Sunday, March 31, 2019

थैलेसीमिया [Thalassemia ]

थैलेसीमिया [Thalassemia ]

थेलेसीमिया (Talassemia) बच्चों को माता-पिता से अनुवांशिक तौर पर मिलने वाला रक्त-रोग है। इस रोग के होने पर शरीर की हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया में गड़बड़ी हो जाती है जिसके कारण रक्तक्षीणता के लक्षण प्रकट होते हैं। इसकी पहचान तीन माह की आयु के बाद ही होती है। इसमें रोगी बच्चे के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है जिसके कारण उसे बार-बार बाहरी खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है।

थैलेसीमिया का परिचय

थैलासीमिया दो प्रकार का होता है। यदि पैदा होने वाले बच्चे के माता-पिता दोनों के जींस में माइनर थेलेसीमिया होता है, तो बच्चे में मेजर थेलेसीमिया हो सकता है, जो काफी घातक हो सकता है। किन्तु पालकों में से एक ही में माइनर थेलेसीमिया होने पर किसी बच्चे को खतरा नहीं होता। यदि माता-पिता दोनों को माइनर रोग है तब भी बच्चे को यह रोग होने के २५ प्रतिशत संभावना है।। अतः यह अत्यावश्यक है कि विवाह से पहले महिला-पुरुष दोनों अपनी जाँच करा लें।विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत देश में हर वर्ष सात से दस हजार थैलीसीमिया पीडि़त बच्चों का जन्म होता है। केवल दिल्ली व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ही यह संख्या करीब १५०० है। भारत की कुल जनसंख्या का ३.४ प्रतिशत भाग थैलेसीमिया ग्रस्त है। इंग्लैंड में केवल ३६० बच्चे इस रोग के शिकार हैं, जबकि पाकिस्तान में १ लाख और भारत में करीब 10 लाख बच्चे इस रोग से ग्रसित हैं।

इस रोग का फिलहाल कोई ईलाज नहीं है। हीमोग्लोबीन दो तरह के प्रोटीन से बनता है अल्फा ग्लोबिन और बीटा ग्लोबिन। थैलीसीमिया इन प्रोटीन में ग्लोबिन निर्माण की प्रक्रिया में खराबी होने से होता है। जिसके कारण लाल रक्त कोशिकाएं तेजी से नष्ट होती है। रक्त की भारी कमी होने के कारण रोगी के शरीर में बार-बार रक्त चढ़ाना पड़ता है। रक्त की कमी से हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता है। एवं बार-बार रक्त चढ़ाने के कारण रोगी के शरीर में अतिरिक्त लौह तत्व जमा होने लगता है, जो हृदय, यकृत और फेफड़ों में पहुँचकर प्राणघातक होता है।

मुख्यतः यह रोग दो वर्गों में बांटा गया है:

1. मेजर थैलेसेमिया:

यह बीमारी उन बच्चों में होने की संभावना अधिक होती है, जिनके माता-पिता दोनों के जींस में थैलीसीमिया होता है। जिसे थैलीसीमिया मेजर कहा जाता है।

2. माइनर थैलेसेमिया:

थैलीसीमिया माइनर उन बच्चों को होता है, जिन्हें प्रभावित जीन माता-पिता दोनों में से किसी एक से प्राप्त होता है। जहां तक बीमारी की जांच की बात है तो सूक्ष्मदर्शी यंत्र पर रक्त जांच के समय लाल रक्त कणों की संख्या में कमी और उनके आकार में बदलाव की जांच से इस बीमारी को पकड़ा जा सकता है।

पूर्ण रक्तकण गणना (कंपलीट ब्लड काउंट) यानि सीबीसी से रक्ताल्पता या एनीमिया का पता लगाया जाता है। एक अन्य परीक्षण जिसे हीमोग्लोबिन इलैक्ट्रोफोरेसिस कहा जाता है से असामान्य हीमोग्लोबिन का पता लगता है। इसके अलावा म्यूटेशन एनालिसिस टेस्ट (एमएटी) के द्वारा एल्फा थैलीसिमिया की जांच के बारे में जाना जा सकता है। मेरूरज्जा ट्रांसप्लांट से भी इस बीमारी के उपचार में मदद मिलती है।


थैलेसीमिया लक्षण

सूखता चेहरा, लगातार बीमार रहना, वजन ना ब़ढ़ना और इसी तरह के कई लक्षण बच्चों में थेलेसीमिया रोग होने पर दिखाई देते हैं।


बचाव एवं सावधानी

थेलेसीमिया पी‍डि़त के
थेलेसीमिया पी‍डि़त के इलाज में काफी बाहरी रक्त चढ़ाने और दवाइयों की आवश्यकता होती है। इस कारण सभी इसका इलाज नहीं करवा पाते, जिससे १२ से १५ वर्ष की आयु में बच्चों की मृत्य हो जाती है। सही इलाज करने पर २५ वर्ष व इससे अधिक जीने की आशा होती है। जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, रक्त की जरूरत भी बढ़ती जाती है।


  • विवाह से पहले महिला-पुरुष की रक्त की जाँच कराएँ।
  • गर्भावस्था के दौरान इसकी जाँच कराएँ
  • रोगी की हीमोग्लोबिन ११ या १२ बनाए रखने की कोशिश करें 
  • समय पर दवाइयाँ लें और इलाज पूरा लें।

  • विवाह पूर्व जांच को प्रेरित करने हेतु एक स्वास्थ्य कुण्डली का निर्माण किया गया है, जिसे विवाह पूर्व वर-वधु को अपनी जन्म कुण्डली के साथ साथ मिलवाना चाहिये। स्वास्थ्य कुंडली में कुछ जांच की जाती है, जिससे शादी के बंधन में बंधने वाले जोड़े यह जान सकें कि उनका स्वास्थ्य एक दूसरे के अनुकूल है या नहीं। स्वास्थ्य कुंडली के तहत सबसे पहली जांच थैलीसीमिया की होगी। एचआईवी, हेपाटाइटिस बी और सी। इसके अलावा उनके रक्त की तुलना भी की जाएगी और रक्त में RH फैक्टर की भी जांच की जाएगी।

इस प्रकार के रोगियों के लिए कितनी ही संस्थायें रक्त प्रबंध कराती हैं। इसके अलावा बहुत से रक्तदान आतुर सज्जन तत्पर रहते हैं।


शोध और विकास

थैलेसीमिया पर विश्व भर में शोध अनुसंधान  अन्वरत जारी हैं। इन प्रयासों से ही थैलीसीमिया पीड़ितों के लिए एक दवाई अविष्कृत हुई थी। इस दवाई से बच्चों को अब इंजेक्शन के दर्द को नहीं झेलना पड़ेगा। जल्दी ही भारतीय बाजार में ये दवा आने वाली है, जिसे खाने से ही शरीर में लौह मात्रा नियंत्रित हो जाएगी। असुरां नाम की यह दवा पश्चिमी देशों में एक्स जेड नाम से पहले से ही प्रयोग हो रही है। इससे इलाज का खर्च भी कम हो जाएगा, किंतु इसके दुष्प्रभावों (साइड एफ़ेक्ट्स) में इससे किडनी प्रभावित होने का एक परसेंट खतरा बना रहता है। दिल्ली के गंगाराम अस्पताल के थैलीसीमिया इकाई के अध्यक्ष डॉ॰ वीरेंद खन्ना के अनुसार भारत में अतिरिक्त लौह निकालने के लिए दो तरीके प्रचलन में हैं। पहले तरीके में डेसोरॉल (इंजेक्शन) के जरिए आठ से दस घण्टे तक लौह निकाला जाता है। यह प्रक्रिया बहुत महंगी और कष्टदायक होती है। इसमें प्रयोग होने वाले एक इंजेक्शन की कीमत १६४ रुपए होती है। इस प्रक्रिया में हर साल पचास हजार से डेढ़ लाख रुपए तक खर्च आता है। दूसरी प्रक्रिया में कैलफर नामक दवा (कैप्सूल) दी जाती है। यह दवा सस्ती तो है लेकिन इसका इस्तेमाल करने वाले ३० प्रतिशत रोगियों को जोड़ों में दर्द की समस्या हो जाती है। साथ ही इनमें से एक प्रतिशत बच्चे गंभीर बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। ऐसे में नई दवा असुरां काफ़ी लाभदायक होगी। यह दवा फलों के रस के साथ मिलाकर पिलाई जाती है और इसकी कीमत १०० रुपये प्रति डोज है।


मेरु रज्जू ट्रांस्प्लांट

थैलेसीमिया के लिये स्टेम सेल से उपचार की भी संभावनाएं हैं। इसके अलावा इस रोग के रोगियों के मेरु रज्जु (बोन मैरो) ट्रांस्प्लांट हेतु अब भारत में भी बोनमैरो डोनर रजिस्ट्री खुल गई है।[10] मैरो डोनर रजिस्ट्री इंडिया (एम.डी.आर.आई) में बोनमैरो दान करने वालों के बारे में सभी आवश्यक जानकारियां होगी जिससे देश के ही नहीं वरन विदेश से इलाज के लिए भारत आने वाले रोगियों का भी आसानी से उपचार हो सकेगा। यह केंद्र मुंबई में स्थापित किया जाएगा। ऐसे केंद्र वर्तमान में केवल अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशो में ही थे। ल्यूकेमिया और थैलीसीमिया के रोगी अब बोनमैरो या स्टेम सेल प्राप्त करने के लिए इस केंद्र से संपर्क कर मेरुरज्जु दान करने वालों के बारे में जानकारी के अलावा उनके रक्त तथा लार के नमूनों की जांच रिपोर्ट की जानकारी भी ले पाएंगे।


