Thursday, July 25, 2019

सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility)

 सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility)


व्यक्तियों, परिवारों या अन्य श्रेणी के लोगों का समाज के एक वर्ग (strata) से दूसरे वर्ग में गति सामाजिक गतिशीलता कहलाती है। इस गति के परिणामस्वरूप उस समाज में उस व्यक्ति या परिवार की दूसरों के सापेक्ष सामाजिक स्थिति (स्टैटस) बदल जाता है।


परिचय

सामाजिक गतिशीलता से अभिप्राय व्यक्ति का एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचने से होता है। जब एक स्थान से व्यक्ति दूसरे स्थान को जाता है तो उसे हम साधारणतया आम बोलचाल की भाषा में गतिशील होने की क्रिया मानते हैं। परंतु इस प्रकार की गतिशीलता का कोई महत्व समाजशास्त्रीय अध्ययन में नहीं है। समाजशास्त्रीय अध्ययन में गतिशीलता से तात्पर्य एक सामाजिक व्यवस्था में एक स्थिति से दूसरे स्थिति को पा लेने से है जिसके फलस्वरूप इस स्तरीकृत सामाजिक व्यवस्था में गतिशील व्यक्ति का स्थान उँचा उठता है व नीचे चला जाता है। एक स्थान से उपर उठकर दूसरे स्थान को प्राप्त कर लेना, जो उससे उँचा है, निस्संदेह गतिशीलता है। सरल शब्दों में यह कहा जा सकता है कि समाजशास्त्र में सामाजिक गतिशीलता का अभिप्राय है किसी व्यक्ति, समूह या श्रेणी की प्रतिष्ठा में परिवर्तन।

प्रायः इस प्रकार की गतिशीलता का उल्लेख मोटे तौर पर व्यवसायिक क्षेत्र तथा समाजिक वर्ग में परिवर्तन से होता है। अक्सर सामाजिक गतिशीलता को इस समाज में मुक्त या पिछड़ेपन का द्योतक माना जाता है। सामाजिक गतिशीलता के अध्ययन में गतिशीलता की दरें, व व्यक्ति की नियुक्ति भी शामिल की जाती है। इस संदर्भ में एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी के सामाजिक संदर्भ के तहत परिवार के सदस्य का आदान-प्रदान या ऊँचा उठना व नीचे गिरना शामिल है। एस एम लिपसेट तथा आर बेंडिक्स का मानना था कि औद्योगिक समाज के स्वामित्व के लिए सामाजिक गतिशीलता आवश्यक है। जे एच गोल्ड थोर्प ने इंग्लैंड में सामाजिक गतिशीलता की चर्चा करते हुए इसके तीन महत्वपूर्ण विशेषताओं की बात की है-

(क) पिछले 50 साल में गतिशीलता के दर में ज्यादा वृद्धि हुई है।
(ख) मजदूर वर्ग की स्थिति में मध्यम तथा उच्च स्थिति में काफी परिवर्त्तन आया है।
(ग) उच्च स्थान तथा मध्यम स्तर पर गतिशीलता में ज्यादा लचीलापन देखने में आया है।


सामाजिक गतिशीलता के प्रकार

पी सोरोकिन ने सामाजिक गतिशीलता के निम्न दो प्रकार का उल्लेख किया है-

(क) क्षैतिज सामाजिक गतिशीलता (Horizontal Social Mobility)
(ख) लंबवत सामाजिक गतिशीलता (Vertical Social Mobility)
(अ) लंबवत उपरिमुखी गतिशीलता
(आ) लंबवत अधोमुखी गतिशीलता


क्षैतिज सामाजिक गतिशीलता

जब एक व्यक्ति का स्थानान्तरण एक ही स्तर पर एक समूह से दूसरे समूह में होता है तो उसे क्षैतिज सामाजिक गतिशीलता कहते है। इस प्रकार की गतिशीलता में व्यक्ति का पद वही रहता है केवल स्थान में परिवर्त्तन आता है। उदाहरण के लिए यह कहा जा सकता है कि सरकारी दफ्तरों में कई बार रूटिन तबादले होते हैं जिसमें एक शिक्षक जो एक शहर में पढ़ा रहे थे, उन्हें उस शहर से तबादला कर दूसरे शहर में भेज दिया जाता है। इसी प्रकार सेना में काम कर रहे जवान का भी एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा जाना बिना किसी पदोन्नति के एक रूटिन तबादला है।


लंबवत सामाजिक गतिशीलता

जब किसी व्यक्ति को एक पद से उपर या नीचे की स्थिति पर काम करने के लिए कहा जाता है तो वह लंबवत सामाजिक गतिशीलता कहलाती है। उदाहरण के लिए एक शिक्षक को पदोन्नति कर उसे प्रिसिंपल बना देना तथा एक सूबेदार को सेना में तरक्की देकर उसे कैप्टेन का पद देना लंबवत सामाजिक गतिशीलता के उदाहरण हैं। लंबवत सामाजिक गतिशीलता में अगर पद में उन्नति हो cसकती है तो पद में गिरावट भी देखी जा सकती है। उदाहरण के लिए कैप्टेन के पद से हटाकर वापस एक जवान को सूबेदार बना देना भी संभव है जो लंबवत सामाजिक गतिशीलता के उदाहरण माने जा सकते हैं। लंबवत सामाजिक गतिशीलता के दो उप प्रकार हैं-U J

लंबवत उपरिमुखी गतिशीलता

इस प्रकार की गतिशीलता लंबवत सामाजिक गतिशीलता का ही उप प्रकार है जहाँ एक ही दिशा में अर्थात पदोन्नती या तरक्की की स्थिति होती है। पदोन्नति के बाद एक स्कूल शिक्षक का प्रिंसिपल बनाया जाना तथा एक सेना के जवान का सूबेदार के पद से कैप्टन बनाया जाना लंबवत उपरिमुखी गतिशीलता के उदाहरण हैं।


 लंबवत अधोमुखी गतिशीलता

यह भी एक लंबवत सामाजिक गतिशीलता का उप-प्रकार है परंतु इसमें पदोन्नति के बजाय पद में गिरावट आती है। अगर एक प्रिंसिपल को शिक्षक पद पर काम करने के लिए कहा जाय और इसी प्रकार एक सेना के जवान को कैप्टेन से हटाकर हवलदार बना दिया जाये तो ये उदाहरण हैं लंबवत अधोमुखी गतिशीलता के।

इस प्रकार सामाजिक गतिशीलता ने मुख्य रूप से इन दो प्रकारों की चर्चा की गयी है। ब्रुम तथा सेल्जनीक ने प्रतिष्ठात्मक उपागम (Reputational approach) के द्वारा दोनों वस्तुनिष्ठ तथा आत्मनिष्ठ उपागम के विभिन्न पहलुओं पर सामाजिक स्थिति में परिवर्त्तन का अध्ययन किये जाने पर बल दिया है। उनका कहना था कि बहुत से समाजशास्त्रीय अध्ययनों में भी इसका वर्णन किया गया है। एक परिवार में भी पिता और पुत्र के बीच के व्यवसाय से संबंधित दोनों के पदों में अंतर पाये जाते हैं। अगर पुत्र का व्यवसायिक पद अपने पिता के अपेक्षाकृत ऊँचा हो जाता है और कालांतर में उस पुत्र के पुत्र का भी व्यवसायिक पद अपने पिता से ऊँचा हो जाये तो इस प्रकार के पदोन्नती को वंशानुगत गतिशीलता (Generational Mobility) कहा जा सकता है। इस प्रकार व्यवसायिक क्षेत्र में जो पदों में तरक्की आती है उसका अध्ययन कर उसके जीवन-वृत्ति में गतिशीलता (Career Mobility) का समाजशास्त्रीय अध्ययन प्रतिष्ठात्मक उपागम के आधार पर किया जा सकता है। यह बताना भी आसान हो जाता है कि एक परिवार की जीवनवृत्ति में गतिशीलता की दरें तथा उसकी दिशा किस तरफ रही है।

किंग्सले डेविस ने सामाजिक गतिशीलता के अध्ययन में जाति तथा वर्ग से संबंधित पदों में परिवर्त्तन का अध्ययन किया है। उनका मानना था कि जाति और वर्ग सामाजिक गतिशीलता के अध्ययन के दो महत्वपूर्ण उदाहरण हैं। जहाँ जाति में गतिशीलता नहीं होती है वहीं वर्ग में गतिशीलता पायी जाती है।

भारतीय संदर्भ में एम एन श्रीनिवास ने जाति में गतिशीलता का सांस्कृतिकरण (Sanskritisation) की अवधारणा के द्वारा विस्तार से अध्ययन किया है। उनका यह मानना था कि जाति मे सामाजिक स्थिति यों तो सभी की जन्म से निर्धारित होती है जो स्थायी होती है परंतु प्रतिष्ठात्मक उपागम के आधार पर कई निम्न जाति के लोग अपनी स्थिति को उपर उठाने के लिए कई तरीकों का इस्तेमाल करते हैं ताकि वे उच्च जाति के लोगों के समकक्ष आ सकें। इस प्रकार अपनी स्थिति को उपर उठाने की कोशिश अक्सर निम्न स्तरीय जाति के लोगों में पायी जाती है। उन्होंने यह पाया कि निम्न जाति के लोग अक्सर ऊँची जाति के लोगों के व्यवहार से तथा प्रचलित सांस्कृतिक नियमों के अनुसरण को अपनाकर अपनी स्थिति को उपर उठाना चाहते हैं। जिन जातियों में पहले उपनयन संस्कार का प्रचलन नहीं था वे इस संस्कार के द्वारा अपनी स्थिति को ऊँचा उठाना चाहते हैं। निम्न जाति के लोगों ने यह भी पाया कि उँची जाति के लोग कई धार्मिक अनुष्ठान के साथ-साथ निराभिष भोजन भी नहीं करते। निम्न जाति के लोगों ने अपने आप को उँची जाति के करीब लाने के लिए निरामिष भोजन को लाकर धार्मिक अनुष्ठानों को भी मानना शुरू कर दिया और इस प्रकार के कल्पित रूप से कर्मकांडों में बदलाव लाकर अपने आप को उँची जाति के समीप लाने का प्रयास शुरू किया। इस प्रक्रिया को एम एन श्रीनिवास ने 'संस्कृतिकरण' कहा है। परंतु कई अन्य समाजशास्त्रीयों ने यह माना है कि सांस्कृतिकरण के माध्यम से जाति के स्थान में कोई लंबवत गतिशीलता नहीं आती है बल्कि निम्न जाति को ऐसा लगता है कि उनकी प्रतिष्ठा में बदलाव आया है और संभवतः इसलिए अपनी प्रतिष्ठा में बदलाव लाने के विचार से अधिकांश निम्न जाति के लोग ही अपने व्यवहार में इस प्रकार का परिवर्त्तन लाने की कोशिश में लगे रहते हैं। निस्संदेह यह कहा जा सकता है कि सामाजिक गतिशीलता की धारणा से जाति में जो परिवर्त्तन आयें हैं उसमें शिक्षा, आय तथा पेशे में बदलाव का होना एक महत्वपूर्ण कारण है और इनका समाजशास्त्रीय अध्ययन कर सही स्थिति की पहचान करने में इस अवधारणा का योगदान काफी महत्वपूर्ण हैं।


सामाजिक गतिशीलता की परिभाषा:

i. बोगार्डस- ”सामाजिक पद में कोई भी परिवर्तन सामाजिक गतिशीलता है ।”

ii. फिचर- ”सामाजिक गतिशीलता व्यक्ति, समूह या श्रेणी के एक सामाजिक पद या स्तृत से दूसरे में गति करने को कहते हैं ।”

iii. हार्टन तथा हण्ट- ”सामाजिक गतिशीलता का तात्पर्य उच्च या निम्न सामाजिक प्रस्थितियों में गमन करना है ।”

iv. सोरोकिन- ”सामाजिक गतिशीलता से हमारा तात्पर्य सामाजिक समूहों तथा स्तरों के झुण्ड में एक सामाजिक पद से दूसरे सामाजिक पद में परिवर्तन होना है ।”

v. फेयरचाइल्ड- ”इन्होंने लोगों के एक सामाजिक समूह से दूसरे सामाजिक समूह में गमन को ही सामाजिक गतिशीलता कहा है


फिचर ने ऊर्ध्वगामी गतिशीलता के लिए निम्नांकित कारकों को उत्तरदायी माना है:

(a) अप्रवास:

अप्रवास के कारण बाहर से आने वाले व्यक्ति स्थानीय लोगों को ऊपर की ओर धकेल देते हैं । ग्रामीण लोग जब शहरों में व्यवसाय की खोज में आते हैं तो वहाँ निम्न स्थिति एवं व्यवसायों को ग्रहण कर लेते हैं । इसी प्रकार से शरणार्थी और बाहर से आने वाले लोग भी मूल निवासियों की तुलना में निम्न स्थिति को ग्रहण करने को तैयार हो जाते हैं इस प्रकार अप्रवास स्थानीय लोगों में ऊर्ध्वगामी गतिशीलता उत्पन्न करता है ।

(b) उच्च वर्ग में कम प्रजनन क्षमता:

