Monday, April 8, 2019

दिव्यांगो के लिए राष्ट्रीय नीति

दिव्यागों के लिए राष्ट्रीय नीति

परिचय

१. भारत का संविधान अपने सभी नागरिकों के लिए समानता, स्वतंत्रता, न्याय व गरिमा सुनिश्चित करता है और स्पष्ट रूप से यह विकलांग व्यक्तियों समेत एक संयुक्त समाज बनाने पर जोर डालता है। हाल के वर्षों में विकलांगों के प्रति समाज का नजरिया तेजी से बदला है। यह माना जाता है कि यदि विकलांग व्यक्तियों को समान अवसर तथा प्रभावी पुनर्वास की सुविधा मिले तो वे बेहतर गुणवत्तापूर्ण जीवन व्यतीत कर सकते हैं।

२. जनगणना 2001 के मुताबिक, देश में 2.19 करोड़ व्यक्ति विकलांगता के शिकार हैं, जो कुल जनसंख्या का 2.13% हिस्सा है। 75% विकलांग व्यक्ति ग्रामीण इलाकों में रहते हैं, तथा 49% विकलांग व्यक्ति साक्षर हैं व 34% रोजगार प्राप्त हैं। पूर्व के मेडिकल पुनर्वास पर जोर डालने की बजाए अब सामाजिक पुनर्वास पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। विकलांगों की बढ़ती योग्यता की पहचान की जा रही है, और उन्हें समाज की मुख्यधारा में शामिल किए जाने पर बल दिया जा रहा है। भारत सरकार ने विकलांगों के लिए तीन कानूनों को लागू किया है, जो इस प्रकार हैं:

i.     विकलांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार सुरक्षा तथा पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995, जो ऐसे लोगों को शिक्षा, रोजगार, अवरोधमुक्त वातावरण का निर्माण, सामाजिक सुरक्षा इत्यादि प्रदान करता है।

ii.     ऑटिज्म, सेरीब्रल पाल्सी, मानसिक मंदबुद्धि व बहुविकलांगता के लिए राष्ट्रीय कल्याण ट्रस्ट अधिनियम 1999 में चारों वर्गों के कानूनी सुरक्षा तथा उनके स्वतंत्र जीवन हेतु सहसंभव वातावरण के निर्माण का प्रावधान है।

iii.     भारतीय पुनर्वास परिषद् अधिनियम 1992, पुनर्वास सेवाओं के लिए मानव-बल विकास का प्रयास करता है।

३. कानूनी फ्रेमवर्क के अलावा, गहन संरचना का विकास किया गया है। निम्न सात राष्ट्रीय संस्थान हैं जो मानव बल के विकास के लिए विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं, ये इस प्रकार हैं:

  • शारीरिक विकलांग संस्थान, नई दिल्ली
  • राष्ट्रीय दृष्टि विकलांग संस्थान, देहरादून
  • राष्ट्रीय ऑर्थोपेडिक विकलांग संस्थान, कोलकाता।
  • राष्ट्रीय मानसिक विकलांग संस्थान, सिकंदराबाद।
  • राष्ट्रीय श्रवण विकलांग संस्थान, मुम्बई
  • राष्ट्रीय पुनर्वास तथा अनुसंधान संस्थान, कटक।
  • राष्ट्रीय बहु-विकलांग सशक्तीकरण संस्थान, चेन्नई।


४. पांच संयुक्त पुनर्वास केंद्र, चार पुनर्वास केंद्र तथा 120 विकलांग पुनर्वास केंद्र हैं, जो लोगों को विभिन्न प्रकार की पुनर्वास सेवाएं प्रदान करते हैं।

पुनर्वास के क्षेत्र में स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन कई राष्ट्रीय संस्थान हैं, जैसे मानसिक स्वास्थ्य तथा न्यूरो विज्ञान राष्ट्रीय संस्थान, बंगलुरू; अखिल भारतीय शारीरिक चिकित्सा तथा पुनर्वास, मुम्बई; अखिल भारतीय वाणी तथा श्रवण संस्थान, मैसूर; केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान, रांची इत्यादि। इसके अलावा कुछ राज्य सरकार के संस्थान भी पुनर्वास सेवाएं प्रदान करते हैं। साथ ही, 250 निजी संस्थान भी हैं जो पुनर्वास कर्मचारियों के लिए पाठ्यक्रम संचालित करते हैं।

५. विकलांग व्यक्तियों के स्व-रोजगार के लिए राष्ट्रीय अपंग तथा वित्तीय विकास निगम (NHFDC) राज्य की एजेंसियों द्वारा छूट के साथ ऋण मुहैया कराता रहा है।

६. विकलांगों के कल्याण के लिए ग्रामीण स्तर, अंतर्वर्ती स्तर व जिला स्तर पर पंचायती राज संस्थान प्रयासरत है।

७. भारत, एशिया प्रशांत क्षेत्र के विकलांग व्यक्तियों की समानता व पूर्ण भागीदारी की घोषणा-पत्र का सदस्य है। भारत एक समावेशिक, अवरोध मुक्त तथा आधिकार अधारित समाज के निर्माण की दिशा में प्रयास करने के लिए बिवाको मिलेनियम फ्रेमवर्क का भी सदस्य है। मौजूदा समय में भारत राष्ट्रीय विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों तथा गरिमा की रक्षा व समर्थन घोषणा-पत्र में भाग ले रहा है।


राष्ट्रीय नीति का विवरण

८. राष्ट्रीय नीति मानता है कि विकलांग व्यक्ति देश के लिए मूल्यवान मानव संसाधन होते हैं, तथा यह ऐसे व्यक्तियों को समान अवसरों, उनके अधिकार की सुरक्षा तथा समाज में पूर्ण भागीदारी का प्रयास करती है। इस नीति के उद्देश्य निम्न हैं:

विकलांगता की रोकथाम

९. चूंकि कई सारे मामलों में विकलांगता को रोका जा सकता है, इसलिए इसकी रोकथाम के लिए कड़े प्रयास करने की आवश्यकता होगी। ऐसे रोगों की रोकथाम के लिए कार्यक्रम को काफी बढ़ावा देना होगा, जिससे विकलांगता उत्पन्न होती है और गर्भावस्था के दौरान और उसके बाद होने वाली विकलांगता के लिए जागरुकता फैलाने की जरूरत है।

पुनर्वास के उपाय

१०. पुनर्वास के उपायों को मूलतः 3 अलग-अलग समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

शारीरिक पुनर्वास, जिसमें आरंभिक पहचान तथा उपचार, परामर्श व चिकित्सा तथा मदद व उपकरण का प्रावधान है। इसमें पुनर्वास कर्मचारियों का विकास भी शामिल है।
व्यावसायिक शिक्षा समेत शैक्षणिक पुनर्वास, तथा
समाज में गरिमामय जीवन जीने के लिए आर्थिक पुनर्वास।

क. शारीरिक पुनर्वास रणनीति

. आरंभिक पहचान तथा उपचार

११. विकलांगता की आरंभिक पहचान व दवा या गैर-दवा उपचारों के जरिए इसकी चिकित्सा से इन रोगों की गंभीरता को कम करने में मदद मिलती है। अतः आरंभिक पहचान तथा आरंभिक उपचार के साथ आवश्यक सुविधाओं की उपलब्धता पर अधिक ध्यान दिया जाएगा। सरकार खासकर ग्रामीण इलाकों में ऐसी सुविधाओं की उपलब्धता के लिए सूचना का प्रसार करेगी।

(ख) परामर्श तथा मेडिकल पुनर्वास

१२. शारीरिक पुनर्वास उपाय में शामिल हैं- परामर्श, विकलांग व्यक्तियों व उनके परिवारों की क्षमता को सुदृढ़ करना, मनोचिकित्सा, फीजियो थेरैपी, व्यावसायिक थेरैपी, सर्जिकल सुधार, उपचार, दृष्टि मूल्यांकन, दृष्टि उत्तेजन, स्पीच थेरैपी प्रदान किए जाएंगे तथा ऑडियोलॉजिकल पुनर्वास व विशेष शिक्षा मुहैया कराया जाएगा, जिन्हें राज्य सरकारों, स्थानीय संस्थानों, गैर सरकारी संगठनों व विकलांगों के माता-पिता के जरिए सभी जिलों तक प्रसारित किया जाएगा।

१३. वर्तमान में पुनर्वास सेवाएं मुख्यतः शहरी और उसके आस-पास के इलाकों में उपलब्ध हैं। चूंकि 75% विकलांग व्यक्ति देश के ग्रामीण इलाकों में रहते हैं, पेशेवरों द्वारा चलाई जा रही सेवाओं को ऐसे अछूते इलाकों तक पहुंचाया जाएगा। निजी पुनर्वास सेवा केंद्रों को एक न्यूनतम मानकों के अनुपालन के लिए नियंत्रित किया जाएगा।

१४. ग्रामीण तथा अछूते इलाकों में कवरेज का प्रसार करने के लिए, नए जिला विकलांगता पुनर्वास केंद्रों की स्थापना की जाएगी, जिसके लिए राज्य सरकार की सहायता ली जाएगी।

१५. अधिकृत सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता-“आशा” (ASHA) के जरिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन ग्रामीण लोगों की स्वास्थ्य आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, खासकर समाज के कमजोर वर्गों के लोगों को इसमें शामिल किया गया है। मूल स्तर पर “आशा” विकलांग व्यक्तियों के लिए विशद सेवाओं की देखभाल करेगी।

(ग) सहायक उपकरण

१६. भारत सरकार विकलांगों को आईएसआई प्रमाणित टिकाऊ तथा वैज्ञानिक रूप से निर्मित, आधुनिक यंत्र व उपकरण की खरीद के लिए सहायता देती रही है, जिससे उनके शारीरिक, सामाजिक व मनोवैज्ञानिक निर्भरता को कम करते हुए विकलांगता के प्रभाव को कम किया जा सके।

१७. राष्ट्रीय संस्थानों, राज्य सरकारों, डीडीआरसी व गैर सरकारी संगठनों के जरिए हर साल विकलांगों को प्रोस्थेसिस तथा ऑर्थोसेस, ट्राइसाइकिल, व्हील चेयर, सर्जिकल फुटवेयर व दैनिक जीवन में काम आने वाले व सीखने वाले यंत्र (ब्रेल लेखन यंत्र, डिक्टाफोन, सीडी प्लेयर/ टेप रिकॉर्डर), लो विजन यंत्र, चलने-फिरने के लिए विशेष यंत्र- जैसे अंधे व्यक्तियों के लिए छड़ी, श्रवण यंत्र, शैक्षणिक किट्स, बातचीत करने वाले यंत्र, मदद करने और अलर्ट करने वाले यंत्र और ऐसे यंत्र जो मानसिक रूप से विकलांग व्यक्ति के लिए बनाए जाते हैं। इन उपकरणों की उपलब्धता को अछूते व सेवा वाले क्षेत्रों तक विस्तार करना।

१८. विकलांग व्यक्तियों के लिए हाइटेक सहायक यंत्रों क निर्माण में शामिल निजी, सार्वजनिक तथा संयुक्त क्षेत्र के उपक्रमों को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।

(घ) पुनर्वास कर्मचारियों का विकास

१९. विकलांग व्यक्तियों के लिए आवश्यक मानव संसाधन की जरूरतों का मूल्यांकन किया जाएगा तथा विकास योजना तैयार की जाएगी, ताकि पुनर्वास रणनीति हेतु मानव बल की कमी न हो।

ख. विकलांग व्यक्तियों के लिए शिक्षा

२०. सामाजिक तथा आर्थिक सशक्तीकरण के लिए शिक्षा सबसे प्रभावी माध्यम होता है। संविधान के अनुच्छेद 21ए के तहत, जहां शिक्षा को मौलिक अधिकार माना गया है और विकलांग अधिनियम 1995 के अनुच्छेद 26 में विकलांग बच्चों को 18 वर्षों की उम्र तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का प्रावधान किया गया है । जनगणना 2001 के मुताबिक, 51% विकलांग व्यक्ति निरक्षर हैं। यह एक बहुत बड़ी प्रतिशतता है। विकलांग लोगों को सामान्य शिक्षा प्रणाली की मुख्यधारा में लाने की जरूरत है।

२१. सरकार द्वारा चलाया गया सर्व शिक्षा अभियान (SSA) का 8 वर्षों तक बच्चों के प्राथमिक स्कूलिंग प्रदान करने का लक्ष्य है, जिसमें 6 से 14 वर्ष के बच्चे भी शामिल हैं। विकलांग बच्चों के लिए समेकित शिक्षा के तहत 15 से 18 वर्षों तक की उम्र के विकलांग बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान की जाएगी।

२२. सर्व शिक्षा अभियान के तहत शिक्षा विकल्पों का एक सातत्य, सीखने वाले यंत्र औजार, गत्यात्मकता सहायता, सहायक सेवाएं इत्यादि विकलांग छात्रों को उपलब्ध कराई जा रही हैं। इसमें शामिल है मुक्त शिक्षण प्रणाली, ओपन स्कूल, वैकल्पिक स्कूलिंग, दूर शिक्षा, विशेष स्कूल, जहां भी आवश्यक हो घर आधारित शिक्षा, भ्रमणकारी शिक्षक मॉडल, उपचार वाली शिक्षा, पार्ट टाइम कक्षाएं, समुदाय आधारित पुनर्वास व व्यावसायिक शिक्षा के जरिए शिक्षा प्रदान करने का कार्य।

२३. राज्य सरकारों, स्वायत्त निकायों तथा स्वयंसेवी संगठनों के जरिए क्रियान्वित आईईडीसी योजना विशेष शिक्षकों, पुस्तक व लेखन सामग्रियों, यूनिफॉर्म, परिवहन, दृष्टि से कमजोर व्यक्तियों के लिए पाठक भत्ता, हॉस्टल भत्ता, उपकरण लागत, वास्तु अवरोधों को हटाता/सुधार करना, निर्देशात्मक सामग्रियों की खरीद/उत्पादन के लिए वित्तीय सहायता, सामान्य शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण व संसाधन कमरों के लिए यंत्र-उपकरण जैसी सुविधाओं के लिए सौ फीसदी वित्तीय सहायता प्रदान करती है।

२४. नियमित सर्वेक्षणों, उचित स्कूलों में उनकी उपस्थिति और शिक्षा पूरी करने तक उनकी निरंतरता के जरिए बच्चों में विकलांगता की पहचान हेतु सरकार की ओर से केंद्रित प्रयास किया जाएगा। सरकार विकलांग बच्चों को सही प्रकार की शिक्षण सामग्रियों तथा पुस्तक प्रदान करने, शिक्षकों व स्कूलों को सही रूप से प्रशिक्षण व सुग्राही बनाने के लिए प्रयास करेगी, जो पहुंच में आने योग्य तथा विकलांग हितैषी हो।

२५. भारत सरकार ऐसे विकलांग छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करती है ताकि स्कूल के बाद के स्तर पर पढ़ाई में उन्हें मदद मिल सके। सरकार यह छात्रवृत्ति जारी रखेगी व इसके कवरेज का विस्तार करेगी।

२६. विभिन्न प्रकार की उत्पादक गतिविधियों के लिए उपयुक्त योग्यता निर्माण के लिए तकनीकी तथा व्यावसायिक शिक्षा सुविधा प्रदान की जाएगी। जिसके लिए मौजूदा संस्थान या कार्यरत या अछूते क्षेत्रों के अधिकृत संस्थानों का अनुकूलन किया जाएगा। गैर सरकारी संगठनों को भी व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।

२७. विकलांग व्यक्तियों को उच्च शिक्षा व व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में दाखिला लेने के लिए विश्व विद्यालयों, तकनीकी संस्थानों तथा उच्च शिक्षा के अन्य संस्थानों में पहुंच प्रदान की जाएगी। ही

ग. विकलांग व्यक्तियों के लिए आर्थिक पुनर्वास

२८. विकलांग व्यक्तियों के आर्थिक पुनर्वास में संगठित क्षेत्र में दिहाड़ी रोजगार तथा स्व-रोजगार भी शामिल है। सेवाओं को इस प्रकार बढ़ावा दिया जाए कि व्यावसायिक पुनर्वास केंद्र तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों को विकसित किया जा सके, ताकि ग्रामीण व शहरी दोनों क्षेत्रों के विकलांगों को उत्पादक तथा लाभकारी रोजगार मुहैया कराया जा सके। विकलांगों के आर्थिक सशक्तीकरण हेतु रणनीतियां निम्नानुसार होंगी:

(i) सरकारी महकमों में रोजगार

विकलाँग व्यक्ति अधिनियम, 1995 सरकारी महकमों तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में 3% का आरक्षण का प्रावधान करता है। विभिन्न मंत्रालयों/विभागों में समूह ए, बी, सी तथा डी के लिए सरकार के आरक्षण की स्थिति क्रमशः 3.07%, 4.41%, 3.76% तथा 3.18% है। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में यह स्थिति क्रमशः 2.78%, 8.54%, 5.04% तथा 6.75% है। सरकार विकलाँग व्यक्ति अधिनियम, 1995 के प्रावधानों के अनुरूप चिह्नित पदों के लिए सरकारी क्षेत्र में (सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों समेत) आरक्षण सुनिश्चित करेगी। चिह्नित पदों की सूची को वर्ष 2001 में अधिसूचित किया गया है, जिसकी समीक्षा की जाएगी और अद्यतन किया जाएगा।