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Saturday, March 30, 2019

बहू  निशक्तता [Multiple Disabilities ]

बहू  निशक्तता

दो या दो से अधिक  प्रकार की दिव्यांगता का मिश्रण बहू-दिव्यांगता कहलाती है।


बहू निशक्तता के कारण

डाउन सिंड्रोम, घातक अल्कोहल सिंड्रोम और फर्जाइल एक्स सिंड्रोमये तीन सबसे आम जन्मजात कारण होते हैं। हालांकि, डॉक्टरों को कई अन्य कारण भी मिले हैं। सबसे आम हैं:


  • आनुवंशिक स्थितियां.- विकलांगता कभी कभी माता पिता से विरासत में मिले असामान्य जीन की वजह से, त्रुटिपूर्ण जीन गठबंधन या अन्य कारणों से भी होती है। सबसे अधिक प्रचलित आनुवंशिक स्थितियों में डाउन सिंड्रोम क्लिनफेल्टर्स सिंड्रोम,फर्जाइल एक्स सिंड्रोम, न्यूरोफाइब्रोमेटोटिस, जन्मजात हाइपोथायरायडिज्म, विलियम्स सिंड्रोम, फनिलकेटोन्यूरिया (पीकेयू) और प्रैडरर-विली सिंड्रोमशामिल हैं। अन्य आनुवंशिक स्थितियों में शामिल है: फेलेन मैकडर्मिड सिंड्रोम (22क्यू 13 डीईएल), मोवेट-विल्सन सिंड्रोम, आनुवांशिक सिलियोपैथी[2] और सिडेरियस टाइप एक्स से जुड़ी मानसिक विकलांगता (OMIM 300263), जो पीएचएफ8 जीन में परिवर्तन के कारण होती है।OMIM 300560[3][4] कुछ दुर्लभ मामलों में, एक्स और वाई गुणसूत्रों में असामान्यताएं विकलांगता का कारण बनती हैं। 48 XXXX और 49 XXXX, XXXXX सिंड्रोम पूरी दुनिया में छोटी संख्या में लड़कियों को प्रभावित करता है, जबकि लड़कों को 47 XYY,49 XXXXY या 49 XYYYY प्रभावित करता है।


  • गर्भावस्था के दौरान समस्याएं.- जब भ्रूण का विकास ठीक तरह से नहीं होता है तो मानसिक विकलांगता आ सकती है। उदाहरण के लिए, भ्रूण कोशिकाओं के बढ़ने के समय जिस तरीके से उनका विभाजन होता है, उसमें समस्या हो सकती है। जो औरत शराब पीती है (देखें घातक अल्कोहल सिंड्रोम) या गर्भावस्था के दौरान रूबेला (एक वायरल रोग, जिसमें चेचक जैसे दाने निकलते हैं) जैसे रोग से संक्रमित हो जाती है तो उसके बच्चे को मानसिक विकलांगता हो सकती है।

  • जन्म के समय समस्याएं.- प्रसव पीड़ा और जन्म के समय अगर बच्चे को लेकर समस्या हो, जैसे उसे पर्याप्त आक्सीजन नहीं मिले तो मस्तिष्क में खराबी के कारण उसमें  (बच्चा या बच्ची) विकास की खामी हो सकती है।

  • कुछ खास तरह के रोग या विषाक्तता.- अगर चिकित्सा देखरेख में देरी हुई या अपर्याप्त चिकित्सा हुई तो काली खांसी, खसरा और दिमागी बुखार के कारण दिमागी विकलांगता पैदा हो सकती है। सीसा और पारे जैसी विषाक्तता से ग्रसित होने से दिमाग की क्षमता कम हो सकती है।

  • आयोडीन की कमी,- जो दुनिया भर में लगभग 20 लाख लोगों को प्रभावित कर रहा है, विकासशील देशों में निवारणीय मानसिक विकलांगता का बड़ा कारण बना हुआ है, जहां आयोडीन की कमी एक महामारी बन चुकी है। आयोडीन की कमी भी गण्डमाला का कारण बनती है, जिसमें थाइरॉयड की ग्रंथि बढ़ जाती है। पूर्ण रूप में क्रटिनिज्म (थायरॉयड के कारण पैदा रोग) जिसे आयोडीन की ज्यादा कमी से पैदा हुई विकलांगता कहा जाता है, से ज्यादा आम है बुद्धि का थोड़ा नुकसान. दुनिया के कुछ क्षेत्र इसकी प्राकृतिक कमी और सरकारी निष्क्रियता के कारण गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं। भारत में सबसे अधिक से 500 मिलियन लोग आयोडीन की कमी, 54 लाख लोग गंडमाला और 20 लाख लोग थायरॉयड से संबंधित रोग से पीड़ित हैं। आयोडीन की कमी से जूझ रहे अन्य प्रभावित देशों में चीन और कजाखस्तान ने व्यापक रूप से आयोडीन से संबंधित कार्यक्रम चलाये, पर 2006 तक रूस में इस तरह का कोई कार्यक्रम नहीं चलाया गया।

  • दुनिया के अकालग्रस्त हिस्सों,- जैसे इथियोपिया में कुपोषण दिमाग के विकास में कमी का एक आम कारण है।
  • धनुषाकार पुलिका की अनुपस्थिति.
  • जन्म के बाद के कारण - चोट लगना, रोना आदि।



बहू  निशक्तता के प्रकार-

 बहू निशक्तता के चार प्रकार है

1. श्रवण अक्षम एवम दृष्टि बांधित
2. दृष्टि बांधित एव मानसिक मंदता
3. दृष्टि बांधित एव श्रवण मानसिक
4. प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात एवं मानसिक मंदता



दिव्यांग जन अधिनियम 1995 के अनुसार दिव्यांगता  के प्रकार निम्न रूप से 7 प्रकार है

1- पूर्ण दृष्टि अक्षमता
2- अल्प दृष्टि अक्षमता
3- कुष्ठ निवारण
4- श्रवण अक्षमता
5- गामक अक्षमता
6- मानसिक मंदता
7- मानसिक रुग्यता

एक्ट 2012 के अनुसार दो और जोड़े गए

8- थैलेसिया
9- स्लोलर्नर

दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम-2016 के अन्तर्गत निशक्तता के 21 प्रकार है

1. मानसिक मंदता [Mental Retardation] -
        1.समझने / बोलने में कठिनाई
        2.अभिव्यक्त करने में कठिनाई

2. ऑटिज्म [Autism Spectrum Disorders] -
    1. किसी कार्य पर ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई
    2. आंखे मिलाकर बात न कर पाना
    3. गुमसुम रहना

3. सेरेब्रल पाल्सी [Cerebral Palsy] पोलियो-
    1. पैरों में जकड़न
    2. चलने में कठिनाई
    3. हाथ से काम करने में कठिनाई

4. मानसिक रोगी [Mental illness] -
    1.अस्वाभाविक ब्यवहार,  2. खुद से बाते करना,
    3. भ्रम जाल,  4. मतिभ्रम,  5. व्यसन (नसे का आदी),
    6. किसी से डर / भय,  7. गुमसुम रहना

5. श्रवण बाधित [Hearing Impairment]-
   1. बहरापन
   2. ऊंचा सुनना या कम सुनना

6. मूक निशक्तता [Speech Impairment] -
    1. बोलने में कठिनाई
    2. सामान्य बोली से अलग बोलना जिसे अन्य लोग समझ          नहीं पाते

7. दृष्टि बाधित [Blindness ] -
    1. देखने में कठिनाई
    2. पूर्ण दृष्टिहीन

8. अल्प दृष्टि [Low- Vision ] -
    1. कम दिखना
    2. 60 वर्ष से कम आयु की स्थिति में रंगों की पहचान नहीं          कर पाना

9. चलन निशक्तता  [Locomotor Disability ] -
    1. हाथ या पैर अथवा दोनों की निशक्तता
    2. लकवा
    3. हाथ या पैर कट जाना

10. कुष्ठ रोग से मुक्त  [Leprosy- Cured ] -
     1. हाथ या पैर या अंगुली मैं विकृति
     2. टेढापन
     3. शरीर की त्वचा पर रंगहीन धब्बे
     4. हाथ या पैर या अंगुलिया सुन्न हों जाना

11. बौनापन [Dwarfism ]-
      1. व्यक्ति का कद व्यक्स होने पर भी 4 फुट 10इंच                  /147cm  या इससे कम होना

12. तेजाब हमला पीड़ित [Acid Attack Victim ] -
      1. शरीर के अंग हाथ / पैर / आंख आदि तेजाब हमले की वज़ह से असमान्य / प्रभावित होना

13. मांसपेशी दुर्विक़ार [Muscular Distrophy ] -
     . मांसपेशियों में कमजोरी एवं विकृति

14.स्पेसिफिक लर्निग डिसेबिलिटी[Specific learning]-
     . बोलने, श्रुत लेख, लेखन, साधारण जोड़, बाकी, गुणा,        भाग में आकार, भार, दूरी आदि समझने मैं कठिनाई

