Friday, April 19, 2019

2. अर्थशास्त्र [Economics]

अर्थशास्त्र

अर्थशास्त्र सामाजिक विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण, विनिमय और उपभोग का अध्ययन किया जाता है। 'अर्थशास्त्र' शब्द संस्कृत शब्दों अर्थ (धन) और शास्त्र की संधि से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है - 'धन का अध्ययन'। किसी विषय के संबंध में मनुष्यों के कार्यो के क्रमबद्ध ज्ञान को उस विषय का शास्त्र कहते हैं, इसलिए अर्थशास्त्र में मनुष्यों के अर्थसंबंधी कायों का क्रमबद्ध ज्ञान होना आवश्यक है।

अर्थशास्त्र का प्रयोग यह समझने के लिये भी किया जाता है कि अर्थव्यवस्था किस तरह से कार्य करती है और समाज में विभिन्न वर्गों का आर्थिक सम्बन्ध कैसा है। अर्थशास्त्रीय विवेचना का प्रयोग समाज से सम्बन्धित विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे:- अपराध, शिक्षा, परिवार, स्वास्थ्य, कानून, राजनीति, धर्म, सामाजिक संस्थान और युद्ध इत्यदि।


प्रो. सैम्यूलसन के अनुसार,

अर्थशास्त्र कला समूह में प्राचीनतम तथा विज्ञान समूह में नवीनतम वस्तुतः सभी सामाजिक विज्ञानों की रानी है।

परिचय

ब्रिटिश अर्थशास्त्री अल्फ्रेड मार्शल ने इस विषय को परिभाषित करते हुए इसे ‘मनुष्य जाति के रोजमर्रा के जीवन का अध्ययन’ बताया है। मार्शल ने पाया था कि समाज में जो कुछ भी घट रहा है, उसके पीछे आर्थिक शक्तियां हुआ करती हैं। इसीलिए सामज को समझने और इसे बेहतर बनाने के लिए हमें इसके अर्थिक आधार को समझने की जरूरत है।

लियोनेल रोबिंसन के अनुसार आधुनिक अर्थशास्त्र की परिभाषा इस प्रकार है-

वह विज्ञान जो मानव स्वभाव का वैकल्पिक उपयोगों वाले सीमित साधनों और उनके प्रयोग के मध्य अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन करता है।

दुर्लभता (scarcity) का अर्थ है कि उपलब्ध संसाधन सभी मांगों और जरुरतों को पूरा करने में असमर्थ हैं। दुर्लभता और संसाधनों के वैकल्पिक उपयोगों के कारण ही अर्थशास्त्र की प्रासंगिकता है। अतएव यह विषय प्रेरकों और संसाधनों के प्रभाव में विकल्प का अध्ययन करता है।

अर्थशास्त्र में अर्थसंबंधी बातों की प्रधानता होना स्वाभाविक है। परंतु हमको यह न भूल जाना चाहिए कि ज्ञान का उद्देश्य अर्थ प्राप्त करना ही नहीं है, सत्य की खोज द्वारा विश्व के लिए कल्याण, सुख और शांति प्राप्त करना भी है। अर्थशास्त्र यह भी बतलाता है कि मनुष्यों के आर्थिक प्रयत्नों द्वारा विश्व में सुख और शांति कैसे प्राप्त हो सकती है। सब शास्त्रों के समान अर्थशास्त्र का उद्देश्य भी विश्वकल्याण है। अर्थशास्त्र का दृष्टिकोण अंतर्राष्ट्रीय है, यद्यपि उसमें व्यक्तिगत और राष्ट्रीय हितों का भी विवेचन रहता है। यह संभव है कि इस शास्त्र का अध्ययन कर कुछ व्यक्ति या राष्ट्र धनवान हो जाएँ और अधिक धनवान होने की चिंता में दूसरे व्यक्ति या राष्ट्रों का शोषण करने लगें, जिससे विश्व की शांति भंग हो जाए। परंतु उनके शोषण संबंधी ये सब कार्य अर्थशास्त्र के अनुरूप या उचित नहीं कहे जा सकते, क्योंकि अर्थशास्त्र तो उन्हीं कार्यों का समर्थन कर सकता है, जिसके द्वारा विश्वकल्याण की वृद्धि हो। इस विवेचन से स्पष्ट है कि अर्थशास्त्र की सरल परिभाषा इस प्रकार होनी चाहिए-अर्थशास्त्र में मुनष्यों के अर्थसंबंधी सब कार्यो का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है। उसका ध्येय विश्वकल्याण है और उसका दृष्टिकोण अंतर्राष्ट्रीय है।


परिभाषा

जिसमें धन सम्बंधित क्रियाओं का आध्ययन किया जाता है, अर्थशास्त्र कहलाता है। अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री का संकेत इसकी परिभाषा से मिलता है।

अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो मानव के स्वभाविक वैकल्पिक उपयोग करने वाले साधनो ओर उनके प्रयोग के मध्य सम्बन्ध का अध्ययन कराता हैं।


  • प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एडम स्मिथ ने 1776 में प्रकाशित अपनी पुस्तक (An enquiry into the Nature and the Causes of the Wealth of Nations ) में अर्थशास्त्र को धन का विज्ञान माना है।
  • डॉ॰ मार्शल ने 1890 में प्रकाशित अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र के सिद्धान्त (Principles of Economics) में अर्थशास्त्र की कल्याण सम्बन्धी परिभाषा देकर इसको लोकप्रिय बना दिया।
  • ब्रिटेन के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री लार्ड राबिन्स ने 1932 में प्रकाशित अपनी पुस्तक, ‘‘An Essay on the Nature and Significance of Economic Science’’ में अर्थशास्त्र को दुर्लभता का सिद्धान्त माना है। इस सम्बन्ध में उनका मत है कि मानवीय आवश्यकताएं असीमित है तथा उनको पूरा करने के साधन सीमित है।
  • आधुनिक अर्थशास्त्री सैम्यूल्सन (Samuelson) ने अर्थशास्त्र को विकास का शास्त्र (Science of Growth ) कहा है।
  • आधुनिक अर्थशास्त्री कपिल आर्य (Kapil Arya) ने अपनी पुस्तक "अर्थमेधा" में अर्थशास्त्र को सुख के साधनों का विज्ञान माना है |


अर्थशास्त्र का महत्व

अर्थशास्त्र का सैद्धान्तिक एवं व्यवहारिक महत्व है?


सैद्धान्तिक महत्व

  • ज्ञान में वृद्धि
  • सिद्धान्तों में वृद्धि करें
  • तर्कशक्ति में वृद्धि करें
  • विश्लेषण शक्ति में वृद्धि करें
  • अन्य शास्त्रों से सम्बन्ध का ज्ञान

व्यावहारिक महत्व
  •  उत्पादकों को लाभ,
  • श्रमिकों को लाभ,
  • उपभोक्ताओं को लाभ,
  • व्यापारियों को लाभ,
  • सरकार को लाभ,
  • समाजसुधारकों को लाभ,
  • राजनीतिज्ञों को लाभ,
  • प्रबन्धकों को लाभ ,
  • विद्यार्थियों को लाभ,
  • वैज्ञानिकों को लाभ।


अर्थशास्त्र के प्रमुख सिद्धान्त

अर्थशास्त्र, उपयोगिता की विद्या है। उपयोगिता के अन्तर्गत लोगों की प्राथमिकता (पसन्द), वस्तुओं से मिलने वाली संतुष्टि, वस्तुओं को लोगों द्वारा प्रदत्त महत्व आदि आते हैं। इच्छाएँ अनन्त हैं और इसके साथ यह भी सत्य है कि एक ही वस्तु की अधिकाधिक मात्रा मिलने पर लोगों को उससे क्रमश: न्यून-से-न्यूनतर लाभ या संतुष्टि मिलती है। (ह्रासमान उपयोगिता का नियम)

अर्थशास्त्र के कुछ प्रमुख नियम निम्नवत् हैं -

  • संसाधनों की कमी का नियम (Scarcity of resources)
  • मांग और पूर्ति का नियम (Law of demand and supply)
  • ह्रासमान उपयोगिता का नियम (Law of diminishing utilities)
  • श्रम विभाजन का नियम (Division of labour)
  • स्पर्धात्मक लाभ का नियम (Law of competitive advantages) - व्यापार सदा ही परस्पर लाभकारी होता है।
  • आर्थिक स्वतंत्रता का सिद्धान्त - आर्थिक स्वतंत्रता से ही सर्वाधिक सम्पन्नता मिल सकती है।



इतिहास

भारत में अर्थशास्त्र

अर्थशास्त्र बहुत प्राचीन विद्या है। चार उपवेद अति प्राचीन काल में बनाए गए थे। इन चारों उपवेदों में अर्थवेद भी एक उपवेद माना जाता है, परन्तु अब यह उपलब्ध नहीं है। विष्णुपुराण में भारत की प्राचीन तथा प्रधान 18 विद्याओं में अर्थशास्त्र भी परिगणित है। इस समय बार्हस्पत्य तथा कौटिलीय अर्थशास्त्र उपलब्ध हैं। अर्थशास्त्र के सर्वप्रथम आचार्य बृहस्पति थे। उनका अर्थशास्त्र सूत्रों के रूप में प्राप्त है, परन्तु उसमें अर्थशास्त्र सम्बन्धी सब बातों का समावेश नहीं है। कौटिल्य का अर्थशास्त्र ही एक ऐसा ग्रंथ है जो अर्थशास्त्र के विषय पर उपलब्ध क्रमबद्ध ग्रंथ है, इसलिए इसका महत्व सबसे अधिक है। आचार्य कौटिल्य, चाणक्य के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। ये चंद्रगुप्त मौर्य (321-297 ई.पू.) के महामंत्री थे। इनका ग्रंथ 'अर्थशास्त्र' पंडितों की राय में प्राय: 2,300 वर्ष पुराना है। आचार्य कौटिल्य के मतानुसार अर्थशास्त्र का क्षेत्र पृथ्वी को प्राप्त करने और उसकी रक्षा करने के उपायों का विचार करना है। उन्होंने अपने अर्थशास्त्र में ब्रह्मचर्य की दीक्षा से लेकर देशों की विजय करने की अनेक बातों का समावेश किया है। शहरों का बसाना, गुप्तचरों का प्रबन्ध, सेना की रचना, न्यायालयों की स्थापना, विवाह संबंधी नियम, दायभाग, शुत्रओं पर चढ़ाई के तरीके, किलाबंदी, संधियों के भेद, व्यूहरचना इत्यादि बातों का विस्ताररूप से विचार आचार्य कौटिल्य अपने ग्रंथ में करते हैं। प्रमाणत: इस ग्रंथ की कितनी ही बातें अर्थशास्त्र के आधुनिक काल में निर्दिष्ट क्षेत्र से बाहर की हैं। उसमें राजनीति, दंडनीति, समाजशास्त्र, नीतिशास्त्र इत्यादि विषयों पर भी विचार हुआ है।

भारतीय संस्कृति में चार पुरुषार्थों में अर्थ (धन-सम्पदा) भी सम्मिलित है। </nowiki>जैन धर्म में अपरिग्रह (बहुत अधिक धन संग्रह न करना) का उपदेश किया गया है। अनेक प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों में धन की प्रशंशा या निन्दा की गयी है। भर्तृहरि ने कहा है, 'सर्वे गुणा कांचनम् आश्रयन्ते' (सभी गुणों का आधार स्वर्ण ही है।)। चाणक्यसूत्र में कहा है-

सुखस्य मूलं धर्मः। धर्मस्य मूलं अर्थः। अर्थस्य मूलं राज्यं। राज्यस्य मूलं इन्द्रिय जयः। इन्द्रियजयस्य मूलं विनयः। विनयस्य मूलं वृद्धोपसेवा॥
सुख का मूल है, धर्म। धर्म का मूल है, अर्थ। अर्थ का मूल है, राज्य। राज्य का मूल है, इन्द्रियों पर विजय। इन्द्रियजय का मूल है, विनय। विनय का मूल है, वृद्धों की सेवा।


पाश्चात्य अर्थशास्त्र

अर्थशास्त्र का वर्तमान रूप में विकास पाश्चात्य देशों में (विशेषकर इंग्लैंड में) हुआ। ऐडम स्मिथ वर्तमान अर्थशास्त्र के जन्मदाता माने जाते हैं।[2] आपने 'राष्ट्रों की संपत्ति' (वेल्थ ऑफ नेशन्स) नामक ग्रंथ लिखा। यह सन्‌ 1776 ई. में प्रकाशित हुआ। इसमें उन्होंने यह बतलाया है कि प्रत्येक देश के अर्थशास्त्र का उद्देश्य उस देश की संपत्ति और शक्ति बढ़ाना है। उनके बाद माल्थस, रिकार्डो, मिल, जेवंस, काल मार्क्स, सिज़विक, मार्शल, वाकर, टासिग ओर राबिंस ने अर्थशास्त्र संबंधी विषयों पर सुंदर रचनाएँ कीं। परंतु अर्थशास्त्र को एक निश्चित रूप देने का श्रेय प्रोफ़ेसर मार्शल को प्राप्त है, यद्यपि प्रोफ़ेसर राबिंस का प्रोफ़ेसर मार्शल से अर्थशास्त्र के क्षेत्र के संबंध में मतभेद है। पाश्चात्य अर्थशास्त्रियों में अर्थशास्त्र के क्षेत्र के संबंध में तीन दल निश्चित रूप से दिखाई पड़ते हैं। पहला दल प्रोफेसर राबिंस का है जो अर्थशास्त्र को केवल विज्ञान मानकर यह स्वीकार नहीं करता कि अर्थशास्त्र में ऐसी बातों पर विचार किया जाए जिनके द्वारा आर्थिक सुधारों के लिए मार्गदर्शन हो। दूसरा दल प्रोफ़ेसर मार्शल, प्रोफ़ेसर पीगू इत्यादि का है, जो अर्थशास्त्र को विज्ञान मानते हुए भी यह स्वीकार करता है कि अर्थशास्त्र के अध्ययन का मुख्य विषय मनुष्य है और उसकी आर्थिक उन्नति के लिए जिन जिन बातों की आवश्यकता है, उन सबका विचार अर्थशास्त्र में किया जाना आवश्यक है। परंतु इस दल के अर्थशास्त्री राजीनीति से अर्थशास्त्र को अलग रखना चाहते हैं। तीसरा दल कार्ल मार्क्स के समान समाजवादियों का है, जो मनुष्य के श्रम को ही उत्पति का साधन मानता है और पूंजीपतियों तथा जमींदारों का नाश करके मजदूरों की उन्नति चाहता है। वह मजदूरों का राज भी चाहता है। तीनों दलों में अर्थशास्त्र के क्षेत्र के संबंध में बहुत मतभेद है। इसलिए इस प्रश्न पर विचार कर लेना आवश्यक है:


आधुनिक विश्व का आर्थिक इतिहास

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमरीका और सोवियत संघ में शीत युद्ध छिड गया। यह कोई युद्ध नहीं था परन्तु इससे विश्व दो भागों में बँट गया।

शीत युद्ध के दौरान अमरीका, इंग्लैंड, जर्मनी (पश्चिम), आस्ट्रेलिया, फ्रांस, कनाडा, स्पेन एक तरफ थे। ये सभी देश लोकतंत्रिक थे और यहाँ पर खुली अर्थव्यवस्था की नीति को अपनाया गया। लोगों को व्यापार करने की खुली छूट थी। शेयर बाजार में पैसा लगाने की छूट थी। इन देशों में बहुत सारी बडी-बडी कम्पनियाँ बनीं। इन कम्पनियों में नये-नये अनुसंधान हुए। विश्वविद्यालय, सूचना प्रौद्योगिकी, इंजिनीयरी उद्योग, बैंक आदि सभी क्षेत्रोँ में जमकर तरक्की हुई। ये सभी देश दूसरे देशोँ से व्यापार को बढावा देने की नीति को स्वीकारते थे। 1945 के बाद से इन सभी देशोँ ने खूब तरक्की की।

दूसरी तरफ रूस, चीन, म्यांमार, पूर्वी जर्मनी सहित कई और देश थे जहाँ पर समाजवाद की अर्थ नीति अपनायी गयी। यहाँ पर अधिकांश उद्योगों पर कड़ा सरकारी नियंत्रण होता था। उद्योगों से होने वाले लाभ पर सरकार का अधिकार रहता था। सामान्यतः ये देश दूसरे लोकतांत्रिक देशों के साथ बहुत कम व्यापार करते थे। इस तरह की अर्थ नीति के कारण यहां के उद्योगों में अधिक प्रतिस्पर्धा नहीं होती थी। आम लोगों को भी लाभ कमाने के लिये कोई प्रोत्साहन नहीं था। इन करणों से इन देशों में आर्थिक विकास बहुत कम हुआ।

3 अक्टूबर-1990 को पूर्व जर्मनी और पश्चिम जर्मनी का विलय हुआ। संयुक्त जर्मनी ने प्रगतिशीलत पश्चिमी जर्मनी की तरह खुली अर्थव्यवस्था और लोक्तंत्र को अपनाया। इसके बाद 1991 में सोवियत रूस का विखंडन हुआ और रूस सहित 15 देशों का जन्म हुआ। रूस ने भी समाजवाद को छोड़कर खुली अर्थ्व्यवस्था को अपनाया। चीन ने समाजवाद को पूरी तरह तो नहीं छोड़ा पर 1970 के अंत से उदार नीतियों को अपनाया और अगले 3 वर्षों में बहुत उन्नति की। चेकोस्लोवाकिआ भी समाजवादी देश था। 1-जनवरी-1993 को इसका चेक रिपब्लिक और स्लोवाकिया में विखंडन हुआ। इन देशों ने भी समाजवाद छोड़ के लोकतंत्र और खुली अर्थव्यवस्था को अपनाया।


मूल अवधारणाएँ

मूल्य की अवधारणा अर्थशास्त्र में केन्द्रीय है। इसको मापने का एक तरीका वस्तु का बाजार भाव है। एडम स्मिथ ने श्रम को मूल्य के मुख्य श्रोत के रूप में परिभाषित किया। "मूल्य के श्रम सिद्धान्त" को कार्ल मार्क्स सहित कई अर्थशास्त्रियों ने प्रतिपादित किया है। इस सिद्धान्त के अनुसार किसी सेवा या वस्तु का मूल्य उसके उत्पादन में प्रयुक्त श्रम के बराबर होत है। अधिकांश लोगों का मानना है कि इसका मूल्य वस्तु के दाम निर्धारित करता है। दाम का यह श्रम सिद्धान्त "मूल्य के उत्पादन लागत सिद्धान्त" से निकटता से जुड़ा हुआ है।


 मांग और आपूर्ति

अलग-अलग मूल्य पर माँग और आपूर्ति ; जिस मूल्य पर माँग और आपूर्ति समान होते हैं वह संतुलन बिन्दु कहलाता है।
मांग आपूर्ति की सहायता से पूर्णतः प्रतिस्पर्धी बाजार में बेचे गये वस्तुओं कीमत और मात्रा की विवेचना, व्याख्या और पुर्वानुमान लगाया जाता है। यह अर्थशास्त्र के सबसे मुलभूत प्रारुपों में से एक है। क्रमश: बड़े सिद्धान्तों और प्रारूपों के विकास के लिए इसका विशद रूप से प्रयोग होता है।