(ii) निजी क्षेत्र में दिहाड़ी रोजगार

निजी क्षेत्र में विकलाकों को रोजगार के लिए सक्षम बनाने के लिए उनकी योग्यता का विकास किया जाएगा। विकलांग व्यक्तियों के बीच उचित योग्यता के विकास हेतु संचालित व्यावसायिक पुनर्वास तथा प्रशिक्षण केंद्र को उनकी सेवाओं के विस्तार के लिए बढ़ावा दिया जाएगा। सेवा क्षेत्र में रोजगार अवसरों के तीव्र विकास को देखते हुए विकलांगता से ग्रस्त व्यक्तियों को बाजार की जरूरतों के मुताबिक योग्यता निर्माण के लिए बढ़ावा दिया जाएगा। इनसेंटिव, पुरस्कार, कर में छूट इत्यादि जैसे सक्रिय उपायों द्वारा निजी क्षेत्रों में विकलांग व्यक्तियों को रोजगार सृजन के लिए बढ़ावा दिया जाएगा।

(iii) स्व-रोजगार

संगठित क्षेत्र में विकलांग लोगों के रोजगार के अवसरों के विकास की धीमी दर को देखते हुए, स्व-रोजगार के अवसरों को बढ़ावा दिया जाएगा। ऐसा व्यावसायिक शिक्षा तथा प्रबंधन प्रशिक्षण के जरिए किया जाएगा। इसके अलावा एनएचएफडीसी से आसानी से ऋण मुहैय्या कराने की मौजूदा प्रणालियों से यह काफी पारदर्शक और दक्ष प्रक्रिया बन गई है। सरकार इंसेंटिव, कर से छूट, ड्यूटी से छूट, विकलांगों के लिए सेवा देने वाले तथा सामान बनाने वाले उपक्रमों को सरकार द्वारा बढ़ावा देकर, सरकार स्व-रोजगार को प्रोत्साहित करेगी। विकलांगों द्वारा बनाए स्वयं-सहायता समूह के लिए वित्तीय सहायता को प्राथमिकता दी जाएगी।

विकलांग महिलाएं

२९. जनगणना -2001 के मुताबिक, देश में 93.01 लाख विकलांग महिलाएं हैं जो कुल विकलांग आबादी का 42.46% हिस्सा निर्मित करती हैं। विकलांग महिलाओं को शोषण व दुर्व्यवहार से बचाने की जरूरत है। विकलांग महिलाओं की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए शिक्षा, रोजगार तथा अन्य पुनर्वास सेवाओं के विकास के लिए विशेष कार्यक्रम चलाए जाएंगे। विशेष शिक्षा तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण सुविधाओं की स्थापना की जाएगी। परित्यक्त विकलांग महिलाओं/लड़कियों के पुनर्वास के लिए कार्यक्रम चलाए जाएंगे, जहां परिवारों द्वारा उन्हें स्वीकार करने, उनके निवास में मदद करने और लाभप्रद रोजगार योग्यताओं को हासिल कराने के प्रयास किए जाएंगे। सरकार उन परियोजनाओं को प्रोत्साहित करेगी जहां विकलांग महिलाओं के प्रतिनिधि को कम से कम कुल लाभ का 25% तक प्रदान किया जा सके।

३०. विकलांग महिलाओं के लिए कम समय के लिए रहने के लिए घर, नौकरी-पेशा महिला के लिए हॉस्टल तथा बुजुर्ग विकलांग महिलाओं के लिए घर प्रदान करने के लिए कदम उठाए जाएंगे।

३१. यह देखा गया है कि विकलांगता से ग्रस्त महिलाओं में उनके बच्चों की देखभाल की गंभीर समस्या होती है। सरकार ऐसी विकलांग महिलाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करेगी, ताकि वे अपने बच्चों के परवरिश के लिए आवश्यक सेवाओं को उपलब्ध करा सके। ऐसी सहायता अधिकतम दो सालों तक 2 बच्चों के लिए मुहैय्या कराई जाएगी।

विकलांग बच्चे

३२. विकलांगता के शिकार बच्चे सबसे अधिक संवेदनशील समूह के होते हैं और उन्हें विशेष देखभाल की जरूरत होती है। इसके लिए सरकार निम्नांकित कदम उठाएगी:

1. विकलांग बच्चों की देखभाल, सुरक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करेगी;

2. गरिमा तथा समानता के लिए विकास के अधिकार को सुनिश्चित किया जाएगा, ताकि एक सक्षम वातावरण का निर्माण किया जाए जहां विक्लांग बच्चे अपने अधिकार की पूर्ति कर सके और विभिन्न कानूनों के अनुरूप समान अवसरों का लाभ उठाकर पूर्ण भागीदारी प्रदर्शित कर सके।

3. विकलांग  बच्चों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यावसायिक प्रशिक्षण के साथ विशेष पुनर्वास सेवाओं को शामिल किया जाएगा। गंभीर विकलांगता के शिकार बच्चों के लिए विकास के

4. अधिकार तथा विशेष आवश्यकताओं व देखभाल, सुरक्षा को सुनिश्चित किया जाएगा।



३३. अवरोध-मुक्त वातावरण से विकलांग व्यक्ति सुरक्षित तथा आसानीपूर्वक चल-फिर सकते हैं। अवरोधमुक्त डिजाइन का उद्देश्य है कि विकलांग लोगों को ऐसा वातावरण प्रदान किया जाए जहां वे अपनी दैनिक गतिविधियों में बिना किसी सहायता के गमन कर सकें। इसलिए जितना अधिक संभव हो, सार्वजनिक भवनों, स्थानों, परिवहन प्रणालियों को अवरोध मुक्त रखा जाएगा।


विकलांगता प्रमाणपत्र जारी करना

३४. भारत सरकार ने विकलांगता के मूल्यांकन व प्रमाणपत्र के लिए दिशा-निर्देश जारी किये हैं। इसके तहत सरकार सुनिश्चित करेगी कि विकलांग व्यक्ति कम से कम समय में बिना किसी परेशानी के विकलांगता प्रमाणपत्र प्राप्त कर सके, जिसके लिए सरल, पारदर्शक व ग्राहकोन्मुख प्रक्रियाओं को लागू किया जाएगा।

सामाजिक सुरक्षा

३५. विकलांग व्यक्तियों, उनके परिवार तथा उनकी देखभाल करने वालों को पर्याप्त अतिरिक्त व्यय राशि दी जाएगी ताकि वे दैनिक कार्यों, मेडिकल देखभाल, परिवहन, सहायक उपकरणों को खरीद सकें। इसलिए उन्हें सामाजिक सुरक्षा देने की आवश्यकता है। केंद्र सरकार विकलांग व्यक्तियों व उनके अभिभावकों को करों में छूट दे रही है। राज्य सरकार/ केंद्र शासित प्रदेशों  को बेरोजगार भत्ता या विकलांगता पेंशन मुहैया कराया जा रहा है। राज्य सरकारों को विकलांगों के लिए एक व्यापक सामाजिक सुरक्षा नीति के विकास के लिए बढ़ावा दिया जाएगा।

३६. ऑटिज्म, सेरीब्रल पाल्सी, मानसिक मंद तथा बहु-विकलांगता के शिकार बच्चों के माता-पिता अपनी मृत्यु के बाद ऐसे बच्चों की देखभाल को लेकर काफी असुरक्षित महसूस करते हैं। ऑटिज्म, सेरीब्रल पाल्सी, मानसिक मंद तथा बहु-विकलांगता के लिए राष्ट्रीय ट्रस्ट स्थानीय स्तर की समिति द्वारा कानूनी अभिभावकत्व प्रदान करता आ रहा है। वे सहायता प्राप्त अभिभावकत्व योजना का भी क्रियान्वयन कर रहे हैं, ताकि दरिद्र तथा परित्यक्त व्यक्ति जिनमें उपरोक्त गंभीर विकलांगता हो, उन्हें वित्तीय मदद की जा सके। यह योजना मौजूदा समय में कुछ जिलों में लागू की जा रही है, अब इसे योजनाबद्ध तरीके से अन्य क्षेत्रों में भी प्रसारित किया जाएगा।


गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) को प्रोत्साहन

३७. राष्ट्रीय नीति गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) को एक काफी अहम संस्थानिक प्रणाली के रूप में मानती है, जो सरकार के प्रयासों को लागू करने का एक सस्ता माध्यम है।

एनजीओ सेक्टर गतिशील व उदयीमान क्षेत्र है। विकलांग व्यक्ति को सेवा देने के प्रावधान में इसने एक अहम भूमिका निभाई है। कुछ एनजीओ मानव संसाधन विकास तथा अनुसंसाधन कार्य संचालित कर रहे हैं। सरकार भी उन्हें सक्रिय रूप से नीति के सूत्रीकरण, योजना, क्रियान्वयन, निगरानी में शामिल किया है और विकलांगता से जुड़े कई मुद्दे पर उनसे परामर्श प्राप्त कर रही है। एनजीओ के साथ कार्य-व्यवहार को विकलांगता से जुड़े योजना, नीति सूत्रीकरण तथा क्रियान्वयन के क्षेत्र में बढ़ाया जाएगा। नेटवर्किंग, सूचनाओं के आदान-प्रदान तथा एनजीओ के बीच अच्छे कार्य पद्धतियों को साझा करने की प्रयास को प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके लिए निम्न कार्यक्रम संचालित किए जाएंगे:


1. विकलांगता के क्षेत्र में काम करने वाले एनजीओ का एक निर्देशिका तैयार किया जाएगा, जहां उनके प्रमुख कार्यों के साथ उनके कार्य क्षेत्र का भी उल्लेख किया जाएगा। केंद्र/राज्य सरकारों द्वारा समर्थित एनजीओ के लिए उनके संसाधन स्थिति, वित्तीय तथा मानव बल की भी सूचना दी जाएगी। विकलांग व्यक्तियों के संगठन, पारिवारिक संघों तथा उनके माता-पिता का समर्थन करने वाले समूह को भी इस निर्देशिका में शामिल किया जाएगा, जहां उनका अलग से उल्लेख किया जाएगा।
ii.     एनजीओ के कार्यों के विकास में क्षेत्रीय/राज्य असुंतलन मौजूद है। अनारक्षित तथा सुदूर इलाकों में इस दिशा में काम करने वाले एनजीओ को प्रोत्साहित किया जाएगा तथा उनका संदर्भ प्रस्तुत किया जाएगा। प्रतिष्ठित एनजीओ को भी ऐसे इलाकों में काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
iii.     एनजीओ को न्यूनतम मानक, आचार संहिता तथा नैतिकता के विकास के लिए बढ़ावा दिया जाएगा।
iv.     एनजीओ को उनके कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण तथा जानकारी प्रदान करने के अवसर प्रदान किए जाएंगे। प्रबंधन क्षमता की प्रशिक्षण पहले से दी जा रही है, इसे और भी मजबूत बनाया जाएगा। पारदर्शिता, जिम्मेदारी, प्रक्रिया की सरलता इत्यादि एनजीओ-सरकार के सहयोग के दिशा-निर्देशक कारक होंगे।

v . एनजीओ को उनके संसाधन को विकास करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा ताकि सरकार से मिलने वाली वित्तीय सहायता पर उनकी निर्भरता कम की जा सके तथा इस क्षेत्र में फंड की उपलब्धता में भी सुधार किया जा सके। एक योजनाबद्ध तरीके से एनजीओ को मिलने वाली सहायता में कमी करना होगा ताकि उपलब्ध संसाधनों के भीतर मदद की जाने वाली एनजीओ की संख्या अधिकतम हो। इस दिशा में एनजीओ को संसाधन के एकत्रण के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा


विकलांग व्यक्तियों से जुड़ी जानकारी का नियमित संग्रह

३८. विकलांग व्यक्तियों के सामाजिक दशा प्रकाशन तथा विश्लेषण की आवश्यकता है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन वर्ष 1981 से नियमित रूप से हर दस साल पर एक बार विकलांग व्यक्तियों की सामाजिक दशा से जुड़े आंकड़ों का नियमित संग्रह, प्रकाशन तथा विश्लेषण करता है। जनगणना-2001 से भी जनगणना में विकलांग व्यक्ति की सूचनाओं को एकत्र किया जाने लगा है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन को पांच साल में एक बार विकलांगता के शिकार व्यक्तियों की सूचनाएं एकत्र करनी होगी। दोनों एजेंसियों के आंकड़ों के बीच के अंतर को मिलाया जाएगा।

३९. सामाजिक न्याय तथा अधिकारिता मंत्रालय के तहत विकलांग व्यक्तियों के लिए एक व्यापक वेबसाइट का निर्माण किया जाएगा। सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र के संगठनों को ऐसी वेबसाइट बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा, जिसे दृष्टि विकलांग व्यक्ति स्क्रीन रीडिंग तकनीक के जरिए पढ़ सके।


अनुसंधान

४०. विकलांगता के शिकार व्यक्तियों के जीवन में सुधार लाने के लिए उनकी सामाजिक-आर्थिक दशा तथा सांस्कृतिक संदर्भ, विकलांगता के कारण, आरंभिक बाल शिक्षा विधि, प्रयोक्ता हितैषी यंत्रों-उपकरणों और विकलांगता से जुड़े सभी मामलों पर अनुसंधान कार्य किए जाएंगे, जो उनके जीवन की गुणवत्ता में अहम बदलाव लाएगा व उनकी चिंताओं के प्रति नागरिक समाज की प्रतिक्रिया में सुधार होगा। जहां कहीं भी विकलांगता के शिकार व्यक्तियों के ऊपर अनुसंधान कार्य या चिकित्सा कार्य संपन्न किए जाने होंगे, उनके माता-पिता या अभिभावक से इसकी अनुमति अवश्य लेनी होगी।


खेल-कूद, मनोरंजन तथा सांस्कृतिक जीवन

४१. उपचारात्मक तथा सामुदायिक भावना के विकास के लिए खेल-कूद की भूमिका अहम होती है। विकलांग व्यक्तियों को खेल-कूद, मनोरंजन तथा सांस्कृतिक सुविधाओं का लाभ उठाने का पूरा अधिकार है। सरकार उन्हें विभिन्न खेल-कूदों, मनोरंजन तथा सांस्कृतिक गतिविधियों में  भाग लेने हेतु अवसर प्रदान करने के लिए आवश्यक कदम उठाएगी।


विकलांगता से निपटने वाले मौजूदा अधिनियमों में सुधार

४२. विकलांग (समान अवसर, अधिकारों की सुरक्षा तथा पूर्ण भागीदारी) अधिनियम 1995 को पास हुए दस साल बीत गए हैं। इस कानून को लागू करने तथा विकलांगता के क्षेत्र में हुए प्रगति से मिले अनुभव से इस अधिनियम में कुछ संशोधन आवश्यक हो गए हैं। इससे जुड़े उपक्रमों के परामर्श के बाद ये सुधार संपन्न किये जाएगे। आरसीआई तथा राष्ट्रीय ट्र्स्ट अधिनियम की भी समीक्षा की जाएगी और आवश्यकता पड़ने पर उनमें संशोधन भी किया जाएगा।

बदलाव के मुख्य क्षेत्र

रोकथाम, आरंभिक पहचान तथा उपचार

४३. विकलांगता की रोकथाम तथा आरंभिक पहचान के लिए निम्न कार्य संपन्न किए जाएंगे:

1. टीकाकरण (बच्चों तथा होने वाली मां के लिए), सार्वजनिक स्वास्थ्य व स्वच्छता के प्रसार के लिए राष्ट्रीय, क्षेत्रीय तथा स्थानीय कार्यक्रम चलाए जाएंगे।

2. बच्चों में विकलांगता की जल्दी पहचान करने के लिए मेडिकल तथा पारा-मेडिकल स्टाफ को समुचित प्रशिक्षण दिया जाएगा।

3. विकलांगता की रोकथाम, आरंभिक पहचान तथा उपचार  के लिए  प्रशिक्षण मॉड्यूल तथा सुविधाओं का विकास किया जाएगा, जो मेडिकल तथा पारा-मेडिकल स्वास्थ्य कर्मचारियों व आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए तैयार किए जाएंगे।

4. मेडिकल शिक्षा में उत्तरस्नातक तथा अंतरस्नातक डिग्री पाठ्यक्रम में विकलांगता की रोकथाम, आरंभिक पहचान व उपचार के अध्याय भी शामिल किए जाएंगे।

5. विकलांग व्यक्ति के परिवार के लिए विकांगला से जुड़े विशेष पुस्तिका का विकास किया जाएगा तथा इसे निःशुल्क बांटा जाएगा।

