Sunday, March 17, 2019

प्रमस्तिष्क पक्षाघात [CP]

प्रमस्तिष्क पक्षाघात या सेरेब्रल पाल्सी (Cerebral palsy) 
  
सेरेब्रल का अर्थ मस्तिष्क के दोनो भाग तथा पाल्सी का अर्थ किसी ऐसा विकार या क्षति से है जो शारीरिक गति के नियंत्रण को क्षतिग्रस्त करती है। एक प्रसिद्ध शल्य चिकित्सक विलियम लिटिल ने 1860 ई में बच्चो में पाई जाने वाली असामान्यता से सम्बंधित चिकित्सा की चर्चा की थी जिसमे हाथ एवं पाव की मांसपेशियों में कड़ापन पाया जाता है। ऐसे बच्चों को वस्तु पकड़ने तथा चलने में कठिनाई होती है जिसे लम्बे समय तक लिटिल्स रोग के नाम से जाना जाता था।

अब इसे प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात (सेरिब्रल पाल्सी) कहते हैं। 'सेरेब्रल' का अर्थ है मस्तिष्क के दोनों भाग तथा पाल्सी का अर्थ है ऐसी असामान्यता या क्षति जो शारीरिक गति के नियंत्रण को नष्ट करती है प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात का अर्थ है मस्तिष्क का लकवा।

यह मस्तिष्कीय क्षति बच्चो के जन्म के पहले, जन्म के समय और जन्म के बाद कभी भी हो सकता है इसमें जितनी ज्यादा मस्तिष्क की क्षति होगी उतनी ही अधिक बच्चो में विकलांगता की गंभीरता बढ़ जाती है।


परिभाषा-

बैटसो एवंं पैरट (1986) के अनुसार "सेरेब्रल पाल्सी एक जटिल, अप्रगतिशील अवस्था है जो जीवन के प्रथम तीन वर्षो मे हुई मस्तिष्कीय क्षति के कारण होती है जिसके फलस्वरूप मांसपेशियों में सामंजस्य न होने के कारण तथा कमजोरी से अपंगता होती है।"

यह एक प्रमस्तिष्क संबंधी विकार है। यह विकार विकसित होते मस्तिष्क के मोटर कंट्रोल सेंटर (संचलन नियंत्रण केन्द्र) में हुई किसी क्षति के कारण होता है। यह बीमारी मुख्यत: गर्भधारण (७५ प्रतिशत), बच्चे के जन्म के समय (लगभग ५ प्रतिशत) और तीन वर्ष तक की आयु के बच्चों को होती है। सेरेब्रल पाल्सी पर अभी शोध चल रहा है, क्योंकि वर्तमान उपलब्ध शोध सिर्फ बाल्य (पीडियाट्रिक) रोगियों पर केन्द्रित है। इस बीमारी की वजह से संचार में समस्या, संवेदना, पूर्व धारणा, वस्तुओं को पहचानना और अन्य व्यवहारिक समस्याएं आती है।


संभावित कारण

इस बीमारी के बारे में पहली बार अंग्रेजी सर्जन विलियम लिटिल ने १८६० में पता लगाया था। इस रोग के मुख्य कारणो में बच्चे के मस्तिष्क के विकास में व्यवधान आने या मस्तिष्क में चोट होते हैं। कुछ अन्य कारण इस प्रकार से हैं।

1. गर्भावस्था के दौरान मां को संक्रमण।

2. मां व बच्चे के रक्त समूह (ब्लड ग्रुप) का न मिलना।

3. मां के गर्भ में बच्चे का अस्वाभाविक अनुवांशिक विकास।

4. नवजात शिशु का पीलिया या अन्य किसी संक्रमण से ग्रस्त होना।


सीपी की शीघ्र पहचान

प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात के शीघ्र पहचान के लिए इसके शुरूआती लक्षण को पहचानना अति आवश्यक है क्योंकि जब तक इसके लक्षणों का सही पहचान नहीं होगा तब तक उपचार एवं रोकथाम हेतु कदम उठाना मुश्किल है।

अतः इसके लक्षणों को देखकर शीघ्र पहचान आसानी से की जा सकती है। प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात की शीघ्र एवं प्रारंभिक पहचान हेतु निम्नलिखित विन्दुओं के अनुसार बच्चे का आकलन किया जा सकता है –

1) जन्म के समय देर से रोता है या साँस लेता है।
2) जन्म के समय प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात युक्त शिशु प्रायः शिथिल या निर्जीव जैसा तथा लचीला एवं पतला होता है। यदि शिशु को छाती की तरफ पकड़कर औंधे मुह लटकाया जाय तो शिशु उल्टा यू (U) जैसा झुक जायेगा।
3) दूसरे सामान्य बच्चे की तुलना में विकास धीमा होता है।
4) गर्दन नियंत्रण एवं बैठने में देर करता है।
5) अपने दोनों हाथो को एक साथ नहीं चलता है तथा एक ही हाथ का प्रयोग करता है।
6) शिशु स्तनपान में असमर्थता दिखाता है।
7) गोद में लेते समय या कपड़ा पहनते समय एवं नहाते समय शिशु का शरीर अकड़ जाता है।
8) शिशु का शरीर बहुत लचीला होता है।
9) बच्चे बहुत उदास दिखते हैं तथा सुस्त गति वाले होते हैं।
10) ओठ से लार टपकता है।


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Saturday, March 16, 2019

ऑटिज्‍म के प्रकार

ऑटिज्‍म के प्रकार

आटिज्म स्पेक्ट्रम विकार के तीन प्रकार हैं -

1. ऑटिस्टिक डिसऑर्डर (क्लासिक ऑटिज्म) (Autistic Disorder)

आटिज्म शब्द सुनते ही अधिकांश लोग इसी प्रकार के आटिज्म के बारे में सोचते हैं। ऑटिस्टिक डिसऑर्डर से ग्रस्त लोग आमतौर पर देरी से बोलते हैं और सामाजिक व संचार की चुनौतियों का सामना करते हैं और असामान्य व्यवहार और रुचियां भी रखते हैं। ऑटिस्टिक डिसऑर्डर वाले कई लोगों को बौद्धिक समस्याएं भी होती हैं।

 2. एस्पर्जर सिन्ड्रोम (Asperger Syndrome)

एस्पर्जर सिंड्रोम से ग्रस्त लोगों को आमतौर पर ऑटिस्टिक डिसऑर्डर के कुछ लक्षण होते हैं। उन्हें सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है और उनकी असामान्य व्यवहार और रुचियां भी हो सकती हैं। हालांकि, उन्हें आमतौर पर भाषा सम्बंधित या बौद्धिक समस्याएं नहीं होती हैं।

3. परवेसिव डेवलपमेंटल विकार (Pervasive Developmental Disorder)

जिन लोगों में ऑटिस्टिक डिसऑर्डर या एस्पर्जर सिंड्रोम के कुछ लक्षण होते हैं उन्हें परवेसिव डेवलपमेंटल विकार हो सकता है। ऐसे लोगों में आमतौर पर ऑटिस्टिक डिसऑर्डर वाले लोगों की तुलना में लक्षण कम होते हैं या उनकी तीव्रता कम होती है। लक्षण केवल सामाजिक और संचार की चुनौतियों का कारण बन सकते हैं।


ऑटिज्‍म के लक्षण

सामाजिक संचार और संपर्क समस्याएं -

1. अपने नाम पर प्रतिक्रिया देने में विफल रहना।

2. गले से लगाने या पकड़ने पर विरोध करना और अकेले खेलना पसंद करना।

3. नज़रें मिलाने से बचना और चेहरे के अभिभावों का न होना।

4. न बोलना या बोलने में देरी करना या पहले ठीक से बोलने वाले शब्द या वाक्यों को न बोल पाना।

5. वार्तालाप को शुरू नहीं कर पाना या जारी नहीं रख पाना या केवल अनुरोध के लिए बातचीत शुरू करना।

6. एक असामान्य लय से बोलना, एक गीत की आवाज़ या रोबोट जैसी आवाज़ का उपयोग करना।

7. शब्दों या वाक्यांशों को दोहराना लेकिन उनके उपयोग की समझ न होना।

8. सरल प्रशनों या दिशाओं को समझने में असमर्थता।

9. अपनी भावनाओं को व्यक्त न करना और दूसरों की भावनाओं से अनजान रहना।

10. निष्क्रिय, आक्रामक या विघटनकारी होने के कारण सामाजिक संपर्क से बचना।


व्यवहार सम्बन्धी लक्षण -

1. कुछ गतिविधियों को दोहराना, जैसे - हिलना, घूमना या हाथ फड़फड़ाना या खुद को नुक्सान पहुंचाने वाली गातीधियाँ (जैसे सिर पटकना)।

2. विशिष्ट दिनचर्या या अनुष्ठान विकसित करना और थोड़े ही बदलाव में परेशान हो जाना।

3. लगातार हिलते रहना।

4. असहयोगी व्यवहार करना या बदलने के लिए प्रतिरोधी होना।

5.समन्वय की समस्याएं या अजीब गतिविधियां करना (जैसे पैर के पंजों पर चलना)।

6. रौशनी, ध्वनि और स्पर्श के प्रति असामान्य रूप से संवेदनशील होना और दर्द महसूस न करना।

7. कृत्रिम खेलों में शामिल न होना।

8. असामान्य तीव्रता या ध्यान लगाकर कोई कार्य या गतिविधि करते रहना।

9. भोजन की अजीब पसंद होना, जैसे कि केवल कुछ खाद्य पदार्थों को खाना या कुछ खास बनावट वाले पदार्थों का ही सेवन करना।

