आकलन और मूल्यांकन
[Assessment and Evaluation]
आकलन और मूल्यांकन दोनों का उद्देश्य बच्चों की अभिव्यक्ति, क्षमता, अनुभूति, आदि का मापन करना है। आकलन एक संक्षिप्त प्रक्रिया है और मूल्यांकन एक व्यापक प्रक्रिया है। मूल्यांकन किसी भी शैक्षिक कार्यक्रम में किसी भी पक्ष के विपक्ष में विषय में सूचना एकत्र करना उसका विया करना श्लेषण करना और व्याख्या करना है।
“सीसी रोस के अनुसार :- मूल्यांकन का प्रयोग बच्चे के संपूर्ण व्यक्तित्व तथा किसी की समूची स्थितियों की जांच प्रक्रिया के लिए किया जाता है। “
“कवालेंन तथा हन्ना के अनुसार :- विद्यालय में हुए छात्र के व्यवहार परिवर्तन के संबंध में प्रदत्त के संकलन तथा उनकी व्याख्या करने की प्रक्रिया को मूल्यांकन कहते हैं। “
एडम्स के अनुसार :- मूल्यांकन करना किसी वस्तु या प्रक्रिया के महत्व को निर्धारित करता है।
“J W Raiston के अनुसार :- मूल्यांकन में शिक्षा कार्यों में बल दिया जाता है और व्यापक व्यक्तित्व से संबंधित परिवर्तनों पर भी विशेष रुप से ध्यान दिया जाता है।
“डांडेकर के अनुसार :- मूल्यांकन हमें बताता है कि बालक ने किस सीमा तक किन उद्देश्यों को प्राप्त किया है।”
मूल्यांकन :- छात्र व्यवहार का परिमाणात्मक अध्ययन मापन + मूल्य निर्धारण।
मूल्यांकन :- छात्र व्यवहार का गुणात्मक अध्ययन + मूल्य निर्धारण।
मूल्य निर्धारण में छात्र को बताया जाता है कि उसके अंको के आधार पर सभी छात्रों के मध्य उसका रैंक (Rank) कहां पर है। अतः मूल्यांकन के अंतर्गत छात्र व्यवहार का परिमाणात्मक तथा गुणात्मक व्यवहार का अध्ययन एवं उसके मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया मूल्यांकन कहलाती है।
मूल्यांकन के उद्देश्य (Objectives of Evaluation)
मूल्यांकन का महत्व (Importance of Evaluation)
मूल्यांकन प्रक्रिया या मूल्यांकन के पद (Steps of Evaluation Process)
मूल्यांकन की प्रकृति (Nature of Evaluation)
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन (Continuous and Comprehensive Evaluation)
बच्चों के अधिगम का जब हम लगातार व्यापक रुप से मूल्यांकन करते हैं तो उसे सतत एवं व्यापक मूल्यांकन कहते हैं। इस मूल्यांकन में हम प्रश्नों को गहराई से पूछते हैं।
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) के अनुसार –
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन में यह तथ्य सम्मिलित होने चाहिए :-
निर्धारित शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति किस सीमा तक हो रही है।
कक्षा में प्रदान किए गए अधिगम अनुभव कितने प्रभावशाली रहे हैं।
व्यवहार परिवर्तन की प्रक्रिया कितने अच्छे ढंग से पूर्ण हो रही है।
हम किसी भी बच्चे का शैक्षणिक मूल्यांकन प्रश्न पत्र द्वारा कर सकते हैं।
जब हम प्रश्नपत्र प्यार करते हैं तो उसमें हम प्रश्नों को आधार बनाते हैं।
प्रश्नों के प्रकार (Types of Questions)
मुक्त अंत (Open Ended) :- मुक्त अंत प्रश्नों में हमें अपने विचार प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता होती है। हम अपने विचारों को अपने तरीकों से प्रस्तुत कर सकते हैं। उदाहरणार्थ – लघु उत्तरआत्मक प्रश्न, निबंधात्मक प्रश्न।
बंद – अंत (Close Ended) :- बंद अंत प्रश्नों में हमें अपने विचारों को प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता नहीं होती। हमें प्रश्न के विकल्प में से एक को छांटना होता है।
बंद अंत प्रश्नों के प्रकार (Types of Close Ended Questions)
मूल्यांकन के गुण (Characteristics of Evaluation) :-
वैधता (Validity) :- जिस उद्देश्य का मूल्यांकन करना हो उस उद्देश्य का मूल्यांकन हो जाता है तो उन साधनों, उपकरणों को वैध का जाता है।
विश्वसनीयता (Reliablity) :- विश्वसनीयता का अर्थ है विश्वास के पात्र अर्थात जब अंको का बदलाव न हो दोबारा से चेक करने पर भी अंक समान रहे वस्तुनिष्ट प्रश्न विश्वसनीय होते हैं। निबंधात्मक प्रश्न विश्वसनीय नहीं होते।
वस्तुनिष्ठता Objectivity) :- मूल्यांकन पक्षपात रहित होता है। उत्तर के लिखित आधार पर ही मूल्यांकन होता है ना की परीक्षा की दृष्टि के आधार पर होता है। वस्तुनिष्ठता में प्रश्न का अर्थ स्पष्ट होता है उसमें कोई भी भ्रांति नहीं होती है।
व्यापकता (Comprehensiveness) :- मूल्यांकन का क्षेत्र व्यापक होता है अर्थात गहराई में मूल्यांकन करते समय किसी भी विषय की गहराई से प्रश्न पूछना आवश्यक है।
