Saturday, March 23, 2019

कुष्ठ रोग से मुक्त [Leprosy-Cured ]

कुष्ठरोग (Leprosy) 

कुष्ठरोग (Leprosy) या हैन्सेन का रोग (Hansen’s Disease) (एचडी) (HD), चिकित्सक गेरहार्ड आर्मोर हैन्सेन (Gerhard Armauer Hansen) के नाम पर, माइकोबैक्टेरियम लेप्री (Mycobacterium leprae) और माइकोबैक्टेरियम लेप्रोमेटॉसिस (Mycobacterium lepromatosis) जीवाणुओं के कारण होने वाली एक दीर्घकालिक बीमारी है। कुष्ठरोग मुख्यतः ऊपरी श्वसन तंत्र के श्लेष्म और बाह्य नसों की एक ग्रैन्युलोमा-संबंधी (granulomatous) बीमारी है; त्वचा पर घाव इसके प्राथमिक बाह्य संकेत हैं। यदि इसे अनुपचारित छोड़ दिया जाए, तो कुष्ठरोग बढ़ सकता है, जिससे त्वचा, नसों, हाथ-पैरों और आंखों में स्थायी क्षति हो सकती है। लोककथाओं के विपरीत, कुष्ठरोग के कारण शरीर के अंग अलग होकर गिरते नहीं, हालांकि इस बीमारी के कारण वे सुन्न तथा/या रोगी बन सकते हैं।

कुष्ठरोग ने 4,000 से भी अधिक वर्षों से मानवता को प्रभावित किया है, और प्राचीन चीन, मिस्र और भारत की सभ्यताओं में इसे बहुत अच्छी तरह पहचाना गया है। पुराने येरुशलम शहर के बाहर स्थित एक मकबरे में खोजे गये एक पुरुष के कफन में लिपटे शव के अवशेषों से लिया गया डीएनए (DNA) दर्शाता है कि वह पहला मनुष्य है, जिसमें कुष्ठरोग की पुष्टि हुई है। 1995 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन) (डब्ल्यूएचओ) (WHO) के अनुमान के अनुसार कुष्ठरोग के कारण स्थायी रूप से विकलांग हो चुके व्यक्तियों की संख्या 2 से 3 मिलियन के बीच थी। पिछले 20 वर्षों में, पूरे विश्व में 15 मिलियन लोगों को कुष्ठरोग से मुक्त किया जा चुका है। हालांकि, जहां पर्याप्त उपचार उपलब्ध हैं, उन स्थानों में मरीजों का बलपूर्वक संगरोध या पृथक्करण करना अनावश्यक है, लेकिन इसके बावजूद अभी भी पूरे विश्व में भारत (जहां आज भी 1,000 से अधिक कुष्ठ-बस्तियां हैं),[10] चीन,[11]रोमानिया,[12] मिस्र, नेपाल, सोमालिया, लाइबेरिया, वियतनाम[13] और जापान[14] जैसे देशों में कुष्ठ-बस्तियां मौजूद हैं। एक समय था, जब कुष्ठरोग को अत्यधिक संक्रामक और यौन-संबंधों के द्वारा संचरित होने वाला माना जाता था और इसका उपचार पारे के द्वारा किया जाता था- जिनमें से सभी धारणाएं सिफिलिस (syphilis) पर लागू हुईं, जिसका पहली बार वर्णन 1530 में किया गया था। अब ऐसा माना जाता है कि कुष्ठरोग के शुरुआती मामलों से अनेक संभवतः सिफिलिस (syphilis) के मामले रहे होंगे.[15] अब यह ज्ञात हो चुका है कि कुष्ठरोग न तो यौन-संपर्क के द्वारा संचरित होता है और न ही उपचार के बाद यह अत्यधिक संक्रामक है क्योंकि लगभग 95% लोग प्राकृतिक रूप से प्रतिरक्षित होते हैं[16] और इससे पीड़ित लोग भी उपचार के मात्र 2 सप्ताह बाद ही संक्रामक नहीं रह जाते.

कुष्ठरोग के उन्नत रूपों से जुड़ा सदियों पुराना सामाजिक-कलंक, दूसरे शब्दों में कुष्ठरोग का कलंक,[17] अनेक क्षेत्रों में आज भी मौजूद है और यह अभी भी स्व-सूचना और जल्द उपचार के प्रति एक बड़ी बाधा बना हुआ है। 1930 के दशक के अंत में डैप्सोन (dapsone) और इसके व्युत्पन्नों की प्रस्तुति के साथ ही कुष्ठरोग के लिये प्रभावी उपचार प्राप्त हुआ। शीघ्र ही डैप्सोन (dapsone) के प्रति प्रतिरोधी कुष्ठरोग दण्डाणु विकसित हो गया और डैप्सोन (dapsone) के अति-प्रयोग के कारण यह व्यापक रूप से फैल गया। 1980 के दशक के प्रारंभ में बहु-औषधि उपचार (मल्टीड्रग थेरपी) (एमडीटी) (MDT) के आगमन से पूर्व तक समुदाय के भीतर इस बीमारी का निदान और उपचार कर पाना संभव नहीं हो सका था।[18]

बहु-दण्डाणुओं के लिये एमडीटी (MDT) 12 माह तक ली जाने वाली राइफैम्पिसिन (rifampicin), डैप्सोन (dapsone) और क्लोफैज़िमाइन (clofazimine) से मिलकर बना होता है। बच्चों और वयस्कों के लिये उपयुक्त रूप से समायोजित खुराकें सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में ब्लिस्टर के पैकेटों के रूप में उपलब्ध हैं।[18] एकल घाव वाले कुष्ठरोग के लिये एकल खुराक वाला एमडीटी (MDT) राइफैम्पिसिन (rifampicin), ऑफ्लॉक्सैसिन (ofloxacin) और माइनोसाइक्लाइन (minocycline) से मिलकर बना होता है। एकल खुराक वाली उपचार रणनीतियों की ओर बढ़ने के कारण कुछ क्षेत्रों में इस बीमारी के प्रसार में कमी आई है क्योंकि इसका प्रसार उपचार की अवधि पर निर्भर होता है।
कुष्ठरोग और इसके पीड़ितों के प्रति जागरुकता बढ़ाने के लिये विश्व कुष्ठरोग दिवस (वर्ल्ड लेप्रसी डे) की स्थापना की गई।

कुष्ठ रोग एक क्रोनिक, प्रोग्रेसिव बैक्‍टीरियल इंफेक्‍शन है

कुष्ठ माइकोबैक्टीरियम लेप्राई जीवाणु के कारण होता है

कुष्ठ रोग को हैनसेन रोग के रूप में भी जाना जाता है

कुष्ठ रोग एक क्रोनिक, प्रोग्रेसिव बैक्‍टीरियल इंफेक्‍शन है जो माइकोबैक्टीरियम लेप्राई जीवाणु के कारण होता है। यह मुख्य रूप से आंतों की नसों, त्वचा, नाक की परत और ऊपरी श्वसन पथ को प्रभावित करता है। कुष्ठ रोग को हैनसेन रोग के रूप में भी जाना जाता है। कुष्ठ रोग त्वचा के अल्सर, तंत्रिका क्षति और मांसपेशियों की कमजोरी पैदा करता है। यदि इसका इलाज नहीं किया जाता है, तो यह गंभीर कुरूपता और महत्वपूर्ण विकलांगता का कारण बन सकता है।
अगर दुनिया के इतिहास को देखा जाए तो कुष्‍ठ सबसे पुरानी बीमारियों में से एक है। कुष्ठ रोग लिखित रूप से पहली बार 600 ई.पू. में देखने को मिला था। कुष्ठ रोग कई देशों में आम है, खासकर उष्णकटिबंधीय या उपोष्णकटिबंधीय जलवायु वाले स्‍थानों पर यह आम है।


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Friday, March 22, 2019

मनोविकार के मुख्य रोग

मनोविकार के मुख्य  रोग

मानसिक विकार बहुत तरह के होते हैं। ये विकार व्यक्तित्व, मनोदशा (मूड), खाने की आदतों, चिन्ता आदि से सम्बन्धित हो सकते हैं। इस प्रकार मानसिक रोगों की सूची बहुत बड़ी है। कुछ मुख्य मनोरोगों की सूची नीचे दी गयी है-