15. बौद्धिक निशक्तता [ Intellectual Disabilities]-          1. सीखने, समस्या समाधान, तार्किकता आदि में         कठिनाई
      2. प्रतिदिन के कार्यों में सामाजिक कार्यों में एम  अनुकूल व्यवहार में कठिनाई

16. मल्टीपल स्कलेरोसिस [Miltiple Sclerosis ] -
     1. दिमाग एम रीढ़ की हड्डी के समन्वय में परेशानी

17. पार्किसंस रोग [Parkinsons Disease ]-
     1. हाथ/ पाव/ मांसपेशियों में जकड़न
     2. तंत्रिका तंत्र प्रणाली संबंधी कठिनाई

18. हिमोफिया/ अधी रक्तस्राव [Haemophilia ] -
     1. चोट लगने पर अत्यधिक रक्त स्राव
     2.रक्त बहेना बंद नहीं होना

19. थैलेसीमिया [Thalassemia ] -
      1. खून में हीमोग्लबीन की विकृति
      2. खून मात्रा कम होना

20. सिकल सैल डिजीज [Sickle Cell Disease ] -
     1. खून की अत्यधिक कमी
     2. खून की कमी से शरीर के अंग/ अवयव खराब होना

21. बहू  निशक्तता [Multiple Disabilities ] -
     1. दो या दो से अधिक निशक्तता से ग्रसित



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Friday, March 29, 2019

मूक निशक्तता [Speech Impairment]

वाणी विकार 

भाषण विकार या भाषण बाधाएं संचार विकार का एक प्रकार है जहां 'सामान्य' भाषण बाधित होता है। इसका मतलब यह हो सकता है कि हकलाना , फिसलना , आदि। जो कोई व्यक्ति वाक् विकार के कारण बोलने में असमर्थ है, उसे मूक माना जाता है।


वर्गीकरण

भाषण को सामान्य और अव्यवस्थित में वर्गीकृत करना पहले की तुलना में अधिक समस्याग्रस्त है। एक सख्त वर्गीकरण द्वारा, [ उद्धरण वांछित ] केवल 5% से 10% आबादी के पास बोलने का एक सामान्य तरीका है (सभी मापदंडों के संबंध में) और स्वस्थ आवाज; अन्य सभी एक विकार या किसी अन्य से पीड़ित हैं।

वर्गीकरण के तीन अलग-अलग स्तर हैं जब एक भाषण विकार की तीव्रता और प्रकार का निर्धारण और उचित उपचार या चिकित्सा:

1. लगता है कि मरीज पैदा कर सकता है


  • फ़ोनेमिक - आसानी से उत्पादित किया जा सकता है; सार्थक और रचनात्मक रूप से उपयोग किया जाता है
  • ध्वन्यात्मक - केवल अनुरोध पर निर्मित; लगातार, सार्थक या रचनात्मक रूप से उपयोग नहीं किया गया; कनेक्टेड भाषण में उपयोग नहीं किया गया


2. ध्वनियों को उत्तेजित करें

  • आसानी से उत्तेजित
  • प्रदर्शन और जांच के बाद उत्तेजित करें (यानी एक जीभ डिप्रेसर के साथ)


3. ध्वनि उत्पन्न नहीं कर सकता

  • स्वेच्छा से उत्पादन नहीं किया जा सकता है
  • कोई उत्पादन कभी नहीं देखा



 मूक विकार के प्रकार

1. वाणी का अपक्षय स्ट्रोक या प्रगतिशील बीमारी से उत्पन्न हो सकता है, और इसमें एक शब्द में असंगत ध्वनि का उत्पादन और ध्वनियों का पुनर्रचना ("आलू" "टोपेटो" और अगला "टोटापो") हो सकता है। शब्दों का उत्पादन प्रयास के साथ अधिक कठिन हो जाता है, लेकिन आम वाक्यांश कभी-कभी बिना प्रयास के अनायास बोले जा सकते हैं।

2. अव्यवस्था , एक भाषण और प्रवाह विकार मुख्य रूप से भाषण की तीव्र दर से विशेषता है, जो भाषण को समझना मुश्किल बनाता है।

3. विकासात्मक मौखिक डिस्प्रेक्सिया को भाषण के बचपन के एप्रेक्सिया के रूप में भी जाना जाता है।

4. Dysarthria नसों या मस्तिष्क को नुकसान के कारण भाषण की मांसपेशियों की कमजोरी या पक्षाघात है। डिसरथ्रिया अक्सर स्ट्रोक , पार्किंसंस रोग , एएलएस , सिर या गर्दन की चोटों, सर्जिकल दुर्घटना, या मस्तिष्क पक्षाघात के कारण होता है ।

5. डिस्प्रोसीडी सबसे दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल भाषण विकार है। उच्चारण क्षेत्रों के समय में, और लय, ताल और शब्दों के उच्चारण में तीव्रता में परिवर्तन की विशेषता है। अवधि में परिवर्तन, मौलिक आवृत्ति और बोले गए वाक्यों के टॉनिक और एटॉनिक सिलेबल्स की तीव्रता, किसी व्यक्ति की विशेष विशेषताओं से वंचित करती है। डिस्प्रोसोडी का कारण आमतौर पर मस्तिष्क संबंधी संवहनी दुर्घटनाओं , क्रानियोएन्सेफैलिक ट्रूमैटिस और मस्तिष्क ट्यूमर जैसे तंत्रिका संबंधी विकृति से जुड़ा होता है ।

6. उत्परिवर्तन बोलने में पूर्ण असमर्थता है।

7. वाक् ध्वनि विकारों में विशिष्ट वाक् ध्वनियाँ उत्पन्न करने में कठिनाई होती है (जैसे कि अक्सर कुछ विशिष्ट व्यंजन, जैसे कि / s / या / r /), और इन्हें कृत्रिम विकारों (जिसे ध्वन्यात्मक विकार भी कहा जाता है) और ध्वनि संबंधी विकारों में उप-विभाजित किया जाता है । शारीरिक रूप से ध्वनियों का उत्पादन करने में कठिनाई के कारण आर्टिक्यूलेशन विकारों की विशेषता है। किसी भाषा के ध्वनि भेदों को सीखने में कठिनाई के कारण ध्वनि-संबंधी विकारों की विशेषता होती है, ताकि कई के स्थान पर एक ध्वनि का उपयोग किया जा सके। हालाँकि, किसी एकल व्यक्ति के लिए ध्वनि और ध्वनि संबंधी दोनों घटकों के साथ मिश्रित भाषण ध्वनि विकार होना असामान्य नहीं है।

8. हकलाना वयस्क आबादी के लगभग 1% को प्रभावित करता है।

9. आवाज विकार क्षीण होते हैं, अक्सर शारीरिक होते हैं, जिसमें स्वरयंत्र या स्वर की प्रतिध्वनि शामिल होती है।



मूक विकार के कारण

ज्यादातर मामलों में कारण अज्ञात है। हालांकि, भाषण की गड़बड़ी के विभिन्न ज्ञात कारण हैं जैसे:-

  •  सुनवाई हानि , 
  • तंत्रिका संबंधी विकार , 
  • मस्तिष्क की चोट , 
  • बौद्धिक अक्षमता , 
  • नशीली दवाओं का दुरुपयोग , 
  • शारीरिक कमजोरी जैसे कि होंठ और तालु , 
  • मुखर दुरुपयोग या दुरुपयोग।



मूक विकार के उपचार

इस तरह के विकारों में से कई का उपचार स्पीच थेरेपी द्वारा किया जा सकता है, लेकिन दूसरों को फ़िनोट्रिक्स में डॉक्टर द्वारा चिकित्सा की आवश्यकता होती है। अन्य उपचारों में कार्बनिक स्थितियों और मनोचिकित्सा के सुधार शामिल हैं।

संयुक्त राज्य अमेरिका में, भाषण विकार वाले स्कूल-आयु वाले बच्चों को अक्सर विशेष शिक्षा कार्यक्रमों में रखा जाता है। जो बच्चे बात करने के लिए सीखने के लिए संघर्ष करते हैं वे अक्सर शैक्षणिक संघर्षों के अलावा लगातार संचार कठिनाइयों का अनुभव करते हैं। २०००-२००१ के स्कूल वर्ष में पब्लिक स्कूलों के विशेष शिक्षा कार्यक्रमों में of००,००० से अधिक छात्रों को भाषण या भाषा की बाधा के रूप में वर्गीकृत किया गया था। इस अनुमान में उन बच्चों को शामिल नहीं किया गया है, जिनके पास भाषण और भाषा की दुर्बलता अन्य स्थितियों जैसे कि बहरेपन के लिए माध्यमिक है। कई स्कूल जिले छात्रों को स्कूली घंटों के दौरान भाषण चिकित्सा प्रदान करते हैं, हालांकि कुछ विशेष परिस्थितियों में दिन और गर्मियों की सेवाएं उपयुक्त हो सकती हैं।

रोगियों को टीमों में इलाज किया जाएगा, जो उनके पास विकार के प्रकार पर निर्भर करता है। एक टीम में एसएलपी, विशेषज्ञ, परिवार चिकित्सक, शिक्षक और परिवार के सदस्य शामिल हो सकते हैं।


सामाजिक प्रभाव

भाषण विकार से पीड़ित होने पर नकारात्मक सामाजिक प्रभाव हो सकते हैं, खासकर छोटे बच्चों में। एक भाषण विकार वाले लोग अपने विकार के कारण धमकाने का लक्ष्य हो सकते हैं। धमकाने के परिणामस्वरूप आत्म-सम्मान में कमी आ सकती है।