उपयोगिता (Usefulness):- अच्छा मूल्यांकन हमेशा जीवन के लिए उपयोगी होता है। यह व्यवहारिक होता है तो प्रशिक्षण एवं जीवन में उपयोग किया जा सकता है।
विभेदीकरण (Differentiaton) :- मूल्यांकन में बच्चो में विभेद कर सकने की क्षमता होनी चाहिए जिससे की मूल्यांकन की निष्पक्षता बनी रहे।
मूल्यांकन के प्रकार (Types of Evaluation)
1. निर्माणात्मक रचनात्मक मूल्यांकन (Formative Evaluation) :- बच्चों की लगातार प्रतिपुष्टि के लिए निर्माणात्मक मूल्यांकन सहायक है। निर्माणात्मक मूल्यांकन के अध्यापक पढ़ाते समय यह जांच करते हैं कि बच्चे ने अनुभूतियां-अभिव्यक्तियां और ज्ञान को कितना ग्रहण किया है। निर्माणात्मक मूल्यांकन पाठ के बीच बीच में से किया जाता है।
2. योगात्मक / संकलनात्मक / अंतिम मूल्यांकन (Summative Evaluation) :- योगात्मक मूल्यांकन सत्र के अंत में होता है। अध्यापक द्वारा पढ़ाने के बाद यह देखना कि बच्चों ने ज्ञान को किस हद तक ग्रहण किया है। उदाहरणार्थ – किसी पाठ को पढ़ाने के बाद जब अध्यापक बच्चों से प्रश्न करता है तो वह योगात्मक मूल्यांकन कहलाता है।
3. निदानात्मक मूल्यांकन (Diagnostic Evaluation) :- वह जो बच्चे असफल हो रहे हैं उन बच्चों के असफलता का कारण ढूंढना निदानात्मक मूल्यांकन कहलाता है।
शैक्षिक उद्देश्यों का वर्गीकरण (Taxonomy of Educational Objectives)
शैक्षिक उद्देश्य से हम मूल्यांकन का तीन भागों में वर्गीकरण कर सकते हैं :-
1. ज्ञानात्मक / संज्ञानात्मक संकल्पना (Cognitive Domain) :- ज्ञानात्मक पक्ष ज्ञान को अर्जित करने से है। उदाहरण :- प्रत्यास्मरण,पहचानना, आत्मसात करना।
2. भावात्मक संकल्पना (Affective Domain) :- भावात्मक पक्ष का अर्थ भाव से अर्थात छात्र किसी काम को करने के लिए कितना धनात्मक महसूस करता है। उदाहरणार्थ – अभिप्रेरणा, पूछना, स्वीकार करना।
3. क्रियात्मक / गत्यात्मक संकल्पना (Psychomotor/Conative Domain) :- गत्यात्मक पक्ष का अर्थ क्रियाओं के करने से है। उदाहरणार्थ – करना, पर प्रश्नावली हल करना।
ब्लूम के अनुसार शैक्षिक उद्देश्यों का वर्गीकरण
(Bloom Taxonomy of Educational Objectives)
ब्लूम के अनुसार व्यवहार के तीन पक्ष है :-
प्रथम ज्ञानात्मक पक्ष का वर्गीकरण ब्लूम ने 1956 में, दूसरे पक्ष का वर्गीकरण ब्लूम में उसके सहयोगी कथवाल मारिया ने 1965 में और तीसरे क्रियात्मक पक्ष का वर्गीकरण सिंपसन तथा हैरो ने प्रस्तुत किया।
ज्ञानात्मक पक्ष के उद्देश्यों का वर्गीकरण (Taxonomy of Objectives in the Cognitive Domain)
ब्लूम ने ज्ञानात्मक पक्ष के उद्देश्यों को सरल से कठिन और शिक्षण अधिगम के निम्न स्तर से शुरू करके ऊँचे से ऊँचे स्तर तक ले जाने के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए 6 भागों में विभाजित किया है :-
(i) ज्ञान (Knowledge) :- इस वर्ग में विद्यार्थियों को पाठ्यवस्तु के विशिष्ट तथ्य पदों, परंपराओं, प्रचलनों, वर्गो, कसौटियों का प्रत्यय विज्ञान और प्रत्यास्मरण कराने का प्रयास किया जाता है। उदाहरण – परिभाषा देना, सूची देना, मापन करना, प्रत्यास्मरण, पहचानना, पुनरुत्पादन आदि।
(ii) बोध (Comprehension) :- ज्ञान वर्ग में बच्चों को जो ज्ञान कराया जाता है। बोध में उसके बारे में समझ विकसित की जाती है। ज्ञान के बिना अवबोध करना आसान नहीं है। उदाहरणार्थ – वर्गीकरण, भेद करना, व्याख्या, प्रतिपादन करना, उदाहरण देना, संकेत करना, सारांश, रुपांतरण करना आदि।
(iii) प्रयोग (Application) :- आत्मसात किए हुए ज्ञान को परिस्थितियों के अनुसार प्रयोग करना। उदाहरण जांच करना, प्रदर्शित करना, संचालित करना, गणना करना, संशोधित करना, पूर्व कथन देना, परिपालन करना।
(iv) विश्लेषण (Analysis) :- आत्मसात किये हुए ज्ञान में से अलग – अलग करने की क्षमता। उदाहरण – विश्लेषण करना, संबंधित करना, तुलना करना, आलोचना, विभेद, इंगित करना, अलग – अलग करना।
(v) संश्लेषण (Synthesis) :- पाठ्यवस्तु में दिए हुए संप्रत्यय, नियमों के आधार पर उनमें से अपने अनुसार संप्रत्य निकालना। उदाहरण – तर्क देना, निष्कर्ष देना, निकालना, वाद – विवाद करना, संगठित करना, सिद्ध करना।
(vi) मूल्यांकन (Evaluation) :- सीखे हुए ज्ञान का मूल्यांकन करना कि ज्ञान को कितनी हद तक आत्मसात किया है उदाहरण – चुनना, बचाव करना, निश्चित करना, निर्णय लेना आदि।
