती कम से कम 18 वर्ष तथा 45 वर्ष से अधिक न हो।
•  दम्पति का विवाह प्रचलित सामाजिक रीति-रिवाज से हुआ हो अथवा सक्षम न्यायालय द्वारा कानूनी विवाह किया गया हो ।
• दम्पति में से कोई सदस्य आयकरदाता की श्रेणी में न हो।
• जिसके पास पूर्व से कोई जीवित पत्नी न हो और उनके ऊपर महिला उत्पीड़न या अन्य आपराधिक मुकदमा न चल रहा हो।
• सामान्य युवक द्वारा दिव्यांग युवती से विवाह करने पर अनुदान की राशि रुपये 14000/- सामान्य युवती द्वारा दिव्यांग युवक से विवाह करने पर अनुदान की राशि रुपये 11000/- तथा दोनो दिव्यांग युवक व युवती द्वारा विवाह करने पर अनुदान की राशि रुपये 14000/- होगी ।


7. दिव्यांगजनों हेतु आश्रित कर्मशालायें :
शारीरिक रूप से दिव्यांग व्यक्तियों के लिए राजकीय प्रशिक्षण केन्द्र एवं आश्रित कर्मशालायें टिहरी गढ़वाल, पिथौरागढ़ एवं नैनीताल में संचालित हैं. इन कर्मशालाओं में दिव्यांग व्यक्तियों को मोमबत्ती, साबुन, हथकरघा, स्वेटर, शाल आदि बनाने/बुनाई का प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है. वित्तीय वर्ष 2008-09 से कम्पयूटर व्यवसाय संचालित किये जाने का प्रस्ताव किया गया है।


राज्य पोषित योजनाएं

क्रम संख्या योजनाओं के नामो का विवरण

1. निराश्रित दिव्यांगजन के भरण-पोषण हेतु अनुदान (दिव्यांग पेंशन) योजना

2. कुष्ठावस्था पेंशन योजना दिव्यांगजन / कुष्ठावस्था पेंशन योजना हेतु ऑनलाइन आवेदन पत्र

3. शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों को कृत्रिम अंग एवं श्रवण सहायक यंत्र इत्यादि खरीदने तथा मरम्मत कराने हेतु सहायक अनुदान योजना

4. शादी-विवाह प्रोत्साहन पुरस्कार योजना
दिव्यांगजन को शादी-विवाह प्रोत्साहन पुरस्कार हेतु ऑनलाइन आवेदन पत्र

5. दिव्यांगजन के पुनर्वासन हेतु दुकान निर्माण/दुकान संचालन योजना

6.निःशक्तता निवारण हेतु शल्य चिकित्सा अनुदान

7. दिव्यांगजन को राज्य परिवहन निगम की बसों में निःशुल्क यात्रा सुविधा प्रदान करने की योजना

8. दिव्यांगजन के सशक्तिकरण हेतु राज्य स्तरीय पुरस्कार

9. डिस्लेक्सिया व अटेन्शन डैफसिट एंड हाईपर एक्टिविटी सिंड्रोम से प्रभावित बच्चो की पहचान हेतु शिक्षकों को प्रशिक्षण।

10. मानसिक मंदित एवं मानसिक रूप से रूग्ण निराश्रित दिव्यांगजन के लिए आश्रय गृह सह प्रशिक्षण केंद्र संचालित करने हेतु स्वैछिक संगठनो की सहायता।

11. स्वैछिक संगठनो /संस्थानों की सहायता।

12. बेल प्रेस का संचालन।



प्रोत्‍साहन योजना

निजी क्षेत्र में विकलांग व्‍यक्तियों को नियोजन प्रदान करने के लिए नियोक्‍ताओं को प्रोत्‍साहन प्रदान करने की योजना वर्ष 2008 – 09 में शुरु की गयी थी। इस स्‍कीम कें अंतर्गत, निजी क्षेत्र में नियोजित विकलांग व्‍यक्तियों को ऐसे पद पर नियोजन जिसमें 25,000 रुपए तक की  उपलब्धियां प्राप्त होती है, प्रथम तीन वर्ष के लिए कर्मचारी भविष्‍य निधि और कर्मचारी राज्‍य बीमा निगम (ईएसआईसी) में कर्मचारी के अंशदान का भुगतान भारत सरकार द्वारा किया जाता है।


केंद्र सरकार ने विकलांगों के लिए 10 नयी योजनाओं की घोषणा की

केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री श्री थावर  चंद गहलोत ने 24 नवंबर 2015 को नेशनल ट्रस्ट के तहत शारीरिक अक्षम व्यक्तियों के हित में 10 नयी योजनाओं की घोषणा की. इनमें आत्मकेंद्रित, सेरेब्रल पाल्सी, मानसिक मंदता और बहु विकलांग व्यक्तियों के लिए कल्याणकारी  योजनाएं हैं. ये योजनाएं नेशनल ट्रस्ट के तहत शुरू की गयी.

केंद्रीय मंत्री ने नेशनल ट्रस्ट के लिए नई वेबसाइट http://thenationaltrust.gov.in/content/  का भी शुभारम्भ किया.

केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री श्री थावर  चंद गहलोत ने नेशनल ट्रस्ट के तहत शुरू की गयी योजनाएं निम्न हैं:

  • दिशा (प्रारंभिक हस्तक्षेप और स्कूल चलो अभियान)
  • विकास : डे केयर
  • समर्थ: राहत की देखभाल
  • घरौंदा: वयस्कों के लिए सामूहिक घर
  • निर्माया: (स्वास्थ्य बीमा योजना
  • सहयोगी: देखभाल के लिए प्रशिक्षण योजना
  • ज्ञान प्रभा: शैक्षिक समर्थन
  • प्रेरणा: विपणन सहायता
  • समभाव: एड्स और सहायता उपकरण और
  • बढ़ते कदम: जागरूकता और सामुदायिक सहभागिता


इसके अलावा, शारीरिक अक्षम व्यक्तियों के लिए विकलांगता श्रेणी की संख्या सात से बढा कर 19 तक करने की घोषणा की गयी. ताकि सरकार इन घोषनाओं को नई पहल के दायरे में ले सके.

नेशनल ट्रस्ट के लिए शुरू की गयी वेबसाइट http://thenationaltrust.gov.in/content/  शारीरिक अक्षम व्यक्तियों के लिए उनकी समस्याओं के प्रति मददगार होगी.  वेबसाइट के माध्यम से गैर सरकारी संगठनों का पंजीकरण वेबसाइट पर ही किया जा सकता है और दान का भुगतान भी किया जा सकता है.



दिव्यांग जन अधिनियम 1995 के अनुसार दिव्यांगता  के प्रकार निम्न रूप से 7 प्रकार है

1- पूर्ण दृष्टि अक्षमता
2- अल्प दृष्टि अक्षमता
3- कुष्ठ निवारण
4- श्रवण अक्षमता
5- गामक अक्षमता
6- मानसिक मंदता
7- मानसिक रुग्यता

एक्ट 2012 के अनुसार दो और जोड़े गए

8- थैलेसिया
9- स्लोलर्नर


दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम-2016 के अन्तर्गत निशक्तता के 21 प्रकार है

1. मानसिक मंदता [Mental Retardation] -
        1.समझने / बोलने में कठिनाई
        2.अभिव्यक्त करने में कठिनाई

2. ऑटिज्म [Autism Spectrum Disorders] -
    1. किसी कार्य पर ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई
    2. आंखे मिलाकर बात न कर पाना
    3. गुमसुम रहना

3. सेरेब्रल पाल्सी [Cerebral Palsy] पोलियो-
    1. पैरों में जकड़न
    2. चलने में कठिनाई
    3. हाथ से काम करने में कठिनाई

4. मानसिक रोगी [Mental illness] -
    1.अस्वाभाविक ब्यवहार,  2. खुद से बाते करना,
    3. भ्रम जाल,  4. मतिभ्रम,  5. व्यसन (नसे का आदी),
    6. किसी से डर / भय,  7. गुमसुम रहना

5. श्रवण बाधित [Hearing Impairment]-
   1. बहरापन
   2. ऊंचा सुनना या कम सुनना

6. मूक निशक्तता [Speech Impairment] -
    1. बोलने में कठिनाई
    2. सामान्य बोली से अलग बोलना जिसे अन्य लोग समझ          नहीं पाते

7. दृष्टि बाधित [Blindness ] -
    1. देखने में कठिनाई
    2. पूर्ण दृष्टिहीन

8. अल्प दृष्टि [Low- Vision ] -
    1. कम दिखना
    2. 60 वर्ष से कम आयु की स्थिति में रंगों की पहचान नहीं          कर पाना

9. चलन निशक्तता  [Locomotor Disability ] -
    1. हाथ या पैर अथवा दोनों की निशक्तता
    2. लकवा
    3. हाथ या पैर कट जाना

10. कुष्ठ रोग से मुक्त  [Leprosy- Cured ] -
     1. हाथ या पैर या अंगुली मैं विकृति
     2. टेढापन
     3. शरीर की त्वचा पर रंगहीन धब्बे
     4. हाथ या पैर या अंगुलिया सुन्न हों जाना