माँग, किसी नियत अवधि में किसी उत्पाद की वह मात्रा है, जिसे नियत दाम पर उपभोक्ता खरीदना चाहता है और खरीदने में सक्षम है। माँग को सामान्यतः एक तालिका या ग्राफ़ के रूप में प्रदर्शित करते हैं जिसमें कीमत और इच्छित मात्रा का संबन्ध दिखाया जाता है।

आपूर्ति वस्तु की वह मात्रा है जिसे नियत समय में दिये गये दाम पर उत्पादक या विक्रेता बाजार में बेचने के लिए तैयार है। आपूर्ति को सामान्यतः एक तालिका या ग्राफ़ के रूप में प्रदर्शित करते हैं जिसमें कीमत और आपूर्ति की मात्रा का संबन्ध दिखाया जाता है।


अर्थशास्त्र का क्षेत्र

प्रो॰ राबिंस के अनुसार अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो मनुष्य के उन कार्यों का अध्ययन करता है जो इच्छित वस्तु और उसके परिमित साधनों के रूप में उपस्थित होते हैं, जिनका उपयोग वैकल्पिक या कम से कम दो प्रकार से किया जाता है। अर्थशास्त्र की इस परिभाषा से निम्नलिखित बातें स्पष्ट होती हैं-

(1) अर्थशास्त्र विज्ञान है;
(2) अर्थशास्त्र में मनुष्य के कार्यों के संबंध में विचार होता है;
(3) अर्थशास्त्र में उन्हीं कार्यों के संबंध में विचार होता है जिनमें-
(अ) इच्छित वस्तु प्राप्त करने के साधन परिमित रहते हैं और
(ब) इन साधनों का उपयोग वैकल्पिक रूप से कम से कम दो प्रकार से किया जाता है।

मनुष्य अपनी इच्छाओं की तृप्ति से सुख का अनुभव करता है। इसलिए प्रत्येक मनुष्य अपनी इच्छाओं को तृप्त करना चाहता है। इच्छाओं की तृप्ति के लिए उसके पास जो साधन, द्रव्य इत्यादि हैं वे परिमित हैं। व्यक्ति कितना भी धनवान क्यों न हो, उसके धन की मात्रा अवश्य परिमित रहती है; फिर वह इस परिमित साधन द्रव्य का उपयोग कई तरह से कर सकता है। इसलिए उपयुक्त परिभाषा के अनुसार अर्थशास्त्र में मनुष्यों के उन सब कार्यो के संबंध में विचार किया जाता है जो वह परिमित साधनों द्वारा अपनी इच्छाओं को तृप्त करने के लिए करता है। इस प्रकार उसके उपभोग संबंधी सब कार्यो का विवेचन अर्थशास्त्र में किया जाना आवश्यक हो जाता है। इसी प्रकार मनुष्य को बाज़ार में अनेक वस्तुएँ किस प्रकार खरीदने का साधन द्रव्य परिमित रहता है। इस परिमित साधन द्वारा वह अपनी आवश्यक वस्तुएँ किस प्रकार खरीदता है, वह कौन सी वस्तु किस दर से, किस परिमाण में, खरीदता या बेचता है, अर्थात्‌ वह विनियम किस प्रकार करता है, इन सब बातों का विचार अर्थशास्त्र में किया जाता है। मनुष्य जब कोई वस्तु तैयार करता है, इसके तैयार करने के साधन परिमित रहते हैं और उन साधनों का उपयोग वह कई तरह से कर सकता है। इसलिए उत्पति संबंधी सब कार्यो का विवेचन अर्थशास्त्र में होना स्वाभाविक है।

मनुष्य को अपने समय का उपयोग करने की अनेक इच्छाएँ होती हैं। परंतु समय हमेशा परिमित रहता है और उसका उपयोग कई तरह से किया जा सकता है। मान लीजिए, कोई मनुष्य सो रहा है, पूजा कर रहा है या कोई खेल खेल रहा है। प्रोफ़ेसर राबिंस की परिभाषा के अनुसार इन कार्यों का विवेचन अर्थशास्त्र में होना चाहिए, क्योंकि जो समय सोने में पूजा में या खेल में लगाया गया है, वह अन्य किसी कार्य में लगाया जा सकता था। मनुष्य कोई भी काम करे, उसमें समय की आवश्यकता अवश्य पड़ती है और इस परिमित साधन समय के उपयोग का विवेचन अर्थशास्त्र में अवश्य होना चाहिए। प्रोफ़ेसर राबिंस की अर्थशास्त्र की परिभाषा इतनी व्यापक है कि इसके अनुसार मनुष्य के प्रत्येक कार्य का विवेचन, चाहे वह धार्मिक, राजनीतिक या सामाजिक ही क्यों न हो, अर्थशास्त्र के अंदर आ जाता है। इस परिभाषा को मान लेने से अर्थशास्त्र, राजनीति, धर्मशास्त्र और समाजशास्त्र की सीमाओं का स्पष्टीकरण बराबर नहीं हो पाता है।

प्रोफेसर राबिंस के अनुयायियों का मत है कि परिमित साधनों के अनुसार मनुष्य के प्रत्येक कार्य का आर्थिक पहलू रहता है और इसी पहलू पर अर्थशास्त्र में विचार किया जाता है। वे कहते हैं, यदि किसी कार्य का संबंध राज्य से हो तो उसका उस पहलू से विचार राजनीतिशास्त्र में किया जाए और यदि उस कार्य का संबंध धर्म से भी हो तो उस पहलू से उनका विचार धर्मशास्त्र में किया जाए।

मान लें, एक मनुष्य चोरबाज़ार में एक वस्तु को बहुत अधिक मूल्य में बेच रहा है। साधन परिमित होने के कारण वह जो कार्य कर रहा है और उसका प्रभाव वस्तु की उत्पति या पूर्ति पर क्या पड़ रहा है, इसका विचार तो अर्थशास्त्र में होगा; चोरबाजारी करनेवाले के संबंध में राज्य का क्या कर्तव्य है, इसका विचार राजनीतिशास्त्र या दंडनीति में होगा। यह कार्य अच्छा है या बुरा, इसका विचार समाजशास्त्र, आचारशास्त्र या धर्मशास्त्र में होगा। और, यह कैसे रोका जा सकता है, इसका विचार शायद किसी भी शास्त्र में न हो। किसी भी कार्य का केवल एक ही पहलू से विचार करना उसके उचित अध्ययन के लिए कहाँ तक उचित है, यह विचारणीय है।

प्रोफ़ेसर राबिंस की अर्थशास्त्र की परिभाषा की दूसरी ध्यान देने योग्य बात यह है कि वह अर्थशास्त्र को केवल विज्ञान की मानता है। उसमें केवल ऐसे नियमों का विवेचन रहता है जो किसी समय में कार्य कारण का संबंध बतलाते हैं। परिस्थितियों में किस प्रकार के परिवर्तन होने चाहिए और परिस्थितियों के बदलने के क्या तरीके हैं, इन गंभीर प्रश्नों पर उसमें विचार नहीं किया जा सकता, क्योंकि ये सब कार्य विज्ञान के बाहर हैं। माने लें, किसी समय किसी देश में शराब पीनेवाले व्यक्तियों की सँख्या बढ़ रही है। प्रोफेसर राबिंस की परिभाषा के अनुसार अर्थशास्त्र में केवल यही विचार किया जाएगा कि शराब पीनेवालों की संख्या बढ़ने से शराब की कीमत, शराब पैदा करनेवालों और स्वयं शराबियों पर क्या असर पड़ेगा। परंतु उनके अर्थशास्त्र में इस प्रश्न पर विचार करने के लिए गुंजाइश नहीं है कि शराब पीना अच्छा है या बुरा और शराब पीने की आदत सरकार द्वारा कैसे बंद की जा सकती है। उनके अर्थशास्त्र में मार्गदर्शन का अभाव है। प्रत्येक शास्त्र में मार्गदर्शन उसका एक महत्वपूर्ण भाग माना जाता है और इसी भाग का प्रोफेसर राबिंस के अर्थशास्त्र की परिभाषा में अभाव है। इस कमी के कारण अर्थशास्त्र का अध्ययन जनता के लिए लाभकारी नहीं हो सकता।

समाजवादी चाहते हैं कि पूँजीपतियों और जमींदारों का अस्तित्व न रहने पाए, सरकार मजदूरों की हो और देश की आर्थिक दशा पर सरकार का पूर्ण नियंत्रण हो। वे अपनी अर्थशास्त्र संबंधी पुस्तकों में इन प्रश्नों पर भी विचार करते हैं कि मजदूर सरकार किस प्रकार स्थापित होनी चाहिए। जमींदारों और पूँजीपतियों का अस्तित्व कैसे मिटाया जाए। मजदूर सरकार का सगठन किस प्रकार का हो और उनका संगठन संसारव्यापी किस प्रकार किया जा सकता है। इस प्रकार समाजवादी लेखक अर्थशास्त्र का क्षेत्र इतना व्यापक बना देते हैं कि उसमें राजनीतिशास्त्र की बहुत सी बातें आ जाती हैं। हमको अर्थशास्त्र का क्षेत्र इस प्रकार निर्धारित करना चाहिए जिससे उसमें राजनीतिशास्त्र या अन्य किसी शास्त्र की बातों का समावेश न होने पाए।

अर्थशास्त्र के क्षेत्र के संबंध में प्रोफेसर मार्शल की अर्थशास्त्र की परिभाषा पर भी विचार कर लेना आवश्यक है। प्रोफेसर मार्शल के मतानुसार अर्थशास्त्र मनुष्य के जीवन संबंधी साधारण कार्यों का अध्ययन करता है। वह मनुष्यों के ऐसे व्यक्तिगत और सामजिक कार्यों की जाँच करता है जिनका घनिष्ठ संबंध उनके कल्याण के निमित भौतिक साधन प्राप्त करने और उनका उपयोग करने से रहता है।

प्रोफेसर मार्शल ने मुनष्य के कल्याण को अर्थशास्त्र की परिभाषा में स्थान देकर अर्थशास्त्र के क्षेत्र को कुछ बढ़ा दिया है। परंतु इस अर्थशास्त्री ने भी अर्थशास्त्र के ध्येय के संबंध में अपनी पुस्तक में कुछ विचार नहीं किया। वर्तमान काल में पाश्चात्य अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र का क्षेत्र तो बढ़ा दिया है, परंतु आज भी वे अर्थशास्त्र के ध्येय के संबंध में विचार करना अर्थशास्त्र के क्षेत्र के अदंर स्वीकार नहीं करते। अब तो अर्थशास्त्र को कला का रूप दिया जा रहा है। संसार में सर्वत्र आर्थिक योजनाओं की चर्चा है। आर्थिक योजना तैयार करना एक कला है। बिना ध्येय के कोई योजना तैयार ही नहीं की जा सकती। अर्थशास्त्र को कोई भी सर्वसफल निश्चित ध्येय न होने के कारण इन योजना तैयार करनेवालों का भी कोई एक ध्येय नहीं है। प्रत्येक योजना का एक अलग ही ध्येय मान लिया
जाता है। अर्थशास्त्र में अब देशवासियों की दशा सुधारने के तरीकों पर भी विचार किया जाता है, परंतु इस दशा सुधारने का अंतिम लक्ष्य अभी तक निश्चित नहीं हो पाया है। सर्वमान्य ध्येय के अभाव में अर्थशास्त्रियों में मतभिन्नता इतनी बढ़ गई है कि किसी विषय पर दो अर्थशास्त्रियों का एक मत कठिनता से हो पाता है। इस मतभिन्नता के कारण अर्थशास्त्र के अध्ययन में एक बड़ी बाधा उपस्थित हो गई है। इस बाधा को दूर करने के लिए पाश्चात्य अर्थशास्त्रियों को अपने ग्रंथों में अर्थशास्त्र के ध्येय के संबंध में गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए और जहाँ तक संभव हो, अर्थशास्त्र का एक सर्वमान्य ध्येय शीघ्र निश्चित कर लेना चाहिए।


अर्थशास्त्र का ध्येय

संसार में प्रत्येक व्यक्ति अधिक से अधिक सुखी होना और दु:ख से बचना चाहता है। वह जानता है कि अपनी इच्छा जब तृप्त होती है तब सुख प्राप्त होता है और जब इच्छा की पूर्ति नहीं होती तब दु:ख का अनुभव होता है। धन द्वारा इच्छित वस्तु प्राप्त करने में सहायता मिलती है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति धन प्राप्त करने का प्रयत्न करता है। वह समझता है कि संसार में धन द्वारा ही सुख की प्राप्ति होती है। अधिक से अधिक सुख प्राप्त करने के लिए वह अधिक से अधिक धन प्राप्त करने का प्रयत्न करता है। इस धन को प्राप्त करने की चिंता में वह प्राय: यह विचार नहीं करता कि धन किस प्रकार से प्राप्त हो रहा है। इसका परिणाम यह होता है कि धन ऐसे साधनों द्वारा भी प्राप्त किया जाता है जिनसे दूसरों का शोषण होता है, दूसरों को दुख पहुँचता है। इस प्रकार धन प्राप्त करने के अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं। पूँजीपति अधिक धन प्राप्त करने की चिंता में अपने मजदूरों को उचित मजदूरी नहीं देता। इससे मजदूरों की दशा बिगड़ने लगती है। दूकानदार खाद्य पदार्थो में मिलावट करके अपने ग्राहकों के स्वास्थ्य को नष्ट करता है। चोरबाजारी द्वारा अनेक सरल व्यक्ति ठगे जाते हैं, महाजन कर्जदारों से अत्यधिक सूद लेकर और जमींदार किसानों से अत्यधिक लगान लेकर असंख्य व्यक्त्याेिं के परिवारों को बरबाद कर देते हैं। प्रकृति का यह अटल नियम है कि जो जैसा बोता है उसको वैसा ही काटना पड़ता है। दूसरों का शोषण कर या दु:ख पहुँचाकर धन प्राप्त करनेवाले इस नियम को शायद भूल जाते हैं। जो धन दूसरों को दुख पहुँचाकर प्राप्त होता है उससे अंत में दु:ख ही मिलता है। उससे सुख की आशा करना व्यर्थ है।

यह सत्य है कि दूसरों को दुख पहुँचाकर जो धन प्राप्त किया जाता है उससे इच्छित वस्तुएँ प्राप्त की जा सकती है और इन वस्तुओं को प्राप्त करने से सुख मिल सकता है। परंतु यह सुख अस्थायी है और अंत में दुख का कारण हो जाता है। संसार में ऐसी कई वस्तुएँ हैं जिनका उपयोग करने से तत्काल तो सुख मिलता है, परंतु दीर्घकाल में उनसे दुख की प्राप्ति होती है। उदाहरणार्थ मादक वस्तुओं के सेवन से तत्काल तो सुख मिलता है, परतु जब उनकी आदत पड़ जाती है तब उनका सेवन अत्यधिक मात्रा में होने लगता है, जिसका स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे अंत में दु:खी होना पड़ता है। दूसरों को हानि पहुँचाकर जो धन प्राप्त होता है वह निश्चित रूप से बुरी आदतों को बढ़ाता है और कुछ समय तक अस्थायी सुख देकर वह दु:ख बढ़ाने का साधन बन जाता है। दूसरों को दुख देकर प्राप्त किया हुआ धन कभी भी स्थायी सुख और शांति का साधक नहीं हो सकता।

सुख दो प्रकार के हैं। कुछ सुख तो ऐसे हैं जो दूसरों को दुख पहुँचाकर प्राप्त होते हैं। इनके उदाहरण ऊपर दिए जा चुके हैं। कुछ सुख ऐसे हैं जो दूसरों को सुखी बनाकर प्रप्त होते हैं। वे मनुष्य के मन में शांति उत्पन्न करते हैं। अपना कर्तव्य पालन करने से जो सुख प्राप्त होता है वह भी शांति प्रद होता है कर्तव्यपालन करते समय जो श्रम करना पड़ता है उससे कुछ कष्ट अवश्य मालूम होता है, परंतु कार्य पूरा होने पर वह दु:ख सुख में परिणत हो जाता है और उससेन मन में शांति उत्पन्न होती है। इस प्रकार का सुख भविष्य में दु:ख का साधन नहीं होता ओर इस प्रकार के सुख को आनंद कहते हैं। जब आनंद ही आनंद प्राप्त होता है तब दु:ख का लेश मात्र भी नहीं रह जाता। ऐसी दशा को परमानंद कहते हैं। परमानंद प्राप्त करना प्रत्येक व्यक्ति का सर्वोत्तम ध्येय है। वही आत्मकल्याण की चरम सीमा है। प्रत्येक मनुष्य का कल्याण इसी में है कि वह परमानंद प्राप्त करने का हमेशा प्रयत्न करता रहे। वह हमेशा ऐसा सुख प्राप्त करता रहे जो भाविष्य में दु:ख का कारण या साधन न बन जाए और वह शांति और संतोष का अनुभव करने लगे।


आर्थिक क्रियाएँ

अर्थशास्त्र की विषय सामग्री के सम्बन्ध में आर्थिक क्रियाओं का वर्णन भी जरूरी है। पूर्व में उत्पादन, उपभोग, विनिमय तथा वितरण - अर्थशास्त्र के ये चार प्रधान अंग (या, आर्थिक क्रियायें) माने जाते थे। आधुनिक अर्थशास्त्र में इन क्रियाओं को पांच भागों में बांटा जा सकता है।


  • उत्पादन (Production) : उत्पादन वह आर्थिक क्रिया है जिसका संबंध वस्तुओं और सेवाओं की उपयोगिता अथवा मूल्य में वृद्धि करने से है !
  • उपभोग (Consumption ) : व्यक्तिगत या सामूहिक आवश्यकता की संतुष्टि के लिए वस्तुओं और सेवाओ की उपयोगिता का उपभोग किया जाना !
  • विनिमय (Exchange) : किसी वस्तु या उत्पादन के साधन का क्रय-विक्रय किया जाता है और यह क्रय-विक्रय अधिकांशतः मुद्रा द्वारा किया जाता है !
  • वितरण (Distribution) :वितरण से तात्पर्य उत्पादन के साधनों के वितरण से है, उत्पति के विभिन्न साधनों के सामूहिक सहयोग से जो उत्पादन होता है उसका विभिन्न साधनों में बाँटना !
  • राजस्व (Public Finance) : राजस्व के अन्तर्गत लोक व्यय, लोक आय, लोक ऋण, वित्तीय प्रशासन आदि से सबंधित समस्याओं का अध्ययन किया जाता है !