भावात्मक पक्ष (Affective Domain)
ब्लूम ने भावात्मक पक्ष को पांच भागों में बांटा :-
1. आग्रहण या ध्यान देना (Receving or Attending) :- बच्चों को अभिप्रेरित करना ताकि बच्चे अध्यापक द्वारा पढ़ाई गई सामग्री में इच्छित हो। बच्चों को इस प्रकार से अभी प्रेरित करना कि विद्यार्थियों में मानवीय मूल्यों को भली भांति ग्रहण करने के लिए पर्याप्त इच्छा जागृत हो जाए। उदाहरण – पूछना, स्वीकार करना, ध्यान देना, अनुसरण करना, प्रत्यक्षीकरण।
2. अनुक्रिया (Responding) :- दिए हुए उद्देश्य के प्रति काम करना। उदाहरण – उत्तर देना, मदद करना, पूर्ण करना, पूरा करना, विकसित करना, लेबल देना, आज्ञा पालन करना अभ्यास करना।
3. आकलन (Value) :- इस स्तर पर विद्यार्थियों में किसी विशेष मूल्य को स्वीकार करने व किसी विशेष मूल्य के प्रति अधिक लगाव या अभिरुचि प्रकट करते हुए उसके पालन के लिए वचनबद्ध होने की योजना को विकसित करने का प्रयास किया जाता है। उदाहरण :- अभिरुचि को कर्म देना वृद्धि करना संकेत करना।
4. संगठन (Organization) :- पूर्व अनुभव को संगठित करना। उदाहरण – जोड़ने से संबंध स्थापित करना, पाना बनाना, सामान्यीकरण करना, योजना बनाना , व्यवस्थित करना।
5. मूल्यों का चरित्रीकरण / विशेषीकरण करना (Characterization by a value or Value
Complex) :- इसमें विद्यार्थियों के व्यक्तिगत और सामाजिक मूल्यों के समन्वय से उत्पन्न जिस मूल्य प्रणाली अथवा चरित्र की भूमिका बन चुकी होती है उसे विशेष रूप से प्रदान करने का प्रयत्न किया जाता है। उदाहरण – चरित्रकरण, निश्चय करना, प्रयोग करना, सामना करना, पुष्टिकरण करना, हल करना आदि।
क्रियात्मक पक्ष / मनोगत्यात्मक पक्ष (Psychomotor)
ब्लूम ने क्रियात्मक पक्ष को 6 भागों में बांटा है :-
1. सहज क्रियात्मक अंगसंचालन (Reflex Movement) :- सहज क्रियात्मक अंग संचालन में बच्चा अपने चारों ओर फैले किसी उद्दीपन के संपर्क में आता है तो वह कोई ना कोई प्रतिक्रिया अनजाने में ही व्यक्त करता है। जैसे हाथ पर चींटी गिरते ही हाथ झटक देना।
उदाहरण – काटना, झटका देना, ढीला करना, छोटा करना आदि।
2. आधारभूत अंगसंचालन (Basic Fundamental Movement) :- किसी प्रकार का आदेश मिलने पर अंग संचालन करना आधारभूत अंग संचालन कहलाता है। जैसे उछलना, कूदना, पकड़ना, रेंगना, पहुंचना, दौड़ना आदि।
3. शारीरिक योग्यताएं (Physical Ability) :- अंग संचालन क्रियाओं को करने के लिए काम करने की क्षमता को बढ़ाना। उदाहरण – शुरू करना, सहन करना, झुकना, व्यवहार करना, सुधारना, रोकना, टुकड़े टुकड़े करना आदि।
4. प्रत्यक्षीकरण योग्यताएं (Perceptual Ability) :- प्रत्यक्षीकरण योग्यताएं बच्चों के ज्ञानेन्द्रियो व कमेन्द्रिओ के सामंजस्य पर निर्भर करती है।वह वातावरण में फैले उद्दीपन को पहचानने व समझते हुए उनके साथ समायोजन करने में सफल होता है। उदाहरण – सूंघकर या सुनकर पहचान करना, स्मृतिचित्रण करना, लिखना, फेंकना आदि।
5. कौशलयुक्त अंगसंचालन (Skilled Movement) :- अभ्यास के द्वारा किसी काम में पूर्ण होना। उदाहरण- नृत्य करना, खोदना, चलाना, गोता लगाना, नाव खेना, तैरना, निशाना लगाना आदि।
6. सांकेतिक संप्रेषण (Non Discursive Communication) :- बिना बोले भावों को प्रदर्शित करना। उदाहरण – नकल उतारना, भाव-भंगिमा बनाना, चित्रांकन करना, मुस्कुराना, चिढ़ाना आदि।
मूल्यांकन की विधियां (Techniques of Evaluation)
1. मनोवैज्ञानिक परीक्षण (Psychlogical Test) :- यह व्यक्ति की मानसिक तथा व्यवहारात्मक विशेषताओं का वस्तुनिष्ठ तथा मानवीकृत मापक होता है।
2. साक्षात्कार (Interview) :- साक्षात्कार की विधि में परीक्षणकर्ता आदमी से बातचीत करके सूचनाएं एकत्र करता है। उदाहरण – एक विक्रेता घर-घर जाकर किसी विशिष्ट उत्पाद की उपयोगिता के संबंध में सर्वेक्षण करता है।
3. व्यक्ति अध्ययन (Case Study) :- इस विधि में किसी आदमी के मनोवैज्ञानिक गुणों तथा मनोसामाजिक और भौतिक पर्यावरण के संदर्भ में उसके मनोवैज्ञानिक इतिहास आदि का गहनता से अध्ययन किया जाता है।
4. प्रेक्षण (Observation) :- इसमें व्यक्ति की स्वाभाविक दशा में घटित होने वाली ताक्षणिक व्यवहारगत घटनाओं तथा व्यवस्थित, तथा वस्तुनिष्ठ ढंग से अभिलेखों पर तैयार किया जाता है।