11. बौनापन [Dwarfism ]-
      1. व्यक्ति का कद व्यक्स होने पर भी 4 फुट 10इंच                  /147cm  या इससे कम होना

12. तेजाब हमला पीड़ित [Acid Attack Victim ] -
      1. शरीर के अंग हाथ / पैर / आंख आदि तेजाब हमले की वज़ह से असमान्य / प्रभावित होना

13. मांसपेशी दुर्विक़ार [Muscular Distrophy ] -
     . मांसपेशियों में कमजोरी एवं विकृति

14.स्पेसिफिक लर्निग डिसेबिलिटी[Specific learning]-
     . बोलने, श्रुत लेख, लेखन, साधारण जोड़, बाकी, गुणा,        भाग में आकार, भार, दूरी आदि समझने मैं कठिनाई

15. बौद्धिक निशक्तता [ Intellectual Disabilities]-          1. सीखने, समस्या समाधान, तार्किकता आदि में         कठिनाई
      2. प्रतिदिन के कार्यों में सामाजिक कार्यों में एम  अनुकूल व्यवहार में कठिनाई

16. मल्टीपल स्कलेरोसिस [Miltiple Sclerosis ] -
     1. दिमाग एम रीढ़ की हड्डी के समन्वय में परेशानी

17. पार्किसंस रोग [Parkinsons Disease ]-
     1. हाथ/ पाव/ मांसपेशियों में जकड़न
     2. तंत्रिका तंत्र प्रणाली संबंधी कठिनाई

18. हिमोफिया/ अधी रक्तस्राव [Haemophilia ] -
     1. चोट लगने पर अत्यधिक रक्त स्राव
     2.रक्त बहेना बंद नहीं होना

19. थैलेसीमिया [Thalassemia ] -
      1. खून में हीमोग्लबीन की विकृति
      2. खून मात्रा कम होना

20. सिकल सैल डिजीज [Sickle Cell Disease ] -
     1. खून की अत्यधिक कमी
     2. खून की कमी से शरीर के अंग/ अवयव खराब होना

21. बहू  निशक्तता [Multiple Disabilities ] -
     1. दो या दो से अधिक निशक्तता से ग्रसित





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Monday, April 29, 2019

सामाजिक अध्ययन[SST]

Social Studies [SST]

SST के दो पहेलू है।

1.  Social science
2.  Social Studies


Social science [सामाजिक विज्ञान]

सामाजिक विज्ञान (Social science) मानव समाज का अध्ययन करने वाली शैक्षिक विधा है। प्राकृतिक विज्ञानों के अतिरिक्त अन्य विषयों का एक सामूहिक नाम है 'सामाजिक विज्ञान'। इसमें नृविज्ञान, पुरातत्व, अर्थशास्त्र, भूगोल, इतिहास, विधि, भाषाविज्ञान, राजनीति शास्त्र, समाजशास्त्र, अंतरराष्ट्रीय अध्ययन और संचार आदि विषय सम्मिलित हैं। कभी-कभी मनोविज्ञान को भी इसमें शामिल कर लिया जाता है।


Social Studies [सामाजिक अध्ययन]


सामाजिक अध्ययन सामाजिक विज्ञान, मानविकी और इतिहास का समाकलित अध्ययन हैं। शालेय कार्यक्रम में, सामाजिक अध्ययन, एक समन्वित व्यवस्थित अध्ययन प्रदान करता है, जो मानवशास्त्र, पुरातत्वशास्त्र, अर्थशास्त्र, भूगोल, इतिहास, विधिशास्त्र, दर्शन, राजनीति विज्ञान, मनोविज्ञान, धर्म, और समाजशास्त्र जैसे अनुशासनों से, और साथ ही, मानविकी, गणित, और प्राकृतिक विज्ञान की उचित सामग्री से, लिया जाता हैं।



 सामाजिक विज्ञान की शाखाएँ 


1. नृविज्ञान (Anthropology)
2. अर्थशास्त्र (Economics)
3. शिक्षाशास्त्र (Education)
4. भूगोल (Geography)
5. इतिहास (History)
6. विधि (Law)
7. भाषाविज्ञान (Linguistics)
8. राजनीति विज्ञान (Political science)
9. लोक प्रशासन (Public administration)
10. मनोविज्ञान (Psychology)
11. समाजशास्त्र (Sociology)



 सामाजिक अध्ययन के उद्देश्य निम्नलिखित हैं:-

1. व्यक्तित्व का सर्वागीण विकास (Al-round Development of Personality)

सामाजिक अध्ययन विषय का उद्देश्य बच्चों का सर्वागीण विकास करना है। मानव ने इस सृष्टि पर जीवन कैसे आरम्भ किया, उसका भौतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक वातावरण क्या था। इसका ज्ञान बालकों को देना आवश्यक है, क्योंकि तभी उन्हें अपने अस्तित्व की जानकारी प्राप्त होगी। बच्चों को यह जानकारी देनी आवश्यक है कि भिन्न-भिन्न प्रकार की संस्थाओं का जन्म कैसे हुआ।

2. वांछित अभिव्यक्ति का विकास [Deplopment of Desired Attitudes ]

ज्ञान के साथ-साथ उचित अभिवतियो का विकास भी आवश्यक है। उचित अभिवतियों अच्छे व्यवहार का आधार है। यह अभिवतियों बौद्धिक तथा भावनात्मक दोनों प्रकार की होती है। बालक का व्यवहार इन्हीं अभिवतियों पर निर्भर करता है। भावनात्मक अभिवतियों पूर्वाग्रह, ईर्ष्या तथा आलस्य के आधार पर निर्मित होती है जबकि बौद्धिक अभिवतियों  तथ्यों को अधिक महत्व देते है। सामाजिक अध्ययन के अध्यापक का कर्तव्य है कि वह बालकों मे बौद्धिक अभिवतियो का विकास करे। उनके अंदर कुछ सामाजिक गुण जैसे आत्मसंयम, धेर्य, सहानुभूति तथा आत्म समान को विकसित करे।


3. ज्ञान प्रदान करना (Providing Knowledge)

 स्कूल बालकों को अच्छा नागरिक बनाना चाहता है तो उन्हें ज्ञान प्रदान करना आवश्यक है। ज्ञान स्पष्ट चिंतन व उचित निर्णय के लिए  बहुत आवश्यक हैं। छात्रों को  समाज के अनेक रीति रिवाजों रहन-सहन,  संस्कृति, सभ्यता तथा नियम आदि से परिचित कराना बहुत आवश्यक है। इस प्रकार के ज्ञान से छात्र अपने भविष्य के जीवन को सफल बना सकते हैं।


4. अच्छी नागरिकता का विकास (Development of Good Citizenship)

प्रजातंत्र की सफलता के लिए नागरिकों में नागरिकता के गुणों को विकसित करना आवश्यक हैं। औद्योगिक क्रांति के कारण सामाजिक संगठन पर भी प्रभाव पड़ा है। इसने परिवार, धर्म, समुदाय को छिन्न - भिन्न करके रक दिया है। नगरो में अनेक वे  व्यसाय पनपने लगे हैं, गांव में सीमित भूमि होने के कारण और जनसंख्या के तेजी से बढ़ने के कारण लोगों ने घरों को छोड़कर नगरों में रहना आरम्भ कर दिया है। जिससे नगरों में भी आवास की समस्या हो गई है। तनाव बढ़ रहे हैं। इसलिए सामाजिक अध्यन में अच्छी नागरिकता की शिक्षा देने का  महत्व बढ़ गया है।


5. मानव समाज की व्याख्या करना (Explaination of Human Society)

मानव समाज जटिलताओं से भरा हुआ है। इसमें पूर्वाग्रह,  ईर्ष्या, द्धेष, अपनत्व की भावना के कारण पारस्परिक संघर्ष सृष्टि के आरंभ से चले आ रहे है इसलिए बच्चो को यह जानकारी प्रदान करना आवश्यक है कि जिस वातावरण में वह रहते हैं वह अस्तित्व में कैसे आया। व्यक्ति  एवम समाज  एक दूसरे को किस सीमा तक प्रभावित करते हैं। संसार की विभिन्न सस्थायो का विकास कैसे हुआ। समय के साथ  बदलती हुई आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सामाजिक सस्थाए  कैसे विकसित हुई तथा उनमें परिवर्तन कैसे आया।


6. मानवीय जीवन का विकास (Development of Human Life)

सामाजिक अध्ययन शिक्षण का विशिष्ट उद्देश्य मानवीय समाज की व्याख्या करना है मानव ने इस     सृष्टि पर जीवन कैसे आरम्भ किया, आदि मानव से आज के मानव में जो परिवर्तन आये, उनका रहन- सहन, खान, पान, भाषा, व्यवहार, सभ्यता एम संस्कृति में आय  बदलाव की कहानी कितनी पुरानी है।


7. विद्यार्थियों का सामाजिकरण   (Socialization of Students)

 सामाजिक अध्ययन बच्चो में सामाजिक आदतों का विकास करता है। उनमें सहयोग,  सहकारिता, सहनशीलता, सहानुभूति, सहिष्णुता जैसे गुणों को विकसित किया जाता है। उनमें विश्लेषण एंव निष्कर्ष, निरूपण जैसे गुणों को विकसित किया जाता है। विद्यार्थी तथ्य संग्रह करना सिकते है। सार्थक रूप से लिखना, पड़ना सीखते हैं।