आर्थिक क्रियाओं के उद्देश्य के आधार पर 1933 में सर्वप्रथम रेगनर फ्र्रिश (Ragnor Frisch) ने अर्थशास्त्र को दो भागों में बांटा।

  • व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics)
  • समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics)
अंतरराष्ट्रीय व्यापार, विदेशी विनियम, बैंकिंग आदि समष्टि अर्थशास्त्र के रूप हैं। संक्षेप में, अध्ययन के दृष्टिकोण से अर्थशास्त्र के विभिन्न अंगों को हम इस प्रकार रख सकते हैं:


व्यष्टि अर्थशास्त्र

यह वैयक्तिक इकाइयों का अध्ययन करता है, जैसे व्यक्ति, परिवार, फर्म, उद्योग, विशेष वस्तु का मूल्य। बोल्डिग केअनुसार, व्यष्टि अर्थशास्त्र विशेष फर्मो, विशेष परिवारों, वैयक्तिक कीमतों, मजदूरियों, आयों, वैयक्तिक उद्योगों तथा विशिष्ट वस्तुओं का अध्ययन है। यह सीमांत विश्लेषण को महत्व देता है।

व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics) - ग्रीक उपसर्ग Micro का अर्थ "छोटे" से है जिसमें व्यक्तियों और कंपनियों के बीच के संसाधनों के आवंटन और व्यवहार का अध्ययन होता है ! इस अर्थशास्त्र में सीमांत विश्लेषण ज्यादा होता है जो एकल कारकों और व्यक्तिगत निर्णयों के प्रभाव से संबंधित अर्थशास्त्र को व्यष्टि अर्थशास्त्र कहते हैं !

उदाहरण के तौर पर, जैसे -


  • व्यक्ति
  • परिवार
  • फर्म
  • उद्योग
  • विशेष वस्तु का मूल्य
  • मजदूरियों
  • आयों
  • वैयक्तिक उद्योगों, आदि

समष्टि अर्थशास्त्र

आधुनिक आर्थिक सिंद्धान्त के बहुत से महत्वपूर्ण विषय जैसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार, विदेशी विनिमय, राजस्व, बैकिंग, व्यापार चक्र, राष्ट्रीय आय तथा रोजगार के सिद्धांत, आर्थिक नियोजन एवं आर्थिक विकास आदि का अध्ययन इसके अंतर्गत होता है। बोल्डिग के शब्दों में, समष्टि अर्थशास्त्र, अर्थशास्त्र का वह भाग है जो अर्थशास्त्र के बड़े समूहों और औसतों का अध्ययन करता है, न कि उसकी विशेष मदों का। वह इन समूहों को उपयोगी ढँग से परिभाषित करने का प्रयत्न करता है तथा इनके पारस्परिक संबंधों को जाँचता है।

संक्षेप में ये ही अर्थशास्त्र के अंग है। केंस के बाद के आधुनिक अर्थशास्त्री अब कुछ नए नामों से अर्थशास्त्र के विभिन्न अंगों का विवेचन करते हैं, जैसे पूंजी का अर्थशास्त्र, पूँजी निर्माण, श्रम अर्थशास्त्र, यातायात का अर्थशास्त्र, मौद्रिक अर्थशास्त्र, केंसीय अर्थशास्त्र, अल्प विकसित देशों का अर्थशास्त्र, विकास का अर्थशास्त्र, तुलनात्म्क अर्थशास्त्र, अंतरराष्ट्रीय अर्थशास्त्र आदि। आधुनकि काल में देश विदेश में अर्थशास्त्र विषय की स्नातकोत्तर शिक्षा भी इन्हीं नामों के प्रश्नपत्रों के अनुसार दी जाती है।


समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics) - ग्रीक उपसर्ग Macro का अर्थ ‘’ बड़ा’’ से है जिसमें संपूर्ण अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन, संरचना, व्यवहार और निर्णय लेने से संबंधित है। इसमें क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और वैश्विक अर्थव्यवस्था शामिल हैं !

उदाहरण के तौर पर, जैसे -


  • अंतरराष्ट्रीय व्यापार
  • विदेशी विनिमय
  • राजस्व


  • बैकिंग
  • व्यापार चक्र
  • राष्ट्रीय आय
  • रोजगार के सिद्धांत,
  • आर्थिक नियोजन
  • ब्याज दर
  • राष्ट्रीय उत्पादकता
  • आर्थिक विकास, आदि ।


कुछ नए अर्थशास्त्र के शाखाएं


  • पूंजी का अर्थशास्त्र
  • पूँजी निर्माण
  • श्रम अर्थशास्त्र
  • यातायात का अर्थशास्त्र
  • मौद्रिक अर्थशास्त्र
  • केंसीय अर्थशास्त्र
  • अल्प विकसित देशों का अर्थशास्त्र
  • विकास का अर्थशास्त्र
  • तुलनात्म्क अर्थशास्त्र
  • अंतरराष्ट्रीय अर्थशास्त्र आदि।



आर्थिक प्रणालियाँ


आर्थिक प्रणाली ( (Economic Systems)) एक ऐसी प्रणाली है जिसके अन्तर्गत विभिन्न व्यवसायों में काम करके लोग अपनी जीविका कमाते है। आर्थिक क्रियाओं को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए प्रत्येक देश अलग-अलग आर्थिक प्रणाली अपनाता हैं। आर्थिक प्रणालियों को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा गया है।

(१) पूंजीवादी अर्थव्यवस्था (Capitalistic Economy)
(२) समाजवादी अर्थव्यवस्था (Socialistic Economy)
(३) मिश्रित अर्थ व्यवस्था (Mixed Economy)
आधुनिक अर्थिक प्रणिलियों में समाजवाद तथा पूंजीवाद का सर्वाधिक उल्लेख हो रहा है।


आर्थिक नीतियाँ

प्रत्येक देश, चाहे वह किसी भी आर्थिक प्रणाली के अन्तर्गत काम करता है, उसको विभिन्न आर्थिक समस्याओं जैसे गरीबी, धन व आय की असमानता, बेरोजगारी, मुद्रास्फीति व मन्दी आदि का सामना करना पड़ता हैं। इन समस्याओं के समाधान के लिए वह विभिन्न नीतियों को अपनाता है। मुख्य आर्थिक नीतियां इस प्रकार है।


  • मौद्रिक नीति (Monetary Policy)
  • राजकोषीय नीति (Fiscal Policy)
  • कीमत नीति (Price Policy)
  • आय नीति (Income Policy)
  • रोजगार नीति (Employment Policy)
  • आर्थिक योजना (Economic Planning)


प्रसिद्ध अर्थशास्त्री



  • आदम स्मिथ
  • जॉन मेनार्ड कीन्स
  • कार्ल मार्क्स

प्रसिद्ध भारतीय अर्थशास्त्री

भारत की अर्थशास्त्र को जानने, समझने और प्रयोग में लाने की अपनी विशेष पंरपरा रही है। यह दु:ख का विषय है कि प्राचीन एव नवीन भारतीय अर्थशास्त्रियों की प्रमुख कृतियों का मूल्यांकन उचित रूप से अभी तक नहीं किया गया है और हमारे विद्यार्थी केवल पाश्चात्य अर्थशास्त्रियों एवं उनके सिद्धांतो को पढ़ते रहे हैं।

प्राचीन काल के आर्थिक विचारों को हम वेदों, उपनिषदों, महाकाव्यों, धर्मशास्त्रों, गृह्मसूत्रों, नारद, शुक्र, विदुर के नीतिग्रंथों और सर्वाधिक रूप से कौटिल्य के अर्थशास्त्र से प्राप्त करते हैं।

आधुनिक भारत में मुख्य भारतीय अर्थशास्त्रियों में-

(१) दादाभाई नौरोजी (1825),
(२) महादेव गोविंद रानाडे (1842),
(३) रमेशचंद्र दत्त (1846),
(४) महात्मा गांधी (1870),
(५) गोपाल कृष्ण गोखले (1866),
(६) विश्वेश्वरैया (1861),
(७) बाबा साहेब अम्बेडकर[3] (1891),
(८) मनमोहन सिंह (1932)
(९) अमर्त्य सेन (1933) और
(१०) नरेन्द्र जाधव (1950) के नाम उल्लेखनीय है।


अर्थशास्त्र की सीमाएँ 

अर्थशास्त्र की मुख्य सीमायें (Limitations) निम्नलिखित हैं-

  1. आर्थिक नियम कम निश्चित होते है।
  2. अर्थशास्त्र विज्ञान तथा कला दोनों है।
  3. अर्थशास्त्र केवल मानवीय क्रियाओं का अध्ययन करता है।
  4. सामाजिक मनुष्य का अध्ययन
  5. वास्तविक मनुष्य का अध्ययन
  6. आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन
  7. सामान्य मुनष्य का अध्ययन
  8. कानूनी सीमा के अन्तर्गत आने वाले व्यक्तियों का अध्ययन
  9. दुर्लभ पदार्थो का अध्ययन

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Thursday, April 18, 2019

सामाजिक विज्ञान की शाखा -1. नृविज्ञान या मानवशास्त्र

मानवशास्त्र या नृविज्ञान (Anthropology)


मानवशास्त्र या नृविज्ञान (en:Anthropology) मानव, उसके जेनेटिक्स, संस्कृति और समाज की वैज्ञानिक और समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से अध्ययन है। इसके अंतर्गत मनुष्य के समाज के अतीत और वर्तमान के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया जाता है। सामाजिक नृविज्ञान और सांस्कृतिक नृविज्ञान के तहत मानदंडों और समाज के मूल्यों का अध्ययन किया जाता है। भाषाई नृविज्ञान में पढ़ा जाता है कि कैसे भाषा, सामाजिक जीवन को प्रभावित करती है। जैविक या शारीरिक नृविज्ञान में मनुष्य के जैविक विकास का अध्ययन किया जाता है।

नृविज्ञान एक वैश्विक अनुशासन है, जिसमे मानविकी, सामाजिक और प्राकृतिक विज्ञान को एक दूसरे का सामना करने के लिए मजबूर किया जाता है। मानव विज्ञान, प्राकृतिक विज्ञान के समेत मनुष्य उत्पत्ति, मानव शारीरिक लक्षण, मानव शरीर में बदलाव, मनुष्य प्रजातियों में आये बदलावों इत्यादि से ज्ञान की रचना करता है।

सामाजिक-सांस्कृतिक नृविज्ञान, संरचनात्मक और उत्तर आधुनिक सिद्धांतों से बुरी तरह से प्रभावित हुआ है।



शाखाएँ


एंथ्रोपोलाजी यानी नृतत्व विज्ञान की कई शाखाएं हैं। इनमें से कुछ हैं:


  1. सामाजिक सांस्कृतिक नृतत्व विज्ञान,
  2. प्रागैतिहासिक नृतत्व विज्ञान या आर्कियोलाजी,
  3. भौतिक और जैव नृतत्व विज्ञान,
  4. भाषिक नृतत्तव विज्ञान और
  5. अनुप्रयुक्त नृतत्व विज्ञान



सामाजिक-सांस्कृतिक नृतत्व विज्ञान

इसका संबंध सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवहार के विभिन्न पहलुओं, जैसे समूह और समुदायों के गठन और संस्कृतियों के विकास से है। इसमें सामाजिक-आर्थिक बदलावों, जैसे विभिन्न समुदायों और के बीच सांस्कृतिक भिन्नताओं और इस तरह की भिन्नताओं के कारणों; विभिन्न संस्कृतियों के बीच संवाद; भाषाओं के विकास, टेक्नोलाजी के विकास और विभिन्न संस्कृतियों क बीच परिवर्तन की प्रवृत्तियों का अध्ययन किया जाता है।


प्रागैतिहासिक नृतत्व विज्ञान या पुरातत्व विज्ञान

इसमें प्रतिमाओं, हड्डियों, सिक्कों और अन्य ऐतिहासिक पुरावशेषों के आधार पर इतिहास का पुनर्निर्धारण किया जाता है। इस तरह के अवशेषों की खोज से प्राचीन काल के लोगों के इतिहास का लेखन किया जाता है और सामाजिक रीति रिवाजों तथा परम्पराओं का पता लगाया जाता है। पुरातत्व वैज्ञानिक इस तरह की खोजों से उस काल की सामाजिक गतिविधियों का भी विश्लेषण करते हैं। वे अपनी खोज के मिलान समसामयिक अभिलेखों या ऐतिहासिक दस्तावेजों से करके प्राचीन मानव इतिहास का पुनर्निर्माण करते हैं।


भौतिक या जैव नृतत्व विज्ञान

इस शाखा का संबंध आदि मानवों और मानव के पूर्वजों की भौतिक या जैव विशेषताओं तथा मानव जैसे अन्य जीवों, जैसे चिमपैन्जी, गोरिल्ला और बंदरों से समानताओं से है। यह शाखा विकास श्रृंखला के जरिए सामाजिक रीति रिवाजों को समझने का प्रयास करती है। यह जातियों के बीच भौतिक अंतरों की पहचान करती है और इस बात का भी पता लगाती है कि विभिन्न प्रजातियों ने किस तरह अपने आप को शारीरिक रूप से परिवेश के अनुरूप ढाला. इसमें यह भी अध्ययन किया जाता है कि विभिन्न परिवेशों का उनपर क्या असर पड़ा. जैव या भौतिक नृतत्व विज्ञान की अन्य उप शाखाएं और विभाग भी हैं जिनमें और भी अधिक विशेषज्ञता हासिल की जा सकती है। इनमें आदि मानव जीव विज्ञान, ओस्टियोलाजी (हड्डियों और कंकाल का अध्ययन), पैलीओएंथ्रोपोलाजी यानी पुरा नृतत्व विज्ञान और फोरेंसिक एंथ्रोपोलाजी.


अनुप्रयुक्त नृतत्व विज्ञान

इसमें नृतत्व विज्ञान की अन्य शाखाओं से प्राप्त सूचनाओं का उपयोग किया जाता है और इन सूचनाओं के आधार पर संतति निरोध, स्वास्थ्य चिकित्सा, कुपोषण की रोकथाम, बाल अपराधों की रोकथाम, श्रम समस्या के समाधान, कारखानों में मजदूरों की समस्याओं के समाधान, खेती के तौर तरीकों में सुधार, जनजातीय कल्याण और उनके जबरन विस्थापन भूमि अधिग्रहण की स्थिति में जनजातीय लोगों के पुनर्वास के काम में सहायता ली जाती है।


भाषिक नृतत्व विज्ञान

इसमें मौखिक और लिखित भाषा की उत्पत्ति और विकास का अध्ययन किया जाता है। इसमें भाषाओं और बोलियों के तुलनात्मक अध्ययन की भी गुंजाइश है। इसके जरिए यह पता लगाया जाता है कि किस तरह सांस्कृतिक आदान प्रदान से विभिन्न संस्कृतियों भाषाओं पर असर पड़ा है और किस तरह भाषा विभिन्न सांस्कृतिक रीति रिवाजों और प्रथाओं सूचक है। भाषायी नृतत्व विज्ञान सांस्कृतिक नृतत्व विज्ञान से घनिष्ठ रूप से संबद्ध है।


नृतत्वशास्त्र के सिद्धांत


होमोसैपियंस (मानव) की उत्पत्ति, भूत से वर्तमान काल तक उनके परिवर्तन, परिवर्तन की प्रक्रिया, संरचना, मनुष्यों और उनकी निकटवर्ती जातियों के सामाजिक संगठनों के कार्य और इतिहास, मनुष्य के भौतिक और सामाजिक रूपों के प्रागैतिहासिक और मूल ऐतिहासिक पूर्ववृत्त और मनुष्य की भाषा का - जहाँ तक वह मानव विकास की दिशा निर्धारित करे और सामाजिक संगठन में योग दे - अध्ययन नृतत्वशास्त्र की विषय वस्तु है। इस प्रकार नृतत्वशास्त्र जैविक और सामाजिक विज्ञानों की अन्य विधाओं से अविच्छिन्न रूप से संबद्ध है।

डार्विन ने 1871 में मनुष्य की उत्पत्ति पशु से या अधिक उपयुक्त शब्दों में कहें तो प्राइमेट (वानर) से - प्रामाणिक रूप से सिद्ध की यूरोप, अफ्रीका, दक्षिणी पूर्वी और पूर्वी एशिया में मानव और आद्यमानव के अनेक जीवाश्मों (फासिलों) की अनुवर्ती खोजों ने विकास की कहानी की और अधिक सत्य सिद्ध किया है। मनुष्य के उदविकास की पाँच अवस्थाएँ निम्नलिखित है :-

ड्राईपिथेसीनी अवस्था (Drypithecinae Stage) वर्तमान वानर (ape) और मनुष्य के प्राचीन जीवाश्म अधिकतर यूरोप, उत्तर अफ्रीका और भारत में पंजाब की शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में पाये गए हैं।

आस्ट्रैलोपिथेसीनी अवस्था (Australopithecinae stage) - वर्तमान वानरों (apes) से अभिन्न और कुछ अधिक विकसित जीवाश्म पश्चिमी और दक्षिणी अफ्रीका में प्राप्त हुए।

पिथेकैंथोपिसीनी अवस्था (Pithecanthropicinae stage) जावा और पेकिंग की जातियों तथा उत्तर अफ्रीका के एटल्थ्रााोंपस (Atlanthropus) लोगों के जीवाश्म अधिक विकसित स्तर के लगते हैं। ऐसा जान पड़ता है कि उस समय तक मनुष्य सीधा खड़ा होने की शारीरिक क्षमता, प्रारंभिक वाक्शकि और त्रिविमितीय दृष्टि प्राप्त कर चुका था, तथा हाथों के रूप में अगले पैरों का प्रयोग सीख चुका था।

नींडरथैलाइड अवस्था (Neanderthaloid stage) यूरोप, अफ्रीका और एशिया के अनेक स्थानों पर क्लैसिक नींडरथल, प्रोग्रेसिव नींडरथल, हीडेल वर्ग के, रोडेशियाई और सोलोयानव आदि अनेक भिन्न भिन्न जातियों के जीवाश्म प्राप्त हुए। वे सभी जीवाश्म एक ही मानव-वंश के हैं।

होमोसैपियन अवस्था (Homosapien stage) यूरोप, अफ्रीका और एशिया में ऐसे असंख्य जीवाश्म पाऐ गए हैं, जो मानव-विकास के वर्तमान स्तर तक पहुँच चुके थे। उनका ढाँचा वर्तमान मानव जैसा ही है। इनमें सर्वाधिक प्राचीन जीवाश्म आज से 40 हजार वर्ष पुराना है।


जीवाश्म बननेवाली अस्थियाँ चूंकि अधिक समय तक अक्षत रहती हैं, बहुत लम्बे काल से नृतत्वशास्त्रियों ने जीवों की अन्य शरीर पद्धतियों की अपेक्षा मानव और उसकी निकटवर्ती जातियों के अस्थिशास्त्र का विशेष अध्ययन किया है। किंतु माँसपेशियों का संपर्क ऐसा प्रभाव छोड़ता है, जिससे अस्थियों में माँसपेशियों का संपर्क ऐसा प्रभाव छोड़ता है, जिससे अस्थियों की गतिशीलता तथा उनकी अन्य क्रियापद्धतियों के संबंध में अधिक ज्ञान मिलता है। कम से कम इतना तो कह ही सकते हैं कि यह अन्य पद्धति या रचना उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी पूर्वोल्लिखित अन्य दो। खोपड़ी की आकृति और रचना से मस्तिष्क के संबंध में विस्तृत ज्ञान उपलब्ध होता है और उसकी क्रियाप्रणाली के कुछ पहलुओं का अनुमान प्रमस्तिष्कीय झिल्ली की वक्रता से लग जाता है।