सभी समाजों में उच्च वर्ग के लोगों की संख्या कम होती है तथा उनमें प्रजनन क्षमता भी कम होती है, इसलिए उसकी पूर्ति के लिए उनमें निम्न वर्ग के व्यक्ति समय-समय पर सम्मिलित होते रहते हैं । इससे उनकी सामाजिक स्थिति ऊँची उठ जाती है ।

(c) संघर्ष:

जब समाज में अपनी ही योग्यता एवं प्रयत्नों से बने व्यक्तियों एवं प्रतिस्पर्द्धा को महत्व दिया है तब भी ऊर्ध्वगामी गतिशीलता बढती है ।


(d) अवसर की उपलब्धि:

जब समाज में शिक्षा प्राप्त करने तथा व्यवसाय एवं कार्यों में योग्यता बढ़ने के अवसर उपलब्ध होते है तब भी लोग अपने गुणों, योग्यता और क्षमता वृद्धि करके ऊँचा उतने का प्रयास करते हैं ।

(e) समानता और विषमता के प्रतिमान:

यदि किसी समाज धर्म, प्रजाति आदि के आधार पर भेदभाव किया जाता है या आयु और लिंग के आधार पर असमानता पायी जाती है तब उसमें ऊर्ध्वगामी गतिशीलता की सम्भावना कम होती है लेकिन जब किसी समाज में निम्न वर्ग में वृद्धि होती है तो ऊर्ध्वगामी गतिशीलता की सम्भावना अधिक होती है क्योंकि यह वर्ग ऊँचा उठने के लिए संघर्ष एवं प्रतिस्पर्धा में भाग लेता है ।


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Wednesday, July 17, 2019

ऑक्यूपेशनल थेरेपी(OT)

Occupational therapy (OT)

ऑक्यूपेशनल थेरेपी के क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं दिन पर दिन बढ़ती जा रही हैं। आइए जानते हैं इस क्षेत्र के बारे में-
बदलती जीवनशैली और काम के सिलसिले में भागम भाग के चलते लोगों के स्वास्थ्य पर कई तरह के प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहे हैं, जिनमें शारीरिक व मानसिक अशक्तता प्रमुखता से शामिल हैं। इनसे निजात पाने के लिए उन्हें एक्सपर्ट की मदद लेनी पड़ रही है। संबंधित एक्सपर्ट विभिन्न विधियों से इलाज करते हुए उन्हें समस्या से मुक्ति दिलाते हैं। साथ ही उन्हें मानसिक रूप से भी मजबूत बनाते हैं। कई बार डॉंक्टर के देख लेने के बाद इनकी जरूरत पड़ती है तो कुछ मामले ऐसे भी हैं, जिनमें डॉंक्टर के देखने से पहले ही इनकी सेवा ली जाती है। खासकर मेडिकल और ट्रॉमा सेंटर इमरजेंसी व फ्रैक्चर मैनेजमेंट में तो इनकी विशेष जरूरत पड़ती है। यह पूरा ताना-बाना ऑक्यूपेशनल थेरेपी के अंतर्गत बुना जाता है। इससे जुड़े प्रोफेशनल्स को ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट नाम दिया गया है। इनका काम फिजियोथेरेपिस्ट से मिलता-जुलता है। यही कारण है कि मेडिकल व फिटनेस एरिया में इनकी भारी मांग है।

ऑक्यूपेशनल थेरेपी की जरूरत

ऑक्यूपेशनल थेरेपी का सीधा संबंध पैरामेडिकल से है। इसके अंतर्गत शारीरिक व विशेष मरीजों की अशक्तता का इलाज किया जाता है, जिसमें न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर, स्पाइनल कॉर्ड इंजरी के उपचार से लेकर अन्य कई तरह के शारीरिक व्यायाम कराए जाते हैं। कई बार मानसिक विकार आ जाने पर कागज-पेंसिल के सहारे मरीजों को समझाया जाता है। ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट मरीजों का पूरा रिकॉर्ड अपने पास रखते हैं। इसमें हर आयु-वर्ग के मरीज होते हैं। यह सबसे तेजी से उभरते मेडिसिन के क्षेत्रों में से एक है। इसमें शारीरिक व्यायाम अथवा उपकरणों के जरिए कई जटिल रोगों का इलाज किया जाता है। शारीरिक रूप से अशक्त होने या खिलाडियों में आर्थराइटिस व न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर आने पर ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट की मदद ली जाती है। यही कारण है कि प्रोफेशनल्स को ह्यूमन एनाटमी, हड्डियों की संरचना, मसल्स एवं नर्वस सिस्टम आदि की जानकारी रखनी पड़ती है।

 बारहवीं के बाद मिलेगा दाखिला

ऑक्यूपेशनल थेरेपी से संबंधित बैचलर, मास्टर और डिप्लोमा और डॉक्टरल कोर्स मौजूद हैं। यदि छात्र बैचलर कोर्स में प्रवेश लेना चाहता है तो उसका फिजिक्स, केमिस्ट्री व बायोलॉजी ग्रुप के साथ बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण होना  जरूरी है। बैचलर के बाद मास्टर और डॉंक्टरल प्रोग्राम में दाखिला मिल सकता है। कोर्स के बाद छह माह की इंटर्नशिप की व्यवस्था है। कई संस्थान अपने यहां प्रवेश देने के लिए प्रवेश परीक्षा का आयोजन कराते हैं, जिसमें सफल होने के बाद विभिन्न कोर्सों में दाखिला मिलता है, जबकि कई संस्थान मेरिट के आधार पर प्रवेश देते हैं।

कौन-कौन से हैं कोर्स

बीएससी इन ऑक्यूपेशनल थेरेपी (ऑनर्स)
बीएससी इन ऑक्यूपेशनल थेरेपी
बैचलर ऑफ ऑक्यूपेशनल थेरेपी
डिप्लोमा इन ऑक्यूपेशनल थेरेपी
एमएससी इन फिजिकल एंड ऑक्यूपेशनल थेरेपी
मास्टर ऑफ ऑक्यूपेशनल थेरेपी

कोर्स से जुड़ी जानकारी

इसमें छात्रों को थ्योरी व प्रैक्टिकल पर समान रूप से अपना फोकस रखना पड़ता है। कोर्स के दौरान ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट को कई क्लिनिकल व पैरा क्लिनिकल विषयों का अध्ययन करना होता है। इसमें मुख्य रूप से एनाटमी, फिजियोलॉजी, पैथोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री, मेडिसिन एवं सर्जरी (मुख्यत: डायग्नोस्टिक) आदि विषय शामिल हैं। इसके अलावा इन्हें ऑर्थपीडिक्स, प्लास्टिक सर्जरी, हैंड सर्जरी, रिमैटोलॉजी, साइकाइट्री आदि के बारे में भी थोड़ी-बहुत जानकारी दी जाती है।

 आवश्यक स्किल्स

यह एक ऐसा प्रोफेशन है, जिसमें छात्रों को संवेदनशील होने से लेकर वैज्ञानिक नजरिया तक अपनाना पड़ता है, क्योंकि इसमें उन्हें मरीजों के दुख को समझ कर उसके हिसाब से उपचार करने की जरूरत होती है। अच्छी कम्युनिकेशन स्किल, टीम वर्क, मेहनती, रिस्क उठाने और दबाव को झेलने जैसे गुण इस प्रोफेशन के लिए बहुत जरूरी हैं। अधिकांश काम मेडिकल उपकरणों के सहारे होता है, इसके लिए उनका ज्ञान बहुत जरूरी है।

सेलरी

ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट को काफी आकर्षक सेलरी मिलती है। कोर्स समाप्ति के बाद उन्हें शुरुआती दौर में 15-20 हजार रुपए प्रतिमाह आसानी से मिल जाते हैं, जबकि दो-तीन साल के अनुभव के बाद यह राशि 30-35 हजार रुपए तक पहुंच जाती है। प्राइवेट सेक्टर में सरकारी अस्पतालों की अपेक्षा ज्यादा सेलरी मिलती है। यदि ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट स्वतंत्र रूप से या अपना सेंटर खोल कर काम कर रहे हैं तो उनके लिए आमदनी की कोई निश्चित सीमा नहीं होती। वे 50 हजार से लेकर एक लाख रुपए प्रतिमाह तक कमा सकते हैं।

 रोजगार के पर्याप्त अवसर

रोजगार की दृष्टि से यह काफी विस्तृत क्षेत्र है। यदि छात्र ने गंभीरतापूर्वक कोर्स किया है तो रोजगार के लिए भटकना नहीं पड़ेगा। उसे सरकारी अथवा प्राइवेट अस्पताल में नौकरी मिल जाएगी। सबसे ज्यादा जॉब कम्युनिटी मेडिकल हेल्थ सेंटर, डिटेंशन सेंटर, हॉस्पिटल, पॉलीक्लिनिक, साइक्राइटिक इंस्टीटय़ूशन, रिहैबिलिटेशन सेंटर, स्पेशल स्कूल, स्पोर्ट्स टीम में सृजित होती हैं। एनजीओ भी इसके लिए एक अच्छा विकल्प साबित हो सकते हैं। इसमें एक-तिहाई थेरेपिस्ट पार्ट टाइम को तरजीह देते हैं। यदि वे किसी सेंटर अथवा संस्था से जुड़ कर काम नहीं करना चाहते तो स्वतंत्र रूप से काम करने के अलावा अपना सेंटर भी खोल सकते हैं।

फायदे एवं नुकसान
सेवा व समर्पण की भावना
हर दिन कुछ नया सीखने का अवसर
काम के बाद आत्मसंतुष्टि
घंटों काम करने से थकान की स्थिति
अपेक्षित सफलता न मिलने पर कष्ट
अपने काम के लिए नेटवर्किंग जरूरी

एक्सपर्ट व्यू
चुनौतियों के लिए तैयार रहना होगा छात्रों को

अन्य क्षेत्रों की भांति मेडिकल क्षेत्र भी तेजी से दौड़ रहा है। उसमें कदम-कदम पर रोजगार के अवसर भी सामने आ रहे हैं। कमोबेश यही स्थिति ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट के साथ है। आज युवाओं के लिए यह पसंदीदा क्षेत्र बन चुका है और हर साल इसमें छात्रों की भीड़ बढ़ती जा रही है। भले ही इस क्षेत्र में ढेरों विकल्प हैं, लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं हैं। कोर्स खत्म होने के बाद नौकरी तलाशने से लेकर अपनी यूनिट स्थापित करने तक में छात्रों की खुद की मेहनत रंग लाती है, इसलिए छात्र अपनी मंजिल खुद तय करें तो फायदेमंद होगा। इसमें थ्योरी व प्रैक्टिकल दोनों की समान जानकारी दी जाती है, क्योंकि दोनों का अपना महत्व है। जो चीजें क्लास में पढ़ाई जाती हैं, लैब में उन्हीं का प्रैक्टिकल कराया जाता है। इस पेशे से संबंधित तकनीक व उपकरण दिन-प्रतिदिन बदलते जा रहे हैं। बाजार में बने रहने के लिए छात्रों को उन नई तकनीकों व आधुनिक उपकरणों से अपडेट रहना होगा।     

- डॉ. वीपी सिंह (डायरेक्टर)
दिल्ली इंस्टीट्यूट ऑफ पैरामेडिकल साइंस, दिल्ली के अनुसार -

इन पदों पर मिलेगा काम
ऑक्यूपेशनल थेरेपी टेक्निशियन
कंसल्टेंट
ऑक्यूपेशनल थेरेपी नर्स
रिहैबिलिटेशन थेरेपी
असिस्टेंट
स्पीच एंड लैंग्वेज थेरेपिस्ट
स्कूल टीचर
लैब टेक्निशियन
मेडिकल रिकॉर्ड
टेक्निशियन
ओटी इंचार्ज



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Sunday, June 30, 2019

विश्व स्वास्थ्य संगठन'(WHO)

विश्व स्वास्थ्य संगठन
World Health Organisation


विश्व स्वास्थ्य संगठन'(WHO) विश्व के देशों के स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर आपसी सहयोग एवं मानक विकसित करने की संस्था है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के 193 सदस्य देश तथा दो संबद्ध सदस्य हैं। यह संयुक्त राष्ट्र संघ की एक अनुषांगिक इकाई है। इस संस्था की स्थापना 7 अप्रैल 1948 को की गयी थी। इसका उद्देश्य संसार के लोगो के स्वास्थ्य का स्तर ऊँचा करना है। डब्‍ल्‍यूएचओ का मुख्यालय स्विटजरलैंड के जेनेवा शहर में स्थित है। इथियोपिया के डॉक्टर टैड्रोस ऐडरेनॉम ग़ैबरेयेसस विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के नए महानिदेशक निर्वाचित हुए हैं।

वो डॉक्टर मार्गरेट चैन का स्थान लेंगे जो पाँच-पाँच साल के दो कार्यकाल यानी दस वर्षों तक काम करने के बाद इस पद से रिटायर हो रही हैं।

भारत भी विश्व स्वास्थ्‍य संगठन का एक सदस्य देश है और इसका भारतीय मुख्यालय भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित है।