आटिज्‍म के कारण और जोखिम कारक - Autism Causes & Risk Factors 

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार का कोई भी ज्ञात कारण नहीं है। विकार की जटिलता और तीव्रता हर किसी में भिन्न होते हैं इसीलिए इसके कई कारण माने जाते हैं। आनुवांशिकी और पर्यावरण कारण दोनों ही आटिज्म में एक महत्व्पूर्ण भूमिका निभाते हैं।

आनुवंशिक समस्याएं

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार में कई अलग-अलग जीन शामिल होते हैं। कुछ बच्चों में, आटिज्म किसी आनुवंशिक विकार से सम्बंधित हो सकता है। दूसरों के लिए, आनुवंशिक परिवर्तन बच्चे को ऑटिज्म के प्रति अतिसंवेदनशील बना सकते हैं या पर्यावरणीय जोखिम कारक बना सकते हैं। कुछ आनुवंशिक समस्याएं पारिवारिक होती हैं, जबकि अन्य अपने आप होती हैं।

पर्यावरणीय कारक

शोधकर्ता वर्तमान में यह खोज कर रहे हैं कि क्या वायरल संक्रमण, गर्भावस्था की जटिलताएं या वायु प्रदूषण ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार की वजह बनते हैं या नहीं।


आटिज्म के जोखिम कारक 

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार सभी जातियों और राष्ट्रीयताओं के बच्चों को प्रभावित करता है, लेकिन कुछ कारक इसके जोखिम को बढ़ाते हैं। जैसे -

1. लिंग - लड़कियों के मुकाबले लड़कों को आटिज्म होने की संभावना चार गुना ज़्यादा होती है।

2. परिवार का इतिहास - अगर एक परिवार में कोई बच्चा आटिज्म से ग्रस्त है तो दूसरे बच्चे को भी इससे ग्रस्त होने का अधिक खतरा होता है।

3. अन्य विकार - कुछ मेडिकल समस्याओं वाले बच्चों को आटिज्म के होने का जोखिम अधिक होता है।

4. समय से पहले पैदा हुए बच्चे - 26 सप्ताह से पहले पैदा हुए बच्चों को आटिज्म होने का ज़्यादा खतरा हो सकता है।

5. माता-पिता की आयु - ज़्यादा उम्र के माता-पिता से हुए बच्चे को आटिज्म होने की सम्भावना हो सकती है लेकिन अभी इस विषय पर शोध आवश्यक है।


आटिज्‍म से बचाव - Prevention of Autism 

आटिज्म होने से रोका नहीं जा सकता है लेकिन आप इसके कुछ जोखिम को कम कर सकते हैं यदि आप निम्नलिखित जीवनशैली के परिवर्तनों का प्रयास करते हैं -

1. स्वस्थ रहें - नियमित जाँच करवाएं, अच्छी तरह संतुलित भोजन और व्यायाम करें। सुनिश्चित करें कि आपकी अच्छी जन्मपूर्व देखभाल हुई है और सभी सुझाए गए विटामिन व पूरक आहार लें।

2. गर्भावस्था के दौरान दवाएं न लें - गर्भावस्था में किसी भी प्रकार की दवा लेने से पहले अपने डॉक्टर से पूछें। खासकर दौरों को रोकने वाली दवाएं।

3. शराब न लें - गर्भावस्था के दौरान शराब का सेवन न करें।

4. मौजूदा स्वास्थ्य समस्याओं के लिए उपचार लें - यदि आपको सीलिएक रोग (Celiac Disease) या पीकेयू (PKU; Phenylketonuria) है, तो उसे नियंत्रण में रखने के लिए अपने डॉक्टर की सलाह का पालन करें।

5. टीका लगवाएं  - सुनिश्चित करें कि गर्भवती होने से पहले आपको जर्मन खसरा (German Measles) - जिसे रुबेला (Rubella) भी कहते हैं - का टीका लगाया गया है क्योंकि यह रूबेला-संबंधित आटिज्म को रोक सकता है।


ऑटिज्म का परीक्षण

आटिज्म का निदान करना मुश्किल हो सकता है क्योंकि अन्य विकारों का निदान करने के लिए मौजूद परीक्षणों के जैसे इसके लिए कोई परीक्षण नहीं है। डॉक्टर इसका निदान करने के लिए बच्चे के व्यवहार और विकास को देखते हैं।

आटिज्म का निदान दो चरणों में होता है -

1. विकास संबंधी जांच

2. विस्तृत नैदानिक ​​मूल्यांकन


विकास संबंधी जांच

विकास संबंधी जांच एक छोटी सी परीक्षा होती है, यह बताने के लिए कि क्या बच्चा मूलभूत कौशल सीख रहा है या नहीं। विकास संबंधी जाँच के दौरान डॉक्टर माता-पिता से कुछ प्रशन पूछ सकते हैं या बच्चे के साथ बात करने के लिए कह सकते हैं और यह देख सकते हैं कि वह कैसे सीखते हैं, बोलते हैं, व्यवहार करते हैं और चलते हैं। इनमें से किसी भी क्षेत्र में देरी एक समस्या का संकेत हो सकती है।

यह महत्वपूर्ण है कि डॉक्टर विकास संबंधी विलंब के लिए सभी बच्चों की जाँच करें, लेकिन विशेष रूप से उन बच्चों पर नज़र रखें जिन्हें आटिज्म का  जोखिम ज़्यादा है। यदि चिकित्सक किसी समस्या के लक्षण देखते हैं तो एक विस्तृत नैदानिक ​​मूल्यांकन की आवश्यकता होती है।


विस्तृत नैदानिक मूल्यांकन

निदान का दूसरा चरण एक विस्तृत मूल्यांकन होता है। इसमें बच्चे के व्यवहार और विकास की जाँच की जाती है व माता-पिता से भी सवाल पूछे जा सकते हैं। इसमें सुनवाई और दृष्टि की जाँच, आनुवांशिक परीक्षण, न्यूरोलॉजिकल परीक्षण और अन्य चिकित्सा परीक्षण शामिल हो सकते हैं।

कुछ मामलों में, प्राथमिक देखभाल चिकित्सक आगे मूल्यांकन और निदान के लिए बच्चे को एक विशेषज्ञ के पास ले जाने की सलाह दे सकते हैं। जैसे -

1. बच्चे के विकास और बच्चों में विशेष प्रशिक्षण देने के विशेषज्ञ।

2. मस्तिष्क, रीढ़ और तंत्रिकाओं के विशेषज्ञ।

3. मानव मस्तिष्क के विशेषज्ञ।


आटिज्‍म का इलाज - Autism Treatment 


आटिज्म का कोई इलाज नहीं है। हालांकि, कई तरीकों से सीखने की क्षमता और मानसिक विकास को बढ़ाना संभव है। यह तरीके निम्नलिखित हैं -

व्यवहारिक प्रशिक्षण और प्रबंधन

व्यवहारिक प्रशिक्षण और प्रबंधन व्यवहार व संचार को बेहतर बनाने के लिए सकारात्मक तरीकों, आत्म-सहायता और सामाजिक कौशल प्रशिक्षण का उपयोग करता है। कई प्रकार के उपचार विकसित किए गए हैं, जिनमें एप्लाइड व्यवहार विश्लेषण (applied behaviour analysis), ऑटिस्टिक और संबंधित संचार विकलांग बच्चों का उपचार और शिक्षा शामिल हैं।

विशिष्ट चिकित्सा

इसमें भाषण, व्यावसायिक और शारीरिक उपचार शामिल हैं। ये चिकित्सा आटिज्म के प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण हैं और सभी बच्चों के उपचार में शामिल किये जाने चाहिए। भाषण थेरेपी बच्चों को प्रभावी ढंग से संवाद करने में मदद कर करती है। व्यावसायिक और शारीरिक उपचार समन्वय को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं। व्यावसायिक उपचार बच्चे को इंद्रियों की सूचनाओं को बेहतर समझ पाने में मदद कर सकता है।

दवाएं

आटिज्म में दवाओं का उपयोग उससे सम्बंधित समस्याओं जैसे डिप्रेशन, चिंता और सक्रियता का इलाज करने के किया जाता है।


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Friday, March 15, 2019

ऑटिज्म के पहचान

पहचान

बाल्यावस्था में सामान्य बच्चों व ऑटिस्टिक बच्चों में कुछ प्रमुख अंतर होते हैं जिनके आधार पर इस अवस्था की पहचान की जा सकती है जैसे कि-

1. सामान्य बच्चे माँ का चेहरा देखते हैं व उसके हाव-भाव को समझने की कोशिश करतें है परन्तु ऑटिज़्म से ग्रसित बच्चे किसी से नज़र मिलाने से कतराते हैं,

2. सामान्य बच्चे आवाजें सुनने से खुश हो जाते हैं परन्तु ऑटिस्टिक बच्चे आवाजों पर ध्यान नहीं देते तथा कभी-कभी बधिर प्रतीत होते हैं,

3. सामान्य बच्चे धीरे-धीरे भाषा-ज्ञान में वृद्वि करते हैं, परन्तु ऑटिस्टिक बच्चे बोलने से कुछ समय बाद अचानक ही बोलना बंद कर देते हैं तथा अजीब आवाजें निकालते हैं,

4. सामान्य बच्चे माँ के दूर होने पर या अनजाने लोगों से मिलने पर परेशान हो जाते हैं परन्तु औटिस्टिक बच्चे किसी के भी आने या जाने से परेशान नहीं होते,

5. ऑटिस्टिक बच्चे तकलीफ के प्रति कोई क्रिया नहीं करते तथा उससे बचने की कोशिश नहीं करते,

6. सामान्य बच्चे करीबी लोगों को पहचानते हैं तथा उनसे मिलने पर मुस्कुरातें है पर ऑटिस्टिक बच्चे कोशिश करने पर भी किसी से बात नहीं करते जैसे अपनी ही किसी दुनिया में खोये रहतें हैं,