मानव के अति प्राचीन पूर्वज, जिनके वंशज आज के वानर हैं, तबसे शारीरिक ढाँचे में बहुत अंशों में बदल गऐ हैं। उस समय वे वृक्षवासी थे, अत: शारीरिक रचना उसी प्रकार से विकृत थी। कुछ प्राचीन लक्षण मानव शरीर में आज भी विद्यमान हैं। दूसरी अवस्था में मानव आंशिक रूप से भूमिवासी हो गया था और कभी कभी भद्दे ढंग से पिछले पैरों के बल चलने लगा था। इस अवस्था का कुछ परिष्कृत रूप वर्तमान वानरों में पाया जाता है। जो भी हो, मानव का विकास हमारे प्राचीन पूर्वजों की कुछ परस्पर संबद्ध आदतों के कारण हुआ, उदाहरण के लिए

(1) पैरों के बल चलना, सीधे खड़ा होना

(2) हाथों का प्रयोग और उनसे औजार बनाना

(3) सीधे देखना और इस प्रकार त्रिविमितीय दृष्टि का विकसित होना। इसमें पाशवि मस्तिष्क का अधिक प्रयोग हुआ, जिसे परिणाम-स्वरूप

(4) मस्तिक के तंतुओं का विस्तार और परस्पर संबंध बढ़ा, जा वाक्‌-शक्ति के विकास का पूर्व दिशा है।

इस क्षेत्र के अध्ययन के हेतु तुलनात्मक शरीररचनाशास्त्र (anatomy) का ज्ञान आवश्यक है। इसिलिए भौतिक नृतत्वशास्त्र में रुचि रखनेवाले शरीरशास्त्रियों ने इसमें बड़ा योग दिया।

वर्तमान मानव के शारीरिक रूपों के अध्ययन ने मानवमिति को जन्म दिया; इसमें शारीरिक अवयवों की नाप, रक्त के गुणों, तथा वंशानुसंक्रमण से प्राप्त होनेवाले तत्वों आदि का अध्ययन सम्मिलित है। अनेक स्थानांतरण के खाके बनाना संभव हो गया है। संसार की वर्तमान जनसंख्या को, एक मत के अनुसार, 5 या 6 बड़े भागों में विभक्त किया जा सकता है। एक अन्य मत के अनुसार, जो कि भिन्न मानदंड का प्रयोग करता है, जातियों की संख्या तीस के आसपास हैं।

मानव आनुवंशिकी ज्ञान की अपेक्षाकृत एक नयी शाखा है, जो इस शती के तीसरे दशक से शुरू हुई। इस शती के प्रारंभ में ही, जब मेंडल का नियम पुन: स्थापित अध्ययन आर.ए. फियर, एस. राइट, जे.बी.एस. हाल्डेन तथा अन्य वैज्ञानिकों द्वारा आनुवंशिकीय सिद्धांतों के गणितीय निर्धारण से आरंभ हुआ। वनस्पति और पयु आनुवंशिकी से भिन्न मानव आनुवंशिकी का अध्ययन अनेक भिन्नता युक्त-वंशपरंपराओं, रक्त के तथा मानव शरीर के अन्य अवयवों के गुण-प्रकृति के ज्ञान से ही संभव है। अबतक जो कुछ अध्ययन हुआ है, उसमें ए-बी-ओ, आर-एच, एम-एम-यस और अन्य रक्तभेद, रुधिर वर्णिका भेद (Haemoglobin Variants) ट्राँसफेरिन भेद, मूत्र के कुछ जैव-रासायनिक गुण, लारस्त्राव, रंग-दृष्टि-भेद, अंगुलि-अंसंगति (digital anomaly) आदि सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं।


मानव के सामाजिक संगठन, विशेषतया इसके जन्म और कार्य प्रणाली का अध्ययन सामाजिक नृतत्वशास्त्री करते हैं। विवाह, वंशागति, उत्तराधिकार, विधि, आर्थिक-संगठन, धर्म आदि के प्राचीन रूपों की खोज के लिए अनुसंधानकारियों ने संसार के कबीलों और आदिम-जातियों में अपनी विश्लेषणात्मक पद्धति का प्रयोग किया है। इस संदर्भ में चार विभिन्न स्थानों - (1) अफ्रीका, (2) उत्तर और दक्षिण अमरीका (3) भारत और (4) आस्ट्रेलिया, मैलेनेशिया, पोलोनेशिया और माइक्रोनीशिया आदि - के कबीलों और मनुष्यों की ओर नृतत्वशास्त्रियों का ध्यान गया है। इन क्षेत्रों के कबीलों और अन्य निवासियों के अध्ययन ने हमें मानव-व्यापार और संगठन का प्राय: संपूर्ण वर्णक्रम प्रदान किया। कुछ भी हो, रक्तसंबंध किसी सामाजिक संगठन को समझने के लिए सूत्र है, जिसके अध्ययन से अनेक मानवसंस्थाओं के व्यवहार स्पष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार रक्तसंबंध कबीलों और ग्रामवासियों के संगठन का लौह पिंजर है।

सामाजिक नृतत्वशास्त्र का प्रारंभिक रूप आर.एच. कार्डिगृन, ई.बी.टेलर, जे.जे. बैचोफेन आदि ने स्थापित किया है, उनका अध्ययन पुस्तकालयों तक ही सीमित था। एल.एच. मार्गन ने सर्वप्रथम कबीलों के क्षेत्रीय अध्ययन पर बल दिया और सामाजिक संगठन को समझने में रक्तसंबंध के महत्व का अनुभव किया। डब्ल्यू.एच. रिवर्स, ए.आर. रेडक्लिफ ब्राउन और अन्य विद्वानों ने वंश अध्ययनपद्धति से रक्त-संबंध के अध्ययन को आगे बढ़ाया। जी.पी. मरडक, एस.एफ. नाडेल और ई.आर. लीच आदि के लेखों तथा ग्रंथों में आज भी रक्तसंबंध के अध्ययन की विशेष चर्चा है।

सामाजिक नृतत्वशास्त्र की उन्नति में भिन्न भिन्न देशों ने भिन्न भिन्न ढंग से योगदान किया है। उदाहरण के लिए अंग्रज नृतत्वशास्त्रियों ने डार्विन के जैव-विकास के सिद्धांत (इसके समस्त गुणदोषों के साथ) से प्रेरणा ग्रहण की। इसलिए उनमें सामाजिक संगठन के विकास पर विशेष आग्रह पाया जाता था, जिससे अनेक रक्तसंबंधी तथा संरचनात्मक सिद्धांतों का जन्म हुआ। विभिन्न जातियों और कबिलों पर औपनिवेशिक प्रशासन किए जाने की आवश्यकता का भी ब्रिटेन के नृतत्वशास्त्रियों के विचारों पर बहुत प्रभाव था।

फ्रांस में सामाजिक नृतत्वशास्त्र का जन्म ई. दुर्खेम, एल. लेवी ब्रुहल आदि सामाजिक दार्शनिकों और समाजशास्त्रियों के साहित्य से हुआ। उन्होंने सामाजिक संगठन के मनोवैज्ञानिक अवयवों को सर्वोपरि माना।

अमरीकी नृतत्वशास्त्रियों में अनेक प्रवृत्तियाँ दृष्टिगत होती हैं।

(1) सामाजिक विकास के संदर्भ में व्यक्तित्व और उसके विकास के पहलू की विवेचना सर्वप्रथम ए.एल. क्रोबर ने की। एम.मीड और सी. क्ल्युखोन आदि ने उसका विस्तृत अध्ययन किया। किसी समूह की क्रिया और क्रियाक्षमता की रचना में समाज के भाषा शास्त्रीय अवयव का अध्ययन हुआ।

(2) समाज के संस्कृति-मूल के निर्धारित और निर्देशक रूप में भाषा के महत्व पर एफ. बोस और ई. सैपियर ने ध्यान दिया। किंतु नृतत्वशास्त्रीय भाषा संबंधी अध्ययन पर जोर देने वालों में बी.एल. वोर्फ का सर्वाधिक महत्व है

(3) अद्यतन प्रवृत्ति सांस्कृतिक और सामाजिक प्रकार विज्ञान की ओर है जिसका सूत्रपात जे.स्टेवार्ड ने किया। आर. रेडफील्ड ने जिसने समाजों को संक्रमण की भिन्न भिन्न स्थितियाँ माना है, उपर्युंक्त प्रवृत्तियों को एक अर्थपूर्ण रूप दिया है।

सामाजिक नृतत्वशास्त्र प्राय: आंकड़ों के प्रयोग से अछूता रहा। आज जब कि सामाजिक विज्ञानों के अंतर्गत समाजमिति, मनोमिति और अर्थमिति (Econometrics) आदि जैसी शाखाएँ हैं, सामाजिक नृतत्वशास्त्री अपनी प्रदत्त सामग्री केवी वर्णनात्मक रूप में ही प्रस्तुत करना पसंद करते हैं। सामाजिक नृतत्वशास्त्र पर स्थान विज्ञानीय गणित का भी कोई प्रभाव नहीं दिखाई देता। समाजशास्त्र में गतिशील समूह  के अध्ययन के लिए स्थानविज्ञान (Topology) ने एक नयी दिशा दी है। किंतु नृतत्वशास्त्रियों द्वारा प्रस्तुत व्यक्तित्व और संस्कृति के दिग्विन्यास संबंधी अध्ययन में स्थानविज्ञान, गणित और तर्कशास्त्र के प्रयोग की अभी प्रतीक्षा ही की जा रही है।

भौतिक और सामाजिक पहलुओं के अतिरिक्त नृतत्वशास्त्र में मनुष्य की प्रागैतिहासिक काल की सामाजिक-सांस्कृतिक स्थितियों का अध्ययन भी, जो प्रागैतिहासिक पुरातत्व से प्राप्त होता है, सम्मिलित है।



मानव का विकास


चार्ल्स डार्विन की "ओरिजिन ऑव स्पीशीज़" नामक पुस्तक के पूर्व साधारण धारणा यह थी कि सभी जीवधारियों को किसी दैवी शक्ति (ईश्वर) ने उत्पन्न किया है तथा उनकी संख्या, रूप और आकृति सदा से ही निश्चित रही है। परंतु उक्त पुस्तक के प्रकाशन (सन् 1859) के पश्चात् विकासवाद ने इस धारणा का स्थान ग्रहण कर लिया और फिर अन्य जंतुओं की भाँति मनुष्य के लिये भी यह प्रश्न साधारणतया पूछा जाने लगा कि उसका विकास कब और किस जंतु अथवा जंतुसमूह से हुआ। इस प्रश्न का उत्तर भी डार्विन ने अपनी दूसरी पुस्तक "डिसेंट ऑव मैन" (सन् 1871) द्वारा देने की चेष्टा करते हुए बताया कि केवल वानर (विशेषकर मानवाकार) ही मनुष्य के पूर्वजों के समीप आ सकते हैं। दुर्भाग्यवश धार्मिक प्रवृत्तियोंवाले लोगों ने डार्विन के उक्त कथन का त्रुटिपुर्ण अर्थ (कि वानर स्वयं ही मानव का पूर्वज है) लगाकर, न केवल उसका विरोध किया वरन् जनसाधारण में बंदरों को ही मनुष्य का पूर्वज होने की धारणा को प्रचलित कर दिया, जो आज भी अपना स्थान बनाए हुए है। यद्यपि डार्विन मनुष्य विकास के प्रश्न का समाधान न कर सके, तथापि इन्होंने दो गूढ़ तथ्यों की ओर प्राणिविज्ञानियों का ध्यान आकर्षित किया :

(1) मानवाकार कपि ही मनुष्य के पूर्वजों के संबंधी हो सकते हैं और

(2) मानवाकार कपियों तथा मनुष्य के विकास के बीच में एक बड़ी खाईं है, जिसे लुप्त जीवाश्मों (fossils) की खोज कर के ही कम किया जा सकता है।

यह प्रशंसनीय है कि डार्विन के समय में मनुष्य के समान एक भी जीवाश्म उपलब्ध न होते हुए भी, उसने भूगर्भ में छिपे ऐसे अवशेषों की उपस्थिति की भविष्यवाणी की जो सत्य सिद्ध हुई। अभी तक की खोज के अनुसार होमो सेपियन्स का उद्धव 2 लाख साल पहले पूर्वी अफ्रीका का माना जाता रहा है, लेकिन नई खोज के मुताबिक 3 लाख साल पहले ही ही होमो सेपिन्यस के उत्तर अफ्रीका में विकास के सबूत मौजूद है।



विकासकाल का निर्धारण


पृथ्वी के 4.6 अरब साल इतिहास को भू-वैज्ञानिक कई खंडों में बांट कर देखते हैं। इन्हें कल्प (इयॉन), संवत (एरा), अवधि (पीरियड) और युग (ईपॉक) कहते हैं। इनमें सबसे छोटी इकाई है ईपॉक। मौजूदा ईपॉक का नाम होलोसीन ईपॉक है, जो 11700 साल पहले शुरू हुआ था। इस होलोसीन ईपॉक को तीन अलग-अलग कालों में बांटा गया है- अपर, मिडल और लोअर। इनमें तीसरे यानी लोअर काल को मेघालयन नाम दिया गया है।

मानवाकार सभी जीवाश्म भूगर्भ के विभिन्न स्तरों से प्राप्त हुई हैं। अतएव मानव विकास काल का निर्धारण इन स्तरों (शैल समूहों) के अध्ययन के बिना नहीं हो सकता। ये स्तर पानी के बहाव द्वारा मिट्टी और बालू से एकत्रित होने और दीर्घ काल बीतने पर शिलाभूत होने से बने हैं। इन स्तरों में जो भी जीव फँस गए, वो भी शिलाभूत हो गए। ऐसे शिलाभूत अवशेषों को जीवाश्म कहते हैं। जीवाश्मों की आयु स्वयं उन स्तरों की, जिनमें वे पाए जाते हैं, आयु के बराबर होती है। स्तरों की आयु को भूविज्ञानियों ने मालूम कर एक मापसूचक सारणी तैयार की है, जिसके अनुसार शैलसमूहों को 5 बड़े खंडों अथवा महाकल्पों में विभाजित किया गया :


  • हेडियन (Hadean)
  • आद्य (Archaean)
  • पुराजीवी (Palaeozoic)
  • मध्यजीवी (Mesozoic)
  • नूतनजीवी (Cenozoic) महायुग।



इन महाकल्पों को कल्पों में विभाजित किया गया है तथा प्रत्येक कल्प एक कालविशेष में पाए जानेवाले स्तरों की आयु के बराबर होता है। इस प्रकार आद्य महाकल्प एक "कैंब्रियन पूर्व" (Pre-cambrian), पुराजीवी महाकल्प छह 'कैंब्रियन' (Cambrian), ऑर्डोविशन, (Ordovician), सिल्यूरियन (Silurian), डिवोनी (Devonian), कार्बोनी (Carbniferous) और परमियन (Permian), मध्यजीवी महाकल्प तीन ट्राइऐसिक (Triassic), जूरैसिक (Jurassic) और क्रिटैशस (Cretaceous) और नूतनजीव महाकल्प पाँच आदिनूतन (Eocene), अल्प नूतन (Oligocene), मध्यनूतन (Miocene), अतिनूतन (Pliocene) और अत्यंत नूतन (pleistocene) कल्पों में विभाजित हैं।



जीवाश्म की आयु का निर्धारण

शैल समूहों से जीवाश्मों की केवल समीपतर्वी आयु का ही पता चल पाता है। अतएव उसकी आयु की और सही जानकारी के लिये अन्य साधनों का उपयोग किया जाता है। इनमें रेडियोऐक्टिव कार्बन, (C14), की विधि विशेष महत्वपूर्ण है जो इस प्रकार है :

सभी जीवधारियों (पौधे हों या जंतु) के शरीर में दो प्रकार के कार्बन कण उपस्थित होते हैं, एक साधारण, (C12) और दूसरा रेडियाऐक्टिव, (C14)! इनका आपसी अनुपात सभी जीवों में (चाहे वे जीवित स्थित हों या मृत) (constant) रहता है। कार्बन_14, वातावरण में उपस्थित नाइट्रोजन_14 के अंतरिक्ष किरणों (cosmic rays) द्वारा परिवर्तित होने से, बनता है। यह कार्बन_14 वातावरण के ऑक्सीजन से मिलकर रेडियाऐक्टिव कार्बन डाइऑक्साइड (C14O2) बनाता हैं, जो पृथ्वी पर पहुँचकर प्रकाश संश्लेषण द्वारा पौधों में अवशोषित हो जाता है और इनसे उनपर आश्रित जंतुओं में पहुँच जाता है। मृत्यु के बाद कार्बन_14 का अवशोषण बंद हो जाता है तथा उपस्थित कार्बन_14 पुन: नाइट्रोजन_14 में परिवर्तित होकर वातावरण में लौटने लगता है। यह मालूम किया जा चुका है कि कार्बन_14 का आधा भाग 5,720 वर्षों में नाइट्रोजन_14 में बदल पाता है। अतएव जीवाश्म में कार्बन_14 की उपस्थित मात्रा का पता लगाकर, किसी जीवाश्म की आयु का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। इस विधि में कमी यह है कि इसके द्वारा केवल 50 हजार वर्ष तक की आयु जानी जा सकती है।


विकास क्रम

होमोहैबिलिस (Homohabilis) के सह आविष्कर्ता जॉन नेपियर (John Napier) के मतानुसार (1964 ई) मनुष्य का विकास पॉच अवस्थाओं से होकर गुजरा है :

(1) प्रांरभिक पूर्वमानव (early prehuman), कीनियापिथीकस (अफ्रीका से प्राप्त) और (भारत से प्राप्त) रामापिथीकस (Ramapithecus) के जीवाश्मों द्वारा जाना जाता है। ये मानव संभवत: मनुष्य के विकास के अति प्रारंभिक अवस्थाओं में थे।

(2) बाद के पूर्व मानव (late prehuman), का प्रतिनिधित्व अफ्रीका से प्राप्त ऑस्ट्रैलोपिथीकस (Australopithecus) करता है,

(3) प्रारंभिक मनुष्य को अफ्रीका से ही प्राप्त होमोइहैबिलिस द्वारा जाना जाता है,

(4) उत्तरभावी मनुष्य (late human), के अंतर्गत होमोइरेक्टस (Homo-erectus), अथवा जावा और चीन के मानव, आते हैं और

(5) आधुनिक मानव / होमो सेपियन्स (modern human), का प्रथम उदाहरण क्रोमैग्नॉन मानव में प्राप्त होता है।