6. मानव संसाधन विकास संस्थान यह सुनिश्चित करता है कि सहायक सेवाओं- जैसे विशेष शिक्षा, क्लिनिकल मनोविज्ञान, फीजियोथेरॉपी, व्यावसायिक थेरॉपी, ऑडियोलॉजी, स्पीच पैथॉलॉजी, व्यावसायिक परामर्श व प्रशिक्षण तथा
तथा सामाजिक कार्य प्रदान करने वाले कर्मचारी पर्याप्त संख्या में उपलब्ध हों।

7. आनुवंशिक विज्ञान में किए अद्यतन शोध परिणामों का इस्तेमाल जन्मजात विकलांगता तथा मानसिक अपंगता को कम करने में किया जाएगा।

8. विकलांगता के प्रभाव को कम करने तथा द्वितीयक विकलांगता को रोकने के लिए मौजूदा स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में उचित कदम उठाए जाएंगे।

9. किशोर लड़कियों, होने वाली मांओं तथा जनन अवस्था वाली महिलाओं में पोषण, स्वास्थ्य देखभाल तथा स्वच्छता के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाने पर ध्यान दिया जाएगा। इसकी रोकथाम के लिए जागरूकता कार्यक्रम को स्कूल स्तर पर तथा शिक्षकों के प्रशिक्षण पाठ्यक्रम स्तर पर तैयार किया जाएगा।

10. खतरों की पहचान करने के लिए बच्चों के जांच कार्यक्रम आयोजित जाएंगे।


पुनर्वास के कार्यक्रम

४४. मेडिकल तथा पुनर्वास कार्यकर्ताओं, व विकलांगों और उनके परिवारजनों, कानूनी अभिभावकों तथा समुदायों के साथ सहयोग कर मेडिकल, शैक्षिक तथा सामाजिक पुनर्वास कार्यक्रमों का विकास किया जाएगा। सरकारी कार्यक्रमों के कंवर्जेंस को सुनिश्चित किया जाएगा तथा निम्न विशेष उपाय किए जाएंगे:


  1. मानव संसाधन विकास, अनुसंधान तथा दीर्घ काल के लिए विशेष पुनर्वास समेत संयुक्त पुनर्वास सेवाएं मुहैया कराने के लिए राज्य स्तरीय केंद्रों की स्थापना की जएगी।
  2. समुदाय आधारित पुनर्वास कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाएगा। विकलांगों तथा उनके परिवारों/ देखभालकर्ताओं के स्वयं सहायता समूहों को पुनर्वास की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल किया जाएगा।
  3. एनजीओ की सहायता से जिला स्तर पर पंचायती राज संस्थान द्वारा गंभीर रूप से मानसिक अपंग व्यक्तियों के लिए मानसिक आरोग्य सेवा गृहों की स्थापना को बढ़ावा दिया जाएगा।
  4. मानसिक अपंगता से जूझ रहे व्यक्तियों के व्यावसायिक तथा सामाजिक योग्यता के प्रशिक्षण के लिए आवासीय पुनर्वास केंद्रों की भी स्थापना की जाएगी। इसके स्थान पर ऐसे मानसिक अपंग व्यक्तियों को, जिन्हें कोई सामुदायिक/ पारिवारिक सहायता प्राप्त नहीं है, उनके लिए परिवार सहायता समूहों के निर्माण को भी बढ़ावा दिया जाएगा।

    मानव संसाधन विकास

४५. निम्न क्षेत्रों में मानव बल का विकास किया जाएगा-

1. आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, सहायक नर्सों (दाइयों) इत्यादि समेत स्वास्थ्य सेवा तथा समुदाय विकास के क्षेत्र में प्राथमिक स्तर के कार्यकर्ताओं की प्रशिक्षण।

2. सेवा प्रदान करने वाले सरकारी कर्मचारी तथा एनजीओ के लिए प्रशिक्षण तथा ओरिएंटेशन की सहायता।

3. समुदाय के निर्णय-निर्माण प्रक्रिया में भाग लेने वालों जैसे- पंचायतों, परिवार के मुखिया इत्यादि के लिए प्रशिक्षण तथा सुग्राहिता कार्यक्रम।

4. परिवार के सदस्यों कि देखभालकर्ता के रूप में प्रशिक्षण तथा ओरिएंटेशन।

४६. समावेशिक शिक्षा, विशेष शिक्षा, घर आधारित शिक्षा, स्कूल पूर्व की शिक्षा इत्यादि की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मानव संसाधनों को प्रशिक्षित किया जाएगा। विभिन्न स्पेशलाइजेशन तथा स्तरों वाले निम्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों का विकास किया जाएगा:

1. समावेशित शिक्षा के लिए शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण मॉड्यूल।

2. विशेष शिक्षा में डिप्लोमा, डिग्री तथा उच्च स्तरीय कार्यक्रम।

3. विकलांग व्यस्क/ वरिष्ठ नागरिकों इत्यादि के घर आधारित शिक्षा तथा देखभाल सेवाओं देने वालों के लिए प्रशिक्षण।


४७. पुनर्वास कर्मचारियों की प्रशिक्षण के लिए योजना निर्माण में भारतीय पुनर्वास परिषद् नोडल एजेंसी की भूमिका निभाएगा। विकलांगता से जुड़े प्रशिक्षण कार्यक्रम में राष्ट्रीय संस्थानों की भूमिका को स्पष्ट रूप से निर्धारित किया जाएगा और इसके लिए पंच-वर्षीय कार्य योजना का विकास किया जाएगा

विकलांगों के शिक्षा
    ४८. यह सुनिश्चित किया जाएगा कि वर्ष 2020 तक हरेक विकलांग बच्चे को प्री-स्कूल, प्राथमिक तथा माध्यमिक (सेकेंडरी) स्तर की शिक्षा प्राप्त हो सके। इस दिशा में निम्नांकित पर ध्यान दिया जाएगा:
      1. स्कूलों को (भवनों, मार्गों, शौचालयों, खेल के मैदानों, प्रयोगशालाओं, पुस्तकालयों इत्यादि को ) अवरोध मुक्त करना ताकि सभी प्रकार के विकलांग वहां पहुंच सकें।

      2. पढ़ाने के माध्यम तथा विधि को सही तरह से अपनाया जाएगा ताकि वे अधिकतर विकलांगता परिस्थितियों पर खरा उतरे।

      3. स्कूल या कई स्कूलों के आसानी से पहुंच में आने वाले केंद्रों पर पढ़ाने/सिखाने के तकनीकी/ पूरक/ विशेष प्रणाली उपलब्ध कराई जाएगी।

      4. तकनीकी/ सिखाने वाले यंत्र औजार, जैसे खिलौने, ब्रेल, टॉकिंग बुक, उचित सॉफ्टवेयर इत्यादि भी उपलब्ध कराये जाएंगे। सामान्य पुस्तकालय, ई-लाइब्रेरी, ब्रेल-लाइब्रेरी तथा टॉकिंग बुक लाइब्रेरी, संसाधन कक्ष की स्थापना के लिए सहायता प्रदान की जाएगी।

      5. राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय तथा दूर शिक्षा कार्यक्रम को लोकप्रिय बनाया जाएगा और उसे देश के अन्य भागों में भी फैलाया जाएगा।

      6. एक-दूसरे के साथ बात करने के लिए मूक- बधिरों की संकेत भाषा, वैकल्पिक तथा संवर्धी बातचीत (AAC) व अन्य माध्यमों को एक प्रभावी माध्यम के रूप में पहचान दी जाएगी, उनका मानकीकरण किया जाएगा तथा उन्हें लोकप्रिय बनाया जाएगा।

      7. स्कूल की स्थापना आसानी से पहुंचने वाली दूरी पर की जाएगी। अन्यथा समुदाय, राज्य तथा एनजीओ के सहयोग से परिवहन व्यवस्था की जाएगी।

      8. स्कूलों में माता-पिता-शिक्षक के बीच परामर्श तथा परेशानी से निपटने की प्रणाली की स्थापना की जाएगी।

      9. प्राथमिक, मध्य विद्यालय तथा उच्च स्तरीय शिक्षा में विकलांग छात्राओं की दाखिला तथा उनके उपस्थित होने के आंकड़े को वार्षिक रूप से समीक्षा की जाएगी।

      10. विकलांगता से प्रभावित कई बच्चे, जो समावेशिक शिक्षा प्रणाली में भाग नहीं ले सकते, उन्हें विशेष स्कूलों के जरिए शिक्षा प्रदान की जाएगी। स्पेशल स्कूलों में सही तरह से सुधार लाये जाएंगे जो तकनीकी विकास पर आधारित होगा। ये स्कूल विकलांग बच्चों को मुख्यधारा की समावेशिक शिक्षा के लिए तैयार करने में मदद करेंगे।

      11. कुछ मामलों में विकलांगता की प्रकृति (इसके प्रकार तथा गंभीरता के कारण), निजी परिस्थितियों तथा प्राथमिकताओं के कारण घर आधारित शिक्षा प्रदान की जाएगी।

      12. विभिन्न प्रकार की विकलांगता के शिकार बच्चों के लिए पाठ्यक्रम तथा मूल्यांकन प्रणाली का विकास किया जाएगा, जिसमें उनकी क्षमता पर ध्यान रखा रखा जाएगा।  परीक्षा प्रणाली में सुधार लाया जाएगा ताकि यह विकलांगों के अनुकूल बन सके- जैसे सीखने वाला गणित, केवल एक एक भाषा सीखने का प्रावधान करना। इसके अलावा अतिरिक्त समय, कैलकुलेटर का इस्तेमाल, क्लार्क टेबल का इस्तेमाल, स्काइब्स इत्यादि की आवश्यकतानुसार आपूर्ति की जाएगी।


      13. प्रत्येक राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में समावेशिक शिक्षा का मॉडल स्कूल खोला जाएगा, ताकि विकलांग लोगों की शिक्षा को बढ़ावा मिल सके।
      नॉलेज सोसाइटी के इस दौर में कम्प्यूटर एक अहम भूमिका निभाता है। यह प्रयास किया जाएगा कि प्रत्येक विकलांग बच्चा को उचित रूप से कम्यूटर का इस्तेमाल करने का अवसर मिले।

      14. 6 वर्ष की आयु तक के विकलांग बच्चों की पहचान की जाएगी तथा उनके लिए आवश्यक चिकित्सा उपाय किए जाएगें ताकि वे समावेशिक शिक्षा में शामिल होने के लिए सक्षम बन सकें।

      15. मानसिक रूप से अपंग बच्चों के लिए मनो-सामाजिक पुनर्वास केंद्रों पर शैक्षिक सुविधाएं प्रदान की जाएगी।

      16. विकलांक बच्चों की क्षमता के बारे में जानकारी के अभाव में कई स्कूल ऐसे बच्चों को अपने यहां दाखिला लेने से हिचकते हैं। शिक्षकों, प्राचार्यों तथा स्कूल के अन्य कर्मचारियों को सुग्राही बनाने के लिए कार्यक्रम चलाए जाएंगे।

      17. सामाजिक न्याय तथा अधिकारिता मंत्रालय द्वारा सहायता प्रदत्त विशेष विद्यालय वर्तमान में समावेशिक शिक्षा के संसाधन केंद्र बन गए हैं। मानव संसाधन विकास मंत्रालय आवश्यकतानुसार नये विशेष स्कूल की स्थापना करेगा।

      18. वयस्क शिक्षा/ सीखने में गंभीर रूप से अक्षम वयस्कों के लिए अवकाश केंद्र को प्रोत्साहित किया जाएगा।

      19. उच्च शिक्षा में दाखिले के लिए विकलांगों के लिए 3% का आरक्षण लागू किया जाएगा। विश्वविद्यालय, कॉलेज तथा व्यावसायिक संस्थानों को विकलांकता केंद्र खोलने में वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी, ताकि विकलांग छात्रों के शिक्षा जरूरत की पूर्ति की जा सके।

      20. शिक्षकों की परिचय तथा सेवा प्रशिक्षण में विकलांग बच्चों के प्रबंधन से जुड़े मुद्दों पर एक मॉड्यूल शामिल किया जाएगा। उन्हें विकलांग छात्रों के क्लास रूम, हॉस्टल, कैफेटेरिया तथा अन्य सुविधाएं मुहैया कराने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।।

      ४९. मानव संसाधन विकास मंत्रालय नोडल मंत्रालय होगा जो विकलांगों से जुड़ी शिक्षा के सभी मामलों को देखेगा।


       रोजगार

      ५०. विकलांग व्यक्तियों के रोजगार के लिए निम्न उपाय किए जाएंगे:

      1. सरकार निजी क्षेत्रों के संगठनों के साथ एक बातचीत आरंभ करेगी, ताकि विकलांगों को रोजगार मिलने में मदद की जा सके।

      2. विकलांग लोगों के लिए खासकर गंभीर रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिए घर आधारित आय सृजन कार्यक्रम का संचालन करेगी। विकलांग तथा उनके लिए सेवा प्रदाता व्यक्तियों के रोजगार के लिए कोचिंग की व्यवस्था भी की जाएगी।

      3. विकलांग व्यक्तियों के लिए मशीनरी, कार्य स्थान तथा कार्य वातावरण में आवश्यक सुधार करना ताकि ऐसे व्यक्ति प्रशिक्षण केंद्रों/ कारखानों/ उद्योगों/ कार्यालयों इत्यादि में बिना व्यवधान के आ-जा सके।

      4. उचित एजेंसियों जैसे- मार्केटिंग बोर्ड, जिला ग्रामीण विकास एजेंसी, निजी एजेंसी व विकलांगों द्वारा निर्मित मालों तथा सेवाओं की मार्केटिंग में शामिल गैर-सरकारी संगठनों के जरिए सहायता प्रदान की जाएगी।

      5. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों में विकलांगों को शामिल किया जाएगा, ताकि वे संविधान द्वारा तय 3% की उन्हें भी भागीदारी मिल सके।



      अव अवरोध रोध-मुक्त वातावरण

      ५१. अवरोध मुक्त वातावरण के निर्माण के लिए निम्न रणनीतियां अपनाई जाएंगी:

      (i) सार्वजनिक भवन (कार्यात्मक या मनोरंजनात्मक), परिवहन सुविधाएं, जैसे सड़क, सब-वे तथा फुटपाथ, रेलवे प्लेटफॉर्म, बस स्टॉप/ टर्मिनस/ बंदरगाह/ हवाई अड्डे, परिवहन के माध्यम (बस, ट्रेन, वायुयान तथा जहाजों), खेल के मैदान, खुले स्थान इत्यादि को विकलांग व्यक्तियों के लिए आसानी से पहुंच लायक बनाया जाएगा।

      (ii) सभी सार्वजनिक कार्यों में संकेत भाषा के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाएगा।

      (iii) विकलांगों के लिए अवरोध मुक्त भवन बनाने वास्तुशास्त्र तथा नागरिक निर्माण इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम में सुधार लाया जाएगा। इन मुद्दों पर सरकारी आर्किटेक्ट तथा इंजीनियरों को सेवा प्रशिक्षण प्रदान किया जाए

      (v) व्यापक निर्माण उपकानूनों तथा स्थान मानकों का अनुपालन कर अवरोध मुक्त वातावरण का निर्माण किया जाएगा। देश के सभी राज्यों, नगर निकायों तथा पंचायती राज संस्थानों द्वारा उपकानूनों तथा स्थान मानकों का अनुपालन करने के लिए आवश्यक प्रयास किए जाएंगे। ये प्राधिकरण सुनिश्चित करेंगे कि सभी नए निर्मित सार्वजनिक भवन अवरोध मुक्त हों।

      (vi) राज्य परिवहन उपक्रम, अपने वाहनों में विकलांग व्यक्तियों के लिए सुविधाजनक परिवर्तन लाएंगे। रेलवे योजनाबद्ध तरीके से अवरोध मुक्त कोचों की शुरुआत करेगा। वे प्लेटफॉर्म निर्माण, टॉयलेट तथा अन्य अवरोध मुक्त सुविधाएं मुहैया कराएंगे।

      (vii) सरकार सुनिश्चित करेगी कि सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र के औद्योगिक प्रतिष्ठान, कार्यालय, सार्वजनिक उपक्रम अपने कर्मचारियों के लिए विकलांग हितैषी कार्य स्थल प्रदान करेंगे। सुरक्षा मानकों का निर्धारण किया जाएगा तथा उनका कड़ाई से पालन किया जाएगा।

      (viii) देश में विकलांगता हितैषी आइटी वातावरण को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।

      (ix) सभी भवन जो सार्वजनिक उपयोग हेतु होते हैं, उनकी जांच की जाएगी कि क्या वे विकलांग व्यक्तियों की सुविधाओं को ध्यान में रखकर बनाने गए हैं या नहीं। ऐसे दक्ष व्यक्तियों के विकास की आवश्यकता है, जो ऐसे भवनों की जांच कर सके।

      (x) विकलांग व्यक्तियों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए बैंकिंग प्रणाली को प्रोत्साहन दिया जाएगा।