7. ऑटिस्टिक बच्चे एक ही वस्तु या कार्य में उलझे रहते हैं तथा अजीब क्रियाओ को बार-बार दोहरातें हैं जैसे ओगे-पीछे हिलना, हाँथ को हिलाते रहना, आदि,

8. ऑटिस्टिक बच्चे अन्य बच्चो की तरह काल्पनिक खेल नहीं खेल पाते वह खेलने की बजाए खिलौनों को सूंघते या चाटतें हैं,

9. ऑटिस्टिक बच्चे बदलाव को बर्दाशत नहीं कर पाते व अपने क्रियाकलापों को नियमानुसार ही करना चाहतें हैं

10. ऑटिस्टिक बच्चे या तो बहुत चंचल या बहुत सुस्त रहते हैं,

11. इन बच्चो में अधिकतर कुछ विशेष बातें होती हैं जैसे किसी एक इन्द्री (जैसे, श्रवण शक्ति) का अतितीव्र होना।


दोहराव युक्त व्यवहार

1. स्टीरेओटाईपी एक निरर्थक प्रतिक्रिया है, जैसे हाथ हिलाना, सिर घुमाना या शरीर को झकझोरना आदि।

2. बाध्यकारी व्यवहार का उद्देश्य नियमों का पालन करना होता है, जैसे कि वस्तुओं को एक निश्चित तरह की व्यवस्था में रखना।

3. समानता का अर्थ परिवर्तन का प्रतिरोध है, उदाहरण के लिए, फर्नीचर के स्थानांतरण से इंकार।

4. अनुष्ठानिक व्यवहार के प्रदर्शन में शामिल हैं दैनिक गतिविधियों को हर बार एक ही तरह से करना, जैसे एक सा खाना, एक सी पोशाक आदि। यह समानता के साथ निकटता से जुडा है और एक स्वतंत्र सत्यापन दोनो के संयोजन की सलाह देता है।

5. प्रतिबंधित व्यवहार ध्यान, शौक या गतिविधि को सीमित रखने से संबधित है, जैसे एक ही टीवी कार्यक्रम को बार बार देखना।

6. आत्मघात (स्वयं को चोट पहुँचाना) से अभिप्राय है कि कोई भी ऐसी क्रिया जिससे व्यक्ति खुद को आहत कर सकता हो, जैसे खुद को काट लेना। डोमिनिक एट अल के अनुसार लगभग ASD से प्रभावित 30 % बच्चे स्वयं को चोट पहँचा सकते हैं।

 कोई एक खास दोहराव आत्मविमोह से संबधित नहीं है, लेकिन आत्मविमोह इन व्यवहारों के लिये उत्तरदायी है।


ऑटिज़्म के चिकित्सा

ऑटिज़्म को शीघ्र पहचानना और मनोरोग विशेषज्ञ से तुरंत परामर्श ही इसका सबसे पहला इलाज है। ऑटिज़्म के लक्ष्ण दिखने पर मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक, या प्रशिक्षित स्पेशल एजुकेटर (विशेष अध्यापक) से सम्पर्क करें। ऑटिज़्म एक आजीवन रहने वाली अवस्था है जिसके पूर्ण उपचार के लिए कोई दवा की खोज ज़ारी है, अतः इसके इलाज के लिए यहाँ-वहाँ न भटकें व बिना समय गवाएं इसके बारे में जानकारी प्राप्त करें।

ऑटिज़्म एक प्रकार की विकास सम्बंघित बीमारी है जिसे पूरी तरह तो ठीक नहीं किया जा सकता, परन्तु सही प्रशिक्षण व परामर्श के द्वारा रोगी को बहुत कुछ सिखाया जा सकता है, जो उसे अपने रोज के जीवन में अपनी देखरेख करने में मदद करता है।

ऑटिज़्म से ग्रसित 70% वयक्तियों में मानसिक मन्दता पायी जाती है जिसके कारण वह एक सामान्य जीवन जीने में पूरी तरह से समर्थ नहीं हो पाते, परन्तु यदि मानसिक मन्दता बहुत अघिक न हो तो ऑटिज़्म से ग्रसित व्यक्ति बहुत कुछ सीख पाता है। कभी-कभी इन बच्चों में कुछ ऐसी काबिलियत भी देखी जाती हैं जो सामान्य वयक्तियों की समझ व पहुच से दूर होती हैं।

ऑटिज़्म से ग्रसित बच्चे को निम्नलिखित तरीकों से मदद दी जा सकती है-[2]


इन्द्रियों को सम्मिलित करना

1. शरीर पर दबाव बनाने के लिए बड़ी गेंद का इस्तेमाल करें,

2. सुनने की अतिशक्ति को कम करने के लिए कान पर थोड़ी देर के लिए हल्की मालिश करें!


खेल व्यवहार के लिए

1. खेल-खेल में नए शब्दों का प्रयोग करें,

2. खिलौनों के साथ खेलने का सही तरीका दिखाएँ,

3. बारी-बारी से खेलने की आदत डालें,

4. धीरे-धीरे खेल में लोगो की संख्या को बढ़ते जायें।


बोल-चाल के लिए

1. छोटे-छोटे वाक्यों में बात करें,

2. साधारण भाषा का प्रयोग करें,

3. रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाले शब्दो को जोड़ कर बोलना सिखांए,

4. पहले समझना तथा फिर बोलना सिखांए,

5. यदि बच्चा बोल पा रहा है तो उसे शाबाशी दें तथा बार-बार बोलने के लिए प्रेरित करें,

6. बच्चे को अपनी जरूरतों को बोलने का मौका दें,

7. यदि बच्चा बिल्कुल बोल नहीं पाए तो उसे तस्वीर की तरफ़ इशारा करके अपनी जरूरतों के बारे में बोलना सिखाएं।


मेल-जोल के लिए

1. बच्चे को घर के अलावा अन्य लोगों से नियमित रूप से मिलने का मौका दें,

2. बच्चे को तनाव मुक्त स्थानों जैसे पार्क आदि में ले कर जायें,

3. अन्य लोगों को बच्चे से बात करने के लिए प्रेरित करें,

4. बच्चे के साथ धीरे-धीरे कम समय से बढ़ाते हुए अधिक समय के लिए नज़र मिला कर बात करने की कोशिश करे,

5. तथा उसके किसी भी प्रयत्न को प्रोत्साहित करना न भूलें।


व्यवहारिक परेशानियों के लिए

यदि बच्चा कोई एक व्यवहार बार-बार करता है तो उसे रोकने के लिए उसे कुछ ऐसी गतिविधियों में लगाएं जो उसे व्यस्त रखें ताकि वे व्यवहार दोहरा न सके,

1. गलत व्यवहार दोहराने पर बच्चे को कुछ ऐसा काम करवांए जो उसे पसंद नहीं है,

2. यदि बच्चा कुछ देर गलत व्यवहार न करे तो उसे तुरंत प्रोत्साहित करें,

3. प्रोत्साहन के लिए रंग-बिरंगी, चमकीली तथा ध्यान खीचनें वाली चीजों का इस्तेमाल करें!


गुस्सा या अधिक चंचलता के लिए

1. बच्चे को अपनी शक्ति को इस्तेमाल करने के लिए सही मार्ग दिखाएँ जैसे की उसे तेज व्यायाम, दौड़, तथा बाहरी खेलों में लगाएं,

2. यदि परेशानी अधिक हो तो मनोचिकित्सक के द्वारा दी गई दवा का उपयोग भी किया जा सकता है।

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Thursday, March 14, 2019

स्वलीनता (ऑटिज़्म)(ASD)

Autism spectrum disorder (ASD)

स्वलीनता (ऑटिज़्म) मस्तिष्क के विकास के दौरान होने वाला विकार है जो व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार और संपर्क को प्रभावित करता है। हिन्दी में इसे 'आत्मविमोह' और 'स्वपरायणता' भी कहते हैं। इससे प्रभावित व्यक्ति, सीमित और दोहराव युक्त व्यवहार करता है जैसे एक ही काम को बार-बार दोहराना। यह सब बच्चे के तीन साल होने से पहले ही शुरु हो जाता है।[1] इन लक्षणों का समुच्चय (सेट) आत्मविमोह को हल्के (कम प्रभावी) आत्मविमोह स्पेक्ट्रम विकार (ASD) से अलग करता है, जैसे एस्पर्जर सिंड्रोम।

ऑटिज़्म एक मानसिक रोग है जिसके लक्षण जन्म से ही या बाल्यावस्था से नज़र आने लगतें हैं। जिन बच्चो में यह रोग होता है उनका विकास अन्य बच्चो की अपेक्षा असामान्य होता है।


ऑटिज़्म के कारण

ऑटिज़्म होने के कोई एक कारण नहीं खोजा जा सका है। अनुशोधों के अनुसार ऑटिज़्म होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे-
1. मस्तिष्क की गतिविधियों में असामान्यता होना,
2. मस्तिष्क के रसायनों में असामान्यता,
3. जन्म से पहले बच्चे का विकास सही रूप से न हो पाना आदि।

आत्मविमोह का एक मजबूत आनुवंशिक आधार होता है, हालांकि आत्मविमोह की आनुवंशिकी जटिल है और यह स्पष्ट नहीं है कि ASD का कारण बहुजीन संवाद (multigene interactions) है या दुर्लभ उत्परिवर्तन (म्यूटेशन)। दुर्लभ मामलों में, आत्मविमोह को उन कारकों से भी जोडा गया है जो जन्म संबंधी दोषों के लिये उत्तरदायी है।