भाषा विकार

भाषा विकारों को आमतौर पर भाषण विकारों से अलग माना जाता है, भले ही वे अक्सर पर्यायवाची रूप से उपयोग किए जाते हैं।

वाणी विकार वाणी की ध्वनि उत्पन्न करने में या आवाज की गुणवत्ता के साथ समस्याओं को संदर्भित करता है, जहां भाषा विकार आमतौर पर शब्दों को समझने या शब्दों का उपयोग करने में सक्षम होने और भाषण उत्पादन के साथ क्या करने में सक्षम नहीं है।



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Thursday, March 28, 2019

मिर्गी के प्रकार

प्रकार

बच्चों में पाई जाने वाली मिर्गी कई प्रकार की हो सकती है, जन्हें प्रायः पहचाना नहीं जाता है। पहचानने में परेशानी की कई कारण हैं, जैसे :

(१) बच्चे में अभिव्यक्ति की असमर्थता
(२) अभिभावकों में जानकारी का आभाव
(३) मिर्गी के कुछ दौरों का क्षणिक एवं सूक्ष्म स्वरूप एवं
(४) मिर्गी के सम्बन्ध में प्रचलित गलत धारणाएँ

कुछ उदाहरण :
एक बच्चे में दो महीने की आयु में एक तरफ के हाँथ-पांव में कुछ क्षणों के लिए खिंचाव आता था। चूंकि यह बहुत थोड़े समय (कुछ सेकेण्डों) के लिए रहता था और बच्चे को जब तक माँ गोद में लेती थी तब तक समाप्त हो जाता था, वे समझते रहे बच्चा किसी कारणवश डर रहा है। पर वही बच्चा आठ महीने की उम्र तक गर्दन भी नहीं संभाल पाया तो उसे चिकित्सक के पास ले जाया गया और चिकित्सक ने मिर्गी पहचान कर उसकी दवा शुरू की। अतः हम देख सकते हैं कि जानकारी के अभाव में, मिर्गी का इलाज समय से न शुरू कर पाने के कारण बच्चे का विकास किस तरह प्रभावित हो गया।

एक दूसरा उदाहरण:
एक आठ साल के बच्चे का है, जो कुछ समय पहले तक पढ़ाई इत्यादि में बहुत होशियार था। कुछ दिनों से यह देखा जाने लगा कि वह कुछ क्षणों के लिए अपने वातावरण से कट सा जाता जैसे बोलते-बोलते बीच में हठात् बिना वजह रूक जाना और फिर कुछ देर बाद वहीं से बात शुरू करना जहाँ से वह रूक गया था। इस दौरान उसकी आँखे एकटक रहती थीं और मुंह खुला रहता था। ऐसे दौरे उसे दिन में अनेकों बार पड़ते थे। पढ़ाई में उसकी कमजोरी को बच्चे का ध्यान नहीं देना समझा गया और बच्चे को अक्सर डाँट-फटकार पड़ती रही। यह सिलसिला उस समय तक चला जब तक कि उसकी माँ ने दूरदर्शन पर मिर्गी के लक्षण के बारे में कार्यक्रम नहीं देख लिया। इलाज करवाने से अब यही बच्चा पहले की तरह फिर पढ़ाई में ध्यान लगा पा रहा है।


इन दो उदाहरणों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि मिर्गी के दौरों को पहचानने के लिए अभिभावकों को सही जानकारी की जरूरत है।

सामान्यतः बच्चों में मिर्गी के दौरे निम्नलिखित प्रकार के होते हैं:


1. सामान्यीकृत तानी अवमोटन मिर्गी (Generalized Tonic Clonic Epilepsy)

इसे 'बड़ी मिर्गी' भी कह सकते हैं। इसमें बच्चा एका-एक बेहोश हो जाता है और शुरू में शरीर की तमाम मांसपेशियाँ अकड़ जाती हैं जिसके चलते उसके मुंह से चीख जैसी आवाज निकलती है, कभी-कभी जीभ कट जाती है, पेशाब आ जाता है और बच्चा जमीन पर गिर जाता है। इसके बाद पूरे शरीर में मिर्गी के झटके या खिंचाव आने लगते हैं, और मुंह से झाग निकलता है। यह दौरा आम तौर से एक-दो मिनट तक रहता है फिर बच्चे को थोड़ी देर तक बेहोशी सी छाई रहती है, या वह सो जाता है उसे इस दौरान थकान लगती है सिर या शरीर में दर्द होता है और कमजोरी लगती है।


2. खोयी मिर्गी (Absence Epilepsy)

इस प्रकार की मिर्गी के दौरान कुछ सेकेण्डों में लिये बच्चे की नजर स्थिर हो जाती है, जैसे कि कहीं खो सा गया है। साथ में आंखों की पलकें तेजी से झपकने लगती हैं, पुतलियाँ एक तरफ उठ जाती है और मुंह की तरफ देखने से लगता है जैसे वह कुछ चबा रहा है। यदि बच्चे के हाँथ में कोई चीज है तो वह गिर सकती है। उस दौरान बच्चे से कुछ पूछने पर वह उसका जवाब नहीं दे सकता है, पर दौरा खत्म होते ही वह एकदम सामान्य हो जाता है। अक्सर ये दौरे दिन में कई बार पड़ सकते है। यह जरूरी है कि जिन बच्चें को ऐसा होता है उन्हें उनके माता-पिता ध्यानपूर्वक निरीक्षण करें और जितनी बार भी ऐसे दौरे आते हों उसका नियमित रिकार्ड रख डॉक्टर को बतलायें।


3. पेशी अवमोटनी मिर्गी (Myoclonic Epilepsy)

इस दौरान मांसपेशियों में खिंचाव अचानक कुछ क्षणों के लिए होता है। यह खिंचाव हल्का भी हो सकता है और जोर से भी हो सकता है। यह शरीर के किसी एक हिस्से में ही सीमित रह सकता है या इतना जबर्दस्त भी हो सकता है कि बच्चा अचानक से झटका खाकर गिर जाये। यह आमतौर से सुबह में सोकर उठने के बाद होता है और चीजें हाथों से छूट कर जैसे टूथ ब्रश आदि गिरने लगते हैं।


4. आतानी मिर्गी या ड्राप अटैक (Atonic or Drop Attacks)

माँस पेशियों के टोन (तनाव) में अचानक कमी के कारण बच्चा गिर जाता है। कुछ सेकेण्डों से एक मिनट के अन्दर ही वह फिर सामान्य हो कर चलने-फिरने लगता है। यदि किसी बच्चे को इस तरह के दौरे बहुत अधिक आते हों तो यह जरूरी है कि उसके सिर को सुरक्षित रखने के लिये बच्चे को कुछ (हेलमेट आदि) पहनाया जाये। अक्सर ऐसे दौरों को शारीरिक कमजोरी का एक लक्षण मान कर ध्यान नहीं दिया जाता है।



5. सरल आंशिक मिर्गी ( Simple Partial Epilepsy)

इसके दौरान शरीर के किसी एक हिस्से जैसे उंगली, अंगूठा या किसी भी भाग में झटके आते हैं। बच्चा जगा रहता है और उसे इसका एहसास भी रहता है, पर चाह कर भी वह इसे रोक नहीं सकता। यदि यह ज्यादा देर तक रह जाये तो शरीर के अन्य भागों में फैलकर बड़ी मिर्गी का रूप भी ले सकता है। एक अन्य तरह की सरल आम्शिक मिर्गी में झटके नहीं लगेगें और बाहर से देखने वाले को जल्दी से पता भी नहीं चल पाता है, पर बच्चा यदि व्यक्त करने लायक उम्र का हो तो वह शिकायत कर सकता है कि जैसे वह कुछ ऐसा देख या सुन पा रहा है जो दूसरों को दिखाई या सुनाई न देता हो। उसे अचानक भय भी लग सकता है, गुस्सा आ सकता है या बिना वजह खुश नजर आने लगता है। कभी-कभी कोई बच्चा अजीब सी महक की शिकायत कर सकता है तो दूसरों को पेट में अजीब सा महसूस हो सकता है, उल्टी करने जैसा लग सकता है। बच्चा कुछ विभ्रमित सा लग सकता है और थोड़ी देर बाद सोना चाह सकता है। उसे दोरे के दौरान जो हो रहा है उसकी याददाश्त नहीं रहती है। प्रायः इन दौरों को भी बच्चे की बदमाशी समझ कर ध्यान नहीं दिया जाता है।


6. शिशु ऐंठन (Infantile Spasm)

तीन महीने से तीन वर्ष के बच्चों में यह अक्सर देखने को मिलता है। अक्सर इस दौरान यदि बच्चा बैठा है तो उसका सिर आगे की तरफ झूक जायेगा, और दोनों हाथ आगे की तरफ निकल जाते हैं लगेगा जैसे वह सलाम कर रहा है। यदि सोया है तो घुटने अचानक ऊपर की तरफ मुड़ जाते हैं हाथ और सिर आगे की तरफ झुक जाते हैं। अक्सर ऐसे दौरे एक बार शुरू होने पर कुछ-कुछ अन्तराल पर बार-बार होते रहते हैं। और यह जरूरी हो जाता है कि चिकित्सक की सलाह तुरन्त ली जाये।