मूल रूप से 23 जून 1851 को आयोजित अंतर्राष्ट्रीय स्वच्छता सम्मेलन, डब्ल्यूएचओ के पहले पूर्ववर्ती थे। 1851 से 1 9 38 तक चलने वाली 14 सम्मेलनों की एक श्रृंखला, अंतरराष्ट्रीय स्वच्छता सम्मेलनों ने कई बीमारियों, मुख्य रूप से कोलेरा, पीले बुखार, और ब्यूबोनिक प्लेग का मुकाबला करने के लिए काम किया। 18 9 2 में सातवें तक सम्मेलन काफी हद तक अप्रभावी थे; जब कोलेरा के साथ निपटाया गया एक अंतरराष्ट्रीय स्वच्छता सम्मेलन पारित किया गया था। पांच साल बाद, प्लेग के लिए एक सम्मेलन पर हस्ताक्षर किए गए। सम्मेलनों की सफलताओं के परिणामस्वरूप, पैन-अमेरिकन सेनेटरी ब्यूरो, और ऑफिस इंटरनेशनल डी हाइगेन पब्लिक को जल्द ही 1 9 02 और 1 9 07 में स्थापित किया गया था। जब 1 9 20 में लीग ऑफ नेशंस का गठन हुआ, तो उन्होंने लीग ऑफ नेशंस के हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की स्थापना की। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, संयुक्त राष्ट्र ने डब्ल्यूएचओ बनाने के लिए अन्य सभी स्वास्थ्य संगठनों को अवशोषित किया।


विश्व स्वास्थ्य दिवस


इस संस्था की स्थापना ७ अप्रैल १९४८ को की गयी थी। इसी लिए प्रत्येक साल ७ अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता हैं।

भारत भी विश्व स्वास्थ्‍य संगठन का एक सदस्य देश है और इसका भारतीय मुख्यालय भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित है।


विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (WHO)


भारत में उपस्थिति: नवम्‍बर 1949 से

परिचय: विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन, स्‍वास्‍थ्‍य के लिए संयुक्‍त राष्‍ट्र की विशेषज्ञ एजेंसी है। यह एक अंतर-सरकारी संगठन है जो आमतौर पर सदस्‍य देशों के स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालयों के जरिए उनके साथ मिलकर काम करता है। विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन दुनिया में स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी मामलों में नेतृत्‍व प्रदान करने, स्‍वास्‍थ्‍य अनुसंधान एजेंडा को आकार देने, नियम और मानक तय करने, प्रमाण आधारित नीतिगत विकल्‍प पेश करने, देशों को तकनीकी समर्थन प्रदान करने और स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी रुझानों की निगरानी और आकलन करने के लिए जिम्‍मेदार है। भारत के लिए विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के कंट्री कार्यालय का मुख्‍यालय दिल्‍ली में है और देश भर में उसकी उपस्थिति है। इस कार्यालय के कार्य क्षेत्र का वर्णन इसकी कंट्री को-ऑपरेशन स्‍ट्रेटजी (सीसीएस) 2012-2017 में दर्ज है।

स्‍थान: नई दिल्‍ली, भारत

फोकस के क्षेत्र: मातृ, नवजात, बाल एवं किशोर स्‍वास्‍थ्‍य, संचारी रोग नियंत्रण; असंचारी रोग एवं स्‍वास्‍थ्‍य के सामाजिक निर्धारक; सार्वभौम स्‍वास्‍थ्‍य सेवा प्रसार; सतत् विकास और स्‍वस्‍थ पर्यावरण; स्‍वास्‍थ्‍य तंत्रों का विकास, स्‍वास्‍थ्‍य सुरक्षा और आपातस्थितियां

नोडल मंत्रालय: स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय
इसका उद्देश्य संसार के लोगों के स्वास्थ्य का स्तर ऊँचा करना है। डब्‍ल्‍यूएचओ का मुख्यालय स्विटजरलैंड के जेनेवा शहर में स्थित है। भारत भी विश्व स्वास्थ्‍य संगठन का एक सदस्य देश है और इसका भारतीय मुख्यालय राजधानी दिल्ली में स्थित है।


स्थापना

डब्ल्यूएचओ के संविधान को 22 जुलाई, 1946 को स्वीकार किया गया और यह 7 अप्रैल, 1948 से लागू हो गया। 15 नवंबर, 1947 को विश्व स्वास्थ्य संगठन संयुक्त राष्ट्र का विशिष्ट अभिकरण बन गया। डब्ल्यूएचओ द्वारा जन-स्वास्थ्य के अंतरराष्ट्रीय कार्यालय के कार्यों तथा संयुक्त राष्ट्र राहत एवं पुनर्वास प्रशासन (यूएनआरआरए) की गतिविधियों को भी हाथ में ले लिया गया। 194 सदस्यों वाले विश्व स्वास्थ्य संगठन का मुख्यालय जेनेवा में स्थित है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के बारे में महत्‍वपूर्ण जानकारी – Important Information about the World Health Organization


1.विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन की स्‍थापना 7 अप्रैल, 1948 को हुई थी।

2. इसका मुख्‍यालय स्विटजरलैंड के जेनेवा शहर में है

3.भारत भी विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन का एक सदस्‍य देश है जिसका मुख्‍यालय भारत की राजधानी दिल्‍ली (Delhi) में स्थित है

4.विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के 194 सदस्‍य हैं

5.विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन ने अब तक दस प्रमुख जानलेवा बीमारियों की पहचान की है
जिनमें कैंसर, सेरिब्रोवैस्क्यूलर डिजीज, एक्यूट लोअर रेस्पायरेटरी इन्फेक्शन, पेरीनेटल कंडीशंस, टी.बी., कारोनरी हार्ट डिजीज, क्रॉनिक ऑबस्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज, अतिसार, डेसेन्टरी तथा एड्स या एचआईवी शामिल हैं

6.प्रत्‍येक वर्ष 7 अप्रैल के दिन को विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है

7. विश्व स्वास्थ्य संगठन को संविधान ने 22 जुलाई, 1946 को स्वीकार किया था

विश्व स्वास्थ्य दिवस का उद्देश्य एवं महत्व

आज के समय में हर व्यक्ति अच्छी सेहत की बात करता है और इसके प्रति काफी हद तक लोगों में जागरूकता भी आई हैl फिर भी हमारे सामने कई ऐसे मामले आते हैं जब हम यह सोचने पर विवश हो जाते हैं, कि क्या यही चिकित्सा जगत की उपलब्धि है?

आज भी अधिकांश व्यक्तियों के रोग का या तो समय पर पता नहीं चल पाता है या उसका सही तरह से उपचार नहीं हो पाता है, जिसके कारण हर साल पूरी दुनिया में करोड़ों लोगों की असमय ही मृत्यु हो जाती हैl अतः पूरी दुनिया में लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से विश्व स्वास्थ्य दिवस का आयोजन किया जाता हैl इस लेख में हम विश्व स्वास्थ्य दिवस के इतिहास, उसके थीम का विवरण दे रहे हैंl

विश्व स्वास्थ्य दिवस पूरी दुनिया के लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से आयोजित होने वाला “वैश्विक स्वास्थ्य जागृति दिवस” हैl इसका आयोजन विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के द्वारा हर वर्ष 7 अप्रैल को किया जाता हैl

विश्व क्षयरोग (TB) दिवस की महत्ता और क्षय रोग (TB) से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य

विश्व स्वास्थ्य दिवस की शुरूआत

वर्ष 1948 में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जेनेवा में प्रथम “विश्व स्वास्थ्य सम्मेलन” का आयोजन किया थाl इस सम्मलेन में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि हर वर्ष 7 अप्रैल को वैश्विक स्तर पर विश्व स्वास्थ्य दिवस का आयोजन किया जाएगाl चूंकि 7 अप्रैल, 1948 को विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना की गई थी, इसी कारण 7 अप्रैल को ही “विश्व स्वास्थ्य दिवस” के रूप में चुना गयाl विश्व स्वास्थ्य सम्मेलन में लिए गए निर्णय के अनुसार वर्ष 1950 से हर वर्ष 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस का आयोजन किया जाता हैl


विश्व स्वास्थ्य दिवस, विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा चिह्नित आठ आधिकारिक वैश्विक स्वास्थ्य अभियानों में से एक है, जिसमें “विश्व क्षयरोग दिवस” (World Tuberculosis Day), “विश्व प्रतिरक्षण सप्ताह” (World Immunization Week), “विश्व मलेरिया दिवस” (World Malaria Day), “विश्व तम्बाकू निषेध दिवस” (World No Tobacco Day), “विश्व एड्स दिवस” (World AIDS Day), “विश्व रक्तदाता दिवस” (World Blood Donor Day) और “विश्व हेपेटाइटिस दिवस” (World Hepatitis Day) शामिल है।


विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा द्वारा हर वर्ष विश्व स्वास्थ्य दिवस को एक थीम के तहत मनाया जाता हैl वर्ष 2017 के लिए विश्व स्वास्थ्य दिवस का थीम " अवसाद: चलो बात करते हैं" घोषित किया गया हैl

विगत पांच वर्षों में विश्व स्वास्थ्य दिवस का थीम

1. वर्ष 2016 के विश्व जल दिवस का थीम “मधुमेह: रोकथाम बढ़ाना, देखभाल को मजबूत करना और निगरानी बढ़ाना” थाl

2. वर्ष 2015 के विश्व जल दिवस का थीम “खाद्य सुरक्षा” थाl

3. वर्ष 2014 के विश्व जल दिवस का थीम “वेक्टरजनित रोग” थाl

4. वर्ष 2013 के विश्व जल दिवस का थीम “स्वस्थ दिल की धड़कन, स्वस्थ रक्तचाप” थाl

5. वर्ष 2012 के विश्व जल दिवस उत्सव का थीम “अच्छा स्वास्थ्य जीवन में और समय जोड़ देते हैं” थाl


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Friday, June 28, 2019

Children with special needs (CWSN)

विशेष आवश्यकता वाले बच्चे(CWSN)

नि:शक्‍तता : पहचान एवं निवारण

सामान्यत: नि:शक्‍तता एक ऐसी अवस्था है जिससे व्यक्ति शरीर के कुछ अंग न होने के कारण अथवा सभी अंगों के होते हुए भी उन अंगों का कार्य सही रूप से नहीं कर पाता - जैसे उँगलियाँ न होना, पोलियो से पैर ग्रस्त होना, आँख होते हुए भी अंधत्व के कारण दिखाई नहीं देना, कान में दोष होने के कारण सुनाई नहीं देना, बुद्धि कम होने के कारण पढ़ाई नहीं कर पाना अथवा बुद्धि होते हुए भी भावनाओं पर नियंत्रण न कर पाना आदि |


विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नि:शक्‍तता की परिभाषा को तीन चरणों में विभाजित किया है -

क्षति (Impairment)
व्यक्ति के स्वास्थ्य से संबन्धित ऐसी अवस्था जिसमें शरीर के किसी अंग की रचना अथवा कार्य में दोष/अकार्यक्षमता/दुर्बलता होना |

नि:शक्‍तता (Disability)
क्षति के कारण नि:शक्‍तता निर्मित होती हैं | अर्थात, संरचनात्मक अथवा कार्यात्मक क्षति लंबे समय तक रहकर व्यक्ति को उसके दैनिक क्रियाकलापों में रूकाबट बन जाती हैं | इस अवस्था को नि:शक्‍तता कहा जाता हैं |

बाधिता (Handicap)
नि:शक्‍तता के कारण बाधिता निर्मित होती हैं | यानि दैनिक क्रियाकलापों को पूरा करने के अकार्यक्षमता के कारण व्यक्ति को समाज की गतिविधियों और मुख्यधारा में सहभागिता से वंचित होना पड़ता हैं | अर्थात, व्यक्ति समाज द्वारा अपेक्षित भूमिका नहीं निभा पाता हैं | इस अवस्था को बाधिता कहते हैं ।


 विश्व स्वास्थ्य संगठन
world health organisation


विश्व स्वास्थ्य संगठन'(WHO) विश्व के देशों के स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर आपसी सहयोग एवं मानक विकसित करने की संस्था है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के 193 सदस्य देश तथा दो संबद्ध सदस्य हैं। यह संयुक्त राष्ट्र संघ की एक अनुषांगिक इकाई है। इस संस्था की स्थापना 7 अप्रैल 1948 को की गयी थी। इसका उद्देश्य संसार के लोगो के स्वास्थ्य का स्तर ऊँचा करना है। डब्‍ल्‍यूएचओ का मुख्यालय स्विटजरलैंड के जेनेवा शहर में स्थित है। इथियोपिया के डॉक्टर टैड्रोस ऐडरेनॉम ग़ैबरेयेसस विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के नए महानिदेशक निर्वाचित हुए हैं।

वो डॉक्टर मार्गरेट चैन का स्थान लेंगे जो पाँच-पाँच साल के दो कार्यकाल यानी दस वर्षों तक काम करने के बाद इस पद से रिटायर हो रही हैं।

भारत भी विश्व स्वास्थ्‍य संगठन का एक सदस्य देश है और इसका भारतीय मुख्यालय भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित है।