आधुनिक मानव अफ़्रीका में 2 लाख साल पहले , सबके पूर्वज अफ़्रीकी थे।

होमो इरेक्टस के बाद विकास दो शाखाओं में विभक्त हो गया। पहली शाखा का निएंडरथल मानव में अंत हो गया और दूसरी शाखा क्रोमैग्नॉन मानव अवस्था से गुजरकर वर्तमान मनुष्य तक पहुंच पाई है। संपूर्ण मानव विकास मस्तिष्क की वृद्धि पर ही केंद्रित है। यद्यपि मस्तिष्क की वृद्धि स्तनी वर्ग के अन्य बहुत से जंतुसमूहों में भी हुई, तथापि कुछ अज्ञात कारणों से यह वृद्धि प्राइमेटों में सबसे अधिक हुई। संभवत: उनका वृक्षीय जीवन मस्तिष्क की वृद्धि के अन्य कारणों में से एक हो सकता है।


आद्य मानव उद्योग

जिस प्रकार उपर्युक्त जीवाश्मों द्वारा मानव शरीर (अस्थियों) के विकास का अध्ययन किया जाता है, उसी प्रकार विभिन्न मानवों द्वारा छोड़े करणों (औजारों, implements) द्वारा उनकी सभ्यता के विकास का अध्ययन किया जा सकता है। ये औजार मानव जीवाश्म के साथ, या आस पास, पाए गए हैं और मानव-मस्तिष्क के विकास के साथ इनमें भी विकास हुआ है। प्रारंभिक औजार भोंडे (crude) और पत्थर के टुकड़े मात्र थे, परंतु बाद में ये सुदृढ़ और उपयोगी होते गए।

ये औजार केवल अत्यंतनूतन युग में ही मिलते है, अतएव इनके काल का ज्ञान उन हिमनदी कल्पों से भी लगाया जाता है जो इस (अत्यंतनूतन) युग में पड़ चुके हैं। भिन्न भिन्न समय पर पाए गए उपकरणों को एक उद्योग का नाम देते हैं। यह नाम किसी यूरोपीय स्थान के नाम पर आधारित है। औजार उद्योग के आधार पर अत्यंतनूतन युग को तीन कालों में विभक्त कर सकते हैं :

(1) पुराप्रस्तर काल, (2) मध्यप्रस्तर काल तथा (3) नवप्रस्तर काल।


पुराप्रस्तर काल

पुराप्रस्तर काल को चार अन्य कालों में विभक्त कर सकते हैं

(1) प्रारंभिक काल--अत्यंतनूतन युग के प्रारंभ में जो औजार प्राप्त होते हैं, वे पत्थरों के भोंडे टुकड़ों के रूप में हैं। बहुधा यह संदेहमय जान पड़ता है कि ये मनुष्य द्वारा ही गढ़े गए होंगे।

(2) निचला काल--इस काल में निम्नलिखित उद्योग पाए गए हैं :


  • ऐबिविलियन (Abbevillian) उद्योग--यह उद्योग प्रथम हिमनदीय कल्प से प्रथम अंतराहिमनदीय कल्प (interglacial period) तक पाया जाता है तथा इसमें बड़ी और भोंडी कुल्हाड़ियाँ बनाई जाती थीं।
  • एक्यूलियन (Acheulian) उद्योग--एक्यूलियन उद्योग अंतिम अंतराहिमनदीय कल्प तक फैला था और इसमें हाथ से काम में लाई जानेवाली कुल्हाड़ियाँ अधिक कौशल से बनाई जाती थीं।
  • लेवैलिओसियन (Levalliosian) उद्योग--यह उद्योग तीसरे हिमनदीय कल्प में स्थापित हुआ और इसमें औजार पूरे पत्थरों से नहीं, वरन् उनसे चिप्पड़ उतारकर बनाए जाने लगे। इस उद्योग के काल में चीन के और संभवत: जावा के, मानव रहा करते थे।


 अतिनूतन (Pliocene) यूग के, संभवत: मानव निर्मित, ये प्रस्तर अवशेष इंग्लैंड के केंट प्रदेश में प्राप्त हुए थे।


(3) मध्य काल--इस काल का उद्योग इस प्रकार है :

मूस्टीरियन (Mousterian) उद्योग--यह उद्योग तृतीय हिमनदीय कल्प से अंतिम, अर्थात् चतुर्थ हिमनदीय कल्प, के प्रारंभिक काल तक फैला था। इस उद्योग में हस्त कुल्हाड़ियों का स्थान अन्य औजारों ने ले लिया था, जो पत्थरों के बड़े बड़े चिप्पड़ उतार कर बड़े कौशल से बनाए जाते थे। यह उद्योग काल निर्येडरथाल मानव काल माना जाता है।

(4) उत्तर काल--यह काल अंतिम हिमनदीय कल्प के अंतिम चरण में पाया जाता है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित उद्योग संमिलित हैं :


  1. ऑरिग्नेशियन (Aurignacian) उद्योग--ऑरिग्नेशियन उद्योग उत्कृष्ट नमूनों तथा उच्च कला कौशल का परिचायक है। पत्थर के अतिरिक्त इस काल में हड्डी, सींग, हाथीदाँत आदि का उपयोग गले के हार तथा अन्य शारीरिक आभूषण निर्माण के लिये किया जाता था। गुफा चित्रकारी तथा शिल्प कला इस काल में प्रारंभ हो चुकी थी।
  2. सोलूट्रियन (Solutrean) उद्योग--इस उद्योग के समय पत्थरों से चिप्पड़ काटकर नहीं, वरन् उन्हें दबाकर, निकाले जाते थे। इनसे उत्कृष्ट भाला फलक बनाए जाते थे।
  3. मैग्डेलिनियन (Magdalenian) उद्योग--इस उद्योग काल में पत्थरों के औजारों के साथ साथ बारहसिंघों के सींग से अन्यान्य प्रकार के औजार बनाए जाते थे, जैसे हारपून (तिमि भेदने के लिये), बरछों के फलक तथा भाला फेंकनेवाले उपकरण आदि। चित्रकारी में विभिन्न रंगों का उपयोग कर जंतुओं के चित्र बनाए जाते थे। यूरोप झ्र् फ्रांस और पाइरेनीज (Pyreness) में ऐसी अनेक कला कृतियाँ अब भी मौजूद हैं।



 मध्यप्रस्तर काल

अंतिम हिमनदीप कल्प के अंत होने या गरम जलवायु के वापस आने तक के काल को मध्यप्रस्तर काल कहा जाता है। यह अल्पकालीन (transitory) युग कहा जाता है। इस समय तक मनुष्य सभ्य हो चला था। यद्यपि कृषि तथा पशुपालन का प्रारंभ अभी नहीं हुआ था और मानव अब भी घूम घूमकर पशुओं का शिकार किया करता था। शीतकाल में पाए जानेवाले अधिकांश जंतु इस काल में या तो नष्ट हो गए थे, या प्रवास कर गए थे। अमरीका में आनेवाले प्रथम मानव इसी युग के थे। पत्थर के औजार सूक्ष्म तथा विचित्र आकार के थे।

नवप्रस्तर काल

यह अंतिम और वर्तमान युग है। पत्थर के औजार यद्यपि इस युग (के प्रारंभ) में भी बनाए जाते थे, परंतु कृषि और पशुपालन इस युग की विशेष घटनाएँ थीं। अनाज रखने के लिये मिट्टी के बरतन बनाए जाते थे, जिनकी आयु का अनुमान उनकी बनावट और उनके भागों के अनुपात की भिन्नता से सरलता से जाना जा सकता है। सूअर, गाय, भेड़ और बकरी का पालन प्रारंभ हो चुका था। इस युग के प्रारंभ काल का निश्चित पता नहीं चलता, परंतु यह निश्चित है कि 4,000 वर्ष ईसा से पूर्व इस युग की स्थापना भलीभाँति हो चुकी थी। संभवत: इस युग की सभ्यता का श्रीगणेश मिस्र, मेसोपोटामिया, उत्तरी पश्चिमी भारत तथा इन भागों की बृहत् नदियों, जैसे नील, दजला (Tigris), फरात (Euphrates) और सिंध की घाटियों में हुआ।

वनस्पति और जंतु का पूर्ण उपयोग करने के पश्चात् मनुष्य का ध्यान खनिज पदार्थों की ओर गया। सर्वप्रथम ताँबे का उपयोग किया गया, परंतु शीघ्र ही यह मालूम हो गया कि धातुओं के मिश्रण से वस्तुएँ अधिक कड़ी बनाई जा सकती हैं। लगभग 3,000 वर्ष ईसा पूर्व काँसे (ताँबे और टिन के मिश्रण) का प्रयोग प्रारंभ हुआ। 1,400 वर्ष ईसा पूर्व इस्पात का उपयोग होने लगा, जो अब तक चला आ रहा है।


मनुष्य के जीवित संबंधी

 मनुष्य के पूर्वजों की अन्य कोई जाति अब जीवित नहीं है। वर्तमान जंतुओं में जो समूह उनके निकट संबंधी होने का दावा कर सकता है, उसे प्राइमेटीज़ (primates, नरवानर-गण) कहते हैं। यह स्तनियों का एक समूह है। मानव विकास के अध्ययन में प्राइमेटीज़ का संक्षिप्त विवरण आवश्यक हो जाता है। प्रख्यात जीवाश्म विज्ञानी, जी जी सिंपसन (G. G. Simpson), के अनुसार प्राइमेटीज का वर्गीकरण इस प्रकार कर सकते हैं :

प्रोसिमिई

टार्सियर - टार्सियर की केवल एक जाति होती है, जो पूर्वी एशिया के द्वीपों में पाई जाती है, परंतु इसके जीवाश्म यूरोप और अमरीका में भी पाए जाते हैं, जो इनके विस्तृत वितरण के द्योतक हैं।

लीमर - ये मैडागैस्कर द्वीप पर ही पाए जाते हैं और वृक्षवासी होते हैं। भोजन की खोज में ये बहुधा भूमि पर भी आ जाते हैं। ये सर्वभक्षी (omnivorous) होते हैं।

लोरिस - ये उष्ण कटिबंधीय अफ्रीका और एशिया में पाए जाते हैं। छोटे और समूर-दार (furry) होने के कारण ये लोकप्रिय, पालतू जंतु माने जाते हैं।


ऐंथ्रोपॉइडिया

नवीन संसार के वानर - इनमें निम्नलिखित जातियाँ हैं :

मार्मोसेट - मार्मोसेट उष्णकटिबंधीय अमरीका में पाया जाता है। यह वृक्षवासी और सर्वभक्षी होता है।

सीबस - ये उष्णकटिबंधीय अमरीका में पाए जानेवाले वृक्षवासी वानर हैं, जो मानवाकार कपियों की भाँति साधनों या करण का उपयोग करते हैं।

एलूएटा - एलूएटा मध्य अमरीका के पनामा नहर के समीप बैरो कोलैरैडो (Barrow Colorado) नामक द्वीप पर पाए जाते हैं। ये वानर संसार में सबसे अधिक शोर मचानेवाले जंतु हैं। इनमें कुछ सामाजिक प्रवृत्तियाँ भी पाई जाती हैं।

प्राचीन संसार के वानर - इनमें नीचे लिखी जातियाँ हैं :

बैबून - बैबून अफ्रीका और दक्षिणी एशिया में रहते हैं। ये माप में भेड़ियें के बराबर होते हैं। इनकी थूथन लंबी और कुछ छोटी होती है। मकाक--मकाक की विभिन्न जातियाँ जिब्राल्टर, उत्तरी अफ्रीका, भारत, मलाया, चीन और जापान में पाई जाती हैं। ये वृक्षवासी, चतुर और परिश्रमी जंतु होते हैं।


मानवाकार कपिगण - मानवाकार कपि के अंतर्गत चार बृहत् कपि, गिब्बन, ओरांग, ऊटान, गोरिल्ला और चिंपैंज़ी, आते हैं।

यद्यपि बृहत् कपियों और मनुष्य में अनेक समानताएँ अवश्य पाई जाती हैं, फिर भी इन्हें मनुष्य का पूर्वज कहना सर्वथा त्रुटिपूर्ण होगा, क्योंकि जहाँ मनुष्य तथा इन कपियों में समानताएँ मिलती हैं, वहाँ उनमें और पूर्व वानरों में भी कुछ मिलता हैं। इतना ही नहीं, बृहत् कपि अपने अनेक गुणों में मनुष्य से अधिक विशिष्ट हैं। अतएव हम समानताओं के आधार पर केवल इतना ही कह सकते हैं कि बृहत् कपि और मनुष्य के पूर्वज प्राचीन काल में एक रहे होंगे।


मानव विकास में सहायक विशेष गुण

वे विशेष गुण, जिन्होंने मनुष्य के विकास को प्रोत्साहित किया, निम्नलिखित हैं :

खड़े होकर चलना - यद्यपि कुछ बृहत् कपि भी बहुधा खड़े हो लेते हैं, परंतु स्वभावत: खड़ा होकर चलनेवाला केवल मनुष्य ही है। इस गुण के फलस्वरूप मनुष्य के हाथ अन्य कार्यों के लिये स्वतंत्र हो जाते हैं। खड़े होकर चलने के लिये उसकी अस्थियों की बनावट और स्थिति आंतरिक अंगों की स्थितियों में फेर बदल हुए। पैर की अस्थियों में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। अँगूठा अन्य उँगलियों की सीध में आ गया तथा पैरों ने चापाकार (arched) होकर थल पर चलने और दौड़ने की विशेष क्षमता प्राप्त कर ली। ये गुण मनुष्य की सुरक्षा और भोजन खोजने की क्षमता में विशेष रूप से सहायक सिद्ध हुए।

त्रिविम दृष्टि (Stereoscopic Vision) - चेहरे पर आँखों का सामने की ओर अग्रसर होना टार्सियर जैसे पूर्व वानरों में प्रारंभ हो चुका था, पर इसका पूर्ण विकास मनुष्य में ही हो पाया। इसके द्वारा वह दोनों आँख एक ही वस्तुपर केंद्रित कर न केवल उसका एक ही प्रतिबिंब देख पाता है, वरन् उसके त्रिविम आकार (three dimensional view) की विवेचना भी कर सकता है। इस विशेष दृष्टि द्वारा उसे वस्तु की दूरी और आकार का ही सही अनुमान लग पाता है तथा वह अधिक दूर तक भी देख पाता है।

संमुख अंगुष्ठ (Opposible Thumb)--संमुख अंगुष्ठ का अर्थ है, अंगुष्ठ को अन्य उंगलियों की प्रतिकूल स्थिति में लाया जा सकना। इस स्थिति में अंगुष्ठ अन्य उंगलियों के सामने आकर और साथ मिलकर वस्तुओं में पकड़ सकने में सफल हो पाता है। यह गुण जंतु समूह में केवल प्राइमेट गणों में, वस्तुओं की परीक्षण हेतु मुख के समुख लाने से, प्रारंभ हुआ तथा मनुष्य में उसका इतना अधिक विकास हुआ कि आज मनुष्य का हाथ एक अत्यंत संवेदनशील और सूक्ष्मग्राही यंत्र बन गया है। ऐसे हाथ की सहायता से मनुष्य अपनी मानसिक शक्तियों को कार्य रूप सृष्टि का सबसे प्रतिभाशाली प्राणी बन पाने में सफल हुआ है। यह कहना कि संमुख अंगुष्ठ ने ही मानव मस्तिष्क के संवर्धन में योगदान किया है, अतिशयोक्ति ने होगी।

इस प्रकार विकास की दिशा में जो पहला परिवर्तन मनुष्य में हुआ वह प्रथम पैरों पर सीधा खड़े होने के लिये तथा द्वितीय हाथों से वस्तुओं को भली प्रकार पकड़ सकने के लिये रहा होगा। हाथ में हुए परिवर्तन ने उसे उपकरण बनाने की ओर प्रोत्साहित किया होगा और उपकरणों ने आक्रमण कर शिकार करने, या अपनी सुरक्षा करने, की भावना उसमें उत्पन्न की होगी। आक्रमण के बाह्य साधन की उपलब्धि के फलस्वरूप उसके आक्रमणकारी अंगों (दाँत, जबड़े और संबंधित मुख या गर्दन की मांसपेशियों) में ह्रास और स्वयं हाथों में विशेषताएँ प्रारंभ हुई होंगी। हाथ के अधिक क्रियाशील होने पर, मस्तिष्क संवर्धन स्वाभाविक ही हुआ होगा। संक्षेप में, मानव विकास में तीन मुख्य क्रम रहे होंगे : पहला पैरों का, दूसरा हाथों का और तीसरा मस्तिष्क का विकास।


मनुष्य का भविष्य

स्पष्ट है कि मस्तिष्क की वृद्धि पर ही मनुष्य के संपूर्ण विकास का बल रहा है। यह वृद्धि अब भी हो रही है या नहीं, यह कहना कठिन है, परंतु जितना कुछ विकास हो चुका है उसके आधार पर मानव और लुप्त सरीसृपों (डाइनोसॉरिया, इक्थियोसॉरिया आदि) के विकास से तुलनात्मक निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। लुप्त सरीसृपों का शरीर भीमकाय (भार 40-60 टन तक) हो गया था। फलस्वरूप बृहत् शरीर की आवश्यकताओं को अपेक्षाकृत छोटा मस्तिष्क पूरा न कर सका और ये जंतु क्रमश: लुप्त होते गए। इसके प्रतिकूल मनुष्य में शरीर के अनुपात में अपेक्षाकृत मस्तिष्क कहीं बड़ा हो गया है, अतएव मनुष्य के मस्तिष्क की अधिकांश शक्ति शारीरिक आवश्यकताओं (भोजन, सुरक्षा आदि) को पूरा कर लेने के बाद भी शेष रह जाती है।

यह शक्ति मनुष्य अपने सुख साधनों को एकत्रित करने तथा विज्ञान और तकनीकी उपलब्धियों को प्राप्त करने में लगा रहा है। इनमें विनाश के भी बीज निहित हैं। मनुष्य का भविष्य, अर्थात वह रहेगा अथवा सरीसृपियों की भाँति पृथ्वी रूपी रंगमंच पर अपना अभिनय समाप्त करके सदा के लिये लुप्त हो जाएगा, यह उसके विनाशकारी औजारों की शक्ति और उनके उपयोग पर निर्भर करता है। यदि उसका लोप हुआ, तो वह इस निष्कर्ष की पूर्ति करेगा कि प्रकृति में किसी जंतु के शरीर और मस्तिष्क विकास में समन्वय होना आवश्यक है। ऐसा न होने पर उस जंतु का भविष्य में अस्तित्व सदा अनिश्चित ही रहेगा।



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Wednesday, April 17, 2019

सामाजिक विज्ञान [SST]

Social Studies [SST]

SST के दो पहेलू है।

1.  Social science
2.  Social Studies


Social science [सामाजिक विज्ञान]