अन्य प्रस्तावित कारणों मे, बचपन के टीके, विवादास्पद हैं और इसके कोई वैज्ञानिक सबूत भी नहीं है। हाल की एक समीक्षा के अनुमान के मुताबिक प्रति 1000 लोगों के पीछे दो मामले आत्मविमोह के होते हैं, जबकि से संख्या ASD के लिये 6/1000 के करीब है। औसतन ASD का पुरुष:महिला अनुपात 4,3:1 है। 1980 से आत्मविमोह के मामलों में नाटकीय ढंग से वृद्धि हुई है जिसका एक कारण चिकित्सीय निदान के क्षेत्र में हुआ विकास है लेकिन क्या असल में ये मामले बढे़ है यह एक उनुत्तरित प्रश्न है।

आत्मविमोह मस्तिष्क के कई भागों को प्रभावित करता है, पर इसके कारणों को ढंग से नहीं समझा जाता। आमतौर पर माता पिता अपने बच्चे के जीवन के पहले दो वर्षों में ही इसके लक्षणों को भाँप लेते हैं।

शुरुआती संज्ञानात्मक या व्यवहारी हस्तक्षेप, बच्चों को स्वयं की देखभाल, सामाजिक और बातचीत कौशल के विकास में सहायता कर सकते हैं। इसका कोई इलाज नहीं है। बहुत कम आटिस्टिक बच्चे ही वयस्क होने पर आत्मनिर्भर होने में सफल हो पाते हैं। आजकल एक आत्मविमोही संस्कृति विकसित हो गयी है, जिसमे कुछ लोगों को इलाज पर विश्वास है और कुछ लोगों के लिये आत्मविमोह एक विकार होने के बजाय एक स्थिति है।



ऑटिज़्म के लक्षण

आत्मविमोह को एक लक्षण के बजाय एक विशिष्ट लक्षणों के समूह द्वारा बेहतर समझा जा सकता है। मुख्य लक्षणों में शामिल हैं सामाजिक संपर्क में असमर्थता, बातचीत करने में असमर्थता, सीमित शौक और दोहराव युक्त व्यवहार है। अन्य पहलुओं मे, जैसे खाने का अजीब तरीका हालाँकि आम है लेकिन निदान के लिए आवश्यक नहीं है।

सामाजिक विकास आत्मविमोह के शिकार मनुष्य सामाजिक व्यवहार में असमर्थ होने के साथ ही दूसरे लोगों के मंतव्यों को समझने में भी असमर्थ होते हैं इस कारण लोग अक्सर इन्हें गंभीरता से नहीं लेते।

सामाजिक असमर्थतायें बचपन से शुरु हो कर व्यस्क होने तक चलती हैं। ऑटिस्टिक बच्चे सामाजिक गतिविधियों के प्रति उदासीन होते है, वो लोगो की ओर ना देखते हैं, ना मुस्कुराते हैं और ज्यादातर अपना नाम पुकारे जाने पर भी सामान्य: कोई प्रतिक्रिया नहीं करते हैं। ऑटिस्टिक शिशुओं का व्यवहार तो और चौंकाने वाला होता है, वो आँख नहीं मिलाते हैं और अपनी बात कहने के लिये वो अक्सर दूसरे व्यक्ति का हाथ छूते और हिलाते हैं। तीन से पाँच साल के बच्चे आमतौर पर सामाजिक समझ नहीं प्रदर्शित करते है, बुलाने पर एकदम से प्रतिकिया नहीं देते, भावनाओं के प्रति असंवेदनशील, मूक व्यवहारी और दूसरों के साथ मुड़ जाते हैं। इसके बावजूद वो अपनी प्राथमिक देखभाल करने वाले व्यक्ति से जुडे होते है।

आत्मविमोह से ग्रसित बच्चे आम बच्चो के मुकाबले कम संलग्न सुरक्षा का प्रदर्शन करते हैं (जैसे आम बच्चे माता पिता की मौजूदगी में सुरक्षित महसूस करते हैं) यद्यपि यह लक्षण उच्च मस्तिष्क विकास वाले या जिनका ए एस डी कम होता है वाले बच्चों में गायब हो जाता है। ASD से ग्रसित बड़े बच्चे और व्यस्क चेहरों और भावनाओं को पहचानने के परीक्षण में बहुत बुरा प्रदर्शन करते हैं।

आम धारणा के विपरीत, आटिस्टिक बच्चे अकेले रहना पसंद नहीं करते। दोस्त बनाना और दोस्ती बनाए रखना आटिस्टिक बच्चे के लिये अक्सर मुश्किल साबित होता है। इनके लिये मित्रों की संख्या नहीं बल्कि दोस्ती की गुणवत्ता मायने रखती है। ASD से पीडित लोगों के गुस्से और हिंसा के बारे में काफी किस्से हैं लेकिन वैज्ञानिक अध्ययन बहुत कम हैं। यह सीमित आँकडे बताते हैं कि आत्मविमोह के शिकार मंद बुद्धि बच्चे ही अक्सर आक्रामक या उग्र होते है। डोमिनिक एट अल, ने 67 ASD से ग्रस्त बच्चों के माता-पिता का साक्षात्कार लिया और निष्कर्श निकाला कि, दो तिहाई बच्चों के जीवन में ऎसे दौर आते हैं जब उनका व्यवहार बहुत बुरा (नखरे वाला) हो जाता है जबकि एक तिहाई बच्चे आक्रामक हो जाते हैं, अक्सर भाषा को ठीक से न जानने वाले बच्चे नखरैल होते हैं।

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Wednesday, March 13, 2019

दृष्टि दोष के प्रकार

 दृष्टि दोष के प्रकार- 

अनेक प्रकार के दृष्टिदोषों का विवेचन करने से पहले सामान्य दृष्टि की सीमाओं को समझ लेना आवश्यक है। दृष्टि को तभी सामान्य कहा जाता है, जब दृष्टि के सभी पहलू सामान्य हों। यदि स्नेलेन (Snellen) परीक्षण टाइप पर छह मीटर पंक्ति को छह मीटर की दूरी से व्यक्ति पढ़ ले तो दूरदृष्टि सामान्य होती है। निकट दृष्टि की सामान्य सीमा जे१ (J1), जेगर (Jaiger) परीक्षण टाइप को पढ़ने की दूरी है। इन दो महत्वपूर्ण पहलुओं के अतिरिक्त वर्णदृष्टि, दृष्टि के परिधिस्थ और केंद्रीय क्षेत्र तथा अंधेरा अभ्यनुकूलन में कोई असामान्यता नहीं होनी चाहिए।

दृष्टिदोष के कारण अनेक हो सकते हैं, लेकिन कुछ कारण व्यापक हैं, अत: उनका विवेचन आवश्यक है। मोटे तौर पर दृष्टिदोष के कारणों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है : (१) क्रमिक उद्भव (gradual onset) के दृष्टिदोष और (२) अचानक उद्भव (sudden onset) के दृष्टिदोष।

1. क्रमिक उद्भव के दृष्टि दोष 

इस वर्ग में ऐसी स्थितियाँ समाविष्ट हैं, जिनका उद्भव यहाँ तक क्रमिक होता है कि व्यक्ति का ध्यान उसकी ओर जाता ही नहीं और महीनों, या कभी कभी बरसों, बाद दृष्टि का ह्रास होना स्पष्ट होता है। इसके प्रकारों का वर्णन निम्नलिखित है :


2. वर्तन दोष

आँखों की वह स्थिति है, जिसमें प्रकाश की समांतर किरणें दृष्टिपटल की संवेदनशील परत पर तब फोकस होती हैं जब आँखे विश्राम की स्थिति में रहती हैं। अधोलिखित स्थितियाँ विशेष महत्वपूर्ण हैं :


1.  निकट दृष्टि

(Myopia) या निकट दृष्टि वह है, जिसमें आँखों के विश्राम की स्थिति में प्रकाश की समांतर किरणें दृष्टिपटल की संवेदनशील परत के सामने फोकस होती हैं। निकट दृष्टि प्राय: अक्षीय होती है, अर्थात् इसका कारण आँख के अग्रपश्च (anteroposterior) व्यास में वृद्धि होती है। स्वच्छमंडल (cornea) की वक्रता, या लेंस के अग्र या पश्च पृष्ठ में वृद्धि के कारण भी यह दोष उत्पन्न हो सकता है। माध्यम का वर्तनांक (refractive index) भी वर्तन को प्रभावित कर सकता है। लेंस के वर्तनांक का व्यावहारिक महत्व सर्वाधिक है। लेंस के वल्क (cortex) के वर्तनांक में ह्रास या केंद्रक (nucleus) के वर्तनांक में वृद्धि होने से भी निकट दृष्टि हो सकती है। कुल मिलाकर निकट दृष्टि दो प्रकार की होती है - कायिक और रोगविज्ञान संबंधी।

कायिक दोष छह डायॉप्टर से कम और स्वभावत: अप्रगामी (nonprogressive) होता है। लेंसों से दोष में पूरा पूरा सुधार होता है। रोगविज्ञानात्मक निकट दृष्टि अपकर्षी (degenerative), प्रगामी और बहुत कुछ आनुवंशिक होती है। वर्तनदोष अंततोगत्वा १५ और २५ डायॉप्टर के मध्य रहता है। इसके बाद बुध्न में अपकर्षी परिवर्तन होने लगता है, जिससे दृष्टि का स्थायी ह्रास इस सीमा तक हो सकता है कि दृष्टिपटल के बिलगाव के कारण दृष्टि संपूर्ण रूप से नष्ट हो जाए। इस दोष को दूर करने के लिए अवतल लेंस का प्रयोग करते हैं।