यह जरूरी है कि जब भी अभिभावक को जरा भी शक हो तो किसी सक्षम चिकित्सक से जरूर सलाह करें। कई बार चिकित्सकों के लिये भी निश्चित कर पाना सम्भव नहीं होता क्योंकि वे बच्चे को हर समय नहीं देख पाते हैं। अतः यदि आपको लगता है कि उल्लिखित लक्षणादि बच्चे में बार-बार दिखाई दे रहे हैं तो आप उसे विस्तार से नोट करें और अपने डॉक्टर को बतलाएं। यह बात इसलिए भी जरूरी है कि मिर्गी के अलग-अलग प्रकार की अलग-अलग दवा होती है, और चिकित्सक मिर्गी का प्रकार उसी समय जान जायेगा जब आप उसकी सही जानकारी देंगे।



दौरे के प्रकार:

1. इडियोपैथिक- मिर्गी के इस रूप के लिए कोई स्पष्ट कारण नहीं है।
2. क्रिप्टोजेनिक- एक क्रिप्टोजेनिक जब्त के दौरान, डॉक्टर को संदेह है कि इसके पीछे एक कारण है लेकिन वह इसे इंगित नहीं कर सकता है।
3. लक्षण- इस प्रकार के जब्त के दौरान, विशेषज्ञ जानता है कि वास्तव में क्या कारण है।

दौरे  के वर्गीकरण:

1. आंशिक जब्त- आम तौर पर दो प्रकार के आंशिक जब्त होते हैं:

2. सरल आंशिक जब्त- इस प्रकार के जब्त के दौरान, रोगी सचेत है और उसे उसके आसपास के बारे में भी पता है।

3. जटिल आंशिक जब्त- जब्त के इस रूप के दौरान, रोगी की चेतना खराब है। रोगी जब्त को भूल जाता है, भले ही उन्हें इसकी याद दिलाया जाए, इस जब्त की यादें बहुत अस्पष्ट है।

4. सामान्यीकृत जब्त- यह तब होता है जब मस्तिष्क के दोनों हिस्सों में मिर्गी की गतिविधि चल रही है। आम तौर पर जब्त के दौरान व्यक्ति की चेतना खो जाती है।

5. माध्यमिक सामान्यीकृत जब्त- इस प्रकार का जब्त तब होता है जब मिर्गी गतिविधि एक आंशिक जब्त के रूप में होती है और धीरे-धीरे मस्तिष्क के हिस्सों में फैलती है। जब्त की प्रगति के विकास के रूप में रोगी चेतना खो देता है।

कभी-कभी अन्य विकार और परिस्थितियों को मिर्गी के रूप में गलत तरीके से निदान किया जाता है। इन स्थितियों में शामिल हैं:

1. उच्च बुखार जिसमें मिर्गी के समान लक्षण होते हैं।

2.बेहोशी

3. नर्कोलेप्सी (दिन के दौरान रात में नींद की नींद और नींद के निरंतर एपिसोड बाधित)।

4. कैटाप्लैक्सी (क्रोध, भय और आश्चर्य जैसे भावनात्मक प्रतिक्रिया के कारण चरम कमजोरी के कारण एक हमला)

5. नींद संबंधी विकार

6. बुरे सपने

7. मानसिक स्वास्थ्य विकारों के कारण आतंक हमलों का कारण बनता है।

8. फ्यूगू राज्य (अस्थायी भूलभुलैया के कारण यह एक दुर्लभ मनोवैज्ञानिक विकार है)

9. मनोवैज्ञानिक दौरे (रूपांतरण विकार जैसे मनोवैज्ञानिक अशांति से संबंधित एक व्यवहार)

10. सांस लेने वाले एपिसोड जो तब होते हैं जब एक बच्चा जोर से रोता है और फिर अचानक कुछ सेकंड तक सांस लेता है। यह चेतना के नुकसान और त्वचा के रंग में परिवर्तन से विशेषता है।

11. लंबे समय तक मिर्गी के लक्षणों को कम करने के लिए, मिर्गी से निदान होने वाले लोगों को एंटी-मिर्गी दवाएं निर्धारित की जाती हैं।

लक्षण

बेहोशी।
दौरे



मिर्गी का निदान – epilepsy diagnosis 

यदि आपको बार-बार दौरे का अनुभव हो रहा है तो आपको जितना जल्दी हो सके डॉक्टर को दिखाना चाहिए क्योंकि यह दौरान किसी गंभीर बीमारी का लक्षण हो सकता है। व्यक्ति के स्वास्थ्य एवं लक्षणों के आधार पर ही डॉक्टर यह तय करते हैं कि कौन सा टेस्ट इस बीमारी के निदान में सहायक होगा।
आमतौर पर मस्तिष्क के मोटर की क्षमता (motor abilities) और मानसिक कार्यप्रणाली की जांच करने के लिए डॉक्टर न्यूरोलॉजिकल परीक्षण करते हैं।
मिर्गी के निदान के लिए डॉक्टर मरीज के ब्लड की अच्छी तरह से जांच करते हैं।

डॉक्टर इन विकारों का पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट करते हैं-

1. संक्रामक रोगों के लक्षण
2. लिवर और किडनी की कार्य प्रणाली
3. ब्लड ग्लूकोज लेवल

इसके अलावा मिर्गी की जांच करने के लिए इलेक्ट्रोइंसिफैलोग्राम (EEG) टेस्ट किया जाता है। यह एक आम टेस्ट है। इस टेस्ट में एक पेस्ट के साथ इलेक्ट्रोड को खोपड़ी (scalp) से जोड़ा जाता है। यह टेस्ट दर्दरहित होता है। इसके बाद मरीज से कुछ विशेष क्रिया करने के लिए कहा जाता है। कुछ मामलों में यह टेस्ट सोने के दौरान किया जाता है। इलेक्ट्रोड मरीज के मस्तिष्क के इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी को रिकॉर्ड कर लेता है। मस्तिष्क के तरंग पैटर्न में परिवर्तन के आधार पर मिर्गी का निदान किया जाता है। इसके अलावा सीटी स्कैन (CT scan), एमआरआई (MRI) आदि टेस्ट किए जाते हैं।

मिर्गी का इलाज – Epilepsy treatments

मिर्गी का इलाज इस बीमारी की गंभीरता, लक्षण और मरीज के स्वास्थ्य के आधार पर किया जाता है। लेकिन वर्तमान में अधिकांश प्रकार के मिर्गी का कोई इलाज नहीं है। हालांकि कुछ प्रकार के मिर्गी को सर्जरी के जरिए ठीक किया जा सकता है और कई मामलों में इसे काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।

इस बीमारी का निदान होने के बाद डॉक्टर मरीज को एंटी इपिलेप्टिक दवाएं देते हैं और यदि दवा काम न करे तो सर्जरी ही इस बीमारी के इलाज का अगला विकल्प होता है। मरीज को किस तरह के दौरे पड़ रहे हैं, इस आधार पर उसे एंटी-इपिलेप्टिक दवाएं मुंह से खिलाई जाती हैं। इस बीमारी के लगभग 70 प्रतिशत मामलों में ये दवाएं मिर्गी के दौरे को नियंत्रित कर देती हैं।

मिर्गी के रोगी को ये दवाएं (medicine) दी जाती हैं-

सोडियम वाल्पोरेट (sodium valproate)
कार्बामाजेपिन (carbamazepine)
लैमोट्रिजिन (lamotrigine)
लेवेटिरैसेटम (levetiracetam)

ये दवाएं कुछ मरीजों में मिर्गी के दौरे को रोक देती हैं लेकिन सभी में नहीं। मिर्गी के दवाओं का सही खुराक डॉक्टर के परामर्श से ही लेनी चाहिए।

मिर्गी से बचाव – Epilepsy prevention

मिर्गी के लक्षणों को नियंत्रित करके काफी हद तक इस बीमारी से बचा जा सकता है।

1. मिर्गी का दौरा पड़ने से पहले व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, व्यावहारिक एवं पर्यावरणीय कारणों में बदलाव के लक्षण दिखाई देते हैं, इन लक्षणों पर ध्यान दें और इनसे बचने की कोशिश करें। जैसे कि दौरा पड़ने से पहले व्यक्ति को अधिक चिड़चिड़ाहट या गुस्सा आना।

2. कुछ लोग लहसुन या गुलाब (rose) की गंध सूंघकर मिर्गी के दौरे से उबर जाते हैं। जब सिर भारी हो या चिड़चिड़ापन महसूस हो तो दवा की अतिरिक्त खुराक लेकर इससे बचा जा सकता है।

3. घर से बाहर निकलते समय सावधान रहें, यदि मिर्गी का कोई भी लक्षण महसूस हो तो घर से बाहर न निकलें।एल्कोहल का सेवन न करें और मिर्गी की समस्या हो तो वाहन न चलाएं।



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Wednesday, March 27, 2019

मिर्गी का रोग (Epilepsy Disease)

मिर्गी का रोग (Epilepsy Disease)

मिर्गी का रोग एक ऐसा रोग हैं. जिससे पीड़ित होने पर व्यक्ति को दौरे पड़ते रहते हैं. जिसके कारण कई बार व्यक्ति बेहोश भी हो जाता हैं. मिर्गी एक मस्तिष्क से जुडी हुई बिमारी हैं. जैसे यदि किसी व्यक्ति का मस्तिष्क ठीक ढंग से कार्य न कर पा रहा हो तो व्यक्ति को मिर्गी का रोग हो सकता हैं. मिर्गी का रोग व्यक्ति के द्वारा अत्यधिक नशीले पदार्थों का सेवन करने के कारण, मस्तिष्क में गहरी चोट लगने के कारण या मानसिक सदमा लगने के कारण भी हो सकता हैं.