5. आत्म – प्रतिवेदन (Self Report) :- इस विधि में व्यक्ति स्वयम अपने विश्वासों, मतों आदि के बारे में तथ्यात्मक सूचनाएं प्रदान करता है।
6. संचित अभिलेख पत्र (Cumulative Record) :- छात्रों के व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों में आए व्यवहार परिवर्तनों एवं उपलब्धियों को एक ही प्रपत्र में लिखकर सुरक्षित रखा जाता है यह संचित अभिलेख पत्र कहलाता है। उदाहरण – बच्चों का शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, नैतिक, मनोवैज्ञानिक अभिलेख तैयार करना। दूसरे शब्दों में बच्चों का सर्वांगीण अभिलेख।
7. घटनावृत्त (Anecdotal Record) :- स्कूल में घटित होने वाली दैनिक घटनाओं का विवरण भी बालकों के व्यवहार परिवर्तन का मूल्यांकन करने में सहायता करता है। उन घटनाओं में किस छात्र की क्या उपलब्धि हुई उस बात का विवरण बच्चों विवरण बच्चों की भाषागत उपलब्धियों को मापने में सहायता करता है। उदाहरणार्थ – किसी प्रतिस्पर्धा या घटना में अभिलेख तैयार करना, क्या सभी बच्चे संयुक्त वाक्य और मिश्रित वाक्य बना सकते हैं इसका अभिलेख तैयार करना।
8. निर्धारण मापनी (Rating Scale) :- बच्चों की योग्यताओं व उपलब्धि को इस तरह जांचना कि वह किस स्तर की है। इस बात का निर्धारण करने के लिए निर्धारण मापनी का प्रयोग किया जाता है। उदाहरणार्थ – ग्रेड देना।
9. पोर्टफोलियो (Portfolio) :- समय की एक निश्चित अवधि में विद्यार्थियों द्वारा किए गए कार्यों का संग्रह। ये रोजमर्रा के काम भी हो सकते हैं या फिर शिक्षार्थी के कार्यों के उत्कृष्ट नमूने भी हो सकते हैं। उदाहरण -बच्चों के भाषा विकास – कर्मिक प्रगति का रिकॉर्ड रखना।
मूल्यांकन के प्रतिमान (Pattern of Evaluation)
1. अधिगम के लिए मूल्यांकन / आकलन (Evaluation/Assessment for Learning):- अधिगम के लिए मूल्य मूल्यांकन निर्माणात्मक मूल्यांकन पर आधारित होता है अर्थात जब हम किसी काम को करते समय उसके बीच में ही जांच करते हैं कि हम कितना सीख रहे हैं। उदाहरण – जब हम खाना बनाते समय अगर बीच में ही चखते हैं तो हम खाने की जांच कर रहे हैं कि हमने कैसा खाना बनाना सीखा है।
2. अधिगम का मूल्यांकन / आकलन (Evaluation/Assessmentof Learning) :-
अधिगम का मूल्यांकन योगात्मक योगात्मक मूल्यांकन पर आधारित होता है। अर्थात हम काम को खत्म करके उसकी जांच करते हैं कि हमने कितना सीखा। उदाहरण – जब कोई अध्यापक बच्चों को किसी भ्रमण के लिए लेकर जाता है और बाद में स्कूल वापस आने पर प्रश्न करता है तो वह जांच रहा है कि बच्चों ने वहां क्या-क्या सीखा परंतु इसमें काम के बीच में न कर अंत में मूल्यांकन करते हैं।
3. आकलन / अधिगम के रूप में मूल्यांकन (Assessment/Evaluation as Learning) :-
अधिगम के रूप में मूल्यांकन नैदानिक मूल्यांकन पर आधारित होता है। छात्र आपने अधिगम और अन्य लोगों के अधिगम के बारे में गुणवत्तापूर्ण सूचना उत्पन्न करने के लिए अधिक दायित्व लेते हैं।
दोस्तों आपको यह आर्टिकल कैसा लगा हमें जरुर बताये. आप अपनी राय, सवाल और सुझाव हमें comments के जरिये जरुर भेजे. अगर आपको यह आर्टिकल उपयोगी लगा हो तो कृपया इसे share करे।
आप E-mail के द्वारा भी अपना सुझाव दे सकते हैं। prakashgoswami03@gmail.com
http://Goswamispecial.blogspot.com
[Assessment and Evaluation]
आकलन और मूल्यांकन दोनों का उद्देश्य बच्चों की अभिव्यक्ति, क्षमता, अनुभूति, आदि का मापन करना है। आकलन एक संक्षिप्त प्रक्रिया है और मूल्यांकन एक व्यापक प्रक्रिया है। मूल्यांकन किसी भी शैक्षिक कार्यक्रम में किसी भी पक्ष के विपक्ष में विषय में सूचना एकत्र करना उसका विया करना श्लेषण करना और व्याख्या करना है।
“सीसी रोस के अनुसार :- मूल्यांकन का प्रयोग बच्चे के संपूर्ण व्यक्तित्व तथा किसी की समूची स्थितियों की जांच प्रक्रिया के लिए किया जाता है। “
“कवालेंन तथा हन्ना के अनुसार :- विद्यालय में हुए छात्र के व्यवहार परिवर्तन के संबंध में प्रदत्त के संकलन तथा उनकी व्याख्या करने की प्रक्रिया को मूल्यांकन कहते हैं। “
एडम्स के अनुसार :- मूल्यांकन करना किसी वस्तु या प्रक्रिया के महत्व को निर्धारित करता है।
“J W Raiston के अनुसार :- मूल्यांकन में शिक्षा कार्यों में बल दिया जाता है और व्यापक व्यक्तित्व से संबंधित परिवर्तनों पर भी विशेष रुप से ध्यान दिया जाता है।