सामाजिक विज्ञान (Social science) मानव समाज का अध्ययन करने वाली शैक्षिक विधा है। प्राकृतिक विज्ञानों के अतिरिक्त अन्य विषयों का एक सामूहिक नाम है 'सामाजिक विज्ञान'। इसमें नृविज्ञान, पुरातत्व, अर्थशास्त्र, भूगोल, इतिहास, विधि, भाषाविज्ञान, राजनीति शास्त्र, समाजशास्त्र, अंतरराष्ट्रीय अध्ययन और संचार आदि विषय सम्मिलित हैं। कभी-कभी मनोविज्ञान को भी इसमें शामिल कर लिया जाता है।


Social Studies [सामाजिक अध्ययन]


सामाजिक अध्ययन सामाजिक विज्ञान, मानविकी और इतिहास का समाकलित अध्ययन हैं। शालेय कार्यक्रम में, सामाजिक अध्ययन, एक समन्वित व्यवस्थित अध्ययन प्रदान करता है, जो मानवशास्त्र, पुरातत्वशास्त्र, अर्थशास्त्र, भूगोल, इतिहास, विधिशास्त्र, दर्शन, राजनीति विज्ञान, मनोविज्ञान, धर्म, और समाजशास्त्र जैसे अनुशासनों से, और साथ ही, मानविकी, गणित, और प्राकृतिक विज्ञान की उचित सामग्री से, लिया जाता हैं।


अवलोकन

एक अन्तरनिर्भर विश्व में, एक सांस्कृतिक रूप से विविध, लोकतान्त्रिक समाज के नागरिकों के रूप में, युवा लोगों द्वारा सार्वजनिक हित के लिए, सूचित और तर्कस्वरूप निर्णय ले पाने की क्षमता को विकसित करने में सहायता करना, सामाजिक अध्ययन का प्राथमिक हेतु है।


 सामाजिक विज्ञान की शाखाएँ


  1. नृविज्ञान (Anthropology)
  2. अर्थशास्त्र (Economics)
  3. शिक्षाशास्त्र (Education)
  4. भूगोल (Geography)
  5. इतिहास (History)
  6. विधि (Law)
  7. भाषाविज्ञान (Linguistics)
  8. राजनीति विज्ञान (Political science)
  9. लोक प्रशासन (Public administration)
  10. मनोविज्ञान (Psychology)
  11. समाजशास्त्र (Sociology)


सामाजिक अध्ययन के उद्देश्य (Aims Of Social Studies)

सामाजिक अध्ययन के उद्देश्य निम्नलिखित हैं:-

1. व्यक्तित्व का सर्वागीण विकास (Al-round Development of Personality)

सामाजिक अध्ययन विषय का उद्देश्य बच्चों का सर्वागीण विकास करना है। मानव ने इस सृष्टि पर जीवन कैसे आरम्भ किया, उसका भौतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक वातावरण क्या था। इसका ज्ञान बालकों को देना आवश्यक है, क्योंकि तभी उन्हें अपने अस्तित्व की जानकारी प्राप्त होगी। बच्चों को यह जानकारी देनी आवश्यक है कि भिन्न-भिन्न प्रकार की संस्थाओं का जन्म कैसे हुआ।

2. वांछित अभिव्यक्ति का विकास [Deplopment of Desired Attitudes ]

ज्ञान के साथ-साथ उचित अभिवतियो का विकास भी आवश्यक है। उचित अभिवतियों अच्छे व्यवहार का आधार है। यह अभिवतियों बौद्धिक तथा भावनात्मक दोनों प्रकार की होती है। बालक का व्यवहार इन्हीं अभिवतियों पर निर्भर करता है। भावनात्मक अभिवतियों पूर्वाग्रह, ईर्ष्या तथा आलस्य के आधार पर निर्मित होती है जबकि बौद्धिक अभिवतियों  तथ्यों को अधिक महत्व देते है। सामाजिक अध्ययन के अध्यापक का कर्तव्य है कि वह बालकों मे बौद्धिक अभिवतियो का विकास करे। उनके अंदर कुछ सामाजिक गुण जैसे आत्मसंयम, धेर्य, सहानुभूति तथा आत्म समान को विकसित करे।


3. ज्ञान प्रदान करना (Providing Knowledge)

 स्कूल बालकों को अच्छा नागरिक बनाना चाहता है तो उन्हें ज्ञान प्रदान करना आवश्यक है। ज्ञान स्पष्ट चिंतन व उचित निर्णय के लिए  बहुत आवश्यक हैं। छात्रों को  समाज के अनेक रीति रिवाजों रहन-सहन,  संस्कृति, सभ्यता तथा नियम आदि से परिचित कराना बहुत आवश्यक है। इस प्रकार के ज्ञान से छात्र अपने भविष्य के जीवन को सफल बना सकते हैं।


4. अच्छी नागरिकता का विकास (Development of Good Citizenship)

प्रजातंत्र की सफलता के लिए नागरिकों में नागरिकता के गुणों को विकसित करना आवश्यक हैं। औद्योगिक क्रांति के कारण सामाजिक संगठन पर भी प्रभाव पड़ा है। इसने परिवार, धर्म, समुदाय को छिन्न - भिन्न करके रक दिया है। नगरो में अनेक वे  व्यसाय पनपने लगे हैं, गांव में सीमित भूमि होने के कारण और जनसंख्या के तेजी से बढ़ने के कारण लोगों ने घरों को छोड़कर नगरों में रहना आरम्भ कर दिया है। जिससे नगरों में भी आवास की समस्या हो गई है। तनाव बढ़ रहे हैं। इसलिए सामाजिक अध्यन में अच्छी नागरिकता की शिक्षा देने का  महत्व बढ़ गया है।


5. मानव समाज की व्याख्या करना (Explaination of Human Society)

मानव समाज जटिलताओं से भरा हुआ है। इसमें पूर्वाग्रह,  ईर्ष्या, द्धेष, अपनत्व की भावना के कारण पारस्परिक संघर्ष सृष्टि के आरंभ से चले आ रहे है इसलिए बच्चो को यह जानकारी प्रदान करना आवश्यक है कि जिस वातावरण में वह रहते हैं वह अस्तित्व में कैसे आया। व्यक्ति  एवम समाज  एक दूसरे को किस सीमा तक प्रभावित करते हैं। संसार की विभिन्न सस्थायो का विकास कैसे हुआ। समय के साथ  बदलती हुई आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सामाजिक सस्थाए  कैसे विकसित हुई तथा उनमें परिवर्तन कैसे आया।


6. मानवीय जीवन का विकास (Development of Human Life)

सामाजिक अध्ययन शिक्षण का विशिष्ट उद्देश्य मानवीय समाज की व्याख्या करना है मानव ने इस     सृष्टि पर जीवन कैसे आरम्भ किया, आदि मानव से आज के मानव में जो परिवर्तन आये, उनका रहन- सहन, खान, पान, भाषा, व्यवहार, सभ्यता एम संस्कृति में आय  बदलाव की कहानी कितनी पुरानी है।


7. विद्यार्थियों का सामाजिकरण   (Socialization of Students)

 सामाजिक अध्ययन बच्चो में सामाजिक आदतों का विकास करता है। उनमें सहयोग,  सहकारिता, सहनशीलता, सहानुभूति, सहिष्णुता जैसे गुणों को विकसित किया जाता है। उनमें विश्लेषण एंव निष्कर्ष, निरूपण जैसे गुणों को विकसित किया जाता है। विद्यार्थी तथ्य संग्रह करना सिकते है। सार्थक रूप से लिखना, पड़ना सीखते हैं।


8. परस्पर निर्भरता की भावना का विकास (Development of feeling of interdepenfence)

स्वस्थ एंव संतुलित सामाजिक जीवन के लिए मनुष्य को मानवीय प्रकृति तथा भौतिक वातावरण को समझना पड़ता है। यंत्रीकरण, श्रम के विभाजन और बड़े पैमाने पर उद्योगों के कारण आज की सामाजिक ब्यावस्था अत्यंत जटिल हो गई है। आज हर मानव एक - दूसरे पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर है।



भारतीय सामाजिक अनुसंधान परिषद (Indian Council of Social Science Research/ICSSR)

भारत कि एक परिषद है जो सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देती है।


भारतीय सामाजिक अनुसंधान परिषद (ICSSR)
                     100px

स्थापना।                      -         1969
अध्यक्ष                        -         ब्रज बिहारी कुमार
अवस्थिति।                   -         अरुणा आसफ अली मार्ग,
                                            नयी दिल्ली
जालस्थल।                   -         www.icssr.org/


इसकी स्‍थापना सामाजिक विज्ञान अनुसंधान को विकसित करने, विभिन्‍न शाखाओं को सुदृढ़ करने, सामाजिक विज्ञान अनुसंधान की गुणवत्‍ता एवं मात्रा में सुधार लाने तथा राष्‍ट्रीय नीति निर्माण में इसका उपयोग करने के लिए वर्ष 1969 में की गयी थी। इन लक्ष्‍यों को साकार करने के लिए आईसीएसएसआर ने सांस्‍थानिक बुनियादी ढांचे के विकास, अनुसंधान प्रतिभाओं का पता लगाने, अनुसंधान कार्यक्रमों को तैयार करने, व्‍यावसायिक संगठनों को सहायता प्रदान करने तथा विदेशों में सामाजिक वैज्ञानिकों के साथ संपर्क स्‍थापित करने पर विचार किया था। आईसीएसएसआर देश भर के विभिन्‍न सामाजिक विज्ञान अनुसंधान संस्‍थानों तथा इसके क्षेत्रीय केन्‍द्रों को रखरखाव एवं विकास अनुदान मुहैया कराता है। स्‍थानीय प्रतिभाओं संबंधी शोध एवं विकास को समर्थन देने और विकेन्‍द्रीकृत तरीके से इसके कार्यक्रमों तथा कार्यकलापों को समर्थन देने के लिए क्षेत्रीय केन्‍द्रों की स्‍थापना आईसीएसएसआर की विस्‍तारित शाखाओं के रूप में की गई है।

वर्ष 1976 से ही आईसीएसएसआर सामाजिक विज्ञान के विभिन्‍न विषयों में शोध संबंधी सर्वेक्षण करता रहा है। पूर्वोत्‍तर क्षेत्र में सामाजिक विज्ञान संबंधी शोध को बढ़ावा देने के लिए विशेष बल देने के मद्देनजर आईसीएसएसआर में कई पहलें की गई हैं ताकि शोध प्रस्‍तावों और अन्‍य कार्यकलापों को समर्थन दिया जा सके।


सामाजिक विज्ञान शिक्षण के मॉडल

सामाजिक विज्ञान शिक्षण के मॉडल से तात्पर्य सामाजिक विज्ञान के शिक्षण के किसी योजना या पैटर्न से है जिसका उपयोग पाठ्यक्रम बनाने, शैक्षणिक सामग्री बनाने, तथा कक्षा में शिक्षण को बेहतर बनाने में किया जा सकता है।


शिक्षण विधियाँ

जिस ढंग से शिक्षक शिक्षार्थी को ज्ञान प्रदान करता है उसे शिक्षण विधि कहते हैं। "शिक्षण विधि" पद का प्रयोग बड़े व्यापक अर्थ में होता है। एक ओर तो इसके अंतर्गत अनेक प्रणालियाँ एवं योजनाएँ सम्मिलित की जाती हैं, दूसरी ओर शिक्षण की बहुत सी प्रक्रियाएँ भी सम्मिलित कर ली जाती हैं। कभी-कभी लोग युक्तियों को भी विधि मान लेते हैं; परंतु ऐसा करना भूल है। युक्तियाँ किसी विधि का अंग हो सकती हैं, संपूर्ण विधि नहीं। एक ही युक्ति अनेक विधियों में प्रयुक्त हो सकती है।


शिक्षण की विविध विधियाँ


  1. निगमनात्मक तथा आगमनात्मक


पाठ्यविषय को प्रस्तुत करने के दो ढंग हो सकते हैं। एक में छात्रों को कोई सामान्य सिद्धांत बताकर उसकी जाँच या पुष्टि के लिए अनेक उदाहरण दिए जाते हैं। दूसरे में पहले अनेक उदाहरण देकर छात्रों से कोई सामान्य नियम निकलवाया जाता है। पहली विधि को निगमनात्मक विधि और दूसरी को आगमनात्मक विधि कहते हैं। ये विधि व्याकरण शिक्षण के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है।


2. संश्लेषणात्मक तथा विश्लेषणात्मक

दूसरे दृष्टिकोण से शिक्षण विधि के दो अन्य प्रकार हो सकते हैं। पाठ्यवस्तु को उपस्थित करने का ढंग यदि ऐसा हैं कि पहले अंगों का ज्ञान देकर तब पूर्ण वस्तु का ज्ञान कराया जाता है तो उसे संश्लेषणात्मक विधि कहते हैं। जैसे हिंदी पढ़ाने में पहले वर्णमाला सिखाकर तब शब्दों का ज्ञान कराया जाता है। तत्पश्चात् शब्दों से वाक्य बनवाए जाते हैं। परंतु यदि पहले वाक्य सिखाकर तब शब्द और अंत में वर्ण सिखाए जाएँ तो यह विश्लेषणात्मक विधि कहलाएगी क्योंकि इसमें पूर्ण से अंगों की ओर चलते हैं।


3. वस्तुविधि

शिक्षण का एक प्रसिद्ध सूत्र हैं - "मूर्त से अमूर्त की ओर"। वास्तव में हमें बाह्य संसार का ज्ञान अपनी ज्ञानेंद्रियों के द्वारा होता है जिनमें नेत्र प्रमुख हैं। किसी वस्तु पर दृष्टि पड़ते ही हमें उसका सामान्य परिचय मिल जाता है। अत: मूर्त वस्तु ज्ञान प्रदान करने का सबसे सरल साधन है। इसीलिये आरंभ से वस्तुविधि का सहारा लिया जाता है अर्थात् बच्चों को पढ़ाने के लिए वस्तुओं का प्रदर्शन करके उनके विषय में ज्ञान प्रदान किया जाता है। यहाँ तक कि अमूर्त को भी मूर्त बनाने का प्रयास किया जाता है। जैसे, तीन और दो पाँच को समझाने के लिए पहले छात्रों के सम्मुख तीन गोलियाँ रखी जाती हैं। फिर उनमें दो गोलियाँ और मिलाकर सबको एक साथ गिनाते हैं तब तीन और दो पाँच स्पष्ट हो जाता है।


4. दृष्टांतविधि

वस्तुविधि का एक दूसरा रूप है - दृष्टांतविधि। वस्तुविधि में जिस प्रकार वस्तुओं के द्वारा ज्ञान प्रदान किया जाता है दृष्टांतविधि में उसी प्रकार दृष्टांतों के द्वारा। दृष्टांत दृश्य भी हो सकते हैं और श्रव्य भी। इसमें चित्र, मानचित्र, चित्रपट आदि के सहारे वस्तु का स्पष्टीकण किया जाता है। साथ ही उपमा, उदाहरण, कहानी, चुटकुले आदि के द्वारा भी विषय का स्पष्टीकरण हो सकता है।


5. कथनविधि एवं व्याख्यानविधि

वस्तु एवं दृष्टांतविधियों से ज्ञान प्राप्त करते करते जब बच्चों को कुछ कुछ अनुमान करने तथा अप्रत्यक्ष वस्तु को भी समझने का अभ्यास हो जाता है तब, कथनविधि का सहारा लिया जाता है। इसमें वर्णन के द्वारा छात्रों को पाठ्यवस्तु का ज्ञान दिया जाता है। परंतु इस विधि में छात्र अधिकतर निष्क्रिय श्रोता बने रहते हैं और पाठन प्रभावशाली नहीं होता। इसी से प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री हर्बर्ट स्पेंसर ने कहा है- "बच्चों को कम से कम बतलाना चाहिए, उन्हें अधिक से अधिक स्वत: ज्ञान द्वारा सीखना चाहिए"। व्याख्यानविधि इसी की सहचरी है। उच्च कक्षाओं में प्राय: व्याख्यानविधि का ही प्रयोग लाभदायक समझा जाता है।


कथनविधि में प्राय: हर्बर्ट के पाँच सोपानों का प्रयोग किया जाता है। वे हैं

(1) प्रस्तावना, (2) प्रस्तुतीकरण, (3) तुलना या सिद्धांतस्थापन, (4) आवृत्ति, (5) प्रयोग।

परंतु केवल ज्ञानार्जन के पाठों में ही पाँचों सोपानों का प्रयोग होता है। कौशल तथा रसास्वादन के पाठों में कुछ सीमित सोपानों का ही प्रयोग होता है।


6. प्रश्नोत्तर विधि (सुकराती विधि)

प्रश्न यद्यपि एक युक्ति है फिर भी सुकरात ने प्रश्नोत्तर को एक विधि के रूप में प्रयोग करके इसे अधिक महत्व प्रदान किया है। इसी से इसे सुकराती विधि कहते हैं। इसमें प्रश्नकर्ता से ही प्रश्न किए जाते हैं और उसके उत्तरों के आधार पर उसी से प्रश्न करते-करते अपेक्षित उत्तर निकलवा लिया जाता है।


7. करके सीखना

जब से बाल मनोविज्ञान के विकास ने यह सिद्ध कर दिया है कि शिक्षा का केंद्र न तो विषय है, न अध्यापक, वरन् छात्र है, तब से शिक्षण में सक्रियता को अधिक महत्व दिया जाने लगा है। करके सीखना (learning by doing) अर्थात् स्वानुभव द्वारा ज्ञान प्राप्त करना, आजकल का सर्वाधिक व्यापक शिक्षणसिद्धांत है। अत: रूसों से लेकर मांटेसरी और ड्यूबी तक शिक्षाशास्त्रियों ने बच्चों की ज्ञानेंद्रियों को अधिक कार्यशील बनाने तथा उनके द्वारा शिक्षा देने पर अधिक बल दिया है। महात्मा गांधी ने भी इसी सिद्धांत के आधार पर बेसिक शिक्षा को जन्म दिया। अत: सक्रिय विधि के अंतर्गत अनेक विधियाँ सम्मिलित की जा सकती हैं जैसे- शोधविधि (ह्यूरिस्टिक), योजना (प्रोजेक्ट) विधि, डाल्टन प्रणाली, बेसिक-शिक्षा-विधि, इत्यादि।


8. शोधविधि

जर्मनी के प्रोफेसर आर्मस्ट्रौंग द्वारा शोधविधि का प्रतिपादन हुआ था। इस विधि में छात्रों को उपयुक्त वातावरण में रखकर स्वयं किसी तथ्य को ढूढ़ने के लिए प्रेरित किया जाता है। इसका यह अर्थ नहीं है कि अध्यापक कुछ नहीं करता और छात्रों को मनमाना काम करने को छोड़ देता है। सच पूछिए तो वह छात्र का पथप्रदर्शन करता तथा उसे गलत रास्ते से हटाकर सीधे रास्ते पर लाता रहता है। उसका लक्ष्य यह रहता है कि जो ज्ञान छात्र अपने निरीक्षण अथवा प्रयोग द्वारा प्राप्त कर सकता है उसे बताया न जाए। इस विधि का प्रयोग पहले तो विज्ञान की शिक्षा में किया गया। फिर धीरे-धीरे गणित, भूगोल तथा अन्य विषयों में भी इसका प्रयोग होने लगा।