मिर्गी एक स्थायी और गंभीर बीमारी है जिसमें व्यक्ति अनुत्तेजित (unprovoked) हो जाता है और उसे तेजी से बार-बार दौरे पड़ते हैं। ये दौरे व्यक्ति के मस्तिष्क के इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी के टूट जाने के कारण पड़ते हैं। मिर्गी एक न्यूरोलॉजिकल विकार है और इस बीमारी से पूरी दुनिया में लाखों लोग प्रभावित हैं। कोई भी व्यक्ति मिर्गी की चपेट में आ सकता है लेकिन आमतौर पर यह बीमारी बच्चों और वयस्कों में अधिक होती है।

मिर्गी के दौरे दो प्रकार के होते हैं। पहले प्रकार को सामान्यीकृत दौरा (Generalized seizures ) कहते हैं। इसमें पूरा मस्तिष्क प्रभावित होता है। दूसरे प्रकार के दौरे को फोकल या आंशिक दौरा (Focal, or partial seizures) कहते हैं, जिसमें कि मस्तिष्क का सिर्फ एक ही हिस्सा प्रभावित होता है। मिर्गी का दौरा पड़ने पर व्यक्ति अचेत हो जाता है और कुछ सेकेंड तक वह किसी को भी पहचानने की स्थिति में नहीं होता है।


लक्षण (Symptoms)

1.    मिर्गी के रोग से ग्रस्त होने पर व्यक्ति के शरीर में झटके आना तथा शरीर का अकड़ जाता हैं.

2.    उसकी आँखे ऊपर की ओर उलट जाती हैं.

3.    व्यक्ति का अपने शरीर पर नियंत्रण नहीं रहता. इसलिए वह अनियंत्रित शारीरिक गतिविधियाँ करता हैं.

4.    मिर्गी के दौरे आने पर व्यक्ति अपने होंठों को तथा जीभ को काटने लगता हैं.

5.    कई बार व्यक्ति मिर्गी के दौरे आने पर एक जगह अपनी निगाहों को केन्द्रित कर लगातार देखता रहता हैं.

6. बिना बुखार के शरीर में ऐंठन या कंपकंपी

7. यादाश्त कमजोर होना या भ्रमित स्मृति का होना

8. बेहोशी और शरीर लुढ़क या झुक जाना और इसके कारण ब्लैडर पर नियंत्रण न रहना औऱ अत्यधिक थकावट

9. कुछ देर तक व्यक्ति का अचेत अवस्था में रहना और किसी बात का जवाब न देना।

10. बिना किसी स्पष्ट कारण के व्यक्ति का अचानक जमीन पर गिर जाना।

11. बिना किसी कारण के अचेत अवस्था में होठों को चबाना

12. गंध (smell), स्पर्श और आवाज जैसे इंद्रियों (senses) में असाधारण परिवर्तन

13. बांहों, पैरों और शरीर में तेजी से झटके आना



मिर्गी के रोग का घरेलू उपचार (Treatment of Epilepsy Disease)


निम्बू और हिंग

1.    मिर्गी की बिमारी से राहत पाने के लिए एक निम्बू लें और थोडा सा हिंग का पाउडर लें.


2.    अब निम्बू को दो भागों में काट लें और उसपर थोडा - सा हिंग पाउडर छिड़क दें.


3.    अब इस निम्बू के रस को आराम – आराम से चूसें.


4.    इसके अलावा निम्बू के साथगोरखमुंडी का भी प्रयोग कर सकते हैं.


निम्बू में हिंग पाउडर या गोरखमुंडी मिलाकर रोजाना चूसने से कुछ ही दिनों में मिर्गी के दौरे आने बंद हो जायेंगे.


बिजौरा निम्बू का रस तथा निर्गुण्डी का रस

1.    मिर्गी की बिमारी को ठीक करने के लिए एक बिजौरा निम्बू लें और निर्गुण्डी के पौधे की पत्तियां लें.


2.    अब बिजौरा नीबू को काट लें और उसका रस एक कटोरी में निकाल लें.

3. अब निर्गुण्डी के पौधे की पत्तियां लें और उन्हें धोने के बाद पीसकर इसका रस निकाल लें.

4.    अब बिजौरे निम्बू के रस में निर्गुण्डी के पत्तियों का रस डालकर अच्छी तरह से मिला लें.


5.    अब बिजौरे निम्बू और निर्गुण्डी के रस की बूंदों को अपनी नाक में डाल लें.

लगातार 4 दिनों तक बिजौरे निम्बू और निर्गुण्डी के रस को नाक में डालने से आपको मिर्गी के रोग में काफी राहत मिलेगी.

प्याज का रस

1.    मिर्गी के दौरों से हमेशा – हमेशा के लिए छुटकारा पाने के लिए प्याज लें और उन्हें पिसकर लगभग 75 मिली. रस निकाल लें.

2. अब एक गिलास में थोडा पानी लें और इसमें प्याज के रस को मिला लें.

3.    इसके बाद सुबह उठकर इस पानी का सेवन करें.

रोजाना सुबह उठने के बाद प्याज के रस में पानी मिलकर सेवन करने से आपको मिर्गी के दौरे पड़ने बंद हो जायेगें. इसके अलावा यदि मिर्गी के रोग से ग्रस्त व्यक्ति मिर्गी के दौरे पड़ने के बाद बेहोश हो जाता हैं तो भी आप प्याज के रस का प्रयोग कर सकते हैं. मिर्गी के रोग से पीड़ित व्यक्ति की बेहोशी दूर करने के लिए थोडा सा प्याज का रस लें और उसे रोगी व्यक्ति को सुंघा दें. प्याज के रस को थोड़ी देर सूंघाने के बाद व्यक्ति की बेहोशी बिल्कुल ख़त्म हो जायेगी.


मिर्गी के कारण – causes of epilepsy 

मिर्गी के 10 में से 6 रोगियों में इस रोग के वास्तविक कारणों का पता नहीं चल पाता है। मिर्गी के दौरे के पीछे कई कारण हो सकते हैं।

मिर्गी के संभावित कारण निम्न हैं-

1. मस्तिष्क में चोट लगना

2. मस्तिष्क में चोट लगने के बाद मस्तिष्क पर निशान पड़ना

3. गंभीर बीमारी या बहुत तेज बुखार

4. 35 साल से अधिक उम्र के व्यक्तियों में स्ट्रोक, मिर्गी का कारण हो सकता है।

5. अन्य संवहनी रोग (vascular diseases)

6. ब्रेन ट्यूमर या सिस्ट

7. डिमेंशिया या अल्जाइमर रोग

8. मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी

9. प्रसव पूर्व चोट लगना, मस्तिष्क विकृति या जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी होना।

10. एड्स या मेनिनजाइटिस (meningitis) जैसी संक्रामक बीमारियां

11. अनुवांशिक या तंत्रिका संबंधी रोग


कुछ प्रकार की मिर्गी में अनुवांशिकता इस बीमारी का मुख्य कारण होता है। आमतौर पर 20 वर्ष की उम्र से पहले किसी व्यक्ति को मिर्गी की समस्या होने की संभावना सिर्फ 1 प्रतिशत होती है। लेकिन यदि माता-पिता को पहले से ही मिर्गी की बीमारी हो तो 20 वर्ष से पहले की उम्र में किसी व्यक्ति को यह बीमारी होने की संभावना 2 से 5 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।

यह बीमारी दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों में या 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में दिखायी देने की संभावना होती है। मिर्गी किसी भी उम्र में विकसित हो सकती है लेकिन इसका निदान आमतौर पर बचपन में या 60 वर्ष के बाद होता है। मिर्गी का दौरा पड़ने पर मरीज किस स्थिति का अनुभव करेगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्ति के मस्तिष्क का कौन सा भाग प्रभावित हुआ है।


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Tuesday, March 26, 2019

बौनेपन के कारण - Dwarfism Causes

बौनेपन के कारण - Dwarfism Causes

बौनेपन के अधिकतर केस आनुवंशिक विकार के कारण होते हैं, लेकिन इससे जुड़े कुछ विकारों के कारण अज्ञात हैं। बौनेपन की अधिकांश घटनाएं जीन में हुई समस्या से होती हैं जैसे जीन की संरचनाओं में कमी आ जाना।

1. एकोंड्रॉप्लासिया

एकोंड्रॉप्लासिया वाले लगभग 80 प्रतिशत लोग औसत लम्बाई के माता-पिता के जन्मे हुए होते हैं। एन्डोंड्रोप्लासिया वाले व्यक्ति के बच्चों के सामान्य या इसी समस्या से ग्रसित होने की बराबर सम्भावना रहती है।

2. टर्नर सिंड्रोम

टर्नर सिंड्रोम, एक ऐसी स्थिति जो केवल लड़कियों और महिलाओं को प्रभावित करती है, जिसके परिणामस्वरूप लड़कियों में होने वाला एक्स क्रोमोजोम आंशिक रूप से या पूरी तरह से गायब होता है। एक सामान्य लड़की अपने माँ-बाप दोनों से एक्स क्रोमोजोम लेती है। टर्नर सिंड्रोम वाली लड़की में एक ही फीमेल सेक्स क्रोमोजोम पूरी तरह काम करता है।