      (xi) विकलांग व्यक्तियों की संचार जरूरतों की पूर्ति सूचना सेवा तथा सार्वजनिक दस्तावेज को आसान बनाकर की जा सकती है। दृष्टि विकलांगों को सूचना प्रदान करने के लिए ब्रेल, टेप-सर्विस, बड़े प्रिंट तथा अन्य उचित तकनीकों का इस्तेमाल किया जाएगा।


      सामाजिक सुरक्षा

      ५२. विकलांग व्यक्तियों को समुचित सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए निम्न उपाय किए जाएंगे:

      1. विकलांग व्यक्तियों के लिए मंजूर की गई नीतियों की नियमित समीक्षा की जाएगी ताकि ऐसे व्यक्तियों को आवश्यक आयकर तथा अन्य कर राहत उपलब्ध होती रहे।

      1. राज्य सरकार तथा केंद्र शासित प्रदेशों को विकलांगों के लिए पेंशन राशि तथा बेरोजगार भत्ता प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।

      2. भारतीय जीवन बीमा निगम विशेष प्रकार के विकलांग व्यक्तियों को बीमा सुरक्षा प्रदान करता आ रहा है। अन्य बीमा एजेंसियों द्वारा भी विकलांगों को ऐसी बीमा कवरेज प्रदान करने की आवश्यकता पर बल डाला जाएगा।


      अनुसंधान

      ५३. जहां भी आवश्यक होगा, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से विकलांगों के लिए नई तकनीक के विकास के लिए अनुसंधान कार्य संपन्न किए जाएंगे। इन अनुसंधानों के परिणामों का व्यापक प्रसार किया जाएगा। यह निम्न आयामों पर केंद्रित होंगे:

      1. विकलांगता के सामाजिक-सांस्कृतिक आयाम, जिनमें शामिल होंगे विकलांगों के प्रति सामाजिक नजरिये तथा व्यवहारगत पैटर्न का अध्ययन।

      2. विकलांगों की शिक्षा से जुड़े सामाजिक संकेतकों का विकास ताकि आने वाली समस्याओं का विश्लेषण किया जाए और पहुंच तथा अवसर को बढ़ाने के लिए कार्यक्रम का विकास किया जा सके।

      3. विकलांगता के प्रकारों, खासकर ऐसे व्यक्ति जो दुर्घटनावश तथा अन्य आपत्तियों से विकलांग होते हैं, उसके आधार पर रोजगार की दशा के बारे में जानकारी इकट्ठा की जाएगी।

      4. विभिन्न प्रकारों तथा स्तरों की विकलांगता के मामलों का अध्ययन।

      5. विकलांगता के मामलों को कम करने के लिए भारतीय मेडिकल अनुसंधान परिषद् के अधीन आनुवंशिक अनुसंधान।

      6.  व्यक्तिगत गत्यात्मकता, मौखिक/ अमौखिक संवाद, दैनिक उपयोग की वस्तुओं के डिजाइन में परिवर्तन इत्यादि पर केंद्रित उपयुक्त तकनीकी अनुसंधान, जहां प्रमुख तकनीकी संस्थानों की मदद से सस्ते, प्रयोक्ता हितैषी व टिकाऊ यंत्र तथा उपकरणों का निर्माण किया जाए


      ५४. विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी मंत्रालय, पुनर्वास तकनीकी केंद्र का गठन करेगा, जो चालू अनुसंधान तथा विकास, परीक्षण तथा तकनीकी प्रमाणन, प्रशिक्षण इत्यादि के बीच समन्वय का कार्य करेगा। विकलांग व्यक्तियों द्वार सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल के लिए उचित हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर का विकास किया जाएगा।


      खेल-कूद, मनोरंजन तथा सांस्कृतिक क्रियाकलाप

      ५५. खेलकूद, मनोरंजन तथा सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए समान अवसरों को सुनिश्चित करने के लिए निम्न कदम उठाए जाएंगे:

      i . मनोरंजन, सांस्कृतिक गतिविधियों तथा खेलकूद, हॉस्टल, समुद्र तट, स्पोर्ट एरीना, ऑडिटोरियम, जिम हॉल इत्यादि को विकलांग व्यक्तियों की पहुंच के लायक बनाना।
      ii . ट्रैवेल एजेंसी, होटल, स्वयंसेवी संगठनों व यात्रा अवसरों के आयोजन में शामिल अन्य संहठनों को अपनी सेवाएं सभी के लिए खोलनी चाहिए, जिनमें विकलांग व्यक्तियों की आवश्यकताओं का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।
      iii . स्थानीय एनजीओ की सहायता से विभिन खेलों में विकलांग व्यक्तियों की क्षमता की पहचान की जानी चाहिए।
      iv . विकलांग व्यक्तियों के लिए स्पोर्ट ऑर्गेनाइजेशन तथा सांस्कृतिक सोसाइटी के निर्माण को बढ़ावा दिया जाएगा। राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय समारोहों में विकलांगों के भाग लेने के लिए आवश्यक प्रणाली को लागू किया जाएगा।
      v . खेल-कूद में विकलांग व्यक्तियों के उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय अवार्ड का गठन किया जाएगा।

      ५६. नीति के क्रियान्वयन से जुड़े सभी मुद्दों के लिए सामाजिक न्याय तथा अधिकारिता मंत्रालय नोडल मंत्रालय के रूप में कार्य करेगा।



       ५७. राष्ट्रीय नीति के क्रियान्वयन से जुड़े मामलों के बीच समन्वय के लिए एक अंतर-मंत्रालय निकाय का गठन किया जाएगा। सभी प्रतिभागी जिनमें प्रतिष्ठित एनजीओ, विकलांग लोगों का संगठन, समर्थन समूह तथा माता-पिता/ अभिभावक विशेषज्ञ तथा पेशेवरों के प्रतिनिधियों को इस निकाय में शामिल किया जाएगा। ऐसी ही व्यवस्था राज्य स्तर तथा जिला स्तरों पर की  जाएगी। नीति के क्रियान्वयन से जुड़े मामलों को देखने के लिए जिला विकलांगता पुनर्वास केंद्रों के जिला स्तरीय समितियों में पंचायती राज संस्थानों तथा शहरी निकाय को भी जोड़ा जाएगा।

      ५८. गृह मंत्रालय, स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण मंत्रालय , ग्रामीण विकास मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय, युवा तथा खेल मामलों का मंत्रालय, रेलवे मंत्रालय, विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी मंत्रालय, सांख्यिकी तथा कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय, श्रम मंत्रालय, पंचयती राज मंत्रालय व प्राथमिक शिक्षा तथा साक्षरता विभाग, माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा मंत्रालय, सड़क परिवहन तथा राजमार्ग मंत्रालय, सार्वजनिक उपक्रम, राजस्व, महिला तथा बाल विकास मंत्रालय, सूचना प्रौद्योगिकी व कर्मचारी व  नीति के क्रियान्वयन के लिए आवश्यक प्रणाली का निर्माण करेंगे। प्रत्येक मंत्रालय/ विभागों द्वारा एक पंच-वर्षीय योजना तथा वार्षिक योजना का निर्माण किया जाएगा, जिसके तहत वित्तीय आवंटन किया जाएगा। इन मंत्रालयों/ विभागों की वार्षिक रिपोर्ट वर्ष के दौरान प्राप्त सफलता का उल्लेख करेगी।


       ५९. केंद्रीय स्तर पर मुख्य विकलांगता आयुक्त तथा राज्य स्तर पर राज्य विकलांगता आयुक्त अपनी सांवैधानिक दर्जे के अलावा राष्ट्रीय नीति के क्रियान्वयन में मुख्य भूमिका निभाएंगे।


      ६०. स्थानीय स्तर के मामलों के निपटान के लिए तथा उपयुक्त कार्यक्रम के निर्माण के जरिए पंचायती राज संस्थान, राष्ट्रीय नीति के क्रियान्वयन में अहम भूमिका निभाएंगें, जिन्हें जिला तथा राज्य योजनाओं के साथ जोड़ा जाएगा। इन संस्थानों की परियोजनाओं में विकलांगता से जुड़े घटक शामिल होंगे।


      ६१. क्रियान्वयन के दौरान विकसित संरचना को लंबे समय के स्तेमाल के लिए बरकरार और प्रभावी बनाए रखा जाएगा। समुदायों को स्वयं या निजी क्षेत्रों के लामबंदी द्वारा संरचना तथा संचालन लागत की भी पूर्ति हेतु संसाधनों के निर्माण में अहम भूमिका निभानी चाहिए। इस कदम से न केवल राज्य सरकार के संसाधन पर बोझ घटेगा बल्कि समुदाय तथा निजी क्षेत्र के भागीदारों के बीच जिम्मेदारी की भावना का भी विकास होगा।

      ६२. हर पांच साल में राष्ट्रीय नीति के क्रियान्वयन पर एक विशद समीक्षा की जाएगी। क्रियान्वयन की दशा को सूचित करने वाला एक दस्तावेज तथा पांच सालों के लिए एक रोडमैप का निर्माण किया जाएगा, जिन्हें राष्ट्रीय स्तर के सम्मेलन में संपन्न किया जाएगा। राज्य नीति तथा कार्य योजना के लिए राज्य सरकारों व केंद्र शासित प्रदेशों से अनुरोध किया जाएगा।


       स्त्रोत

      सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय
      स्त्रोत: सामाजिक न्याय तथा अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार, शास्त्री भवन, नई दिल्ली


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      Sunday, April 7, 2019

      दिव्यांगता [Disability]

      दिव्यागता  (Disability) - 

       दिव्यांगता  (Disability) एक व्यापक शब्द है जो किसी व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, ऐन्द्रिक, बौद्धिक विकास में किसी प्रकार की कमी को इंगित करता है। इसके लिए 'अशक्‍तता', 'नि:शक्‍तता' (विधि), 'अपंगता', अपांगता' आदि शब्दों का भी प्रयोग किया जाता है।



      दिव्यांगता के प्रकार

      1. शारीरिक निर्योग्यता (physical disability)
      2. ऐन्द्रिक निर्योग्यता (sensory disability)
      3. दृष्टिक्षीणता (vision impairment)
      4. घ्राण एवं रससंवेदी असमर्थता (Olfactory and gustatory impairment)
      5. काय-ऐंद्रिक असमर्थता (Somatosensory impairment)
      6. संतुलन निर्योग्यता (Balance disorder)
      7. बौद्धिक असमर्थता (intelletual impairment)
      8. मानसिक स्वास्थ्य एवं भावनात्मक निर्योग्यता (Mental health and emotional disabilities)
      9. विकासात्मक निर्योग्यता (Developmental disability)
      10. अदृष्य निर्योग्यता(invisible disability)



      दिव्यांगगजन समग्र कल्याण हेतु भारत सरकार द्वारा दिव्यांग जन (समान अवसर, अधिकार, संरक्षण एवं पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 पारित किया गया है, जो 07 फरवरी, 1996 से जम्मू कश्मीर को छोड़कर सम्पूर्ण भारतवर्ष में प्रभावी है। इस अधिनियम के कुल 14 अध्याय एवं 74 धाराऍ हैं। इस अधिनियम की धारा-2 (न) में नि:शक्त (दिव्यांग) व्यक्ति की परिभाषा निम्नानुसार दी गयी है:-



      नि: शक्त (दिव्यांग):

      नि: शक्त (दिव्यांग) से कोई  व्यक्ति अभिप्रेत है, जो किसी चिकित्सा प्राधिकारी द्वारा यथाप्रमाणित किसी नि:शक्तता से कम से कम 40 प्रतिशत से ग्रस्त है। उक्त अधिनियम - 1995 की धारा-2 में नि:शक्तता (दिव्यांगता) की श्रेणियॉ एवं उनकी परिभाषायें निम्नानुसार दी गयी है:-


      दृष्टिहीनता

      उस अवस्था के प्रति निर्देश करता है जहॉ कोई व्यक्ति निम्नलिखित दशाओं में से किसी से ग्रसित है अर्थात-


      दृष्टिगोचरता का पूर्ण अभाव 

      सुधारक लेन्सों के साथ बेहतर ऑख में 6/60 या 20/200 स्नेलन से अनधिक दृष्टि की तीक्ष्णता या

      दृष्टि क्षेत्र की सीमा का 20 डिग्री के कोण के कक्षांतरकारी होना या अधिक खराब होना।


      कम दृष्टि वाला व्यक्ति

      कम दृष्टि से अभिप्रेत है, ऐसा कोई व्यक्ति जिसके उपचार या मानक उपवर्धनीय सुधार संशोधन के बावजूद दृष्टिसंबंधी कृत्य का हास हो गया है और जो समुचित सहायक युक्ति से किसी कार्य की योजना या निष्पादन के लिए दृष्टि का उपयोग करता है या उपयोग करने में संभाव्य रूप से समर्थ है।


      कुष्ठ रोग से मुक्त

      कोई ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जो कुष्ठ रोग से मुक्त हो गया है किन्तु निम्नलिखित से ग्रसित है:-


      जिसके हाथ या पैरों में संवेदना की कमी तथा नेत्र और पलकों में संवेदना की कमी और आंशिक घात है किन्तु कोई प्रकट विरूपता नही है।


      प्रकट निःशक्तताग्रस्त और आंशिक घात है किन्तु उसके हाथों और पैरों में पर्याप्त गतिशीलता है जिससे वे सामान्य आर्थिक क्रिया कलाप कर सकते है।


      अत्यन

      अत्यन्त शारीरिक विरूपांगता और अधिक वृद्धावस्था से ग्रस्त है जो उन्हें कोई भी लाभपूर्ण उपजीविका चलाने से रोकती है और कुष्ठ रोग से मुक्त पद का अर्थ तदनुसार लगाया जायेगा।


      श्रवण हा्स

      श्रवण हा्स से अभिप्रेत है संवाद संबंधी रेंज की आवृत्ति में बेहतर कर्ण में 60 डेसीबल या अधिक की हानि।


      चलन क्रिया संबंधी नि:शक्तता

      चलन सम्बन्धी दिवंगत से हड्डियों, जोडों या मांसपेशियों की कोई ऐसी नि:शक्तता अभिप्रेत है जिससे अंगों की गति में पर्याप्त निर्बन्धन या किसी प्रकार का प्रमस्तिष्क अंगघात हो।


      मानसिक मंदता

      मानसिक मंदता  से बीमार  व्यक्ति के मस्तिष्क के अवरूद्ध या अपूर्ण विकास की अवस्था है जो विशेष रूप से सामान्य बुद्धिमत्ता की अवसामन्यता द्वारा प्रकट है, अभिप्रेत है।


      मानसिक बीमार

      मानसिक बीमार से मानसिक मंदता से भिन्न कोई मानसिक विकास अभिप्रेत है।


      निःशक्तता की उक्त श्रेणियों एवं परिभाषाओं के अनुसार दिव्यांग व्यक्तियों को निःशक्तता प्रमाण पत्र जारी करने हेतु उ0प्र0 नि:शक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) नियमावली, 2001 को सरलीकृत करते हुये उ0प्र0 नि:शक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) (प्रथम संशोधन) नियमावली 2014 शासन के अधिसूचना संख्या 519/65-3-2014-98 दिनांक 3.9.2014 द्वारा निर्गत की गयी है। उक्त संशोधित नियमावली के अनुसार सहज दृश्य निःशक्तता हेतु दिव्यांग प्रमाण पत्र प्रदेश के विभिन्न सामुदायिक चिकित्सा केन्द्रों एवं प्राथमिक चिकित्सा केन्द्रों, राजकीय चिकित्सालयों में कार्यरत चिकित्सा विभाग द्वारा नामित प्राधिकृत चिकित्सा अधिकारी द्वारा निर्गत किया जायेगा, जबकि ऐसी निःशक्तता जो सहज दृश्य न हो एवं उसके परिमाणमापन हेतु विशेषज्ञ चिकित्सक एवं उपकरण की आवश्यकता हो, के प्रकरण में दिव्यांग प्रमाण पत्र प्राधिकृत चिकित्सक की संस्तुति के आधार पर प्रत्येक जनपद में मुख्य चिकित्साधिकारी की अध्यक्षता में गठित चिकित्सा परिषद अथवा डा0 राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय लखनऊ के प्राधिकृत चिकित्सक द्वारा निर्गत किया जायेगा।


      'कलंक' नहीं है दिव्यांगता, सामाजिक बराबरी मिलेगी तो आगे बढ़ेंगे दिव्यांग

      साल 1992 से हर साल 3 दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र की ओर से 'विश्व दिव्यांग दिवस' मनाया जाता है। दिव्यांगजनों के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से यह दिवस हर साल मनाया जाता है। इस साल की थीम दिव्यांग लोगों के समावेशी, समान और सतत विकास को सशक्त करने पर केंद्रित है।

      दिव्यांग लोगों के प्रति सामाजिक जागरूकता के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र हर साल 3 दिंसबर को 'विश्व दिव्यांग दिवस' मनाता है। हर साल इससे संबंधित अलग-अलग थीम रखी जाती है। यूएन ने यह परंपरा साल 1992 से शुरू की है। समाज में आज भी दिव्यांगता को एक कलंक के तौर पर माना जाता है। ऐसे में लोगों में दिव्यांगता मामले की समझ बढ़ाने, दिव्यांगजनों के सामाजिक सम्मान की स्थापना, उनके अधिकारों और कल्याण पर ध्यान केंद्रित कराने के उद्देश्यों के लिए यह दिवस काफी महत्वपूर्ण है। इस साल की थीम दिव्यांग लोगों के समावेशी, समान और सतत विकास को सशक्त करने पर केंद्रित है।