  • दुर्भीति (फोबिया),
  • मनोदशा विकार (मूड डिस्‍आर्डर),
  • ज्ञानात्‍मक विकार (काग्निटिव डिस्‍आर्डर),
  • व्‍यक्तित्‍व विकार,
  • खंडित मनस्‍कता (शाइज़ोफ्रेनिया) और
  • द्रव्‍य संबंधी विकार (सबस्‍टैंस रिलेटेड डिस्‍आर्डर) ; जैसे मद्यसार (ऐलकोहाल) पर निर्भरता
  • अवसाद (Depression)
  • एकध्रुवीय अवसाद या 'मुख्य अवसादी विकार'
  • द्विध्रुवी विकार
  • आईईडी (Intermittent explosive disorder)
  • चिंतात्त
  • चिंताविभ्रम
  • बहुव्यक्तित्व विकार
  • मनोविक्षिप्ति
  • मानसिक मन्दन
  • संविभ्रम
  • अंतराबंध या स्किजोफ्रीनिया
  • उत्पीड़न भ्रांति

  • मनोरोगों के मुख्य कारण

मनोरोगों के कारण कई प्रकार के होते हैं। इनमें से मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं :

जैविक कारण

आनुवंशिक : मनोविक्षिप्ति या साइकोसिस (जैसे स्कीजोफ्रीनिया, उन्माद, अवसाद इत्यादि), व्यक्तित्व रोग, मदिरापान, मंदबुद्धि, मिर्गी इत्यादि रोग उन लोगों में अधिक पाये जाते हैं, जिनके परिवार का कोई सदस्य इनसे पीड़ित हों तो संतान को इनका खतरा लगभग दोगुना हो जाता है।

शारीरिक गठन

स्थूल (मोटे) व्यक्तियों में भावात्मक रोग (उन्माद, अवसाद या उदासी इत्यादि), हिस्टीरिया, हृदय रोग इत्यादि अधिक होते हैं जबकि लंबे एवं दुबले गठन वाले व्यक्तियों में विखंडित मनस्कता (स्कीजोफ्रीनिया), तनाव, व्यक्तित्व रोग अधिक पाये जाते हैं।

व्यक्तित्व

अपने में खोये हुए, चुप रहने वाले, कम मित्र रखने वाले किताबी-कीड़े जैसे गुण वाले, स्कीजायड व्यक्तित्व वाले लोगों में स्कीजोफ्रीनिया अधिक होता है, जबकि अनुशासित तथा सफाई पसंद, समयनिष्ठ, मितव्ययी जैसे गुणों वाले खपती व्यक्तित्व के लोगों में खपत रोग (बाध्य विक्षिप्त) अधिक पाया जाता है।


शरीरवृत्तिक कारण

किशोरावस्था, युवावस्था, वृद्धावस्था, गर्भ-धारण जैसे शारीरिक परिवर्तन कई मनोरोगों का आधार बन सकते हैं।


वातावरण जनित कारण

शारीरिक खान-पान संबंधी कारण

कुछ दवाओं, रासायनिक तत्वों, धातुओं, मदिरा तथा अन्य मादक पदार्थों इत्यादि का सेवन मनोरोगों की उत्पत्ति का कारण बन सकता हैं।

मनोवैज्ञानिक कारण

आपसी संबंधों में तनाव, किसी प्रिय व्यक्ति की मृत्यु, सम्मान को ठेस, कार्य को खो बैठना, आर्थिक हानि, विवाह, तलाक, शिशु जन्म, कार्य-निवृत्ति, परीक्षा या प्यार में असफलता इत्यादि भी मनोरोगों को उत्पन्न करने या बढ़ाने में योगदान देते हैं।

सामाजिक-सांस्कृतिक कारण

सामाजिक एवं मनोरंजक गतिविधियों से दुराव, अकेलापन, राजनीतिक, प्राकृतिक या सामाजिक दुर्घटनाएं (जैसे कि लूटमार, आतंक, भूकंप, अकाल, बाढ़, सामाजिक बोध एवं अवरोध, महंगाई, बेरोजगारी इत्यादि) मनोरोग उत्पन्न कर सकते हैं।


मनोरोग के तथ्य

1. मनोरोग चिकित्सक द्वारा दवाएं बतायी गई हैं तो इनका सेवन अवश्य करना चाहिए।

2. दूसरी बीमारियों की तरह यह रोग भी आंतरिक स्तर पर जैविक असंतुलन की वजह से होता है।

3. निगरानी में दवाएं लेना कारगर होता है, अब तो नई दवाओं के उपलब्ध होने के बाद लंबी अवधि तक दवाएं लेने के मामले कम हो रहे हैं।

4. दवाओं के सेवन से मनोविकारों में काफी कमी होती है, खासतौर से तब जबकि इलाज शुरूआती चरण में आरंभ हो जाए।

5. मनोविकारों के उपचार में दी जाने वाली दवाएं रासायनिक असंतुलन को बहाल करती हैं, कुछ दवाओं से नींद आती है लेकिन वे नींद की गोलियां नहीं होतीं।

6. अवसाद जैसे मनोविकार भी मधुमेह या उच्च रक्तचाप की तरह के रोग ही होते हैं और इनके लिए भी विषेशज्ञ की देखरेख में इलाज कराने की आवश्यकता होती है।


गलत धारणाएं

मानसिक रोग या पागलपन एक ऐसा शब्द है जिससे इसके कारणों एवं उपचार के विषय में न जाने कितनी भ्रांतियाँ एवं आशंकाएँ जुड़ी हैं। कुछ लोग इसे एक असाध्य, आनुवांशिक एवं छूत की बीमारी मानते हैं, तो कुछ जादू-टोना, भूत-प्रेत व डायन का प्रकोप। कुछ लोग इसे बीमारी न मानकर जिम्मेदारियों से बचने का नाटक मात्र भी मानते हैं।

अज्ञानी लोग उपचार के लिए स्थानीय या नजदीक ओझा, पंडित, मुल्ला आदि के पास जाकर अनावश्यक भभूत, जड़ी-बूटी का सेवन करते हैं तथा अमानवीय ढ़ंग से सताये जाते हैं ताकि 'पिशाचात्मा' का प्रकोप दूर किया जा सके।

यह सब गलत है। सही धारणा यह है कि यह बीमारी है और वैज्ञानिक ढंग से चिकित्सा विज्ञान द्वारा इसका इलाज संभव है। ये भी सही नहीं है कि-

1. मानसिक विकार कोई रोग नहीं हैं बल्कि बुरी आत्माओं की वजह से पैदा होते हैं।

2. दवाओं के सेवन से बचना चाहिए।

3. आपको यह रोग अपनी कमजोरी से हुआ है और इससे बचाव करना चाहिए।

4. दवाएं नुकसानदायक होती हैं, ये निर्भरता बढ़ाती हैं और जीवनभर लेनी पड़ती हैं।

5. ज्यादातर मनोविकारों का कोई इलाज नहीं होता।

6. बच्चों को दवाएं नहीं दी जानी चाहिए।

7. इलाज के लिए नींद की गोलियां दी जाती हैं।

8. अवसाद जैसे मर्ज अपने आप ठीक होते हैं या प्रभावित व्यक्ति के प्रयासों से।

9. देवी देवताओं या झाड़फूंक से रोग सही हो सकता है। yes



आयुर्वेद के अनुसार मानस रोग

रजस्तमश्च् मानसौ दोषौ-तयोवकारा काम, क्रोध, लोभ, माहेष्यार्मानमद शोक चित्तोस्तो द्वेगभय हषार्दयः ।
रज और तम ये दो मानस रोग हैं । इनकी विकृति से होने वाले विकार मानस रोग कहलाते हैं ।

मानस रोग-

काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईष्यार्, मान, मद, शोक, चिन्ता, उद्वेग, भय, हषर्, विषाद, अभ्यसूया, दैन्य, मात्सयर् और दम्भ ये मानस रोग हैं ।

१. काम- इन्द्रियों के विषय में अधिक आसक्ति रखना 'काम' कहलाता है ।

२. क्रोध- दूसरे के अहित की प्रवृत्ति जिसके द्वारा मन और शरीर भी पीड़ित हो उसे क्रोध कहते हैं ।

३. लोभ- दूसरे के धन, स्त्री आदि के ग्रहण की अभिलाषा को लोभ कहते हैं ।

४. ईर्ष्या- दूसरे की सम्पत्ति-समृद्धि को सहन न कर सकने को ईर्ष्या कहते हैं ।

५. अभ्यसूया- छिद्रान्वेषण के स्वभाव के कारण दूसरे के गुणों को भी दोष बताना अभ्यसूया या असूया कहते हैं ।

६. मात्सर्य- दूसरे के गुणों को प्रकट न करना अथवा कू्ररता दिखाना 'मात्सर्य' कहलाता है ।

७. मोह- अज्ञान या मिथ्या ज्ञान (विपरीत ज्ञान) को मोह कहते हैं ।

८. मान- अपने गुणों को अधिक मानना और दूसरे के गुणों का हीन दृष्टि से देखना 'मान' कहलाता है ।