8. परस्पर निर्भरता की भावना का विकास (Development of feeling of interdepenfence)

स्वस्थ एंव संतुलित सामाजिक जीवन के लिए मनुष्य को मानवीय प्रकृति तथा भौतिक वातावरण को समझना पड़ता है। यंत्रीकरण, श्रम के विभाजन और बड़े पैमाने पर उद्योगों के कारण आज की सामाजिक ब्यावस्था अत्यंत जटिल हो गई है। आज हर मानव एक - दूसरे पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर है।


सामाजिक अध्ययन का क्षेत्र  (Scope of Social Studies)

सामाजिक अध्ययन का क्षेत्रा भी विस्तृत तथा व्यापक है। इसकी विषय वस्तु का निर्माण विभिन्न सामाजिक विज्ञान करते हैं जिसमें भूगोल, इतिहास, नागरिक शास्त्रा, राजनीति शास्त्रा, समाज शास्त्रा, दर्शन शास्त्र, नीति शास्त्रा आदि हैं। इन सभी विषयों के आधारभूत तत्व मिलकर सामाजिक अध्ययन का पाठ्यक्रम निर्धारित करते हैं।



यह मानव जीवन के प्रत्येक पक्ष सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, ऐतिहासिक को स्पर्श करता है। इसप्रकार सामाजिक अध्ययन का क्षेत्रा विशाल तथा व्यापक है। इसमें विविधता है जो मानव को अनुभव ग्रहण करने में मदद करता है।

माइकल्स के शब्दों में,‘‘सामाजिक अध्ययन का कार्यक्रम इतना विशाल होना चाहिए जिससे विद्यार्थियों को विभिन्न प्रकार के अनुभव मिल सके व उनका ज्ञान विस्तृत हो सके।“

सामाजिक अध्ययन का क्षेत्रा सम्पूर्ण मानव जीवन के भौतिक एवं सामाजिक वातावरण से सम्बन्धित है, इसीलिये यह विस्तृत हैं। इसे दो प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है।

 वसुधेैव कुटुम्बकम्’ के सिद्धान्त के अनुसार मानव परिवार से विश्व परिवार का सदस्य है, इसीलिए मनुष्य का मनुष्य के साथ गहरा सम्बन्ध है। मानवीय जीवन के वह सभी पहलू या पक्ष जो मानव के विकास के लिए आवश्यक है सामाजिक अध्ययन की विषयवस्तु के अन्तर्गत आते हैं। इन पहलूओं से सम्बन्धित विषयों की जानकारी हम सामाजिक अध्ययन के अन्तर्गत करते हैं। इतिहास, भूगोल, नागरिक शास्त्रा, अर्थशास्त्रा, समाजशास्त्रा आदि सभी विषय इसके क्षेत्रा की सीमा में आते हैं क्योकि यह सभी विषय भूत, वर्तमान तथा भविष्य के मध्य सम्बन्ध स्थापित करते हैंः-
सामाजिक अध्ययन / सामाजिक अध्ययन की अवधारणा  एवं प्रकृति


प्रो0 वी0आर0 तनेजा ने ठीक कहा है कि वे लोग गलती पर हैं जो इतिहास के किसी टुकड़े, भूगोल के किसी हिस्से, नागरिक शास्त्रा की कुछ बातें तथा अर्थशास्त्रा से सम्बन्धित कुछ सामाजिक सन्दर्भों को केवल एकत्रित कर देने को सामाजिक अध्ययन मानते हैं, परन्तु वास्तव में इन विषयों का शिक्षण अलग-अलग करते हैं।’’



सामाजिक विज्ञान का उपयोग

सामाजिक अध्ययन का उपयोग निम्नलिखित रूप से किया जा सकता हैं:-

1. व्यक्तित्व का सर्वागीण विकास (Al-round Development of Personality)

2. वांछित अभिव्यक्ति का विकास [Deplopment of Desired Attitudes ]

3. ज्ञान प्रदान करना (Providing Knowledge)

4. अच्छी नागरिकता का विकास (Development of Good Citizenship)

5. मानव समाज की व्याख्या करना (Explaination of Human Society)

6. मानवीय जीवन का विकास (Development of Human Life)

7. विद्यार्थियों का सामाजिकरण   (Socialization of Students)

8. परस्पर निर्भरता की भावना का विकास (Development of feeling of interdepenfence)



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Sunday, April 28, 2019

11. समाजशास्त्र (Sociology)

समाजशास्त्र

समाज के विभिन्न पहलुओं के क्रमबद्ध अध्ययन को समाजशास्त्र कहते हैं |

पुल्लिंग

सामाजिक प्राणी के रूप में मनुष्य का समाज के प्रति कर्तव्यों आदि का विवेचन करनेवाला शास्त्र।

समाजशास्त्र मानव समाज का अध्ययन है। यह सामाजिक विज्ञान की एक शाखा है, जो मानवीय सामाजिक संरचना और गतिविधियों से संबंधित जानकारी को परिष्कृत करने और उनका विकास करने के लिए, अनुभवजन्य विवेचन और विवेचनात्मक विश्लेषण की विभिन्न पद्धतियों का उपयोग करता है, अक्सर जिसका ध्येय सामाजिक कल्याण के अनुसरण में ऐसे ज्ञान को लागू करना होता है। समाजशास्त्र की विषयवस्तु के विस्तार, आमने-सामने होने वाले संपर्क के सूक्ष्म स्तर से लेकर व्यापक तौर पर समाज के बृहद स्तर तक है।

समाजशास्त्र, पद्धति और विषय वस्तु, दोनों के मामले में एक विस्तृत विषय है। परम्परागत रूप से इसकी केन्द्रियता सामाजिक स्तर-विन्यास (या "वर्ग"), सामाजिक संबंध, सामाजिक संपर्क, धर्म, समाजशास्त्र|संस्कृति]] और विचलन पर रही है, तथा इसके दृष्टिकोण में गुणात्मक और मात्रात्मक शोध तकनीक, दोनों का समावेश है। चूंकि अधिकांशतः मनुष्य जो कुछ भी करता है वह सामाजिक संरचना या सामाजिक गतिविधि की श्रेणी के अर्न्तगत सटीक बैठता है, समाजशास्त्र ने अपना ध्यान धीरे-धीरे अन्य विषयों जैसे- चिकित्सा, सैन्य और दंड संगठन, जन-संपर्क और यहां तक कि वैज्ञानिक ज्ञान के निर्माण में सामाजिक गतिविधियों की भूमिका पर केन्द्रित किया है। सामाजिक वैज्ञानिक पद्धतियों की सीमा का भी व्यापक रूप से विस्तार हुआ है। 20वीं शताब्दी के मध्य के भाषाई और सांस्कृतिक परिवर्तनों ने तेज़ी से सामाज के अध्ययन में भाष्य विषयक और व्याख्यात्मक दृष्टिकोण को उत्पन्न किया। इसके विपरीत, हाल के दशकों ने नये गणितीय रूप से कठोर पद्धतियों का उदय देखा है, जैसे सामाजिक नेटवर्क विश्लेषण।


आधार

 इतिहास

समाजशास्त्रीय तर्क इस शब्द की उत्पत्ति की तिथि उचित समय से पूर्व की बताते हैं। आर्थिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक प्रणालीयों सहित समाजशास्त्र की उत्पत्ति, पश्चिमी ज्ञान और दर्शन के संयुक्त भण्डार में आद्य-समाजशास्त्रीय है। प्लेटो के समय से ही सामाजिक विश्लेषण किया जाना शुरू हो गया। यह कहा जा सकता है कि पहला समाजशास्त्री 14वीं सदी का उत्तर अफ्रीकी अरब विद्वान, इब्न खल्दून था, जिसकी मुक़द्दीमा, सामाजिक एकता और सामाजिक संघर्ष के सामाजिक-वैज्ञानिक सिद्धांतों को आगे लाने वाली पहली कृति थी।

शब्द "sociologie " पहली बार 1780 में फ़्रांसीसी निबंधकार इमेनुअल जोसफ सीयस (1748-1836) द्वारा एक अप्रकाशित पांडुलिपि में गढ़ा गया। यह बाद में ऑगस्ट कॉम्ट(1798-1857) द्वारा 1838 में स्थापित किया गया। इससे पहले कॉम्ट ने "सामाजिक भौतिकी" शब्द का इस्तेमाल किया था, लेकिन बाद में वह दूसरों द्वारा अपनाया गया, विशेष रूप से बेल्जियम के सांख्यिकीविद् एडॉल्फ क्योटेलेट. कॉम्ट ने सामाजिक क्षेत्रों की वैज्ञानिक समझ के माध्यम से इतिहास, मनोविज्ञान और अर्थशास्त्र को एकजुट करने का प्रयास किया। फ्रांसीसी क्रांति की व्याकुलता के शीघ्र बाद ही लिखते हुए, उन्होंने प्रस्थापित किया कि सामाजिक निश्चयात्मकता के माध्यम से सामाजिक बुराइयों को दूर किया जा सकता है, यह द कोर्स इन पोसिटिव फिलोसफी (1830-1842) और ए जनरल व्यू ऑफ़ पॉसिटिविस्म (1844) में उल्लिखित एक दर्शनशास्त्रीय दृष्टिकोण है। कॉम्ट को विश्वास था कि एक 'प्रत्यक्षवादी स्तर' मानवीय समझ के क्रम में, धार्मिक अटकलों और आध्यात्मिक चरणों के बाद अंतिम दौर को चिह्नित करेगा। यद्यपि कॉम्ट को अक्सर "समाजशास्त्र का पिता" माना जाता है, तथापि यह विषय औपचारिक रूप से एक अन्य संरचनात्मक व्यावहारिक विचारक एमिल दुर्खीम(1858-1917) द्वारा स्थापित किया गया था, जिसने प्रथम यूरोपीय अकादमिक विभाग की स्थापना की और आगे चलकर प्रत्यक्षवाद का विकास किया। तब से, सामाजिक ज्ञानवाद, कार्य पद्धतियां और पूछताछ का दायरा, महत्त्वपूर्ण रूप से विस्तृत और अपसारित हुआ है।