2. दूर दृष्टि

दूरदृष्टि या (Hypermetropia) में आँख के विश्राम की स्थिति में, प्रकाश की समांतर किरणें दृष्टिपटल की संवेदनशील परत से कुछ पीछे फोकस होती हैं।
दूरदृष्टि प्राय: अक्षीय होती है, अर्थात् आँख के अग्रपश्च अक्ष का छोटा होना इसका निर्णायक कारण होता है। यह स्थिति व्यापक है और सामान्य विकास की एक अवस्था भी है। जन्म के समय सभी की आँख दूरदृष्टिक (hypermetreopic) होती है। शरीर के विकास के साथ साथ किशोरावस्था व्यतीत होते होते सिद्धांतत: आँखों को निर्दोषदृष्टिक हो जाना चाहिए, लेकिन कुछ व्यक्तियों की दूरदृष्टि बनी रह जाती है।
जब वर्तक पृष्ठों की वक्रता अनुचित रूप से कम होती है (वक्रतादूरदृष्टि), या केंद्रक का वर्तनांक निम्न होता है, तब सूचक दूरदृष्टि उत्पन्न होती है। इसमें बुध्न विशेष परिवर्तित नहीं होता और व्यक्ति की दूरदृष्टि और निकटदृष्टि, दोनों में विकर हो सकता है। यह स्थिति उपयुक्त उत्तल लेंसों से संपूर्ण रूप में सुधर जाती है। इसे दूर करने के लिए उत्तल लेंस का प्रयोग करते हैं।

3. अबिंदुकता

अबिंदुकता या (Astigmatism) वर्तन की ऐसी अवस्था है, जिसमें दृष्टिपटल पर प्रकाश का बिंदु-फोकस नहीं बन पाता। सिद्धांतत: कोई आँख बिंदवीय (stigmatic) नहीं होती। वक्रता की त्रुटि, संकेंद्रण (centering) या वर्तनांक की त्रुटि के कारण अबिंदुकता हो सकती है। यह स्थिति बिंबों को विकृत करके आँखों के तनाव के अनेक लक्षण उत्पन्न करती है। यह दोष नियमित या अनियमित दोनों हो सकता है। नियमित दोष को बेलन लेंस से और अनियमित को संस्पर्शी लेंस से ठीक किया जा सकता है। बेलनाकार लेंस द्वारा दूर किया जाता है।



4. वर्णांधता

इसे धूसरदृष्टि (Achromatopia) भी कहते हैं, यह जन्मजात या अर्जित दोनों प्रकार की हो सकती है।

जन्मजात वर्णांधता

जन्मजात वर्णाधता के दो प्रधान रूप हैं, संपूर्ण एवं आंशिक। संपूर्ण विरल है और प्राय: अक्षिदोलन (nystagmus) तथा केंद्रीय अंधक्षेत्र (scotoma) से सहचरित होता है। इसमें सभी रंग अलग अलग दीप्ति के धूसर जान पड़ते हैं। वर्णक्रम सामान्य अंधक्षेत्रीय वर्णक्रम के समान धूसर पट्टा जान पड़ता है। यह संभव है कि संपूर्ण वर्णांधता शंकुओं के दोषपूर्ण विकास या उनके संपूर्ण अभाव से हो।

आंशिक रूप का पता तभी लगता है जब इसका विशेष परीक्षण किया जाए, क्योंकि व्यक्ति छाया और बनावट पर गौर करके तथा अनुभव से कुछ हानिपूर्ति कर लेता है। घोर आंशिक रूप चार प्रतिशत पुरुषों और ०.४ प्रतिशत स्त्रियों में पाया जाता है, लेकिन हल्के रूप में यह केवल पुरुषों में व्यापक रूप से होता है। इस अवस्था को पुरुष स्त्रियों से अर्जित करते हैं। बहुतों को लाल और हरे रंग में भ्रम होता है। ऐसे लोग रेलवे में, वायु सेना में, या नौसेना में हों तो उनसे गंभीर खतरा होने की आशंका रहती है। लाल हरे के रोगी दो प्रकार के होते हैं : रक्तवर्णांध (protanopia) तथा हरितवर्णांध (Denteranopia)। रक्तवर्णाधता में लाल रंग का और हरित वर्णांधता में हरे रंग का बोध नहीं होता।
वर्णांधता परीक्षा के दो उद्देश्य हैं : (१) विकृतियों का सही स्वरूप जानना तथा (२) यह पता लगाना कि क्या रोग सचमुच समाज के लिए खतरनाक है? दोनों उद्देश्यों में किसी निष्कर्ष पर पहुँचने के पहले अनेक परीक्षण कर लेने चाहिए।


5. जराकालीन मोतियाबिंद

जराकालीन मोतियाबिंद या (Senile Cataract) नेत्र के लेंस या उसके संपुट (capsule) में विकास की अवस्था में उत्पन्न या अर्जित हर प्रकार की पारांधता है, जो निर्मित लेंस के रेशों के अपकर्षण (degeneration) से होती है। अपकर्षण का कारण अभी तक अस्पष्ट बना हुआ है। संभवत: भिन्न भिन्न व्यक्तियों को भिन्न भिन्न कारणों से अपकर्षण होता है। पानी और विद्युद्विश्लेष्य के अंत:कोशिक या बाह्यकोशिक संतुलन में बाधक, या रेशों के कलिल तंत्र को अव्यवस्थित करनेवाला कोई रासायनिक या भौतिक कारक, अपारदर्शिता उत्पन्न करता है।

जीवरसायन के अनुसार दो कारक इस प्रक्रिया में स्पष्ट हैं। पहला कारक, प्रारंभिक अवस्था में जलयोजन (hydration) है और दूसरा बाद की अवस्था में रेशों के अंदर स्थित कलिल तंत्र में परिवर्तन है। पहले प्रोटीनों का तत्वविकिरण (denaturization) होता है और बाद में ये घनीभूत (coagulated) हो जाते हैं।
मोतियाबिंद की तीन अवस्थाएँ होती हैं : अपरिपक्वता, परिपक्वता और अतिपक्वता। इन अवस्थाओं को व्यतीत होने में दो तीन वर्ष या अधिक समय लग सकता है। व्यक्ति दिन दिन दृष्टि के अधिकाधिक ह्रास की शिकायत करता है। व्यक्ति में एकनेत्री (uniocular), द्विदृष्टि (diplopia) या बहुभासी दृष्टि भी उत्पन्न हो सकती है और वह कृत्रिम प्रकाश के चतुर्दिक् रंगीन प्रभामंडल (halo) देखने लगता है।
मोतियाबिंद के निकाल देने और उपयुक्त लेंस के उपयोग से दृष्टि को इस स्थिति से मुक्त किया जा सकता है।


6. दीर्घकालिक साधारण ग्लॉकोमा

दीर्घकालिक साधारण ग्लॉकोमा या (Chronic Simple Glaucoma) ग्लॉकोमा लक्षणात्मक अवस्था है। यह कोई स्वतंत्र बीमारी नहीं है। इसका प्रमुख लक्षण अंतरक्षि (intraocular) दाब की वृद्धि है। नेत्रगोलक का सामान्य तनाव पारे के १८ मिमी. से २५ मिमी. तक हो सकता है और यह नेत्रगोलक के शरीर और शरीरक्रियात्मक (physiological) कर्मों को प्रभावित नहीं करता। अंतरक्षितनाव का कारण ठीक ठाक ज्ञात नहीं है, लेकिन संभवत: यह स्किलरोसिस (Sclerosis) तथा रंगद्रव्य (pigment) के परिवर्तनों से होता है, जो जलीय (aqueous) द्रव का प्रवाह कम कर देते हैं। तनाव बढ़ते रहने से ग्लॉकोमेटस कपिंग (glaucomatus cupping) और बाद में प्रकाश-अपक्षय (optic atrophy) होता है, जिससे रोगी की दृष्टि क्रमश: अधिकाधिक घटती जाती है। दृष्ट्ह्रािस को रोकने का एकमात्र उपाय यह है कि प्रारंभ में ही रोग का निदान करके शल्यचिकित्सा कर दी जाए।


7. प्रारंभिक दृष्टि अपक्षय

प्रकाशतंत्र दृष्टि आवेगों को पश्चकपाल खंड (occipital lobe) को, जो दृष्टि के लिए मस्तिष्क का उत्तरदायी भाग है, पारेषित करता है। चलन गतिभंग (Tabes dorsalis) और उन्मादियों के सिफिलिसमूलक साधारण पक्षाघात जैसी अवस्थाओं से उत्पन्न मृदुतानिका (pial) संक्रमण के फलस्वरूप परितंत्रिकार्ति (perineuritis) होती है, जिससे तंत्रिका के रेशों का अपकर्षण होता है। रोग का निदान प्रारंभ में ही हो जाना चाहिए, यद्यपि उपचार से पूर्व लक्षणों में सुधार संतोषजनक नहीं होता।


8. दीर्घकालिक प्रत्यगक्षि-गोलक-चेता-कोष (Chronic Retrobulbar neuritis)

इसे विषजन्य मंददृष्टि (Amblyopia) भी कहते हैं। इसके अंतर्गत अनेक अवस्थाएँ हैं। बहिर्जात (exogenous) विषों से, जिनमें तंबाकू, एथिल ऐलकोहल, मेथाइल ऐलकोहल, सीसा, संखिया, थैलियम, क्विनीन, अर्गट (ergot) पुं-पर्णांग (filix mas), कार्बन डाइ-सल्फाइड, स्ट्रैमोनियम (strammonium) तथा भाँग प्रमुख हैं, दृष्टितंत्रिका के रेशे क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। इनमें से कुछ विष प्रारंभ में दृष्टिपटलीय रोग उत्पन्न करते हैं, जिससे बाद में दृष्टिपटल की गुच्छिकाकोशिकाएँ (ganglion cells) विषाक्त होती हैं और तंत्रिका रेशों का अपकर्षण होता है, जिनका निरूपण सुषिरफलक (lamina cribrosa) के पीछे मंदावरण (medullary sheath) के बन जाने पर ही संभव है।
यह एक द्विपार्श्वीय स्थिति है, जो अंततोगत्वा प्रारंभिक अपक्षय का रूप धारण करती है। प्रारंभ में ही निदान कर लेना और विषैले अभिकर्ता की रोक ही इसका उपचार है।