9. प्रोजेक्ट विधि

अमरीका के प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री ड्यूवी, किलपैट्रिक, स्टीवेंसन आदि के सम्मिलित प्रयास का फल योजना (प्रोजेक्ट) विधि है। इसके अनुसार ज्ञानप्राप्ति के लिए स्वाभाविक वातावरण अधिक उपयुक्त होता है। इस विधि से पढ़ाने के लिए पहले कोई समस्या ली जाती है, जो प्राय: छात्रों के द्वारा उठाई जाती है और उस समस्या का हल करने के लिए उन्हीं के द्वारा योजना बनाई जाती है और योजना को स्वाभाविक वातावरण में पूर्ण किया जाता है। इसी से इसकी परिभाषा इस प्रकार की जाती है कि योजना वह समस्यामूलक कार्य है जो स्वाभाविक वातावरण में पूर्ण किया जाए।


10. डाल्टन योजना

अमरीका के डाल्टन नामक स्थान में 1912 से 1915 के बीच कुमारी हेलेन पार्खर्स्ट्र ने शिक्षा की एक नई विधि प्रयुक्त की जिसे डाल्टन योजना कहते हैं। यह विधि कक्षाशिक्षण के दोषों को दूर करने के लिए आविष्कृत की गई थी। डाल्टन योजना में कक्षाभवन का स्थान प्रयोगशाला ले लेती है। प्रत्येक विषय की एक प्रयोगशाला होती है, जिसमें उस विषय के अध्ययन के लिए पुस्तकें, चित्र, मानचित्र तथा अन्य सामग्री के अतिरिक्त सन्दर्भग्रंथ भी रहते हैं। विषय का विशेषज्ञ अध्यापक प्रयोगशाला में बैठकर छात्रों की सहायता करता है, उनके कार्यों की जाँच तथा संशोधन करता है। वर्ष भर का कार्य 9 या 10 भागों में बाँटक निर्धारित कार्य (असाइनमेंट) के रूप में प्रत्येक छात्र को लिखित दिया जाता है। छात्र उस निर्धारित कार्य को अपनी रुचि के अनुसार विभिन्न प्रयोगशालाओं में जाकर पूरा करता है। कार्य अन्वितियों में बँटा रहता है। जितनी अन्विति का कार्य पूरा हो जाता है उतनी का उल्लेख उसके रेखापत्र (ग्राफकार्ड) पर किया जाता है। एक मास का कार्य पूरा हो जाने पर ही दूसरे मास का निर्धारित कार्य दिया जाता है। इस प्रकार छात्र की उन्नति उसके किए हुए कार्य पर निर्भर रहती है। इस योजना में छात्रों को अपनी रुचि और सुविधा के अनुसार कार्य करने की छूट रहती है। मूल स्रोतों से अध्ययन करने के कारण उनमें स्वावलंबन भी आ जाता है। इस योजना के अनेक रूपांतर हुए जैसे- बटेविया, विनेटका आदि योजनाएँ। डेक्रौली योजना यद्यपि इससे पूर्व की है, फिर भी उसके सिद्धांतों में डाल्टन योजना के आधार पर परिवर्तन किए गए।


11. वर्धा योजना या बुनियादी तालीम

महात्मा गांधी की वर्धा योजना या बेसिक शिक्षा (बुनियादी तालीम) भी अपने ढंग की एक शिक्षाविधि है। गांधी जी ने देश की तत्कालीन स्थिति को देखते हुए शिक्षा में 'हाथ के काम' को प्रधानता दी। उनका विश्वास था कि जब तक छात्र हाथ से काम नहीं करता तब तक उसे श्रम का महत्व नहीं ज्ञात होता। सैद्धांतिक ज्ञान मनुष्य को अहंकारी एवं निष्क्रिय बना देता है। अत: बच्चों को आरंभ से ही किसी न किसी हस्तकौशल के द्वारा शिक्षा देनी चाहिए। हमारे देश में कृषि एवं कताई-बुनाई बुनियादी धंधे हैं जिनमें देश की तीन चौथाई जनता लगी हुई है। अत: उन्होंने इन्हीं दोनों को मूल हस्तकौशल मानकर शिक्षा में प्रमुख स्थान दिया। बेसिक शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ हैं :-

(1) मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा,
(2) हस्तकौशल केंद्रित शिक्षा,
(3) सात से 14 वर्ष तक निःशुल्क अनिवार्य शिक्षा,
(4) शिक्षा स्वावलंबी हो, अर्थात् कम से कम अध्यापकों का वेतन छात्रों के किए हुए कार्यों की बिक्री से आ जाए।

अंतिम सिद्धांत का बड़ा विरोध हुआ और बेसिक शिक्षा में से हटा दिया गया।

अंग्रेजी शिक्षा ने देश के अधिकांश शिक्षित वर्ग को ऐसा पंगु बना दिया है कि वे हाथ से काम करना हेय मानते हैं। यही कारण है कि संपन्न तथा उच्च वर्ग के लोगों ने बुनियादी शिक्षा के प्रति उदासीनता दिखाई जिससे यह शिक्षा केवल निर्धन वर्ग के लिए रह गई है। अत: यह धीरे-धीरे असफल होती जा रही है।

उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि शिक्षणविधियाँ अनेक हैं। सबका प्रवर्तन किसी न किसी विशेष परिस्थिति में किसी शिक्षाशास्त्री के द्वारा हुआ है। वास्तव में प्रत्येक अध्यापक की अपनी शिक्षाविधि होती है जिससे व छात्रों को उनकी रुचि तथा योग्यता के अनुरूप ज्ञान प्रदान करता है। जो विधि जिसके लिए अधिक उपयोगी हो वही उसके लिए सर्वश्रेष्ठ विधि है।



सामाजिक विज्ञान की शब्दावली


A

abolition — उन्मूलन
abuses — दुर्व्यवहार
acculturation — संस्कृति समझना
adaptation — रूपांतरण
advantages — लाभ उठाना
agrarian — भू संबंधी
Albany Plan of Union — संघ की अलबानी योजना
alien — दूसरे ग्रह से आए प्राणी
alliance — सहबंध
alliances — सहबंधों
Allied powers — मित्र शक्तियां
amendment — संशोधन
American Federation of Labor — श्रम का अमरीकी संघ
American Railway Union — अमरीकी रेल संघ
American Revolution — अमरीकी क्रांति
American system (Clay) — अमरीकी तंत्र (क्ले)
ancestor — पूर्वज
ancestor worship — पूर्वज पूजा
animism — ब्रह्मवाद
Annapolis Convention — एनॉपोलिस सम्मेलन
anthropology — शरीर शास्त्र
Anti-Federalists — संघवाद विरोधी
appeasement — तुष्टिकरण
apportionment — बंटवारा
architectural drawings — शिल्पविद्या चित्रकारी
army — सेना
Articles of Confederation — संघटन के अंतर्नियम
artifacts — मानव कृति
assassination — वध
assassinations — वधों
Assembly — विधानसभा
astronauts — अंतरिक्षयात्री
atomic bomb — अणु बम
austerity — आत्मसंयम
autonomy — स्वायत्तता
Axis powers — अक्ष शक्तियां
Aztecs — अमरीकी इंडियन

B

baby boom — बेबी बूम
banking — बैंकिग
Berlin airlift — बर्लिन वायुवहन
Berlin Wall — बर्लिन की दीवार
bicameral — द्विसदनी
bicameral legislature — द्विसदनी विधानमंडल
blitzkrieg — बमबारी
Bolshevik Revolution — बोलशेविक क्रांति
bonds — आबंध
British North America Act — ब्रिटिश उत्तर अमरीका अधिनियम
Buddhism — बौद्धवाद
business — व्यापार
business organization — व्यापारी संगठन

C

Camp David Accord — कैंप डेविड के अनुसार
campaign — अभियान
Canada — कनाडा
Canadian Bill of Rights — कनाडा का अधिकार का कानून
canal — नहर
Caribbean — कैरिबियन
categories — श्रेणियां
Catholics — कैथलिक्स
census reports — जनसंख्या रिपोर्ट
Central America — मध्य अमरीका
characteristics — विशेषताएं
checks and balances — नियंत्रण व संतुलन
chemical warfare — रासायनिक युद्ध
child labor — बाल श्रम
Christianity — ईसाईयत
chronological order — कालक्रम
chronology — कालनिर्णय शास्त्र
civil service — सिविल सेवा
Civil War — गृह युद्ध
clan — जाति
Cold War — शीत युद्ध
collapse — क्षय
commerce — वाणिज्य
common good — सामान्य अच्छा
communism — साम्यवाद
communist nations — साम्यवादी राष्ट्र
competition — प्रतियोगिता
compromise — समझौता
Compromise of 1850 — 1850 का समझौता
Confucianism — कन्फूशियवाद
conscription — अनिवार्य सैन्य भर्ती
Conservation Day — संरक्षण दिवस
Constitutional Amendments — संवैधानिक संशोधन
Constitutional Convention — संवैधानिक सम्मेलन
construction — निर्माण
consumer society — उपभोक्ता समाज
consumption — उपभोग
containment — नियंत्रित रखना
continental congress — महाद्वीपीय राजनीतिक संघ
convention — सम्मेलन
cooperation — सहयोग
corollary — परिणाम
corporation — कार्पोरेशन
corruption — भ्रष्टाचार
cotton — कपास
court cases — अदालती मामले
credit — उधार
Cuban missile crisis — क्यूबाई मिसाइल संकट
cultural diffusion — सांस्कृतिक विसार
cultural diversity — सांस्कृतिक भिन्नता
cultural identity — सांस्कृतिक पहचान
cultural patterns — सांस्कृतिक स्वरूप
cultural understanding — सांस्कृतिक समझ
currency — मुद्रा

D

debate — बहस
Democratic Party — जनतांत्रिक दल
democratic society — जनतांत्रिक समाज
depression — मंदी
depressions — मंदियां
deregulation — अविनियमन
direct election of Senators — सांसदों का प्रत्यक्ष चुनाव
direct versus indirect election — प्रत्यक्ष विरूद्ध अप्रत्यक्ष चुनाव
disabled — अपंग
disadvantages — हानियां
disarmament — निरस्त्रीकरण
discrimination — विवेचन
diseases — बीमारियां
doctrine — सिद्धांत
domestic — घरेलू
domestic policy — घरेलू नीति
draft riots — प्रारूप उपद्रव
Dust Bowl — धूल का प्याला

E

Eastern Hemisphere — पूर्वीय गोलार्ध
economic development — आर्थिक विकास
economies (traditional, command, market, and mixed) — अर्थ व्यवस्थाएं (परंपरागत, समादेश, बाजार व मिश्रित)
elastic clause — प्रत्यास्थ धारा
electoral — चुनाव संबंधी
emancipation — मुक्ति
Emancipation Proclamation — मुक्ति घोषणा
Embargo Act — बंदरगाह पर आने की रूकावट का अधिनियम
emergence — संकट
empathy — सहानुभूति
enforce laws — कानून प्रवर्तन
English — अंग्रेजी
English colonies (New England, Middle Atlantic, Southern) — अंग्रेजी उपनिवेश (न्यू इंग्लैंड, मिडल अटलांटिक, सदर्न)
Enlightenment — ज्ञान प्राप्ति
equal rights — समानाधिकार
equality — समानता
Era of Good Feelings — प्रसन्नता का युग
escapism — पलायनवाद
espionage — गुप्तचरी
Espionage Act of 1917 — 1917 का गुप्तचरी अधिनियम
establishment — प्रतिष्ठान
ethnic — जाति संबंधी
ethnic backgrounds — जाति संबंधी पृष्ठभूमि
ethnic neighborhoods — जाति संबंधी पड़ोस
ethnocentrism — अपनी संस्कृतिनुसार दूसरी संस्कृति का मूल्यांकन
European Union — यूरोपीय संघ
expansionism — विस्तारवाद

F

fact/opinion — तथ्य@मत
famine — अकाल
Far West — सुदूर पश्चिम
farmer — किसान
fauna — पशुवर्ग
federal — संघीय
national government — राष्ट्रीय सरकार
federal government — संघीय सरकार
Federal Reserve Act — संघीय आरक्षण अधिनियम
federal system — संघीय प्रणाली
federal union — संघीय संघ
Federalism — संघवाद
Federalist Papers — संघीय दस्तावेज
Federalists — संघी
Filipinos — फिलीपीनी
financial institutions — वित्तीय संस्थान
First Continental Congress — प्रथम महाद्वीपीय राजनीतिक संघ
flora — पेड़-पौधे
foreign — विदेश
foreign aid — विदेशी सहायता
foreign markets — विदेशी बाजार
foreign policy — विदेश नीति
foreign trade — विदेश व्यापार
Fort Sumter — किला सुमटेर
Fourteen Points — चैदह मुद्दे
franchise — मुक्तांश
freedom trail — स्वतंत्रता अनुचिन्ह
French and Indian War — फ्रांसीसी व इंडियन युद्ध
French Revolution — फ्रांसीसी क्रांति
French-Canadian — फ्रांसीसी-कनाडाई
frontier — सीमांत
fugitive slave laws — भगोड़ा गुलाम कानून

G

gender — लिंग
genocide — नरसंहार
global economy — वैश्विक अर्थव्यवस्था
“Good Neighbor Policy” — ‘‘अच्छा पड़ोसी नीति’’
graduated income tax — विभागित आयकर
Grange — खलिहान सहित
Great Britain — ग्रेट ब्रिटेन
Great Compromise — महान समझौता
Greece — ग्रीस
grids — ढांचे

H

Harlem Renaissance — हार्लेम विद्या जागरण काल
Haymarket Riot — हेमार्केट उपद्रव
heroes — नायक
heroines — नायिकाएं
Hinduism — हिंदुवाद
historian — इतिहासवेत्ता
historical analysis — ऐतिहासिक विश्लेषण
historical developments — ऐतिहासिक विकास
holocaust — यहूदियों का जर्मनी में नरसंहार
human dignity — मानवीय गरिमा
human rights violations — मानवाधिकार उल्लंघन

I

identity — पहचान
illustrate — सचित्र
impact — प्रभाव
impacts — प्रभावों
impeachment — महाभियोग
imperialism — साम्राज्यवाद
imperialist — साम्राज्यवादी
incarceration — बंधन
Incas — इंका-दक्षिण अमरीका की एक प्रजाति
income — आय
income tax — आयकर
India — भारत
indigenous development — स्वदेशोत्पन्न विकास
industrial — उद्योग
industrial power — औद्योगिक शक्ति
Industrial Revolution — औद्योगिक क्रांति
Industrial Workers of the World — विश्व के औद्योगिक श्रमिक
inflation — मुद्रास्फीती
initiative — पहल
institution — संस्थान
integrity — अखंडता
interactions — परस्पर कार्य
international — अंतर्राष्ट्रीय
internment — नजरबंदी
interrelationships — अंतर-संबंध
interstate — अंतर्राज्यीय
interstate commerce — अंतर्राज्यीय वाणिज्य
interstate highway system — अंतर्राज्यीय हाईवे तंत्र
intervention — हस्तक्षेप
intolerance — असहिष्णुता
investments — निवेश
involvement — शामिल होना
Irish — आयरिश
Islam — इस्लाम
isolation — पृथकत्व
isolationism — प्रथकतावाद
Italy — इटली

J

Japanese — जापानी
Japanese-Americans — जापानी-अमरीकी
Jews — यहूदी
Judaism — यहूदी धर्म
judicial review — न्यायिक समीक्षा
justice — न्याय

K

Kansas-Nebraska Act — कंसास-नेबरास्का अधिनियम
Kellogg-Briand Pact — केलॉग-ब्रैंड संधि
kinship — रिश्तेदारी
Knights of Labor — श्रम योद्धा
Korean War — कोरियाई युद्ध

L

labor markets — श्रम बाजार
labor union — श्रमिक संगठन
land bridge — जमीनी पुल
Land Ordinance of 1785 — 1785 का भू अध्यादेश
Latin America — लातिनी अमरीका
latitude — अक्षांश
League of Nations — संयुक्त राष्ट्र परिषद
legislation — व्यवस्थापन
legislature — विधान मंडल
leisure activities — फुर्सती गतिविधियां
life expectancy — जीवन की अपेक्षा
limited government — सीमित शासन
Lincoln-Douglas debate — लिंकन-डगलस बहस
literature — साहित्य
longitude — देशांश
Louisiana Purchase — लुइसिआना खरीद
loyalists — वफादार

M

majority rule — बहुसंख्यक शासन
Manhattan Project — मैनहट्टन उपक्रम
Manifest Destiny — सुस्पष्ट नियति
manufactured goods — उत्पादित माल
manufacturing — उत्पादन
Marshall Plan — मार्शल द्वीप योजना
Mayas — माया-दक्षिण अमरीका की एक प्रजाति
Mayflower Compact — सघन मेफ््लावर
Memorial Day — स्मारक दिवस
mercantilism — व्यापारवाद
Mexican War — मैक्सिको युद्ध
Mexicans — मैक्सिकन्स
Middle Ages — मध्य युग
middle class — मध्यवर्ग
Midwest — मध्यपश्चिम
military — संेना
minorities — अल्पसंख्यकों
minority — अल्पसंख्यक
Missouri Compromise — मिसूरी समझौता
mobile society — चलित समाज
mobilization — युद्ध में प्रवृत्त करना
Monroe Doctrine — मोनरो सिद्धांत
monuments — स्मारक
Muckrakers — प्रसिद्ध हस्तियों की खबरें प्रकाशित करना

N

NAACP — एनएएसीपी
NAFTA — नाफ््टा
narratives — वृतांत
national — राष्ट्रीय
national origins — राष्ट्रीय उद्गम
nationalism — राष्ट्रीयता
Native American Indians — मूल अमरीकी इंडियन
NATO — नॉटो
natural boundaries — प्राकृतिक सीमाएं
natural resources — प्राकृतिक संसाधन
naturalization — प्रकृतिकरण
navigation — नौचालन
navy — नौसेना
Nazi Germany — नाजी जर्मनी
Nazi Holocaust — नाजी नरसंहार
Neolithic Revolution — पाषाणकालीन क्रांति
neutrality — तटस्थता
New Deal — नया सौदा
newspapers — समाचारपत्र
noninterference (“laissez-faire”) — अहस्तक्षेप
“normalcy” — सामान्य दशा
Northwest Ordinance — उत्तरपश्चिमी अध्यादेश
nuclear — नाभिकीय
nuclear families — नाभिकीय परिवार
nuclear family — नाभिकीय परिवार
nullification — निष्फलीकरण

O

oil — तेल
Open Door Policy — खुला द्वार नीति
opportunity costs — अवसर लागत
oppression — उत्पीड़न
oral histories — मौखिक इतिहास
ordinance — अध्यादेश
Oregon Territory — ओरेगॉन राज्यक्षेत्र
overpopulation — अतिजनसंख्या