महत्वपूर्ण व्यक्ति


एमिल दुर्खीम

समाजशास्त्र का विकास 19वी सदी में उभरती आधुनिकता की चुनौतियों, जैसे औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और वैज्ञानिक पुनर्गठन की शैक्षणिक अनुक्रिया, के रूप में हुआ। यूरोपीय महाद्वीप में इस विषय ने अपना प्रभुत्व जमाया और वहीं ब्रिटिश मानव-शास्त्र ने सामान्यतया एक अलग पथ का अनुसरण किया। 20वीं सदी के समाप्त होने तक, कई प्रमुख समाजशास्त्रियों ने एंग्लो अमेरिकन दुनिया में रह कर काम किया। शास्त्रीय सामाजिक सिद्धांतकारों में शामिल हैं एलेक्सिस डी टोकविले, विल्फ्रेडो परेटो, कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स, लुडविग गम्प्लोविज़, फर्डिनेंड टोंनीज़, फ्लोरियन जेनिके, थोर्स्तेइन वेब्लेन, हरबर्ट स्पेन्सर, जॉर्ज सिमेल, जार्ज हर्बर्ट मीड,, चार्ल्स कूले, वर्नर सोम्बर्ट, मैक्स वेबर, एंटोनियो ग्राम्सी, गार्गी ल्यूकास, वाल्टर बेंजामिन, थियोडोर डब्ल्यू. एडोर्नो, मैक्स होर्खेइमेर, रॉबर्ट के. मेर्टोंन और टेल्कोट पार्सन्स.विभिन्न शैक्षणिक विषयों में अपनाए गए सिद्धांतों सहित उनकी कृतियां अर्थशास्त्र, न्यायशास्त्र, मनोविज्ञान और दर्शन को प्रभावित करती हैं।


20वीं सदी के उत्तरार्ध के और समकालीन व्यक्तियों में पियरे बौर्डिए सी.राइट मिल्स, उल्रीश बैक, हावर्ड एस. बेकर, जरगेन हैबरमास डैनियल बेल, पितिरिम सोरोकिन सेमोर मार्टिन लिप्सेट मॉइसे ओस्ट्रोगोर्स्की लुई अलतूसर, निकोस पौलान्त्ज़स, राल्फ मिलिबैंड, सिमोन डे बौवार, पीटर बर्गर, हर्बर्ट मार्कुस, मिशेल फूकाल्ट, अल्फ्रेड शुट्ज़, मार्सेल मौस, जॉर्ज रित्ज़र, गाइ देबोर्ड, जीन बौद्रिलार्ड, बार्नी ग्लासेर, एनसेल्म स्ट्रॉस, डोरोथी स्मिथ, इरविंग गोफमैन, गिल्बर्टो फ्रेयर, जूलिया क्रिस्तेवा, राल्फ डहरेनडोर्फ़, हर्बर्ट गन्स, माइकल बुरावॉय, निकलस लुह्मन, लूसी इरिगरे, अर्नेस्ट गेलनेर, रिचर्ड होगार्ट, स्टुअर्ट हॉल, रेमंड विलियम्स, फ्रेडरिक जेमसन, एंटोनियो नेग्री, अर्नेस्ट बर्गेस, गेर्हार्ड लेंस्की, रॉबर्ट बेलाह, पॉल गिलरॉय, जॉन रेक्स, जिग्मंट बॉमन, जुडिथ बटलर, टेरी ईगलटन, स्टीव फुलर, ब्रूनो लेटर, बैरी वेलमैन, जॉन थॉम्पसन, एडवर्ड सेड, हर्बर्ट ब्लुमेर, बेल हुक्स, मैनुअल कैसल्स और एंथोनी गिडन्स .

प्रत्येक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति एक विशेष सैद्धांतिक दृष्टिकोण और अनुस्थापन से सम्बद्ध है। दुर्खीम, मार्क्स और वेबर को आम तौर पर समाजशास्त्र के तीन प्रमुख संस्थापकों के रूप में उद्धृत किया जाता है; उनके कार्यों को क्रमशः प्रकार्यवाद, द्वंद सिद्धांत और गैर-प्रत्यक्षवाद के उपदेशों में आरोपित किया जा सकता है। सिमेलऔर पार्सन्स को कभी-कभार चौथे "प्रमुख व्यक्ति" के रूप में शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल किया जाता है।


 एक अकादमिक विषय के रूप में समाजशास्त्र का संस्थान

1890 में पहली बार इस विषय को इसके अपने नाम के तहत अमेरिका केकन्सास विश्वविद्यालय, लॉरेंस में पढ़ाया गया। इस पाठ्यक्रम को जिसका शीर्षक समाजशास्त्र के तत्व था, पहली बार फ्रैंक ब्लैकमर द्वारा पढ़ाया गया। अमेरिका में जारी रहने वाला यह सबसे पुराना समाजशास्त्र पाठ्यक्रम है। अमेरिका के प्रथम विकसित स्वतंत्र विश्वविद्यालय, कन्सास विश्वविद्यालय में 1891 में इतिहास और समाजशास्त्र विभाग की स्थापना की गयी। शिकागो विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग की स्थापना 1892 में एल्बिओन डबल्यू. स्माल द्वारा की गयी, जिन्होंने 1895 में अमेरिकन जर्नल ऑफ़ सोशिऑलजी की स्थापना की।

प्रथम यूरोपीय समाजशास्त्र विभाग की स्थापना 1895 में, L'Année Sociologique(1896) के संस्थापक एमिल दुर्खीम द्वारा बोर्डिऑक्स विश्वविद्यालय में की गयी। 1904 में यूनाइटेड किंगडम में स्थापित होने वाला प्रथम समाजशास्त्र विभाग, लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स एंड पोलिटिकल साइन्स (ब्रिटिश जर्नल ऑफ़ सोशिऑलजी की जन्मभूमि) में हुआ। 1919 में, जर्मनी में एक समाजशास्त्र विभाग की स्थापना लुडविग मैक्सीमीलियन्स यूनिवर्सिटी ऑफ़ म्यूनिख में मैक्स वेबर द्वारा और 1920 में पोलैंड में फ्लोरियन जेनेक द्वारा की गई।


समाजशास्त्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग 1893 में शुरू हुआ, जब रेने वोर्म्स ने स्थापना की , जो 1949 में स्थापित अपेक्षाकृत अधिक विशाल अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक संघ(ISA) द्वारा प्रभावहीन कर दिया गया। 1905 में, विश्व के सबसे विशाल पेशेवर समाजशास्त्रियों का संगठन, अमेरिकी सामाजिक संगठन की स्थापना हुई और 1909 में फर्डिनेंड टोनीज़, जॉर्ज सिमेल और मैक्स वेबर सहित अन्य लोगों द्वारा Deutsche Gesellschaft für Soziologie (समाजशास्त्र के लिए जर्मन समिति) की स्थापना हुई |


प्रत्यक्षवाद और गैर-प्रत्यक्षवाद

आरंभिक सिद्धांतकारों का समाजशास्त्र की ओर क्रमबद्ध दृष्टिकोण, इस विषय के साथ प्रकृति विज्ञान के समान ही व्यापक तौर पर व्यवहार करना था। किसी भी सामाजिक दावे या निष्कर्ष को एक निर्विवाद आधार प्रदान करने हेतु और अपेक्षाकृत कम अनुभवजन्य क्षेत्रों से जैसे दर्शन से समाजशास्त्र को पृथक करने के लिए अनुभववाद और वैज्ञानिक विधि को महत्व देने की तलाश की गई। प्रत्यक्षवाद कहा जाने वाला यह दृष्टिकोण इस धारणा पर आधारित है कि केवल प्रामाणिक ज्ञान ही वैज्ञानिक ज्ञान है और यह कि इस तरह का ज्ञान केवल कठोर वैज्ञानिक और मात्रात्मक पद्धतियों के माध्यम से, सिद्धांतों की सकारात्मक पुष्टि से आ सकता है। एमिल दुर्खीम सैद्धांतिक रूप से आधारित अनुभवजन्य अनुसंधान के एक बड़े समर्थक थे, जो संरचनात्मक नियमों को दर्शाने के लिए "सामाजिक तथ्यों" के बीच संबंधो को तलाश रहे थे। उनकी स्थिति "एनोमी" को खारिज करने और सामाजिक सुधार के लिए सामाजिक निष्कर्षों में उनकी रूचि से अनुप्राणित होती थी। आज, दुर्खीम का विद्वता भरा प्रत्यक्षवाद का विवरण, अतिशयोक्ति और अति सरलीकरण के प्रति असुरक्षित हो सकता है: कॉम्ट ही एकमात्र ऐसा प्रमुख सामाजिक विचारक था जिसने दावा किया कि सामाजिक विभाग भी कुलीन विज्ञान के समान वैज्ञानिक विश्लेषण के अन्तर्गत आ सकता है, जबकि दुर्खीम ने अधिक विस्तार से मौलिक ज्ञानशास्त्रीय सीमाओं को स्वीकृति दी।


