Saturday, August 31, 2019

माध्यमिक स्तर (IEDSS) पर विकलांगों के लिए समावेशी शिक्षा

माध्यमिक स्तर (IEDSS) पर विकलांगों के लिए समावेशी शिक्षा

The Scheme of Inclusive Education for Disabled at Secondary Stage (IEDSS) has been launched from the year 2009-10. This Scheme replaces the earlier scheme of Integrated Education for Disabled Children (IEDC) and provides assistance for the inclusive education of the disabled children in classes IX-XII.


माध्‍यमिक स्‍तर पर नि:शक्‍तजन की समावेशी शिक्षा

राष्ट्रीय माध्‍यमिक स्‍तर पर नि:शक्‍तजन समावेशी शिक्षा योजना (ईडीएसएस) वर्ष 2009-10 से प्रारम्‍भ की गई है। यह योजना नि:शक्‍त बच्‍चों के लिए एकीकृत योजना (आईईडीसी) संबंधी पहले की योजना के स्‍थान पर है और कक्षा IX-XII में पढने वाले नि:शक्‍त बच्‍चों की समावेशी शिक्षा के लिए सहायता प्रदान करती है। यह योजना अब वर्ष 2013 से राष्‍ट्रीय माध्‍यमिक शिक्षा अभियान (आरएमएसए) के अंतर्गत सम्मिलित कर ली गई है। राज्‍य/संघ राज्‍य क्षेत्र भी आरएमएसए के रूप में इसे आरएमएसए योजना के अंतर्गत सम्मिलित करने की प्रक्रिया में है।

उद्देश्‍य

सभी नि:शक्‍त छात्रों को आठ वर्षों की प्राथमिक स्‍कूली पढ़ाई पूरी करने के पश्‍चात आगे चार वर्षों की माध्‍यमिक स्‍कूली पढ़ाई समावेशी और सहायक माहौल में करने हेतु समर्थ बनाना।

लक्ष्‍य

योजना में नि:शक्‍त व्‍यक्ति अधिनियम (1995) और राष्‍ट्रीय न्‍यास अधिनियम (1999) के अंतर्गत कक्षा IX-XII में पढ़ने वाले यथा-परिभाषित एक या अधिक नि:शक्‍तता नामश: दृष्टिहीनता, कम दृष्टि, कुष्‍ठ रोग उपचारित, श्रवण शक्ति की कमी, गतिविषय नि:शक्‍तता, मंदबुद्धिता, मानसिक रूग्‍णता, आत्‍म-विमोह और प्रमस्तिष्‍क घात वाले जिसमें अंतत: वाणी की हानि अधिगम नि:शक्‍तता इत्‍यादि भी शामिल है। इसमें सरकारी, स्‍थानीय निकाय और सरकारी सहायता प्राप्‍त स्‍कूलों में पढ़ने वाले बच्‍चे शामिल है, नि:शक्‍तता वाली बालिकाओं पर विशेष ध्‍यान दिया जाता है जिससे उन्‍हें माध्‍यमिक स्‍कूलों में पढ़ने और अपनी योग्‍यता का विकास करने हेतु सूचना और मार्गदर्शन सुलभ हो। योजना के अंतर्गत हर राज्‍य में मॉडल समावेशी स्‍कूलों की स्‍थापना करने की कल्‍पना की गई है।

संघटक

छात्र अभिमुखी घटक जैसे चिकित्‍सा और शैक्षिक निर्धारण, पुस्‍तकें और लेखन सामग्री, वर्दियां, परिवहन भत्‍ता, रीडर पाठक भत्‍ता, बालिकाओं के लिए वृत्तिका, सहायक सेवाएं, सहायक युक्तियां, भोजन और आवास सुविधा, रोगोपचार सेवाएं, शिक्षण-अधिगम सामग्री इत्‍यादि।

अन्‍य संघटकों में विशेष शिक्षा शिक्षकों की नियुक्ति, ऐसे बच्‍चों को पढ़ाने हेतु सामान्‍य शिक्षकों के लिए भत्‍ते, शिक्षक प्रशिक्षण, स्‍कूल प्रशासकों का अभिविन्‍यास, संसाधन कक्ष की स्‍थापना, बाधायुक्‍त वातावरण इत्‍यादि शामिल हैं।
कार्यान्‍वयन अभिकरण

राज्‍य सरकारें/संघ राज्‍य क्षेत्र (यूटी) प्रशासन कार्यान्‍वयन अभिकरण हैं। इनमें नि:शक्‍तजनों की शिक्षा के क्षेत्र में योजना कार्यान्‍वयन का अनुभव रखने वाले स्‍वैच्छिक संगठन भी शामिल हो सकते हैं।

वित्‍तीय सहायता

योजना में शामिल सभी मदों के लिए केन्‍द्रीय सहायता 100 प्रतिशत आधार पर है। राज्‍य सरकारों से प्रतिवर्ष प्रति नि:शक्‍त बच्‍चे के लिए केवल 600/- रूपए की छात्रवृत्ति का प्रावधान रखना अपेक्षित है।



माध्यमिक स्तर पर विकलांगों के लिए समावेशी शिक्षा की योजना (IEDSS) 2009-10 के दौरान शुरू की और विकलांग बच्चों के लिए समेकित शिक्षा (IEDC) की पहले की योजना को बदल देता था। इस योजना का उद्देश्य प्राथमिक स्कूली शिक्षा के आठ साल पूरा करने के बाद, एक समावेशी और अनुकूल वातावरण में माध्यमिक शिक्षा के चार साल का पीछा करने के लिए विकलांग के साथ सभी छात्रों को सक्षम करने के लिए है। इस योजना के सभी बच्चों को सरकार में बारहवीं कक्षा नौवीं में पढ़ शामिल किया गया है, स्थानीय निकाय और एक या एक से अधिक विकलांग के साथ सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों, विकलांगता अधिनियम (1995) और राष्ट्रीय न्यास अधिनियम (1999) के साथ व्यक्तियों के तहत परिभाषित किया।

 विकलांग के प्रकार उन्हें हासिल करने में मदद करने के लिए विशेष ध्यान के साथ प्रदान की जाती हैं आदि विकलांग के साथ लड़कियों विकलांग सीखने, अंधापन, कम दृष्टि, ठीक कुष्ठ रोग, सुनवाई हानि, हरकत विकलांगता, मानसिक मंदता, मानसिक बीमारी, आत्मकेंद्रित और मस्तिष्क कुष्ठ रोग, भाषण हानि से लेकर उनके विकासशील क्षमता के लिए माध्यमिक शिक्षा, सूचना और मार्गदर्शन के लिए उपयोग। । इसके अलावा, योजना हर राज्य में मॉडल समावेशी स्कूलों की स्थापना करने की परिकल्पना की गई है लक्ष्य और उद्देश्य केन्द्र प्रायोजित IEDSS योजना का उद्देश्य: करने के लिए माध्यमिक स्कूल (कक्षा नौवीं के चार साल पूरा करने के लिए एक अवसर के लिए स्कूली शिक्षा के प्राथमिक के आठ साल पूरे विकलांग के साथ सभी छात्रों को सक्षम करें एक समावेशी और अनुकूल वातावरण में बारहवीं) माध्यमिक स्तर पर सामान्य शिक्षा प्रणाली में विकलांग (बारहवीं कक्षा नौवीं) के साथ छात्रों के लिए शिक्षा के अवसर और सुविधाएं प्रदान। में विकलांग बच्चों की जरूरतों को पूरा करनेके लिए सामान्य स्कूल के शिक्षकों के प्रशिक्षण समर्थन ।


माध्यमिक स्तर  योजना के उद्देश्यों को सुनिश्चित करना है कि हो जाएगा: । विकलांगता के साथ हर बच्चे को माध्यमिक स्तर पर पहचान की जाएगी और उनकी शिक्षा की जरूरत का आकलन एड्स और उपकरणों, सहायक उपकरणों की जरूरत में हर छात्र, एक ही प्रदान किया जाएगा वास्तु सभी विकलांगता के साथ छात्रों को स्कूल में कक्षाओं, प्रयोगशालाओं, पुस्तकालयों और शौचालय के लिए उपयोग किया है, ताकि स्कूलों में बाधाओं को हटा रहे हैं। विकलांगता के साथ प्रत्येक छात्र को सामग्री सीखने की आपूर्ति की जाएगी उसका / उसकी आवश्यकता के अनुसार माध्यमिक स्तर पर सभी सामान्य स्कूल के शिक्षकों को प्रदान किया जाएगा बुनियादी प्रशिक्षण तीन से पांच साल की अवधि के भीतर विकलांग छात्रों को पढ़ाने के लिए। विकलांग छात्रों के हर ब्लॉक में विशेष शिक्षकों की नियुक्ति, संसाधन उपलब्ध की स्थापना जैसी सेवाओं का समर्थन करने के लिए उपयोग होगा। मॉडल स्कूलों को विकसित करने के लिए हर राज्य में स्थापित कर रहे हैं समावेशी शिक्षा के क्षेत्र में अच्छा अनुकरणीय प्रथाओं।

सहायता के दो प्रमुख घटकों के लिए स्वीकार्य है इस तरह के चिकित्सा और शिक्षा मूल्यांकन, किताबें और स्टेशनरी, वर्दी, परिवहन भत्ता, पाठक भत्ता, लड़कियों के लिए वजीफा, समर्थन सेवाओं, सहायक उपकरणों, बोर्डिंग और के रूप में छात्र उन्मुख घटकों दर्ज कराने की सुविधा, चिकित्सीय सेवाओं, शिक्षण अधिगम सामग्री, आदि अन्य घटकों विशेष शिक्षा के शिक्षकों, आदि बाधा मुक्त वातावरण उपलब्ध कराने के ऐसे बच्चे, शिक्षक प्रशिक्षण, स्कूल प्रशासकों के उन्मुखीकरण, संसाधन कक्ष की स्थापना, शिक्षण सामान्य शिक्षकों के लिए भत्ते की नियुक्ति शामिल कार्यान्वयन एजेंसी किसी भी राज्य सरकार / संघ राज्य क्षेत्र (यूटी) प्रशासन के स्कूल शिक्षा विभाग के कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में कार्य करता है और 100 प्रतिशत केंद्रीय सहायता योजना में शामिल सभी मदों के लिए प्रदान की जाती है। विशेषाधिकार गैर सरकारी संगठनों, विकलांग की शिक्षा के क्षेत्र में अनुभव रखने वाले इस योजना को लागू करने में पूरी तरह से लागू करने वाली एजेंसी के साथ झूठ को शामिल करने के लिए। राज्य सरकारों केवल रुपये की छात्रवृत्ति के लिए प्रावधान करने के लिए आवश्यक हैं। प्रतिवर्ष विकलांग बच्चे के प्रति 600।