9. दृष्टिपटल का प्रारंभिक रंगद्रव्यीय अपकर्षण

पहले इसका नाम रेटिनाइटिस पिगमेंटोज़ा था। यह दृष्टिपटल के मंद अपकर्षण का रोग है, जो प्राय: दोनों आँखों में होता है। इसका प्रारंभ शैशव में और समाप्ति प्रौढ़ या वृद्धावस्था में अंधेपन में होती है। यह रोग स्त्रियों से संप्रेषित होकर पुरुषों में फैलता है और प्रधानत: पुरुषों में ही पाया जाता है। अपकर्षण का प्रभाव प्रारंभ में दंडों और शंकुओं पर पड़ता है, खास कर दंडों पर। आँख के विषुव क्षेत्र के आस पास से प्रारंभ होकर यह क्रमश: अग्रत: और पश्चत: फैलता है। जब तक उपलक्षक केंद्रीय स्थिति में न हो जाए तब तक मैक्यूला प्रदेश बहुत समय तक प्रभावित नहीं होता है। ऐसी स्थिति में वाहिनियों में अस्थिकण जैसे पदार्थ फैल जाते हैं और बुध्न में वाहिका-स्क्लिरोसिस होता है। अंत में, स्थिति लगातार प्रकाश अपक्षय तक पहुँचती है।

प्रारंभिक अवस्था में व्यक्ति में दंडों के अपकर्षण से रतौंधी हो जाती है और बाद में पराकेंद्र या वलय अंधक्षेत्र (scotoma) बन जाता है। व्यक्ति अपनी दृष्टि दिन दिन अधिकाधिक दुर्बल पाता है और अंत में अंधा हो जाता है। इसका उपचार अत्यंत असंतोषजनक होता है।
रेटिनाइटिस पिंगमेंटोज़ा, साइन पिगमेंटो और रेटिनाटिस पंक्टेटा ऐलबिसीन्स (Retinitis Punctata Albiscenes) अन्य ऐसी स्थितियाँ हैं जिनका रोगेतिहास और लक्षण ऐसा ही होता है।

इन मुख्य अवस्थाओं के अतिरिक्त ट्रैकोमेटस कॉर्निआ अपारदृश्यता, जराकालीन मैक्यूला अपकर्षण आदि से भी दृष्टि का क्रमिक ह्रास हो सकता है।


10. तीव्र या आकस्मिक उद्भव के दृष्टि दोष

इसके अंतर्गत उन अवस्थाओं का अध्ययन होता है, जिनका उद्भव तीव्रता से या आकस्मिक रूप से होता है। कुछ अवस्थाओं में समुचित उपचार से सफलता मिलती है, लेकिन अन्य अवस्थाओं में दृष्टि की स्थायी हानि होती है। कुछ सामान्य अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं :


तीव्र संकुलन (congestive) ग्लॉकोमा

यह दोष ५०-६० वर्ष की वय की स्त्रियों को ही प्रधानत: होता है। इससे कम वय में भी यह हो सकता है। यह खासकर उन व्यक्तियों को होता है जो स्वभाव से उद्वेगी और सिंपैथिटिकोटोनिक (sympatheticotonic) होते हैं और बाहिकाप्रेरक (vasomotor) अभिक्रिया में अस्थिरता तथा अनुकंपी और परानुकंपी (parasympathetic) तंत्रों में संतुलन का अभाव प्रदर्शित करते हैं। यह अवस्था अंत में प्राय: दीर्घदृष्टि संकीर्ण कोण आँख में हो जाती है, अत: इसे संकीर्ण कोण ग्लॉकोमा या संवृत कोण (closed angle) ग्लॉकोमा भी कहते है। आँख संकुलित हो जाती है और बड़ी पीड़ा देती है। इसमें दोनों आँखें प्रभावित हो सकती हैं। प्रतिकार्बोनिक निर्जलीय औषधियाँ तथा शल्यचिकित्सा इसका उपचार है।


11. दृष्टिपथों में तीव्र प्रदाहस

दृष्टितंत्रिकाशीर्ष (Papillitis), दृष्टितंत्रिका का अंत:करोटि (intracranial), या आंतरकक्षीय (intraorbital), भाग या स्वस्तिका (chiasma) को प्रभावित करनेवाली अवस्थाएँ अकस्मात् दृष्टि को नष्ट कर देती है। प्राय: ये अवस्थाएँ अकस्मात् दृष्टि को नष्ट कर देती है। प्राय: ये अवस्थाएँ एक पार्श्वीय होती हैं और युवावस्था में होती हैं। इसका प्रारंभ केंद्रीय या पराकेंद्रीय अंधबिंदु (scotoma) से होता है। पैपिलाइटिस में बुध्न अक्षिबिंब पर मल (ordure) के चिन्ह प्रदर्शित करते हैं। इसके अतिरिक्त कोई और खास परिवर्तन नहीं होता। मधुमेह परानासविवर (paranasal sinusites), विकीर्णित स्क्लिरोसिस (disseminated sclerosis) तथा क्षतज संक्रमण (focal infections) जैसे रोग इसके ज्ञात कारण हैं। ऐसी परिस्थिति में पूर्वलक्षण अच्छे समझे जाते हैं।


12. काचाभ रक्तस्त्राव (Vitreous Haemorrhage)

यह वह अवस्था है, जिसमें नेत्रगोलक के पश्च खंड में रक्त भर जाने से अचानक दृष्टिह्रास होता है। इसके अनेक कारण हैं, जैसे ईलिस, हीमोफीलिस (haemophilis), रक्त दुरवस्था (blood dyscrasia), केद्रिय शिरा थ्राम्बोसिस (central veinous thrombosis), प्रवृद्ध अवस्था का रेटिनोपैथिक्स (Retinopathics), तीव्र रक्तक्षीणता तथा अन्य स्त्रवण (bleeding) की अवस्थाएँ। आघात संघट्टन (concussion) या वेधन (perforating) से भी तीव्र काचाभ रक्तस्त्राव संभव है। इन सभी अवस्थाओं में ईलिस रोग की स्थिति में विशेष सावधानी अपेक्षित है। अपेक्षित यह व्यापक रोग है, जो प्राय: ३० वर्ष के हृष्ट पुष्ट युवकों को हुआ करता है। इसकी हैतुकी (aetiology) अस्पष्ट है, लेकिन अनुमानत: क्षय और पूतिदूषण से होनेवाला पेरीफ्लेबिटिस (periphlebitis) इसका कारण समझा जाता है।
इसके प्रारंभिक दो तीन हमले खप जाते हैं, लेकिन इससे अधिक होने पर दृष्टि का स्थायी अभाव हो सकता है। उपचार के लिए क्षयावरोधी अथवा धनीभूत करनेवाली (coaguiant) दवाओं का प्राय: उपयोग किया जाता है।


13. दृष्टिपटल विलगन (Retinal Detachment)

दोनों दृष्टिपटलीय परतें (वास्तविक दृष्टिपटल और रंगद्रव्य उपकला) सामान्य अवस्था में परस्पर संनिधान (apposition) स्थिति में होती हैं और इनके बीच का सशक्त स्थान (potential space) प्रधान मौलिक स्फोटिका (original primary vesicle) को निरूपित करता है। इन परतों के अलग होने की घटना को दृष्टिपटल विलगन कहते हैं, जिसका कारण भी सरल है। मोटे तौर पर सरल और गौण विलगन ये दो प्रकार हैं। चाहे जिस कारण से क्यों न हो, रोगी को दृष्टि क्षेत्र के संगत भागों में दृष्टि के अचानक लोप का अनुभव हेता है। यदि इसका उपचार समय से न हो तो दृष्टि सदा के लिए नष्ट हो सकती है। दृष्टि की यह हानि अपक्षयमूलक परिवर्तनों की अपेक्षा कम होती है। औषधियों से उपचार कम लाभप्रद है, शल्यक्रिया से दृष्टि लौट सकती है।


दृष्टिपटल की रक्तवाहिकाओं का रोग

दृष्टिपटल तथा रंजित पटल (choroid) की रक्तवाहिकाओं से दृष्टिपटल की विभिन्न शिराओं का पोषण होता है। यदि किसी कारण से इन वाहिकाओं में रक्त का संचार रुक जाए तो दृष्टि का अचानक ह्रास हो जाता है। ऐंठन के शीघ्र शमित होते ही दृष्टि सामान्य स्थिति में लौट आती है। लेकिन दृष्टिपटलीय धमनियों के रक्तस्त्रोतरोधन (embolism) की अवस्था में समूची या किसी अंश की दृष्टि का स्थायी लोप संभव है। केंद्रीय शिरा थ्राम्बोसिस में दृष्टि का ह्रास वैसा अचानक नहीं होता जैसा ऐंठन (spasm) या रक्तस्त्रोतरोधन में होता है, लेकिन इसका भी अंतिम रूप उतना ही अवांछनीय होता है। इन अवस्थाओं से हृद्वाहिका तंत्र की सामान्य अवस्थाओं का पता लगता है।


14. हिस्टीरिया जन्य (Hysterical)

यह युवा स्त्रियों को प्रभावित करनेवाली क्रियात्मक अव्यवस्था है। यह प्राय: द्विपार्श्वीय होती है, लेकिन एकपार्श्वीय भी हो सकती है। इसमें प्राय: क्षेत्र का एककेंद्रीय संकुचन होता है, जिसमें सर्पिल आकुंचन विशिष्ट है। इसमें उपचार न करने से भी रोग हो सकता है, किंतु उसकी मानसिक स्थिति के प्रति सहानुभूति आवश्यक है।
इन विशेष अवस्थाओं के अतिरिक्त आघात (trauma), तीव्र रंग्यग्रकोप (Iridocyclitis), या रंजितपटल शोथ (choroiditis) भी दृष्टिह्रास की स्थिति उत्पन्न कर सकते हैं।