      2030 अजेंडा ऑफ सस्टेनेबल डवलपमेंट' पर आधारित है थीम

      इस साल की थीम '2030 अजेंडा ऑफ सस्टेनेबल डलपमेंट' पर आधारित है। 'किसी को पीछे नहीं छोड़ना' इस अजेंडा का प्रमुख उद्देश्य है। यह अंतरराष्ट्रीय कम्युनिटी द्वारा शांतिपूर्ण और समृद्ध दुनिया के लिए किया जाने वाला एक प्रयास है जहां व्यक्तिगत समानता और व्यक्तिगत गरिमा इसके मौलिक सिद्धांतों में शामिल है। साथ ही समाज के सभी क्षेत्रों में दिव्यांग व्यक्तियों की पूर्ण और समान भागीदारी सुनिश्चित कराने के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करना भी इस अजेंडा का प्रमुख लक्ष्य है।


      1992 से हुई शुरुआत

      साल 1992 में विश्व दिव्यांग दिवस पहली बार मनाया गया था। इससे पहले साल 1981 को दिव्यांग लोगों के लिए 'अंतरराष्ट्रीय वर्ष' के रूप में मनाया गया था। दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए तथा उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संयुक्त राष्ट्र की आम सभा द्वारा साल 1983 से लेकर साल 1992 तक के वक्त को दिव्यांग व्यक्तिओं के लिए 'संयुक्त राष्ट्र दशक' के रूप में घोषित किया गया था।


      दिव्यांग दिवस मनाने के उद्देश्य

      दिव्यांग दिवस मनाने के पीछे दिव्यांगता को सामाजिक कलंक मानने की धारणा से लोगों को दूर करने का प्रयास है। इसे समाज में दिव्यांगों की भूमिका को बढ़ावा देने, उनकी गरीबी को कम करने, उन्हें बराबरी का मौका दिलाने तथा उनके स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक प्रतिष्ठा पर ध्यान केंद्रित करने जैसी कोशिशों के लिए भी मनाया जाता है। इस दिन कला प्रदर्शनी, खेल प्रतियोगिताओं तथा विभिन्न कार्यक्रमों के द्वारा दिव्यांगों के प्रति जागरूकता फैलाने की कोशिश की जाती है।



      दिव्यांगों के लिए कानून

      दिव्यांगजनों से भेदभाव किए जाने पर कानून दो साल तक की कैद और 5 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान करता है। तेजाब हमले से पीड़ित लोग और पार्किंसन के मरीजों को भी निःशक्तजनों की श्रेणी में रखा जाता है। भारतीय कानून में इनके लिए आरक्षण की व्यवस्था भी की गई है। पहले दिव्यांगजनों के लिए 3 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान था लेकिन अब इसे बढ़ाकर 4 प्रतिशत कर दिया गया है।


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      भारतीय पुनर्वास परिषद (RCI)

      Rehabilitation Council of India(RCI)

      भारतीय पुनर्वास परिषद को एक पंजीकृत सोसायटी के रूप मे १९८६ में स्थापित किया गया था। सितम्बर १९९२ को भारतीय पुनर्वास परिषद अधिनियम संसद द्वारा पारित किया गया और उस अधिनियम के द्वारा भारतीय पुनर्वास परिषद एक सांविधिक निकाय के रूप में २२ जून १९९३ को अस्तित्व मे आयी। अधिनियम को संसद द्वारा वर्ष २००० में इसे और अधिक व्यापक बनाने के लिए इसमे संसोधन किया गया। इस जनादेश के द्वारा भारतीय पुनर्वास परिषद के नीतियो व कार्यक्रमो को विनियमित करने, विकलांगता वाले व्यक्तियों के पुनर्वास एवं शिक्षा का दायित्व दिया गया, पाट्यक्रमो का मानकीकरण करना और एक केन्द्रिय पुनर्वास रजिस्टर सभी योग्य पेशेवरों और विशेष शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले व्यवसायिको और कर्मिको को एक केन्द्रिय पुनर्वास पंजिका में पंजीकृत करने का कार्य सौपा गया। इस अधिनियम के तहत अयोग्य व्यक्तियों के द्वारा विक्लांगता वाले व्यक्तियों को सेवाएं देने के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाई करने का अधिकार प्रदान किया गया है। इसके वर्तमान अध्यक्ष मेजर जेनरल (सेवा निवृत) इआन कार्डोजो हैं। संस्थान बी-२२, कुतुब इन्स्टीटयूशनल एरिया, नई दिल्ली ११० ०१६ में स्थित है।


      परिषद् का संगठन

      राष्ट्रीय पुनर्वास परिषद् अधिनियम 1992, की धारा 3 की उपधारा (1) और (3) के अनुरूप, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार एक जनरल काउंसिल का गठन करती है। जनरल काउंसिल सर्वोच्च निकाय है और विकलांग लोगों एवं उनके मूल्यांकन हेतु प्रशिक्षण नीतियों एवं कार्यक्रमों, पेशेवरों के लिए प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों के मानकीकरण का विनियमन करती है।

      परिषद् के कृत्य एवं दायित्व

      1. देशभर में सभी प्रशिक्षण संस्थानों में विभिन्न स्तरों पर प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों का मानकीकरण एवं नियमन करना

      2. विकलांगों के पुनर्वास के संदर्भ में देश में और देश के बाहर प्रशिक्षण पाठ्यक्रम चलाने वाले प्रशिक्षण संस्थानों/विश्वविद्यालयों को मान्यता देना

      3. पुनर्वास और विशिष्ट शिक्षा में अनुसंधान को बढ़ाना

      4. पुनर्वास के क्षेत्र में मान्य योग्यता रखने वाले व्यक्तियों का व्यवसायों का एक केंद्रीय पुनर्वास रजिस्टर रखना

      5. पुनर्वास शिक्षा कार्यक्रम जारी रखने को प्रोत्साहन देना और इसके लिए विकलांगता के क्षेत्र में कार्यरत संगठनों के साथ मिलकर कार्य करना

      6. अक्षमता या विकलांग के लिए काम करने वाली संस्थाओं एवं संगठनों के साथ सहयोग करके पुनर्वास एवं विशेष शिक्षा के क्षेत्र में निरंतर शिक्षा को प्रोत्साहित करना

      7. व्यावसायिक पुनर्वास केंद्रों को मानव संसाधन विकास केंद्रों के रूप में मान्यता प्रदान करना

      8. व्यावसायिक पुनर्वास केंद्रों में कार्यरत व्यावसायिक इंस्ट्रक्टर एवं अन्य कर्मियों को पंजीकृत करना,

      9. अपंगता के सम्बद्ध राष्ट्रीय संस्थानों एवं उच्च या शीर्ष निकायों की मानव संसाधन विकास केंद्रों के तौर पर मान्यता प्रदान करना।

      10. अपंगता संबंधी राष्ट्रीय संस्थानों और शीर्ष संस्थानों में कार्यशील कार्मिकों को सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय अधीन पंजीकृत करना।


      उद्देश्य

      वि व्यक्तियों के पुनर्वास के क्षेत्र में प्रशिक्षण नीतियों और कार्यक्रमों को विनियमित करना।

      1. विकलांग व्यक्तियों से संबंधित व्यावसायिक/कार्मिकों की विभिन्न श्रेणियों के शिक्षण और प्रशिक्षण के न्यूनतम मानक निर्धारित करना।
      2. विकलांग व्यक्तियों के लिए कार्य कर रहे व्यावसायियों के प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में मानकीकरण लाना।
      3. देश में सभी संस्थाओं में समान रूप से इन मानकों को विनियमित करना।
      4. निःशक्त व्यक्तियों के पुनर्वास के क्षेत्र में स्नातकोत्तर डिग्री /स्नातक डिग्री/स्नातकोत्तर डिप्लोमा/ प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम चलाने वाली संस्थाओं/विश्वविद्यालयों को मान्यता प्रदान करना।
      5. विदेशी विश्वविद्यालयों/संस्थाओं द्वारा डिग्रियों/डिप्लोमाओं/प्रमाणपत्रों को पारस्परिक आधार पर मान्यता प्रदान करना।
      6. मान्यता प्राप्त पुनर्वास योग्यता रखने वाले व्यावसायिकों/कार्मिकों के केन्द्रीय पुनर्वास रजिस्टर का रखरखाव करना।
      7. भारत और विदेश में कार्यरत संगठनों के सहयोग के द्वारा पुनर्वास के क्षेत्र में शिक्षा और प्रशिक्षण के संबंध में नियमित आधार पर सूचना एकत्र करना।
      8. देश और विदेश में कार्यरत संगठनों के सहयोग के द्वारा पुनर्वास और विशेष शिक्षा के क्षेत्र में अनुवर्ती शिक्षा को प्रोत्साहित करना।
      9. व्यावसायिक पुनर्वास केन्द्रों को जनशक्ति विकास केन्द्रों के रूप में मान्यता देना।
      10. व्यावसायिक पुनर्वास केन्द्रों में कार्यरत व्यावसायिक अनुदेशकों और अन्य कार्मिकों को पंजीकृत करना।
      11. सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय संस्थाओं और शीर्ष संस्थानों में कार्यरत कार्मिकों को पंजीकृत करना।


      भारतीय पुनर्वास अधिनियम, 1992 के अंतर्गत निःशक्त व्यक्तियों के अधिकार

      1--परिषद द्वारा रखे जा रहे रजिस्टरों में जिन प्रशिक्षित और विशेषज्ञ व्यावसायिकों के नाम दर्ज हैं, उनके द्वारा विकलांगजनों को लाभ पहुंचाना ।

      2- शिक्षा के उन न्यूनतम मानकों को बनाए रखने की गारंटी जो भारत में विश्वविद्यालयों या संस्थानों द्वारा पुनर्वास अर्हता की मान्यता के लिए अपेक्षित हैं ।


      3- शिक्षा के उन न्यूनतम मानकों को बनाए रखने की गारंटी जो भारत में विश्वविद्यालयों या संस्थानों द्वारा पुनर्वास अर्हता की मान्यता के लिए अपेक्षित हैं ।

      4- केन्द्र सरकार के नियंत्रणाधीन और अधिनियम द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर किसी सांविधिक परिषद द्वारा पुनर्वास व्यावसायिकों के व्यवसाय के विनियम की गारंटी ।
       है ।


      भारतीय पुनर्वास परिषद् अधिनियम, 1992 और संशोधन अधिनियम, 2000

      1. भारतीय पुनर्वास परिषद् अधिनियम पेशेवर पुनर्वास कर्मियों के प्रशिक्षण के नियमन और मान्यता प्राप्त पुनर्वास योग्यताएं रखने वाले पेशेवर पुनर्वास कर्मियों का नामांकन करने के लिए एवं केंद्रीय पुनर्वास पंजिका के संधारण के लिए भारतीय पुनर्वास परिषद के गठन की व्यवस्था करता है।
      2. अधिनियम यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि नि:शक्त व्यक्तियों का उपचार योग्य कार्मिकों द्वारा किया जाये और यह प्रत्यायन (एक्रीडीशन) तथा गुणवत्ता नियंत्रण सुविधा के रूप में कार्य करता है।
      3. यह अधिनियम परिषद के गठन, सदस्यता और कार्यों का विस्तार से प्रतिपादन करता है। इस अधिनियम की एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता है – पेशेवर पुनर्वास कर्मियों के लिए विश्वविद्यालय या अन्य संस्था द्वारा प्रदान की गई योग्यताओं को मान्यता देना।
      4. इस अधिनियम में पाठयक्रमों और विश्वविद्यालयों संस्थाओं के नामों के साथ मान्यता प्राप्त पुनर्वास योग्यताओं की विस्तृत सूची दी गई है। इसके साथ ही यह अधिनियम सरकार में या किसी संस्था में पद-ग्रहण की दृष्टि से और देश के किसी भी भाग में पेशेवर पुनर्वास कर्मियों के रूप में कार्य करने के मान्यता-प्राप्त योग्यताओं वाले पेशेवर पुनर्वास कर्मियों के अधिकारों को निर्धारित करता है।



      अधिनियम के अनुसार पुनर्वास परिषद के मुख्य कार्य इस प्रकार हैं –

      1. पुनर्वास योग्यता को मान्यता देने के लिए शिक्षा के न्यूनतम स्तर सुनिश्चित करना,
      2. केंद्रीय पुनर्वास पंजिका में पेशेवर कर्मियों का पंजीकरण करना,
      3. पेशेवर आचार संहिता के मानदंड निर्धारित करना और केंद्रीय पुनर्वास पंजिका से नामों को हटाना।
      4. भारतीय पुनर्वास परिषद (संशोधन) अधिनियम, 2000 को पिछले अधिनियम में सुधार करने और उसके कार्यान्वयन कार्यतंत्र में सुधार हेतु लाया गया था।
      5. इस अधिनियम में शामिल महत्वपूर्ण संशोधनों में पेशेवर पुनर्वास कर्मियों के अनुश्रवण और प्रशिक्षण के तथा पुनर्वास और विशेष शिक्षा में शोध के घटक निगरानी के द्वारा, इस परिषद के कार्य के दायरे का विस्तार करना शामिल है।
      6. इसके अलावा इसमें नि:शक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 में दी गई नि:शक्तता की परिभाषा को अपनाया गया है और यह उल्लेख किया गया है कि परिषद् का अध्यक्ष नि:शक्तता के क्षेत्र में अनुभव रखने वाला पेशेवर योग्यता वाला व्यक्ति होना चाहिए।




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      Saturday, April 6, 2019

      विकलांगता अधिनियम, 2016 के साथ लोगों के अधिकार

      विकलांगता अधिनियम, 2016 के साथ लोगों के अधिकार और मानसिक शांति के साथ लोगों के अधिकार

      अधिनियम के इनकार पर, यह देखा गया है कि हालांकि मानसिक बीमारी को विकलांगता की स्थिति के रूप में शामिल किया गया है, मानसिक बीमारी (पीएमआई) वाले व्यक्तियों की विशेष जरूरतों और उनके परिवारों को ठीक से संबोधित नहीं किया गया है। मानसिक बीमारी वाले पीडब्ल्यूडी को अपनी बीमारियों की प्रकृति के कारण विशेष और विभिन्न प्रकार के ध्यान और देखभाल की आवश्यकता होती है। अक्सर, गंभीर मानसिक बीमारी वाले व्यक्ति अंतर्दृष्टि की कमी के कारण अपनी बीमारी के बारे में जागरूक होने की स्थिति में नहीं होते हैं। इन परिस्थितियों में, उनके परिवार उन्हें देखभाल और सहायता प्रदान करने में बड़ी संपत्ति हैं। हमारे देश में, जहां मानसिक स्वास्थ्य देखभाल में कार्मिक संसाधन बेहद कम हैं, मानसिक बीमारी के प्रबंधन में परिवार एक बहुत ही महत्वपूर्ण संपत्ति है।  परिवार के सदस्यों को मानसिक स्वास्थ्य सेवा और परिवार के समर्थन में सबसे बड़ी हद तक शामिल होना चाहिए। प्रोत्साहित किया जाता है क्योंकि यह पीएमआई को नैतिक, भावनात्मक और शारीरिक समर्थन प्रदान करता है।

      हालांकि, अधिनियम की धारा al (२) के प्रावधानों के परिणामस्वरूप एक स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिसमें परिवार के सदस्य और अन्य देखभाल करने वाले कम इच्छुक हो सकते हैं। सक्रिय होने के लिए और आवश्यक सहायता प्रदान करने के लिए डरना चाहिए। जो कोई भी व्यक्ति ऐसे पीडब्ल्यूडी के लिए कदम रखता है और कुछ करने की कोशिश करता है, उसे मानसिक बीमारी होती है, सड़क पर चलने वाले किसी भी व्यक्ति द्वारा इस कानून का उल्लंघन करने के खिलाफ रिपोर्ट किया जा सकता है और हो सकता है अधिकारियों को लागू करने वाले कानून द्वारा ऐसा किया जाना। इस प्रकार, अधिनियम सेवा प्रदाता और परिवार को गंभीर मानसिक बीमारी वाले व्यक्तियों के उपचार प्रदान करने के लिए अपराधी बनाता है, भले ही वह व्यक्ति स्वयं या दूसरों को स्पष्ट जोखिम में हो। पीडब्ल्यूडी को दुर्व्यवहार, हिंसा और शोषण के कार्यों से बचाने के एक अच्छे कारण के लिए धारा 7 (2) डाली गई है। लेकिन मानसिक बीमारी वाले लोगों के लिए इस समस्या के समाधान के लिए उचित संशोधन की आवश्यकता है। मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के मामलों की मौजूदा स्थिति हमारे देश में बहुत भयावह है।