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Thursday, August 15, 2019

Case Study (व्यक्तिगत अध्ययन)

Case Study (व्यक्तिगत अध्ययन)


केस स्टडी के सोपान

किसी भी केस के संबंध में अध्ययन प्रारम्भ करने से पूर्व उस केस के सब पहलुओं की सूची बना लेनी चाहिए अर्थात् मुख्य -मुख्य क्षेत्र निर्धारित कर लेने चाहिए। फिर प्रत्येक क्षेत्र या पहलू से संबंधित समग्र जानकारी प्राप्त करने हेतु केस की विशेषता को ध्यान में रखकर पद्धतियों और उपकरणों का चयन करना चाहिए।

केस स्टडी के उद्देश्य

 1. विद्यार्थी स्वतंत्र होकर, स्वयं ही सृजनात्मक ढंग से समस्या पर विचार कर सकेंगें।
 2. वे समस्या समाधान (Problem based learning) पहुंचने में सक्रिय हो  सकेंगें।
 3. वे अपने पूर्व ज्ञान का प्रयोग करते हुए प्रमाणों को संग्रह कर सकेंगें।
 4. घटनाक्रम में नवीन तथ्यों को जान सकेंगे।
 5. स्वयं अपने अनुभव से सीखते हुए ज्ञान प्राप्त कर सकेंगें।
 6. व्यक्तिगत, सामाजिक संबंधों को उत्तम ढंग से स्थापित कर सकेंगे।
 7. छात्रों में अभिप्रेरण एवं अभिव्यक्ति की क्षमता में वृद्धि हो सकेगी।
 8. छात्रों की उपलब्धियों का मूल्यांकन हो सकेगा।



केस स्टडी की विशेषताएं- 

1. शिक्षण-अधिगम की समस्याओं का समाधान व्यक्तिगत रूप में किया जाता है।

2. व्यक्तिगत अध्ययन में लिखित कार्य को विशेष महत्व दिया जाता है। शिक्षक छात्र को सीखने के लिए परिस्थिति (विषयवस्तु) प्रदान करता है, जिसमें छात्र अभ्यास तथा अनुक्रिया करता है। सीखने के साथ-साथ मूल्यांकन भी किया जाता है। छात्र अपने कार्यों का स्वयं मूल्यांकन भी करता है।

3. व्यक्तिगत अध्ययन में प्रत्येक छात्र को अपने ढंग से सीखने का अवसर दिया जाता है। इस विशेषता को स्वयं गति का सिद्धान्त भी कहते है।

4. इसमें छात्र बहुआयामी माध्यमों से सीखता है। कुछ छात्र सुनकर, कुछ देखकर तथा कुछ करके अधिक सीखते है। कुछ छात्र पढ़कर तथा कुछ लिखकर अधिक सीखते है।

5. व्यक्तिगत अध्ययन में शिक्षक अधिक उत्तरदायी होता है क्योंकि उसे प्रत्येक छात्र को व्यक्तिगत रूप से सिखाना होता है।

6. इसके अंतर्गत प्रत्येक छात्र को उसकी कठिनाईयों को दूर करने का अवसर दिया जाता है। सीखते समय पुनर्बलन तथा निरन्तर अभिप्रेरणा दी जाती है।


केस स्टडी की उपयोगिता-

1. इससे छात्रों में अधिगम अधिक प्रभावशाली होता है। जिससे छात्रों में योग्यता तथा अध्ययन संबंधी अच्छी आदतों का विकास होता है।
2. इससे छात्रों में धारण शक्ति का विकास होता है क्योंकि जो तथ्य निकाले जाते है उन्हें छात्र स्वयं निकालता है।
3. इससे छात्रों के उपलब्धि स्तर में वृद्धि होती है जो अध्ययन के प्रति धनात्मक अभिवृत्ति का विकास करती है।

4. इससे छात्रों में अपेक्षित अभिवृत्तियों का विकास होता है।

5. विभिन्न मानसिक स्तर के छात्रों को उनके ढंग से सीखने का अवसर मिलता है।

6. बहुस्तरीय शिक्षण में भी सहायता मिलती है।


व्यक्तिगत अध्ययन छात्रों को एक सार्थक ज्ञान प्रदान करता है जिसका प्रयोग विभिन्न प्रकार के समाधान या अध्ययन के लिए किया जाता है। यह एक जटिल अधिगम का स्वरूप होता है। इसमें  सृजनात्मक चिन्तन निहित होता है और चिन्तन स्तर पर शिक्षण की व्यवस्था होती है।

 
         Case Study (व्यक्तिगत अध्ययन)

नाम      -  पार्वती गोस्वामी D/o दीवान गिरी
लिंग।    -   पुत्री,      जन्म तिथि - 25/03/1983
स्थिति   - MR/CP Daun Sandrom / paraplegia.
रोग       -   Maltipal disabilities
दृष्टि      -    Functionally Normal
श्रवण   -   Maniwal Hearing
श्रवण वाणी  - Uses on word Choog only
मानसिक स्थिति  - माइल्ड
पता      -  ग्राम - रॉल्याना  पोस्ट - मैगडी स्टेट
               जिला - बागेश्वर, उत्तराखंड 263635
एडिस  -   टॉयलेट की सही ब्यवस्था
व्यवहार -  शांत एम तीव्र  ऊतेजित
घर का वातावरण - साधारण
प्रसनल इंफॉर्मेशन - उम्र 33 वर्ष, काम सब कर लेती हैं। पाव टेरे व चपटे है। घिसकर चलती है, बोलने में भारी आवाज है, कान कम सुनती है। सारे कार्य स्वयं कर लेती हैं।
पता - उपरोक्त
विकास - जन्म से ही विकलांग है, जन्म के समय देर से रोई गामक विकास और शारीरिक विकास अक्षमता। गर्दन 8-9 माह और बैठना -12 माह, खड़ा होना 2साल, पूरा वाक्य बोलना 4-5साल

शिक्षा - आर्थिक स्थिति के कारण स्कूल नहीं गई
सिटिंग ग्रिड - घर पर सीढ़ियों में रेयलिंग व दरवाजे चोडे होने चाहिए

Aim of study - IQ leaval 50-70 सहायक उपकरणों की व्यवस्था करना भौतिक चिकत्सा व्यायाम चलने फिरने में कोई दिक्कत न हो इसलिए रैंप आदि की व्यवस्था। सामाजिक जारूकता, रोजगार के अवसर दिए जाने चाहिए। रूचि के अनुसार प्रशिक्षण देना तथा बाधामुक्त वातावण की व्यवस्था करना चाहिए। समाज में रहने खाने पीने के लिए जागरूक करना व सरकार द्वारा विकलांग पेंसिल व कार्ड बनवाना आदि।

Basic Goal - सहायक उपकरणों की व्यवस्था करना और उसके सभी कमजोरियों को दूर कर व्यावसायिक शिक्षा दिलाना।




Bariess - ऐसे बच्चों के लिए मैदान का साफ सुतरा होना आवश्यक होता है ताकि उसे चलने फिरने में कोई दिक्कत न हो।



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Monday, July 29, 2019

दृष्टि वांधित दिव्यांग जनों के लिए कंप्यूटर प्रशिक्षण

 कम्प्यूटर प्रशिक्षण

कम्प्यूटर प्रशिक्षण हमारे पाठ्यक्रम का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि यह अध्ययन का विषय भी है। नेत्रहीन विकलांग बच्चों को पढ़ाने के लिए हमारे पास दो तरह के कंप्यूटर लैब होने चाहिए जो नवीनतम कंप्यूटरों और सॉफ्टवेयर से लैस हो। हमारे पास जेडब्ल्यूएस, एनवीडीए और सुपर नोवा जैसे स्क्रीन पढ़ने के सॉफ्टवेयर होने चाहिए जिनकी मदद से हम अपने छात्रों को प्रशिक्षित करते हैं। हम कक्षा 2 के बाद के छात्रों को कंप्यूटर शिक्षा देने शुरू करते हैं। यह प्रशिक्षण वरिष्ठ माध्यमिक स्तर तक सही है। प्रशिक्षण बहुत ही योग्य और प्रशिक्षित कंप्यूटर प्रशिक्षकों द्वारा प्रदान किया जाता है।

आंखों से दिखाई नहीं देने के बाद भी दृष्टिबाधित दिव्यांग भी अब कंप्यूटर चला सकेंगे। सरकारी विभागों में पदस्थ दिव्यांगों को सबसे पहले कंप्यूटर चलाना सिखाया जाएगा। कलेक्टोरेट परिसर स्थित ई-दक्ष केंद्र में कंप्यूटर प्रशिक्षण दिया जाएगा। दृष्टिबाधित दिव्यांगों को कंप्यूटर सिखाने के लिए ई-दक्ष केंद्र के प्रशिक्षकों को भोपाल में विशेष ट्रेनिंग दी गई है।

श्योपुर सहित प्रदेश के सभी जिलों से प्रशिक्षकों को तीन दिन की ट्रेनिंग दी गई है। जिले से प्रशिक्षक हेमंत शर्मा को 5, 6 और 7 दिसंबर को इस संबंध में ट्रेनिंग दी गई है। भोपाल में तीन दिन की ट्रेनिंग में प्रशिक्षकों को बताया गया कि वे किस तरह दृष्टिबाधित दिव्यांगों को कंप्यूटर चलाना सिखाएंगे। एबीडीए (नॉन विजुअल डेस्कटॉप एक्सेस) सॉफ्टवेयर की मदद से दृष्टिबाधितों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। सॉफ्टवेयर में आवाज सुनकर काम कर सकेंगे। जिले के सरकारी विभाग में कितने दृष्टिबाधित दिव्यांग पदस्थ हैं, इसकी जानकारी जुटाई जाएगी। अाने वाले दिन में दृष्टिबाधित दिव्यांग छात्रों को भी इसी तरह कंप्यूटर पर काम करना सिखाया जा सकेगा।

दृष्टिबाधित दिव्यांगों को सबसे पहले की-बोर्ड सिखाया जाएगा। की-बोर्ड में मौजूद सारी की बताई जाएंगी। की पहचान लेने के बाद दिव्यांग एनवीडीए सॉफ्टवेयर की मदद से दृष्टिबाधित दिव्यांग के लिए कंप्यूटर पर काम करना बहुत ही आसान हो जाएगा।