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Tuesday, March 12, 2019

दृश्य हानि के कारण

 दृश्य हानि के कारण-

2010 में विश्व स्तर पर दृश्य हानि के सबसे आम कारण थे:

1. अपवर्तक त्रुटि (42%)

2. मोतियाबिंद (33%)

3. ग्लूकोमा (2%)

4. उम्र से संबंधित धब्बेदार अध: पतन (1%)

5. कॉर्नियल ओपसीफिकेशन (1%)

6. मधुमेह संबंधी रेटिनोपैथी (1%)

7. बचपन का अंधापन

8. ट्रेकोमा (1%)

9. अनिर्धारित (18%)


2010 में अंधापन के सबसे आम कारण थे:

1. मोतियाबिंद (51%)

2. मोतियाबिंद (8%)

3. उम्र से संबंधित धब्बेदार अध: पतन (5%)

4. कॉर्नियल ओपसीफिकेशन (4%)

5. बचपन का अंधापन (4%)

6. अपवर्तक त्रुटियां (3%)

7. ट्रेकोमा (3%)

8. मधुमेह संबंधी रेटिनोपैथी (1%)

9. अनिर्धारित (21%)


लगभग 90% लोग जो दृष्टिबाधित हैं विकासशील देशों में रहते हैं । आयु से संबंधित धब्बेदार अध: पतन, ग्लूकोमा और मधुमेह संबंधी रेटिनोपैथी विकसित दुनिया में अंधेपन के प्रमुख कारण हैं।

कामकाजी उम्र के वयस्कों में जो 2010 में इंग्लैंड और वेल्स में सबसे ज्यादा अंधे थे, वे थे:

1. वंशानुगत रेटिना संबंधी विकार (20.2%)

2. मधुमेह संबंधी रेटिनोपैथी (14.4%)

3. ऑप्टिक शोष (14.1%)

4. ग्लूकोमा (5.9%)

5. जन्मजात असामान्यताएं (5.1%)

6. दृश्य प्रांतस्था के विकार (4.1%)

7. सेरेब्रोवास्कुलर रोग (3.2%)

8. मैक्युला और पीछे के ध्रुव की गिरावट (3.0%)

9. मायोपिया (2.8%)

10. कॉर्नियल विकार (2.6%)

11. मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र के घातक नवोप्लाज्म (1.5%)

12. रेटिना टुकड़ी (1.4%)



मोतियाबिंद 

इनमें से, मोतियाबिंद> 65%, या अंधापन के 22 मिलियन से अधिक मामलों के लिए जिम्मेदार है, और मोतियाबिंद 6 मिलियन मामलों के लिए जिम्मेदार है।

मोतियाबिंद : जन्मजात और बाल रोग विकृति है जो क्रिस्टलीय लेंस के ग्रेइंग या अस्पष्टता का वर्णन करता है, जो आमतौर पर अंतर्गर्भाशयी संक्रमण, चयापचय संबंधी विकार और आनुवंशिक रूप से संचरित सिंड्रोम के कारण होता है। मोतियाबिंद बच्चे और वयस्क अंधेपन का प्रमुख कारण है जो कि ४० वर्ष की उम्र के बाद हर दस साल में प्रचलन में दोगुना हो जाता है। नतीजतन, आज मोतियाबिंद बच्चों की तुलना में वयस्कों में अधिक आम है। यानी, लोगों को उम्र बढ़ने के साथ मोतियाबिंद होने की अधिक संभावना होती है। फिर भी, मोतियाबिंद बच्चों पर अधिक वित्तीय और भावनात्मक टोल होता है क्योंकि उन्हें महंगे निदान, दीर्घकालिक पुनर्वास और दृश्य सहायता से गुजरना पड़ता है। इसके अलावा, स्वास्थ्य विज्ञान के लिए सऊदी जर्नल के अनुसार, कभी-कभी रोगियों को पीडियाट्रिक मोतियाबिंद सर्जरी के बाद अपरिवर्तनीय एंब्लोपिया  का अनुभव होता है क्योंकि मोतियाबिंद ऑपरेशन से पहले दृष्टि की सामान्य परिपक्वता को रोकता है। उपचार में महान प्रगति के बावजूद, मोतियाबिंद आर्थिक रूप से विकसित और विकासशील दोनों देशों में एक वैश्विक समस्या है। र्तमान में, वैरिएंट परिणामों के साथ-साथ मोतियाबिंद सर्जरी तक असमान पहुंच, मोतियाबिंद के विकास के जोखिम को कम करने का सबसे अच्छा तरीका धूम्रपान और सूरज की रोशनी (यानी यूवी-बी किरणों) के व्यापक संपर्क से बचना है।


ग्लूकोमा 

ग्लूकोमा एक जन्मजात और बाल चिकित्सा आंख की बीमारी है जो आंख या इंट्राओकुलर दबाव (आईओपी) के भीतर बढ़े हुए दबाव की विशेषता है। ग्लूकोमा के कारण दृश्य क्षेत्र की हानि होती है और साथ ही ऑप्टिक तंत्रिका भी क्षतिग्रस्त हो जाती है। रोगियों में मोतियाबिंद का प्रारंभिक निदान और उपचार अत्यावश्यक है क्योंकि मोतियाबिंद आईओपी के गैर-विशिष्ट स्तरों से शुरू होता है। इसके अलावा, ग्लूकोमा का सटीक निदान करने में एक और चुनौती यह है कि इस बीमारी के चार कारण हैं: १) भड़काऊ ओकुलर हाइपरटेंशन सिंड्रोम (IOHS); 2) गंभीर यूवेइटिक कोण बंद करना; 3) कॉर्टिकोस्टेरॉइड-प्रेरित; और 4) संरचनात्मक परिवर्तन और पुरानी सूजन से जुड़ा एक विषम तंत्र। इसके अलावा, अक्सर बाल चिकित्सा मोतियाबिंद वयस्कों द्वारा विकसित मोतियाबिंद के कारण और प्रबंधन में बहुत भिन्न होता है। वर्तमान में, बाल चिकित्सा मोतियाबिंद का सबसे अच्छा संकेत २१ मिमी एचजी या एक बच्चे के भीतर मौजूद अधिक है। पीडियाट्रिक ग्लूकोमा के सबसे सामान्य कारणों में से एक मोतियाबिंद हटाने वाली सर्जरी है, जो शिशुओं में लगभग १२.२% और शिशुओं में ५ 58. among% के साथ १० साल के बच्चों में होती है।


संक्रमण 


ओन्कोसेरिएसिस का बोझ: अफ्रीका में अंधे वयस्कों का नेतृत्व करने वाले बच्चे

बचपन के अंधापन गर्भावस्था से संबंधित स्थितियों, जैसे जन्मजात रूबेला सिंड्रोम और प्रीमैच्योरिटी के रेटिनोपैथी के कारण हो सकते हैं । कुष्ठ और onchocerciasis प्रत्येक विकासशील दुनिया में लगभग 1 मिलियन व्यक्तियों को अंधा करता है।
ट्रेकोमा से अंधे हुए व्यक्तियों की संख्या पिछले 10 वर्षों में 6 मिलियन से घटकर 1.3 मिलियन हो गई है, इसे दुनिया भर में अंधापन के कारणों की सूची में सातवें स्थान पर रखा गया है।
सेंट्रल कॉर्नियल अल्सरेशन भी दुनिया भर में मोनोकुलर ब्लाइंडनेस का एक महत्वपूर्ण कारण है, अकेले भारतीय उपमहाद्वीप में हर साल कॉर्नियल ब्लाइंडनेस के अनुमानित 850,000 मामलों के लिए जिम्मेदार है। परिणामस्वरूप, सभी कारणों से कॉर्नियल स्कारिंग अब वैश्विक दृष्टिहीनता का चौथा सबसे बड़ा कारण है।


चोटें 


घायल को फिर से शिक्षित करना। प्रथम विश्व युद्ध में बास्केट बनाना सीख रहे ब्लाइंड फ्रांसीसी सैनिक।

आँख की चोटें, जो अक्सर 30 वर्ष से कम उम्र के लोगों में होती हैं, संयुक्त राज्य भर में एककोशिकीय अंधापन (एक आँख में दृष्टि हानि) का प्रमुख कारण है। चोट और मोतियाबिंद आंख को प्रभावित करते हैं, जबकि ऑप्टिक तंत्रिका हाइपोप्लासिया जैसी असामान्यताएं तंत्रिका बंडल को प्रभावित करती हैं जो आंख से मस्तिष्क के पीछे तक संकेत भेजती हैं, जिससे दृश्य तीक्ष्णता घट सकती है।
कॉर्टिकल अंधापन मस्तिष्क के ओसीसीपटल लोब की चोटों से उत्पन्न होता है जो मस्तिष्क को ऑप्टिक तंत्रिका से संकेतों को सही ढंग से प्राप्त करने या व्याख्या करने से रोकता है ।कॉर्टिकल ब्लाइंडनेस के लक्षण व्यक्तियों में बहुत भिन्न होते हैं और थकावट या तनाव की अवधि में अधिक गंभीर हो सकते हैं। कॉर्टिकल ब्लाइंडनेस वाले लोगों में दिन में बाद में खराब दृष्टि होना आम है।