सन्दर्भ

मूल रूप से 23 जून 1851 को आयोजित अंतर्राष्ट्रीय स्वच्छता सम्मेलन, डब्ल्यूएचओ के पहले पूर्ववर्ती थे। 1851 से 1 9 38 तक चलने वाली 14 सम्मेलनों की एक श्रृंखला, अंतरराष्ट्रीय स्वच्छता सम्मेलनों ने कई बीमारियों, मुख्य रूप से कोलेरा, पीले बुखार, और ब्यूबोनिक प्लेग का मुकाबला करने के लिए काम किया। 18 9 2 में सातवें तक सम्मेलन काफी हद तक अप्रभावी थे; जब कोलेरा के साथ निपटाया गया एक अंतरराष्ट्रीय स्वच्छता सम्मेलन पारित किया गया था। पांच साल बाद, प्लेग के लिए एक सम्मेलन पर हस्ताक्षर किए गए।  सम्मेलनों की सफलताओं के परिणामस्वरूप, पैन-अमेरिकन सेनेटरी ब्यूरो, और ऑफिस इंटरनेशनल डी हाइगेन पब्लिक को जल्द ही 1 9 02 और 1 9 07 में स्थापित किया गया था। जब 1 9 20 में लीग ऑफ नेशंस का गठन हुआ, तो उन्होंने
लीग ऑफ नेशंस के हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की स्थापना की। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, संयुक्त राष्ट्र ने डब्ल्यूएचओ बनाने के लिए अन्य सभी स्वास्थ्य संगठनों को अवशोषित किया।



नि:शक्तता की परिभाषा


दिव्यांगजन के समग्र कल्याण हेतु भारत सरकार द्वारा दिव्यांग जन (समान अवसर, अधिकार, संरक्षण एवं पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 पारित किया गया है, जो 07 फरवरी, 1996 से जम्मू कश्मीर को छोड़कर सम्पूर्ण भारतवर्ष में प्रभावी है। इस अधिनियम के कुल 14 अध्याय एवं 74 धाराऍ हैं। इस अधिनियम की धारा-2 (न) में नि:शक्त (दिव्यांग) व्यक्ति की परिभाषा निम्नानुसार दी गयी है:-

नि: शक्त (दिव्यांग):
से ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत है, जो किसी चिकित्सा प्राधिकारी द्वारा यथाप्रमाणित किसी नि:शक्तता से कम से कम 40 प्रतिशत से ग्रस्त है। उक्त अधिनियम - 1995 की धारा-2 में नि:शक्तता (दिव्यांगता) की श्रेणियॉ एवं उनकी परिभाषायें निम्नानुसार दी गयी है:-

दृष्टिहीनता
उस अवस्था के प्रति निर्देश करता है जहॉ कोई व्यक्ति निम्नलिखित दशाओं में से किसी से ग्रसित है अर्थात-

दृष्टिगोचरता का पूर्ण अभाव या
सुधारक लेन्सों के साथ बेहतर ऑख में 6/60 या 20/200 स्नेलन से अनधिक दृष्टि की तीक्ष्णता या
दृष्टि क्षेत्र की सीमा का 20 डिग्री के कोण के कक्षांतरकारी होना या अधिक खराब होना।

कम दृष्टि वाला व्यक्ति
से अभिप्रेत है, ऐसा कोई व्यक्ति जिसके उपचार या मानक उपवर्धनीय सुधार संशोधन के बावजूद दृष्टिसंबंधी कृत्य का हास हो गया है और जो समुचित सहायक युक्ति से किसी कार्य की योजना या निष्पादन के लिए दृष्टि का उपयोग करता है या उपयोग करने में संभाव्य रूप से समर्थ है।

कुष्ठ रोग से मुक्त
से कोई ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जो कुष्ठ रोग से मुक्त हो गया है किन्तु निम्नलिखित से ग्रसित है:-

जिसके हाथ या पैरों में संवेदना की कमी तथा नेत्र और पलकों में संवेदना की कमी और आंशिक घात है किन्तु कोई प्रकट विरूपता नही है।

प्रकट निःशक्तताग्रस्त और आंशिक घात है किन्तु उसके हाथों और  पैरों में पर्याप्त गतिशीलता है जिससे वे सामान्य आर्थिक क्रिया कलाप कर सकते है।

अत्यन्त शारीरिक विरूपांगता और अधिक वृद्धावस्था से ग्रस्त है जो उन्हें कोई भी लाभपूर्ण उपजीविका चलाने से रोकती है और कुष्ठ रोग से मुक्त पद का अर्थ तदनुसार लगाया जायेगा।

श्रवण हा्स
से अभिप्रेत है संवाद संबंधी रेंज की आवृत्ति में बेहतर कर्ण में 60 डेसीबल या अधिक की हानि।

चलन क्रिया संबंधी नि:शक्तता
से हड्डियों, जोडों या मांसपेशियों की कोई ऐसी नि:शक्तता अभिप्रेत है जिससे अंगों की गति में पर्याप्त निर्बन्धन या किसी प्रकार का प्रमस्तिष्क अंगघात हो।

मानसिक मंदता
से किसी व्यक्ति के मस्तिष्क के अवरूद्ध या अपूर्ण विकास की अवस्था है जो विशेष रूप से सामान्य बुद्धिमत्ता की अवसामन्यता द्वारा प्रकट है, अभिप्रेत है।

मानसिक बीमार
से मानसिक मंदता से भिन्न कोई मानसिक विकास अभिप्रेत है।

निःशक्तता की उक्त श्रेणियों एवं परिभाषाओं के अनुसार दिव्यांग व्यक्तियों को निःशक्तता प्रमाण पत्र जारी करने हेतु उ0प्र0 नि:शक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) नियमावली, 2001 को सरलीकृत करते हुये उ0प्र0 नि:शक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) (प्रथम संशोधन) नियमावली 2014 शासन के अधिसूचना संख्या 519/65-3-2014-98 दिनांक 3.9.2014 द्वारा निर्गत की गयी है। उक्त संशोधित नियमावली के अनुसार सहज दृश्य निःशक्तता हेतु दिव्यांग प्रमाण पत्र प्रदेश के विभिन्न सामुदायिक चिकित्सा केन्द्रों एवं प्राथमिक चिकित्सा केन्द्रों, राजकीय चिकित्सालयों में कार्यरत चिकित्सा विभाग द्वारा नामित प्राधिकृत चिकित्सा अधिकारी द्वारा निर्गत किया जायेगा, जबकि ऐसी निःशक्तता जो सहज दृश्य न हो एवं उसके परिमाणमापन हेतु विशेषज्ञ चिकित्सक एवं उपकरण की आवश्यकता हो, के प्रकरण में दिव्यांग प्रमाण पत्र प्राधिकृत चिकित्सक की संस्तुति के आधार पर प्रत्येक जनपद में मुख्य चिकित्साधिकारी की अध्यक्षता में गठित चिकित्सा परिषद अथवा डा0 राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय लखनऊ के प्राधिकृत चिकित्सक द्वारा निर्गत किया जायेगा।


नि:शक्‍तता प्रमाण पत्र

नि:शक्‍तता की परिभाषा अनुसार किसी भी संवर्ग के 40 प्रतिशत या उससे अधिक नि:शक्‍तताधारी व्‍यक्ति को शासन की संचालित सुविधाओं का लाभ दिये जाने के लिए सर्वप्रथम नि:शक्‍तता प्रमाण पत्र प्रदान किये जाने के लिए प्रत्‍येक जिले में जिला मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया हैं। जिला मेडिकल बोर्ड द्वारा प्रत्‍येक माह के निर्धारित दिवसों में नि:शक्‍तता दर्शाते हुए 2 छाया चित्र (फोटो) मूल निवासी का प्रमाण पत्र एवं आवेदन पत्र के साथ हितग्राही को उपस्थित होने पर जिला चिकित्‍सा बोर्ड द्वारा चिकित्‍सा प्रमाण्‍ा पत्र जारी किया जाता हैं।

प्रकिया: नि:शक्‍तता प्रमाण पत्र के आधार पर ही शासन द्वारा संचालित योजनाओं के तहत निर्धारित मापदण्‍डों के अनुरूप लाभान्वित किया जाता हैं। अत: प्रथमत: नि:शक्‍त व्‍यक्ति को नि:शक्‍तता प्रमाण पत्र जिला चिकित्‍सा बोर्ड के माध्‍यम से तैयार कराया जाना आवश्‍यक हैं।

राज्‍य शासन द्वारा नि:शक्‍तजनों के समग्र पुनर्वास कार्यक्रम के तहत नवंबर 2006 में कराये गए एक दिवसीय हाउस होल्‍ड सर्वेक्षण के अनुसार प्रदेश मे कुल 7,71,082 नि:शक्‍तजन हैं जिनकी नि:शक्‍ततावार संख्‍या निम्‍नानुसार हैं:

क्रं. नि:शक्‍तता का प्रकार नि:शक्‍ततावार संख्‍या
1. चलन नि:शक्‍तता (अस्थिबाधित) 4,38,148
2. श्रवण शक्ति का ह्रास (श्रवण बाधित) 91,777
3. अंधता (द्वष्टि बाधित) 91,022
4. मानसिक मंदता 60,508
5. कम द्वष्टि 56,876
6. मानसिक रूग्‍णता 21,944
7. कुष्‍ठरोग मुक्‍त 10,807

जिलो से प्राप्‍त संकलित जानकारी के अनुसार दिनांक 27-12-2010 तक 6,24,761 नि:शक्‍तोंजनों को नि:शक्‍तता प्रमाण पत्र जारी किये जा चुके हैं तथा 1,49,350 नि:शक्तजनों को कृत्रिम अंग/सहायक उपकरण उपलब्ध कराये गए हैं।


समर्थकारी एकक के प्रमुख कार्य इस प्रकार होंगे:


  • इस प्रकार के पाठ्यक्रमों पर दिव्यांग विद्यार्थियों को काउंसलिंग प्रदान करना जिससे वे उच्चतर शिक्षा संस्थाओं में अध्ययन कर सकते हैं।



  • ओपन कोटे तथा साथ ही दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए आशयित कोटे के माध्यम से ऐसे विद्यार्थियों का यथासंभव प्रवेश सुनिश्चित करना।



  • दिव्यांग व्यक्तियों के लिए शुल्क में रियायत, परीक्षा प्रक्रियाओं, आरक्षण नीतियों आदि से संबंधित आदेशों को एकत्र करना।



  • दिव्यांग व्यक्तियों से संबंधित नीतियां आदि

  • उच्चतर शिक्षा संस्थानों में नामांकित दिव्यांग व्यक्तियों की शैक्षणिक आवश्यकताओं का आकलन करना ताकि अधिप्राप्त किए जाने वाले सहायक उपकरणों के प्रकारों का अवधारण किया जा सके।



  • संस्थानों के शिक्षकों के लिए शिक्षण, मूल्यांकन प्रक्रियाओं आदि के बारे में जागरूकता कार्यक्रम संचालित करना, जो उन्हें दिव्यांग विद्यार्थियों के मामले में सहायता प्रदान करेंगे।

  • दिव्यांगों की अभिवृत्तियों का अध्ययन करना तथा उन्हें उनके अध्ययन के उपरांत उनके द्वारा अपेक्षित होने पर उपयुक्त रोजगार हासिल करने में सहायता देना।



  • संस्थान में तथा साथ ही आस-पास के परिवेश में विकलांगता से संबंधित महत्वपूर्ण दिवसों का आयोजन करना जैसे विश्व विकलांगता दिवस, व्हाई केन डे, आदि ताकि भिन्न रूप से समर्थ व्यक्तियों की सक्षमताओं के बारे में जागरूकता का सृजन किया जा सके।



  • एचईपीएसएन योजना के अंतर्गत उच्चतर शिक्षा संस्थानों द्वारा खरीदे गए विशेष सहायक उपकरणों का समुचित अनुरक्षण सुनिश्चित करना तथा शिक्षण अनुभवों में संवृद्धि करने के लिए दिव्यांग व्यक्तियों को उनका प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना।



  • दिव्यांग व्यक्तियों के मामला इतिवृत्तों के साथ वार्षिक रिपोर्टें तैयार करना जो उच्चतर शिक्षा संस्थानों के लिए संस्थानों के लिए संस्वीकृत एचइपीएसएन योजना द्वारा लाभान्वित हुए हैं।



दिव्यांग व्यक्तियों को पहुँचप्रदान करना

यह महसूस किया गया है कि दिव्यांग व्यक्तियों को उनकी संचलनता और स्वतंत्र कार्यकरण के लिए परिवेश में विशेष व्यवस्थाओं की आवश्यकता होती है। यह भी सच है कि अनेक संस्थानों में ऐसे वास्तुकला संबंधी अवरोध होते हैं जोदिव्यांग व्यक्तियों के लिए उनके दैनिक कार्यकरण में बाधाएं उत्पन्न करते हैं। कॉलेजों से अपेक्षा की जाती है कि वे नि:शक्त व्यक्ति अधिनियम, 1995 की शर्तों के अनुसार अभिगम्यता संबंधी मुद्दों का निवारण करें तथा यह सुनिश्चित करें कि उनके परिसरों में सभी विद्यमान संरचनाएं तथा भावी निर्माण परियोजनाएं दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सुविधाजनक हों। संस्थानों को विशेष सुविधाओं का सृजन करना चाहिए जैसे रैम्प, रेल और विशेष शौचालय आदि, जो दिव्यांग व्यक्तियों की विशेष जरूरतों के अनुरूप हों। निर्माण योजनाओं द्वारा विकलांगता से संबंधित अभिगम्यता मुद्दों का स्पष्टत: निवारण किया जाना चाहिए। मुख्य नि:शक्तता आयुक्त के कार्यालय द्वारा अभिगम्यता पर दिशा-निर्देश निर्धारित किए गए हैं।