      सरकार द्वारा संचालित मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं अधिकांश जिलों में उपलब्ध नहीं हैं और देश में लगभग एक तिहाई जिलों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं। उच्च समर्थन आवश्यकताओं वाले पीएमआई की विशाल संख्या में उनके परिवार के सदस्यों को छोड़कर उनके पास कोई सहायता उपलब्ध नहीं है। हमारे देश में मौजूद मजबूत पारिवारिक और सामाजिक बंधन इन पीएमआई के लिए बहुत मददगार हैं। यदि इस उद्देश्य के लिए परिवार के महत्व को हतोत्साहित किया जाता है, तो मानसिक बीमारी और बौद्धिक हानि के साथ रहने वाले व्यक्तियों को छोड़ दिया जा सकता है और सड़कों पर घूमने के लिए छोड़ दिया जा सकता है। धारा 38 में यह प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति बेंचमार्क विकलांगता के साथ, जो खुद को उच्च समर्थन की जरूरत समझता है, या उसकी ओर से किसी व्यक्ति या संगठन को उच्च समर्थन प्रदान करने के लिए एक प्राधिकरण के पास आवेदन कर सकता है।

      इस प्रकार, अधिनियम पीडब्ल्यूडी पर समर्थन मांगने के लिए कानून बनाता है, गैर-सरकारी संगठनों पर अत्यधिक निर्भर करता है, और परिवार के महत्व को देखने में विफल रहता है। इसके अलावा, यह संभावना से इनकार करता है कि मानसिक बीमारी या बौद्धिक विकलांगता के साथ रहने वाला व्यक्ति बिल्कुल भी समर्थन लेने में सक्षम नहीं हो सकता है या सभी सहायता उपलब्ध होने पर भी निर्णय लेने में सक्षम नहीं हो सकता है। पीएमआई की देखभाल में परिवार की भूमिका और महत्व की अनदेखी करते हुए, अधिनियम इस बात पर चुप है कि गंभीर मानसिक बीमारी से पीड़ित लाखों लोगों के साथ इतने बड़े देश के लिए विशाल समर्थन प्रणाली कैसे बनाई जाएगी। यहां तक ​​कि अगर कोई सहायता प्रणाली वास्तव में शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में बनाई गई है, तो यह कैसे कल्पना की जा सकती है कि दूरदराज के गांवों में रहने वाले पीएमआई को उन तक पहुंच मिलेगी जहां सबसे बुनियादी स्वास्थ्य सुविधा भी उपलब्ध नहीं है।

      राज्यसभा में प्रस्तुत किए गए आरपीडब्ल्यूडी बिल में, "मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति" के लिए जिला न्यायालय द्वारा उचित परिस्थितियों में सीमित और पूर्ण सुरक्षा के प्रावधान थे। हालांकि, "मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों" का संदर्भ। अब "विकलांगता से ग्रस्त व्यक्ति" द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है, यानी, पीडब्ल्यूडी को अन्य कारणों से भी शामिल करना और "प्लेनरी अभिभावकत्व" शब्द को एक खंड द्वारा प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए "विकलांगता वाले व्यक्ति को कुल सहायता प्रदान कर सकता है" इसके अर्थ और अनुप्रयोग में बहुत अस्पष्टता। यहां यह नोट करना उचित है कि MHA-1987 में न्यायिक पूछताछ के प्रावधान हटा दिए गए हैं और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल विधेयक (MHCB), 2016 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। अब, "मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति" का संदर्भ और इस अधिनियम में "पूर्ण संरक्षकता" को भी संशोधित किया गया है।

      इन सभी प्रावधानों से गुजरने के बाद, ऐसा लगता है कि सभी पीडब्ल्यूडी में एक सार्वभौमिक कानूनी क्षमता को शामिल किया गया है, जिसमें गंभीर मानसिक बीमारी और मानसिक बीमारियों में मानसिक हानि का अस्तित्व शामिल है। हालाँकि, अधिनियम, अपने कुछ वर्गों में, पीएमआई के संबंध में कानूनी क्षमता की कमी को मानता है। धारा 62 (1) और 68 (1) "अयोग्य मन के व्यक्ति को अयोग्य घोषित करते हैं और एक सक्षम अदालत द्वारा घोषित स्टैंड" क्रमशः केंद्रीय और राज्य सलाहकार बोर्डों के सदस्य बनने से। असमान रूप से, मानसिक बीमारी से ग्रस्त व्यक्तियों के लिए आरक्षित नौकरियों की संख्या, बौद्धिक हानि, आत्मकेंद्रित, विशिष्ट सीखने की अक्षमता और कई विकलांगता (एक साथ ली गई सभी पाँचों के लिए 1%) के लिए आरक्षित व्यक्ति भी पीएमआई की अक्षमता की धारणा का सुझाव देते हैं। शिक्षा, व्यावसायिक, और स्व-रोजगार के अध्याय पीएमआई के अधिकारों की प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिए विशिष्ट उपायों पर चुप हैं। पीएमआई में कुछ हद तक अक्षमता की एक धारणा यहां भी काम करने लगती है। इसके अलावा, पीएमआई द्वारा सामना किए जाने वाले दृष्टिकोण और पर्यावरण संबंधी बाधाओं को देखते हुए, उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए विशेष जोर और सामाजिक कल्याण के उपाय होने चाहिए।

      कानून मानसिक स्थिति की कमी और गंभीर मानसिक बीमारी में समझ को पहचानता है, कभी-कभी पीएमआई को लाभ देता है (जैसे कि आईपीसी की धारा 84 उन्हें आपराधिक जिम्मेदारी से अनुपस्थित करती है), और कुछ समय के लिए उनके लिए प्रतिबंध (जैसे विभिन्न सार्वजनिक पकड़ में अयोग्य ठहराव) उपर्युक्त के रूप में सलाहकार बोर्डों की सदस्यता के कार्यालय रखने सहित कार्यालय)। उपरोक्त अधिनियम के उपधारा 3 में "एक वैध उद्देश्य को प्राप्त करने का एक आनुपातिक साधन" का अपवाद खंड है। मानसिक स्थिति की हानि और उपचार और देखभाल की प्रक्रिया में मान्यता एक वैध उद्देश्य और इसमें कुछ विशेष प्रावधान होंगे। सम्मान वास्तव में पीएमआई की उचित देखभाल के लिए अत्यधिक फायदेमंद हो सकता है और अंततः, बड़े पैमाने पर समाज को लाभ होगा।


      विकलांगता अधिनियम, 2016 और PSYCHIATRISTS के साथ लोगों के अधिकार

      RPWD अधिनियम 2016 में 102 खंडों के साथ 17 अध्याय हैं। ये सभी अध्याय मनोचिकित्सकों के लिए महत्वपूर्ण हैं जबकि अध्याय 1,5,10 और 11 विशेष महत्व रखते हैं क्योंकि इन अध्यायों में प्रावधान शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की नैतिकता के साथ निकटता से जुड़े हैं। 'अनुसूची' के रूप में राजपत्र अधिसूचना के अंत में दी गई निर्दिष्ट विकलांगता की परिभाषाएं अध्याय 1, खंड 2 (zc) में दी गई परिभाषाओं का विस्तार हैं। बौद्धिक विकलांगता, विशिष्ट सीखने की अक्षमता और आत्मकेंद्रित स्पेक्ट्रम विकारों जैसे मानसिक स्वास्थ्य विकलांगों को एक साथ प्रमाणित किया जाता है ताकि प्रमाणित डॉक्टरों के लिए भ्रम पैदा किया जा सके और सरकारी विभागों को लागू किया जा सके। इस परिभाषा से ऐसा लगता है कि ये तीन आइटम एक और एक ही हैं। अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए नियमों को तैयार करने से पहले इसे ठीक किया जाना चाहिए।
      2012 में जारी प्रारंभिक मसौदा बिल में इन तीन वस्तुओं की परिभाषाएँ स्पष्ट थीं। इस अधिनियम में एक नई विकलांगता है जिसे 'क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर' के रूप में जाना जाता है। Imp पर्सन विद डिसएबिलिटी ’शब्द दीर्घकालिक हानि को दर्शाता है। फिर भी प्रमाणीकरण के दौरान अधिक स्पष्टता के लिए क्रोनिक शब्द जोड़ा जाता है। विकलांगता के रूप में मानसिक बीमारी से पहले 'क्रॉनिक / लॉन्ग स्टैंडिंग / लॉन्ग स्टैंडिंग' शब्द को प्रीफिक्स करना अच्छा होता। अध्याय 5 विकलांगता वाले व्यक्तियों के लिए स्वास्थ्य देखभाल, अनुसंधान, पुनर्वास आदि से संबंधित है जबकि अध्याय 10 प्रमाणन प्रक्रिया से संबंधित है। इस अधिनियम के तहत नियमों का निर्धारण करते समय, पेशेवर नैतिकता और मनोचिकित्सकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को संरक्षित किया जाना चाहिए। अध्याय 11 सलाहकार बोर्डों के गठन और सदस्यों के नामांकन से संबंधित है। मनोचिकित्सकों को राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर इन निकायों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व होना चाहिए।


      दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम-2016 के अन्तर्गत निशक्तता के 21 प्रकार है

      1. मानसिक मंदता [Mental Retardation] -
              1.समझने / बोलने में कठिनाई

              2.अभिव्यक्त करने में कठिनाई

      2. ऑटिज्म [Autism Spectrum Disorders] -
          1. किसी कार्य पर ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई
          2. आंखे मिलाकर बात न कर पाना
          3. गुमसुम रहना

      3. सेरेब्रल पाल्सी [Cerebral Palsy] पोलियो-
          1. पैरों में जकड़न
          2. चलने में कठिनाई
          3. हाथ से काम करने में कठिनाई

      4. मानसिक रोगी [Mental illness] -
          1.अस्वाभाविक ब्यवहार,  2. खुद से बाते करना,
          3. भ्रम जाल,  4. मतिभ्रम,  5. व्यसन (नसे का आदी),
          6. किसी से डर / भय,  7. गुमसुम रहना

      5. श्रवण बाधित [Hearing Impairment]-
         1. बहरापन
         2. ऊंचा सुनना या कम सुनना

      6. मूक निशक्तता [Speech Impairment] -
          1. बोलने में कठिनाई
          2. सामान्य बोली से अलग बोलना जिसे अन्य लोग समझ          नहीं पाते

      7. दृष्टि बाधित [Blindness ] -
          1. देखने में कठिनाई
          2. पूर्ण दृष्टिहीन

      8. अल्प दृष्टि [Low- Vision ] -
          1. कम दिखना
          2. 60 वर्ष से कम आयु की स्थिति में रंगों की पहचान नहीं          कर पाना

      9. चलन निशक्तता  [Locomotor Disability ] -
          1. हाथ या पैर अथवा दोनों की निशक्तता
          2. लकवा
          3. हाथ या पैर कट जाना

      10. कुष्ठ रोग से मुक्त  [Leprosy- Cured ] -
           1. हाथ या पैर या अंगुली मैं विकृति
           2. टेढापन
           3. शरीर की त्वचा पर रंगहीन धब्बे
           4. हाथ या पैर या अंगुलिया सुन्न हों जाना

      11. बौनापन [Dwarfism ]-
            1. व्यक्ति का कद व्यक्स होने पर भी 4 फुट 10इंच                  /147cm  या इससे कम होना

      12. तेजाब हमला पीड़ित [Acid Attack Victim ] -
            1. शरीर के अंग हाथ / पैर / आंख आदि तेजाब हमले की वज़ह से असमान्य / प्रभावित होना

      13. मांसपेशी दुर्विक़ार [Muscular Distrophy ] -
           . मांसपेशियों में कमजोरी एवं विकृति

      14.स्पेसिफिक लर्निग डिसेबिलिटी[Specific learning]-
           . बोलने, श्रुत लेख, लेखन, साधारण जोड़, बाकी, गुणा,        भाग में आकार, भार, दूरी आदि समझने मैं कठिनाई

      15. बौद्धिक निशक्तता [ Intellectual Disabilities]-          1. सीखने, समस्या समाधान, तार्किकता आदि में         कठिनाई
            2. प्रतिदिन के कार्यों में सामाजिक कार्यों में एम  अनुकूल व्यवहार में कठिनाई

      16. मल्टीपल स्कलेरोसिस [Miltiple Sclerosis ] -
           1. दिमाग एम रीढ़ की हड्डी के समन्वय में परेशानी

      17. पार्किसंस रोग [Parkinsons Disease ]-
           1. हाथ/ पाव/ मांसपेशियों में जकड़न
           2. तंत्रिका तंत्र प्रणाली संबंधी कठिनाई

      18. हिमोफिया/ अधी रक्तस्राव [Haemophilia ] -
           1. चोट लगने पर अत्यधिक रक्त स्राव
           2.रक्त बहेना बंद नहीं होना

      19. थैलेसीमिया [Thalassemia ] -
            1. खून में हीमोग्लबीन की विकृति
            2. खून मात्रा कम होना

      20. सिकल सैल डिजीज [Sickle Cell Disease ] -
           1. खून की अत्यधिक कमी
           2. खून की कमी से शरीर के अंग/ अवयव खराब होना

      21. बहू  निशक्तता [Multiple Disabilities ] -
           1. दो या दो से अधिक निशक्तता से ग्रसित




      निष्कर्ष

      बेहतर होता कि मानसिक रोग से पीड़ित व्यक्तियों के विषय में विशिष्ट पहलू, जैसे कि उनके दुरुपयोग, हिंसा और शोषण से सुरक्षा का मामला, और संरक्षकता (सीमित या अन्यथा), को MHCB में उपयुक्त और व्यापक प्रावधानों द्वारा कवर किया गया था, 2016 केवल इस अधिनियम द्वारा कवर किए जाने वाले सामान्य प्रावधानों को छोड़कर। [to] हालांकि, अज्ञात कारणों के कारण ऐसा नहीं किया गया। बौद्धिक विकलांगता (मानसिक मंदता), आत्मकेंद्रित और कई विकलांग जो पहले राष्ट्रीय ट्रस्ट अधिनियम 1999 द्वारा अच्छी तरह से कवर किए गए थे, इस अधिनियम द्वारा मानसिक बीमारी वाले लोगों जैसी स्थिति का सामना करेंगे। यह ध्यान रखना उचित है कि इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी, भारत में मनोचिकित्सकों की सबसे बड़ी व्यावसायिक संस्था है, जिसमें 90% से अधिक योग्य मनोचिकित्सक शामिल हैं, जो आरपीडब्ल्यूडी अधिनियम, 2016 के प्रारूपण की प्रक्रिया के दौरान एक हितधारक के रूप में शामिल नहीं थे,

      हालांकि इसे बनाया गया था। विभिन्न चरणों में इसकी अपनी पहल पर इसका प्रतिनिधित्व। यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि मनोरोग विशेषज्ञ मानसिक बीमारी, आत्मकेंद्रित और बौद्धिक विकलांगता वाले व्यक्तियों के उपचार और देखभाल के क्षेत्र में विशेषज्ञता रखते हैं। इसलिए, इस क्षेत्र में किसी भी कानून का मसौदा तैयार करते समय उनकी सलाह को उचित महत्व दिया जाना चाहिए। पीएमआई के उपचार और देखभाल में और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के वितरण में होने वाली प्रत्याशित व्यावहारिक कठिनाइयों पर यहां चर्चा की गई है। इन तथ्यों को ध्यान में रखा जाना चाहिए और इस अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा नियमों को तैयार करते समय आवश्यक उपाय किए जाने चाहिए।



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      Friday, April 5, 2019

      दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार (RPWD) अधिनियम, 2016

      RIGHTS OF PERSONS WITH DISABILITIES (RPWD) ACT, 2016


      दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार (RPWD) अधिनियम, 2016


      2016 में संसद के गर्म शीतकालीन सत्र में व्यवधानों और स्थगन के दिनों के दौरान छह साल की पैरवी, वकालत और प्रतीक्षा के बाद, हमने आखिरकार विकलांगों के बहुप्रतीक्षित अधिकारों के सर्वसम्मति से पारित होने के साथ हमारे सांसदों की अनुकंपा देखी (RPWD) ) १४ दिसंबर, २०१६ को राज्यसभा में और उसके बाद १६ दिसंबर, २०१६ को लोकसभा में विधेयक। वर्ष के अंत से पहले माननीय राष्ट्रपति द्वारा इस विधेयक को और अधिक अनुमोदित और हस्ताक्षरित किया गया और सरकार ने अपने अधिकारी को 'अधिसूचित' किया 28 दिसंबर, 2016 को राजपत्र। इस प्रकार, RPWD बिल 2016 को 'अधिनियमित' किया गया और 'LAW' बन गया।

      वास्तव में, एक ऐतिहासिक क्षण और एक पथ तोड़ने वाली उपलब्धि! यह कानून भारत के अनुमानित 70-100 मिलियन विकलांग नागरिकों के लिए गेम चेंजर होगा और इसे लागू करने के प्रावधानों के साथ अधिकारों से दूर प्रवचन को धर्मार्थ से दूर ले जाने में मदद करेगा।