अंधाधुंध का इस्तेमाल प्रतिशोध में और कुछ मामलों में यातना के रूप में किया गया है, एक व्यक्ति को एक प्रमुख अर्थ से वंचित करने के लिए जिससे वे दुनिया के भीतर नेविगेट या बातचीत कर सकते हैं, पूरी तरह से स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकते हैं, और उनके आसपास की घटनाओं के बारे में जागरूक हो सकते हैं। शास्त्रीय क्षेत्र का एक उदाहरण ओडिपस है , जो यह महसूस करने के बाद अपनी आँखें बाहर निकाल लेता है कि उसने उसके द्वारा की गई भयानक भविष्यवाणी को पूरा किया है। बुल्गारियाई को कुचलने के बाद, बीजान्टिन सम्राट बेसिल II ने युद्ध में लिए गए 15,000 कैदियों को रिहा करने से पहले अंधा कर दिया। [३porary]समकालीन उदाहरणों में अपघटन के रूप में एसिड फेंकनेजैसी विधियों को शामिल किया गया है।


आनुवंशिक दोष 

ऐल्बिनिज़म से पीड़ित लोगों को अक्सर दृष्टि हानि होती है कि कई लोग कानूनी रूप से अंधे हैं, हालांकि उनमें से कुछ वास्तव में नहीं देख सकते हैं। लेबर की जन्मजात अमाशय के कारण जन्म से या बचपन में दृष्टिहीनता या गंभीर दृष्टि हानि हो सकती है।

मानव जीनोम की मैपिंग में हालिया प्रगति ने कम दृष्टि या अंधापन के अन्य आनुवंशिक कारणों की पहचान की है।ऐसा ही एक उदाहरण बार्डेट-बिडल सिंड्रोम है ।


जहर का संपादन

शायद ही कभी, अंधेपन कुछ रसायनों के सेवन के कारण होता है। एक प्रसिद्ध उदाहरण मेथनॉल है , जो केवल हल्के से विषाक्त और कम से कम नशे में है, और पदार्थों में टूट जाता है फॉर्मेल्डिहाइड और फॉर्मिक एसिड जो बदले में अंधापन, अन्य स्वास्थ्य जटिलताओं का एक सरणी, और मौत का कारण बन सकता है। जब चयापचय के लिए इथेनॉल के साथ प्रतिस्पर्धा होती है, तो इथेनॉल को पहले चयापचय किया जाता है, और विषाक्तता की शुरुआत में देरी होती है। मेथनॉल आमतौर पर मिथाइलेटेड आत्माओं में पाया जाता है, जो एथिल अल्कोहल से होता है , मानव उपभोग के लिए इथेनॉल की बिक्री पर करों का भुगतान करने से बचने के लिए। मिथाइलेटेड आत्माओं को कभी-कभी शराबियों द्वारा नियमित इथेनॉल अल्कोहल पेय केलिए एक हताश और सस्ते विकल्प के रूप में उपयोग किया जाता है।


अन्य

एम्बीलोपिया : दृष्टि हानि या दृश्य हानि की एक श्रेणी है जो अपवर्तक त्रुटियों या सहवर्ती ओकुलर रोगों के असंबंधित कारकों के कारण होती है। एम्बीलोपिया वह स्थिति है जब बच्चे की दृश्य प्रणाली सामान्य रूप से परिपक्व नहीं हो पाती है क्योंकि बच्चा या तो समय से पहले जन्म, खसरा, जन्मजात न्युबेला सिंड्रोम, विटामिन ए की कमी या मेनिन्जाइटिस से पीड़ित होता है। यदि बचपन में अनुपचारित छोड़ दिया जाए, तो वर्तमान में एंबीलिया वयस्कता में लाइलाज है क्योंकि सर्जिकल उपचार प्रभावशीलता एक बच्चे के परिपक्व होने के रूप में बदल जाती है। तीजतन, एम्बीलोपिया दुनिया में बाल एककोशिकीय दृष्टि हानि का प्रमुख कारण है, जो एक आंख में दृष्टि की क्षति या हानि है। सबसे अच्छी स्थिति में, जो कि बहुत ही दुर्लभ है, ठीक से इलाज किया जाने वाला एंबीलिया के रोगी २०/४० तीक्ष्णता प्राप्त कर सकते हैं। 

दृश्य हानि [VI]

Visually handicapped [VI]

दृश्य हानि , जिसे दृष्टि बांधित या दृष्टि हानि के रूप में भी जाना जाता है, एक हद तक देखने की क्षमता कम होती है जो सामान्य साधनों जैसे चश्मे से ठीक न होने वाली समस्याओं का कारण बनती है। कुछ में वे भी शामिल हैं जिनकी देखने की क्षमता कम हो गई है क्योंकि उनके पास चश्मे या कॉन्टैक्ट लेंस तक पहुंच नहीं है। दृश्य दुर्बलता को अक्सर २०/४० या २०/६० की तुलना में बदतर की सबसे अच्छी सही
 दृश्य तीक्ष्णता के रूप में परिभाषित किया जाता है। अंधापन शब्द का प्रयोग पूर्ण या लगभग पूर्ण दृष्टि हानि के लिए किया जाता है। दृश्य दुर्बलता लोगों को सामान्य दैनिक गतिविधियों जैसे ड्राइविंग, पढ़ने, सामाजिककरण और चलने में कठिनाई का कारण बन सकती है।

दृष्टि क्षीणतासमानार्थक शब्ददृष्टि हानि, दृष्टि हानिएक सफेद बेंत , अंधेपन का अंतरराष्ट्रीय प्रतीकविशेषतानेत्र विज्ञानलक्षणदेखने की क्षमता में कमी कारणअचूक अपवर्तक त्रुटियां , मोतियाबिंद , ग्लूकोमा नैदानिक ​​विधिनेत्र परीक्षा इलाजदृष्टि पुनर्वास , पर्यावरण में परिवर्तन, सहायक उपकरण आवृत्ति940 मिलियन / 13% (2015) [4]

विश्व स्तर पर दृश्य हानि के सबसे सामान्य कारण हैं बिना सोचे- समझे त्रुटियां (43%), मोतियाबिंद (33%), और ग्लूकोमा (2%)। अपवर्तक त्रुटियों में दूरदर्शी , दूरदर्शी , प्रेस्बोपिया और दृष्टिवैषम्य शामिल हैं । मोतियाबिंद अंधापन का सबसे आम कारण है। अन्य विकार जो दृश्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं उनमें उम्र से संबंधित धब्बेदार अध: पतन , डायबिटिक रेटिनोपैथी , कॉर्नियल क्लाउडिंग , बचपन अंधापन और कई संक्रमण शामिल हैं । अन्य लोगों में स्ट्रोक , समय से पहले जन्म या आघात के कारण मस्तिष्क में दृश्य हानि भी हो सकती है। [Are] इन मामलों को कॉर्टिकल विज़ुअल इम्पेयरमेंट के रूप में जाना जाता है। [ For ] बच्चों में दृष्टि समस्याओं के लिए स्क्रीनिंग से भविष्य की दृष्टि और शैक्षिक उपलब्धि में सुधार हो सकता है। [ Adults ] बिना लक्षणों के स्क्रीनिंग वयस्कों को अनिश्चित लाभ होता है। निदान एक नेत्र परीक्षा द्वारा किया जाता है ।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का अनुमान है कि दृश्य हानि का 80% उपचार के साथ या तो रोके जाने योग्य या इलाज योग्य है। इसमें मोतियाबिंद, इन्फेक्शन रिवर ब्लाइंडनेस और ट्रेकोमा , ग्लूकोमा, डायबिटिक रेटिनोपैथी, अनियंत्रित अपवर्तक त्रुटियां और बचपन के अंधेपन के कुछ मामले शामिल हैं। दृष्टिदोष से पीड़ित कई लोगों को दृष्टि पुनर्वास , उनके वातावरण में बदलाव और सहायक उपकरणों से लाभ होता है।

2015 तक 940 मिलियन लोग कुछ हद तक दृष्टि हानि के साथ थे। २४६ मिलियन में दृष्टि कम थी और ३ ९ मिलियन अंधे थे। गरीब दृष्टि वाले अधिकांश लोग विकासशील दुनिया में हैं और ५० वर्ष से अधिक आयु के हैं। १ ९९ ० के दशक से दृश्य हानि की दर कम हुई है। दृश्य दोषों में उपचार की लागत के कारण प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से काम करने की क्षमता में कमी के कारण काफी आर्थिक लागत होती है।

दृश्य हानि के वर्गीकरण

दृश्य हानि की परिभाषा चश्मा या कॉन्टैक्ट लेंस द्वारा ठीक नहीं की गई दृष्टि कम हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन दृश्य हानि के निम्नलिखित वर्गीकरणों का उपयोग करता है। जब सबसे अच्छा संभव चश्मा सुधार के साथ बेहतर आंख में दृष्टि है:

1. 20/30 से 20/60: को हल्के दृष्टि हानि, या निकट-सामान्य दृष्टि माना जाता है

2. 20/70 से 20/160: मध्यम दृश्य हानि, या मध्यम कम दृष्टि माना जाता है

3. 20/200 से 20/400: को गंभीर दृश्य हानि या गंभीर कम दृष्टि माना जाता है

4. 20/500 से 20 / 1,000: गहरा दृश्य हानि, या गहरा कम दृष्टि माना जाता है

5. 20 / 1,000 से अधिक: को निकट दृष्टि दोष माना जाता है, या कुल अंधापन के पास

6. कोई प्रकाश धारणा नहीं: कुल दृश्य हानि या कुल अंधापन माना जाता है

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा दृष्टिहीनता को 20/500 से कम के सुधार या 10 डिग्री से कम के दृश्य क्षेत्र के साथ किसी व्यक्ति की सबसे अच्छी आंख में दृष्टि के रूप में परिभाषित किया गया है। यह परिभाषा १ ९ was२ में निर्धारित की गई थी, और इस बात पर चर्चा चल रही है कि क्या इसे आधिकारिक तौर पर बिना सोचे-समझे अपवर्तक त्रुटियों में शामिल किया जाना चाहिए