कंप्यूटर में सबसे पहले एनवीडीए सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करना होगा। इसी की मदद से कंप्यूटर पर बिना देखे काम किया जा सकेगा। दृष्टिबाधित दिव्यांग गूगल पर हिंदी या अंग्रेजी दोनों ही भाषा में कुछ भी सर्च कर सकेंगे। कानों में हेड फोन की मदद से सर्च होने वाली विषय-वस्तु की आवाज सुनाई देगी। सॉफ्टवेयर में अंग्रेजी के अलावा हिंदी भाषा के लिए यूनिकोड भाषा जरूरी है। दूसरी भाषा जैसे चाणक्य, कृतिदेव व अन्य फाॅन्ट की भाषा सॉफ्टवेयर नहीं पढ़ पाएगा।

सॉफ्टवेयर ऐसे करेगा काम

कंप्यूटर में सॉफ्टवेयर ऑनलाइन डाउनलोड कर इंस्टॉल किया जाएगा। सॉफ्टेवयर में काम शुरू करते ही माउस का कर्जर जहां जाएगा, आवाज आना शुरू हो जाएगी। माई कंप्यूटर पर कर्जर पहुंचते ही आवाज सुनाई देगी। अन्य सॉफ्टवेयर या फोल्डर पर कर्जर पहुंचने पर आवाज आएगी। सिर्फ सुनकर ही कंप्यूटर चलाया जा सकेगा।


 सहायक सामग्री और सहायता-उपकरण

सहायक सामग्री एंव सहायक-उपकरण दिव्यांगजनों की गतिशीलता, संचार और उनकी दैनिक गतिविधियों में सहायता प्रदान करके उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने वाले उपकरण हैं। नि: शक्त व्यक्ति की जरूरतों को पूरा करने के लिए सहायक उपकरणों की एक विस्तृत श्रृंखला उपलब्ध है। इन सहायक उपकरणों के उपयोग से नि: शक्त व्यक्ति किसी पर आश्रित नहीं रहता और समाज में उसकी भागीदारी बढ़ती है।

सहायक सामग्री एंव सहायक-उपकरण  के कुछ उदाहरण नीचे दिए गए हैं:


  1. दैनिक जीवन के लिए सहायक उपकरणः दैनिक जीवन में इस्तेमाल किये जाने वाले यंत्रों में खाने, स्नान करने, खाना पकाने, ड्रेसिंग, टॉइलेटिंग, घर के रखरखाव आदि गतिविधियों में इस्तेमाल किये जाने वाले स्वयं सहायता यंत्रों को शामिल किया गया है। इन उपकरणों में संशोधित खाने के बर्तन, अनुकूलित किताबें, पेंसिल होल्डर, पेज टर्नर, ड्रेसिंग उपकरण और व्यक्तिगत स्वच्छता अनुकूलित उपकरण शामिल हैं।
  2. गतिशीलता उपकरण: दिव्यांगजनों को अपने आस-पास के स्थलों पर जाने के लिए सहायक उपकरण। इन उपकरणों में इलैक्ट्रिक या मैनुअल व्हीलचेयर, यात्रा के लिए वाहनों में संशोधन, स्कूटर, बैसाखी, बेंत और वॉकर शामिल हैं।
  3. घर/कार्यस्थल के लिए संशोधनः भौतिक बाधाओं को कम करने के लिए संरचनात्मक परिवर्तन जैसे - लिफ्ट रैंप, सुलभ बनाने के लिए बाथरूम में संशोधन, स्वत: दरवाजा खोलने का उपकरण और बड़े दरवाजे आदि।
  4. बैठने या खड़े होने की सुविधा के लिए उपकरण: अनुकूलित सिटिंग, तकिया, स्टैंडिंग टेबल, स्थापन बेल्ट, दिव्यांगजन की अवस्था को नियंत्रित करने के लिए ब्रेसिज़ और वैज, दैनिक कार्यों के लिए शरीर को सहायता प्रदान करने वाले उपकरणों की श्रृंखला।
  5. वैकल्पिक संचार और आगम संचार उपकरण (एएसी) - ये उपकरण  गूंगे या ऐसे दिव्यांगों की मदद करता हैं, जिनकी बातचीत करने के लिए आवाज मानक स्तर की नहीं है। इन उपकरणों में आवाज उत्पन्न करने वाले उपकरण और आवाज प्रवर्धन उपकरण शामिल हैं। नेत्रहीन व्यक्तियों के लिए, आवर्धक के रूप में उपकरण, ब्रेल या आवाज आउटपुट डिवाइस, लार्ज प्रिंट स्क्रीन और आवर्धक दस्तावेजों के लिए क्लोज सर्किट टेलीविजन आदि इस्तेमाल किए जाते हैं।
  6. प्रोस्थेटिक्स और ओर्थोटिक्स: कृत्रिम अंग या स्पलिंट्स या ब्रेसिज़ जैसे आर्थोटिक उपकरणों द्वारा शरीर के अंगों का रिप्लेसमेंट या वृद्धि। इसके अलावा मानसिक वरोध या कमी में सहायता के लिए ऑडियो टेप या पेजर (एस या अनुस्मारक के रूप में सहायता करते है) जैसे कृत्रिम उपकरण भी उपलब्ध हैं।
  7. वाहन संशोधन: अनुकूली ड्राइविंग उपकरण, हाथ द्वारा नियंत्रण, व्हीलचेयर और अन्य लिफ्ट, संशोधित वैन, या निजी परिवहन के लिए प्रयोग किए जाने वाले अन्य मोटर वाहन।
  8. दृष्टिहीन/बधिरों के लिए संवेदी उपकरण: आवर्धक, बड़े प्रिंट स्क्रीन, कान की मशीन, दृश्य सिस्टम, ब्रेल और आवाज/संचार आउटपुट उपकरण। 
  9. कंप्यूटर के उपयोग से संबंधित उपकरणः दिव्यांगजनों को कंप्यूटर का उपयोग करने में सक्षम करने के लिए हेडस्टिक, प्रकाश संकेतक, संशोधित या वैकल्पिक कीबोर्ड, दबाव से सक्रिय होने वाला स्विच, ध्वनि या आवाज से चलने वाले उपकरण, टच स्क्रीन, विशेष सॉफ्टवेयर और वाइस टू टेक्स्ट सॉफ्टवेयर। इस श्रेणी में आवाज की पहचान करने वाला सॉफ्टवेयर भी शामिल हैं।
  10. दिव्यांगजनों को सामाजिक/सांस्कृतिक कार्यक्रमों और खेलों में भाग लेने में सक्षम करने के लिए मनोरंजनात्मक उपकरणः दिव्यांगजनों को सामाजिक, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और खेलों में भाग लेने में सक्षम करने के लिए, फिल्मों के लिए ऑडियो डिवाइस, वीडियो गेम के लिए अनुकूली नियंत।
  11. नियंत्रण जैसे उपकरण।
वातावरण पर नियंत्रणः दिव्यांगजनों को विभिन्न उपकरणों को नियंत्रित करने में मदद करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियाँ, टेलीफोन के लिए स्विच, टीवी, या अन्य उपकरण जिन्हें दबाव, भौह या सांस द्वारा सक्रिय किया जा रहा हैं।
सहायक यंत्रों, उपकरणों और तकनीकों के उपयोग द्वारा दिव्यांगजनों के लिए स्वतंत्र या सहायता की संभावना का प्रदर्शन करने के लिए राष्ट्रीय न्यास द्वारा एएडीआई (राष्ट्रीय न्यास का पंजीकृत संगठन), नई दिल्ली में 'संभव' नाम से उपलब्ध सहायक उपकरणों के प्रदर्शन के लिए एक राष्ट्रीय संसाधन केंद्र की स्थापना की गई है।


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Thursday, July 25, 2019

सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility)

 सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility)


व्यक्तियों, परिवारों या अन्य श्रेणी के लोगों का समाज के एक वर्ग (strata) से दूसरे वर्ग में गति सामाजिक गतिशीलता कहलाती है। इस गति के परिणामस्वरूप उस समाज में उस व्यक्ति या परिवार की दूसरों के सापेक्ष सामाजिक स्थिति (स्टैटस) बदल जाता है।


परिचय

सामाजिक गतिशीलता से अभिप्राय व्यक्ति का एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचने से होता है। जब एक स्थान से व्यक्ति दूसरे स्थान को जाता है तो उसे हम साधारणतया आम बोलचाल की भाषा में गतिशील होने की क्रिया मानते हैं। परंतु इस प्रकार की गतिशीलता का कोई महत्व समाजशास्त्रीय अध्ययन में नहीं है। समाजशास्त्रीय अध्ययन में गतिशीलता से तात्पर्य एक सामाजिक व्यवस्था में एक स्थिति से दूसरे स्थिति को पा लेने से है जिसके फलस्वरूप इस स्तरीकृत सामाजिक व्यवस्था में गतिशील व्यक्ति का स्थान उँचा उठता है व नीचे चला जाता है। एक स्थान से उपर उठकर दूसरे स्थान को प्राप्त कर लेना, जो उससे उँचा है, निस्संदेह गतिशीलता है। सरल शब्दों में यह कहा जा सकता है कि समाजशास्त्र में सामाजिक गतिशीलता का अभिप्राय है किसी व्यक्ति, समूह या श्रेणी की प्रतिष्ठा में परिवर्तन।

प्रायः इस प्रकार की गतिशीलता का उल्लेख मोटे तौर पर व्यवसायिक क्षेत्र तथा समाजिक वर्ग में परिवर्तन से होता है। अक्सर सामाजिक गतिशीलता को इस समाज में मुक्त या पिछड़ेपन का द्योतक माना जाता है। सामाजिक गतिशीलता के अध्ययन में गतिशीलता की दरें, व व्यक्ति की नियुक्ति भी शामिल की जाती है। इस संदर्भ में एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी के सामाजिक संदर्भ के तहत परिवार के सदस्य का आदान-प्रदान या ऊँचा उठना व नीचे गिरना शामिल है। एस एम लिपसेट तथा आर बेंडिक्स का मानना था कि औद्योगिक समाज के स्वामित्व के लिए सामाजिक गतिशीलता आवश्यक है। जे एच गोल्ड थोर्प ने इंग्लैंड में सामाजिक गतिशीलता की चर्चा करते हुए इसके तीन महत्वपूर्ण विशेषताओं की बात की है-