कार्ल मार्क्स

प्रत्यक्षवाद के विरोध में प्रतिक्रियाएं तब शुरू हुईं जब जर्मन दार्शनिक जॉर्ज फ्रेडरिक विल्हेम हेगेल ने दोनों अनुभववाद के खिलाफ आवाज उठाई, जिसे उसने गैर-विवेचनात्मक और नियतिवाद के रूप में खारिज कर दिया और जिसे उसने अति यंत्रवत के रूप में देखा. कार्ल मार्क्स की पद्धति, न केवल हेगेल के प्रांतीय भाषावाद से ली गयी थी, बल्कि, भ्रमों को मिटाते हुए "तथ्यों" के अनुभवजन्य अधिग्रहण को पूर्ण करने की तलाश में, विवेचनात्मक विश्लेषण के पक्ष में प्रत्यक्षवाद का बहिष्कार भी है। उसका मानना रहा कि अनुमानों को सिर्फ लिखने की बजाय उनकी समीक्षा होनी चाहिए। इसके बावजूद मार्क्स ने ऐतिहासिक भौतिकवाद के आर्थिक नियतिवाद पर आधारित साइंस ऑफ़ सोसाइटी प्रकाशित करने का प्रयास किया। नागरिक रिकेर्ट और विल्हेम डिल्थे सहित अन्य दार्शनिकों ने तर्क दिया कि प्राकृतिक दुनिया, मानव समाज के उन विशिष्ट पहलुओं (अर्थ, संकेत और अन्य) के कारण सामाजिक संसारसामाजिक वास्तविकता से भिन्न है, जो मानव संस्कृति को अनुप्राणित करती है।

20वीं सदी के अंत में जर्मन समाजशास्त्रियों की पहली पीढ़ी ने औपचारिक तौर पर प्रक्रियात्मक गैर-प्रत्यक्षवाद को पेश किया, इस प्रस्ताव के साथ कि अनुसंधान को मानव संस्कृति के मानकों, मूल्यों, प्रतीकों और सामाजिक प्रक्रियाओं पर व्यक्तिपरक दृष्टिकोण से केन्द्रित होना चाहिए। मैक्स वेबर ने तर्क दिया कि समाजशास्त्र की व्याख्या हल्के तौर पर एक 'विज्ञान' के रूप में की जा सकती है, क्योंकि यह खास कर जटिल सामाजिक घटना के आदर्श वर्ग अथवा काल्पनिक सरलीकरण के बीच - कारण-संबंधों को पहचानने में सक्षम है। बहरहाल, प्राकृतिक वैज्ञानिकों द्वारा खोजे जाने वाले संबंधों के विपरीत एक गैर प्रत्यक्षवादी के रूप में, एक व्यक्ति संबंधों की तलाश करता है जो "अनैतिहासिक, अपरिवर्तनीय, अथवा सामान्य है". फर्डिनेंड टोनीज़ ने मानवीय संगठनों के दो सामान्य प्रकारों के रूप में गेमाइनशाफ्ट और गेसेल्शाफ्ट (साहित्य, समुदाय और समाज) को प्रस्तुत किया। टोंनीज़ ने अवधारणा और सामाजिक क्रिया की वास्तविकता के क्षेत्रों के बीच एक स्पष्ट रेखा खींची: पहले वाले के साथ हमें स्वतःसिद्ध और निगमनात्मक तरीके से व्यवहार करना चाहिए ('सैद्धान्तिक' समाजशास्त्र), जबकि दूसरे से प्रयोगसिद्ध और एक आगमनात्‍मक तरीके से ('व्यावहारिक' समाजशास्त्र).


वेबर और जॉर्ज सिमेल, दोनों, समाज विज्ञान के क्षेत्र में फस्टेहेन अभिगम (अथवा 'व्याख्यात्मक') के अगुआ रहे; एक व्यवस्थित प्रक्रिया, जिसमें एक बाहरी पर्यवेक्षक एक विशेष सांकृतिक समूह, अथवा स्वदेशी लोगो के साथ उनकी शर्तों पर और उनके अपने दृष्टिकोण के हिसाब से जुड़ने की कोशिश करता है। विशेष रूप से, सिमेल के कार्यों के माध्यम से, समाजशास्त्र ने प्रत्यक्ष डाटा संग्रह या भव्य, संरचनात्मक कानून की नियतिवाद प्रणाली से परे, प्रत्यक्ष स्वरूप प्राप्त किया। जीवन भर सामाजिक अकादमी से अपेक्षाकृत पृथक रहे, सिमेल ने कॉम्ट या दुर्खीम की अपेक्षा घटना-क्रिया-विज्ञान और अस्तित्ववादी लेखकों का स्मरण दिलाते हुए आधुनिकता का स्वभावगत विश्लेषण प्रस्तुत किया, जिन्होंने सामाजिक वैयक्तिकता के लिए संभावनाओं और स्वरूपों पर विशेष तौर पर ध्यान केन्द्रित किया। उसका समाजशास्त्र अनुभूति की सीमा के नियो-कांटीयन आलोचना में व्यस्त रहा, जिसमें पूछा जाता है 'समाज क्या है?'जो कांट के सवाल 'प्रकृति क्या है?', का सीधा संकेत है।



ज्ञान मीमांसा और प्रकृति दर्शनशास्त्र

विषय का किस हद तक विज्ञान के रूप में चित्रण किया जा सकता है यह बुनियादी प्रकृति दर्शनशास्त्र और ज्ञान मीमांसा के प्रश्नों के सन्दर्भ में एक प्रमुख मुद्दा रहा है। सिद्धांत और अनुसंधान के आचरण में किस प्रकार आत्मीयता, निष्पक्षता, अंतर-आत्मीयता और व्यावहारिकता को एकीकृत करें और महत्व दें, इस बात पर विवाद उठते रहते हैं। हालांकि अनिवार्य रूप से 19वीं सदी के बाद से सभी प्रमुख सिद्धांतकारों ने स्वीकार किया है कि समाजशास्त्र, शब्द के पारंपरिक अर्थ में एक विज्ञान नहीं है, करणीय संबंधों को मजबूत करने की क्षमता ही विज्ञान परा-सिद्धांत में किये गए सामान मौलिक दार्शनिक विचार विमर्श का आह्वान करती है। कभी-कभी नए अनुभववाद की एक नस्ल के रूप में प्रत्यक्षवाद का हास्य चित्रण हुआ है, इस शब्द का कॉम्ते के समय से वियना सर्कल और उससे आगे के तार्किक वस्तुनिष्ठवाद के लिए अनुप्रयोगों का एक समृद्ध इतिहास है। एक ही तरीके से, प्रत्यक्षवाद कार्ल पॉपर द्वारा प्रस्तुत महत्वपूर्ण बुद्धिवादी गैर-न्यायवाद के सामने आया है, जो स्वयं थॉमस कुह्न के ज्ञान मीमांसा के प्रतिमान विचलन की अवधारणा के ज़रिए विवादित है। मध्य 20वीं शताब्दी के भाषाई और सांस्कृतिक बदलावों ने समाजशास्त्र में तेजी से अमूर्त दार्शनिक और व्याख्यात्मक सामग्री में वृद्धि और साथ ही तथाकथित ज्ञान के सामाजिक अधिग्रहण पर "उत्तरआधुनिक" दृष्टिकोण को अंकित करता है। सामाजिक विज्ञान के दर्शन पर साहित्य के सिद्धांत में उल्लेखनीय आलोचना पीटर विंच के द आइडिया ऑफ़ सोशल साइन्स एंड इट्स रिलेशन टू फ़िलासफ़ी (1958) में पाया जाता है। हाल के वर्षों में विट्टजेनस्टीन और रिचर्ड रोर्टी जैसी हस्तियों के साथ अक्सर समाजशास्त्री भिड़ गए हैं, जैसे कि सामाजिक दर्शन अक्सर सामाजिक सिद्धांत का खंडन करता है।