3. ग्रोथ हार्मोन की कमी

ग्रोथ हार्मोन की कमी का कारण कभी-कभी जीन की संरचनाओं की कमी या चोट लगना पाया गया है लेकिन इस विकार वाले अधिकांश लोगों में कारण की पहचान नहीं की जा सकी है। (और पढ़ें - हार्मोन असंतुलन के नुकसान)

4. अन्य कारण

बौनेपन के अन्य कारणों में अन्य अनुवांशिक विकार, अन्य हार्मोन में कमी या पोषण की कमी शामिल हैं। कभी-कभी कारण अज्ञात भी होते हैं।


बौनेपन का परीक्षण - Diagnosis of Dwarfism 

बाल रोग विशेषज्ञ आपके बच्चे के विकास की जांच करने के लिए कई वजहों की जांच करेंगे और यह निर्धारित करेंगे कि उनहें बौनापन संबंधी विकार है या नहीं। इन ​​परीक्षणों में शामिल हो सकते हैं:

1. लम्बाई नापना

समय-समय पर बच्चे की लम्बाई, वजन और सिर की चौड़ाई को नापा जाता है जिससे किसी भी प्रकार की असामान्य वृद्धि की पहचान की जा सके जैसे कि देरी से बढ़ना या असमान रूप से बड़ा सिर होना।

2. देखकर पता करना

चेहरे और शरीर के ढाँचे में हुई किसी तरह की गड़बड़, बौनेपन से जुड़ी हो सकती है। आपका बच्चा कैसा दिख रहा है, इसके आधार पर बाल रोग विशेषज्ञ को परीक्षण करने में मदद मिल सकती है।

3. इमेजिंग टेक्नोलॉजी (Imaging technology)

खोपड़ी और कंकाल की कुछ असामान्यताों के आधार पर ये पता किया जा सकता है कि आपके बच्चे को कौन सा विकार है इसलिए आपके डॉक्टर आपको बच्चे का एक्स रे कराने को बोल सकते हैं। पिट्यूटरी ग्रंथि या हाइपोथैलेमस की असामान्यताओं को जानने के लिए डॉक्टर एमआरआई करवा सकते हैं।

4. अनुवांशिक परीक्षण

आनुवंशिक परीक्षण बौनेपन से संबंधित विकारों के कई ज्ञात कारणों को जानने के लिए उपलब्ध हैं, लेकिन इससे हमेशा सटीक परीक्षण नहीं हो सकता है।

5. परिवार के स्वास्थ्य के बारे में पूछताछ

आपके परिवार औसत लम्बाई की जानकारी लेकर डॉक्टर ये जानने की कोशिश करेंगे कि आपमें बौनापन होने की कितनी संभावना है।

6. हार्मोन परीक्षण

आपके डॉक्टर आपको वो टेस्ट कराने के लिए बोलेंगे जिससे आपके ग्रोथ हॉर्मोन और अन्य हॉर्मोन जो शरीर में विभिन्न तरह के विकास के लिए जरूरी हैं, उनसे जुड़ी समस्या का पता किया जा सके।


बौनेपन का इलाज - Dwarfism Treatment 

अधिकांश बौनेपन का इलाज कद को नहीं बढ़ाता है लेकिन जटिलताओं से होने वाली समस्याओं को सही कर सकता है या राहत दे सकता है।

1. सर्जिकल उपचार

निम्न दी हुई सर्जिकल प्रक्रियाएं डिस्प्रोपोर्शनेट बौनापन वाले लोगों में समस्याओं को ठीक कर सकती हैं:

हड्डियों के गलत दिशा में बढ़ने की समस्या को ठीक करना
रीढ़ की हड्डी के आकार को सही करने के साथ-साथ स्थिर करना
रीढ़ की हड्डी पर दबाव कम करने के लिए उस की हड्डियों के बीच वाली जगह को चौड़ा किया जाता है (और पढ़ें - रीढ़ की हड्डी की चोट के लक्षण)
मस्तिष्क के चारों ओर अतिरिक्त तरल पदार्थ को हटाने के लिए एक शंट (shunt: इसकी मदद से तरल पदार्थ को हटाने के लिए रास्ता बनाया जाता है) डाली जाती है

2. अंगों को लम्बा करने की सर्जरी

बौनेपन वाले कुछ लोग अंग लम्बे कराने के लिए सर्जरी करवाते हैं। यह प्रक्रिया बौनेपन वाले कई लोगों के लिए सही नहीं रहती क्योंकि इस के साथ इसके जोखिम जुड़े हैं। इस से जुड़ी प्रक्रियाओं के भावनात्मक और शारीरिक तनाव की वजह से, बौनेपन वाले इंसान को ये सलाह दी जाती है की जब तक वो आयु में इतना बड़ा और समझदार न हो जाए की वो सर्जरी जैसा बड़ा कदम उठा सके, तब तक उसे सर्जरी नहीं करानी चाहिए।

3. हार्मोन थेरेपी

जिन लोगोंं में ग्रोथ हार्मोन की कमी के कारण बौनापन रह जाता है, उनको ग्रोथ हार्मोन के इन्जेक्शन पर्याप्त लंबाई प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं।

ज्यादातर मामलों में बच्चों को रोजाना इन्जेक्शन दिये जाते हैं, ये इन्जेक्शन उनको कुछ सालों तक लगातार दिये जाते हैं, जब तक वे अपने परिवार की अधिकतम औसतन वयस्क लंबाई प्राप्त नहीं कर लेते हैं।

ये उपचार किशोरावस्था से लेकर वयस्क अवस्था की शुरुआत तक चल सकता है जिससे वयस्क की परिपक्वता (maturity) सुनिश्चित की जा सके, जैसे कि मांसपेशियों या वसा में उचित विकास हुआ है या नहीं। कुछ व्यक्तियों को उम्रभर इलाज की आवश्यकता हो सकती है। अन्य संबंधित हार्मोन की कमी को पूरा करने के लिए भी इस थेरेपी का इस्तेमाल किया जा सकता है।

टर्नर सिंड्रोम वाली लड़कियों के लिए उपचार के लिए एस्ट्रोजन और संबंधित हार्मोन थेरेपी की आवश्यकता होती है जिससे वे किशोरावस्था की शुरुआत कर सकें और वयस्क यौन विकास प्राप्त कर सकें। एस्ट्रोजेन रीप्लेसमेन्ट थेरेपी  (Estrogen replacement therapy) आमतौर पर जीवनभर जारी रहती है जब तक कि एक महिला रजोनिवृत्ति (menopause) की औसत आयु तक नहीं पहुंच जाती।

एकोंड्रॉप्लासिया वाले बच्चों में ग्रोथ हार्मोन का सप्लीमेंट, अधिकतम वयस्क लम्बाई में वृद्धि नहीं कर पाता है।


4. लगातार स्वास्थ्य देखभाल

डॉक्टर द्वारा नियमित जांच और लगातार देखभाल ज़िन्दगी को आसान बना सकती है। इसमें लक्षण और जटिलताएं बहुत अलग-अलग हो सकती हैं, जैसे कि कान में संक्रमण, रीढ़ की हड्डी का सिकुड़ना या स्लीप एप्निया, इसलिए उनका इलाज रोगी के अनुसार ही किया जाता है।

बौने वयस्कों का पूरे जीवन में होने वाली समस्याओं का इलाज चलते रहना चाहिए।


बौनेपन की जटिलताएं - Dwarfism Risks & Complications

बौनेपन से संबंधित विकारों की जटिलताओं में काफी भिन्नता हो सकती है, लेकिन कुछ स्थितियों की कई जटिलताएं आम हैं।

1. डिस्प्रोपोर्शनेट बौनापन

इस प्रकार के बौनेपन में खोपड़ी, रीढ़ की हड्डी और हाथ-पैरों की विशेषताओं की वजह से कुछ दिक्कतें हो सकती हैं, जैसे कि:

1. बैठना, चलना या घुटनो के बल चलना जैसे कामों में समस्या
2. अक्सर कान में संक्रमण होना और कम सुनाई आने का खतरा
3. टांगो का बाहर की तरफ मुड़ जाना
4. नींद के दौरान सांस लेने में कठिनाई जिसे स्लीप एपनिया भी कहा जाता  है
5. खोपड़ी के निचले हिस्से की तरफ रीढ़ की हड्डी पर दबाव
मस्तिष्क के चारों ओर अतिरिक्त तरल पदार्थ का होना जिसे हाइड्रोसेफलस (hydrocephalus) भी कहा जाता है
6. दाँत टेढ़े-मेढ़े होना
7. कूबड़ होना और उसका गंभीर रूप से लगातार बढ़ना,
8. साथ ही पीठ दर्द और सांस लेने की समस्याएं होना
9. रीढ़ की हड्डी का सिकुड़ना जिसे "स्पाइनल स्टेनोसिस" (spinal stenosis) भी कहा जाता है, जिसके परिणामस्वरूप रीढ़ की हड्डी पर दबाव होता है और उससे पैरों में दर्द या सूजन होती है
10. गठिया होना
11. वजन बढ़ना जिससे जोड़ों और रीढ़ की हड्डी की जटिल समस्याएँ होती है और नसों पर दबाव पड़ता है