      1995 अधिनियम के तहत पिछली 7 श्रेणियों में से 21 श्रेणियों को अक्षम करने के अलावा, यह नया अधिनियम किसी के अधिकारों पर पूरा जोर देता है - समानता और अवसर का अधिकार, विरासत और खुद की संपत्ति का अधिकार, घर और परिवार का अधिकार और दूसरों के बीच प्रजनन अधिकार। । 1995 के अधिनियम के विपरीत, नया अधिनियम सुलभता के बारे में बात करता है - सरकार के लिए दो साल की समय सीमा निर्धारित करने के लिए यह सुनिश्चित करने के लिए कि विकलांग व्यक्तियों को भौतिक बुनियादी ढाँचे और परिवहन प्रणालियों में बाधा रहित पहुँच प्राप्त हो। इसके अतिरिक्त, यह निजी क्षेत्र के लिए भी जवाबदेह होगा। इसमें सरकार द्वारा निजी रूप से स्वामित्व वाले विश्वविद्यालयों और कॉलेजों जैसे शैक्षणिक संस्थानों को 'मान्यता प्राप्त' भी शामिल है। नए अधिनियम की एक पथ-तोड़ विशेषता सरकारी नौकरियों में आरक्षण में 3% से 4% तक की वृद्धि है

      नए कानून के साथ, भारतीय विकलांगता आंदोलन को अगले स्तर पर समाप्त कर दिया गया है। इसने हमें विकलांगता अधिकारों, "विकलांगता 2.0" के अगले चरण में प्रवेश किया है ।



       परिचय

      2007 में भारत ने UNCRPD पर हस्ताक्षर किए और इसकी पुष्टि करने के बाद, विकलांग अधिनियम, 1995 (PWD अधिनियम, 1995) के स्थान पर एक नया कानून बनाने की प्रक्रिया 2010 में UNCRPD के साथ अनुपालन करने के लिए शुरू हुई। परामर्श बैठकों और मसौदा प्रक्रिया की श्रृंखला के बाद, पीडब्ल्यूडी अधिनियम, 2016 (RPWD अधिनियम, 2016) के अधिकार संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किए गए। राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त करने के बाद इसे 28 दिसंबर, 2016 को अधिसूचित किया गया था। [ 1 ] विकलांग व्यक्तियों (पीडब्ल्यूडी) के सशक्तीकरण के लिए लागू किए गए सिद्धांतों में निहित गरिमा, व्यक्तिगत स्वायत्तता के लिए सम्मान है, जिसमें स्वयं की पसंद बनाने की स्वतंत्रता, और स्वतंत्रता भी शामिल है। व्यक्तियों का। अधिनियम में समाज में भेदभाव, पूर्ण और प्रभावी भागीदारी और समावेश पर जोर दिया गया है, मानव विविधता और मानवता के हिस्से के रूप में विकलांगों के अंतर और स्वीकृति के लिए सम्मान, अवसर की समानता, पहुंच, पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता, बच्चों की विकसित क्षमताओं के लिए सम्मान। विकलांगों के साथ, और विकलांग बच्चों के अधिकार के लिए उनकी पहचान को संरक्षित करने के लिए सम्मान। सिद्धांत सामाजिक कल्याण की चिंता से लेकर मानवाधिकार के मुद्दे पर विकलांगता के बारे में सोचने के प्रतिमान को दर्शाता है।

      विकलांगता अधिनियम, 1995 के साथ लोग 

      PWD (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण, और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 को "एशियाई और प्रशांत क्षेत्र में विकलांग लोगों की पूर्ण भागीदारी और समानता पर उद्घोषणा" के लिए एक प्रभाव देने के लिए अधिनियमित किया गया था। [ २ ] दिसंबर 1992 में बीजिंग में एशिया और प्रशांत क्षेत्र के लिए आर्थिक और सामाजिक आयोग की बैठक में उद्घोषणा जारी की गई थी, "विकलांग व्यक्तियों के 1993-2002 के एशियाई और प्रशांत दशक" को लॉन्च करने के लिए। अधिनियम ने विकलांगों की सात शर्तों को सूचीबद्ध किया, जो अंधापन, कम दृष्टि, कुष्ठ रोग, श्रवण दोष, लोकोमोटर विकलांगता, मानसिक मंदता और मानसिक बीमारी। मानसिक मंदता को "किसी व्यक्ति के दिमाग की गिरफ्तारी या अपूर्ण विकास की स्थिति के रूप में परिभाषित किया गया था, जो विशेष रूप से बुद्धिमत्ता की पराधीनता की विशेषता है। मानसिक बीमारी को" मानसिक मंदता के अलावा किसी भी मानसिक विकार "के रूप में परिभाषित किया गया था। अधिनियम ने एक दृष्टिकोण अपनाया। पीडब्ल्यूडी के संबंध में सामाजिक कल्याण और मुख्य ध्यान पीडब्ल्यूडी की विकलांगता, शिक्षा और रोजगार की रोकथाम और जल्दी पता लगाने पर था। अधिनियम ने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 3% आरक्षण भी प्रदान किया। इसने बाधा रहित स्थितियों को गैर-भेदभाव के उपाय के रूप में बनाने पर जोर दिया।

      विकलांगता अधिनियम, 2016 के साथ लोगों के अधिकार की प्रमुख विशेषताएं

      RPWD अधिनियम, 2016 में, सूची का विस्तार 7 से 21 स्थितियों में किया गया है और इसमें अब सेरेब्रल पाल्सी, बौनापन, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, एसिड अटैक पीड़ित, सुनने में मुश्किल, भाषण और भाषा विकलांगता, विशिष्ट विकलांगता, आत्मकेंद्रित स्पेक्ट्रम विकार शामिल हैं। , क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल विकार जैसे मल्टीपल स्केलेरोसिस और पार्किंसंस रोग, रक्त विकार जैसे हीमोफिलिया, थैलेसीमिया और सिकल सेल एनीमिया और कई विकलांग। नामकरण मानसिक मंदता को बौद्धिक विकलांगता द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है, जिसे "बौद्धिक कार्यप्रणाली (तर्क, शिक्षा, समस्या-समाधान) और अनुकूली व्यवहार दोनों में महत्वपूर्ण सीमा द्वारा चित्रित एक शर्त के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो विशिष्ट के लिए हर दिन सामाजिक और व्यावहारिक कौशल को शामिल करता है। विकलांगता और आत्मकेंद्रित स्पेक्ट्रम विकारों को सीखना। "अधिनियम मानसिक बीमारी की एक विस्तृत परिभाषा प्रदान करता है जो" सोच, मनोदशा, धारणा, अभिविन्यास, या स्मृति का एक पर्याप्त विकार है जो वास्तविकता, या वास्तविकता को पहचानने की क्षमता, व्यवहार और क्षमता को पहचानता है। जीवन की सामान्य मांगें, लेकिन इसमें मंदता शामिल नहीं है जो किसी व्यक्ति के दिमाग की गिरफ्तारी या अधूरे विकास की स्थिति है, विशेष रूप से बुद्धि की सूक्ष्मता से। ”बेंचमार्क विकलांग व्यक्तियों को कम से कम 40% किसी भी व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है। विकलांगता से ऊपर। पीडब्ल्यूडी को उच्च समर्थन की जरूरत है जो अधिनियम की धारा 58 (2) के तहत प्रमाणित हैं।

      RPWD अधिनियम, 2016 प्रदान करता है कि "उपयुक्त सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि PWD समानता का अधिकार, जीवन को गरिमा के साथ और दूसरों के साथ समान रूप से अपनी अखंडता का सम्मान करे।" सरकार को क्षमता का उपयोग करने के लिए कदम उठाना है। उपयुक्त वातावरण प्रदान करके PWD। धारा 3 में यह भी निर्धारित किया गया है कि किसी भी पीडब्ल्यूडी को विकलांगता की जमीन पर भेदभाव नहीं किया जाएगा, जब तक कि यह नहीं दिखाया जाता है कि लगाया गया अधिनियम या चूक एक वैध उद्देश्य को प्राप्त करने का एक आनुपातिक साधन है और कोई भी व्यक्ति केवल अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा। विकलांगता की जमीन पर। पीडब्ल्यूडी के लिए समुदाय में रहना सुनिश्चित किया जाना है और उनके लिए उचित आवास सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा कदम उठाए जाने हैं। महिलाओं और बच्चों को यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष उपाय किए जाने चाहिए कि वे दूसरों के साथ समान रूप से अधिकारों का आनंद लें।

      पीडब्ल्यूडी को क्रूरता, अमानवीय और अपमानजनक उपचार और सभी प्रकार के दुर्व्यवहार, हिंसा और शोषण से बचाने के लिए उपाय किए जाने हैं। किसी भी शोध के संचालन के लिए, पीडब्ल्यूडी से मुक्त और सूचित सहमति के साथ-साथ अनुसंधान के लिए एक समिति की पूर्व अनुमति के लिए निर्धारित तरीके से गठित किया जाना चाहिए। अधिनियम की धारा 7 (2) के तहत, कोई भी व्यक्ति या पंजीकृत संगठन, जिसके पास या जिसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि दुर्व्यवहार, हिंसा, या शोषण का कार्य किसी PWD के खिलाफ किया जा रहा है या होने की संभावना है, वह जानकारी दे सकता है। स्थानीय कार्यकारी मजिस्ट्रेट जो अपनी घटना को रोकने या रोकने के लिए तत्काल कदम उठाएंगे और पीडब्ल्यूडी की सुरक्षा के लिए उचित आदेश पारित करेंगे। पुलिस अधिकारी, जो शिकायत प्राप्त करते हैं या अन्यथा हिंसा, दुर्व्यवहार, या शोषण के बारे में जानते हैं, कार्यकारी मजिस्ट्रेट से संपर्क करने के अपने अधिकार के पीड़ित PWD को सूचित करेंगे।पुलिस अधिकारी पीडब्ल्यूडी के पुनर्वास के लिए काम करने वाले निकटतम संगठन के विवरणों, मुफ्त कानूनी सहायता का अधिकार, और इस अधिनियम या इस तरह के अपराध से निपटने वाले किसी अन्य कानून के प्रावधानों के तहत शिकायत दर्ज करने के अधिकार के बारे में भी सूचित करेगा।

      पीडब्ल्यूडी को जोखिम, सशस्त्र संघर्ष, मानवीय आपात स्थितियों और प्राकृतिक आपदाओं की स्थितियों में समान सुरक्षा और सुरक्षा प्रदान की जानी है। विकलांगता वाले बच्चों को सक्षम अदालत के आदेश को छोड़कर माता-पिता से अलग नहीं होना है और पीडब्ल्यूडी को प्रजनन अधिकारों और परिवार नियोजन के बारे में जानकारी सुनिश्चित करनी है। मतदान में पहुंच और पीडब्ल्यूडी के साथ भेदभाव के बिना न्याय तक पहुंच सुनिश्चित की जानी है। सार्वजनिक दस्तावेजों को सुलभ प्रारूपों में उपलब्ध कराया जाना है।

      यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सभी पीडब्ल्यूडी जीवन के सभी पहलुओं में दूसरों के साथ समान आधार पर कानूनी क्षमता का आनंद लेते हैं और कानून के समक्ष किसी भी अन्य व्यक्ति के रूप में हर जगह समान मान्यता का अधिकार रखते हैं और अधिकार है, दूसरों के साथ समान रूप से, खुद के लिए और विरासत में। चल और अचल संपत्ति के साथ-साथ उनके वित्तीय मामलों (सिक 13) को नियंत्रित करता है। यह भी प्रदान किया जाता है कि बेंचमार्क विकलांगता वाला एक पीडब्ल्यूडी जो अपने आप को उच्च समर्थन की आवश्यकता मानता है, वह अपनी ओर से किसी अन्य व्यक्ति या संगठन को सरकार द्वारा नियुक्त प्राधिकारी के लिए लागू कर सकता है और उसके लिए प्राधिकारी ले जाएगा तदनुसार कदम प्रदान करने के लिए कदम (धारा 38)। हालाँकि, पीडब्ल्यूडी के पास समर्थन प्रणाली में परिवर्तन, संशोधन या विघटन का अधिकार होगा और हितों के टकराव के मामले में, सहायक व्यक्ति समर्थन प्रदान करने से पीछे हट जाएगा [सेकंड 13 (4 और 5)]। यह अधिनियम की धारा 14 में प्रदान किया गया है कि एक जिला न्यायालय या किसी नामित प्राधिकारी, जैसा कि राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित किया गया है, यह पाता है कि विकलांग व्यक्ति, जिसे पर्याप्त और उचित सहायता प्रदान की गई थी, लेकिन कानूनी रूप से बाध्यकारी निर्णय लेने में असमर्थ है।

      ऐसे व्यक्ति के परामर्श पर, उसकी ओर से कानूनी रूप से बाध्यकारी निर्णय लेने के लिए सीमित अभिभावक के आगे समर्थन प्रदान किया जा सकता है, इस प्रकार, जैसा कि राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किया जा सकता है। यह भी प्रदान किया जाता है कि जिला न्यायालय या नामित प्राधिकारी, जैसा भी मामला हो, विकलांग व्यक्ति को इस तरह के समर्थन की आवश्यकता होती है या जहां सीमित संरक्षकता बार-बार दी जानी है। इन मामलों में प्रदान किए जाने वाले समर्थन के बारे में निर्णय की समीक्षा न्यायालय या नामित प्राधिकारी द्वारा की जाएगी, जैसा भी मामला हो, प्रदान किए जाने वाले समर्थन की प्रकृति और तरीके का निर्धारण करना। सीमित संरक्षकता का मतलब संयुक्त निर्णय की एक प्रणाली से है, जो अभिभावक और विकलांगता वाले व्यक्ति के बीच आपसी समझ और विश्वास पर चलती है, जो एक विशिष्ट अवधि और विशिष्ट निर्णय और स्थिति के लिए सीमित होगी और इच्छा के अनुसार काम करेगी। विकलांगता वाले व्यक्ति की यह भी प्रदान किया जाता है कि अधिनियम के प्रारंभ होने से और समय तक लागू होने वाले किसी भी अन्य कानून के तहत नियुक्त प्रत्येक अभिभावक को सीमित अभिभावक के रूप में कार्य करने के लिए समझा जाएगा।

      इस विधेयक में समावेशी शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, और विकलांग व्यक्तियों के स्व-रोजगार के लिए बिना किसी भेदभाव और भवनों, परिसरों और विभिन्न सुविधाओं को पीडब्लूडी के लिए सुलभ बनाया जाना है और उनकी विशेष आवश्यकताओं पर ध्यान दिया जाना है। सरकार द्वारा समुदाय में रहने के लिए पीडब्ल्यूडी को सुरक्षित रखने और बढ़ावा देने के लिए आवश्यक योजनाएं और कार्यक्रम शुरू किए जाने हैं। पीडब्ल्यूडी के लिए उपयुक्त स्वास्थ्य देखभाल उपाय, बीमा योजना और पुनर्वास कार्यक्रम भी सरकार द्वारा किए जाने हैं।सांस्कृतिक जीवन, मनोरंजन और खेल गतिविधियों का भी ध्यान रखना है। उच्च शिक्षा के सभी सरकारी संस्थानों और सरकार से सहायता प्राप्त करने वालों को बेंचमार्क विकलांग व्यक्तियों के लिए कम से कम 5% सीटें आरक्षित करने की आवश्यकता होती है। बेंचमार्क विकलांग व्यक्तियों के लिए चार प्रतिशत आरक्षण विकलांगों के विभिन्न रूपों के लिए अंतर कोटा के साथ सभी सरकारी प्रतिष्ठानों के पदों पर प्रदान किया जाना है। निजी क्षेत्र में नियोक्ता को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए जो बेंचमार्क विकलांगता वाले व्यक्तियों के लिए 5% आरक्षण प्रदान करते हैं। पीडब्ल्यूडी के लिए विशेष रोजगार आदान-प्रदान स्थापित किए जाने हैं।पीडब्ल्यूडी के संबंध में जागरूकता और संवेदीकरण कार्यक्रम संचालित और प्रचारित किए जाने हैं। भौतिक वातावरण में पहुंच के मानकों, परिवहन के विभिन्न तरीकों, सार्वजनिक भवन और क्षेत्रों को निर्धारित किया जाना है, जिन्हें अनिवार्य रूप से मनाया जाना है सार्वजानिक भवन को सुलभ बनाने के लिए 5 साल की समय सीमा प्रदान की गई है। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी तक पहुंच सुनिश्चित की जानी है। विकलांगता के तहत केंद्रीय और राज्य सलाहकार बोर्ड अधिनियम के तहत सौंपे गए विभिन्न कार्यों को करने के लिए गठित किए जाएंगे। राज्य सरकार द्वारा जिला स्तरीय समितियों का भी गठन किया जाना है। पीडब्ल्यूडी के लिए मुख्य आयुक्त और दो आयुक्तों को केंद्र सरकार द्वारा अधिनियम के उद्देश्यों के लिए केंद्रीय स्तर पर नियुक्त किया जाना है। इसी तरह, पीडब्ल्यूडी के लिए राज्य आयुक्तों को राज्य सरकारों द्वारा नियुक्त किया जाना है। पीडब्ल्यूडी के लिए राष्ट्रीय कोष और पीडब्ल्यूडी के लिए राज्य निधि का गठन उपयुक्त सरकारों द्वारा क्रमशः केंद्रीय और राज्य स्तरों पर किया जाना है। अधिनियम के प्रावधानों के विरोधाभासों को पहले उल्लंघन के लिए दस हजार तक के जुर्माने और बाद के गर्भनिरोधकों के लिए पचास हजार तक की बढ़ोत्तरी के लिए दंडनीय बनाया गया है। पीडब्ल्यूडी पर अत्याचार को 6 महीने की कैद के साथ 5 साल की कैद और जुर्माने के साथ दंडनीय बनाया गया है। पीडब्ल्यूडी को मिलने वाले लाभों का झूठा लाभ उठाना भी दंडनीय है।