९. मद- मान की बढ़ी हुई अवस्था 'मद' कहलाती है ।

१०. दम्भ- जो गुण, कमर् और स्वभाव अपने में विद्यमान न हों, उन्हें उजागरकर दूसरों को ठगना 'दम्भ' कहलाता है ।

११. शोक- पुत्र आदि इष्ट वस्तुओं के वियोग होने से चित्त में जो उद्वेग होता है, उसे शोक कहते हैं ।

१२. चिन्ता- किसी वस्तु का अत्यधिक ध्यान करना 'चिन्ता' कहलाता है ।

१३. उद्वेग- समय पर उचित उपाय न सूझने से जो घबराहट होती है उसे 'उद्वेग' कहते हैं ।

१४. भय- अन्य आपत्ति जनक वस्तुओं से डरना 'भय' कहलाता है ।

१५. हर्ष- प्रसन्नता या बिना किसी कारण के अन्य व्यक्ति की हानि किए बिना अथवा सत्कर्म करके मन में प्रसन्नता का अनुभव करना हषर् कहलाता है ।

१६. विषाद- कार्य में सफलता न मिलने के भय से कार्य के प्रति साद या अवसाद-अप्रवृत्ति की भावना 'विषाद' कहलाता है ।

१७. दैन्य- मन का दब जाना- अथार्त् साहस और धर्य खो बैठना दैन्य कहलाता है ।

ये सब मानस रोग 'इच्छा' और 'द्वेष' के भेद से दो भागों में विभक्त किये जा सकते हैं । किसी वस्तु (अथर्) के प्रति अत्यधिक अभिलाषा का नाम 'इच्छा' या 'राग' है । यह नाना वस्तुओं और न्यूनाधिकता के आधार पर भिन्न-भिन्न होती है ।

हर्ष, शोक, दैन्य, काम, लोभ आदि इच्छा के ही दो भेद हैं । अनिच्छित वस्तु के प्रति अप्रीति या अरुचि को द्वेष कहते हैं । वह नाना वस्तुओं पर आश्रत और नाना प्रकार का होता है । क्रोध, भय, विषाद, ईर्ष्या, असूया, मात्सर्य आदि द्वेष के ही भेद हैं ।


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Thursday, March 21, 2019

मनोविकार (Mental disorder)

मनोविकार (Mental disorder) 

किसी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य की वह स्थिति है जिसे किसी स्वस्थ व्यक्ति से तुलना करने पर 'सामान्य' नहीं कहा जाता। स्वस्थ व्यक्तियों की तुलना में मनोरोगों से ग्रस्त व्यक्तियों का व्यवहार असामान्‍य अथवा दुरनुकूली (मैल एडेप्टिव) निर्धारित किया जाता है और जिसमें महत्‍वपूर्ण व्‍यथा अथवा असमर्थता अन्‍तर्ग्रस्‍त होती है। इन्हें मनोरोग, मानसिक रोग, मानसिक बीमारी अथवा मानसिक विकार भी कहते हैं।

मनोरोग मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन की वजह से पैदा होते हैं तथा इनके उपचार के लिए मनोरोग चिकित्सा की जरूरत होती है।[1]

मनोविकार का परिचय

मनोविज्ञान में हमारे लिए असामान्य और अनुचित व्यवहारों को मनोविकार कहा जाता है। ये धीरे-धीरे बढ़ते जाते हैं। मनोविकारों के बहुत से कारक हैं, जिनमें आनुवांशिकता, कमजोर व्यक्तित्व, सहनशीलता का अभाव, बाल्यावस्था के अनुभव, तनावपूर्ण परिस्थितियां और इनका सामना करने की असामर्थ्य सम्मिलित हैं।

वे स्थितियां, जिन्हें हल कर पाना एवं उनका सामना करना किसी व्यक्ति को मुश्किल लगता है, उन्हें 'तनाव के कारक' कहते हैं। तनाव किसी व्यक्ति पर ऐसी आवश्यकताओं व मांगों को थोप देता है जिसे पूरा करना वह अति दूभर और मुश्किल समझता है। इन मांगों को पूरा करने में लगातार असफलता मिलने पर व्यक्ति में मानसिक तनाव पैदा होता है।


तनाव : अशांत मानसिक स्वास्थ्य के स्रोत के रूप में

आज के समय में तनाव लोगों के लिए बहुत ही सामान्य अनुभव बन चुका है, जो कि अधिसंख्य दैहिक और मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियाओं द्वारा व्यक्त होता है। तनाव की पारंपरिक परिभाषा दैहिक प्रतिक्रिया पर केंद्रित है। हैंस शैले( Hans Selye) ने 'तनाव' (स्ट्रेस) शब्द को खोजा और इसकी परिभाषा शरीर की किसी भी आवश्यकता के आधार पर अनिश्चित प्रतिक्रिया के रूप में की। हैंस शैले की पारिभाषा का आधार दैहिक है और यह हारमोन्स की क्रियाओं को अधिक महत्व देती है, जो ऐड्रिनल और अन्य ग्रन्थियों द्वारा स्रवित होते हैं।

शैले ने दो प्रकार के तनावों की संकल्पना की-

(क) यूस्ट्रेस (eustress) अर्थात मधयम और इच्छित तनाव जैसे कि प्रतियोगी खेल खेलते समय

(ख) विपत्ति (distress/डिस्ट्रेस) जो बुरा, असंयमित, अतार्किक या अवांछित तनाव है।

तनाव पर नवीन उपागम व्यक्ति को उपलब्ध समायोजी संसाधनों के सम्बन्ध में स्थिति के मूल्यांकन एवं व्याख्या की भूमिका पर केंद्रित है। मूल्यांकन और समायोजन की अन्योन्याश्रित प्रक्रियायें व्यक्ति के वातावरण एवं उसके अनुकूलन के बीच सम्बन्ध निर्धारण करती है। अनुकूलन वह प्रक्रिया है जिस के द्वारा व्यक्ति दैहिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक हित के इष्टतम स्तर को बनाए रखने के लिए अपने आसपास की स्थितियाँ एवं वातावरण को व्यवस्थित करता है।


मनोविकारों के प्रकार

तनावपूर्ण स्थितियों का सामना करते समय आमतौर पर व्यक्ति समस्या केंद्रित या मनोभाव केंद्रित कूटनीतियों को अपनाता है। समस्या केंद्रित नीति द्वारा व्यक्ति अपने बौद्विक साधानों के प्रयोग से तनावपूर्ण स्थितियों का समाधान ढूंढता है और प्रायः एक प्रभावशाली समाधान की ओर पहुंचता है। मनोभाव केंद्रित नीति द्वारा तनावपूर्ण स्थितियों का सामना करते समय व्यक्ति भावनात्मक व्यवहार को प्रदर्शित करता है जैसे चिल्लाना। यद्यपि, यदि कोई व्यक्ति तनाव का सामना करने में असमर्थ होता है तब वह प्रतिरोधक-अभिविन्यस्त कूटनीति की ओर रूझान कर लेता है, यदि ये बारबार अपनाए जाएं तो विभिन्न मनोविकार उत्पन्न हो सकते हैं। प्रतिरोधक-अभिविन्यस्त व्यवहार परिस्थिति का सामना करने में समर्थ नहीं बनाते, ये केवल अपनी कार्यवाहियों को न्यायसंगत दिखाने का जरिया मात्र है।

शारीरिक समस्याएं जैसे ज्वर, खांसी, जुकाम इत्यदि ये विभिन्न प्रकार के मनोविकार होते हैं। इन वर्गों के मनोविकारों की सूची न्यूनतम व्यग्रता से लेकर गंभीर मनोविकारों जैसे मनोभाजन या खंडित मानसिकता तक है। अमेरिकी मनोविकारी संघ (American Psychiatric Association) द्वारा मनोविकारों पर नैदानिक और सांख्यिकीय नियम पुस्तक ( Diagnostic and Statistical Manual of Mental Disorders (DSM)) को प्रकाशित किया गया है जिस में विविध प्रकार के मानसिक विकारों का उल्लेख किया गया है। मनोविज्ञान की जो शाखा विकारों का समाधान खोजती है उसे असामान्य मनोविज्ञान कहा जाता है।