(क) पिछले 50 साल में गतिशीलता के दर में ज्यादा वृद्धि हुई है।
(ख) मजदूर वर्ग की स्थिति में मध्यम तथा उच्च स्थिति में काफी परिवर्त्तन आया है।
(ग) उच्च स्थान तथा मध्यम स्तर पर गतिशीलता में ज्यादा लचीलापन देखने में आया है।


सामाजिक गतिशीलता के प्रकार

पी सोरोकिन ने सामाजिक गतिशीलता के निम्न दो प्रकार का उल्लेख किया है-

(क) क्षैतिज सामाजिक गतिशीलता (Horizontal Social Mobility)
(ख) लंबवत सामाजिक गतिशीलता (Vertical Social Mobility)
(अ) लंबवत उपरिमुखी गतिशीलता
(आ) लंबवत अधोमुखी गतिशीलता


क्षैतिज सामाजिक गतिशीलता

जब एक व्यक्ति का स्थानान्तरण एक ही स्तर पर एक समूह से दूसरे समूह में होता है तो उसे क्षैतिज सामाजिक गतिशीलता कहते है। इस प्रकार की गतिशीलता में व्यक्ति का पद वही रहता है केवल स्थान में परिवर्त्तन आता है। उदाहरण के लिए यह कहा जा सकता है कि सरकारी दफ्तरों में कई बार रूटिन तबादले होते हैं जिसमें एक शिक्षक जो एक शहर में पढ़ा रहे थे, उन्हें उस शहर से तबादला कर दूसरे शहर में भेज दिया जाता है। इसी प्रकार सेना में काम कर रहे जवान का भी एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा जाना बिना किसी पदोन्नति के एक रूटिन तबादला है।


लंबवत सामाजिक गतिशीलता

जब किसी व्यक्ति को एक पद से उपर या नीचे की स्थिति पर काम करने के लिए कहा जाता है तो वह लंबवत सामाजिक गतिशीलता कहलाती है। उदाहरण के लिए एक शिक्षक को पदोन्नति कर उसे प्रिसिंपल बना देना तथा एक सूबेदार को सेना में तरक्की देकर उसे कैप्टेन का पद देना लंबवत सामाजिक गतिशीलता के उदाहरण हैं। लंबवत सामाजिक गतिशीलता में अगर पद में उन्नति हो cसकती है तो पद में गिरावट भी देखी जा सकती है। उदाहरण के लिए कैप्टेन के पद से हटाकर वापस एक जवान को सूबेदार बना देना भी संभव है जो लंबवत सामाजिक गतिशीलता के उदाहरण माने जा सकते हैं। लंबवत सामाजिक गतिशीलता के दो उप प्रकार हैं-U J

लंबवत उपरिमुखी गतिशीलता

इस प्रकार की गतिशीलता लंबवत सामाजिक गतिशीलता का ही उप प्रकार है जहाँ एक ही दिशा में अर्थात पदोन्नती या तरक्की की स्थिति होती है। पदोन्नति के बाद एक स्कूल शिक्षक का प्रिंसिपल बनाया जाना तथा एक सेना के जवान का सूबेदार के पद से कैप्टन बनाया जाना लंबवत उपरिमुखी गतिशीलता के उदाहरण हैं।


 लंबवत अधोमुखी गतिशीलता

यह भी एक लंबवत सामाजिक गतिशीलता का उप-प्रकार है परंतु इसमें पदोन्नति के बजाय पद में गिरावट आती है। अगर एक प्रिंसिपल को शिक्षक पद पर काम करने के लिए कहा जाय और इसी प्रकार एक सेना के जवान को कैप्टेन से हटाकर हवलदार बना दिया जाये तो ये उदाहरण हैं लंबवत अधोमुखी गतिशीलता के।

इस प्रकार सामाजिक गतिशीलता ने मुख्य रूप से इन दो प्रकारों की चर्चा की गयी है। ब्रुम तथा सेल्जनीक ने प्रतिष्ठात्मक उपागम (Reputational approach) के द्वारा दोनों वस्तुनिष्ठ तथा आत्मनिष्ठ उपागम के विभिन्न पहलुओं पर सामाजिक स्थिति में परिवर्त्तन का अध्ययन किये जाने पर बल दिया है। उनका कहना था कि बहुत से समाजशास्त्रीय अध्ययनों में भी इसका वर्णन किया गया है। एक परिवार में भी पिता और पुत्र के बीच के व्यवसाय से संबंधित दोनों के पदों में अंतर पाये जाते हैं। अगर पुत्र का व्यवसायिक पद अपने पिता के अपेक्षाकृत ऊँचा हो जाता है और कालांतर में उस पुत्र के पुत्र का भी व्यवसायिक पद अपने पिता से ऊँचा हो जाये तो इस प्रकार के पदोन्नती को वंशानुगत गतिशीलता (Generational Mobility) कहा जा सकता है। इस प्रकार व्यवसायिक क्षेत्र में जो पदों में तरक्की आती है उसका अध्ययन कर उसके जीवन-वृत्ति में गतिशीलता (Career Mobility) का समाजशास्त्रीय अध्ययन प्रतिष्ठात्मक उपागम के आधार पर किया जा सकता है। यह बताना भी आसान हो जाता है कि एक परिवार की जीवनवृत्ति में गतिशीलता की दरें तथा उसकी दिशा किस तरफ रही है।

किंग्सले डेविस ने सामाजिक गतिशीलता के अध्ययन में जाति तथा वर्ग से संबंधित पदों में परिवर्त्तन का अध्ययन किया है। उनका मानना था कि जाति और वर्ग सामाजिक गतिशीलता के अध्ययन के दो महत्वपूर्ण उदाहरण हैं। जहाँ जाति में गतिशीलता नहीं होती है वहीं वर्ग में गतिशीलता पायी जाती है।

भारतीय संदर्भ में एम एन श्रीनिवास ने जाति में गतिशीलता का सांस्कृतिकरण (Sanskritisation) की अवधारणा के द्वारा विस्तार से अध्ययन किया है। उनका यह मानना था कि जाति मे सामाजिक स्थिति यों तो सभी की जन्म से निर्धारित होती है जो स्थायी होती है परंतु प्रतिष्ठात्मक उपागम के आधार पर कई निम्न जाति के लोग अपनी स्थिति को उपर उठाने के लिए कई तरीकों का इस्तेमाल करते हैं ताकि वे उच्च जाति के लोगों के समकक्ष आ सकें। इस प्रकार अपनी स्थिति को उपर उठाने की कोशिश अक्सर निम्न स्तरीय जाति के लोगों में पायी जाती है। उन्होंने यह पाया कि निम्न जाति के लोग अक्सर ऊँची जाति के लोगों के व्यवहार से तथा प्रचलित सांस्कृतिक नियमों के अनुसरण को अपनाकर अपनी स्थिति को उपर उठाना चाहते हैं। जिन जातियों में पहले उपनयन संस्कार का प्रचलन नहीं था वे इस संस्कार के द्वारा अपनी स्थिति को ऊँचा उठाना चाहते हैं। निम्न जाति के लोगों ने यह भी पाया कि उँची जाति के लोग कई धार्मिक अनुष्ठान के साथ-साथ निराभिष भोजन भी नहीं करते। निम्न जाति के लोगों ने अपने आप को उँची जाति के करीब लाने के लिए निरामिष भोजन को लाकर धार्मिक अनुष्ठानों को भी मानना शुरू कर दिया और इस प्रकार के कल्पित रूप से कर्मकांडों में बदलाव लाकर अपने आप को उँची जाति के समीप लाने का प्रयास शुरू किया। इस प्रक्रिया को एम एन श्रीनिवास ने 'संस्कृतिकरण' कहा है। परंतु कई अन्य समाजशास्त्रीयों ने यह माना है कि सांस्कृतिकरण के माध्यम से जाति के स्थान में कोई लंबवत गतिशीलता नहीं आती है बल्कि निम्न जाति को ऐसा लगता है कि उनकी प्रतिष्ठा में बदलाव आया है और संभवतः इसलिए अपनी प्रतिष्ठा में बदलाव लाने के विचार से अधिकांश निम्न जाति के लोग ही अपने व्यवहार में इस प्रकार का परिवर्त्तन लाने की कोशिश में लगे रहते हैं। निस्संदेह यह कहा जा सकता है कि सामाजिक गतिशीलता की धारणा से जाति में जो परिवर्त्तन आयें हैं उसमें शिक्षा, आय तथा पेशे में बदलाव का होना एक महत्वपूर्ण कारण है और इनका समाजशास्त्रीय अध्ययन कर सही स्थिति की पहचान करने में इस अवधारणा का योगदान काफी महत्वपूर्ण हैं।


सामाजिक गतिशीलता की परिभाषा:

i. बोगार्डस- ”सामाजिक पद में कोई भी परिवर्तन सामाजिक गतिशीलता है ।”

ii. फिचर- ”सामाजिक गतिशीलता व्यक्ति, समूह या श्रेणी के एक सामाजिक पद या स्तृत से दूसरे में गति करने को कहते हैं ।”

iii. हार्टन तथा हण्ट- ”सामाजिक गतिशीलता का तात्पर्य उच्च या निम्न सामाजिक प्रस्थितियों में गमन करना है ।”

iv. सोरोकिन- ”सामाजिक गतिशीलता से हमारा तात्पर्य सामाजिक समूहों तथा स्तरों के झुण्ड में एक सामाजिक पद से दूसरे सामाजिक पद में परिवर्तन होना है ।”

v. फेयरचाइल्ड- ”इन्होंने लोगों के एक सामाजिक समूह से दूसरे सामाजिक समूह में गमन को ही सामाजिक गतिशीलता कहा है


फिचर ने ऊर्ध्वगामी गतिशीलता के लिए निम्नांकित कारकों को उत्तरदायी माना है:

(a) अप्रवास:

अप्रवास के कारण बाहर से आने वाले व्यक्ति स्थानीय लोगों को ऊपर की ओर धकेल देते हैं । ग्रामीण लोग जब शहरों में व्यवसाय की खोज में आते हैं तो वहाँ निम्न स्थिति एवं व्यवसायों को ग्रहण कर लेते हैं । इसी प्रकार से शरणार्थी और बाहर से आने वाले लोग भी मूल निवासियों की तुलना में निम्न स्थिति को ग्रहण करने को तैयार हो जाते हैं इस प्रकार अप्रवास स्थानीय लोगों में ऊर्ध्वगामी गतिशीलता उत्पन्न करता है ।