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      Thursday, April 4, 2019

      नेशनल ट्रस्ट एक्ट - 1999 [NT]

      राष्टीय न्यास अधिनियम - 1999 

      प्रारंभिक
      ऑटिज्म, सेरेब्रल पाल्सी, मानसिक प्रतिशोध और एकाधिक रोग अधिनियम, 1999 के साथ व्यक्तियों के कल्याण के लिए राष्ट्रीय ट्रस्ट

      1999 की संख्या 44 (30 दिसंबर 1999)

      ऑटिज्म, सेरेब्रल पाल्सी, मानसिक मंदता और एकाधिक विकलांगता वाले व्यक्तियों के कल्याण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक निकाय के गठन के लिए एक अधिनियम और इसके साथ जुड़े मामलों या आकस्मिक उपचार के लिए।

      इसे भारतीय गणतंत्र के पचासवें वर्ष में संसद द्वारा अधिनियमित किया जाए:

      अध्याय 1 - प्रारंभिक

      1. इस अधिनियम को ऑटिज्म, सेरेब्रल पाल्सी, मानसिक प्रतिशोध और कई विकलांग अधिनियम, 1999 के साथ व्यक्तियों के कल्याण के लिए राष्ट्रीय ट्रस्ट कहा जा सकता है

      2. यह पूरे भारत में फैला हुआ है जो जम्मू और कश्मीर राज्य की अपेक्षा करता है।


      परिभाषाएं

      1- इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, -आत्मकेंद्रित" का अर्थ है असमान कौशल विकास की एक स्थिति मुख्य रूप से दोहराए और अनुष्ठानिक व्यवहार द्वारा चिह्नित किसी व्यक्ति के संचार और सामाजिक क्षमताओं को प्रभावित करती है;

      2. "बोर्ड" का अर्थ है धारा 3 के तहत गठित न्यासी बोर्ड;

      3. "सेरेब्रल पाल्सी" का अर्थ है किसी व्यक्ति की गैर-प्रगतिशील स्थिति का एक समूह, जो मस्तिष्क के अपमान या चोटों के परिणामस्वरूप असामान्य मोटर नियंत्रण मुद्रा द्वारा विकसित होता है, जो प्रसव के पूर्व, प्रसवकालीन या शिशु अवधि में होने वाली चोटों;

      4. "अध्यक्ष" का अर्थ है खंड 3 के उपखंड (4) के खंड के तहत नियुक्त बोर्ड का अध्यक्ष;

      5. "मुख्य कार्यकारी" अधिकारी "का अर्थ है मुख्य कार्यकारी अधिकारी धारा 8 की उप-धारा (1) के तहत नियुक्त;

      6. "सदस्य" का अर्थ बोर्ड का सदस्य है और इसमें अध्यक्ष भी शामिल है;

      7. "मानसिक मंदता" का अर्थ है व्यक्ति के दिमाग की गिरफ्तारी या अपूर्ण विकास की स्थिति, जो विशेष रूप से बुद्धि की उप-सामान्यता की विशेषता है;

      8. "एकाधिक विकलांगता" का अर्थ दो या अधिक विकलांगों का एक संयोजन है, जो कि विकलांग व्यक्तियों के खंड 2 के खंड (i) में परिभाषित है (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995;

      9. "अधिसूचना" का अर्थ है आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना;

      10. "विकलांगता वाले व्यक्ति" का अर्थ है, ऑटिज़्म, सेरेब्रल पाल्सी, मानसिक मंदता या ऐसी किसी भी दो या अधिक स्थितियों के संयोजन से संबंधित किसी भी स्थिति से पीड़ित व्यक्ति और इसमें कई गंभीर विकलांगता से पीड़ित व्यक्ति शामिल हैं;

      11. "निर्धारित" इस अधिनियम के तहत बनाए गए नियमों द्वारा निर्धारित है;

      12. "पेशेवर" का अर्थ है एक व्यक्ति जो एक क्षेत्र में विशेष विशेषज्ञता रखता है, जो विकलांगता वाले व्यक्तियों के कल्याण को बढ़ावा देगा;

      13- "पंजीकृत संगठन" का अर्थ है विकलांगता वाले व्यक्तियों का संघ या विकलांगता वाले व्यक्तियों के माता-पिता का एक संगठन या स्वैच्छिक, जैसा कि मामला हो, धारा 12 के तहत पंजीकृत हो;

      14. "विनियमन" का अर्थ है इस अधिनियम के तहत बोर्ड द्वारा बनाए गए नियम;

      15. "गंभीर विकलांगता" का अर्थ है अस्सी प्रतिशत या एक से अधिक विकलांगों की अधिकता के साथ विकलांगता;

      16. "ट्रस्ट" का अर्थ है ऑटिज़्म के साथ व्यक्तियों के कल्याण के लिए राष्ट्रीय ट्रस्ट, सेरेब्रल पाल्सी मानसिक प्रतिशोध और धारा 3 के उप खंड (1) के तहत गठित कई विकलांगता।


      राष्टीय न्यास अधिनियम, 1999 के अन्तर्गत विकलांगता से ग्रस्त व्यक्तियों के अधिकार

      1- इस अधिनियम के अनुसार केन्द्रीय सरकार का यह दायित्व है कि वह ऑटिज्म, प्रमस्तिष्क अंगघात, मानसिक मंदता और बहु विकलांगता ग्रस्त व्यक्तियों के कल्याण के लिए, नई दिल्ली में राष्ट्रीय न्यास का गठन करें ।

      2- केन्द्रीय सरकार द्वारा स्थापित किए गए राष्ट्रीय न्यास को यह सुनिश्चित करना होता है कि इस अधिनियम की धारा 10 में वर्णित उद्देश्यों पूरे हों ।

      3- राष्ट्रीय न्यास के न्यासी बोर्ड का यह दायित्व है कि वे वसीयत में उल्लिखित किसी भी लाभग्राही के समुचित जीवन स्तर के लिए आवश्यक प्रबंध करें और विकलांगजनों के लाभ हेतु अनुमोदित कार्यक्रम करने के लिए पंजीकृत संगठनों को वित्तीय सहायता प्रदान करें ।

      4- इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार, विकलांग व्यक्तियों को स्थानीय स्तर की समिति द्वारा नियुक्त संरक्षक की देखरेख में, रखे जाने का अधिकार है । नियुक्त किए गए ऐसे संरक्षकों उस व्यक्ति और विकलांग प्रतिपाल्यों की संपत्ति के लिए जिम्मेदवार और उत्तरदायी होंगे ।

      5- यदि विकलांग व्यक्ति का संरक्षक उसके साथ दुप्र्यवहार कर रहा है या उसकी उपेक्षा कर रहा है या उसकी संपत्ति का दुरुपयोग कर रहा है तो विकलांग व्यक्ति को अपने संरक्षक को हटा देने का अधिकार है ।

      6- जहां न्यासी बोर्ड कार्य नहीं करता या इसने सौंपे गए कार्यों के कार्यनिष्पादन में लगातार चूक की है, वहां विकलांग व्यक्तियों हेतु पंजीकृत संगठन, न्यासी बोर्ड को हटाने/इसका पुनर्गठन करने के लिए केन्द्रीय सरकार से शिकायत कर सकता है ।

      7- इस अधिनियम के उपबन्ध राष्ट्रीय न्यास पर जवाबदेही, मॉनीटरिग, वित्त, लेखा और लेखा-परीक्षा के मामले में बाध्यकारी होंगे ।



      बहु-विकलांग व्यक्तियों के कल्याण हेतु राष्ट्रीय न्यास 

      National Trust for welfare of persons with Autism, Cerebral Palsy, Mental Retardation and Multiple Disabilities


      यह न्यास एक संविधिक निकाय है जिसकी स्थापना आत्मविमोह, मस्तिष्क पक्षाघात और मंदबुद्धि के शिकार व्यक्तियों के लिए राष्ट्रीय न्यास और बहु-विकलांगता अधिनियम, 1999  (The National Trust For Welfare of Persons With Autism, Cerebral Palsy, Mental Retardation and, Multiple Disabilities Act, 1999) के तहत् की गई है। इस न्यास का मूल उद्देश्य इस तरह की विकलांगता के शिकार व्यक्तियों को आत्मनिर्भर बनाना है जिससे वे यथासंभव स्वतंत्र रूप से जी सकें। न्यास जरूरत के अनुसार सेवाएँ प्रदान करने वाले पंजीकृत संगठनों को सहायता प्रदान करता है और जरूरतमंद विकलांग व्यक्तियों के लिए क़ानूनी संरक्षक नियुक्त करने की प्रक्रिया तय करता है।

      न्यास में एक अध्यक्ष और 21 सदस्य होते हैं जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है। अध्यक्ष को केंद्र सरकार द्वारा उन लोगों में से नियुक्त किया जाता है जिन्हें आत्मविमोह, मस्तिष्क पक्षाघात, मंद बुद्धि और बहु-विकलांगता के क्षेत्र में विशेषज्ञता एवं अनुभव होता है।



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      Wednesday, April 3, 2019

      दिव्यांगजन अधिनियम 1995 संविधान के अनुच्छेतद 253

      विकलांगजन अधिनियम 1995
      

      यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेतद 253 सह पठित संघ सूची की मद क्रम संख्यां 13 के अंतर्गत अधिनियमित किया गया है। यह एशियाई एवं प्रशांत क्षेत्र में विकलांग व्यक्तियों की पूर्ण भागीदारी और समानता की उद्घोषणा को कार्यान्वित करता है और उनकी शिक्षा, उनके रोजगार, बाधारहित परिवेश का सृजन, सामाजिक सुरक्षा, इत्यादि का प्रावधान करता है। इस अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों, राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों, स्थानीय निकायों सहित यथोचित सरकारों द्वारा एक बहु कार्यक्षेत्र सहयोगात्माक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।

      निःशक्त व्यक्ति अधिनियम, 1995 के अन्तर्गत विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम में विकलांग व्यक्तियों को जो आधारभूत अधिकार दिए गए हैं, वे इस प्रकार हैं

      1- समान अवसर देने, उनके अधिकारों के संरक्षण और सहभागिता के लिये, जो व्यक्ति 40 फीसदी या उससे अधिक विकलांग है, उसे चिकित्सा विशेषज्ञों द्वारा प्रमाणित किया जायेगा। इसमें दृष्टि हीनता, दृष्टिबाध्यता, श्रवण क्षमता में कमी, गति विषयन बाध्यता शामिल है।

      2- विकलांग व्यक्तियों को अविकलांग व्यक्तियों की तरह समान अवसर का अधिकार और कानूनी अधिकारों की सुरक्षा का अधिकार है ।

      3- जीवन के कार्यों में अविकलांग व्यक्तियों के बराबर पूर्ण भागीदारी का अधिकार है ।

      4- विकलांगों को देखभाल और जीवन की प्रमुख धारा में उन्हें पुनर्वासित किए जाने का अधिकार है।

      5- हर विकलांग के बच्चे को 18 वर्ष की आयु तक उपयुक्त वातावरण में नि:शुल्क शिक्षा का अधिकार है । सरकार को विशेष शिक्षा प्रदान करने के लिए विशेष स्कूल स्थापित करने चाहिए, सामान्य स्कूलों में विकलांग छात्रों के एकीकरण को बढ़ावा देना चाहिए और विकलांग बच्चों के व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए अवसर मुहैया कराने चाहिए ।

      6- पांचवीं कक्षा तक पढ़ाई कर चुके विकलांग बच्चे मुक्त स्कूल या मुक्त विश्वविद्यालयों के माध्यम से अंशकालिक छात्रों के रुप में अपनी शिक्षा जारी रख सकते हैं और सरकार से विशेष पुस्तकें और उपकरणों को नि:शुल्क प्राप्त करने का उन्हें अधिकार है ।सरकार का यह कर्तव्य है कि वह नए सहायक उपकरणों, शिक्षण सहायक साधनों और विशेष शिक्षण सामग्री का विकास करें ताकि विकलांग बच्चों को शिक्षा में समान अवसर प्राप्त हों ।

      7- विकलांग बच्चों को पढ़ाने के लिए सरकार को शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान स्थापित करें, विस्तृत शिक्षा संबंधी योजनाएं बनाएं, विकलांग बच्चों को स्कूल जाने-आने के लिए परिवहन सुविधाएं देनी हैं, उन्हें पुस्तकें, वर्दी और अन्य सामग्री, छात्रवृत्तियां, पाठ्यक्रम और नेत्रहीन छात्रों को लिपिक की सुविधाएं दें ।

      8- केंद्र सरकार के कार्यालयों व इसके अधीन सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के निचले वर्गों (वर्ग 'ग’ व 'घ’) के पदों में से 3 प्रतिशत विकलांग व्यक्तियों के लिए आरक्षित हों। यह आरक्षण दृष्टि की, श्रवण की तथा अन्य शारीरिक अक्षमताओं से प्रभावित व्यक्तियों के बीच समान रूप से बंटा हो।

      9- सरकारी और सरकार से अनुदान प्राप्त शिक्षण संस्थाओं को कम से कम 3 प्रतिशत सीटें विकलांगों के लिए आरक्षित करनी होती हैं।

      10- ऐसे कर्मचारी को जो सेवाकाल में विकलांग हो गया है, इस विकलांगता की वजह से काम से नहीं निकाला जा सकता है या पदावनत नहीं किया जा सकता है, लेकिन उसे उसकी वेतन और भत्तों के साथ दूसरे पद पर भेजा जा सकता है। सेवाकाल में शारीरिक क्षति होने पर किसी कर्मचारी को पदोन्नति के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।

      11- सभी गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों में इस बात की व्यवस्था है कि कम से कम तीन फीसदी लाभार्थी विकलांग वर्ग के हों।

      12- दृष्टिहीनता, श्रवण विकलांग और प्रमस्तिष्क अंगघात से ग्रस्त विकलांगजनों की प्रत्येक श्रेणी के लिए आरक्षण होगा । इसके लिए प्रत्येक तीन वर्षों में सरकार द्वारा पदों की पहचान की जाएगी । भरी न गई रिक्तियों को अगले वर्ष के लिए ले जाया जा सकता है ।

      13- विकलांगजनों को रोजगार देने के लिए सरकार को विशेष रोजगार केन्द्र स्थापित करे।

      14- सरकारी शैक्षिक संस्थान और सहायता प्राप्त संस्थान 3 सीटों को विकलांगजनों के लिए आरक्षित रखेंगे । रिक्तियों को गरीबी उन्मूलन योजनाओं में आरक्षित रखना है ।

      15- नियोक्ताओं को प्रोत्साहन भी देना, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके द्वारा लगाए गए कुल कर्मचारियों में से 5 व्यक्ति विकलांग हैं ।

      16- आवास और पुनर्वास के उद्देश्यों के लिए विकलांग व्यक्ति रियायती दर पर जमीन के तरजीही आवंटन के हकदार होंगे ।

      17- विकलांग व्यक्तियों के साथ परिवहन सुविधाओं, सडक़ पर यातायात के संकेतों या निर्मित वातावरण में कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा । सरकारी रोजगार के मामलों में विकलांग व्यक्तियों के साथ कोई भेदभाव नहीं होगा।

      18- सरकार विकलांग व्यक्तियों या गंभीर विकलांगता से ग्रस्त व्यक्तियों के संस्थानों की मान्यता निर्धारित करेगी ।

      19- प्रमुख आयुक्त और राज्य आयुक्त विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों से संबंधित शिकायतों के मामलों की जांच करेंगे ।

      20- सरकार और स्थानीय प्राधिकरण विकलांग व्यक्तियों के पुनर्वास का कार्य करेंगे, गैर-सरकारी संगठनों को सहायता देंगे, विकलांग कर्मचारियों के लिए बीमा योजनाएं बनाएंगे और विकलांग व्यक्तियों के लिए बेरोजगारी भत्ता योजना भी बनाएंगे।

      21- छलपूर्ण तरीके से विकलांग व्यक्तियों के लाभ को लेने वालों या लेने का प्रयास करने वालों को 2वर्ष की सजा या 20,000 रुपए तक का जुर्माना होगा ।



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