“डांडेकर के अनुसार :- मूल्यांकन हमें बताता है कि बालक ने किस सीमा तक किन उद्देश्यों को प्राप्त किया है।”
मूल्यांकन :- छात्र व्यवहार का परिमाणात्मक अध्ययन मापन + मूल्य निर्धारण।
मूल्यांकन :- छात्र व्यवहार का गुणात्मक अध्ययन + मूल्य निर्धारण।
मूल्य निर्धारण में छात्र को बताया जाता है कि उसके अंको के आधार पर सभी छात्रों के मध्य उसका रैंक (Rank) कहां पर है। अतः मूल्यांकन के अंतर्गत छात्र व्यवहार का परिमाणात्मक तथा गुणात्मक व्यवहार का अध्ययन एवं उसके मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया मूल्यांकन कहलाती है।
मूल्यांकन के उद्देश्य (Objectives of Evaluation)
- बच्चों में अपेक्षित व्यवहार एवं आचरण परिवर्तन की जांच करना।
- यह जांचना कि बच्चों ने कुशलताओं, योग्यता, आदि को कितना ग्रहण किया है।
- बालकों की सभी कठिनाइयों का निर्धारण करने तथा दोषो को जानना।
- उपचारात्मक शिक्षण प्रदान करना।
- बालकों की चहुमुखी विकास को निरंतर गति प्रदान करना।
- इससे अध्ययन और अध्यापन दोनों का मापन कर सकते हैं।
- मूल्यांकन द्वारा प्रयोजन, शिक्षण विधियों की उपयोगिता एवं विद्यालय की समस्त क्रियाओं का अंकन करना।
मूल्यांकन का महत्व (Importance of Evaluation)
- छात्रों को अध्ययन की ओर अग्रसित करता है।
- छात्रों के व्यक्तिगत मार्गदर्शन में सहायता करता है।
- शिक्षण के उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक है।
- बच्चों की कमजोरियों को जानने में सहायक होता है।
- बच्चों की प्रगति में सहायक है।
- शैक्षिक व व्यवसायिक मार्गदर्शन में सहायक है।
मूल्यांकन प्रक्रिया या मूल्यांकन के पद (Steps of Evaluation Process)
- मूल्यांकन के उद्देश्यों का चयन व निर्धारण।
- उद्देश्यों का निर्धारण विश्लेषण (व्यवहारगत परिवर्तन के संदर्भ में) ।
- मूल्यांकन प्रविधियों का चयन करना।
- मूल्यांकन प्रविधियों का प्रयोग एवं परिणाम निकालना।
- परिणामो की व्याख्या सामान्यकरण करना।
मूल्यांकन की प्रकृति (Nature of Evaluation)
- मूल्यांकन एक सतत प्रक्रिया है मूल्यांकन शिक्षण प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है।
- इसका सीधा संबंध शिक्षा के उद्देश्य से होता है।
- यह बालकों के परिणामों की गुणवत्ता मूल्य और प्रभाव प्रभाव एकता के आधार पर उनके भावी कार्यक्रमों का निर्धारण करता है।
- मूल्यांकन का प्रमुख प्रयोजन व्यवहारगत परिवर्तन की दिशा प्रकृति एवं स्तर के संबंध में निर्णय करना है यह शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति की सीमा का निर्धारण करने वाली प्रक्रिया है।
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन (Continuous and Comprehensive Evaluation)
बच्चों के अधिगम का जब हम लगातार व्यापक रुप से मूल्यांकन करते हैं तो उसे सतत एवं व्यापक मूल्यांकन कहते हैं। इस मूल्यांकन में हम प्रश्नों को गहराई से पूछते हैं।
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) के अनुसार –
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन में यह तथ्य सम्मिलित होने चाहिए :-
निर्धारित शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति किस सीमा तक हो रही है।
कक्षा में प्रदान किए गए अधिगम अनुभव कितने प्रभावशाली रहे हैं।
व्यवहार परिवर्तन की प्रक्रिया कितने अच्छे ढंग से पूर्ण हो रही है।
हम किसी भी बच्चे का शैक्षणिक मूल्यांकन प्रश्न पत्र द्वारा कर सकते हैं।
जब हम प्रश्नपत्र प्यार करते हैं तो उसमें हम प्रश्नों को आधार बनाते हैं।
प्रश्नों के प्रकार (Types of Questions)
- मुक्त अंत / मुक्त उत्तरीय प्रश्न
- बंद अंत / सीमित उत्तर वाले प्रश्न
मुक्त अंत (Open Ended) :- मुक्त अंत प्रश्नों में हमें अपने विचार प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता होती है। हम अपने विचारों को अपने तरीकों से प्रस्तुत कर सकते हैं। उदाहरणार्थ – लघु उत्तरआत्मक प्रश्न, निबंधात्मक प्रश्न।
बंद – अंत (Close Ended) :- बंद अंत प्रश्नों में हमें अपने विचारों को प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता नहीं होती। हमें प्रश्न के विकल्प में से एक को छांटना होता है।
बंद अंत प्रश्नों के प्रकार (Types of Close Ended Questions)
- बहु विकल्प प्रश्न – कई विकल्प में से एक को चुनना।
- सत्य = असत्य – हां और ना में उत्तर देना।
- मिलान – सही विकल्प का मिलान करना।