एंथनी गिडेंस

संरचना एवं साधन सामाजिक सिद्धांत में एक स्थायी बहस का मुद्दा है: "क्या सामाजिक संरचनाएं अथवा मानव साधन किसी व्यक्ति के व्यवहार का निर्धारण करता है?" इस संदर्भ में 'साधन', व्यक्तियों के स्वतंत्र रूप से कार्य करने और मुक्त चुनाव करने की क्षमता इंगित करता है, जबकि 'संरचना' व्यक्तियों की पसंद और कार्यों को सीमित अथवा प्रभावित करने वाले कारकों को निर्दिष्ट करती है (जैसे सामाजिक वर्ग, धर्म, लिंग, जातीयता इत्यादि). संरचना अथवा साधन की प्रधानता पर चर्चा, सामाजिक सत्ता-मीमांसा के मूल मर्म से संबंधित हैं ("सामाजिक दुनिया किससे बनी है?", "सामाजिक दुनिया में कारक क्या है और प्रभाव क्या है?"). उत्तर आधुनिक कालीन आलोचकों का सामाजिक विज्ञान की व्यापक परियोजना के साथ मेल-मिलाप का एक प्रयास, खास कर ब्रिटेन में, विवेचनात्मक यथार्थवाद का विकास रहा है। राय भास्कर जैसे विवेचनात्मक यथार्थवादियों के लिए, पारंपरिक प्रत्यक्षवाद, विज्ञान को यानि कि खुद संरचना और साधन को ही संभव करने वाले, सत्तामूलक हालातों के समाधान में नाकामी की वजह से 'ज्ञान तर्कदोष' करता है।
अत्यधिक संरचनात्मक या साधनपरक विचार के प्रति अविश्वास का एक और सामान्य परिणाम बहुआयामी सिद्धांत, विशेष रूप से टैलकॉट पार्सन्स का क्रिया सिद्धांत और एंथोनी गिड्डेन्स का संरचनात्मकता का सिद्धांत का विकास रहा है। अन्य साकल्यवादी सिद्धांतों में शामिल हैं, पियरे बौर्डियो की गठन की अवधारणा और अल्फ्रेड शुट्ज़ के काम में भी जीवन-प्रपंच का दृश्यप्रपंचवाद का विचार.

सामाजिक प्रत्यक्षवाद के परा-सैद्धांतिक आलोचनाओं के बावजूद, सांख्यिकीय मात्रात्मक तरीके बहुत ही ज़्यादा व्यवहार में रहते हैं। माइकल बुरावॉय ने सार्वजनिक समाजशास्त्र की तुलना, कठोर आचार-व्यवहार पर जोर देते हुए, शैक्षणिक या व्यावसायिक समाजशास्त्र के साथ की है, जो व्यापक रूप से अन्य सामाजिक/राजनैतिक वैज्ञानिकों और दार्शनिकों के बीच संलाप से संबंध रखता है।


समाजशास्त्र का कार्य-क्षेत्र और विषय


सांस्कृतिक समाजशास्त्र में शब्दों, कलाकृतियों और प्रतीको का विवेचनात्मक विश्लेषण शामिल है, जो सामाजिक जीवन के रूपों के साथ अन्योन्य क्रिया करता है, चाहे उप संस्कृति के अंतर्गत हो अथवा बड़े पैमाने पर समाजों के साथ.सिमेल के लिए, संस्कृति का तात्पर्य है "बाह्य साधनों के माध्यम से व्यक्तियों का संवर्धन करना, जो इतिहास के क्रम में वस्तुनिष्ठ बनाए गए हैं। थियोडोर एडोर्नो और वाल्टर बेंजामिन जैसे फ्रैंकफर्ट स्कूल के सिद्धांतकारों के लिए स्वयं संस्कृति, एक ऐतिहासिक भौतिकतावादीविश्लेषण का प्रचलित विषय था। सांस्कृतिक शिक्षा के शिक्षण में सामाजिक जांच-पड़ताल के एक सामान्य विषय के रूप में, 1964 में इंग्लैंड के बर्मिन्घम विश्वविद्यालय में स्थापित एक अनुसंधान केंद्र, समकालीन सांस्कृतिक अध्ययन केंद्र(CCCS) में शुरू हुआ। रिचर्ड होगार्ट, स्टुअर्ट हॉल और रेमंड विलियम्स जैसे बर्मिंघम स्कूल के विद्वानों ने विगत नव-मार्क्सवादी सिद्धांत में परिलक्षित 'उत्पादक' और उपभोक्ताओं' के बीच निर्भीक विभाजन पर प्रश्न करते हुए, सांस्कृतिक ग्रंथों और जनोत्पादित उत्पादों का किस प्रकार इस्तेमाल होता है, इसकी पारस्परिकता पर जोर दिया। सांस्कृतिक शिक्षा, अपनी विषय-वस्तु को सांस्कृतिक प्रथाओं और सत्ता के साथ उनके संबंधों के संदर्भ में जांच करती है। उदाहरण के लिए, उप-संस्कृति का एक अध्ययन (जैसे लन्दन के कामगार वर्ग के गोरे युवा), युवाओं की सामाजिक प्रथाओं पर विचार करेगा, क्योंकि वे शासक वर्ग से संबंधित हैं।


 अपराध और विचलन

'विचलन' क्रिया या व्यवहार का वर्णन करती है, जो सांस्कृतिक आदर्शों सहित औपचारिक रूप से लागू-नियमों (उदा.,जुर्म) तथा सामाजिक मानदंडों का अनौपचारिक उल्लंघन करती है। समाजशास्त्रियों को यह अध्ययन करने की ढील दी गई है कि कैसे ये मानदंड निर्मित हुए; कैसे वे समय के साथ बदलते हैं; और कैसे वे लागू होते हैं। विचलन के समाजशास्त्र में अनेक प्रमेय शामिल हैं, जो सामाजिक व्यवहार के उचित रूप से समझने में मदद देने के लिए, सामाजिक विचलन के अंतर्गत निहित प्रवृत्तियों और स्वरूप को सटीक तौर पर वर्णित करना चाहते हैं। विपथगामी व्यवहार को वर्णित करने वाले तीन स्पष्ट सामाजिक श्रेणियां हैं: संरचनात्मक क्रियावाद; प्रतीकात्मक अन्योन्यक्रियावाद; और विरोधी सिद्धांत


 ऑर्थिक समाजशास्त्र, आर्थिक दृश्य प्रपंच का समाजशास्त्रीय विश्लेषण है; समाज में आर्थिक संरचनाओं तथा संस्थाओं की भूमिका, तथा आर्थिक संरचनाओं और संस्थाओं के स्वरूप पर समाज का प्रभाव.पूंजीवाद और आधुनिकता के बीच संबंध एक प्रमुख मुद्दा है। मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद ने यह दर्शाने की कोशिश की कि किस प्रकार आर्थिक बलों का समाज के ढांचे पर मौलिक प्रभाव है। मैक्स वेबर ने भी, हालांकि कुछ कम निर्धारक तौर पर, सामाजिक समझ के लिए आर्थिक प्रक्रियाओँ को महत्वपूर्ण माना.जॉर्ज सिमेल, विशेष रूप से अपने फ़िलासफ़ी ऑफ़ मनी में, आर्थिक समाजशास्त्र के प्रारंभिक विकास में महत्वपूर्ण रहे, जिस प्रकार एमिले दर्खिम अपनी द डिवीज़न ऑफ़ लेबर इन सोसाइटी जैसी रचनाओं से.आर्थिक समाजशास्त्र अक्सर सामाजिक-आर्थिकी का पर्याय होता है। तथापि, कई मामलों में, सामाजिक-अर्थशास्त्री, विशिष्ट आर्थिक परिवर्तनों के सामाजिक प्रभाव पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, जैसे कि फैक्ट्री का बंद होना, बाज़ार में हेराफेरी, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संधियों पर हस्ताक्षर, नए प्राकृतिक गैस विनियमन इत्यादि.

पर्यावरण

पर्यावरण संबंधी समाजशास्त्र, सामाजिक-पर्यावरणीय पारस्परिक संबंधों का सामाजिक अध्ययन है, जो पर्यावरण संबंधी समस्याओं के सामाजिक कारकों, उन समस्याओं का समाज पर प्रभाव, तथा उनके समाधान के प्रयास पर ज़ोर देता है। इसके अलावा, सामाजिक प्रक्रियाओं पर यथेष्ट ध्यान दिया जाता है, जिनकी वजह से कतिपय परिवेशगत परिस्थितियां, सामाजिक तौर पर परिभाषित समस्याएं बन जाती हैं।


शिक्षा

शिक्षा का समाजशास्त्र, शिक्षण संस्थानों द्वारा सामाजिक ढांचों, अनुभवों और अन्य परिणामों को निर्धारित करने के तौर-तरीक़ों का अध्ययन है। यह विशेष रूप से उच्च, अग्रणी, वयस्क और सतत शिक्षा सहित आधुनिक औद्योगिक समाज की स्कूली शिक्षा प्रणाली से संबंधित है।


परिवार और बचपन

परिवार का समाजशास्त्र, विभिन्न सैद्धांतिक दृष्टिकोणों के ज़रिए परिवार एकक, विशेष रूप से मूल परिवार और उसकी अपनी अलग लैंगिक भूमिकाओं के आधुनिक ऐतिहासिक उत्थान की जांच करता है। परिवार, प्रारंभिक और पूर्व-विश्वविद्यालयीन शैक्षिक पाठ्यक्रमों का एक लोकप्रिय विषय है।