भिन्न रूप से समर्थ व्यक्तियों के लिए शिक्षा सेवाओं का संवर्धन करने के लिए विशेष उपकरण उपलब्ध कराना

दिव्यांग व्यक्तियों को उनके दैनिक कार्यकरण के लिए विशेष सहायताओं की आवश्यकता होती है। ये उपकरण सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की विभिन्न योजनाओं के माध्यम से उपलब्ध हैं। इस योजना के माध्यम से सहायक उपकरणों की अधिप्राप्ति के अतिरिक्त उच्चतर शिक्षा संस्थानों को विशेष शिक्षण और आकलन उपकरणों की आवश्यकता भी हो सकती है जिससे उच्चतर शिक्षा के लिए नामांकित छात्रों को सहायता दी जा सके। इसके अलावा, दृष्टिबाधित छात्रों को रीडरों की आवश्यकता भी होती है। उपकरणों जैसे स्क्रीन रीडिंग साफ्टवेयर के साथ कंप्यूटर, लो-विजन उपकरण, स्कैनर, संचलनता उपकरण आदि की संस्थान में उपलब्धता दिव्यांग व्यक्तियों के शैक्षणिक अनुभवों को भी समृद्ध करेगी। अत: कॉलेजों को ऐसे उपकरण अधिप्राप्त करने तथा दृष्टिबाधित छात्रों हेतु रीडर्स की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।



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Monday, June 3, 2019

समाज में विशेष शिक्षा शिक्षकों की भूमिकाए और जिम्मेदारियां


Role and responsibilities of Special educator


समाज में विशेष शिक्षा शिक्षकों की भूमिकाए और जिम्मेदारियां


एक विशेष शिक्षा शिक्षक अद्वितीय आवश्यकताओं वाले बच्चों के लिए शैक्षिक हस्तक्षेप और सहायता प्रदान करता है। एक वकील और एक शिक्षक के रूप में कार्य करते हुए, एक विशेष शिक्षा शिक्षक कक्षा के शिक्षकों, परामर्शदाताओं और परिवार के सदस्यों के साथ काम करता है, जो बच्चों के लिए एक व्यक्तिगत शिक्षा कार्यक्रम (IEPs) लिखते हैं जो शैक्षणिक, सामाजिक और व्यक्तिगत रूप से संघर्ष कर रहे हैं। मूल्यांकन, निर्देशात्मक योजना और शिक्षण इस पद के प्राथमिक कर्तव्य हैं। विशेष शिक्षा शिक्षक उन छात्रों के साथ काम करते हैं जिनके पास व्यवहार संबंधी मुद्दे हैं, सीखने की अक्षमता, दृश्य हानि, आत्मकेंद्रित, या प्रतिभाशाली और प्रतिभाशाली हैं।


 नौकरी का विवरण

हर दिन एक विशेष शिक्षा शिक्षक के लिए एक नई चुनौती और नई नौकरी के कर्तव्यों को प्रस्तुत करता है। छात्रों के साथ समय-समय पर पूरक निर्देश, व्यक्तिगत शैक्षणिक और व्यवहार संबंधी सहायता, और उन छात्रों का मूल्यांकन करना है जिनके पास IEP की फाइल है। विशेष शिक्षा शिक्षक कक्षा में सफल होने वाले छात्रों को जोखिम में मदद करने के बारे में सलाह देने के लिए कक्षा शिक्षकों के सलाहकार के रूप में काम करते हैं। प्रशासनिक कार्य विशेष शिक्षा शिक्षकों के लिए दिन के बड़े हिस्से का उपभोग करते हैं। पाठ की योजना बनाना, विशेष सहायता प्राप्त करने वाले छात्रों की केस फाइल को अपडेट करना और नए IEP लिखना नियमित नौकरी कर्तव्य हैं। अक्सर, विशेष शिक्षा शिक्षक शिक्षाप्रद सहायकों की निगरानी करते हैं और इसके लिए उन्हें अपने दैनिक कार्यों का प्रबंधन और उन्हें असाइन किए गए छात्रों के साथ काम करने के तरीके के बारे में कोचिंग की आवश्यकता होती है। अंत में, विशेष शिक्षा शिक्षक नियमित रूप से छात्रों की प्रगति, कक्षा की जरूरतों और उत्पन्न होने वाली विशेष चिंताओं के बारे में माता-पिता, शिक्षकों और प्रशासकों से संवाद करते हैं।


 शिक्षा आवश्यकताएँ

विशेष शिक्षा में स्नातक की डिग्री इस कैरियर के लिए एक ठोस आधार है। इस चार साल के कार्यक्रम में असाधारण शिक्षार्थी, सीखने का माहौल, मूल्यांकन, विशेष आवश्यकताओं वाले शिक्षार्थियों के लिए विभेदक निर्देश, और विशेष आवश्यकताओं वाले छात्रों के स्वास्थ्य के मुद्दों जैसे पाठ्यक्रम शामिल हैं। आप व्यवहार के मुद्दों, भावनात्मक गड़बड़ी, आत्मकेंद्रित या असाधारण प्रतिभा पर ध्यान केंद्रित करने वाले पाठ्यक्रमों को आगे बढ़ा सकते हैं। कक्षा अवलोकन और छात्र शिक्षण का एक सेमेस्टर शैक्षणिक शिक्षण का व्यावहारिक अनुप्रयोग प्रदान करता है। अंत में, आपको एक विशेष शिक्षा शिक्षक के रूप में प्रमाणित होने के लिए लाइसेंस परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी। कुछ राज्यों ने योग्यता बढ़ाई है और एक मास्टर की डिग्री शामिल है। कई विशेष-शिक्षा स्नातक कार्यक्रमों को ऑनलाइन पूरा किया जा सकता है, और शिक्षक इस डिग्री को पूरा करते हुए अस्थायी रूप से पढ़ाने में सक्षम हो सकते हैं। विशिष्ट आवश्यकताओं की पुष्टि करने के लिए अपने राज्य में शिक्षा विभाग से संपर्क करें।

उद्योग

एक विशेष शिक्षा शिक्षक के लिए औसत वार्षिक वेतन $ 58,980 है। ज्यादातर शिक्षक साल में 10 महीने काम करते हैं। वर्ष में 12 महीने काम करने वाले विशेष शिक्षा शिक्षकों के पास अधिक कमाने का अवसर हो सकता है।


वर्षों का अनुभव

नए विशेष शिक्षा शिक्षक अक्सर काम के बोझ और नौकरी की भावनात्मक कठोरता से अभिभूत होते हैं। अनुभवी विशेष शिक्षा शिक्षकों के पास एक विकसित समर्थन प्रणाली है और दैनिक कार्य प्रवाह का प्रबंधन करने के लिए अधिक सुसज्जित हैं। कैरियर में उन्नति के अवसरों में अन्य विशेष शिक्षा शिक्षकों की देखरेख और विशेष शिक्षा सेवाओं के लिए निरीक्षण शामिल हैं, जो जिले में विस्तृत हैं।

जॉब ग्रोथ ट्रेंड

विशेष शिक्षा के क्षेत्र में अब और 2026 के बीच आठ प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद है। संघीय जनादेश में उन छात्रों के लिए विशेष शिक्षा शामिल है जो एक IEP के लिए अर्हता प्राप्त करते हैं। यह विशेष शिक्षा शिक्षकों के लिए एक स्थिर नौकरी भविष्य प्रदान करता है।


 एक विशेष शिक्षक के रूप में आप इसके संपर्क में आएंगे और इसके लिए जिम्मेदार होंगे विकलांग बच्चों की शैक्षिक आवश्यकताएं। ये बच्चे भी करेंगे उनके लिए विभिन्न सेवाओं, संशोधनों और आवास की आवश्यकता है शैक्षिक अनुभव। प्रत्येक प्रकार की विकलांगता और विशिष्ट आवश्यकताओं का ज्ञान यदि आप होने या पहले से ही इसमें शामिल हैं, तो उस विकलांगता वाले बच्चे महत्वपूर्ण हैं विशेष शिक्षा का क्षेत्र। विकलांगों की विभिन्न श्रेणियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है 2004 के विकलांग व्यक्ति शिक्षा अधिनियम के तहत। इनमें शामिल हैं:

• आत्मकेंद्रित,
• बहरापन,
• भावनात्मक अशांति,
• श्रवण दोष (बहरापन सहित),
• मानसिक मंदता,
• कई विकलांग,
• आर्थोपेडिक हानि,
• अन्य स्वास्थ्य हानि,
• विशिष्ट शिक्षण विकलांगता,
• भाषण या भाषा की हानि,
• दर्दनाक मस्तिष्क की चोट, या
• दृश्य हानि (अंधापन सहित)




आज के स्कूलों में विशेष शिक्षा शिक्षक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है असाधारण छात्रों की उचित शिक्षा। शिक्षक इस मायने में विशिष्ट है कि वह फिट हो सकता है शैक्षिक वातावरण में कई अलग-अलग भूमिकाएँ। हालाँकि, इनमें से प्रत्येक अलग है भूमिकाओं में कई प्रकार की जिम्मेदारियां और कार्य शामिल हैं। इनको समझना जिम्मेदारियां केवल विशेष शिक्षक को भूमिका से परिचित होने में मदद कर सकती हैं और सफलता की संभावना बढ़ाते हैं। उदाहरण के लिए, विशेष शिक्षा शिक्षक कर सकते हैं विभिन्न शैक्षिक स्थितियों की एक किस्म की सौपा। बदलती शैक्षिक इस पठाय क्रम में एक विशेष शिक्षा शिक्षक की भूमिकाए वर्णित है।


विशेष शिक्षा शिक्षकों को उन बच्चों के साथ काम करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है जिनके पास विकलांगों की एक विस्तृत श्रृंखला है। विशेष शिक्षा शिक्षकों के पास आमतौर पर कम से कम स्नातक की डिग्री होती है और कुछ के पास शिक्षा या बाल मनोविज्ञान में मास्टर डिग्री भी हो सकती है। सभी विशेष शिक्षा शिक्षक जो पब्लिक स्कूलों में पढ़ाते हैं, उनके पास अपने राज्य द्वारा जारी किया गया शिक्षण प्रमाण पत्र भी होना चाहिए।


छात्रों का आकलन करना

एक विशेष शिक्षा शिक्षक की प्राथमिक जिम्मेदारियों में से एक उसके छात्रों की संज्ञानात्मक क्षमताओं का आकलन करना है। अधिकांश विशेष एड छात्रों का मूल्यांकन स्कूल आने से पहले मनोवैज्ञानिकों और अन्य पेशेवरों द्वारा किया गया है, इसलिए विशेष एड शिक्षकों के पास अक्सर नैदानिक ​​जानकारी के साथ-साथ उनके छात्रों की जरूरतों का आकलन करने के लिए अवलोकन डेटा के रूप में अच्छी जानकारी होती है। शिक्षकों का अपने छात्रों के साथ काम करने का अनुभव भी छात्रों के लिए पाठ्यक्रम और शिक्षा योजना विकसित करने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है।


व्यक्तिगत शिक्षा कार्यक्रम

एक व्यक्तिगत शिक्षा कार्यक्रम को विशेष शिक्षा छात्रों के शैक्षिक, शारीरिक और सामाजिक विकास की जरूरतों को बेहतर बनाने के लिए बनाया गया है। एक विशेष एड शिक्षक छात्रों की क्षमताओं का विश्लेषण करता है और छात्र के लिए एक कस्टम योजना बनाने के लिए मानक आयु-उपयुक्त पाठ्यक्रम को संशोधित करता है। एक IEP में अक्सर कई सामाजिक और भावनात्मक विकास लक्ष्यों के साथ-साथ विशिष्ट शैक्षणिक क्षेत्रों को भी पढ़ाया जाता है।

छात्रों को पढ़ाना

विशेष शिक्षा शिक्षक छात्रों के साथ काम करने में बहुत समय बिताते हैं। विशेष आवश्यकता वाले छात्रों को अक्सर पूर्णकालिक, एक-पर-एक पर्यवेक्षण की आवश्यकता होती है, विशेष रूप से स्कूल में, और विशेष एड शिक्षक वे विकसित IEPs को पूरा करने के लिए सबसे योग्य होते हैं। विशेष शिक्षा कक्षाओं में पारंपरिक कक्षाओं की तुलना में कम छात्र होते हैं ताकि शिक्षक और शिक्षक सहायक छात्रों पर अधिक व्यक्तिगत ध्यान केंद्रित कर सकें।


स्कूल प्रशासन और माता-पिता

विशेष जरूरतों वाले बच्चों के कई माता-पिता अपने बच्चों की शिक्षा में शामिल होते हैं, और आईईपी डिजाइन करने में अपने शिक्षकों के साथ मिलकर काम करते हैं और स्कूल वर्ष के दौरान विकासात्मक और शैक्षिक प्रगति की निगरानी करते हैं। विशेष शिक्षा शिक्षक विकलांगों पर संघीय और राज्य कानूनों के अनुपालन के साथ-साथ अन्य स्कूलों में स्थानांतरित होने वाले छात्रों के लिए योजनाओं को विकसित करने के संबंध में स्कूल प्रशासन के अधिकारियों के साथ समन्वय भी करते हैं।