बाल्यावस्था के विकार

ये जान कर शायद आपको आश्चर्य हो कि बच्चे भी मनोविकारों का शिकार हो सकते हैं। डीएसएम, का चौथा संस्करण बाल्यावस्था के विभिन्न प्रकार के विकारों का समाधान ढूंढता है, आमतौर पर यह पहली बार शैशवकाल, बाल्यावस्था या किशोरावस्था में पहचान में आते हैं। इन में से कुछ सावधान-अभाव अतिसक्रिय विकार पाए जाते हैं जिसमें बच्चा सावधान या एकाग्र नहीं रहता या वह अत्यधिक फुर्तीला व्यवहार करता है। और स्वलीन विकारजिसमें बच्चा अंतर्मुखी हो जाता है, बिल्कुल नहीं मुस्कुराता और देर से भाषा सीखता है।


व्यग्रता विकार

यदि कोई व्यक्ति बिना किसी विशेष कारण के डरा हुआ, भयभीत या चिंता महसूस करता है तो कहा जा सकता है कि वह व्यक्ति व्यग्रता विकार (Anxiety disorder) से ग्रस्त है। व्यग्रता विकार के विभिन्न प्रकार होते हैं जिसमें चिंता की भावना विभिन्न रूपों में दिखाई देती है। इनमें से कुछ विकार किसी चीज से अत्यन्त और तर्करहित डर के कारण होते हैं और जुनूनी-बाध्यकारी विकार जहां कोई व्यक्ति बारबार एक ही बात सोचता रहता है और अपनी क्रियाओं को दोहराता है।



मनोदशा विकार

वे व्यक्ति जो मनोदशा विकार (मूड डिसॉर्डर) के अनुभवों से ग्रसित होते हैं उनके मनोभाव दीर्घकाल तक प्रतिबंधित हो जाते हैं, वे व्यक्ति किसी एक मनोभाव पर स्थिर हो जाते हैं, या इन भावों की श्रेणियों में अदल-बदल करते रहते हैं। उदाहरण स्वरूप चाहे कोई व्यक्ति कुछ दिनों तक उदास रहे या किसी एक दिन उदास रहे और दूसरे ही दिन खुश रहे, उस के व्यवहार का परिस्थिति से कुछ संबंध न हो। इस तरह व्यक्ति के व्यवहारिक लक्षणों पर आश्रित मनोदशा विकार दो प्रकार के होते हैं -

(क) अवसाद, और

(ख) द्विध्रुवीय विकार।

अवसाद ऐसी मानसिक अवस्था है जो कि उदासी, रूचि का अभाव और प्रतिदिन की क्रियाओं में प्रसन्नता का अभाव, अशांत निद्रा व नींद घट जाना, कम भूख लगना, वजन कम हो ना, या ज्यादा भूख लगना व वजन बढ़ना, आलस, दोषी महसूस करना, अयोग्यता, असहायता, निराशा, एकाग्रता स्थापित करने में परे शानी और अपने व दूसरों के प्रति नकरात्मक विचारधारा के लक्षणों को दर्शाती है। यदि किसी व्यक्ति को इस तरह के भाव न्यूनतम दो सप्ताह तक रहें तो उसे अवसादग्रस्त कहा जा सकता है और उस के उपचार के लिए उसे शीघ्र नैदानिक चिकित्सा प्रदान करवाना आवश्यक है।


मनोदैहिक और दैहिकरूप विकार

आज के समय में कुछ बीमारियाँ बहुत ही साधारण बन चुकी हैं जैसे निम्न रक्तचाप, उच्च रक्तचाप, मधुमेह आदि। वैसे तो ये सब शारीरिक बीमारियाँ हैं परंतु ये मनावैज्ञानिक कारणों जैसे तनाव व चिंता से उत्पन्न होती हैं। अतः मनोदैहिक विकार वे मनोवैज्ञानिक समस्याएं हैं जो शारीरिक लक्षण दर्शातीं हैं, लेकिन इसके कारण मनोवैज्ञानिक होते है। वहीं मनोदैहिक की अवधारणा में मन का अर्थ मानस है और दैहिक का अर्थ शरीर है। इसके विपरीत दैहिकरूप विकार, वे विकार हैं जिनके लक्षण शारीरिक है परंतु इनके जैविक कारण सामने नहीं आते। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति पेटदर्द की शिकायत कर रहा है परंतु तब भी जब उसके उस खास अंग अर्थात पेट में किसी तरह की कोई समस्या नहीं होती।


विघटनशील विकार

किसी-किसी अभिघातज घटना के बाद व्यक्ति अपना पिछला अस्तित्व, गत घटनाएं और आस-पास के लोगों को पहचानने में असमर्थ हो जाता है। नैदानिक मनोविज्ञान में इस तरह की समस्याओं को विघटनशील विकार (Dissociative disorders) कहा जाता है, जिसमें किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व समाजच्युत व समाज से पृथक हो जाता है।

विघटनशील स्मृतिलोप ( dissociative amnesia), विघटनशील मनोविकार का एक वर्ग है, जिसमें व्यक्ति आमतौर पर किसी तनावपूर्ण घटना के बाद महत्वपूर्ण व्यक्तिगत सूचना को याद करने में असमर्थ हो जाता है। विघटन की स्थिति में व्यक्ति अपने नये अस्तित्व को महसूस करता है। दूसरा वर्ग विघटनशील पहचान विकार(dissociative identity disorder) है जिसमें व्यक्ति अपनी याददाश्त तो खो ही देता है वहीं नये अस्तित्व की कल्पना करने लगता है। अन्य वर्ग व्यक्तित्वलोप विकार है, जिसमें व्यक्ति अचानक बदलाव या भिन्न प्रकार से विचित्र महसूस करता है। व्यक्ति इस प्रकार महसूस करता है जैसे उसने अपने शरीर को त्याग दिया हो या फिर उस की गतिविधियां अचानक से यांत्रिक या स्वप्न के जैसी हो जाती है। हालांकि विघटन मनोविकार की सब से गम्भीर स्थिति तब उत्पन्न हो ती है जब कोई एकाधिक व्यक्तित्व मनोविकार व विघटन अस्तित्व मनोविकार से ग्रस्त हो। इस स्थिति में विविध व्यक्तित्व एक ही व्यक्ति में अलग-अलग समय पर प्रकट होते हैं।


मनोविदलन और मनस्तापी (Psychotic) विकार

आपने सड़क पर कभी किसी व्यक्ति को गंदे कपड़ों में, कूड़े के आसपास पड़े अस्वच्छ भोजन को खाते या फिर अजीब तरीके से बातचीत या व्यवहार करते हुए देखा होगा। उनमें व्यक्ति, स्थान व समय के विषय में कमजोर अभिविन्यास होता है। हम अक्सर उन्हें पागल, बेसुधा आदि कह देते हैं, परंतु नैदानिक भाषा में इन्हें मनोविदलित कहते हैं। ये मनोविकार की एक गंभीर परिस्थिति होती है, जो अशांत विचारों, मनोभावों व व्यवहार से होते हैं। मनोविदलन विकारों में असंगत मानसिकता, दोषपूर्ण अभिज्ञा, संचालक कार्यकलापों में बाधा, नीरस व अनुपयुक्त भाव होते हैं। इससे ग्रस्त व्यक्ति वास्तविकता से निर्लिप्त रहते हैं और अक्सर काल्पनिकता और भ्रांति की दुनिया में खोये रहते है।

विभ्रांति का अर्थ किसी ऐसी चीज को देखना है जो वास्तव में भौतिक रूप से वहाँ नहीं होती, कुछ ऐसी आवाजें जो वहां पर वास्तव में नहीं हैं। भ्रमासक्ति वास्तविकता के प्रति अंधाविश्वास है इस तरह के विश्वास दूसरों से सम्बंध विच्छेद करते हैं। मनोविदलन के विभिन्न प्रकार हैं जैसे कैटाटोनिक मनोविदलन।


व्यक्तित्व मनोविकार


व्यक्तित्व विकार (पर्सनालिटी डिसॉर्डर) की जड़ें किसी व्यक्ति के शैशव काल से जुड़ीं होती हैं, जहां कुछ बच्चे लोचहीन व अशुद्व विचारधारा विकसित कर लेते हैं। ये विभिन्न व्यक्तित्व मनोविकार व्यक्ति में हानिरहित अलगाव से ले कर भावनाहीन क्रमिक हत्यारे के रूप में सामने आते हैं। व्यक्तित्व मनोविकारों की श्रेणियों को तीन समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है। पहले, समूह की विशेषता अजीब और सनकी व्यवहार है। चिंता और शक दूसरे समूह की विशेषता है और तीसरे समूह की विशेषता है नाटकीय, भावपूर्ण और अनियमित व्यवहार। पहले समूह में व्यामोहाभ, अन्तराबन्धा, पागल (सिज़ोटाइपल) व्यक्तित्व विकार सम्मिलित हैं। दूसरे समूह में आश्रित, परिवर्जित, जुनूनी व्यक्तित्व मनोविकार बताए गए हैं। असामाजिक, सीमावर्ती, अभिनय (हिस्ट्राथमिक), आत्ममोही व्यक्तित्व विकार तीसरे समूह के अन्तर्गत आते हैं।