लिंग और लिंग-भेद

लिंग और लिंग-भेद का समाजशास्त्रीय विश्लेषण, छोटे पैमाने पर पारस्परिक प्रतिक्रिया औरर व्यापक सामाजिक संरचना, दोनों स्तरों पर, विशिष्टतः सामर्थ्य और असमानता के संदर्भ में इन श्रेणियों का अवलोकन और आलोचना करता है। इस प्रकार के कार्य का ऐतिहासिक मर्म, नारीवाद सिद्धांत और पितृसत्ता के मामले से जुड़ा है: जो अधिकांश समाजों में यथाक्रम महिलाओं के दमन को स्पष्ट करता है। यद्यपि नारीवादी विचार को तीन 'लहरों', यथा 19वीं सदी के उत्तरार्ध में प्रारंभिक लोकतांत्रिक मताधिकार आंदोलन, 1960 की नारीवाद की दूसरी लहर और जटिल शैक्षणिक सिद्धांत का विकास, तथा वर्तमान 'तीसरी लहर', जो सेक्स और लिंग के विषय में सभी सामान्यीकरणों से दूर होती प्रतीत होती है, एवं उत्तरआधुनिकता, गैर-मानवतावादी, पश्चमानवतावादी, समलैंगिक सिद्धांत से नज़दीक से जुड़ी हुई है। मार्क्सवादी नारीवाद और स्याह नारीवाद भी महत्वपूर्ण स्वरूप हैं। लिंग और लिंग-भेद के अध्ययन, समाजशास्त्र के अंतर्गत होने की बजाय, उसके साथ-साथ विकसित हुए हैं। हालांकि अधिकांश विश्वविद्यालयों के पास इस क्षेत्र में अध्ययन के लिए पृथक प्रक्रिया नहीं है, तथापि इसे सामान्य तौर पर सामाजिक विभागों में पढ़ाया जाता है।


इंटरनेट

इंटरनेट समाजशास्त्रियों के लिए विभिन्न तरीकों से रुचिकर है। इंटरनेट अनुसंधान के लिए एक उपकरण (उदाहरणार्थ, ऑनलाइन प्रश्नावली का संचालन) और चर्चा-मंच तथा एक शोध विषय के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। व्यापक अर्थों में इंटरनेट के समाजशास्त्र में ऑनलाइन समुदायों (उदाहरणार्थ, समाचार समूह, सामाजिक नेटवर्किंग साइट) और आभासी दुनिया का विश्लेषण भी शामिल है। संगठनात्मक परिवर्तन इंटरनेट जैसी नई मीडिया से उत्प्रेरित होती हैं और तद्द्वारा विशाल स्तर पर सामाजिक बदलाव को प्रभावित करते हैं। यह एक औद्योगिक से एक सूचनात्मक समाज में बदलाव के लिए रूपरेखा तैयार करता है (देखें मैनुअल कैस्टेल्स तथा विशेष रूप से उनके "द इंटरनेट गैलेक्सी" में सदी के काया-पलट का वर्णन).ऑनलाइन समुदायों का सांख्यिकीय तौर पर अध्ययन नेटवर्क विश्लेषण के माध्यम से किया जा सकता है और साथ ही, आभासी मानव-जाति-वर्णन के माध्यम से उसकी गुणात्मक व्याख्या की जा सकती है। सामाजिक बदलाव का अध्ययन, सांख्यिकीय जनसांख्यिकी या ऑनलाइन मीडिया अध्ययनों में बदलते संदेशों और प्रतीकों की व्याख्या के माध्यम से किया जा सकता है।


 ज्ञान

ज्ञान का समाजशास्त्र, मानवीय विचारों और सामाजिक संदर्भ के बीच संबंधों का, जिसमें उसका उदय हुआ है और समाजों में प्रचलित विचारों के प्रभाव का अध्ययन करता है। यह शब्द पहली बार 1920 के दशक में व्यापक रूप से प्रयुक्त हुआ, जब कई जर्मन-भाषी सिद्धांतकारों ने बड़े पैमाने पर इस बारे में लिखा, इनमें सबसे उल्लेखनीय मैक्स शेलर और कार्ल मैन्हेम हैं। 20वीं सदी के मध्य के वर्षों में प्रकार्यवाद के प्रभुत्व के साथ, ज्ञान का समाजशास्त्र, समाजशास्त्रीय विचारों की मुख्यधारा की परिधि पर ही बना रहा। 1960 के दशक में इसे व्यापक रूप से पुनः परिकल्पित किया गया तथा पीटर एल.बर्गर एवं थामस लकमैन द्वारा द सोशल कंस्ट्रक्शन ऑफ़ रियाल्टी (1966) में विशेष तौर पर रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर और भी निकट से लागू किया गया, तथा और यह अभी भी मानव समाज से गुणात्मक समझ के साथ निपटने वाले तरीकों के केंद्र में है (सामाजिक तौर पर निर्मित यथार्थ से तुलना करें).मिशेल फोकाल्ट के "पुरातात्विक" और "वंशावली" अध्ययन काफी समकालीन प्रभाव के हैं।


क़ानून और दंड

क़ानून का समाजशास्त्र, समाजशास्त्र की उप-शाखा और क़ानूनी शिक्षा के क्षेत्रांतर्गत अभिगम, दोनों को संदर्भित करता है। क़ानून का समाजशास्त्रीय अध्ययन विविधतापूर्ण है, जो समाज के अन्य पहलुओं जैसे कि क़ानूनी संस्थाएं, सिद्धांत और अन्य सामाजिक घटनाएं और इनके विपरीत प्रभावों का क़ानून के साथ पारस्परिक संपर्क का परीक्षण करता है। उसके अनुसंधान के कतिपय क्षेत्रों में क़ानूनी संस्थाओं के सामाजिक विकास, क़ानूनी मुद्दों के सामाजिक निर्माण और सामाजिक परिवर्तन के साथ क़ानून से संबंध शामिल हैं। क़ानून का समाजशास्त्र न्यायशास्त्र, क़ानून का आर्थिक विश्लेषण, अपराध विज्ञान जैसे अधिक विशिष्ट विषय क्षेत्रों के आर-पार जाता है। क़ानून औपचारिक है और इसलिए 'मानक' के समान नहीं है। इसके विपरीत, विचलन का समाजशास्त्र, सामान्य से औपचारिक और अनौपचारिक दोनों विचलनों, यथा अपराध और विचलन के सांस्कृतिक रूपों, दोनों का परीक्षण करता है।


मीडिया

सांस्कृतिक अध्ययन के समान ही, मीडिया अध्ययन एक अलग विषय है, जो समाजशास्त्र और अन्य सामाजिक-विज्ञान तथा मानविकी, विशेष रूप से साहित्यिक आलोचना और विवेचनात्मक सिद्धांत का सम्मिलन चाहता है। हालांकि उत्पादन प्रक्रिया या सुरूचिपूर्ण स्वरूपों की आलोचना की छूट समाजशास्त्रियों को नहीं है, अर्थात् सामाजिक घटकों का विश्लेषण, जैसे कि वैचारिक प्रभाव और दर्शकों की प्रतिक्रिया, सामाजिक सिद्धांत और पद्धति से ही पनपे हैं। इस प्रकार 'मीडिया का समाजशास्त्र' स्वतः एक उप-विषय नहीं है, बल्कि मीडिया एक सामान्य और अक्सर अति-आवश्यक विषय है।


सैन्य

सैन्य समाजशास्त्र का लक्ष्य, सैन्य का एक संगठन के बजाय सामाजिक समूह के रूप में व्यवस्थित अध्ययन करना है। यह एक बहुत ही विशिष्ट उप-क्षेत्र है, जो सैनिकों से संबंधित मामलों की एक अलग समूह के रूप में, आजीविका और युद्ध में जीवित रहने से जुड़े साझा हितों पर आधारित, बाध्यकारी सामूहिक कार्यों की, नागरिक समाज के अंतर्गत अधिक निश्चित और परिमित उद्देश्यों और मूल्यों सहित जांच करता है। सैन्य समाजशास्त्र, नागरिक-सैन्य संबंधों और अन्य समूहों या सरकारी एजेंसियों के बीच पारस्परिक क्रियाओं से भी संबंधित है।
  1. सैन्य द्वारा धारित प्रबल धारणाएं,
  2. सेना के सदस्यों की लड़ने की इच्छा में परिवर्तन,
  3. सैन्य एकता,
  4. सैन्य वृत्ति-दक्षता,
  5. महिलाओं का वर्धित उपयोग,
  6. सैन्य औद्योगिक-शैक्षणिक परिसर,
  7. सैन्य की अनुसंधान निर्भरता और
  8. सेना की संस्थागत और संगठनात्मक संरचना.