- खाली स्थान – खाली जगह के स्थान पर सही विकल्प।
- वर्गीकृत प्रश्न – पांच छह शब्दों के एक समूह में से अलग शब्द निकालना।
- व्यवस्थितकरण प्रश्न – शब्दों को व्यवस्थित रुप से लगाना।
मूल्यांकन के गुण (Characteristics of Evaluation) :-
वैधता (Validity) :- जिस उद्देश्य का मूल्यांकन करना हो उस उद्देश्य का मूल्यांकन हो जाता है तो उन साधनों, उपकरणों को वैध का जाता है।
विश्वसनीयता (Reliablity) :- विश्वसनीयता का अर्थ है विश्वास के पात्र अर्थात जब अंको का बदलाव न हो दोबारा से चेक करने पर भी अंक समान रहे वस्तुनिष्ट प्रश्न विश्वसनीय होते हैं। निबंधात्मक प्रश्न विश्वसनीय नहीं होते।
वस्तुनिष्ठता Objectivity) :- मूल्यांकन पक्षपात रहित होता है। उत्तर के लिखित आधार पर ही मूल्यांकन होता है ना की परीक्षा की दृष्टि के आधार पर होता है। वस्तुनिष्ठता में प्रश्न का अर्थ स्पष्ट होता है उसमें कोई भी भ्रांति नहीं होती है।
व्यापकता (Comprehensiveness) :- मूल्यांकन का क्षेत्र व्यापक होता है अर्थात गहराई में मूल्यांकन करते समय किसी भी विषय की गहराई से प्रश्न पूछना आवश्यक है।
उपयोगिता (Usefulness):- अच्छा मूल्यांकन हमेशा जीवन के लिए उपयोगी होता है। यह व्यवहारिक होता है तो प्रशिक्षण एवं जीवन में उपयोग किया जा सकता है।
विभेदीकरण (Differentiaton) :- मूल्यांकन में बच्चो में विभेद कर सकने की क्षमता होनी चाहिए जिससे की मूल्यांकन की निष्पक्षता बनी रहे।
मूल्यांकन के प्रकार (Types of Evaluation)
- निर्माणात्मक / रचनात्मक मूल्यांकन (Formative Evaluation)
- योगात्मक / संकलनात्मक / अंतिम मूल्यांकन (Summative Evaluation)
- निदानात्मक मूल्यांकन (Diagnostic Evaluation)
1. निर्माणात्मक रचनात्मक मूल्यांकन (Formative Evaluation) :- बच्चों की लगातार प्रतिपुष्टि के लिए निर्माणात्मक मूल्यांकन सहायक है। निर्माणात्मक मूल्यांकन के अध्यापक पढ़ाते समय यह जांच करते हैं कि बच्चे ने अनुभूतियां-अभिव्यक्तियां और ज्ञान को कितना ग्रहण किया है। निर्माणात्मक मूल्यांकन पाठ के बीच बीच में से किया जाता है।
2. योगात्मक / संकलनात्मक / अंतिम मूल्यांकन (Summative Evaluation) :- योगात्मक मूल्यांकन सत्र के अंत में होता है। अध्यापक द्वारा पढ़ाने के बाद यह देखना कि बच्चों ने ज्ञान को किस हद तक ग्रहण किया है। उदाहरणार्थ – किसी पाठ को पढ़ाने के बाद जब अध्यापक बच्चों से प्रश्न करता है तो वह योगात्मक मूल्यांकन कहलाता है।
3. निदानात्मक मूल्यांकन (Diagnostic Evaluation) :- वह जो बच्चे असफल हो रहे हैं उन बच्चों के असफलता का कारण ढूंढना निदानात्मक मूल्यांकन कहलाता है।
शैक्षिक उद्देश्यों का वर्गीकरण (Taxonomy of Educational Objectives)
शैक्षिक उद्देश्य से हम मूल्यांकन का तीन भागों में वर्गीकरण कर सकते हैं :-
1. ज्ञानात्मक / संज्ञानात्मक संकल्पना (Cognitive Domain) :- ज्ञानात्मक पक्ष ज्ञान को अर्जित करने से है। उदाहरण :- प्रत्यास्मरण,पहचानना, आत्मसात करना।
2. भावात्मक संकल्पना (Affective Domain) :- भावात्मक पक्ष का अर्थ भाव से अर्थात छात्र किसी काम को करने के लिए कितना धनात्मक महसूस करता है। उदाहरणार्थ – अभिप्रेरणा, पूछना, स्वीकार करना।
3. क्रियात्मक / गत्यात्मक संकल्पना (Psychomotor/Conative Domain) :- गत्यात्मक पक्ष का अर्थ क्रियाओं के करने से है। उदाहरणार्थ – करना, पर प्रश्नावली हल करना।
ब्लूम के अनुसार शैक्षिक उद्देश्यों का वर्गीकरण
(Bloom Taxonomy of Educational Objectives)
ब्लूम के अनुसार व्यवहार के तीन पक्ष है :-
- ज्ञानात्मक पक्ष
- भावात्मक पक्ष
- क्रियात्मक पक्ष
ज्ञानात्मक पक्ष के उद्देश्यों का वर्गीकरण (Taxonomy of Objectives in the Cognitive Domain)
ब्लूम ने ज्ञानात्मक पक्ष के उद्देश्यों को सरल से कठिन और शिक्षण अधिगम के निम्न स्तर से शुरू करके ऊँचे से ऊँचे स्तर तक ले जाने के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए 6 भागों में विभाजित किया है :-
(i) ज्ञान (Knowledge) :- इस वर्ग में विद्यार्थियों को पाठ्यवस्तु के विशिष्ट तथ्य पदों, परंपराओं, प्रचलनों, वर्गो, कसौटियों का प्रत्यय विज्ञान और प्रत्यास्मरण कराने का प्रयास किया जाता है। उदाहरण – परिभाषा देना, सूची देना, मापन करना, प्रत्यास्मरण, पहचानना, पुनरुत्पादन आदि।