P

Panama Canal — पनामा नहर
Parliament — संसद
patriots — देशभक्त
patroonship system — पेट्रूनशिप प्रणाली
peace — शांति
peacekeeping — शांति बनाए रखना
perceptions — बोध
periodizations — अवधिकरण
persecution — बाधा
Persian Gulf War — ईरानी खाड़ी युद्ध
perspective — परिप्रेक्ष्य
pioneers — अग्रणी
plantation — वृक्षारोपण
plantation system — वृक्षारोपण प्रणाली
pledge of allegiance — निष्ठा की प्रतिज्ञा करना
policy — नीति
political boundaries — राजनीतिक सीमाएं
political parties — राजनीतिक दल
political power — राजनीतिक शक्ति
politics — राजनीति
popular vote — लोकप्रिय मत
population — जनसंख्या
Populist movement — सामान्यजन आंदोलन
postwar — युद्ध पश्चात
Poughkeepsie Convention — पोफकीपसी सम्मेलन
poverty — गरीबी
preamble — प्रस्तावना
precedent — दृष्टांत
Preindustrial Age — औद्योगिकीकरण पूर्व काल
President’s cabinet — राष्ट्रपति का काबीना
primary elections — प्राथ्मिक चुनाव
primary sources — प्राथ्मिक स्रोत
principles — सिद्धांत
privileges — विशेषाधिकार
proclamation — घोषणा
productivity — उत्पादकता
profit — लाभ
progressive — प्रगतिशील
Progressive leaders — प्रगतिशील नेता
prohibition — नशाबंदी
propaganda — प्रचार
prosperity — समृद्धि
protests — विरोध
psychology — मनोविज्ञान
Puritans — प्यूरीटन्स (एक ईसाई पंथ)
pursuit of happiness — आनन्द की खोज

Q

Quakers — शांति समिति के सदस्य
Quebec Act — क्यूबेक अधिनियम
Quota Act — नियतांश अधिनियम

R

racial — जाति विशेषता
racial discrimination — जाति भेद
racism — नस्लवाद
railroads — रेलमार्ग
ratification — संपुष्टि
rationing — राशन व्यवस्था
recall — वापस बुलाना
recall election — चुनाव वापस बुलाना
reconstruction — पुनःनिर्माण
reductions — कटौती
referendum — जनमत संग्रह
reform — सुधार
reform movement — सुधार आंदोलन
regulation — विनियमन
reliability — विश्वसनीयता
relief — सहायता
Renaissance — विद्या जागरण काल
reparation — क्षतिपूर्ति
reparations — क्षतिपूर्तियां
representation — प्रतिनिधित्व
repression — निरोध
“Republican” government — ‘‘रिपब्लिकन’’ सरकार
Republican Party — रिपब्लिकन दल
resignation — त्यागपत्र
restrict — प्रतिबंध लगाना
rights of the minority — अल्पसंख्यक अधिकार
river civilizations (Mesopotamia, Egypt, China, Indus Valley) — नदी सभ्यताएं (मेसोपोटेमिया, मिस्र, चीन, सिंधु घाटी)
Rome — रोम
Roosevelt Corollary — रूजवेल्ट परिणाम
Roosevelt’s Executive Order 8802 — रूजवेल्ट का कार्यकारी आदेश 8802
Roosevelt’s Treaty of Portsmouth — रूजवेल्ट की पोर्टस्माउथ संधि

S

scandals — स्कैंडल
scholars — स्कॉलर
scientific — वैज्ञानिक
sculpture — प्रतिमा
secession — पार्थक्य
Second Continental Congress — द्वितीय महाद्वीपीय राजनीतिक संघ
secondary sources — गौड़ स्रोत
sectional — खंड संबंधी
sedition — राजद्रोह
Sedition Act of 1918 — 1918 का राजद्रोह अधिनियम
segregation — अलगाव
self-government — स्व-शासन
Senate — संसद
separation of powers — शक्ति का पृथक्करण
separatism — पृथक्करणवाद
settlement houses — व्यवस्था आवास
sharecropping — बंटाई
Shay’s Rebellion — शे का विद्रोही
shelter — आश्रय
Sherman Antitrust Act — शर्मन एंटीट्रस्ट (एकाधिकार नियंत्रण) अधिनियम
significance — प्रतिष्ठा
skilled workers — कुशल श्रमिक
social commentary — सामाजिक व्याख्या
social sciences (anthropology, economics, geography, history, political science, psychology, and sociology) — समाज विज्ञान (शरीर शास्त्र, अर्थशास्त्र, भूगोल, इतिहास, राजनीति विज्ञान, मनोविज्ञान व समाज शास्त्र)़ठ464
social scientific method — सामाजिक वैज्ञानिक तरीका
social security — सामाजिक सुरक्षा
socialism — समाजवाद
Socialist Party — समाजवादी दल
sociology — समाजशास्त्र
soup kitchens — लंगर
Southwest — दक्षिणपश्चिम
Soviet Union — सोवियत संघ
Spanish-American War — स्पेनी-अमरीकी युद्ध
spatial organization — स्थानिक संगठन
sphere of influence — प्रभाव क्षेत्र
spiritual bspiritual beliefs — आध्यात्मिक विश्वास
“spoils system” — दल के लोगों का भला करने का तंत्र
Stamp Act — स्टैंप अधिनियम
standard of living — जीवन स्तर
state's rights — राज्य के अधिकार
states’ rights — राज्यों के अधिकार
status quo — यथापूर्व
statutes — कानून
steel — फौलाद
stock market — शेयर बाजार
stock market crash — शेयर बाजार ढहना
strategy — रणनीति
sub-Saharan Africa — उप-सहारा अफ्रीका
suffrage — मताधिकार
Supreme Court decision — उच्चतम न्यायालय का निर्णय

T

Tammany Hall — भ्रष्ट राजनीतिक दल
tariff — दर सूची
tariffs — दर सूची
tax — कर
temperance — संयम परिमितता
territorial expansion — राज्य विस्तार
territory — राज्यक्षेत्र
three-fifths compromise — तीन-पंचाई समझौता
timeframes — समयावधि
totalitarian — एकदलीयवादी
totalitarian societies — एकदलीयवादी समाज
Townsend Plan — टाउनसेंड योजना
trade — व्यापार
treaties (Citizen Genet, Jay, and Pinckney) — संधियां (सिटिजन जेनेट, जे व पिंकनी)
treaty — संधि
trends — रूझान
triangular trade — त्रिपक्षीय व्यापार
tribe — जनजाति
Truman Doctrine — ट्रूमैन सिद्धांत
trust — विश्वास
trusts — विश्वासों
Tweed Ring — ऊनी गोला

U

underground railroad — भूमिगत रेलमार्ग
unemployment — बेकारी
Union — संघ
unionize — संघीकरण
United Nations — संयुक्त राष्ट्र
United Nations Universal Declaration of Human Rights — संयुक्त राष्ट्र का जागतिक मानवाधिकार घोषणापत्र

V

Versailles Treaty — वर्सेल्स संधि
Veterans Day — दीर्घानुभवी दिवस
veto — निषेधाधिकार
Vietnam War — वियतनाम युद्ध
village — गांव

W

Wage — मजदूरी
wages — मजदूरियां
Wagner Act — वेजनर अधिनियम
war bonds — युद्ध बंधन
War of 1812 — 1812 का युद्ध
Warsaw Pact — वारसा संधि
waterway — जलमार्ग
Western Hemisphere — पश्चिमी गोलार्ध
westward expansion — पश्चिमी विस्तार
westward migration — पश्चिमी प्रवास
Whiskey Rebellion — व्हिस्की क्रांतिकारी
white collar — सफेद कॉलर
white-collar employees — सफेद कॉलर कर्मचारी
women’s rights — महिलाधिकार
women’s suffrage — महिला मताधिकार
workforce — कार्यशक्ति
working conditions — कार्य स्थितियां
Works Progress Administration — कार्य प्रगति प्रशासन
World Court — विश्व अदालत
world power — विश्व शक्ति
World War I — प्रथम विश्व युद्ध
World War II — द्वितीय विश्व युद्ध
worldviews — विश्व दृष्टियां

Y

Yalta Conference — याल्टा सम्मेलन
“yellow journalism” — ‘‘पीत पत्रकारिता’’



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Tuesday, April 16, 2019

एम्स दिल्ली (AIIMS)

एम्स दिल्ली (अखिल भारतीय आयुर्वेविज्ञान संस्थान दिल्ली)

The All India Institutes of Medical Sciences(AIIMS)

एक मेडिकल कॉलेज और मेडिकल रिसर्च पब्लिक यूनिवर्सिटी है जो नई दिल्ली, भारत में स्थित है। एम्स की स्थापना 1956 में हुई थी और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन स्वायत्तता से संचालित होती है।


ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, दिल्ली
          200px    -        एम्स दिल्ली
ध्येय   - Sharīramādyam khalu     dharmasādhanam
 (from the Kumārasambhava of Kālidāsa,   [5.33])

Motto in English -  "The body is indeed the primary instrument of dharma."

प्रकार             -         Public
स्थापित          -         1956
अध्यक्ष           -          चिकित्सा एवं परिवार कल्याण       मंत्रालय, भारत सरकार
डीन               -           वाई के गुप्ता
निदेशक।        -           रणदीप गुलरिया
स्थान             -           नई दिल्ली, दिल्ली, भारत
   28°33′54″N 77°12′36″E / 28.565°N 77.21°E

परिसर            -          शहरी
भाषा।            -          हिन्दी
जालस्थल ।     -          www.aiims.edu




एम्‍स का इतिहास


जवाहर लाल नेहरू जी ने देश को वैज्ञानिक संस्‍कृति से ओत प्रोत करने का सपना देखा था और स्‍वतंत्रता के तुरंत बाद उन्‍होंने इसे प्राप्‍त करने के लिए एक विशाल डिजाइन तैयार की। आधुनिक भारत के मंदिरों में से एक, जिन्‍हें उनकी कंल्‍पना से बनाया गया, चिकित्‍सा विज्ञान का एक उत्‍कृष्‍टता केन्‍द्र था। नेहरु जी का सपना यह था कि दक्षिण पूर्वी एशिया में चिकित्‍सा चिकित्‍सा और अनुसंधान की गति बनाए रखने के लिए एक केन्‍द्र होना चाहिए और इसमें उन्‍होंने अपनी तत्‍कालीन स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर का पूरा सहयोग पाया।

एक भारतीय लोक सेवक, सर जोसेफ भोर,  की अध्‍यक्षता में 1946 के दौरान स्‍वास्‍थ्‍य सर्वेक्षण और विकास समिति द्वारा एक राष्‍ट्रीय चिकित्‍सा केन्‍द्र की स्‍थापना की पहले ही सिफारिश की गई थी, जो राष्‍ट्र की बढ़ती स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल गतिविधियों को संभालने के लिए उच्‍च योग्‍यता प्राप्‍त जनशक्ति की जरूरत पूरी कर सकें। पंडित नेहरु और अमृत कौर के सपने तथा भोर समिति की सिफारिशों को मिलाकर एक प्रस्‍ताव बनाया गया जिसे न्‍यूज़ीलैंड की सरकार का समर्थन मिला। न्‍यूज़ीलैंड का उदारतापूर्वक दिया गया दान कोलोम्‍बो योजना के तहत आया जिससे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान (एम्‍स) की आधारशिला 1952 में रखी गई। अंत में एम्‍स का सृजन 1956 में संसद के एक अधिनियम के माध्‍यम से एक स्‍वायत्त संस्‍थान के रूप में स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल के सभी पक्षों में उत्कृष्‍टता को पोषण देने के केन्‍द्र के रूप में कार्य करने हेतु किया गया था।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान की स्‍थापना सभी शाखाओं में स्‍नातक और स्‍नातकोत्तर चिकित्‍सा शिक्षा में अध्‍यापन के पैटर्न विकसित करने के उद्देश्‍य से संसद के अधिनियम द्वारा राष्‍ट्रीय महत्‍व के एक संस्‍थान के रूप में की गई थी, ताकि भारत में चिकित्‍सा शिक्षा के उच्‍च मानक प्रदर्शित किए जा सकें, स्‍वास्‍थ्‍य गतिविधि की सभी महत्‍वपूर्ण शाखाओं में कार्मिकों के प्रशिक्षण हेतु उच्‍चतम स्‍तर की शैक्षिक सुविधाएं एक ही स्‍थान पर लाने और स्‍नातकोत्तर चिकित्‍सा शिक्षा में आत्‍मनिर्भरता पाई जा सके।

संस्‍थान में अध्‍यापन, अनुसंधान और रोगियों की देखभाल के लिए व्‍यापक सुविधाएं हैं। जैसा कि अधिनियम में बताया गया है, एम्‍स द्वारा स्‍नातक और स्‍नातकोत्तर दोनों ही स्‍तरों पर चिकित्‍सा तथा पैरामेडिकल पाठ्यक्रमों में अध्‍यापन कार्यक्रम चलाए जाते हैं और यह छात्रों को अपनी ही डिग्री देता है। यहां 42 विषयों में अध्‍यापन और अनुसंधान आयोजित किए जाते हैं। चिकित्‍सा अनुसंधान के क्षेत्र में एम्‍स अग्रणी है, जहां एक वर्ष में इसके संकाय और अनुसंधानकर्ताओं द्वारा 600 से अधिक अनुसंधान प्रकाशन प्रस्‍तुत किए जाते हैं। एम्‍स में एक नर्सिंग महाविद्यालय भी चलाया जाता है और यहां बी. एससी. (ऑन) नर्सिंग पोस्‍ट प्रमाण पत्र डिग्री के लिए छात्रों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है।

चार सुपर स्‍पेशियलिटी केन्‍द्रों के साथ 25 क्लिनिकल विभाग व्‍यावहारिक रूप से पूर्व और पैराक्लिनिकल विभागों की सहायता से रोग की सभी परिस्थितियों का प्रबंधन करते हैं। जबकि जलने के मामलों, कुत्ते के काटने के मामलों और संक्रामक रोगों से पीडित रोगियों को एम्‍स अस्‍पताल में उपचार नहीं दिया जाता है। एम्‍स द्वारा हरियाणा के वल्‍लभ गढ़ में व्‍यापक ग्रामीण स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल केन्‍द्र में 60 बिस्‍तरों वाले अस्‍पताल का भी प्रबंधन किया जा रहा है और यहां सामुदायिक उपचार के लिए केन्‍द्र के माध्‍यम से लगभग 2.5 लाख आबादी को स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएं दी जाती हैं।


एम्‍स के उद्देश्‍य

इसकी सभी शाखाओं में स्‍नातक और स्‍नातकोत्तर चिकित्‍सा शिक्षा में अध्‍ययन के एक पैटर्न का विकास करना ताकि सभी चिकित्‍सा महाविद्यालयों और भारत के अन्‍य संबद्ध संस्‍थानों में चिकित्‍सा शिक्षा के उच्‍च मानक प्रदर्शित किए जा सकें।
स्‍वास्‍थ्‍य गतिविधि की सभी महत्‍वपूर्ण शाखाओं में कार्मिकों के प्रशिक्षण के लिए उच्‍चतम स्‍तर की शैक्षिक सुविधाएं एक ही स्‍थान पर लाना।
चिकित्‍सा शिक्षा में स्‍नातकोत्तर स्‍तर पर आत्‍मनिर्भरता लाना।


अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान या एम्स (AIIMS) सार्वजनिक आयुर्विज्ञान महाविद्यालय का समूह है। इस समूह में नई दिल्ली स्थित भारत का सबसे पुराना उत्कृष्ट एम्स संस्थान है। इसकी आधारशिला 1952 में रखी गयी और इसका सृजन 1956 में संसद के एक अधिनियम के माध्‍यम से एक स्‍वायत्त संस्‍थान के रूप में स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल के सभी पक्षों में उत्कृष्‍टता को पोषण देने के केन्‍द्र के रूप में कार्य करने हेतु किया गया। एम्स चौक दिल्ली के रिंग रोड पर पड़ने वाला चौराहा है, इसे अरविन्द मार्ग काटता है।

सन् 2012 में पूर्व प्रधानमन्त्री डा• मनमोहन सिंह सरकार द्वारा एक ही साल में रिकार्ड 6 एम्स भारत के अलग-अलग राज्यों में खोले गए।

सन् 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी श्रंखला में 6 अन्य एम्स संस्थान पूरे भारत में निर्माण की तरफ अग्रसर हैं।। ताकि दूर दराज के लोगों को बेहतर इलाज की सुविधायें पाई जा सके! 2022 तक हर राज्य में एक AIIMS खोलने का विचार है।


 संस्थान

एम्स दिल्ली के मध्य स्थित एम्स संस्थानों की स्थिति 

नम्बर नाम  लघु नाम   स्थापना       शहर    प्रदेश/UT

1 एम्स दिल्ली एम्स - 1956 -  नई दिल्ली दिल्ली
2 एम्स भोपाल एम्स - 2012 - भोपाल   मध्य प्रदेश
3 एम्स भुवनेश्वर एम्स -2012 - भुवनेश्वर    ओडिशा
4 एम्स जोधपुर एम्स  - 2012 - जोधपुर राजस्थान
5 एम्स पटना जे पी एन-एम्स-2012 - पटना बिहार
6 एम्स रायपुर एम्स - 2012 - रायपु   छत्तीसगढ़
7 एम्स ऋषिकेश एम्स- 2012 - ऋषिकेश   उत्तराखंड


अध्यापन

संस्‍थान में अध्‍यापन, अनुसंधान और रोगियों की देखभाल के लिए व्‍यापक सुविधाएं हैं। एम्‍स द्वारा स्‍नातक और स्‍नातकोत्तर दोनों ही स्‍तरों पर चिकित्‍सा तथा पैरामेडिकल पाठ्यक्रमों में अध्‍यापन कार्यक्रम चलाए जाते हैं और यह छात्रों को अपनी ही डिग्री देता है। यहां 42 विषयों में अध्‍यापन और अनुसंधान आयोजित किए जाते हैं। एम्‍स में एक नर्सिंग महाविद्यालय भी चलाया जाता है और यहां बी. एससी. (ऑन) नर्सिंग पोस्‍ट प्रमाण पत्र डिग्री के लिए छात्रों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है।

एम्‍स द्वारा हरियाणा के वल्‍लभ गढ़ में व्‍यापक ग्रामीण स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल केन्‍द्र में 60 बिस्‍तरों वाले अस्‍पताल का भी प्रबंधन किया जा रहा है और यहां सामुदायिक उपचार के लिए केन्‍द्र के माध्‍यम से लगभग 2.5 लाख आबादी को स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएं दी जाती हैं।


एम्स के कार्य

चिकित्‍सा और संबंधित भौतिक जीवन विज्ञानों में स्‍नातक तथा स्‍नातकोत्तर अध्‍यापन
नर्सिंग और दंत चिकित्‍सा शिक्षा
शिक्षा में नवाचार
देश के लिए चिकित्‍सा अध्‍यापकों को तैयार करना
चिकित्‍सा और संबंधित सेवाओं में अनुसंधान
स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल : निवारणात्‍मक, प्रवर्तनकारी और उपचारात्‍मक, प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक
समुदाय आधारित अध्‍यापन और अनुसंधान।



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