(b) उच्च वर्ग में कम प्रजनन क्षमता:

सभी समाजों में उच्च वर्ग के लोगों की संख्या कम होती है तथा उनमें प्रजनन क्षमता भी कम होती है, इसलिए उसकी पूर्ति के लिए उनमें निम्न वर्ग के व्यक्ति समय-समय पर सम्मिलित होते रहते हैं । इससे उनकी सामाजिक स्थिति ऊँची उठ जाती है ।

(c) संघर्ष:

जब समाज में अपनी ही योग्यता एवं प्रयत्नों से बने व्यक्तियों एवं प्रतिस्पर्द्धा को महत्व दिया है तब भी ऊर्ध्वगामी गतिशीलता बढती है ।


(d) अवसर की उपलब्धि:

जब समाज में शिक्षा प्राप्त करने तथा व्यवसाय एवं कार्यों में योग्यता बढ़ने के अवसर उपलब्ध होते है तब भी लोग अपने गुणों, योग्यता और क्षमता वृद्धि करके ऊँचा उतने का प्रयास करते हैं ।

(e) समानता और विषमता के प्रतिमान:

यदि किसी समाज धर्म, प्रजाति आदि के आधार पर भेदभाव किया जाता है या आयु और लिंग के आधार पर असमानता पायी जाती है तब उसमें ऊर्ध्वगामी गतिशीलता की सम्भावना कम होती है लेकिन जब किसी समाज में निम्न वर्ग में वृद्धि होती है तो ऊर्ध्वगामी गतिशीलता की सम्भावना अधिक होती है क्योंकि यह वर्ग ऊँचा उठने के लिए संघर्ष एवं प्रतिस्पर्धा में भाग लेता है ।


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Wednesday, July 17, 2019

ऑक्यूपेशनल थेरेपी(OT)

Occupational therapy (OT)

ऑक्यूपेशनल थेरेपी के क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं दिन पर दिन बढ़ती जा रही हैं। आइए जानते हैं इस क्षेत्र के बारे में-
बदलती जीवनशैली और काम के सिलसिले में भागम भाग के चलते लोगों के स्वास्थ्य पर कई तरह के प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहे हैं, जिनमें शारीरिक व मानसिक अशक्तता प्रमुखता से शामिल हैं। इनसे निजात पाने के लिए उन्हें एक्सपर्ट की मदद लेनी पड़ रही है। संबंधित एक्सपर्ट विभिन्न विधियों से इलाज करते हुए उन्हें समस्या से मुक्ति दिलाते हैं। साथ ही उन्हें मानसिक रूप से भी मजबूत बनाते हैं। कई बार डॉंक्टर के देख लेने के बाद इनकी जरूरत पड़ती है तो कुछ मामले ऐसे भी हैं, जिनमें डॉंक्टर के देखने से पहले ही इनकी सेवा ली जाती है। खासकर मेडिकल और ट्रॉमा सेंटर इमरजेंसी व फ्रैक्चर मैनेजमेंट में तो इनकी विशेष जरूरत पड़ती है। यह पूरा ताना-बाना ऑक्यूपेशनल थेरेपी के अंतर्गत बुना जाता है। इससे जुड़े प्रोफेशनल्स को ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट नाम दिया गया है। इनका काम फिजियोथेरेपिस्ट से मिलता-जुलता है। यही कारण है कि मेडिकल व फिटनेस एरिया में इनकी भारी मांग है।

ऑक्यूपेशनल थेरेपी की जरूरत

ऑक्यूपेशनल थेरेपी का सीधा संबंध पैरामेडिकल से है। इसके अंतर्गत शारीरिक व विशेष मरीजों की अशक्तता का इलाज किया जाता है, जिसमें न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर, स्पाइनल कॉर्ड इंजरी के उपचार से लेकर अन्य कई तरह के शारीरिक व्यायाम कराए जाते हैं। कई बार मानसिक विकार आ जाने पर कागज-पेंसिल के सहारे मरीजों को समझाया जाता है। ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट मरीजों का पूरा रिकॉर्ड अपने पास रखते हैं। इसमें हर आयु-वर्ग के मरीज होते हैं। यह सबसे तेजी से उभरते मेडिसिन के क्षेत्रों में से एक है। इसमें शारीरिक व्यायाम अथवा उपकरणों के जरिए कई जटिल रोगों का इलाज किया जाता है। शारीरिक रूप से अशक्त होने या खिलाडियों में आर्थराइटिस व न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर आने पर ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट की मदद ली जाती है। यही कारण है कि प्रोफेशनल्स को ह्यूमन एनाटमी, हड्डियों की संरचना, मसल्स एवं नर्वस सिस्टम आदि की जानकारी रखनी पड़ती है।

 बारहवीं के बाद मिलेगा दाखिला

ऑक्यूपेशनल थेरेपी से संबंधित बैचलर, मास्टर और डिप्लोमा और डॉक्टरल कोर्स मौजूद हैं। यदि छात्र बैचलर कोर्स में प्रवेश लेना चाहता है तो उसका फिजिक्स, केमिस्ट्री व बायोलॉजी ग्रुप के साथ बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण होना  जरूरी है। बैचलर के बाद मास्टर और डॉंक्टरल प्रोग्राम में दाखिला मिल सकता है। कोर्स के बाद छह माह की इंटर्नशिप की व्यवस्था है। कई संस्थान अपने यहां प्रवेश देने के लिए प्रवेश परीक्षा का आयोजन कराते हैं, जिसमें सफल होने के बाद विभिन्न कोर्सों में दाखिला मिलता है, जबकि कई संस्थान मेरिट के आधार पर प्रवेश देते हैं।

कौन-कौन से हैं कोर्स

बीएससी इन ऑक्यूपेशनल थेरेपी (ऑनर्स)
बीएससी इन ऑक्यूपेशनल थेरेपी
बैचलर ऑफ ऑक्यूपेशनल थेरेपी
डिप्लोमा इन ऑक्यूपेशनल थेरेपी
एमएससी इन फिजिकल एंड ऑक्यूपेशनल थेरेपी
मास्टर ऑफ ऑक्यूपेशनल थेरेपी

कोर्स से जुड़ी जानकारी

इसमें छात्रों को थ्योरी व प्रैक्टिकल पर समान रूप से अपना फोकस रखना पड़ता है। कोर्स के दौरान ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट को कई क्लिनिकल व पैरा क्लिनिकल विषयों का अध्ययन करना होता है। इसमें मुख्य रूप से एनाटमी, फिजियोलॉजी, पैथोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री, मेडिसिन एवं सर्जरी (मुख्यत: डायग्नोस्टिक) आदि विषय शामिल हैं। इसके अलावा इन्हें ऑर्थपीडिक्स, प्लास्टिक सर्जरी, हैंड सर्जरी, रिमैटोलॉजी, साइकाइट्री आदि के बारे में भी थोड़ी-बहुत जानकारी दी जाती है।

 आवश्यक स्किल्स

यह एक ऐसा प्रोफेशन है, जिसमें छात्रों को संवेदनशील होने से लेकर वैज्ञानिक नजरिया तक अपनाना पड़ता है, क्योंकि इसमें उन्हें मरीजों के दुख को समझ कर उसके हिसाब से उपचार करने की जरूरत होती है। अच्छी कम्युनिकेशन स्किल, टीम वर्क, मेहनती, रिस्क उठाने और दबाव को झेलने जैसे गुण इस प्रोफेशन के लिए बहुत जरूरी हैं। अधिकांश काम मेडिकल उपकरणों के सहारे होता है, इसके लिए उनका ज्ञान बहुत जरूरी है।

सेलरी

ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट को काफी आकर्षक सेलरी मिलती है। कोर्स समाप्ति के बाद उन्हें शुरुआती दौर में 15-20 हजार रुपए प्रतिमाह आसानी से मिल जाते हैं, जबकि दो-तीन साल के अनुभव के बाद यह राशि 30-35 हजार रुपए तक पहुंच जाती है। प्राइवेट सेक्टर में सरकारी अस्पतालों की अपेक्षा ज्यादा सेलरी मिलती है। यदि ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट स्वतंत्र रूप से या अपना सेंटर खोल कर काम कर रहे हैं तो उनके लिए आमदनी की कोई निश्चित सीमा नहीं होती। वे 50 हजार से लेकर एक लाख रुपए प्रतिमाह तक कमा सकते हैं।

 रोजगार के पर्याप्त अवसर

रोजगार की दृष्टि से यह काफी विस्तृत क्षेत्र है। यदि छात्र ने गंभीरतापूर्वक कोर्स किया है तो रोजगार के लिए भटकना नहीं पड़ेगा। उसे सरकारी अथवा प्राइवेट अस्पताल में नौकरी मिल जाएगी। सबसे ज्यादा जॉब कम्युनिटी मेडिकल हेल्थ सेंटर, डिटेंशन सेंटर, हॉस्पिटल, पॉलीक्लिनिक, साइक्राइटिक इंस्टीटय़ूशन, रिहैबिलिटेशन सेंटर, स्पेशल स्कूल, स्पोर्ट्स टीम में सृजित होती हैं। एनजीओ भी इसके लिए एक अच्छा विकल्प साबित हो सकते हैं। इसमें एक-तिहाई थेरेपिस्ट पार्ट टाइम को तरजीह देते हैं। यदि वे किसी सेंटर अथवा संस्था से जुड़ कर काम नहीं करना चाहते तो स्वतंत्र रूप से काम करने के अलावा अपना सेंटर भी खोल सकते हैं।

फायदे एवं नुकसान
सेवा व समर्पण की भावना
हर दिन कुछ नया सीखने का अवसर
काम के बाद आत्मसंतुष्टि
घंटों काम करने से थकान की स्थिति
अपेक्षित सफलता न मिलने पर कष्ट
अपने काम के लिए नेटवर्किंग जरूरी