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Wednesday, March 20, 2019

मानसिक रोग का निदान

मानसिक रोग का निदान - Diagnosis of Mental Illness 

मानसिक रोग के निदान और संबंधित जटिलताओं की जांच करने के लिए, निम्नलिखित जाँच की जा सकती हैं -

1. शारीरिक परीक्षण
शारीरिक परीक्षण में आपके डॉक्टर उन शारीरिक समस्याओं को दूर करने की कोशिश करेंगे जो आपके लक्षणों का कारण बन सकते हैं।

2. लैब टेस्ट
लैब परीक्षण में आपके थायराइड की जांच या शराब और ड्रग्स की जांच की जा सकती है। (और पढ़ें - महिलाओं में थायराइड लक्षण)

3. मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन
मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन में आपके डॉक्टर आपके लक्षणों, विचारों, भावनाओं और व्यवहार के बारे में आपसे पूछते हैं। आपको एक प्रश्नावली भरने के लिए भी कहा जा सकता है।


मानसिक रोग का उपचार - Mental Illness Treatment 

मानसिक रोग के उपचार निम्नलिखत हैं -

1. अस्पतालमें भर्ती होने की ज़रुरत 

अस्पताल में भर्ती होने पर मानसिक रोग के उपचार में आमतौर पर स्थिरीकरण, निगरानी, दवा, तरल पदार्थ और पोषण की देखभाल और अन्य जरूरी आपातकालीन देखभाल होती हैं।

एक व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है जब -

1. उन्हें गंभीर मानसिक स्वास्थ्य के लक्षण हों।
2. मतिभ्रम या भ्रम हों।
3. आत्मघाती विचारधारा हो।
4. बहुत दिन के लिए सोए नहीं या खाना नहीं खाया।
5. मानसिक स्वास्थ्य के लक्षणों के कारण स्वयं की देखभाल 6. करने की क्षमता नहीं रही।

2. मनोचिकित्सा

मानसिक रोग के लिए कई विभिन्न प्रकार की मनोचिकित्सा उपलब्ध हैं, जैसे -

1. व्यक्तिगत चिकित्सा -  व्यक्तिगत चिकित्सा एक ऐसी मनोचिकित्सा है जहां एक व्यक्ति अपने चिकित्सक के साथ कई तरह की विभिन्न रणनीतियों और तरीकों का इस्तेमाल करते हुए भावनाओं, दुखों और अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का पता लगाते हैं।

2. ग्रुप थेरेपी -  ग्रुप थेरेपी में आमतौर पर एक चिकित्सक नेतृत्व करते हैं और इसमें कई लोग शामिल होते हैं।

3. पारिवारिक चिकित्सा -  पारिवारिक मनोचिकित्सा में परिवार के सदस्य मुद्दों को हल करने के लिए एक चिकित्सक से मिलते हैं।

4. संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी (Cognitive Behavioral Therapy) -  संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी सबसे आम मनोचिकित्सा है। इसका इस्तेमाल व्यक्तिगत, ग्रुप या परिवार के स्तर पर किया जा सकता है। इस चिकित्सा में, चिकित्सक मरीज़ के असामान्य विचारों और व्यवहारों को सकारात्मक विचारों से बदलने की कोशिश करते हैं।

5. डायलेक्टिकल वर्चुअल थेरेपी (Dialectical behavior therapy) -  इस मनोचिकित्सा में अस्वास्थ्यकर विचारों, भावनाओं और व्यवहारों को स्वीकार और मान्य करने पर जोर दिया जाता है और स्वीकार्यता व परिवर्तन के बीच संतुलन बनाने की कोशिश

6. पारस्परिक उपचार -  पारस्परिक उपचार में लोगों के संबंधों में समस्याओं का समाधान होता है और संबंधों की गुणवत्ता में सुधार के लिए नए पारस्परिक और संचार कौशल सिखाता जाता है।

3. दवाएं

मानसिक रोग के लक्षणों के इलाज के लिए दवाओं का उपयोग किया जा सकता है। दवाओं का प्रयोग अक्सर मनोचिकित्सा के साथ संयोजन में किया जाता है।

मानसिक रोग के लिए इस्तेमाल होने वाली दवाएं निम्नलिखित हैं -

1. एंटीडिप्रेसन्ट दवाएं।
2. चिंता विरोधी दवाएं।
3. मूड स्टेबलाइजर्स।
4. मनोविकार नाशक दवाएं।


4. वैकल्पिक उपचार
मानसिक रोग के लिए कुछ वैकल्पिक उपचार निम्नलिखित हैं -

1. योग
2. ध्यान
3. पौष्टिक आहार
4. व्यायाम


मानसिक रोग की जटिलताएं - Mental Illness Complications


मानसिक रोग विकलांगता का एक प्रमुख कारण है। अनुपचारित मानसिक बीमारी से गंभीर भावनात्मक, व्यवहारिक और शारीरिक स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। मानसिक रोग से कानूनी और वित्तीय समस्याएं भी हो सकती हैं। इसकी निम्नलिखित जटिलताएं होती हैं -

1. दुख और जीवन के आनंद में कमी।
2. कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली, जिससे आपके शरीर को     संक्रमण से लड़ने में समय लगता है।
3. पारिवारिक समस्याएं।
4. रिश्तों में समस्याएं।
5. सामाजिक अलगाव।
6. तंबाकू, शराब और अन्य नशीले पदार्थ से जुडी समस्याएं।
7.  गरीबी और बेघरपन।
8. आत्महत्या या दूसरों को नुक्सान पहुंचाना।
9. दुर्घटनाओं का बढ़ता जोखिम।
10. हृदय रोग और अन्य चिकित्सा समस्याएं।


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मानसिक रोगी [Mental illness]

मानसिक रोगी [Mental illness]

मानसिक रोग, कई मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों को संदर्भित करता है - ऐसे विकार जो आपकी मनोदशा, सोच और व्यवहार को प्रभावित करते हैं। मानसिक रोग के उदाहरण हैं - डिप्रेशन (अवसाद), चिंता, स्किज़ोफ़्रेनिया और खाने के विकार।

कई लोगों को समय-समय पर मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होती हैं लेकिन यह मानसिक बीमारी बन जाती हैं जब इसके लक्षण अक्सर तनाव पैदा करते हैं और कार्य करने की आपकी क्षमता को प्रभावित करते हैं।

एक मानसिक बीमारी आपको बहुत दुखी कर सकती है और अपने दैनिक जीवन में समस्याएं पैदा कर सकती है, जैसे कि स्कूल या काम या रिश्तों में समस्याएं। ज्यादातर मामलों में, लक्षण दवाओं और टॉक थेरेपी (मनोचिकित्सा) के संयोजन के साथ प्रबंधित किये जा सकते हैं।


मानसिक रोग के प्रकार - Types of Mental Illness 

मानसिक रोग कई प्रकार के होते हैं। इसके कुछ प्रकार निम्नलिखित हैं -

1. बाइपोलर डिसआर्डर
2. अल्जाइमर रोग
3. डिमेंशिया (मनोभ्रंश)
4. पार्किंसन रोग
5. आटिज्म
6. डिस्लेक्सिया
7. एडीएचडी
8. डिप्रेशन (अवसाद)
9. तनाव
10. चिंता
11. लत्त सम्बन्धी विकार (और पढ़ें - शराब की लत और नशे   की लत)
12. मनोग्रसित बाध्यता विकार (ओसीडी; OCD)
13. पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रैस डिसऑर्डर (Post Traumatic Stress Disorder)
14. याददाश्त खोना
15. कमजोर याददाश्त
16. भूलने की बीमारी
17. डर (फोबिया)
18. भ्रम (Delusion)
19. मतिभ्रम (Hallucination)


मानसिक रोग के लक्षण - Mental Illness Symptoms 

मानसिक रोग के लक्षण, उसके प्रकार, परिस्थितियों और अन्य कारकों के आधार पर भिन्न हो सकते हैं। मानसिक बीमारी के लक्षण भावनाओं, विचारों और व्यवहार को प्रभावित कर सकते हैं। इसके निम्नलिखित लक्षण होते हैं -