वेतन की जानकारी

विशेष शिक्षा शिक्षकों ने श्रम सांख्यिकी ब्यूरो के अनुसार, मई 2010 के अनुसार $ 53,220 का औसत वार्षिक वेतन अर्जित किया। उच्च विद्यालय के विशेष शिक्षा शिक्षकों ने $ 54,810 का औसत वार्षिक वेतन अर्जित किया, मध्य विद्यालय के विशेष शिक्षा शिक्षकों ने $ 53,440 का औसत वेतन अर्जित किया और पूर्वस्कूली और प्राथमिक विद्यालय के विशेष शिक्षा शिक्षकों ने $ 52,250 का औसत वेतन प्राप्त किया।


2016 विशेष शिक्षा शिक्षकों के लिए वेतन सूचना

यूएस ब्यूरो ऑफ़ लेबर स्टैटिस्टिक्स के अनुसार, विशेष शिक्षा शिक्षकों ने 2016 में $ 57,840 का औसत वार्षिक वेतन अर्जित किया। कम अंत पर, विशेष शिक्षा शिक्षकों ने $ 46,080 का 25 वां प्रतिशत वेतन अर्जित किया, जिसका अर्थ है कि 75 प्रतिशत ने इस राशि से अधिक अर्जित किया। 75 वां प्रतिशत वेतन $ 73,740 है, जिसका अर्थ है कि 25 प्रतिशत अधिक कमाते हैं। 2016 में, 439,300 लोग विशेष शिक्षा शिक्षक के रूप में अमेरिका में कार्यरत थे।


 विशेष शिक्षा शिक्षक की भूमिका


  • छात्रों को कौशल और ज्ञान के विकास में निर्देश दें जो उन्हें मूल्यांकन की जरूरतों के आधार पर स्वतंत्र रूप से उच्चतम डिग्री संभव में भाग लेने में सक्षम बनाता है


  • नियमित और विशेष शिक्षा शिक्षकों, स्कूल कर्मियों और साथियों को अनुकूलित शारीरिक शिक्षा की जरूरतों और अधिकतम स्वतंत्रता और सुरक्षा को बढ़ावा देने वाले छात्र के अनुकूलन के उपयुक्त तरीकों से संबंधित परामर्श-सेवा प्रशिक्षण प्रदान करें।


  • एक कार्यात्मक और सार्थक कार्यक्रम प्रदान करने के लिए IEP टीम (यानी माता-पिता, कक्षा शिक्षक, भाषण प्रदाता, व्यावसायिक और शारीरिक चिकित्सक, अभिविन्यास और गतिशीलता और दृष्टि विशेषज्ञ) के सदस्यों के साथ काम करता है।


  • छात्र की मूल्यांकन की गई आवश्यकताओं, लक्ष्य और उद्देश्यों, कार्यात्मक स्तरों और प्रेरक स्तरों के अनुरूप एक कार्यक्रम बनाएं


  • कौशल के विकास के लिए उपकरण और सामग्री तैयार करना और उनका उपयोग करना क्योंकि यह एडाप्टेड फिजिकल एजुकेशन (यानी बीपर बॉल्स। स्पंज बॉल्स, बैटिंग टीज़ आदि) से संबंधित है।


  • आचरण का मूल्यांकन जो छात्र की लंबी और छोटी अवधि की जरूरतों दोनों पर केंद्रित है




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Sunday, June 2, 2019

मानव संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार [MHRD]


मानव संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार

Ministry of Human Resource Development [MHRD]

मानव संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार भारत सरकार का एक मंत्रालय है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय, पूर्व में शिक्षा मंत्रालय (25 सितंबर 1985 तक), भारत में मानव संसाधनों के विकास के लिए जिम्मेदार है। मंत्रालय को दो विभागों में बांटा गया है: स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग, जो प्राथमिक, माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा, वयस्क शिक्षा और साक्षरता, और उच्च शिक्षा विभाग से संबंधित है, जो विश्वविद्यालय शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, छात्रवृत्ति आदि से संबंधित है। तत्कालीन शिक्षा मंत्रालय अब 26 सितंबर 1985 तक इन दोनों विभागों के अधीन है।


         मानव संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार

                     संस्था अवलोकन

अधिकार क्षेत्र       -   भारत गणराज्य

मुख्यालय            -   शास्त्री भवन, डा राजेंद्र प्रसाद रोड,
                             नई दिल्ली

उत्तरदायी मंत्री      -   डॉ रमेश पोखरियाल निशंक, मानव                                    संसाधन विकास मंत्री

अधीनस्थ संस्थान  -    Department of School                                        Education and
                              Literacy,   Department of                                    Higher Education

वेबसाइट.            -    mhrd.gov.in



मंत्रालय का नेतृत्व कैबिनेट-रैंक वाले मानव संसाधन विकास, मंत्रिपरिषद का एक सदस्य करता है। इस विभाग के मंत्री प्रकाश जावड़ेकर हैं।


प्रमुख विभाग


  • विश्वविद्यालय एवं उच्च शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा, दूर शिक्षा
  • तकनीकी शिक्षा
  • नियोजन
  • यूनेस्को
  • एकीकृत वित्त विभाग



शिक्षा और साक्षरता विभाग


स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग देश में स्कूली शिक्षा और साक्षरता के विकास के लिए जिम्मेदार है। यह "शिक्षा के सार्वभौमिकरण" और भारत के युवाओं में नागरिकता के लिए उच्च मानकों की खेती के लिए काम करता है।


उच्च शिक्षा विभाग

उच्च शिक्षा विभाग माध्यमिक और उत्तर-माध्यमिक शिक्षा का प्रभारी है। विभाग को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) अधिनियम, 1956 देने का अधिकार है। उच्च शिक्षा विभाग संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद दुनिया की सबसे बड़ी उच्च शिक्षा प्रणालियों में से एक का ख्याल रखता है। विभाग देश को उच्च शिक्षा और अनुसंधान के विश्व-स्तरीय अवसरों में लगा हुआ है, ताकि भारतीय छात्रों को अंतरराष्ट्रीय मंच के साथ सामना करने पर नहीं मिले। इसके लिए, सरकार ने संयुक्त उद्यम शुरू किया है और भारतीय छात्रों को विश्व राय से लाभान्वित करने के लिए समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं। केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित संगठन, राज्य सरकार / राज्य वित्त पोषित संगठन और स्व-वित्तपोषित संस्थान - तकनीकी शिक्षा प्रणाली को मोटे तौर पर तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। तकनीकी और विज्ञान के 122 केंद्रीय वित्त पोषित संस्थान इस प्रकार हैं: CFTIs की सूची (केंद्रीय रूप से वित्त पोषित तकनीकी संस्थान): IIITs (4 - इलाहाबाद, ग्वालियर, जबलपुर, कंचेपुरम), IITs (16), IIM (13), IISC, IISER (५), एनआईटी (३०), एनआईटीटीटीआर (४), और ९ अन्य (एसपीए, आईएसएमयू, एनआईईआरटी, एसएलआईईटी, आईआईईएसटी, एनआईटीआईआई और एनआईएफएफटी, सीआईटी)


संगठनात्मक संरचना


विभाग को आठ ब्यूरो में विभाजित किया गया है, और विभाग के अधिकांश काम इन ब्यूरो के तहत 100 स्वायत्त संगठनों से अधिक है।

विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षा ; अल्पसंख्यक शिक्षा


  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC)
  • शिक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (ERDO)
  • भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR)
  • भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (ICHR)
  • भारतीय दर्शन अनुसंधान परिषद (ICPR)
  • 11.09.2015 को 46 केंद्रीय विश्वविद्यालय , विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा जारी की गई सूची
  • इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज़ (IIAS), शिमला


तकनीकी शिक्षा


  • अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE)
  • वास्तुकला परिषद (COA) 
  • 5 भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (इलाहाबाद, ग्वालियर, जबलपुर, कांचीपुरम और कुरनूल)
  • 3 स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर (एसपीए)
  • 23 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IITs)
  • 7 भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (IISERs)
  • 20 भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) 
  • 31 राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी)
  • इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग साइंस एंड टेक्नोलॉजी, शिबपुर (IIEST)
  • संत लोंगोवाल इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी
  • उत्तर पूर्वी क्षेत्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (NERIST)
  • राष्ट्रीय औद्योगिक इंजीनियरिंग संस्थान (NITIE)
  • 4 राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण और अनुसंधान संस्थान (NITTTRs) (भोपाल, चंडीगढ़, चेन्नई और कोलकाता )
  • गनी खान चौधरी इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (GKCIET)
  • अपरेंटिसशिप / प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के 4 रीजनल बोर्ड


 प्रशासन और भाषाएँ


  • संस्कृत के क्षेत्र में तीन डीम्ड विश्वविद्यालय।
  • नई दिल्ली में राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान (RSkS),
  • श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ (SLBSRSV) नई दिल्ली,
  • राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ (RSV) तिरुपति
  • केंद्रीय हिंदी संस्थान (KHS), आगरा
  • अंग्रेजी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय (EFLU), हैदराबाद
  • उर्दू भाषा को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय परिषद (NCPUL)
  • राष्ट्रीय सिंधी भाषा संवर्धन परिषद (NCPSL)
  • तीन अधीनस्थ कार्यालय: केंद्रीय हिंदी निदेशालय (सीएचडी), नई दिल्ली; वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग (CSTT), नई दिल्ली; और सेंट्रल ** इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियन लैंग्वेजेज (CIIL), मैसूर
  • दूरस्थ शिक्षा और छात्रवृत्ति
  • इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU)
  • यूनेस्को, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, पुस्तक संवर्धन और कॉपीराइट, शिक्षा नीति, योजना और निगरानी
  • एकीकृत वित्त प्रभाग।
  • सांख्यिकी, वार्षिक योजना और CMIS
  • प्रशासनिक सुधार, उत्तर पूर्वी क्षेत्र, एससी / एसटी / ओबीसी

     इत्यादी

  • राष्ट्रीय शैक्षिक योजना और प्रशासन विश्वविद्यालय (NUEPA)
  • नेशनल बुक ट्रस्ट (एनबीटी)
  • राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड (एनबीए)
  • राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के लिए आयोग (NCMEI)
  • राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT)
  • राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE)
  • केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE)
  • संगठन विश्वविद्यालय (KVS)
  • समिति नवी (NVS)
  • राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (NIOS)
  • केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (CTA)
  • शिक्षकों के कल्याण के लिए राष्ट्रीय फाउंडेशन
  • सार्वजनिक क्षेत्र का उद्यम , शैक्षिक परामर्शदाता (भारत) लिमिटेड (EdCIL)
  • केंद्रीय तिब्बती प्रशासन , (HH दलाई लामा का ब्यूरो), (लाजपत नगर), दिल्ली
  • राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय संस्थान (NosI)
  • भारत में राष्ट्रीय पिछड़ा कृषि विद्यापीठ सोलापुर (Nbk)
  • संयुक्त सीट आवंटन प्राधिकरण (JOSAA)



उद्देश्य

मंत्रालय के मुख्य उद्देश्य हैं

शिक्षा पर राष्ट्रीय नीति तैयार करना और यह सुनिश्चित करना कि यह पत्र और भावना में लागू हो पूरे देश में शिक्षण संस्थानों की पहुंच और सुधार सहित योजनाबद्ध विकास, उन क्षेत्रों में शामिल हैं, जहां लोगों को आसानी से पहुंच उपलब्ध नहीं है। गरीबों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों जैसे वंचित समूहों पर विशेष ध्यान देना छात्रवृत्ति, ऋण सब्सिडी आदि के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान करें। समाज के वंचित वर्गों के छात्रों को योग्य बनाना। यूनेस्को और विदेशी सरकारों के साथ-साथ विश्वविद्यालयों, शिक्षा के क्षेत्र में देश के शिक्षा के अवसरों सहित, अंतरराष्ट्रीय सहयोग के साथ मिलकर काम करने सहित।

राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क

अप्रैल 2016 में, मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क के तहत भारतीय कॉलेजों की रैंकिंग की पहली सूची प्रकाशित की। संपूर्ण रैंकिंग अभ्यास में NBA, ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन , UGC, थॉमसन रॉयटर्स, एल्सेवियर और INFLIBNET (सूचना एवं पुस्तकालय नेटवर्क) केंद्र शामिल थे। रैंकिंग फ्रेमवर्क सितंबर २०१५ में शुरू किया गया था। सभी १२२ केंद्रीय-वित्त पोषित संगठन - जिनमें सभी केंद्रीय विश्वविद्यालय, आईआईटी और आईआईएम शामिल थे, ने रैंकिंग के पहले दौर में भाग लिया।


मानव संसाधन विकास मंत्री

2015 -स्मृति ईरानी
2016 - प्रकाश जावड़ेकर


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Wednesday, May 22, 2019

समाज में दिव्यांग के प्रति लोगो की जो गलत धारणा हैं उसे खत्म किया जाय

समाज में दिव्यांग के प्रति लोगो की जो गलत धारणा हैं उसे किस तरह खत्म किया जाय ?