एक्सपर्ट व्यू
चुनौतियों के लिए तैयार रहना होगा छात्रों को

अन्य क्षेत्रों की भांति मेडिकल क्षेत्र भी तेजी से दौड़ रहा है। उसमें कदम-कदम पर रोजगार के अवसर भी सामने आ रहे हैं। कमोबेश यही स्थिति ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट के साथ है। आज युवाओं के लिए यह पसंदीदा क्षेत्र बन चुका है और हर साल इसमें छात्रों की भीड़ बढ़ती जा रही है। भले ही इस क्षेत्र में ढेरों विकल्प हैं, लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं हैं। कोर्स खत्म होने के बाद नौकरी तलाशने से लेकर अपनी यूनिट स्थापित करने तक में छात्रों की खुद की मेहनत रंग लाती है, इसलिए छात्र अपनी मंजिल खुद तय करें तो फायदेमंद होगा। इसमें थ्योरी व प्रैक्टिकल दोनों की समान जानकारी दी जाती है, क्योंकि दोनों का अपना महत्व है। जो चीजें क्लास में पढ़ाई जाती हैं, लैब में उन्हीं का प्रैक्टिकल कराया जाता है। इस पेशे से संबंधित तकनीक व उपकरण दिन-प्रतिदिन बदलते जा रहे हैं। बाजार में बने रहने के लिए छात्रों को उन नई तकनीकों व आधुनिक उपकरणों से अपडेट रहना होगा।     

- डॉ. वीपी सिंह (डायरेक्टर)
दिल्ली इंस्टीट्यूट ऑफ पैरामेडिकल साइंस, दिल्ली के अनुसार -

इन पदों पर मिलेगा काम
ऑक्यूपेशनल थेरेपी टेक्निशियन
कंसल्टेंट
ऑक्यूपेशनल थेरेपी नर्स
रिहैबिलिटेशन थेरेपी
असिस्टेंट
स्पीच एंड लैंग्वेज थेरेपिस्ट
स्कूल टीचर
लैब टेक्निशियन
मेडिकल रिकॉर्ड
टेक्निशियन
ओटी इंचार्ज



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Sunday, June 30, 2019

विश्व स्वास्थ्य संगठन'(WHO)

विश्व स्वास्थ्य संगठन
World Health Organisation


विश्व स्वास्थ्य संगठन'(WHO) विश्व के देशों के स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर आपसी सहयोग एवं मानक विकसित करने की संस्था है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के 193 सदस्य देश तथा दो संबद्ध सदस्य हैं। यह संयुक्त राष्ट्र संघ की एक अनुषांगिक इकाई है। इस संस्था की स्थापना 7 अप्रैल 1948 को की गयी थी। इसका उद्देश्य संसार के लोगो के स्वास्थ्य का स्तर ऊँचा करना है। डब्‍ल्‍यूएचओ का मुख्यालय स्विटजरलैंड के जेनेवा शहर में स्थित है। इथियोपिया के डॉक्टर टैड्रोस ऐडरेनॉम ग़ैबरेयेसस विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के नए महानिदेशक निर्वाचित हुए हैं।

वो डॉक्टर मार्गरेट चैन का स्थान लेंगे जो पाँच-पाँच साल के दो कार्यकाल यानी दस वर्षों तक काम करने के बाद इस पद से रिटायर हो रही हैं।

भारत भी विश्व स्वास्थ्‍य संगठन का एक सदस्य देश है और इसका भारतीय मुख्यालय भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित है।

मूल रूप से 23 जून 1851 को आयोजित अंतर्राष्ट्रीय स्वच्छता सम्मेलन, डब्ल्यूएचओ के पहले पूर्ववर्ती थे। 1851 से 1 9 38 तक चलने वाली 14 सम्मेलनों की एक श्रृंखला, अंतरराष्ट्रीय स्वच्छता सम्मेलनों ने कई बीमारियों, मुख्य रूप से कोलेरा, पीले बुखार, और ब्यूबोनिक प्लेग का मुकाबला करने के लिए काम किया। 18 9 2 में सातवें तक सम्मेलन काफी हद तक अप्रभावी थे; जब कोलेरा के साथ निपटाया गया एक अंतरराष्ट्रीय स्वच्छता सम्मेलन पारित किया गया था। पांच साल बाद, प्लेग के लिए एक सम्मेलन पर हस्ताक्षर किए गए। सम्मेलनों की सफलताओं के परिणामस्वरूप, पैन-अमेरिकन सेनेटरी ब्यूरो, और ऑफिस इंटरनेशनल डी हाइगेन पब्लिक को जल्द ही 1 9 02 और 1 9 07 में स्थापित किया गया था। जब 1 9 20 में लीग ऑफ नेशंस का गठन हुआ, तो उन्होंने लीग ऑफ नेशंस के हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की स्थापना की। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, संयुक्त राष्ट्र ने डब्ल्यूएचओ बनाने के लिए अन्य सभी स्वास्थ्य संगठनों को अवशोषित किया।


विश्व स्वास्थ्य दिवस


इस संस्था की स्थापना ७ अप्रैल १९४८ को की गयी थी। इसी लिए प्रत्येक साल ७ अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता हैं।

भारत भी विश्व स्वास्थ्‍य संगठन का एक सदस्य देश है और इसका भारतीय मुख्यालय भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित है।


विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (WHO)


भारत में उपस्थिति: नवम्‍बर 1949 से

परिचय: विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन, स्‍वास्‍थ्‍य के लिए संयुक्‍त राष्‍ट्र की विशेषज्ञ एजेंसी है। यह एक अंतर-सरकारी संगठन है जो आमतौर पर सदस्‍य देशों के स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालयों के जरिए उनके साथ मिलकर काम करता है। विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन दुनिया में स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी मामलों में नेतृत्‍व प्रदान करने, स्‍वास्‍थ्‍य अनुसंधान एजेंडा को आकार देने, नियम और मानक तय करने, प्रमाण आधारित नीतिगत विकल्‍प पेश करने, देशों को तकनीकी समर्थन प्रदान करने और स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी रुझानों की निगरानी और आकलन करने के लिए जिम्‍मेदार है। भारत के लिए विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के कंट्री कार्यालय का मुख्‍यालय दिल्‍ली में है और देश भर में उसकी उपस्थिति है। इस कार्यालय के कार्य क्षेत्र का वर्णन इसकी कंट्री को-ऑपरेशन स्‍ट्रेटजी (सीसीएस) 2012-2017 में दर्ज है।

स्‍थान: नई दिल्‍ली, भारत

फोकस के क्षेत्र: मातृ, नवजात, बाल एवं किशोर स्‍वास्‍थ्‍य, संचारी रोग नियंत्रण; असंचारी रोग एवं स्‍वास्‍थ्‍य के सामाजिक निर्धारक; सार्वभौम स्‍वास्‍थ्‍य सेवा प्रसार; सतत् विकास और स्‍वस्‍थ पर्यावरण; स्‍वास्‍थ्‍य तंत्रों का विकास, स्‍वास्‍थ्‍य सुरक्षा और आपातस्थितियां

नोडल मंत्रालय: स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय
इसका उद्देश्य संसार के लोगों के स्वास्थ्य का स्तर ऊँचा करना है। डब्‍ल्‍यूएचओ का मुख्यालय स्विटजरलैंड के जेनेवा शहर में स्थित है। भारत भी विश्व स्वास्थ्‍य संगठन का एक सदस्य देश है और इसका भारतीय मुख्यालय राजधानी दिल्ली में स्थित है।


स्थापना

डब्ल्यूएचओ के संविधान को 22 जुलाई, 1946 को स्वीकार किया गया और यह 7 अप्रैल, 1948 से लागू हो गया। 15 नवंबर, 1947 को विश्व स्वास्थ्य संगठन संयुक्त राष्ट्र का विशिष्ट अभिकरण बन गया। डब्ल्यूएचओ द्वारा जन-स्वास्थ्य के अंतरराष्ट्रीय कार्यालय के कार्यों तथा संयुक्त राष्ट्र राहत एवं पुनर्वास प्रशासन (यूएनआरआरए) की गतिविधियों को भी हाथ में ले लिया गया। 194 सदस्यों वाले विश्व स्वास्थ्य संगठन का मुख्यालय जेनेवा में स्थित है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के बारे में महत्‍वपूर्ण जानकारी – Important Information about the World Health Organization


1.विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन की स्‍थापना 7 अप्रैल, 1948 को हुई थी।

2. इसका मुख्‍यालय स्विटजरलैंड के जेनेवा शहर में है

3.भारत भी विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन का एक सदस्‍य देश है जिसका मुख्‍यालय भारत की राजधानी दिल्‍ली (Delhi) में स्थित है

4.विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के 194 सदस्‍य हैं

5.विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन ने अब तक दस प्रमुख जानलेवा बीमारियों की पहचान की है
जिनमें कैंसर, सेरिब्रोवैस्क्यूलर डिजीज, एक्यूट लोअर रेस्पायरेटरी इन्फेक्शन, पेरीनेटल कंडीशंस, टी.बी., कारोनरी हार्ट डिजीज, क्रॉनिक ऑबस्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज, अतिसार, डेसेन्टरी तथा एड्स या एचआईवी शामिल हैं

6.प्रत्‍येक वर्ष 7 अप्रैल के दिन को विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है

7. विश्व स्वास्थ्य संगठन को संविधान ने 22 जुलाई, 1946 को स्वीकार किया था

विश्व स्वास्थ्य दिवस का उद्देश्य एवं महत्व

आज के समय में हर व्यक्ति अच्छी सेहत की बात करता है और इसके प्रति काफी हद तक लोगों में जागरूकता भी आई हैl फिर भी हमारे सामने कई ऐसे मामले आते हैं जब हम यह सोचने पर विवश हो जाते हैं, कि क्या यही चिकित्सा जगत की उपलब्धि है?