1. उदास महसूस करना।
2. व्याकुल होना या ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में कमी।
3. अत्यधिक भय या चिंताएं या अपराध की भावनाएं महसूस करना।
4. मनोदशा में अत्यधिक परिवर्तन।
5. दोस्तों और अन्य गतिविधियों से अलग होना।
6. थकान, कम ऊर्जा या सोने में समस्याएं।
7. वास्तविकता से अलग हटना (भ्रम), पागलपन या मतिभ्रम।
8. दैनिक समस्याओं या तनाव से निपटने में असमर्थता।
9. समस्याओं व लोगों और लोगों के बारे में समझने में समस्या।
10. शराब या नशीली दवाओं का सेवन।
11. खाने की आदतों में बड़े बदलाव।
12. कामेच्छा सम्बन्धी बदलाव।
13. अत्यधिक क्रोध या हिंसक व्यवहार। (और पढ़ें - गुस्सा कम करने के उपाय)
14. आत्मघाती सोच।

कभी-कभी मानसिक स्वास्थ्य विकार के लक्षण जिस्मानी समस्याओं जैसे पेट दर्द, पीठ दर्द, सिरदर्द या अन्य अस्पष्टीकृत दर्द के रूप में दिखाई देते हैं।


मानसिक रोग के कारण - Mental Illness Causes 

मानसिक रोगों के, सामान्य रूप से, विभिन्न आनुवांशिक और पर्यावरणीय कारकों के कारण होने का अनुमान लगाया जाता है। यह कारक निम्नलिखित हैं -

1. अनुवांशिकता
मानसिक रोग उन लोगों में अधिक आम है जिनके रिश्तेदारों को भी मानसिक बीमारी होती है। कुछ अनुवांशिक कारक आपके मानसिक रोग के विकास के जोखिम को बढ़ा सकते हैं और आपकी जिंदगी की स्थिति इसे प्रारंभ कर सकती है।

2. जन्म से पहले कुछ पर्यावरण कारकों का संपर्क
गर्भ में पर्यावरणीय तनाव, उत्तेजनात्मक स्थितियां, विषाक्त पदार्थ, शराब या ड्रग्स के संपर्क में आने से कभी-कभी मानसिक रोग हो सकते हैं।

3. मस्तिष्क का कार्य
न्यूरोट्रांसमीटर स्वाभाविक रूप से मस्तिष्क के रसायनों को आपके मस्तिष्क और शरीर के अन्य हिस्सों में ले जाते हैं। जब इन रसायनों से जुड़े तंत्रिका तंत्र ठीक से काम नहीं करते, तो तंत्रिका रिसेप्टर्स और तंत्रिका तंत्र में परिवर्तन आते हैं जिससे डिप्रेशन (अवसाद) होता है।

कुछ कारक मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के विकास के आपके जोखिम को बढ़ा सकते हैं, जिनमें निम्नलिखित करक शामिल हैं -

माता-पिता या भाई-बहन या किसी अन्य खून के रिश्ते वाले व्यक्ति को मानसिक रोग होना।
किसी तनावपूर्ण जीवन स्थिति, जैसे वित्तीय समस्याएं, किसी की मृत्यु या तलाक का अनुभव करना।

1. कोई पुरानी चिकित्सा समस्या जैसे कि शुगर की बीमारी (डायबिटीज)।
2. गंभीर चोट (दर्दनाक मस्तिष्क की चोट) के परिणामस्वरूप मस्तिष्क की क्षति।
3. दर्दनाक अनुभव, जैसे युद्ध या हमला।
4. शराब या ड्रग्स का प्रयोग।
5. बचपन में दुर्व्यवहार अनुभव करना।
6. केवल कुछ ही दोस्त या स्वस्थ रिश्ते होना।
7. कोई पहले की मानसिक बीमारी।

मानसिक रोग बहुत आम हैं। 5 वयस्कों में से 1 व्यक्ति को कभी न कभी कोई मानसिक बीमारी होती है। मानसिक रोग किसी भी उम्र में शुरू हो सकता है लेकिन अधिकांश यह जीवन के शुरू के वर्षों में शुरू हो जाते हैं।

मानसिक रोग के प्रभाव अस्थायी या स्थायी हो सकते हैं। आपको एक समय में एक से अधिक मानसिक रोग भी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, आपको डिप्रेशन (अवसाद) और लत्त सम्बन्धी विकार एक ही समय पर हो सकते हैं।


मानसिक रोग से बचाव - Prevention of Mental Illness

मानसिक बीमारी को रोकने का कोई निश्चित तरीका नहीं है। हालांकि, यदि आपको मानसिक बीमारी है, तो तनाव को नियंत्रित करना और आत्मसम्मान को बढ़ाना मदद कर सकते हैं। इसके लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें -

1. चेतावनी के संकेतों पर ध्यान दें -
अपने चिकित्सक से इस बारे में बात करें कि कोनसी स्थितियां आपके लक्षणों को शुरू कर सकती हैं। एक योजना बनाएं ताकि आपको यह पता चल सके कि लक्षणों को अनुभव करने पर आपको क्या करना है। अगर आपको कोई बदलाव महसूस होते हैं तो अपने चिकित्सक से संपर्क करें। चेतावनी के संकेत देखने के लिए परिवार के सदस्यों या दोस्तों को भी सूचित करें।

2. नियमित चिकित्सा प्राप्त करें -
स्वास्थ्य चिकित्सक के पास जाना न छोड़ें, खासकर यदि आप ठीक महसूस नहीं कर रहे हैं। आपको एक नई स्वास्थ्य समस्या हो सकती है जिसे इलाज की आवश्यकता है या आप दवा के दुष्प्रभावों का अनुभव कर सकते हैं।

3. सहायता प्राप्त करें -
मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति का इलाज करना कठिन हो सकता है यदि आप लक्षणों के खराब होने तक प्रतीक्षा करते हैं। दीर्घकालिक उपचार से लक्षणों को रोकने में मदद मिल सकती है।

4. अपना ध्यान रखें -
पर्याप्त नींद, पौष्टिक आहार और नियमित व्यायाम महत्वपूर्ण हैं। एक नियम बनाए रखने की कोशिश करें। अपने चिकित्सक से बात करें अगर आपको परेशानी हो रही है या यदि आपको आहार और व्यायाम संबंधी कोई प्रशन्न हों।


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Tuesday, March 19, 2019

गामक विकास (Locomotor Development)

गामक या क्रियात्मक विकास (Motor Development)


गामक विकास का अर्थ-: 

गामक विकास का तात्पर्य बालकों में उनकी मांसपेशियों तथा तंत्रिकाओ के समन्वित कार्य द्वारा अपनी शारीरिक क्रियाओं पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त करने होता है। ... हरलाक के अनुसार-"गामक विकास से अभिप्राय है- मांसपेशियों की उन गतिविधियों का नियंत्रण, जो जन्म के समय के पश्चात् निरर्थक एवं अनिश्चित होती है।"

गामक तथा क्रियात्मक विकास का सामान्य अर्थ है –

बच्चे की गामक तथा क्रियात्मक शक्तियों, क्षमताओं तथा योग्यताओं का विकास । क्रियात्मक शक्तियों से अर्थ :ऐसी शारीरिक गतिविधियाँ या क्रियाएँ जिस में बालक को उन क्रियों को करने में माँसपेशियों एवं तन्त्रिकाओं की गतिविधियों के संयोजन की जरूरत होती है – जैसे : चलना, बैठना इत्यादि।

जन्म के बाद बच्चा आंरभ में नासमझ तथा असहाय होता है। वह किसी भी कार्य के लिए आपने माता पिता पर निर्भर रहता है। अबोधता के कारण वह कुध भी कर सकता है। हाथ पैर हिलाना, सिर उठाना, गर्दन घूमना शारीरिक क्रियाए बिना किसी नियंत्रण के करता है। धीरे धीरे उसका विकास होने लगता है और वह अपने अंगों पर नियंत्रण पा लेता है। यही नहीं, उसके शरीर की मांसपेशियां भी सुदृढ़ होने लगती हैं।
इस प्रकार से बच्चे की शारीरिक समर्थता ही क्रियात्मक अथवा गामक विकास कहलाती है।


1. क्रियात्मक विकास बच्चे के स्वस्थ रहने और स्वावलम्बी होने एवं उचित मानसिक विकास में मददत करते है।

2. क्रियात्मक विकास के कारण बच्चे में आत्मविश्वास बढ़ाने में सहायता मिलती है। अगर बालक को पर्याप्त क्रियात्मक विकास नही मिल पाता तो बालक के कौशलों के विकास में रोक लग जाती है।

3. क्रियात्मक विकास के बारे में अध्यापक को पूर्ण ज्ञान होना जरूरी है।

4. इसी ज्ञान से आध्यपक बच्चे में विभिन्न कौशलों का विकास कर सकता है।

5. क्रियात्मक विकास के ज्ञान से शिक्षकों को बच्चों के आयु विशेष या अवस्था या बालक किस आयु में किस प्रकार की कौशलों को अर्जित करने की योग्यता रखता है?