दिव्यांग भी कर सकते हैं चमत्कार, उनको प्यार दें और उनका हौसला  बढ़ाए

प्रतिवर्ष 3 दिसंबर का दिन दुनियाभर में दिव्यांगों की समाज में मौजूदा स्थिति, उन्हें आगे बढ़ने हेतु प्रेरित करने तथा सुनहरे भविष्य हेतु भावी कल्याणकारी योजनाओं पर विचार-विमर्श करने के लिए जाना जाता है। दरअसल यह संयुक्त राष्ट्र संघ की एक मुहिम का हिस्सा है जिसका उद्देश्य दिव्यांगजनों को मानसिक रुप से सबल बनाना तथा अन्य लोगों में उनके प्रति सहयोग की भावना का विकास करना है। एक दिवस के तौर पर इस आयोजन को मनाने की औपचारिक शुरुआत वर्ष 1992 से हुई थी। जबकि इससे एक वर्ष पूर्व 1991 में सयुंक्त राष्ट्र संघ ने 3 दिसंबर से प्रतिवर्ष इस तिथि को अन्तरराष्ट्रीय विकलांग दिवस के रूप में मनाने की स्वीकृति प्रदान कर दी थी।

मेडिकल कारणों से कभी-कभी व्यक्ति के विशेष अंगों में दोष उत्पन्न हो जाता है, जिसकी वजह से उन्हें समाज में 'विकलांग' की संज्ञा दे दी जाती है और उन्हें एक विशेष वर्ग के सदस्य के तौर पर देखा जाने लगता है। आमतौर पर हमारे देश में दिव्यांगों के प्रति दो तरह की धारणाएं देखने को मिलती हैं। पहला, यह कि जरूर इसने पिछले जन्म में कोई पाप किया होगा, इसलिए उन्हें ऐसी सजा मिली है और दूसरा कि उनका जन्म ही कठिनाइयों को सहने के लिए हुआ है, इसलिए उन पर दया दिखानी चाहिए। हालांकि यह दोनों धारणाएं पूरी तरह बेबुनियाद और तर्कहीन हैं। बावजूद इसके, दिव्यांगों पर लोग जाने-अनजाने छींटाकशी करने से बाज नहीं आते। वे इतना भी नहीं समझ पाते हैं कि क्षणिक मनोरंजन की खातिर दिव्यांगों का उपहास उड़ाने से भुक्तभोगी की मनोदशा किस हाल में होगी। तरस आता है ऐसे लोगों की मानसिकता पर, जो दर्द बांटने की बजाय बढ़ाने पर तुले होते हैं। एक निःशक्त व्यक्ति की जिंदगी काफी दुख भरी होती है। घर-परिवार वाले अगर मानसिक सहयोग न दें तो व्यक्ति अंदर से टूट जाता है। वास्तव में लोगों के तिरस्कार की वजह से दिव्यांग स्व-केंद्रित जीवनशैली व्यतीत करने को विवश हो जाते हैं। दिव्यांगों का इस तरह बिखराव उनके मन में जीवन के प्रति अरुचिकर भावना को जन्म देता है।

देखा जाये तो भारत में दिव्यांगों की स्थिति संसार के अन्य देशों की तुलना में थोड़ी दयनीय ही कही जाएगी। दयनीय इसलिए कि एक तरफ यहां के लोगों द्वारा दिव्यांगों को प्रेरित कम हतोत्साहित अधिक किया जाता है। कुल जनसंख्या का मुट्ठी भर यह हिस्सा आज हर दृष्टि से उपेक्षा का शिकार है। देखा यह भी जाता है कि उन्हें सहयोग कम मजाक का पात्र अधिक बनाया जाता है। दूसरी तरफ विदेशों में दिव्यांगों के लिए बीमा तक की व्यवस्था है जिससे उन्हें हरसंभव मदद मिल जाती है जबकि भारत में ऐसा कुछ भी नहीं है। हां, दिव्यांगों के हित में बने ढेरों अधिनियम संविधान की शोभा जरूर बढ़ा रहे हैं, लेकिन व्यवहार के धरातल पर देखा जाये तो आजादी के सात दशक बाद भी समाज में दिव्यांगों की स्थिति शोचनीय ही है। जरूरी यह है कि दिव्यांगजनों के शिक्षा, स्वास्थ्य और संसाधन के साथ उपलब्ध अवसरों तक पहुंचने की सुलभ व्यवस्था हो। दूसरी तरफ यह भी देखा जा रहा है कि प्रतिमाह दिव्यांगों को दी जाने वाली पेंशन में भी राज्यवार भेदभाव होता है। मसलन, दिल्ली में यह राशि प्रतिमाह 1500 रुपये है, उत्तराखंड में 1000 रुपए है। तो झारखंड सहित कुछ अन्य राज्यों में विकलांगजनों को महज 400 रुपये रस्म अदायगी के तौर पर दिये जाते हैं। समस्या यह भी है कि इस राशि की निकासी के लिए भी उन्हें काफी भागदौड़ करनी पड़ती है।

  दरअसल, हमारे देश में दिव्यांगों के उत्थान के प्रति सरकारी तंत्र में अजीब-सी शिथिलता नजर आती है। हालांकि, हर स्तर से दिव्यांगों के प्रति दयाभाव जरूर प्रकट किये जाते हैं, लेकिन इससे किसी दिव्यांग का पेट तो नहीं ना भरता है! आलम यह है कि आज दिव्यांग लोगों को ताउम्र अपने परिवार पर आश्रित रहना पड़ता है। इस कारण, वह या तो परिवार के लिए बोझ बन जाता है या उनकी इच्छाएं अकारण दबा दी जाती हैं। वहीं, दूसरी तरफ दिव्यांगों के लिए क्षमतानुसार कौशल प्रशिक्षण जैसी योजनाओं के होने के बावजूद जागरूकता के अभाव में दिव्यांग आबादी का एक बड़ा हिस्सा ताउम्र बेरोजगार रह जाता है। अगर उन्हें शिक्षित कर सृजनात्मक कार्यों की ओर मोड़ा जाता है तो वे भी राष्ट्रीय संपत्ति की वृद्धि में अपना बहुमूल्य योगदान दे सकते हैं। इस तरह स्वावलंबी होने से वह अपने परिवार या आश्रितों पर बोझ नहीं बनेगा और धीरे-धीरे वह उज्ज्वल भविष्य की ओर कदम भी बढ़ाता नजर आएगा। यह अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री ने अगले सात वर्षों में 38 लाख विकलांगों को लक्ष्य बनाकर राष्ट्रीय कौशल नीति पेश की है। इससे पहले भी दीनदयाल विकलांग पुनर्वास योजना आंशिक रूप से प्रचलन में थी। जिसके तहत विकलांग व्यक्तियों के कौशल उन्नयन हेतु व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्र परियोजनाओं को वित्तीय सहायता (परियोजना लागत के 90 प्रतिशत तक) प्रदान की जाती है। यह कौशल 15 से 35 वर्ष की आयु समूह के लिए है ताकि ऐसे व्यक्ति आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे आ सकें। यह पहल सराहनीय है कि सरकार का सामाजिक न्याय और आधिकारिता मंत्रालय के अंतर्गत बनाया गया विकलांग सशक्तिकरण विभाग विकलांगों की राष्ट्रीय कार्य योजना और सुगम्य भारत अभियान के माध्यम से एक बेहतर माहौल बनाने की कोशिशें की जा रही हैं।

आंकड़ों के लिहाज से भारत में करीब दो करोड़ लोग शरीर के किसी विशेष अंग से विकलांगता के शिकार हैं। दिव्यांगजनों को मानसिक सहयोग की जरूरत है। परिवार, समाज के लोगों से अपेक्षा की जाती है कि उन्हें आगे बढ़ने को प्रेरित करें। शारीरिक व्याधियों से जूझ रहे लोगों को 'डिजेबल्ड' न कहकर 'डिफरेंटली एबल्ड' कहना ज्यादा अच्छा होगा। अगर उन्हें उनकी वास्तविक शक्ति का अहसास दिलाया जाये तो उनके साधारण से कुछ खास बनने में उन्हें देर नहीं लगेगी। हमारे सामने वैज्ञानिक व खगोलविद स्टीफन हॉकिंग, भारतीय पैराओलंपियन देवेंद्र झांझरिया, धावक ऑस्कर पिस्टोरियस, मशहूर लेखिका हेलेन केलर जैसे लोगों की लंबी फेहरिस्त है, जिन्होंने विकलांगता को कमजोरी नहीं समझा, बल्कि चुनौती के रूप में लिया और आज हम उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए उन्हें याद करते हैं।
यदि समाज में सहयोग का वातावरण बने, लोग किसी दूसरे की शारीरिक कमजोरी का मजाक न उड़ाएं, तो आगे आने वाले दिनों में हमें सकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकते हैं।


समाज के इस वर्ग को आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराया जाये तो वे कोयला को हीरा भी बना सकते हैं। समाज में उन्हें अपनत्व-भरा वातावरण मिले तो वे इतिहास रच देंगे और रचते आएं हैं। एक दिव्यांग की जिंदगी काफी दुखों भरी होती है। घर-परिवार वाले अगर मानसिक सहयोग न दें, तो व्यक्ति अंदर से टूट जाता है। वैसे तो दिव्यांगों के पक्ष में हमारे देश में दर्जन भर कानून बनाए गए हैं, यहां तक कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण भी दिया गया है, परंतु ये सभी चीजें गौण हैं, जब तक हम उनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ करना बंद ना करें। वे भी तो मनुष्य हैं, प्यार और सम्मान के भूखे हैं। उन्हें भी समाज में आम लोगों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी है। उनके अंदर भी अपने माता-पिता, समाज व देश का नाम रोशन करने का सपना है। बस स्टॉप, सीढ़ियों पर चढ़ने-उतरने, पंक्तिबद्ध होते वक्त हमें यथासंभव उनकी सहायता करनी चाहिए। आइए, एक ऐसा स्वच्छ माहौल तैयार करें, जहां उन्हें क्षणिक भी अनुभव ना हो कि उनके अंदर शारीरिक रूप से कुछ कमी भी है। इस बार के 'विश्व विकलांग दिवस' पर मेरी यह छोटी-सी अपील है कि दिव्यांगों का मजाक न उड़ाएं, उन्हें सहयोग दें।

 अंत में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस सुझाव को दुहराना चाहूंगा, जिसमें उन्होंने निःशक्तों (विकलांगों) को 'दिव्यांग' कहने का उचित विचार दिया था। यह महज एक औपचारिकता ना रहे, इसलिए इस सुझाव को व्यवहार में लाया जाना चाहिए।



क्या है दिव्यांगता

निशक्त व्यक्ति अधिनियम 1995 के मुताबिक जब शारीरिक कमी का प्रतिशत 40 से अधिक होता है तो वह दिव्यांगता की श्रेणी में आता है.

दिव्यांगता ऐसा विषय है जिस के बारे में समाज और व्यक्ति कभी गंभीरता से नहीं सोचते. क्या आप ने कभी सोचा है कि कोई छात्र या छात्रा अपने पिता के कंधे पर बैठ कर, भाई के साथ साइकिल पर बैठ कर या मां की पीठ पर लद कर या फिर ज्यादा स्वाभिमानी हुआ तो खुद ट्राईसाइकिल चला कर ज्ञान लेने स्कूल जाता है, किंतु सीढि़यों पर ही रुक जाता है, क्योंकि वहां रैंप नहीं है और ऐसे में वह अपनी व्हीलचेयर को सीढि़यों पर कैसे चढ़ाए? उस के मन में एक कसक उठती है, ‘क्या उस के लिए ज्ञान के दरवाजे बंद हैं? क्या शिक्षण संस्था में उस को कोई सुविधा नहीं मिल सकती?’ शौचालय तो दूर उस के लिए एक रैंप वाला शिक्षण कक्ष भी नहीं है जहां वह स्वाभिमान के साथ अपनी व्हीलचेयर चला कर ले जा सके एवं ज्ञान प्राप्त कर सके।

कोई दफ्तर, बैंक एटीएम, पोस्टऔफिस, पुलिस थाना, कचहरी ऐसी नहीं है जहां दिव्यांगों के लिए अलग से सुविधाएं मौजूद हों. सामान्य दिव्यांगों की तो छोडि़ए, यहां के दिव्यांग कर्मचारियों के लिए भी कोई सुविधा नहीं है. अगर दिव्यांगों को बराबर का अधिकार है तो नजर कहां आता है?

ट्रेन की ही बात करते हैं. क्या ट्रेन में दिव्यांग अकेले यात्रा कर सकते हैं? प्लेटफौर्म, अंडरब्रिज यहां तक कि ट्रेन तक पहुंचने के लिए भी दिव्यांगों को दूसरों की सहायता चाहिए. उन के लिए कोई मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं. किसी तरह अगर वे डब्बे में चढ़ भी जाएं तो ट्रेन में उन के लिए अलग से शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है. घर बैठ कर सभी सामान्य लोग औनलाइन टिकट की बुकिंग कर सकते हैं लेकिन दिव्यांगों को प्लेटफौर्म पर लाइन में लग कर ही टिकट लेना पड़ता है।

यहां तक कि मतदान केंद्रों पर भी दिव्यांगों को कोई अलग से सुविधा नहीं दी जाती, अधिकांश मतदान केंद्रों पर रैंप न होने के कारण वे मताधिकार से वंचित रह जाते हैं. यह तंत्र एवं समाज के लिए शोचनीय और शर्मनाक बात है.