आज भी अधिकांश व्यक्तियों के रोग का या तो समय पर पता नहीं चल पाता है या उसका सही तरह से उपचार नहीं हो पाता है, जिसके कारण हर साल पूरी दुनिया में करोड़ों लोगों की असमय ही मृत्यु हो जाती हैl अतः पूरी दुनिया में लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से विश्व स्वास्थ्य दिवस का आयोजन किया जाता हैl इस लेख में हम विश्व स्वास्थ्य दिवस के इतिहास, उसके थीम का विवरण दे रहे हैंl

विश्व स्वास्थ्य दिवस पूरी दुनिया के लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से आयोजित होने वाला “वैश्विक स्वास्थ्य जागृति दिवस” हैl इसका आयोजन विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के द्वारा हर वर्ष 7 अप्रैल को किया जाता हैl

विश्व क्षयरोग (TB) दिवस की महत्ता और क्षय रोग (TB) से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य

विश्व स्वास्थ्य दिवस की शुरूआत

वर्ष 1948 में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जेनेवा में प्रथम “विश्व स्वास्थ्य सम्मेलन” का आयोजन किया थाl इस सम्मलेन में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि हर वर्ष 7 अप्रैल को वैश्विक स्तर पर विश्व स्वास्थ्य दिवस का आयोजन किया जाएगाl चूंकि 7 अप्रैल, 1948 को विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना की गई थी, इसी कारण 7 अप्रैल को ही “विश्व स्वास्थ्य दिवस” के रूप में चुना गयाl विश्व स्वास्थ्य सम्मेलन में लिए गए निर्णय के अनुसार वर्ष 1950 से हर वर्ष 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस का आयोजन किया जाता हैl


विश्व स्वास्थ्य दिवस, विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा चिह्नित आठ आधिकारिक वैश्विक स्वास्थ्य अभियानों में से एक है, जिसमें “विश्व क्षयरोग दिवस” (World Tuberculosis Day), “विश्व प्रतिरक्षण सप्ताह” (World Immunization Week), “विश्व मलेरिया दिवस” (World Malaria Day), “विश्व तम्बाकू निषेध दिवस” (World No Tobacco Day), “विश्व एड्स दिवस” (World AIDS Day), “विश्व रक्तदाता दिवस” (World Blood Donor Day) और “विश्व हेपेटाइटिस दिवस” (World Hepatitis Day) शामिल है।


विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा द्वारा हर वर्ष विश्व स्वास्थ्य दिवस को एक थीम के तहत मनाया जाता हैl वर्ष 2017 के लिए विश्व स्वास्थ्य दिवस का थीम " अवसाद: चलो बात करते हैं" घोषित किया गया हैl

विगत पांच वर्षों में विश्व स्वास्थ्य दिवस का थीम

1. वर्ष 2016 के विश्व जल दिवस का थीम “मधुमेह: रोकथाम बढ़ाना, देखभाल को मजबूत करना और निगरानी बढ़ाना” थाl

2. वर्ष 2015 के विश्व जल दिवस का थीम “खाद्य सुरक्षा” थाl

3. वर्ष 2014 के विश्व जल दिवस का थीम “वेक्टरजनित रोग” थाl

4. वर्ष 2013 के विश्व जल दिवस का थीम “स्वस्थ दिल की धड़कन, स्वस्थ रक्तचाप” थाl

5. वर्ष 2012 के विश्व जल दिवस उत्सव का थीम “अच्छा स्वास्थ्य जीवन में और समय जोड़ देते हैं” थाl


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Friday, June 28, 2019

Children with special needs (CWSN)

विशेष आवश्यकता वाले बच्चे(CWSN)

नि:शक्‍तता : पहचान एवं निवारण

सामान्यत: नि:शक्‍तता एक ऐसी अवस्था है जिससे व्यक्ति शरीर के कुछ अंग न होने के कारण अथवा सभी अंगों के होते हुए भी उन अंगों का कार्य सही रूप से नहीं कर पाता - जैसे उँगलियाँ न होना, पोलियो से पैर ग्रस्त होना, आँख होते हुए भी अंधत्व के कारण दिखाई नहीं देना, कान में दोष होने के कारण सुनाई नहीं देना, बुद्धि कम होने के कारण पढ़ाई नहीं कर पाना अथवा बुद्धि होते हुए भी भावनाओं पर नियंत्रण न कर पाना आदि |


विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नि:शक्‍तता की परिभाषा को तीन चरणों में विभाजित किया है -

क्षति (Impairment)
व्यक्ति के स्वास्थ्य से संबन्धित ऐसी अवस्था जिसमें शरीर के किसी अंग की रचना अथवा कार्य में दोष/अकार्यक्षमता/दुर्बलता होना |

नि:शक्‍तता (Disability)
क्षति के कारण नि:शक्‍तता निर्मित होती हैं | अर्थात, संरचनात्मक अथवा कार्यात्मक क्षति लंबे समय तक रहकर व्यक्ति को उसके दैनिक क्रियाकलापों में रूकाबट बन जाती हैं | इस अवस्था को नि:शक्‍तता कहा जाता हैं |

बाधिता (Handicap)
नि:शक्‍तता के कारण बाधिता निर्मित होती हैं | यानि दैनिक क्रियाकलापों को पूरा करने के अकार्यक्षमता के कारण व्यक्ति को समाज की गतिविधियों और मुख्यधारा में सहभागिता से वंचित होना पड़ता हैं | अर्थात, व्यक्ति समाज द्वारा अपेक्षित भूमिका नहीं निभा पाता हैं | इस अवस्था को बाधिता कहते हैं ।


 विश्व स्वास्थ्य संगठन
world health organisation


विश्व स्वास्थ्य संगठन'(WHO) विश्व के देशों के स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर आपसी सहयोग एवं मानक विकसित करने की संस्था है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के 193 सदस्य देश तथा दो संबद्ध सदस्य हैं। यह संयुक्त राष्ट्र संघ की एक अनुषांगिक इकाई है। इस संस्था की स्थापना 7 अप्रैल 1948 को की गयी थी। इसका उद्देश्य संसार के लोगो के स्वास्थ्य का स्तर ऊँचा करना है। डब्‍ल्‍यूएचओ का मुख्यालय स्विटजरलैंड के जेनेवा शहर में स्थित है। इथियोपिया के डॉक्टर टैड्रोस ऐडरेनॉम ग़ैबरेयेसस विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के नए महानिदेशक निर्वाचित हुए हैं।

वो डॉक्टर मार्गरेट चैन का स्थान लेंगे जो पाँच-पाँच साल के दो कार्यकाल यानी दस वर्षों तक काम करने के बाद इस पद से रिटायर हो रही हैं।

भारत भी विश्व स्वास्थ्‍य संगठन का एक सदस्य देश है और इसका भारतीय मुख्यालय भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित है।

सन्दर्भ

मूल रूप से 23 जून 1851 को आयोजित अंतर्राष्ट्रीय स्वच्छता सम्मेलन, डब्ल्यूएचओ के पहले पूर्ववर्ती थे। 1851 से 1 9 38 तक चलने वाली 14 सम्मेलनों की एक श्रृंखला, अंतरराष्ट्रीय स्वच्छता सम्मेलनों ने कई बीमारियों, मुख्य रूप से कोलेरा, पीले बुखार, और ब्यूबोनिक प्लेग का मुकाबला करने के लिए काम किया। 18 9 2 में सातवें तक सम्मेलन काफी हद तक अप्रभावी थे; जब कोलेरा के साथ निपटाया गया एक अंतरराष्ट्रीय स्वच्छता सम्मेलन पारित किया गया था। पांच साल बाद, प्लेग के लिए एक सम्मेलन पर हस्ताक्षर किए गए।  सम्मेलनों की सफलताओं के परिणामस्वरूप, पैन-अमेरिकन सेनेटरी ब्यूरो, और ऑफिस इंटरनेशनल डी हाइगेन पब्लिक को जल्द ही 1 9 02 और 1 9 07 में स्थापित किया गया था। जब 1 9 20 में लीग ऑफ नेशंस का गठन हुआ, तो उन्होंने
लीग ऑफ नेशंस के हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की स्थापना की। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, संयुक्त राष्ट्र ने डब्ल्यूएचओ बनाने के लिए अन्य सभी स्वास्थ्य संगठनों को अवशोषित किया।



नि:शक्तता की परिभाषा


दिव्यांगजन के समग्र कल्याण हेतु भारत सरकार द्वारा दिव्यांग जन (समान अवसर, अधिकार, संरक्षण एवं पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 पारित किया गया है, जो 07 फरवरी, 1996 से जम्मू कश्मीर को छोड़कर सम्पूर्ण भारतवर्ष में प्रभावी है। इस अधिनियम के कुल 14 अध्याय एवं 74 धाराऍ हैं। इस अधिनियम की धारा-2 (न) में नि:शक्त (दिव्यांग) व्यक्ति की परिभाषा निम्नानुसार दी गयी है:-

नि: शक्त (दिव्यांग):
से ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत है, जो किसी चिकित्सा प्राधिकारी द्वारा यथाप्रमाणित किसी नि:शक्तता से कम से कम 40 प्रतिशत से ग्रस्त है। उक्त अधिनियम - 1995 की धारा-2 में नि:शक्तता (दिव्यांगता) की श्रेणियॉ एवं उनकी परिभाषायें निम्नानुसार दी गयी है:-

दृष्टिहीनता
उस अवस्था के प्रति निर्देश करता है जहॉ कोई व्यक्ति निम्नलिखित दशाओं में से किसी से ग्रसित है अर्थात-

दृष्टिगोचरता का पूर्ण अभाव या
सुधारक लेन्सों के साथ बेहतर ऑख में 6/60 या 20/200 स्नेलन से अनधिक दृष्टि की तीक्ष्णता या
दृष्टि क्षेत्र की सीमा का 20 डिग्री के कोण के कक्षांतरकारी होना या अधिक खराब होना।

कम दृष्टि वाला व्यक्ति
से अभिप्रेत है, ऐसा कोई व्यक्ति जिसके उपचार या मानक उपवर्धनीय सुधार संशोधन के बावजूद दृष्टिसंबंधी कृत्य का हास हो गया है और जो समुचित सहायक युक्ति से किसी कार्य की योजना या निष्पादन के लिए दृष्टि का उपयोग करता है या उपयोग करने में संभाव्य रूप से समर्थ है।

कुष्ठ रोग से मुक्त
से कोई ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जो कुष्ठ रोग से मुक्त हो गया है किन्तु निम्नलिखित से ग्रसित है:-

जिसके हाथ या पैरों में संवेदना की कमी तथा नेत्र और पलकों में संवेदना की कमी और आंशिक घात है किन्तु कोई प्रकट विरूपता नही है।

प्रकट निःशक्तताग्रस्त और आंशिक घात है किन्तु उसके हाथों और  पैरों में पर्याप्त गतिशीलता है जिससे वे सामान्य आर्थिक क्रिया कलाप कर सकते है।

अत्यन्त शारीरिक विरूपांगता और अधिक वृद्धावस्था से ग्रस्त है जो उन्हें कोई भी लाभपूर्ण उपजीविका चलाने से रोकती है और कुष्ठ रोग से मुक्त पद का अर्थ तदनुसार लगाया जायेगा।

श्रवण हा्स
से अभिप्रेत है संवाद संबंधी रेंज की आवृत्ति में बेहतर कर्ण में 60 डेसीबल या अधिक की हानि।