(ii) बोध (Comprehension) :- ज्ञान वर्ग में बच्चों को जो ज्ञान कराया जाता है। बोध में उसके बारे में समझ विकसित की जाती है। ज्ञान के बिना अवबोध करना आसान नहीं है। उदाहरणार्थ – वर्गीकरण, भेद करना, व्याख्या, प्रतिपादन करना, उदाहरण देना, संकेत करना, सारांश, रुपांतरण करना आदि।
(iii) प्रयोग (Application) :- आत्मसात किए हुए ज्ञान को परिस्थितियों के अनुसार प्रयोग करना। उदाहरण जांच करना, प्रदर्शित करना, संचालित करना, गणना करना, संशोधित करना, पूर्व कथन देना, परिपालन करना।
(iv) विश्लेषण (Analysis) :- आत्मसात किये हुए ज्ञान में से अलग – अलग करने की क्षमता। उदाहरण – विश्लेषण करना, संबंधित करना, तुलना करना, आलोचना, विभेद, इंगित करना, अलग – अलग करना।
(v) संश्लेषण (Synthesis) :- पाठ्यवस्तु में दिए हुए संप्रत्यय, नियमों के आधार पर उनमें से अपने अनुसार संप्रत्य निकालना। उदाहरण – तर्क देना, निष्कर्ष देना, निकालना, वाद – विवाद करना, संगठित करना, सिद्ध करना।
(vi) मूल्यांकन (Evaluation) :- सीखे हुए ज्ञान का मूल्यांकन करना कि ज्ञान को कितनी हद तक आत्मसात किया है उदाहरण – चुनना, बचाव करना, निश्चित करना, निर्णय लेना आदि।
भावात्मक पक्ष (Affective Domain)
ब्लूम ने भावात्मक पक्ष को पांच भागों में बांटा :-
1. आग्रहण या ध्यान देना (Receving or Attending) :- बच्चों को अभिप्रेरित करना ताकि बच्चे अध्यापक द्वारा पढ़ाई गई सामग्री में इच्छित हो। बच्चों को इस प्रकार से अभी प्रेरित करना कि विद्यार्थियों में मानवीय मूल्यों को भली भांति ग्रहण करने के लिए पर्याप्त इच्छा जागृत हो जाए। उदाहरण – पूछना, स्वीकार करना, ध्यान देना, अनुसरण करना, प्रत्यक्षीकरण।
2. अनुक्रिया (Responding) :- दिए हुए उद्देश्य के प्रति काम करना। उदाहरण – उत्तर देना, मदद करना, पूर्ण करना, पूरा करना, विकसित करना, लेबल देना, आज्ञा पालन करना अभ्यास करना।
3. आकलन (Value) :- इस स्तर पर विद्यार्थियों में किसी विशेष मूल्य को स्वीकार करने व किसी विशेष मूल्य के प्रति अधिक लगाव या अभिरुचि प्रकट करते हुए उसके पालन के लिए वचनबद्ध होने की योजना को विकसित करने का प्रयास किया जाता है। उदाहरण :- अभिरुचि को कर्म देना वृद्धि करना संकेत करना।
4. संगठन (Organization) :- पूर्व अनुभव को संगठित करना। उदाहरण – जोड़ने से संबंध स्थापित करना, पाना बनाना, सामान्यीकरण करना, योजना बनाना , व्यवस्थित करना।
5. मूल्यों का चरित्रीकरण / विशेषीकरण करना (Characterization by a value or Value
Complex) :- इसमें विद्यार्थियों के व्यक्तिगत और सामाजिक मूल्यों के समन्वय से उत्पन्न जिस मूल्य प्रणाली अथवा चरित्र की भूमिका बन चुकी होती है उसे विशेष रूप से प्रदान करने का प्रयत्न किया जाता है। उदाहरण – चरित्रकरण, निश्चय करना, प्रयोग करना, सामना करना, पुष्टिकरण करना, हल करना आदि।
क्रियात्मक पक्ष / मनोगत्यात्मक पक्ष (Psychomotor)
ब्लूम ने क्रियात्मक पक्ष को 6 भागों में बांटा है :-
1. सहज क्रियात्मक अंगसंचालन (Reflex Movement) :- सहज क्रियात्मक अंग संचालन में बच्चा अपने चारों ओर फैले किसी उद्दीपन के संपर्क में आता है तो वह कोई ना कोई प्रतिक्रिया अनजाने में ही व्यक्त करता है। जैसे हाथ पर चींटी गिरते ही हाथ झटक देना।
उदाहरण – काटना, झटका देना, ढीला करना, छोटा करना आदि।
2. आधारभूत अंगसंचालन (Basic Fundamental Movement) :- किसी प्रकार का आदेश मिलने पर अंग संचालन करना आधारभूत अंग संचालन कहलाता है। जैसे उछलना, कूदना, पकड़ना, रेंगना, पहुंचना, दौड़ना आदि।
3. शारीरिक योग्यताएं (Physical Ability) :- अंग संचालन क्रियाओं को करने के लिए काम करने की क्षमता को बढ़ाना। उदाहरण – शुरू करना, सहन करना, झुकना, व्यवहार करना, सुधारना, रोकना, टुकड़े टुकड़े करना आदि।
4. प्रत्यक्षीकरण योग्यताएं (Perceptual Ability) :- प्रत्यक्षीकरण योग्यताएं बच्चों के ज्ञानेन्द्रियो व कमेन्द्रिओ के सामंजस्य पर निर्भर करती है।वह वातावरण में फैले उद्दीपन को पहचानने व समझते हुए उनके साथ समायोजन करने में सफल होता है। उदाहरण – सूंघकर या सुनकर पहचान करना, स्मृतिचित्रण करना, लिखना, फेंकना आदि।
5. कौशलयुक्त अंगसंचालन (Skilled Movement) :- अभ्यास के द्वारा किसी काम में पूर्ण होना। उदाहरण- नृत्य करना, खोदना, चलाना, गोता लगाना, नाव खेना, तैरना, निशाना लगाना आदि।