राजनीतिक समाजशास्त्र

अग्रणी जर्मन समाजशास्त्री और महत्वपूर्ण विचारक, युर्गेन हैबरमास
राजनीतिक समाजशास्त्र, सत्ता और व्यक्तित्व के प्रतिच्छेदन, सामाजिक संरचना और राजनीति का अध्ययन है। यह अंतःविषय है, जहां राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र एक दूसरे के विपरीत रहते हैं। यहां विषय समाजों के राजनीतिक माहौल को समझने के लिए, सरकारी और आर्थिक संगठनों की प्रणाली के विश्लेषण हेतु, तुलनात्मक इतिहास का उपयोग करता है। इतिहास और सामाजिक आंकड़ों की तुलना और विश्लेषण के बाद, राजनीतिक रुझान और स्वरूप उभर कर सामने आते हैं। राजनीतिक समाजशास्त्र के संस्थापक मैक्स वेबर, मोइसे ऑस्ट्रोगोर्स्की और रॉबर्ट मिशेल्स थे।

समकालीन राजनीतिक समाजशास्त्र के अनुसंधान का ध्यान चार मुख्य क्षेत्रों में केंद्रित है:

  • आधुनिक राष्ट्र का सामाजिक-राजनैतिक गठन.
  • "किसका शासन है?" समूहों के बीच सामाजिक असमानता (वर्ग, जाति, लिंग, आदि) कैसे राजनीति को प्रभावित करती है।
  • राजनीतिक सत्ता के औपचारिक संस्थानों के बाहर किस प्रकार सार्वजनिक हस्तियां, सामाजिक आंदोलन और प्रवृतियां राजनीति को प्रभावित करती हैं।
  • सामाजिक समूहों (उदाहरणार्थ, परिवार, कार्यस्थल, नौकरशाही, मीडिया, आदि) के भीतर और परस्पर सत्ता संबंध


वर्ग एवं जातीय संबंध

वर्ग एवं जातीय संबंध समाजशास्त्र के क्षेत्र हैं, जो समाज के सभी स्तरों पर मानव जाति के बीच सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक संबंधो का अध्ययन करते हैं। यह जाति और नस्लवाद तथा विभिन्न समूहों के सदस्यों के बीच जटिल राजनीतिक पारस्परिक क्रियाओं के अध्ययन को आवृत करता है। राजनैतिक नीति के स्तर पर, इस मुद्दे की आम तौर पर चर्चा या तो समीकरणवाद या बहुसंस्कृतिवाद के संदर्भ में की जाती है। नस्लवाद-विरोधी और उत्तर-औपनिवेशिकता भी अभिन्न अवधारणाएं हैं। प्रमुख सिद्धांतकारों में पॉल गिलरॉय, स्टुअर्ट हॉल, जॉन रेक्स और तारिक मदूद शामिल है।


शोध विधियां

सामाजिक शोध विधियों को दो व्यापक श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:

  • मात्रात्मक डिजाइन, कई मामलों के मध्य छोटी मात्रा के लक्षणों के बीच संबंधो पर प्रकाश डालते हुए, सामाजिक घटना की मात्रा निर्धारित करने और संख्यात्मक आंकड़ों के विश्लेषण के प्रयास से सम्बद्ध है।
  • गुणात्मक डिजाइन, मात्रात्मकता की बजाय व्यक्तिगत अनुभवों और विश्लेषण पर जोर देता है और सामाजिक घटना के प्रयोजन को समझने से जुड़ा हुआ है और अपेक्षाकृत चंद मामलों के मध्य कई लक्षणों के बीच संबंधों पर केन्द्रित है।

जबकि कई पहलुओं में काफी हद तक भिन्न होते हुए, गुणात्मक और मात्रात्मक, दोनों दृष्टिकोणों में सिद्धांत और आंकडों के बीच व्यवस्थित अन्योन्य-क्रिया शामिल है। विधि का चुनाव काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि शोधकर्ता क्या खोज रहा है। उदाहरण के लिए, एक पूरी आबादी के सांख्यिकीय सामान्यीकरण का खाका खींचने से जुड़ा शोधकर्ता, एक प्रतिनिधि नमूना जनसंख्या को एक सर्वेक्षण प्रश्नावली वितरित कर सकता है। इसके विपरीत, एक शोधकर्ता, जो किसी व्यक्ति के सामाजिक कार्यों के पूर्ण प्रसंग को समझना चाहता है, नृवंशविज्ञान आधारित प्रतिभागी अवलोकन या मुक्त साक्षात्कार चुन सकता है। आम तौर पर अध्ययन एक 'बहु-रणनीति' डिजाइन के हिस्से के रूप में मात्रात्मक और गुणात्मक विधियों को मिला देते हैं। उदाहरण के लिए, एक सांख्यिकीय स्वरूप या एक लक्षित नमूना हासिल करने के लिए मात्रात्मक अध्ययन किया जा सकता है और फिर एक साधन की अपनी प्रतिक्रिया को निर्धारित करने के लिए गुणात्मक साक्षात्कार के साथ संयुक्त किया जा सकता है। जैसा कि अधिकांश विषयों के मामलों में है, अक्सर समाजशास्त्री विशेष अनुसंधान तकनीकों के समर्थन शिविरों में विभाजित किये गए हैं। ये विवाद सामाजिक सिद्धांत के ऐतिहासिक कोर से संबंधित हैं (प्रत्यक्षवाद और गैर-प्रत्यक्षवाद, तथा संरचना और साधन).



पद्धतियों के प्रकार

शोध विधियों की निम्नलिखित सूची न तो अनन्य है और ना ही विस्तृत है :

  • अभिलेखी अनुसंधान: कभी-कभी "ऐतिहासिक विधि" के रूप में संबोधित.यह शोध जानकारी के लिए विभिन्न ऐतिहासिक अभिलेखों का उपयोग करता है जैसे आत्मकथाएं, संस्मरण और समाचार विज्ञप्ति.
  • साग्री विश्लेषण: साक्षात्कार और प्रश्नावली की सामग्री का विश्लेषण, व्यवस्थित अभिगम के उपयोग से किया जाता है। इस प्रकार की अनुसंधान प्रणाली का एक उदाहरण "प्रतिपादित सिद्धांत" के रूप में जाना जाता है। पुस्तकों और पत्र-पत्रिकाओं का भी विश्लेषण यह जानने के लिए किया जाता है कि लोग कैसे संवाद करते हैं और वे संदेश, जिनके बारे में लोग बातें करते हैं या लिखते हैं।
  • प्रयोगात्मक अनुसंधान: शोधकर्ता एक एकल सामाजिक प्रक्रिया या सामाजिक घटना को पृथक करता है और डाटा का उपयोग सामाजिक सिद्धांत की या तो पुष्टि अथवा निर्माण के लिए करता है। प्रतिभागियों ("विषय" के रूप में भी उद्धृत) को विभिन्न स्थितियों या "उपचार" के लिए बेतरतीब ढंग से नियत किया जाता है और फिर समूहों के बीच विश्लेषण किया जाता है। यादृच्छिकता शोधकर्ता को यह सुनिश्चित कराती है कि यह व्यवहार समूह की भिन्नताओं पर प्रभाव डालता है न कि अन्य बाहरी कारकों पर.
  • सर्वेक्षण शोध: शोधकर्ता साक्षात्कार, प्रश्नावली, या एक विशेष आबादी का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुने गए लोगों के एक समूह से (यादृच्छिक चयन सहित) समान पुनर्निवेश प्राप्त करता है। एक साक्षात्कार या प्रश्नावली से प्राप्त सर्वेक्षण वस्तुएं, खुले-अंत वाली अथवा बंद-अंत वाली हो सकती हैं।
  • जीवन इतिहास: यह व्यक्तिगत जीवन प्रक्षेप पथ का अध्ययन है। साक्षात्कार की एक श्रृंखला के माध्यम से, शोधकर्ता उनके जीवन के निर्णायक पलों या विभिन्न प्रभावों को परख सकते हैं।
  • अनुदैर्ध्य अध्ययन: यह एक विशिष्ट व्यक्ति या समूह का एक लंबी अवधि में किया गया व्यापक विश्लेषण है।
  • अवलोकन: इन्द्रियजन्य डाटा का उपयोग करते हुए, कोई व्यक्ति सामाजिक घटना या व्यवहार के बारे में जानकारी रिकॉर्ड करता है। अवलोकन तकनीक या तो प्रतिभागी अवलोकन अथवा गैर-प्रतिभागी अवलोकन हो सकती है। प्रतिभागी अवलोकन में, शोधकर्ता क्षेत्र में जाता है (जैसे एक समुदाय या काम की जगह पर) और उसे गहराई से समझने हेतु एक लम्बी अवधि के लिए क्षेत्र की गतिविधियों में भागीदारी करता है। इन तकनीकों के माध्यम से प्राप्त डाटा का मात्रात्मक या गुणात्मक तरीकों से विश्लेषण किया जा सकता है।



व्यावहारिक अनुप्रयोग

सामाजिक अनुसंधान, अर्थशास्त्रियों,राजनेता|शिक्षाविदों, योजनाकारों, क़ानून निर्माताओं, प्रशासकों, विकासकों, धनाढ्य व्यवसायियों, प्रबंधकों, गैर-सरकारी संगठनों और लाभ निरपेक्ष संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, सार्वजनिक नीतियों के निर्माण तथा सामान्य रूप से सामाजिक मुद्दों को हल करने में रुचि रखने वाले लोगों को जानकारी देता है।

माइकल ब्रावो ने सार्वजनिक समाजशास्त्र, व्यावहारिक अनुप्रयोगों से स्पष्ट रूप से जुड़े पहलू और अकादमिक समाजशास्त्र, जो पेशेवर और छात्रों के बीच सैद्धांतिक बहस के लिए मोटे तौर पर संबंधित है, के बीच अंतर को दर्शाया है




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