6. जिन बच्चों में क्रियात्मक विकास सामान्य से कम होता है, उनके लिए अध्यापक को विशेष कार्य करने की जरूरत होती है।


मनोवैज्ञानिक ने बच्चे की क्रियात्मक विकास की निम्नलिखित परिभाषाए दी हैं –


1. क्रो एण्ड क्रो के अनुसार – “ गामक अथवा क्रियात्मक योग्यताओं तथा क्षमताओं से तात्पर्य है उन विभिन्न प्रकार की शारीरिक अथवा क्रियाओं से है जिनकें संपादन की कुंजी नाड़ियों और मांसपेशियों की गतिविधियों के संयोजन के हाथ में होती है। “

2. हरलाँक के अनुसार – “ क्रियात्मक विकास वास्तव में बोधात्मक क्रियात्मक विकास है। बच्चे की प्रत्यक्षीकरण की प्रक्रिया तथा शारीरिक नियंत्रण पर गतिविधियों का विकास जो मांसपेशियों तथा नाड़ियों के समन्वय द्वारा संभव है, क्रियात्मक विकास कहलाता है। “

3. डॉ . वर्मा एवं उपाध्याय के अनुसार – “ बालक की क्रियाएं करने की क्षमता के विकास को ही क्रियात्मक विकास कहते है। “

4. जेम्स ड्रेवर के अनुसार – “ क्रियात्मक विकास का सम्बन्ध उन सरंचना और कार्यो से है जो मांसपेशियों की क्रियाओं से सम्बन्धित है अथवा इसका सम्बन्ध जीव की उस प्रतिक्रिया से है जो वह किसी परिस्थिति के प्रति करता है। “ ।

5. कार्ल सी० गेरिसन के अनुसार – “ शक्ति, अंग सामंजस्य तथा गति और हाथ पैर तथा शरीर की अन्य मांसपेशिष्यों के ठीक ठाक उपयोग का विकास उसके पूरे विकास की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। “


गेरिसन के अनुसार गामक तथा क्रियात्मक विकास की प्रवृत्तियां इस प्रकार हैं :

1. शैशव तथा स्कूल पूर्व अवस्था के आरंभिक वर्षों में विकास की गति पर कई कारकों का प्रभाव होता है।

2. धीरे धीरे परिपक्वता आने पर अभ्यास का प्रभाव पड़ने लगता है।

3. प्राथमिक तथा जटिल गति कौशलों में अभ्यास के कारण कुशलता उत्पन्न करती है।

4. कुध गति कौशलों में लड़के, लड़कियों की दक्षता समान होती है। कुछ में अलग अलग होती है।

5. गति कौशल का विकास वृद्धि चक्र के अनुसार होता है।


संक्षेप में हम कह सकते हैं कि गामक अथवा क्रियात्मक विकास का अर्थ गति क्रियाओं के ऐसे क्रमिक विकास से है जिसमें वह अपनी शारीरिक गतिविधियों पर नियंत्रण पाने के लिए लगातर सक्रिय रहता है और प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होता है। इस प्रक्रिया में मांसपेशियों का बहुत अधिक योगदान रहता है।

क्रियात्मक विकास का महत्त्व :

क्रियात्मक अथवा गामक विकास का बच्चे के जीवन में अत्याधिक महत्व होता है। यह महत्व प्रत्यक्ष तथा परोक्ष दोनों रूपों में देखा जा सकता है।


1. शारीरिक विकास में सहायक – गामक अथवा क्रियात्मक विकास के कारण बच्चा शारीरिक रूप से विकास करता है और स्वस्थ होता है।

2. मानसिक विकास में सहायक – क्रियात्मक अथवा गामक योग्यताएं और क्षमताए बच्चे के मानसिक विकास में भी सहायता करती हैं जिससे बच्चा शारीरिक तथा मानसिक रूप से स्वस्थ होता है।

3. समाजीकरण के लिए आवश्यक – क्रियात्मक विकास बच्चे के समाजीकरण के लिए आवश्यक है। इससे बच्चा दूसरे बच्चों के साथ रहना सीख जाता है और उनसे बहुत कुध सीखता है।

4. भावनात्मक परिपक्वता के लिए आवश्यक – क्रियात्मक विकास बच्चे की भावनात्मक परिपक्वता में सहायता करता है क्योंकि बच्चे की सफलता तथा विफलता इस बात में निर्भर करती है कि विशेष कार्य में उसकी गतिविधियां किस प्रकार की रही हैं।

5. स्वावलम्बन तथा आत्म निर्भरता में सहायक – क्रियात्मक विकास बच्चे को जहां एक ओर स्वावलम्बन का पाठ पढ़ाता है, वहीं दूसरी ओर उसे आत्मनिर्भर बनने की शिक्षा देता हैै। क्रियात्मक विकास के कारण ही बच्चे स्वालम्बी तथा आत्मनिर्भर बनते हैं। इस द्वाष्टि से गति विकास कदम कदम पर उनकी सहायता करता है।

6. मनोरंजन और आत्मतुष्टि में सहायक – क्रियात्मक अथवा गामक विकास की असंख्य गतिविधियां बच्चों के बाल्यकाल तथा किशोरावस्था में आमोद – प्रमोद की साधन बनती हैं। ये गतिविधियां जहां बच्चों को एक ओर आत्मआनंद तथा आत्म- तृष्टि प्रदान करती है वहां दूसरी ओर उनकी व्यावसायिक कुशलता में भी वृद्धि करती हैं।

7. अध्ययन में सहायक – क्रियात्मक अथवा गामक विकास बच्चों को अध्ययन में भी सहायता प्रदान करता है। अनेक बच्चे गामक विकास के कारण पढ़ाई – लिखाई में अधिक रूचि लेने लगते हैं।

8. स्कूल समायोजन में सहायक – बच्चे के स्कूल समायोजन में भी क्रियात्मक विकास अत्यधिक सहायक है। उदाहरण के रूप में प्रारम्भिक कक्षाओं में लेखन, ड्राईंग तथा चित्रकला पर विशेष बल दिया जाता है। जिन बालक का गति विकास अच्छा होता है वे इन विषयों को अच्छी प्रकार सीख लेते हैं परन्तु जिनका गति विकास पिछड़ा होता है, वे पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं कर पाते।

9. आत्मनिर्भर और आत्म विश्वासी बनाने में सहायक – गति विकास के कारण धीरे धोरे बच्चा बड़ा होकर आत्मनिर्भर हो जाता है और उसमे आत्म विश्वास की भावना उत्पन्न होती है और वह दुसरों पर निर्भर न रहकर स्वयं काम करने लगता है।


संक्षेप में हम कह सकते हैं कि गामक विकास की असंख्य गतिविधियां हैं जैसे घूमना, फिरना, कूदना, दौड़ना, पकड़ना, फैंकना, लिखना, पढ़ना आदि। अतः क्रियात्मक विकास जितना अच्छा व अनुकूल होगा, बच्चे में उतनी क्रियाशीलता होगी और वे अपने जीवन में विकास कर सकेंगे ।


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Monday, March 18, 2019

प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात के वर्गीकरण

प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात के वर्गीकरण

इसे मुख्यतः तीन आधार पर वर्गीकृत किया गया है-

1. तीव्रता के प्रमाण के अनुसार वर्गीकरण

प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात का किसी व्यक्ति पर कितना गंभीर प्रभाव है, इसके आधार पर इसे मुख्यतः तीन भागो में वर्गीकृत किया गया है –

क) अल्प प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात (Mild Cerebral Palsy) -

इसमें गामक एवं शरीर स्थिति से सम्बंधित विकलांगता न्यूनतम होती है। बच्चा पूरी तरह स्वतंत्र होता है। सीखने में समस्याए हो सकती है। इस श्रेणी के बच्चे सामान्य विद्यालय में सामेकित शिक्षा का लाभ उठा सकते हैं।

ख)अतिअल्प प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात (Moderate Cerebral Palsy)-

गामक एवं शरीर स्थिति से सम्बंधित विकलांगता का प्रभाव अधिक होता है। बच्चा उपकरणों की मदद से बहुत हद तक स्वतंत्र हो सकता है। इस श्रेणी के बच्चो के लिए विशेष शिक्षा की आवश्यकता होती है।

ग) गंभीर प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात (Severe Cerebral Palsy) -

गामक एवं शरीर स्थिति से सम्बंधित विकलांगता पूर्णतः होती है। बच्चो को दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। इस श्रेणी के बच्चो को अपनी नित्य क्रिया जैसे- कपड़े पहनना, ब्रश करना, स्नान करना, खाना-पीना इत्यादि के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है।