6. सांकेतिक संप्रेषण (Non Discursive Communication) :- बिना बोले भावों को प्रदर्शित करना। उदाहरण – नकल उतारना, भाव-भंगिमा बनाना, चित्रांकन करना, मुस्कुराना, चिढ़ाना आदि।
मूल्यांकन की विधियां (Techniques of Evaluation)
1. मनोवैज्ञानिक परीक्षण (Psychlogical Test) :- यह व्यक्ति की मानसिक तथा व्यवहारात्मक विशेषताओं का वस्तुनिष्ठ तथा मानवीकृत मापक होता है।
2. साक्षात्कार (Interview) :- साक्षात्कार की विधि में परीक्षणकर्ता आदमी से बातचीत करके सूचनाएं एकत्र करता है। उदाहरण – एक विक्रेता घर-घर जाकर किसी विशिष्ट उत्पाद की उपयोगिता के संबंध में सर्वेक्षण करता है।
3. व्यक्ति अध्ययन (Case Study) :- इस विधि में किसी आदमी के मनोवैज्ञानिक गुणों तथा मनोसामाजिक और भौतिक पर्यावरण के संदर्भ में उसके मनोवैज्ञानिक इतिहास आदि का गहनता से अध्ययन किया जाता है।
4. प्रेक्षण (Observation) :- इसमें व्यक्ति की स्वाभाविक दशा में घटित होने वाली ताक्षणिक व्यवहारगत घटनाओं तथा व्यवस्थित, तथा वस्तुनिष्ठ ढंग से अभिलेखों पर तैयार किया जाता है।
5. आत्म – प्रतिवेदन (Self Report) :- इस विधि में व्यक्ति स्वयम अपने विश्वासों, मतों आदि के बारे में तथ्यात्मक सूचनाएं प्रदान करता है।
6. संचित अभिलेख पत्र (Cumulative Record) :- छात्रों के व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों में आए व्यवहार परिवर्तनों एवं उपलब्धियों को एक ही प्रपत्र में लिखकर सुरक्षित रखा जाता है यह संचित अभिलेख पत्र कहलाता है। उदाहरण – बच्चों का शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, नैतिक, मनोवैज्ञानिक अभिलेख तैयार करना। दूसरे शब्दों में बच्चों का सर्वांगीण अभिलेख।
7. घटनावृत्त (Anecdotal Record) :- स्कूल में घटित होने वाली दैनिक घटनाओं का विवरण भी बालकों के व्यवहार परिवर्तन का मूल्यांकन करने में सहायता करता है। उन घटनाओं में किस छात्र की क्या उपलब्धि हुई उस बात का विवरण बच्चों विवरण बच्चों की भाषागत उपलब्धियों को मापने में सहायता करता है। उदाहरणार्थ – किसी प्रतिस्पर्धा या घटना में अभिलेख तैयार करना, क्या सभी बच्चे संयुक्त वाक्य और मिश्रित वाक्य बना सकते हैं इसका अभिलेख तैयार करना।
8. निर्धारण मापनी (Rating Scale) :- बच्चों की योग्यताओं व उपलब्धि को इस तरह जांचना कि वह किस स्तर की है। इस बात का निर्धारण करने के लिए निर्धारण मापनी का प्रयोग किया जाता है। उदाहरणार्थ – ग्रेड देना।
9. पोर्टफोलियो (Portfolio) :- समय की एक निश्चित अवधि में विद्यार्थियों द्वारा किए गए कार्यों का संग्रह। ये रोजमर्रा के काम भी हो सकते हैं या फिर शिक्षार्थी के कार्यों के उत्कृष्ट नमूने भी हो सकते हैं। उदाहरण -बच्चों के भाषा विकास – कर्मिक प्रगति का रिकॉर्ड रखना।
मूल्यांकन के प्रतिमान (Pattern of Evaluation)
1. अधिगम के लिए मूल्यांकन / आकलन (Evaluation/Assessment for Learning):- अधिगम के लिए मूल्य मूल्यांकन निर्माणात्मक मूल्यांकन पर आधारित होता है अर्थात जब हम किसी काम को करते समय उसके बीच में ही जांच करते हैं कि हम कितना सीख रहे हैं। उदाहरण – जब हम खाना बनाते समय अगर बीच में ही चखते हैं तो हम खाने की जांच कर रहे हैं कि हमने कैसा खाना बनाना सीखा है।
2. अधिगम का मूल्यांकन / आकलन (Evaluation/Assessmentof Learning) :-
अधिगम का मूल्यांकन योगात्मक योगात्मक मूल्यांकन पर आधारित होता है। अर्थात हम काम को खत्म करके उसकी जांच करते हैं कि हमने कितना सीखा। उदाहरण – जब कोई अध्यापक बच्चों को किसी भ्रमण के लिए लेकर जाता है और बाद में स्कूल वापस आने पर प्रश्न करता है तो वह जांच रहा है कि बच्चों ने वहां क्या-क्या सीखा परंतु इसमें काम के बीच में न कर अंत में मूल्यांकन करते हैं।
3. आकलन / अधिगम के रूप में मूल्यांकन (Assessment/Evaluation as Learning) :-
अधिगम के रूप में मूल्यांकन नैदानिक मूल्यांकन पर आधारित होता है। छात्र आपने अधिगम और अन्य लोगों के अधिगम के बारे में गुणवत्तापूर्ण सूचना उत्पन्न करने के लिए अधिक दायित्व लेते हैं।
दोस्तों आपको यह आर्टिकल कैसा लगा हमें जरुर बताये. आप अपनी राय, सवाल और सुझाव हमें comments के जरिये जरुर भेजे. अगर आपको यह आर्टिकल उपयोगी लगा हो तो कृपया इसे share करे।
आप E-mail के द्वारा भी अपना सुझाव दे सकते हैं। prakashgoswami03@gmail.com
http://Goswamispecial.blogspot.com