चलन क्रिया संबंधी नि:शक्तता
से हड्डियों, जोडों या मांसपेशियों की कोई ऐसी नि:शक्तता अभिप्रेत है जिससे अंगों की गति में पर्याप्त निर्बन्धन या किसी प्रकार का प्रमस्तिष्क अंगघात हो।

मानसिक मंदता
से किसी व्यक्ति के मस्तिष्क के अवरूद्ध या अपूर्ण विकास की अवस्था है जो विशेष रूप से सामान्य बुद्धिमत्ता की अवसामन्यता द्वारा प्रकट है, अभिप्रेत है।

मानसिक बीमार
से मानसिक मंदता से भिन्न कोई मानसिक विकास अभिप्रेत है।

निःशक्तता की उक्त श्रेणियों एवं परिभाषाओं के अनुसार दिव्यांग व्यक्तियों को निःशक्तता प्रमाण पत्र जारी करने हेतु उ0प्र0 नि:शक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) नियमावली, 2001 को सरलीकृत करते हुये उ0प्र0 नि:शक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) (प्रथम संशोधन) नियमावली 2014 शासन के अधिसूचना संख्या 519/65-3-2014-98 दिनांक 3.9.2014 द्वारा निर्गत की गयी है। उक्त संशोधित नियमावली के अनुसार सहज दृश्य निःशक्तता हेतु दिव्यांग प्रमाण पत्र प्रदेश के विभिन्न सामुदायिक चिकित्सा केन्द्रों एवं प्राथमिक चिकित्सा केन्द्रों, राजकीय चिकित्सालयों में कार्यरत चिकित्सा विभाग द्वारा नामित प्राधिकृत चिकित्सा अधिकारी द्वारा निर्गत किया जायेगा, जबकि ऐसी निःशक्तता जो सहज दृश्य न हो एवं उसके परिमाणमापन हेतु विशेषज्ञ चिकित्सक एवं उपकरण की आवश्यकता हो, के प्रकरण में दिव्यांग प्रमाण पत्र प्राधिकृत चिकित्सक की संस्तुति के आधार पर प्रत्येक जनपद में मुख्य चिकित्साधिकारी की अध्यक्षता में गठित चिकित्सा परिषद अथवा डा0 राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय लखनऊ के प्राधिकृत चिकित्सक द्वारा निर्गत किया जायेगा।


नि:शक्‍तता प्रमाण पत्र

नि:शक्‍तता की परिभाषा अनुसार किसी भी संवर्ग के 40 प्रतिशत या उससे अधिक नि:शक्‍तताधारी व्‍यक्ति को शासन की संचालित सुविधाओं का लाभ दिये जाने के लिए सर्वप्रथम नि:शक्‍तता प्रमाण पत्र प्रदान किये जाने के लिए प्रत्‍येक जिले में जिला मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया हैं। जिला मेडिकल बोर्ड द्वारा प्रत्‍येक माह के निर्धारित दिवसों में नि:शक्‍तता दर्शाते हुए 2 छाया चित्र (फोटो) मूल निवासी का प्रमाण पत्र एवं आवेदन पत्र के साथ हितग्राही को उपस्थित होने पर जिला चिकित्‍सा बोर्ड द्वारा चिकित्‍सा प्रमाण्‍ा पत्र जारी किया जाता हैं।

प्रकिया: नि:शक्‍तता प्रमाण पत्र के आधार पर ही शासन द्वारा संचालित योजनाओं के तहत निर्धारित मापदण्‍डों के अनुरूप लाभान्वित किया जाता हैं। अत: प्रथमत: नि:शक्‍त व्‍यक्ति को नि:शक्‍तता प्रमाण पत्र जिला चिकित्‍सा बोर्ड के माध्‍यम से तैयार कराया जाना आवश्‍यक हैं।

राज्‍य शासन द्वारा नि:शक्‍तजनों के समग्र पुनर्वास कार्यक्रम के तहत नवंबर 2006 में कराये गए एक दिवसीय हाउस होल्‍ड सर्वेक्षण के अनुसार प्रदेश मे कुल 7,71,082 नि:शक्‍तजन हैं जिनकी नि:शक्‍ततावार संख्‍या निम्‍नानुसार हैं:

क्रं. नि:शक्‍तता का प्रकार नि:शक्‍ततावार संख्‍या
1. चलन नि:शक्‍तता (अस्थिबाधित) 4,38,148
2. श्रवण शक्ति का ह्रास (श्रवण बाधित) 91,777
3. अंधता (द्वष्टि बाधित) 91,022
4. मानसिक मंदता 60,508
5. कम द्वष्टि 56,876
6. मानसिक रूग्‍णता 21,944
7. कुष्‍ठरोग मुक्‍त 10,807

जिलो से प्राप्‍त संकलित जानकारी के अनुसार दिनांक 27-12-2010 तक 6,24,761 नि:शक्‍तोंजनों को नि:शक्‍तता प्रमाण पत्र जारी किये जा चुके हैं तथा 1,49,350 नि:शक्तजनों को कृत्रिम अंग/सहायक उपकरण उपलब्ध कराये गए हैं।


समर्थकारी एकक के प्रमुख कार्य इस प्रकार होंगे:


  • इस प्रकार के पाठ्यक्रमों पर दिव्यांग विद्यार्थियों को काउंसलिंग प्रदान करना जिससे वे उच्चतर शिक्षा संस्थाओं में अध्ययन कर सकते हैं।



  • ओपन कोटे तथा साथ ही दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए आशयित कोटे के माध्यम से ऐसे विद्यार्थियों का यथासंभव प्रवेश सुनिश्चित करना।



  • दिव्यांग व्यक्तियों के लिए शुल्क में रियायत, परीक्षा प्रक्रियाओं, आरक्षण नीतियों आदि से संबंधित आदेशों को एकत्र करना।



  • दिव्यांग व्यक्तियों से संबंधित नीतियां आदि

  • उच्चतर शिक्षा संस्थानों में नामांकित दिव्यांग व्यक्तियों की शैक्षणिक आवश्यकताओं का आकलन करना ताकि अधिप्राप्त किए जाने वाले सहायक उपकरणों के प्रकारों का अवधारण किया जा सके।



  • संस्थानों के शिक्षकों के लिए शिक्षण, मूल्यांकन प्रक्रियाओं आदि के बारे में जागरूकता कार्यक्रम संचालित करना, जो उन्हें दिव्यांग विद्यार्थियों के मामले में सहायता प्रदान करेंगे।

  • दिव्यांगों की अभिवृत्तियों का अध्ययन करना तथा उन्हें उनके अध्ययन के उपरांत उनके द्वारा अपेक्षित होने पर उपयुक्त रोजगार हासिल करने में सहायता देना।



  • संस्थान में तथा साथ ही आस-पास के परिवेश में विकलांगता से संबंधित महत्वपूर्ण दिवसों का आयोजन करना जैसे विश्व विकलांगता दिवस, व्हाई केन डे, आदि ताकि भिन्न रूप से समर्थ व्यक्तियों की सक्षमताओं के बारे में जागरूकता का सृजन किया जा सके।



  • एचईपीएसएन योजना के अंतर्गत उच्चतर शिक्षा संस्थानों द्वारा खरीदे गए विशेष सहायक उपकरणों का समुचित अनुरक्षण सुनिश्चित करना तथा शिक्षण अनुभवों में संवृद्धि करने के लिए दिव्यांग व्यक्तियों को उनका प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना।



  • दिव्यांग व्यक्तियों के मामला इतिवृत्तों के साथ वार्षिक रिपोर्टें तैयार करना जो उच्चतर शिक्षा संस्थानों के लिए संस्थानों के लिए संस्वीकृत एचइपीएसएन योजना द्वारा लाभान्वित हुए हैं।



दिव्यांग व्यक्तियों को पहुँचप्रदान करना

यह महसूस किया गया है कि दिव्यांग व्यक्तियों को उनकी संचलनता और स्वतंत्र कार्यकरण के लिए परिवेश में विशेष व्यवस्थाओं की आवश्यकता होती है। यह भी सच है कि अनेक संस्थानों में ऐसे वास्तुकला संबंधी अवरोध होते हैं जोदिव्यांग व्यक्तियों के लिए उनके दैनिक कार्यकरण में बाधाएं उत्पन्न करते हैं। कॉलेजों से अपेक्षा की जाती है कि वे नि:शक्त व्यक्ति अधिनियम, 1995 की शर्तों के अनुसार अभिगम्यता संबंधी मुद्दों का निवारण करें तथा यह सुनिश्चित करें कि उनके परिसरों में सभी विद्यमान संरचनाएं तथा भावी निर्माण परियोजनाएं दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सुविधाजनक हों। संस्थानों को विशेष सुविधाओं का सृजन करना चाहिए जैसे रैम्प, रेल और विशेष शौचालय आदि, जो दिव्यांग व्यक्तियों की विशेष जरूरतों के अनुरूप हों। निर्माण योजनाओं द्वारा विकलांगता से संबंधित अभिगम्यता मुद्दों का स्पष्टत: निवारण किया जाना चाहिए। मुख्य नि:शक्तता आयुक्त के कार्यालय द्वारा अभिगम्यता पर दिशा-निर्देश निर्धारित किए गए हैं।

भिन्न रूप से समर्थ व्यक्तियों के लिए शिक्षा सेवाओं का संवर्धन करने के लिए विशेष उपकरण उपलब्ध कराना

दिव्यांग व्यक्तियों को उनके दैनिक कार्यकरण के लिए विशेष सहायताओं की आवश्यकता होती है। ये उपकरण सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की विभिन्न योजनाओं के माध्यम से उपलब्ध हैं। इस योजना के माध्यम से सहायक उपकरणों की अधिप्राप्ति के अतिरिक्त उच्चतर शिक्षा संस्थानों को विशेष शिक्षण और आकलन उपकरणों की आवश्यकता भी हो सकती है जिससे उच्चतर शिक्षा के लिए नामांकित छात्रों को सहायता दी जा सके। इसके अलावा, दृष्टिबाधित छात्रों को रीडरों की आवश्यकता भी होती है। उपकरणों जैसे स्क्रीन रीडिंग साफ्टवेयर के साथ कंप्यूटर, लो-विजन उपकरण, स्कैनर, संचलनता उपकरण आदि की संस्थान में उपलब्धता दिव्यांग व्यक्तियों के शैक्षणिक अनुभवों को भी समृद्ध करेगी। अत: कॉलेजों को ऐसे उपकरण अधिप्राप्त करने तथा दृष्टिबाधित छात्रों हेतु रीडर्स की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।



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