हर साल बजट में दिव्यांगों के लिए भारी सहायता राशि की घोषणा की जाती है. कागज पर योजनाएं एवं सुविधाएं उकेरी जाती हैं, लेकिन अभी तक कोई भी तंत्र उन्हें मौलिक अधिकार एवं सुविधाएं नहीं दे सका है.

समाज से उपेक्षित दिव्यांग

हमारे समाज में दिव्यांगता थोथी संवेदनाओं का केंद्र बन कर रह गई है. दिव्यांगों से तो सभी सहानुभूति रखते हैं लेकिन उन्हें दोयम दर्जे का व्यक्तित्व मानते हैं. बेचारे, पंगु, निर्बल, निशक्त जाने कितने संवेदनासूचक शब्दों से हम उन्हें पुकारते हैं. कितनी सरकारी योजनाएं, विभाग बन गए लेकिन क्या दिव्यांगों को हम सबल बना पाए हैं? क्या उन को राष्ट्र की मुख्य धारा से जोड़ कर राष्ट्र निर्माण में उन का योगदान ले पाए हैं, शायद नहीं. इस के जिम्मेदार हम सभी हैं।

दिव्यांगों के अधिकारों को आवाज देता ‘संयुक्त राष्ट्र दिव्यांगता समझौता’ विश्वव्यापी मानवाधिकार समझौता है. यह समझौता स्पष्ट रूप से दिव्यांगों के अधिकारों एवं विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा निर्बाध रूप से दिव्यांगों के पुनर्वास एवं उन्हें बेहतर सुविधाएं प्रदान करने की पैरवी करता है.

देश की संसद ने दिव्यांगों के पुनर्वास एवं उन्हें देश की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए दिव्यांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण, पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 दिव्यांगता अधिनियम पारित किया. स्वाभाविक तौर पर अशक्त लोगों के अधिकारों को प्रतिपादित करते हुए भारत ने संयुक्त राष्ट्रसंघ के ‘राइट्स औफ पर्सन्स विद डिस्एबिलिटीज’ कन्वैंशन में कही गई बातों को 2007 में स्वीकार किया और दिव्यांगों के लिए बने अधिनियम 1995 को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पारित कन्वैंशन जिस पर 2008 में अमल शुरू हुआ, के आधार पर बदलने की बात कही.

फिलहाल करीब 40 कंपनियां दिव्यांगों को नौकरियां दे रही हैं. गैर सरकारी संस्थानों की यह पहल निश्चित रूप से दिव्यांगों के जीवन में नए रंग भर सकती है. आज आवश्यकता है दिव्यांगों को समान अधिकार देने की व सम्मानपूर्वक जीवन की मुख्यधारा से जोड़ने की ताकि वे देश निर्माण में अपना योगदान दे सकें।

 आंकड़ों की जबानी, उपेक्षा की कहानी

राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण के 58 चक्र के अनुसार देश में लगभग 1 करोड़ 85 लाख दिव्यांग हैं, जबकि रजिस्ट्रार जनरल औफ इंडिया की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार देश में दिव्यांग की संख्या 2 करोड़ 68 लाख है. 75% दिव्यांग ग्रामीण इन क्षेत्रों में हैं, 49% दिव्यांग साक्षर हैं एवं 34% दिव्यांग रोजगार प्राप्त हैं.

उत्तराखंड

 शत्रुघ्न सिंह ने उत्तराखंड के 13वें मुख्य सचिव के रूप में 17 नवम्बर, 2015 को चार्ज संभाल लिया है।

 शत्रुघ्न सिंह का कार्यकाल दिसम्बर 2016 तक रहेगा।

-राज्य में हैं 1 लाख 85 हजार दिव्यांग

डॉ। कमलेश कुमार पांडे आजकल [जुलाई, 2016] उत्तराखंड दौरे पर हैं। जहां वे प्रदेश सरकार के आलाधिकारियों व एनजीओ से दिव्यांगनजों की समस्याओं को लेकर बैठकें और चर्चाएं कर रहे हैं। सोमवार 25 जुलाई को उन्होंने सीएस शत्रुघ्न सिंह से भी मुलाकात की। डॉ। कमलेश पांडे ने सचिवालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि उत्तराखंड दिव्यांगजनों को पेंशन देने में आगे है। राज्य में दिव्यांगों को एक हजार रुपये पेंशन दी जाती है।

99 हजार को सर्टिफिकेट

डॉ। पांडे ने कहा कि प्रदेश की यूनिवर्सिटीज में डिसएबिलिटी डिपार्टमेंट खोले जाने पर शासन के अधिकारियों से बात हुई है। जिस पर सहमति मिली है। आधार कार्ड भी पचास प्रतिशत ही बन पाए हैं। दृष्टिबाधितार्थो के लिए हल्द्वानी में ब्लड बैंक खुलने पर भी सरकार ने मंजूरी दी है। राज्य दिव्यांगजन आयुक्त मनोज चंद ने बताया कि प्रदेश में एक लाख 85 हजार दिव्यांगजनों की संख्या है। जिनमें से 99 हजार को सर्टिफिकेट दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि पीएचसी सेंटर में अब सर्टिफिकेट बन पाएंगे। सरकारी अस्पतालों में फ्री ओपीडी के सुविधा न मिलने पर राज्य आयुक्त ने कहा कि 1 से 18 साल तक दिव्यांगजनों को फ्री मेडिकल की सुविधा है,
जिन अस्पतालों में सुविधा नहीं मिल रही है, शिकायत मिलने पर सख्ती बरती जाएगी।

-दिव्यांगजन मुख्य आयुक्त कार्यालय ccpd@nic.in पर शिकायत भेज सकते हैं.

मुख्य आयुक्त ने बताया कि दिव्यांगजनों की सुविधा व अधिकार के लिए नया बिल राज्यसभा में लंबित है। बिल पास होने पर दिव्यांगता के प्रकार 7+2 से 19+2, 21 हो जाएगी, और आरक्षण तीन से बढ़कर पांच प्रतिशत हो जाएगा। आयोग का गठन भी होगा।


RIGHTS OF PERSONS WITH DISABILITIES (RPWD) ACT, 2016


दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार (RPWD) अधिनियम, 2016


2016 में संसद के गर्म शीतकालीन सत्र में व्यवधानों और स्थगन के दिनों के दौरान छह साल की पैरवी, वकालत और प्रतीक्षा के बाद, हमने आखिरकार विकलांगों के बहुप्रतीक्षित अधिकारों के सर्वसम्मति से पारित होने के साथ हमारे सांसदों की अनुकंपा देखी (RPWD) ) १४ दिसंबर, २०१६ को राज्यसभा में और उसके बाद १६ दिसंबर, २०१६ को लोकसभा में विधेयक। वर्ष के अंत से पहले माननीय राष्ट्रपति द्वारा इस विधेयक को और अधिक अनुमोदित और हस्ताक्षरित किया गया और सरकार ने अपने अधिकारी को 'अधिसूचित' किया 28 दिसंबर, 2016 को राजपत्र। इस प्रकार, RPWD बिल 2016 को 'अधिनियमित' किया गया और 'LAW' बन गया।

वास्तव में, एक ऐतिहासिक क्षण और एक पथ तोड़ने वाली उपलब्धि! यह कानून भारत के अनुमानित 70-100 मिलियन विकलांग नागरिकों के लिए गेम चेंजर होगा और इसे लागू करने के प्रावधानों के साथ अधिकारों से दूर प्रवचन को धर्मार्थ से दूर ले जाने में मदद करेगा।

1995 अधिनियम के तहत पिछली 7 श्रेणियों में से 21 श्रेणियों को अक्षम करने के अलावा, यह नया अधिनियम किसी के अधिकारों पर पूरा जोर देता है - समानता और अवसर का अधिकार, विरासत और खुद की संपत्ति का अधिकार, घर और परिवार का अधिकार और दूसरों के बीच प्रजनन अधिकार। । 1995 के अधिनियम के विपरीत, नया अधिनियम सुलभता के बारे में बात करता है - सरकार के लिए दो साल की समय सीमा निर्धारित करने के लिए यह सुनिश्चित करने के लिए कि विकलांग व्यक्तियों को भौतिक बुनियादी ढाँचे और परिवहन प्रणालियों में बाधा रहित पहुँच प्राप्त हो। इसके अतिरिक्त, यह निजी क्षेत्र के लिए भी जवाबदेह होगा। इसमें सरकार द्वारा निजी रूप से स्वामित्व वाले विश्वविद्यालयों और कॉलेजों जैसे शैक्षणिक संस्थानों को 'मान्यता प्राप्त' भी शामिल है। नए अधिनियम की एक पथ-तोड़ विशेषता सरकारी नौकरियों में आरक्षण में 3% से 4% तक की वृद्धि है

नए कानून के साथ, भारतीय विकलांगता आंदोलन को अगले स्तर पर समाप्त कर दिया गया है। इसने हमें विकलांगता अधिकारों, "विकलांगता 2.0" के अगले चरण में प्रवेश किया है ।


दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम-2016 के अन्तर्गत निशक्तता के 21 प्रकार है

1. मानसिक मंदता [Mental Retardation] -
        1.समझने / बोलने में कठिनाई
        2.अभिव्यक्त करने में कठिनाई

2. ऑटिज्म [Autism Spectrum Disorders] -
    1. किसी कार्य पर ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई
    2. आंखे मिलाकर बात न कर पाना
    3. गुमसुम रहना

3. सेरेब्रल पाल्सी [Cerebral Palsy] पोलियो-
    1. पैरों में जकड़न
    2. चलने में कठिनाई
    3. हाथ से काम करने में कठिनाई

4. मानसिक रोगी [Mental illness] -
    1.अस्वाभाविक ब्यवहार,  2. खुद से बाते करना,
    3. भ्रम जाल,  4. मतिभ्रम,  5. व्यसन (नसे का आदी),
    6. किसी से डर / भय,  7. गुमसुम रहना

5. श्रवण बाधित [Hearing Impairment]-
   1. बहरापन
   2. ऊंचा सुनना या कम सुनना

6. मूक निशक्तता [Speech Impairment] -
    1. बोलने में कठिनाई
    2. सामान्य बोली से अलग बोलना जिसे अन्य लोग समझ          नहीं पाते

7. दृष्टि बाधित [Blindness ] -
    1. देखने में कठिनाई
    2. पूर्ण दृष्टिहीन

8. अल्प दृष्टि [Low- Vision ] -
    1. कम दिखना
    2. 60 वर्ष से कम आयु की स्थिति में रंगों की पहचान नहीं          कर पाना

9. चलन निशक्तता  [Locomotor Disability ] -
    1. हाथ या पैर अथवा दोनों की निशक्तता
    2. लकवा
    3. हाथ या पैर कट जाना

10. कुष्ठ रोग से मुक्त  [Leprosy- Cured ] -
     1. हाथ या पैर या अंगुली मैं विकृति
     2. टेढापन
     3. शरीर की त्वचा पर रंगहीन धब्बे
     4. हाथ या पैर या अंगुलिया सुन्न हों जाना

11. बौनापन [Dwarfism ]-
      1. व्यक्ति का कद व्यक्स होने पर भी 4 फुट 10इंच                  /147cm  या इससे कम होना

12. तेजाब हमला पीड़ित [Acid Attack Victim ] -
      1. शरीर के अंग हाथ / पैर / आंख आदि तेजाब हमले की वज़ह से असमान्य / प्रभावित होना

13. मांसपेशी दुर्विक़ार [Muscular Distrophy ] -
     . मांसपेशियों में कमजोरी एवं विकृति

14.स्पेसिफिक लर्निग डिसेबिलिटी[Specific learning]-
     . बोलने, श्रुत लेख, लेखन, साधारण जोड़, बाकी, गुणा,        भाग में आकार, भार, दूरी आदि समझने मैं कठिनाई

15. बौद्धिक निशक्तता [ Intellectual Disabilities]-          1. सीखने, समस्या समाधान, तार्किकता आदि में          कठिनाई
      2. प्रतिदिन के कार्यों में सामाजिक कार्यों में एम  अनुकूल व्यवहार में कठिनाई

16. मल्टीपल स्कलेरोसिस [Miltiple Sclerosis ] -
     1. दिमाग एम रीढ़ की हड्डी के समन्वय में परेशानी

17. पार्किसंस रोग [Parkinsons Disease ]-
     1. हाथ/ पाव/ मांसपेशियों में जकड़न
     2. तंत्रिका तंत्र प्रणाली संबंधी कठिनाई

18. हिमोफिया/ अधी रक्तस्राव [Haemophilia ] -
     1. चोट लगने पर अत्यधिक रक्त स्राव
     2.रक्त बहेना बंद नहीं होना

19. थैलेसीमिया [Thalassemia ] -
      1. खून में हीमोग्लबीन की विकृति
      2. खून मात्रा कम होना

20. सिकल सैल डिजीज [Sickle Cell Disease ] -
     1. खून की अत्यधिक कमी
     2. खून की कमी से शरीर के अंग/ अवयव खराब होना

21. बहू  निशक्तता [Multiple Disabilities ] -
     1. दो या दो से अधिक निशक्तता से ग्रसित


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