2. प्रोपोर्शनेट बौनापन

प्रोपोर्शनेट ड्वारफिज़्म की वजह से विकास से जुडी कई समस्याएं देखने को मिलती हैं जिनकी वजह से अंगों का सही तरीके से विकास नहीं हो पाता है। उदाहरण के लिए, टर्नर सिंड्रोम में अक्सर दिल की समस्याएं मौजूद होती हैं, जिनका स्वास्थ्य पर बहुत प्रभाव पड़ सकता है।

3. गर्भावस्था

प्रोपोर्शनेट ड्वारफिज़्म से ग्रसित महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान सांस से जुडी समस्याएँ देखने को मिल सकती है। सी-सेक्शन (सीज़ेरियन डिलीवरी) लगभग हमेशा जरूरी होता है क्योंकि श्रोणि का आकार, नॉर्मल डिलीवरी की अनुमति नहीं देता है।

4. सार्वजनिक धारणाएं

औसत लम्बाई वाले लोगों में बौने लोगों को लेकर गलत धारणाएँ हो सकती है। आजकल फिल्मों में बौनापन वाले लोगों के चित्रण में अक्सर रूढ़िवादीता शामिल होती है। गलतफहमी किसी व्यक्ति के आत्म-सम्मान को प्रभावित कर सकती है और स्कूल या रोजगार में सफलता के अवसरों को सीमित कर सकती है।

बौनापन वाले बच्चे विशेष रूप से सहपाठियों से चिढ़ाने और उपहास के लिए कमजोर होते हैं। क्योंकि बौनापन अपेक्षाकृत असामान्य है, बच्चे अपने साथियों से अलग महसूस कर सकते हैं।


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Monday, March 25, 2019

Achondroplasia बौनापन

 बौनापन Dwarfism

एक प्रमुख अनुवांशिक विकार है जो बौनेपन का आम कारण है Achondroplastic dwarfs का कद छोटा होता है, एक वयस्क की ऊंचाई १३१ सेमी होती है (4 फुट, 3-1/2 इंच) पुरुषों के लिए और 123 सेमी (4 फुट, 1 / 2 इंच) महिलाओं के लिए। व्याप्ति लगभग 1 में 25,000 है।

बौनापन इंसानों में आनुवांशिक या चिकित्सा स्थिति के कारण लम्बाई कम होने को कहा जाता है। बौनापन आमतौर पर 4 फीट 10 इंच या उससे कम की वयस्क ऊंचाई को कहा जाता है। बौनेपन वाले वयस्क लोगों की औसत लम्बाई 4 फीट होती है।

अधिकतर जिन माता-पिता की औसत लम्बाई होती है, उनके बच्चों में बौनापन देखने को मिलता है।

बौनेपन से होने वाली समस्याओं से अन्य स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती हैं, जिनमें से अधिकतर समस्याओं का इलाज किया जा सकता है। जीवनभर नियमित जांच करना महत्वपूर्ण है। उचित चिकित्सा देखभाल से अधिकांश बौने लोग आम लोगों जैसे सक्रिय और उनके बराबर लम्बी ज़िन्दगी ही जीते हैं।



बौनापन के प्रकार - Types of Dwarfism

कई अलग-अलग चिकित्सीय स्थितियों की वजह से बौनापन होता है। आम तौर पर, विकार को दो श्रेणियों में बांटा गया है :


1. डिस्प्रोपोर्शनेट बौनापन (Disproportionate dwarfism)

यदि शरीर का आकार असमान है, तो शरीर के कुछ हिस्से छोटे होते हैं, और अन्य हिस्से औसत आकार के या औसत से कुछ बड़े होते हैं। इससे होने वाले विकार से हड्डियों का विकास रुक जाता है।

2. प्रोपोर्शनेट बौनापन (Proportionate dwarfism)

शरीर के सभी हिस्से एक ही बराबर छोटे होते हैं और औसत आकार के शरीर की तरह बराबर अनुपात में होते हैं, जिससे पूरा शरीर आनुपातिक रूप से छोटा होता है। जन्म के समय से या शुरुआती बचपन में होने वाली चिकित्सा स्थितियों के कारण संपूर्ण विकास रुक जाता है।



बौनेपन के लक्षण - Dwarfism Symptoms

डिस्प्रोपोर्शनेट बौनापन                                                                               
अधिकतर बौने लोगों को कुछ ऐसे विकार होते हैं जो डिस्प्रोपोर्शनेट बौनापन का कारण बनते हैं। आम तौर पर, इसका मतलब यह होता है कि व्यक्ति का, औसत आकार का धड़ और बहुत छोटे हाथ-पैर होते हैं। लेकिन कुछ लोगों में बहुत छोटे धड़ के साथ-साथ, हाथ-पैर भी छोटे हो सकते हैं, मगर हाथ-पैर धड़ की तुलना में फिर भी बड़े होते हैं। इन विकारों में, सिर शरीर की तुलना में असमान रूप से बड़ा होता है।

डिस्प्रोपोर्शनेट बौनापन वाले अधिकतर सभी लोगों में सामान्य बौद्धिक क्षमताएं होती हैं। लेकिन कुछ बहुत ही कम ऐसे केस भी देखने को मिलें हैं जिनमे बौद्धिक क्षमताओं में कमी देखने को मिलती है। वो केस दूसरे कारणों का परिणाम होते हैं, जैसे मस्तिष्क के चारों ओर सामान्य से ज़्यादा तरल पदार्थ का होना, जिसे हाइड्रोसेफलस (hydrocephalus) भी कहा जाता है।

बौनेपन का सबसे आम कारण एक विकार है, जिसे एन्डोंड्रोप्लासिया (achondroplasia) कहा जाता है, जो असमान रूप से छोटे कद का कारण बनता है। यह विकार आमतौर पर निम्नलिखित परिणाम देता है:

1. शरीर के धड़ का औसत आकार होना
2. छोटे हाथ-पैर विशेष रूप से ऊपरी हाथ-पैर का छोटापन
3. छोटी अंगुलियां, अक्सर बीच वाली अंगुली और अनामिका अंगुली (रिंग फिंगर) के बीच में चौड़ा विभाजन
4. कोहनी में सीमित गतिशीलता
5. बड़ा सर, चौड़ा माथा और नाक का चपटा होना
6. धीरे-धीरे टांगों का बाहर की तरफ मुड़ते चले जाना
7. पीठ के निचले हिस्से का धीरे धीरे झुकते चले जाना
8. वयस्कों की ऊंचाई 4 फीट के आसपास होना

डिस्प्रोपोर्शनेट बौनापन का एक अन्य कारण एक तरह का दुर्लभ विकार है, जिसे "स्पोंडिलोइपिफिसियल डिस्प्लेसिया कॉन्जेनिटा" (spondyloepiphyseal dysplasia congenita) कहा जाता है। इसके संकेतों में शामिल हो सकते हैं:

1. छोटा ढाँचा
2. छोटी गर्दन
3. छोटी बाजुएं और टांगें
4. औसत आकार के हाथ और पैर
5. चौड़ा और फूला हुआ सीना
6. पिचके गाल
7. कटा हुआ तालु
8. कूल्हे की समस्या जिसके परिणामस्वरूप जांघों की हड्डियां अंदर की तरफ मुड़ जाती हैं
9. एक पैर का मुड़ जाना या उसका आकार ख़राब हो जाना
गर्दन की हड्डियों में अस्थिरता
10. कूबड़ का होना जो धीरे-धीरे बढ़ता है।
11. रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से का धीरे-धीरे झुकते चले जाना
12. आँखों की द्रष्टी और सुनने में समस्या
13. गठिया और जोड़ों की गतिविधि में समस्या
14. वयस्क की लम्बाई का 3 फीट (91 सेमी) से लेकर 4 फीट (122 सेमी) तक होना

प्रोपोर्शनेट बौनापन

प्रोपोर्शनेट बौनापन जन्म से या बचपन में होने वाली चिकित्सा स्थितियों का परिणाम होता है जो संपूर्ण विकास में बाधा पैदा करता है। जिसके कारण सर, धड़ और सभी अंग छोटे होते हैं, लेकिन वे समान अनुपात में होते हैं। ये विकार संपूर्ण विकास को प्रभावित करते हैं, जिसकी वजह से एक या अधिक शरीर की प्रणालियों का सही से विकास नहीं हो पाता है।

ग्रोथ हार्मोन की कमी, प्रोपोर्शनेट बौनापन का आम कारण है। ऐसा तब होता है जब पिट्यूटरी ग्रंथि ग्रोथ हार्मोन का पर्याप्त उत्पादन करने में विफल रहता है, जो बचपन में सामान्य विकास के लिए आवश्यक है। इसके लक्षणों में शामिल हैं -

1. मानक बाल चिकित्सा विकास चार्ट पर तीसरे प्रतिशत से नीची लम्बाई
2. उम्र के अनुसार लम्बाई कम होना
3. किशोरों में देरी से यौन विकास या कोई यौन विकास नहीं

डिस्प्रोपोर्शनेट बौनापन के लक्षण आमतौर पर जन्म से या बचपन की शुरुआत में नज़र आ जाते हैं। प्रोपोर्शनेट बौनापन तुरंत नज़र नहीं आता है। अगर आपको अपने बच्चे के संपूर्ण  किसी भी अंत तरह के विकास को लेकर चिंता है तो अपने बच्चे को डॉक्टर को दिखाएं।


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