2. प्रभावित अंगो की संख्या के अनुसार वर्गीकरण

शरीर का कौन सा भाग अथवा हाथ-पैर प्रभावित है, इसके आधार पर भी प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात का वर्गीकरण किया गया है। प्रभावित अंगो के आधार पर इसे मुख्यतः पांच भागो में वर्गीकृत किया गया है –

क) मोनोप्लेजिया (Monoplegia)-

इस श्रेणी के अंतर्गत आने वाले प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात में व्यक्ति का कोई एक हाथ या पैर प्रभावित होता है

ख) हेमीप्लेजिया (Hemiplegia)-

 इसमें एक ही तरफ के हाथ और पैर दोनों प्रभावित होते हैं।

ग) डायप्लेजिया (Diaplegia)-

इसमें ज्यादातर दोनों पैर प्रभावित हो जाते हैं, परन्तु कभी–कभी हाथ में भी इसका प्रभाव दिखता है।

घ) पैराप्लेजिया (Paraplegia)-

इसके अंतर्गत व्यक्ति के दोनों पैर प्रभावित होते हैं।

ङ) क्वाड्रीप्लेजिया (Quadriplegia) -

इसके अंतर्गत दोनों हाथ और दोनों पैर अर्थात शरीर का पूरा भाग प्रभावित रहता है।

3. चिकित्सीय लक्षणों के अनुसार वर्गीकरण

इसके आधार पर प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात को चार भागो में बांटा गया है –

क) स्पासटीसिटी (Spasticity) –
इसका अर्थ है कड़ी या तनी हुई माँसपेशी इसमें गामक कुशलता प्राप्त करने में कठिनाई एवं धीमापन महसूस होता है। बच्चें सुस्त दिखते हैं। गति बढ़ने के साथ मांसपेशीय तनाव बढ़ने लगता है। क्रोध या उतेजना की स्थिति में मांसपेशीय कड़ापन और भी बढ़ जाता है। पीठ के बल लेटने पर बच्चे का सर एक तरफ घुमा होता है तथा पैर अंदर की ओर मुड़ जाता है।

ख) एथेटोसिस (Athetosis) –
एथेटोसिस का अर्थ है अनियमित गति। मांसपेशीय तनाव सामान्य होता है। शरीर की गति के साथ तनाव बढ़ता है। बच्चा जब अपनी इच्छा से कोई अंग संचालित करता है तो उसका शरीर तड़फड़ाने लगता है।

ग) एटेक्सिया (Atexia)-
इसका अर्थ है अस्थिर एवं अनियंत्रित गति। इसमें बच्चे का शारीरिक संतुलन ख़राब होता है। ऐसे बच्चें बैठने या खड़े होने पर गिर जाते हैं। इनका मांसपेशीय तनाव कम होता है तथा गमक विकास पिछड़ा होता है।

घ) मिक्स्ड (Mixed) -
स्पासटीसिटी एवं एथेटोसिस अथवा अटेक्सिया में दिखने वाले लक्षण जब किसी बच्चों में मिले हुए दिखते हैं, तो मिश्रित प्रकार के प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात से ग्रसित बच्चें कहलाते हैं।

प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात के  उपचार

वर्तमान में इस बीमारी की कोई कारगर दवा बनी नहीं है। वर्तमान चिकित्सा एवं उपचार अभी इस रोग और इसके दुष्प्रभाव (साइड इफेक्ट) के बारे में कोई ठोस परिणाम नहीं दे पाए हैं। सेरेब्रल पाल्सी को तीन भागों में बांटकर देखा जा सकता है।

1. पहला स्पास्टिक,

2. दूसरा एटॉक्सिक, और

3. तीसरा एथिऑइड।

स्पास्टिक सेरेब्रल पाल्सी सबसे आम है। लगभग ७० से ८० प्रतिशत मामलों में यही होती है। फिर भी इलाहाबाद के एक डॉ॰ जितेन्द्र कुमार जैन एवं उनकी टीम ने ओएसएससीएस नामक एक थेरैपी से पूर्वोत्तर भारत के एक बच्चे पर प्रयोग पहली बार किया। उनके अनुसार इससे बच्चे न सिर्फ अपने पैरों पर खड़े हो पायेंगे, बल्कि दौड़ भी पायेंगे।

एटॉक्सिक सेरेब्रल पाल्सी की समस्या लगभग दस प्रतिशत लोगों में देखने में आती है। भारत में लगभग २५ लाख बच्चे इस समस्या के शिकार हैं। इस स्थिति में व्यक्ति को लिखने, टंकण (टाइप करने) में समस्या होती है। इसके अलावा इस बीमारी में चलते समय व्यक्ति को संतुलन बनाने में काफी दिक्कत आती है। साथ ही किसी व्यक्ति की दृश्य और श्रवणशक्ति पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।

एथिऑइड की समस्या में व्यक्ति को सीधा खड़ा होने, बैठने में परेशानी होती है। साथ ही रोगी किसी चीज को सही तरीके से पकड़ नहीं पाता। उदाहरण के तौर पर वह टूथब्रश, पेंसिल को भी ठीक से इस्तेमाल नहीं कर पाता है।

भौतिक चिकित्सा (फिजियोथिरैपी) द्वारा प्रमस्तिष्क अंगघात की चिकित्सा

इस रोग का इलाज भौतिक चिकित्सा (फिजियोथेरेपी) से पूर्ण रूप से किया जा सकता है। आज के सरकारी अस्पतालो में बच्चो को सेरेब्रल पाल्सी मर्ज लाईलाज कहते हुये इलाज नहीं किया जाता है। कुछ खोज से ज्ञात हुआ भारत में सेरेब्रल पाल्सी रोग से करीब पचिस लाख बच्चे ग्रष्त है।

फिजियोथेरेपि उपचार एवं बोटॅक्स इनजेक्सन के प्रयोग से करीब पंद्रह लाख पुर्ण स्वस्थ एवं पाचँ लाख अत्यधिक प्रतिसद ठिक किये जा सकते है। लेकिन महगे इनजेक्सन एवं सरकारी अस्पतालो में पथभ्रष्ट फिजियोथेरेपिस्टो की वजह से ये बच्चे मौत के मुह में समा जाते है। परिजनो को मर्ज और उपचार से सम्बंन्धीत गलत जानकारी दि जाती है। भौतिक चिकित्सक महीने दो महिने में परिजन को फिजियोथेरेपिस्ट बना के बच्चो को चिकित्सा से दूर कर दिया जाता है। नियमित उपचार की जगह एक दिन के अन्तराल पे एक दिन, एवं हप्ते में एक दिन एवं पुरा फिजियोथेरेपि उपचार परिजन को कराने की सलाह दिया जाता है। फिजियोथेरेपि उपचार पोलियो एवं सेरेब्रल पाल्सी मर्ज से ग्रष्त बच्चो को पुर्ण मिलने की ब्यवस्था हो जाये तो बच्चो को विकलांगता से मुक्ति दिलायी जा सकती है।

अन्तरआत्मा को झकझोर देने वाली यह बात है, कि चिकित्सा पेशे से जुडे लोग चिकित्सा को सिर्फ धन अर्जित करने का साधन बना लिये हैं। मानवता, चिकित्सा धर्म मानवि, संस्कृत इस सम्मानित पेशे से विलुप्त होता जा रहाँ हैं। आर्दशवादी शिक्षीत समाज के लोग चिकित्सक पेसे में मरिज के जान लेने वाली क्रिया और मरिज के दर्द की अनदेखी करने वाले चिकित्सको के अत्यधिक अमानवि कार्य के प्रति संवेदनहीन है। जो दिन ब दिन अत्यधिक पथ भ्रष्ट एवं मानवता से बिहिन होता जा रहा आज का चिकित्सा समाज अप्रत्यक्ष कितने माशुम लोगो के हत्या जैसे सगिन अपराध सल्य चिकित्सा के नाम करता है। आने वाले वक्त में चिकित्सा समाज के वरिष्ठ चिकित्सको ने उठ रही चिकित्सा पेसे के नाम बुराईयो प्रति संवेदनशिलता से ध्यान नहीं दिया गया तो देश का हर दवाखाना, कत्ल खाना के नाम से बुलाया जायेगाँ। जो मानवता संस्कृत चिकित्सक और आर्दशवादी शिक्षित समाज के चेहरे पे बदनुमाँ दाग के रूप में अंकित होगा। यह चिकित्सक मरिज परिजन तिनो के लिए अत्यधिक दुख दायी होगा।


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